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प्रमेययोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१८ अनुरकुमारदेवानां स्थानानि ७३५ चैकं योजनसहत्रं वर्जयिखा मध्ये अष्टसप्ततिसहस्रोत्तरे योजनशतसहस्रे, अत्र खल औत्तराहाणाम् असुरकुमाराणाम् देवानाम् त्रिंशदभवनावासशतसह लाणि भवन्ति इत्याख्यातम् तानि खलु भवनानि बहिर्वृत्तानि, अन्तश्चतुरस्राणि, शेपं यथा दाक्षिणात्यानां यावद् विहरन्ति, बली अत्र वैरोचनेन्द्रो वैरोचनराजः परिवसति, कृष्णो महानीलसदृशो यावत् प्रभासयन् स खलु तत्र त्रिंशतो भवनावासशत सहस्राणाम्, पष्टेः, सामानिकसाहस्रीणास् त्रयस्त्रिंशतस्त्रायस्त्रिंशकानाम्, चतुणी लोयोजन (ओगाहित्ता) अवगाहन करके (हिट्ठा) नीचे (चेगं) एक (जोयणसहस्सं) हजार योजन (वज्जित्ता) छोडकर (मज्झे) मध्य में (अट्ठहुत्तरे जोयणसयसहस्से) एक लाख अठहत्तर हजार योजन में (एत्थ f) यहां (उत्तरिल्लाणं असुर कुमाराणं) उत्तर दिशा के असुरकुमार देवों के (तीसं भवणावाससयसहस्सा) तीस लाख भवन (भवंतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है (ते णं भवणा) वे भवन (बाहिं वहा) बाहर से गोल हैं (अंतो चउरंसा) अन्दर से चौकोर हैं (सेसं जहा दाहिजिल्लाणं) शेष दक्षिण दिशा के देवों के समान (जाव) यावत् (विहरंति) विचरते हैं (बली) बलीन्द्र (एत्थ) यहां (वइरोयणिदे) वैरोचनेन्द्र (वहरोयणराया) वैरोचनराज (परिवसइ) निवास करता है (काले) कृष्णवर्ण (महानीलसरिसे) महान् नील द्रव्य के समान (जाव) यावत् (पभासेमाणे) प्रकाशित करता हुआ (से णं) वह (तत्थ) वहाँ (तीसाए भवणावाससयसहस्साणं) तीस लाख भवनों का (सट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं) साठ हजार सामानिक देवों का (तायत्तीसाए तायत्तीस. (हिदा) नाय () मे (जोयणसहस्सं) 31२ यान (वज्जित्ता) छोडीन (मझे) मध्यम (अहुत्तरे जोयणसहस्से) २४८ २४याते२७०५२ योनिमा (एत्थ ण) मडी (उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराण) उत्त२६शाना असु२४मा२हेवान! (तीसं भवणावाससयसहस्सा) श्रीस मयन (भतीतिमक्खाय) छ, सेभ यु छ (तेणे भवणा) ते भवन। (बाहिं वहा) मा२यी छ (अंतो चांस.) म-४२थी यारस (सेस जहा दहिणिल्लाणं) शेष ४थन क्ष] [६शाना हवाना समान सभा (जाव) यावत् (विहरंति) वियरे छ (बली) मसीन्द्र (एत्य) मडि (वइरोयणिदे) वैशेयनेन्द्र (वइरोयणराया) वैशयन IM (परिवसइ) निवास ४२ छ (काले) १ (महानील सरिसे) महान् नीस द्रश्यना समान (जाव) यायन (पभासे मागे) शित ४२। ७ निवास ४२ छ (सेणं) ते (तत्थ) त्या (तीसोए भावणावाससयसहस्माणं) त्रास at aaiना (सट्ठीर सामाणियसाहस्सीणं) A16 M२ सामानि वाना (तायः