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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३९ सभेददर्शनार्यनिरूपणम् नार्या दशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा ।
'निसर्गोपदेशरुची २, आज्ञारुचिः ३, सूत्र-बीज रुची ५ एव । अभिगम-विस्ताररूची ७, क्रिया-संक्षेप-धर्मरुचयः ॥१०॥१॥ भूतार्थेनाऽधिगता, जीवा अजीवाश्च पुण्यं पापं च । सहसंमत्या आश्रयः संवरश्च (तान्) रोचयतितु निसर्गः ॥२॥ यो जिनदृष्टान् भावान् चतुर्विधान् श्रद्दधाति स्वयमेव ।
एवमेव नान्यथेति च, निसर्गरुचिरिति ज्ञातव्यः ॥३॥ दर्शनार्य (से किं तं सरागर्दसणारिया ?) सरागदर्शनार्य कितने प्रकार के हैं ? (दसविहा पण्णत्ता तं जहा) दश प्रकार के कहे हैं, यथा____ (निसग्गुबएसरुई) (निसर्गरुचि, उपदेशरुचि (आणाझई) आज्ञारुचि (सुत्तबीयरुइ मेव) सूत्ररुचि और बीजरुचि (अभिगमवित्थाररुई) अभिगमरुचि, विस्ताररुचि (किरिया संखेव धम्मरुई) क्रियारुचि, संक्षेपरुचि, धर्मरुचि (१)
(भूयत्थेण) तथ्य रूप से (अहिणया) जाने (जीवाजीवे य) जीव और अजीव (पुष्णपावं य) पुण्य और पाप (सहसंमुइया) स्वमति से (आसवसंवरे य) आश्रव और संवर (रोएइ उ) अद्धा करता है (निसग्गो) यह निसर्गरुचि है। (२)
(जो जिणदिष्ट्रे भाई) जो तीर्थकरोक्त भावों को (चउब्धिहे) चार प्रकार के (सहइ) श्रद्धा करता है (सयमेव) स्वयं ही (एमेच नन्नह दसणारिया य वीयरागदसणारिया ?) स२।२शनाय ने पीत शनाय
(से किं तं सरागर्दसणारिया ?) स नाया जाना छ १ (सराग दसणारिया) स२॥ शनाय (दसविहा पण्णत्ता) ४२५ ५४१२ना छ (तं जहा) ते मा शत (निसग्गुवएसरुई) निसरी ३थि, भने ७५१२१ ३थि (आणारुई) माज्ञाइयि (सुत्तबीयरुइ चेन) सूत्र३थि मने मी ३५ (अभिगमवित्थारमई) गलिगम३ िमने पिता२ ३यि (किरियासंखेवधम्मरुई) या३यि, स२५३यि, धमयि (१) (मुयत्थेण) तथ्य३५थी (अहिगा) Mणे (जीवाजीवेय) 0 गने २०७१ (पुग्णपानं च) धुच्य मने पा५ (सह संमुइया) स्वभतिथी (आसवसंवरे य) मा04 मने स १२ (रोण्इ3) श्री राणे छ (निमग्गो) २मा निमा ३थि छ (२)
(जो जिणदि भावे) २ तीर्थ शना खाने (चविहे) ॥२ ५४२न (सदहइ) श्रद्धा ४२ छ (सयमेव) स्वयं पात (एमेव नन्नहत्तिय) तया
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