________________
प्रमैययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३४ खेवरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ४११
जुकाः, वजुलकाः, तित्तिराः, वर्तकाः, लावकाः, कपोताः, कपिञ्जलाः, पारावताः, चिटकाः, चापाः, कुक्कुटाः, शुकाः, वहिणः, मदनशलाकाः, कोकिलाः, सेहाः, वरिल्लकादयः, ते एते रोमपक्षिणः । अथ के ते समुद्गपक्षिणः ? समुद्गपक्षिणः एकाकाराः प्रज्ञप्ताः। ते खलु न सन्तीह, बाहोचु द्वीपसमुद्रेषु भवन्ति, ते एते समुद्गपक्षिणः। अथ के ते विततपक्षिणः ? तिततपक्षिण एकाकाराः प्रज्ञमाः । ते खलु न सन्तीह, वाह्येषु द्वीपसमुद्रेषु भवन्ति, ते एते विततपक्षिणः। पोण्डरीक (कागा) काक (कामिंजुया) कामेजुक (वंजुलगा) वंजुलक (तित्तिरा) तित्तिर (वगा) बतक (लावगा) लावक (कबोया) कबूतर (कविंजला) कपिञ्जल (पारेवया) पापित (चिडगा) चिटक (चासा) चाष (कुक्कुडा) कुक्कुट (सुगा) शुक (वरहिणा) बहीं (मयणसलागा) मदनसलाका (कोइला) कोकिल (सहा) सेह (वरिल्लगमाइ) वरिल्लकादि (से तं लोमपक्खी) यह रोमपक्षी हुए।
(से किं तं समुग्गपश्खी ?) समुद्ग पक्षी कितने प्रकार के हैं ? (एगागारा पण्णत्ता) एक प्रकार के कहे हैं (ते णं नत्थि इहं) वे यहां नहीं होते (बाहिरएस्सु दीवसमुद्देसु भवंति) बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं (से त्तं समुग्गपक्खी) ये समुद्गपक्षी हुए।
(से कि तं विययपक्खी? वितत पक्षी कितने प्रकार के हैं ? (एगागारा पण्णता) एक प्रकार के होते हैं (ते णं नत्थि इहं) वे यहां-मनुष्य क्षेत्र में नहीं होते (बाहिरएसु दीवसमुद्देसु भवंति) बाहर के द्वीपहत्था) सस्त (गहरा) २ (पोंडरिया) पौ ३.२४ (कागा) 311 (कामिंजुया) अमेर (जुला) ३४ (तित्तिरा) तत२ (बट्टगा) ४ (लावगा) साप (कबोया) ४भूत२ (कविंजला) Nिara (पारेवया) २१त (चिडगा) सिट (चासा) यास. (कुक्कुडा) ४७८ (सुगा) पोपट (वरहिणा) पडी (मयणसलागा) भहन सा (कोइया) या (सेहा) सेड (वरिल्लगमाइ) परिसी (से तं लोम पक्खी ) मा रोमपक्षी ४ii .
(से किं तं समुग्गपक्खी) सभुश पक्षी डेट प्रा२न छ ? (एगोगारा पण्णत्ता) ४ ४२ ह्या छ (ते णं नस्थि इहं) तेथेमाडी नथी मनुष्य क्षेत्रमा लता नयी (बाहिरएसु दीवसमुदेसु भवंति) २ना दी५ समुद्रोभा याय छ (से तं समुग्गपक्खी) समु४ पक्षी ४ा ।
से कि तं विययपक्खी) वितत पक्षी सा प्रश्न छ? (एगागारा) पण्णत्ता) ४ प्रा२ना डाय छे (ते णं नत्थि इई) तेसो माडी नयी २॥ मनुष्य क्षेत्रमा त नयी (बाहिरएसु दीवसमुदेसु भवति) माना दीप समुद्रोमा थाय