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प्रशापनासूत्रे सूचीकटाहन्यायेन अपय व्यतया प्रथमं म्लेच्छयक्तव्यतामेवाह-'से कि तं मिलिख? ___ अथ "कि तं'-के ते-कतिथिवा इत्यर्थः, म्लेच्छाः प्रजमाः ? भगवानाह'मिलिय अगेगविहा पण्णता'-म्लेच्छा अनेकविधाः-नानाप्रकारका प्रज्ञप्ताः 'त जहा'-तद्यया 'सगा'-शकाः, 'जवणा-यवना !'चिलाया' चिलाताः, 'सबरवव्यरमुरंडोट्टमंडगनिजगपाणिया'-शवर-वर-मुरुण्ड-उड्डमण्डकनिण्णकपकणिकाः। 'कुलक्खगोड सिहलपारसगोधा'-फुलाक्ष-गौड-सिंहल-पारसकाऽऽन्ध्राः, 'कांघअंबडगदमिल चिल्लल पुलिंद-आरोस दोवपोकाणगंधाहारया-क्रौञ्चाम्बडक, द्राविड फुलिन्द-आरोप-डोव-पोकाण गन्धहारकाः; 'पहलिय अझलरोमपासपउसा'- बल्हीक-जल्लरोम-मापळ्यकुशाः; मलयाय'-मलकाश्च 'बंधुयायबन्धकाच, 'चुंचुयाय' चुम्बुकाश्च, 'चूलिय कोंकणगमेयपलवमालय मग्गर आमासिा '-चूलिक-कोकणक-सद पल्दव-मालव-मगर-आमापिकाः, 'कणवीरल्हसिय खसा'-कर्णपीर-हासित-खसाः, 'खासिय-खासिकाः, 'णेदर'नेदराः, 'मों'-मौण्डाः-मौष्ठिका:-'डोंबिल-डोम्बिलाः 'गलओम'-गलओसाः जनसम्मत,न हो । सूची कटाह न्याय से पहले कथन होने के कारण म्लेच्छों की प्रज्ञापना करते हैं।
प्रश्न किया गया है कि म्लेच्छ कितने प्रकार के होते है। ? भगवान् ने उत्तर दिया-ग्लेच्छ नाना प्रकार के होते है। इस प्रकार हैं-शक, यवन, चिलात (किरात), शवर, पर्वर, गुरुण्ड, उड्ड, भण्डक, निष्णक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड (गोड), सिंहल, पारसक, आन्ध्र, कौंच, अम्बडक, द्राविड, चिल्वल, पुलिन्द, आरोष, डोय, पोक्काण, गन्धहारक, वल्हीक, जल्लरोम, ल (ब) कुश मलक, बंधुक, चूलिक, कोंकणक, मेद, पल्हव, मालब, मग्गर, आभापिक, कणवीर, ल्हासिक, ग्वस, खासिक, नेदूर, मोंढा, डोम्बिल, गलओस, प्रदोष, कैकेय,
સૂચિકટાહ ન્યાયથી પહેલા અલ્પ કથન હોવાને કારણે ટ્વેની (પ્રથમ) પ્રરૂપણ કરે છે. પ્રશ્ન એ છે કે મ્યુચ્છ કેટલા પ્રકારના હોય છે ?
શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે–પ્લેચ્છ અનેક પ્રકારના હોય છે. તેઓ આ પ્રકારે છે
२४, यवन, fed शत श२, २, मु३७, 833, , निए ५ ४, मुसाक्ष, 13, (गोड) सिंडस, पारस, मान्न, य, अ५३४. द्रविड, पिस, सिन्द, मा५, ७, पy, गन्या२४, डीs, asa ३१, ८ (५) ४२, भर, मधु, यूलि, १४, मे, ५६७५, माप, भ२