________________
मारनासूत्रे
टीका - अथ द्वीन्द्रियजीवप्रभेदान् प्ररूपयितुमाह - 'से किं तं बेइंदिय 'संसार समावन जीवपन्नवणा ?' 'से' - अथ 'किं तं' - का सा - कतिविधा 'इंदिय"संसारसमावन जीवपनवणा' द्वीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - 'बेईदियसंसार समावण्ण जीवपन्नवणा' - द्वीन्द्रिय संसार समापन्नजीवप्रज्ञा'पना 'अणेगविहा' - अनेक विधा - अनेक प्रकारा 'पण्णत्ता' - प्रज्ञप्ता, ' जहाँतद्यथा 'पुला किमिया' - पूतकृमयः, ते च गुदप्रदेशोत्पन्नाः कृमयः उच्यन्ते, "कुच्छि किमिया'- कुक्षिकृमयः - उदरप्रदेशोत्पन्नाः कृमयः, 'गेहूयलगा' गण्डूपदाः क्षुद्रजन्तु विशेषाः, 'गोलोमा' - गोरामाः, 'णेउरा' - नूपुराः, 'सोमंगलगा' - सौम(ङ्गलका:, ' वंसीमुद्दा' - वंशी मुखाः, 'सूइमुडा' - सूचीमुखाः, 'गोजलोया' 'गोजली--कसः - गौ:- पृथिवी, जलञ्च ओको गृहं येषां ते गोजलौकसः, 'जलोया' - जलो:- सः - जलमेव ओको येषां ते जलौकसः, 'जोक' इति प्रसिद्धाः, 'जालाउया'• जालायुष्काः, 'संखा' - शङ्खाः समुद्रोत्पन्नाः प्रसिद्धा एव, 'संखणगा' - शङ्खनका:(जोणीपमुह सय सहस्साई ) सात लाख जाति कुलकोटि ( भवतीतिमक्खायें) होती हैं, ऐसा कहा है (से तं वेदियसंसार समापन्न जीवपण्णवणा ) यह दीन्द्रिय संसारी जीवों की प्रज्ञापना है ||२५||
३४८ Ot
टीकार्य अब बीन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेदों का निरूपण करते हैं । प्रश्न है कि हीन्द्रिय संसारी जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर 1 देते हैं- द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं और इस कारण उनकी प्रज्ञामना भी ( अनेक प्रकार की है । द्वीन्द्रियजीवों में से कुछ का उल्लेख -: करते हैं- पूतकृमि जो गुदा में उत्पन्न होते हैं, पेट में उत्पन्न होने वाले -कुक्षिकृमि, गंडूपद ( गिडौला नामक क्षुद्र जन्तु), इसी प्रकार गौरम, नपुर, सौमंगलक, वंशीमुख, सूचीमुख, गोजलौकस, (जोंक) जालाछे (सेत्तं वेइंदिय, संसारसमा वन्न जीवपण्णवणा) या द्वीन्द्रिय संसारी भवानी प्रज्ञापना छे. ॥.सू. २५ ॥
ટીકા હવે ીન્દ્રિીય જીવાના ભેદ પ્રભેદનું નિરૂપણ કરે છે—પ્રશ્ન એ છે (द्वीन्द्रिय 'स'सारी ♚ डेटा अारना डेला छे?' .
શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે દ્વીન્દ્રિય જીવ અનેક પ્રકારના છે. અને એ ! કારણે તેમની પ્રજ્ઞાપના પણ અનેક પ્રકારની છૅ દ્વીન્દ્રિય જીવામા કેટલાકને
। उसे
छे..
!
પૂતસૃષિ જીવે ગુદામાં ઉત્પન્ન થાય છે. પેટમા ઉત્પન્ન થનારા કુક્ષિકૃમિ यह (गिडुडोला नाभना क्षुद्र भन्तुखेो) तेवीन रीते, गोरोभ, नूपुर, सौभ - "गाडे, वशीभुण, सूर्याीभुण, गौन्लोडस (भणे) लसागुण्ड, श, राजवटी, गुस्सा (नाना शय-समुद्रना शमना भारना) गुडसु, सुन्ध, ओडी, सौत्रि