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प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ स्.१९ सभेदवनस्पतिकानिरूपणम्
२५१ टीका-अथोदेशक्रमेण प्रथमं प्रथमोद्दिष्टवृक्षभेदं प्ररूपयति-'से किं तं रुक्खा?' 'से' अथ 'कि तं'-के ते कतिविधा इत्यर्थः 'रुक्खा' वृक्षाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह"रुक्खा दुविहा पग्णत्ता' वृक्षाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तं जहा'-तद्यथा-'एगडियाय, बहुवीयगाय' एकास्थिकाश्च वहुवीजकाश्च, तत्र प्रत्येकफलं प्रति एकम् अस्थि'वीज येषां ते एकास्थिकाः, तथा प्रत्येकफलं प्रति फलान्तर्वर्तीनि बहूनि-अनेकानि, बीजानि येषां ते बहुवीजकाः व्यपदिश्यन्ते, अत्रापि चकार द्वयेन वक्ष्यमाण स्वगतानेकभेदाः ज्ञाप्यन्ते, तत्र एकास्थिकप्रकारान् प्ररूपयितुमाह-'से किं - (से कित्तं बहुवीयगा) बहुयीजक कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अत्थिय) अत्थिक (तदुंक) तिन्दुक-तेदू (कविष्ट) कवीठ (अंबाडग) अम्बाडग वीजों वाले (से तं रुक्खा) यह वृक्षों की प्ररूपणा हुई । ॥२०॥
टीकार्य-जिस क्रम से नाम निर्देश किया है, उसी क्रम से उनकी प्ररूपणा करने के लिए पहले निर्दिष्ट 'वृक्ष' की प्ररूपणा की जाती है --प्रश्न किया गया कि वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? भगवान् ने कहा-वृक्षों के दो प्रकार हैं-एकास्थिक और बहुवीजक । जिन वृक्षों के एक-एक फल में एक ही गुठली होती है, वे एकास्थिक कहलाते हैं । और जिन वृक्षों के एक-एक फल में बहुतेरे बीज होते हैं वे यहबीजक कहलाते हैं। यहां प्रयुक्त 'य' शब्द यह सूचित करता है कि इन दोनों प्रकार के वृक्षों के भी कई-कई भेद होते हैं।
(से कि तं बहुवीयगा) मामी पापा २ना छ ? (बहुवीयगा) ५९ मा u (अणेगविहा) मने ५४२ना (पण्णत्ता) ४झा छ (तं जहा) तेस। शते (अत्थिय) मस्ति (तेदुंक) तिन्दु (कविठ्ठ) ४ी हु सा वृक्षानी प्र३५५॥ २४, ॥ सू. २० ॥
ટીકાર્ય–જે કમે નામ નિર્દેશ કર્યો છે, તેજ કમે એની પ્રરૂપણ કરવાને માટે પહેલા બતાવેલા વૃક્ષની પ્રરૂપણ કરાય છે–
શ્રી ગૌતમ સ્વામીએ પ્રશ્ન કર્યો કે વૃક્ષ કેટલા પ્રકારના હોય છે? શ્રી ભગવાને કહ્યું-વૃક્ષના બે પ્રકાર છે એકાસ્થિ અને બહુ બીક.
જે વૃક્ષોના એક એક ફળમાં એક જ ગેટલી હોય છે તેઓ એકાઅસ્થિક કહેવાય છે
અને જે વૃક્ષના એક એક ફળમાં ઘણાં બી હોય છે તેઓ બહુ બીજક કહેવાય છે.
અહીં () શબ્દ તે સૂચિત કરે છે કે આ બન્ને રાતના વૃક્ષોના પણ અનેકાનેક ભેદ હોય છે,