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प्रमेयवाधिनी टीका प्र. पद १ सू.१९ सभेदवनस्पतिकायनिरूपणम् २४९ से किं तं बहुवीयगा ? बहुवीयगा अगविहा पण्णत्ता तंजहा'अस्थि य? तेंदुर कवितु३, अंबाडग४ साउलिंग५ विल्ले य ६। आमलग७ फणिस८ दालिस९ आलो १० उंबर ११ वडे य१३।५। णग्गोह१३ णंदिरुबखे१४, पिपरी१५ सयरी१६ । पिलुक्खरुक्खे य१७ काउंवरि१८ कुत्युंभरि१९ देवदालीय २०१६॥ तिलए लउएं छत्तोह सिरीस सत्तेवन्न दहिवन्ने। लो? ईव चंदण ऽज्जु णीमे कुडएँ यंबे य ॥७॥
जे यावन्ने तहप्पगारा. एएलि मूला वि असंखेज्ज जीव या, कंदा वि खंधा वि साला वि, पत्ता पत्तेय जीवया, पुप्फा अणेगजीवया, फला बहुवीयगा । से सं बहुवीयगा। से तं रुक्खा ॥१॥ अपि त्वचोऽपि शाखा अपि प्राला अवि, पत्राणि प्रत्येजीवकानि, पुष्पाणि अनेक जीवकानि, फलानि एकास्थिकानि । ते एते एकास्थिकाः। ___ अथ के ते बहुवीजकाः ? बहुवीजका अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा'अस्थिकः १ तिन्दुकः२ कपित्थः३ अम्बाडकः-आम्रातकः ४ मातुलिङ्गः५' बिल्वश्व६ । आमलकः७ पनस:८ दाडिमः ९ अश्वत्थः १० उदुम्बरः ११ वटश्च (सीवण्णि) श्रीपर्णी (तहा) तथा (असोगे य) और अशोक (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जो भी इसी प्रकार के हैं (एसिणं) इनके (मूला) मूल (वि) भी (असंखेज्जजीविया) असंख्यात जीवों वाले (कंदा वि) कंद भी (खंधा वि) स्कंध भी (तया वि) छाल भी (माला चि) शाल भी (पवाला वि) प्रवाल भी (पत्ता) पत्ते (अणेगजीविया) अनेक जीव वाले (फला) फल (एगट्ठिया) एक वीज वाले (सेत्तं एगट्टिया) वह एक बीज वाले वृक्ष कहे गए। णिए) श्रीपणी (तहा) तथा (असोगे य) मने (जे यावन्ने तहापगारा) अन्य २ पापी तना छे (पसिण) तेगाना (मला) भूस (वि) ५' (अनंखेजजीवया) अध्यात यो यसभन्या (ता वि) ४४ पा (संधा वि) २४५ ५५ (तया वि) घास ५१ (साला नि) avi 4 (प्याला वि) पास पात्र (पत्ता) ६i (पत्तेय जीवया) को ७२ पाना (पुका) स (अणेगजीविया) भने ७२ प (ग) : (क)ी या (से सं गगद्विया) - ४ ॥ १८
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