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प्रतापनासूत्रे टीका-अथौपधिभेदान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं ओसहीओ ?' 'से' अथ 'किं तं' कास्ताः-कतिविधा-इत्यर्थः, औषधयः प्रजाताः। भगवानाह-'ओसहीओअणेगविहाओ पण्णत्ताओ' औषधयः-फलपाकान्ताः-शालिप्रभृतयः, 'अणेगविहा' अनेकविधा:-नानाप्रकारकाः जप्ताः, ता एवाह-'तं जहा-साली-बीही-गोधूमजवजवजवा कलमसूरतिलमुग्गमासणिप्पायकुन्नत्यालिसंदसतीणपलिमंथा, अयसी कुसुंभकोदवकंगरालगमासकोहंसा सणसरिसबमूलगवीया' 'साली'-गालिः 'वीही' व्रीहिः, गोधूमः, यवाः, यवयवाः, कलाय मसूर तिलयुगमाप निप्पावकुलत्थाऽऽलिसन्दसतीणपलिमन्थाः, अतसी, कुमुम्भ-कोद्रवौ, कगु-रालक (जवजवा) यवयवा (कल) कलाय (मरदार) मनर, (तिल) तिल, (मुग्ग) मुद्ग-मूग, (मास) माष-उडद, (णिप्फाय) निष्पाब, (कुलत्य) कुलथ,(आ. लिसंदग) आलिलन्द, (सतीण) सतीण, (पलिमंथा) पलिमन्ध, (अयसी)
अतसी-अलसी, (कुसुंभ) कुसुम्स, (कोहय) कोदों, (कंगू) कढ़गू (रालग) रालक, (साम) सामा (कोदंस) कोइंश (सण) गण-सन, (सरिसव) सरसों, (मूलिगवीया) मृलकवीज, (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जो इसी प्रकार के हैं। (से तं ओसहीओ) यह ओपधि की प्ररूपणा हुई। ___टीकार्थ--अब ओषधि के भेदों की प्ररूपणा करते हैं-प्रश्न किया गया कि ओषधियां कितने प्रकार की कही हैं ? भावान् ने उत्तर दिया-ओषधियां अनेक प्रकार की कही गई है। शालि आदि जो वनस्पतियां फल-पाक के पश्चात् ही सूख जाती हैं, उन्हें ओषधि कहते हैं । उनके भेद इस प्रकार हैं-शालि, बीहि, गेहूं, जौ, यवयव (जौ का एक प्रकार) (कलाय) मसूर, तिल, लूंग, निप्पाय, कुलथ, आलिसन्द, (जवजवा) १५या (कल) ४साय (मसूर) भसू२ (तिल) तदा (मुग्ग) भाग (मास) २५४ (णिप्फाव) निभा (कुलत्थ) ४सथी (आलिसद) मासिस (सतीण) सताएy (पलिमंथा) पसिमन्य (अयसी) मसी (कुसुभ) सुन (कोदव) अ६२ : (कंगू) ४il (रालग) २२॥ (साम) साभा (436) (कोस) Ea (सण) शष्य (सरिसव) सरसव (मूलगवीया) भूस मीन (जे यावन्ने तहप्पगारा) मीत रे l ४२॥ छे (से त्तं ओसहीओ) ॥ मौषधियो उपाय छ
ટીકાર્થ–હવે ઔષધિના ભેદની પ્રરૂપણ કરે છે પ્રશ્ન કરાયેકે ઔષધિઓ કટલા પ્રકારની કહેલી છે?
શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે–ઔષધિઓ અનેક પ્રકારની કહેલી છે. શાલી વિગેરે ઔષધિ (વનસ્પતિ) ફલ પાક થયા પછી સૂકાઈ જાય છે માટે તે औषधियो छ, तना हो ॥ शत छे-लि-मील (या ) ९, १५. यवयव, .