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प्रबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१९ समेदवनस्पतिकाय निरूपणम्
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माप कोशा : शण - सर्पप-मूलकवीजानि, एते फलपाका नन्तर विशीर्यमाणत्वात् औषधिपदेन व्यपदिश्यन्ते ते च प्रसिद्धाः ।
मूलम् - से किं तं जलरुहा ? जलरुहा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - उदए १ अवए२ पणए ३ सेवाले४ कलंबुया ५ हदेय ६ कसेरुया७ कच्छभाणी उप्पले ९, पउमे १० कुमुदे ११ णलिणे १२ सुभए १३ सुगंधिए १४ पोंडरीयए १५ महापुंडरीयए १६ सयपत्ते १७ - सहस्स पत्ते १८ कल्हारे ९९ कोकणदे २० अरविंदे २१ तामरसे२२ भिसे२३ भिसमुणाले २४ पोक्खले२५ पोक्खलत्थिभुए २६ । जे यावन्ना तहप्पगारा । से तं जलरुहा |११|
छाया - अथ के ते जलरुहाः ? जलरुहा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - उदकम् १ अवकं२ पनकं३ शैवालः४ कलम्बुका: ५ हठः ६ कशेरुकाः ७ कच्छभाणी ८ उत्पलं - सतीण, पलिमंथ, अलसी, कुसुंभ, कोद्रव, कंगू, रालक, सांबा कोर्द्दश, शण, सरसौं मूलक, बीज, ये सब फल- पाक के अनन्तर नष्ट हो जाने के कारण ओषधि शब्द के वाच्य हैं और प्रसिद्ध हैं ।
शब्दार्थ - - ' से किं तं जलसहा' जलरुह कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार हैं- (उद) उदक, (अवए) अवक (पणए) पनक, (सेवाले) शैवाल (कलंबुया) कलम्बुका, (हढे ) हठ, ( कसेरुया) कशेरुका, (कच्छभाणी) कच्छभाणी, (उप्पले) उत्पल, (पउसे) पद्म (कुमुदे) कुमुद, (णलिणे) नलिन (सुभए) सुभग (सुगंधिए) सौगंधिक, ( पोण्डरीए) पुण्डरीक,
भवनी मे लत, उझाय (वटाणा) मसूर, तल, भग, निष्याव, उजथी मादि सन्द. सतीषु, प्रतिभथ, अणसी, सुल, अहरा, डा. राम, साभा अहश, शत्रु સરસવ. મૂલાના ખીજ. આ બધા ફળ પાક પછી નષ્ટ થઇ જાય છે એ કારણે ઔષધિ શબ્દના વાચ્ય છે, અને પ્રસિદ્ધ છે.
शब्दार्थ-(से कि तं जलरुहा) सड डेटला अक्षरना ह्या छे ? (जलरुहा) स३डे। (अणेग विहा) भने प्राश्ना (पण्णत्ता) ह्या छे (तं जहा) तेथे या अठारे छे (उदए) ७४४ ( अवए) व (पणए) पन४ (सेवाले ) सेवा (कलं. घुया) ४सय्या (हृढे) डु (कसेरुया ) ४ ३४॥ ( कच्छभाणी) ४२छ्लाथी (उप्पले) यस (पउमे) पद्म (कुमुदे) भुह ( णलिणे) नसिन (सुभए) सुभग (सुगंधिए) सुगंधिः (पोण्डरीए) पुंडरी : ( महापांडरीए ) भडापुंडरी ( सयपत्ते) शतयत्र