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मनापनास्त्रे
'छल्ली'-चल्लरुपालक 'कला'
'मत 'सी'-- रूपा शाखा त्वम् 'अनंतजीचाउ' नाना 'हाय' - याऽपि चान्या पनिया अनवजीवन विविध वागा या समानरूपा छन् भवति साऽपि नवा-वारा-गवानच्या अथ तासामेव छल्दीनां प्रत्येक प्ररूपयितुमाह- 'जम्मा की छल्ली, जे यावना तानि ७' 'जन्म काष्टात् - अन्तर्वर्त्तिसार भागावर
कृशतरा, 'भवे'- भवेन, 'साली'ला एक परिचजीवा उ परीतजीवा तु प्रत्येकशरीन्जीवसिताया 'जेताविद्य'याsपि चान्या अधिकृतया प्रत्येक
नरूपा छल्ली भरति साऽपि कल्वी तवानिया-प्रत्येक
'जस्स कंद्रस्य कट्टाओ, उल्टी तयारी ने परिजन उनकड़ी ने नावना तद्याविद्या ||७७ || 'जम्स' यस्य'' 'राओ' - काष्ठान अन्तर्वर्तिमारभागात् 'छल्ली' वल्कलस्पा त्व 'तणुबवरी' ननुतरा- मनरा 'भये' भरे. 'मा जो भी छाल इसी प्रकार की हो उसे भी अनन्त जीव ही जानना चाहिए।
जिस शाखा के काष्ठ अर्थात् अन्दर के सारभाग की अपेक्षा छाल अधिक मोटी हो, उस काल को अनन्न जीव समजना चाहिए । अन्य जो छाल इसी प्रकार की हो, उसे भी अनन्नजीव जानना चाहिए । जिन मूलकन्द आदि की छाल प्रत्येक जीव होती है, उसकी पहचान बताते हैं ।
जिस मूल के काठ से अर्थात् अन्दर के सारभाग की अपेक्षा से उसकी छाल अधिक पतली हो, वह काल प्रत्येक शरीर जीव वाली होती है । उसी प्रकार की जो अन्य काल हो उसे भी प्रत्येक शरीर जीव वाली ही जानना चाहिए ।
गावचक्षणानि वरीपरीवजी सा 'हाथी'
'नवरी' तनुतरा
समा
अवया,
જાતની હાય તેને પણ અનન્ત જીવ સમજવી જેઇએ.
જે શાખાનુ કાષ્ટ અર્થાત્ અંદરના સામ્ભાગ કરતાં હાલ વધારે ઝાડી હાય તે છાલને અનત જીવાત્મક સરવી જોઇએ
જે ભૂલ કન્દ વિગેરેની છાલ પ્રત્યેક છત્ર હોય છે તેની ઓળખ ખતાવે છે જે મૂળના કાષ્ટથી અર્થાત્ અન્દરના સા ભાગની અપેક્ષાએ તેની છાલ વધારે પાતળી હોય તે છાલ પ્રત્યેક શરીર જીવ વાળી દેય છે. તેવી વ્વતની જે બીજી છાલ હાય તેને પણ પ્રત્યેક શરીર જીત્ર વાળી જ જાણવી જોઇએ.