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प्रज्ञापांस सण्ह वायरपुढविकाइया ?' 'से' -अथ, 'किं तं'-का सा कतिविधा श्लक्ष्णवादर"पृथिवीकायिकाः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'सण्ह वायरपुढ विकाइया सत्तविहा पण्णत्ता'
लक्ष्ण वादरपृथिवीकायिकाः सप्तविधाः प्रज्ञप्ता ? 'तं जहा-किण्ह मट्टिया नील'मट्टिया, लोहियमट्टिया, हालिद्दमट्टिया, मुकिल्लमटिया, पणगमट्टिया' तद्यथाकृष्णमृत्तिका१, नीलमृत्तिका२, लोहितमृत्तिका, हारिद्रमृत्तिका, शुक्लमृत्तिका. इति वर्णभेदेन पञ्चविधत्वं प्रतिपादितम्, अथ पाण्डुमृत्तिका नाम देशविशेषे या धूलिरूपा सती पाण्डू इति प्रसिद्धा, तद्रूपा जीवा अपि अभेदोपचारात् पाण्डूमृत्तिका इत्युक्ताः, एवं पनकमृत्तिका-नद्यादि-पूरप्लाविते देशे नदोपूरेऽपगते भूमौ श्लक्ष्ण मृदुरूपो यो जलमलापरर्याय पङ्कपदवाच्योऽवशिष्यते स एव पनकमृत्तिकापनोच्यते तदात्मका जीवा अपि अभेदोपचारात् पनकमृत्तिका व्यपदि, श्यन्ते, प्रकृतमुपसंहरनाह-'से तं सहवादरपुढविकाइया' ते एते उपर्युक्तरूपाः
श्लक्ष्णवादरपृथिवीकायिकाः प्रज्ञप्ता इति । । अब इलक्षण बादर पृथिवोकायिकों को प्ररूपणा की जाती हैंइलक्ष्ण बादर पृथिवीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर देते हैं-लक्षण बादर पृथिवीकायिक जीव सात प्रकार के कहे हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) काली मिट्टी रूप इस प्रकार (२) नीली मिट्टी (३) 'लाल मिट्टी (४) पीली मिट्टी (५) शुरल मिट्टी (यह पांच भेद पांच वर्णों
की अपेक्षा से हैं) (६) पाण्ड मिट्टी, जो किसी देश में धलि रूप होकर 'पाण्डू' नाम से प्रसिद्ध है और (७) पनक मिट्टी,-जिस जगह से नदी का पूर बहा हो और उसके बाद भूमि में इलक्ष्णमृदु रूप जो पंक शेष रह जाता है और जिसे 'जलमल' भी कहते हैं, वही पनकमृत्तिका कहलाती है । ये सब इलक्षण बादरपृथिवीकायिक कहे गए हैं। ' હવે લક્ષણ બાદર પૃથ્વી કાયિકેની પ્રરૂપણું કરાય છે-શ્લફણ બાદર પૃથ્વીકાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના છે? “ શ્રી ભગવાન ઉત્તર દે છે-ક્ષણ બાદર પૃથ્વી કાયિક જીવ સાત પ્રકારના કહ્યા છે. તે આ રીતે છે
(१) जी भाटी ३५ २ (२) सीसीमाटी (3)सार भाटी (४) पीजी भाटी (५) शुस भाटी. (A1 पाय लेह पाय वर्णानी अपेक्षा छ) (6) पांड માટી, જે દેશમાં ધૂળ રૂપે બનીને પાંડુ નામે પ્રસિદ્ધ છે. (૭) પનક માટી જે જગ્યાએથી નદીનું પુર વહ્યું હોય અને ત્યાર પછી જમીન ઉપર શ્લણ મૃદુ રૂપ જે પંક રહી જાય છે અને જેને જલમલ પણ કહે છે. તેજ પનક માટી કહેવાય છે. આ બધા લક્ષણ બાદર પૃથ્વીકાયિક કહેવાય છે.