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प्रक्षोपनासूत्र प्रमुखशतसहस्राणि, पर्याप्तकनिश्रया अपर्याप्तका व्युत्क्रामन्ति, यत्र एकस्तत्र नियमात् असंख्येयाः । ते एते वादरवायुकायिकाः। ते एते वायुकायिकाः॥सू.१७॥ , टीका-अथ वायुकायिकभेदान् प्ररूपयितुमाह- से किं तं वाउकाइया ?' 'से'-अथ 'किं तं' के ते कतिविधा इत्यर्थः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवान् आह-'वाउकाइया दुविहा पण्णत्ता' वायुकायिका द्विविधाः द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा-मुहुमवाउकाइया य, वायरवाउकाइया य' सूक्ष्मवायुकायिकाश्च, वादरवायुकायिकाश्च, 'से किं तं सुहुमवाउकाइया ?' 'से' अथ 'कि तं' के ते-कतिविधाः सूक्ष्मवायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'सुहुमवाउकाइया दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्मवायुकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, "तं जहा-'पज्जत्तगमुहुमवाउकाइया य, अपज्जत्तगसुहुमवाउकाइया य तद्यथा-पर्याप्तकसूक्ष्मवायुकायिकाच, अपर्याप्तकयप्पमुहसयसहस्साई) संख्यात लाख योनियां हैं (पज्जत्तगणिस्साए) पर्याप्तक के आश्रय से (अपज्जत्तगा) अपर्याप्त (वक्कमंति) उत्पन्न होते हैं (जत्थ) जहां (एगो) एक है (तत्थ) वहां (नियमा) नियम से (असंखेज्जा) असंख्यात हैं (से त्तं वायरवाउकाइया) यह बादर वायुकायिकों की प्ररूपणा हुई (से तं वाउकाइया) यह वायुकायिकों की प्ररूपणा पूरी हुई ॥१७॥
, टीकार्थ-अब वायुकाय के भेदों की प्ररूपणा करते हैं । प्रश्न किया गया-वायुकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर फर्माते हैं-वायुकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं सूक्ष्म वायुकायिक और चादर वायुकायिक। - सूक्ष्म वायुकायिक कितने प्रकार के हैं ? भगवान ने उत्तर दियासच्यात etm योनियो छ (पज्जत्तगणिस्साए) पर्यातना माश्रये (अपज्जत्तगा) मर्यात (वक्कमंति) उत्पन्न याय छे (जत्य) या (एगो) ४ छ (तत्य) त्या (नियमा) नियमथी (असंखेज्जा) PAAण्यात छ । (से तं वायरवाउकाइया) मा मा४२ वायुयानी ५३५! २७ (से तं वाउकाइया) मा वायु यिहानी प्र३५। पुरी ७. ॥ सू. १७ ॥ | ટીકાથ–હવે વાયુકાચિકેના ભેદની પ્રરૂપણા કરે છે–પ્રશ્ન થયો કે-વાયુ કાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના છે?
શ્રી ભગવાન ઉત્તર ફરમાવે છે–વાયુકાયિક જીવ બે પ્રકારના હોય છે. સૂક્ષ્મ વાયુકાયિક અને બાર વાયુકાયિક. - સૂમ વાયુકાયિક કેટલા પ્રકારના છે?
શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે-સૂમ વાયુકાયિક જીવ પણ બે પ્રકારના છે
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