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प्रज्ञापना पुढविकाइया १, आउकाइया २, तेउकाइया ३, बाउकाइया ४, वणस्सइकाइया ५ । सु० १३॥
छाया-अथ का सा एकेन्द्रिय संसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ? एकेन्द्रिय संसारसमापनजीवप्रज्ञापना पश्चविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पृथिवीकायिकाः१ अकायिकाः२, तेजस्कायिकाः३, वायुकायिकाः४, वनस्पतिकायिकाः ॥सू० १३॥
टीका-अथ एकेन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रकारान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं एगिदियसंसारसमावण्ण जीवपण्णवणा ?' 'से' अथ 'किं तं' का सा-कतिविधा; एकेन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'एगिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता' एकेन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना पश्चविधा:--पञ्च प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः एकेन्द्रियाणां पञ्चवियत्वात् तदेव पञ्चविधत्वमाहशब्दार्थ-(से) अथ (
किंत)क्या है (एगिदिय संसारसमापन्नजीवपण्णवणा) एकेन्द्रिय संसारी जीवों की प्ररूपणा ? (पंचविहा) वह पांच प्रकार की (पण्णत्ता) बतलाई है (तं जहा) वह इस प्रकार (पुढचिकाइया) पृथ्वोकायिक (आउकाइया) अस्कायिक (तेउकाइया) अग्निकायिक (वाउकाइया) वायुकायिक (वणस्सइकाइया) वनस्पतिकायिक ॥१३॥
टीकार्थ-अब एकेन्द्रिय संसारी जीवों के भेदों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं-एकेन्द्रिय संसारी जीयों की प्ररूपणा कितने प्रकार की है ? भगवान् उत्तर देते हैं-एकेन्द्रिय संसार समापन्न जीवों की प्ररूपणा पांच प्रकार की है, क्यों कि एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के हैं। वे पांच प्रकार ये हैं-(१) पृथ्वीकायिक (२) अप्कायिक (३) तेजस्कायिक ___ाय:-(से) (कि तं) शु छ (एगि दियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) सन्द्रिय ससारी यानी प्र३५। (एगिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) मे द्रियवा से सा२ समापन्न वानी प्रज्ञापना (पंच विहा) पांय ५४ानी (पण्णत्ता) तसवी छ (तं जहा) ते मारीते (पुढपीकाइया) पृथ्वीयि (आउ. काइया) २५५४ायि: (तेउकाइया) ते४२४४ (वाउकाइया) वायु४ि (वणस्सइकाइया) वनस्पतिय४ ॥ सू १३ ॥
ટીકાર્થ – હવે એકેન્દ્રિય સંસારી જીના ભેદની પ્રરૂપણા કરવાને માટે छ
એકેન્દ્રિય સ સારી જીની પ્રરૂપણ કેટલા પ્રકારની છે ? ભગવાન શ્રી ઉત્તર આપે છે–એકેન્દ્રિય સ સાર સમાપન્ન જીવેની પ્રરૂપણું પાંચ પ્રકારની છે કેમકે એકેન્દ્રિય જીવ પાચ પ્રકારના છે ને પાંચ પ્રકારો श्या प्रमाणे छ-(१) पृथ्वीय, (२) १५४थि४, (3) ते१२४ायि४, (४) वायु