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® जैन-तत्त्व प्रकाश
विशाल विश्व में पुत्रों को जन्म देने वाली तो सैकड़ों हजारों स्त्रियाँ हैं, किन्तु तीर्थङ्कर के समान पुत्ररत्न को जन्म देने वाली केवल तीर्थङ्कर की माता ही है। दूसरी कोई भी ऐसे पुत्र-रत्न को जन्म नहीं दे सकती। तात्पर्य यह हुआ कि संसार में तीर्थङ्कर के समान दूसरा कोई पुरुष नहीं हो सकता ।
ऐसे अनन्त गुणों के धारक, सकल अघ (पाप) के निवारक, सम्पूर्ण जगत् के सुधारक, मोह आदि आन्तरिक रिपुओं के संहारक, अपूर्व उद्योत कारक, तीनों तापों के अपहारक, भूतल के भव्य जीवों के तारक, अज्ञानतिमिर के विदारक और सन्मार्ग के प्रचारक, नरेन्द्र, सुरेन्द्र, अहमिन्द्र, मुनीन्द्र आदि त्रिलोकी के वन्दनीय, पूजनीय, महनीय और सेवनीय अरिहन्त भगवन्त जीवन्मुक्त महापुरुष होते हैं ।
तित्थयरा मे पसीयन्तु ! कित्तिय-वंदिय-महिया, जे य लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग-बोहिलामं, समाहिवरमुत्तमं दिन्तु ॥ समस्त लोक में उत्तम, सिद्धि (मुक्ति ) को प्राप्त होने वाले तीर्थङ्करों की मैं वचन से कीर्ति करता हूँ, काय से वन्दना करता हूँ और मन से भावपूजा करता हूँ। वे मुझे भाव-आरोग्य और बोधि ( सम्यक्त्व) प्रदान करें।
तीर्थङ्कर देव मुझ पर प्रसन्न हों!