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* जैन-तत्त्व प्रकाश
नगरी के राजपाल राजा की कननी रानी से उत्पन्न हुए। स्त्री का नाम रत्नमाला । लक्षण स्वस्तिक का ।
__ इन वीसों विहरमान तीर्थङ्करों का जन्म, जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सत्तरहवें तीर्थङ्कर श्री कुन्थुनाथजी के निर्वाण गये बाद एक ही समय में हुआ था। बीसवें तीर्थङ्कर श्रीमुनिसुव्रत के निर्वाण होने के पश्चात् इन सब ने एक ही समय दीक्षा ली। वीसों एक मास तक छनास्थ रहकर एक ही समय केवलज्ञानी हुए और यह बीसों ही भरतक्षेत्र की भविष्यकाल की चौवीसी के सातवें तीर्थङ्कर श्रीउदयनाथजी का निर्वाण होने के बाद एक ही साथ मोक्ष पधारेंगे । इन बीसों तीर्थङ्करों का देहमान ५०० धनुष का है और आयु ८४ लाख पूर्व की है। जिसमें से ८३ लाख पूर्व गृहस्थावस्था में रहे और एक लाख पूर्व संयम का पालन करके मोक्ष पधारेंगे। इन सभी वर्तमान तीर्थङ्करों के ८४-८४ गणधर हैं, दस-दस लाख केवलज्ञानी हैं, सौ-सौ करोड़ अर्थात् एक-एक अरब साधु हैं और इतनी-इतनी ही साध्वियाँ हैं । बीसों तीर्थङ्करों के मिल कर दो करोड़ केवलज्ञानी, दो हजार करोड़ साधु और दो हजार करोड़ साध्वियों की संख्या है । यह बीसों तीर्थङ्कर जिस समय मोक्ष पधारेंगे उसी समय दूसरी विजय में जो-जो तीर्थङ्कर* उत्पन्न हुए होंगे, वे दीक्षा ग्रहण करके तीर्थङ्कर पद प्राप्त होंगे। ऐसा सिलसिला
* तीर्थङ्करों की २० संख्या जघन्य है। इससे कम कभी नहीं रहते। इसलिए वर्तमानकाल के बीसों तीर्थङ्करों के मोक्ष चले जाने पर उसी समय दूसरे बीस तीर्थङ्कर पद को प्राप्त होने ही चाहिए। इस हिसाब से एक तीर्थङ्कर गृहवास में एक लाख पूर्व के हो तब दूसरे क्षेत्र में दूसरे तीर्थङ्कर का जन्म हो जाना चाहिए और जब यह एक पूर्व के हों तब अन्य क्षेत्र में तीसरे का भी जन्म हो जाना चाहिए । इस प्रकार कोई एक लाख पूर्व की आयु वाले, कोई दो लाख पूर्व की आयु वाले, यावत् कोई ८३ लाख पूर्व की आयु वालेयों एक-एक तीर्थङ्कर के पीछे ८३-८३ तीर्थङ्कर गृहवास में हों और एक तीर्थङ्कर पद भोगते हों। जब चौरासीवें तीर्थङ्कर मुक्त हो जाएँ तो तेरासीवे अन्य क्षेत्र में तीर्थङ्कर पद को प्राप्त हो जाते हैं और किसी अन्य क्षेत्र में एक तीर्थङ्कर का जन्म हो जाता है। इस तरह एकएक तीर्थङ्कर के पीछे ८३-८३ तीर्थङ्कर गृहवास में हो तो वीसों तीर्थङ्करों के पीछे ८३४२० =१६६० तीर्थङ्कर गृहवास में और २० तीर्थङ्कर पद भोगते हुए और यह सब मिलकर १६८० तीर्थङ्कर कम से कम, एक ही समय में होने चाहिए। लेकिन इतने तीर्थङ्कर होने पर भी वे कभी आपस में मिलते नहीं हैं। यह अनादिकाल की रीति चली आ रही है और अनन्तकाल तक ऐसी ही रीति चलती रहेगी।