Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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| भेदसे सम्यग्दर्शनके तीन भेद हैं इसलिये उपशम आदिके निमिचसे सम्यग्दृष्टियोंमें कमावेशी होनेमें |
किसी प्रकारकी आपत्ति नहीं । सबसे थोडे उपशम सम्यग्दृष्टि जीव हैं उनसे असंख्यातगुणे क्षायिकसम्यग्दृष्टि हैं। उनसे असंख्यातगुणे क्षायोपशामिक सम्यग्दृष्टि हैं और क्षायिकसम्यग्दृष्टि सिद्ध अनंतPI गुणे हैं इसरीतिसे आत्माका परिणाम सम्यग्दर्शन मोक्ष कल्याणका प्रधान कारण है । यदि यह शंका की. जाय कि
___ तत्वाग्रहणमर्थश्रद्धानमित्यस्तु लघुत्वात् ॥ १७॥ न, सर्वार्थप्रसंगात् ॥१८॥
सूत्रमें कम अक्षरोंका रहना विद्वचा है। 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं' यहां लाघवसे 'अर्थश्रद्धानं || सम्यग्दर्शन' यही सूत्र रखना ठीक है । तत्व शब्दका कहना व्यर्थ है ? यह ठीक नहीं । अर्थ शब्द सामा-ई
न्यरूपसे सभी पदार्थों का कहनेवाला है इसलिये अर्थ शब्दसे सभी पदार्थों का ग्रहण होने पर जो पदार्यद मिथ्यावादियोंने मिश्यारूप मान रक्खे हैं उनका श्रद्धान भी सम्परदर्शन कहा जायगा । तत्व शब्दके | ग्रहण करने पर यह दोष नहीं हो सकता क्योंकि जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उसका उसी रूपसे, होना तत्व कहा जाता है । मिथ्यावादियोंने जो पदार्थ मान रक्खे हैं वे तत्व हो नहीं सकते क्योंकि वे ! जिसरूपसे माने हैं उनका उसरूपसे होना प्रमाणवाधित है इसलिये मिथ्यावादियोंद्वारा माने गये तत्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन न कहा जाय इस बातकी रक्षाकलिये सूत्रमें तत्व शब्दका रहना असंत आवश्यक है । और भी यह बात है कि
संदेहाच्चार्थशब्दकस्यानेकार्थत्वात् ॥ १९॥ अर्थ शब्द अनेक अर्थों का कहनेवाला है जिसतरह "द्रव्यगुणकर्मसु, अर्थात् अर्थ शब्दकी वृत्ति
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