Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
HTRANCHISHASTRORROREGISTE
प्रधानत्वात् ॥१४॥ सम्यग्दर्शनके रहते ही वाह्य कारण सम्यक्त्व कर्म उसका उपग्राहक-उपकार करनेवाला होता है18 है। इसलिये अंतरंग आत्मिक परिणाम सम्यग्दर्शन प्रधान है तथा अंतरंग परिणाम सम्पग्दर्शनका उपकार
करनेवाला और वाह्य कारण सम्यक्त्वकर्म सिवाय सम्यग्दर्शनका वाह्य उपकार करनेके और कुछ उपकार
नहीं करता इसलिये अप्रधान है । "प्रधानाप्रधानयोः प्रधानं वलवत्" प्रधान और अप्रधानमें प्रधान ही। है| बलवान है, इस नियमके अनुसार प्रधान ही बलवान होता है इसलिये सम्यग्दर्शन ही मोक्षका कारण है सम्यक्त्व कम नहीं। तथा
प्रत्यासत्तेः॥१५॥ आत्माका परिणाम सम्यग्दर्शन ही मोक्षका कारण है क्योंकि सम्यग्दर्शन और आत्माका तादात्म्य संबंध रहनेसे वही प्रत्यासन्न अत्यंत समीप कारण है । सम्यक्त्व कर्म असंत दूर है और उसका एवं , आत्माका तादात्म्य संबंध भी नहीं है इसलिये वह मोक्षका कारण नहीं हो सकता इसलिये यह बात है| सिद्ध हो चुकी है कि अडेय प्रधान और प्रत्यासन्न होनेसे आत्माका परिणाम ही मोक्षका कारण है। पुद्गलका परिणाम सम्यक्त्वकर्म मोक्षका कारण नहीं हो सकता । यदि यह शंका हो कि
अल्पबहुत्वकल्पनाविरोध इति चेन्नोपशमाद्यपेक्षस्य सम्यग्दर्शनत्रयस्यैव तदुपपत्तः॥१६॥ सम्यग्दर्शनमें अल्पबहुतकी कल्पना रहनेसे कोई सम्यग्दृष्टि अल्प और कोई बहुत ऐसा व्यवहार होता है यदि उसको आत्माका गुण माना जायगा तो सम्यग्दर्शनके अंदर कमीवेशी होगी नहीं, फिर उसमें अल्पबहुत्वकी कल्पना कैसे होगी? सो.ठीक नहीं। औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिकके
R