Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
तकरा०
PURINNAIRIORIFIANERNARDINO
व नामका कर्म भी कारण है इस रीतिसे सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिका कारण होनेसे सम्यक्त्व नामका कर्म भी मोक्षका कारण है कोई दोष नहीं । सो भी अयुक्त है क्योंकि सम्यक्त्व नामका कर्म केवल उप- 1 करण है और उपकरण बाह्य कारण कहा जाता है असाधारण कारण नहीं.इसलिये सम्यक्त्त कर्म मोक्ष का कारण नहीं हो सकता। तथा-: . ... .
, आत्मपरिणामादेव तद्रसघातात् ॥ १२॥ ... दर्शनमोहनीय कर्म आत्माके सम्यग्दर्शन गुणका घातक है वाह्य और अभ्यंतर कारणोंसे जिस || समय आत्माका परिणमन प्रथमोपशमरूप विशुद्धस्वरूपसे होने लगता है उससमय कुछ शक्तिके क्षीण
हो जानेपर दर्शनमोहनयिका ही एक हलका खंड सम्यक्त्व कम हो जाता है इसरीतिसे सम्पग्दर्शनकी ६] उत्पत्तिम प्रधान कारण आत्मा ही है क्योंकि अपनी सामर्थ्यसे वही सम्यग्दर्शनरूप परिणमता है किंतु ||
दर्शनमोहनीयकी ही पर्याय होनेसे' सम्यक्त्व कम मोक्षका कारण नहीं इसलिये सम्यग्दर्शन आदि आत्मा || के परिणाम ही मोक्षके कारण हो सकते हैं सम्यक्त्व कर्म नहीं । तथा
अहेयत्वात्स्वधर्मस्य ॥१३॥ जो छूट न सके वह अहेय कहा जाता है । आत्माके. अतरंग परिणाम सम्यक्त्वगुणके रहते नियम से आत्मा सम्यग्दर्शनस्वरूप परिणत होता है इसलिये वह, सम्यक्त्वगुण अहेय है किंतु सम्यक्त्व नामक | कर्मके विना भी आत्मा क्षायिकसम्यक्त्वस्वरूप परिणत हो जाता है इसलिये सम्यक्त्वकर्म हेय है आत्मासे. जुदा हो जाता है इसलिये सम्यक्त्वकर्म-मोक्षका कारण नहीं हो सकता और भी यह बात है१--वास्तवमें तो जितने अंशमें सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय हैं उतने अंशमें वह सम्यग्दर्शनका घातक है ।।
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