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के जीवन में भरता हुआ अग्नि, मनुष्य के सम्मुख ब्रह्मबल व अाज का आदर्श रखता है। अतएव कहा है--अग्निरेव ब्रह्म ( श० प्रा० ६४६६५ ) अन्तरिक्ष स्थानी देवताओं में प्रधान इन्द्र
उसका अवित रूप विद्युत है। उसके शासन में पानी आकाश से नीचे उतर कर बरसते हैं, खेतियां हरी भरी होती हैं, नदियां बहती है। वह बल का अधिपति है, बड़ा शूरवीर है। वृष्टि के रोकने वाले वृत्रों को संग्राम में मारकर जल के प्रवाह पृथ्वी पर बहा देता है । इन्द्र मनुष्य के सन्मुख छात्र बलका आदर्श रखता है ।
स्थानी सूर्य हैं। जो सबसे बढ़ कर बलशाली होने से और सारे जगत का नियन्ता होने से हमारे सामने क्षात्र बल it आदर्श और कार के दो दोषों को मिटाने वाला प्रकाश के लाने वाला और धर्मं कार्यों का प्रवर्तक होने से ब्रह्म बल का आदर्श रखता है । क्षात्रा और ब्रह्म तेज से एक समान परिपूर्ण होकर वह मनुष्य के सम्मुख मानुष जीवन का पूर्ण आदर्श रखता है । इस प्रकार ये अभि, इन्द्र और सूर्य इस त्रिलोकी के तीन प्रधान देवता हैं। "
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समीक्षा - श्रीमान पं० जी ने जिस प्रकार से ईश्वर का कथन किया है, तथा उसमें जो प्रमाण उपस्थित किये गये हैं वे सब इस आत्मा की ही अवस्थायें हैं। जिन उपनिषद वाक्यों से आपने अपने इस नवीन ईश्वर की कल्पना की है वह वास्तव में श्रात्मा का वर्णन है इसको हम उपनिषद और ईश्वर प्रकरण में विस्तार पूर्वक लिखेंगे तथा आपने जो 'इन्द्रं मित्रं वरुण ममिनमा ' fe वैदिक प्रमाण दिये हैं उनमें निश्चित रूप से भौतिक अग्नि आदि के ही ये सब नाम हैं, इसको अग्नि देवता प्रकरण में लिख चुके हैं पाठक वृन्द बहीं देखने की कृपा करें। तथा आपने
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