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अङ्गुलि/अङ्गुली 1058; अङ्गुलिं जालेत्वा ..., ध, प. अट्ट, 2.187; - क त्रि., [अङ्गुलिक], अङ्गुलियों द्वारा कार्य करने वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - एवं अंसिको, खन्धिको, हत्थिको, अङ्गलिको, क. व्या. 352; तुल. मो. व्या. 4.30; - का स्त्री., अङ्गलियों की माप, फैलाव, विस्तार - उण्णिगण्डा नाम होन्ति गोथना विय अङ्गुलिका विय च तत्थ तत्थ लम्बन्ति, महाव. अट्ठ. 264; - कोटिमंस नपुं.. [अङ्गुलिकोटिमांस], अङ्गुलियों के सिरे का मांस - सेहि तृ. वि., ब. व. - परिच्छेदतो द्वीसु दिसासु अङ्गुलिकोटिमंसेहि, विभ. अट्ठ. 223; - कोस पु., गोह के चमड़े का बना अङ्गुलित्राण या दस्ताना - पटिग्गहो नाम अङ्गुलिकोसो, वजिर. टी. 477: -च्छिन्न त्रि., ब. स. [अङ्गुलिछिन्न], कटी उंगलियों वाला - अङ्गुलिच्छिन्नं पब्बाजेन्ति, महाव. 155; 420; अङ्गुलिछिन्नोति यस्स नखसेसं अदस्सेत्वा एका वा बहु वा अङ्गुलियो छिन्ना होन्ति, महाव. अट्ठ. 292; - पतोदक पु., नपुं॰ [अङ्गुलिप्रतोदक], अङ्गुलियों द्वारा उत्पन्न की गयी गुदगुदाहट या गुदगुदी - भिक्खं अङ्गुलिपतोदकेन हासेसुं पाचि. 150; अङ्गुलिपतोदकेनाति अङ्गुलीहि उपकच्छकादिघट्टनं वुच्चति, पाचि. अट्ठ. 115; अञमचं अङ्गुलिपतोदकेन सजग्घन्ति सङ्कीळन्ति, अ. नि. 3(1).162; - पद नपुं.. [अङ्गुलिपद], अङ्गुलि का चिह्न या छाप, अंगूठे का ठप्पा - दिस्सन्तेव वासिजटे अङ्गलिपदानि, दिस्सति अङ्गुट्ठपदं, अ. नि. 2(2).257; स. नि. 2(1).138; - पब्ब नपुं.. [अङ्गुलिपर्व], अङ्गुलियों अथवा अंगूठों के पोर या गांठ - अङ्गुलिपब्बेहि पन परिवत्तेत्वा ..., विभ. अठ्ठ. 85; - पब्बतेमनमत्त त्रि., शा. अ. अंगूठे के पोर तक भिगोने वाला, ला. अ. बहुत कम मात्रा वाला - अङ्गलिपब्बतेमनमत्तम्पि उदकं न होति, म. नि. 1.248; - पिट्ठमंस नपुं., उंगलियों के ऊपरी भाग का मांस - ... अन्तो अंगुलिपिट्ठिमसेन विभ. अट्ठ. 223; विसुद्धि. 1.241; पाठा. अङ्गुलिपिट्ठिमंस; - पोट पु., उंगलियों को चटकाना। अथवा फोड़ना, चुटकी बजाना - चेलुक्खेपे च अङ्गुलिफोटे च पवत्तेसि, जा. अट्ठ. 5.61; ... साधु साधूति साधुकारेसु अङ्गुलिफोटनेसु चेलुक्खेपेसु च पवत्तमानेसु ..., जा. अट्ठ. 1.377: ... अच्छराघटितमत्तम्पि खणं अङ्गुलिफोटनमत्तम्पि कालन्ति अत्थो, थेरीगा. अट्ठ, 85; - मत्त नपुं., एक अंगुल की माप, एक अंगुल की चौड़ाई - अङ्गलिमत्तम्पि ऊनं नाहोसि, ध. प. अट्ठ. 2.404; - मान त्रि., एक अंगुल माप वाला - विदत्थुक्कट्ठमानानि अङ्गुलिमानानि हेद्वतो, म. वं. 28.14; - मुद्दा स्त्री॰ [अङ्गुलिमुद्रा], उंगलियों में पहने जाने
अङ्गुलिमाल वाली अंगूठी, मणिरत्न आदि का ठप्पा, जो मोहर लगाने के लिए प्रयुक्त होता था - मुद्दिकाङ्गुलिमुद्दाथ, अभि. प. 287; - मुद्दिका स्त्री., [अङ्गुलिमुद्रिका], उपरिवत् - न अङ्गुलिमुद्दिका धारेतब्बा, चूळव. 224; एक अङ्गुलिमुद्दिक नाविकस्स सच्चकारं दत्वा, जा. अट्ठ. 1.128; 2.368; - विक्खेप पु., उंगलियों की चेष्टाएं या गतिविधियां - मनापेन च हत्थपादङ्गुलिभमुकविक्खेपेन, ध. स. अट्ठ. 335; - विनामन नपुं.. उंगलियों का अवनमन या झुकाव - उपासनसालायं चापभेदचापारोपनग्गहणमुट्टिप्पटिपीळनअङ्गुलिविनामनपादठपनसरग्गहणसन्नहनआकडनसद्धारणलक्खनियमनखिपने, मि. प. 319; - वेधकसण्ठान त्रि., अंगूठी की आकृति वाला - अङ्गुलिवेधकसण्ठाने पदेसे. ध. स. अट्ठ. 344; अभि. अव. 84, पाठा. वेठनक खण्डन; - सचट्टन नपुं., उंगलियों का संघर्षण - संकीळन्ताति हसितमत्तकरणअङ्गुलिसट्टनपाणिप्पहारदानादीनि करोन्ता, दी. नि. अट्ठ. 1.207. अङ्गुलिमाल पु., एक दुर्दान्त दस्यु का नाम - ... चोरो अङ्गुलिमालो नाम लुद्दो लोहितपाणि ... अदयापन्नो पाणभूतेसु, म. नि. 2.308; वास्तविक नाम अहिंसक - अहिंसको ति मे नाम, हिंसकस्स पुरे सतो, थेरगा. 879; काटी हुई उगलियों की माला धारण करने के कारण, अंगुलिमाल नाम को प्राप्त - सो मनुस्से वधित्वा वधित्वा अंगुलीनं मालं धारेति, म. नि. 2.3083; पिता का नाम गर्ग और माता का नाम मन्त्राणी - गग्गो, खो, महाराज, पिता, मन्ताणी माताति, जा. अट्ठ. 2.311; जीवनचरित्र म. नि. के अङ्गुलिमालसुत्त की अट्ठ. में वर्णित, म. नि. अट्ट. (म.प.) 2.234-244; बुद्ध के प्रभाव से भिक्षुसङ्घ में प्रव्रजित - चोरो अङ्गुलिमालो भिक्खूसु पब्बज्जितो होति, महाव. 93; बुद्ध के मार्ग में प्रतिष्ठित हो अर्हत्व-पद को प्राप्त - आयस्मा अङ्गुलिमालो रहोगतो पटिसल्लीनो विमुत्ति-सुखपटिसंवेदी, ध. प. अट्ठ. 2.97; थेरगा. की कुछ गाथाओं के रचयिता के रूप में भी प्रसिद्ध, थेरगा. 866-891; - क पु., अङ्गुलिमाल के लिए ही प्रयुक्त - देवदत्ते च वधके, चोरे अङ्गुलिमालके, अप. 1.45; - त्थेर पु., स्थविर अङ्गुलिमाल - इदं सत्था जेतवने विहरन्तो अङ्गुलिमालत्थेरदमनं आरब्भ कथेसि, जा. अट्ठ. 5.454; - त्थेरवत्थु नपुं.. ध. प. अट्ठ. की एक कथा का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 2.96-97; - परित्त म. नि. के अङ्गुलिमालसुत्त में गर्भवती स्त्री के गर्भरक्षण हेतु अङ्गुलिमाल द्वारा उच्चारित रक्षाकवच - सेय्यथिदं, रतनसुत्तं मेतसुतं खन्धपरितं मोरपरितं धजग्गपरितं
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