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बौख-दर्शनम् करें, तब समस्या यह उठेगी कि स्थायी पदार्थ ] तब तो सहकारियों को छोड़ ही नही सकता, बल्कि भागनेवाले ( सहकारियों ) के गले में फन्दा डालकर कृत्य ( करने योग्य ) कार्य स्वयं करेगा। कारण यह है कि स्वभाव को हटा नहीं सकते । [ सहकारी यदि स्थायी के स्वभाव हैं, अपने ही रूप हैं तब तो उन्हें पृथक् किया ही नहीं जा सकता; सभी सहकारी खोज-खोज कर कार्य की उत्पत्ति के लिए लाये जायेंगे। इस प्रकार, सत्ता अक्षणिक + सहकारी ( एक ही स्वभाव के रूप में ) ] ।
उपकारकत्वपक्षे सोऽयमुपकारः किं भावाद्भिद्यते न वा। भेदपक्ष आगन्तुकस्येव तस्य कारणत्वं स्यात् । न भावस्याक्षणिकस्य । आगन्तुकातिशयान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वात्कार्यस्य तदुक्तम्
४. वर्षातपाभ्यां किं व्योम्नश्चर्मण्यस्ति तयोः फलम् ।
चर्मोपमश्चेत्सोऽनित्यः खतुल्यश्चेदसत्फलः ॥ इति । यदि सहकारियों को भाव ( स्थायी ) का उपकार करनेवाला मानते हैं तो इसमें भी प्रश्न होगा कि यह उपकार क्या वे भाव से अलग होकर करते हैं या नहीं ( = बिना अलग हुए ही ) ? [ सहकारी पदार्थ जैसे मिट्टी आदि, स्थायी पदार्थ जैसे घटादि की उत्पत्ति में सहायता करते हुए उससे पृथक् रहते हैं या नहीं ? दूसरे शब्दों में, सहकारियों में उत्पन्न, स्थायी में रहनेवाला विशेष ( उपकार ), अपने आश्रय स्थायीभाव से भिन्न है या नहीं ? इसके बाद भेदपक्ष के विकल्प को लेकर बहुत बड़ा विवेचन किया गया है। यह दिखाया जायगा कि भेदपक्ष को स्वीकार करने पर अनवस्था-दोष (. miltum and Infinitum ) होगा । इसलिए अन्तिम निर्णय होगा कि क्षणिक के रूप में ही सत्ता है। ___ यदि यह कहें कि सहकारी स्थायी से भिन्न है तो जो सहकारी पदार्थ आगन्तुक ( जैसे पानी, हवा, मिट्टी ) हैं वे ही कारण कहलायेंगे (जो कार्य उत्पादन में प्रधान होता है वही कारण है, जिसका निर्णय अन्वय व्यतिरेक से होता है ) । अक्षणिक-भाव कारण नहीं होगा [ क्योंकि कार्योत्पत्ति में उसका कोई हाथ नहीं, असल में कार्य तो सहकारी पदार्थ अक्षणिक से पृथक् होकर कर रहे हैं ] । कार्य तो आगन्तुक सर्वाधिक ( सहायक ) के अन्वय और व्यतिरेक से सिद्ध होता है (आगन्तुक के साथ कार्य का अन्वय
और व्यतिरेक ठीक-ठीक बैठ जाता है, अक्षणिक के साथ नहीं-इसलिए आगन्तुक कारण है और बाद में आनेवाला पदार्थ कार्य है। ) अतिशय = बहुगुणाँचिन्तयित्वा सामान्यजनसंभवान् । विशेषः कीर्त्यते यस्तु ज्ञयः सो.निशयो वुधैः ॥ [ उचन स्थिति को यो स्पष्ट करें-बीज स्थायी पदार्थ ( भाव ) है, उसमे आने वाले सहकारी अनिगय ( सबसे बड़े उपयोगी ) के होने पर अंकुर की उत्पत्ति होती है, यह अन्वय हुआ । म प्रकार के अतिशय के अभाव में अंकुर का उत्पन्न न होना, यह व्यतिरेक है। अब टम