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प्रस्तावना
शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती है। चरित्र का मूल आधार प्राचार्य रविषेण का पदमपुराण है जिसका स्वयं कवि ने निम्न शब्दों में उल्लेख किया ।
कोयो ग्रंथ रविसेरग में, रघुपुराण जिय आंग ।
वहै अरथ इण में कहो, रायचन्द र प्राण ॥
राम सीता के जीवन पर प्राधारित एक और काम मिलता है जिसके कवि भट्टारक महीचन्द्र के शिष्य ब्रह्मा जयसागर घे । इन्होंने "सीता हरण' नामक काव्य के माध्यम से सीता के जीवन पर अच्छा काय लिन। है । सीता हरण की पाण्डुलिपि में ११४ पत्र है तथा जिसका रचना काल संवत् १७३२ है । प्रस्तुत पाण्डुलिपि प्रामेर शास्त्र भंडार जयपुर में संग्रहीत है। कवि ने सीता के व्यक्तित्व एवं जीवन पर अच्छा प्रकाश डाला है । पूरा का ६ घधिकारी में विभक्त है।
गोर महीकत सीष अयसागर. रखमो सीता हरण नो रास बो। नर नारी जे भरणे सणे रे, तस पर जय जयकार जी ॥ संबत सतरह बतोसा बरसे, बैसाख सुवी तीज सार नी ।
भूषवारे परिपूर्ण है रकयू सूर समय रयझार जो ॥ इस प्रकार पचासों कवियों ने नाम के जीवन पर अनेक विभिन्न संज्ञक रचनामें लिखी है जो हिन्दी की अमूल्य कृतियां हैं।
24-10-84
डा. कस्तरषद कासलीवाल