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मुनि समाचंच एवं उनका पद्मपुराण
सीता को निष्कासन का कारण बताया। सीता ने अपने सतोस्क के बारे में बात दुहरायी और किसी भी परीक्षा में समर्पित करने की बात कही। सबने सीता के सतीत्व की प्रशंसा की पोर उसे निष्कलंक बताया । लेकिन राम के भादेश से पृथ्वी खोद कर अग्नि कुंड बनाया गया। भयंकर अग्नि जलायी गयी जिसको देख कर स्वयं राम भी सुःखी हो गये 1 सीता से अग्नि कुण्ड में कूदने के लिए कहा गया । सीता पंच परमेष्ठी का स्मरण करके मग्निकुण्ड में कूद पड़ी। लोगों में हाहाकार छा गया। लेकिन जब अग्नि कुण्ड के स्थान पर सरोबर एवं उसमें रन सिंहासन पर बैठी हुई सीता को देखा तो सब पानन्द विभोर हो गये। देवतापों ने जय-जयकार की तथा प्राकाम से पुष्प वर्षा होने लगी । सीता को नया जीवन मिला । राम भी सीता को प्रशंसा करने लगे तथा नापिस राजमहल में लौटने की प्रार्थना करने लगे।
राम के भाग्रह को सीता ने स्वीकार नहीं किया तथा जगत की भसारता एवं राज्य मंभव के सुखों को धिक्कार दिया तथा पृथ्वीमती भायिका से मापिका दीक्षा ले ली। इसी मवसर पर मुनि सकल भूषण ने नरकों के दु:खों का, जीप एवं समुद्रों का, छह द्रव्य एवं सात तत्वों का विस्तार से वर्णन किया। इस अवसर पर राम लक्ष्मण एवं सीता के जीवन में इतने संकट, युद्ध एव वियोग किन-किन पूर्व कुत को के कारण हुए यह जानना चाहा । इसका मुनि ने विस्तार से प्रत्येक के पूर्व भव का कथन किया।
स्वयं राम को जगत से बैराग्य हो गया। उन्होंने अन्त मे कैवल्य प्राप्त कर मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया। इस प्रकार पद्मपुराण महाग्रंथ पूर्ण हुमा । जो इस अपुरारस का स्वाध्याय करेगा उसे तीन लोक का सुख स्वयं प्राप्त हो जावेगा ।
पदमपुराण कु जे पढ़े, नाच मुगावे और ।
तिहुं लोक का सुख लहै, पार्व निर भय ठौर ।। ५७४६।। सभाचन्द के समकालीन कवि
मुनि राभाचन्द का समय हिन्दी काव्य रचना का स्वरायुग था जबकि उस समय चारों और हिन्दी रचनाय लिखी जा रही थी। हिन्दी ग्रन्थों का पठन पाठन बढ़ रहा था तथा संस्कृत प्राकृत के ग्रन्थों का हिन्दीकरण हो रहा था। कवि के समकालीन कवियों में प्रानन्दघन, जगजीवन, पाण्डे हेमराज, पं. मनोहरदास, लालबन्द लब्धोदय, पं. हीरानन्द, पं. रायचन्द (प्रपरनाम बालक), जिनहर्ष, प्रबलकीर्ति, जोधराज गोदीका आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन कवियों में पं० रायचन्द का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिन्होंने संवत् १७९३ में सोता चरित्र नामक एक स्वतन्त्र काव्य की रचना की थी । कवि का दूसरा नाम "बालक" भी था । इस काव्य में ३६०० पद्य हैं । चरित्र की कितनी ही प्रतियां जयपुर एवं पहली के