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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ३९ ॥
कहनां । बहुरि जीवपर्यायकरि सदाविद्यमान है सो नोआगमभावजीव है । विशेषापेक्षाकरि मनुष्यजीवपर्याय विद्यमान होय तब मनुष्यनोआगमभावजीव है । ऐसही अन्य जीवादिपदार्थनिकै निक्षेपविधि लगावणां । इहां प्रयोजन ऐसा जो लोकव्यवहारमें कोई नामका भाव समझिजाय तथा स्थापनाळू भावादिक जाने तो ताकै गथार्थ समझावनै निमिति यह निक्षेपविधि है । ऐसा जाननां ॥ बहुरि सूत्रविर्षे तत् शब्द है सो सम्यग्दर्शनादिक तथा जीवादिपदार्थ सर्वहीके ग्रहणके अर्थि है । सर्वहीपरि निक्षेप लगावणें । द्रव्यार्थिकनयतें तो नाम स्थापना द्रव्य ए तीन निक्षेप हैं । बहुरि पर्यायार्थिकनयकरि भावनिक्षेप है ॥
आगे नामादिनिक्षेपविधिकरि थापे जे आकाररूप सम्यग्दर्शनादिक तथा जीवादिकपदार्थ तिलिका यथार्थ अधिगम काहेतें होय है ? ऐसा प्रश्न होतें सुत्र कहै हैं
॥प्रमाणनयैरधिगमः॥६॥ ___याका अर्थ- प्रमाण नय इनिकरि जीवादिक पदार्थनिका अधिगम हो है ॥ नाम आदि निक्षेपविधिकरि अंगीकार करे जे जीवादिक तिनिका यथार्थस्वरूपका ज्ञान प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणकरि तथा द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयनिकरि होय है । तहां प्रमाणनयनिका लक्षण तथा भेद तो आगे
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