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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ३७ ॥
ताका कारण ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म• ताका तयतिरिक्त कर्मद्रव्यनिक्षेप कहिये । बहुरि आहारादि पुद्गलके स्कंध जे शरीरादिरूप परिणवनेकू वाह्यकारण तिनिकू तद्यतिरिक्त नोकर्मद्रव्यनिक्षेप कहिये।
बहुरि वर्तमान जिस पर्यायकरि सहित जो द्रव्य होय ताकू भावनिक्षेप कहिये । ताके दोय भेद; एक आगमभाव, एक नोआगमभाव । तहां जा वस्तूका निक्षेप करिये ताका कथनका शास्त्रका जाननेवाला पुरुषका जिस काल वा शास्त्रविर्षे उपयोग होय तिस काल वा वस्तूका आगमभावनिक्षेप वा पुरुषकों कहिये । बहुरि जो वस्तु जिस पर्यायविर्षे वर्तमानकालमें है ताकू नोआगमभावनिक्षेप कहिये । इहां उदाहरण कहिये हैं । जैसें जीव ऐसा शब्दका अर्थ स्थापिये तहां जीवनगुणादिककी अपेक्षाविना अजीवका किसीका नाम जीव ऐसा कहिये ताकू जीवका नामनिक्षेप कहिये । तथा जीवके विशेषपर्यायपरि लगाईये तब मनुष्यादि जीवनिक्षेप कहिये । बहुरि काष्ठचित्रामादिक मूर्तिविर्षे जीव ऐसा तथा मनुष्यादिजीव ऐसा स्थापन करना सो स्थापनाजोर है । बहुरि द्रव्यजीव दोय प्रकार । तहां जीवके कथनका शास्त्र जाननेवाला पुरुष तिस शास्त्रवि उपयोगरहित होय ताकू आगमद्रव्यजीवनिक्षेप कहिये ।
बहुरि नोआगमद्रव्यजीव तीन प्रकार । तहां जीवके कथनके शास्त्रकू जाननेवाला पुरुषका
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