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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान ३६ ॥
काष्ठादिकके स्थापनतें संघभेद पडिगया है तो अतदाकारकी कहा बात है? ॥
बहुरि गुण जाळू परिणमावैगा तथा जो गुणरूप परिणमवैगा ताकू द्रव्य कहिये । इहां अर्थ ऐसा जाननां-- जो वस्तु अगिली पर्यायप्रति आपही सन्मुख होय, ताकू द्रव्य कहिये । ताके भेदः दोय, एक आगमद्रव्यनिक्षेप, एक नोआगमद्रव्यनिक्षेप । तहां जाके निक्षेप करिये तिस वस्तुका कथनका शास्त्रका जाननहारा आत्मा तिस शास्त्रविर्षे जा काल उपयोगरहित होय ता आत्माकू तिस वस्तूका आगमद्रव्यनिक्षेप कहिये । बहुरि नोआगमद्रव्यनिक्षेपके तीन भेद । एक तो ज्ञायकशरीर ताकै अतीत अनागत वर्तमानकरि तीन भेद हैं । दूजा भाविनोआगमद्रव्यनिक्षेप । तीजा तिन दोऊनितें जुदा ताकू तव्यतिरिक्त कहिये । ताकाभी कर्मनोकर्मकरि भेद दोय । तहां | जिस वस्तूका निक्षेप करिये ताका व्याख्यानका शास्त्रका जाननेवाले पुरुषका शरीर वर्तमानकुंभी | वाका निक्षेप कहिये ; बहुरि आगामी जेते काल रहेगा ताकुंभी कहिये, बहुरि जीवपर्याय छोडे पीछे मृतकशरीर है ताकुंभी कहिये । जातें लोकमैं ऐसा व्यवहार है जो मृतकशरीरकुंभी कहै जो यह फलाणां पुरुष है । बहुरि जा वस्तूका निक्षेप करिये ताहीकू अगली पर्यायकी अपेक्षा लेय पहलैही | कहिये जो यह फलाणा वस्तु है ताकू भाविनोआगमद्रव्यनिक्षेप कहिये । बहुरि जाका निक्षेप करिये ||
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