________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
s
ex
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ३४ ।।
नाम धेरै, ताकूं नामनिक्षेप कहिये । जैसैं पुरुषका हाथी सिंह नाम धन्य तहां हाथीके तथा सिंहके द्रव्य गुण क्रिया जति कछुभी न पाइये, तहां वक्ताकी इच्छाही प्रधान है । इहां कोई पूछेनामका व्यवहार अनादिरूढ है, जैसें जाति ऐसा जातीका नाम, गुण ऐसा गुणका नाम, कर्म ऐसा कर्मका नाम इत्यादि ए नाम कैसे हैं ? ताका उत्तर - जो, अनादिहीतें वक्ता हैं, अनादिहीतें ये नाम हैं । प्रधानगुणपणांका विशेष है, तहां वक्ता वस्तूके गुण आदि प्रधानकरि किसीका नाम कहै, तहां तौ तिस हेतूतें नाम जाननां ॥ बहुरि जहां अपनी इच्छाहीकों प्रधान करै, गुणादिकका आश्रय न ले, तहां नामनिक्षेप जाननां ॥ बहुरि बौद्धमती कहे हैं- जो, नामविषै वक्ताकी इच्छाही कारण है, गुणादिक तौ वस्तूके निजस्वभाव नांही, कल्पित हैं । सो यहु अयुक्त है । गुणादिक तौ प्रतीतिसिद्ध हैं । प्रतीतिका लोप करनां प्रमाण नांही ॥
वस्तूकेविषै अन्यवस्तुसूं समान परिणाम हैं ताकूं जाति कहिये हैं । जैसे गऊजातिकर सर्व गऊ समान हैं | बहुरि गुणपर्यायके आश्रयकुं द्रव्य कहिये । जैसें पीततादि गुण कुंडलादि पर्यायका आश्रय सुवर्ण । बहुरि पीतता आदिकों गुण कहिये । बहुरि कर्म क्रियाकूं कहिये । जैसें चलताकूं चलता कहिये । ऐसें ये प्रतीतिसिद्ध हैं । इनकी विशेष चरचा श्लोकवार्तिकतें जाननी ॥ बहुरि
For Private and Personal Use Only
-