Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
Catalog link: https://jainqq.org/explore/010252/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website. Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility. If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०१ Romame MDMINERAUTAHITTPIPAagatpuIPyy ---77 जेनकथा रत्नकोष म .S 4 नाग सातमो. आ नागमा वैराग्योत्पादक श्रीटचीचं अने गुणसागरनुं शंखरा जाने कलावतीना नवी मामीने एकवीश न बनें बालावोध रूप चरित्र दाखल करेलु ने. प्रसंगोपात बीजी पण केटलीएक विचित्ररसोत्पादक चित्तचमत्कृतिकारक कथाओ आवेली छे. चतुर्विध श्रीसंघने यांचया तथा भणवा माटें. श्रावक. खीमजीनीमसिंह माणके. निर्णयमागर प्रेममा छपावी प्रसिद्ध करयुं छे. T-50 -- M संवत् १०.४८. सन १८९२. आ पुस्तकने फरी छापवानी र सरकारना कायदा प्रमाणे नोंघाव्यो , 141341 Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. समय सम्यग्दृष्टि सङनोनी संपूर्ण दयाथी आ जैनकथारत्नकोष नामा ग्रंथनो सप्तमनाग समाप्त थयेलो . जे नागमा अत्युत्तम, धर्मधुरीण, प्रतापी, मोदगामी एवा पृथ्वीचंद अने गुणसागरनुं बालावबोधरूप चरित्र सविस्तर दाखल करेलुं . जे चरित्रमा पृथ्वीचं अने गुणसागरना जीवो, प्रथम शंखराजा अने कलावती राणीना नवने पाम्या. अने त्यांथी आरंनी पाबा ते बेदु जीवो, एकवीशमे नवें पृथ्वीचं अने गुणसागर नामा थर, ते नवमां दीदा ग्रहण करी ते दीदाने यथागम पाली केवल झानी थश्ने मोदश्रीना मेलापी थया. एवा ते वेदुना एकवीशे नवनी कथा सविस्तर कहेली .तेमां वली तेउने प्रत्येकनवमां पूर्वोपार्जित पुण्यपुंजना उदयथी केवु केतुं सुख, तथा केवी केवी संपत्ति मली? तथा तेज्ये कये कये जवें केवां केवां श्रावकनां बार व्रत पाल्यां? तथा कया कया नवमां केवु केर्बु संयम पाट्युं ? तथा संयमने पाली समाधिमरणे स्वदेहनो त्याग करी ते कया कया देवलोकमांजर, केवा केवा देवता थइने त्यां केवु केतुं सुख अने केटलु केटखं आयुष्य जोगव्युं ? ए सर्व कहेलु . वलीया शांतरसमयचरित्रमा केटलाएक प्रसंगोपात अर्थ सहित साहित्यश्लोको, तेमज वली मागर्ध जापानी गाथाउपण दाखल करेली .या ग्रंथमां जे कांकथाउजे, ते पए नव रसथी नरपूर अने बटादार जे. तथा आग्रंथमां बहुशः तो जीवने संसा रपर वैराग्यथवा माटे उपदेश, संयमग्रहणथी थता लानो, विषयलोलुप ताथी थता जन्म, मरणनरकादिक खो, तथा श्रीअरिहंतधर्मनी महत्ता. ए वगेरे कहेलुं . तेथी या चरित्रना वक्ता अने श्रोता जे रसज्ञ हो, तो तेने सरस रसनी प्राप्ति था. अने या चरित्रना वक्ता तथा श्रोता जे धर्मनिष्ठ अने नवनयनीरु हो, तो तेना अंतःकरणना अध्यवसाय शुरु थाशे. अने पड़ी ते शांतरसने ताप्त थइ संसारपर दृढ वैराग्यवान थ संयमग्रहणेन्दु थाशे. तदनंतर ते निरवद्य एवा संयमने स्वीकारी, ते संयमने यथायोग्य पाली पक श्रेण्यारूढ थका कर्मक्ष्य करी अल्पनवेंज संसारना पारने पामशे. या चरित्रनी यथायोग्य प्रशंसा तो था प्रस्तावनामा पर्ड शके एम नथी, तेथी तेनी परिपूर्ण प्रशंसा न करतां अमो या ग्रंथने वांच Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. · नारा साधर्मीजनोनीज प्रार्थना करिये बये, के था अमारा बापेला ग्रंथने आप सर्व सुझजनोयें दया करी दृष्टिपथगत करवो, के जेथी आ ग्रंथ - पोतेंज पोतानी प्रशंसानुं परिपूर्णपणुं बतावी आपशे. ।। हवे या चरित्रने जैनशास्त्रसागरमांथी सुगुणांबुधि एवा पंमित श्रीरूपविज यजीयें सरल अने सुशोजित एवी संस्कृतनाषामां अग्यार सगै करी गद्यरूपें रचेलु जे. परंतु ते चरित्र संस्कृतमा होवाथी तेनो लान, संस्कृत गिराना अज्ञातजनने, संस्कृत सुज्ञ जनना समागम शिवाय थाय नहिं. एम जाणी ए सुंदर संस्कृत चरित्रनो बालावबोध, कटुकगढीय पंमित श्रील ब्धिविजयजीयें करेलो ने. अने ते पंमितना प्रशस्तिश्लोको पण आ यं थना अंतमा दाखल करेला . हवे ते बालावबोधने था जैनकथारत्नकोपना सातमा नागमां बाप वानो विचार, अमारा शेठ जीमसी माणकें कस्यो. त्यारे तेमणें प्रथम तो तेना बालावबोधनी प्रतो मेलववा प्रयास करो. त्यारें तेमने महत्कष्ठं एक प्रत प्राप्त थइ.तेथी तेमणेते समय प्रतिनी कोपी एक कोपीलखनारपासें जलदीलवावी सीधी. पडी ज्यां तेने बापवानोप्रारंन करती वखत जोवे, त्यांतो तेमांयाधुनि क नाश्योने वांचवाथी बराबर आनंद न आवे तेवा तथा दूरान्वय, नीरसत्वा दिक दोषो देखवामां आव्या.तेम थवामां वस्तुतः जोतां तोते बालावबोध कारनो दोष होय, एम नासतुं नथी. परंतु परंपराथी लखता लेखकोना प्रमा दपूरनो प्रनाव होय? एम नासे .तेथी शेत नीमसीनायें विचार कस्यो के हवे आ ग्रंथ जो पूर्वोक्त पंमित श्रीरूपविजयजीना करेला संस्कृतग्रंथ सा थें मेलवीने बापियें तो ठीक ? तेम निश्चय करी एक विज्ञानने ते संस्कृत ग्रंथसाथै मेलववाने कयुं. त्यारे ते ग्रंथसाथै कोपी मेलवतां घणीज चेर फेर थवा मांमी ? तो पण ते संस्कृतमंथने अनुसरीनेज घणी महेनतें बा पवा मांमधु. ते आ ग्रंथना आशरे अग्यार फारम पाणा. परंतु ते कोपी संस्कृतसाथे मेलवी बापतां कंटाली जवाथी तेनुं नाषांतर करावीज बापवानो विचार कस्यो. त्यां तो दैवकोपथी नीमसीनाइपोतेंज देवलोक थया. त्यार पडी केटलाएक कारणथी ते बापवानुं काम बंध रह्यु. तदनंतर ते पूर्वोच्चारित ग्रंथ अधुरो होवाथी ते ग्रंथने पाडो बापवानो विचार कस्यो. त्यारे ते बाप वाना काममां माहेतगार एवा एक विज्ञानने बोलावी, ते ग्रंथ पाववा Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. मांमयो, अने प्रथम जीमसीनाश्नी पर्नु ते पूर्वोक्त कोपी संस्कृतग्रंथसाथें मेलाववामांमी. तो तेने मेलवतां पूर्ववत् घणीज चेर फेर थवा लागी, ते क्यों सुधी के तेनाथी जो ते ग्रंथनुं नाषांतर कराव्युं होय, तोते उडा प्रयासें पार पडे? त्यार पनी ते चरित्रनुं जाषांतर करावी बापवा मांमधु. तेथी या ग्रंथने बाप तां, धावां करतां वधारे विलंब थयो . तेमज वली ग्रंथ पण अस्मन्म नीषा करतां महत्ताने पाम्यो बे. या ग्रंथ, याशरे अग्यार फारम पर्यंत तो ते पूर्वोक्त चेर फेर करेली कोपी परथी गप्यो , तेथी तेमां श्रीलब्धिविज यजीकृत बालावबोधनी प्रतमा जे श्लोकांको हता, ते बापेला , अने पनी नाषांतर करी बापवाथी ते श्लोकांको आव्या नथी. वली संस्कृ तग्रंथमां जेवी वात लखी होय, तेवीज वात जो गुजराती नाषांतरमां ल खीयें, तो ते सारी रीतें सदुने समजाय नही, तेथी ते सदुनाश्योने सम जाय, ते माटे संस्कृत ग्रंथ करतां यत्किचित अधिक पाई हशे. हवे था अमारा बापेला चरित्रमा शेठ नीमसी नाई न होवाथी तेनी सहा यता विना, तथा शोधकना अज्ञानथी, दृष्टिदोषथी, केटलीएक नूलो रही गइ हशे, तो ते नूलोने सुझनोश्यो सुधारी वांचशे. एवी अमारी सविनय प्रार्थना . कारण के सुझजननो तो एवो स्वनावज होय . पारका दोष सामुं न जोतां तेना यत्किंचिजुणोने जोवे . वली या ग्रंथमां जे कां श्री अर्हदाझाविरु६ उपाइ गयुं होय, ते दोषनुं हुं महारा सर्वसाधर्मिनाइयो पासें मिलामि उक्कडं करूं बुं. हवे या ग्रंथनीप्रस्तावनामांबाप्रस्तावनाने असंगत, तथा वली तेमना पुत्रना अधिकारिपणाथी बपाता आ ग्रंथमां, देवलोक थयेला " श्रावक नीमसिंह माणकना” जे कां गुणो लखवा कां योग्य नथी. तो पण या पणा केटलाएक नाश्योना अत्याग्रह पूर्वक कथनथी यत्किंचित् तेमना गुणो, तथा ते क्यारे देवलोक थया? ते लखीयें बैयें:__ आ जैनकथारत्नकोषना पन्नरजागरूप सर्वोत्तम कार्य करवामां उत्सुक, ते सर्वेनागोने उपावी साधर्मी नाइयोनी समीप मूकवामां मनोरथवान, अर्थोपार्जन करवाना अन्य उद्योगोने बोडी विशेषे करी ज्ञानदि करवामां बपरिकर, जैनशास्त्रशैलीने सारीरीतें समजनार, व्यापार हिसाबना कार्य करणमा कुशल, जगतमा सदुकोइ जाणे, तेम आशरे (३००) त्रण सो Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ d प्रस्तावना. जैनग्रंथो बापी प्रसिकतामां मूकनार, एवा “श्रावक नीमसिंह माणक,” के टलाएक ग्रंथने बापवानी उमेदयुक्त अकस्मात् दैवकोपथी संवत् १ए। ना ज्येष्ठवदि ४ ने गुरुवारें दिवसना सवादश वागते देवलोक थया. तेथी थाप णा घणाक जैनबंधुनने मानसिक फुःख थयुं ले. कारण के पूर्वोक्त जीमसी नाश्ना मरणथी आपणा नारतीय वर्षमा हाल था जैनझानवृद्धिकारक का र्यने महोटो धक्को वाग्यो, एम कहेवामां कां पण अडचल नासती नथी. वली ते " नीमसी नाइ” केटलाएक नाश्योने कहेता हता, के ज्यां पर्यंत माझं शरीर, पृथ्वीपर विद्यमान रहे, त्यां पर्यंत ढुं, या जैनग्रंथ बाप्या शिवाय बीजो कांऽ पण उद्योग करनार नथी. अने तेवोज तेमनो अभिप्राय होवाथी तेमणें जानमहेनत लइ देशावरोमां फरी पोतानी (३५०००)पांत्री श हजार रूपैया जेटली मोटी पुंजीनो जैनलिखित पुस्तक मेलववामां.व्यय कस्यो. ते पुस्तक मेलवानुं काम तेमने संवत् १९२७ नी शाल सुधी कयुं. ते पनी ते ग्रंथोने शुरू करी बापवानो प्रयास लेवा मांमयो. हवे जो नपर लखेली रकम तेमणे सारा वेपारीने घेर व्याजें मूकी होय, तो आज दिवस सुधी ते रकम, व्याज सुधांबाशरे लाखरूपैय्या जेटली थावा आवे. परंतु ते सर्व लानअने लोननो त्याग करी तेमणे संवत् १एनी शाल थीआरंजी ज्यां पर्यंत पोतें देवलोक थया, त्यां पर्यंत जैनग्रंथ बापवानुज काम कयुं. बीजा घणाक नाश्यो जैनग्रंथो बापे ने खरा, परंतु "नीमसी नाइ"जेटलो प्रयास लश बापनार तो आपणने विरलाज जोवामां आवशे. कारण के ते पोते कोपीयो लखवामां तथा तेने शोधवामां तथा तेनी उपाइ श्रा वेली ग्यालीयोने शोधवामां प्रतिदिन थाखी रात जागरण करता हता. तथा दिवसमां पण जोजन वगेरेनी दरकार न करतां ते ग्रंथ शोधवामां तत्पर रहेता हता. अने ज्यारें पोताना मनने निःसंशयता थाती हती, त्यारेंज ते कोपीने पोतें बापवा थापता हता. माटे तेमना सर्व गुणो या ग्रंथनी प्रस्ताव नामां लखवाथी प्रस्तावना वधी जाय, तेथी ते विषे अमें हवे जाजुं लखवू पुरस्त धारता नथी. पण घणी दिलगीरीनी वात तो एज थइ , के जो ते स्वारंनित जैनकथारत्नकोषना पन्नरे नागोने परिपूर्ण नापी देवलोक थया हत, तो अस्मन्ने अवडो महोटो अपशोष थात नहि. परंतु दैव पासें कोठें कांश पण माहापण चालतुं नथी.अलमतिविस्तरेण ॥ शुनम् ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अस्य ग्रंथस्यैकादशसर्गाणामतिसंक्षिप्तानुक्रमणिका ॥ क्रमांक. १ प्रथमसर्गमां. ग्रंथकारकृत मंगलाचरणना श्लोको सार्थ. १ पृथ्वीचंद ने गुणसागरना जे एकवीरा जव थया, तेमां कया वो, कये स्थलें घने कोने कोनें त्यां थया, तेनुं संक्षिप्त वर्णन. ३ प्रथमनवें पृथ्वीचं शंखनामा राजा थयो, तथा गुणसागर तेनी कलावती नामा स्त्री यइ, तेनुं चरित्र तेमां तेनो जे कलावती सायें संबंध थयो, तेनुं वृत्तांत खने कलावती, राणीने तेना नाइना श्रापेला बाजुबंध पहेरेली जोइने शंखराजाने वहेम श्राववाथी ते राणीनुं वनमां मूक, तथा तेना हाथ कपाववा, तेने वनमां पुत्र प्रसव थवो, शंखराजानो पश्चात्ताप थवाथी अग्निमां पड वा तैयार य, ते शंख राजाना ने कलावतीना पूर्वन वनी कथा. ते शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण घणी कथा . ४ बीजे नवें ते पृथ्वीचंद ने गुणसागर कया देवलोकमां केवा देव थया. तथा तेनुं केटलुं केटलुं यायुष्य. इत्यादि...... ५ बीजा सर्गमां. त्रीजे नवें पृथ्वी चंड् कमलसेन राजा थयो, अने गुण सागर तेमनी स्त्री गुण सेना थइ, तेनुं चरित्र. तेमां कमलसेनने अंग देशना राज्यनी प्राप्ति तथा गुणसेनानुं पाणिग्रहण, अंगदेशना श्रीके तुनामा राजानो इतिहास. तेमां को एक विनयं धरनी पतिव्रता चार स्त्रीयोना पूर्वजवनी कथा. नदीनुं पर जोइ कमलसेन ने वैराग्य थवा पृष्ठांक. ܐ ५ ४३ सस्त्र दी. शिवाय तेमां बीजीपणप्रसंगोपात घणी कथाले ४४ ६ चतुर्थनवें पृथ्वीचंड्, गुणसागर, कये देवलोकें केवा देव थया. इत्यादि ए४ ७ त्रीजा सर्गमां. पांच मे नवें पृथ्वी चंद्र देव सिंहराजा थयो, तथा गुण सागर तेनी कनकसुंदरी नामा स्त्री थयो, तेनुं चरित्र. तेमां प्रसंगतः सुरगुरुप्राचार्यनी यापेली देशनामां संसारने बंधिवा नानी तुल्यता, तथा व्यपूजा करनार सूडाडीनी कथा, तेमां ते सूडा सूडीने जिनपूजनना प्रभावथी बीजा सुखद नवो यया, ए वगेरेनी कथा. तेमां श्रुतसागरनी करेली देशनामां संसारनुं घने Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. समुनु समानपj.ते शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण कथा ..... एa Gबहे नवें तेप्टथ्वीचं,गुणसागर,कयालोकमांकवादेव थया इत्यादि. १३३ ए चोथा सर्गमां. सातमे नवें पृथ्वीचं देवरथ राजा थयो,तथा गुण सागर तेनी रत्नावली नामा स्त्रीथयो.तेनुं चरित्र.तेमां रत्नावलीने परणवाजातांरस्तामाएकविद्याधरनुं मंत्रपदथी साहायकर त था तेनाथी वैक्रियविद्याने ग्रहण करी त्यांथीरत्नावलीने गाम जइ तेनीसाथे लग्न अनेप्रसंगोपातधर्मवसुनामा मुनिनी देशनामांआ संसारने स्मशाननी उपमा, तथा पंचपरमेष्ठीना स्मरणमाहात्म्य रूप संगत निन्ननुं वृत्तांत तथा तेनाप्रसंगमांकोइएक रत्नशिख राजा नुं सविस्तर चरित्र,तेमां वली कोइ नाटयूँ कहेलुं वीरांगद,अनेसु मित्रनुं मोहोट्टे चमत्कारिक कथानक.ए शिवाय बीजीपण कथाने. १३४ १० बातमे नवें पृथ्वीचंगुणसागर कयालोकमां केवा देवथया इत्यादि. १७७ ११ पांचमा सर्गमां. नवमे नवें पृथ्वीचं पूर्णचं नामा राजा थयो, तथा गुणसागर तेनी पुष्पसुंदरीनामा स्वीथयो. तेनुं चरित्र. तेमां ते पुष्पसुंदरी साथें लम थवानी कथा, प्रसंगतः श्रुतसुंदरमुनियें पोताने संसारपर वैराग्य थई दीक्षा लेवाना कारणमां पोतानी गृहस्थदशामा स्वस्त्रीयोने कोइ मुनियें पांच माहाव्रतनो उपदेश कयो ते, अने ते पांचमाहाव्रत आश्रयी पांच कथा. तथा पूर्णचंझे सस्त्रिक दीदा लीधी. ते शिवाय बीजी पण कथा . १०७ १२ दशमे नवें पृथ्वीचंगुणसागर कये देवलोकें केवा देव थया.इत्यादि. २४७ १३ बम सर्गमां. अग्यारमे नवें पृथ्वीचं सूरसेन राजा थयो, तथा गुणसागर तेनी स्त्री मुक्तावली थयो, तेनुं चरित्र. तेमांप्रसंगोपात सूरसेनना पितानो पुत्र थवा माटे मंत्रसाधनप्रयास, सूरसेननो जन्म, तथा मुक्तावलीसाथें लम थवानुं वृत्तांत, सूरसेन अने तेनी स्त्रीना करेला यंता पिकायुक्त चमत्कारिक प्रश्नोत्तर, सूरसेनना पितानुं वैराग्य थवाथी दीक्षा ग्रहण, रात्रिनोजननिषेध अने रात्रि जोजन करनार अन्यदर्शनीयोनुं खंमन, अने अधर्मना राय हीयो माटे एकमुराग्रही ग्राम्य बोकरानी कथा. अने सस्त्रिक सू रसेने दीक्षा लीधी ते. एशिवाय प्रसंगोपात बीजी पण कथाउजे. २४ए Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. १४ बारमे नवें पृथ्वीचं,गुणसागर,कया लोकमां केवा देवथया.इत्यादि.२३ १५ सातमा सर्गमां. तेरमे नवें पृथ्वीचं पद्मोत्तरनामा राजा थयो, अने गुणसागर तेनो हरिवेगनामा मित्र थयो, तेनुं चरित्र. ते मां पद्मोत्तरने लग्न करवा जतां रस्तामां तापसियोने त्यां रहे ली कोइएक गुणमाला कन्यानुं तापसे कहे वृत्तांत, तथा तेणे ते कन्यानुं करेलुं पाणिग्रहण.तदनंदर सूर्यलेखा अने शशिलेखानुं स्वयंवरमां पाणिग्रहण, त्यां आवेला राजकुमारो साथें यु६.करेलुं हरिवेगनुं जन्म, तथा तेनी लग्नक्रिया, ते हरिवेगनुं ज्ञानी मुनिना कहेवाथी पद्मोत्तरने उपवेश करवा वैक्रिय मिंदडो बनावी जर्बु, अने ते प्रसंगें केटलाएक मिथ्यात्वी ब्राह्मणोना मतनुं युक्तिथी सविस्तर खंमन. जुगारी अने संसारीनी समानता मानी मनमां वैराग्य लावी ते पद्मोत्तरतुं तथा हरिवेगनुं दीक्षा ग्रहण. ते शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण केटलीएक रसिक कथा . २०३ १६चौदमेनवें पृथ्वीचं,गुणसागर,कयालोकमां केवा देव थया.इत्यादि. ३२ १७ आठमा सर्गमां. पन्नरमे नवें पृथ्वीचं गिरसुंदरनामा राजा थयो, अने गुणसागर तेना काकानो पुत्र अने मित्र रत्नसार थयो. तेनुं चरित्र. तेमां गिरिसुंदरकुमारनुं चोरने पकडवा जश् चोरने मारी, तेनी हरण करेली सर्व कन्याउनी साथें पाणिग्रहण. ते हरिवेगने शोधवागयेला रत्नसारने सिंहरूप देवनोवनमांसमागम, तेप्रसंगें ते सिंहने पोताना वृत्तांतनुंकहेवं, तेमांरत्नसार-दयाधर्मनुंआधि क्य तथा हरिवेगर्नु अने रत्नसारनुं याथा तथ्य मैत्र्य.श्रीजयनंदन सूरिये करेलीदे शनामांमुनिने पूबवाथी मुनिदानना माहात्म्यथ की हरिवेग अने रत्नसारना माता पिताने राज्यजसुख मत्यु ते आश्रयी तेउनी पूर्वनव कथा ते शिवाय बीजी पण कथा. ३२ १ सोलमेनवें पृथ्वीचं,गुणसागर,कयालोकमां केवा देव थया.इत्यादि. ३७ए १ए नवमासर्गमां. सत्तरमे नवें पृथ्वीचं कनकध्वज नामा राजा थ यो,बने गुणसागर तेमनोरमान ना जयसुंदर थयो. तेनुं चरि त्र. तेमां ते बेदुजाने विद्याधरनी शो शो कन्या साथें जम थवानुं वृत्तांत. स्वयंवर मुनिनी दीधेली देशनामां संसारने उग्रवननी उप Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. अनुक्रमणिका. मा, कनकध्वजनुं दिग्यात्रायें जवु, त्यां सांकेतपुरगाममां कोइएक मुनिने देशना देतां कपिंजलपुरोहित साधे जीवाजीवनोवाद,तेमां जीवतत्त्वनी करेली सत्यता, मिथ्यात्वी एवा ते कपिंजलना मा मा केशवनी तथा कपिंजलनी अने सम्यकी पुरुषोत्तम राजादि ना पूर्वनवोनी कथा. ते शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण कथा . ३७॥ २ण्अढारमेनवें तेप्टथ्वीचंद,गुणसागर,कयालोकमांकेवादेवथयाइत्यादि.४२४ २१ दशमा सर्गमां.गणीशमे नवें पृथ्वीचंद, कुसुमायुध नामा राजा थयो अने गुणसागर तेनो कुसुमकेतु नामा पुत्र थयो. ते वेहुनुं चरित्र. तेमां वनत्रीडा माटें गयेला कुसुमायुधना पिता पर बास क्त थयेली वनदेवीयें क्रोधथी कुसुमायुधनीमाता प्रियमती राणी नुं करेलुं हरण, तेमां ते राणीने तापसीयो साथै समागम, वनमां. कुसुमायुधनुं उत्पन्न थर्बु, ते कुसुमायुधने शिववईन, राज्य मन बु, तथा प्रसंगोपात गुणसागरसूरिनी करेली देशनामां मोहराजा अने चारित्र राजानुं लौकिक राजा जेवा व्यतिकरमा स्वरूप, कुसु मकेतु कुमारनुं बत्रीश कन्या साथै पाणिग्रहण अने ते पिता पु त्रने चारित्रप्राप्ति. ए शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण कथा. ४२५ २२ वीशमेनवेंतेप्टथ्वीचं,गुणसागर,कयालोकमांकेवादेवथया.इत्यादि.४६५ २३ अग्यारमा सर्गमां. एकविशमे नवें पृथ्वीचंद, पोतें पृथ्वीचंज थ यो.अने गुणसागर ते पोतें गुणसागरज थयो. ते बेदुनु सविस्तर अतिमनोहर, वैयाग्य कारक चरित्र. तेमां ते बेहुने जातिस्मरण झाने करीजन्मथीजसंसारपरवैराग्य,अनेतेयेंगतरागपणामांज करेला लग्न, पृथ्वीचं पोतानी परणेतीस्त्रीयोनें करेला उपदेश मां केशवबटुकनो दृष्टांत दर संसारीजीवनी विटंबणा कही ले ते. तथा प्रसंगोपात गुणसागरें पण पोताना लग्नमां थती दरेक विवा हक्रियाने जोश्ने क्रियानुअने संसार विटंबणानुंसामानाधिकरण्य कमु डे, ते. ते बेहुने केवलझान उत्पन्न थयुं. तेनी साथें तेमनी . स्त्रीयो माता पिता ससरोसासु वगेरेने केवलज्ञान थयु. तथा ते बेद मोदे गया. ते शिवाय प्रसंगोपात बीजी पण घणी कथा . ४६५ २४ बालावबोधकर्ताना प्रशस्तिश्लोको. .... ५०४ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नमः श्रीवीतरागाय ॥ अथ श्रीपृथ्वीचं अने गुणसागरनुंबालावबोधरूप चरित्र प्रारंन तत्र प्रथम _ग्रंथकार, मंगलाचरण. प्रणम्य श्रीमहावीरं, शंकरं परमेश्वरम् ॥ पृथ्वीचन्चरित्र स्य, कुर्वे बालावबोधकम् ॥१॥धर्मविद्याविदा येन, गुणैरा कृष्य मार्गणान् ॥ सलयं निर्मितं चित्तं, स श्रीवीरः श्रिये ऽस्तु वः ॥३॥ सर्वातिशयसंयुक्ताः, प्रातिदार्याष्टकान्विताः॥ येऽतीताः सन्ति एप्यन्तस्ते जिना ददतां मुदम् ॥ ३ ॥ सिक्षाः प्रसिक्षा आचार्यो-पाध्यायाः सर्वसाधवः॥प्रपञ्चयन्तु वः श्रेयः, पञ्चैते परमेष्ठिनः॥४॥ स्वनावान्निर्मला नित्यं, दर्शनान्मार्ग दर्शिनः॥ सन्तोऽर्कवत् सदा वन्या, दोषापगमकृत्कराः ॥५॥ संपद्यते हृदालोको, यजयेन पदे पदे ॥न निन्द्या ध्वान्तव दोषात्मका अपिच उर्जनाः॥ ६ ॥नुत्वा पूर्वकवीन नत्वा, स्व गुरून् सझुणे गुरून् ॥ वदयामि जीवजीवातुं, किंचिधर्मकथा मदम् ॥ ७॥ स्वस्तिकृत् सिधिमार्गाणां, स्वर्णाङ्गः पूर्णकुंनव त् ॥ नानेयो नाति वैर्य-पिधानं कुंतलबलात् ॥७॥ अर्थः-कल्याणकारक एवा श्री महावीरपरमेश्वरने प्रणाम करीने पृथ्वी चंना चरित्रनो बालावबोध हुँ करुं बु. ॥ १ ॥ धर्मरूप विद्याना जाण एवा जे पोताना ज्ञानादिक गुणवडे बाणो खें चीने पोतानुं चित्त सलक्ष्य एटले लक्ष्युक्त (जेनीउपर लक्ष्य ) एवं कह्यु एटले षड्ऐश्वर्यसमान कयं. ते श्री वीर परमात्मा तमारा कल्याणने अर्थे था. अर्थात् जेम को बाणवेधी पुरुष,पणो बाण आरोपीने बीजा नपर एकतान राखे तेम जाणवू. ॥ २ ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सर्व अतिशयें करी युक्त, आठ प्रातिहार्ये करी सहित, एवा जे अती तकालें थयेला, अने वर्तमानकाले जे विद्यमान , तथा अनागत काले जे थशे, एहवा जे श्री तीर्थकर देव ते तमोने मुद् एटले आनंद बापो,तथा निर्विघ्नपणुं बापो ॥३॥ अरिहंत, सिम, याचार्य, उपाध्याय अने सर्व साधु एवा जे प्रसिद्ध पंचपरमेष्ठी ते तमारा कल्यागनी वृद्धी करो, एटले सर्व जीवने महोदय सुखने माटे था. ॥ ४ ॥ स्वनावथी निर्मल, दर्शनथी निरंतर मार्गना देखाडनार, एहवा संत स ऊन साधु ते निरंतर सूर्यनीपे- वंदनीक . केम के, तेमना कर एटले हाथ ते दोषोनो अपगम करनारा , दोषोना समूहना टालनारा ले. अहिंया कर अने दोषा पगमकत् ए वे पदना वे वे अर्थ ले. कर एटले हाथ ए अर्थ सा धुना पदमा लेवो, दोपापगमकत् एटने दोपने दूर करनार ए अर्थ साधुना पदमा लेवो, कर एटले किरण अने दोषापगमकत एटले रात्रीने दूर कर नार ए अर्थ सूर्यना पक्षमा लेवो. जेम अन्य दर्शनीने सूर्य वंदनीक डे, ते दोषा एटले रात्रीना अंधकारने टालनार , तेम संतरूप सूर्य ते अज्ञान रूप अंधकारने टालनार ले ते माटे संतने नित्य वंदना करुं बुं ॥ ५ ॥ हवे सऊन जे जे ते उर्जनना पण गुण ग्रहण करे वे ते कहे . जेम ना वचनना नयथा हृदयमां पगे पगे आलोक थाय ने. उनना वचननां जयथकी सऊनना हृदयने विपे अजुवा थाय जे. एहवा उर्जन लोको जो पण अंधारानी पेठे दोषात्मक ले, तोपण ते निंदा करवा लायक नथी. अहिंया आलोक ए शब्दना वे अर्थ छे. उर्जनना पदमां आलोक एटने विचार, अने अंधकारना पदमां आलोक एटले प्रकाश जाणवो ॥ ६ ॥ एवीरीतें पूर्वे थयेला कविउनी स्तुति करीने रूडा गुणेंकरीने गरिष्ट एह वा जे पोताना गुरु तेने प्रणाम करीने जीवोने औषधनी पेठे जीवनरूप, संसाररूप मरणथी जीवाडनार एहवी सम्यक्दर्शनरूप श्री पृथ्वीचंजीनां चरित्रनी जे धर्मकथा ते अल्पमात्र कहेवानो हुँ आरंन करूं बुं. ॥ ७ ॥ मुक्ति मार्गने विषे मांगलिकना करनार, कंचन सर जेमनुं शरीर में, एवा नानिराजाना पुत्र श्रीषन प्रनु ते श्यामकेशना मिषथी कुंजनी पेठे वैमूर्यरत्ननां ढांकणा जेवा शोने ,एटले श्रीकृषनदेवजीनु शरीर कंचनवर्ण Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. वालुं , ते रूप मांगलिक कलश जाणवू,अने प्रजुने मस्तकें श्याम केश बे ते ते कलशनां ढांकणा रूप बे, एवो प्रनु रूप कलश ते मुक्तिमार्गने वि षे कल्याणकारी शोने जे ॥ ७ ॥ __ अहिं जगत् मांहला सकल जीवोने अनयदान आपवामां कुशल एवा नगवान् श्री वर्धमान स्वामीये सर्व लोकोने पुरुषारूप वृदनुं बीज धर्म ने एम वखाणेलुं. कारण, पुरुषार्थ रूपी जे वृद, ते सर्वनुं जे उत्तम बीज ते धर्म ते पुरुषार्थ चार ले. ते मांहे धर्म, मुख्य पुरुषार्थ ,जे माटे अर्थ काम अने मोद ए सर्व धर्मथी पामीये ते माटे धर्म तेज प्रशंसा करवा योग्य . यतः॥ धर्माचनमनन्तं स्यात्, सर्वे कामाश्च धर्मतः॥ जन्यते धर्म तो मोद,-स्तेनोक्तो धर्म उत्तमः॥१॥अस्यार्थः ते धर्म थकी धन अनंतुं पामे, सर्व संसारिक सुख कामानिलापर्नु पूर्ण पामवं, ते पण धर्मथी पामे, वली धर्म थकी कर्मनो क्य थाय, अने मोदरूप फल पामे, ते माटे धर्म पदार्थने श्री तीर्थकरें नुत्तम कह्यो . तरुमध्ये जेम कल्पतरु अधिक डे, ताराउमा जेम चं मोटो, पर्वतमां जेम मेरुपर्वत मोटो, तेम अन्यधर्मथी जैनधर्म शिरोमणी ने एवं कर्तुं . ते जैनधर्म केवो के ? तो के प्राणीने चार गतिनां दुःखनो हरनार . व ली ते धर्म आदयो थको उत्तम मोद सुखनो देनार . ए धर्म सांन व्यो थको, आदस्यो थको, कराव्यो थको, कस्यो थको, महोदय सुखने पमाडे. ११ ते माटे धर्म कथा,श्रावकें सद्दहणा सहित सांजलवी. कारण के जेहवां वचन काने सांनलिये तेहवो चित्तने विषे रस नपजे. १२ संवेग रसरूप अमृतें करी मोह महा विष विलय थ जाय,माटे धर्मना जे सांन जनारा जनो ने ते मोद सुखनी पेठे तत्काल चिदानंद सुखने पामे ले. १३ ___ कामार्थे मिश्रित जे धर्म कथा ले, ते मांहे चरित्रानुवादे दृष्टांत घणां यावे, ते श्रोताजनने सांजलतां थकां स्वाद नपजे.जेम सरस रसवती होय तो पण तेने शाक साथे जमता स्वाद नपजे, शाकविना ते रसोइ स्वाद न आ. तेम धर्मकथा पण दृष्टांतें करी शोने. १४ गुं घणुं कहीये. पूर्व क वीश्वरें पृथवीचंद कुमारनुं चरित्रप्रास्त गाथा बंध की) ले तेमांथी किंचि तमात्र हुँ रचना करूं बु. १५ एहवा पुःखमां कालने विषे या चोवीशीना पांचमा आराथी पहेली Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कोइक चोवीशीना अवसर्पिणी कालने पांचमे आरे ए शंख राजा थया. तेज महारुषि, गुरू समकितवंत, एवो पृथ्वीचं राजा नाव चारित्रना बीजें करी नार्यासहित अनुक्रमें मनुष्यना तथा देवताना नवमां श्रधि काधिक सुख नोगवीने अंते सुखें समाधे मोक्ने पाम्या. ते कथा ढुं कहूं बुं, ते प्रत्ये हे सऊनजीवो ! तमे सांजलो. १६ ते समकित कये नवे पा म्या, ते पाम्या पली केटला नव संसारमा कीधा, ते नवनी संख्या केटली थर, ते मूल ग्रंथमध्ये जेम कही ने तेम लखिये बियें. प्रथम नवे पृथ्वीचंद कुमारनो जीव शंखराजा थयो, अने गुणसागर नो जीव कलावती राणी थइ. तिहां ए बे जीव समकित पामी दीक्षा ले। चारित्र पाली बीजे नवे सौधर्म देवलोकें देव देवी थयां. त्यां पांच पांच पव्योपमनुं आयुष पाली त्रीजे नवे शंख राजानो जीव कमलसेनराजा थया, अने गुणसागरनो जीव तेहनी गुणसेना राणी थ. त्यां ए बे जीव दीदा खेइ, चारित्र पाली चोथे नवे दश सागरोपमने बानखे पांचमे देव लोके मित्रपणे देवता थया. तिहाथी पांचमे नवे पृथ्वीचंनो जीव देव सिंह राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेनी कनकसुंदरी नामें राणी थ. ते नवें श्रावकनांबार व्रत पाली बहें नवे, सातमे शुक्र देवलोकें सत्तर सागरोपमने आउखे एबे जीव मित्र देवता थया. त्यांथी सातमे नवें पृथ्वी चंइनो जीव देवरथ नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव रत्नावली नामें तेनी राणी थइ. एबे जीव ते नवें शु६ श्रावक व्रत पाली प्रारमेनवे नवमे आनत देवलोकें उगणीश सागरने घाउखें ते बे मित्र देवता थया. तिहांथी नवमे नवें पृथ्वीचंइनो जीव, पूर्णचंड नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेनी पुष्पसुंदरी नामें राणी थइ. ते नवे एबे जीव गुरू श्रावकनां बार व्रत पाली दशमे नवें अग्यारमे धारण देवलोकें वीश सागरने आउखें ए वे मित्र देवता थया. त्यांथी च्यवी अग्यारमे नवें ट थ्वीचंनो जीव शूरसेन नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेहनी मुक्तावली नामें राणी थइ. ते नवे बेहु युद्ध चारित्र पाली बारमेनवे वीस सागरने आयुषे पहेली ग्रैवेयकें ते बे मित्र देवता थया. त्यांथी च्यवी तेरमे नवे पृथ्वीचंनो जीव पद्मोतर नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव हरिवेग नामें राजा थयो. ते बन्ने विद्याधर थया. तिहां दीक्षा लइ चारित्र Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. पाली चौदोनवे सत्यावीश सागरने बाउखें मध्य ग्रेवैयकें बे मित्र देवता थ या. त्यांथी पंदरमे नवे पृथ्वीचंनो जीव गिरिसुंदर नामें राजा थयो. अने गुणसागरनो जीव पृथ्वीचंश्नोअन्यमातृक लघु नाइ रत्नसागर नामें थयो. त्यां बे नाश्दीदा सर शुक्ष चारित्र पाली सोलम नवें नवमे अवेयकें एक त्रीश सागरने आउखें बे मित्र देवता थया. त्यांची सत्तरमे नवे पृथ्वीचं नो जीव कनकध्वज नामें राजपुत्र थयो, अने गुणसागरनो जीव तेहनो। रमाश्ना जयसुंदर नामें राजपुत्र थयो. ते बे नाइ दीदा लइ संयम पाली अढारमेनवे बत्रीश सागरने आयुषे विजय विमानें बे मित्र देवता थया.त्यांथी गणीशमेनवे पृथ्वीचंनो जीव कुसुमायुध नामें राजा थयो. अने गुणसा गरनो जीव तेहनो पुत्र कुसुमकेतु नामें थयो. त्यां पितापुत्र बन्ने दीक्षा लइ, शुरू चारित्र पाली वीशमेनवे सर्वाथसिह महाविमानें तेत्रीश सागरने आ नखे में मित्र देवता थया. त्यांथी च्यवी एकवीशमे नवें शंखराजानो जीव ष्ट थ्वीचं नामें अने कलावती राणीनो जीव ते गुणसागर नामें एबे शेठना पुत्र थया. ते गृहस्थपणे केवलज्ञान पामी मुक्तियें पहोता. ए संदेपें नामथीज मात्र एकवीश नव कह्या. हवे प्रत्येक प्रत्येक एकवीशनव विस्तारे कहेवाशे. __ या जंबूछीपने सरावला कोडीयानी सदृशे दीपकरूपें थापी उपमा दीये वे. पृथ्वीने विषे, सूर्य किरणरूप ज्वालायें करी प्रज्वलित थयेला, मेरु रूप वाटि जेनी , सागररूप तेल जेमा नरेलु , एवो मंगलदीप सरवो जंबुदीप छे. ते जंबुद्दीपनी दक्षिण दिशायें नरतदेवनी वचमां वैताढय पर्वत तेणे अई खंम की , त्यां गंगा सिंधु ए बे महानदीयें ब खंम की धा. ते नरत देत्र मध्ये सदाकाल बार बार बारानुं कालचक्र फरे बे. ब अारा अवसर्पिणीना हीयमान कालना अने बारा उत्सर्पिणीना वई मान कालना, एम सदाकाल जरतत्रिने विषे बार बाराएवी रीतें वर्ने ने. उत्सर्पिणी कालने विषे जे नाव आयुष्य, देहमान सुखादिकनुं प्रमाण होय. तेथी अवसर्पिणी कालने विषेप्राणीमात्रने सर्वनाव विपरीत होय.३५ एहवे समे कोक गतकाले, कोइक अवसर्पिणी कालने विषे दारुण न यंकर दुषम नामें पांचमा आराने विष काल, धैर्य, संघयण, श्रदान ते सर्व पुर्बल थया,था वर्तमान कालनी पेठे साधुव्रतने पालनारा घणा स्वल्प होता हवा. एहवा पांचमा धाराने विष नरतदेवना दक्षिणा मध्य खमनुं मं Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मण, रम्य ग्राम देशेकरी शोजायमान, एहवो एक श्रीमंगल नामे देश होतो हवो. ३५ ते देशने विषे दक्षिणावर्त शंखनी पेठे शंखपुर नामें नगर जे. जेमा चित्त चिंतवितना दातार एवा धनवंत पुरुष तथा जेमा अढारे वर्णना लोक वसे छे, ज्यां जिनप्रसादनेविषे लंची ध्वजा चलके , घंटाना श ब्द वागे, एह, शंखपुर नामें नगर शोने जे. ते नगरने विषे शंख नामें राजा ले ते केहेवो के ? तो के, शंखसमान उजलो , यशनो धरनारो ने, ते राजा महा शूरवीर , ते यद्यपि सूर्यसमान तथापि प्रजाने तापकारी नथी. वली चश्मानी पेठे शीतल ,पण दीण अने कलंकी नथी.तथा सुपात्रने विषे दातार छे, पण जुगटुं रमवाने कृपण . परस्त्री जोवाने नपरांतो , पण शत्रु जीतवाने सन्मुख ले. तथा घणी अंतेरी, हाथी, घोडा, प्रधानादिक परिवार सहित इष्टकारी जे. एम सुखें समाधिये ते शंख राजाने राज्य पालतां केटलो एक काल जातो हवो. ३५ ___ एटला नंतर एकदा समये ते राजा राजसनामां बेठो , त्यां प्रतिहार जे पोलियो तेणे आवी अरज कीधी,जे प्रधान एवो गजनामें शेठनो पुत्र दत्त एवे नामें विनीत तमारो मित्र तमने मलवाने प्राव्यो , दुकम होय तो सनामां आवे. त्यारे राजायें आज्ञा दीधी, दत्तकुमार पण प्रधान नेट ऐ राजा आगल मूकीने प्रणाम करी उनो रह्यो. त्यारे राजायें पूज्यु, हे दत्तकुमार! तुजने कुशल ने. केम घणे काने आव्यो ? एटला दिवस किहां गयो हतो ? एटलु पूज्या पली दत्तकुमार कहे . हे स्वामिन् ! तमारा प्रसादें कुशल ने, अने घणे कालें याव्यानुं कार एप सांजलो. ४२ अमारे व्यापारीनी ए रीत वर्ने ने, जे कांइक दिशे चम ण करी यौवन श्रावस्थामा धन नपराजीयें. जे माटे नितिशास्त्रमा कह्यु ने के, उपरिचय घरणिघरो, जो न निय३ महियलं म ॥सो कूवददुरो श्व, सारासारं न याणे ॥१॥ नऊंति चित्तनासा, तहय विचित्तान देस जासान ॥ अञ्चयनुयाई बहुसो, दीसंति महीं जमंतेहिं ॥ २ ॥ अर्थःघर घरणीनो परिचय मेलीने जे माणस विदेश देशांतर न जाय ते कुवा ना मेडका सरखो सार असार कांड न जाणे ॥ १ ॥ चित्र विचित्र एवी अनेक जातनी देशनाषा न जाणे, देश नीति न जाणे, ते माटे देश देशांतर ने विषे भ्रमण करनारा लोको घणां आश्चर्य जुवे ने ॥ २ ॥ एवं कही Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. हवे दत्तकुमार पोते ज्यांची आव्यो में ते अधिकार कहे . ॥ ४५ ॥ हाथी हे राजेंड! हुं देवशालपुरे गयो. तिहां तमारे प्रसादें धन नपा जीने केटलेएक कालें हां याव्यो. तेवारें राजा कहे . हे सौम्य ! एटले दूर देवशालपुर , तिहांथी तुं जाव्यो. तो गुंतुंए सर्वे साचु कहे जे ? त्यारें फरीने दत्तकुमार कहेजेः-॥ यतः ॥ कोऽतिनारः समर्थानां, किंदूरं व्य वसायिनाम् ॥ को विदेशः सुविद्यानां,कः परः प्रियवादिनाम् ॥१॥ अर्थःजे सारो शक्तिमान होय तेने श्यो नार ! वेपारी लोकोने गुं दूर ? सारो विद्या न होय तो तेने परदेश ते कयो ? अने जे मीठे बोले तेने पारको मागस ते कयो ॥१॥ एवं सांजली शंख राजा पूजे, हे उत्तम ! ते देशांतर फरतां जे कां आश्चर्य दी होय ते तुंमारी पासे कहे? तेवारे दत्तकुमारे कडं जे में आश्चर्य दीतुं ,ते कहूं तमे सावधान पणे एकाग्र मनें सांजलो ४ __ ज्यां सदैव सर्वत्र निरुपम कुल देखीयें बैयें, ज्यां अप्रतिम एवा अनंत जिनप्रासाद देखियें बैयें, ज्यां ज्ञानकला सहित मुनि देखिये जैयें, ज्यां धीवर जातना लोको पण श्रावक , एवा ते देवशाल नगरने विषे जे चित्रपट्ट ते विकस्वर नेत्रं करी स्वयमेव आप जुवो. एम कही यत्नपणे गोपव्युं हतुं जे चित्रपट्ट ते बोडीने राजा आगल मुकतो हवो. ते चित्रपट्ट मध्ये कोश्क स्त्रीनुं रूप , ते निरखीने राजा विस्मय पाम्यो. कोक अगण्यरूप लाव एयनी धरनारी देवांगना होयनि गुं ? एहवं कोक कन्यानुं रूप राजायें दीतुं. ते जोइने, अहो एहनां नेत्र केहेवां ! अहो एहनुं मुख, अहो ए हना स्तन, अहो एहना करचरण, अहो एहनुं लावण्यपणुं ! एवं राजा हृद यमांहे चिंतवतो हवो. त्यार पजीराजायें पूजा, हे दत्तकुमर ! कोण देवी त था मानवीनी ए मूर्ति जे ? ए कोणे सुकृतियें चित्रपट्टे चितरी ? तेवारे दत्त कहे , हे राजन ! ए मानवीनुं स्वरूप ने तहारे संगें ए राणीपट्ट देवी थनारी ने. तेनुं रूप लव्युं न जाय. ए तो चित्रकारें लेशमात्र लरव्युं बे. तेवारें राजा कहे , ए चित्रमा शीखामी ? एना केश केवा सारा बे, एनां नेत्र केवा चंचल , एनुं वदन केवु हास्ययुक्त , ए लखेलुं चि त्रपट्ट देखी चित्त हरे , तो सादात् ए स्त्री केहवी हो ! तेवारे दत्त केहे जे, ते स्त्रीनी अपार लीला ले, एना शरीरनी सुंदरता जे ले ते लखी न जाय, एतो स्मृतिमात्र लेश थकी चित्रपट्टे लखी ले. तेवारें राजायें विस्मय Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पामि पुढयुं, जे ए कोण मानवी बे ? दत्त बोल्यो, ए माहरी बेहेननुं रूप बे. राजायें कयुं, एम केम ? देवशालपुरे तारी बेहेन तें केम दीठी ? एम पु बयुं, तेवारें दत्तकुमार धुरथकी मांमीने खरे खरुं पोतानुं वृतांत राजा या गल कहे बे ६१ हे राजेंइ ! हुं माहरा पितानी श्राज्ञायें, धननी याशा यें, देशांतर जोवाने अर्थे अने व्यापारने अर्थे नांम क्रियाणां न‍ घर थ की साथ संघातें चाल्यो. तिहां अनेक देश उल्लंघतो, विविध देशनां या श्वर्य जोतो थको देवशाल नगरना देशनी सिंघे एक नयंकर घटवी ने तिहां पहोतो. त्यां प्रौढतुरंग में खारोह्या सनब5 एवा सुनटें परिवृत थ को चोर तथा जिल्लनी शंकायें त्वराथी हुं मार्गे चालतो हतो. एवामां ति हां गल जातां मार्गे सुरूपवंत, सुनट मूर्छा खाइने दिव्य वेषनो धरना रो पुरुष मृत्यु प्राय यर पड्यो हतो. तेनी आागल मुवेलो घोडो पड्यो बे. तेवारे हुं ते पुरुष पासे गयो. तिहां तेहने कांइक जीवतो अधससंतो दे खीने में तेना मुख उपरे पाणी सींच्युं, त्यारे ते पुरुष कांइक चेतना पा मीने जागृत थयो. ते वखतें में तेहने पाणी पायुं ने ते पुरुषने दुधावंत जाणीने में मोदक जमाड्या, तेथी ते दुशियार थयो. तेवारें में पूब्धुं जे तमो या वी मध्ये केम पड्या ? घोडो केम मृत्यु पाम्यो ? एम पुग्युं, त्यारें ते पुरुष हवे पोतानी वात कहे बे ६७ ॥ यतः॥ अवश्य नावेष्वनव यहा यहा, यया दिशा धावति वेधसः स्पृहा ॥ तृणेन वात्येव तयानुगम्यते, जनस्य चित्तेन तृषावशात्मना ॥ १ ॥ प्रस्यार्थः ॥ जेहवां कर्म पूर्वे बांध्यां बे, तेना उदये काले प्राणिने अभिलाष पण तेहवोज उपजे बे. तिहांज मन दोडे बे. जेम वायुयें प्रेतुं तृण दोडे ने तेनी पेठें ॥ १ ॥ ते माटे दे D नंदी नामें देश, तिहां देवशालपुर नगरनो राजा तेनो हुं पुत्र बुं, ते घोडा नो वेग जोवा नीकल्यो, पण अवली गतिनो घोडो हतो ते मुऊने यत्रे ला व्यो. इहां वाग मूकी एटले घोडो बनो रह्यो ने श्वासें नरालो तेथी मृ त्यु पाम्यो. हुं दुधा तृषायें पीड्यो मूर्छागत थइ पज्यो. तेनें तुं परोपका थयो. कहांथी प्रवीने तें मुफने जीवितव्य दान दीधुं ? हे दत्त जाइ ! तमो किहां जाशो ? एहवं राजकुमरें पुढयुं त्याऐं ते राजेंइने में कयुं, देव शाल पुरें जाएं. पण वेनो एक मार्ग बे, एम कही ते राजकुमरने में महारा पोताने रथे बेसाडी विनोदनी वार्ता करतां यटवी मध्ये चाव्या ज Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ये बियें. ते अटवी केहवी , के ज्यां घणी नदीयो वहे बे, ज्यां घणा घुवडना घूत्कार, सूधरना सीत्कार, महागीरिनी गुफामां सिंहना गरिव चाले ने. वली घणा दव बले , एवी विकट नयंकर अटवी मध्ये धावतां बीजे दिवसें घोडाना हेषारव, अर्थात् हाहणाट, हाथीना गरिव तेणें करी आकुल, पालाना कोलाहल थाता, चित्कार थतां,घणां नगारां वाजते ए, एक सैन्य अमें साहमुं आवतुं दी९. ते वखतें अमो नयें करी आकु ल थया. सर्व अमारा सुनट सन्नधब थ रह्या. एटले एक अस्वार आ व्यो. ते कहेवा लाग्यो के, जय पामशोमा, अमे तमने पूबिये बिये, जे कोई अस्वार घोडे हस्यो जातो तमे जोयो? एवं पूबतां तेणें रथमां बेठेलो कु मार दीठो, त्यारे तेहने हृदयें अत्यंत हर्ष उपज्यो. तेवारें बंदीजने जइ जय जयशब्द कही वधामणी दीधी, विजयराजाना पुत्र जयसेन कुमर ! तूं चि रंकाल जीवतो रहे. पनी तिहां सैन्यसहित राजा साथमां आव्यो. तेवारे जयसेन कुमार रथथी उतरी नक्ति सहित पिताने चरणे नमतो हवो. पिता ये हर्ष पामी तेने वृत्तांत पूज्यु. त्यारे कुंवरें सर्व हकीगत कही. जे ए दत्तशे- मुझने जीवितदान दीधुं. वक्रशिक्षित घोडो मुझने आ अटवी मध्ये लाव्यो,ढुंठुधा तृषायें पीड्यो मूर्बागत थर,मार्गमध्ये पज्यो.अश्वमृत्यु पाम्यो. इत्यादिक सर्व वृत्तांत पिता आगल कहीने कयुं के, मने ए धर्मबंधुयें जीवतो राख्यो, त्यारे राजायें कह्यु, ते कयो पुरुष ताहरो बांधव ? त्यारें जयसेन कुमार राजाने मुफनणी देखाड्यो. त्यारें राजा मुझने तेडीने पुत्रनी पेरें आ लिंगन दइ मल्यो. घणुं आदरमान दर घोडे अस्वारी करी साथे लश्चा व्यो. महारा सथवारानी रखवाली करवा माटे राजायें पोताना अस्वार मेव्या. अने अमो देवशाल पुरे राजनुवने गया. पालथी सर्व सथवाराना लोकपण आवी पहोता, त्यां रहेतां राजायें तथा राजकुमार महारी साथें जेम मने महारा घर परिवार को सांबरे नहि तेम घणुं हेत की, ॥३॥ ते विजयराजानी श्रीदेवी राणीथी उत्पन्न थयेली, तथा जयसेन कुम रनी नानी बहेन, तिलोत्तमा सरखी रूपवंती, दीवे थके मन तथा नयनने हरे एवी, चोसठ कलानी धरनारी ,माटे तेज अर्थ उपर तेनुंनाम पण कलावती , एवी एक पुत्री हती, पण ते सरखो वर तेने जोश्ये, ते को न मल्यो, त्यारें विजयराजा चिंतारूप अनिये दग्ध थयो. ते कन्यानां माता Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तथा बंधु सर्व चिंतातुर रहे .॥यतः॥या जाता जनयंति दीनमुखतां प्राप्ताश्च सद्यौवनं, चिताब्धि किल वयंति विपुलं यांत्यः परेषां गृहे ॥ कांतेनापि विवर्जिता अथ सुता पित्रोर्नृशं दुःखदा, पुत्रीणां नयनाम्बु जन्मसमये मात्रा ततो दीयते ॥१॥ अर्थः-पुत्री थावे पिता, दीन वदन थाय, पुत्री मोटी थये पिताने चिंता वधारे, पारकां घर दीपावे, विधवा थाय तो पिताने महा कुःख उपजावे. ते माटे पुत्रीना जन्म समये मातानी आंखें बांसु आवे. ते माटे हे राजन् ! ते कलावतीनां माता पिता वरनी चिंता करतां दें खीने में कयुं. हे राजन् ! "बहुरत्ना वसुंधरा” पृथ्वीमध्ये घणा रूपवंत उ तम पुरुष बे. तेमाटे एनुं रूप चित्रामण पट्टमां लखावी आपो, एटले ढुं ए सरखो वर प्रगट करी थावं. तेवारे ते राजायें महारुं वचन मान्यु. पड़ी में चित्रपट्ट तैयार कयुं. अने ते ल ग काले हुँ बाहिं आव्यो. त्यारे में चित्तमां चिंतव्यु, जे या कन्या शंख राजाने योग्य . पोताना स्वामीने मूकीने ए रत्न बीजाने कोण पे. एह, विचारीने ते कलावतीना रूपनुं प्रतिबिंब प्रनु आगल मूक्यु. एटला नपरांत जे तमने घटता घटतुं होय ते पादरवूए? तेवारें शंख राजा ते कलावती, प्रतिरूप देखी कामकिरातना उग्र बाणे पीडित थयो . एम जोई तेनो मतिसागर नामा प्रधान कहे जे. कलंक र हित चश्मासर जेनुं मुख , विकस्वर नेत्र जेनां, रक्त अशोक पत्नवनां पत्र सरखां ने होत जेना, लावण्यरूप नीरनी तो ए नदी बे, माटे जेम हंसी हंसने योग्य होय पण कागडाने योग्य नहि, तेम ए कन्या पण, देवनो सेना पति जे कार्तिकेय तेना पराक्रम सर ने पराक्रम जेनुं एवा अमारा महा राजने मूकीने बीजा कया पुरुषने योग्य ? वली मतिसागर मंत्रि कहे . हे राजन् ! ए दत्तकुमार मुफथी तमारो अधिको हितकारी ने. केमके जे शहां नो रहेनारो बतां परदेठे जश्ने स्वामीनुं कार्य करे . जगत्माहे परना का र्य टाली पोतानां काम समारे एहवा अधम नर घणा जे; पण पोतार्नुका म पडतुं मेलीने पारकुं काम समारे एहवा उत्तम नर थोडा हशे॥ यतः॥ प्रारच्यते न खलु विघ्ननयेन नीचैः, प्रारन्य विघ्नविहता विरमंति मध्याः॥ विनैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः, प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजति ॥ ॥ १ ॥ तेमाटे उत्तम पुरुष होय तेहने जोपण अनेक विघ्न आवी उपजे तोपण ते प्रारंन्युं काम न मूके ॥ ७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ११ तेवारे दत्तकुमार हसिने कहेवा लाग्यो के, एहवी शी सेवकनी वडा करो बो? जो चोरनो पग देखाडे तो पण स्वामीनो प्रादरिक सेवकज कहियें. एम सनाने विषे बेगं मीठी गोष्ट करतां मध्यान्ह समय थयो. ते वारें कालवेदी पुरुष समय जणाववाने अर्थे एम कर्दा ॥ आक्रामत्युनस तेजाः, सूरोऽयं जनमस्तकम् ॥ तीव्रतेजस्विनां लोके, किमसाध्यं नवत्यहो ॥१॥ अर्थः-तेजें उन्नास करतो एवो ए सूर्य जनना मस्तकने उलंघे ने, अहो ! तीव्र जेमनुं तेज ने एवा लोकोने बालोकमां गं असाध्य ? जे माटे हजीसुधी कार्यथी निवा नथी. सुवर्णाद्य शृंगारें शोजती, उलास करती, कमलनेत्रा एहवी आनंदनी उपजावनारी लक्ष्मी ते देवपूजाथी पा मी माटे उठो देवपूजा करो. एम सेवके आवीनें कह्यु ॥११॥ त्यार पड़ी शंख राजा सना विसर्जी, स्नान अर्चा जिन पूजादिकृत्य करी पनी नोजन करी शय्यायें बेठो थको ए प्रियानो समागम केम थाय एवी रीतें तेनो उपाय चिंतवतो हवो. हे देव! तव नई नूयात. जेणें एहवी अमरांगना सरखी सुलोचना स्त्री नीपजावी जे. तेणे जेम पंखीने पांख आपी तेम जो मानवीने पांख दीधी होत तो, हमणांज हुँ त्यां जश्ने था स्त्रीनु मुख निरखत. तथा कश् रात्री,अथवा कयो दिवस ते अमृत समा न थाशे, के ज्यां पुण्यना महिमा थकी ते कुर्लन स्त्री पामीलं. एम चिंता रूपी समुश्ना संकल्परूप लोल कल्लोले करी कंपायुं के हृदय जेहनुं एवा राजायें त्यांबेठा केटलो एक काल अतिक्रमीने पाडो सजास्थान मंझपे यावी सिंहासन विराजमान कयुं. त्यां मंत्री तथा महामंत्री प्रमुख सेवाकारी सर्व जन आव्या. तेनी साथै वात विनोद करतां शेष दिवस निर्गम्यो. रात्री पण विषयादि व्यापारें निर्गमी.बीजे दिवसे तेमज राजा सनायें बेठो ने. एहवे समये श्वासें नराणा एवा कोश्क पुरुर्षे यावी प्रणाम करी कयुं के, दैवसूत्रनी पेठे सर्व सामंतादिकें अजाण्यु एवं, रथ, अश्व, शुनटें व्याप्युं महा सैन्य आवे छे. ते सैन्य वनना जीवने त्रास पमाडतुं, कोला हलें करी विश्वने कंपावतुं . एह सांजली शंख राजा को घिग धिगा यमान थयो थको बोल्यो के, रण नंना ढंका वजाडो, एकोण सैन्य थावे , तेने सामा जश्ये. एम कही जेटले लडाश्नी सामग्री करे . गज,रथ,अश्व, सुनदृ, सन्नब सऊ थाय , लोक पण सर्व एम कहे बे के, ए कोण Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. आवेने ! एम सर्वत्र कोलाहल थाय ने, एवामां दत्तकुमरें श्रावी विनंती कीधी. हे स्वामिन् ! एवडो थकाले श्याने थर्थे कोप करो बो. हे राजन! जे कन्यारत्न ते चित्रपट्टे लखी, जे तमे दिलमध्ये धारी, ते तमने वरवाने सा मी श्रावी . तेहतुं ए लश्कर जे. तेमाटे कोप केम करोगे! एतो शातानुं कारण जे. जेमाटे हे स्वामी ! सर्व कलायें संपूर्ण मोटा प्रतापवंत ए जय कुमार सर्व सार सैन्य सहित शहां आवे ने ॥ ११६ ॥ ते वार्ता सांजली शंख राजा महा आनंदमय थयो. किंवा जाणीये अमृतना कुंमपां नाह्यो, के जापीयें चक्रवर्तिपणुं पाम्यो. एहवो हर्षवंत थातो हवो. त्यारपडी दत्तकुमरने सोनानी जीन, अंगनां बाजरण वधा मणीमां पीने कहे ,जे ए अणघटतुं काम थयु. जेमाटे तुरत ए कन्याने सामील केम याव्यो. तेवारे दत्तकुमार कहेवा लाग्यो. साहेबनी पुण्याई थकी सर्व योग्य मले . ते वखत राजाने मतिसागर प्रधान कहे . ए दत्त कुमार मोटा चित्तना नावने जाणे ,बोले थोडं पण स्वामीनां कार्य कर वाने निपुण जे.बीजा तमारा केटलाएक सेवक जे मुखें मीतुं बोने एवा तो घणाय बे, पण पनवाडे गुणग्राही स्वामीनु कार्य समारे एहवा उत्तम सेवक, ते केटला होय? ॥ यतः ॥ असारे हि पदार्थे हि, प्रायेणाबरो महान् ॥ नहि तादृग् ध्वनिः स्वर्णे, यादृक्कांस्ये प्रजायते ॥ अर्थः-असार पदार्थने विषे बामंबर घणो रहे ले. जुळ कांस्यमां जेटलो ध्वनी में तेटलो सुवर्ण मां नथी. ते माटे हे राजन् ! ए दत्तकुमार गंजीर ने. मुखे घणुं नथी बो लतो; पण ए कन्याने साहेबना गुण वर्णवीने तमारी उपर घणी रागवंती कीधी बे. एहवं ढुं चित्तनेविषे संनq . तेथी एने पितायें थाझा थापीठे माटे बंधवने तेडीने उतावली ए कन्या तमारी सामी यावी ॥१२॥ तेवारे दत्तकुमार कहे . अहो, मंत्री तमारूं नाम मतिसागर जे ,ते यथार्थ जे. जे पवाडे निपर्नु , ते तमो बुद्धेकरी प्रत्यक्ष निपनानी परे कहो बो. वली शंख राजा हसिने कहे . हे मंत्रीश्वर ! ए दत्तकुमार ! मननो महा गंजीर .जे माटे समय अवसरनो महोटो जाणनार . तेमाटे हवे सैन्य सामग्री निवारी ए समये जे घटे ते क्रिया करो, हाट श्रेणी सण गारो, बुद्धिवंत नर साहमा जाउँ, मोटे मंमाणे सामैयुं करी, नगर मध्ये प्रवेश करावो. हाथी, घोड़ाने घांसनी सामयी करो, राजकुमरने उतरवानी Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. जग्या हवेली सङ करो. ते सांजलीने जे निपुण पुरुष हता ते राजानीया झायें हर्षोत्कर्ष थका सामा गया, अने जेमराजायें कडं हतुं तेम कार्य करता हवा. ते जयसेन कुमरने सामा परिवार सहित प्रधान गया. घणो याद र दीधो. त्यारे जयसेन कुमर विस्मय पाम्यो. बंदीजन बिरुदावलीमा कुल पराक्रमनी प्रशंसा करतां वाजिंत्र वाजते चित्तने बाल्हादें तिहां राजायें उतारा आप्या. ते घरने विषे उतरी, स्नान मऊन तथा नोजनादिक करी गीत गान नाटकादि थाते ते दिवस तेम निर्गम्यो. त्यारपडी बीजे दिवसे मंत्रीसामंतें परिवस्यो थको जयसेन कुमार सनामध्ये आव्यो. शंख राजाने मुजरो करी आगल नेटणुं मूकी पगे लाग्यो. त्यारें राजायें पण आलिंगन दइ घणो बादर करी पोताने अर्धासने कुमारने बेसाड्यो ॥ १३५ ॥ पजीमहामति नामा जयसेन कुमरनो मंत्री केहतो हवो के, हे राजन् ! तमारा नज्वल गुणें करी अमारा स्वामीनुं मन अत्यंत रंजित तथा घणुं यानंदमय थयुं . जे दत्तकुमार जिव्हारूप कूर्चिकायें करी घणा वर्णन। सामग्री लश्ने आमारा स्वामीना चित्तरूप पटने विषे तमारुं स्वरूप सारी रीतें लरव्युं बे. तेथी घणा प्रसन्न थयेला अमारा स्वामी अस्थिमजात्मक शरीरें करी जोपण दूर , तथापि पोताने प्राणथकी बल्लन एवी कन्या ते मणें तमारी पासे मोकली. घणा राजकुमरने अवगणीने ए कन्या तमारी नपर रागवंत थइ . अमारा स्वामीयें कह्यु बे के ए कन्या- तमो गुनदिवसे पाणी ग्रहण करो, एनी उपरजेम ए माता पिताने न संनारे एहवं अत्यंत हित करो. एह सांजली शंख राजा सौम्यदृष्टें जयादिक कुमर सासु जोड्ने शंखसमान मधुरस्वरें करी कहेतो हवो के,जे सऊन डे ते दूर थकी पण गुण ग्राही .तेम विजय राजा उरथकी पण मुज उपरे स्नेह राखे ले, हित क रे ले. ते सऊनना गुण केटला वखाणियें ॥ यतः ॥ मनसि वचसि काये पुण्य पीयूष मना, स्त्रिनुवनमुपकार श्रेणिनिः प्रिणयंतः ॥ परगुणपरमानन् पर्वतीकृत्य नित्यं, निजहृदि विकसंतः संति संतः कियंतः ॥ १ ॥ तेमाटे ए राजानो अत्यंत स्नेह जाणीने तेहy वचन अन्यथा कोण करे ? जेम सुपुत्र पितानुं वचन प्रमाण करें तेम ए राजानुं वचन अमारे प्रमाण करवू. कुलवंतनी पुत्री, सौनाग्य फलनी देनारी, सरिखा सरखी, तेने कल्पवेलनी परें कोण विबुध नमाने? ते सांजलीने जयसेन कुमार हसीने सनामध्ये Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दत्तकुमार प्रत्ये केहे बे. हे बांधव ! याज तमारा वचननो विशेष विश्वास उपन्यो. अमृत समान तमारा वचननो विलास बे. दाक्षिस्य विनयादिक गुणो ए राजाने विषे पूर्व देखाय बे. तथापि पोताना गुणें करी तेमने संतोष यतो नथी. माटे ते बीजाना गुण लिये बे. यथवा उत्तम पुरुषोना स्वनाव एवाज होय बे. हे देव ! तमने दीवे मारां नेत्र सफल थयां, त मारां वचन सांजली अमारा कान कृतार्थ थया. एवं जयसेन कुमरनुं व चन सांजलीने, दत्तकुमारे शंख राजाने कयुं, हे राजन् मित्रनी उपर स्नेह दृष्टि राखवी. राजायें कयुं, हे कुमार ! तुं गुणरागी बो. तुजसरिखा उत्तम पुरुषना वचनने को प्रमाण न करे ? ॥ १५० ॥ एम पंतिगोष्ठी करी लग्नना जाए तेडीने लग्न निर्धारी माहो मांहे सौजन्यता पामी सनामाथी ती सर्वजण आपणे स्थानकें पहोता. एम तिहां रहेतां मृत समान गोष्ठी करतां लग्नने दिवसें वाजिंत्र वरनाद वा जते महा मंगलिक गीत गान करते, महा महोत्सवें घणा सनने बहु मान देते, स्नान मऊन करावी ते कलावती, शंख राजाने पाणिग्रहण करा वता हवा. तेवारें जयसेन कुमार शंख राजाने करमोचन वेलाये घणा हाथी, घोडा, रथ, रत्न सुवर्ण श्रानूपण वस्त्रादिक घणो दायजो देतो हवो. शंख राजा पण कलावती परणीने प्रतिहर्ष पामतो हवो. तेणें लोकने पण शाता उपजावी, रहीयतने करना जार मूक्या. त्यार पढी केटलेक दि वसे पितानी पासे जावाने उत्सुक थई जयसेन कुमारें शंख राजानी या ज्ञा मागी, कलावतीने याश्वासना देइ बहेननी शीख लइ पोताने नगरे चाल्यो शक्तिसामर्थ्यवंत सुरतरुवत् एवो शंख राजा ते कलावती साथे महा देव पार्वतीनी परे निरंतर जोगजोगवतो विचरे बे. ए कलावती विना यास्थान समास्थानक ते चारक बंदिखानानां स्थानक समान जाणतो दवो, सार जोजन ते नीरस जाणतो हवो, यश्वक्रिडा ते मननी पीडा जाणतो हवो, एटले राजा प्रति रागी थयो, अत्यंत विषयासक्त थयो. कलावतिना शर रनुं कार्य करतो ते उपर राजानुं मन तल्लीन थयुं, अंतेवरी ते एक कला वतीनेज जाणे, बीजी राणीयोने तो अंतेवरी कहेवा मात्र जाणे. ते न गरनी सर्व नारी कलावतीनुं सौभाग्यपणुं देखीने धर्म करवाने तत्पर थइ. जे Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. माटे ते सर्व स्त्रीयो विचारवा लागीके धर्म करवाथी थापणने पाण परनवे एहवो जरतार वरावर्ती थाय. आपणे एहवं सौनाग्यपणुं पामियें॥१६॥ हवे कलावतीनुं वर्णन करे . शीलवती एवी कलावती राणी असत्य न बोले, को साथे कलह न करे, पुत्पाबल कोनी चाडी न करे, मत्सर, इर्ष्या, अदेखाइपणुं न करे, न रथी लगारे अहंकार नथी करती, मीठा बोली, विनयवाली, विचिदण, सर्व कोश्ने हर्ष उपजावे एवी . एकदा ते कलावती राणी सुख शय्यायें सूती जे. रात्री पाउली पहोर नी थ६ वे. त्यारे, विकस्वर एवा कमलनी मालायें वीट्यो, चंदने चरच्यो, खीरसमुझ्ने जलें जसो एवो सुवर्ण कलश स्वप्नामां दीठो. प्रजातनां वा जिंत्र वागते राणी जागती हवी. अने राजा पासे जर स्वप्ननी वार्ता कहे ती हवी. त्यारें शंख राजायें कह्यु.-राज्यलक्ष्मी युक्त, कुलोदार कर्ता, कु लदीपक एवो तारे सुपुत्र थशे. एवं सांजली राणी हर्ष पामी. अति न नासें गर्जने पालती हवी. अत टाढुं, तथा अति उम न खाय. अति नख तथा अति तरश सहन करे नहि, एवी रीतें गर्नने पालती, गर्नने पुष्टि आपे एवां औषध खाय, गर्नरक्क मूलीका बांधे, गर्जरहणने अर्थे देव तानुं आराधन करे, एम करतां नव मास पूरा थया. पहेली सुवावड पिताने घेर थाय एवी रीत जाणीने तेना पिताने खबर कहेवरावी. एटले दत्त शेठने घेर तेना पिताना मोकलेला सेवक आव्या. तेमने कलावतीयें पिता, माता, नाश्नी कुशल वार्ता पूबी. त्यारें सेवकें कडं तमारां माता, पिता, ना वगेरे सर्वे कुशल ने तमारे पिताये नोगना अंगसार वस्त्रानर ण तमने मूक्यां . तथा जडाव बेरखा, बाजुबंध पूर्वं तमने दीधां न हता, ते तमारा नाइ जयसेन कुमारें मूक्यां बे. राजाने वास्ते बे दिव्य वस्त्र मूक्यां ले. एवं सांजली राणी दत्तशेतने घेर थावी. पिताना मूके लां वस्त्रानूषण ले सेवकने धाशीष दे ते वस्त्रानरण पेहेरी बाजुबंध बां धी पोताने मंदिर भावी ते बेरखा जडाव पेहेस्या देखी सखिम्ना नेत्रने आनंद उपनो. सखि आनंद पामीने कहे जे के, हे बाइ! एवां बाजुबंध क्यांय दीवां नथी. ए मोटुं आश्चर्य उपजावे एवा . ए राजायें कराव्या दीसे . एवी वात हास्य विनोदनी करे ने एवामां शंख राजा पण त्यां आव्यो. ते हास्य विनोद सांजली गोखे बेठो तेवामां कलावतीने हाथे जडाव बा Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जुबंध दीठा. तेथी तेना मनमा शंका उपनी. परमार्थ जाण्या विना हास्य विनोदनुं निमित्त देखीने राजाने रोषरूपी सर्प मस्यो तेथी कोपायमान थ चित्तमांहे चिंतववा लाग्यो जे, एना हृदयने आनंदनो उपजावनारो कोश्क बीजो धणी देखाय ले. अने एवं कपट विद्यायें मने वश कीधो . तें ध पीनां ए जडाव बाजुबंध पेहेरी हास्यविनोद करे जे. एवो कुविकल्प पर मार्थ अण पूर्वतां राजाने उपन्यो, माटे हवे एनो जार पुरुष जे बीजो धणी होय तेने ढुं ह[, अथवा ए स्त्रीने हणुं, किंवा एवो कुयोग मेलवनारी जे दूती होय तेने हणुं ॥११॥ __ एवं ध्यायीने राजा त्यांथी नतीने पोतानुं शयननवन , त्यां आव्यो, हृदयनी वात कोइने कही नहि. राणीने परमार्थ पण पूजु नहि. अविचामु काम राजा करे . एवामां सूर्य अस्त पाम्यो.अंधकार व्याप्यो. एटले रा जायें चंकालनी स्त्रीने गुप्त पणे तेडावी अने पोतानी मतिकल्पित उत्तर तेने गुप्तपणें शीखव्यु. तेणे पण ते सांजव्यु अने तेथी ते काम जेम थाय तेम कह्यु. जे हुं अटवीमां ज्यां राणीने मूकावू, त्यां तमे जश्ने आनरण सहित एना बे हाथ बेदीने आवजो, एम कहीने, एक निर्दय नामा सुनट तेडा व्यो तेने कह्यु.अमे प्रनाते सर्व सैन्यले वन उद्याने जागुं. त्यारे तुंराणीने कहे जे के, तमने राजा वनक्रीडाने अर्थे तेडे ले. एवं कपट करी राणीने रथे बेसारी दणमात्रमा अटवीमां दूर जश, ज्यां गामसीम न होय त्यां मू कजे, पडी प्रनाते राजा वनक्रीडायें गयो. त्यार पड़ी निर्दय सुनटें जश राणीने कयुं के तमने राजा तेडे जे. एम कपट करी राणीने रथे बेसा डी जयंकर दूर अटवीमां ते गर्नवती सतीने ले गयो. तेवारें तेने राणी ये कयुं राजा क्या बे ? तुं मने क्या ले जाय ? आंही हुँ राजाने नथी देखती. सैन्यना शब्द वाजिंत्र कांश संजलाता नथी अरे उष्ट! तुं अटवीमां लावी मने झुं वंचे जे ? एवं सांनती, ते निर्दय सेवक बाइने रथथी उता री गलगलो थश्ने कहे . धिक् दैव !! हे राणी हुँ उष्ट ! ! उष्ट आजी विकाने वास्ते राजानो दुकम प्रमाण करवो ! राजानी याज्ञा जे के, तम ने अटवी मूकवी. एम कही राणीने रथथी उतारी शाल वृक्ष तले बेसाडी पड़ी ते निर्दय सेवक मूर्जा पामती, रुदन करती एवी राणीने मेली रथ लेइ पालो नगरमां आव्यो. पाउलथी राणी पोतानुं कुल अने धर्म संसार Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १७ ती अत्यंत रुदन करती मूळ पामी. ते पजी वनना वायरें सचेत था रडे , एवामां राजाना दुकमथी चंमालनी स्त्री हाथमां काती लेइ त्यां श्रावी. ते उष्ट स्त्री कटुक वचनें कहेवा लागी, रे पापीणी ! उष्ट चेष्टानी करणहारी ! तें जे संपदा जोगवी ते तुं नथी जाणती ! राजा तारी उपर प्रतिकूल डे तारो कुश्मन थयो . हवे तुं तारां कस्यां कर्मनां फल जोगव. एम कही सहसा ते राणीना वे हाथ धानरणसहित बेदीने ते उष्टा जती रही ! राणी महा वेदनाये हे तात, हे मात, एम वलवलती नूमिकाये मूर्जगत थ पडी. वनने शीतल वायुयें सचेत थइ. वली विलाप करे . हे दैव !!! तुं मारा उपर श्या माटे कोप्यो. आवडो थाकरो दंम मारा उपर श्या माटे कस्यो. तारा घरमां मारा सरिखी अबला नहि होय. जे माटे तुं मारुं फुःख देखतो नथी ! एम देवने उलंना देश पढी राजाने उलं ना दे . हे निपुण आर्यपुत्र ! तमने अविचायुं करवु घटे नहि. पड़ी तमारा मनने विषे ए अविचास्युं काम कस्यानुं कर्म ते शालनी पेठे सुखरूप थइ सालशे. महोटा तापरूप थ पडशे ॥ २० ॥ वली कलावती राणी विलाप करतो कहे , हे राजन् ! में कांश अप राध नथी कीधो. कोइ नीच, खल पुरुषे तमने कह्यु होय तो नले; पण ढुं ते नथी जाणती. वली हे राजन् ! माझं शीयल स्वप्ने पण मलिन थयुं एवं तुं म जाणीश. स्त्री तोकण रक्ता क्षण विरक्ता एवी को होय, पण संत पुरुष तो जे अंगिकारी तेने काढी नथी मेलता. एवी लोकनी वाणी जे, ते पण तमे विपरीत कीधी. हे प्रिय ! ते प्रेम, ते सेवा नक्ति, ते मधु रालाप ते सर्वने एकसमे केम विसारी मूक्या? त्यार पडी कहे , हा तात! हा मात, हा नाइ, ढुं तमने प्राणसमान वनन हती. ते ढुं या विपत्ति मां मरण पामुं ! अहो माहारी को रदा करो. एम उखणी थईने ते कलावती राणी विलाप करती हवी. तेवामा तेना पेटमा पीडा उपनी त्यारे तेणे जाण्यु के, या प्रसूतीनो समय ने, एम जाणी दकडो एक नदी किनारा उपर वनगुल्म हतो त्यां गई. तेणें दुःखमां मध्य रात्रि समये घणे कटें देवकुमार समान पुत्र प्रस व्यो. तेनुं रूप, शरीर जोड्ने राणी हर्ष बने शोक बेदु धरती हवी ॥यतः॥ आवशयं पि सुहए, हास गुरु सोग महियं पि॥ मरमाणं पि जियावर, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो.. अवच संजीवणी जीवं ॥ १ ॥ एम उखमय विलाप करती राणी पुत्रने कहे , हे वत्स ! तुं घणां वरस जीवो. सुखी था. हुँ मंदनाग्यणी तारी वधामणी कोने आपुं ? एवा समयमां तडफडतो ते बालक नदीनी वेलुमां लोटतो. त्यारेंराणी तेने पगे जालीने दीन वदनथी कहे , हे नदी माता! हुँ तारे शरणे आवी बु. माटे जे नमे तेनी उपर करुणा राखवी. तमे मारा सुत उपर अने महारी उपर करुणा राखो. हे ज्ञानदृष्टिवाली ! जो मारुं शियल पृथ्वीने विषे निष्कलंक होय तो ज्ञान दृष्टं करी जोड्ने जे रीतें हुँ बालकने पालुं ते उपाय आचरो. एटले नवा हाथ आवो, एवं राणी यें आक्रंद करतां कह्यु. त्यारे दयावंती सिंधु देवीयें, देदीप्यमान सुंदर एवी बे बादुलता प्रगट करी. एटले शियलना महिमायें बे बादु नवा थाव्या. राणीनी वेदना मटी. अमृतरसें सिंच्यानी पेठे नवं सुख अनुनवती बे हा थें पुत्रने से उत्संगे बेसाडती हवी. अने नदी देवीनी स्तुति करवा ला गी के, हे देवी, तुं चिरकाल जय पामती रहे. तुं निःस्वार्थ हितकारी बो. कुखी! दीन अनाथ एवी जे ढुं तेने हे स्वामिनी ! तें जीवाडी पण आ वडी आपदामां पडीने मारे जीववे शुं ? परंतु या दीप्तिवंत बालकने आश्र य विना एकलो क्यां मूकुं ? या पुत्रना जन्मथी नगरमा राजा महोटो न त्सव करत. माटे धिक् पडो विधात्राने के जेणे आQ कयुं! ॥यतः॥ रऊं ति जाव कऊ, कयका उऊणुचमंति ॥ जे ते कारिम नेहा, हाहा धी निग्घिणा पुरिसा ॥ १ ॥ अर्थः-जे कार्य होय त्यां सूधी राजी करे , अने कार्य सरे त्यारें उर्जननी पेठे कुःखदायी थाय , एवो कारिमो स्नेह जेमनो ने, ते दयाहीन पुरुषने धिक्कार होजो. ___ एम कहीने पनी धर्मनावना करवा लागी, जेमना मनोरूपी घरमां कामरूपी पिशाच वसतो नथी. एटले जेमणे मनमाथी कामने काढी ना ख्यो ने, तथा बाल पणाथी जे शियलबत पालती हशे, ते साध्वीने मारो नमस्कार होजो. जो ढुं कुंवारी थकीज साध्वी थर होत तो बावडं रख न पामत. एम पोतें रुदन करती वनना जीवने रुदन करावे. ___एवे समये तेने कोइ तापसें दीठी. पूर्व पुण्योदयें करी ते तापस कला वती पासे याव्यो. तेने जोश तापस विचारे ने के, ए स्वर्गनी देवांगना छे, किंवा विद्याधरी ,किंवा किन्नरी जे. एम घणी वार विचारीने पोताना Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २॥ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. कुल पतिने कयुं. त्यारें कुलपतियें कह्यु, ए बाश्ने कोइ हिंसक निर्दय जीव मारशे. उ:खीने संत शरण , माटे तेने तेडी यावो. एवं सांजली ते तापस तेने तेडवा गयो. तेवं ते कलावतीने तपोवनमा लावी. त्यारे कलावती कु लपतीने पगे लागी. कुलपतियें कुशलवृत्तांत पू . त्यारें पोतानुं दुःख सं जारीने ते कलावती रोवा लागी. पढी कुलपतियें सुधासमान मधुरी वाणीयें कलावतीने आसना वासना कीधी. तेणें कह्यु, हे बाइ, दुःख सुख ते पुण्य पापनां फल .ते पुण्य पाप पोतानां उपाया तेवां उदय आवे. एवं जाएगी खेद तजो, हर्ष बाणो, हृदयें समता राखो. हे बाइ, तारुं शरीर लक्षण वंत , वचन गंजीर , दृष्टि सौम्य , ते लक्षणे अमे एम जाणीयें बी ये जे अवश्य तुं को कुलवंत, जाग्यवंतनी पुत्री, कल्याणर्नु नाजन बो. हवे तुं धीरपणुं अविलंबीने ए बालकने पाल. तापसने उडवलो डे त्यां श्रा वीने, तापसणी पासे रहे. जेथी तारा जीवनुं कल्याण थाशे. त्यारे कलावती ये जीव्यानी याशा जाणी तेनुं कर्तुं मानी त्यांथी उठी तापसाश्रमे ताप सणी पासे जइ राणी सुखें त्यां रही ॥ २२७ ॥ हवे पाउल मु थयुं ते कहे . ते चंमालणीय बानरणे सहित लोही जरी कलावतीनी बे बादु राजाने देखाडी ते जोतां बाजुबंधमां जयसेन कुमारनुं नाम दी. त्यारे शंखराजा महा खेद पाम्यो. तेनो निश्चय कर वाने राजायें दत्त कुमारने पूब्युं, जे देवशाल पुरथी कोण आव्युं ? त्या रें दत्तकुमारें कडं, के, माणस आव्यां बे. ते मारा घर मध्ये रह्यां में. ते कलावतीने तेडवा आव्या , ते उत्तमपुरुष डे पण बाश्ने पूर्ण गर्न मास थया जाणी तेने तेडी जवानो अवसर नथी एवं जागी तमने मट्या न हि.बीजं तमे पण आज सनाये बेठा न होता. प्रजात काले उद्याने वन क्रीडा नणी गया हता. माटे ते तमारे मुजरे हवे श्रावशे. ए वात सांजली ते पुरुषोने राजायें तेडीने पूब्यु के, ए अंगद बेरखा मणि रत्नना जडाव सुंदराकार कोणें मूक्या वे ? एवं सांजली ते पुरुष बो व्या, हे राजन् ! जयसेन कुमार पोतानी बेनने पहेरवा माटे परम हेतें करी मूक्या . ते बाजुबंध अमे गत दिवसे बेनने आप्या. एवां यथार्थ वचन ते सेवक पुरुषनां सांजली शंखराजा तुरत मूळ पामी सिंहासन थी तो पज्यो. त्यारें मंत्रीश्वर, राज पुरुष वगेरे सर्वोयें हाहारव शब्द Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कीधो. शीतल वायु वींजीने राजाने सचेतन कीधो. एटले हाय हाय करी हाथ घसी दांत पीसी ते राजा कहे . हाय ! में तुन्छपणे,थविचाऱ्या, वि परीत काम कीg ! अहो! मारुं अज्ञानचेष्टित! अहो! हुँ नि ग्यशिरो मणी ! अहो ! मारुं निर्दयचित्तपणुं ! अहो मारी क्रूर कुबुदिता! अहो ढुं कृतघ्र, अहो मारुं कर्मचमालपणुं ! स्थिर प्रीति, मित्र बने नार्यादिक संपदाने अयोग्य एवो ढुं बु. एम संजारी वली राजा मूळ पाम्यो. वली प्रधाने शीतल वायु नांखी सचेतन कस्यो. त्यार पड़ी सजाना लोकें अने प्रधान पुरुषं राजाने पूब्युं, हे प्रच ! आज तमने अकाले एवडुं पुःख थवानुं गुं कारण ? त्यारें मंत्री प्रत्ये राजा कहे , हे मंत्रि! नामें तो शंख बुं, मीठा बोलो बु, बहार देखी तो उजलो. पण अंतरंगे कुटिल . हैयामां आमता घणाने एवो.हुँ कु टिल शंख बुं ॥ यतः ॥ हरिकरे वसनं मृउता स्वरे,जनयिता तव शंख महो दधेः॥ विशदता वचनस्य गोचरे, कुटिलता तव तत् हृदये कथम् ॥ १ ॥ अर्थः-हे शंख, तुं हरिने करें वसे डे, मूखें मोतो बो, समुझ मांहेथी नीपज्यो बो. बहार उजलो बो. तो तारा हृदयमा कुटिलता केम डे ? हे मंत्रीश! विजय राजानुं हेत, जयसेन कुमारनुं मित्राश्पणुं,कलावतीनो स्ने ह, मारा कुलनुं निर्मलपगुं, ते सर्व में हण्यु. पोताना संतान- बेदएँ, ए बुं में अविचायुं काम कोधुं. निष्कलंक निर्दोषा एवी कलावती राणी, ग वती, नजीक पूत्रने प्रसवनारी, तेने वनमां मूकावी. थडथी बे बादु क पावीने मारी नांखी. ते पाप संता बल्यो एवो था महारो आत्मा तेने हवे हुँ राखी शक्तो नथी. माटे अग्निनी चिता रची तेमां शरीर होमीने निष्पाप थावं. स्त्रीहत्यानां पापथी छूटुं. एवी विषरूप वाणी राजानी सां जली प्रधान पुरुषादि सर्व परिवार एक बीजाना मुख सामुं जोश व्याकुल थश्ने विलाप करवा लाग्या. अंतःपुर मांदेली स्त्रियो पण केहवा लागी के,हे राजा, हे थार्य पुत्र, एवं अविचायं. चंमाल कर्म जे स्त्रीहत्या तथा बालहत्यानुं कर्म ते केम कीg. आवटे दास दासी, दत्तकुमार तथा वि जय राजाना सेवक बने नगरना सघलां नर नारी लोक कहे जे के, हा य हाय ! ए विषम अघोर पाप कर्म राजायें गुं कीg ? एम कही सर्वे नरनारी रुदन करे . नगरना लोक राजानो वांक काढे . नगरमां पण Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १ सौने शोकातुर जोड्ने राजा बमणो कुखी थको प्रशनने कहे.. हवे शी ढील करो बो ? चिता रचावो के, तेमां दुं महारुं शरीर होमी निष्पाप था. एवं सांजली प्रधान पुरुष, अंतेनर, मित्र थने सऊन वगेरे सर्व मती विनंति करे ले के, हे राजन् ! तमे बालकनी पेठे खतउपरें खार केम मू को डो? हे राजें! तमे बुधिना समुह बतां एटलो मोटो दोष लाग्यो. ए विनाश काले विपरीत बुद्धि तमने उपजी. हे राजन् ! नयनीत कायर पुरुष होय ते धीर पुरुषने शरणे जाय जे. ते धैर्यवंत पुरुष ज्यारें धैर्य मू के, त्यारे कायर नरने कोण शरणे राखशे. तमे राज्य मूकी, कुल छेद क री, जीवित हारी शत्रुनुं वांब्युं करशो ? एम पोतानुं घर बाली अजवाऱ्या करे एवो मूर्ख नर कोण होय ? ते सर्वनी शिखामणने अवगणीने फुःखी यो थको ते राजा पोताना परिवारसहित घोडे स्वार थइ, प्रधान पुरुषे वाखो बतां पण थापघात करवाने नगर बहार नीकल्यो ॥ २५१ ॥ नृत्या नां जनयन उःखं, वैराग्यं धर्मकामिनाम् ॥ शोकाश्रुधौतनेत्रानि, स्तरुपनि निरीक्षितः ॥ १॥ ते शंखराजा सेवक जनने दुःख उपजावतो, धर्मिजन ने वैराग्य उपजावतो, शोक संबंधी, बांसुयें नयां के नेत्र जेमनां एवी न गरनी स्त्रीयोयें निरखतो, बत्र चामर, वाजिन वर्जित थको, राजा नंदन वन उद्याने गयो. बीजो उपाय कोश्ने न सूझयो, त्यारे ते राजाने जीव नी आपघातथी राखवाने दत्तकुमार एवी विनंती करी के, हे स्वामिन, धावनमां देवाधिदेव श्रीजिनेश्वरनो प्रासाद ,तेमनी यात्रा पूजादिक तो करो पड़ी तमारा मननुं धातूं काम करो. वली हे राजन् ! था वनमां थ मिततेज नामे ज्ञानवंत साधु समोसस्या . तेने पण वंदना करिये जे थकी या लोकें तथा परलोकें महा मंगलिक पामीयें. एवं सांजलीने शंख राजायें विचायुं के दत्तनुं वचन पण उलंघq नहीं. ए वचनथी परनवतुं पण शंबल थाय. एवं विचारी राजायें देव यात्रा पूजा करी पड़ी अमित तेज साधुने वांदीने बेठो. ते वेला ते साधुयें राजाने धर्मदेशना देवा मांझी. __ संसार समुश्ने विषे जन्म, जरा,मरण ए सुखरूप पाणी नमुने,राग क्षेषादिकें संसार समुश् नयो , ते फुःखें तरी शकाय. तेमां चार गतिने वि षे अनंता जीवें अनंती वार ए दुःख नोगव्यां बे. तेमां क्रोधादिक चार क पायरूपी सर्प तेणें मस्याथी सर्व जगत् कलकलाट करे .ते कषायरूप सर्प Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मस्या एवा. जे जीव , ते कार्ययकार्य, हितश्रहित, युक्तश्रयुक्त सार श्र सार कांइ जाणता नथी. गुणअवगुण पण नथी जाणता. कारण क्रोध प्री तीने नसाडे , मान विनयने नसाडे , माया ते मित्रताने नसाडे जे, अने लोन सर्वने नसाडे बे. ते कषायने वश जे अज्ञानी जीव पज्या ने ते घणां कर्म करे . तेथी ए जव परनवने विषे मुःख पामे . शल्य नी परें अनर्थकारी जेम पूर्वे पद्म राजाने थयुं तेम बीजा प्राणीने थाय ७. एबुं सांजली शंख राजा गुरुने विनंती करेले के, हे मुनि, दुं मारा था स्माने जगत्मां बदु पापिष्ठ, क्रोधी, उष्ट जाणुं . तो माराथी अधिको पा पी एवो कोण ते पद्म राजा थयो ? तेनुं चरित्र संनलावो. ॥ २६ ॥ त्यारें गुरु कहे .अपरं पार संसारमा नारेकर्मा जीवना पण एवां दृष्टांत अनंतां . पण हमणां जे प्रस्ताव्युं ते कथा हुँ कहुं बुं ते सांजलो.. पूर्वे पद्मपुर नगरमां पद्म समान सुकोमल एवो पद्म नामे राजा हो तो हवो. ते घर मंदिर वाहनादिकें सूर्योदयवत् दिवंत . ते एकदा राजा वनक्रीडाने अर्थ जाय जे. एटले त्यां वरुण शेपनी बेटी कमला नामें रूप संपदायें सादात् लक्ष्मीसमान ले तेने सखीयो संघातें कीडा करती तेणे दीती. ते राजाने बीजी घणीये यंतेनरी .तोपण ते नपर तनीन तन्मय थयो. जेम पंमित सुनाषितें अतृप्ता ने. तेम पृथ्वीमां धनना लोनी स्त्रीना कामी एवा राजा घणा अतृप्ता जे. एटले कामी जीव घणा . अति हर्षे प्रकर्षे ते राजायें व्यवहारीया पासे ते कन्या मागीने परणी. पण राजानु चित्त राजकार्यमां व्यय होवाथी तेणें पोताना हृदयथी ते कन्याने तदन विसारी मूकी. ते कन्या मोटी थइ त्यारे घणे काले तेने राजायें दीती. ते वखत प्रधानने पूब्यु ए स्त्री कोण ? त्यारे मंत्री कडं पूर्वे तमे वरुण शेतनी बेटी कमलाने परण्या हता ते ए जे. एवं सांजली ते राजा चित्तने विषे चिंतवे ने के, हा हा अरे ! में ए कन्याने कदर्थना उपजावी. एम कही वली तेणें प्रधानने पूयुं, जे एवं नलां आनरण केम पेहेस्यां नथी? ए उर्बल केम देखाय ? मंगलिक अर्थे एवं वलय मात्र राख्युं जे. एवं प्रब्युं त्यारें फरी मंत्री कहे, हे स्वामि! कुलस्त्रीनो ए धर्म ने, जे जर तारने विरहे शृंगारादिक न करे. शियलरूप आनरणे शोनायमान रहे. ली वृक्ष जेम सुकाय तेम कंदर्पनी श्रमियें करी ए बली गई ले. तोप Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनु चरित्र. २३ ण शियलमान नथी मूकती, जेमाटे कुलवान स्त्री सदाचारी होय , जे शियल पाले, ते कुलवान स्त्रीने नमस्कार हो. जेना मनरूपी कमलने वि षे मदन रूपी जमरो नमीने ते मांहे वलये वली जाय . तेवारेंराजायें अति हेते करी ते मंत्रीने स्त्रीने तेडवा मोकल्यो. तेणे तेना माता पिताने जर कह्यु, जे कमला बाश्ने राजायें तेडावी ,माटे मोकलो. त्यारे ते पुत्रीने सार शृंगार पहेरावी सखीसाथे मोकली. ते राजनुवने आवी. राजापण तेना संगमनेविर्षे उत्सुक थई सना विसर्जन करी हर्षवंत थको ते स्त्री पासे आव्यो. तेने राजा मीठे वचनें कहे . घणो काल थयो में तने परणीने वीसारी मूकी, ते मारो अपराध क्षमा करजो. स्त्री बोली, सर्व वाते तमे सावधान बो, तो युं परणी स्त्री संनारीज नही ? पण नि ग्यि स्त्रीने स्वामीनुं दर्शन क्याथी होय ? स्नेहें करी चित्तने विषे धस्या, नजरें घंणीवार दीठा, पण हे प्राणेश ! तमारे विरहे करी आ शरीर बन्यु जे. एम कही ते कमलायें लाज मूकी राजाने रीजाव्यो, अने ते संपूर्ण रात्री राजा साथे घणा चातुर्यै कामक्रीडा करी गमावी. पण ते कमलानुं रतिचा तुर्य जोड्ने राजा मनमा शंकावंत थयो. केम के गुण ते दोष जणी थाय बे.पाली राते राजायें विचाघु के,ए स्त्रीचें चरित्र श्राश्चर्यकारी. कुलस्त्रीने कामक्रीडानुं विज्ञान चातुरीपणुं धैर्यपणुं जरतार साथें प्रथम संगमे एटर्बु बधुं केम होय ? तो झुं ए असती हो ? पर पुरुष साथें रमी हशे? एवी ते वखत राजाना चित्तमां शंका उपनी ॥ २०१॥ तो हवे हुँ एने महारे हाथें झुं मारुं? पण स्त्रीहत्या हाथें करवी घटे नहि. एम चिंतवतो कोपवंत थयो. प्रातःकाले निजमंदिरथी नीकल्यो. त्यां प्रधानने तेडीने कह्यु, ए पापणी स्त्रीने एकांते बांमो. प्रधान राजानुं वचन प्रमाण करी परमार्थ अजाण्ये ते स्त्रीने वगर वांके एकांते मूकीने प्रधाने चिंतव्यु जे रागांध जे प्राणी होय ते बता दोष देखे नहिं, बने अबता जे गुण ते देखे. एवं रागांधतुं विपरीत पणुं .धने क्रोधांध जे ले ते एथी उप राठोडे, एटले ते बता गुणने न देखे, अने अबता दोषने देखे. रागीने रोगी ए बेदुनी एक रीत ने. मुखें कडवो होय, नोजनथी उपरांठगे होय, मोटी लांघण करे, पाणिवल्लन होय, तृषा घणी वेठे, तेम अति रागो क्षेषी जीव मुखे कडवो होय, जजा सुजनयीउपरांतो होय, गुरुनु फयुं न माने, जडता, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मूर्खता तथा तृष्मा घणी होय. एम रागी थने रोगीबे सरीखा देखाय जे. माटे ए राजायें कोप परिता करी पोतानु थंग घणु जाजरे कीg . तो हुँ ए राजाना बुद्धिने संजीवनी उपदेश वाणी औषधी थापी सद्य साजो करूं. ___ एवं चिंतवी नली मीठी वाणीएं करी प्रधाने, प्रथमतो रोती राणीने आश्वासिने सासती कीधी. पनी राजाने प्रतिबोध देवाने मंत्री राजसजा एं गयो, त्यारे तेणे राजसना दीनग्लानवदनवाली दीती. जेम सूर्य नग्ये दीवानी कांती फांखी देखाय तेवी सनाने फांखी दीती. क्रोधी जीव युं युं उर्ध्यान न ध्याय ? अर्थात् धानज ध्याय. एमां शुं थाश्चर्य बे ? एवो राजाने जागी प्रणाम करी मंत्री सना मध्ये बेगे, अने राजानो रोष निवारवा अनेक कौतुककारणी कथा सनालोकने कतो हवो. अहो, सना लोको ! तमे कोई आश्चर्यकारी वात सांजली ? ते वेला एक चतुर पुरुष बोल्यो, हा. तेने सनाना लोकें पूब्युं शी वार्ता ते कहो. __त्यारे ते चतुर नर कहे . ए नगरमा व्यवहारीमा शिरोमणी थने धनवंतो एवो धनशेठ वसतो हवो. तेने श्री नामें नार्या तेना चार पुत्र एक धनो बीजो धनदत्त, त्रीजो धम्म अने चोथो सोम. ए चारे विचक्षण पुत्रने यौवनवये पितायें परणाव्या. ते मोटा व्यापारी थया, त्यारें धन शेतने वृक्षावस्थायें असाध्य रोग उपनो. वैयें पण कयुं के, तमे धर्म सा धन करो, तेवारें शेठे सर्व कुटुंबपरिवारने तेडावी, सर्वनी साथें खमत खा मणां कीधां. व्रत पञ्चखाण करी,आत्मसाधन कीधुं. त्यारे कुटुंबमां जे व ६हता ते कहेवा लाग्या, जे हे धनशे ! तमे तमारे नामे तथा प्रणामे धन्य बो! तमे तमारी तुजायें उपार्जित विने करी स्वजनने पोष्या. साते खेत्रे वित्त वावस्यां. निर्मल किर्ति उपार्जी.हवे तमे मृत्यु पाम्या पनी पुत्रने विखवाद न थाय तेम करो तो रुथु थाय माटे सर्व पुत्रने धन सरखं वहें ची आपो. जेम पनवाडे तमारो यशवाद वधे.॥ २७ ॥ ते वेला धनशे में चारे पुत्रने तेडीने कह्यु, जे तमे सर्वे नाइन संपे एकठा रहे जो ॥ य तः॥ यतो दृग्न्यां मुखं नाति, नयने वदनेन च ॥ पन्नवैस्तरवो नांति, तरु निः पन्नवाः पुनः ॥ १॥ अर्थः-जे कारण माटे बे नेत्रे करी मुख शोने, अने मुखें करी बे नेत्र शोने . वृद नवपन्न करी शोने , अने नवप हनवता वृदं करी शोने ने ॥१॥ कदाचित् काल जावे तमे गा रही न Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२५ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. शको, पोत पोतामां साथें रहे न बने तो ए रडामध्ये चारे खूणे चार कलश दाव्या ने, ते उपर तमारा पोत पोतानां नाम , ते काढी लेजो. में सर्वना सरखा नाग करी वहेंची मूक्या ले. ते रीतें लेजो, विवाद कर शो मां, एम कही पिता परलोके पोहोच्यो. ते पनी चारे नायें पितानुं मृत्यु संबंधी लौकिक कारज कयुं. केटलोक काल त्यां एकठा रह्या, पली स्त्री उना विवादथी जूदा थया. ते वेला घरना चारे खूणेथी चार नामांकित कलश काढ्या. तो एक कलशमां माटी, एकमा हाडकां, एकमां वही ए टले खतपत्रनां चोपडा अने एकमां सोनैया नयां हता. ते जोइत्रण ना इना मुख विहाय थयां.जे नाना नाइने तो पितायें नगद धन आप्यु. अने अमने हाडकां, माटी अने कागल दीधां. ते अमे केम लेश्ये? एम कही हृदयें त्राडना करी बाती कूटीमूना खाइ नोंय उपर पड्या ! अहो, पिता ये शत्रुरूप थइ अमने विश्वासें वंच्या. सर्व सार धन ते सोमने आप्यु अने अमने धूल तथा हाडका बाप्यां. एम कही त्रणे नाइ नाना ना साथें विवाद करवा लाग्या. अने कहेवा लाग्या जे, अमारां गला रेहेंसीने तुं एकलो धन ले जाइश ? एम थाय नही, ए धन तो चारे नाइ वहेंची लेयु. एम विवाद करतां सर्व सङनें मली वाया. कह्यु के, तमे थापया पणो वेपार करो. ए धन हवे रहेवा द्यो. राजझारे प्रधान पुरुष जे न्याय करशे,ते रीते लेवाशे. एम शीखामण देश विवाद निवास्यो.पली एक महिनामा पंचमहाजनों न्याय करी न शक्या, तेथी राजधारे आव्या, त्यां पण बुद्धि वंत प्रधाने विचास्युं, तेवेला राजा हसीने बोल्यो के, ए विवाद प्रधाने टाल्यो के न टाल्यो ? तेणे कयुं हजी टाल्यो नथी.एम कोश्ने बुद्धि उपनी नहीं. ___ त्यारे चारे नाइ उखीया थया थका देशांतर चाल्या, मार्गमा एक प गुपालगाम याव्युं. त्यां को बुद्धिवंत तृपुरुष सना जोडी बेगेले. ते सना समाजना सर्व लोकने प्रणाम करी चारे नाइ वेगा. ते वरखते चतुर पुरुषे पूब्युं. तमे क्याथी थाव्या ? अने आगल कया काम माटे क्यां जाशो? एटले चारे नाश्ये पितानुं जे वृत्तांत हतुं ते एक वृक्ष पशुपाल आगल कह्यु. तेथी ते बुद्धिवंत पुरुष हसीने कह्यु,तमारा नगरमां तेवो कोई पंमित पुरुष नथी के, जे एनो परमार्थ जाणे? ते वेला चार ना कहे जे के, पिता तो वाद मूकी मरी गया. पितायें अमने वंच्या. तेवारें ए वाद कोण टाले ? एवं Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सांजली बुद्धिवंत पुरुष बोल्यो हे पुत्रो, तमारो पिता पंमित हतो, चतुर हतो, तमारो हेतु हतो, माह्यो विचक्षण हतो ॥ ३१४॥ तेणें जेने जे योग्य हतुं तेज बराबर वेहेंची प्राप्युं बे. पण तमो तेनो परम अर्थ नथी जाए ता ने विवाद करो बो. पितानो कांई दोष नथी. तेनो परमार्थ बुद्धवंत पुरुष चारे नाइने कहे बे-जेना कलशमां माटी बे, तेने घर, हाट, खेत्र सर्व प्यां बे. जेना कलशमां हाडकां बे, तेने हाथी, घोडा, गाय, जेस ए सर्व व्याप्यां वे. जेना कलशमां कागल दोत बे, तेने उघराणी, व्याजु धन ए सर्व दीधुं बे. अने नाना पुत्रने असमर्थ जाणी रोकडुं धन तेने श्रायुं बे. हवे तमे चारे नाग संजाली जुन जे पितायें कोने लूं दीधुं बे? जे माटे धन तो विजजीनी परें अनित्य बे. अर्कतूलनी पेठें य सार बे. ते सारु शो क्लेश करो हो ? पिताना वचनथी मांहो मांहे हित नाव राखो यतः - इलालिया वि पालिया वि, विहति सेसया सुय या ॥ हुंति सहिकाविदुरे, कुविया वि सहोयरा चेव ॥ १ ॥ दाइ, ते बुद्धिवंतने पगे लागी. लघु नाइने खालिंगन देइयांखे यांसु मूकता कहे बे, हे वत्स ! मे लोनी यर तने खेद पमाड्यो . ते सर्व तमेकमा करजो. ते वेला लघु नाइ तेमने पगे लागी कहे बे के, तमे मोटा नाइ ते मुऊने पिता समान बो तमने में धन अर्थे घशाता उपजावी ते दमा करजो. इहां बधायें पंमित पुरुषने कयुं, जे पिता मृत्यु पाम्या माटे मूढ एवा मे बुं तेना तमे पितासमान थया. एम कहीने तेमरों क दाग्रह मूक्यो. त्यारें बुद्धिवंत पुरुष कह्युं के, तमारा पिता मृत्यु पाम्यो माटे नाना जाना तमे पिता समान गलाउ, तमारो पिता चूके नहि, तमे धन लघु नाइ साथे खेद कस्यो, ते नवो चाल करवो तमने घटे नहि. पढी त्यांथी ते जाइ पोताने घेर यावी. पिताना लख्या प्रमाणे धन वर्हेची जे मांहो मांदे प्रति स्नेहवंत थया. तेमणें नगरमां वधामणां कीथां. नवा जन्मनी पेठें हर्ष पामता हवा. एवी कथा निपुण पुरुष क ही ते सजाना सर्व लोको सांजली मस्तक धूणावी कहेवा लाग्या के, एवा पशुपाल पण बुद्धिवंत हता के जेणें बुद्धियें करी विवाद टाल्यो. ए वात सांगली पद्मराजा चमत्कार पामी चिंतववा लाग्यो जे, ते बुद्धिवंतें पारका नगरमां दूरथी निपज्युं ते पण उत्पातकी बुद्धियें जाएयुं. • Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. २७ अने तेनो केवो अर्थ कीधो ? तो शास्त्रनी जाए एवी ते मारी प्रियाने का मशास्त्रमां कौशलता संभवे बे. तेमां गुं कहेतुं ? माटे हुं मंदबुद्धि, अनार्य, निर्लज, दूर्गतिनो जानारो, निर्भाग्य एवो बुं हुं ते स्त्रीरत्नने अयोग्य बुं. जेने में निरापराधे तेवुं दुःख दीधुं. एम चित्त मध्येराजायें शोचना क री. ने दीनवदन य मंत्रीने कयुं, हे मंत्री ! पापी एवा अपुलीयें में जे महा पाप कीधुं. जे ते कन्या पिताने घेर सुखें समाधें रही हती ! हा हा ! तेने में नर्थ माडी दुखणी करी. माटे हवे हुं प्राण धरवाने समर्थ न श्री. तेथी तमे चिता खडकावो, तेमां हुं बलीने पवित्र यावं. त्यारें प्रधानें, राजाने अत्यंत दुःखी तथा मरणानिमुखी जाणीने ते मंत्री राजाने एकांते कवा लाग्यो के, हे राजा ! तमे सांजलो. जे नला सेवक होय ते स्वामीनुं हिताहित जाणे. हे स्वामी ! जे काम करियें ते विचारी परखीने करीयें तो फल पांमीयें, पण सहसा यविचायुं करे ते अशाता पामे. ॥ यतः ॥ स हसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ॥ वृणते हि विमृश्य कारिणं गुण लुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥ १ ॥ यर्थः - सहसा विचार करया विना कोइकार्य कर नहीं. अविचार जेबे ते खाकरा दुःखनुं स्थानक बे. विचार कर काम करवानी जेने टेव बे, ते पुरुषने संपत्ति पोते यावी वरे बे. हे नाथ! में तमारी खाज्ञापण करी, अने ते स्त्रीने पण जीवती ए कांतस्थ राखी ने हवे जेम तमारी खाज्ञा होय तेम करियें. . एवं सांजली राजा यानंद पामी प्रधानने कहे बे, हे मित्र ! तें ए स्त्रीने जीवती राखी ए मने जीवितदान प्राप्युं पढी राजायें प्रजाते ते निर्दोषी स्त्रीने घेर तेडी अपराध खमाव्यो. अने ते दिवसथी राजानो राणी उपर प्रेम वृद्धि पाम्यो. इति पद्म राजा कथा ३३४ ए दृष्टांत शंखराजाने साधुयें कह्यो. माटे हे राजें! पूर्वे जडबुद्धि एवा ते पद्मराजायें अविचाखुं काम क रीने एवा दुःख रूपणी तुलामां पोतानो आत्मा पाड्यो. तेम तुं पण विचार काम करी अबला सतीने दुःख देश ने हवे पश्चात्ताप करे d. पण धर्मना जाण होय तो ते परजीवनो घात न करे. तेम ग्रात्म घात पण न करे. जेमाटे यात्मघात समान बीजुं कोई पाप नथी. जे कुबुद्धि प्राणी दुष्कर कर्म करे, ते वली तेना दोष टालवाने माटे आत्मघात करे बे. पण सर्व दुःखने टाले एवो सुगम धर्म श्रीवीतराग देवनो नांख्यो बे,. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១៥ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते नथी करतो. दुष्कर्मना मर्मने हरणहारो धर्म ले. निरंतर सुख आपना रोजे. संसारमा संत पुरुषने धर्म विना बीजुं कांश पदार्थ शरण नूत नथी. ते सांजली शंख राजा मुनिने कहे . हे स्वामी ! दुःखनी दवानिये जे बल्यो, तेने हवे धर्मनी कथायें युं होय? तो अंतसमय योग्य जे धर्मशंबल होय ते मुफने आपो. त्यारें फरी मुनि कहे , हे राजन्! तुं फुःखनो ब व्यो मरण ले , पण एवा बाल मरणें करी मृत्यु पामवाथी आगल वि शेप दुःख पामीये. ते उपर कपिल ब्राह्मणनो दृष्टांत कहुं ते सांजल३४० ___ गंगाना तीरे कोइक संनिवेशने विषे सडो गाम ले. ते गाममां षट् कर्म करनार अत्यंत शोचधर्मनो धरनार कपिल नामे एक ब्राह्मण होतो हवो. शौच पिशाचें ग्रह्यो थको ते हिज चिंतववा लाग्यो, जे धरती पर फाटां खूगडां चुंयरां पड्यां होय, आनन्यां फूल फल पड्यां होय, विष्ठा मूत्र नयो अशुचि मार्ग होय, तेमां शौच आचार धर्म मारो केम रहे ? तलाव कूवानां पाणी पण केम पीवाय. माणसोनां, कूतरानां, बिलाडां आदि कनां मलमूत्र, हाड प्रमुख सर्व वरसादने पाणी तपाइने जलाशयमां जाय ते पाणी पीवाथो केम शौचधर्म रहे ? माटे समुह वच्चे अंतीप होय, ज्यां मनुष्य, पशु वर्जित नूमिका होय, त्यां जश् रहूं, तो मारा शुचि धर्मनी क्रिया रहे. अन्यथा न रहे. एम विचारी केटताक दिन गा ममां पाणी बांटी हिंमवाथी पण तेनो शुचि धर्म न रह्यो. ते वखते कोई निर्यामिकने पूज्यु, जे अशुचिरहित एवो कोई नरपशुवर्जित हीप ? त्यारे तेणें कह्यु, शेलडीना खेत्रे नस्यो एवो अनयहीप . ते सांजली ते निधि मव्यानी पेठे हृदयमां हर्ष पाम्यो. ते कपिल ब्राह्मणे पोताना स्नेहि कुटुंब परिवारने मेली मिथ्यानिमाननो प्रेस्यो थको वहाणे बेसी निर्यामिक साथै चाल्यो. समुश्मा ते दीप पाम्यो. जेम नव समुश्मां नरनव दीप पामे तेम तेणें ते दीप पाम्यो. त्यां शेलडीनो आहार करे. वहाण मूकी त्यां रह्यो. ते दीपनां पाणी पीत्रण वार स्नान करे. शेलडीनो रस बास्वादे. एकदा शेलडी खातां तेना बे होठ विदारण पाम्या. त्यारे एम चिंतववा लाग्यो. जो ए शेलडीने फल थात तो ठीक होत. एवं चिंतवी फरेबे, एटलामा कोक वहाणनो वेपारी ते इदुना खेत्रमा वडीनीति करी गयो हतो. तेनी सूकी विष्ठा पडेती हनी ते जोइ ते ब्राह्मण शेलडीनां फल जाणी हर्ष पामी Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ए ने चिंतववा लाग्यो जे अमारा देशमा शेलडी फलती नथी. अने आ हीप मांज फले . ते कोश्क हीपनो महिमा विशेष जाणवू. एवं विचारी ते फल (सुकी विष्ठा) हाथमां ग्रहीने फलनी भ्रांतियें अमेध्यने मेध्य मिष्टा समान जाणी इंडियनी लोलतायें करी कपिलहिजे तेनो नदण कीधुं. जे माटे दुधातृषार्त जे प्राणी होय ते शुचि अशुचि पणानुं विवेचन न करे. तेमज एकदा तेणें पोतानीज सूकी विष्ठा पडी हती तेनुं पण विन्रम पणें नक्षण कीg. एम विचरतां केटलेक दिवसें जेनी विष्ठा खाधी हती ते पोताना देशनो उत्तरवीतो वाणि तेने मल्यो. वहाणे बेसी ते हीपमा ज ल तथा शेलडी लेवा पाव्यो हतो तेमणे मांहो मांहे कुशल वार्ता प्रबी. वाणियें कह्यु हे, कपिलहिज, इहां रही तमे शो आहार करो बो ? कपिल बोल्यो, इहां दुं शेलडी तथा तेना फलनो पवित्र थाहार करूं . एवं सां जली वाणियो बोल्यो, शेलडीने फल कदापि न होय. दिजें कह्यु, ए हीपने महिमायें इहां तो शेलडीने फल याय . वणिक बोल्यो, ते फल मने दे खाड. तेवारे तेणे माणसनी सूकी विष्ठानां लीमा देखाडी, अने कह्यु के ए शेलडीनां फल .ते जोश्वाणियो खेद पामी,माथु धुणावी, कहे .अहो ! एणे अज्ञानपणे फलनी नांतें मानवीनी विष्ठा खाधी ॥ यतः ॥ नातः पर महं मन्ये, जगतो उःख कारणम् ॥ यद शान मोहोरोगो, पुरंतः सर्व देहि नाम् ॥१॥ वाणि बोल्यो, ते फलनो रस केवो के ? तुजने खातां केटलो काल थयो ? कपिल बोल्यो, ए फलनो रस तो अमृतसमान ; अने एक मास थयो ढुं खावं . वाणि बोल्यो,अरे अज्ञानी ! तें मूढ बूधियें ए गुं काम कीg ! मांथु नांगीने पग राख्या. थोडाशा अशौचथी बीहीतो, अने आतो तें सर्व प्रकारे अशौचनुं नहाण कीधुं. धिक पडो तहाराआ अज्ञान शौचपणाने, जे माटे कोई न करे ते कर्म तें कीy. जे अशुचिना नयथी तुं नागे हतो ते तारा आगल विशेषे आव्युं. अरे! एट पण तें विचायुं नहि, जे शेलडीने विषे क्यारे फल थता हो ? एतो कोई देशे को दीपे न होय. कपिल बोल्यो, निर्मानुष एवा ए होपमा विष्ठा क्यांथी श्रावी ? वाणियो बोल्यो, अरे तारी अने मारी बेदुनी विष्ठा तें खाधी. ते सांजली कपिल ब्राह्मण माथु फोडी हाय हाय करी विलाप करवा जाग्यो. रे दैव ! तुं, निष्कारण मारो वैरी थयो, जे मने विष्ठा खवाडी. श्वान Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वायसः वत् कीधो. हुं शौच धर्मनो अर्थी, कुटुंब परिवार मूकी समुनी व अंतरद्वीपे यावी रह्यो, तोपण तें मुकने विटंब्यो. हुंत्रण वार स्नान करतो, पुत्रस्त्रीथील रांधी जमतो, एवा मुऊने हे दैव ! तें केम प्रमेध्यनुं न कुण करावयुं ? एम विलाप करतो कहे ने के, हवे हूं क्यां जानं ? केने क ढुं ? किंवा श्रात्मानो घात करूं. सत्य शौचनो धरनार हुं विष्टायें लीपाणो. ते वेला ते वणिक पासे बनो हतो ते तेनो पश्चात्ताप सांजलीने कहे के, तें ज्ञान पणें तारी मेजे अपराध करीने हवे तुं निरपराधी दैव उपर शो कोप करे बे ? ॥ यतः - नरः कार्ये हि निष्पन्ने, मयाकारीति माद्यति ॥ तस्मिन पुनर निष्पन्ने, दोषं देवाय यवति ॥ १ ॥ अर्थः- मनुष्य कार्य सिद्ध याय तो 'में कयुं' एवो मद ते करे बे, घने जो सिद्ध न थाय तो ते दैवने दोष थापे बे. ॥ १ ॥ हवे ते वणिक कहे ने के, पूर्वे पंमितें शौच धर्म श्रा दो बे, ते धर्मने तुंबांमीने बाह्य शोचें जागो, वायरें जेम वृक्षं मूलथी जाग्यो, तेम तुं मूलथी विषठो, ते हवे केम शुद्ध थाय ? जे प्राणी अंतर मलिन बे ते बाह्य जलें हजारो वार स्नान करे तोही निर्मल न थाय. तरंग वे जीतवाथी परिणामें शुद्ध थाय. जलस्त्रानें तो अशुद्धता वधे. जलस्नान तो देवार्चन कार्ये बाह्य मल टालवाने कर. ते माटे लोको जल स्नान ते धर्म जी कहे बे. अनार्य अवतरती पशुवत् तरे बे. तेह ने अंतरंग शौचनुं कारण जोजन पंमिते कयुं के, जे पापाचार करशे ते कुजातिमांदे वतरशे अने जे पापाचार नही सेवे ते सत्कुल सुजा तिमांहे उपजशे, ते माटे विविध प्रकारनां शौच कह्यां बे. ते जाणिने ते धर्मार्थी प्राणियें अंतरंग शौच धर्म जेवी शक्ति होय तेवुं यादवुं देवया त्रा, विवाह, त्वरानो समय, राजदर्शन, संग्राम ने हाट बजार मार्ग ए टला स्थानके स्पर्शास्पर्शनो दोष नथी. एटले प्रकारें धरती फरसी थकी प वित्र थs. भूमीनपर पडेनुं पाणी, पतिव्रता स्त्री, प्रजानुं हित करनार रा जाने ब्रह्मचारी ए चारें सदा पवित्र कहेवाय बे. " ते माटे तें ए लौकिक मार्गने मूकीने अलौकिक मार्गने याद रखो, तेथी तीव्रपापे लीपालो बो. ते प्रायश्चित्त लीधे तुं शुद्ध थाइश. एम वालियानुं वचन ते कपिलें मान्युं, पठी ते वलिकने ब्राह्मण वे जला वाहणे बेशी पो ताने स्थानके याव्या, पोताना कुटंबपरिवारने मल्या. त्यार पढी पंमितें Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३१ कह्यु, तेम कपिलें प्रायश्चित्त लीधुं. पड़ी ते कपिल सर्व दर्शनने सरिखो शौचाचार पाचरवा लाग्यो. ए कपिलनी कथा मुनियें कही ॥ ३३ ॥ ते माटे हे शंखराजा! थोडा अनुचिथी नाठो जे कपिल तेणें जेम घ गुं अशुचि जोगव्युं तेम हे राजा तुं दुःखना नयथी मरीश तो वली घ णां फुःख पामीश. जे माटे पापथी दुःख उपजे अने पाप जे जे ते जीव हिंसाथी उपजे . ते पर प्राणीना घात थकी श्रात्मघात, पाप विशेष ने. पुण्यथी ते पापनो क्ष्य थाय, अने बेनो क्ष्य थयो त्यारें जन्मजरा म रणना पुःखोनो क्ष्य थाय. ते माटे हे राजन् ! तुं हवे सर्व चिंता मूकी श्रीवी तरागनो नाख्यो धर्म आदर, तेथी सुखी थाइश.एकदिवस तुंअमारा कह्या प्रमाणे धर्म पादरीश तो, पडी तुं तेनो प्रत्यक्ष पारखं जोश. अखंमित शरीरे पुत्रसहित एवी कलावती स्त्रीने तुं जीवती देखीश. तमे बेदु घणा काल लगें जोगना नजनारा थाशो.. त्यार पबी नुक्तनोगी थइ यंते राज लक्ष्मीने बांझी स्त्रीसहित दीक्षा लेशो ने आराधक थाशो. एम गुरुनुं कर्तुं मानीने राजा ते वनमां एक रात्रि रह्यो. त्यां रात्रिने पारने पहोरे एक स्वप्न दीतुं. कल्पतरुयें वलगी लता फलसहित , ते ने कोश्क पुरुष बेदी नूमिकायें पाडी. पी वली ते लता फलसहित पा बी कल्पतरुमां जश् वलगी. तेने ते तरुयें तुरत अवलंबी. एवं स्वप्न दीतुं. के तरत प्रनाते राग थतां राजा जाग्यो. त्यारे विचायुं के अहो ! ए मोटुं स्वप्न मुझने क्यांथी दीवामां आवत, पण जो इहां रह्यो तो में ए स्वप्न दीतुं ? एम चिंतवी प्रनात संबंधीनी करणी करी राजा गुरुपासे आवी वंदन करीने गुरुने स्वप्नार्थ पुटतो हवो. __त्यारें गुरु पण तेने स्वप्ननो यर्थ कहे . तें राणीने दूर करी वियोग पमाडी ते कल्पतरुनी मालने बेदी नाखी, पण ते माल पानी तरत फल सहित जश्ने कल्पतरुने वलगी. तेम हे राजा! तमने ते राणी पुत्र सहि त वेहेली मलशे. एम सांजली राजा कहे , हे मुनी ! तमारे प्रसादें करी एवं मुझने गुन थवानुं ते महारे एमज होजो, एम कही राजा रा णीनी खबर जोतो तेज वनमा केटलेक दूर गयो. त्यां लजायें नीचं मु ख करी दत्त कुंवरने कहे के, हे मित्र! बुंदि एवा में महा पाप की धुं. पोताना निर्मल कुलें लांबन लगाड्युं. पण गुरुयें अमृत किरणसमा Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. न वचन कह्यां अने तेणें आश्वासना दने, धैर्य उपजाव्यु. आशायें विलु ध्यो एवा में था दिवस एम गमाव्यो. पण हवे हुँ महारी स्त्रीने जो जीव ती न दे तो मरण पामीश. ते माटे तमे घोडे स्वार थइ उतावला जान. अने ज्यां कलावती होय त्यां तेनी तपास करी शीघ्र तेने तेडी लावो. ए वी राजानी आझा जश्ने ते दत्तकुमर घोडे स्वार थइ कलावतीनी खबर काढवा निकल्यो, जे पुरुष ज्यां मुकी हती ते पुरुषं ते स्थानक देवाडयं. त्यां लोही पडयुं देखी त्यांथी पगी पग जोतो दैवयोगें तापसनो आश्रम दीने त्यां तापसने प्रणाम करी दत्तकुमारे पूज्यु, के हे तापस नजीक प्रसव थइ एवी उत्तम स्त्रीने तमे इहां कं दीती? त्यारें तापस कहे जे, तुं कोण बो ? अने क्यांथी इहां आव्यो बो? त्यारे तेणें कयुं हुं शेठनो पुत्र दत्त नामे j, अने शंख पुरथी याव्यो बुं. राजायें मने खबर काढवा मुक्यो . त्यारे ते तापस कहे , ए रांकडी उपर हजी राजा वैर नाव नथी मूकतो. श्रा कांइ थोडं कीg डे ? गर्भवती अबलाने वनमां मुकावी अने हाथ कपाव्या ते कंश उतुं कर्तुं ? जे हजी राणीनी खबर पूछे जे. लोकनी पण कहेवत डे के कीडी उपर कटक झुं करवू ! ___ त्यारे दत्तकुमार तापसने कहे जे के, घणुं कह्यानी तो हाल वेला नथी. पण जो कलावतीने नहिं देखे तो ते राजा हमणा चितानिमा बली मरशे. ते माटे शीघ्र ज्यां होय त्यां देखाडो. तथा हा कहो, जे अ मुक जगायें ए जीवती . त्यारे दयालु तापस दत्तने पोताने याश्रमे ते डी गयो. त्यां ते दत्त, कुलपतिने प्रणाम करी कहे , हे प्रनु ! राजाने अ जयदान आपो. त्यारे कुलपतियें कलावतीने तेडावी. ते पण त्यां प्रावी. एटले दत्त कुमारने देखी घणुं रुदन करवा लागी. जे माटे सजनने दी। कोडगणुं उःख थाय एवी नीति . तेम घणे दहाडे स्वजनने देखी ते प ण दुःखी थइ घणुं रडवा लागी. ते रोती देखी मधुर स्वरें दत्तकुमारे आ श्वासना दीधी ने सासती कीधी. दत्तकुमार कह्यु, ए कर्मगति . माटे हे स्वामिनि ! रडवानुं निषेध करो ॥४०॥ ॥ हे बेहेन ! संसारने विषे जे मनगोचरे न यावे एवा गुनाशुन कमै करी प्राणी सुख सुःख पामे बे. हे बाइ! ज्यारें अगुनकर्मनो उदय थाय, त्यारें माता, पिता, नाइ, पुत्र, नार ए सर्व शत्र रूप थाय. तेमज ज्यान गुनकर्मनो उदय थाय Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___टथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३ त्यारें शत्रु होय ते मित्र थाय. तथा हे बेनी ! तमोने जे अप्ति आकरूं कुःख जोगवतुं पडयुं तेथी राजायें तमारा गुण जाण्या, पन। तमारा दुःख थी तमारा वियोगनुं अनंतगणुं कुःख राजाने थयुं . ते शंखराजा, पश्चा त्ताप करतो हमणा चयनी अग्निमां प्रवेश करवा ले . जो हजी सुधी पण तमारूं मुख जीवतां नही देखे, तो निश्चयें ए प्राणत्याग करशे. एवं सांजल्युं त्यारे कलावती रथे वेशीने जरतार पासे जावाने शीघ्र नजमाल थइ. जरतारें घj अहित कीg , तो पण पतिव्रता कुलवती जे स्त्री होय ते जरतार उपर हित राखे. त्यार पड़ी तापसादिक तथा कु लपतिने नमस्कार करी तेमने पूबीने पुत्रसहित राणी रथमां बेसीने प्र जाते वनने विपे शंख राजा पासे आवी तेने संपूर्ण अंगवाली देखी जे ने घणो हर्ष थयो ने एवो राजा लजाथी नीचुं जोइ रह्यो, पण चुं जो इन शक्यो. हर्षना वधामणां थयां, नगारांना निर्घोषथी नत्सव कर ता हवा. हर्षवंत थया एवा प्रधान सामंतादिक सहित एक क्षणमात्र सनामां बेसीने पती राजा कलावती पासे आव्यो. जेम चश्मा सदोषी ले, कलंकी , तो पण तेने रोहिणी आवी मले , तेम कलावती पण जरता रने प्रावी मली. यद्यपि राजा दोषी, कलंकी, तोपण राणीयें खेद न राख्यो. ते समये ते कलावती कांइक रोषवतीयकी नीचुं मुख करीने बेठी ने एम राजायें जोयुं, त्यारे राजायें मंद जेना नेत्र में एवं कलावतीनुं मुख पो ताने हाथें ऊंचं करीने तेने मधुर वचनें करी कह्यु के, हवे हुँ जीवतो तु ऊने मुख झुं देखाडु ? आ तारूं मुख मने जीवाडनारुं . दुं निर्जाग्य बुंजे में निष्कलंकने कलंक दीg? वली तुं तो निष्कलंक चे माटे तारी स्तुति केटली करूं! एवं राजानुं प्रशंसावचन सांजली राणी बोली, निर्जाग्य अने वराकी एव। जे ते मारी स्तुतियें सयुं. वली राजा कहे , हुँ निर्गुणी बु. कृत घ्न, निर्दय, कुलदयनो करनार . जेमाटे में तहारा जेवी सतियोमा शि रोमणी, गुणवती एवी राणीने खेद पमाडी. तथा तुं गुणवान बते तारो कां ६ दोष न हतो तेम बतां वली तारी उपर ढुं रागी बतां पण विरक्त थयो, ते को पूर्वकृत कर्मना मर्मथकी में तुमने मुःख दीधुं. ॥ यतः॥सवो पुवक याणं, कम्माणं पावए फलविवागं ॥ अवराहेसु गणेसु य, निमित्तमित्तं परो दोई ॥ १ ॥ बीजा को प्रजा लोकें एटलो अन्याय कीधो होय तो राजा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तेने आकरो दंम करे, पण आतो राजायें पोतेज धाकरो अन्याय कस्यो, तो तेने कोण पूजे ? कोण दंम करे ? वली राजा कहे जे, जेम वटवृदें तथा उंबरने वृदें फूल देखाय नही, तथा बकुल वृदने विषे फल देखाय नही, तेम तारे विषे कोई दोष नथी. हे राणी ! में अज्ञानथकी तारीनपर मालु चिंतव्युं. ते ढुं कहेवाने समर्थ नथी. तो दुं कहूं? एम कही राजायें पोताना कोपर्नु सर्व कारण पोतें वीतेलुं कह्यु. पडी राणीयेंपण चंकालपीयें हाथ काप्या त्यांथी मामीने सर्व कुःख मय व्यतिकर कह्यो. वत्ती नवा हाथ आव्या ते स्वरूप पण कह्यु. त्यारें राजा हर्षे करी कहे , हे प्रिये ! आ चंइदिवाकर पर्यंत महारा अपयश नो पडहो वागशे, अने तहारा मस्तकें शीलनी छजा फरकती रहेशे. हे रा गी! तारा पुःखने पश्चात्ता हुँ जे जीवं बुं, ते गुरुना वचन रूप संजीवि नी औषधीना प्रनावथकी जीवं बुं. राणी कहे थे, मुझने मुःखमाथी सुख थयुं ते पुत्रना पुण्य करीने थयु. अने तमो जीवता रह्या ते गुरुनी रुपा थकी रह्या. धन्य ए गुरुने के, जेणें तमने सुबुद्धि आपी. तो मुझने हवे ते गुरुना दर्शन करावो. जेथी ढुं महारो जन्म सफल करूं. एम कही प्रना तें महोटी दियेंसहित समस्त परिवार साथें राजा गुरु पासे आव्यो, मु निने वांदिने बेगे. मुनिपण तेमने शील रूपधर्मनी देशना देता हवा.॥४२॥ प्राणीने शियल व्रत जे जे ते शुनोदयतुं करनार , शील ते शरीरनुं आ जरण बे, जीवने पवित्र करनार , बापदाना समूहy हरनार दे, तथा मुर्गतिना फुःख, टालनार , दो ग्यादिक आपदाना समूहने नस्म कर नार , एवं शियल ते चिंतामणी रत्ननी पेठे इजित सुखनुं बापवावालुं . तथा शियलयकी व्याघ्र, व्याल, जल, अग्नि आदिकना जय सर्व मटी जाय ए शीयल जे जे ते स्वर्ग तथा मुक्तिना सुखनुं आपनारले, इत्यर्थ. हे राजन् ! तमें ए शीयलव्रतनुं माहात्म्य ते स्वयमेव दृष्टियें दीखें, जे ता हरी स्त्रीना हाथ तें कपाव्या बतां ते शीयलना प्रनावें नवा वाव्या. शी यल रूपिणी अमिने जो समकित रूप वायु सखाइ मले तो ते घणा कर्म रूप इंधणने बाले. जिनेश्वरे कडं जे यात्म तत्वरूप वस्तु जीवादि पदार्थ, तेहनी जे सहहणा ते समकित कहिये, ते महामोहनीयादि अशुन कर्म ना क्यथी जीव, समकित पामे. तथा हे राजें! संसारमध्ये नमतां जीव Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३५ ने देवतानी ऋद्धि, दिव्यजोग संपदा, विविध प्रकारनीविद्या, विज्ञान, ए सर्वने पाम घलु गुलबे, परंतु निश्वयथी एक समकित पामनुं ते महा दुर्जन बे. समकितरूपी महारत्ननो दीवो जेवारें कदयनेविषे प्रगट्यो, ते वारें जीव देवगुरु ने धर्म तथा दर्शन, ज्ञान, अने चारित्र रूप तत्व नो जाएथयो, तेवा ते खढारदोष रहित एवा श्रीवीतराग देवने देवकरी जाणे. ते काव्यें करी कहेने ॥ रागद्वेष कषाय मोह मथनो निर्दग्धकर्मेध नो, लोका लोक विकाश केवलगुणो मुक्तायुधो निर्भयः ॥ शापानुग्रह वर्जि तो गद तृषा कुकाम निाजरा, क्रीडा हासविलास शोक रहितो देवाधि देवोजिनः ॥ १ ॥ अर्थः- वीतराग देव ते कहेवा ले तोके, राग द्वेष ने मोहना मथनार ते, तथा शुक्ल ध्यानेंकरी कर्मरूप इंधन ज्वालीनें लोका लोक प्रकाशक एवोजे केवलज्ञान रूपगुण तेने पाम्यावे, खायुध रहित प्र निर्भय, कोइने सराप नथी देता, कोइनी उपर अनुग्रह पर चादरें करी नथी करता, जेने रोग नथी, तृषा नथी, कुधा नथी, कामनिश नथी, जरा, क्रीडा, हास्य, विलास, शोक इत्यादिक अनंत दोष रहित एवा देवा धिदेव श्री जिनेश्वर वीतराग जगवान ते देव जाणवा. हवे गुरु कहेवा होय ते कहे बे:- दयावंत, सत्यनापी, दत्तत्यागी, ब्रह्मव्रतधारक, परिग्रहरहित, जेमने शत्रुने मित्र सरखा बे, मृतिकाने कं चन, तृण ने मणि, सुख ने दुःख, तृण बने स्त्रीनासमुदाय ए सर्व जेने सम परिणामे बे. एवा जे मुनिराज ते गुरु जाणवा. तथा धर्म ते कोने कहियें ? श्रीजिनेश्वरजापित धर्म ते एक देशथी श्र ने बीजो सर्वथी एवा बे प्रकारे बे. तेमां पंच महाव्रतरूप श्रमणधर्म तथा रात्रीनोजन विरमण रूप ते सर्वथी धर्म जाणवो, तेना धारक मुनिराज a. ने बीजो सम्यक्त्वमूल बारव्रतरूप देशविर तिनो धर्म ते देशथी धर्म जाणवो. तेना धारक ते श्रावक बे. ए वे प्रकारनो धर्म कह्यो, ते धर्म मोनो पमाडनारो बे. वली सम्यक् ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनी उपर जे श्रद्धान ते समकित जावं. ते समकित कहेतुं वे तोके, चिंतामणिरत्न, कामधेनु, तथा कल्पवृक्ष तेथकी अधिक प्रभाववालुं बे. ते समकित सर्व धर्मनुं श्राधारनृत बे. एवं समकित श्रीवीतरागें कहां ते धर्म जावो. इत्यादि देशना सांजली मोहनी कर्मनी महोटी दृढ गांठ नेदी मिथ्या Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. " बेदीने समकित रूप आत्मतत्व धर्म तेने राजा राणी पाम्यां. पी राजा गुरु प्रत्ये विनंति करे बे के अंधकार तिमिरने हरनारी, सदा उद्यो तकारी, मुक्तिपथनुं कारण एवी निर्मल जे रत्नत्रयी ते रूप धर्म ते तमोए प्रकाश्यो, तेज विवेकी पुरुष अंगिकार करवो. पण एस्त्री, धन, संताननो जे मोह तेने लोहनी वेडीनी पेठे दुःखें त्यजी शकीयें. ते माटे हुं बाल क पंच महाव्रतरूप धर्म पासवाने असमर्थ बुं. तेथी मुकने श्रावकना बार व्रतरूप धर्म अंगिकार करावा. त्यारे शंख राजा ने कलावती राणी समकित मूल बार व्रतरूप धर्म गुरु पासे यादरी गुरुने वांदीने गजा रूढ र हर्षवंत थका नगर मध्ये प्रवेश करता हवा. त्यां शंख राजा तथा संपूर्ण अंगवती, पुत्रवती एवी कलावती राणीने श्रावतां देखीने सर्व नगरनां नर नारी लोकोने आनंद उपजतो हवो. त्यां मांगलिक वाजिंत्रनांजे शब्द तेना निर्घोषे करी खाकाशं गाजतुं हवं, महासतीनो महिमा प्रगट पणें उद्घोषणा करतो हवो, घर घर प्रत्यें तोरण बांध्यां, हाट शणगारयां, ध्वजा पताका बंधाव्या, अने गम गम मंगलिक उत्सव थयो. एवो सर्व स्थानके उत्सव प्रवत्यों. एवा अवसरें घ हर्पित ई. एवी कोइकें अर्धाज मुखमंमन कीधां, कोइयें एकज का न गारो. कोइयें एकज लोचन यांज्युं, कोइयें स्नान करयुं, कोइ ये न कस्युं, कोइए थोडो चोटलो गुंथ्यो, कोइये न गुंथ्यो, कोइयें थोडं ज म्युं, कोइयें न जम्युं, कोइयें थोडं तंबोल खाधुं, कोइयें न खाधुं, कोइयें केटांक यानूपण वस्त्र पेहेखां, कोइयें न पेहेयां, कोई पुत्रने धवरावती अ धवच मुकी यावी, कोइक धणी प्रत्ये पीरसती तेमज दोडती चाली, कोइ क नारी तो चूजे धान बलतुं मूकी चाली, कोइ घीनो घडो ढलतो मेली चा ली, कोइक जरतार उचलतो गाली देतो मेलीने चाली, एम सर्व नगर नी स्त्रीयो कलावतीने जोवाने खावी. त्यां कोक स्त्री कलावती राणीने मुक्ता फजे तथा फूलें कर वधावे बे. गुणग्राम करे बे. धवल मंगल गाय बे. जय जय यानंद पामो, हे कलावति ! तुजने धन्य बे. तुं चिरंजीव. रहो, तुं महा सती बे. तें कुल जुयाल्युं. इत्यादिक घणी श्लाघा करतां करतां नगरनां लोक सर्व पोताने घेर खाव्यां. त्यां राजा राणीने घणां वधामणां श्राव्यां, राजायें दीन याचकने घणां दान दीघां, बंदीवान सर्वने बोड्या, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७ एम पुत्र जन्म माटे घणा नाटकीया नचाव्या. वाजिंत्र वजडाव्यां. लोक ने शोकरहित कीधा ॥ ४५५ ॥ ___ एम दश दिवस सुधी नत्सव करी, अगीधारमे देवसे शुचिनूत थर, बार मे दिवसे झाति कुटुंबने जमाडी, पुत्र प्राप्तिथी राजानां पूर्ण मनोरथ थया. स्व नमां कलश दीठो हतो तेने अनुसारें पुत्रनुं नाम पण पूर्ण कलश एवं सर्व नी शाखें दीg. एम सुखमां काल निर्गमे , त्यां सद्गुरुनी संगतें शास्त्र सांजले . विषयासक्तिपणुं मूकाने देवपूजादि धर्मना काम करे . सं तोपरूप अमृतें करी तुष्ट ने. धर्म ध्याने करी पुष्ट ले. जावळीव ब्रह्मचर्य व्रत पाले . तेनी मन रूपिणी नूमिका ते गुरुवाणी रूप सुधायें सिंचाणी. तेथी तेने विषे विवेकरूप बीजथी निपजतुं समकितरूप मोटुं वद नद य पाम्यु. शमदमादि गुण ते तेनी शाखा ने. श्रीजिनेश्नीपूजा सत्कार ते तेनां पत्र . कुश्रुतिरूप आकरा वायुयें जे फरश्युं नथी. एवं ते समकित रूपी वृत विकसित थयु. तेथा शंख राजा जिननवन करावतो, जीणों चार करावतो, जिननी महा पूजा रचावे, साधु जननी नक्ति करे, दीन मुःखीनो नकार करे, साधर्मिकनुं वात्सल करे, जिन मतना प्रत्यनीकने निवारतो जिन शासनने अजुयाले, एम धर्ममां धनवावरवानां कारण क रतां उतां केटलोक काल श्रावक व्रत धर्म आराधतां तेणें गमाव्यो. पत्री पुत्रने राज्ययोग्य जाणी मध्यरात्रे राजा जागीने धर्म जागरि कायें चिंतवतो हवो के, अहो !आ असार संसार समुझ ते दुःखें तरी शकि ये एवो . समुश् जेम जलें जयो ने तेम संसार समु ते शरीर अने मनना पुःख रूप जलें नस्यो . तेमां आस्ववना हार जेणे संध्यां डे, रूडा रूडा गुणें करी पूर्ण ने, अने रूडा चारित्रं करी युक्त , एवो जे अर्हधर्म ते रूप जहाज विना तुं केम संसार समुश्नो पार पामीश? एवी धर्म जागरिकाने चिंतवतो ते शंख राजा, चारित्रना मनोरथ करे ले. मनुष्यावतार पाम्या विना धर्मनी प्राप्ति कदापि न होय, सिक्षांतमां चूलकादि दशे दृष्टांतें मा नव नव पामवो उर्लन कह्यो ले. कदापि ते मनुष्य नव पामे तो पण ध म सानलवो उर्लन जे. तेथी धर्मनी सदहणाने आदरवी, ते तो महा पुर्खन जे. पांच इंख्यि रूपी अश्व अण दम्या बतां जीव रूपी अस्वारने नव रू पी कूपने विपे पाडे . तथा माता पिता पुत्र कलत्रादि स्वजन कुटुंब ते Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तो मृग पासनी पेठें दुःखे ढंकाय एंवां बे. धन धाननी जे खाशा तथा यौवनपणुं ते तो स्वप्ननी पेठें विनाश पामनाएं बे. दाराना जोग तो का रागृह समान बे. राज्य तो दुर्गतिमां पाडनार बे. विषय तो विष समान बे. ते कारण माटे एक चारित्र धर्म ले ते मुक्ति पदने पमाडे, तेथी सर्व संगने बांमी संयम स्त्रीने हुं यादरुं. एम धर्मजागरिकायें चित्तमां धारी क लावती राणीने राजायें पूग्युं, जे हवे यापणने खात्मसाधन करवा मा टे दीक्षा लेवानो समय ले. त्या राणी कहे बे, हे स्वामी ! थापणे जोग जोगव्या, एटला दिवस राज्य पाल्युं, हवे पुत्र पण राज्य चार पालवा धुरंधर थयो, त्यार पी तत्त्व जाण्यानुं सारतो एज बे, जे हवे चारित्र धर्मरूप शरण अंगिकारखं. ए संसार तो असार ने एम जाली जन्मनी सार करवाने ग्रहस्थाश्रम बांमी. सार संयम खादरी, मनुष्यनव सफल करियें. एवं राणीनुं केहवं मोटा उत्साहथी सांजनी प्रधानने पुढी शुभ दिवसे मोटे उत्सवे पूर्ण कलश कुवरने राज्याभिषेक कीधो ॥ ४७५ ॥ प्रासादेषु महोत्सवो विरचितो मारी तथा वारिता, दुस्थानां कुलमुद्धृतं यतिवराः सा धर्मिकाः पूजिताः ॥ मुक्ता बंदिजनाभ्रगुप्तग्रहतः संतोषिता याचका, एवं ह्यष्ट दिनानि तेन सकलो लोकः श्रिया सत्कृतः ॥ १ ॥ अर्थः- जिन प्रसा दने विषे मोटे महोत्सवें जिनपूजा रचावी, देश मध्येथी मार शब्द निवा खो. दीन दुःखीने तेना कुलने दानादिकें उस्खा, यति तथा साधर्मिकनी aft करतो हवो. बंदीखानेथी बंदीवान बोड्या. याचक जनने संतोष्या. एम आठ दिवससुधी शंख राजायें सर्व लोकने धनवंत कीधा. एवा समयमा उद्यानपालकें खावी राजाने विनंति कीधी के, हे स्वामि न ! अमिततेजा नामें सगुरु सुसाधु यावी समोसा बे. त्यारें ते शंख राजा वनपालकने वधामणी श्रापी, पुत्रकलत्रपरिवारसहित महोटी ऋषि यें गुरूने वांदवा खाव्या. धर्मोपदेश सांजली राजा पोतें अवसर पामीने गुरूने विनंति करेले के, हे जगवन् ! कलावतीयें पूर्वजन्मने विषे कयुं पुष्क त उपार्ज्जु के, जे दुष्कृतना योगें करी में ए निर्दोष बतां एना हाथ तो डाव्या. एवं प्रश्न श्रवण करीने ज्ञानसंपन्न गुरुमहाराज बोब्या:- हे राज न् ! ए कलावतीनो पूर्वजव हुं कहुं बुं ते तुं सांजज. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. महाविदेह देत्रमा महेंपुर नामें पत्तन हतुं. ते पत्तनमां नरविक्रम नामें राजा घणा कालसूधी राज्य करतां थकां तेणे पोताना शत्रुने त्रास प माज्या हता. तथा ते राजा, पराक्रम त्रिविक्रम तुल्य हतुं. ते राजानी स्त्री लीलावतीनामें हती. तेना शीलनी लीला प्रशंसनीय हती. ते राजा राणीने एक पुत्री थई तेनुं नाम सुलोचना राख्युं. ते कमें करी, कामपा जनुं जाणिये कीडावनज होयनी ? एवी यौवन अवस्थाने पामी. एकदा ते सुलोचना पोताना पिताना नत्संगें बेठी जे. एटलामां को आवीने रा जाने एक शुक नेटणुं प्राप्यो. ते शुक सुंदर थाकारवालो अने विचित्र ए वी अनेक नाषा बोलवामां चतुर एवो हतो. कौतुकरूपी रसेंकरी खेंचाय ला राजायें तेने हाथनपर लीधो. अने तेने बोलाववा लाग्यो. त्यारे ते शुक ज़मणो पग उंचो करीने हर्षेकरी एक श्लोक बोलतो हवो. ते था प्रमाणे:- ॥ त्वदारितारितरुणीश्वसितानिलेन, संमूर्छितोर्मिषु महोदधिषु दि तीश ॥ अंतर्द्धनिरिपरस्परएंगपातात, घातारवैर्मुररिपोरपयाति निा ॥१॥ अर्थः-हे राजन् ! तें मारेला शत्रुनी जे स्त्रियो तेना श्वासवायुयें करी स मुना कल्लोल डलवा लाग्या. त्यारे ते मांहे आम तेम नमनारा जे पर्व तो तेमना परस्पर आघातें करी शिखरो पडीजवाथी जे कडकडाट शब्द थयो तेणे करी मुररिपु जे विष्णु तेनी निश उडी गइ ॥१॥ एवं वचन शुकना मुखथी सांजलीने राजा घणुं रीज्यो, तेणें पोताना अंगलग्न आनरण अने घणुं इव्य जे पुरुष ते गुकने लाव्यो हतो ते पुरुष ने बाप्यां. पनी राजायें ते शुक पदी पोतानी कन्या सुलोचनाने आप्यो. तेणे पण हर्षित थईने पोताना यावास स्थानने विषे जई सुवर्णमय पां जरामां ते पंखीने राख्यो. अने दाडम, शख, चारोली, अंजीर, इत्यादि फल तेने खवराववा लागी. जेमां शर्करा नाखी , एवं मधुर पाणी तेने पीवराववा लागी. ते राजकन्या पेला शुकने क्यारे क्यारे पोताना खोला मां लेती हती. क्यारें क्योरें पांजरामां मूकती हती. क्यारें क्यारे तेने शु क्ति बोलावती हती. वली आसन, शयन, नोजन, पान, तथा राजस जाने विषे पण ते गुक पदीने पोताना यात्मानी पेठे वेगलो नही मूक ती हती. एवी रीतें ते राजकन्या ते पदी साथे कीडा करवाने लोलुपी थई. एकदा ते राजकन्या सखीना परिवारने साथें लईने नगरना समी Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ მო जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. पनागमां प्रावेला कुसुमाकरनामा उद्यानने विषे गई. त्यारे ते शुक ते नी पासे हतो. ते उद्यानमां नरकपातने वारे, सिद्धिरूपवधूनो संगम क रावे, तृपावंत नेत्रने सुधारसनुं पान करावे, एवं जिनालय ते राजकन्यायें दीतुं. त्यारे घणा श्रानंदे की ते सुलोचना जिनप्रासादमध्ये गई. अने त्यां श्रीसीमंधरजीनी प्रतिमा जोई घणा हर्षजरें करी स्तुति करती हवी. ते एवी रीतें:- ॥ जगऊंतु निस्तारणे यानपात्रं, शमाराम विश्रामसंलीनचित्त म् ॥ नतानेकनाकेंश्पादारविन्दं स्तुवे स्वामिसीमंधरं देवदेवम् ॥ १ ॥ अर्थः- जगतमांदेला जे जीव तेमने तारवाने श्रर्थे जे जिहाजसमान, शां तिरूप जे उद्यान तेमां विश्रांति जेवाने वास्ते सारीरीतें लीन थयुं बेचि त जेमनुं, ने अनेक देवतायें नम्या वे पादारविंद जेमना एवा श्रीसी मंधर भगवानने हुं स्तनुं बुं ॥ १ ॥ एवी स्तुति राज्यकन्यायें करया पढी ते शुकपकीपण ते शोभायमान जिन बिंबने जोई मनमां चिंतवतो हवो के, जे मारा जन्मनो मने ध यो लान थयो. जे मारो जन्म कृतार्थ थयो. ग्रहो ! आज मारुं पुण्य जागृत थयुं. जेमाटे जिननायकनुं दर्शन थयुं. या जिनबिंब में पूर्वकालने विषे कोइ पण स्थलने विषे जोयुं बे. एवो ऊहापोह ते मनमां करेले, टलामां तेने जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं ते एवी रीतें:-जे हुं पूर्वजवने वि पे साधु हतो. त्या अनेक शास्त्रमा पठन पाठनमां हुं सावधान हतो, पुस्तक रूप उपधीनो संग्रह करवाने तत्पर हतो, पण संयमनिर्वाहक कि याने विषे में पोतानो खादर शिथिल करचो. तेथी मारे व्रतविराधना थई. ए माया करी तेथीढुं कयोनीमां उपन्यो. पण पूर्वजवना श्रन्यासें करी मने या शुकनवमां पण ज्ञान उपन्युं तथापि मने धिक्कार बे! जे माटे, ज्ञानरूपी दीपक हाथमां बतां हुं अज्ञानरूपी अंधकारें करी यांधलो थ यो अने चारित्राचरणथी स्खलन पामतो थको जवरूपी गर्तामां पड्यो. तो पण याज त्रिजगतना स्वामी एवा श्रीसीमंधर स्वामीने या तिर्यग् वम पल में जोया. तेथी मने घणुं पुण्य प्राप्त ययुं. माटे हुं प्राजथी जिन बिंबनुं दर्शन कस्यावगर खाहार पाणी न जेनं. एवो ते शुकपक्षीयें मन मां निश्चय करो. एवा अवसरने विषे सुलोचना पण जिनबिंबने नमस्का रकरी, कें करी विभूषित एवा पंजरने हाथमां जेई, पोताना वासने Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४१ विषे श्रावी. बीजे दिवसे नित्यनीपेवें गुकने पंजरमांथी काढीने जेवामां नोजन करवा बेसे में, एवामां शुकपदी 'नमो अरिहंताणं' कही आका शमां उमी गयो, ते श्रीजिननगवानने नमवा माटे बाह्योद्यानने विष पोंह च्यो. त्यां परमनक्तियें करी जिनने नमस्कार करीने ते उद्यान मांहेला फल यथेहायें नक्षण करतो थको उद्यानमा फरवा लाग्यो. त्यारे ते सुलोचना ते शुकना वियोगथी घणी पुःखपी थई. अने घणो आक्रोश करवा लागी. ते बोली:-वसिहूण मद्य हियए, जीवं घि तूण कब वसहस्सि ॥ सुहवासं होक एं, सुंदरपुस्मो किं न दीसहसि ॥१॥अर्थः-हे शुक ! माहरा हृदयने विषे वा स करीने, अने माहरा जीवनें आकर्षीने तुं क्यां वसे ले ? एज सुखावा समां रहीने सुंदरपुण्य रूप एवो तुंआज केम दृष्टिगोचर थतो नथी ? पनी ते गुकनी पळवाडे चालनारा माह्या राजाना सुनटोयें वसंतोद्यानमां गुप्त रीतें विहार करतां ते शुकने जालमां पकड्यो, अने सुलोचना पासे लावी मूक्यो. क्रोधे जेना नेत्र राता थया ने, एवी सुलोचनायें पण तेने लईने अव्य क शब्दें करी कह्यु के, रे धूर्त ! तुं मने वंचीने स्वेचायें कमीने वनने विषे ग यो. माटे हवे तुं ध्यानमा राखजे के, आजथी हुँ तुमने बाहर जवा दश नही. एवं कहीने सुलोचनायें ते शुकनी गति नंग करवाने तेना पांख झुंची लीधां. अने पबीते शुकने तत्काल कारागृह जेवा पांजरामां तेणें मूक्यो. शुकपण मनमां चिंतवतो हवो के, मारी पराधीनताने धिक्कार हो जो ॥ यतः॥ हठात् नीचतरं कृत्यं, कार्यते मार्यतेऽपिच ॥ नरकावासदे शीयां, तत्प्रादः पारवश्यताम् ॥१॥ अर्थः-जे अवस्थामां जीवने बला कारथी नीच कर्म करावे , अने मारे , माटेज ते पराधीनताने नरक वास सरखी कहे जे ॥ १ ॥ पूर्वनवने विषे ढुं स्वाधीन बतां प्रमादथी स क्रियानुं अनुष्ठान नही करतो हवो. तेनुं आ फल जे. अथवा ए दुःख ते केटलुं.ले ? एवं सुःख तो में अन्य नवने विषे अनंतिवार सहन क युं , अने आ नवमां पण तेमज सहन करीश. तेथी श्रीवीतरागना मुख कमलनुं दर्शन करवाने पण मने विघ्न थयु. एवी चिंतायें थातुर थये लो बने तेथीज जेने घणो सुःखनो नार थयो , एवो ते गुक फरीथी चिंतन करवा लाग्यो के, हे जीव ! तुं शोक मूक. शोक मूक. शोकें करी आकरूं कर्मबंधन थाय . जिनबिंबनुं दर्शन करावगर अन्न खावं ते मने Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कल्पे नही. माटे हुँ अनशन करूं. एम चिंतवीने तेणें अनशन आदा. पली ते पांच दिवस पर्यंत पंचपरमेष्ठिनमस्कारनुं स्मरण करतो मरण पा मीने सौधर्म देवलोकने विपे महर्षिक देवता थयो. सुलोचना पण तेना मुःखेंकरी उःखणी थकी अनशन आदरी समाधियें मरण पामी, अने सौधर्म देवलोकने विपे तेज देवतानी देवीपणे नपनी. ते देवलोकमां विषय सुख भोगवीने में करी ते बन्ने जण देवलोकथी च्यव्या. तेमां शुकनो जीव ते तुं शंख राजा थयो, अने सुलोचनानो जी व ते या कलावती नामें ताहरी पट्टराणी थई. माटे हे राजन् ! जीवें जे खरेखरा पापपुण्य कस्या होय नेनुंज फल ते नोगवे बे. तेमां सुरवःवनो कर्ता कोइ पण नथी. जेमाटे पूर्वनवमां एवं तारा पांख लूंच्या, तेथी पू वैवरें करी तें एना हाथ कपाव्या ॥ यमुक्तम् ॥ कतकर्मक्ष्यो नास्ति, कल्प कोटिशतैरपि ॥ अवश्यमेव जोक्तव्यं, कृतं कर्म गुनाशुनम् ॥ १ ॥ अर्थःकस्या कर्मनो क्ष्य कोट्यावधि कल्पें करी पण थाय नही. कस्युं शुनाशुन कर्म अवश्य नोगवुज जोश्यें ॥ १ ॥ गुरुमुखथी एवी पूर्वनवनी वार्ता सां जली तेथी वैराग्य करी वासित थयुं वे चित्त जेमनुं एवा ते वे जण (शं खराजा अने कलावती) संसार, असारपणुं जाणता थकां. हाथ जोडीने गुरुने प्रार्थना करता हवा के, हे प्रनो ! संसार समुह माहे फल दाइ दीदा रूपिणी नावा ते सित पटें सहित अमने आपो.एटले सर्व विरती अंगिकरावो. ___ त्यारें गुरु कहे , तुज सरखा ज्ञानीने एज घटे जे जे माटे बलता घर मध्येथीकोण माह्यो पुरुष पोताना आत्माने नहरे नहीं! शूरामांशूरो तुं बो, तथा त्यागीमां तुं महा त्यागी बो. जे माटे ा समय निःसंगी थश्ने साहसीक पणें प्रव्रज्याग्रहे बे. त्यारें राजाय पण पुत्रनी आझा लइ मोटे महोत्सवें कलावती राणीसहित दीदा ला गुरुनी साथें विहार कस्यो. ते राज्यरुषी संसारथी उदासीन थका समता रसमां मग्न थका नरें देवेंना सुखथी पोताना आत्माने समता सुखें करीअधिक सुखी जाणता ह वा.ते राज्यकषि कालोचित गीतार्थ थया.कालोचित सुसंयमीथया.कालोचि त तपस्वी थया. कालोचित विहार करता, कालोचित सर्व क्रिया करता हवा. __ जो उखम कालना दोष थकी तेवं शरीर बल, वीर्य न रडुं. तेवू दे त्र पामवं उर्लन थयुं. तेवा सत् क्रियाना योगना मेलवी आपनारा सखा Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४३ ३ पण न मलता. एवा योग थके पण जे मुनि अकार्यथी निवृत्तिने जे आज्ञा सहित जयणायें चारित्र पाले तेपण आराधक कह्या जे ॥ यतः ॥ आ गम ऊक्तम् ॥ जयणात धम्मजणणी, जयणा धम्मम्स पालणी चेव ॥ तव वुहिकरी जयणा, एगंतसुहावहा जयणा ॥ १ ॥ कासुयएसपीएहि, फासु यहासिएही पुणे हि ॥ मीसिएणय पाहा, कम्मेण करंति जयणाए ॥२॥ सुत्तविहिवहाए, विवढमाणा न बिहएचरणं ॥ नगिनतयबमेव हि, जम्ह वएसो जिशिंदेहि ॥ ३ ॥ अर्थः-जयणा जे , ते धर्मनी माता , धर्म नी रखवाली , तपने पुष्टि अपनारी , निश्चयेंकरी सुखावह जयणा ले. कोइएक अपवादथी जो दूषण लाग्या होय तो ते गुरुपासें प्रायश्चित्त ल इने ते धैर्यवंत चारित्रवंत मुनि शोनता हवा. ते शंखराजा तथा कलावती राणी. शुचारित्र पाली अंते अणसण लश् त्यांची कालमासे समाधीमां काल करी शंखराजा सौधर्म देवलोके पद्मविमानमां पांच पव्योपमना आ युष्ये देवता थयो. अने कलावती राणी साध्वीपणें शुम चारित्र पाली शरीर बांकी कालमासे काल करी तेपण सौधर्म देवलोके पद्मविमानमां तेज देवतानी देवीपणे देवांगना थ६ ॥ ४ए३ ॥ काव्य ॥ सहामधाम विषया इतलब्धकाम, मुदामदेवरमणीकृतगीतनृत्यम् ॥ तत्तत्र देव मिथुनं वररू पि पंच, पव्योपमायुसहितं च मियोऽनुरक्तम् ॥ ४ ॥ अर्थः-नलां धा मनी लीला, तथा अभुत विषय पामेला, उत्तम कामनोग, देवता संबंधी रमणीक गीत नृत्य, तथा वाजिंत्रना शब्द तेमां तनीन थयेला एवा ते देवदेवी देवतापणानां लोग नोगवतां पांच पत्योपमनुं यायुष्य पालतां मां होमांहे अनुरागीपणे रह्या ॥ ४ए ॥ जला नाविक मुनिनां जे चारित्र डे ते कुगतिना हरनार होय, ने मुक्ति वृक्नां बीज होय, विषयादिमां बालंबन मूकी संपूर्ण क्रियाना करनार तेमाटे कुःखमयकालनेविषे मुनि राजे शुक्षचारित्र अप्रमादपणे पालवू ॥ ४५ ॥ पोताना अज्ञानताना दोषथी जे एम कहे जे के, आज पुःखम कालमा चारित्र नथी, तेनुं वचन सांजल नही. तेम तेना दर्शनथी पण पाप लागे ॥ ए६ ॥ जे प्राणी बदु आरंजी , कामनोगना गृति ,चारित्रनो नार वहेवाने असमर्थ डे, ते प्राणी साधुजनना अबता दोप देखे . गुण जोवाने महा अंध ले ॥ ४ए ॥ जे सावध व्यापार रहित थया, जे शील सत्वमा रक्त डे, चारि Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. त्रवंत बदुलब्धियें सहित , ते शंखमुनिनी पेठे स्वर्ग तथा मुक्तिना नजनारा थाशे. ॥ ४ए ॥ प्रथम नवमां प्रथम व्रतधारी एवा जे शंखराजा तथा कलावती तेनी कथायें कलित एवो ए या चरित्रनो प्रथम सर्ग .॥ इति श्रीप्टथ्वीचंगुणसागरचरित्रे प्रथमसर्गस्य बालावबोधः समाप्तः ॥ ॥अथ श्रीक्षितीयसर्गस्य बालावबोध प्रारंनः॥ ॥ हवे देवता थयेलो शंख राजानो जीव ते त्यां देवसंबंधी जोग लोग वी त्यांनुं आयुष्य पूर्ण पालीने त्यांथी च्यवी शेष रही जे पुण्यप्रति ते रोकरी सहित ज्यां उपन्या ते सांजलो. जंबुद्दीपना दक्षिणाई जरत क्षेत्र ने विषे मध्य खंमनुं जे मंमन एवो मणिपिंगल नामा देश होतो हवो. ते देश केवो ने. ज्यां सुंदर गाम ते पुरसमान बे.घणी लक्ष्मीयें करी मनोहर एवां ज्यां घणा पुर अने नगर . ते देशने विपे (पोत के०) वाहण स मान नरेती सकल सार वस्तु जेमां, तथा ( पोत के०) बालकसमान घणा अालय ज्यांबे, एवं पोतनपुर नामें नगर चे. त्यां शत्रुजय एवे नामें राजा बे. ते केवो के ? तो के, जेणें पोतानुं हृदय परनारीने नथी दीधुं. तथा पोतानी पूंठ शत्रुने नथी आपी. एवो शियलवंत पराक्रमी ते राजा ने तेने रूपवती लावण्यवती एवी वसंतसेना नामें राणी . ते राजा राणीने इंश इंशणीनी पेठे, रविप्राचीदिग्नी पेठे, शिवगौरीनी पेठे, सुखमय नोग जोगवतां तेमनो घणो काल आनंदमां जतो हवो. तेवे समये विवेकी एवो शंख राजानो जीव ते देवताना नवथीच्यव्यो, ते शक्तवर्ण पांखवाला हंसनी पेते ते राणीनी कुरवरूपी सरोवरने विषय वतरतो हवो. ते समये पूर्ण चश्मा समान जेनुं मुख के एवी सुखशय्याने विषे सुती थकी समस्त कमले करी पूर्ण एवा कमलाकरने ते पूर्ण चंव दनी एवी जे राणी ते देखती हवी. प्रातःकाले प्रजातना वाजिंत्र वागतां सांगली राणी हर्षवंती थइ थकी जागीने जरतारने स्वप्न दीवानी वार्ता केहती हवी. त्यारेंराजायें कह्यु, हे राणी ! ए स्वप्नानुसारें तने कुलग्द्योतक पुत्र थाशे. राणी कहे , देव गुरुना प्रसादें करी एमजहोजो. पली राजानी आझा ला पोताने मंदिरें जइ ते राणी गर्ननी प्रतिपालना करे . देवगुरुनी नक्ति करीश. दीन दुखीने दान आपीश. याचकोने संतुष्ट Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५ करीश. साधर्मिकनुं वात्सल्य करीश. अमारी प्रवर्त्तावीश. एवां गुन मोहो लां ते राणीने उपज्यां. ते बधां राजायें पुरां पाड्यां. पनी गुन योगें पूर्व दिशे जेम सूर्य प्रकाशे, तेम तेजवंत अंधकारने टालतो एवो पुत्र मध्य रात्रे ते राणीये प्रसव्यो. त्यारे सुमुख नामा दासीयें पुत्रजन्मनी वधामणी थापी. त्यारें राजायें तेने सार शृंगार आप्या. दासीकर्म दूरें की . एवी वधाइ अापी. त्यार पनी प्रातःकालने विषे राजायें पुत्रनो जन्ममहोत्सव प्रवर्ताव्यो. त्यारे गीत अने नृत्ये करी घणो अद्भुत रस उपनो. तोरण जे जे ते स्फुरण पामवा लाग्यां. श्रेष्ठ एवा तुर्यादिक वाजिंत्र तेणे करी आका श नराई गयं. लोकने आपेखंजे प्रधान दान अने मान तेणें करी मोद वर्धापन थयु. एवी रीतें एकमास अतिक्रांत थयो, त्यारें राजायें कुटुंबने जमाड़ी सर्वनी साखे स्वप्नने अनुसार ते पुत्रनुं कमलसेन एवं नाम पा ड्युं. ते पुत्र गुक्त पदनी बीजनो जे चश्मा तेनी पेठे वृदिपामतो थको कुशल, लायक अने सकल कलायें करी पूर्ण थतो हवो. ते पुत्र पवित्र यौवनावस्था पाम्ये बते ते कुमर हर्ष रहित, शोकरहित, षरहित, इर्ष्या रहित, क्यांय फोकट विवाद नही करे, क्यांय विरोध नही करे, क्रोध न ही करे, महा मत्सर नही करे, विवाहनी अथवा विषय विकारनी वार्ता तो तेने रुचेज नही. पूर्वजन्मना सुरत अन्यास थकी शांत, दांत, दया वान् एवो ते थयो, नीचीदृष्टिथी चालवू, सत्य वचन बोलवू, मुनिनी पेठे मौन धारण करीने रेहवं, अवसरें थोडं बोलवू, एवो ते कुमार परोपकारी, दाक्षिण्यवंत, दातार, पराक्रमी, गंजीर, गुणवंत, होतो हवो ॥ २१॥ एवे समये ज्यां कोकिल जे जे ते गायन करे , चमर जे जे ते बंदी थईने स्तुति करे , किंशुक वृद्ध जे जे ते जेना उपर बत्र धरे , यने मचकुं दना वृद जे ले ते जेनी उपर चामर ढाले बे एवो वसंत राजा आव्यो. एटले वसंत ऋतु आवी. ते समये स्त्रीयोने देखी कामी सुनटर्नु मान वि लय गयुं , ते स्त्री आगल हाथ जोडी उना रहे , हीचोले हीचे में, नर नारी जन जे जे ते लगा गर्व मूकीने फागनां गीत गाय , प्रायः चमरनुं नृत्य अने गुंजारवरूप रास गीत तेणें करी शोनतुं एवं महीमंमल थयुं, युवान पुरुषने नन्नासकारी एवो मधुमास आव्यो, त्यारे मित्रनी प्रे रणाथी क्रीडा जोवाने अर्थे कमलसेन कुमार नंदन वनने विषे धावतो हवो, Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. त्यां क्रीडायें करी व्यग्र ने मन जेनुं एवा ते मित्रादिक रमतां अन्य जग्याए गया. त्यारे कुंवरें त्यां वे थकां अहो? एतो अनाथ बे एवो कोकना मुरवथी बोलातो शब्द सांजव्यो. त्यारें कुंवरें विचास्युं, जे माहरो पिता लोकनो नाथ बतां ए अनाथ शब्द कोण कहे ? अने ते केम कहे जे ? एवो अमर्षधरी ते कुमर शब्दने अनुसारे ते दिशिनणी चाल्यो. ते केटलेक दूर गयो, पण शब्दनो कहेनारो को दीठो नहीं, त्यारे त्यांथी पा बो वव्यो, एटलामा वली एनो एज शब्द सांनव्यो. त्यारे वली शोध कर वा आगल चाल्यो. त्यां अति दूर नही एवा एक देहराने विपे प्रवेश कर ती एक स्त्री दीती. तेवारें कुमरें विचास्युं, जे ए शब्द तो वे त्रण वार एना ज मुख थकी नीकट्यो होय एम संनवे ले, ते माटे एनेज पू. एवं चिंत वीने कुंवर देहराने हारे पेसे में, एटने ते देहरु उडीने दूर ग, अने प्रा सादरूप थई रह्यु. तेवारे कुंवर विस्मय पाम्यो. एटलामा प्रासाद मध्ये थी एक प्रौढ स्त्री नीकली. ते हर्षवंत थकी कुमरने यादर सन्मान दक हे डे के, हे स्वामि! तमे अहीं बेसो. ते सांजली कुमर कहे जे, हे स्त्री! तुं कोण डो? आ इंजालरूपी ते गुं ने ? जगत अनाथ तुं केम कहे ? तेनो उत्तर तुं तरत आप. त्यारे ते स्त्री कहे जे. जेनो कोइ नाथ नथी तेने आ बधुं जगत् अनाथ ले. त्यारे कुमर कहे . ए इंजाल तें शा वास्ते रच्यु. स्त्रीबोली, ताहरे माटे कयुं. हे नि पुण ! तुं कोण एम स्त्रीजातीने पूबवू तुजने घटे नहीं ॥ यतः ॥ सरियाणं नरिंदाणं, रिसीण कमलाण कामिणीणं च ॥ पुति उगामं जे, कुसलतं के रिसं तेसिं ॥ १ ॥ अर्थः-नदी, राजा, इषि,कमल, अने कामिनी एमनो गाम जे पूजे तेनुं कुशल केवी रीतें थाय ॥१॥ तो पण तुंने कंश्क कहुँ बूं. के, स्त्री जाति जे जे ते हमेश पवित्रज ले. कारण, सूर्य, नदी, नारी, राज मार्ग, अने सुवर्ण ए पांच वस्तु सर्वदा पवित्र , एम को धर्मराजाने कह्यु जे. हवे तुं महारी वार्ता सांजल. श्रीनामक हुँ प्रौढ नायिका बुं. हुं लायक एवा बदु उत्तम पुरुषं जोगवी . पण ढुं सांप्रति अनाथ मुं. तेमाटे हे स्वामि! तुं दयाल बो, तुं निपुण बो, उपकारीमां शिरोमणी बो, तेथी मुफ अना थना तमो नाथ थाउ. जे उत्तम होय, ते परस्त्री जोगवे, ए, विपरीत वचन स्त्रीयें कडं ते सांजली कुमरें हृदयमांधारीने पढ़ी ते स्त्री प्रत्ये कह्यु के Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. परस्त्रीने नोगतुं नहीं, जेमाटे उत्तम पुरुचे परस्त्री जोगववी नही. परस्त्रीने सामुं जोवाथ। पण शीयल रूप प्राण जाय, अने जो हृदयमा लागे तो कालजु कापी नाखे, माटे एने तरवारनी धार समान जाणो. ___ माटे न्याय मार्गी उत्तम पुरुषं परस्त्रीसंग न करवो. ॥ उक्तंच ॥ आग मे॥मश्न विमलं पिकुलं, हिलिक पागएण विजणेण ॥ पड पुरंते नर ए, पुरिसो परनारिसंगेण ॥ १ ॥ उचिठे विपि व, परनारी परिहरंति सप्पुरिसा ॥ सेवंति सारमेयत्व, निंदिया जे उरायारा ॥ २ ॥ अर्थः-पर स्त्रीना संगेकरी पुरुप पोताना निर्मल कुलने मलिन करे बे. पातकें करी पोताना आत्माने हीन करे जे. अने पुरंत नरकने विषे पडे जे. सत्पुरुष जे ने ते उहिष्टनी पेठे परनारीने बांझे . तथा जे दुराचारी अने निंदित पु रुप ले ते श्वानसरखा थईने परनारीने जोगवे . ॥ २ ॥ जेनो कोय ना थ न होय, अथवा सुखी होय, तेने पोषवानो अथवा पालवानो नाथ ढुं . परंतु कल्पांते पण परस्त्रीनो संग करनार ढुं नहिं. जो मारुं चित्त तुं हरीश तो ढुं सत् पुरुप नहि, तो हुँ परस्त्री केम धारूं : एम कहेतो ते कुमार त्यांथी नीकल्यो. त्यारे ते बोली सूना घर मध्ये पेसीने जेम श्वान नीकले तेम तुं केम नीकल्यो. जो तहारा अंगमां सुनट पणुं होय तोतुंमहारा मुख बागल श्राव. एम सांजली कुमर तेने सामो गयो एटने कोई पुरुषे कह्यु, हाथमां तरवार ग्रहीने तुं स्वबंदाचारी थको अ॒ सिंहने वारीश ? माटे जो तुं साचा पुरुषमा सिंह होयतो जोनं, जे ढुं प्रहार दनं तेने तुं सहन कर. त्यारे कु मरें पण खडग काढी माबे खंने धस्यं. त्यारे ते पुरुषे पण तरवार खांधे धरी कह्यु, हे मूढ पहेलो प्रहार तुं कर. त्यारे कुमरें कह्यु, हुँ निरपराध एवा को इने प्रथम घातन करूं. त्यारे ते पुरुष तुष्टमान थ कहेवा लाग्यो के, अहो! सत्व श्रीमंत नर ! तुं तारा शरीरनी शोनायें राजलक्ष्मी सुखें नोगव, बीजूं अंग देशनी लक्ष्मी तुं नोगवीश, में स्त्री तथा पुरुष रूपें करी तुमने इंजा ल पणुं देखाड्यु. अने ताहरूं धैर्य जोवाने तहारी परीक्षा करवाने जे तु जने वचन कुवचन कह्या, ते तुं खमजे. हे सत् पुरुप ! ढुं चंपा नगरीनो अधिष्ठायक बुं. एम कही ते देवता अदृश्य थयो. त्यारे ते कुंवर पण अंग देशना पदनी प्राप्ति जाणी, हर्षवंत हृदयें करी गुन शुकनें प्रेयो थको आगल चाख्यो. त्यां आगल जतां एक मोटुं सरो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HG जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वर दी. ते सरोवर केवु ने ? तो के उमा, गंजीर तथा निर्मल एवा ज लथी नरेलुं , तीरने विपे वनः करी शोनायमान , घणे कमलें क री शोनित , लाखोगमे पंखी तेने सेवे , तेमां मार्गनो श्रम टालवाने तथा पोताना आत्माने विनोद आपवाने वास्ते कुमरें स्नान कयुं एटला मां कोक पुरुष अश्व लश्ने तेनी सामो श्राव्यो. अने बोल्यो के, हे स्वा मि ! था तुरंग उपर तमे अस्वार थान एवं सांजलीने कुमार कह्यु, तुं कोण ? अने शेनिमित्तें मने तेडवानी ना करे ? ___ त्यारे ते अश्व लावनार पुरुप बोल्यो के, अहींथी नजीक एक नंदन वन , त्यां रमवाने चंपानगरीनो अधिपति गुणसेन नामें राजा आव्यो ने. तेनो हुँ अनुचर . तेणें आपने तेडवा माटे मने मोकलेन , माटे त्यां अस्वार थ पधारो. पडी त्यां जे कार्य हशे ते स्वयमेव जाणशो. त्यारे गुणनो रागी एवो कुमर अश्वे अस्वार थ बागल चाल्यो. अशो क वृद तलें वेठेलो, कुंमलें तथा तिलकें शोजतो, नागलतायें करी जेनुं श रीर वेष्टित , जेना नालस्थल उपर बिंड शोने , प्रधान सामु जे जुए बे, एवा राजायें प्रणाम करनार एवा कुमारने वास्यो,अने पूब्युं के, हे स ऊन! तुं एकलो केम? तुं क्यांथी आव्यो ? तारूं कल्याण था. तारुं स्वा गत होजो. एम कहीने राजा मौन रह्यो, त्यारें मने प्रणाम करतां के म वास्यो ! एवं कुमार मनमां चिंतवे ने एटलामां मतिवईन नामा प्रधा न ते कुमर प्रत्ये कहे , तमने सरोवर मध्ये स्नान करता देखीने अमें विचाओँ के, ए कोश्क उत्तम राज पुत्र ने, एवं जाणीने तमने तेडवा माटे अश्व मोकल्यो. हवे नगर मध्ये पधारो. एम कही ते मतिवईन प्रधाने कमलसेन कुमारने नमीने कह्यु के, रथे अस्वार था. ते सांजलीने कुमर रथमां बेटो, एटले प्रधान कुमरने कहेवा लाग्यो के, हे उत्तम! ढुं परदेशे श्राव्यो ढुं, एवो कशो मनमा खेद तमे करशो नहिं. सूर्य जे जे, ते दूर ले तो पण दूरथी अंधकारने क्षण मात्रमा टाले . त्यारे कुंवरें कह्यु, गंजीर, गुणरागी, सत्यवादी, सरल, सौम्य, एवा जन ज्यां होय ते जो परदेश होय तो पण तेने माह्या माणसें स्वदेशज कह्यो ने. इत्यादिक स्तुति मय वचनें करी कुमरें प्रधाननु मन रंजित कयुं. पडी स्वर्गमाहेला नगरमा जेम प्रवेश करिये तेम चंपा नगरी मध्ये ते प्रवेश करता हवा. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ४ पढी ते प्रधान कुमरने पोताने घेर तेडी गयो. त्यां स्नान मऊन करी जोजन करी निशाये सुख शय्यायें सूतो. त्याऐं ते कुमरनी पासें एकांते प्रधान यावीने वात कहे बे ॥ ६५ ॥ हे प्रनो ! चिरं कालसुधी प्रमारुं मन चिंतारूपी करी बली रह्युं वे, ते तमो जलधर जेवा हो माटे तमा रा दर्शनरूपी जजे करी शींचवाथी श्रमारुं मन शीतल थयुं सनरूपी शाल वृक्ष जे बे ते लोकना समूहने उपकार नली बे. तेम श्रेष्ठमां श्रेष्ठ एवा तमें परोपकारिता प्रकट कीधी. ते माटे तमो या मारो अंग नामा देश बेतेने लइने मारा स्वामिना मननी इब्बा पूर्ण करो. त्यारे कुंवर हसीने कहे वे के, तमे अंगदेशना राजा बते केम मारी प्रार्थना करो हो ? प्रभु बतां केम बीजा स्वामिनी इवा करो हो ? ए मने महो या थाय बे, माटे जे सत्य होय ते मने कहो. त्यारे मंत्री क हे के, तमारी प्राज्ञा होय तो तेम यथातथ्य हुं कहूं. कुमरें कयुं सु खें कहो. त्यारे प्रधान कहे बे. या नगरीने विषे लक्ष्मीनो हेतु एवो श्रीकेतु नामें राजा हतो. तेने पोताना वंशने विषे ध्वजा समान एवी वैजयंती नामें राणी हती. तेनी साथे ते राजा काम जोगनुं सुख तथा ए धरतीनुं राज्य जोगवतो हतो. एकदा राजा, सजा जरीने वेठो हतो, त्याऐं राजायें एवी वात पूढी के, ए नगमां को सुखी पुण्यवंत हशे ? त्यारें कोई सुनट राजाने कहेतो हवो. ए नगरने विषे सुखी मां सुखी एक व्यवहारीयानो बेटो विनयंधर एवे नामें बे. ते रूपें तो कामदेव जेवो बे ने धनें तो धनद समान धनवंत बे, तथा विज्ञानें, बुद्धियें करी तो जे विबुधने पण यानंद उपजावे एवा सुरगुरु जे वो बे. तेने चार स्त्रियो बे. ते चारे रूपें करी सुर सुंदरी जेवी बे. चारे प तिव्रता a. नित्ये धणीनी खाज्ञा प्रदेश कारी बे. मीठा बोली एहवी ते चार स्त्रीयो महा चतुर बे. एहवी प्रशंसा तेहनी कीधी तेवारें सनामध्ये कोइ बीजो पुरुष बोल्यो, वाणीयाने एहवी रूपवंती स्त्री देवांगनाने जीते तेहवी क्यांथी होय, तमे तेनी निंदा करो बो के स्तुति करो बो, एवो मु ऊने संशय बे. तेवारें ते कहे बे, एमां निंदा ने स्तुति शी कहेवी ने ? ते शूरवीर व्यवहारीयो नगरमध्ये प्रसिद्ध ते. जे कोइ श्रज्ञानी पुरुष स्त्री पामवाने माटे तप करे ते पण एहवी स्त्री न पामे. तेहवी स्त्रीना जोग Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ए देवतानी पेठे जोगवे . एवं ते स्त्रीयोनुं वर्णन सांजलीने राजा ते स्त्री योनी नपरे रक्त यासक्त थयो. नजरे दी जेवो रागी न थाय, तेवो राजा सांजलवाथी रागी थयो. यद्यपि राजा धर्मवंत हतो, तथापि तत्क्षण अं तरमां अधर्मी थयो. जे कामने वश थाय ते कोणने विपरीतपणे न थाय ? हवे कामातुर थयो थको ते राजा विचारे ,जे ढुं ते परस्त्रीग्रहण करूं तो, कुलने कलंक थाय, तथा परस्त्रीन से, तो कामज्वर बाले. “ एम ए क बाजु नदी अने एक बाजु वाघ" ए न्यायें एहवा दुःखमां राजा श्रा वी पज्यो. एम चिंतवतो चिंतारूपीया समुश्माहे, विकल्परूपीया कनोल माहे फकोला खातो ते राजा तेनो हीपनी पेठे नपाय पाम्यो. आशारूप विश्राम पाम्यो. विचाओँ के पुरनां लोकने विप्रतारीने ए वाणीयाने जो रावरी करी बलात्कारे ग्रहुं तो लोकमां निंदागर्दा न थाय. एq एकांते राजा यें चिंतवीने ते राजायें पोताना पुरोहितने कडं जे, तमे विनयंधर शेठ साथें कपटरूप मैत्री करो. पड़ी ते उपाध्यायनी पासे एक नवो श्लोक लवावीने राजायें प्राप्यो, अने पुरोहितने कडं के तुं कोइ पण रीतें करी ए श्लोक शेतना हाथें लखावीने गुप्तपणे मने अाप. __राजाना दुकुम प्रमाणे पुरोहितें विनयंधरनी पासे जोजपत्र उपर ते श्लोक लखावीने राजाने याप्यो. ते श्लोक एवी रीतें:- ॥ त्वदियोगामि तप्तस्य, मृगादि रतिपंमिते ॥ निशासहस्रयामेव, चतुर्यामापि मेऽजनि ॥१॥ अर्थः-रति संनोगमां पंमित एवी हे मृगादि ! ताहरा वियोगथी तप्त थ येला एवा महारी रात्री चतुर्याम (चारप्रहरवाली) हती, तो पण ते स हस्त्रयाम सरखी थई ॥ १ ॥ विनयंधरें लखेलो श्लोक हाथमां बावतांज राजायें पौरजनने तेडावीने कह्यु के, अहो नागरिकजनो ! विनयंधरें ए कामलेख मारा अंतःपुरने विषे मोकट्यो. तमे ए लिपीनी परीक्षा करो, अ ने साचुं होय ते मने कहो. लोकोयें श्लोकना अक्षर जोईने राजाने का, अक्रतो विनयधरना जेवा देखाय बे, पण ते एवं काम करे नही. हंस पदी नित्य मोतीनो आहार करे , ते क्यारे पण कादवनां पाणीने अडे नही. माटे ए कोश्ये कपटजाल कयुं . एम लोकोयें कडं तो पण तेम ने न मानतां विषयरूप विघं करी मोहित थयेला राजायें मत्त गजेंनी पेठे मर्यादा मूकीने खोदं काम कयु. पोताना सुनटोने आझा करी के, Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १ तमे विनयधरने तेना परिवार सहित पकडी लावो, अने तेना- घर उपर शील आपो. बंध करो. या वात बीजी प्रतमा वली नीचे प्रमाणे लखी बे. ___ एवं विचारी जोजपत्रे एक लेख लखी मूक्यो. ते मध्ये राजायें लरव्यु जे तारे घेर सार वस्तु ने ते मुफने आप. ते मृगादीना वियोगथी एक रात्र ते मुझने सहस्त्र रात सरखी जाय . तेवारें विनयंधर शेतें परमार्थ जाणी पुरोहितने अने प्रजा लोकने कयुं, जे राजा माती दृष्टियें जुवे , तमो जश्ने समजावो. तेवारें प्रजा लोकें मनी राजाने कर्तुं त्यारे राजा ते प्रजा लोक माहाजनने कहे ले के, एतो हुँ मागी ल . तेमां मने शो दोष ? त्यारें प्रजा लोकें कह्यु. राजा अघटित न मागे, अन्याय न क रे, तमो कोइ परीक्षा अर्थे करो तो पण ते प्रजाने कुःखरूप थाय. जेम उधमां. पूरा न घटे, तेम तमने ए कर्तव्य न घटे. जे मधुर शदना आ स्वादन करनारा होय ते कंटक वृक्ने वि केम मन करे, जे राजहंस मु क्ता फलना चुणनारा होय ते मानसरोवर मूकीने तुब जल खबोचीया ना कादवमा केम राचे ? एहवां दृष्टांत राजाने कह्यां. पण राजानुं पा परूप विप न उतयं. जेम जांगुली विद्यायें विषधरनां विष उतरे, पण रा जापापात्मा विषयी थयो, तेहy विष न उतयु. कोइक खलें कर्मरूप विधा त्रायें एहवो विशुद्ध निर्मल जे राजा तेने कलंक उपजाव्यो. जेम निर्मल स्फटिकने विषे कालो माघ लागे तेम इहां निपज्यु. एम प्रजा लोकनो प्र तीकार, विनती राजायें हृदयमांहे धारी नहिं, ते प्रजानी मर्यादा अवग पीने, गजेंनी पेठे मर्यादारूप स्तंनने उन्मूलीने राजा असमंजस थको अकृत्य करतो हवो. राजायें पोताना सेवकोने का, तमो जश्ने ते शेउनी स्त्रीयोने बलात्कारे लइ आवो. तेना परिवारने दूर करी घरने मुश करो. वली राजा नगरना लोकोने कहे . एनो पदपात तथा उपरीपणुं जे करशे तेनी ढुं शुदि करीश, तेने लूंटी लश्श. एवां कडवां वचन सांजली प्रजा लोक सद् निर्घाट्या थका निज मंदिरे गया. ते वखत राजाना सुनट, विनयंधर शेठने घेर गया. त्यारे तेहना स्पर्शना जयथकी स्त्रीयोने लश्ने ते विनयंधर पोते राजा पासे आव्यो.तेवारे ते स्त्रीयोनुं अद्भुत रूप देखी राजा चित्तमांहे चिंतववा लाग्यो के, ए साचुं जे माटे स्वर्गने विपे पण एहवी रूपवंत स्त्रियो नथी. एवो रूपवंत पुरुष में नजरे दीठो. जाग्यथकी माह Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. रा घरनेविपे ए चारे स्त्रीयो अमृत कुपीका आवी. ए स्त्रीयो मारे कंठे या लिंगन देशे. पण हमणां तो जोर न करूं, केटलोएक काल विलंब करूं. धीरे धीरे काम था. नुखने वशे जो उतावला थश्यें तो पण उंबरानां फल कां तुरत पाके नहीं एहवं चिंतवीने ते स्त्रीयोने अंतेनरमध्ये मूकावी. तेहने थंग नोग सामग्री, आहार पाणी, शय्या आसनादिक देवरावी. अने ते वा पियाने वेडीमा केद राख्यो. हवे ते नारी दुःखणी थकी राजानी मुके ली अंगनोगसामग्रीने तथा शय्यानी नूमिकाने तथा दासियो ए सर्वने वि पवत् जाणती हवी. तेटाणे ते राजानी दासी ते स्त्रीनने केहे ॥१०॥ ॥यतः॥ सख्यो वः फलितोऽद्य पुण्य विटपी येनानुकूलो नृप, स्तुष्टो ह्ये पमरुन्मणिश्च यमवत् दृष्टोऽपि जीवांतत् ॥ सेवध्वं विषय श्रियं तदमुना साई समृद्धिप्रदाः, चिन्तां मा कुरुत प्रियस्य गुणिनः संगो यतो पुननः ॥ ॥ १ ॥ अम्यार्थः-हे सखीयो ! आज तमारुं पुण्यरूपी वृद फल्यु. जे माटे राजा तमारी उपर अनुकूल थयो. ए राजा तुष्टमान थयो तो चिं तामणि रत्न सरिखो बे. अने रूठो तो यमसरखो . ए साथे विषय सेव शो तो दिसंपदा पामशो. तेमाटे तमो चिंता म करशो, एवा गुणवंत न रतारनो संग मलवो उर्लन ने. एहवू सांजली ते व्यवहारीयानी स्त्री बोली. अहो ! दासी ए सर्व योग जलो मव्यो पण अमो बीजो जरतार न वांबीयें. अमो शीयल राखवाने उजमाल बीयें. यद्यपि राजा रूतो थको अमारा प्राण ले, तो ते प्राण त्याग करगं, पण शीयल नहि खंमीयें, बंदी खाने नाखे तो ते सहन करियें, पण परपुरुष तो जो इंसरखो होय तो पण तेने अमे इलिये नहि. एम कही ते दासीउने निर्घाटन करी काढी मूकी. ते दासीयें जश् राजाने कयुं. ते सांजली राजा कहेवू उःख पाम्यो, ते कहे . जेम तप्त नदीने तटे माटुं तडफडे, क्यांय शाता न पामे, तेम राजा कामातुर थको क्यांय रति न पाम्यो. नीरागी निष्कामी जे पुरुष ने ते मानने संथारे सूता थका पण सुखिया बे, सुखें निश करे . अने कामी जीवो हंसरोमनी तलाश्मां सूतां थकां पण दुःखीया बे. तेमने निश नथी प्रावती. ते राजाने एक रात ते वर्ष समान निर्गमी पडी प्रनातें सर्व शृं गार करीने ते स्त्री पासे आव्यो. ते टाणे ते स्त्रीनए राजाने प्रणाम न कीधो, तेम सामुं पण न जोयुं. राजा तेहy रूप देखीने मोह पाम्यो एह Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंऽ अने गुणसागरनुं चरित्र. वे समये कोश्क कुलदेवी हती ते त्यां विरु रूप करीने आवी. तेना मस्त के केश पीला, बिलाडीना जेवी मांजरी अांख, खरना सरखा दांत, उठना सरखा होत, कपिमुखी फुटी नासिका, तुल अंगुली, रागी पुरुषनो राग मटे एहवा रूपें आवी ते देखीने राजा विस्मय पाम्यो. राजानुं कुशी लपणुं जाणी नलंनो देती तेने केहवा लागी के, राजकन्या सरखी तहारा घरनी पटराणी तेने मूकीने तुं ए मध्यम स्त्रीउनी उपर गुं राचे , मान अपमान, कीर्ति अपकीर्ति, पात्र अपात्र कांश जोतो नथी ! धिगू ता हरा विवेकोतपणाने ! एहवं तेहy बोलवू सांजलीने राजा अत्यंत ला ज्यो. वली देवी बोली के, ए स्त्रीने पोताने घेर पहोचाड, नहितो महा दुःख पामीश. एवं सांजली राजा आश्चर्यवंत थ जोइ रह्यो. एदवे समये उद्यानने विपे सूरसेन नामे ज्ञानवंत मुनि श्राव्या. ते जाणी परिवार सहित राजा अने विनयंधर शेठ तथा तेहनी चार स्त्री ते सर्व साधुने वांदवा याव्या. राजा पण हर्षसाथें गुरुने वांदीने वेगे. कर्मक्त शनी हरण करनारी एहवी झानीमुनियें देशना दीधी. तेवार पड़ी अवस र पामीने राजा विनयेंकरी मुनिने पूबतो हवो. हे प्रनो ! विनयंधर शेठ देवांगनाथी अधिक रूपवती एहवी स्त्रीयो केम पाम्यो ? बीजा पुरुषो एहवी रूपवती स्त्री केम नथी पामता ! ए शे कर्म विशेषे ? एह राजायें पूयु, त्यारे नगरना लोक तथा ते विनयंधर शे न अने तेहनी स्त्री ते सर्वे एकाय मने थइ पोताना नवनां स्वरूप सांज ले ले. जेम आषाढो मेघ उमाह्यो देखीने मोर हर्षे, तेम सर्व हर्ष पाम्या. तेवारे गुरु कहे . हे राजा ! सुरूप कुरूपy कारण ते सर्व पूर्वनवनां न पाज्या कर्म ले. अने सुख सुःख पाम ते पण पूर्व नवना कर्मोपार्जन थकी ज जाणवू. ते कर्म तत्त्ववंत, ज्ञानवंत पुरुषं वे प्रकारनां कह्या जे. गुनकम शातासुख पामे, अने अगुन कम अशाता ःख पामे. माटे सांगल. हेरा जन्! ए विनयंधर शेग्नो पाउला नवनो अधिकार तुमने विस्तारें करी क हुँ . पूर्वे गजपुरनेविषे विचार धवल नामें राजा हतो. एहवे समये ए राजानो कोइक वैतालिक हतो, ते उदार सार एवा उपगारनो करणहार हतो. ते कोइ पण पुरुषने इष्ट अन्नें निरंतर जमाडीने पनी पोते नोजन करतो हतो. एवी रीतें सुख जोगवता त्यां नत्सर्पिणी कालनेविषे नवमा Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जिनेश्वर तिंक वननेविषे काउसग मुज्ञयें रह्या हता तेमने ते वैतालिक देखतो हवो. ते प्रनु केवा , जेमनुं रूप निरुपम ,जेनी उपसमता गु णनी बराबरी अथवा मर्यादायें बीजो कोई आवी न पहोचे, जेमनुं तप प ण पुष्कर जे.एवा मुनिने ते वैतालिक नाव नक्तियें करी स्तवतो हवो ॥१०॥ हवे ते वैतालिकनी स्तवनानुं कवित काव्यरूपें कहेले. “कटिरसमामृतकुंभ तुंमनयनश्रीबंधुर ॥ वपुरे प्रगटितधर्मकर्मतरुनंजनसिंधुर ॥ नासुरविमल विशालनालविजितार्यममंमल ॥ कमलसुकोमलचरणरेणुपावितनूमंगल ॥ ब्रह्मेश्चंप्रमुखसर्वदेवमस्तकमुकुट ॥ जयजय जिने नुवनानिमतकामितपू कामघट” ॥ १ ॥ अस्यार्थ:-हे प्रनो ! तमे समता अमृतनो कुंम बो,मु ख नयननी शोना अति सुंदर डो. अहो ! जेणें प्रगट कीधो जे धर्म ते कर्मरूप तदने जांजवाने, देदीप्यमान हस्तिसमान . तथा निर्मल विशाल ने नाल कपाल जेहनु, जीत्युं ने सूर्य मंगल जेणे, कमलनी पते सुकोमल वे चरण जेहनां, चरणना स्पर्शथी पवित्र की, जे नुमिमंमल जेणे, ब्रह्मा, इंश, चं, रु, प्रमुख जे देव तेहथी अधिका, अने ते सर्व देवोने विषे मुकुट समान एवा तमे बो. अहो जिनें! तमो जयवंता हो. तमे जगत् जनने वांबित कामित पूरवाने कामकुंनसमान बो. ॥ १ ॥ एम स्तवना करी जिनेश्वर नपरे बदु मान धरतो, जिनेश्वरनी नावना करतो ते वैतालिक घेर गयो. जोजन काले तेहने घरें तेहिज प्रनु अाहारने अर्थे अाव्या. ते प्रनुने देखी वैतालिक हर्षवंत थक्ष प्रचने वांदिने सरस मी आहारें प्रनुने प्रतिलानतो हवो. मनमां हर्ष पाम्यो, जे धन्य ने मु कने के, जेमाटे में आज प्रनुने प्रति लान्या. एम चिंतवतो हवो. ते समयें आकाशे देवनि वागी 'अहो दानमहोदानं' एहवा शब्द थया, बंदिज न बिरुदावलि बोलता हवा, नर अमर स्तुति करता हवा. एवो प्रत्यक्ष सुपात्र दाननो महिमा देखीने ते वैतालिक त्यां समकितधारी थातो हवो. अनुक्रमें ते सुपात्रदानें धन वावरी, गुनध्याने काल करी, प्रथम देवलोकें देवता थयो. त्यां देवांगनानी साथे घणा देवता संबंधी जोग नोगवी तिहां थी च्यवी ते जीव ताहरा नगरने विषे व्यवहारीयानो पुत्र, विनयंधर कुमर महा रूपवंत, पुण्यवंत थयो. ते सुपात्र दानना फलथी विनयवंत, यशवंत, कि र्तिवंत, सर्व कलायें कुशल एहवो थयो. दान ते पुण्यरूप वृदनुं सुबीज डे, दा Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. աս न ते पापरूपया सर्पने दमवाने मंत्राक्षर बे, दारिरूपिया वनने दहन क रवाने दान ते दावानल समान बे, दुर्भाग्य रूपीया रोगनुं औषध बे, स्व र्ग तथा मोहमंदिरे चडवानुं पगथीयुं ने तेमाटे जेम श्रीवीतरागें कह ले, एवंज विधिपूर्वक सुपात्रने दान देवं, तेथी एवां मोटां फल इह लोकें पा मे. एवो मुनियें, राजा बागल विनयंधर शेठनो पाउला जवनो संबंध कह्यो. हवे ते शेवनी स्त्रीजना पूर्वजव मुनि कहे बे. हे राजन् ! एहनी स्त्रीनां उदार चरित्र ते सांजलो. ए नरतत्रने विषे सर्व लक्ष्मीनुं स्थानक एवं साकेत पुरनामें नगर ले. तिहां शत्रुनो कयकारी एहवो नरकेसरी राजा होतो ह वो. कमला एटने लक्ष्मी जेम विष्णुने वल्लन बे तेम ते राजाने वल्लन ए कमसुंदरी नामें राणी होती हवी. तेहने रतिनी उपजावनारी ए वी रतिसुंदरी नामें पुत्री होती हवी. ते राजानो बुद्धिवंत, लक्ष्मीवंत, वि द्यावंत, घणो वल्लन एवो श्रीदत्त नामनो प्रधान हतो. तथा सुमित्र नामें एक श्रेष्ठी हतो, अने ते राजाना सुघोष नामा पुरोहित हतो. ए त्रणे रा जाना मित्र बे. ते पोतपोतानी मर्यादा क्यारें पण मूके नही. ते त्रणेने एकनी लक्ष्मणा, बीजानी लक्ष्मी, अने त्रीजानी ललिता, एवे नामे स्त्रीयां हती. ते त्रणे स्त्रीयोना कृखथी उपनी अनुक्रमें एक बुद्धिसुंदरी, बीजी क द्वि सुंदरी खनेत्रीजी गुणसुंदरी ए त्रणनामे त्रण पुत्रीयो हती. तेमज चोथी रतिसुंदरी एवे नामे राजानी पुत्री हती. ए चारे लेखक शालायें ए aal aणे बे. ते जपतां थकां सर्व कलामां कुशल था. बुद्धिसुंदरी या दिक त्रण कन्याउनुं ते राजानी पुत्री सायें प्रेम बंधाणो, सखीपणां ययां. एम एकचित्तें विचरतां ते चारे यौवनावस्था पामी ॥ यतः ॥ विदुषांच कुलिनानां, धनिनां धर्मिणामपि ॥ ततस्तद्विपरीतानां प्रीतिः सादृश्यतो न वेत् ॥ १ ॥ ते चारे कुंवरी एक ठामे रमे, एकतामे सुवे, एकठामे विचरे. ते चारनो जाणे एक जीवज होयनि गुं ? एहवी प्रीति तेने मांहो मांहे थइ. ते चारे ज्यारें उद्यानने विषे रमवा निकलें त्यारें तेने रूपवंती, विद्यावंती, देखीने ए साक्षात् सरस्वतीनो अवतार बे के गुं ? एहवं लोको विचारे. एकदा विसुंदरीने घेर निःकलंका, निर्दोषा, पूर्ण चंड्समान, सौम्य मु र्त्ति, एहवी एक गुणश्री नामें साध्वी श्राहारने अर्थे यावी. तेवारें बीजी सखीयें पूयुं, ए ६ वेपनी धरनारी बाई कोण बे ? त्यारे ते वालीया Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ जैनकथा रत्नकोष जाग सातमो. नी बेटी कहे . हे सखीच! ए सर्व साध्वी मांहे शिरोमणि एवी श्वेतांबरी साध्वी बे. बालपणाथी मांमी एणें शीयलव्रत निष्कपटपणें पाल्युं, तेथी मारा गुरुपण एने मान आपे बे. माटे एहने जे देखे ते नर धन्य, जे एह dahयें करी नमस्कार करे ते पण धन्य, एहनां मुखनी वाणी सांजले ते पण धन्य. एहनी यथाशक्तियें याहारादिकें नक्ति करे ते पण धन्य एहवं ऋद्धि सुंदरियें कयुं. ते सांजली ते बीजी सखी पण यानंद पामीने ते सा ध्वीने वांदती हवी. तेवारे ते साध्वीयें ते चारे कन्याउने साक्षात् दाख साकर समान मीठी एवी धर्मदेशना दीधी. ते या प्रमाणे: रोहणाचल पर्वत समान एवो ए मनुष्यावतार पामीने निर्धननी पेते धर्मरत्न ग्रहवं. जे मनुष्यपणुं पामीने मृढ प्राणी विषयनी अभिलाषा कर शे, ते कल्पवृक्ष पामीने तेनी पासे मनोवांबित मागवाने बढ़ने एक को डी मागे ने. एवो मूर्ख जाणवो. तेमाटे हे श्राविका ! तमे समकित श्रं गिकार करी संयमने यादरो. जो मोह लक्ष्मी इवो तो चारित्र लइने मा सखमादिक उत्कृष्ट तप करो. जेणें करी जन्म जरा ने मरण जयथी निवर्त्तो. एहवा साध्वीना मुखरुपीया मृत कुंमथी प्रगट्यां जे वचनामृत ते पीने मोहरूपी विष बांकी ते सखीच विनयें करीने ते साधवी प्रत्ये विनंति करती हवी के, तमे तो संयमने त्र्यर्कतूलनी पेठे हलकुं जाणी य ह्युं वे, परंतु हे जगवति । श्रमने तो ए संयमनो नार ते मेरुथकी पण धिक जारवालो नासे बे. ते माटे गृहस्थावासें रह्यां थकां श्रावकना व्रत रूप योग्य धर्म जे माराथी पत्नी शके ते अमने यापो. तेवारे ते सा ध्वीयें तेमने विधिमार्गे सम्यक् धर्म थाप्यो. समकितनुं स्वरूप देखाड्धुं. त्यारे ते चारे स्त्री समकित पामीने कड़े से के. हे गुरुणी? बीजा व्र त पालवा श्रम असमर्थ बीये. पण एक चोथं व्रत तमे कहं ते कयुं ? त्या साध्वीये युं, स्त्रीउये परपुरुष त्याग करवो ने पुरुष परस्त्री त्या करवी. ते चोथुं व्रत सर्व व्रत मांहि अत्यंत उत्तम श्रेष्ठ बे, ते तमो या दरो. बीजां व्रत खंमयां होय ते कंचन कलशनी पेठे नांग्यां संधाय, पण ए चोधुं व्रत खंम होय ते मुक्ताफलनी परे जाग्युं न संधाय एवं बे. त्यार पी वली बीजा मोटका प्रारंभ पापहिंसादि पोते करियें नहि, अ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ५७ ने कोइ बीजो करतो होय तेहने शुद्ध बुद्धि बले करी निवारीये. एहवो नियम मुनि राजने मान्य जे. ___ए व्रत पाले तेहनी देवता चाकरी करे, तेहने शक्षिसिदि प्रसिह था य, तेहनां सर्व कार्य सिह थाय, तेहने दिन दिन प्रत्ये महा मंगलिक थाय, तेहने जल ते थल थइ जाय, एमज शत्रु ते मित्र थाय. अाग्न ते जल थाय, विष ते अमृत थाय, सर्प ते फूलनी माला थाय, सिंह ते शि याल थाय. एटलां वानां शीयल व्रत पाल्याथी थाय. कुलवंतनी स्त्राने ए व्रत घटे ले. एहवं साध्वीनुं वचन ते स्त्रीनने इष्ट थयु. जे रोगीयाने नोजन वहालुं होय ते वली वैये पण का, तेनी पेठे ते साध्वीनुं वचन सत्य कीधुं, एटने चोथु व्रत पालवू एहवो नियम ते बायें आदस्यो. त्यार पड़ी तेमने श्रीजैनधर्म आराधतां केटलो एक काल जतो हवो. ___ एवे समये नंदनपुर थकी चाजायें परदेशी लोकना मुखथकी रतिसुं दरीना रूपनुं वर्णन सांजली पोताना प्रधानने मोकट्यो. तेवारें रतिसुंदरी ना पितायें जाण्यु, जे ए कन्या भाग्यवंती जे. जे ए राजायें सामी मागी. तेवारे पिताये आदरसहित सादात् लक्ष्मीनी पेठे पोताना प्रधान साथें चंडाजाने परणाववाने पोतानी पुत्री सामी मोकली. ते राजायें नले दिवसे मोटा महोत्सवें रतिसुंदरीनुं पाणिग्रहण की .ते बाइसर्व कलायें सं पूर्ण दे अने चंडाजा पण सुव्रती शीयसवंत जे. ते संपूर्ण चंश्नीपे बे पदें पूरो ने. ते जेम चंइमा ज्योत्स्नानी कांतिये करी शोने, तेम ते चंराजा रतिसुंदरी कन्याये करी शोने ॥ १६१॥ __ एहवे समये कुरुदेशना राजा महेंऽ सिंहें जनजनना मुख थकी रति सुंदरी चंडाजाये परणी एम सांजलीने चंडराजा जणी कन्या क्षेवाने दूत मोकल्यो. ते दूतें आवी चंराजाने सनामध्ये कयुं, जे अमारो जे स्वामी महेंसिंह राजा तेणें एम कहेवराव्युं , ने कह्यु के के, पूर्वे पण तमारे अमारे पुरुषपरंपराये चिरकालनी परस्परें देम सुखकारी प्रीति ने ॥१३॥ सुजातनो वंश , तेनी बांधीजे ध्वजा ते यद्यपि वायरें करी कंपाय , पण सुजातनो सुवंश क्यारे पण हालतो नथी. तेहनी पठे सुजातिना पुरुष जे ने ते जो प्रिती होय तो विषम कार्य पण करे तेमाटे ते राजाये महारा Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4G जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. 66 मुखें तमोने कहेवरायुं ने के, तमोये नवी परऐली एवी जे रूपवंती रतिसुंदर ले, तेने जो महारी साथै परंपरानी प्रीति राखो तो महारी पा से शीघ्र मोकलजो. एवं दूतना मुखयकी वचन सांजलीने ते चंद्रराजा ये अंतरंगने विषे तो रोप धारण करतो, पण बाह्य वृत्तियें कांइक हसीने कयुंके, हे दूत ! सऊन नूत जे पुरुष बे ते कोणने वहाला न होय ? ॥ यतः ॥ मित्ती परोवयारो, सुसीलया खवं पि यालवणं ॥ दरकीण व एय वाया, सुयाण गुणा निसग्गेण ॥ १ ॥ " ताहरा राजायें ए युक्ति बात कही, कारण संत होय ते सऊनपणाथकी चले नही. बीजुं कार्य होय ते मने कहे, जे माटे यापवा योग्य वस्तु होय ते यापीयें, अने लेवा योग्य वस्तु होय ते लीजीयें; पण नारी मोकलवी योग्य कहेवाय न हि ने उत्तम परस्त्री जेवी पण योग्य नथी. महें सिंह राजानो स्नेह तो वचननी प्रतिपत्तिथी जाएयो. बाह्य गौरखें एवं पांमित्य देखाडवुं ते श्या कामनुं ? ॥ यतः ॥ वज्रंति मुस्कविहंगा, नेह विशेष बन्नदाणेण ॥ नेया ए बंधणं पुण, नन्नं सप्नाव नलियाई ॥ १ ॥ वायासहस्समश्या, सिले हनिनाइयं सय सदस्सं ॥ सप्नावो पुए सक्कु, कणरस कोडी विसेसे ॥२॥ तेवारें ते दूत उत्सुकताथी बोल्यो, हे राजन! तमे तमारी स्त्री आपो ! जो ते राजानुं वचन लोपशो तो जेम रोषवंत हाथी मर्यादा स्थंनथी तूटे, ने पी कोइने हाथ न यावे तेम ते राजा जो रूठो तो पढी तेने मना ववो मुश्केल थशे. तेवारे चंदराजा रोषवंत थइ त्रिवली चडावी दूत प्रत्ये बे, हे दूत ! जे पुरुष परस्त्रीलंपट बे, ते राजा नहि जाणवो पण ते ने लंपटी श्वान कहियें. जेहनी मातायें यौवनांध पणें कुशीन सेव्युं होय, तेहना पुत्र एवा कुपुत्र कुशीलीया उपजे रे दूत ! तुं नथी जाणतो जे पो तानी स्त्री कोइ मोकलतो हशे ? सर्प जीवतां कोइ सर्पना माथानी मणी लइ शके ? तेवारे फरी दूत कहे बे, हे राजन् ! पुत्र तथा चाकर हातां पण जो धन ने राज्य, रहेतुं होय तो ते राखीयें, तथा धन, राज्य स्त्री देतां पण जो पोतानो आत्मा रहे तो तेने राखीयें, पण पोतानो जी व जाय तेटाणे नारीने राखी तेपण श्याकामनी ? एटले ते राजा एहवो ब लीयो बे. जे ताहरो जीव लइने पण ताहरी स्त्री जे. एम दूतें कयुं, त्या रें चंद राजायें दूतनें गलहो दइ जातना प्रहार करी काढघो. त्यारे ते Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. दूते पण महेंऽसिंह राजानी पागल थावीने जेवीरीतें तेने क्रोध चडे, ते वी रीतें विशेषे वधारीने वार्ता कही. ते वार्ता सांजली महेंइसिंह राजा कल्पांत कालना समुनी पेठे दो न पामी, घणुं लस्कर हाथी घोडा, तेमज पायकना समुदायने साथें लइ ने ते चंद राजानी स्त्री लेवाने चाल्यो. ते समये ते चंझ राजा पण तेहने आवतो जाणी गज, अश्व, रथ, पायकरूप चतुरंगी सेना सहित पोताना देशनी मर्यादायें साहमो अाव्यो. तेवारे बे राजानां सैन्य सामा थयां. पो त पोताना प्रेख्या एवा सुनटें महायुद्ध संग्राम कीघो. दीनपणुं मूकीने शू रवीर पणें संग्राम करता हवा. हाथीयें हाथीवाला लडे, अस्वारे अस वार, रथीयें रथी, पालें पाला, एवा सत्यनीतिनां यु६ यातां हवा. एम युद्ध करतां महेंऽसिंह राजाना सेन्ये चंझ राजाना लश्करने जीत्यु. जेमा टे बहु समुश्ना जलमां नदीनुं जल केटलुक जीते ? हारीने नली जाय. ___ त्यारपत्री चंराजा कोप कर। सिंहनाद करतो रथे बेसी पोतानी सेना लाइ क्षणमात्र मांहे महेंऽ सिंहना सैन्यसाथें लडतो हवो. त्यां जेम सिंह गजघटाने उडावी नांखे तेम त्यां शत्रुनी सेना तेणें हावी. त्यारे महें इसिंह राजायें पोतानुं सैन्य नाग्युं जाणी पोते काल कृतांतनी परें निज प्राणने पण अवगणीने चं राजानी सामो आव्यो. त्यां याकरो संग्राम थयो, चं राजानुं लश्कर नातुं. तेटाणे महेंशसिंहें, चं राजाने गदा घा तें प्राकुल व्याकुल करी बन करी पकडी लीधो. नखं नलुं तें युद कीg. एम प्रशंसा करीने पोताना प्रधानने सोंप्यो. ॥ १५ ॥ ___ त्यारपती राजायें अंतेनरमांहे थकी नासती एवी रतिसुंदरीने ग्रहण करी, ते नारी ज्यारें हाथ आवी त्यारे तुष्टमान थइ चंराजाने मूकीने महेंसिंह राजा पोताने नगरे गयो. त्यां ते रतिसुंदरी प्रत्ये नोगनी प्रा र्थना करे ले के, हे सुंदरी ! ताहरुं अधिक रूप सांजलीने तुऊ नपरें मुझने अत्यंत राग उपन्यो. ताहरे निमित्ते में एवडो प्रयासमुं वद वधायुं, युद्ध कीधां, माणस मराव्यां. तेमाटे हे प्रिये ! सांप्रति तुं महारी उपर प्रसन्न थ इने माहरी आशा सफल कर. उर्लन एवं जे कुरु देशनुं राज्य तेपण तुं पामी. एह सांजली रतिसुंदरीयें चिंतव्युं के, ए कामांध राजा,माहरा चित्तना अनिप्राय जाण्याविना घणा जीवोनो अनर्थ हेतु थयो. तेमाटे कष्टने Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. भपजावनारो एवो ए मुष्ट राजा ने तेनी आगल माहरूं शील ते ढुं केम राखीश. ते माटे हमणां ए कामीने ढुंकारो कही कामनो विलंब करूं. ए हवं चिंतवीन रतिसुंदरी राजाने कहे जे के, हे राजन् ! तुमने माहरे विपे राग घणो ने, तेथी कांशक तत्त्व हुँ तहारी पासेंथी मागु बुं, ते तुं आप. माह रुं वचन अन्यथा न करीश. तेवारे ते कामी राजा कहे . माझं जीवितव्य जो तुंमागे तो ते पण ढुं बापुं. त्यारे रतिसुंदरीयें कह्यु, ढुं ताहरु जीवित व्य नथी मागती, पण एटटु मागुं , जे चार माससुधी माहीं ब्रह्मव्रत तुं न नांगीश. पली तुं कहीश ते ढुंसांनतीश. ते सांजलीने राजा कहे ,जे जीवितव्य आप, ते सुलन पण चार मास सुधी तहाराथी पडखवं ते महा उर्तन , तोपण तारी प्रार्थनानो नंग हूं केम करूं ? एम कही रतिसुंदरीने कन्याना अंतःपुरमा मूकी. पली रतिसुंदरी पण त्यां रहेती थकी स्नानादिक शरीरसंस्कार वर्जी दश् यांबिसादिक तीव्र तपें करी शरीरने शोषवती हवी. तेथी चार मासमां तेना गाल बेसी गया, मस्तकें तेल न घाल्युं तेथी खूरवा केश थइ गया, लोही तथा मांसरहित शरीर थयुं, मात्र हाडकें चामडे वीटयुं बे, काले वर्णे थइ, अति बीनीत्स रूप थइ, दवें बाली जेहवी कमलिनी होय तेहवी था. चार मास मांहे कांक डा दिवस हता ते वखतें एकदा तेने राजायें दीठी, त्यारे विस्मय पामीने राजा पूछे डे. हे रतिसुंदरी ! तुजने कांक राग उप नोबे, अथवा मननी वेदना ? जे माटे ताहरा शरीरना एवा हवाल के म थया ले? ताहरी कंचन सरखी काया हती ते कोयला सरखी थइ गजे. तेवारे रति सुंदरी कहे . हे राजन ! में जे वैराग्यथी व्रत आदयुंजे, ते प्राण जाय तोपण पालवं. तेणेंकरी धुर्बली . एहवू सांजली राजा क हे के, तुं एहवी झदि संपदा पामी , तो तुमने शामाटे वैराग्य नपन्यु ने ? एहवं राजायें पूब्युं, तेवारे रतिसुंदरी कहे. जे ए शरीरे जे व्रत पाली ये तेहिज सार . ॥ यतः ॥ देहस्य सारं व्रतधारणं च ॥ इति वचनात् ॥ ॥ २० ॥ यतः ॥ रुधिरमांसमेदोस्थि, मलमूत्रादिपूरितं ॥ नवधार कर विस्त्र, रसक्तिन्न मिदंवपुः ॥ १ ॥ यर्थः-ए शरीर लोही, मांस, मेद, अ स्थि मलमूत्रादिकें नघु जे. रसेंकरी क्विन्न थयेलु ए शरीर . ए शरीरने म र्दन करावी करावीने स्नान, शणगार, अन्यंगन, अन्न पानादिकें पोषियें Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ६१ तोप दुर्जननी परें विक्रिया करे, यंते आपणुं याय नहि. सार वस्तु जे पटकुल सुवर्ण मणि रत्न इत्यादिक जोगांग बहु मूल्य वाली चीजो ने ते श्रमेध्यनुं घर एवं जे ए शरीर तेहने फरशे एटले ते पण अल्पमूल्यवाली थाय. तेमाटे हे राजन! ए शरीर ते पाप रूप बे, तोपण मोटो दोष ए बे, जे ए निर्गुण शरीरें गुणाढ्य पुरुष हता तेपण मुंजाया बे. एवीरीतें शरी रना मोहनो राग उतरे एवां वचन रतिसुंदरीयें कह्यां, पण ते राजाने जा व्यां नहि, कामानिलाप न मढ्यो घणा मेघ बरसे तोपण मगशेली पर जेम न चेदाय. तेम ते राजा नेदाणो नही. एवं सांजली राजा हसीने कहे बे. हे चतुर स्त्री ! तुं ताहरो निग्रह तो पूर्ण कथ, पढी घणुं स्वस्थ साजी ताजी यश. एम कही हसीने पोताना स्थान गयो. एटले नियह पूरो थयो चार मास वही गया. पढ़ी राजा कामोत्कंग सहित श्रावीने कामना वचन कहेवा लाग्यो के, हे स्त्री ! ताहरा मुख कमलनी सुगंधने लीघें जमरानी पेठे हुं मोही रह्यो बुं. माटे तुं हवे सरस आहार करी शरीरनी शोना राख. एह सांजलीने रतिसुंदरी कहेले. हे राजन् ! हुं जो सरस आहार पा रणे करूं, तो महारे शरीरे चुंक, शूल वमनादिक वेदना याय, सर्व शरीर सांधे सांधा त्रूटी जाय. तुं तो महारा शरीरनो संग करवाने उत्सुक हो, ते सत्य पण टुटुं घोडो मरवा पड्यो तेना कोई पांच रूपैया आपे ? एम कयुं तोपण ते राजानो कदाग्रह जे कामरूप हुर्बुद्धि ते न गइ एम कही रतिसुंदरी मदनफल ? (गेल) खास्वाद । तेनुं वमन करी, देह दुर्गंधमय कधी, काय च करीने राजाने देखाडीने कयुं के, हे राजन् एवंत्रा शरीर मांहेलीकोरे पवित्र बे. ते माटे हे राजा तुं बालयकी पण बाल बो. श्वान समान बो. जेमाटे तुं वम्यो थाहार खावाने इबे बे. ते सांजली राजा कहे बे, केम ढुं वया खाहारनो खानार बुं ? के हुं मूर्ख बुं ? एहवो ही यो बुं ? त्यारें रतिसुंदरी मरण अंगीकार करी वे परवाइथी राजाने कहे बे. हे मूढ तुं नथी जाणतो ? जे पुरुष परस्त्रीने इबे ते अधमनर एग व म्या आहारना खानारा जाणवा. तेवारे राजा कहे बे, ते सर्व साधुं पण ताहरा शरीरनो ढुंरागी बुं. तेवारें रतिसुंदरी कहेने. माहरी कष्टमां पडी 5 गंधमय दुर्बल एवी काया उपर एटला बधा रागनुं कारण शुं बे ? तेवारे रा Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जा कहे . तारुं शरीर उर्बल ले पण तारी चकुर्नु मूख्य नथी, एटले ढुं ता हरी चढु उपर मोह्यो . एबुं सांजली ते बायें शीयल राखवा माटे बी जो उपाय को बुद्धिमान याव्यो तेथी शीयल पालवाने शरीरने पण तण मात्र गणीकांश सेवामां गण्यु नही, अने बरी करी चदु उपाडी यांख्यों काढी राजाना मुख आगल मूकीने बाद कहे.तमने जे नेत्र वाहनांचे ते ए ग्रहो बाकी शरीर तो पुर्बल ने ते पापनुं हेतु . तेणे चा काढी तेथी राजा खेद पाम्यो. ते स्त्रीनी उपरथी राग उतरी गयो. त्यारें फुःख पामीने राजा तेने कहेले के, हे सुंदरी ! ए कष्टकारी, दारुण, उष्ट कर्म तें झुं कीg ? ए तुमने अने मुझने बेने उःखदायी थयु. तेवारे रतिसुंदरी केहे जे. एथी तमने अने मने प्रा नवें तथा परनवें आरव्यु काढतां सुखदाइ थयु, ताहरो राग विकार मट्यो,अने महारुंशीयन पण रघु. जेम माग रोगीयाने कडुन औषध ते गुण करे तेम में ए दारु ण कर्म कीy, तेथी ए तारो रागरूपीयो रोग मट्यो. हे राजन् ! परस्त्रीनो संग जे करे तेहने माननी हाणी, आयुष्यनी हा णी, धननी हाणी, एटलुं फल इहलोकें पामे. अने परलोके उरखी दौर्नागी थाय, कायरपणुं तथा कोष्ठ नगंदरादिक रोग पामे. तथा नरक गतिमां जाय. त्यां धगधगती लोहनी पुतलीनां अलिंगन सहन करे. तथा तिर्यंच पशुश्रा दिकनी गतिये जाशे. त्यां तेने लोक निर्माबन कर्म खोज करशे, परवशप ग गर्दन, वृषन थइनार वहेशे. इत्यादिक घणां दुःख पामशे. एटलां न रक तिर्यचनां मुखथी आपणे वेदु बुटां एम जाणजे. ए आपणने गुणथ यो. तेमाटे इह लोकना हितने अर्थ में ए दुष्कर्म कीईं. वली रतिसुं दर। कहे जे के, माहरु रूप जोवाथी ताहरा आत्माने पापनी प्राप्ति था,ते थी हुँ तुमने झुं मुख देखाडु ? तेमाटे हुँ अांधली थइ पण ताहरा आत्मा ने उर्गतिमां पडतो राख्यो एवी देशना रतिसुंदरीयें दीधी. ते विषय विकारने टालणहारी एहवी वाणी महेंइसिंह राजा सांजली ने कहे . हे बाइ! तमे सर्व सतीनमांहे शिरोमणि बो, तुं युक्त अयुक्तनी जा एनारी बो, ढुं निरंतर महा अपराधी, महा पापी, चं, तेमाटे हे सुंदरी ! मुझने युक्त होय ते आदेश द्यो. तेवारें रतिसुंदरी कहे जे. जो तमे त मारा यात्मानुं हित जाणता हो, परनवना उःखथी जय पामता हो, तो Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ६३ परस्त्रीना नोगनो त्याग करो. जेथी तमारी नवनी भ्रमणता टले. तेवारे ते राजायें पापनो पश्चात्ताप करीने मनमांहे दाऊता थकां अंतरंग प्रेमेकरी परस्त्रीना नोगनो नियम लीधो. ते रतिसुंदरीने गुगीनी पेठे मानतो ह वो. त्यारपडी ते राजा मनमां दुःख धरवा लाग्यो के, में अनार्य पापीयें ए महा सतीने अनर्थ निरपराध कष्ट उपजाव्यु. हे प्रनु ! हवे एहनी चदु केम आवे ? एवं विचारी शासन देवीने संजारतो हवो ॥ २२५ ॥ ॥ कायोत्सर्गे स्थिता पंचनमस्कारपरा सती ॥ अस्यार्थः-ते वखत ते रतिसुंदरी चढुनी वेदना अण वेदती, एकाग्र मनें वीतरागनुं ध्यान धरती हवी, एटाने शासन देवीनु आसन कंप्यु. अवधिज्ञाने सती, महा कष्ट जा णी विमाने वेसीने आवी ने ते सतीनी वेदना टाली, चदु नवी आपी, तत्काल तेने नवां नेत्र कीधां, तेनो महिमा वधारीने देवता पढ़ी नाटक करी सतीने चरणे नमीने स्तुति करता हवा के, हे सतिमाहे वडेरी, पृथ वी मांहे सबदि रूप प्रतिबोधन। देनारी, सत शीयलनी धरनारी,त्रण जग तमां दीपिका समान, एवी तुं जयवंती हो. राजा तेने देव देवीना टुंद स्तुति करता देखी, शीयलने प्रनावें नवां नेत्र आव्यां देखी, पोतें हर्षरूपी आंसुयें बार्तिरूपिणी अग्मिने समावतो पोते पण शीयलव्रत पालवामां दृढ थातो हवो. सतीने चरणे नमीने, पो तानो अपराध खमावतो हवो. ते देव देवी वंदना करी गया पनी रतिसुंद रीने स्नान, मऊन, नोजन करावी, वस्त्रानरण पहेरावी, घणो सत्कार सन्मान दइ, पोताना प्रधान साथे तेने रथे बेसाडी, ते बाश्ने नंदनपूरे मोकली. वली राजाये प्रधान साथे एवं कहेवराव्युं जे चंडाजाने कहेजो के, ए माहरी बहेन , ए मारी धर्म गुरुणीने, ए महा सती ,माटे एनी घणी रक्षा करजो. तेमां तमो कांइपण शंका न लावशो. तथा में तमारी उपर उष्टपणुं चिंतव्युं, यु६ कीचूं, ते तमो दमा करजो. वली तुं पण ध न्य बो, जेना घरमध्ये एहवी सादात् लक्ष्मी सरखी सती नारी जे. अने ते ने तुं पाम्यो बो. एवां वचन कही राजाने प्रणिपात करजो. एवं कही प्र धानने साथे वसावा मोकल्यो. पनी ते प्रधान नंदनपूरे पोहतो, चंराजाने मल्यो. जेम महेंऽसिंह राजायें कह्यु हतुं तेम तेने कहीने ते रतिसुंदरी चं राजाने सोंपी. त्यारे राजायें स्त्रीनुं कुर्बल शरीर देखी, ते प्रधाननां वाक्य Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सानलीने ते चंद्राजा अंतरंग चमत्कार पामी, सतीना गुण जाणी, हर्ष पामी तेने आदरतो हवो. पडी ते रतिसुंदरी साथें विषय सुख नोगवतो धर्मराज्य पालतो हवो. अथकाव्यं ॥ प्रवर्तिनीनां वचनं दधानया, श्रीजैनधर्मे किल सावधानया॥ अपालि यत्नाइतिसुंदरिस्त्रिया, सबील धर्मों निकलंकया तया ॥ १ ॥ त्यारपनी ते रतिसुंदरी, प्रवर्तिनी जे साध्वी तेहनां वचन हृदयमां धरती हवी. एक श्रीजैनधर्म मध्ये सावधान पणें रहेती शुरूव्रत पाली, आत्मा ने निर्मल करती हवी. एटले साधुयें ए रतिसुंदरीनो अधिकार कह्यो॥१॥ हवे बीजी बुद्धिसुंदरी तेनो अधिकार कहे जे. ते प्रधाननी पुत्रीने पर गवा माटे बीजा घणा राजादिकें प्रार्थना कीधी, पण तेना पितायें तेने सुसीमा नगरीनेविषे सुकीर्ति राजाना प्रधानने परणावी. जेम तारामंमल नो अधिपति एवा पूर्ण चंऽनुं बिंब देखी कमलिनी नन्नास पामे बे, विकस्वर याय , तेम ते जरतारने पामीने बुझिसुंदरी हर्ष पामती हवी. एकदा समये राजा रयवाडीयें जातां प्रधानना घर आगलथी निकल्यो. तेटाणे तेणे निजमंदिरमा क्रीडा करती, लावण्यामृतनी वाव्य समान, मृगादीस मान एवी महारूपवंती बुद्धिसुंदरीने दीती. त्यारे ते राजा परनी परें त्यां थंनी रह्यो, रूपरसमय थयो, राजानुं मन त्यां लागुं, तन्मय थयो, अति कामातुर थयो, राजायें घेर ज पोतानी दासीने मोकली. ते दासीयें त्यां जश्ने कयुं. राजा तुऊने ले . पटराणी करशे, घणा राज्यनी तुं स्वामि नी यश. एवां कुशीत वचन दासीनां सांजली ते दासीने धक्का द अप मानी काढी. त्यार पनी कार्य करवाने समर्थ एवो निलऊ ते राजा वग र गुन्हे स्त्री सहित ते प्रधानने बंदीखाने नाखतो हवो. कांई एक अणु जेटलो वांक काढ्याविना कामातुर थइ दगो दीधो. तेवारें प्रजालोक तथा पोताना राज वर्गी नंबराव लोक, सर्व मलीने तेणें राजाने विनंति कीधी के, हे राजन् ! तमे एवो वगर गुन्हे अन्याय न करो. अन्याय करशो तो ए हनी स्त्री राखशो, पण प्रधाननें तो मूको. एवी पुकार उंचे स्वरे कीधी. ___ त्यारे राजाये कह्यु, तमे जामीन थाउलो ? ए पोतानी स्त्री मुफने श्रा पशे तो हुँ मूकुं. तेवारे प्रजा लोक सहु राजानो अन्याय नाव एटले कामा तुरता जाणी विचारीने पोताने घेर गया. त्यारपडी ते राजा, अंतःपुरमां Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ६५ जइ बुझिसुंदरीने कहे जे, केम तें दूतीने निघ्बी काढी ? तो बाटली सौना ग्यता उपरांत तुं हुं अधिक मंजरीने ले .मारी आझा जो तें मानी हो त तो ताहरा जरतार तथा तुं एवी आपदा नहि पामत. पोतानी अर्थसि दि थाय त्यारे अति चंम दंम कोण करे ? हे मानिनी ! जो तुं अतुल मान ने इछे , तो माहरी आदेशकारिणी था. मुफ नपर स्नेहधरीने मान्य कर. एवा ते कामी राजानां वचन सांजलीने संवेग रंग वाली पूर्ण तरंगिणी समान वागीयें करी राजाने प्रतिबोधवाने बुझिसुंदरी कहे . हे राजन् ! ए परस्त्रीगमनरूप अकार्यनेविपे हीन जाती वाला जे मूर्व होय ते गम न करवाने इले, पण तमारा सरखा कुलवंत पुरुपने एह, अकार्य पाप बबुं न घटे. विषय रूपणी अग्नियें तप्या होय तोपण संत पुरुष पोतानी मर्यादा न मूके. जेम प्रबल वायुयें खोनाव्यो होय तो पण समुह मर्यादा न मूके. हे राजन् ! जे धर्ममार्गेज प्रवर्ने ते राजाने राजऋषि कह्या ने. अने जे राजा अन्याय करे, अधर्म मार्गे वर्ते, ते राजा नहि. परंतु तेने तो राक्षस कहियें. राजाने पोताना देशनी प्रजा जे , ते तेने पुत्र समान ने, ते पुत्र पुत्री उपर न्यायवंत राजायें कामराग करवो न घटे. तारा अंतःपु रने विषे कुलवंती एवी घणी राज्य पुत्रीयो , ते माराथी पण अधिक रुपवंती , तो तुं मारा सरखी हीन स्त्रीनीला करतो गुं लाजतो नथी ? जेणें परनारीनो प्रसंग कीधो तेणें प्रताप रूपिया वृदना मूलमां अग्नि मूकी एम जाणजे. तारा निर्मल कुलवंशने अपजस मय कलंकी एवा चश्मानी पेकां तुं मलिन करे ले ? एवां वचन बुद्धिसुंदरीयें राजाने उक्तियुक्तिसहित कह्यां, पण ते मूढबुद्धि कामी राजाना चित्तमांहे न रह्यां. जेम नया घडा नपर पाणी रेंडीयें, ते वही जाय तेम तेना वचन राजाना कानमांनाव्या. तेवारे राजा हसीने कहेले. हे सुंदरि ! ए सर्वे ढुं जाणुं लु, पण स्नेहना रसीयाने ए वितर्क वार्ता कहेवी घटे नहि ॥ यतः ॥ जनुं गतिहि अतुं चश्मर, तुबविपाण पीमर खिऊई॥ जनुं जुत्तु अजुत्त जोश, जई नेह हंता सुजालं जलिदिऊई ॥१॥ ते वेला बुदिसुंदरीये राजाने अतिकामी जाणी, कालविलंब अटकलीने हमणां ए समये जे युक्ति करवी जोश्ये ते बुद्धि पूर्वक धारीने राजा प्रतें कह्यु के, हे राजन ! मारी ए प्रार्थना डे के, त मारा चित्तने विपे तमे मारा उपर नोगानिलापनो निश्चय कीधो. तो ज्यां Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सुधी मारे नियम , त्यां सुधी हे सुलक्षणवंत, तमे पडखोः ॥ यतः॥ जो कुण नियमनंगं, जो वि य कारे कहवी सुब्बुद्धी ॥ ते दोवि हुँति उह लरकं, जायणं नीम नव गहणं च ॥ त्या स्त्री साथें मार्दवपणुं राखीयें तेज वशीकरण, मूल डे, एवं जाणी राजायें अनिबक पणे तेनुं वचन मान्युं. त्यारें बुद्धिसुंदरी कांक स्वस्थ चित थश्ने, राजाने प्रतिबोधवानो नपा य हृदयमां चिंतवती हवी. एम गीत विनोदें करी राजाने रीजवती पोता नो समय निर्गमती हवी. एक वरवते पोतानी बुदिये अडदना पीटं करी कांकरवानुं धारयं अने ते दासी पासे लोट अणावी तेनुं प्रतल्खं करी पोनाना सरि रूप निपजाव्युं तेने पंच वर्णनी विचित्रतायें चित्रित कीg, पुस्त कर्मे करी प्रशस्त कयुं, ते प्रति बिंब राजाने देखाडीने बुद्धिसुंदरीयें राजाने कह्यु, हे स्वामी, ढुं एवी बुं के नहि ? राजा पण प्रतिबिंब जोइ, एनी क लानी चतुराई देखी घj रीज्यो. अहो ! शरीरने विपे एनी वर्णनी रचना, तथा केडना लांकनपर हस्तनुं लाघव ! जे जाणियें ए हसे , अथवा जोती रही , एवीए प्रतिमा तारा जेवी . अथवा जाणीये ए तुंज साक्षात् हो यनी गं ? एवी देखाय ले ॥ २६ ॥ हे सुन्नु ! एटले नली नृकुटीनी स्त्री! ए स्वरूप प्रतिबिंब निपजावीने तें नलु विज्ञान देखाड्यु, तथा जेनां चि नमां तुं वसी बो, तेने ए स्वरूप दी घणुं सुख नपजावे. त्यारे बुद्धिसुं दरी कहे . ए प्रति विंब तमने सुख नपजावे . तो एने घरमां राखो, अने मुफ अधमने मूको. जेमाटे हुँ तमने इह लोके अने परलोके दुःखनी देनारी . त्यारे राजा कहे . हे प्रिये ! तारा शरीर रूपी रकुयें करी हुँ बंधाणो बु. जो ढुं तुमने मूकुं, तो मारा प्राण ससलानी परें शीघ्र जाय. ते सांजली बुद्धिसुंदरी कहेजे, हे राजा ! तमे सांजलो, ए प्रतिमा मा राथी अधिकी बे, ए मदनमय कामरूप , अने हूं तो मदनरहित बुं. एम कही राजाना मुख बागल ते मदनमय मूर्ति मूकी. त्यारें राजायें री श करीने तेने एक लात मारी एटले ते प्रति बिंबनो शीघ्र जंग थयो. तेवारें तेना पेटमांहे विष्ठा प्रमुख माठा खराब पुजल जे नयां हतां ते नीकल्यां. ते जोश्ने राजायें कह्यु, ए बालने पण निंदवा योग्य एवी ए चेष्टा तें शी कीधी बे ? त्यारे स्त्रीयें कह्यु, ए मारुं प्रतिबिंब में मारी इजायें नीपजाव्यु ने. ए नारी मुझसररवी जे. अथवा ढुं एथी हीणी . एना शरीर करतां Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ६७ मारा शरीरमा घणी दुर्गंधता बे. ए शरीर अशुचिमांथी उपज्युं. बे. त्यार पढीची रसेंकरीनेज वध्युं बे. तेथी अशुचि पुनलें नखं बे. ए मांहेथी निरंतर बार द्वारे चिने स्रवे बे. जे माटे जल अथवा श्रग्निथी शोध्यं कुं सुवर्ण, रुपुं, रत्नादिक तो शुद्ध थाय बे, परंतु अनेक संस्कार करियें तोप या शरीर शुद्ध न थाय. ए शरीर बाह्यने अन्यंतर विपरीत बे. ते माटे ह्या प्राणी जे एनी काग, शियाल, गीध, पंखी थकी रक्षा करे बे, हा धोवस्त्रादिकें ढांकी साचवे बे, पण ए कोह्या कलेवरने खर्थे कोल माह्या पुरुष विपयादिसेवी अन्यायें अकर्म कररी नरक गतिना संचकार या पे ? तिलमात्र मांस सुखने अर्थे जेम मालुं महा दुःख पामे, तेम तुं पल हे राजा, ए शरीरना जोगनो प्रासक्त यश तो मेरुथी अधिका नरक ति च गतिनां दुःख पामीश. जेणें पर दाराना संग वर्ज्या, तेणें दुर्गतिनां द्वार मुंद्यां, ढाक्यांने ते यापदानी परंपरानो पार पामी श्रेष्ट सुखनी संपदा पाम्यां तमारा सरखा उत्तम सऊन पुरुषने परस्त्रीसंग सुखदाइ न होय. अथवा न्यायें करी परस्त्रीनो संग जे करशे, तेने नरकमां अनिथी धखखती ज्वालाने मूकती एवी लोहनी पुतलीना खालिंगन सहेवां पडशे. तथा जोगी पुरुषनां जोगनां सुख केटलोक काल रहे. जोगनां कुल मात्र सुखी नरकनां यांकरां दुःख पल्योपमसागरोपम लगें सहेवा पडशे. हे राजा, ताहरा राज्य अंतःपुरमां गुं रूप, कुल, जातें हीणी स्त्री ने ? हे राजा ! तुं मदोन्मत्त यइने मुऊने अधिकी रूपवंत देखे ले ? जेथी तुं एवो हवात्कार कदाग्रह बालकनी पेठे हजीपण मूकतो नथी ! पण ए शरीरमां तो सर्वत्र विष्ठा जरी बे. सर्वे स्त्रीउ न्हाई धोई बहार पवित्र देखाय बे, कोठामा हित सर्व अनिष्ट युं छे. जेम कोइक बालक होय ते एकांगे कुंमाना जलमां चंड्मा देखे तेनेज प्रधान चंश्मा करी जाणे ते. तेम का मी पुरुष काम दृष्टियें जे जे नारी देखे बे, त्यां त्यां ते कामानिलापने बे a. कामनोज सार जाऐ बे. वो प्रतिबोध सहसा कारे सांजली ते राजा संवेग पामीने कहे बे. हे सुंदरी ! तें साधुं कयुं. हवे में तत्त्व जाएयुं. हे सुंदरी ! मुऊ मोहांधने तें विवेक रुपी लोचन दीघां. विकट नरकना कुंवामां पडता एवा मुऊने तें वायो, तायो, पापथी नगास्यो. हे प्रिये हुं निर्भाग्य हूं माटे हवे हुं गुं करूं Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ते तुं कहे. त्यारे बुद्धिसुंदरीयें कयुं. जो तमे तमारा श्रात्मानुं हित चाहो बो, तो परस्त्रीगमन निवारण करो, ए अनिलापनो त्याग करो. ए वार्ता सांजली जेम निर्मल सूर्य देखी चक्रवाक पंखीयानंद पामे, तेम राजा विचार पामीने पर दाराथी पराङ्मुख थयो. प्रतिबोध पामीने परस्त्रीनो त्यागी थयो. त्यारें सुंदरियें कयुं, हे महाराज ! तें ननुं कीधुं, तें तारो आत्मा तास्यो, श्रात्माने नरकमां पडतो राख्यो, पोतानो वंश अजु प्राल्यो, तुं स्तुति करवा योग्य वंदनीक उत्तम थयो. त्याऐं राजायें बुद्धिसुंद रीने मावी पगे लागी तेने सत्कार सन्मान ने बहु महिमायें वस्त्रान रादिक देश पोताने घेर विसर्जी ने प्रधानने तेडावी तेने दान मान तथा सन्मान व्यापी राजायें तेने पुनरपि मंत्रिपद उपर विराजमान करो. पी सुंदरी धर्मरूप कैरव कुमुद वनने विकस्वर करवाने शिलवंती चं मानी चंडिका समान य5. जे कारण माटे निश्चल दृढतायें प्रति विकट संकट पये थके पण निर्मल शियल पालती हवी. ए बुद्धिसुंदरीन | कथा कही. " हवे त्रीजी विसुंदरीयें पण कष्ट पडे थके शील पाल्यं तेनी वार्ता कहे . ताम्रलिप्त नगरीनो रहेनारो श्रीदत्तव्यवहारीयानो पुत्र धर्म एवे ना में जिनधर्मी हतो ते व्यापारने अर्थे ताम्रलिप्ति नगरी थकी साकेतपुरे या व्यो ? ते धर्मकुमारें चौटामांहे वेठां थकां सखी संघाते राजमार्गे जाती ला वण्यवती तथा सौंदर्यरूपें शोजती एवी विसुंदरीने देखीने ते व्यवहारी ये चिंतयुंके, सुख रहित एवा या असार संसारसमुइमां सारंगलोचना एवीए स्त्रीने हुं साक्षात् लक्ष्मी परें सार देखूं हूं. कोइक दैवयोगथी मारो एनी सायें विवाह थाय, त्यारेंज हुं नोग सुखनी जर संपदा पामीश, ने ए विना बीजी मजे त्यारें तो जोगसुखने बदजे हुं क्लेशकारी रोगनी सं पदा पामीश. ते कुमार एवं चिंतवे बे, एवामां ऋद्धिसुंदरीनी दृष्टि पण ते नी उपर पड़ी. जेम नजां धान्ये नखां एवा नीला क्षेत्रमां गाय पडे तेम ते बाइयें दृष्टिने वारतां पण तेनी दृष्टि त्यां पडी. ऋद्धिसुंदरी जो पण कुतूहजें करी विविध क्रीडा जोवामां व्यय थई हती; तोपल तेणें धर्मनपर दृष्टि राखी हती. तथापि ते धर्मकुमार उपरे तेनी दृष्टी जोडाली. त्यां परस्परें बेहुनी नजरे नजर मली. तेथी मांहो मांहे राग उपनो. त्यारें ए व्यतिकर सुंदरी नी सर्व सखीना ध्यानमां थाव्यो, तेथी सखीमांथी एक सखी कहे : Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ६० ए नर तारा चित्तनो चोर बे. साचो ए पश्यतहर जोतां देखतां चित्त ने चोरे बे. पी बीजी चतुर सखीयें कयुं, ए व्यवहारीयानो पुत्र ज्ञानवं त रूपवंत ने दातार देखाय बे. जेणें पोतानुं चित्त ने वित्त एक देना मात्रमां दधुं ते घटे बे. ए वर पण ए कन्याने योग्य वे ॥ २९५ ॥ " त्यार पी वली बीजी सखी कहे बे, ए तो वर रांक ले. अतिशय का मी कामवा पीड्यो बे, ते जीवतव्यने अर्थे संजीवनी औषध समान तुमने इसे बे. हे स्वामिनि, ते माटे तारे पासे याव्यो वे. ते सांजली क दिसुंदरी सखियोप्रत्येंकहेले के, ए सर्व ढुं जाएं बुं. ए प्रतापें सयुं. हे सखी ! आगल चालो. एटलामां ते कुमार स्वनावेंकरी सहसात् टींक्यो. बी कीने 'नमो जिनेश एम बेली वेलायें तेणें कयुं. त्यारे बाइयें तेने जैनी जाएयो. ते कुमारनुं उत्तम मनोहर " नमो जिनेाय” एवं वचन सांनज़ी उल्लास पामी थकी ते पोतें बोली के, जैन प्राणी जगतमां चिरंजीवी रहो. ते पक्षी विसुंदरी यें पोताना चित्तनो अभिप्राय पिताने जणाव्यो. त्यारे तेना पिता सुमित्र व्यवहारीयें तेना कुल, धर्म, विज्ञान सर्व पूलया. जेम नव्य जीवने जिनवाणी सांजव्याथी श्रात्मज्ञान याय, तेम तेना कुल, धर्म सांनव्याची तेनो वृत्तांत जाएयो. सुमित्र व्यवहारियें तेना परिजनथी तेने देवगुरुनी नक्किवंत जैन कुल जाली पोतें त्यां जइ जने मूहुर्ते क सुंदरीने धर्मकुमारनी सायें परणावी ॥ ३०१ ॥ ते विसुंदरीने बहु रूपवंत कलावंत पुरुष मागी, पण जैनधर्मी विना बीजा पुरुषोने तेना पितायें पूर्वे न दीधी. परंतु धर्मकुमारने तो याच्या वि ना पण ते जैन धर्मनो जाए हतो तेथी तेने परणावी. माटे अरिहंतना मतने विषे रह्या जे प्राणी ते अणप्राय अर्थने पामे. हवे ते कन्यानो विवाह जली रीतें थया पढी, जेना संपूर्ण मनोरथ सिद्ध यया वे एवो ध कुमार परलेली स्त्रीने साथ लेइ पोताने घरे ताम्रलिप्ति नगरीने विषे गयो. एक वे चित्त ने स्वभाव जेना एवा ते वेहनो मांहोमांहे प्रति प्रेम हो तो वो एक निमेष मात्र परस्पर वियोग खमी न शके. " एकदा ते व्यवहारी धन उपार्जवाने अर्थे स्त्रीने साथ लेइ बहाणे च ढ्यो. ते धर्मकुमार प्रिया सहित कुशल देमें सिंहलद्वीपे पहोंच्यो. त्यां यो डा कालमां घणुं इव्य उपार्जीने पाठो वव्यो. त्यां दैवयोगयी गाजवीज, Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ go जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वरसात वायु उत्पन्न थयो, समुइ नबल्यो, कल्पांत वायुयें करी दरी जयं कर थयो, बिहामणी समु देखीने चाकर सर्व नांगरने अवलंव्या. सढ सं कोचपraj डी गयुं, कूवा यंना कडकड्या, त्यारें सहुयें आप आपणा देवने संभाला. त्यां धर्मकुमार ने ऋद्धिसुंदरी वे वलिक सागारी अस ण करता हवा, वहाण नपर पाणी फरी वल्युं, सहसात्कारें बहाए जां ग्युं, त्यां स्त्री जरतार बुडतां मवकां मारतां हतां तेवामां पुष्ययोगें एक पाटीनं बेहुने हाथे त्र्यायुं, ते पाटीयांने बजे पुण्योदयें करी चार पांच दि बसें जूदे जूदे द्वीपे कष्ट पामतां ते कोई छीपे गयां. त्यां एकठां मयां जी वने कर्मविपाके आपदा पामवी ते सुलन बे, पण धर्मसिद्धि पामवी 5 र्लन बे. ए अपरंपार संसारमां सर्व प्राणिनी ए रीत बे. ते माटे तत्त्वना जाण पुरुष संपदा पाये हर्ष न करवो, अने यापदा पामे खेद करवो नहीं. पूर्वकृत पुण्य पापथी संपत् श्रने विपत् नीपजे वे पुरुष धीर थान, के कायर था, पण दुःखतो जोगववा पडेज बे, माटे सुखडुःख नदये श्राव्यं ते धीर प ज सेहवं. मां कायरपणुं न करवुं. पुण्य थकी प्राणी सुखसंयोग ने संपदा पामे. पापथी दुःख, वियोग ने व्यापदा पामे. माटे पुण्य कार्ये प्रमाद न करवो. श्रावक धर्मना धरनार एवा ते वे मांहोमांहे जीवने धैर्य प्राश्वासना देने जांगा वहाणने पाटीये बलगीने रह्या, अने नांगा वहाणनुं चिन्ह कं चुं करी राखता हवा. एकवखते कोइक प्रवहणना लोकोयें ते चिन्ह जोयुं त्यारे ते प्रवीने धर्मकुभारने केहवा लाग्या के, लोचनशेठ सार्थवाह जंबू दीपे जाय बे, तमारी इच्छा होयतो चालो. ते सांजली धर्म कुमार ऋि सुंदरीने साधे लई वहाणमां वेगे. लोचनशेठें तेनो घणो व्यादर करखो. पीते वहाण नरतदेत्रानिमुखें चालतुं ययुं. त्यां लोचनशेठना मीगं व चनें ते स्त्री तर बेहु हर्ष पामी तेनी साथे जाय बे. एम जातां तट पामवाने बे दिवसनो मार्ग शेष रह्यो, त्यारें धर्म व्यव हारीयानी स्त्री रूपवती देखीने वहाणनो धणी जे लोचन शेठ ते कामा तुर थ चिंतववा लाग्यो के, अहो ! विधातायें ए स्त्रीने उत्पन्न करी पो तानी घणी सारी कला प्रकट करी. ए नारी मनने रमणीयता प्रकट कर नारी बे. ए उत्कंठायें करी मारा कंठने खालिंगन न दिये, तो हवे ए विना जीवित, रूप, यौवन ने धन ते शुं कामनुं ? वली चिंतवे बे जे, ए स्त्री पो Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ताना नार विना बीजा नरने ले नहि. आंबाना मधुर फल मूकीने कड वी लींबोली कोण हे ? एम घणा संकल्प विकल्प रूपी समस्यो थको उष्ट हृदयनो धणी थ पुर्नव्यनी परे धर्म पयडीनो निर्घात करवाने सन्मुख थयो. त्यारे वहाण चालतां मध्य रात्रे सर्व परिजन सूतां जाणी धर्मकुमार सूतो हतो, ते लघु शंकाने वास्ते उठ्यो त्यारे तेने त्यांथी उपाडी अगाध समुश्ना उंमा जले लोचनशे नांख्यो. ॥ ३२५ ॥ विषयांध माणस गुं हुं अकार्य न करे ? ते सुलोचन शेठे जेम धर्मकुमारने पाणीमां बुडाव्यो, तेम तेणें पोताना आत्माने पण नवसमुश्मां बुडाव्यो. पडी प्रनातें शदि सुंदरीयें नार न दीगो. त्यारे ते महा कुःख पामी मूढात्मा थइ अतिकरुणस्वरें रुदन करती हवी ! लोचनशेत पण धवल उनी पेठे कपट करी तेने कहे जे के, अहो ! मारो मित्र क्यां गयो ! स व सेवकवर्गनी साथे ते शेठ हाय हाय करी रुदन करतो हवो ! घणो व खत प्राकंद शोक करी दिसुंदरी पासे आवी आश्वासना देतो हवो. पनी व्यंग वचनें बोल्यो के, हे सुंदरी ! तुं चिंता म करीश. ते गयो तो हूं तारो नाथ थाइश. मारूं उपायु जे वित्त ले ते हे सुंदरी ! सर्व तारूं ले. तुं शा माटे एवडो खेद रुदन करे , कोणें मातुं कर्तुं बे ? दैवें कीg ते मां अमे झुं करियें ? हुँ तो तारो दास थइ रहीश, तारा जीवने शाता उप जावीश, जे तुं आझा बापीश ते कर्तव्य ढुं करीश. घणुं हुं कहूँ? एवां ते पापीनां उन्नंग वचन ते विचक्षण सतीयें सांजव्या. पड़ी संवेगरंग तुरंग पा मीने ते चिंतवे . हा इतिखेदे. या मारू रूप अनर्थकारी थयुं ॥३३॥ ए उटें माराउपर रागी थइने माहरा नारने समुश्मा पाज्यो. जे पुरु पराग ग्रहें ग्रह्यो, ते पुरुष को कार्य अकार्य न जाणे. हवे हुँ पण मा रा आत्माने समुश्मा नाखू.जे माटे न रविना हवे मारे जीवबुं काम नु ? कुलवंती स्त्रीने न रविना मरण शरण ते श्रेय ले. यद्यपि एम ले तोपण वली सतीयें विचायुं, जे जैन शासनविपे बाल मरणनो निषेध . जीवतो जीव होय तो कदाचित् धर्माचरण पण पामे. पण हवे ा कामी थकी हुँ मारुं निर्मल शियल केम राखीश ! अथवा परफुःखमय एवा आयु ष्यने टुं साम उपायें करी केवीरीतें गमावीश? अने परवश पडीने फुःखमां रही हूं महारो काल शीरीते गमावीश. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ - जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ___ एम विचारी ते सती कामी शेठने कहे . हमणां तो मुझने मारा प तिनो शोक , माटे समुश्नो पार पाम्या पली जेम तमने हित थशे तेम ढुं करीश. तमे निश्चिंत पणें रहो. जे समये जे योग्य हशे, ते करगुं. एवो ते कामीने उत्तर दीधो. ते वाक्य लोचनशेठे सांजली स्वस्थ चित्त थई के टलोक काल गमाव्यो. जे माटे कह्यु डे के, आशा लुब्धा जीवने सो वर म विलंबे जाय, एम जाणवू. एम वहाण चालतां अन्याय पापथी समुश्माग वायुयें उबल्यो, नत्पा त थयो, पापें ते वहाण नांग्यु, तेना शत खंझ थया. त्यां दिसुंदरी धर्म ने पसायें मोटुं पाटीनं पामी. जेम संसारसमुश्मा जीव, सम्यक्त्व मलवा थी संसारनो पार पामीने मोदना सुख पामे. तेम पाटीनं मलवाथी ते दिसुंदरी हेलामात्रमा समुश्नो पार पामी. ___ त्यार पनी पोतानो नार, जेने लोचनशे मध्य रात्रे पाणीमों नाख्यो हतो, तेने धर्मने पसायें करी जे पहेलुं वहाण नांग्युं हतुं. तेनुं पाटीनं बू डतां बडतां हाथ आव्यु. तेने अवलंबी ते धर्मकुमार दरियाने तटे आव्या. इदिसुंदरी पण पाटी अवलंबीने जे तटे नरि आव्यो , तेज तटे ध मैने पसायें प्रावी मली. त्यां समुश्तटे पुण्य योगे स्त्री नार बेद एकां मव्यां. घणो हर्ष उपज्यो. संतोषामृत रमें सिंचाणां. घणी शीतल शाता नपजी. विरह वियोग मट्या. ते पडी पोत पोतानां कुःख वितर्कनां वृत्तांत कह्या. पोतानुं अनुनव्युं जे दुःख ते बन्ने मांहो मांहे कहेता हवा. लोचन शेतनुं वहाण नांग्युं, ते बूड्यो, एम सांजली धर्मकुमार अशाता धरतो ह वो. जे अपकारी तथा पापिष्ठ होय तो ते ऊपर पण उत्तम प्राणी जे होय ते उपकार चिंतवे . परंतु तेनुं मातुं न चिंतवे. हवे धर्मकुमार स्त्रीने कहे जे के, हे प्रिये ! धन्य ते अरिहंतगणधरा दिक, के जेने समीपे रह्या जीव अशुन नावने बांके. लोचनशेत आपण पासे हतो पण ए जीवने धर्मबोध न थयो. हा हा ! पाप परिणामे करीए जीवनुं मातुं थयु ! जेणे आपणे वे ने निर्लोनी पणें वहाणे बेसाडी पार प माड्यां, उपकार कीधो, ते बापडा जीवने जीवतव्यनो संदेह थयो. धनहा नि पाम्यो, निरुपम रूप देखीने तेनुं चित्त चट्यु, एवं ते पोतानी स्त्रीने कहे. एटने ते गामनो एक वाणि त्यां आव्यो. तेणें सौम्य मुशयें शांत रूपी Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ७३ स्त्री जरतारने देखी तेमने रूपवंत जो चिंतव्यु, जे ए कोई कारणथी देव योगें आंही आव्यां दीसे ले. ए पुरुष रत्नने प्रादुणा रीतें मारा वित्तने अनु सारें दुं बदु मान आपुं. तथा ए प्राणीनी जक्ति करूं ॥ यतः ॥ कट्टिऊत्ति गइंदा, पंके खुत्ता महागयंदेहिं ॥ आव पडिया सुयणा, सुयणेहि समुह रिङति ॥ १ ॥ एवं चिंतवी ते वाणिघणे मीठे वचने बहु मान देश प्रस बतायें सहित, विखवादरहित पणें पोताने आवासे तेमने तेडी गयो, अने आहारादिकनी नक्ति करी पोतानी पासे राख्यां. त्यां स्त्रीजरतार स्वस्थ चि ते रहेतां धर्म करतां ते वेदुना सुखें दिवस जाता हवा ॥ ३५३ ॥ हवे लोचनशेठनो अधिकार कहे . ते शेत पोताना पाप योग थकी दरियामां मबकां खातो हतो. तेवामां कोई काष्ठ मन्युं. तेने आधार त रतो घणे कप्टें मत्स्योदी नामे तटे प्राव्यो. त्यांथी जमतो को अनार्य पालमा गयो, त्यां अति दुधातर थयो, पण अन्न न मन्यु, त्यारें मांसा हारी थयो. नूरख्यो झुं न करे ? मांसाहारथी अजीर्ण दोघे करीने इष्ट एवो कुष्ठ रोग नपज्यो, शरीर बगडी ग.जे माणस धर्मनो घात करीने कामनोग करवानी ना करे ते थोडा कालमां महा उष्ट वेदना पामे. माटे कर्तुं , जे कामी ते कामने देखे. पण धर्मनो घात थाय ते न देखे. ते शेठ पुःखाकुल थको गमो नगमे नटकतो ज्यां धर्म व्यवहारीयो रह्यो ने, त्यां प्राव्यो. ते वेला दिसुंदरी पाणी लेवा गइ हती. त्यां जलाश्रये ते उष्ट मुखीयाने तेणें दीतो. त्यारे तेणें दयावंत चित्तें पोताना नरिने जा ते शेठनी वात कही. ते सांजली धर्मशेठ दया आणीने ते लोचनशेठने घरे तेडी आव्यो. आदरमान देश पूजे . जे तमे एवी अवस्था केम पाम्या ? तम सरखा उत्तम प्राणी ते एवी महा कष्ट अवस्था पाम्या, पण हवे तमो फुःख न धरशो, मोटानेज विपत् पडे . चं सूर्य जो मोटा ,तेथी तेने ग्रहण थाय , पण तारा न्हाना होवाथी तेमने विपत् पडती नथी. माटे हे मित्र ! विषवाद म करशो, धीरज पणुं राखो, घणा औषध उपचारें करी तमाळं शरीर निरोगी करगुं, बदु धन खर्चीने आपदा निवारा. एम आश्वा सना देश, अन्नादिक जमाडी, औषधादिक नुपायें करी तेनो रोग शांत कस्यो. ते स्त्रीनारें लोचनशेठनी चाकरी करीने तेने साजो कीधो. जगतमां अ सामान्य एवं धर्मकुमारनुं सौजन्य जोइने लोचनशेठ हृदयमां चिंतववा Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. लाग्यो के, एक सन ने बीजुं चंदन वृक्ष ए वे जगतमां परोपकार वा स्ते निपजाव्यांबे. में ए बेहु उपर इष्टपणुं चितव्युं में ए बने उपर अप कार करो, तोपण तेमणें मुऊ पापीनी उपर देत राखी उपकार कस्यो. में धर्म न्याय पणुं दस्युं, ते पापें दुं समुड्मां पड्यो, मृत्यु प्राय थयो, रोगिष्ट थयो, हुं समुमां पड्यो त्यारें मूबीने मरण पाम्यो होत तो ठीक, पण ए स्त्री नतरिने नजरे यावी जीबुं बुं. ते ठीक नथी. एटलां वानां पा पना योगर्थ । में जीवतां थकां दीठां ॥ ३६७ ॥ एम पोताना अंतःकरणमां लका पामी नीचे मीलितलोचन थइ बेठो. त्यारे धर्मवंत धर्म व्यवहारी मीठी वालियेंतेने कहेतो वो के. हे मित्र ! शुं कुटुंब विरहनी, अथवा धन गयुं तेनी चिंता करो हो ? अथवा रोग उपनुं तेनी चिंता करो हो ? तमे एशी चिंता करो हो ? दुःख करो बो? हे मित्र तमे जो मारी सहायताथी जीवता रह्या बो तो तमने घणुं धन, घणा मित्र यावी मलशे. मुफसरखो मित्र मध्ये तमने घणो काल व्याधि नहि रहे. जेम ग्रीष्म कालमां नदी, सरोवरनां जे जल सुकाइ गयां होय, द ए मात्रमां मेघ यावीने नरे ले. दीण थयेलो चश्मा पण अमृतेंकरी फ थी मात्रमां पूर्ण थाय ते. तेम संसारमां पोतानां दुष्कृतथी दुःख पामी ने सुकृतथी सुख पामीये, माटे खेद करशो मां. सुखार्थी प्राणी ये सदाय सुकृत करणी करवी. धर्मनुं सेवन करवुं. अनंत जवना कारण एवा पापना काम परिहरवां जेथी जन्मांतरे पण कदापि दुःख पामीयें नहीं. एवां तेनां उपदेश वचन सांगली, लोचन शेठें निसाशो मूक्यो. कवा लाग्यो के, मने मारां श्वरित्र शव्यनी पेठें हृदयमां साने बे. एज डुःख मुकने ले. बीजुं कांइ दुःखनुं कारण नथी. ते महारा दुश्व रित्रमां एक तो में तुमने अगाध समुझ जलमां नांख्यो हतो, ते पाप हृद यमां शूलनी परे खटके वे विसामा रहित पणे बलतां बांडीयांनी परे मारुं मन बजे बे. बीजुं में क्रूर इष्ट परिणामें करी जे महा सती उपरे जो गानिलाप कीधो. ते पाप हृदयमां खटके बे. तेनी अशातायें वेगे बुं. ते पापनुं फल हुं तुरत पाम्यो. वहाण नांग्युं, धन गयुं, समुड्मां पड्यो, को ढी रोगी थयो, एटलुं या नवमां में प्रत्यक्ष दीतुं. एवा मुफ पापीने नू त प्रेत पण खादर न दीये. हे मित्र ! हुं तारो डुशमन अवगुणी हतो, ते Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नपर तुं उपकारी थयो, निष्कारणे मारी चाकरी तमे स्त्री नरें करी, ते गु गनो हुँ उशिंगण क्या थश्श, ए पापना पश्चात्तापे हुं मारा जीवनी साथे फूलंबुं. एवीरीतें तेने विविध प्रकारना प्रलाप करतो देवी इदि सुंदरी कहे , जे तुमने धन्य ने ! के जे तुं पाप करीने तेनुं पश्चात्ताप करे ,जे पाप क रीने पण पडी संतोष करे, बेहेडो समारे, पापनो पश्चात्ताप करी धर्मा दरे, तेनेपण संत सजान कहीये. इहां तारो दोष कांइ नथी. ए तारा अ झान पणानो दोष दे. जे अंध होवाथी कूपमां ऊंपाखाय तेने उतनो के म दश्ये. माटे तमे जो तमारा आत्मानु हित चाहो तो अज्ञानपणुं मूकी झान दिशाने नजो, इंघिय समूहनो संवर करो, विष समान जाणीविषय विकारने टालो, एवं यात्महित यादरो, महा विष खावं ते सारूं, तथा बनती अमिमां पेसीये ते रुडुं, पण इंडिय विषयने वश थइ जे पुष्कृत पाप करवं, ते सारूं नहि. अकेक इंश्यना विषयवसे तिर्यच जीवपण केटलो अ नर्थ पाम्या बे ते जुई. हाथी फरसेंडीने वशे, माब्लो रसेंडीने वशे, नमरो घ्राणेंडियने वरों, पतंग चदु इंघियने वशे, हरण श्रोत्रेश्यिने वशे, एम एकेक इंडियना विषय दोषे करी नपर कहेला जीव वध, बंध, मृत्यु पामे बे. तो पांच इंशीना जे विषय सेवशे. अन्याय, परस्त्री गमन, अधर्म कर शे, ते प्रा नवमां दुःख पामी परनवे घणा जन्म मरण करशे. मृगतृमा रूप विपय . ते मांहे सार सुख कोइ नथी. मृगतृमाने जो जेम मृग धावे ने तेम विषय पर सुखनी चांते जीव नवोनव धाय ले. पण मृगनी परे जीव विषयनो अतृप्तो थको घणां जन्म मरण करे . जे प्राणी विषय थी विरमी श्रीजिन शासनमा रंगाणा ते संसारनोपार पामी मुक्ति पद पाम्या. एवां ऋदि सुंदरीनां नारख्या उपदेश वचन सांजली ते लोचन शेठनां झानलोचन उघड्यां. तेवारे कहेतो हवो के, हे सुंदरी ! तुं मारी बेन अथ वा माता समान . तुंज माहरी धर्माचार्य ने ॥३७॥ हे उदारवाणी! तुं आदेश आप के, हवे ढुं शुं करूं ? त्यारें शदि सुंदरीयें कयुं, जो तमे आत्म हितने जाणो तो परस्त्री सेववानां पञ्चरकाण करो. शियल रूप ज लें करी विषय ताप निवारो. त्यारें लोचन शेवें सतीनुं वचन प्रमाण करी, परस्त्रीनां पञ्चरकाण आदरी, सतीने खमावी, पोताने घरे गयो. धर्म व्यव हारीयो पण निर्मल धर्मे घणुं धन नपराजी स्त्रीने खेश्ने पोतानी ताम्रलि Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ जनकथा रत्नकोप नाग सातमा. तिनगरीयें पहोंच्यो. त्यां पोतानो कुलाचार चिरकाल पालता हवो. अथ का व्यम् ः- कष्टे निकष्टे च सतीषु सुंदरी, प्रबोध्य तं श्रेष्ठि न मृद्धि सुन्दरी ॥ दधा र रक्षा करणस्य निश्वयं, यूयं तथा रक्त चाहतं स्त्रियः ॥ १ ॥ यस्यार्थःहे राजन कष्ट करां प्राव्यां तोपण सतीमां शिरोमणि एवी ऋद्धि सुंदरी शेतने प्रति बोध देइ तेने तायो, पोतानुं शियल राख्युं. तेम तमे पण एस्त्रीनां खं शियन राखो. ए ऋद्धि सुंदरीनी कथा पूरी यइ ॥ हवे चोधी गुण सुंदरीनी कथा कहे बे. एवे समये गुणसुंदरी गएय लाव्य रूप यौवन संपदाने पामती हवी. तेवे समये वेदशर्मा ब्राह्मणनो पुत्र वेदरुचि तेणें राज मांगें सखी सहित जाती गुण सुंदरी दीठी. न्यारें तेणें मनमां चिंतव्युं, जे ए मृगाछी मारा वरमां न वसे त्यां सुधी मारुं जी वित कासना फूलनी परे निष्फल ले. ए स्त्री साक्षात् महालक्ष्मीनी परें मारा घरमा नावे त्यां सुधी मारुं जीवत वृथा बे. एवं ते ब्राह्मण मदनातुर थको चिंतवे ने एटलामां ते बाला लोचनप्रगोचर थइ, प्राघी चाली गई. त्यारें त्यांथी ते ब्राह्मणने मित्रे तेने कामातुर जाणी जर कामज्वरमां ते ब्राह्मणने घरे तेडी लाव्यो, पण तेनो मन रूपी मधुकर ते गुणसुंदरीना मुख रूपी कमल मांहे लागी रह्यो बे. तेनी उत्कंठायें करी ते स्नान जोजन कांइ न करतो वो एवो कामातुर डुखी देखी। तेनो कारण पितायें पूजयं, त्यारे गलगलो थयो, पण लगाये पिताने ते वात कही न शक्यो. त्यारें पितायें तेना मित्रने पूब्धुं अने ते दयालु मित्रे सर्व वृतांत कयुं के, ए गुणसुंदरीने देख तेनी उपर ग्रासक्त थयो बे. " एवं मर्म जाणी पुत्रना स्नेहें तेना पितायें ते कन्यानो पिता सुघोष नामे ब्राह्मण तो तेनी पासे ते कन्या याची. ते वखते तेणें कयुं के, पूर्वे में साबी नगरीयें पुरोहितना पुत्रनें ए कन्या प्रापी बे. सगाई कीधी वे. मोटानुं बोल्युं श्रन्यथा याय नहि, माटे हवे बीजाने देवाय नहि ॥ यतः ॥ सकल्पंति राजानः सकल्पंति पंमिताः ॥ सरुच्च दीयते कन्या, प्रीयेतानि सकृत् सकृत् ॥ १ ॥ राजा एकज वार बोजे. पंमित पण ए कज वार बोले. तेम कन्या पण एकज वार अपाय बे या कृत्य एकज वार थाय बे ॥ १ ते सांगली पिता पाठो फरी याव्यो. पुत्रने हकीकत कही. तोपण वेदरुचीनो कामानिलाप न मट्यो. माटे शास्त्रे जे कामनी Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंड अने गुणसागरनुं चरित्र. वक गति कही . ते सत्य . जे स्वाधीन सुलन होय त्यां अनिताप नकरे. अने जे पराधीन उर्जन होय त्यां अनिताप करे. ते वेदरुचि कामी ब्राह्मणे काम सिदिने अर्थ मंत्रादि कुजापना ध्यान कीयां घणी मानता कीधी पण पुण्य विना इबित अर्थ न पाम्यो ॥ ४०१ ॥ हवे सावजी नगरीथी पुरोहितना पुत्र पुण्य शर्माने तेडावी तेने मोटे नत्सवें गुन दिवसे गुण सुंदरीना पितायें परणावी. वेदना जाणे नली रीतें विवाह कस्यो, पुण्यशर्मा हिज पण गुण सुंदरी लेइ पोताने नगरे आव्यो. हवे वेद रुचिनामा कामी हिज मदोन्मत्त अथवा जेम को धतुर रसे प्रेयो अचेतन थयो होय तेम ते अचेतन थयो. कार्याकार्य अण जाण तो ते कामी हिज विषयातुर थको पोताना घर, धन, सर्व बांमीने पिता दिकें चास्यो तो पण कामें वाह्यो थको सावत्थी नगरीये चाल्यो. मार्गनी वचमा पर्वते करी विपम एवी पन्नी पतिनीपाल ले. त्यां ते अधम हिज गयो त्यां सुंदरीना संगमने अर्थे पन्नपतिने सेव्यो, तेनी चाकरी करी. पापी जीव कांश विकट कार्य करतां मरे नहि. कुक्कर कार्य करतां पत्नी पति एनी उपर विश्वास राखवा लाग्यो, त्यारें एवं पुरोहितना घर नपर धाडला जवाने वास्ते पनिपतिने विनव्यो. अने कह्यु के सावली नगरी मध्ये पुरोहित महा धनवंत जे. त्यां धाडी ला चालो तेना घरमांथी जे धनमलें ते सर्व तमे जो अने कन्या मने अापजो एम परत करी त्यारे ते पत्नीपति बाना पोताना सेवक मूकी तेनुं घर ठेकाणुं जोश पड़ी तेना घर उपर हिजसाथें धाडि ले आव्यो. ते निन्न ते पूरोहितनुं सर्व घर लूंटी धनमाल ले आ व्यो अने गुणसुंदरी जिने यापी. तेणें सारे ठेकाणे आदरमान दे राखी ते कन्या मली त्यारे विनोद, वचनें करी ते गुण सुंदरी प्रते वाडव कहे ले हे नई! मारुं चित्त तारे गुणें हरी लीधुं जे. माटे हवे तुं मने आदर. दूं तुमथकी जीवित पाम्यो बुं तुज विना दूं चेतनरहित ढुं धर्मवति तुं धन्य बो माटे मारा नपर कृपा कर. मारा चित्तने विपे, सुपनने विषे, दिग चक्रने विपे, जीव्हायने विपे, एक तुहिज तुंहीं . तुं दूर थकी पण मारा हृदय आगले प्रतिनासे ने ते सांजली गुणसुंदरी कहे जे, तुं कोण ? हूं तने कांजा णती नथी. में तने क्यां दीठो ? अने में तारं चित्त क्या हयं ले ? ते वारे कामीहीजे पोतानो वृतांत कह्यो. जे राज मार्गे जातां में तने दीठी त्यांथी Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JG जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ढुं तारो अजिलापी थयो ते वृत्तांत सांजली सतीये चिंतव्यु,जे मारो ए आकरो रागी था शहां आसक्त थयो ने अने अहीं दुं पण एकली अशरण बीजा जे पन्निना निन्न ते सर्वे अनार्य बे. तो पण एथी मारुं निर्मल शि यल रावीश ॥ यतः॥अविचल मेरुचूला, नदे सूरो वि पहिम दिसा ए॥ मश्ने विजियंती ए, निय कुलसीलं नहि कयावि ॥१॥ गुण सुंदरीयें विचार करयो के, ए पुरुष निर्गुण तो नथी. कारण, ए मारी पासे नोगनी प्रार्थना करे . जे निर्गुण तथा न६त पुरुष होय ते प्रार्थना करता नथी तेतोब लात्कारे करी शीलनो नंग करे . माटे हवे एने प्रतिबोध देने, मारुं निर्म ल शियल रा. साध्वीना आदेशथी मारे अखम शियल पालवू ने. तेथी धर्म राखवाने अर्थे माया पण करवी. एवं विचारी तेने मधुर वाणियें कहे के, पेहेलां जो एवडो राग तें मने जणाव्यो होत, तो नजीक पा मेनो तारासरखो वर मूकीने परदेशी वरने कोण वरे ? मुख अागले फल्यो फूल्यो एवो जे आंबानो वृद तेने मूकी वेगलो जे शाल्मलि हद तेने को ण पूजवा जाय? तमारांने अमारां बंने कुल निर्मल अने निष्कलंक ले. य श, सुख सर्व सरखां ने माटे आपण बेनो योग मल्यो होत तो घणुं सुंदर थात. हवे जेने वस्यो तेने नूंमो कहीयें तेनी निंदा करीयें तो उर्गतिनां दुःख पामियें. तेने परण्या पनी प्रापणा वेनो योग मट्यो माटे धैर्यवंत थ इतमो विचार करो. जेमाटे जे सऊन होय ते विवेकी होय. __ एवं सांजली कामी हिज चिंतववा लाग्यो. अहो ! ए तो मारी अनुरा गिणीज दीसे ! एने में पूर्व मननो नाव जणाव्यो नहि. ते में मातुं की धुं ! अहो एने अर्थ में फोकट मोटो प्रयास कीधो. माटे ढुं नूरव्याने नो जननी परे हवे हाथमां आवी. एने केम मूकुं? एवं चित्तमां धारीने कहे बे, हे सुंदरी ! तें सर्व वात साची कही, पण हवे तुंमारा चित्तनो ए नाव जाणजे के, हुँ तारा विना हवे जी नही. जोश्ये तो कुलने कलंक लागो, मने लोक जूमो कहो, परनवे मुर्गति थायो, पण तारा संग रूप सुधामृतें करी मने तुं जीवतो राख. __त्यारे गुण सुंदरी ते कामी जिनो कामानिलाषनो निश्चय जाणी कहे जे. मारे तने हित कर ले. ए पाव्य कल्पवेल समान बे. तुं पण मारे संगे सुखें जीवीश. पण मंत्र सिदिने अर्थ में चार मास सुधी ब्रह्मचर्य व्रत श्रा Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ए दखू ले. त्यांसुधी एकवार जमवू, नूमि शयन करवू, आनरण न पहेरवं, पु रुष मात्रने बंधव समान जागवा, एकाग्र चित्ते मंत्र ध्यान जाप करवो. ते सांजली कामी हिज कहे जे, एटलो काल विलंब करी तुं मने पड खावे . ते मंत्रंशी सिदि थाशे. त्यारे सुंदरी कहे जे, ए मंत्र साधनथी धनवंत पणुं, पुत्रवंत पणुं पमाय. वली जीवं त्यां सुधी विधवा पणुं न पामुं, ए एनुं फल . तेथी कामी हिजे विचास्युं, जे ए सर्व मारां हितने चाहे ले. एवं विचारी चार मास सुधी सुखें मंत्र साधन करो एम कर्दा. ते वारे सुंदरी चित्तनी स्थिरतायें स्वस्थ थई त्यां रही थकी पोताना घर नी पेठे घर, कार्य सर्व करे. तेने प्रतीति नपजाववाने अर्थ त्यां रही स रस रसवती करे. शाक पक्कान्न घृत खांमादिक करी विप्रने ईष्ट होय तेवी रसोई पीरशे जमाडे. स्निग्ध जे गोरस तेणें करी तेने अंतर ने बहार पोपे, अंतरंग गोरस ते वैराग्य वचने अने बाह्य गोरस दधि उग्धा दिकें पोपे, निर्मल जले स्नान मऊन करावे. घj गुं कहियें ? एम थोडे दिवमें तेने विश्वास नपजाव्यो. जेम ते चित्तमा एम जाणे , जे ए मारी स्त्री अने हुँ एनो जार. एवो तेने विश्वास उपजाव्यो. पोतें बिन कणोदरी त करी शरीरने शोषवती हवी. ते महासतीयें स्नान शृंगार नंबोलादिक त ज्यां. एम करतां चार मास वीत्या, अवधि पूरी थर, तेने लेने दिवसे पाठ ली रात्रे ते सुंदरी अत्यंत पोकार करती हवी. तेने हिजें पूब्युं, तने गुं थयुं ? त्यारे गुण सुंदरीयें कर्तुं मने अंतरंग पेटमां महा शूलनो रोग न पज्यो . ते महाराथी नथी खमातो अत्यंत वेदना थाय . ॥ ४३४ ॥ त्यार पनी ते कामी हिजें मणी मंत्र औषधादिकें करी घणा उपचार कस्या, पण शाता न थइ. वली पडे वली उते, घरनां काम जे थाय ते करे; पण वेदनायें जल विनानां मीननी परें तडफड्यां करे. एम आनंद करती कामी हिजने कहे . हे सुजग हुँ उ गणी तारा घरवासने योग्य नहि. जे माटे उर्व्याधि, जे महाशूल रूप रोग तेणे करी पीडाणी. मस्तकनी वे दना अत्यंत जे. सर्व मारूं शरीर बले . महारूं बधुं शरीर बेदाय . सघना सांधे सांधा चूटे बे. मने नारनो विरह पड्यो. ते एवडुं दुःख नथी वेदती. तथा आ व्याधि रोगनी एवडी वेदना नथी वेदती पण ए सर्व दुःखमां एक पुःख मोटुं ले. जे में तुऊने कांइ नपकार न कस्यो. मारा सारूं तें Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 जनकथा रत्नकोप नाग सातमा. श घणो करयो. पण तेनो फल कां तुं पाम्यो नहि. जेम मृग तृपातुर थ को, मृग तृपानो वाह्यो थको, घणुं दोडे, प्रयास करे; पण नीर न पामे तेवी रीतें तारे थयु. तथा में पण कोइ पूर्वे घणां पाप कस्या परने पीडा आपी पोताना सुखसारु जीव हिंसा कीधी तथा कोश्ने कूडां अाल दीधां पारकां धन चोरी लीधां तथा पारकी स्त्री हरण करीने. जोरावरीथी तेनां शियल व्रत नंगाव्या. एवा मोटा मोटा जे पाप कस्या. तेथी मारूं अंग बने ले ते पाप विपाकनी अग्नियें करी मारूं अंग दाजे ने हवे हुँ वेदनायें विधुर थइ j तेथी प्राण धरवाने समर्थ नथी, माटे तमे मने काष्ठानि आ पो. तमारा मुख आगन्ने बली मरूं, तो ए कष्टथी बुटुं. हवे महारायी ए वेदना नथी खमाती. एम शोचना करी तेणें आहार पण मूक्यो. एवं जोइ ते कामिहिज नवेग पामी कहेवा लाग्यो, हे नई ! हुं मारा प्राण तुऊ नपर वारणे करीश. इव्य खरचीश, पण तारा शरीरने शाता क रीश. कोइ कर्म योगथी ए तने मुःख उपज्युं , तो अहींथी आपण वे जण सावजी नगरीये जश्गुं. त्यां औपधादिक योगें तारूं शरीर निरोगी थाशे. एवं सांजली सती कहेवा लागी, हे सौम्य ! न जाणिये के, मारो पुर्जन न र र्यालु कोधी ते वली शो अनर्थ करे ? एक तो ए शरीरे दुःख ने, ने बीजं दुःख पुर्जननां वचन सांजलीये ते बंने मुरव सहेवाने कोण समर्थ थाय.खंडा नपर जेम खार देपवो तेम ए बेमुख केम खमाय? तेमाटे तमे चतुर बो. ते मनथी विचारो. हवे बीजे विचार गुं वलवानुं ? ए दुःख समूहनी पीडामा हवे मने मरण शरण ते श्रेय ले. त्यारे कामी हिज क हे , ए तारूं रख देखवाने दुं समर्थ नथी. हे मुग्धे ! अग्निनी ज्वाला तारा शरीरने कवलप्राय करे ले. ते केम खमाय? माटे तुं निःशंक पणे मारी साथै आव. ढुं तारूं सरवाइ पणुं करीश. जे माटे जीवतो नर होय ते नइ कल्याणनी कोड पण पामे. एवं ते हीजे कह्यु. ___ त्यारें सती कहे जे. जेम तमने सुख उपजे तेम करो. त्यारे ते ब्रा ह्मण पण तेने रथे बेसाडी सावजी नगरी नणी चाल्यो. नगर नजीक आव्युं एटले कामीहिज कहे . हुँ गाममा मुख झुं देखायें ? तुं तारा घेर जा. हुं पालो वलुं बु. त्यारे सती चिंतवे के, एने प्रतिबोध दीधा विना हुँ केम मूकुं ? एम विचारीने ते सती केहवा लागी हवे बीजी वार्तायें तो Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. सयुं. आजथी तुं मारो बंधव ले. तुं नगर मध्ये श्राव. बेन साथै धावतां तने शी लगा ले. एटले तारे हृदये निवृत्ति थाशे. मारा पण जीवने शा ता थाय. त्यारे ते हिज गुण दोष विचारी तेना नरिने घरें गयो. ___ त्यां सुसऊन पुण्यशर्मा हिज पोतानी स्त्री गुण सुंदरीने देखी हर्ष पा म्यो, तेने सतीये कह्यु, हे प्रिय ! ए मारा बंधवें मने निन्नथी उख पामती राखी. जीवथी एणे बोडावी. ए आपणो गुरु जे. एनी घणी गौरवतायें न क्ति करवी. एवं सांजली ते पुण्यशर्मा हिज, कामी हीज जे वेदरुचीनामे ने तेने कहे . तम सरखा उत्तमने पालमा रहे योग्य नथी, कागना घर मां हंस केम रहे ? हे सिष्टातमन ! ते माटे तमे अहीं रहो. तमे अमारी स्त्रीने मूकावी. माटे तमने जे उनु होय ते अमे आपीयें. एवी तेनी मी ती वाणी शांजली लजा पामीने ते वेदरुचि चिंतववा लाग्यो जे, एवं मने गंजीर माधुर्य रूप तुंगताने पमाड्यो. तो ए नारीने ढुं कोकिला कहुँ, के कामधेनुं कहूँ? अथवा ते कोकिलादिकना गुण एमां आव्या . अन्योन्य सौजन्यता न जाणीयें एवं क्याथी ग्रहणकरी हो ? हुँ एवो विष रूप महा अनर्थ निरर्थक चिंतवनारो, विषयालापनो बोलनारो, बतां एना सुधामृत समान बालाप सांनझुं .ए उपरे में महा अनर्थ निरर्थक चितव्यो. बिना डोजेम सार गोरस नोंय ढोले तेवो ढुं थयो. एवो ए पुण्यशर्मा हीज नर मांहे रत्न समान तेने मूकीने ए गुण सुंदरी मुफ सरिखा अधम साथे के म रमे ! हंसी होय ते कमलने सेवे, पण लिंब फलने कदापि न सेवे. अ हो एनी निर्मल बुद्धि के, जेणें निष्कलंक शियल पाल्यु. बीजुं मारा जीव ने पाप रूपी पावकमां बलतो पडतो राख्यो. ढुं अपराध रूपी ग्रहे ग्रस्त थयो बु. हवे ढुं जो कदी जीवतो निसलं .जीवतो उगलं बुं. तो एवं काम नहि करूं. ए महा सतीना गुणने संनारीशुं एवी रीतें मनमां चिंतवे .॥ एवे समये पुण्य शर्मा हिजने सेवकें यावी कयुं, हे स्वामी ! जमवानो वखत थयो त्यारें कामी जिने उन स्नान करावी नवां वस्त्र पहेरावी घणो सत्कार द नली नक्तिये नोजन कराव्युं. रात्रे सूवाने माटे जली श य्या आपी, पण ते कामीजने रात्रे निज्ञ आवी नहीं. एटले रखे को कपटथी दगो करीने ए स्त्री मुझने मरावशे एवी शंकाथी तेने निश न आवी. ॥ यतः ॥ सर्वत्र श्रुचयो धीराः, स्वकर्म बलगर्विताः ॥ कुकर्मनिहितात्मानः, Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पापा सर्वत्र शंकिताः ॥ १ ॥ अर्थः-जे धीर पवित्र गुनकर्मना करनारा होय ते मरे नहिं. पण कुकर्मना करनारा उष्टात्मा होय ते पोतानी मेलेंज शंकाय पनी ते कामी हज दैवयोगथी मध्यरात्रे शय्या मूकीने नाशी जवा माटे बहार नीकट्यो, एटले तेने कालो सर्प मश्यो. त्यारे पोतें पोकार कीधी एटले पुण्यशर्मायें दीतो. दीपक करीने जोयुं तो कामीविजने सर्प मस्यो दीगे. पडी तेना घणा प्रतिकार कीधा,मंत्रवादी तेडाव्या, पण सर्प नुं फेर न तस्यु. एटले जिने विष व्याप्यु. वाचा रहित थयो. पण मन मां सावधान थइ जाणवा लाग्यो जे मारु पाप मने आवी मत्युं. हवे हूं निश्चे मरीश. काले सपै मश्यो तेथी सर्व वैद्यं पण कयु के. ए जीवशे न ही त्यारे ते वेदरुचि कामी हिज तथा पुण्यशर्मा ए बेतु निराश थया. हवे प्रातःकाले सर्व लोक देखतां गुण सुंदरी हाथमाहे जलें जरेलो. क सश ल सर्व लोकनी साखें बोलती हवी के, त्रिकरण योगथी एंटले मन वचन कायाथी जो महारुं शील निष्कलंक होय, तो आ माहरो जाइ नि विष थाजो. एम कही तेनी उपर पाणी बांटयु के,तरत सर्पनुं विष उतयुं. वेदरुचि निर्विषि सावधान थयो त्यारे लोकमां शीलनो महिमा वध्यो. त्यां नगरना लोक सर्व एकता मच्या अने कहेवा लाग्या के, आ सुंदरीयें या विप्रने जीवीतदान दीधुं. एम कही सर्व लोक, ते गुणसुंदरीनां चरणनी कुसुमांजलियें करी पूजा अर्चा करता हवा. ___ त्यारे ते वेदरुचि कामी हिज, चैतन्य आव्या पनी चित्तमांहे विचित्र प्रकारचें आश्चर्य पामी कहे जे के, अरे लोको तमे शी वार्ता करो बो? त्या रें लोको कहे , तुंने सर्प मसवाथी गारुडी वैद्य प्रमुख सर्वे जणे हाथ खंखेख्या अने कह्यु आ नही जीवे. पहोर बे पहोरमां तो तुं काष्ठ रूप था त. अथवा चयमां पडी नवांतर पामत; पण आ बाइए जेनो, अमे पूजा सत्कार करीयें बीयें, तेणें तने जीवतो राख्यो. माटे धन्य ए बाश्ना शी यलने के, जेणे तुमने उपकार कस्यो. एवी महासती आ पृथ्वीमां थोडीज हशे. एवं सांजली वेदरुचि कामी हिज संतुष्ट मान हर्षवंत थर, सर्व लो कनी देखतां गुणसुंदरीने पगे लागी कहे जे के, तुं माहरी पहेला बेन हती, पण हवे तें मने जीवित दान आपीने नवो अवतार धराव्यो तेथी तुं माहरी माता थइ.मोटा पापथी तें मने वायो, माटे हे नगिनी ! ताहरूं महात्म्य Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. G३ में आज जाण्यं. तथा माहरु पाप चेष्टित ते जाण्यु. तो पण तें मुफ पापी उपर उपकार कस्यो. ए तारा चित्तनी निपुणता कोण जाणे? ते माटे हे बेन! हवे ए ताहरो उपकार ढुं केवी रीतें निस्तारं आ उपकारनुं प्रत्युप कार हुँ तुमने शो करूं ? जे तुं कहे ते ढुं करूं. ___ त्यारे गुणसुंदरी कहे . जो तुं मने नगिनी जाणी प्रति उपकार करे, तो परदारा गमन त्यज. हे ना! तुं एवं व्रत लीयें तो महारो बेहिननो प्र त्युपकार था. वली ए व्रत सीधाथी ताहरो आत्मा पण या नवे परनवे सुखी थाशे. परस्त्रीनो गमन करवाथी कुलनी कीर्ति हणाय, वली धन क्य थाय, प्रयाश व्यर्थ थाय, क्वेश विरोध पामे. एवं जाणी जे शुदि पुरुष के ते परदारा गमन वऊँ ए व्रत, महिमा तो तें प्रत्यद दीठो, ते माटे हवे घषु कहेवाथी शुं थाय? ताहरा आत्माने हित थाय ते यादर. एवं सांजली पर दारा गमन न करवू, एवं व्रत पादरी पुण्यशर्माने खमावी, गुणसुंदरीने प गे लागी, निर्मल थइ,ते कामी हिज पोताने घेर गयो, स्वकुलध्यदीपिका निना, धमसंगेगुणसुंदरी गुना अदधद्रगढधर्म संगता, ह्म करणनिश्चयमुत्तम स्तुता ॥ अर्थः-पोताना वे कुलनी स्तुतिकरवाने विपे दीप समान, एवी गुणसुंदरीयें अधमनो संग बतां पण निर्मल व्रत पाल्यु. धर्मने विषे दृढता राखी निश्चयें करी ब्रह्मवतनुं पालन कयुं तेथी ते गुणसुंदरी उत्तम जनने स्तुति करवा योग्य थइ. ए चोथी गुण सुंदरीनी कथा मुनियें संपू एकही एम ते चारे स्त्री परपुरुष त्याग करी शियल व्रत पाली प्रथम दे वलोके रतिसुंदर नामे विमानने विषे देवांगना थ. त्यां सारस्फार शृंगार कांतियें देदीप्यमान एवा देवतानां दिव्य सुख नोगवी त्यांथी चवी शेष पुण्यें करी ए नगरने विपे ए चारे उत्तम कुले उपजी. तेमां एक, कांचन व्यवहारीयानी स्त्री वसुंधरा तेनी तारा नामें पुत्री थ. बीजी, कुबेर वणिकनी पदमिनी नामा स्त्री तेनी श्रीनामें पुत्री थ.त्रीजी, धरण वणिकनी लक्ष्मीवती नामा स्त्री तेनी विजया नामें पुत्री थइ. चोथी पुण्य सार वणिकनी वसुश्री नामें स्त्रीनी कुखे जेम बीपमां मोती उपजे तेम ते सव्रतनी धरनारी देवी नामें पुत्री पणे नपनी. ॥ ४५ ॥ जेम आकाश ताराये शोने, सरोवर कमले शोने, तेम ते पुत्रियोना ज न्मथी तेनुं कुल शोजवा लाग्युं. अनुक्रमें ते चारे कन्या मोटी थ६. सुखें Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GH जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सर्व कला शीखी. यौवन रूप संपदा पामी, पूर्वनी पे ते चारेने प्रेम प्रीति सारी थइ. त्यारे ते विशेप वधवा लागी, सुकर्मे करी तेमने गुरुनो योग थयो तेथी ते बारव्रत धारी श्राविका था तथा शेषना जीवें पूर्वे श्री तीर्थकर देवने जे दान दीधुं ते पुण्यनीशृंखलायें आकर्षी एवी ते चारे कन्या विनयंधर शेठने परणावी. सरखां पुण्यें करी सरखो योग मले तेम ए शे उने ए कन्या पण सरखे सरखी मली जे. जेमाटे योग्य होय ते योग्यने विषेरंजित थाय , एवी प्रसिह लोकोक्ति . ___ पुण्यानुबंधी पुण्यरूप मेघे करी पुण्यना सात देव सिंच्या तेथी फल्यां एवां जे शातारूप धान्य ते महा आनंदमय थयां . तथा ए पांचे जीवने देवता सांनिध करे . ते तो जेना चित्तमां धर्म होय तेने देवता सांनिध करे. माटे एनी उपर जे मातुं चिंतवशे, तेने देवता विघ्न करशे.ने थोडा कालमां ते विनाश पामशे. वली मुनि कहे . हे राजन्तुं पण जाणे . पोतानी चढूयें दीतुं . जे शासन देवतायें तुझने बिहामणुं रूप करी देखाडयुं ते एना शीलने प्रता जाणवू. ए एक ढुंकार मात्रे हाक मारता जो सापदीए तो विद्याधर सरखो होय ते पण बलीनस्म थाय.एना समकितना गुणथी एना चित्तमां तुझ उपर अनुकंपा उपजी . तेणे करी तुऊपर ते मातुं चिंतवती नथी. जे महासतीनुं शी यल नंगाववानी इजा करे तेनुं ते महासती जेटलुं मालु करे, तेटलुं यद, राक्स अथवा विद्याधर विराध्यो थको ते मातुं न करे. हे राजन् ! तुं का मरूपी गरलविष पीज्यो बतो सत्य शीयल जलें करी थोडा कालमा धन्य थइ महा कल्याणने पामीश, अल्प शीयलरूपी तरुवरनां तुजने योग्य एवां फल तुं जोश तो मोटा सत् शीयल रूपी कल्प वृदना फलना आस्वादननी चातुरी शी कहूं? तेना तो अत्यंत मोटा सान , ते कह्या न जाय. एवां ज्ञानीनां वचनरूप जे अंजन तेणे करी ते राजाना मिथ्यात्वरूप तम पडल दूर गयां. तेथी सर्व नावने प्रकाश करे एवी निर्मल सम्यक्त्व झानरूप ज्योति प्रगटी. त्यारे ते राजा मुनिने कहे . हे जगवन् ! ए पां चे जीवोना जीवितने धन्य ! ए स्त्री जरतारना चरित्रना अधिकार सांजल तां सर्व जीवने महा सुख उपजे . तथा हे मुनि ! महा पापना आचर Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ण थकी हुँ सतीने संतापनो करनार थयो, निंदकमां दुं निंदक -थयो, ही णामां दुं हीणो थयो ॥ ५०० ॥ ___ अथवा में पूर्व को मोटी पुण्याइ कीधी हती, जेथी में तमाराजेवा सा धुनो वचनामृत रस पीधो. हवे तमें कह्यु जे मोटुं शियल तेज ढुं महारी नार्यासहित पादरीश. घणुं कहे गुं? एवं राजानुं कर्तुं वचन सांजलीने ते समये विनयंधर शेठे साधुने विनंति करी के, हे नगवन् ! तमारा वचन रूपी मंत्र करी माहरो विषय रूपी ग्रह हतो ते नातो. ते माटे हवे हुँ हुँ के, तमारां चरण कमल समीपें हुं महारी नार्या सहित दीक्षा लेकं. त्यारें मुनि कहे , अहो देवाणुप्पिया ! ए कार्यमा प्रमाद न करशो. धन्य ने तमने ! एवं चारित्र आदर तमने घटे में, ___ एवां गुरुनां वचन सांजली हर्षवंत थइने ते राजादि सर्व ते मुनिने नमी घेर जश्ने दीदानी सामग्री करवाने उजमाल थया पण राजाने को राज्य योग्य पुत्र नथी. त्यारे प्रधाने विनंति कीधी, हे स्वामि! तमने पुत्र थाय त्यांसुधी विलंब करो. कोई पुत्र तमारे थाय तेने राज्य नार सोंपी पड़ी दीक्षा व्यो. तो पण राजायें प्रधाननुं वचन न मान्युं. त्यारे लोग वैराग्य थकीब मासनो गर्न हतो. तेथी वैजयंती राणीने राज्याभिषेक करीने पोताना प्रधान सामंतने नलामण दीधी के, राणीने जे पुत्र थावे तेने राज्य स्थापी नग रनी प्रजानी रक्षा करजो. ए प्रमाणे जलामण दश्ने, विनयधर शेठने खमा वीने, श्रीजिन नवने अहाई महोत्सव करी, घणा अर्थी जनने दान दइ, वि नयंधर शेव तथा तेनीनार्या सहित, तथा बीजा नगरना घणा लोकनी साथें सर्व विधियें मोटे महोत्सवे, राजानी साथें दीक्षा लेवाने सर्वजन गुरु पासे आव्या. गुरुये पण तेमने दीक्षा द६, सर्व शिष्य शिष्यणी साथें विहार कीधो. __त्यार पंबी वैजयंती राणीने सामंतादिके आश्वासना द६ स्थिरता उप जावी. ते राणी पण पुत्रनी आशायें ते गर्ननी प्रतिपालना करती हवी. समय जाते गर्ननी अवधि पूरण थइ. सर्व लोक सूतां त्यारे ते राणी मध्य रात्रे गुन मुहुर्ते रूपवती पुत्री प्रसवी. ते पुत्रीने देखीने राणी चिंत ववा लागी के, में पापणीयें पुत्री प्रसवी. पुत्र न प्रसव्यो. विधात्रायें ए मु विपरीत कीधुं ? जेमाटे महारुं चिंतव्युं कां न थयुं ? पड़ी ते पुत्रीने ए कांते बानी राखीने एक विश्वासवंती दासीयें प्रधानने जणाव्यु, त्यारें बु Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दिवंत प्रधाने पुत्रनी पे वधामणी आपी. लोक मध्ये एवी वार्ता चला वी के, राणीयें पुत्र प्रसव्यो जे. एम कही राणीने एकांते राखी पुत्र जन्म नी उद्घोषणा करी. सामंतादि सर्व धानंदने पाम्या. एम पुरुषने वेषे बानी राखतां ते पुत्री मोटी थइ, यौवनावस्था पामी, ते देखीने राणीयें प्रधा नने कह्यु के, अवश्य हवे एने वर जोश्ये, हवे ढांक्युं नही रहे. त्यारें प्र धान मनमां चिंतवीने जेनो स्वनावेंज सत्य प्रनाव एवो यद धाराध्यो त्यारे ते यद प्रगट थइने बोल्यो के, ढुं आजथी त्रीजे दिवसे ए कन्याने योग्य उत्तम वर सरोवरनी पाले लावीश. तेहने ए कन्या थापवी पण योग्य जे. ते पोतनपुर नगरना राजानो पुत्र ने. ते आ देशनो स्वामी था शे. ते पुरुष ए था कन्यानो पाबला नवनो जार पण वे ॥ ५१६ ॥ पजी ते मंत्री त्यां प्राव्यो. तलावनी पाले पुरुषने वेर्षे जे कन्या राजा थश्वेती हती तेनी साथे यदना आदेशथी तमो याव्या ते तमने हुँ मा हरे मंदिर तेडीलाव्यो. अने ते कन्या राज पुत्री पोताने मंदिर गइ. ए पूब्यानो सर्व वृतांत तमने कह्यो. शेष व्यतीकरतो सर्व तमे जाणो बो. त मने जे समये दीठा ते समयथी तमारे विषे कन्या- तीव्र राग थयो.सम कालें ते अतिशये काम विकारे पीडाणी, कामेकरी ग्रहेवाणी. ते कामीनां लक्ष्ण कहे जे. कमल सरखां लोचन ते चपल थाय, ल जा तथा शरीरनी कांति ते मंद थाय, कपाले स्वेदना कणीया (रेला) थाय, जापीयें कलारूप चंनी पासे ताराना समूहज प्रगट्या होयनी ? एवी ते थइ. कामीना शरीर लतायें सर्व रोम उत्कृष्ट ननां थाय, नाषा गद गद बोलाय, सादात् ते राज्य कन्या तमने दी ए रूपें थइ जाणी, ते माटे ए कन्यारूप सरोवर तेहना मनोरथ तमे मेघ समान पूर्ण करो, एटले राज कन्याने अंगीकार करो. तमो परोपकारी बो. तेने घणुं गुंक हियें ? एनो परमार्थ जे सत्य हतो ते में तमने कह्यो. माटे अमारुं वचन प्रमाण करो. तमो तो बीजा पण घणा काम करवाने समर्थ बो ॥५१॥ ते चरित्ररूप अमृतने कर्ण पुटें पानकरीने, एटले राजानु चरित्ररूप थ धिकार सांजलीने शंखराजानो जीव जे राजकुमार ते पोतानुं मस्तक धूणा वतो हवो. अने ते प्रधान, वचन दाक्षिण गुणे संपूर्ण मानतो हवो. पूर्व नवना अन्यासथी रम्य रूपना अतिशय थकी ते कुमरने पण ते राजक Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. न्या प्रत्ये प्रेम राग यातो हवो ॥ यतः ॥ जाई सराई नृणं, नयलाई म पं च हुंति लोयस्स ॥ पच्चमियाांति जर्ज, पियापियं दिवमित्तंपि ॥ १ ॥ ते सांगली वैजयंती राणीयें अर्थात् कुमरीनी मातायें कुंवर श्राव्यानी खबर जाली त्यारें हर्षे करी विवाहनो उत्सव प्रारंच्यो गुन तिथियें, गुन नक्षत्रे, गुन वारें, गुन लमें, बहु दान सन्मान गीत नृत्यपूर्वक महा महोत्सवें कुंबरे, गुएसेना कुंवरी यती गौरवें करी परणी, पढी ते अंग देशनो राजा पोतें थयो. सूर्यनी पढें उग्र प्रतापें करी पृथ्वी मंगलमां विख्यात यतो हवो. एटले ते राजा महा प्रतापी थयो. 69 . एक दिवसें वत्सदेशना अधिपति समरसिंह राजायें मत्सर घरी दूत मोकल्यो. ते दूतराजा बागल थाव्यो, अने पोताना स्वामियें कहेलां व चन कहतो हवो के, हे राजेंड् ! सांजलो. तमें पाम्या बो एवी जे राज्य ल मी ते अनुक्रमें घणे कष्ठे जोगवाय बे ने तुं स्वामिनी आज्ञा विना नि जय पणें राज्य जोगवे बे ? तो हे पंथि ! तुं कां जय नथी पामतो ? गुं राजा विना जगत् हशे ? गुं तुं वटेमार्ग थइने राज्य जोगवीश ? माटे तुं यमारा स्वामिनी आज्ञा मान्य कर. नहीं तो राज्य मेली दे. अथवा ना शी जा, अथवा पराक्रमी होय तो तेनी सायें संग्राम करवाने सऊ था. ए विना चोथो उपाय ताहारे कोई नयी एवं दूतनुं वचन सांजली राजा अं तरंगमां प्रति कोपायमान थयो, पण बाह्य वृत्तिये हसीने ते दूतने कहे ले के, हे दूत ! मुऊ बतां, पारकी धरती जोरावरीथी जेवाने कोण समर्थ ने ? राज्य प्रापतुं वली नासवुं, वाह ! एशी वात ! हुं ए बेहुने दूर मूकीने. ए कां न करतां संग्राम करवाने तैयार बुं, धने तु पण सिंहप शुं मूकीने जो पराक्रमी होय तो शंग्राम करवाने सऊ थाजे. इत्यादिक क ar वचन कही दूतने विदाय कस्यो. तेणें जइ पोताना स्वामीने वात कही. त्यारे ते वे राजानां सैन्य सीमनी मर्यादायें खावी मल्यां बहु आरंभ दे खीने अंगदेशनो राजा समरसिंह राजाने कहे बे के श्रापणे वेदु मदोन्म तबलीया बीये तो बेहु जण परस्पर युद्ध करियें. पण बीजा प्राणीने पी ये गुंलान बे ? पी जे जीतशे ते पृथ्वी जेो ॥ ५३५ ॥ एवं अंगाधि पतीनुं वचन समरसिंह राजायें अंगिकार क. मां पढी ते बेड राजा परस्पर युद्ध करता हवा. गजराजनी पठें गंभीर Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GG जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. गर्जना करता, एक एकनी चोट चुकावता, वली बेदु हांको मारता,हूंका रा करता, सिंह नादे पोकार करता, विविध प्रकारनां आयु६ मूकता, मां हो मांहे वलगता, लीलायें खेलता, विद्याधर सरखाने जय पमाडता, एवा ते बेदु राजा महा यु६ करे . घणा यूर पुरुषने त्रास पमाडता, घणा देवताने नसाडता, एवा ते बे युद्ध करता हवा. तेथी ते यूर पुरुषने प्रशंसा करवा योग्य थया. एवो संग्राम शतां कोई दैवयोगथी वत्सदेशनो राजा समरसिंह ते घाणा घातें पीडाणो थको मूर्ना खाइने जूमीयें पज्यो, लो चन मली गयां, त्यारे अंगदेशना कमलसेन राजायें पाणी मगावी तेनी उपर बांटयो. पाणी सींच्यो, वस्त्रे करी वायु वीज्यो, घणा उपाय करीने समर सिंह राजाने स्वस्थ कीधो. त्यार पड़ी आश्वासना दश्ने हितेच्बुनी रीतें हीमत दीधी. अने कह्यु के, तमारो नाम जे समरसिंह ने ते सत्य जे. संग्रामने विषे तमे साचा सिंह बो.जेवा नामें तेवा परिणामें बो. माटे विष वाद न करो, बने प्रसन्न थ हीमत राखी हाथमां श्रायुड़ धरो. एम कर्दा त्यारे समर सिंह राजा मनमां विचारे ने के,अहो! एनुं पराक्रम पणुं ! अहो! एनी युद्ध कलानी कुशलता जोतां ए को मोटा राजाना कुलमां नपज्यो हशे एम लागे . ए को महा पुरुप ले. क्यां दुं वृक्ष थयो तो पण पर राज्यना लोनें करी केवो अन्याय करूं ! अने ए लघु वयनो ने तो पण केवो नीतिमान, विनयवंत अने न्यायवंत पराक्रमी . हवे हुँ मानर हित थयो माटेराज्य जोगने योग्य नथी. हुं हवे दीदा सेवा योग्य बु ५४४ __ एवं चित्तमां धरीने समरसिंह राजा कहे . हे राजन! मारो मान घा त थयो. तेथी हुँ मृत्यु मय थयो. माटे हवे मारी साथे तमारे संग्राम कर वो घटे नहिं. मुवा साथे युद्ध युं करवू ? तो हवे तमे सात्वीक . तमे मारु राज्य लीयो मारी आठ कन्या , ते साये तमे लग्न करो अने मारुं रा ज्य पण जोगवो. अमे हवे परनवर्नु हित कारी एवं चारित्र व्रत आदरझुं त्यारें कमलसेन कुमार कह्यं तमो तमारी परंपरायें जे आव्युं ते राज्य पालो वली समय आवे त्यारे परजवर्नु हित साधन करजो. एम कर्तुं तो पण ते राजा अति वैराग्यवंत थको संसारमाहे न खुत्यो अने कमलसेन कुमार नणी पोतानी आठ कन्या तथा वत्सदेशनुं राज्य दपोते सुधर्माचार्य पासे Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नए दीक्षा लीधी. त्यां बीजी पण घणी कन्या सामंतमंझलें परणावी. एम बीजुं राज्य पामी कमलसेन कुमार पाडो चंपा नगरीये आव्यो. त्यार पडी कमलसेन राजा एक दिवस सनामां बेगे हतो, एटलामां पोतनपुरथी पोताना पिता शत्रुजय राजानो दूत आव्यो, ते राजाने नमिने तेमना पितानुं लखेलुं पत्र प्रापिने उनो रह्यो, त्यारें कमलसेन राजायें पोताना माता पितानी कुशल खबर पूजी. तेने दूतें प्रकट पणें सर्व शातानी खबर कही ते एवी रीतें. केः- हे स्वामी ! तमें वगर निमित्ते माता पिताना कह्या विना कम वसंतकीडा मूकीने बहार निकली गया ? तमें गया पनी तमारां माता पिता तथा नगरनां लोक ते घणां शोकातुर थयां ले, ते दिवसें कोश्ये आहार पण न कस्यो, हाहाकार थइरह्यो. तमारे वियोगें राजादिकें जे मुःख जोगव्युं ते दुःख नरकने विपे रह्या एवा नारकी जीवज जाणे. तमारी पणे ठेकाणे शोध करी, पण क्यांय खबर न पाम्या. त्यार पली को वैतालिकें यावी तमारा गुणनीस्तवना करी ते सांननी तमारा पिताने शाता थ६. त्यारें तमारा पिताना आदेशथी हुँ अहीं श्राव्यो. ते माटे हवे ढुं स्वामीनी विनति करूं ते अंगीकार करो. तमा रा माता पिता तेतमारा वियोग रूपी दावानिये जे दायां , तेने पोताना दर्शन रूपी जलथी शीतलता करो. एटले एक वार पिता पासें यावी जा. एवं सांजली राजायें चिंतव्यु, जे अहो मारां माता पितानो मारी न पर अत्यंत निविड राग ,जे माटे घणे काले पण तेमने पुत्रनो प्रेम नथी विसरतो, तो जगतमां संतान उपर प्रेम एवाज देखाय जे. अरे द्वं पेटनरो थयो.जे माटे हुँ माता पिताने विसारीने पोतानी विषय लीलामा पज्यो. ते माटे त्यां जश् मारी नपार्जित इति तेमने अापी पगें लागी माता पि ताने हर्ष नपजावं. एम विचारीने दूतनुं वचन प्रमाण करी मतिवर्धन प्रधानने राज्यनी नलामण दर, जले मुहूर्ते प्रस्थान करी मंगलमय पि ताने मलवा नणी चाल्यो. गज, अश्व, रथ, पाला, एम चतुरंगी सेनायें परिवस्यो थको, नईम महोटा बत्रे करी ताप निवारतो, घणा वाजिंत्रने घोपें आकाशने बधिर करतो, हाथीनी गर्जना थाते, घोडाना हणहणाट करते, घणा रथना चीत्कार थाते, पृथ्वीचक्रने चलावतो, मार्गे जला नला महोटा महोटा राजाना महोटा महोटा नेटणेकरी पगे पगें पूजा पामतो, १.२ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RO जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. लोक तेनी गुम संपदाना कुतूहल जोतांठगम नाम मनोवांडित जवन करा वतो, जिनपूजा रचावतो, घणा दानादिकें मुनि राजनी नक्ति करतो, घ पा जीर्णोधार करावतो, घणा याचकने दान देतो, दीन दुःखीनी अनु कंपा करतो, एम सर्व स्थाने उत्तम काम करतो, पोताना नगर पासें आ व्यो. त्यारे पुत्र आव्यानी खबर सांजली, पिता पण महोटे नत्सवे सामो आव्यो. पिताना हृदयमां चिरकालनो विरहामि तप्यो हतो तेने पुत्रना हृद यरूप चंदनें आलिंगन करी शीतलता नपजावी. एटले पिता पुत्र वेद जण बादु नोडीने मट्या. पडी पिता पुत्र वेदु हाथी उपर स्वारी करी वेळा त्यारे सधवा स्त्री तेने जोती हती,श्वेत चामर विंजाते, नगरना लोकने पोलेपोलें धार हार प्रत्ये मलतो अर्थिजनने दान देतो, पुर जनना मुख कमलने सू र्यनी पेठे विकास करतो, एवा ते कमलसेनें वाजिंत्र वागते नगरमध्ये प्रवेश कस्यो. सर्वजन राजमंदिरें आव्यां. कमलसेन कुमार पोतानी माताने चरणे नम्यो. त्यारें माता हर्षरूप जलें करी कुमारने सिंचती हवी. त्यार पबीते माता पुत्रने कहे . हे वत्स! चिरकालना दुःखनो टाल नार जे तुं ते तुं विना जे अमें जीव्यां, तेथी अमारा हृदय वन जेवां को र ने. अद्भुत संपदा पामीने आज तुं अमारे नाग्ये अमने मल्यो. ते माटे तुं चिरंजीव रहो. वडनी शाखानी पेठे तारो विस्तार था. एवी आशीप मा तायें दीधी. एम मातानी आशीष लश्ने पनी अन्य माताने चरणे नम्यो, प्रधानादि सामंत सर्वने मल्यो, घणो आदर सर्वेयें दीधो. त्यार पडी सुत्र वसर पामीने पितायें तेने निकली गयानुं कारण पूज्युं. पितानुं वचन पो ताथी नजंघाय नही, तेम बीजो पण तादृश तेवो कहेनारो नही, तेथी पोतेंज मलथी मामीने सर्व हकीकत पितानी आगल कही ॥ ५७१ ॥ ते एवीरीतें केः-शब्द सांजली जे पलायन करतो हवो अने राज्या दिक जे पायो, जेटली कन्या परण्यो, संपदा जेम पाम्यो, ते सर्व पूर्वनुं वृत्तांत पिता आगल कह्यु. ते व्यतिकर सांजली पिताना रोम, हर्षे करी उन्नस्यां अने घणु याश्च र्य पामी ते बोल्यो, अमारा कुलमा ए पुत्र धर्म शर्मनो दाता प्रगट्यो. किं वा कामधेनु अथवा कल्पवृक्ष अथवा रत्नचिंतामणि तेथी पण अधि क एवो ए पुत्र अमारे कुलें उपज्यो. हाथे पगे शरीरे तो सदु सरखा पु Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. " रुष मात्र केहवाय . पण संख्यातीत, अचिंतनीय अने आपदा रहित एव। संपदाना धणी एवा पुण्यप्रतिवाला पुरुष तो मात्र धर्म थकीज थाय दे. जेम कर्दम मांहेथी कमल नीपजे, ते सार , वली माटीमाथी सुवर्ण निकले ले ते पण सार , बाशमाथी माखण निकले ले, ते सार ने, पबरमांथी रत्न निकले, ते सार बे. तेम मनुष्यावतारमाथी जे धर्म उपा र्जना करवी ते पण सार . ते माटे धर्म उपार्जन विना आ जाजरा राज्यपिंजरमां अमने हवे रेहबुं न घटे. हवे धर्म अादरीयें, तेज सारूं ने, एम विचारी जला ज्योतिषी पंमित तेडावीने नलुं मुहर्त ला महा महोत्सवें पितायें कमलसेन कुमरीने राज्यपदें स्थापना कीधी. त्यार पनी ते शत्रुजय राजा कर्म शत्रु जीतवाने शीतल शीलंधराचार्य पासें सर्व संग निवारी दीक्षा लेतो हवो. __ ते राजर्षि केवा थया ? ता के, महाव्रती, महाध्यानी, महाशांति मय थया. ते मुनि तप संयमें करी पोताना कर्म खपावी, कुशल ध्याने कृपक श्रेणि आरोही केवल ज्ञान पामी मुक्त पहोता. त्यार पनी ते कमनसेन राजा सूर्यनी पेठे महा प्रतापी थयो. पृथ्वी मंमलने विषे दिन प्रत्ये प्रतापनी वृद्धिपामवा लाग्यो. जाणे एक नवो चश्माज उग्यो होय नही झुं ? तेनी पेठे सम्यक् प्रकारें, न्याय नीतियें, राज्य संपदा जोगवतो जैनधर्मनेविषे निश्चिंतपणुं राखतो, अनेक पुत्र पौत्रादिकें पर म विस्तारने पामतो हवो. __ वयः परिपक्क थया, एटले तेनी ज्यारें वृक्षावस्था थई त्यारे नोग अने राज्य एनेविषे ते राजा अनुक्रमें करी विरक्तपणुं पाम्यो. जे माटे सऊन होय तेने ए युक्तज ने, कारण के वृदना नवपन्नव जे , ते पण ज्यारें परिपक्क थाय त्यारे अचेतन बतां पण अनुक्रमे रंग बेरंग थाय तो सचेतन पुरुष होय ते केम वैराग्य न पामे ? पण सूका काष्ट समान जे मूर्ख होय ते वैराग्य न पामे. एवे समयें ग्रीष्मकालनो जे ताप तेणें करी बव्या एवा जे लोक, तेनी बलतर देखी, पृथ्वी ठंझी करवाने जाणे दयावंतज होय नहिं ? एवो वर्षा काल आवतो हवो. एटले वर्षाऋतु आवी, कलिकालनी नपमा जेवा घणाज काला मेघो उमाह्या. विलासवती स्त्रीनी जेने उपमा जे एवी जे विजली Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए‍ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. त्या तेना चर्मकारो थवा लाग्या, सुका सरोवरमांथी थोडा जलने लीधे जे जीव तडफडता हता ते दीन जीवने जीवाडवानेज जाणे वर्षा यावी होय नहिं शुं ? मेघनी गर्जनाथी मोरो तथा बप्पैया शब्दायमान थइ रह्या बे, पठी मोटी धारासहित खखं धाराथी निरंतर वरसतुं जे पाणी तेथी नीची उंची जे भूमि हती, ते सघली जलमय करी दीधी. एवी मेघनी घणी वृष्टि इत्यारे लोक सर्व हर्षवंत थया. त्यार पढी वरसादनी लीला जोवाने ते कमलसेनराजा हाथीयें वेसी प्रजा लोक सहित नदीने तीरें श्राव्यो. त्यां राजा चारे तरफ नजरें जोवे के, तो नदीयें पूर वधतुं जाय बे, अने वे बाजुनी खडोने पाडे बे, तरुवरने निर्मूलक करे वे, नदीनां वे तटनी धून पाणी मांडे पडे बे, तेथी सर्व जल मोहोलाई जाय ले. हिंसक जीव सर्प सरिसृपादिक ते सर्व तणातां जाय बे, पंथी लोक नावमां बे, तो पण ना तोफान वाथ तणातां जाय बे, ते सर्वेने राजा जोइ रह्यो बे. जलमां मूबता लोकोने तारनार जे हता, तेपण ते मेघमां मुबवा लाग्या गाम तातां मां मूकां मारतां एवा लोकोने तारु लोक ज्यां त्यां काढे ते राजा जुवे बे. एवी रीतें सर्व जीवने नय उपजावनारी एवी ते जयंकर नदी वहेवा लागी, तेनुं जयकारक पाणी वधतुं वे बे. याने तेथी लोक पाना उसरता जाय बे. एवं कौतुक राजा देखतो हवो. हवे पाणीनुं पर उतर गया पठी नदी पोताना तटने पाडती रही गइ तथा तरुने उन्मूल करती रही गइ. ते नदी वली एक क्षणमांहे सुखें उत राय तेवी ने वली निर्मल जलवाली थइ गइ सुखें लोक स्नान करे, पाणी पीये लीलायें जलक्रीडा पण करे, बाल, वृद्ध, युवान, सुखें उतरे, एवी 5. एवी रीतें तादृश नदीनुं स्वरूप देखीने राजाने वैराग्य उपज्यो, ने चिंत ववा लागो, जे ग्राम नदीनी पेठे धन संपदानी पण स्थिति बे. कारण के धन संपदा पण एमज घटे, ने वधे बे, वली एक दणमां विणसी पल जाय बे. तथा विशेष पण थइ जाय बे. प्राणी जे बे ते नदी समान बे. संपत्ति जे बे, ते नदीना पूर समान बे. केमके ज्यारें मनुष्यने धन वघे, त्यारें पोते मदोन्मत्त थको पोतानी ने परनी वात करे बे पाणी यें करी जेम कचरो थाय बे, तेम खात्मा कर्मे करी मोहोलो थाय बे. ते कर्मरूपी धूजेंकरीयात्मा या नवें घने परनवें अनर्थनी परंपरा पामे डु Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ३ बें, जेनो खात्मा प्रसन्नमन थइ, शान्तिपणुं पामी, सुसंवरमां पोतानी म र्यादा पाली, संसारमा पोताना स्वरूपें रह्यो, ते निर्मलजलयुक्त नदीनी पठें पोताने ने परजीवने सुखदायी थया ॥ ५८ ॥ जे देशने वश करे, संग्राम करीने शत्रुगणने जीते घर मंदिर निपजावे, तेपण एक मांचेज निश करे बे. तथा तेने रथ, अश्व, हाथी, पालखी, शय्या, शृंगार, हार व निता इत्यादि वस्तु घणी होय तोपण तेने मितप्रमाणें करीज योग्य होय बे. तोपल ए संसारीजीव ते वस्तुने खात्माने हितकारी जाणे बे. जे राजा देश कोशादि घणा मेलवे बे ने जोगवे बे, ते सर्व बुद्धिनुं सुख माने बे. ए सर्व संपत्तिनो जे विस्तार बे, तेनां यनिमान ममत्व जीव करे बे ते वधुं व्यर्थ . धन्य बे तेने के जे जगतमां मान्य थइने सर्व संगना त्यागी थइने पंतिमा श्रेष्ठ यया ? एम वैराग्यनावना नावतो यको राजा सहसात्कार संवेग पाम्यो. वि पयसंगथी विरक्त थयो विपमिश्रित यन्ननी पेठें एटले जेम विपमिश्रित यन्न बांयें तेम ते राजा विषयोनो त्यागी थयो. पढी त्यांथी वेर प्रवीने सेना राणीनो पुत्र जे सुपेण कुमार बे, तेने शुनदिवसें, महोटे न त्सवें राज्य गादीवर स्थापन कीधो. त्यार पढी कमलसेन राजा दीक्षा ले वाने तत्पर थयो, एटले श्री शीलंधर सूरिना शिष्य, सद्गुरु श्रीसंयम सिंहसूर यावी समोसा. तेमनी पासेंथी धर्मदेशना सांजली, महामहोत्सवें, गुणसेना राणी प्रमुख घणी अंतेवरी सायें, तथा घणा सामंत घणा उमराव प्रधानादिक अनेक पुरुष सायें कमलसेनराजायें अणगारपणुं पडिवज्ज्युं एटले दीक्षा लोधी. त्यार पढी ग्रहणा, आसेवना, ए वे प्रकारनी शिक्षाने ग्रहण करता. बह ग्रहमादिक तपें करी, पोताना शरी रने शोषवता, यति स्तवना करतां, गुरुना चरण कमलनेविषे चमर समान थाता, जाइनी पेठें सर्व साधुनुं वैयावच्च करता, गुर्वादिकें कार्य जलावे तुष्टिपणुं पामता, स्मरणादि क्रियायें हर्ष पामता, सर्व प्रमादरहि तपणे, सर्व कृत्यने विषे उद्यमी थका प्रवर्त्ते ले. एव तें घणाकाल पर्यंत सत्त्वशीलें करीने संयम पालीनें शरीर ज्यारें डर्बल यर गयुं, त्यारें बेहले समयें संजेपण संथारो की धो. अनशन चौवि हार करी, चार शरणां करी, खरिहंतनुं ध्यान धरता, धर्मध्यानें देहरूपी Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (d जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. घर मोने, पांचमे ब्रह्म देवलोके देवता थया. त्यां दशो दिशे है का न्तिनो नद्योत करता, दश सागरनुं आयुष्य जोगवता, सुरनारी ज देवां गना तेनी साथें कीडा करता अदिप्त चित्तथका विचरे ने. त्यार पड़ी गुणसेना राणी साध्वीपणे शुद्ध चारित्र पाली, अनशन आराधन करी, ते पण गुनध्याने काल करी पांचमे ब्रह्मदेवलोकें तेज दे वताना मित्रपणे जइ उपज्यां. जेणे निरंतर तप संयम पडिवज्यां, तथा जेनी शीलनी लीला निर्मल ले, ते जीव शंखराजाना जीवनी पेठे नवो नवने विपे सुबोधलब्धि पामशे. ए कमलसेन राजाना सर्व व्रत चारित्रना लाननी कथा कही. इति पृथ्वीचंश्नां चरित्रने विषे लब्धि अंक एवे भामें बीजो सगें समाप्त थयो॥ २ ॥ इति श्रीहितीयसर्गे पृथ्वीचं अने गुणसागरना चरित्रना चार नवनो सं बंध संपूर्ण थयो॥ ॥अथ तृतीय सर्गस्य बालाववोध प्रारंनः॥ यथास्ति स्वस्तिसंपन्ने, तिलके नारत स्त्रियाः॥ शूरसेनानिधे देशे, सुस्थि रा मथुरा पुरी ॥ अर्थः-ते कमलसेन मुनिनो जीव, पांचमे देवलोके वीश सागरोपमनुं आयुष्य नोगवी, त्यांथीच्यवी जंबहीप नामें ही नरतत्रने विपे शूरसेननामा देशने विषे तिलक समान मथुरानामा नगरी .त्यां मेघ नामा राजानी मुक्तावली राणीनी कुखमां उत्पन्न थयो. हवे ते नगरी केवी ? तो के, त्यां दम तो एकमात्र देहराने विपेज ने ज्यां बंधन नारीना के शना अंबोडाने विपेज में, एटले नारीने चोटलाने बंधन ले, त्यां मात्र मार शब्द तो सारा लोको सोगताबाजी रमे, ते दावमां सोगाने जे मारे ने तेज मारने पण अन्यस्थानके नथी. कोइनो कर कालवो, तेतो विवाह मां वरकन्या परणे, त्यारेंज . बीजो को कोनो हाथ पकडतुं नही. स्ने हनी हानि ते तो दीपकने विषेज ; पण बीजा लोकने विषे स्नेह क्ष्य नथी. कणना देत्रविषे खल एवो शब्द , पण नगरने विषे कोई पण पुरुष खल नथी. अशुभ मणिने विषे त्रास दे, पण नगरने विषे कोइने त्रास नथी. ते पूर्वोक्त गुणयुक्त नगरीमा मेघनामें राजा राज्य करे , ते राजा रूपें करी कामदेव जेवो के. दाने कल्पम जेवो . पराक्रमें सिंह Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. एप समान बे. ते नगरने विषे रोग आतंकनुं नय नथी, तेना वैरीने आतंक जय . समस्त लोक कटक सैन्यनी वात तो जाणताज नथी. ते राजाने मुक्तावली नामें नार्या . ते जला व्रतनी पालनारी जे. गुण वंतनी संगी . मुक्तिनी श्रेणिनी पते निर्मल ले. तथा ते विश्नी जोनारी नथो. हवे ते राजानु नाम मेघ , तेथी ते राजाने मेघनी साथें सरखावे ने. ते मेघ जेम विजलीयें शोने, तेम ते राजा राणीयें करी शोने ले. मेघ जेम थाकाशने शोनावे, तेम मेघराजा स्ववंशने शोनावे . मेघ जेम ज लधाराने वरसे ने तेम मेघराजा दाने करी वरसे . एवा समयने विषे एक दिवसें राजा सना जरी वेगे ते सना दर खास्त थ त्यारे राजा सनामांथीची पोताने आवासें आव्यो. त्यां मुक्ता वली राणी नीचे मुखें गाले हाट, रइने रुदन करती दीठी, त्यारे राजायें घणो आग्रह करीने दुःखनुं कारण पूज्यु, त्यारे राणी कहे जे, के हे राजा! आपणुं दुःख तो जगतजनमा प्रसि ते गुं तमो नथी जाणता? त्यारे राजा कहे , के ढुं प्रकट नथी जाणतो. तेथी मने आश्चर्य थायजे. हे राणी! ते \ दुःख ? ते मने प्रकट करी जट कहे. त्यारें राणी कहे डे के पूर्वे में तमने नथी कह्यु ? तेपण गुं तमो विसरी गया ? यतः॥ को नाम गुण मरहो, सोहग्ग नड फुरो य को तेसिं ॥ का वा सुहासिया वा, पियाण जेसिं सु नजि ॥ ॥ धावंत खलंत पडं, तयाई धूली धूसरंगाई ॥ध नाण रमंति घरं, गणंमि दो।तनि झिम्नाई ॥॥ ते माटे राज्यशदि संपत् सर्व ले, पण एक पुत्रविना जीवतर वृथा ने तेमाटे ढुं एज पुःखें करी आज रुदन करूं बुं. ते फुःख तमे जाणता नथी ? अथवा तमारा हृदयमा ते दुःख नथी आवतुं ? एवं राणीनु केहबुं सांजली राजा कहे जे के हे राणी ! या कार्य देवने हाथे , अर्थात नाग्याधीन ने. पण बल पराकमें नथी थातुं. माटे तेनो श्यो शोक करवो ? ॥ यतः ॥ वाएण बलेण परा, कमेण मंतो सुहाइ जुत्तीहिं ॥ विनसेहिवि कविहिवि हिय, न तीरण अन्नहा काडं ॥१॥ तेमाटे हे प्रिये ! जेनो प्रतीकार नहीं, तेनो निःष्कारण शोप शो करवो? ने करेथी गुं वलवानुं ? त्यारे राणी कहे , के एवं कांs एकांतवचन नथी. कारण के तमाझं मन तो एकांत ग्राही . तेथी तमे कां बता नथी. पण एकांत नावने अवलंबीने सऊन होय ते Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकया रत्नकोष नाग सातमो. न रहे, चतुर होय ते निश्चय तथा व्यवहार ए वेहुने अवलंबे; पण ए कांतग्राही न रहे. जेम मणिमंत्रनो प्रनाव अचिंत्य , तेमां दैवत ले, तोपण समय सामग्री पूजना कीधे फने ले. तेमाटे मारीपर करुणा करी माझं को पाप चेष्टित डे, तेणें पुत्र थातो नथी, माटे कोइ इष्ट देवने समरो. तो पुत्र लान थाय. त्यारे राजायें कह्यु, जे मुऊने इष्ट थाशे त्यारे उपाय करशुं. ___त्यार पढी राजा मणिमंत्र, यंत्र, अने औषधादि नपाय करतो एक दिवसने विषे स्मशानने विषे गयो, ते दिवस कालीचौदशनो हतो. त्यां जश् मांसादि वलिवाकुल विखेरतो एम बोलवा लाग्यो के, नो नो नूत प्रेतादि पिशाचको! एक मने पुत्र आपो, तमो बलिबाकुल सुखें यो, ने स्वेबाथी जोगवो. त्यारें कोइ नूत आकाशें बोल्यो, अहो राजा! आ मांसना बलिबाकुलें पुत्रप्राप्ति न थाय, पण जो तुं तारूं मस्तक नेदी आपे, तो पुत्र प्राप्ति थाय. त्यारें राजा कहे, ढुं मारे हाथे मस्तक छेद। त मने आ', एम कही मावे हाथे पोतानो चोटलो काली खड्ग लइ पोतार्नु मायुं दवा मांझ्यु, एटले देवतायें श्रावी हाथ काल्यो, अने कह्यु के, हे राजा! आईं साहस म कर. तारे जावी पुत्र थनार . त्यारें राजायें कह्यु के, सत्य वाचा तमारुं वचन सत्य होजो. अर्थात् सफल होजो. पण या वचन कहुं तेना मुव्यबदल मारा मस्तकनो नोग लेवो जोयें. त्यारे देवता कहे , के ए मूल्य न होय. तारुं धैर्य दीतुं, एटले एज मूल्य पाम्यो. हे नृपोत्तम! ढुं तुने त्रुगे विश्वास मान्य. एटले विश्वास राख. जा ढुं तुने प्रत्यद पुत्र आपुं . आज मध्यरात्रे जला केसरीसिंह तेनो पुत्र लघुसिंह, तेने तारी राणी पोताने खोले बेठेतो स्वप्नामां देखशे ने पनी जागशे. ए प्रमाणे अमारं वचन तुं सत्य मानजे. एम देवतार्नु वचन सांजलीने ते खलं मानीने राजा पोताने आवासें गयो. ___ त्यार पडी पेला कमलसेन देवतानो जीव पांचमा देवलोकथी च्यवी मध्यरात्रे मुक्तावली राणीने कुखें जेम मोती बीपमां उपजे तेम ते देवता आवीने उपजतो हवो. त्यार पडी राणी तेवू सिंहनुं स्वप्न देखी राजाने कयुं. राजायें ते सांजली देववाणीने अनुसरी राणीने कह्यु के, सिंह जेवो पराक्रमी पुत्र तुने थाशे. एवं सांजली हर्ष पामेली राणीनो गर्नपुष्टि पाम्यो. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंऽ अने गुणसागरनुं चरित्र. ए पूर्ण समय थये बते सुमुहूर्त उपर पुःखना दलक अने थानंदना कारक एवा पुत्रने राणी प्रसवती हवी. त्यारें राजायें एवा अतुल दान आप्यां, के जेणे करी सर्व जगत् विस्मय पामी गयुं ॥यतः॥ गलन्मानिनिर्मान सन्मा न दानं, लसर्वसर्वस्वगांधर्वगानं ॥ स्फुरझरनारीकतापूर्वनृत्यं, सुवर्धापकं तत्र चित्रं प्रवृत्तम् ॥ १ ॥ अर्थः-गल्यां के दानमानीनां मान जेमां एq मानविनानुं दान घणा लोकोने यादरमानें राजा आपे . जेने बत घणी ने तेथी ते हर्षनरें करी दीपतो , तथा वली नाचता घणा एवा गंधर्वो गीत गान करे . वारांगना घेर घेर वधाइ अापे में तथा नृत्य करे . इत्यादि विशेषे करी उत्सवो थता हवा. त्यार पली बारमे दिवसें देवतायें पूर्व कहेला वचनने अनुसरीने जे सिंहनुं स्वप्न दी, तेने अनुसारें पितायें झाति कुटुंबने पोषी पुत्रनुं देवसिंह एवं नाम पाडयुं. ते पुत्र अनुक्रमें वधतो कलाचार्यनी पासेंथी बोहोंतेर कलानो जाण थयो. मनोहरता रूप पुण्यपणुं पामी पुरजननां लोको साथे परवस्यो थको नगरमध्ये क्रीडा क रे ले. एवे समे गुणसेनानो जीव, पांचमा देवलोकथी च्यवी अवंती देश नेविपे धनें करी विशाला एवी जे विशाला नगरी, तेनेविषे जितशत्र राजा तेनीस्त्री जे कनकमंजरी राणी तेनी पुत्री थ.अर्थात् रूपवंती, कनकसुंदरी नी पुत्री थ.ते अनुक्रमें वधती जाती सकल कलानी जाण थ. नव यौव नावस्थाने प्राप्त थ. पण विषयथी विरक्त हती त्यारे सकल शास्त्रमा प्रवीण एवी जे ते कन्यानी सखीयो हती ते काम विकारने दीपावनार एवी कथा केहवा लागीयो, तो पण सादात् मदन जेवो पुरुष होय ते पण ते कन्याने रुचे नही. त्यारे ते कन्यानो पिता, पुत्रीने विवाहथी विमुख देखी चिंतवे , तथा क्लेश करे , अने खेद पामे . पनी राजा तेना वि वाहनो उपाय प्रधानने पूबतो हवो. त्यारें प्रधाने कयुं, के पूर्व नवें जेनी साथे प्रेम हो एवो कोई पुरुष रत्न हशे, तेने परणशे, माटे हे राजन् ! ते क न्यानो अन्य पुरुष नपर राग नथी उपजतो तेने बीजो पुरुप कोई रुचतो नथी, तेथी को चित्रकारपासें जे जे राजपुत्रो होय, तेनां चित्र करी प्रगट करो, ते पटमां एटले पडदामां काढो अने तेने देखाडो, त्यारे पूर्व नवनो जे नरथार हो, तेने देखीने कन्याने राग उपजशे. एज एक उपाय . ते शी वाय बीजो कोई उपाय मुने नासतो नथी ॥यतः॥ नामंपि सुयं पडिरू,वयं Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एG जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पि दिढ मणिहाणं ॥ जम्मंतरियाणिजए, रायविराए पयासे ॥१॥ ते, सांजनी राजायें ठामो ठाम चीताराना पुत्रो मोकल्या ने कह्यु के तमो सर्व चीतारा जुदे जुदे ठेकाणें जा पृथ्वीगत सर्व राज कुंवरोनां रूप चित्री लावो. त्यारे ते चिताराना पुत्रो राज कन्याने योग्य एवा राज कुमारोनां रूप चित्री लाव्या. ते देवतां वेंतज अन्यराज कुमारोनां रूप जोइने कुंवरी कहेवा लागी के, कार्यनां विघ्नकारी एवां रूप जोये झुं थाय? एम ईष्यों करवा लागी. एम जोतां जोतां केटलेक दिवसें मथुरा नगरीयकी पट चित्रा श्राव्यो. ते लावेला चित्रपटने विपे आश्चर्य कारक रूप, कन्यानो पिता राजा देखतो हवो. ते पनी चिताराना पुत्र राजाने ते चित्रपटाप्यो. ते पट राजा हाथमां लइ, घणीवार निरखीने जोतो, तेना रूप लावण्यने पीतो म स्तक धुणावतो, अभुत रस पामतो बोले में के, अहो बानुं रूप ? अहो विधातानुं विज्ञानपणुं ? अहो आबु रूप देखीनेज जगतनेविपे जे काम डे ते अनंग एटले अंग रहित थयो लागे , ते वात पण साची ने, केम के? एवं कोबीखं रूप जणातुं नथी. एनुं स्वरूप एकांते देखी मारी पुत्रीने राग उपजे, तो एने ढुं खरी गुणवान् जाणीश. अथवा आवुरूप देखीने राग नहिं उपजे, तो ढुं तेने जड, मूर्ख जाणीश. एम कहीने राजा चिताराने पूछे ,तमो घणे दाडे मोमा केम व्या? अने ते मोमा अाव्यानुं कारण गुं? आ रूप तमोयें क्यांही दी]; के क्यांही चीतरेल दीतुं के झुं तमें आ को देवता रूपज चि त्री लाव्या बो? के या कोई विद्याधरनुं रूप ले ? त्यारे चितारो कहे , के आ विद्याधर नथी, तेम देवतारूप पण नथी, आतो मथुरा नगरी विपे जे मेघराजा तेनो पुत्र जे देवसिंहकुमार ,तेनुं रूप . हवे अमने जे विलंब थयो एटले दिवसघणा थया तेनुं कारण अमें लगायें करी कही शकता नथी. तो पण क हियें बैये ते सांगतो.ज्यारे ते कुमार सनामां आव्यो देखीये,त्यारे पट चीत राय, कोय समयेंते राजकुमार घोडा खेलववा जाय तो, वलीको समय देव मंदिरमां वीणा बजावे,वली कोइ दिवस राधावेधनी कला साधे,एम एनुं दर्शन याय, त्यारेंत्यारे चित्राय.या कारणथी अमने दिवस घणा थया ने. परंतु ते सार्थक ले. केम के तेना रूप लावण्यनी शी शोना जे? घणी वार तेना हस्त पादादिक अवयव दीठा, तो पण अमें तेना अवयवनुं लावण्य चित्री शक्या नही. एटला दिवस यत्न करीने जेम तेम था रूप लरब्यु डे, पण एमां Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. तेना स्वानाविक रूपनो लदांश पण चित्राणो नथी. एम सोनसी राजा हर्ष पामी ते चित्रपट पोतानी पुत्री पासें मोकलतो हवो. ते पटने पितानी आझाथी कौतुकथकी ते कन्या प्रथम दूरथीजोतीहवी. पड़ी तेणें हर्षे करीमनना विनोदने अर्थे ते पट नजीक लईने तेने ते साक्षात् कंदर्परसें करी जोती हवी. पनी विस्मय पामी ते रूप जोती थकी रोम रोम हर्ष पामती हवी.अने तेने अंगे नन्नास उपज्यो. ते देखीने हसती,वली नमो निःश्वास मूकती हुंकारा करती, अत्यंत खेद पामती थकी, सखीने कहे जे. के हे सवि! जेनुं प्रारूप मे ते पुरुष क्या हशे? त्यारें सखी कहे जे के हे वेन! तमारा नमुनाने वास्ते विधातायें निपजाव्यो ले. त्यारे कुंवरी कांइक हसीने शरमंदी थइने सखीने कहे जे के शुं मुफ सरखी बीजी नही होय? माटे तारांते वचन प्रमाण नही, एवा नरने मारी सरखी स्त्रीयोघणी हो. एम वो लीने पनी ते कन्यायें एक अन्योक्ति कही, ते या प्रमाणे:-विंध्याचलनिकू लेषु, स्वबन्दं याऽचरत्सुखम् ।। बालाने करिणी बझा, विधिनायैव धीम ना ॥ १ ॥ अर्थः-विंध्याचलना कुंजवनमा जे हाथणी स्वहंदतायें करी विहार करती हती, ते आज कुशल एवा दैवें बालानने विषे बांधी. एवी अन्योक्ति कही त्यारे तेनी सखीयें हास्य करीने तेने कह्यु के, हे सखि ! म थुरानो पति मेघराजा तेनो पुत्र देव सिंह कुमार, तेनुं रूप या पट्टचित्रे चि त्रेलुं .तेनेज योग्य होय एवी नारीनुं चित्र तुं लखी आप. त्यारें राजक न्यायें लेखन सामग्री मंगावीने ते देवसिंह कुमार योग्य पोतानुं रूप ते पट्टचित्रपर लरव्युं. अने सखीने कर्वा के, या मदनसुंदर पुरुषने ए स्त्रीन रूप योग्य घटे डे के, नथी घटतुं ? त्यारें सखी बोली, दैवयोग होय तो एज घटे. एवे समय ते चित्रपट,राजायें मंगाव्यो.ते प्रतिहारें लइ राजाने आप्यो. त्यारें राजायें ते पट्टचित्रमा पोतानी कन्यायें लखेला तेना रूपथकी अने सखीना वचनथकी ए देवसिंहकुमारपर पोतानी कन्या रागिणी थई जाणी पबी लग्न माटे पंमित जोशीने तेडी राजा हर्ष पामी विवाहने योग्य लम लेतो हवो. मथुरानगरी प्रत्ये उंटे बेसारीने पोताना प्रधानने मोक लतो हवो. त्यां जश् देव सिंह कुंवरने कनककुंवरी आपवानो थयेलो नि श्चय तेणें मेघराजाने कह्यो. पनी ते मेघराजाय पण जाननी सर्व सामग्री ग्रहीने घणा पुरुष साथें देवसिंह कुमारने विशाला नगरीयें कनकसुंदरी Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कन्या परणवा माटे मोकव्यो. त्यां राजायें नता आवासना उतारा आप्या. महागौरवें मामैयुं कयं, ने उतारो दोधो, घणा मान दीघां. लग्नदिवसें घणा दीनने दान दीधां. मृदंगादिक घणां वाजिन पण बजडाव्यां, माहा मांगल्य मय गीतो गवराव्यां, घणा नट नचाव्या, घणा तांबलादिक खातां, घणा गंधपुष्पादि बापतां,ते वेहुनां पोतानी कुलाचाररीतें विवाह मांगलिक कीधा. घरकन्यानो सरखो योग देखता घणा लोकने हर्ष नपजतो हवो. पनी नगरनां लोक, मातापिता सर्व कुटुंब सर्व विधिनुं कृतार्थ पणुं मानता हवा. सुरखें उत्तम विधियी विवाह कस्यानी वार्ता पसरी, एवे समयें बुड़ियें करी सुरगुरु सरिखा सुरगुरु नामें आचार्य त्यां ावी समोसस्या. अने गंजीर मधुर स्वरें सर्व संतापनी टालनारी मेघनी सरखी देशना देवा तत्पर थया. ते गुरु आव्या सांजली जगतजन हर्षवंत थाता ते गुरुने वां दवाने अर्थे चाल्या. तथा राजा जितशत्रु पण सपरिवार सर्व त्यां गयाने देवसिंह कुंवरपण पोतानी स्त्री तथा नगरलोक तेणे सहित ते साधुने वांदवा गया. त्या सर्व परिवार, साधुने त्रण प्रदक्षिणा दइ वांदता हवा; पनी मनिने वांदी सर्वे जन यथास्थाने वेग, ने त्यां सर्व सना लोक हाथ जोडीने स्थिर चित्तगुं धर्म सांजले . त्यां देव नि समान स्वरें गुरुयें देशना देवा मांझी, ते जेम केः- चार कपायरूप जीतथी उर्नेद्य, राग अने हेप तेरुप वे कमाडोयें जडित, अज्ञानरूप तमें करी व्याप्त एवं निःसार संसाररूप बंदीखान ने ते बंदीखानामां पडेला प्राणीयोने कुटुं बना प्रतिबंधरूप गाढी वेडीमां बांधेला . ए संसाररूप बंधीखानामां इष्ट नो वियोग अने अनिष्टनो संयोग ते रूप मांकडो जे. वली तेमांकूर एवा वचन आक्रोश ते रूप सो नम्याज करे . तथा जेमा विविध प्रका रना रोगरूप मसला अने मांसो के, ज्यां शोका निरूप धूमपान बे, कर्मी घरूप एटले अशुन कर्मना उदयरूप ज्यां दंम अने पासला धरनारा फस्या करे बे. ते वृक्ष जनोने तथा बालकोने पण दया न लावतां प्रहार करे . ने गणता नथी सधनने अने निर्धनने पण फुःख दीये . फुःखीयाने पण कुःख उपजावे दे. प्राणीयें एवी चतुर्गतिमा वेदना अनंतीवार नोगवी. माटे त्यां सजुरु कहे डे, के तम सरखा सुबुदि पुरुषने 'जे थवानुं हशे ते थाशे' एवी बुधिने अवलंबीने ए संसाररूप बंधीखानामां रेहेवू घटतुं नथी! Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १०१ अने सदा धर्म उद्यम करवो उचित !! तेज प्रशस्त मोक्षोपाय जे. जेणे मानवनव पामीमोहना उपाय रूपवीतरागनापित धर्म यादस्यो नहि,जाण्यो नही. आराध्यो नही, ते पूर्वोक्त आपदाने पामशे. जे आत्मधर्मने आरा धशे. ते संपत्ति पामी कर्मथको मूकाशे.सर्व कर्मरहित थाशे. नें सर्व जगत ना हितकारी एवा अरिहंत देवने जाणशे. तेने धन्य डे, जे एवा धर्मने माने ले. ते जन केवा ? तो सर्व दुःखना टालनार ,वली त्रिकरण जोग जेवी तराग पद तेने जे आराधशे, ते धन्य बे. ते अदय मोदना सुखने पामशे. हवे यहीं वीतरागना थाझा धर्म प्रमाणे चालवू, एम कयुं, तो ए आझाधर्म, नावस्तवरूप अने इव्यस्तवरूप, एम वे प्रकारनो में, ते बुद्धिवंते मान्यो , एटले आगारी धर्म अने अणागारी धर्म ए वे धर्म ले.ते प्रत्येक धर्म, जुदा जुदा प्रकारना . एटले आगार धर्म अने अणागार धर्म के प्रकारनो तीर्थकरें प्रकाश्यो जे. हवे नावस्तवधर्मते सर्वजीव दयारूप श्रीतीर्थकरे कह्यो जे. ते केवो? तो के ते साधुने पंचमहाव्रत रात्रिनोजन विरमण लक्षण जावो. पांचसमिति, त्रण गुप्ति, अष्ट प्रवचन माता रूप पण जाणवो. ते मुमुदनो मूल धर्म ले ते पिंमविशुक्ष्यादिक उत्तर गुणोयें करी सम्यग प्रकारे आराध्यो थको मुक्तिने आपे जे. माटे ते अंगीकार करेलो धर्म जीवें जाव जीव पर्यंत मूकवो नहिं. ए धर्म करतां उपसर्ग परिसह थाय ते पण सहेवा, तो ते चारित्र धर्मना बाराधक प्राणी वलवत्तर वीर्य विशेपथकी तेज नवें मुक्तिपद पामे, अथवा उत्कृष्ट जव आवे संसारथकी मुकाय.ते माटे अहो नव्यो! नव बंधीखानेथी मुकावाने जो बता हो, तो सर्व नगवाननी आझा, आराधन अति आदरथी करो.अथवा चारित्र मोहनी ना नदयथकी अथवा विषयगौरवथकी पांच महाव्रत रूप धर्म अादरवाने जो समर्थन थइ शकाय तो मुक्तिपदना जानने अथै देशथकी सर्वानी शुरू बोधने आपनारीाझा धाराधी गृहस्थ व्यस्तव रूप पंचअणुव्रत, चार शिदाव्रत आराधवां. ते कवी रीतेंयाराधवां? तो के संसार घटाडवाने माटे जिन प्रासाद कराववां, बिंब जराववां, जिन पूजाविधि कराववो सुपात्रने विषे दान देवु वली संसार घटाडवाने जे शुभअध्यवसायें देश विरतिरूप धर्म आराधशे, ते स्वर्गनां सुख जोगवी पती शिवपदने पामशे. जो जिन प्रासाद करावशे ते संसारांबुधिने तरशे. वली जे जिन पूजा करशे, ते रोग शोक Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. रहित स्वर्गविमाननां सुख पामशे, त्यांथी नाग्यवंत सौनाग्यवंत कुलने विषे उपजशे, जिन पूजाना करनार जे जिनबिंबनी प्रतिष्ठा करावशे, तेनी जगत्रयने विपे प्रतिष्ठा थाशे माटे एवी रीतें इव्यस्तव जे , ते पण विधिथी करे, तो नावस्तवनुं हेतु थाय , ते माटे ते पूर्वोक्त आराधन करे तो सात आठ नवमांहे शिव पदने पामे. वली परिणाम विशेपथकी अनानोगथी पण निर्माण करेलो धर्म, वेदु शुकनी पेठे निश्चे कुशलगतिनो नदयकारक थाय. ते माटे पोतानी शक्ति समर्थपणुं विचारीने व्यस्तव अथवा नावस्तव, ए वे मध्येथी जे बने तेवो धर्म, जिन आझाप्रमाणे अाराधीने जन्मनुं साफल्य करो. ए वे शिवाय संसार बंदीखानाथकी मुकावानो त्रीजो कोइ पण नपाय नथी. माटे नो जो लोको! धर्मनेविषे विलंब न करो. ए सामग्री पामवी दोहेली , एवं समजी संसार चतुर्गतिथकी मनने नहेग पमाडी इष्टसिदिने अर्थ व्यस्तव, तथा नावस्तव रूप धर्म आदरवो. एवी वाणी सांजली, त्यां घणे नव्य जीवें दीदा लीधी, ते थकी जे असमर्थ थया ते देशविरति धर्म आदरता हवा. त्यां देवसिंह कुमारे सम्यक्त्व पूर्वक देश विरति रूप श्रावकनां बार व्रत अंगीकार कीधां. त्यार पली आचार्यने विनति कीधी के हे स्वामिन ! ते शुकयुगलें नावथकी व्यस्तव ते केवी रीतें थयो? ते कहो. तथा ते वेदु शुकने व्यस्तव कुशलानुबंधीनो कारण केम थयो ? ते अमने कहो.त्यारे गुरु तेनो संबंध दूरथी मांमा सनामध्ये कहे जे. ___ जंबुद्दीपना दक्षिण जरत नैऋत्य अर्धखमनो करनार वैताढय पर्वत ने. तेनी पासें सिहंकर नामें वन डे, ते सर्व ऋतुना फलफूलनी शोनायें क री शोनतुं डे, ते वन सदा कुसुमें जयं देखीने विबुध जन एवी नत्प्रेक्षा करेले के युं तारान्य जयं शरद काल, आकाश अहीं आव्युं हो ? एवी वननी रचना अने शोना डे, ज्यां घणी किन्नरी गीत गान करे बे, ज्यां घ णा कोयलना मधुर शब्द थाय , ज्यां घणा जमरा परस्पर गुंजारव करे जे.ते मध्ये अष्टप्रातिहार्यथी युक्त अने मणिरत्न जडित पीठपर विद्याधरोनी करेली पद्मराग मणिनी बनावेली एक प्रतिमा स्थापन करेली . त्यां घणा विद्याधर विद्या साधवाने अर्थे आवे , ते नक्तिथी प्रजुनें वांदे , पूजे जे, ने सदा स्तवे डे, सदा प्रजुने चित्तमा धारे . ते वनने विपे चैत्यनी Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंष ने गुणसागरनुं चरित्र. १०३ समीप यांवाना जाड उपर मांहोमांहे यतिस्नेहवालुं, परिणामें सरल, हलु कर्मी एकीरयुग्म से बे. विद्याधरें करी ने खर्चा पूजा जेनी थइ बे ए वी जिन प्रतिमाना दर्शनथी ते कीरयुग्मने निर्व्यापार पणे अमंद यानंद अत्यंत हृदयमां उपजतो हवो, नइक प्राणीने या भूमिने विषे नथी जाएयुं लक्षण ने पदार्थ जेनो एवा उत्तम पदार्थने विषे प्रीति उपजेज बे. केटला एक जे नारी कर्मी जीव बे तेने तीर्थपदार्थना गुण जाएया बे तो पण हर्ष नपजतो नयी तथा आराधी पण शकता नथी. केनी पठें ? तो के जेम रोगीने पथ्यने विषे प्रीति उत्पन्न थाय बे तेवी रीतें जारेकर्मी जीवोने गुण ज्ञान ले तो पण अप्रीतिनाव उपजे बे, जे जीवने जिनबिंब ने जि नलिंगी मुनि देखीने प्रीति उपजे, ते सुख संततिने पामे ने तेपर जेहने प्रीति होय, ते दुःख नोक्ता थाय ते माटे अरिहंतबिंब तथा लिंग पर द्वेष न करवो ने जारें सम्यग् दर्शनरूप सूर्यनो उदय याय त्यारें मिथ्यात्वरूप अंधकार जेदाय ने पी तुरत देवगुरु धर्म पदार्थपर प्रीति उपजे. वे एकदा ते शुक उल्लसितमनें करी जिनबिंब देखी हर्ष पामी यांवानां मांजर चांचवडे लावीने श्री जिन बिंबना कानमा पहेरावाना वे गुवा बनाव्या, घने बनावीने पहेराव्या. श्रीजिनना चरण कमलनुं पूजन करयुं, उल्लासथकी त्यां अव्यक्तरूप समजाव समकितने पाम्या, तिर्यग्गति नाम कर्मनो नाश करी शाता वेदनीय एवं मनुष्यनुं प्रयु ते म बांध्युं पीते विशुद्धिवाला कीरयुग्ममांथी सूडो काल करीने जंबुद्धी पना महाविदेह क्षेत्रने विषे रमणीय नामाविजयने विषे श्रीमंदिरपुरने विषे त्यांना राजा नरशेखरनी राणी कीर्तिमतीनी कुखें पुत्रपणे उपज्यो, ते पछी ते दिवस मध्यरात्रीने विषे स्वप्नमां सूर्यमंगल जेवं फलकतुं जडाव रत्ननुं कुंमल राणीयें दीतुं, ने ते देखी राणी राजाने केहेवा लागी अने ते स्वप्ननो अर्थ राजा हृदयमां धारी कहेवा लाग्यो के हे स्त्रि ! ग्रा पणने कुलदीपक उत्तम पुत्र उत्पन्न याशे, ते वचन सांजली राणी हर्ष पामी गर्जनी प्रतिपालना करवा लागी पढी पूर्ण मासें गुन दिवसें राणी ये पुत्र प्रसव्यो. ते पुत्र कांतियें करी पूनमना चश्मा समान दीपतो हवो. ते पुत्रनी वर दाटवा खामो खणतां तेमांथी रत्ननो निधान प्रगट्यो, ते निधान लइ राजायें पुत्रना जन्म महोत्सवनां वधामणां प्रमुख कयां. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. त्यार पली बारमे दिवसें स्वकुटंब तथा ज्ञाति वगेरेने नोजन कराव्यु. हवे स्वप्ने कुंमल दातुं अने जन्मतां वेंत निधि प्रगट्यो, तेने अनुसारेंते पुत्रनु नाम पितायें निधिकुंमल एवं पाडयु. पी पिताना बंधु जन रूप कुमुदने उ हवास करतो, सदानरूप निर्मल गुणकिरणें करी अर्थिजननी जाने पू रतो, प्रधान चंनी पेठे पुत्र वधतो हवो. ते अनुकमें रमणीय एवी यौव नावस्था पाम्यो, परंतु रमतपर काम रागी थयो नही, अने मुनिनी पेठे नीची दृष्टिये चाले, वजी विषय विकारनी तो तेने दृष्टिज नही, महोटा राजाननी कन्या पोतानी इलायें वरवा यावी, तो पण ते कुंवर पोतानी दृष्टियी सामु पण जुवे नहीं. कुशलानुबंधी शुन कर्मेश्यि करी वीतराग रूप दृष्टिमां विकार नहीं, धनुरबाणावली होय पण तेनी सामेथी आ पुरुप मगे नही. वली मद्य मांसनो जे आहार तेने विष्टा समान ज़ाणी गं मतो हवो. कोइ मनुष्यने परापवाद बोलतो देखे, तो तेनीपर बदुज कोप करे, पोताना वैरीना को पण गुण गान करे, तो ते सांजलीने हर्ष पामे, पोताने गुणे करी मात पिताने आनंद उपजावतो, जलामित्रो सहित की डा करतो कुंवर, वृक्षावस्थायें पहोंच्या एवे समय ते सूडी पण मृत्यु पामी मध्यस्थ नश्कनावी जीव त्यांथी चवीने तेज विजयमांहे विजयंतीन गरी विपे रत्नचूड राजा तेनी सुवप्रानामा राणीनी कूखें जला स्वप्न सूचित थकी पुत्रीपणे नपजी, ते राजानी पुत्री थर, ते पुत्री, नाम राजायें पुरंदर यशा एवं पांडयु,सर्व अवयवोयें सुंदर,सुवर्णवर्णसुकुमार ने, हस्तपाद तल जेनां एवी महारूपवंती थइ, सर्व कलामां कुशल थर, चं रेखानी पते सौम्य मूर्ति वककाम कारी क्रीडावंत एवं यौवन पामी. हवे ते कन्या केवीले ? तो के वेकाने करी शृंगार कथा तो सांजलेज नहीं वली लोकनां आनर णादिक पण जुवे नहीं. वली जोगी स्त्री साथे गोष्टि के तेनी साथे बेस, ते पण करे नहि. सखीयो साथे काम क्रीडानी वात के हास्य काम रसनी वात पण करे नहि. अरिहंतना धर्म विषे सावधान , सदा सर्वदा शां त मने वर्ते बे, विवाहनी वार्त्ताने पण न सहन करती थकी वयें वध ते यौवनावस्था पामती हवी. तारुण्यावस्थायें पण निर्विकार पणाथी पु रुपना संगथी पराङ्मुखा थ.एवं निर्विषयपणुं पुत्रीनुं सखीना मुखथकी माता सांजली अत्यंत चिंतातुर थइ थकी राजाने कहे , के हे स्वामी ! Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र १०५ माहारो मनोरथरूप वृद्ध हवे क्यारे फलशे? मारी पुत्रीना विवाहनो हर्षोत्सव क्यारें करशो ? वली मनोरंजक तथा ते पुत्री समान गुण वालो एवो राजकुंवर अापणी कन्याने क्यारें मलशे ? कन्या महोटी थ, ते बतां तमो निश्चिंत थ केम सुइ रह्या बो? तथा निश्चित पणे नोजन पण केम करो बो ? तमें पोतानी दृष्टिथी जुवो तो खरा, के अापणी कन्या यौवनावस्था पामी डे के नहिं ? वली जुवो कन्या पण युवान थडे, तो पण लग्न करवानी बा करती नथी ? ए प्रकारे राणीना नपलंनथी तथा वली पुत्रीने यौवनावस्था प्राप्त थने ते उतां विवाहनी ला राखती नथी ते फुःखथी राजा पण दुःखी थयो थको पोताना मतिसारनामा प्रधाननें तेडावतो हवो, ने ते मंत्रीने कहे , के आपणी पुत्री तारुण्यपणुं पामी तेथी हवे विवाह कस्या विना बुटको नथी वली ते पोतें तो वरवा परगवानी वात श्वतीज नथी, त्यारे तेना विवाहनो शो उपाय करवो ? एवं सांजली मतिसार प्रधान राजा प्रत्ये कहे , के हे स्वामिन् ! कामरागने ले, ते तो जे कोई पापी जीव होय, तेज इले, पण सत्यना धणी होय ते न ले. हे राजन! तमारी पुत्री पूर्व मोहोटां शुन कृत्यो करी निकामी थकी अवतरी बे, ते माटे कोइ पुण्या इथे परिपूर्ण, एवो पाबला नवनो जरथार मल्या विना बीजानी साथें ते वि वाह न करे,ते माटे घणाक राजकुमारनां चित्रो लावीने देखाडो,ते जोतां कोई प्रतिबिंब पर एनो नाव हो, तो तेनी साथें विवाह सुखें करीबशे. मतिसार प्रधाने एवो यथार्थ उत्तर कह्यो ते सांजली राजा रथमां बेसी राजकुंवरनां प्रतिबिंब लाववाने खास माणासो मोकल्यां, तेन्ये राजकुंव रोनां प्रतिरूप आणी तेमनां नामादिक कही देखाड्यां, पण ते कन्याने को रुच्यां नही. एम रूप जोतां जोतां निधिकुंमलनुं रूप देखाडयु, ते रूप नि श्वय दृष्टियें देखतांज शरीर, रोमांचित थ गयुं ने अत्यंत हर्ष उपज्यो.ने तेनां गलस्थल ने कपाल प्रफुल्लित थयां, ने दीर्घ निःश्वास मूकी हृदय ध्वनिनो करुणाकर शब्द करती हवी. पडी सखीने कहे जे के या कोर्नु रूप ले ? जेने देखी मने हर्ष थाय ? ते तत्त्व वृत्तांत सर्व सखीयें रा जाने कह्यु के ए प्रतिबिंब कन्याने रुच्युं .ए कुमार केनो पुत्र डे ? एनो शो आचार ? ने कया कया गुणोथी ए कुंवर प्रख्यात छे ? एवं सांजली Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ - जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. राजायें प्रतिबिंब लेवाने माटे जे सेवको मोकल्या हता, तेने पूज्यु, त्यारे ते कहे , के हे राजन्! सांगतो. मंदिरपुर नगरें नरशेखर राजानो पुत्र नि धिकुंमल नामे कुंवर कहेवाय ने. ते रत्नत्रयी गुणनो आधार बे, सदाचारवंत जे, तेने घणी कन्या वरवाने आवे , पण निजदृष्टियें कोश्ने जोतो पण नथी. ते वचन सांजली राजा पोतानी पुत्रीना रूपना प्रतिबिंबने परीक्षा करवा मोकव्युं, ते पहेलां प्रथम एनी कुलदेवी रात्रं स्वप्नमध्ये ते कुंव रीनुं रूप कुंवरने देखाड्युं, पनी प्रनातें राजानुं मोकलेल प्रतिबिंब आव्यु, ते जोड्ने कुंवरने पूर्वनवना अन्यासयी ते रूप अत्यंत रुच्युं, त्यारे कुंवर पूछे , के ए कइस्त्रीचं रूप ले ? वली पण वारंवार तेनुं चित्र पोताना हाथमां तह निरखतो लगा पामीने तेमज पूले . पूर्वनवना अन्यासथी अत्यंत ते स्त्रीथी खुशी थयो. परंतु राजकंवर पाथी काही बोली न शके. पली ते कुंवरीने स्वप्नविपे राजकुमारे प्रेमे करी हाथे ग्रही. तेवामां तो बंदी लो कोयें प्रजातमा राजकुमारने नगाडवा माटे राग आलाप्यो, ने तेना मित्र ते निधिकुंमल कुंवरने सुतो जगाड्यो,ते नग्यो त्यारे स्वप्नामां जोयेचुं कसुं पण दीतुं नहि, ने स्वप्नसुखलीला सर्व नागी गइ, घर जोवा मामधुं परंतु गृहमां पण को दीतुं नहीं. त्यारे ते कुमार बंदी लोक नपर तथा पोताना मित्रोपर कोपायमान थइ ने कहेवा लाग्यो के हे शत! मूर्ख! मने म जेली स्त्री तमोयें क्या हरण करी ल लीधी ? अने माझं हृदय कोणे हरी लीधं? अथवा मने कोणे उगविद्यायें ठग्यो? अथवा को बीजा शूर पुरुचे मने जीत्यो ? एम चिंतासहित ईर्ष्यावंत थातो हवो. हवे ते कुंवरने दणेकमां रीश चडे ! वली कमां ते तुष्टायमान थइ जाय ! वली सत्या सत्य कल्पना करे! एम नाटक रंगमां नट होय तेम थवा लाग्यो. पडी मित्रोयें आवी ते कुमारने नमन करी वेसीने केटलीएक वातो कही, तेथी पण तेने सुख न थयुं, एवी अवस्थागत कुंवरने देखीने जे चतुरमित्रो हता, तेणे विचार्य के अहो कुंवर क्यांही चेन पामतो नथी? माटे तेने पूबीयें के तुने गुं ले ? ते पनी सहुमित्रो पूले ले के हे कुंवर ! तमो चतुर बो ते बतां आम गुं पोतानुं स्वरूप नलीने शून्य थया डो? तमारा मुखनुं प्रसन्न पणुं क्यां गयुं? तथा तमारा हास्य विलास विनोद सर्व क्यां गया? त मोने ते गं थयुं जे? ते सर्व, सत्य कहो. झुं कोइ पण पदार्थ प्राप्त थश्ने Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १०७ नाश पाम्यो जे? ते कहो. त्यारे कुंवर कहे , के हुँ गं कहुँ, जेनी मुने चिंता ले, तेनुं तो नाम पण दुं जाणतो नथी. जे में नयणें न दीतुं, ने स्वप्ने दी,अने तेथीथा जगतमां सुंदर बीजुं कोइ नथी. ते माटे हे मित्रो ! इष्ट पदार्थ मारा हाथथी तुरत नाशी गयो, ते चिंता .एम परस्पर वातो करे ,तेवामां रत्नचूड राजाना सेवको, ते कन्यानुं प्रतिरूप लश्ने आव्या. तेने जो प्रतिहारें अंदर जश् राजाने कह्यु के महाराज ! कोइ चित्रपट लश् आवेला ? ते देखत राजायें दुकम कस्यो के आववा दीयो. ते पड़ी राजाना दुकमथीते चित्रपट लइ सनामध्ये रत्नचूड राजाना सेवको आव्या. ते चित्रपट, राजाये कुंवरना मित्रोनी साथें कुंवरने जोवा माटे मोकल्यो, ते चित्रपट हाथमां ला कुंवर जोवा लाग्यो, ते जोतांवेंत कुंवरना नेत्र आश्चर्यमय थ६ गयां, त्यारें हर्ष पामीने मित्रोने कहे डे, के जे प्रियानुं रूप में स्वप्ने दीतुं हतुं, अने जेनी चिंता ढुंहजी सुधी कस्याज करुं बुं, ते ज प्रियानुं स्वरूप तथा नाम आज में प्रत्यक्ष दीठां. त्यारे मित्रो कहे ने के एवी नारी तो आ जगतमां स्वप्ने पण आवे नही,ए तो तमोने देवांग नायेंज दर्शन दीधुं लागे , एम कर्दा. त्यारें हर्षवंत थ कुंवर चित्रपट ला वनारा पुरुषोने पूछे के प्रा चित्रपटमां चित्रेली केनी पुत्री ? देवकन्याना रूपनो सारो सारो नाग काढीने झुं विधातायें ए कन्या निपजावी ? ते सां नली सेवको बोल्या जे महाराज! ए रत्नचूड राजानी पुत्री , तेनुं पुरंद रयशा एवं नाम . या वात सघली कुंवरें सांजलीने ते रूप देखी संतुष्ट थइ लाख सोनैया ते सेवकोने वधामणी आपीने विदाय कर्या. अने जे कामें ते आव्या हता, ते कामसिह करी ते पोताने ठेकाणे पहोंच्या. हवे कुंवर, हसीने पोताना मित्रोने कहे जे के हे मित्र! मारो शोक तो गयो, जे में स्वप्ने दीढं हतुं, ते में आज सादात् दीतुं. पड़ी तेवी रीतें ते राजकुमार, कोई देवकन्यानो प्रयोग पाम्यो तेने जो सर्वे, हृदयमां श्रा नंद पाम्या, अने ते कन्यानी रीति तथा प्रीति कुंवरने उपजी, एम जाणी राजा पण हर्ष पाग्यो. त्यार पनी राजायें पोताना मित्र प्रधानने ते कन्याना वेसवाल माटे रत्न चूड राजापासे मोकट्यो, अने त्यां प्रधान घणुंज सन्मान पाम्यो, पढी त्यां कन्यानो विवाह मेलवी लग्न स्थापीने प्रधान पाडो राजा पामें याव्यो.या Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वीने तुरत जान तैयार करी. ते जानमा घणा हाथी, घोडा, उंट, रथ, प्या दल, ए रीतें सघला परिवारसाथे परवस्यो थको तथा वाजित्र वागते थके कुंवरने परणाववा प्रधान त्यां गयो, वाटे चालतां अरण्य अटवी यावी, तेमां उतारा कस्या, पडी कुंवर ते अटवीमां घोडो रमाडवा लाग्यो, एवामां ते घोडो खेलतां खेलतां दूर अटवीमां कुंवरने लइ गयो,पली ते एकलो राज कुमार वनमां नमवा लाग्यो. एम करतां देवयोगें एक उजडवनमां रात्रि पडी, त्यां जागतो बेठो, तेवामां मध्यरात्रे कोई स्त्री करुणा तथा दीन स्व रथी रुदन करे ने, ने कहे जे के हे कुमार! तुं दुःखीयाना दुःखने विपे करू णा कर. एवं सांजली ते कुंवर शब्दने अनुसार त्यां जश् बानो मानो जाडनी उथें रह्यो थको जोवे . तो एक जोगी एक बालाने मंजन करावी, अंग लेपन करावी, कपालें मंमन करावी, तेनो चोटलो एक हाथथी पाडी बीजा हाथें विकराल खगल कहे जे के हे जगवति ! हे देवि ! हे शूल आयुधनी धरनार! हे रुंढ मुंम धारण करनारी! निश्चे तुं शिष्यनी हितकारी बो, ए माटे ए बालानो बलि ढुं तुने आपुं बुं, ते तु लेजे. एम कही ने बा लाने कहे जे के हे बाल्ने ! तें लोक स्वरूप तो सर्व दी. हवे तुं तारुं जे दै वत होय,तेने संनार. तुजने जे शरणे राखे, तेने शरणे जा ने ते शरणने चिंतवन कर. कारण के हवे या एक खगने घायेंज तारो अंत आव्यो ! त्यारे ते कन्या गदगद कंवें कहेवा लागी के हे योगी ! तुं योगी बो, ढुं तारे शरणे आवेली बूं, तो हवे हूं क्यां जालं? जो, जारें पाणीमांथी अग्नि उत्पन्न थाय, तो पड़ी अग्मिने कोण बुझावे ? तो पण जारे तुं कहे , के तारुं शरण आधार जे होय तेने तुं संजार. तो माझं तो एक नगवान् वीत राग शरण ,अने बीजो मारा पितायें जेने दीधी बे,अने में पण जे मने करी वस्यो , ते नरशेखर राजानो पुत्र निधिकुंमल एवे नामें कुंवर , ते शरण ले. ते वचन कुंवरें सांजल्युं तेमां वली पोतानुं नाम पण सांजल्यु, तेथीसशंकित थयो थको हाथमां खड्ग्रही हाक मारीने तुरत त्यां याव्यो. अने उंचे स्वरथा कहेवा लाग्यो के अरे निर्दय ! उष्ट !! पापीष्ट !!! तुं गुं अबला स्त्रीने हणवा इले ? एम कही तरत त्यां पासें आव्यो, तारें ते कपाली योगी दोन पामतो थको कहे ले के हे उत्तम! तें मारी क्रिया मां विघ्न कयं, में पूर्वे ज्वाला देवी बाराधी ने तेने नोग देवाने माटे एक Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १०० न्या महा प्रयासें दुं पाम्यो , तो आ कन्याना मरणरूप विधि पूर्ण करे मारी विद्यासिद थाशे, माटे तेने हणवा दे, तो ढुं जाणीश जे तें महारो महोटो उपकार कस्यो. ए सांजली कुंवर कोपायमान थइ कहेवा लाग्यो के घरेतुं योगिलिंग वहे , पण तुं कर्म, तो चांडालनुं करे ? मनथी कांड लाजतोय नथी? अरे मूढ! जे विद्या, स्त्री हत्या कीधे सिम थाय, ते वि द्याने तुं झुं करीश ? वली हे मूर्ख ! ा कर्मथी घणाकाल लगी सारं व्रत तुने प्राप्त थयुं होय, ते व्रतने तुं तुबकायें विनाश न कर. अरे पापी! जीव हिंसानां महोटां कुःखो में, ते तें कानें सांजव्यां पण नथी गुं? माटे हे पापा वीर! तुं मारो नपकार मानी उष्टकाम करतो अटक. ए रीतें कापालिक योगीने प्रतिबोध दीधो, त्यारे ते योगी पश्चात्ताप करी पापथ निवृत्त थइ कुंवरने कहे ,के हे महानाग ! तें मुझने कुगतिमां पडतो अ टकाव्यो. हवे हुँ उत्तम गुरुपासें जाइश, प्रायश्चित्त लइ आत्मानुं साधन करीश! अने या कन्या विजयंती नगरीना रत्नचूड राजाने जश्ने आप जो. हुं त्यांथीलाव्यो बूं, एम करीने कापालिक चाल्यो गयो. ___ त्यारे ते पुरंदरयशा नामा कन्याने एवो संदेह उत्पन्न थयो के गुं आज निधिकुंमल कुंवर हशे, के बीजो परोपगारी कोई उत्तम पुरुप हो ? एवो संदेह थयो, तेवामां ते कन्याने आसना वासना दई राजकुंवर कहे जे के हे न! जेनुं तें हमणां नाम लीधुं, ते नीधिकुंमल कुमार कोण ? ए तारी वाणीयें करी मुजने आनंद उत्पन्न थयो. त्यारे ते कन्या कहे के ते निधिकुंमलकुमार मारो स्वामी जे. त्यारे निश्चिंत पणे कुंवरें पोतें कह्यु के जेनुं तें नाम लीडूं,ते ढुं पोतेंज _. त्यारें कन्या पूजे ले के हे स्वामीनाथ ! या शून्य रणने या अलंकृत केम कस्यं ? नला आपने शरीरें तो स्वास्थ्य के ? त्यारे कुंवर कहे , के तमारो मुखचं देखीने मारो कुशल रूप समुइ वधतोज जाय . अने तमारा पुण्ये करी तमारां प्राण में राख्यां . जाननो समुदाय लश्कर लेई परणवा जतो हतो, तेवामां अटवीने विषे अश्व खेलावतां मुनें आ कुलंत अश्वे उग्रवनने विपे नाखी दीधो. ते तमारा पूर्व तपना पुण्य प्रतापें करी ढुंबाहिं आवी चूक्यो बु. एम मांहोमांहे पोतपोतानी कथा नन्नासथी करतांशुम रसमां मग्न थश्गयां,वली तेमने परस्पर यनंगस्नेहथी वातोकरतांरात्रि क्षणमात्रमांज व्यतीत थ गइ. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो प्रातःकालें कापालिकना पगने अनुसारें तेना पिता रत्नचूडें कन्याने शोधवा माटे जे सवारोनी घटा ने पालाउ मोकल्या हता, ते जोता जोता त्यां श्रावी मल्या. तेवा ए कुंवर तथा कन्या, ए बेने दीगं. अने ते बनेली सर्व वात, कन्याना मुखथी सांजलीने हर्ष पाम्यां. ते पी अनुक्रमें कुंवरनुं सैन्य तथा कन्यानुं सैन्य ए सर्व गुं थयुं. अनुक्रमें चालतां चालतां विज यंती नगरीयें याव्या. त्यां ते रत्नचूड राजा वगरे कन्याना मुखथी ए वृत्तांत सांजली सर्व कोइ मां खुश। ययां पढी विस्तारथी घणुं इव्य खरची ने नि धिकुंमल कुमार सायें पुरंदरयशाने परणावी. पती केटलाएक दिवस त्यां रही परली ते कन्याने तथा करियावरमां मजेला केटलाएक इव्यने साथें ल रत्नचूड राजानी रजा लइ ने निधिकुंमलकुमार पोताने नगरें श्राव्या. पती सर्व स्वजन कुंटुंबने संतोष उपजावतां प्रति उल्लासने पामतां दो गुंदकदेवनी पढें सुख जोगवतां एदंपतीने एक लक्ष वर्ष व्यतीत थइ गयां. एवं समये तेमना पिता नरशेखर राजाने रणांगणने विषे शत्रुयें हयो, ते निधिकुंमलें सांजल्युं पढी तेवी रीतनुं पोताना पितानुं मृत्यु सांजली तेथी हृदयमांहे अत्यंत दुःखी थता तथा नोगोपनोगथकी, राज्यथकी विरक्त As कुंवर चिंतववा लाग्यो के लक्ष्मी चपल ले, अने श्रायुष्य अल्प ने ११० स्थिर ने, तेमां संसारना जोग ले, ते पण ऋणविनाशी बे. ज्यां संयोग त्यां वियोग ले, या संसारमां कया प्राणी स्थिर बे ? माटे खरे जीव ! तुं कये सुखें पुष्टापणुं माने ले ? जेमाटे तारे माथे जन्म, जरा तथा मरणना यो तो दिनदिन प्रत्यें वधताज जाय बे ? वली माता पिताने विषे जे स्नेह बे, ते पण जूतो ले, कारण के एम कांही मालम पडतुं नथी के कयो जीव क्यांथी याव्यो बे ने क्यां जाशे ! जीवने जे या जन्में माता होय, तो फरी पाठी मरीने ते स्त्रीपणे उप्तन्न थाय, अने स्त्री होय, ते मरी मातापणे पण थाय ? पिता मरीने पुत्र थाय ने पुत्र मरीने पिता थाय. नाइ होय ते मरीने शत्रु याय ने शत्रु होय, ते मरीने नाइ याय, त्यारे संसारमां स्नेह, राग ने द्वेष, ते कोनी उपर करीयें ? वली स्नेह जे बे, ते स्वप्न तथा इंड्जाल जेवो बे, जे वस्तु लोकनें प्रति वल्लन होय . तेने तो काल, जोतां जो मां हरण करी जाय बे ? तेम कुंवरने तात मरणथी उपजेलो शोक, घणो काल रह्यो. एवे समयें ते ताप निवारवानें तथा सर्व सुख पमाडवानें श्री Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १११ अनंतवीर्यनामा तीर्थकर भावी समोसस्या, ते तीर्थकर आव्या जाणी निधि कुंमल कुमार, पोतानी नार्या सहित ते प्रनुनें वांदवाने अर्थे बहार निकव्यो. त्यांथी चालतां देवतायें रचेला एवा समवसरणने विषे आव्या, त्यां प्र जुने देखी कुंवर मनमां घणोज आनंद पामीने पूर्वनवान्यासें वंदी स्तवी, ते प्रजुना चरणमां नमी करकमल जोडी बेठा, त्यां जिनवचन वैराग्य मय देशना सांजली, आत्मतत्त्व सार जाणी, ते कुमार तथा तेनी स्त्री वेदु वैराग्य पाम्यां थकां घेर आवी पोताना पुत्रने राज्य नलावी ते बेदु जणें तेज अनंतवीर्य नामा तीर्थकर पासें दीदा ग्रहण करी. त्यां निर्मल चारित्र पाली अंतसमये अनशन करी प्रथम देवलोकें ते वेदु जण देवदेवी पणे नप नां. त्यां पांच पव्योपमने आनखे देव संबंधीयां सुखनोग जोगवीने त्यांथी देवतानो पुण्यवंत जीव पहेलो च्यवी ते माहा विदेह देत्रे महाकन्न विजयने विपे विजयनामा नगरमा महासेननामें राजा तथा तेनी चंशना ना मनी राणी तेनी कुखें पुत्रपणे आवी उपन्यो. पडी ते अद्भुत तेजस्वी पुत्रनो जन्म थयो. त्यां राजायें जन्ममहोत्सव कस्यो. पडी ते पुत्रनुल लितांग एवं नाम पाड्यु. ते गुणें सहित वधतो पूर्व नवनी पेठे पाप रहित थको महोटो थयो. हवे पुरंदरजशा जे देवीनो जीव ते च्यवीने तेज विज यने विषे परमनूषण नगरें पुण्यकेतु राजानी रत्नमाला नामा राणीनी कुखें पुत्रीपणे आवी उपनो, ते अनुक्रमें पुत्रीनो जन्म थयो, माता पितायें तेनो जन्म महोत्सव कस्यो, पडी ते पुत्रीनुं नाम उन्मादयंती एवं पाडयुं, ते पण प्रर्वनवाच्यासनी पेठे विषय वांबना रहितपणे रही, त्यारे तेनी मातायें स खीयो साथें घj कहेवराव्युं, परंतु तेणीये पोताना विवाह करवानी हा कही नहीं. त्यारें मातायें फरीथी कडं के हे पुत्रि! जे कन्या , ते वरविना शोने नहीं. माटे तारी शीला ? त्यारें पुत्रीयें कह्यु के चार कला महोटी कही जे. तेनां नाम सांजलो. १ पहेली ज्योतिषी कला, २ बीजी आकाशमां गमन करवू तथा वैमानने बनावq ते,३त्रीजी राधावेध कला ते एकबाणथी एकस्थंन उपर राखेली राधा नामा पूतलीने नीचें ननो रही जलना नरेला कुंमामांथी जोक्ने मारीने तेने वेधे,ते. चोथी गारुड मंत्रकला ते माहाविषने टाले ते. ए चार महोटी कला.तेमांजे राधावेधनी कला साधे तेनी साथें मारे पाणिग्रहण करवू.बीजा हीनसत्त्व नरने हुँ परj नहीं. एवं मारे “पण" Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. .ते वात सांजनी पुत्रीनी प्रतिज्ञा जाणी पितायें स्वयंवर मंझप रचाव्यो, ते शामाटे के राजाना राजपुत्रोनी परीक्षा करवामाटे ते जेम के एवो कोई राणीजायो पुत्र ने, जे राधावेधनी कला जाणे? एवं चिंतवी लगनो दिवस निर्धारी गमोठामथी राजपुत्रोने तेडाव्या, एटले ते सर्वे आव्या. तेने बद्ध सन्माने करी निवासस्थान एटले उतारा आप्या. पड़ी मणि रत्ननो स्थन कीधो, ते पर स्फाटिक रत्नमय राधावेधनी पूतली कीधी, ते स्वयंवर मंझप ना मध्यस्थ तुंचा स्थंन नपर बांधी. मंझपमा ध्वजा, तोरण, चंवाथी शोलायमान तथा मोतीना कुमरखांथी सुशोनित एवा मांचा राजपुत्रोने वेसवा माटे ममाव्यां, वली सिंहासनोनी पंक्ति कीधी. नामो गम दान देवा मांमयां, वाजिंत्र गीतनां मधुर स्वर थवा लाग्या, तेमां मध्यस्थ राधा वेधनो स्थंन आरोप्यो, त्यां हाथमां वरमाला लइ पुत्री पोताना पिताने खोलें वेठी जोवा लागी, त्यां राधावेधनी बाणकला साधतां घणा राजकुं वर चुके , ते हांसीने पात्र थाय , एवं त्यां कौतुक कतूहल थवा लाग्युं. एवा समयमां ललितांग कुमार पूर्वनव संबधी स्नेहथी पंक्तिमांथी नग्यो, ने सर्व राजपुत्रो जोतां जोतांमां राजपुत्रीना हृदय साथें राधा वेधनी पूतली वींधी, ते कला साधी, अने तुरत जय पाम्यो, त्यारे जेम कोइ दरिडीनी स्त्री धन देखोने हर्ष पामे, तेम कुंवरी हर्ष पामीने ललि तांग कुमरने कंठें वरमाला आरोपवाने उठी, एटले वचमां कोइएक विद्या धर कामानियें देदीप्यमान थयो थको सर्व जण देखतां तथा सर्वने मोह उपजावतां ते कन्याने आकाशमार्गे लेइने चालतो थयो. राजायें परिवार सहित पोतानी कुंवरीने न दीवी के इण वारमा हाहाकार करवा लाग्यो. ए स्थितिमां सर्व राजपुत्रोने पण विदाय करवानो तेराव कस्यो दैवें पुण्य केतु राजा दुःख पामीने कहेवालाग्यो के अहो राज्यपुरुषो! तथा हे कुंव रो! आपणनें हर्षरूप अमृतमां खेदरूप विप उप्तन्न थयुं, माटे हवे तो मारी हरण थयेली कन्याने जे राज कुमार लावी आपे, तेने ते कन्या द्वं परणावं ? तेथी जेमां एवी विद्याशक्ति होय ते जलदी उद्यम करो. त्यारे मर्ष धरी ललितांग कुमार कहे के नो नो राज कुमारो!!! तमारामां एवो को पराक्रमी , के ते उष्ट तस्करने मारी दृष्टिगोचर करे.अगर मने तेनी पासें ला जाय? त्यारे कोइसऊन पुरुष हतो तेणें कह्यु के द्रंज्योतिष लमथी Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नावी ढुं कही जाएं चं, तेमां एम थावे जे, के ते विद्याधर, राजानी न न्मादयंती नामा पुत्रीने अति दूर लई गयेलो ,ते स्थलने दुं जाणुं पण माटे जो तमें कहो तो हुँ देखाईं? त्यारे ललितांग कुमारें कडं के तेतो ठीक थयु. पण मने कोई त्यां लई जाय? तेवामां तो कोईएक राजकुमार तत्काल, विद्यायें करी महोटुं व्योमग विमान बनाव्यु. पबीते विस्तृत एवा विमानने विषे तत्रत्य सर्व राजकुमारो बेठा अने ज्योतिपीना कहेवा मुजब ते विमान उंचु चाल्यु, पनी विमानमा वेवेला सर्व जनोयें विद्याधरना हस्त गत ते कन्याने वैताढ्य पर्वतपासें दीती. त्यारें धनुर एवा ललितांग कुमार ते कन्याना हरनारा विद्याधरने दीठो, अने तुरत आक्रोश करी धनुष्य बाण खेंची कुमार बोल्यो के, अरे उष्ट ! खग !! पारकी स्त्रीने गुं लई जाय ले ? अने लइ जाय छे तो हवे जरा उनो रहेजे, अने जे तारु नाम ले, तेनुं तुं सार्थक्य करजे? अने जो तुं पुरुषोत्तम हो, तो सामो थाजे? अरे तुं विद्याधर थश्ने परस्त्रीने बलथकी हरी जाय , ते तो तुं सिं हनुं नाम धरावीने सांप्रत कालमां कूतरानी पेठे आचरण करे ? __एवं सांजली ने ते अधम विद्याधर हाथमांयी कन्या पडती मूकी धनुष्य बाण आरोपी सामो थयो. अने जेहवे ते विद्याधर ललितांग कुमार उपर बाणनी वृष्टि करतो आवे बे, एटलामां तो ललितांग कुमार एक बाण मूक्युं के जेथी तेनुं मस्तक तरत बेदा गयु,अने तेज वखतें नूमि यें पड्यो, ने क्षण वारमा मरणशरण थइ गयो. ते पराक्रम सदयें दीतं. पनी ज्यां कुमरी पडी जे त्यां जश्ने जुवे ने तो नष्टचेतन तथा मृतप्राय पडेली जेवी ते उन्मादयंती कुंवरीने दीती.पढी त्यां तेने जोतां एम निश्चय थयो के ए कन्याने सर्प मशी, अने तेथी ते मूळ पामी नूमियें पडी जे. पली ते कुंवरीने विद्याधरना हाथमांथी बोडाववाने जे राजकुमारो आव्या हता, ते सर्व मनमां अत्यंत खेद पाम्या, तेवामां एक कुमार मनमां दया पाणी ने सिगारुडी विद्या साधी, तेथी ते कुमरीने जीवती कीधी, पड़ी ते स वं राजकुमारो पोत पोतामा हर्ष पामता ते कन्याने विमानें बेसारीने कु मरीना पितापासें याव्या, पनी त्यां सर्वकोश्ये आप थापणी वार्ता कही संनलावी, अने जेणे जे उपकार कीधो हतो, ते सर्वे प्रत्यक्ष रीते ते कन्या ना अर्थी थया. अने परस्पर वाद करवा लाग्या, त्यारे कन्याना पितायें Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. विचायं जे प्रथम शत्रुने तो ललितांग कुमार हण्यो, अने बीजा ज्योतिषी ये विद्याधरने देखायो,त्रीजा पुरुषं व्योमग विमान बनाव्यु, अने चोथा पुरुषे मरेली कन्याने विषहरण करीने जीवाडी. हवे ते चारे कुमारो, रूपें पण सरखा ,महोटा राजाना पुत्रो ,तथा बलीया पण सरखा ,तथा कोई कोना गांज्या जाय तेवा पण नथी. वली ते चारे जणायें ए कन्या वरवानुं 'पण' पण नीधुंबे, ने दृढ श्राग्रह पण कीधो ले.. हवे तेवे समयें गजा विचारले जे ढुंधात्रणेनु अपमान करीने जो एक नेज कन्या था, तो टीक न केहेवाय? वली जे कन्यानी चार प्रतिझा हती, ते पण चारे जगायें पूरी करी देखाडी. माटे कोनो त्याग करवो अने कोने देवी? एम कन्यानो पिता सामंत प्रधान सहित लोको देखतां अत्यंत चिंता मां मन थइ गयो जे. एवे समय ते कन्या मनमां चिंतववा लागी जे माझं मन तो या ललितांग कुमारमांज , तो पण मारा उर्दैवना वशथकी परस्पर राज कुमारोनो विवाद थयो ने. अने मारो पिता तेना क्वेशनें जोड्ने फुःखी थयो ने. अरेरे !!! श्रा, अतिरमणीय एवं मारु रूप गुं अनर्थकारीज था? धिक्कार ने मारा जीवतरने जे आवीधापत्तिमा ढुंबावी पडी ? माटे मारे जी ववाथी हवे मरवू ले तेज नखं . वली पण विचारवा लागी जे अात्मघात करवो, तेनो श्रीवीतरागेंतो निषेध करेलोले खरो,परंतु कोइएक ठेकाणे कोक एवा कारणथी आत्मघातने गुम पण मानेलो ने. कुंवरीयें एवं मनमांधा रीने पोताना पिताने विनति कीधी जे हे पिताजी ! ए वातनो कांइ खेद न करवो, अने तमो मने बीजा सर्व विचार मूकी दश्ने काष्ठानि आपो, के जेथी सर्व- देम थाय? कदाचित् तमें मने जीवती जो नहीं बालो,तो घणा जीवोनी हानि थशे, तेथी तमनें माहापाप लागशे? वली माहारी पण अनि प्रवेशथीज इष्टसिदि.अने तमारे माथेथी लोकापवाद पण तेथीज मटशे. एबुं पुत्रीनुं वचन सांजलीने राजा पोताना बुद्धिमान प्रधाननें पूबवालाग्यो के, हेमंत्री ! ढुंआवा आपत्ति समुश्मा मूबी गयो ,अने मारा हृदयमा दाह थयाज करे ,वास्ते हे प्रधान ! तमें तमारी बुद्धियें करी या विषम कार्यनी सिदि थाय, तेम करो. अर्थात् कोइएक बुद्धि केलवी सुख नपजे, तेम करो. मुःखमां ज्यारें बुद्धि केलवी सहाय न करे, तेवारें बुद्धिमाननी बुद्धि मुकाम आवे? त्यारे प्रधान, बुद्धिथी विचारीने राजाने कहे डे, के जे कन्या कहे जे, Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ११५ तेज आपणने करवु उचित ,माटे काष्ठनी चय रचावो. पड़ी एनो जित वर जे दशे तेने ढुं परणावी दश्श. अने तेथी ए कन्याने तथा तमोने सुख थाशे. त्यार पती राजानी आझायें तत्काल चंदनना काष्ठोनी चय रचावी, त्यां कन्या नाही धोइ, श्वेत वस्त्र पहेरी, काष्ठानिमा प्रदेश थवाने तयार थरावी. त्यारे प्रधाने ते चारे राजकुमारोने तेज्या. अने कह्यु के नो नो राजकुमारो !!! तमो चारे जणा कुलें, बलें, स्वरूपें, अने गुणें सरखाज बो, तो अमाराथी त्रण जगनुं अपमान करी एक जणने या कन्या केम अपाय ? तेमाटे तमारे कां पण खेद न करवो. केम के ए कुंवरी अग्निमां प्रवेश करी वली मरे ,माटे तमो सर्वे मला तेने बलवानी आझा आपो, अथवा जेने कन्या नपर आकर प्रेम होय अने जे मान। पुरुष होय. तो तेणें था कन्यानी साथें अग्निमां प्रवेश करवो, तो अमो जाणी\ जे तेनो ते कन्या साथें साचो स्नेह , अने बीजाउनो स्नेह , ते खोटो ले. एवं सांजली सर्व राजकुंवर चितववा लाग्या के अहो ! केवु ा प्रधाननु बुदिबल ? के अमने सन्मान्या पण खरा,अने विवाद पण टायो ? वली आ कन्याने पण आम कर, ते युक्तज ने. एम सर्व राजकुमारो जेवामां चिंतवे ले, तेवामां तो ते राजकन्या न्हा धो सारा अंगार पहेरी याचक जनने घणां दान देती यावी. अने प्रावीने तेणें काष्ठनी चयमध्ये प्रवेश कस्यो. ते वखत चारेगम अनि ज्वाला लागी गइ , एवे समये ललितांग कु मार शीघ्र, ते चयपामें आवी कहेवा लाग्यो के अरे! या मारी अनाथ एवी प्रिया एकली केम बने ? ए विना मारुंजीवित ते गुं? एम बोलतो बोलतो शीघ्र बलती चयमां जश्ने पड्यो, त्यारे सर्व राजकुमार विस्मय पाम्या. यतः-बुहियाणं नोयणमिव, रान रमणीसु होइ कामीणं ॥ नेहो पुण विर साणं, जो मरणे तेन निवडई ॥१॥ललितांगकुमार चयमा पेठो, त्यारे उन्मादयंती कन्या कहे जे के हे आर्यपुत्र! ढुं निर्नागिणीने अर्थ एवं सा हास ते तमें श्या माटे की, ? जेहवं तमाळं विज्ञान , तेहवो स्नेह पण जे. हवे प्रधानें कोइने खबर पड्या विना चयथी ते पोताना घर सुधी ए क सलंग खोदावी हती, ते तुरत पोताना सेवकने मोकली नघडावी ना खी. पनी ते कुंवर तथा कुंवरीने राजाना सेवको अखंमितपणे प्रधानने घेर ला गया. बलती ज्वालाथी विकराल तथा धुंवाडाना गोटम गोटाथी Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सलंगमांथी वेदुजण गयां, तेने कोश्ये जाण्यां नही अने सदुयें तो ए मज जाएयु जे चयना अग्निमां ते कुंवरी तथा कुंवर बेतु बली मूवां. पनी सर्व राजा तथा राजकुमार विस्मय पामीने जे जेम आव्या हता ते तेम पोत पोताने उतारे जवाने तैयार थ गया. त्यारे प्रधाने राजाने कह्यु के हे राजन! अरे या ललितांग कुमारनुं या केतुं मोठं साहसिक पणुं? अरे एनु निश्चय धैर्य तो जुवो ? आटलुं कह। प्रधान ते राज कुमारोने कहे डे के हे राजकुंवरो! तमें तो राजकुंवरीने एकली वलती मूकीने पोताना जी वितने वहालुं कीg,परंतु कदाचित् तेना साहसने लीधे अथवा तेना पुण्यो दयने लीधे तथा कोइ देवताना सहायथी ए वे जीव जो कोइ ठेकाणे जी वता होय, तो ए बंदुनो पुनर्जन्म थयो, एम सर्वे जणे जाणवू. अने ते कन्या पण फकत ते ललितांगकुमारनेज वरवा योग्य थाय,पण तमने कोइनें वरवा योग्य थाय नही. यावां प्रधाननां वचन सांजलीने ते सर्व राजा तथा राज कुमारो कहेवा लाग्या के जो ए वेद जण दैवयोगथी कदाचित जीवतां होय तो ए कन्या ललितांग कुमारज परणे, ए वात अमने सदुने प्रमाण .आवां वचन सनिलीने प्रधाने पोताना घरथकी लावी ते वेदु ज गने प्रगट कीधां, ते बेदु जणने अवंम जीवतां देखीने सर्वे आश्चर्य तथा चमत्कार पाम्यां. अने राजा पण आनंद पाम विवाहनां वधामणां करवा लाग्यो, अने बुद्धिमान् प्रधाननी अति प्रशंसा करवा लाग्यो. त्यार पनी राजायें महोटा महोत्सवें करी समकालें ते वेदु जणनो विवाह कीधो. हवे ललितांग कुमार पण ते कन्यानुपाणिग्रहण करी. सऊनोने आनंद नपजा वतो अत्युल्नासथी पोताने नगरें आव्यो. बीजा सर्व राजा तथा राज कुमारो पोतपोताने स्थानकें गया. ___ त्यार पढी ललितांग कुमरने महानोगी तथा नाग्यवंत जाणीने तेना पितायें पोतानुं राज्य आप्युं. अने राजायें पोतें पोतानुं आत्मसाधन कीधुं. हवे ललितांग राजा न्यायें करी पोताना राज्यनुं पालन करवा ला ग्यो. अने ते परगेली स्त्रीसाथें सांसारिक सुखनोगववा लाग्यो. ते सम यने विषे एक दिवसें पोताना राज्य महेलने विपे खुशालीमां स्त्री सहित यानंदमां बेठो ,तेवामां शरद ऋतु होवाथी कमल विकश्वर थई रह्यां ने, ते वखतें पोताना नगरने तथा वनवाटिकाने निरखवा लाग्यो. एवे Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. समयें आकाशे पंचवर्णिक एवो वादलनो समूह दीठो, अने ते पाडगे जोता जोतामां वायुयें हणाई विखराई गयो. त्यारे राजा राणीने कहे ले के हे स्त्रि! आपणे प्रासादें बेतां बेतां आकाशलीला जोतां हतां, तेमां विधातायें विघ्न पाडयुं. एक कण मात्र दीहुँ,एटलामां तो पा सर्व लय थई गयु. माटे हे प्राणप्रिये ! शरद कालना मेघन केवु चपल पणुं ? जुआ पणे प्रासादें वे थकां हजी दणमात्र न दीतुं, एटलामां तो सर्व लय पण थई गयुं, माटे हे राणी ! ए वादल समूह अस्थिर . अने ते सर्व दणमात्रमा लय पामे एवां . ते आपणे जाणतां नथी, माटे हे प्रिये ! या धन ले, ते पण वादल समूहनी पे ते बंधनरूप ने, कारण के आध नने नपार्जनायें दुःख, तेम नपायु तो राखतां दुःख अने एम करतां जो साचव्युं होय,तो पण वायुनी पेठे ते चंचलधन पावं चाल्युं जाय . कारण के रजना कणोनी पेठे ते अनित्य . वली हे कामिनि ! आ जोबन ,ते पण माहा नयंकर ने.सदा अराग्य नपमा सरखू शून्य ले. अने या काया ते स्वप्न प्राय जे.जोग ते रोगनी पेठे प्रातिना नपजावनारा ले. जे पदार्थ प्रनातें देखीयें बीये ते मध्यान्हें न देखीयें,अने जे मध्यान्हे देखीये बियें, ते रात्रिये देखतां नथी. अने जे रात्रिये देखीयें बीयें, ते प्रनातें पाला देख तां नथी. ज्यां जन्म,जरा, मरण,रोग, शोक,इष्ट,अनिष्ट,गमन,आगमनरूप शत्रुन जीवनी पूवें निरंतर पड्याज बे. जाजूं कहियें ? ए असार संसारने विपे मृगतृष्णोपमान सुरवमांअरेरे !!! या आपणो मनरूप मृग, फोकट खेद पामे ले ? समता रूप सरोवरने मूकीने मुधा मृगतृष्णा पर दोडे बे ? आवी रीतें पोतानी स्त्रीने वैराग्य मय वात कहेतां राजाने वैराग्य नत्पन्न थयो. तेवेज समयें विमानोयें संकुलित एवा आकाशमां तथा पृथ्वी पर वाजिंत्रना निर्घोप जे शब्द ते थवा लाग्या,ते शब्द सांजलीने राजा पोतें अत्यंत कौतुक वंत थयो, एहवामां वनपालकें तुरत प्रावी वधामणी दीधी, जे हे राजन् ! आपना नगरनी बाहिर नद्यानमां सर्व वंदनीय, सर्वक, सर्वदर्शी, अरिहंत, जगवंत. एवा श्रीतीर्थकर यावी समोसस्या , तेथी त्यां सोनुं, रू', अने रत्न, एत्रणना त्रण गढनी रचना विगेरेथी देवतायें समवसरण बनाव्यु जे. जेनुं वर्णन मुखथी करी शकाय तेवू नथी. एवां वचन साननी राजानां साडीत्रण कोड रोम राय नन्नास पाम्यां. अने ते वधामणियाने राजायें Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. लाख सोनैया वधामणीना आप्या. पली सर्व सामग्री परिवारथीनगवंतने वां दवा गयो, हवे त्यां समवसरण मध्ये जइ जगइंदनीय जिनजीने विधिथी वांदी स्तवना करी यथास्थाने बेसी तत्त्वामृत देशना सांजलतो हवो. देशना सांजली, संसारना स्वरूपने असार जाणी, मोहरूपीया शत्रुनें उर्निवार जा णी तथा वैराग्य पामी पुत्रने राज्य देश राजायें पोतानी स्त्री साथें दीदा ग्रहण करी. पबी चारित्र निर्मल पाली समाधि मरणें मरी ते बेतु जणां बीजा ईशान देवलोकने विपे देव देवी पणे उपन्यां, तिहां देव संबंधीया जोग जोगवी पांच पव्योपमनुं आयुष्य जोगवी त्यांथी प्रथम, देवतानो जीव च्यवी ने एहीज जंबुद्दीपना माहाविदेह देत्रे सुकल नामा विजयने विपे विश्वपुरी नगरीमा सुरतेज नामा राजा राज्य करे ने तेहनी राणी पुष्पावती, तेनी कुखें पुत्रपणे उपन्यो. त्यार पड़ी ते राणीयें गर्जनी प्रतिपालना करवा मांमी. पडी पूर्णमासे गुनयोगें पुत्रनो जन्म थयो. त्यां पण तेना माता पितायें जन्ममहोत्सव करी तेनुं देवसेनकुंवर एवं नाम पाडयु. पढी केटलेक कालें यौवनावस्था पाम्यो तोपण तेने नारीना नोगनो वि पयानिलाष जरा पण थयो नहीं, अने ते गुणवंतनो संग करी विचस्या करे , हवे एवे समये नन्मादयंती एवी ते देवीनो जीव, तिहाथी व्यवीने तेहिज विजयने विषे वैताढ्यपर्वतनी दक्षिण श्रेणे सुरसुंदर नगरने विपे विद्याधरमांहे शिरोमणि एवो रविकिरण नामा राजा राज्य करे . तेहनी रविकांता नामा स्त्री , तेहनी कुखें पुत्रीपणे उपनो. पनी पूर्णमासे गुनयोगें ते पुत्रीनो जन्म थयो. त्यां ते राजायें तेदनो जन्म महोत्सव करी तेनुं चंकांता एवं नाम पाडयु. पड़ी ते महोटी थई यौव नावस्था पामी पण पुरुषना विषयनो अनिलाष करे नहीं. त्यां सुरकुमार सरखा विद्याधर, राजाउना पुत्रोनां रूप, तेनां कांति, चातुर्य, गुण, वगेरे तेनी सखीयो वरखाणे, परंतु ते चंकान्ता तो तेनुं नाम मात्र पण सही शके नहीं, कारण के तेने विषय वार्ता बिलकुल रुचती नथी. एवं कुंवरीनुं मन जाणी तेनां माता पिता मनरूपीया वनमां चिंतारूप अग्नियें करी बलवा लाग्यां. एवे समये ते चंकांता पोतानी सखीयो साथे पहाडनपर क्रीडा करती विचरे ले. त्यां कोई एक किन्नरयुग्म ते देवसेनकुमार, तान, मान सहित गुणोत्कीर्तन प्राकटारें मधुरस्वरें गाय . चंकांताने ते Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ११० देवसेन कुमारना गुणोत्कीर्तनरूप अमृतने श्रवण कचोलाथी पान करवे करी मृतपानी परें तेना नामयी यत्यंत हर्ष प्राप्त थयो, कारण के पूर्ववनी जे प्रीति ते दुःखें करी पण बांकी शकाय एवी नथी. यतः - नामपि जवांतर व, नहंस निसुयं सुहावे ॥ जीवंति वि सुपसन्ना, निसुता गारुडं मंतं ॥ १ ॥ त्यारें कुमरीनो नाव जाणी तेनी प्रियंकरी नामा सखी किन्नरयुग्मने पूछती हवी के हे किन्नरयुग्म ! जेना तमोगुण गान करो बो ते देवसेनकुमार ते कोण बे ? एम सखीयें तेहने पूढयुं त्यारें तेणे कयुं के देव हो, अथवा नर हो, पण गुणवंतना गुणो, गुणी होय ते एकाय चित्तें वर्णवे बे. वली गुणवंत पुरुष जे होय ते, ते घणा अवगुणोमांथी पण एकज गुण होय ते ग्रहण करे. अने मध्यम पुरुष जे होय बे, ते बता गु न कहे. ने अधम जे होय ले, ते गुण ढांकी अवगुणज बोल्या करे. वली ते किन्नर युग्म देवसेनकुमारनी बात कहेवा लाग्यो के में स्वेवायें विश्वने विषे पृथ्वीतलमां फररीयें बीयें, त्यां उद्यानने विषे देवसेन कुंवरनें में स्वच कुथी साक्षात् दीवो. ते केहवो बे ? तो के धनार्थीने धन प्रापे वे, मानीने मान पेबे, मित्रने हर्ष उपजावे बे, वाणीरूप सुधारसें करी तुष्टि पुष्ठिनो उप जावनारो बे, ने रूपें तो अनंग पण हारी जाय एवो बे, तेनी सौम्य ता आागलें चं पण कलंकित थयो छे, वली जेना तेज खागलें रविनुं तेज पण कांखुं पडे बे, जेनी बुद्धिश्रागत गुरु, शुक्र, बुध, ए सर्व दूर गया बे. तेनुं स्वरूप मोयें दीठं वे, तेथी अमो तेना बता गुण गाइयें बीयें, तेना गुणो बलात्कारथी मारा गलामां गावाने माटे स्वतः यावे बे. हवे या प्रमाणें ते देवसेन कुमारनी वात ते कुंवरीयें पण सांगली. त्यार पढी सखी यो कुंवरीने कयुंके हे प्रियसखि ! आपने यहीं यावे घणीज वार थइ. तेथी माताजी थापणी वाट जोतां दशे, माटे चालो यापणेस्थानकें जइयें ? एवं सांजलीने दुःखित यती थकी चंङ्कान्ता कुंवरी, पोताने घेर खावी. पी सखीयें कुंवरीनी बनेली सर्व वात माता आागल ते चंदकांतानो नाइ विद्याधर सांनले बे, तेम कही. तारे ते कन्यानो नाइ पण विद्याधर पलाना ग्रनि मानथी पोतानी नगिनी प्रत्यें कहेवा लाग्यो के, एवा नूचर मनुष्यनां व खाण ते मारी पासें शुं करया करो हो ? अमारी जेवा ते नथी कारण के यमो तो विद्याधर ढैयें. अने सघली विद्यानें बसें करी स्वेच्छाथी सर्वत्र फ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. - वाज करीयें बीयें. सर्वजनना मनोरथ सिद्ध करी दश्यें ढैयें तथा मन माने तेवा रूप पण धारण करीयें ढैये. अर्थीजनोने मनोवांचित दान दइयें ढैयें. वली मारो प्रताप कोई पण स्थलें हणातो नथी. माटे जगतमां जे वि द्याधरमा जन्म पामेलो होय, तेने धन्य बे. कारण के नूचर तो खेचरप. सें कीटकप्राय बे. दीन, तथा पराभवना स्थानरूप ते नूचर मनुष्यो बे, तेना सर्वे मनोरथो विधातायें होला बे. कारण के ते बीचाराथी नंदीश्वर प्रमुखनां त्यो पण वांदी शकातां नथी, तथा कर्मभूमिमां रह्या थका विचरता एवा तीर्थकर भगवानने पण वांदी शकातां नथी. तेजनी देशना पण ते हतनाग्य एवा मनुष्यो सांजली शकता नथी. माटे ते नूचरनां बल, रूप विज्ञानाने कोण सुझ पुरुष प्रमाण करे ? वली नूचर जीवना हाथमां प्रत्यक्ष रहेला पदार्थने खेचरो नही जाय बे, परंतु पंगुनी पढें तेनुं काइ पण चालतुं नथी. माटे तेवा पामर प्राणीयोनां वखाण सांगतां मोने ला यावे बे ? ग्राम पोताना नाइनी करेली ते ईर्ष्यायुक्त वात सांजली ने चंदकांता वोली के हे जाइ ! तमो श्राप बडाइ ने परनिन्दा करो बो ते तमने घटे नहिं ने सर्व नूचरोनी निंदा करो बो, ते तमो sofia पथ करो बो, एम तमारी वाणीज स्पष्टरीतें कही थापे बे. जो मध्यस्थपणे जुवो, तो जन्म, जरा, मरण, वगेरेनां जे जय बे, ते तो मनुष्य जन्मयीज टलो. अने ते जन्म जरामरणादिक तो नूचरने अने तमारे समाज के. ने तमो वेदु जणोमांथी जे वीतरागनापित गुंड धर्म नुं श्राराधन करो, तो ते कर्मोथी मूकाशे. माटे तेमां एकनी निंदा ने एकनी स्तुति करवी ते तमोने उचित नथी. ने तमो कहो बो के मो खेचर बीयें तेथी मो उत्तम बीयें, तो खेचर तो पक्षीयो पण बे, माटे ते गुं मनुष्यथी उत्तम गणाय ! ना गणायज नहिं ने तमो कहेशो के मो रूपांतर करी शकियें बैयें, तो नाटकीया लोको अनेक रूपो करे बे. तेथी चुं ते उत्तम गाय ? ना गणायज नहिं. माटे तमो विद्या, तथा धनना मदथी व्यर्थ नूचर मनुष्योनी निंदा करो बो. जुवो कोइएक जीव विद्याबलें दुशमनने जीते, तो कोइक प्राणी जुजबलथी रिनो पराजय करे. एम मध्यस्थपणे विचार जो करीयें तो विद्याबलवाला ने जब लवाला समानज बे. माटे एमां कोण प्रशंसनीय ने कोण निंदनीय बे ? Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टथ्वीचं अने गुणसागर, चरित्र. १२ वली तमें कहेशो, के विद्याधरनी जातिमांज उत्तम पुरुषो उत्पन्न थाय ने. तो अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, ए उत्तम पुरुषो मांहेलो कह्यो पुरुष खेचरोमां उत्पन्न थयेलो ले ? ते कहो. तेथी स्पष्टीतें नचर उत्तम जणाय ले के खेचर? अने नूचरोमांथी उत्पन्न थयेला चक्री, वासुदेव वगेरेयें मदोत तथा तमारीपतें विद्याना मद करनाराउनो थोडाज वखतमां नाश कीधेलो . आ प्रमाणे सयुक्तिक वचनोथी पोताना सर्वत्रातृवर्गने नि रुत्तर करी दीधा. त्यारे ते कन्याना बोलवा उपरथी तेना पितायें अटकल बांधी जे ए जीव कोई देवसेनकुमारना पूर्वजन्मनो स्नेही दीसे ले, नहिं तो अटली बधी तेने माटे तेनी लागणी होयज नहि. पनी ते चंकांताना पि तायें ते चंकांतानुं रूप चितारा पासें चित्रावी तेने देवसेन कुमारपासे मो कन्युं, ते चंकांताना चित्रने देवसेन कुमारे हाथमां लईने जोयुं, तो तेज वखत अत्यंत राग उत्पन्न थयो. हवे रविकिरण नामा विद्याधरराजायें, पोतानी चंकांतानिध कन्याने साथें लई, चांमाली विद्यायें नाटक करवामाटे नाटकीयानुं रूप करी देव सेन कुमारना नगरमा जई घणी वार सुधी गीतगान करवा मांमधु.पड़ी ते गीतगान सांजली तथा चांमाली, रूप धारण करनारी कन्याने जोई ते नाटक जोवा आवेला सर्व लोको तत्काल रडी पडयां. अने देवसेन कुमार तो ते कन्यानुं स्वरूप जो मोह पामवाथी तेना गीतगानपर जरा पण राजी थयो नहिं. अने मनमा खेद पामीने कहेवा लाग्यो के अहो नाट कीया! ा तारी पुत्रीमां बीजी कला शी? ते कहे. त्यारे ते नाटकीयो कहेवा लाग्यो के ए तो जातनी मातंगी, तो तेने बीजी कलानुं हुं काम ? ना होय तो तेना गीतगान सामुंजुवो.अने वली पण गवरावो. त्यारे देवसेन कुमार पुनरपि गीतगान करवानी आझा यापी. त्यारे सनासद लो कोयें कह्यु के हे स्वामिन् ! एने गीतगान करतां घणी वार थई गई. माटे ते प्रयासथी खेद यामती हशे? ते वचन सांजली कुमारेंगीतगान बंध कराव्यु. पली नाटकीयानुं रूप धारण करनार ते रविकिरण राजा पोताना चित्तमां चिंतववा लाग्यो जे आ कन्या चांमालीनु रूप धारण करनारी ,तो पण अत्यंत मान पामी, अने वलीया देवसेन कुमार नपर अत्यंत रागिणी पण थई जे. एम तेनी अंगचेष्टा वगेरेथी स्पष्ट जणाय . माटे जो आवी Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. चामलीना रूप वाली कन्यानी साथें कुंवर लग्न करे, तो महोटो लोकाप वाद थाय. तथा वली आ कन्या रूपवगेरेथी जेवी मनोहर ले, तेवो आ कुमार पण जे. एम विचार करी ते रविकिरण विद्याधर कहेवा लाग्यो जे हे कुमार! निर्गुण एवा जे तमो ते तमारी पासें था अमारी गायन विद्यामां करेली महेनत सर्व निष्फल थई, कारण के तमो गायन सांजली कांई खुशी थया नहीं! एम कही ते विद्याधर पोतानी कन्याने लईने त्यांथी चाल्यो गयो. पनी पोतें तथा कन्यायें पोतार्नु पूर्वनु स्वरूप धारण कयुं. अने ते देव सेन कुमरना नगरनी बाहेर महोटुं लशकर लई विमानमां बेसीने तेविद्याधर याव्यो.यावीने एक आवास बनाव्यो. त्या अनेक वाजितना निर्घोष थवा साग्या अने सर्व बाकाश विमानें बाहीलीधुं. या प्रकारे एकदम विमानथी थानादित थयेला सर्व व्योमने देखीने देवसेन कुमारनो पिता विस्मय पामी गयो. एवामांतो कोईएक खेचरें यावी ते राजाने नमन करी विनति करी के हे विशुदापति ! तमोने ढुं वधामणी आपवा आव्यो वंजे तमारा पुत्र देव सेन कुमारसाथे पोतानी कन्यानुं जम करवा माटे मोटी शदिये युक्त रवि किरण नामा विद्याधर थापना नगर बाहेर आवेलो . यावा समाचार सां जली ते देवसेन कुमारनो पिता सुरतेज राजा अति आव्हादित मनथको नगर बाहेर नद्यानमां तेनी सामो याव्यो. पनी ते उद्यानमां ते वेदु राजा परस्पर मल्या, अने माहोमांहे कहेवा लाग्या जे आपणा वेद संताननो विवाह जे थवा धास्यो जे, ते यथोचितज डे अने वली आपण बेदु दि यें करी पण समानज बैयें. माटे आपण बेतु संबंधी थायें, ते योग्यज .एम कही ते चंकांतानी साथें देवसेन कुमारनो विवाह कस्यो. पनी बेद्ध राजा जनां वस्त्र, यानरण, सारां चंदन, सुगंधयुक्त पुष्पनी माला, इत्या दिक वस्तुन्नु लम महोत्सवमां बेदु राजा यथोचित दान दर्शनें सर्वजनने री जवे बे. तेथी बेहु वेवायो महोटा यशने प्राप्त थया. हवे ते वरनुं बने कन्यानुं रूप जोई तत्रत्य सर्व जननी दृष्टि तृप्त थाती नथी. थने ते सुरतेज राजानी अति नक्तियों तुष्टमान थयेलो रविकिरण विद्याधर, पुत्रीना वियोगथी मनमां दिलगीर थई, पोतानी पुत्रीनी राजा व गेरेने नलामण दई, तेनी आज्ञा लई पोतें पोताना नगर प्रत्ये आव्यो. पड़ी सुरतेज राजायें उत्तम एवो सांसारिक जोग नोगवी, अने राज्यनार Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १२३ वहन करवाने योग्य पोताना पुत्र देवसेनने जाणी असार एवा संसारथी नगि पामी पुत्रने राज्य गादीपर बेसारी सुगुरु पासें जई दीक्षा लीधी. तद नंतर देवसेन कुमार राजा थयो. अने तेमनी स्त्रीजेचंकांता हती,ते पट्टराणी थइ. तेमने पेटें एक मनोहर पुत्र थयो. ते पुत्रनुं नाम शूरसेन एवं पाडयुं. हवे ते पुत्रेकरीराणीकहेवी शोने ! के जेवी सूर्य नगेथी पूर्व दिशा शोने तेवी ते शोने ,पनी रविकिरण राजायें राजकाजना व्यादिप्त पणायें करी पुत्रीने परणाव्या पली पुत्रीमाटे एक वार पण नोगांग सामग्री तथा वस्त्रानरणादि वगेरे कांइ पण मोकल्यां नहीं. तेना नछेगमां बेती के तेवामां चंश्कान्तानी दासी नवटणादि नोगांग सामग्री ल ावी. त्यारें चंका न्ताने दीनवदना दीठी तेवारें दासीयें पूज्यु के बेहेन तमो दीनवदना केम दीसो बो? त्यारे तेणीयें कडं के मारा माता पिता मुजने परणाव्या पनी बिलकुल संनारतांज नथ अने कां वस्त्रानरणादिक पण मोकलतां नथी अरे तेमणे मुने केम वीसारी मूकी हशे! को कोपथी स्नेहनो लोप थयो! ते पुःखy हृदयमा ध्यान करतां हं करमा गवं, ते केनी पेठे ? तोके जेम मालतीना फूलनी कली अमिय दाजी होय अने करमा जाय तेनी पढ़ें ? अथवा कमलिणी हिमें बली केवी थाय? तेवी रीतें ढुंतो ग्लानवदना थ गइ बुं. त्यारें निपुण सखी तेने शिखामण देवा लागी के हे राणी! जरा वि चार तो करो, के अन्यनां दीधांजे वस्त्रानरणादिक, तेथी ते सुख केटलुक होय ! जुनने माग्यां घरेणां पहेरवानुं जे सुख होय , ते सुख शा कामनुं ने वाली बहेन ! था जगतमा पौलिक सुख जे , ते वितथ डे, माटे तेना लानयी तथा अलानथी रोष तथा तोष, कांइ पण करवोज नहीं. तथा वली जे परनी आशा करवी ते नरने अने नारीने अपमाननुं स्थान क डे, एवं जाणीने नत्तम मनुष्य होय, ते संतोष धरे .वली हे राणी! शरीर जे ,ते तो केवु ? तो के जे शरीरने मोंघी वस्तु जे वस्त्रादिक ते जो पहेरावीयें,तो ते वस्त्रादिक पण जेना स्पर्शथी अल्प मुल्यवाला थ जाय ! तथा सरस आहारें आ शरीरने पोषियें जीयें, तथापि सरस वस्तु जे , तेने आ शरीरनो संग थाय के तुरत ते मलमूत्र रूप उन्धमय थ जाय . तेमाटे सुबुदि पुरुषो, या देहने ढांकवा अने राखवाने माटे श्व्य, देत्र, काल, नावने अनुसारें नोगांग सामग्री राखे डे, परंतु तेमां ममत्व बुद्धि Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो धरता नथी. तथा नवी वस्तुनो अनिलाप पण करता नथी. त्यागनावें ए शरीरथी चेतनने न्यारो नावे , ए वस्त्रानरणादिक जीवें जे मेलव्यां बे, ते तो जे जेम ते तेमज रहेवानां ने, तेथी जीवने गुं लान थावानो ! अने वली जीवें रतिवेदनां जे कर्मो बांध्यां हशे, तेना उःख विपाक जरूर जोगववा पडशे! एवी रीतनां निपुण सखीयें मधुर अने सयुक्तिक एवां वैराग्यमय वचन कह्यां, तेथी पुण्य पापना विपाक जागीने ते चं कांताने तत्काल वैराग्य नत्पन्न थयो, तेथी तेने शांतिदशा प्राप्त थइ. अने दासीनें कहेवा लागी के हे दासी! जे तें कह्यु, ते सर्व अदरशः सत्यज बे, जे अन्यजननी याशा करवी, ते महा दुःखनुं कारण . अने हे दासी! कामनोगादिकनां सुख तो जीवो घणी वार पाम्या, अने पामीनें वती तेना सुखनो गर्व जीवें फोगट कीधो. वस्तुतः ते कामानोगादिक जे बे, ते यात्माथी जुदाज . वली ते मनोज्ञ गीत गानादिक पंचेंझ्यिना सुखोने पण जीव जोगवीने पालो बांझे ने तो पण ते जीव तृप्त थतो नथी. तो शा माटे नोगनां सुरखनु अनिमान करवू ? तेमाटे हवे मोहना विलासरूप ए नवटणा विकें करी मारे सयुं ! अने या असत्य संसारथी पण मारे सयुं ! माटे हवे ढुं तो प्रव्रज्या जे दादा ते ग्रहण करीश,के जेथा सद्यः स्वाधीन एवा शाश्वतां सुरख पामीयें! आप्रमाणे दीक्षा ग्रहण करवानुं ज्यारे कह्यु, त्यारे पासें वेठेली दासीयो विलखी थइ विचारवा लागियो के आ पणे तो सेज आ चंकांताने एमना मातापितायें नहिं मोकलेला वस्त्रानरणा दिकना दुःखने मटाडवा आ संसारनां पौगलिक सुरखनुं असत्यपणुं कह्यु, तेमांथी तो तेने तीव्र वैराग्य नत्पन्न थयो ? अने एकदम प्रव्रज्या ग्रहण करवा तत्पर थइ गइ ? माटे हवे आपणे सांसारिक रीतें सविनय, सांसा रिक विषयवासनानी वात कहियें ? एम विचारीने नम्रतापूर्वक तेने पगे लागीने कहेवा लागीयो जे हे राणी ! अमायें जे आपने कह्यु के पराधीन पणुं दुःखद , ते खरं पण ते पराधीनपणुं आपने नथी ए पराधीन पणुं तो अम जेवा पामर प्राणीनेज होय जे, आपने तो पृथ्वीपति राजा माथे स्वामी , तो आपने कोई पदार्थनी खामीज नथी. अने पूर्वोक्त रीतें अमें आपने चचन कह्यां, ते सर्व, उपहासथीज कहेला ले. ते उपहा सनां वचन पर सत्यत्व मानी ते वचननी तमोने दृढ गांठ बांधी बेस Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १२५ बु, अने ते उपरथीज प्रव्रज्या लेवानी वात करवी, ते घटे नहिं? माटें हे बेहेन! आ अमारा लावेला अंगविलेपनादिकने कृपा करी अंगीकार करो. त्यारें चंकान्ता राणीयें कह्यु, के हे दासी ! हवे आ शरीरनी शुश्रूपाथी समु. अर्थात् हवे आ शरीरने सुख देवानी कांइ जरुर नथी. अने में आ संसारना सर्व सुखनो अनुनय करीलीधो. तेमां मारूं अद्यापि पर्यंत काहीं वन्युं नहीं? हे दासीयो! परमानंदना पामनारा जे मुनिराजा अनिर्वचनीय आत्मिक सुरव अनुजवे , ते सुरवथी तम जेवी अज्ञानी दासीयोयें अद्यापि पर्यंत पौजनिक सुखमां आसक्ति वधारी मुने वंची . अरे रे !!! ढुंआ अनि त्य एवा सांसारिक सुखमां रंगाणी! मुंजाणी! अरे प्रेम ते गुं! अने कोण कोने प्रिय ! कोनो विरह ! कोण विषय ! बनी जे अपूर्व आत्मिक सुख जोगवे , ते साध्वीने वारंवार नमो नमः जीवित पण ते स्त्रीनुज धन्य ने, के जेना मांस खमणादिक तपें करी तप्तथयेला देहने विपे दाह थवाना जयथी अनंग पण रहेवा आवतां जय पामे . अने जरा पण स्थान पामतो नथी. एम ते राणीने तीव्र वैराग्य उत्पन्न थयो. एवा समयमां प्रातिहारीयें यावीने राणीने कह्यु, के हे महाराणी! आपने माहाराजा तेडावे ले ? माटे नाई, धोई, सर्व अंगविलेपन करी आनरण वस्त्रादिक पहेरी त्यां पधारो. हजी सुधी या काई अंगशुश्रूषा केम करी नथी? वली शामाटे अमो त्यां प्रावीयें ? एम जो आप कहेतां हो, तो असार अने अपार एवा संसारमांहे पडता प्राणीना हितार्थी, दुःखें पीडित एवा प्राणीयोने शरण दान देवाने दद, इं अने नपेंशदिकें पण जेने जिताय नहिं, एवा मोहमानना जीतनारा, संपूर्ण केवलझाने करी लोकालोकने प्रकाश करनारा, विजयनामा तीर्थकरें आपणा उद्याननेविषे पान धाख्या ने. तो ते प्रजुने वांदवा जवाने माटे माहाराजा तेडे . एवं प्रातिहारीनुं वचन सांजली आनंद पुष्टपणुं पामीने तेने हर्षप्रमोदें दान दी . यतःकृतांगसार शृंगारा, चलिता नूनुजा समं ॥ एटले राणीयें स्नान करी सार श्रृंगार अंगें पेहेया. पहेरीने राजा साथें जश्ने दिव्य जे समवसरण तेमां बेना. जगत्गरुने वांदवा गया, त्यां जश् पंचालिगमन साचवी,पंचांग प्रणाम करी यथास्थाने बेसी जिनवाणी सांजलवां लाग्यां, त्यारें प्रनुयें पापनाशिनी देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः- नो नव्य लोको ! Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बिहामणी संसार प्रवीनें विषे जमता प्राणीने अनंत शाश्वत सदाकाल डुःखो घांबे, ने सुख ते तु प्रशाश्वत थोडुं छे. नरक गतें नारकी, पापना करनारा जीवो शीत अने उष्ण एवां पापनां जे शस्त्र. तेमां शीत जे शाल्मली वृक्ष तथा तप्त जे वालुकादि, दुधा, तृषादिक परमाधामीनी करी वेदनाने अनंतवार पाम्या. त्यार पढी तिर्यच गतियें जीवो कुधा तृपा तथा चार वहेवो इत्यादिक लाखो गमे दुःख जोगवे बे. ते प्रापणें दृष्टियें करी देखीयें ठीयें, तथा मनुष्य जन्ममां पण जीव, पुनर्जन्म, मरण, जरा, दौस्थ्य, रोग, शोक वियोगथी ययेलां जे दुःखो तेथी तथा ख राव स्वामीथी, पिशुन लोकोथी, थयेलां जे दुःखो तेणे करी वारंवार पराजव पामे बे. देवगतिमां पण या नियोगिकपणाना विपवाद, ईर्ष्या, क्रोध, लो जादिकनां जे दुःखो, तेने तथा विशेष करें। च्यवनकालनां जे दुःखो तेने जोगवे बे. माटे हे नव्यजनो ! जन्म, जरा, मृत्यु रहित निराबाध क्लेश, अविनाश, पुनर्नव एवां सुख पामवानो योग तो ग्रहियांज बे, तो ते सुख मेलववा माटे डसना मिथ्यात्वने मूकी. ते मोक्षपदनो यापनार जे वीतराग नापित आत्मधर्म तेनुं, उद्यमवंत थइने समाचरण करो. ए प्रमाणें जिननापित तत्त्वदेशना सांगली ते देवसेन राजा तथा तेनी राणीयें संसार असार जाली विषयथी विरमी सर्व परिग्रह त्याग करी नवज्रमणथी जय पामी, जगवंतने प्रणाम करी घरे यावी, शूरसेन कुंवरने राज्य दइ, सप्त क्षेत्रने विषे घणुं धन वावरी, दीन ने नाथने दान देश, महा महोत्सवें करी अरिहंत पासें दीक्षा लीधी ! यतःगत विषयविकारश्चारुचारित्रचारः, शमशर जितमारः शुद्ध सिद्धांतसारः ॥ तपइह विकलंकं चैप कृत्वाप शंकं, मुनिरगमदशोकं पंचमं देव लोकम् ॥ १ ॥ अर्थः- गया बे विषय विकार जेना, निर्मल चारित्राचार पालन करतो, शमतारूप बाणें करी जीत्यो बे कंदर्प जेणें, शुद्ध सिद्धांत सारना धन्यास करवामां तत्पर बे, नियाला रहित निष्कलंक तपनो करनार शंका, कंखा रहित, निरतिचारपणे मुनि मार्ग याराधी अंते असल करी समाधिमरणे करी पांचमे देवलोकें ते राजा राणी बेदु जीव देवपणुं पाम्यां. राजानो जे जीव हतो ते पणुं पाम्यो ने राणीनो जे जीव हतो ते सामानिक देवतापणे उत्पन्न थयो, त्यां ते बेद्र जलानी अत्यंत प्रीति Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १२७ होती हवी, त्यां दश सागरने वानखे देव संबंधिया नोग नोगवी. इं पणे थयेलो जे राजानो जीव हतो ते जीव, त्यांथी च्यवी एज जरतदेवें कुरुदेशने विषे गजपुर नगरें जे श्रीवाहन राजा राय करे , तेनी लक्ष्मी नामें राणी ने तेनी कुखें चौद स्वप्न सूचितथको पुत्रपणे उपन्यो. हवे तेज नगरें ते राजाने बुद्धिसागर नामें प्रधान हतो, तेनी सुदत्ता नामें स्त्रीनी कुखें प्रथम सामानिक देवता पणे नप्तन्न थयेलो जे राणीनो जीव, ते पुत्रीपणे प्रावी उपन्यो. हवे राजायें पोताना पुत्रनुं प्रियंकर एवं नाम पाड्युं अने प्रधाने पोताना पुत्रनुं नाम मतिसागर एवं पाड्युं. पनी आप आपणे पितायें ते बेदुनो जन्म महोत्सव कस्यो, हवे ते बेतु बालको साथें रमे,अने परस्पर दृष्टि पडे, त्यारे पूर्व नवना स्नेहथी माहोमांहे अत्यंत हर्ष उप्तन्न थाय. अने एक एकनो घडी एक पण वियोग खमाय नही अने एक एकने जो जरा वार न देखे,तो रुदन करे, हवे ते वेदनुं दुधा तृषार्थ। धावमाता प्रतिपालन करे , ते वेद बा लक परस्पर उद्यानने विपे क्रीडा पण करे, एकांग पणाथी विचरे ,सुखें वधे जे.एम करतां बेदुजण महोटा थया अने सर्व पुरुपनी कला, कलाचार्य पासेंथी शीरच्या अने अनुक्रमें यौवनावस्था पाम्या. हवे राज्यकुलमांहे ति लकसमान एवा प्रियंकर कुमारने राजायें मोटे मंमाणेकर। अतिरूपवती एवी राजानी कुंवरीयो परणावी.अने प्रधानना पुत्र मतिसागरने पण प्रधाने प्रधानवंशनी उत्पन्न थयेली अने अतिरूपवंती एवी कन्या परणावी. ___ एम ए बनेजण परण्या. पनी सांसारिक सुख जोगवता विचरे जे. एम करतां केटलेक कालें श्रुतसागर नामा आचार्य ते गामनी बहार धावी समोसस्या. त्या सर्व जनो वांदवा गया, त्यां वाणी सांजनी श्रीवाहन राजायें संसार असार जाण्यो,कपायनां फल माठां जाएयां, स्त्रीना नोग ते रोग समान जाण्या. अने विषयना फल पण विरस जाणी घरें यावी पोताना प्रियंकर पुत्रने राज्य गादी आपीने ते श्रीवाहन राजायें दीक्षा लीधी. अने तेना बुद्धिसागर नामा प्रधाने पण पोताना पुत्र मतिसागरने प्रधान पणे स्थापी श्रीवाहन राजा साथें दीक्षा लीधी. त्यार पडी प्रियंकर राजाने राज्य पालतां पुण्योदयें करी आयुध शालामां चक्ररत्न उपन्यु. तेचकें करी बये खंम जरतना साध्या. मुकुट बंध बत्रीश हजार राजा तेनी सेवा करवा Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. लाग्या, अने आज्ञा पण मानवा लाग्या. पड़ी चोशठ हजार स्त्रीयोना नोग तथा पुण्योदयें करी चक्री पदना नोग जोगवता बोहोंतेर लाख पूर्व वर्ष गया. हवे ते प्रिंयंकर चक्रीने बीजा घणा प्रधान ने तो पण मतिसा गर समान वीजा कोई उपर प्रीति नथी. ॥ यतः॥ मातंगा नैव तुंगास्तुरग रथवरा नैव सामंतयोधा, नांमागारं न रत्नान्यथ नवनिधयोनैव दारा उदाराः॥गीतं नृत्यं तथा नो ध्वनउरुमरुजं नैव राज्यं न राष्ट्रो, दृष्टो रुष्टोपि दृष्टिं सचिव इव तथा तस्य दृष्टिं विधत्ते ॥१॥ अर्थः- हाथी, घोडा, रथ, सामंत, योधा, नंमार, रत्न, तथा नवनिधान नदार रूपवंती स्त्रीयो, गीत, नृत्य, मृदंगध्वनि राज्य, देश, ए को वनन नथी हर्पित तथा शोकवान थया थका पण जो प्रधान पर दृष्टि पडे तो तेने बीजं जोवंज गमे नहिं अर्थात् तेमने जेवो मतिसागर प्रधान वनन ने, तेवं बीजं वजन को नयी. हवे प्रियंकर राजानो ते मंत्री उपर देवगुरुनी पेठे स्नेह , नाश्नी पेठे हितार्थपणुं बे, अने सर्व राज्यनुं अधिकारिपणुं ते मंत्रीने हाथें सोंपेखु . ते चक्रीराजा पोताना जीव समान एनेज जाणे जे. एम अत्यंत स्ने ह जे. एकदा राजा तथा प्रधान हर्षवंत थया थका विचरे में, तेवामां एक वातनी वेदु जाने चिंता उपनी,ते केवी रीतें? के जे आपण बेदुने महो मांहे अत्यंत स्नेह , ते गुं पूर्व नवनो हशे ! के आज नवनो! कारण के आ नवमां स्वामी सेवकनो स्नेह एवीरीतें कोश्नो जोयो नथी? एतो कोई पाउला नवनी प्रीति दीसे बे, माटे कोइक ज्ञानी पुरुष मले तो या वात नो संदेह टालीये. एवो विचार करे . एटलामां सुप्रननामा तीर्थकर तेज नगरीनी बाहार नद्यानमा यावी समोसया. बत्रत्रय बिराजमान,ना मंमल केवलझाने करी टाल्या ने अंधकार जेणे एवा अने जेनी आगलें ध मंचक्र चाले बे, सिंहासन, चामर, बात माहाप्रातिहार सहित देव इंदनि ने नादें करी जगतगुरु नव कंचनना कमलें करी विहार करता बहुमुनि परिवाशुं परिवस्था. दिव्य समोवसरणे आवी समोसस्या. जव्य जीवने प्रतिबोध देता एवा प्रनु आव्यानी वधामणी ज्यारे ावी, त्यारे ते वधा मणीयाने वस्त्र आनूषण आपी ने विसर्जन कस्यो. हवे राजा तथा प्रधान बेदु हर्षवंत थइ साडी बार कोड धननु ठेकाणे तेकाणे दान आपता सर्व परिवारगुं तथा चतुरंगी सेना सहित प्रचुनें वांदवा गया. त्यां प्रचनां Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १२ए प्रातिहार्य जोड्ने राजा तथा प्रधान बेहु खुशी थया. राजा पनी राजचिन्हो नो त्याग करी समवसरणमां जश्त्रण प्रदक्षिणा दइ हाथ जोडी उचित स्थानकें धर्म सनिलवा बेठा. ते पनी त्रिलोकीबंधु,करुणासिंधु, त्रिजगत्स्वा मी एवा प्रनु, सर्व नाषावाला जनोथी समजी शकाय एवी अने सुधारस समा न,योजनगामिनी वाणीयें करी सर्वने समजाय,एवीरीतें शनैः शनैः देशनानो आरंन करता हवा. ते जेम केः-जन्म, मृत्यु, जरा,ते रूप जेमां जल नरेखें ने, अने पुरव रूप जेमां घावों ने, तेवा अगाध समुने विषे पडेला एवा हे जीवो ! तमोने पुण्यरूप नावमां बेसवानो यत्न करवो युक्त जे. वली श्रा असार संसारसमुश्ने विषे दैवरूप धीवरें निर्माण करेली एवी दारुण दुःखदायक कालरूप माहाजाल, वखत विनानी यावी पडे उ. माटे ते जाल हजी सुधी प्रावी नथी, ते पहेलां जो नहीं चेतो तो तमो महाकुरखने पामशो! वली या संसारांबुधिमा विषयरूप विषना लोनने विषे समग्र मनु प्यरूप मीनगण पडेलो , तेने पूर्वक्ति दैवरूप धीवर, पारडता एवा जीवोने बाहेर काढीने कर्मरूप कुगरथी छेदी नाखे . वली जलजंतुने तो एम जा लनां मुखो थायज कारण के तेनी स्थितिज जलमा , परंतु नवाश्नी वात तो ए के गुणवान् तथा समुश्माथी तरी नीकलवाने समर्थ एवा पण था संसारमा मूबी जाय ,ते जेम केः-संपत्ति प्राप्त थवाने माटे यत्न क रता एवा झानी प्राणीयो मनोरथ रूप वाहाण नांगवाथी ते संसार समु इनें विषे प्रत्युत सुःखीया थइ जाय . वली ते संसारसमुश्ने विषे केटला एक कलावान् तरवामां पण प्रवहण जेवा प्राणीयो उराग्रह जे एकांत पद तेणें गलायेला डे अंग जेमनां एवा थका पाताल पर्यंत मूबी जाय , केटलाएक वली था संसार समुने तरीने कांगपर जायले, त्यांपण पाग प्रमादरूप कचरामा मन थइ नांग्यां मन जेमनां एवाथका हेठा पडी जाय जे. माटे हे नव्यजनो! प्रबोध पामो! प्रबोध पामो !! नये कर लोगोथी मोह न पामो! बालस रहित पणायें पुण्यरूप पोतें करी था प्रकारना संसारसागरनुं नलंघन करी अत्यंत सुखोनो जेमां निवास , ए वा मुक्ति नगरने तमो पामो. एवीरीतनी श्रीतीर्थकर नगवाननी प्रकाशेली देशना सांजली संवेग पामी राजा तथा प्रधान ए बेदु प्रचने कहेवा लाग्या के हे स्वामिन् ! धर्मनाव विना जे संसारसमुह तरवो, ते उस्तर , शामा Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. टे ! जे पुत्र कलत्रादिकनास्नेहबंधनथी बंधाणा एवा अस्मदादिक जेवा जड जनो, जात्यंधनी पेठे साक्षात् हिताहित जाणता नथी. माटे हे प्रनो ! थ मोयें तो हालमां आपना चरणप्रसादें करी कांक यथार्थ स्वरूप जाएयुं , तो पण वली पालुं जाणवाने इलियें बीयें के अमारे वेने मांदोमांहे अत्यंत स्नेह में, ते स्नेहथवानुं कारण गुं हशे? त्यारे प्रनुजीयें तेमना पूर्व नवनो संबंध धु रथी मामीने तेमने कही संनलाववा मांमधो. ते जेम केः-तमो सूडा सूडी पणे जिनपूजतां पुण्यफल नपाया, जे पूजाथकी धर्मबीज आरोप्युं, तेना पुण्यनो तरु, वृद्धिने प्राप्त थयो, ते तमोने अंतें अवश्य सिदिफलनो लान श्रापशे. हवे राजा तथा प्रधाने प्रचना मुखथी एवी वाणी सांजली के तुरत पूर्वलो नव दीगो. तेथी माहा संवेग पामी माहाव्रत लेवाने उजमाल थ नावचारित्रिया थाता हवा॥यतः-प्राज्यं राज्यं झटिति कुरजःपुंजवत् वर्ज यित्वा, बन्धुस्नेहं निगडसदृशं तंतुवत् त्रोडयित्वा ॥ त्यत्का स्त्रैणं तृणमिव रुदलोचनं दीनवकं, श्रामण्यं प्राक् सुस्तकलितो तो च सम्यक् प्रपन्नौ ॥ अर्थः- प्राज्य एवं जे राज्य तेने शीघ्र रजःपुंजनी पेठे बांमीने,बंधुजननी जे निविड स्नेहरूप वेडी तेने तंतुनी पेठें तोडीने,रुदन युक्त ने नेत्रो जेमां तेथी दीन थयेनुं एवं स्त्रीनुं जे मुख तेने त्रण समान त्याग करीने पूर्वकत सुरूत कर्मे करी युक्त राजा अने प्रधान ए बेदु जणे माहामहोत्सवें दीदा ग्रहण करी अने अंते मुक्तिपदने पाम्या. ए रीतें सुडा सुडीनी कथा संपूर्ण थइ. एम वस्तु तत्त्व अजाणते पण उघसंझायें इव्यथी शादरवी. अर्थात जिनपूजा नइकनावें करवी. जुवो! ए वेदु जीवें व्यस्तव कखो, तेथी ते वेदु जीव, सुखना हेतु थया. माटें जे ज्ञान पामी वीतरागनुं स्वरूप जाणी जे नावथी जिनपूजा करशे तेने इह लोकें तथा परलोकें सुखनां अने कल्याणनां कारण थाशे. ए कथा सांजली जेम दरिडीने धन पामवाथी हर्ष उपजे, तथा विद्याधर अन्यासी विद्या पामे अने तेने जेम हर्ष उपजे, अथवा शूरवीर पुरुष, शत्रु जीती जेम हर्ष पामे, तेटलोज हर्ष देव सिंह कुंवरने जिनवाणी सांजलवाथी उपन्यो. वली मोर जेम मेघनी गर्जना सांजली हर्ष पामे, वियोगी प्राणीने जेम पो तानो इट प्राणी मले ने हर्ष प्राप्त थाय, एम देवसिंह कुमार नार्या सहित धर्म पामीने हर्ष धरता हवा. पनी त्यांथी मुनिराजने वांदी पोताने Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १३१ स्थानकें गया. पनी केटलाएक दिवस त्यां रहिने सदाकाल साधु सेवा, क्रिया, अनुष्ठानमांहे निपुण थाता हवा. त्यार पड़ी एकदा ते देव सिंह कुमारने पोतानां मातापिता सांजर। याव्यां तेथी पोतें पोताना नगरजणी चाल्यो. ते वखत,वाजित्रे कररी पाका शने बधिर करतो, अने सैन्यरजें करी दिशाने धूसरी करतो ज्यारे चाल्यो, त्यारे तेमने वलावा माटे ते नगरनां घणां लोको श्राव्यां. त्यार पड़ी ते सदु दान, मान, सुवाही दृष्टि, तेणें करी कुंवरने संतोष पमाडीने पाना वव्या. परंतु तेनी दृष्टि तो वारं वार ते कुंवरनी पडवाडेज लागी रही एम करतां ज्यारें पोताना नगरनी सीममां अाव्या. त्यारें पोतानी स्त्रीने ग्राम, पुर, थाराम देवाडतां मार्गे मांमलिक राजाना घणा मानथी ने टणां लेतो, घणाक पालाना पन्निपतियोनी पासें थाणा मनावतो पर्वत, नदी, वाव प्रमुखें कीडा करतो, ग्राम नगर उद्याने ज्यां जिननां चैत्य ने, त्यां पूजा करतो, सर्व दुःखी प्राणीने दयाथी दान देतो, पोतानी मथुरा नामा नगरीयें पहोच्यो. त्यारें मेघरथ नामा पोताना पिताने वधामणी पहोंची के तमारो पुत्र देव सिंह कुंवर स्त्री तथा धन सहित नगर बाहेर थावेलो . ते सांनती पिता घणा आमंबरथी सामो प्राव्यो. पनी माहा महोत्सवें करी सद्धयें नगरमा प्रवेश कीधो. पिता, पुत्र तथा कुटुंब सर्वे मव्यां, परम प्रमोद पाम्यां पड़ी ते पूर्व नवनां नपाा जे समग्र पुण्य तेना योगें करी स्वर्ग समान सुखनोगने नोगवतो दानादिक देतो थको विचरे . एवे समय मेघराजायें सुपुत्र देवसिंहने राज्ययोग्य जाणी तथा पोतानो पण वृक्षाव स्थानो समय जाणी सर्व राज्य बोडी दई साधु पामें दीक्षा लेई सकल कर्म खपावी केवल ज्ञान पामी मोद नगरप्रत्ये गमन कस्युं. हवे देवसिंह कुमारे पण संग्राम कीधा विना पोताना तेजपराक्रमने प्रतापें उर्दत जे नूपतियो हता, ते सर्वने नमावी पोतानी बाझामा राव्या. अने ते देवसिंह राजा अत्यंत न्यायवान् थयो, तेणे करी त्यांनी प्रजाने ते राजा अत्यंत प्रिय लागतो हवो. एकदा राजा प्रनातें जाग्यो थको हृदयमां बे प्रकारें चिंतववा लाग्यो के जे राजा-यें राज्यलक्ष्मीने तृणवत् बांमीने प्रवा लीधी, तेने धन्य बे. अने हुँ जाणुं बुं, ते बतां पण कां व्रतनो उद्यम करतो नयी अने प्रमादमाहे खुचीज रह्यो बुं. महा Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मोहने विलासें विलसतो एवो जे काल, तेने हुँ निष्फल गमावू बुं अनिता पारूप पिशाचीये मुजने अत्यंत ग्रह्यो ने. अरढुं परहुँ जमतुं मारुं मन, ते धत्तुरासमान जे विषयनोग तेमाहे रति मानी रह्यु . वलीवक एवा कामरूप किरातें मारा विवेकरूप रत्नने चोरी ली, ने, गुचनावना रूपिणी जे लक्ष्मी तेणे मारा इंडियरूपीया चोर लूंटी लीधेला . जिनोक्त वच नरूप पटह वाजे ले, तेथी घणाक प्रवीण प्राणीयो होय , ते जागे के. अहो!!! ढुं अचेतन थइ मोहनिशमां सूझ रह्यो , तेथी केमे करी जा गृत थतो नथी! माहाऽष्ट मोहरूपियो शत्र महोटा प्रयासें प्राप्त थयेला मारा चारित्रने ग्रहण करे . धने पालो ते मोहने केम जीतवो ते पण मंदबुद्धिवालो हुं कांईजाणी शकतो नथी! अरे ! असार संसारमा आसक्त एवा मारायी ए महाप्रबल मोह केम जीताशे ! एम ते मनमां दुःख करे ने. त्यार पनी ते देवसिंहकुमार, निश्चयात्मिक बुद्धि करीने कहे जे के हा! ते मोह जीतवानो उपाय तो पूर्वाचार्ये नावस्तवें तथा इव्यस्तवें कह्यो जे. एम निश्चय धारी प्रनातने विषे राजायें उत्तम नूमि शोधीने ते ठेकाणे केटलाएक प्रा साद कराववानें अर्थे सूत्रधारो तेडाव्या, केटलांएक बिंब कराववाने वास्ते शलाट कारीगरोने तेडाव्यो, अने मतावलथी तेणें थोडा वखतमां जिनप्रा साद तैयार कराव्या. अने तेमां जिनबिंबनी स्थापना करावी. हवे ते जिन प्रासादनुं प्रांगणुं जे जे, ते नीलरत्ननी शिलायें करी बांध्यु जे. मणिने खंभे करी मंमित कीधुंडे, ते उपरथी आकाशज जाणे प्रांगणे आव्युं होय नहीं! एवी रचना कीधी. स्फटिकना थांनलापर मणिरत्ननी पूतलीयो कीधी ,ते केवी ? तो के आकाशथकी सादात् विद्याधरीयोज जाणे नतरीने आवीयो होय नहीं? स्फटिक स्तंन कुंनीयो सारीरीतें जरावी , तेणे कररी, शोनाय मान उंचा ने शिखर जेमनां एवा स्फटिकस्तंनो ते केवा शोने के के जाणे हिमाचलना टुकोज अहिंयां विश्राम लेवाने आव्यां होय नहिं ! अने जाणे देवतानां विमानज इहां आव्यां होय नहिं! एवां जिन प्रासाद क राव्यां, वली ते जिन प्रासादना शिखर नपर श्वेत ध्वजाना पाटोप लटक ता. तेवा प्रासादनी तुंगतानी चंगतानां का लोको नित्य जिनप्रा सादनेज जोश रहे जे. एवी रीतना जिनप्रासाद तथा जिनबिंबना करता एवा सलाटोने सन्मान दानथी संतोष्या. हवे बत्र, सिंहासन, चामर, तेणे Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १३३ सहित मणिमय, अरिहंतना बिंब जराव्यां तथा श्राचार्य पासें जिन बिंबनी प्रतिष्ठा पण करावी. ते पी ते देनसिंह राजा तथा तेनी राणी जिनपूजा दि कृत्य निरंतर करे बे, अने तेथी पोताना पातकरूप पंकने पखाले बे, जिनबिंब पासें लका त्याग करी नाचे बे, वाजिंत्रना निर्घोष वजावे बे, a hai लागे के किन्नर तथा किन्नरीज जाणे रंगित गान प्रमुख करतां होय नहिं ? एम नर नारी जिन गुण गीत गाय बे. त्यार पढी तेणें रथ यात्रादि न कार्य कीधां, स्नान महोत्सवादिक कार्य कीधां, नज मणादि संघनक वगेरे शुभ कार्य कस्यां तदनंतर देवसिंह महा पूजा चावे. तेमांहे योगीन्दनी पेरे लयमान पामे, महोटां दान सुपात्रें यापे, शिव संपदामां लय पामे, वधते परिणामें जिननक्ति पर दा नादि कार्ये धन खरचतो तेणे समकित सहित निर्मल कार्य कीधां, नक्ति प्रजावनायें युक्त थयो थको जिन साधुनी जिनालयनी परिपूर्ण नक्ति करतो हवो. तेम करतां ते देशमांहे पण घणा प्राणीयो जिन जक्तिवंत याता हवा. एम श्रावक धर्म घणा काल पर्यत पालीने वृद्धावस्थायें ते देव सिंह राजा चिंतववा लाग्यो के हवे गृहस्थ धर्मनुं फलनूत जे साधु पंबे, तेज यादवुं मुने उचित बे. पण शो उपाय करूं? महारो पुत्र जे बे, ते बालक बे, ते माटे राज्य तजी दीक्षा तो लइ शकुं नहीं. परंतु ढुं ने बालपणेज राज्ये तो स्थापुं, यने हुं हलवे हलवे राज्य कारभारथी नि व्यपार था, ने ज्यां सुधी ए पुत्र, राज्य कारभार वहननुं सामर्थ्य पामे त्यां सुधी जो मारुं शरीर सशक्त रहे तो हुं दीक्षा ग्रहण करूं ! अने ग्रात्म साधन करूं ! एम चिंतवी तुरत प्रधान प्रमुख तेडी पोताना नरसिंह कुंवरने तेडीने राज्य गादीपर स्थापन कीधो, त्यार पढी ते श्रावकना बार व्रतनी क्रि यामां तत्पर था. राजा पबी देशविरतिपशुं सुननावें याराधे ते. चारित्र लइ शक्या नहि, तोपण विविध प्रधान तपें करी काया शोषवी, नाव चा रित्रपणुं जावतां अंतकालें एकमासनुं प्रणसण आराधी शुनदिनें काल करी ते देव सिंह राजा, सातमे देवलोकें सत्तर सागरना श्रायुष्यवाला देवतापणे जइ उपन्यो, त्यार पढी राणी पण श्रावक धर्म प्राराधी तपें करो दीणदेह करी असणाराधी अंते शुनध्यानें काल करी सातमा देवलोकें सत्तर सागरोपमनी आयुष्य वाला देवतापणे जइ उपन्यां यतः- एकत्र तत्र Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. प्रवरे विमाने, तौ हौ च देवो परमर्डियुक्तौ ॥ जातौ मरुत्कोटिनतौ तदायुः, सप्ताधिका वै दश सागराणि ॥ अर्थः- एकज उत्तम विमानमांहे बे देवता, परमर्दिपणुं पाम्यां, तिहां सुरकोडीनां पूजनीय थयां. एम देव सिंह राजा श्रमणोपासक धर्म आराधी स्वर्गे गया. एम पृथ्वीचंना चरित्रने विपे लब्धिअंक एवे नामे त्रीजो सर्ग संपूर्ण थयो ॥३॥ इति पृथ्वीचं ने गुणसागरना पट्नवनो संबंध समाप्त थयो । ॥ अथ ॥ ॥ चतुर्थ सर्गस्य बालवबोधः प्रारभ्यते ॥ हवे सातमा नवने विपे सातमा शुक्रदेवलोकमां सुखमय एबुं संपूर्ण श्रायुष्य जोगवी तिहांथी देवता थयेलो राजानो जे जीव, ते प्रथम च्यवि ने ज्यां नपन्यो, तेनी यथार्थ कथा कहियें ये. तेने एक चित्त राखीने हे नव्यजनो! तमो सांजलो. __ एहिज जंबुद्दीपमा पूर्वमाहाविदेह देत्र . जे देत्रने विपे संदेहना निवा रक एवा तीर्थकरो विचरे ले. ते विदेहने विपे सारा सुरवरूप जे वृद, तेहना कबसमान सुकन्न नामा विजयंत तेने विपे पूर्वे इंइपुरी समान अयोध्या नामा नगरी, तेमां मेघनी परें वरसे एहवा दातार, धर्मवंत, धनवंत, जयवंत, पंमित एवां घणांक लोको वसे ले. वली ज्यां जिनप्रासादने विषे नाटक पूजाने अवसरें वागतां एवा जे मृदंगो, तेना गर्जारवनो ध्वनि सांन लीने सुरखीया थया जे श्रावकरूप मयूरो, ते सदा नाच कस्या करे . तथा वली जे नगरीने विपे राजकुमारो जे घोडा दोडावे , तेहनी रज आ काश पर्यंत नमे जे. जे नगरीना चतुष्कोने, जेना गंमस्थलमाथी मद फरे ले, एवा हस्तीन पोताना मदथी सींचे ले. ते सुप्रशस्य एवी नगरीने विषे शुद्ध कर्पूर समान पोतानी कीर्तियें करी वासित कस्या के देश जेणे एवो विमलकीर्तिनामा राजा राज्य करे . वली ते राजा केहवो के ? तोके बलीया एवा वैरीने बंधन करवानुं सार दे जेने विषे, तथा सुदर्शन जे समकित दर्शन तेनो धारण करनारो ,वली जेणे लक्ष्मी तो विष्णुनी पेखें वशज करेली . हवे ते राजाने प्रियमती नामें पट्टराणी , ते रूपें करी रंना जेवी ने अर्थात् इंशणी सरखी . तेहनी कुरखें देवसिंह राजानो Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १३५ जीव देवतापणाथी च्यवीने जेम रोहणाचल पर्वतनी गुफामांथी महर्घ्य माणिक्य उत्पन्न थाय, तेम ते राणीने नदरें पुत्रपणे आवीने उपजतो हवो.जेवारे ते नदर आव्यो, तेवारे त्यां प्रियमती राणीयें सुतां थकांस्वप्नने विपे दिव्य मनोहर एवो देवतानो रथ दीठो,अने ते देवतानो रथ देखी जा गीने पोताना नर्ताने स्वप्ननी वात सर्व कही, ते सांजली राजायें कह्यु के हे स्त्रि! आपणने नत्तम पुत्रनी प्राप्ति थाशे? एवं सांजली राणी हर्षवंत था थकी गर्न, प्रतिपालन करवा लागी. पडी पूर्णमासे मध्यरात्रिने समय देवकुमार सरवा दीप्तिमान पुत्रनो ते प्रियमती राणी थकी प्रसव थयो. तेवार दासीयें राजाने वधामणी प्रापी, त्यारे घणां गीत गान गवराव्या, नटुवा नचाव्या, घणां दान दीधां, स्वजनने घणां आदरमान दीधां. एम दश दिवस सुधी पुत्रजन्मनो महोत्सव कीधो, यगीयारमे दिवसें राणी पवित्र थ६. पनी बारमे दिवसे सर्व कुटुंब परिवारने जमाडी, सर्व वडेराउने यादरथी तेडी पूबीने राणीये जे स्वप्नमां देवतानो रथ दीठो हतो, तेने घनुसार कुंवरनुं नाम देवरथ एह पाड्युं. __हवे ते कुंवर पद्मकमलने विकस्वर करे, अने सूर्यनां पण तेजने हणे. एम निष्कलंक चश्मा समान कलायें करी वधतो हवो. पनी पोतानी बायें नगरने विपे विचरतो, हस्तीनी पेठे शोनतो, श्रमान दानने देतो थको नगरनां लोकरूप जे चमर तेणे करी सुशोनित , वली ते कुंवर केहवो बे ? तो के सौम्य, शीतल, सरल प्रकृतिवालो, निःकपाय, संतोषी, स्वजन वन्नन तथा गुणी जे. जे कुंवर यौवनावस्था पाम्यो , ते बतां पण विपयथकी विरक्त अने संसारी वार्ता, कथा, विनोद, तेथी रहित , परोपकार करवाने विपे माह्यो . माता पिताने हर्ष उपजावे तेवो ने, यौवनावस्था पाम्यो ले तो पण तेनी तत्त्वदृष्टिथी धर्ममांज रुचि ले. हवे एहवे समय तेहिज विजयने ।वपे पट्दर्शन वाला जनोथी व्याप्त तथा पृथ्वीरूप स्त्रीना कपालमां तिलक समान एवं सुप्रतिष्ठित नामें नगर जे, ते नगरमां कुलवान् तथा महोटा स्कंधवालो, रूडा फलनो उदय ने जेमने एवा कल्पवृक्ष जेवो रवितेज नामा राजा राज्य करे वे. त्यां अशोक वृदना पत्र सरखा हाथ पगनां तलीयां ने जेमना वली जाणे के साक्षात् वसंत लक्ष्मीज होय नहीं ? तेवी वसंतराणी नामें ते राजानी राणी बे. हवे Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते देवसिंहनी स्त्रीनो जीव, जे सातमा देवलोकमां देवता थयो हतो ते त्यांची चवीने कर्मना वशथी ते वसंतदेवी राणीने कुखें पुत्री पणे यावी उपन्यो.त्यारें राणीये रत्ननीमाला स्वप्नामां दीती, पडी ते राणीये गर्न प्रतिपालना करतां थकांपूर्णमासें गुजयोगें पुत्रीनो जन्म आप्यो, त्यारे पितायें जन्म स्थिति नो महोत्सव करी संपदानुसारे ते कन्या रत्नावली एहq नाम पाड्युं. ते रत्नावली अनुक्रमें महोटी थइ ने चोशठ कलानी तथा बीजा घणा एक विज्ञाननी विज्ञात थइ. जेवारें यौवनावस्था पामी, तेवारें अति मनो हर थ. तेविषे कवि नत्प्रेक्षा करे ३ ॥ यतः-चक्र पूर्णशशी सुधाधरलता, दंता मणिश्रेणयः, कांतिःश्रीमनं गजः परिमलस्ते पारिजातादयः ॥ वाणी कामघा कटादविशिखास्ते कालकूट विषं, तत्किं चश्मुरिव त्वदर्थ ममरेरामंथि पुग्धोदधिः ॥ अर्थः- ते कन्यार्नु पूर्णचंश्वत् मुख, अ मृत समान अधर, मणि श्रेणि तुल्य दांतो, लक्ष्मी सदृशकांति, ऐरावत हाथी समान गमन, शरीरनो परिमल पारिजात वृद समान, वाणी काम उघा सरखी,कटादविशिखो कालकूट विष तुल्य , माटे हे चंइमुखि ! गुं तारे माटेज देवतायें था उग्धोदधि मंथन करेलो ? अर्थात् देवोने पुग्धोदधि मंथन- कारण चौद रत्न उत्पन्न करवां तेज , तो ते चनदे रत्न हे कन्ये ? तारा शरीरमांज , माटे तारे माटेज देवोयें उग्धोदधिनुं मंथन करेलुं हशे गुं ? ए कविनी उत्प्रेक्षा . हवे रवितेज राजाना शिक्षाव्रत नामा प्रधाननो विबुधनामें पुत्र विमल कीर्ति राजाना पुत्र देवरथy वृत्तांत सांजली एकदम अयोध्यानगरीयें था व्यो.त्यां राजदरबारमा जई राजाने हाथ जोडी प्रणाम करी कहेवा लाग्यो के हे विमलकीर्ति राजा! सुप्रतिष्ठ नगरना रवितेज नामा राजायें विनति पूर्वक आपने कहेवराव्यु जे जे आपनो देवरथ नामा कुंमार , ते सा दात देवरथज डे, तेनी अने देवना रथनी तुव्यता जे.जेम देवरथ अव्या हतगति ले तेम आपनो पुत्र पण अव्याहतगति . जेम देवरथ, विगेरेयें रेखायें करी युक्त ने तेम तमारो पुत्र चक्ररेखा वगेरेना गुणोयें करीयुक्त बे, देवरथ जेम गुण जे दोरडी तेणे करी युक्त ने तेम कुमार पण सदा औदार्यादिक गुणोयें करी सहित , देवरथ जेम सुमन जे पुष्पो, तेथी आबादित ले तेम कुमार पण सुमन जे रूडामन तेथी युक्त जे. अर्थात् पंमित . Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १३७ माटे देवरथ एवं जे तमारा पुत्रनुं नाम बे, ते वास्तविकज बे. हवे ते देवरथें जेम श्रापणे ध्वजा जोडीयें, तो ते शोने, तेम या तमारा देवरथ नामा कुमारने पण रवितेज नामक राजानी कन्यारूप ध्वजा जो जोडीयें, तो ते पण अत्यंत शोने. हवे कन्यानुं यने ध्वजानुं कवि सरखापणुं कहे बे. ते जेम के:- हवे ते ध्वजा बे, ते चल बे, घने कुमारिका बे, ते अचल बे, एटलोज कुंवरीमां ने ध्वजामां फेर बे, वली देवरथने ध्वजा, जले व तथा जले गुणें एटजे सारा दोरडाथी बांधेली बे, तेम कन्या पण सारा वर्षे गुणे करी युक्त बे. माटे सर्वरीतें सरखी एवी ते कन्या परणवी कोने न रुचे? वली ते देवरथने कन्या व्यापवाथी तमारा वेदुनां एकचित्त थाशे, तथा तमो बेदु जण संबंधी थाशो, तो महोटी आश्चर्य जेवी वात थाशे. हवे ते पूर्वोक्त कन्याने परणाववामाटे ते रवितेज राजायें महोटो स्वयं arinप कराव्यो वे. त्यां महोटा महोटा राजवीरो यावनारा बे. कदाचित् जो तमारो देवरथ पुत्र, कन्याने वरवाने न इबतो होय, तो पण तेने त्यां श्रावकुं तो उचित बे ने राजायें पण केवराव्युं ने के जो ए तमारा पुत्र देवरथनुं ने मारी कन्यानुं लग्न थाशे, तो आागल जातां प्रापण वे दुने महोटो खानंद याशे ? यावुं रवितेज राजानुं कहेनुं वचन, प्रधानना मुखी सांगली, बुद्धिमान एवो विमलकीर्त्ति राजा पोताना विज्ञातपुत्र दे ared एकांतमां वेसाडी कहे . के हे पुत्र ! तुं त्यां स्वयंवर मंरुपमां जा. कारण के तिहां घणा राजकुमारो मलवाना बे, तेजना पुण्यत्वा पुष्यत्वना निर्णय करवा माटे रवितेज राजायें स्वयंवर मंरुप रचाव्यो बे. वली हे पुत्र ! त्यां कन्यानी इवाथी वरेला वर विना बीजा राजकुमारो पण याव्या हो, तेमनुं ते रवितेज राजा कांही पण अपमान करशे नहिं. अर्थात् ते कन्याने वरनारनुं तथा बीजा राजकुमारोनुं सरखुंज मान राखशे, माटे तैयारी करी हे वत्स ! तमो ते नगरप्रत्यें जाउ. raj पितानुं वचन सांजली पितानी याज्ञायें चातुर्यथी त्यां जवुं क बूल करूं. पती तिहांथी नजे दिवसें यति चपल चतुर घोडा तथा मदो कटपणाथी नाचती एवी हस्तीयोनी घटाउ, चक्रोना चित्कारथी संत्रांत लोकोयें देखाता सारा रथो, विविध एवा आयुधोना संबंधथी व्यय अने चालता एवा पायको प्रयाणने योग्य एवा वाजित्रोना शब्दो, ते सर्वनी " Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. साथै देवरथ नामा कुमार, मदोन्मत्त हाथी उपर आरूढ था चाल्यो. जे व खत ते कुमार हाथीपर बेसी चाल्यो, ते वखत माथे बत्र धारण कयु, अने चामरो पण विंजावा मांमयां, एम महोटे मंमाणे अने शोनते सैन्ये ते कुंवर पोताना नगरथी बाहेर निकल्यो, पडी रस्तामां चालतां ग्राम, नगर, पुर, नद्यान,प्रमुख जे जे आव्यां, तेने नल्लंघतो थको एक वनमां आव। पहोंच्यो, त्यां वनमां चालतां निन्नपद पंखीनी पढें नूमिमां पडेलो, तडफडियां मार तो, नमवा जाय जे खरो, पण पाडो पडी जाय ले तेवा, दीनवदनवाला युवाव स्थावाला, रूपवाला, विद्याथी भ्रष्ट थयेला एवा कोईएक विद्याधरने दीठो, तेहवा विद्याधरने जो पागल आवी दयालु एवा देवरथ कुमारे तेने पूब्यु के हे महानाग! याहिं तुं क्याथी आवेलो नो? अने शामाटे अावा कुःखने प्राप्त थयो हो ? तेवां राजकुमारनां वचन सांजली विद्याधर कहे ले के हे राजकुमार : तमो पांथिक बो, तेथी आपने धारेला गामें जवाने त्वरित जि गमिपा दशे खरी? तो पण कृपा करी आप जो थोडी वार बाहिं मारी पामें वना रहो, तो ढुं माहारा बीतेला दुःखनी सर्वे वात तमोने कहूं, ते तमें सांनलो. एवां वचन सांजली दयाशील एवो कुमार, तिहां उनो रह्यो, एटले विद्याधरें सर्व पोतानी बनेली वात कहेवा मांझी के हे कुंवर ! वैताढ्य नामा पर्वतने विषे कुंमलनामें नगर , तिहां श्रीध्वज नामा विद्याधरनो राजा राज्य करे , तेहनो पुत्र ढुं चंगतिनामा विद्याधर बु. पोतानी वंश परंपरायें पिताथी पाम्यो जे विद्या, तेणे करी स्वेबायें हूँ क्रीडा करतो एकदा वैतादयनी मेखलायें गयो. त्यां में कोई एक नारीसमुदायनो हा हारव तथा कोलाहल शब्द सांजव्यो, ते सांजलतां वेंतज ढुं त्यां गयो, त्यां जइ जोयुं,तेवामां तो घणी सखीयो जेने वस्त्रांचलें करी समीर नाखे बे,एवी सुरकन्या समान एक बालक स्त्री पोतानी आंख्यो मींची अचेतन थासूती पडेली हती ते में दीठी. तेवारें मुने सर्वे सखियोयें कयुं के हे उत्तम पुरुष! जलदी अत्रे श्रावो, कारण के ए गंधर्वराजानी बेटीने महान आशीविषे एटले सपै म शेली , माटे दयालु एवा तमो तेने प्राणनुं दान आपो. ते सांजली में वि चायं जे हवे तेने दुं केवी रीतें जीवाडं? तेवामां मार दृष्टि ते कन्याना मावा हाथपर पडी, त्यां तेना मावा हाथने विपे विंटी, ते जोइ, अने Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १३ए त्यां जश्ने में विचाघु जे ते वीटीमां मणि ने, माटे तेने जलमां नारखी ते जल जो बांटुं तथा ते जल सींचं, तो तेथी आकन्या जीवती थाय ? एम विचारीने पूर्वोक्त रीतें जल,मणिसाथै मेलवीने बांट्यु, तथा ते जल सर्पदंश उपर पण सींच्युं तेथी ते कन्या तुरत दुशीयार था वेठी थ. ने मुने जोवा लागी. जोड्ने लगा आणी पोताना वस्त्रे करी शरीर सर्व ढांकी निसासो मूकी सखीयोने पूवा लागी के हे सखीयो ! तमो अश्रुयुक्त मुखवाली यो बतां हसो केम बो ? तथा ा कामदेव समान पुरुष कोण ? तेवारें सखीयोयें कह्यु के हे बेहेन! तमने तो सर्पमंश थयो हतो तेथी काष्ठवत् थ६ गयां हतां, तो ते सर्पनुं विष, या मदनावतार पुरुचे हस्तगत मुश्किा रत्नजलना सिंचनथी नाश कयं अने तमोने जीवतां कस्यां ? तो अमो पण प्रथम तमोने सर्पमंश थयो तेथी तमारा जीववानी अाशा बोडी द इने शोकाक्रांत थ रुदन करतीयो हती, तेवामां आ परोपकारी पुरु धावी बापने जीवतां कयां तेनो हर्ष थवाथी अमो हसवा लागीयो बेयें. अर्थात् तमो मरणशरण थयां एवं जागी अश्रयुक्त मुखवालीयो हतीयो अने पानां तमो जीवतां थयां माटे हसितवदन अमो थश्यो बेयें. श्रा सर्व हकिगत सखीयोना मुखथी सांजलीने ते कन्या विस्मय पामी. अने सरागदृष्टिथी मारी सामुं जोइने कहेवा लागी के, हे सखि! मारी मुश्किा क्यां गई? तेवारें सखियोयें कह्यु के ते मुश्किा या पुण्य पुरुष ग्रहण करी तमोने जीवाडेला . एवं वचन सांजली ते वरखत कृतज्ञपणाथी तथा प्रत्युपकारनी वांबायें करी लगार्थी कामरसेंथी को श्क एवा अनिर्वचनीय रसने अनुनवती हवी. तेवा अवसरने विषे चोपदारना मुखथी ते बनेगुं सर्व वृत्तांत सांननीने ते कन्यानो पिता जे गांधर्व राजा ते त्यां श्रावीने चाकरना मुखथी मने श्री ध्वज राजानो या पुत्र , एम मानीने कहेवा लग्यो के हे वदान्य ! मारी पुत्रीने प्राणदान देवाथी तमो अमोने माननीय नो.या पुत्री थापवाथी पण तमारो उपकार वालवाने ढुं समर्थ नथी. माटे या कन्यानी मुश्किा ले वाथी पूर्व लम तो थइज रह्यं रे तथापि अमारा मनने आनंद देवा माटे तमो या कन्यानुं पाणिग्रहण करो. तेवारें मे कह्यु जे जेम आप बाझा करो बो, ते करवुज मने घटे . Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते पड़ी महोटा आबरथी में ते कन्यासाथें मारो विवाह कस्यो.अने ते कांतासाथें जोग नोगवतां मने घणोक काल व्यतीत थयो. दालमा दक्षिण समुश् तटना उद्यानने विषे क्रीडा करीने निवृत्त थयेला एवा मनथी रस्तामां चालतां मारी फश्नो पुत्र सुमेधा नामा विद्याधर मने मल्यो, ते मने स्त्रीस हित जोता वेंत अत्यंत क्रोधायमान थयो थको कहेवा लाग्यो जे हे उष्ट चेष्ट ! पापिष्ट !! मारे माटे मागेली एवी या कन्याने लश्ने तुं मारी नजरें टकोश ! जो तारुं बल जोये केवुक ? अने तेनुं फल ढुं तुने देखाडं बूं! एम कहीने स्पर्धाथी मारी सामो युरू करवा बहपरिकर थइ ननो रह्यो. में पण मारा सामर्थ्यपणे युद करवा मामयं. परंतु दैवयोगें करी व्यग्रपणाथी विद्यार्नु एक पद मुने विस्मृत थप गयुं. तेथी हुँ नपरथी ध सीने तत्काल नीचें पड़ी गयो. तेवामां तो पांगलानीज जाणे स्त्री न जाय, तेम मारी स्त्रीनें हरण करी कागडानी पठे ते नाशी गयो. ए प्र माणे में मारी वार्ता सर्व कही संनलावी. ते पड़ी दयालु तथा परपुःखें करी ःखित अने उपकार करवा माटे व्याकुल एवा कुमार विचायुं के मारी शक्ति प्रमाणे एनो ढुं उपकार करूं? एम विचारीने तेणे विद्याधरने कह्यु के तमारा जेवानो उपकार करवामां अमें ते झुं समर्थ थश्यें ? अर्थात् तम जेवानो नपकार अमाराथी गुं बने ? तो पण जो ते विद्याथी कल्प थाय, तो मारी पासें तमो बोलो. तारें चंगती नामा विद्याधरें विचास्यं जे निचे या महापुरुषथी मारी कार्यसिद्धि थाशे. पडी ते विद्याधरें ध्यानमा लावी जेटली विद्या पोताने उपस्थित हति तेटली नण्यो, त्यारे पदानुसारिणी लब्धिथकी ए देवर थकुमार आगलनुं विस्मृत थयेनुं जे पद हतुं ते तुरत कर्तुं अने पूज्यु के झुं तमें जे विसरी गयेला हता ते आज पद हतुं ? तेवारे विद्याधरें कह्यु के हे राजन् ! आपें जे वाक्य कह्यु, तेज मने विस्मृत थयुं हतुं. हवे मने आपना कहेवाथी याद आव्यं. तेवी रीतें कुमारना प्रतापें करी विद्या प्राप्त थवाथी हर्पाश्रुना बिथी नींजा गया बे नेत्र जेनां एवो ते विद्याधर कहेतो हवो के निचे आप जेवा आर्यपुरुषना संगथी मारी का य सिदि थइ. तेथी हे मित्र ! अापनां दर्शनथी अत्यंत दुं संतुष्ट थयो बु,पण हालमां आपनो कालदेप थाय , ते सहन थइ शकतो नथी, तो पण हे Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र २४१ मित्र!हुँ तमारा गुणनो नशिंगण शी रीते थालं? माटे वयस्य ! मारी पासें थी विद्या व्यो अने ते विद्या जणी मुने जेवारें संनारशो के तुरत ढुं श्रावीश अने रूपांतर थाशे हितवस्तु आप एवी वैक्रियलब्धिनामा विद्या तमोने यापुं बुं ते ग्रहण करो.अने मारी प्रापेली विद्याना मिषे करी संजारी दीधीने विद्या जेने एवो ढुंपण कांक आपी कृतार्थ थानं? एम ए विद्याधरना मधुर अालाप थी देवरथ कुमार विद्याने ग्रहण करतो हवो.पली ते चंगति नामा विद्याधर पोतानीस्त्री हरण करीने लगयेला सुमेधा नामा विद्याधरनी पबवाडे दोड्यो. हवे ते विद्याधरनी आपदाने मटाडवे करी हर्षित थयेलो देवरथ कु मार, बागल चालता चालतां, जेमां घणाक राजकुमरो आवेला बे, एवा सुप्रतिष्ठनामा पुरने विषे पहोंच्यो. पनी त्यां रवितेज राजायें बदु मान पुरःसर सुंदर मंदिरने विपे ते देवरथ कुमारने उतारो आप्यो. त्यार पली ते विविधप्रकारना आश्चनो ने आगंबर जेमां एवो अने चंचा एवा मणिस्तंने करी बनावेला प्रासादनी श्रेणीयोयें करी सुशोनित, मोतीन। जेने कांधीयो ने एवा मणिना तोरणोयें करी शोनायमान, बांधेला ले रेशमी चंश्वा जेने विषे तथा अनेक आश्चर्यना जोवाथी व्यय अने उन्मुख ने लोकनो समूह जेने विपे तथा नाचती एवी वारांगनायें करी। मनोहर, बोलता एवा नानाप्रकारना यंत्रपक्षियोथी उत्पन्न थयं ने आश्चर्य जेने विषे एवो स्वयंवर मंझप, रवितेज राजाना दुकमथी सारा कारीगरोयें ते नगरने विपे बनायो. हवे ते पडी प्रजातने समय राजानी आझायें करी कोटवालें पटह वग डाव्यो जे परिवार सहित अहीं आवेता राजकुमारोयें त्वरित स्वयंवर मंझपमां यावq. ते सांजलीने कस्या दे शृंगार जेमणे अने सारां उत्तम वस्त्रोयें परि व्रत थका पोतपोताना परिवार सहित विविधदेशना कुंवरो त्यां ाववाला ग्या. हवे देवरथ कुमार मनमां विचारवा लाग्यो जे नूपण वगेरे ले ते दूपण रूप ले. कारण के पोताना पुण्य अने अपुण्यना हेतुयें करी कन्या- वरवं थाशे, परंतु कां नूपणादिथी थवानुं नथी.अने एमां हर्ष शोक करवानुं पण का कारण नथी. कोइ पण एक पुण्य पुरुषने ते कन्यानो लान थशे तेथी तेना पुण्यव्रतनी परीक्षा थाशे. अने जे पुण्य रहित जनो होय तेनो तो परा नव थायज जे. तेमाटे मारा पुण्यना निर्णय माटे कांक माहं रूपांतर Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. करूं ! एम विचारीने पोताना मित्र विद्याधरें आपेली विद्यायें करी कांक पोते कुरुपडो थइ हाथमां वीणा लश्ने पुरमां चालवा लाग्यो. चालतो चा लतो स्वयंवर मंझपमां आव्यो.हवे त्यां स्वयंवर मंम्प कहेवो ? के तेमां प्रवेश करतां कोक कुमारोने दरवाजे रोक्या, तेथी ते रुष्ट थश्ने पाला जाय ने तेने जोड्ने कोइक नपहास करे . वली तेस्वयंवर मंझपने विष नपरना बाजापर वेवेला वानरोयें हरण कस्यां ने शिरोवस्त्र जेनां एवा पुरुषो ज्यान अरडं परतूं जुवे बे ने कोई खरो वस्त्रहर्ता उत्लखातो नथी तेवारें बीजा कुतू हली माणसो कोइक जलता माणमनुं नाम जश्ने उपहास करे . बली के टला एक तो त्यां स्वयंवर मंझपमां बांधेली स्फाटिक मणिनी पृथ्वीने विशे जाल सहित ‘ा हद ' तेवी ब्रांतिथी वस्त्रोने नीजावाना नयथी चंचां लश् चाले जे. एम विचित्र प्रकारो ते स्वयंवर मंझपमां थाय .. हवे कन्या वरवाने नुत्सुक एवा राजकुमारो,त्यांप्रतिहार वतावेला एवा मांचा उपर यथोचित रीतं वेसवा लाग्या. ते पनी देवरथ कुमार पण पोताना स्थान पर पोताना कोई मित्रने बेसाडीने तेनी पासें वीणाने वगाडतो, विदेप रहित सुखें करी बेगे. एवा समयने विपे मनोझ एवां गीत गानने विपे उद्यत एवा पोताना स खं योनां वृंदोयें सहित जाणे अप्सरायें सहित रथमां बेठेली रंना नामा अप्सराज होय नहिं ? तेम ते राजकन्या स्वयंवर मंझपमा प्रावी. ते सम यने विपे ते रत्नावली कन्याना विकसित एवा मुखकमलने विषे राजकुमा रोना लोचनरूप नमरो समकालेंज पड्या. अने ते सर्वे राजकुमारो पोत पोतामां चिंतववा लाग्या. ते जेम केः-श्लोक ॥ नारत्या नैव रत्याः किम पि न हि ददे नैव गौर्या न लदम्याः, प्रबन्ना स्थापिता या त्रिजगति विधिना ऽगण्यलावण्यलक्ष्मीः ॥साऽस्याएव प्रदत्ता विनयनयगुणैर्वजितेन प्रकामं, ना यामुष्यां यदेतत्सदृश मिह नवे नांगचगत्वमस्ति ॥ १ ॥ नावार्थ:-जे त्रण जगतने विषे ब्रह्मायें अगण्य एवी लावण्यशोना, बानी राखी मूकी हशे ते विनय अने नीति तेना गुणोथी वर्जित एवा विधिये ते लावण्यशोना, स रस्वतीने, कामदेवनी स्त्री रतिने, गौरीने अने लक्ष्मीने कांही पण दीधी नहिं, अने ते लावण्यशोना प्रा स्त्रीनेज यथेहित आपेली . कारण के जे अंग मनोहरत्व प्रा नारीमा , ते सरखं आ संसारने विर्षे कोइमां देखातुं नथी. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनु चरित्र. १४३ एवी रीतें ध्यान करता एवा कुमारोने पोताना कटाक्वाणोयें करी विध ती एवी ते बाला, मंझपना मध्यनागमा आवी. पनी त्यां वेत्रवती एवी जाटणीयें अनुक्रमें राजानां नाम, गोत्र प्रनृतिलं वर्णन करवा मांमधु, जे कुमारनुं वर्णन धात्रीयें कयं तेनी उपर ते कन्या प्रथमदृष्टि अने पड़ी पूंठ देने आगल चालती हवी. तेथी ते राजकुमारोने दृष्टिना दर्शन थी हर्ष, तथा पृष्ठदर्शनथी खेद, ए वेदु अनुक्रमें थवा लाग्या. एम ते क न्यायें घणा राजकुमारो दीठा, परंतु दावाग्नियें बोला वनने विपे तापयी बलेनी कोकिलानी पेठे ते कन्यानी दृष्टि को राजकुमार नुपर विराम पाम नही. अने वरप्राप्तिने माटे तेने महोटो संदेह थवा लाग्यो. पड़ी जेवामां ते कन्यायें ते स्वयंवर मंझपमां नीचें बेठेजा देवरथ कुमारने नजरें जोयो, तेवेज समय पूर्वजन्मना स्नेहयी ते कन्यानुं मन. ते कुमार मांज लीन थइ गयु. अने ते कमारे पण प्रेमना पूर्णपणाथी पोतानी दृष्टि तेनी नपर नारखी. पडी ते कुमारनी दृष्टिनी तुष्टिथी एकदम आगल श्रावी कुमारना गलामा स्वयंवर वरवानी वरमाला नारखी दीधी. ते पनी त्यां "वह सारो वर वस्यो,” एवी रीतनो एकदम मनोहर शब्द उत्पन्न थयो. अने अ नेक प्रकारनां मंगलतर्योना शब्दोथी नगर सर्व पूरा गयु. अर्थात् घाखा नगरमा मंगनतूर्यना शब्दो संनलाया. पडी देवरथ कुमारने जोइने रवितेज राजा मनमां जरा खेद पाम्यो,जे अरे! या मारी पुत्रीयें यावा वाणाधर गायकने वस्यो ? एम खेद पामीने वली मनमां विचारवा लाग्यो जे अरे! या वीणाधर गायकमां रूप, कुल, कला, वीर्य,प्रमाण, संपत्ति, तथा बीजी तरेनो कोइ पण गुण तो ले नहिं, तो पण आ मारी मूर्ख कन्याने ते वीणाधर उपर प्रेम अत्यंत केम थयो हशे ? वली नत्तम एवी या कन्या सामान्य पुरुषमां आसक्ति ते कम करे ? जुवोने जे राज्यलक्ष्मी ले, ते को कालें पण तुन्न पुण्यवाला प्राणीने वाले नहिं.माटे या नियमथी तो ते बेदना जाग्यना योगेंज आ वात बनवी घटे , बाकी बीजं कां पण आमां वि चारवा जेवू नथी. हवे तो आ मारी पुत्रीने जे वर रुच्यो,तेज आपणे पण उत्तम जाणवो! यावी रीतें रवितेज राजायें विचार कस्यो. तेवा समयने विषे गांधर्व विवाहें देवरथकुमार ते कन्यायें वस्यो, ते सां नजी ईर्ष्यावाला राजान, पोतपोतानुं सैन्य तैयार करीने ते देवरथ कुमारना Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ससरा रवितेज राजाने कहेवा लाग्या, जे अरे अज्ञानपणाथी आ तमारी क न्यायें कांड पात्रापात्रत्व जाण्यं नहिं, अने अयोग्यवरने कंवें वरमालारोपण करी, परंतु ते वात तमें केम कबूल करी? तमें कहेशो जे ते कन्यानी खुशी प्रमाणे कन्यायें ते कयु, तेमां अमो झुं करीयें ? तो के, कोबांधला माण सोनी गुं कूवाथकी, कांटाथकी, अमिथका, दया आणीने रदा न करवी ? तेम अझानपणारूप अंधत्वयी युक्त एवी या कन्यागें कूपादिक सरखा था वीणाधरथी दया आणी तमारे रक्षण कर उचित नथी गुं ? तेमाटे वीणा धर गायकने वरवारूप कदाग्रहमांथी कन्याने समजावी कोइ उत्तम राज कुमारने आपवी योग्य , के जेणे करी पा संग्राम करवा सन्न थयेला राजा पाना विराम पामे? अने वाली अति क्लेशनो नाश पण थाय? अने जो तमारी तेवा वीणाधर गायकरूप पामर प्राणीनेज कन्या प्रापवानी इला हती, तो आ अमारा जेवा राजाने व्यर्थ अपमान करवा शामाटे बाहिं बोलाव्या ? हे राजन् ! अमारा जेवानुं जो तमें पाषाणना कटकायें करी नाक काप्यु हत, तो तेने अमो उत्तम मानत, परंतु आवी रीतें अमोने बोलावीने अमारो परानव कस्यो ते तमोयें घणुंज खोटुं कयुं ते माटे हे राजन! विचारीने तमारे समयोचित कार्य करवू जोश्ये, जे करवाथी मानहानि तथा परानव न थाय ? ___ एवां राजकुमारोनां वचन सांजनो पराक्रमवाला रवितेज राजायें कह्यु के, जो नो राजकुमारो! पोतानी मत्यनुसारें वरमालारोपण करी, यथेच वरने ते कन्यायें वस्यो, तेमां वली तमारो परानव अने अपमान झुं थयुं ? पंच शब्दनां वाजां वागते जे हाथीये जेनीपर कलश ढोल्यो होय,अने जे पंचे कबूल करेलो होय, एवो कोइ मनुष्य राजगादीपर बेसे, अथवा को कन्या कदाचित् तेवा पुरुषने वरे, तो बोजाउने तेमांरीष करवानुं गुं कारण ? कांहिंज नहिं. तथापि जो तमारा शरीरमा अजीर्णथी थयेलो कोपज्वर ब जवान थयो होय, तो आ वैद्य एवा अमो तमोने युरूप संघन करावी यें ? तेवामां तो देवरथ कुमारनो मित्र बोल्यो के नो नो राजकुमारो! वृथा निमाने करी तमो पोतेंज पोताने सकलंक न कहो. कारण या कुमार जे जे, ते पण राजकुमारज ने, परंतु ते पामर प्राणी नथी. या कुमार तो के हवो के ? तो के सर्वोत्तमगुणोयें करी युक्त , मुक्ताफलनी पेठे स्वज अने Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १४५ स्थूलाकार ने, तथा मुक्ताफलना हारनी पेठे गुण- स्थानक बे.आहिं मुक्ताफ लनो हार, गुण एटले दोरानुं स्थानक ले. तेम था कुमार पण गुणोनुं बालय बे. वली विद्याधरनी पेठे सारी विद्यावालो ने, चश्मानी पेठे उत्तम कला वान , तापें करी सूर्यसमान ने, गांजीयें करी पर्वपर्वने विषे समुसमान बे, दाने करी सुरतरुतुल्य , माटे अमारा स्वामीने ते माननीय डे अने प्रा वीणाधरना लग्ने करी सर्वत्र महोटोआनंद थाशे, माटे तमारे अमारी पर क्रोध करवो योग्य नथी. ज्यारे पुण्योदय सारो होय, त्यारे तेवी कन्या वरेने, अन्यथा तेमां कांड कोनो नपाय चालतो नथी. एम करतां जो या कुमार साथें तमो विरोध करशो, तो ते विरोध तमारे आगल जातां अत्यंत उःसह था. वली तमोने ते विरोध केवो था ? तो के कापेला ना क पर दार जरजरावा जेवो था ? या प्रकारना देवरथ कुमारना मित्रना कानने अति कटुक लागे एवां नाक्यो सांजली राजा सर्व एकदम लडवा तैयार थइ गया, ते देखी रवितेज राजा पण ते राजानी सामो लडवा तै यार थयो. ते वखत देवरथ कुमार कह्यु के हे सुनटो! जुवो, या रणर्नु कौतुक हमणां दुं तमोने देखाडं बुं ? एम कहेतो थको रथमां वेसी यु६ करवा लाग्यो. अने शमनोनी सामें बाणो नाखतो थको तीक्ष्ण एवा शत्रुनां धनुष्योने कापी नाखे बे तथा तेमना रथनी ध्वजा तथा बत्रोने पाडी नाखे तथा बकतरोने पण तोडे ने. कोश्नी दाढी अने मुंडो तेने मुंमे . एवी रीतें सेनामां यु.5 करतां देवरथ कुमार प्रबल शत्रुना हाथी, घोडा, पायदल वगेरेनो बागोथी करी घाण वाली दीधो. एम शत्रनी से नानुं नंगाण पडद्यु, तेवारें शत्रु विचारवा लाग्या जे आ एकले देवरथ कुमार प्रापणी सर्व सेना हणी नारखी? एम विचारी लगा पामेला एवा शत्रुन संग्रामने मुकता नथी? ते वखतें ते शत्रुनने कुमार वैक्रिय विद्या थी नागपाशें करी युगपत्कालें बांधी सीधा, तेथी ते सर्वे कुशमनो पृथ्वीपर सूद गया. तेवं ते देवरथकुमारनुं चरित्र जोइने रवितेज राजा अतिबाचर्य पामी तेना मुख सामुं जोइ कहेवा लाग्यो के अरे, आ महापराक्रमी पुरुष कोण ? तेवामां ते कुमारनो मित्र बोव्यो के हे नृप! अमने आहीं लावनार,आवा वैरीयोने मारनार,एवो आ विमलकीर्ति राजानो पुत्र देवरथनामा कुमार ? कोई एक कारणने लीधे मने पोताना नामथी नि Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. र्माण करेला श्रासन उपर बेसाडी पोताना रूपy परावर्तन करी आएँ वीणाधर गायकनुं रूप लश्ने ते वेठेलो हतो. श्रा प्रकारनां वचन सांन लीने अति हर्षायमान थयेलो राजा, देवरथ कुमार प्रत्ये कहे जे के यहो पराक्रमी देवरथकुमार ! तमोयें तमारा शूरवीरपणारूप सूर्यथी स्वकुलरूप व्योमने प्रकाशित कहुं ? वली अमाझं अंधार पण तमोयें दूर टाली नारव्यु? एम कहीने ते राजायें वाजित्रो सर्वे वगडाववा मांझयां, अने वंदी लोकोनां सुंदोपामें बिरुदावली बोलाववा मांझी, ते वरखतें देवरथ कुमार राजकुमारोने नागपाश बंधतथी मुक्त कस्या अने पोताना स्वस्वरू पर्नु प्रगटपणुं कम्युं. ते पनी बधा राजकुमारो विनयवंत थया थका देवरथ कुमारने प्रशंसवा लाग्या अने कहेवा लाग्या जे आ रत्नावली कन्यायें अहो ? आवा स्वामीने वस्यो, ते घणुंज सारं कस्युं! एम कहीने ते.कुमारपासें क्षमा मागी तथा प्रणाम करी दृष्टांतःकरणयुक्त थया थका पोतपोताना नगरप्रत्यें जाता हवा. हवे ते रत्नावली पण पूर्वजन्मना संबंधथी अतरसने अनुनवे . पड़ी अनुक्रमें देवरथ कुमार योग्यलग्नसमयें शास्त्रविधि प्रमाणे ते कन्यानुं पाणि ग्रहण कयं, तेवी रीते ते कुमार रतिसमान कन्या साथें उछाह करी अत्यंत आनंद पामतो हवो. पडी ते कुमारनो पिता विमलकीर्ति राजा पण 'पोता नो कुमार रत्नावली कन्याने परण्यो' ते वात दूतना मुखथी सांजली सुधाथी पण अधिक अमंद आनंदना समूहने धारण करतो हवो.ते देवरथकुमार अने रत्नावली ए वेदुनुं नाहित जोडुं जोइने सहु कोइ कहेवा लाग्यां जे आ कुमार जेम अत्युत्तम ,तेम था कन्या पण तेना सरखीज अति कमनीय ने. या वेदु जण धन्य , अने गुन , आ वेदुजणें साथेंज सौजाग्य क ल्पवृक्ष नामक तप, पूर्वजन्में कयुं हशे? अथवा सुंउस्तर एवं सर्वांगसुंदर नामक तप कस्युं दशे ? एम स्पष्टीतें देखाय .नहिं तो ए बेहु जण सरखां स्वरूपवान् थइने दंपतीपणाने क्याथी पामे ? हवे ते पनी देवरथ कुमार केटलाएक दिवस श्वसुरकुलने विषे रहिने पोताना नगरप्रत्ये जावा तैयार थतो हवो. पोतानी प्रिया रत्नावलीने लश्ने जेवारें पोताना नगर प्रत्ये कुमार चाल्यो, तेवार ते रत्नावली वारं वार पोताना पितानी नगरीने जोवा लागी रही, अने तेना पिता वगेरे Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४७ थोडे दूर आवी कन्याने सारी शिखामण आपी पाय वव्यां, ज्यारे सदु पियरीयां पाबां वल्या, त्यारेजेनी आंखमां बांसु छावी गयां दे एवी रत्ना वलीन मुख जोड्ने देवरथ कुमार रस्तामां वननेविषे जेवा जेवा विनोद देख वामां यावे तेवा तेवा विनोदोयें करीअानंद करे . ते जेम केः-हे प्रिये ! जो. या स्नेहयुक्त एवो मृग, रोषयुक्त थ पोताना शिंगडायें करी स्वकीय बालकनें मारवा माटे आवता एवा वाघने वेगें करी हणे . वली हे द यिते ! विनोदने माटे वगाडवालीधेला मृदंगने लश्ने रस्तामा चालता एवा निन्न लोको थाकी जवाथी ते मृदंगने काडनी शाखामां बांधी पाढा विस री जइ सुश् गयेला , तेवामां वानरो प्रावी, ते मृदंगने वगाडी तेना श ब्दथी ते सतेला निन्ननोकोने जय नपजावे ने. इत्यादि वननेविषे वननी लीलाउँने पोतानी स्त्रीने देखाडतो, वनवनने विपे, सरोवरने विपे क्रीडा करतो, नमतो थको तथा बीनी पण क्रीडा करवानुं जेने मन चे अने ग्रामग्रामने विपे मान पामतो पुरपुरने विपे कौतुकोने जोतो, दीन अने अनाथने रूडी रीतें दानादिकथी प्रसन्न करतो एवो ते देवरथ कुमार, कांता सहित पोताना नगर प्रत्ये श्राव्यो, पढी ते पोतानी पुरी स्वतः अति मनोहर तो हतीज, परंतु ते कुमारना आववाथी अत्यंत मनोहर थती हवी. ते समग्र पुरीने विपे महोटो नत्सव थवा जाग्यो. पनी समान रूपवाली स्त्रीयें युक्त, पोताना चरणमां प्रणाम करता एवा देवरथ कुमारने जो मातापितानुं चित्त तो चंदनोदकथीज जाणे सींच्युं होय नहिं ? एवी रीतनुं शीतल थइ गयु. पनी पितायें कुमारने आकाशपर्यंत उंचो तथा स्फटिकमणिसमान शुत्र एवो रहेवा माटे प्रासाद करावी याप्यो. तदनं तर श्रृंगार सारने जाणवावालो कुंवर, इंश्योनां सुख जोगववा तत्पर थयो. त्यार पढी पोताना देवरथ नामा पुत्रना मित्रं तेना विवाहना सर्व समा चार कह्या, ते विमल किर्त्ति राजा, सांजली आनंद अने विस्मय तेथी जर पूर थइ गयो. पनी घणा लाखपूर्व पोतानी स्त्रीयो साथें नोग नोगवतो हवो. एम करतां त्यां एक दिवस, बाहार वनने विपे, कोधरूप योहाने निवारण करनार एवा धर्मवसुनामक धर्माचार्य गुरु आवी समोरतस्या. पनी देवरथ कुमार गुरुनु आगमन सांजली मेघना श्राववाथी जेम मयूर हर्ष पामी नृत्य करे, तेम हर्ष पामी नाचतो होय नहिं ? एम शोन Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तो हवो. ते पनी विमलकीर्ति राजा पोताना सर्व परिवार तथा पुत्र स हित गजें पर बेसीने धर्मवसु गुरुने वांदवाने आवतो हवो. पनी पांच अनिगमने साचवता एवा ते राजायें बत्र, चामरादिक राज्य चिन्होने बोडीने त्यां समवसरणने विपे ावी गुरुनी स्तुति करवा मांमी. ते जेम केः-मोदरूप मार्गने विषे कल्याणकारी रथसमान तथा विषयकषायरूप ताप शमाववाने चंदनसमान, एवा हे मुनीश्वर ! ढुंआपने नमस्कार करुं बुं. एम स्तुति तथा नमस्कार करी बीजा राजा अने पुरजनोनी संघातें स्व स्थाने विमलकीर्ति राजा वेठो, पडी पापसंतापने नाशकारक एवी देशना देवानो आरंन, धर्मवसुगुरु करवा लाग्या. ते जेम केः-हे नव्यजनो! आ संसार जे, ते स्मशान समान ले, एम जाणजो. तेमां नाश पाम्युं , झान जेनुं एवा प्राणीयो मृतकनी पेठे दौस्थ्य, दो ग्य अने दुःखो ते रूप चितानिथी बले . वली तेमां चित्तचिंताकुलत्वरूप धूमनी धूसरता चाव्याज करे .जे संसार स्मशानमां अपराधी जनोने कषायरूप शूलीपर चडावेला जे. जेमा केटलाएक प्राणीयो, कुमतिरूप वृदने विषे उराशारूप रज्जुना पाशें करी बांध्या बे. तथा केटलाएक जीवोने विषयसुखरूप विष, पान करावीने चोराशि लाख योनिरूप वंशजालनेविपे नाखी दीधेला . जे संसाररूप स्मशाननेविषेपारखमीरूप मांसाशी निहन लोको फस्याज करे . अने जेमां सकल स्त्रीयो जे जे, ते शाकिनीसमान वर्ने जे. जेमां सर्व प्र कारना रागो रूप शियालीयां फस्याज करे . ते संसाररूप स्मशानमां राजकथा, स्त्रीकथा, नक्तकथा, देशकथारूप महाबिहामणी स्त्रीयो रहे डे, माटे ए संसारस्मशानमा रहेनार प्राणी पूर्वोक्त नपश्वथी परानव पामे ले. माटे एवा संसारस्मशानमा जो कोइ पण जीव साहसिक सिदिने बां बनार एवी चारित्ररूप महाविद्याने साधे , तेने दैवयोगथी जो ज्ञान चेतना प्राप्त थाय, तो ते पूर्वोक्त सुःखदायक संसारस्मशानमां पण सिदिने प्राप्त थाय .अने चारित्र माहाविद्यारहित पूर्वोक्त सर्व जीवो तो, तेवीक दर्थनाने प्राप्त थाय ले. अने सिदिने प्राप्त थयेलो जीव, शिवपुरीने विषे सु रखने पामे बे. अने ते शानचेतना तो जीवने ज्ञानथी प्राप्त थाय .अने झान जे जे, ते आप्तजननां वचनोथी प्राप्त थाय . अने ते आप्तजनो तो राग, द्वेष, अज्ञानादि रहित सर्व जीव उपर दयावंत होय ते जाणवा, अने Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीच अने गुणसागरनुं चरित्र. १४ए ते परमार्थथी जो जोयें, तो तीर्थकरज ले. कारण के राग, वेष बने थ झान, तेनो क्य तो ते तीर्थकरोयेंज करेलो ने माटे ते तीर्थकरना वचनने विषे रहे. वली ते तीर्थकरने दीठा ले परंतु जे प्राणीयें नक्तिरहित पणाथी प्रनुपर्ने उलख्या नथी, तेणें दी डे पण न दीला जेवा जाणवा. ते माटे हे नव्यजनो ! पंचपरमेष्ठीनुं निरंतर स्मरण करवू. एमना संस्तवने विषे अवश्य यत्न कस्या करवो. ते अरिहंतना दर्शनथी निरंतर परम निर्मल एवी कल्याणमाला प्राप्त थाय . हे राजन् ! ा ठेकाणे ढुं एक दृष्टांत कहुँ , ते सर्व कोइ तमो सांजलो. ते सांजली राजा कहे डे, के हे महाराज !था मोहोटो महारा उपर आ अनुग्रह कस्यो. एम राजायें कह्यु. ते साननी मुनि कहेवा लाग्या के हे राजन् ! या जंबुद्दीपना जरतदेवने विषे सद्या म नामक एक ग्राम , त्यां नश्कपणाना गुणयुक्त संगतनामें कोई एक पामर रहे . एक दिवस सांजे ते गामने विषे साधुश्राव्या, ते साधुउने रात्रि व्यतीत करवा माटे ते संगत नामा पामरें उपाश्रय दीधो. अने तेम नी सेवा पण कीधी. त्यारे ते संगतने सुधारस समान मधुर, तथा अध मैने नाश करनारी, पापरूप संतापने टालनारी, धर्मनी देशना दीधी. ते जेम के॥ यतः-मातंगाः शैलतुंगामदजलकलिता वायुवेगास्तुरंगाः, सामंता श्राऽऽनुमंता वरसचिवगणोंतःपुरं तारहारं ॥ देशैयामैः पुरैर्वा युतमवनितलं स्वर्णरत्नादिकोशा,गीतं नृत्यं च नोगा धवलगृहममी धर्मलन्याः पदार्थाः॥१॥ अर्थः-पर्वतनी समान उंचा मदजल जेने गंमस्थलमांथी जयाज करे ले एवा हाथीयो, वायुना वेगसमान वेगवाला अश्वो, अत्यंत प्रणाम करता एवा सामंतो, उत्तम एवो सचिवनो गण, आकाशमां नगता ताराना जेवा मोतीना हारवाली एवी स्त्रीयो, देश, ग्राम, पुर, तेणें युक्त एवं पृथ्वीतल, स्वर्णरत्नादिक कोषो, गीत, नृत्य अने जोग, धवल ए, घर, ए सर्वे पदार्थों धर्मे करी उपलब्ध थाय . ए प्रमाणे धर्मनुं फल जाणी तमें धर्म आदरो. एम परलोकने विषे सुख थाय. तेवो धर्मोपदेश कही साधु विराम पामे बते श्रमावान एवो संगत निन्न कहेवा लाग्यो जे महाराज ! तमो मारे विपे अत्यंत कृपा करनारा बो. परम अनार्य देशमा वसतो एवो हुँ अधर्मी तथा अज्ञानी . तो पण ढुं शाथी कतार्थ थावं? ते माटे हे नगवन् ! गृहस्थने सुख देवावालोअने मारे आचरवा योग्य एवो धर्म कहो.तेवारें मुनियें कह्यु Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. के हे संगत ! तारे पंचपरमेष्टीनुं स्मरण करवू. प्रातःकाल, मध्यान्हकाल अने सायंकाल, ए त्रणे कालने विषेत्रण वार, पांच वार, अथवा आठ वार, पं चपरमेष्टीनुं स्मरण कर. नोजनकालने विषे तथा शयनकालने विषे पवि त्र थश्ने आ पंचपरमेष्टी नामक महा मंत्रनुं स्मरण कर अने ते मंत्रने विषे नाव न बोडवो. ए प्रकारे उपदेश करीने सर्व साधुयें त्यांयी विहार कस्यो. तदनंतर ते सुगत निन्न पण ते मुनिना वचन प्रमाणे श्रीपंचपर मेष्टीनुं स्मरण करतो थको घणो काल जीवतो रह्यो. पली अंते विशु६ एवा ध्यानथी मरीने श्रीपंचपरमेष्टीना स्मरणना पुण्यथी संदर्नदेशनी नृमिरूप स्त्रीना नालस्थलने विषे तिलकनूत एवा नंदिपुर ग्रामने विपे पद्मानन रा जानी कुमुदिनी नामनी राणीना गर्नने विपे निरुपम एवो पुत्र थश्ने अ वतस्यो. ते गर्नमां श्राववाथी राणीयें स्वप्नमां रत्ननो राशि दीठो, तेथी ते पुत्रनुं “ रत्नशिख” एवं नाम पाडयुं. ते वयथी अने कलाथी वधतो थको यौवनपणाने पाम्यो, सुकृतथी खेंचा आवेली लक्ष्मीनी पेठे तेना गुणोयें करी रंजित, अने स्वयंवरथी प्राप्त थयेली एवी कोशल देशना अधिपतिनी कौशला नामनी कन्याने रत्नशिख नामा कुमार परणतो हवो. एक दिवस कुमदिनीनामा देवीयें पद्मानन राजाना मस्तकपरथी एक धोलो केश चुं टीने ते राजाने देखाड्यो, ते केशने जोक्ने तत्काल उत्पन्न थयो ने वैराग्य जेने एवा पद्मानन नामा राजायें पोताना रत्नशिख नामना पुत्रने राज्य आ पीने नार्यायें सहित वैराग्य पामीने वनप्रत्ये गमन कयुं. तदनंतर पूर्णिमा ना चश्मानी पेलें अखंम मंमलोयें करी अलंकृत, मंत्री अने सामंतराजा वगेरेनी पंक्तियें करी आतृत एवो, रत्नशिख कुमार पण महोटो राजा थयो. नविन नविन कथाना विनोदवालो ते रत्नशिखराजा बे, तेथी कोइ पण नविन नविन कथा कहे तेने वृत्ति बांधी आपे ले. अने अनेक पुरु षोनां चरित्र सांजली ते अति संतुष्ट थइ जाय . एवामां कोई एक कथाकारें आवी वीरांगद अने सुमित्रनी कथा कहेवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः-समुजेम लक्ष्मीवान ,तेम लक्ष्मीथी जरपूर विजय पुरनामा नगर जे. ते नगरने विपे सुरांगदनामा नरेंइनो गुणवान् एवो वीरांगद नामें पुत्र ने. ते याचकोने मनोवांबित पूर्ण करवामां चिंतामणि रत्न समान ले. अने शरणागत जीवने तो लोढाना पांजरा सरखो . न्याय Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १५१ वंतमा मुख्य गणना करवा योग्य , सुःखी अने दीन जनोनी उपर वात्स व्यने करनारो . तेनो सुमित्र नामा प्रधाननो पुत्र परम मित्र . तेनी साथे एकदिवस ते वीरांगद वनक्रीडा करतो हतो. क्रीडा करतां करतां तेणें पोताना मित्रने पूज्यु के हे मित्र ! आपण बेदु जण पोत पोताना पुण्यनी परीक्षा करवा माटें दूर देशांतर जश्यें ? अने अनेक कौतुकोयें करी युक्त एवी पृथ्वीने पण जोश्यें ? अने हे मित्र ! देशांतर फरवाथी विशेषेकरी सुजन पुर्जनो पण जाणवामां आवे . कहेसु ले केः-॥ गाथा ॥ अबो जसो अकित्ती, विज़ा विनायं पुरिसकारो ॥ पाएणं पाविऊर, पुरिसेण य अन्न देसम्मि ॥वली पण कहेलु ने के॥ श्लोक ॥ देशाटनं पंमि तमित्रता च, पण्यांगना राजसनाप्रवेशः ॥ अनेकशास्त्रार्थ विलोकनं च, चातुर्यमूलानि नवंति पंच ॥ २ ॥ अर्थः-अर्थ, इव्य अने कीर्ति, विद्या, विज्ञान, पुरुषार्थ, ए सर्व पुरुषने परदेशाटन करवाथी प्राप्त थाय ॥१॥ देशाटन, पंमितनुं मित्रपणुं,पण्यांगनानो मेलाप, राज्यसनामां गमन,अनेक शास्त्रार्थोर्नु अवलोकन,ए पांच वानां चातुर्यनां मूल ॥२॥ ते वात सांजली प्रधाननो पुत्र कहेवा लाग्यो जे हे मित्र ! तमोयें जे कह्यु, ते योग्यज बे. परंतु एकेक वस्तुना विलासी जनने चातुर्य क्यांथ होय ? एक देश, एकज सना, एक स्त्री अने एकज शास्त्र एवी एकेक जे वस्तु तेना विलासी पुरुषने चातुर्य क्याथी होय? ना होयज नहिं. माटे अनेक नगरमां जावं. अनेक झानोने शिखवां, अने अनेक राजाने सेववा, कारण के नाग्यनो उदय वा अनुदय ते अनेक पदार्थना अन्यासथी थाय . ते वात सांजली कुमार कह्यु के हे मित्र! तमें ते सर्व सत्य कह्यु. परंतु मातापिताने बोडी ने देशांतर जq ए घणुंज कठिन काम ले. कदाचित् जो आपणे नाना जायें, तो ते माता पिताने मोहोटी अधीरता थाय, अने दुःख थाय, अने जो तेमने कहीने जायें, तो ते जवानी आज्ञा आपे नही? एम पर देश जवाविषे वेदु मित्र विचार करे ,अनें वनमां क्रीडा करे , तेवामां "माझं रक्षण करो, मारुं रक्षण करो.” एम बोलतो एवो कोइ वध्य पुरुष आवी, रत्नशिख कुमारनां चरणमा पड्यो, तेवामां हाथमां दंम अने पाश ने धारण करनार एवा ते वीरांगदना पिता सुरांगद राजाना सीपाश्यो ते वध्य पुरुषनी पळवाडे दोडता आवी कहेवा लाग्या, जे हे राजपुत्र! Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. आ आपना चरणमां जे पडेलो डे ते अतिउष्ट चोर ,ते सुदत्तश्रेष्टीना घ रमाखातर पाडी चोरी करी खातर पाडेला मार्गमांथी नीकली नाग। जतो हतो, त्यां ते तुरत अमारी नजरें पडवाथी तेने पकडी लीधो हतो, बने राजानी आज्ञाथी तेने बांधीने वधनूमिमां शूलिपर चडाववा आणेलो हतो, त्यांथी ते अमारी नजर चुकावी एकदम नागीने तमारा चरणमां आवी पडेलो.ते माटे तेनो आप त्याग करो,के जेथी अमो आपना पिता पद्मा नन राजानी बाझा प्रमाणे तेने जलदी यूनिपर चडावी दश्यें ? एवी रीतनां ते अनुचरोनां वचन सांजली वीरांगद कुमार चिंतव्युं जे शरणमां आवेला प्राणीने पाडो मारवा माटे आपवो ते योग्य नहि. अने चोरनी रक्षा क रवी ते पण योग्य नथी, तोपण शरणमां आवेला जीवनो त्याग करवो, ते अस्मादृश शरणद पुरुषने तो घटेज नहीं ? एम विचारीने कुंवर बो व्यो के जेना आदेशथी तमो तेने शूलियें देवा लई जाबो, तेज मारा पिता राजाने जईने कहो के तमारा पुत्र वीरांगदें कह्यु जे जे आ वध्य पुरु पने तमो त्वरित बोडी मुको अने वली पण कहेजो जे तमारा पुत्रने शरण थवाथी तेमणे वध करवानो निषेध कस्यो बे. त्यारें अनुचरो कहे जे के या पना कहेवा प्रमाणे जो राजाने कहेगुं, तो राजा, रोषाक्रांत थाशे ? तेवारें कुमार कह्यु के. सोनलो ॥यतः॥ कोकिरकुलानिमाणो, माहप्पा पोरिसं च किं तस्स ॥ सरणा ग जस्स म, व नो जमइ सबंदं ॥ अर्थः-नत्तम कु समां उत्पन्न थयेला अनिमानी महात्मा पुरुष, शरणमां आवेला जीवन रक्षण न करे, तो तेनुं बीजुं पुरुषार्थ होय, ते अ॒ कामनुं ? काहींज नहिं. जुवो. चश्माने शरण गयेलो जे मृग डे, ते अद्यापि पर्यंत तेनी साथेंज स्वबं दताथी आकाशमा फस्या करे . माटे जो पिताजी रीप करशे तो पण ढुं श रणागत प्राणीने बोडवानो नथी. एq वचन सनिली सर्व शिपाईयोयें म नमां जाण्यु जे आ कुमार ते वध्य पुरुषनो त्याग करे तेम नासतुं नथी.माटे तेमनो कहेलो आदेश आपणे राजाने कहीयें. एम जाणीने ते कुंवरनी कहेली सविस्तर हकिकत तूर्णताथी यावी राजानी पासें कही. ते सांजली राजा एकदम रुष्ट थइने कहेवा लाग्यो जे जा. ते कुमरने कहो के स्व बंदपणे वर्तनारा एवा पुत्रनुं मारे कामज नथी? माटे तारे मारी राज्य नूमिमां कोई पण ठेकाणे रहेQज नहिं ? ने जलदीथी बाहेर निकली जा, Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं ने गुणसागरनुं चरित्र. • १५३ जो तुं मारी मिथी बाहेर नहिं जा, तो पूर्ण शिक्षाने पात्र थईश ! ए प्रमा नी राजानी जे खाज्ञा थई ते कुमारने कही. ते सांजली कुमारने तो परदेश जवानो विचार हतोज तेवामां वली राजानी खाज्ञा थई तेथी अत्यंत खुशी यो ने चोरने तेने घेर पोहोंचाडी पोतानो मित्र प्रधान पुत्र जे सुमित्र हतो, तेनी साधें शीघ्रताथी परदेश जवा माटे निकल्यो. तेवामां मार्गे चा तां ते बेदु जने पुण्योदयने सूचना करनारां ने अत्यंत प्रशस्य एवं शकुनो थयां कंबे के कन्या, गाय, शंख, जेरी, दधि, नविन पुष्प, देदी प्यमान पावक, मदोन्मत्त हस्ती, वृद्ध अश्व, नृपति, पूर्ण कुंन, ध्वजा, मरण पामेला वे मत्स्यो, रांधेनुं अन्न, वेश्या, साईमांस. एटलां वानां प्र स्थान करनारा प्राणीने जो सामां मले, तो ते शुभसूचक बे. वली पण क लुं वे के भ्रमण, अश्व, राजा, मयूर, कुंजर, वृप, ते व पदार्थ, प्रस्थानमां तथा प्रवेशमां सिद्धिना देनारां ते. ते सर्व शकुनो कुंवरने थयां, एवां गुनश कुनोथी प्रोत्साहित थयेलो ते कुमार, पोताना मित्रे सहवर्तमान अनुक्रमें घोएक मार्ग उल्लंघन करीने महाटवीमां प्राव्यो. पठी कुमार, थाकी जवाथी महोटा एवा वड वृनी बाया नीचें सुतो, त्या तेनो मित्र सुमित्र जे हतो, तेणे कुंवरना प्रयासने मटाडवा माटे पगचंपी करवा मांमी. हवे ते वडने विषे एक नासुरप्रन नामा यक्ष रहेतो हतो, ते या कुम रनुं तथा सुमित्रनुं स्वरूप जोइने तुष्टमान थइ अवधिज्ञानें ते बेदु पुरुषोनुं नमत्त वृत्तांत पण जाणी प्रत्यक्ष थइने सुमित्रप्रत्यें कहेवा जाग्यो, के हे वत्स ! तमो बेदु जण प्रत्युत्तम अतिथि हो, तो तमारुं प्रातिष्य हुं गुं करूं? त्यारें सुमित्रे कयुं जे हे देव! दुष्प्राप्य एवां या तमारा दर्शनथकी मोने सर्वे प्राप्त थयुं ? ॥ यतः ॥ तप्पंति तव मरोगे, जवंति मंते तहा सुविका || वियरंति दंसणं पुल, देवा धन्ना विरताणं ॥ १ ॥ अर्थःतमारा दर्शन माटे केटला एक मनुष्य तप करे बे तथा केटलां एक मनु यो मंत्र साधे बे, तथा केटलां एक रूडी विद्याने साधे बे, परंतु कोई एक नाग्यवान् विरला मनुष्यनेज तमारां दर्शन थाय बे. ते सांजली यक्ष कहे बे के समन पुरुषो, दुःखित माणस पासेंथी काहि पण माग्या विना ते दुःखित जीवने दुःखमांथी पोतानी शक्त्यनुसार काढे बे. वली श्रमारा सरखा देव तानुं दर्शन तो निष्फल होतुंज नथी, तेमां पण वली तमारा जेवा अत्युत्तम २० Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. अतिथिने अस्मादृश, दर्शन वृथा थायज केम! कहेलुं केः-॥श्रमोघा वा सरे विद्यु,दमोघं निशि गर्जितम्॥श्रमोघा चोत्तमा वाणी,अमोघं देवदर्शनम्॥ अर्थः-दिवसने विषे थयेली विजली खोटी थाती नया अर्थात् दिवसमा विजली थवाथी वरसाद निश्चें वरसे ले अने रात्रिने विषे मेघनी गर्जना वितथ थाती नथी. कारण के रात्रं गर्जना करेलो मेघ निश्च वरसे ले. तेम मुत्तम पुरुषोनी वाणी जे ,ते खोटी थती नथी अने देवतार्नु दर्शन जे बे, ते पण खोटुं यतुं नथी माटे हुँ तमारां बेदुजणनां सदाचरण तथा रूप जो प्रसन्न थइने मारी पासें वे मणि , ते ढुं अर्पण करूं मुं. ते ग्रहण करो. तेमा प्रथम जे नीलमणि ने, ते पूजन कस्यो थको त्रण उपवा सना अंतने विषे मनोहर राज्यने देनारो थाय ने. अने बीजो था रक्त मणि ले, ते ". झी” ए मंत्र करी जप्यो थको मनोवांनितने आपे . तेमां पूर्वोक्त जे नीलमणि ने, ते आ तमारा राजकुमारने योग्य , अने बीजो जे रक्तमणि ने, ते तमारे योग्य ने. ते वात सांजली विस्मय पामेला सुमित्रं ते देवना आपेला बेहु मणि पोताना हाथमां लइने तेने प्रणाम कस्यो. अने विचारवा लाग्यो के अहो! ॥ गाथा॥ पहरश्य पुरलं, होइ सहाय वणे वसंतेणं ॥ अश्सुत्तस्स विजग्गइ, नरस्स पुत्व कियं पुरम ॥१॥ अर्थः- पुरने विष तथा वनने विषे रहेता एवा पुण्यशाली जीवने पूर्व जन्मार्जित पुण्य जे जे ते सहाय करे . माटे आ कुमार ने,ते महा नाग्यशाली , जेनुं वनने विपे पण देवता सहाय करवा आव्यो ? एम कुमारनो मित्र सुमित्र विचार करे , तेवामां यद जे हतो, ते अंत •न थइ गयो. अने कुमार तुरत जागी गयो. पड़ी ते वेदु जण त्यांथी चाव्या. त्यां वनने विषे फलित तृदो आववाथी कुमार फलनक्षण करवा तत्पर थयो, तेवामां कुमारने सुमित्रं कह्यु जे महाराज ! आप फल न क्षण करशो नहिं! एम ज्यारे फल खावा तैयार थाय, त्यारे सुमित्र ना कहे. तेवी रीतें त्रण उपवास कुमार पासें कराव्या, एम करतां महाशाल नामा पुरना उपवनमां बेदु जण पहोंच्या. त्यां सुमित्रं राजकुमारने यद प्रदत्त जे नीलमणि हतो ते थाप्यो अने कह्यु के हे मित्र ! या मारा आपेला मणिनुं तुं पूजन कर. तेम करवाथी तुं कोई पण गामनो राजा थाईश ? ते सांजली विस्मय पामेला कुमरें कडं के हे मित्र! आ मणि, Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. Հաս तुने क्यांथी उपलब्ध ययो ? त्यारें सुमित्रें कयुं जे तमारा पुण्यथी मलेलो बे. बाकीनी सर्व हकिकत आपने राज्य प्राप्त थया पढी हुं कहीश. ते सांगली हर्षायमान थयेला वीरांगद कुमारें पण ते नीलमणिनी पूजा करी ने पी उपहासथी कहेवा मांग के केम हवे क्यांथी राज्यनो लान थाशे ? एम विस्मय युक्त उपहास करतो थको एक या वृनी नीचें जइ वेहो अने कुमारनो मित्र सुमित्र जे हतो, तेणे वल्ली मां जइ ते यदना श्रापेला रक्तचिंतामणिनुं पुष्पादिकथी न करने ते चिंतामपिपासें यहना कहेवा प्रमाणें शरीर स्थितिना उपोगनी प्रार्थना करी, तो तेज दणमां ते मणिना प्रभावथी दिव्यव स्तु प्रगट थर. प्रथम तो त्यां दिव्य पुरुषो प्रगट थया, तेमणे बेहु जनुं अंगमर्दन करयुं, ते पढी कमलसमान कोमल जेनां चरण बे एवी दिव्यस्त्रीयो प्रगट थइ. तेमणें सुगंध व्ययी ते वेदु जाने वटण कं. पठी मणि, रत्न, तेणे जडित ने नजेब जेने विषे बांध्या वे. एवा errainपने विषे स्वर्णसिंहासनमां बेसीने रत्नजडित महोटी जारी योथी ऊरता एवा जलयी विधिपूर्वक तेजयें स्नान करूं. पी दिव्य एवा शृंगार, वस्त्र, पुष्प, विलेपन, तेणें करी शरीरने सुशोभित करयां, तदनंतर सोनाना थालने विपे खाद्य, पेयादिकनुं नोजन कस्युं, ते पढी हाथ तथा मुख धोयां, तदनंतर माहा मूल्य एवा तांबूलनुं नक्षण कयुं, एम सर्व सामग्रियोनो उपभोग थयो, ते पढी ते सर्व सामग्रि इंड्जालनी पेठें दृश्य थ ग तेवारें कुमारें कह्युं के हे सुमित्र ! था, जे यापलने अलौकिक सामग्रीना सुखनी प्राप्ति य‍, ते सर्व मने यापेला नीलम लिनो प्रताप बे ? त्यारें सुमित्रे कयुं जे ना, तेम कांइ कहेतुं नहिं जारें ते कवानो वखत श्रावशे, त्यारें तेनुं सविस्तर वृत्तांत हुं आपने कहीश. एम परस्पर बेहु मित्र सुखेंकरी वार्त्ता करे बे, तेवामां तेज नगरनो राजा पुत्रीयो मरण पामेलो बे तेथी तेमना प्रधानवर्गे विचार करो के हवे प्रापणे राज्यासन पर कोने बेसारीयें ? कारण के राज्य कां रेढुं रहे नहिं. तारे सहुयें मली विचार कस्यो, के या आपणो पटु हस्ती ने, तेनी गुंढमां जल नरेलो सुवर्णकलश थापवो, धने तेने स्वतंत्र तें चालवा देवो. चालतां चालतां जे पुरुष नपर ते कलश ढोले, खने जे Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पुरुषने पोताना गुंढाममयी लहीने गर्जना करी पोताना स्कंध उपर चडावे, तेने या नगरनुं राज्य देवू. एम निश्चय करी पंचशब्द वाजां वगडावा मांज्यां. पड़ी पंचशब्द वाजां वागते शणगारेलो हाथी चाल्यो अने ते हाथीनी पड़ वाडे राजाना प्रधान वगेरे चाल्या, पड़ी हस्ती चालतो चालतो जे स्थलें गामनी बाहेर नपवनने विपे सुमित्र नामा मित्र सहित वीरांगद कुमार बेठेलो , त्यां श्रावी गर्जना करी ते हाथी कुमारनी पर जलनो नरेलो कनककलश जे हतो तेणे करी अनिषेक कस्यो, अने ते पनी तुरत ते कु मारने गुंढामंमें करी लश्ने पोताना स्कंध उपर चडावी दीधो. तेवामां तो तुरत मंत्री जनना दुकमथी तेने राजा तेराव्यो, नत्र, तथा चौतरफ विं जातां चामरोयें करी सुशोनित थयो. आनंद युक्त एवा अनेक बंदिजनोना तृदोयें करी जय जय शब्दो ते समयने विषे थवा लाग्या. पडी ते कुमरने गाममा प्रवेश करवा माटे सचिवादिक सर्व नमन करी कहेवा लाग्या के माहाराज! या बापना गाममां बाप पधारो. तेवामां ते कुमारना सुमित्र नामा मित्रे विचास्युं जे मारो सखा वीरांगद कुमार तो उत्तम एवा राज्यने प्राप्त थयो, ते घणुंज उत्तम कार्य थयु. हवे ढुं पण मारा मित्रनुं सुख जोतो थको स्वेचायें करी प्रसन्नरीतें कोइ पण गामें जश्न रढुं? एम विचारीने त्यांची गयो, ते बीजा नगरने विषे प्रवेश करीने प्रसन्न रीतें रह्यो.तदनंतर राज्य तो प्राप्त थयुं, परंतु पोताना मित्रथी जुदा पडवायें करी वीरांगद कुमार अत्यंत व्यग्रचित्त थ गयो, त्यारे मंत्री विनयपूर्वक पूज्यु के महाराज! आप ग्राम अपशोषमा केम बो ? अने युं आपने अपेक्षा के ? ते कहो. तेवारें ते राजा थयेला कुमरें कडं के मारो प्राणप्रिय एक मित्र मारी साथै प्राहिं यावेलो हतो,तेने हाल दुं देखतो नथी, तेथी मुने अत्यंत हृदयमां दुःख थाय जे. माटे जो तेने कोइ पण तेकाणेथी शोधी लावे, तो मुनें आनंद थाय ? तेवां वचन साननी सर्व सुनटो सर्वत्र दोड्या अने चोतरफ सुमि त्रनो तपास कस्यो, परंतु कोइ स्थलमां तेने दीठो नहिं, त्यारें निराश थइ ग येला सुनटोयें यावीकडं के महाराज! ते पुरुष तो तपास करतां कोई ते काणे अमोने मल्यो नहीं. ते सांजली सशोक थयेला कुमार कह्यु के हुँ गाम मां प्रवेश करीश नहिं, त्यारें तो सर्व मंत्रीवगेरेयें अत्यंत अाग्रह पूर्वक प्रार्थ ना करीने महोटा उत्सवें करी ते राजाने पुरमा प्रवेश कराव्यो अने तेज गा Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १५७ मना मरण पामेला राजानी पाठ कन्या हती, तेनुं पोतें पाणिग्रहण कस्युं. पडी ते देवतानी स्त्री समान आठ स्त्रीयो साथै सुख विलास करतो थको अखंम शासनवाला राज्यने उत्तम राजानी पहें पालन करतो हवो. परंतु पोताना सुमित्र नामा मित्रने हृदयथी क्षणमात्र पण विस्मृत करतो नथी. हवे सुमित्र पण पोतानी इबाथी जे नगरमा पोतें गयो, ते नगरमांनमतो हतो, नमतां नमतां त्यांनी रहेनारी अने नरनी वैरिणीतमा एवी को रतिसेना नामनी वेश्यायें तेने दीठो. अने स्नेहयुक्त तेनी सामुं अवलोकन कयं. अने पोतानी रतिसमान कन्या साथें समागम करावी इव्य हरण करवानी इलाथी गौरवपणे तेने बोलाव्यो अने विचास्युं जे था पुरुषनी थारुति घणीज सरस , माटे जरूर आ इव्यवान हशे! एम विचारी ते सुमित्रने उपर बोलावी रूडे आसने बेसारी तेनी उत्तम संनावना करी तथा तेने तांबूलादिक प्रापी खुशी कस्यो. पनी रतिसेनानी पुत्रीना क टादोथी विधायुं के हृदय जेनुं एवो ते सुमित्र, तेनी साथें विषय सुरखने जोगवतो थको पोतानी मेलें मनमां विचार करवा लाग्यो के,गणिकाजे , ते ऽव्यथी रंजन थाय . परंतु गुणवानना गुणोथी राजी थाती नथी. जेम मक्षिका जे , ते दुर्गधवाली विष्टापर बेसे ले परंतु चंदननी उपर बेसती नथी. वली गणिका धनने माटे चांमालनो पण संग करे, तथा कुष्टी जननो पण संग करे? कर्वा डे के ॥ श्लोक ॥ जात्यंधाय च धुर्मुखाय च जराजी खिलांगाय च, ग्रामीणाय च पुष्कुलाय च गलत्कुष्ठानिनूताय च ॥ यती च मनोहरं निजवपुर्नवीलवश्रध्या, पण्यस्त्रीषु विवेककल्प लतिकासु स्त्रीषु कोरज्यते ॥१॥ वेश्याऽसौ दहनज्वाला, रूपेंधनसमन्विता॥ कामिनिर्यत्र दूर्यते, यौवनानि धनानि च ॥ २ ॥ अर्थः-जातिथी अंधने, तथा खराब मुखवानाने, जराथी जीर्ण थयेला अंगवालाने, ग्रामीणने, तथा खराब कुलमा उत्पन्न थयेलाने अने गलत्कोढीयाने, लक्ष्मीनी लाल चथी मनोहर एवा पोताना कलेवरने वेश्या जे ,ते स्वछंदपणे अर्पण करे ने. माटे विवेकनी कल्पलता एवी पण्यस्त्रीने विषे कयो मुझजन अानंद पामे? ॥ १ ॥ वली या वेश्या जे ले, ते अमिनी ज्वाला , ते पोताना स्वरूपरूप इंधनोथी युक्त , ते अग्निज्वालाने विपे कामी पुरुपो, यौवन, तथा धनने होमी दीये जे ? या प्रमाणे सुमित्र विचार करे ले, तो पण Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. स्नेहामृतथी तथा हाव, नाव, कटाक्षोथी वश करेला एवा ते सुमित्रे वि चामु जे पाहीज रही केटला एक दिवस हुँ निर्गमन करीश ? एम विचार करीने केटलाएक दिवस ते रतिसेना वेश्याने त्यांज रहेतो हवो. पडी ते सुमित्रनी साथें रहेवाथी कुहिनी अत्यंत प्रसन्न थइ. परंतु धननी अतिला लसाथी केटलुंएक इव्य सुमित्रपासेंथी तेने मल्युं बे, तो पण ते वेश्यायें जाण्यं जे एनी पासें कांहीं पण हाल देखातुं नथी माटे हुँ मागु तो खरी, जो मागवार्थी ना कहे तो तेनुं दुं विसर्जन करीश ? एम धारी नूषणादिकनी बाथी जूपणोज मागवा लागी. त्यारें सुमित्रे विचास्युं जे यावेश्या काही थोडे व्यं तृप्ति पामशे नहीं माटे तेने घएं इव्य हुँ था', एम विचारी एकांतस्थलमा जइ सुरमणिनी याचना करवा ला ग्यो तेथी घणुक व्य प्राप्त थयुं, ते सर्व व्य ते रतिसेना पण्यांगनाने श्रा पी दीधुं. ते लीधाथी फरी पण इव्य माग्युं, अने कुमारे दी● एम जेटली वार जेटलु ए रतिसेना वेश्यायें व्य माग्युं तेटली वार तेटलुं इव्य सुमित्रे तेने श्राप्यु. तेम घणुं इव्य सुमित्रपासेंथी वारंवार मलवाथी ते वेश्यायें विचायुं जे या पुरुषपासें चिंतामणिज , कारण के जेटलु इव्य हुँ मागुं बुं, के तुरत तेटलुइव्य लावीने मुने यापे. माटे हवे तेनी पासेंथी जेम तेम उपाय करी ते चिंतामणि लइ लेवो! एम धारीने ते चिंतामणिने चोरी। लेवानी युक्तियो वारंवार शोधे , परंतु कोई युक्ति तेने मलती नथी. हवे एक दिवस ते सुमित्र हतो, ते पोताना पहेरेला वस्त्र उतारीने स्नान करवाने माटे प्रवृत्त थयो, तेवा वखतमां ते कुटिनी एवी रति सेनायें बन करी ते सुमित्रनां पडेलां वस्त्रो शोधवा मांड्यां,तेमां सुमित्रना उत्तरीय वस्त्रने उडे ते यप्रदत्त जे चिंतामणि हतो, ते बांधेलो हतो, तेने वेश्यायें बोडी लीधो. तदनंतर ते सुमित्रे स्नान करी पोतानां सर्वे व स्त्रो पहेरी लीधां. थोडी वार पड़ी पाबु ते वेश्यायें सुमित्रपासें इव्य माग्युं, तेवारें तेणे हा कही,अने एकांतस्थलमांज जे वस्त्रने बेडे गांठ वाली मणि बांधेलो हतो, ते वस्त्रनो डेडो जोवा मांड्यो, तो त्यां ते मणिज दीठो नहिं अने कोयें चोरी लीयो एम तेने मालम पडद्यु, त्यारे अति चिंतातुर थ तत्रत्य सर्व जनोने पूबवा माड्यु,अने कह्यु के तमें कोयें मारा वस्त्राने बेडे थी मणि लीधो ले ? तेवारें अतिकपटघटनामां प्रवीण एवी ते कुहिनी Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. रपए रतिसेना हती,ते सामो अत्यंत विलाप करवा लागी अने कहेवा लागी के हे उष्ट ! तारे जो हवे ऽव्य न श्रापहोय तो सयुं बने अमारे जोतुं पण नथी, परंतु अमारे माथे खोटी चोरी खबडदार जो नाखी तो? तेवां वच न ते वेश्यानां सांजली सुमित्रे विचायुं जे जरुर था पापणी अने विश्वा सघात करनारीयें मारो मणि चोरी लीधेलो . एमां कांहीं पण संशय नथी माटे हवे मारे था वेश्यानी साथें रहे पण नचित नथी अने वली मारा मणिनी चोरी थने ते माटें आ वेश्याने कांही न कहेतां राजा पासें जा फरीयाद करवी तेज वात योग्य . माटे फरीयाद पण करूं? एम विचारी सलऊ थश्ने राजा पासें फरियाद करवा माटे देशांतर तरफ चाल्यो अ ने मार्गमा चालतो चालतो विचार करवा लाग्यो जे अरे धिक्कार ने अज्ञा नने ? जे अज्ञानथी लोजणी एवी ते वेश्यायें जेम जेम मारी पासें जेट बुं जेटलुं व्य माग्युं, तेम तेम नेटलुं तेटबुं में व्य तेने प्राप्युं, तो पण ते पापणीनी तृष्णा वृद्धिंगत थातीज गइ. ते तृष्णाथी विश्वासी जनना शेहने करनारी पापणीयें मने वंच्यो? तेणे मनेज वंच्यो एम नथी, परंतु पोताना श्रात्माने पण तेणें वंच्यो बे. कारण के ते वेश्यायें एम जाएयु जे या चिंतामणि तेनी पासे , ते जेटलुं जोयें, तेटलुं इव्य तेने मले ले, तेथी ते मणि जो ढुं चोरी लहुँ, तो मुने पण तेनी पहें अनर्गल इव्यनी प्राप्ति थाय? पण तेने एम खबर नथी के मणिनो विधि तथा मंत्र जाण्या विना ते फलदायक थाय नहिं, माटे तेणे मणि मारी पासेंथी चोरी लीधो पण तेथी तेने कांही वांछित फल प्राप्त थवानुं नथी अने तेनी पासे ते मणि ने, ते पथ्थर समान फलदायक . माटे ते मणिथी थतो लान न होवाथी तेणी पोताना यात्माने पण वंच्यो बे. अर्थात् चोरी पोताना स्वार्थ माटे करी तो पण तेनो स्वार्थ न सस्यो, अने या करूं चोरीनुं पाप कर्म बांध्यु ? हवे एवो ते कयो प्रकार के के जेणे करी ते वेश्यानुं मुंडं थाय धने माझं पोतानुं माहात्म्य देखाडीने ते मारा महामणिने दुं तेनी पासेंथी पाडो लहुँ ! ! कहेj ॥ यतः॥ नपकारिण्युपकारं, वेरनिर्यातनं रिपोः ॥ कर्तुं नैव समर्था ये, तेषां धिक पुरुषार्थता ॥ १ ॥ अर्थः-नुपकार करनारनो प्रत्पुपकार, शत्रुनुं वैर लेवु, ते बेद्वानां करवाने जे अशक्त होय , तेना पुरुषार्थने धिक्कार जे. एम Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. संकल्प विकल्पना कल्लोलथी व्याकुल ने चित्त जेनुं एवो ए सुमित्र, त्र में करी नमतो नमतो जाजा जेमा प्रासाद ने,अने जाजां जेमां उद्यानो में, जेमा कोइ मनुष्य तो रहेतुंज नथी एवं कोइ एक नगरने देखतो हवो. पड़ी तेवा नगरने दूरथी जो विस्मय पामीने तेणे ते नगरनी थंदर प्रवेश कस्यो. अनुक्रमें सर्व नगरने जोतो थको ते नगरना राजमंदिरमा श्रावी पहोंच्यो. त्यां पण सर्व स्थल निर्जन जोइ, ते राजमंदिरनी सप्तम लूमि पर चडी गयो. त्यां कर्परथी नरेलां ने मस्तक जेनां तथा पुष्पनी मालाथी सुशोनित ने ग्रीवा जेनी अने सांकलथी बांधेला ने पग जेना एवी बे हाथणीयो दीती. पनी संचम युक्त घरटुं परहुँ जोतो थको विचार करवा लाग्यो के बरे हुँ थाहिं क्यां चडी थाव्यो ! अने बे हाथणीयो थाहिं कोणे बांधी दशे ? एम कहीने वली घडीक विराम पाम्यो. पाबो वली संभ्रमथी गांमानी पेठे आम तेम जोवा लाग्यो, त्यां गवादने विषे पडेली श्वेत अने कृष्ण एवा अंजननी नरेलीबे शीशीयो नजरें पड़ी. अने ते शीशीनी पासें एक प्रांरखमां अंजन करवानी शलाका पण दृष्टिगोचर था. ते सर्व जोश्ने सुमित्रने संन्रम मटी शांति थइ अने तेणे जाएयु जे जरूर या योगांजननीज शीशीयो , कारण के आबे हाथणीयोनी पांपणो धोली ने, कारण के तेनी पांपणोमां धोली शीशीमां पडेला सड जेवू उसड प्रांजेलु . माटे ढुं जाणुं जे या वे हाथणीयो डे, परंतु ते वे हायणीयो नथी, पण ते बे स्त्रीयोज ? अने ते बे स्त्रीयोने कोइएक योगी पुरुचे, आ श्वेतयोगांजन आंजी हाथणीयो करी दीधी ? वली कदाचित जो आ कृष्णांजन जे शीशीमां पडेलु तेथी पानीपूर्वरूपनी स्त्रीयो थाय तो थाय? जे नावी दशे ते थाशे अने ए कृष्णांजन यांजवाथी कां आप गने अडचल पडवानी नथी? जो स्त्रीयो नही थाय, अने हाल जेम बेद्ध हाथणीयो , तेमज रहेशे, तो पण कांश फिकर जेवू नथी ? एम वि चारीने ते सुमित्रं शीशीमांथी कृष्णांजन लइ ते बेदु हाथणीनी चदुमा अांजी दीधुं. तेथी तुरत ते हाथणीयो बे उत्तम कामिनीयो थइ गइ. अने सुमित्रे ते बेदु जणीयोने कुशलप्रश्न पूयु. तारे ते बेदु स्त्रीयोयें कह्यु के आपना समागमथी हवे अमाझं कुशल थयु! त्यारें सुमित्रं कर्तुं के हे उत्तम नामिनीयो! मारा चित्तने आश्चर्य उत्पन्न करनारं तमाळंत Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १.६१ तांत मने सविस्तर कहो, ते सांजली बेदु महिला कहेंबा लागीयो के हे नाग्यशाली पुरुष ! मारुं वृत्तांत में जे कहीयें, ते सांजलो. गंगानदीयी उत्तर दिशामां नक नामनुं एक नगर बे, तेमां गंगादित्य नामा श्रेष्ठी से बे, तेनी वसुधारा नामा एक स्त्री बे, तेने खाउ पुत्रो वे, तेनी उपर मो जया ने विजया नामनी वे कन्या थयेलीयो तैयें, हाल यौ वनावस्थाने प्राप्त थेयो बैयें. हवे ते गंगानदीना कांठा उपर नयानने विषे क्रियावान्, शौचधर्मतत्पर, पुराणव्याख्यानने वांचनार, वैदिक ने ज्योतिषनिमित्तने पण जाणनार, देखवामां सरल ने अंतःकरणमां क्रूरपरिणामी शर्मक नामनो कोइएक परिव्राजक रहेतो हतो, तेने मारा पितायें गुरुनावथी नोजन करवा माटे घेर बोलायो, ने घणाज मानयी स्वस्थ श्रासनपर वेसारखो. त्यार पीतेने मारा पितायें शाल, दाल वगेरे उत्तम नोजन, एक थालीमां पीरस्यां, त्यारे ते जमवा लाग्यो. ते वखत यमो बेदु बेनो गुरुनावथी तेने पंखाथी पवन नाखवा लागी. तेवामां तो तेने यमारुं वेदुजलीयोनुं प्रति रमणीय रूप जोतां अंगमां यनंग उत्पन्न थयो, तेथी या थयो थको प्रशन ध्यान बोडी चित्तमां चिंतववा लाग्यो के अरे ! रंजा नामक अप्सरा सरखी या वे स्त्रीयोथी में जोग न जोगव्या, तो मारुं तपथी पण शुं वलवानुं बे ? अनें क्रियाथी पण गुं बलवानुं वे ? जाजुं गुं कहुं, परंतु तेउनी सार्थे जोग जोगव्या विना मारुं जे जीवित बे, ते वृथाज बे ? वली पण विचारवा लाग्यो जे संसा रमां वस्तुतः सार जो जोइयें, तो तो सारंगपदी समान लोचनवाली लल नाज बे ॥ यतः ॥ प्रियादर्शनमेवास्तु, किमन्यैर्दर्शनांतरैः ॥ प्रार्य्यते येन नि र्वाणः, सरागेणापि चक्षुषा ॥ १॥ कीरसागर कल्लोल, लोललोचनयाऽनया । सारोऽपि च संसारः, सारवानिव लक्ष्यते ॥ २॥ अर्थः- मने तो प्राणथी वाहाली एवी स्त्रीनं दर्शनज हो. कारण के बीजाउना दर्शनथी गुं वलवानुं बे ? जेना दर्शनथी निर्वाण पण सराग चतुथी याचना थाय बे ॥ १ ॥ दीर सागरना कल्लोल समान चपल नेत्रवाली या स्त्रीयोथी प्रसार एवो पल संसार, सारनूत जेवो देखाय बे. वली पण ते विचारवा लाग्यो के एक ढुंज या स्त्रीयोथी दोन पाम्यो बुं, एम नथी, परंतु ब्रह्मा जे हता, ते पण अप्स यी दोन पाम्या बे ने गौरी तथा गंगाथी माहादेव मन्मथवश थया " २१ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19 जैनकथा ग्व जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बे,गोपांगनाथी गोविंद पण पुष्पवाणना पासमां पडेला . तो ढुं जेवानो तो एमांव्रतनो मद क्यांधीज रहे? एवीरीतें अनित्य अने तुब विचारथी कल्पना कस्यो ने अमारा वेदु जणीनो समागम जेणे एवो ते परिव्राजक, संत्रांत थये ला मनने ठेकाणे लावतो कांक अमाझं ध्यान करतो थको चूप थइ बेटो अने ते ध्यानथी नोजन करतो अटकी गयो, त्यारे तेवी रीतना बनेला ते परिव्राजकने जोश्ने अमारो पिता संत्रात चित्त थइ गयो, अने कहेवा लाग्यो के महाराज! तमो जमता जमता बंध केम पड्या? जमो, जमो ? झुं तत्त्व चिंतायें करीने हाल था शीतान आपने नावतुं नथी ? एम वारं वार, जोजन करवा माटे तेनी प्रार्थना करी. त्यारे तेणें कह्यु के श्रा प्रका रना मुखथी दग्ध थयेलो ते नोजन केवी रीतें करी शके ! एम कहीने तेणें नावरहित केटलाएक ग्रासो लीधा. पनी नोजनानंतर अमारा पि तायें तेने पूब्यु के हे तापस! आपने दुःख ते गुंडे ? त्यारे तेणें कह्यु के त्याग कस्यो डे सर्वनो संग जेणे एवा मुने तमारा सरखानो संग जे ने, तेज दुःख , कारण के एकांतनक्त एवा तम सरखा सुजनजनोना उखने जोवाने दुं समर्थ थतो नथी, जो ढुं तमारे त्यां न आव्यो हत, तो मने कुःख थातज नही ? अने ते दुःख हुँ पनीथी कहीश पण हाल नहि कहूँ ? एम कहीने ते तापस पोताना स्थानप्रत्ये गयो. ते पनी अमारो पिता पण तेना वचनथी सशंक थयो बतो तेनी पडवाडे गयो, अने त्यां जश्ने एकांत स्थलमां बेठेला ते परिव्राजकने पूबवा लाग्यो के महाराज! आप शामाटे ते वखत विचारमा पड्या हता? ते कहो, त्या तापसें कह्यु के अरे! मारे तो नदीनो अने वाघनो न्याय थयो , एटले जो या तरफ जाय तो पूरमां आवेली नदीमां मूवे, अने जो बीजी तरफ जाय तो व्याघ्र खाइ जाय माटे मारे पण तेमज थयु ? जो तमो प्रबो बो, ते न कहुँ तो तमने उःख लागे , अने जो कहूं , तो या मारो तपस्वीनो धर्म जाय . तथापि तमे अमारा एकांत नक्त बो माटे हे श्रेष्ठि ! दूं तमने कहूँ , ते सांजलो. दुं जे वखतें जमवा वेठो हतो, ते वरखतें त मारी बे पुत्रीयो मुने पंखाथी पवन नाखती हती, त्यां में जमतां ज मतां तेनां अंगलक्षण जोयां, तो मने एम मालम पड्युं जे आ वेदु कन्या ले ते कुलक्षणोथी जरपूर ने अने नाथी ते शेतना कुलनो थोडा Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १६३ वखतमां नाश थाशे ? तेवी रीतना नावि कुलक्ष्यने जाणी तत्काल मारा हृदयमां महा खेद नुत्पन्न थयो. ते वखत जे तमोयें पीरसेलुं अन्न सरस हतुं, ते सर्व नीरस थ गयुं. तो पण तमोयें जारें पने वारंवार “नोजन करो, नोजन करो” एम कर्दा, त्यारे में यत्किंचित् नावरहित नोजन कयुं. ते सांजली अमारो पिता कहेवा लाग्यो जे महाराज! मार कुलनो दय न थाय तेवो कांश नपाय ? जो होय तो कहो. त्यारें तपस्वी बोल्यो के जेवो घटे तेवो नपाय जो तमो करशो, तो थाशे, पण ते करवो घणो दुष्कर ? ते सांजली श्रेष्ठी बोल्यो के कुलरदाने माटे पुष्कर कार्य हशे,ते पण करगुं ? त्यारे ते परिव्राजक बोल्यो के प्राणथी पण वनन होय परंतु निरीक्षण तथा जेथी आपणुं सर्व बगडी जतुं होय, तेवी वस्तुनो छाता पुरुपें जल दीथी त्यागज़ करवो. कारण के तेवी वस्तुनो त्याग करवाथीज श्रेय थाय बे, माटे मारूं तो ए कहेवू ले के ए तमारी वेदु प्रिय पुत्रियोने सारीरीतें नवरावी, चंदनागरु लिंपी, सभूषणोथी अलंकृत करी, शांतिकर्म करावीने एकांतमा जश्ने मंजूषामां नाखी ते मंजूषा गंगामा तरती मूको. एम कर वाथी तमारा वंशने सुख नत्पन्न थाशे? ए वाक्य सांजली मूढ जेनुं मन डे, एवो ते अमारो पिता, तेनुं कहेलु सर्व अंगीकार करी घेर आव्यो. तदनंतर अमारा पितायें उत्तम एवी मंजपा करावी, तेनां निशे सर्व मीणथी पूरावी कांही पण बोल्याविना अमने वेदुने अंदर नाखी, अने को पूछे तो कहे के जेनो विवाह करवो ने एवी या कन्याउने मंजूषामां वे सारी गंगामां वहेवराववी जोश्ये अने गंगाने जोवराववी जोयें. कारण के अमारा कुलनी एवी परंपराज , आप्रमाणें कहेतो यको परिव्राजकनी साथें पेटी उपडावी गंगातरफ चाल्यो, त्यां आवी ते पेटीने रहःस्थलमा स्थापन करीने गंगाना कांठा उपर शांतिकर्म करीने प्रातःकालने विपे ते पेटीने जलमां मूकी दीधी. पड़ी विषादयुक्त थइ घेर आवी तेणे सर्व शोकनुं कृत्य कयुं. हवे ते उष्ट परिव्राजक पण पोताना मठमां जा पोतानी धारेली इना पार पाडवाना सबबथी हर्षायमान थइ स्व शिष्यवर्गने उतावलथी कहेवा लाग्यो के हे शिष्यो! गंगादेवीयें मारा मंत्रनी सिदिने माटे पूजोपकरणें करी युक्त एवी एक मंजुषा कृपा करी हाल आणेली. तेमाटे तमो त्यां जश्ने गंगामा तरती आवती ते पेटीने त्वरित लइ आवो. पण ते Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. पेटी उघाडशो नहिं हो. कारण के जो तमो उघाडशो, तो मारे मंत्रसाध नमां विघ्न थाशे ? तेवं सांजली विस्मय पामेला ते सर्वे शिष्यो गंगाना कांठापर गंगाना प्रवाहने जोता जोता चार कोश पर्यंत चाव्या गया. प रंतु ते मंजूषा तेने दृष्टिगत था नहिं. हवे ते पेटी दृष्टि गत तेने न थ६, तेनुं कारण कहे . के एज गामनो सुनूम नामा राजा हतो, ते गं गाना कांगपर क्रीडा करतो हतो, तेणें गंगाना प्रवाहमा तरती यावती ते पेटी नजरें दीती, के तुरत लही लीधी. ने उघाडीने जोवा लाग्यो, तो तेमां अति रमणीय स्वरूपवालीयो अमने जो अने जोतांवेत का मार्त थयो बने पोताना मंत्रीने कहेवा लाग्यो, के अहो आ आश्चर्य तो जुवो ॥ यतः ॥ किन्नारी किमु किन्नरी किमतरी विद्याधरी वाऽथ वा, किं नागानुचरी किमंबरचरी किं वांबरी किन्नरी॥ किं गौरीहरि सुंदरी.किमय किं, किं चेह वागीश्वरी, तारुण्यममंजरी स्मरपुरी सादात् किमेषा नुवि ॥ ॥ ॥ पातालकन्ये किं विद्या, धर्यो स्वर्गागने च किं ॥ किं वा नृपसते एते, नो नो ब्रूत युवां च के ॥ २ ॥ अर्थः- अरे आ ते झुं नारी हो ! के किन्नरी हशे! के विद्याधरी हशे! के नागनी दासी हशे ! आकाशचरी हो! के किन्नरी हो! के झुं गौरी हशे! के विष्णुपत्नी लक्ष्मी हशे! के वली सरस्वती हो! के तारुण्यवृदनी मंजरी हशे! के आ ते रतिपतिने रहेवानी सादात् नगरी हशे ! के कोण हशे !!! तेम विचारीने अमने बेहुने पूबवा लाग्यो के हे कामलतिका ! तमो वेदु जणीयो पाताल कन्या बो, के विद्याधरी डो, के राजकन्या बो, के कोण बो? ते मुने याथा तथ्यरीतें कहो. ए प्रमाणे रागाईवचनथी राजायें अमोने पूज्युं तो पण थ तिफुःखःखित एवी अमोयें कांही पण जबाप दीधो नहिं. एवा समयमां राजानो अनिप्राय जाणीने तेनो मंत्री कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! आप विचार करो. कोइ पण प्रबल कारण विना सर्व अंगें शणगारेली अति कम नीय, तथा तारुण्यने प्राप्त थयेली एवीआ कन्याउने केम त्याग करे ? तेमाटे कोय पण पोताना स्वार्थ साधवा माटे या बेदु कन्याउने पेटीमां पूरी गं गामां वहेती मूकी लागे . माटे मारो मत तो एम ने, के या ए बेहुने काढी लइ बीजी वे कन्याउ आज मंजूषामां पूरी गंगामां वहेती मूकियें ? ते वाक्य सांजली बीजो को माह्यो माणस बोल्यो के मारो तो ए मत जे जें Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १६५ थापणने बाहिं गंगाना कांता पर बीजी बे कन्यायो उपलब्ध थावी, ते धणुं उस्तर , माटें कन्याज पानी पेटीमां मूकवी, एवी कांइ जरुर जासती नथी, माटे वनमा फरती वे वानरीयो अंदर मूकी दश्य ? ते व चन सांजली राजा खुशी थइ गयो अने कहेवा लाग्यो के तमारो विचार , ते मुने सुंदर लागे , माटे तमें जे कहो बो, तेमज करवू, आपणने नचित जे. एम कहीने अमने बेदुने पेटीमाथी लहीने ते पेटीमां वे वान रीयो मकी दीधी अने पानी जेम हती. तेमज पेटी बंध करी. पाणीमां वहेती मूकी हर्षसहित ते राजायाहिं याव्यो. हवे ते परिव्राजकना शिष्यो जे हता, ते विचार करवा लाग्या के गु रुना कहेवा प्रमाणे हजी सुधी ते पेटी तोवी नही, परंतु आपणा गुरु खोटुं तो क़दी बोलेज नहिं, माटे आपणे मुंजाइने कार्यसिह थया विना पार्बु जावू ते ठीक नही ? एम एणी वार सुधी विचार करता करता चाव्या जाय ले, तेवामां तो सुनम राजायें जेमां वे विकट वानरीयो प्ररी, तेवी ते पेटी गंगाना प्रवाहमा तरती तरती श्रावती दूरथी शिष्योयें दीती. त्यां तो ते नजीक आवी पहोंची अने तेने सर्वे जणे खेंची लीधी. लश्ने एमने एम ते पापी परिव्राजकने आपी दीधी. पढी ज्यारें सूर्य अस्त थयो, त्यारे ते गुरुयें पोताना शिष्योने कह्यु के हे शिष्यो! ढुं तो आ पेटी लश्ने मारु मंत्राराधन करवा ा मतमां बेसुं बूं, अने आ पेटी लश्ने मनी अंदर जावं मुं, तमारे तो हमणांज आ मनने हारें वारथी तालुं दश्ने दूर जश्ने बेस. आ मनी अंदर कोश्नो कां करुण शब्द थाय अथवा को तमोने बोलावे, तो पण तमारे सांजली वेसी रहे,, परंतु आ मनी आगल पण आवq नही,अने तालुं पण नघा डवू नही. कारण के तेम तमो जो आवो, तो मारे मंत्रसिदिमां विघ्न थाय? ते सांजली सर्व शिष्योयें तेनी कहेली सर्व वात कबूल करी. पली ते पापी परिव्राजक पोताना मठमां पेटी लइ हर्ष सहित मनुं चार दश्ने अंदर पेठो अने सर्व शिष्यो तेना कहेवा प्रमाणे मना हारने बारथी तालुं दश्ने दूर जा बेगा. हवे ते परिव्राजक, पेटीनी समीप जश्ने कहेवा लाग्यो के हे नई! तमा रीपर तुष्टायमान थयेलां गंगादेवीयें कपायें करी देवस्वरूप एवो ढुं रूप वर Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तमोने याप्यो बे, तेने स्वीकार करो. एम करता हूं पण तमा। पासें याचना करूं बुं जे रतिसमान रूपवती तमें मुने पतित्वे अंगीकार करो. ढुं तमारो किंकर ,माटे दया करी मुनेज स्वामी करी कृतार्थ करो. एम कही जेवामां ते पेटी उघाडी अंदर हाथ नाखे , तेवामां तो स्वनावथी अतिचंचल, पेटीनी अंदर घणी वार पूरवाथी घणीज क्रोधायमान थ येली, घणा वखतनी नखथी सूकाय गयेला उदरवाली, एवी बे वानरी योयें तेनो हाथ पकड्यो, पकडीने एकदम ठेकडो मारी पेटीथी बार नीकली पोताना दांतोयें करी ते तपस्वीना कान, नाक, होत, कपाल, गाल, करडी खाधां, तथा हाथ, पग वगेरे सर्व बीजा अंगोने तीक्ष्ण नखोयें करी वतरडी लोहीजाण करी मूक्यो. ते वरवत पारिव्राजकथी मने बार तालुं दीg होवार्थी कमाड नांगी बाहेर पण जवायुं नही अने अ त्यंत दुःखी थयो. त्यारें महोटी राड्यो नाखी पोकार करवा लाग्यो के हे शिष्यो! जलदी धोडो धोडो!! अरे या मुष्ट वानरीयो मारूं न कण करी जाय !!! ा प्रमाणे विलाप करतो करतो नूतलने विषे नमरी खाई पडी गयो. हवे शिष्यो जे हता, ते पोतें गुरुनो विलाप सांन ले ले परंतु गुरुयें पूर्वे कयुं , के “कोई करुणशद करे, के बोलावे, तो पण तमारे मत नजीक आवQज नही अने तालुं पण उघाडवू नही" जो यावशो, तो मारी मंत्रसिदिमां विघ्न थाशे? ते संजारी सर्व शिष्यमांहेलो कोइपण शिष्य, त्यां गयो नहिं. पजी तेना सर्व अंगोने दुधातुर एवी वे वानरीयोयें चार पहोर पर्यंत खूब चूष्यां, तेथी ते परिव्राजक प्राणमुक्त थयो, परंतु अज्ञानतपथी ते मरण पामीने रासपणे उत्पन्न थयो. अने विनंगझाने करी राक्षसावतारमां पण तेणे एवं जाण्यं जे पूर्वजन्में कामा तुर पणाथी में वरवा श्वेली अने युक्तियें करी पेटीमा नखावी गंगामां वहेती मूकावेली एवी बे कन्याउनुं सुनूमराजायें हरण कां ने, अने लुच्चाश्थी तेने बदले बे वानरीयोने पेटीमां मूकी मारां प्राण लेवराव्यां , एम वारं वार ते सूनूमराजानुं वैर संजारी ते सुनूमराजाने मारी नाख्यो, अने तेना आ सर्व नगरने उजड कपुं. अने पूर्व जन्मनो अमारी साथें अपूर्व प्रेम होवाथी अमारो बचाव कस्यो. वली हे चतुर पुरुष! आ एक शीशीमां कालुं अने एक शीशीमां धोलुं, ए वे जातनुं अंजन बे, ते पण ते राक्षस Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १६७ नुज करे डे, ज्यारे ते राक्षस बाहेर जाय , त्यारें अमो बेदु जणीयोने श्वेत अंजन आंजे , तेथी अमो बेदु हाथणीयो थर जायें बैयें, अने पालो ज्यारे फरीने आवे , त्यारें पायं आ कृष्ण अंजन यांजे में, तेथी पानी अमो बेदु, स्त्रीयो थइ जायें जैयें. __ आप्रमाणे अमारूं वृत्तांत तो आप सुझ जन पासें अमोये सविस्तर कह्यु, हवे अमारा अंतःकरणनो जे विचार जे, ते अमो आपने कहीये बैयें. के हे सऊन! आप सावकाशथी श्रवण करो. शून्य घरमां रहीने अत्यंत मुःखित एवी अमोने आ यमराज सरखा राक्षसथकी दया करीबोडावो. तेवां ते कन्याउनां वचनथी कारुण्ययुक्त, तथा प्रार्थनाना नंगथी जय वालो एवो ते सुमित्र, कहेवा लाग्यो के हे स्त्रीयो! ते राक्षस, केटले दिवसें अाहिं आवे ने ? अने ते क्यां जाय ? त्यारे ते स्त्रीयोयें कह्यु के ते राइस, रादसहीपमा जईने वेत्रण दिवसें पालो जलदी बाहिं आवे . अने आहिं तो एक पद अथवा मास पर्यंत रहे ले. अने प्रा जनी रातें तो ते जरूर आववानोज , माटे हे नाग्यशालिन ! तमो हेठ ल जोयरामां प्रउन्नरीतें रहो. प्रजातमां पाडगे ते पूर्वोक्त स्थाने जातो रहेशे. ते पनी आपणे यथेच अने यथोचित कार्य करा. पनी सुमित्र पण ते सर्व वृत्तांत सांजलीने स्त्रीयोना कहेवा प्रमाणे पावू अंजन आंजी पूर्व वत् हाथणीयो करीने त्यांथी नीचे उतरी ते राज महेलना नोंयरा संताश्वेगे. संध्यासमय जारें थयो,त्यारे ते राक्स पण तूर्णताथी त्यां आव्यो,आवीने नित्यनी पेठे अंजन यांजी तेने स्त्रीयो करी ने कहेवा लाग्यो, के अरे! आहिं कोऽपण मनुष्यनो गंध आवे ? ए सांजली ते बेदु जणीयो कहेवा लागीयो के आहिं कोण मनुष्य के ? अमें वे मनुष्य बैयें, बीजो कोई मनुष्य आंही बेज नही. एवी रीतें कहीने ते वेद जगीयोयें राइसने विश्वास पमाड्यो. पनी रात्रि रही ने सवारमा पाडो राइस, रादसहीपमा जवा तैयार थयो. त्यारे ते बेदुजणीयो कहेवा लागी, के अमो आहीं बीये बैये, माटे तमो पाबा जलदी आवजो. ए प्रमाणे स्त्रीयोनां सानुराग वचन सांजली खुशी थइ पालुं वेदु जणीयोने अंजन प्रांजी हाथणीयो बनावी चाल्यो गयो. सुमित्रं राक्षस, निर्गमन थयुं ते जाएयु. तेथी तुरत पाबो मेहेलनी उपर चडी गयो. अने त्यां अंजनना योगथी ते बेदुजणीयोने हाथणीयो मटाडी, Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. अंजननी वेढु शीशीयो लइ,ते राक्सें संग्रह करेलां रत्नोनो नरेलो महोटो कुंज लई ते बेहुने स्त्रीरूपें उपरथी नीचे उतारी, तेमां एक जणीने उष्ट्री बनावी अने बीजी स्त्रीसाथे ते नष्टी नपर चडी बेठो,अने त्यांची तुरत ज्यां पोता नो मित्र राज्यने प्राप्त थयेलो , ते शालपुर तरफ जवा माटे निकटयो. पड़ी सुमित्र केटला एक दिवसोयें कोइएक मंत्रसिह पुरूपने मव्यो. अने तेने पोतानुं बनेनुं सर्व वृत्तांत सविस्तर कही दीधुं. जाण्यु डे सर्व वृत्तांत जेणे एवा ते सिमपुरुषे तेनुं अत्यंत आश्वासन कस्युं अने कह्यं के हे मित्र! तुं निर्नय रहेजे. तारे रासनो कोइ पण तरेनो जय राखवो नहिं. हवे ते राक्स पालो पोताने स्थानकें आवीने जुवे ,त्यां पोतानीवे हाथ गीयो रूप स्त्रीयो तथा रत्ननो नरेलो कुंन,तथा श्वेत, कृष्ण एवी अंजननी वे शिंशियो, ए सर्व दीतुं नहिं. त्यारें तो रादस, अत्यंत क्रोधांध थप गयो, अने नष्ट्रीना पगलाने अनुसार एकदम त्यांथी चाल्यो, ते चालतां चालतां जे ठेकाणे सुमित्र सिह पुरुपने मलीने रह्यो बे, ते स्थानपासें आव्यो, त्यां अत्यंत रुजेनी कारुति , अने महाउष्ट, कू, कू, एवो मुखमाथी शब्द करता, त्रण लोकने कंपावता, सुमित्रनी पडवाडे आवेला एवा ते राक्सने बलवान् सिमपुरुपें दीठो, अने देखता वेंतज थांन लानी पढ़ें स्थिर करी मूक्यो, जेथी ते हाली पण न शके अने चाली पण न शके ? पड़ी ते रादस तेनुं माहात्म्य न जाणीने चमत्कार पाम्यो थको कहेवा लाग्यो के अहो! रासयकी पण सिमपुरुपो मंत्र शास्त्रमा अति प्रवीण होय , ते वात सांजली हती खरी, पण हे सिहपुरुष ! तमोयें ते वात प्रत्यद अमोने देखाडी. माटे हे दयालु सिजन ! तमोयें स्तंन समान तथा जड तुल्य मने करी नाख्यो , माटे बोडी मूको. अने किंकरीनूत थयेला मने कांईक आझा फर मावो. यावां तेनां वचन सांजली सिहपुरुषं कह्यु के हे पापिष्ट ! उष्ट ! पुरात्मन् ! धिक पडो तारा अवतारमा ? जा, ढुं तुने आज्ञा तो एटलीज करूं बु. के मवरणागत थयेला आ सुमित्रनी साथें तुं वैर राखीश नहिं खबर दार, जो जरा पण वैर राख्यु डे तो ? ते सांजली रादसे कह्यु के हे घृणानु पुरुष ! तमारा कहेवा प्रमाणे ढुं निचे करीश. परंतु महेरबानी करीया प्राणथकी पण वनन एवी मार। Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २६॥ बेस्त्रीयो मने पानी सोंपावो. एवां वचन सांजली ते पलादने सिह पुरु प्रतिबोध देवा मांम्यो, के हे पुरुषाद ! जे स्त्रीयो माटें तुं पूर्वजन्मने विपे तपोनंग पाम्यो, तथा वानरीना हाथथी नूंमे हाले मरण पाम्यो, अने वली मिथ्या कष्ट क्रियाकरी देवर्गतिने (रासपणाने) प्राप्त थयो, तो पण हजी तुं नरकगतिनुं कारणनूत एवं जे परस्त्रीगमन तेने बोडवाने तो नथी ? एवी रीतें सिम पुरुषे अत्यंत तेने धिक्कारी दीधो. तेथी ते राइस प्रतिबोध पामीने पोतानो सुमित्रे आणेलो रत्ननो कुंन, तथा वे स्त्रीयो ते सुमित्रने सोंपी वैर त्याग करी पोताना करेला सर्व अपराधने खमावी स्वस्थान प्रत्ये गयो. राक्षस गया पली अत्यंत हर्षनरें करी प्रफुनित ले देह जेनो एवो सुमित्र,ते कृतोपकारी सिम पुरुषनी स्तुति करवा लाग्यो. के हे सिजन! परोपकारिन् ! हे दयालो ! हे सत्त्ववान् ! साहसिक, धीर, ते बारखा जगतमां आपज बगे. कारण के आ उष्ट, पापिष्ट, एवा ए रासने पण प्रतिबोध पमाड्यो ? वली माझं पण स्त्रीयो सहित आ रहाण कयुं, माटे आपनो गुण शिंगण ढुं क्यारें थश्श! एम ते सिम पुरुपनी स्तुति करी, त्यारे ते सिम पण तुमित्रनी प्रशंसा करी केहेवा लाग्यो के हे सुमित्र ! साहसिक जनमां अने धर्मिष्ठ जनमां तो तमेंज श्रेष्ठ देखाउ बो. कारण के मंत्रविद्यादिथी वर्जित एवा पण तमोयें या प्रकारचें महोटुं सा हस कां ? माटे तमोने पण धन्यवाद . परंतु साहस करवाथीज का र्यनी सिदि थाय ॥ यतः ॥ विजेतव्या लंका चरणतरणीयो जलनिधि, विपदः पौलस्त्यो रणनुवि सहायाश्च कपयः ॥ तथाप्याजो रामः सकल मवधीशदसकुलं, क्रियासिदिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे ॥ १ ॥र थस्यैकं चक्रं नुजगयमिताः सप्त तुरगा, निरालंबोमार्गश्चरण विकलः सारथि रपि ॥ रविः पारं याति प्रतिदिनमपारस्य ननसः, क्रियासिदिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे ॥॥ अर्थः-जे श्रीरामचंइने समुजे , ते तो पगथी उतरवो ने, जो शत्रु जोश्यें, तो रावण ,अने रणसंग्राममां सहायकारक जो जोयें, तो वनचर वांदरा ने, तथापि ते श्रीरामचंई साहसपणाथी आखा राक्सना कुलनो संहार करी नाख्यो, माटे महोटा पुरुपने कार्य सिदि जेने, ते पोताना पराक्रममांज बे, परंतु बीजा नपकरणोमां नथी ॥१॥ जे सूर्यना रथने एकज पै९ ,अने तेने रथें जोडेला जे सात घो २२ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. डाउने, ते तो सर्पोथी बंधायेला बे,चालवानो मार्ग , ते अवलंबनविना नो ने एटने अाकाश ने, अने रथनो सारथि जे अरुण बे,ते पगरहित ने तथापि ते रवि, साहसथी प्रतिदिन अपार एवा आकाशना मार्गने कापेले. माटे कार्य सिदि जे ,ते सत्वमा रहेली, पण बीजा उपकरणोमा रहेली नथी. ए प्रमाणे मुमित्रनी प्रकृष्ट प्रशंसा करी ते सिम पुरुप,चाव्यो गयो. हवे सुमित्र पण चालतो चालतो ज्यां पोतानो मित्र वीरांगद कुमार राज्यगादीपर वेतो , ते महाशाल नगरप्रत्ये आव्यो, त्यां यावी नाडे एक घर लश्ने रह्यो. पनी गंगा अने उमा साथें जेम शिवजी रमे, तेम पो तानी वे स्त्रीयो साथें रमतां कालदेप करवा लाग्यो. हवे जे रतिसेना वेश्या हती तेनुं शुं ययुं ? ते कहे . के ते रतिसेना वेश्या ज्यारें सुमित्रनो मणि चोरावाथी सुमित्र पोतानी पासेंथी निकल्यो, त्यार पनी ते चोरेला मणिथी कांही पण न मलवाथी पटावा लागी. वली इव्य नो व्यय थवा लाग्यो अने घj इव्य मलतुं हतुं ते बंध थयु. एम जाणी तेणें त्रण उपवास कस्या अने पडी पोतानी पुत्रीने कहेवा लागी के पुत्रि! हवे बीजा को धनवाननी साथें तुं क्रीडा कर. अने तेनी पामेंथी इव्य कमाइ मधुर मधुर जोजन कर,कारण के आपणो स्वामी तो केवल धनज बे,तेथी आपणुं नाम वारांगना पडयु ? वचन सांजली जेने सुमि त्रने विपेज दृढ आग्रह छे तेवी तेनी पुत्री कहेवा लागी के हे मात! जेम समुइ जे , ते कोइदिवस, नदियोनां पाणी घणांज अंदर प्राववाथी पण तृप्ति पामतो नथी, वली जेम घणां काष्ठ नाखवाथी दुताशन तृप्त थातो नथी, तेम हे पापिणि! तुं पण मारा कांत एवा सुमित्रे आपेला इव्यथी तृप्त थइ नहिं. ढुं कदाचित् अग्निमां पडी बलीने जस्मीनूत थइ जावं कबूल करीश, पण ते सुमित्र विना आ कलेवरथी उत्तममां उत्तम कोइ पण धनवान् पुरुषनो संग ढुं करनार नथी! ा प्रकारनो पोतानी पुत्रीनो खरो आग्रहपूर्वक निश्चय जाणीने तेने केटलीएक गाल्यो दीधीने त्रीजे उपवासें पारणुं करीपाठी सुमित्रने तेज गाममां शोधवा माटे निकली. एम प्रतिदिन ते आखा गाममां शोधवा लागी. पण ते मल्यो नहिं. पली साव ऽव्य मल पण बंध थ६ गयुं तेथी ते चिंताग्रस्त थ गइ. एम करतां केटलाएक दिवस पली उत्तम अलंकार अने सुशोनित वस्त्रो जेणे धारण Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १७१ कयां ने, एवा ते सुमित्रने रस्तामां चालतो ते कुटिनीय दीठो. अने तेनी पासे आवी अत्यंत आग्रह करी पगे लागी ने पोताने घेर तेडी लावी. अने कपटथी कहेवा लागी के हे सुजग ! स्नेहें करी मुने कह्या विना तम जेवा सुझपुरुपने प्रवास करवो, ते उचित ? अा गरीब अने नि >प एवी मारी सुतानो तमोयें केम त्याग कस्यो ? अहो प्राणप्रिय ! ः सह एवा तमारा विरदयी मारा प्राण रहेवानो पण मुने संदेह थयो हतो, ते मांम मांग हुँ जीवती रही वू, वली मारा परिवार सहित में आपने बहुज शोध्या, पण कोइ ठेकाणे आपनो पत्तोज लाग्यो नहिं. मा राथी आपने शोध्या विनानुं को चैत्य, के मार्ग, के प्रागणुं, के वन, के को पण स्थल राज नथी, अटलो बधो स्नेह राखतां उतां पण आपने अमे हिसाबमांज यावतां नथी माटे आपनुं हृदय, नपरथी पतंगरंग जेवू सुशोनित ने अने अंदरथी पाणण समान कतिन लागे , कारण के निर पराधी अने अंगीकत एवां अमोने आपें दर्शन दीधुंज नहीं ? या प्रका रनां ते वृकुहिनीनां वचन साननी सुमित्रं विचास्यं जे अहो अद्यापि पर्यंत प्रा पोतानुं पाप बोडती नथी. अने केवां मीठां वचनयी मुने मोह करे ने? अने मारुं चिंतामणि रत्न जे चोरी गले, तेनी तो वात कहेती पण नथी. परंतु तेणें मने ठग्यो , तो पण एने उगुं? कह्यु ले के 'शतं प्रति शायं कुर्यात' एटने शजननी साथें शाम्यज करवं जोयें, ते विना ते मानेज नहि ? एम विचारी सुमित्र ते वृदा प्रत्यें कहेवा लाग्यो के, ढुं कार्यना उत्सुकपणाथी दूर देश गयेलो हतो, त्यांथी वेपार माटे घणुं करियाणुं लावी हजी हमणांज ा गाममां याव्यो लु, त मारी पासें मारे थाही आव्यो ने तुरतज आवq हतुं, पण जाजुं करिया| हतुं तेथी तेनी उतारवानी ने मूकवानी खटपटमां दुं श्रावी शक्यो नही, ते माफ करजो. अने दूरदेशांतर हुँ गयो हतो त्यां पण तमोने तथा तमारी दीकरीने घडीएक में विसारेलां नथी. खातां, पीतां, दिवसमां, रातमां, तमोने हुँ नूव्योज नथी. जोढुं खोटुं बोलतो हवं तो मने तमाराज शपथ के ? या प्रकारचं सुमित्रनुं वाक्य सांजली ते कुट्टिनीयें विचायुं जे या म हारूं कहेलुं वचन खोटुं जाणतो नथी. पाडो वली पूर्वनी पेठे व्य आ पवा मांमशे ? परंतु तेनो चोरी लोधेलो चिंतामणि तो पालो आपीश Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. नही ? एम विचारी ते कुट्टिनी, अत्यंत मनमां हर्षायमान थइ. पी सुमित्रे ते कुट्टिनीने कयुं के या तमारी पुत्रीने याहिं एकांतमां मारी पासें मोकलो, तो ढुं कांइक थापुं ? ते सांगली इव्यलोनथी तेनी साथै एकांतमां पोतानी पुत्रीने मोकली, त्यां ते गइ के तुरत तेने राक्षसना घरथी उपलब्ध ययेनुं अंजन यांजी हाथी बनावी हर्षायमान थ‍ ज लदी पोताने उतारे यावतो रह्यो. हवे नोजननो वखत थइ गयो, तो पण जारें पोतानी पुत्री पाठी यावी तहिं, त्या ते वृद्धा कुट्टिनी महोटो साढ़ करी बोलावा लागी, तो पण ज्यारें ते न यावी, त्या तेणें विचार कस्यो के ते केम हजी सुधी यावती नथी ? अरे तेने सुमित्र तो नहिं जइ गयो होय ? एम विचारी संभ्रमसहित तुरत त्यां प्रवीने जुवे, तो पोतानी पुत्री न दीवी ने एक हाथणी बांधेली दीवी. तेने जोने विचारवा लागी के अरे या हायणी रूप रा सीयें मारी पुत्रीनुं जरूर नक्षण कयुं हो ? एम विचारी मनमां दुःख य वाथी मोहोटी पोक मूकीने रडवा लागी के अरे कोई परदेशी यें हाथणी रूप राक्षसी पासें मारी पुत्रीनुं नक्षल कराव्युं ? तेवो पोकार तेनो सांनती पोतानो स्वजन वर्ग तथा बीजां लोको पण त्यां एकतां थइ गयां, सर्वजनोयें ते कुट्टिनी मोशीने पूजयं के हे मोशी ! या हाथणीनो अधिकारी कोण बे ? त्यारें ते कहेवा लागी के जेनुं नाम, ठाम, कांइ हुँ जाणती नथी, तेवो कोइक परदेशी माणस बे, तेणे कपटथी मारी सुताने यावा रहस्य स्थलमां खालीने कोण जाणे क्यां दृष्ट करी दीधी वली या हायणी कोण जाणे क्यांथी लाग्यो अने क्यारें बांधी ? तथा तेव देशी पण क्यां गयो ? एनी मने कांइ पण खबरज पडी नथी. खरे ! मने तो एम जागे के या हाथणीरूप राक्षसीपासें मारी पुत्रीनुं तेणे नक्षण कराव्युं, अने ते नाशी गयो ? ते सांजली सर्व लोको कहेवा लाग्यां के हे वृद्धा ! श्रमने तो एम जासे बे, के ते पुरुषनो कांइक तारी पुत्रीयें अप राध को हो, तेथी रुष्ट थने तेरो हाथणी करी दीधी हशे ? माटे जलदी जश्ने राजापासें फरियाद कर ने जो फरियाद करवामां विलंब लगाडीश, तो ते परदेशी माटे क्यांहिक पलायन थइ खाघो जातो रहेशे ? ए वात सांजली तुरत त्यांथी दोडी वीरांगद राजानी सनामां प्रावी पूर्वोक्त सर्व Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नत्र. २७२ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. वातनी फरीयाद करी.ते सांजली वीरांगद राजा विचारवा लाग्यो के प्रावृक्षा ना कहेवा परथी एम लागे डे के झुं ते मारो मित्र सुमित्र तो नहिं होय? कारण के तेवू पराक्रम तेनेज घटे ले. पडी वीरांगद राजायें विचार करी ते कुहिनीने पूर्वा के तारे ते पुरुपनो समागम कये दाडे थयो ? त्यारें तेणे कमु के महाराज! आपने जे दिवसे राज्याभिषेक थयो, ते दिवसें मारे घेर ते परदेशी आव्यो हतो. ते वचन सांजली वीरांगद राजायें एकदम पोता ना सीपाश्योने कह्यु के तमो जलदी जा. अने प्रातृ स्त्री ने बतावे तेने मारी पासें नक्तिनाव तथा विनयथी तेडी लावो. पनी ते अनुचरो कुहिनीने साथें गया अने पूबता पूबता सुमित्रना न तारा पासें ाव्या, अने ते उतारामां बेठेला सुमित्रने जोड्ने कुहिनी कह्यु के आज पुरुचे मारी निरपराधी दीकरीने हाथणी करी नारखी छे ? माटे तेने पकडो. सीपाश्यो अंदर जश्ने ते सुमित्रने प्रणाम करी सविनय क हेवा लाग्या के बापने अमारा राजा जरा बोलावे , माटे पधारो. ते सां नली सुमित्र कुमार, वस्त्रालंकार पहेरी तेनी साथें राजसनामां आव्यो. त्यां तो तेने वीरांगद राजायें दूरथी जोयो, के तुरत जाण्यं के अहो! था तो हुँ धारतो हतो, तेज पंमें मारो प्राणथी पण वचन सुमित्रनामा मित्रज आव्यो? एम जाणी प्रेमथी एकदम संत्रांतचित्त थ राज्यासन परथी उठीने तेरों बातीमां घाली बथ जीडीने तेनुं गाढ अलिंगन को. अने हसते मोढे कह्यु के हे धूर्तराज! सन्मित्र! खुशीमां तो बो? ते सांजली मस्तक नमावी सुमित्र पण कहेवा लाग्यो के आपना प्रसादथकी खु शीमांज जं. त्यारें वली वीरांगद राजायें हसीने कह्यु के ते तो तीक. पण आ बीचारी १६ स्त्रीनी एकज एक सुताने हाथणी केम करी दीधी? तेनुं कारण कहो. त्यारें हसता मुखथी सुमित्र बोल्यो के ज्यारें ए लोनणी मोशीनी दीकरी मनुष्य हती, त्यारे तेने बीचारीने अन्नपानादिक वगेरे जोजन कराववानो खरच थतो हतो, तेथी में तेने हाल करनी करी नाखी , तो हवे ते वन वगेरेमा जश् वृपनवने यथेच चरशे, तेथी वृक्षाने अन्ननो गण था. एमां में तेनुं खराब ते गुं कर्तुं ? ए सांजली जरा क्रोधांध थइ कहेवा लागी के हे ऐंजालिक ! वृथा उपहास करवो बोडी दे. ए तारुं मापण हे ते सर्वे में जाण्युं ? बीजी वात पडती मूक. पण Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. मारी सुताने पानी हती एम करी आप, नहिं तो ढुं जेवी कोइ जुमी नथी? त्यारें सुमित्र बोल्यो के था तो तारी दीकरीनेज हाथणी करी ने पण मारी दाऊ तो क्यारें उलाय, के ज्याने ढुं तुनेज महोटा पेटवाली गधेडी बनावीने उकरडमांथी विष्टा चरावं, मूत्र पीवरा, ? अने मारा मापणनी पण ता रेज तुनें मालम पडे ? ते विना मानम पडे नहिं. हवे पेलो तें चोरी लीधेलो मारो मणि तो पालो आप. ते सांजली ने राजा कहेवा लाग्यो के वली मणि केवो? त्यारें सुमित्र कहे के महाराज! जेना प्रतापथी यापणने आ गामनी बाहेर उपवनमां सर्व शरीरनुं सुख साधन प्रगट थयुं हतुं तेज मारो मणि, आ पापणीयें चोरी लीधेलो . ते सांजली को धायमान थयेलो ते वीरांगद राजा वृक्षाने जोरथी कहेवा लाग्यो के अरे उष्टा ! धृष्टा! प्रत्यद तस्करी! मारा धावा सुज्ञ मित्रने पण तें तग्यो ? त्यारे ते वृक्षा नयनीत या थर थर धूजती धूजती सुमित्रना पगमां पडी, मोढामां प्रांगली दइने कहेवा लागी के हवे मारूं रक्षण करो. रकृष्ण करो. “शरणमां आवेला उशमननी पण रक्षा करवी ते उत्तम जनने उचित ने," ते सांजली झानवान् एवा सुमित्रे राजानी विनति करी ते मोशी पर चडेलो क्रोध उतरावी दीधो. ते वखत तुरत तेणें चोरेलो जे मणि हतो तेने घेरथी मगावी सुमित्रने हाथमां बापी दीधो. त्यारे सु मित्रं तेनी दीकरीने पाली हाथणी मटाडी स्त्री बनावी दीधी. पनी पोतानी मातानं यावं उष्ट चरित्र जाणी ते रतिसेनानी पुत्रीनो प्रेम सुमित्र पर पूर्वे हतो, तेथी वधारे थयो. हवे ते कुट्टिणी पण पोतानी दीकरीने लइने पोताने घेर आवा. अने ते सुमित्रं पण राजानी याज्ञा लइने रतिसेनानी पुत्रीने पोताने वश करी. पनी हृष्ट थयेलो वीरांगद राजा सुमित्र प्रत्ये कहेवा लाग्यो, के हे नाई! तो मने कह्या विनाज जुदा पड। जश्ने तुरत तमो क्यां गया ? अने झुं थयुं ? अने क्यां रह्या ? गुं सुख मल्युं ? अने झुं दुःख प्राप्त थयुं ? ए सर्व कुतूहल, ढुं सांजलवाने बं, माटे मने कहो. त्यारे सुमित्र पण मणि प्राप्त थयो त्यांथी आरंजी ने पोतें पाबो वीरांगद पासें आव्यो, त्यां सुधी, सर्व वृत्तांत कहेतो हवो. ते सर्व वृत्तांत सांजली चमत्कार पामेलो वीरांगद राजा सुमित्रने कहे जे. के हे मित्र ! पथ्याहारथकी जेम नीरोगता प्राप्त थाय ने, तथा पु Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. १७५ एथी जेम स्वर्ग ने मोह प्राप्त थाय बे. तेम व्यापारथी लक्ष्मी यथेष्ट प्राप्त थाय बे. ते सांगली सुमित्रे कयुं के हे प्रनो ! कोदराना ढगलानी पेठें पुण्यविना व्यापार वगेरे सर्व व्यर्थ थ जाय बे. परम पदार्थो तो प्राचीन पुण्योथीज प्राप्त थाय बे. " -- यतः ॥ लक्ष्मीदर्शनमयी वपुः सुखमयं श्रद्धामयं मानसं धर्मः शीलदया मयः सुचरितः श्रेणीमयं जीवितम् ॥ बुद्धिः शास्त्रमयी सुधारसमयं वाग्वैजवो कुंनितः व्यापारश्च परार्थसाधनपटुः पुण्यैर्विना नाप्यते ॥ १ ॥ यदुर्जनं दुर्गम दूरसंस्थितं वशे यदन्यस्य च दुर्जनाश्रितम् ॥ सुखं नवेनटिकल लीलया वरं, पुण्यं कृतं प्राग् यदि जीव पीवरम् ॥ २ ॥ अर्थः- दानमां देवाय एवी लक्ष्मी, नीरोगी एवं शरीर, श्रद्धायुक्त मन, सारी रीतें श्राचरण करेलो एवो दयामय धर्म, लांबु खायुष्य, शास्त्रप्रचुरबुद्धि, अमृतरस समान वाणीनो वैभव, इव्य मलवामां योग्य एवो व्यापार, एसर्व चीज, पूर्व जन्मकृत पुण्यविना प्राप्त याती नयी ॥ १ ॥ डुर्लन, दुर्गम, दूर रहेली, बीजाने वश पडेली, दुर्जन पासें रहेली, एवी सुखमय जे वस्तु बे, ते हे जीव ! तें जो पूर्वजन्में अत्यंत पुण्य कस्युं हो, तो तुने निथें रमतमा मां प्रयास विना प्राप्त याशे. माटे हे स्वामी ! आपने जे राज्यलक्ष्मी, प्रयासविना एनीज मेले मली ले, ते केवल पुष्यनोज महिमा ते. वली जुवो, मने पण मणि मल्यो, स्त्रीयो मनी, तथा रस्तामां सिद्ध मव्यो, राक्ष सनो पराजय थयो, पाठा जुदा पडेला यापडे मव्या, तथा सर्व बीजां सुख जे कांई मल्यां, ते सर्व पुण्यनोज प्रताप बे. हवे जो प्राप जरा ध्यान आपो, तो ते राक्षसें करेलुं उजड गाम प्रापणे वसावीयें ? अने जे राक्षस रहेतो हतोते, ते स्थान मूकी बीजे स्थानें गयो d. एवात सांजली वीरांगद कुमार प्रसन्न थयो. पठी गुवर्णवाला दूध, खने जलनी पेठें बेदु जण परस्पर प्रीति राखी घणो एक काल सुखमां निर्गमन करवा लाग्या. एक दिवस वीरांगद राजा पोताना मित्रना कहेवा प्रमाणें ते राक्षसें उजड करेला महानगरमां जइ नगर वसाव्यं यने त्यां पोतानी खाज्ञा वरतावी ने पालो पोताने जेनुं राज मल्युं बे ते शालनगर प्रत्ये याव्यो पढी त्यां सुखरूप समुइमां मग्न थ राज्यने यथान्याय पालवा मांnj. हवे या प्रमाणनी सर्व नवीन नवीन कथा कहेनारो कोई नह Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ते रत्नशिख राजाने कहे , के हे राजन् ! आ में सर्व वीरांगद कुमार तथा सुमित्र मित्रनुं वृत्तांत कह्यु, ते वितथ जाणशो नही. माटे हे नृप! था इतिहासथी आपणे गुं समजवू जाइये के पुण्य विना व्यवसाय सर्व खोटो . यतः ॥ यत्र तत्रैव वा यांतु, करोतु व्यवसायकं ॥ सुस्तीजनते सौख्यं, सुवीरांगदराजवत् ॥ अर्थः-आहीं जाय, वली बीजे जाय, व्यव साय एटले व्यापार पण नासे तेवो करे, परंतु सुरुती जे जीव ,ते वीरां गद कुमारनी पेठे सुखने पामे दे अने बीजाने सुख मलतुंज नथी. __ या प्रकारनी नट्टनी कथा सांजली ने रत्नशिख राजा विचारवा लाग्यो के अहो आवां सुधारस समान धीर पुरुषोनां जे चरित्र , तेने सांजलतां मने तृप्तिज थाती नथी ? यतः ॥ उत्तमानां च कोमानः, श्रिया वंशक्रमो व्या॥श्वानोपिनयमनाति, संतुष्टः स्वामिनाऽर्पितम् ॥१॥ पंचाननोवह त्वेकां प्रकटं पुरुषार्थताम् ॥ जव्धोमृगेंशब्दोत्र, यैनैव निजविक्रमात ॥ २ ॥ अर्थः- उत्तम पुरुपने वंश परंपरायें प्राप्त थयेली सदनीयें करी अनिमान गुं करवू ? करबुज नहिं. कारण के पोताना स्वामीयें प्रापेला नयने संतुष्ट थश्ने श्वान पण खाय , अर्थात् वंशपरंपराथी आवेली लक्ष्मीची उत्तम पुरुपने अजिमान आणवु उचित नथी. वली सिंह जे , ते एक पोतानाज पुरुषार्थने वहन करे ले. जुवो के जेणे पोताना पुरुषा र्थथी मृगें एवो शब्द उपलब्ध करेलो . ते माटे ढुं पण देशांतर जश्ने महारा पुण्यनी परीक्षा करीश ? आवी रीतें मनमा निश्चय करीने पो ताना बुद्धिमान एवा सुनश्नामा प्रधानने सर्व अनिप्राय कह्यो. ते सां नली प्रधानें कह्यु के हे देव ! आपनी जे इला थइ, तेने कोण हणी शके ? तो पण आपने किंचित् ढुं विज्ञापन करुं बु. के हे विनो ! पर देश ले, ते दुःखें करी जवाय तेवो बे, रस्ता पण घणाज सुःखदायक ले तेमां मनुष्यो मरण पण पामे , तेमां वैरीयो पण बल कपटनी जा करनारा होय . तेम बतां वली आपनुं शरीर घणुंज सुकोमल . माटे परदेश जवालायक आप नथी. वली आपने राज्य पण प्राप्त थयेचुंज ने. तो हे स्वामिन् ! ते प्राचीन पुण्यनुज फल जे. माटे बीजा फलनी वांडा करीने आपने युं करवानुं ? एम मंत्रीये रत्नशिख राजाने घj समजाव्यो, तो पण तेणे ते मंत्रीनुं वचन मान्यु नहिं. अने पनी पोतानो Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १७७ अनिप्राय कोइने पण कह्या विना पाउली रातें उठी हाथमा एक खड्ग ल इने नगरथी एकदम बाहेर निकली गयो. अने सारां शकुन जोइ उत्तर दिशा तरफ चालवा लाग्यो. हवे मनोरथरूप रथमा बेनेलो, अने पुण्य रूप सैन्ये सहित, संतोषरूप मंत्रिवर्गयुक्त थको ग्राम, आकर, खेट, ख वंट, पर्वत, नदी, तलाव प्रमुखने विषे नवां नवां कौतुकोने जोतो तथा मनोहरनेत्रवाली स्त्रीयोयें पग पगनेविषे जोवातो, दमाने धारण करतो, सुशीलवान्, दुधा तृषाने सहन करतो, नूमिमां शयन करतो, संतुष्टमन युक्त, मुनि मार्गस्थ, कोइ पण स्थलने विषे प्रतिबंधने न पामतो, अर्थात् सर्व स्थलमा निर्नयपणाथी चालतो, एवो ते रत्नशिख राजा, कमें करी विषम घटवीने विपे याव्यो. त्यां थोडी एक नूमि बागल चाले बे, तेवामां तो जेणें गलामा सोनानी माला पहेरेली अने शंखमालाथी सुशोनित कान जेना, महोटो शब्द करतो मनोहर एवी घंटाउनी मालायें करी शो जायमान ग्रीवा जेनी, एवा एक आश्चर्यने करावनार मदोन्मत्त हाथीने दीतो. ते जोक्ने विचारवा लाग्यो के अरे! आवा निर्जनवनमां घावो मदो न्मत्त हाथी क्याथी आव्यो दशे? एम विचार। सिंहनी पर्ने निर्नय थश्ने उनो , तेवामां तो तुरत ते रत्नशिख राजाने हाथीयें नजरेंजोयो, के तुरत क्रोधे करी रक्त नेत्र युक्त थाने पोताना गुंढादंझने चंचो नलाली एक दम तेनी पासें थाव्यो. ते वखत ते रत्नशिखें पण ते हस्तीने थोडीवार रमाडीने जे वामां पोताने वश करीलीधो. तेवामांतो आकाशमांथी सुगंधमय,अने जेनो सुंगध लेवा माटे गुंजारव करता भ्रमराउ पळवाडे फस्याज करे , एवी पुष्प नी मोला, ते रत्नशिख राजाना गलामा अचानक अावीने पडी. ते जोड्ने विस्मय पामता एवा ते राजायें ज्यां गंचं आकश सामुंजोयु. त्यां तो आका शमां चालती एवी कमलसमान नेत्रवाली स्त्रीयोने दीठी. अने तेनुं नापण पण सांजल्युं के अहो "बहु सारो वर वस्यो,” पढी रत्नशिख राजा पण मंद हसतो थको विस्मय पामी पोतें वश केरेला प्रौढ हाथी पर बेसी स्थिरासन था पुष्पनी मालाथी शोजायमान ले स्कंध जेनुं एवो थको उत्तरदिशा प्रत्ये चाल्यो. तेवामां तो तेने थोडीक जलनी तृषा लागी, तेथी ते विचारवा लाग्यो जे आहिं क्यांही जो जलाशय होय तो ढुं जल पीयुं? एम विचारे बे, त्यां तो पक्षियोथी संकुलित, शोलायमान ले जलकुर्कुट जेमां, उत्तम Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196 जैनकथा रत्नकोष जाग सातमो. जलवालुं ने डुमराजिथी विराजित तटवालुं एवं एक सरोवर नजरें पड्युं. त्यां तो ते सरोवरने विषे हाथी स्वतः गयो. जइने जलपान करी तेमां जलक्रीडा करवा लाग्यो. राजा पण ते गजथी उतरीने सरोवरमां पडी मत्स्यनी पठें तरतो तरतो ते तजावना कांठा पर धाव्यो, तेवामां तो तेना कांठा पर रहेली एक स्त्रीयें तेने सुंदर डकूलों तेजस्वी ने मनो हर एवा विपणोयें करी विभूषित करो. तथा पुष्प, विजेपन, तांबू लोयें करी तेनो सरकार को घने मधुर भाषणें कर। कहेवा जागी के हे पूर्वदेव ! थापना यागमनथी हुं घणीज खुशी थ बुं. ते वचन सांजलीने रत्नशिख राजा कहेवा लाग्यो के हे मानिनि ! तमें मने पूर्वदेव कह्यो, ते पूर्वदेवपणुं मारामां गुं दीतुं ? त्यारें स्त्रीयें कयुं के हे महाराज ! देवता घणा वखत सेवन करवायी निवृ तिने पे बे तथा नयी पण थापता ? अने आयें तो ते निवृत्ति मारी सखीने दर्शन मात्रमांज श्रापी दीधी, माटे श्राप पूर्वदेव केम नहिं ? ते सांगली रत्नशिख बोल्यो के हे सुछु ! ते तमारी सखी क्यां बे ? खने तेणे मने क्यारें जोयो ? या उक्ति सांजलीने ते स्त्री बोली के हे स्वामी ! ढुं तमने कहुं, ते सांनलो. प्राहिंथी उत्तर दिशामां रजताढ्यनामा एक श्रेष्ठ पर्वत बे. पूर्व पश्चि मना समुड्ने विषे अवगाहन करीने रहेलो बे, ते केवो देखाय बे ? के जागे प्रथ्वीने मापवानो दंमज होय नहिं ? तेनी उपर सुरसंगीतनामा एक नगर बे, ते नगरने विषे सकल जननी खाशा पूर्ण करनार खने रिपुजनने नाश करनार सुरण नामक एक विद्याधरेश्वर रहे बे. तेने स्वयंप्रन घने महाप्रजनामा वे स्त्रीयो बे. अने शशिवेग ने सुरवेगनामा वे पुत्रो बे, ते विद्यायें करी आश्चर्यकारक बे. हवे सुरण विद्याधर जे हतो, तेरो तीव्र वै राग्य उत्पन्न थवाथी शशिवेगनामा पोतानो जे प्रथम पुत्र हतो तेने राज्य सोंपीने रवितेज चारणर्पिनी पासें जइ दीक्षा ग्रहण करी, हवे शशिवेग राजा राज्यनार चलावे बे. तदनंतर तेनो सुरवेगनामा नानो नाइ हतो, ते पोताना नाइने मलेला राज्यने ग्रहण करवाने इतो हतो पण पि तायें प्राप्यं नही तेथ। तेना चाइने जीतवा माटे प्रबल सैन्यनी सहा यने माटें सुवेगनामा पोताना मामाने मली तेनी पासेंथी सैन्य ग्रहण Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपी दीयो. साथ युद्ध कर एततेना मंत्रीयो कहवा त्या पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १७ए करी तत्काल पोताना नाइना पुरने वींटी तो हवो. त्यारे ते शशिवेग पण लडवा तैयार थयो. ते वखत तेना मंत्रीयो कहेवा लाग्या के तमारे नाना नाश्नी साथै युझ कर ए उचित नथी माटे तेने या राज्यासन सोंपी दीयो. एवं वचन सांजली तुरत पोतार्नु राज्यासन बोडी सर्व परि कर लश् आपणे ज्या हाल बेगं बैयें, तेज महाटवीमा सुगिरिनामा पर्वतने विषे नविन नगर वसावी पोताना सैन्य सहित भावी रह्यो. हवे ते शशि वेगने चंप्रना नामनी एक कन्या जे. तेने एकदिवस नैमित्तिकें जोड्ने कडं के हे राजन ! था तमारी कन्याने जे परणशे, ते पुरुषनी सहाय थकी तमने पालुं राज्य प्राप्त थाशे? ते सांनली शशिवेग राजायें ते नैमित्ति कने पूज्युं के महाराज! केवा पराक्रमें युक्त हो,ते मारी कन्याने वरशे? त्यारे नैमित्तिक बोल्यो के सुग्रीवपुरना राजानो मदोन्मत्त हाथी, तोफान करी, बालानस्तंन नांगीने या गामनी अटवीमां थावशे, ने ए स्वेबाथी फरशे, ते हस्तीने जे वश करशे, ते तमारी सुतानो जता थाशे ? ते तमें निचे जाणजो. तेमां कांही पण संशय राखशो नहिं. पडी ते वातनी वाट जो इने शशिवेग राजा बेठो हतो, तेवामां तो तेना कहेवाज प्रमाणे सुग्रीव पुरना राजानो पट्ट हाथी तोफान करी था अटवीमां आव्यो. तेनी शशि वेग राजाने खबर पडवाथी पोतानी कन्याने कर्तुं के बेहेन! तमारे सखी योयें सहित आकाशनेविषे वैमानमां बेसी फरवू थने जोया करवू जे श्रा सुग्रीव पुरना राजानो मदोन्मत्त हाथी हाल अटवीमा फस्या करे , तेने कोण वश करे ? अने जे वश करे, तेना गलामा तमारे तुरत वरमाला धारोपण करवी. पनी ते राजाना कहेवा मुजब अमो सर्वे श्राकाश मार्गे वैमानमां बेसी हाथीने जोती जोती फरतीयो हती,तेवामां तो थापें यावी ते हस्ती ने वश कस्यो, ते अमोयें दीठो, तेवारें अमारी स्वामिनी एवी या शशिवेग राजानी कन्यायें थापना गलामां त्वरित वरमाला आरोपण करी आकाश मार्गे गमन कयं. अने तेणें चालता चालतां प्रीति पूर्वक अमोने कह्यु के व स्त्रानरणादिक लश्ने तमोमांथी एक जणी जा.अने ते पुरुपने अलंकत करो. तेनी आझायें करी थाहिं यावी या वस्त्रानूषणथी आपने में अलंकत क रेला .एम ज्यां ते खेचरी रत्नशिख राजाने केहे , तेवामां तो सुग्रीवपुरना राजा वसतेजनी अश्वारूढ पुरुषोयें युक्त ए सेना बावी, त्यां तो ते अटवीमा Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. बेला,अने श्राम तेम जोता एवा ते रत्नशिख राजाने जो सर्व सेना वि चारवा लागी के छंयाज आपणा राजायें कहेलो पुरुष हशे? एम विचारीने एक मनुष्य अश्व उपरथी हेठो उतरी नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के हे देव! जे मनुष्य, अटवीमा फरता सुग्रीवपुर पतिना मत्त हाथीपर बेसीने ही थाव्यो हतो, ते क्यां गयो ? नला ते तो ठीक, पण एक चीजें पण पूबवानुं के तेना शरीरने का हस्तिकत इजा तो थइ नथी? ते वामां तो त्यां वेठेली किन्नरी हसीने बोली के गुं ते पुरुष हाथीने चोरीने श्राहिं तो थाव्यो नथी ? त्यां वली पाडो असवार बोल्यो के अरे ! याम बोलवू तमने घटे नहिं. अमें तो ते पुरुषना मत्तहस्तिवशीकरण रूप पराक्रमथ। प्रसन्न थयेला बेयें. माटे ते अमारो स्वामी क्या ? तेने पार बोलावो, अमो तेना दर्शननी अनितापा करीयें .यें. गंजीर घने उदारचरित्रना सत्त्वने कोण जाणी शके ? कोइ नहिं. माटे प्रसन्न थइ हालने हाल कहो. के ते क्यां ले ? अने ते पुरुषना दर्शनविना अमारा स्वामी वसुतेज राजाने परा कांश्चेनज पडतुं नथी. तेवारेंते खेचरी कहेवा लागी के नाइ! या बेठेला देवपुरुपेज तमो कहो बो, ते हाथीने स्वपरा कमें करी वशीनृत करेलो .अने ते तमारो स्वामी याहीज तमारी सन्मुख बेवेलो , ते तमें पूर्ण दृष्टिथी जुवो. ते सांजली असवार एकदम त्यांची उनो थर अश्वनपर वेसीने पोताना स्वामी वसुतेज राजापासें यावीने कहेवा लाग्यो के महाराज!आपना बुटेला हाथीने वश करी बांधनारो पुरुष एक सरोवरना कांठा उपरथी अमने मलीयाव्यो , माटे याप त्यां पधारो. ते सांजली सुग्रीवपुरपति वसुतेज राजायें विचार करयो के जरूर कोई पुण्यवान् पुरुष आव्यो,अने हस्तीने वश कस्यो, हवे तेने ढुंआपणा नगरमां तेडीलावं? एम विचारीने ते राजा तेने तेडवा माटे आव्यो. ते वखत जे किन्नरी बेती हती, ते त्यांथी गुपचूप चाली गइ. पली बुद्धिमान् एवो ते रत्नशिख राजा तलावमां पडेला मत्तहस्तीने पाडो लावी तेनी उपर पोतें बेगे, अने तेने वसतेज राजा पोताने नगर तेडीलाव्यो. पनी सनामां बेसीने तेने कहेवा लाग्यो के हे देवपुरुप ! या मारी बात कन्या , तेने तमें वरो अने आ मारूं राज्य में, तेने पण ग्रहण करो. कारण के हुँ एक दिवस सुमंगल केवलीनी देशना सांजलवा गयेलो हतो, तेथी था असार संसा Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २ रना स्वरूपने में जाण्युं, तेमाटे राज्यना त्याग करवानी में रहा जणावी, अने गुरुजीने पूर्दा के महाराज! महारे आ संसारमा रहेवू नथी परंतु मारे पुत्र नथी तथा कुंवारी कन्याउँबाट डे तो या आठ कन्या तथा था मारुं राज्य मारे कोने आप ? त्यारे ते गुरुजीयें कह्यु के था तारो हस्ती मदोन्मत्त थश्ने ज्यारें सांकल वगेरे तोडी तोफान करीने वनने विषे जाशे, त्यारे त्यां जे पुरुष ते हाथीने वश करे, तेने तुं तारी बात कन्या परणा वजे तथा राज्य पण तेनेज आपजे. पडी तुं दीक्षा ग्रहण करजे. या प्रमा नां केवलीनां वचन सांगली संसारथी वैराग्य पामेलो ढुं तेनी वाट जोतो हतो के आ मारो हाथी तोफान करी क्यारें अटवीमा जाय, अने क्यारें ते हाथीने कोई पुरुष वश करे? तेवामां ते हाथी तोफान करी अटवीमां चाल्यो गयो अने तेने वश करनार पुरुषने जोवा माटे मारा अनुचरोने ते हस्तीनी पनवाडे सैन्यसहित फरवानो में दुकम कीधो, के ज्यां आ मदोन्मत्त हाथी जाय, तेनी पनवाडे तमा जाजो. अने जे वश करे, तेनुं नाम वाम पूबीने मने कहेजो. त्यां तो तमोयेंज आवी गजराज वश करयो, अने मारा अनुचरें श्रावीने ते हस्तीने वश करवानी वात मने कही. ते सांजली हूं पाहीं श्राव्यो , केवली नगवाननी कहेली वात प्रमाणे सर्व वात पण मली रही , तो हवे तमें था राज्यने ग्रहण करो. अने या मारी अष्ट कन्याउनु पाणिग्रहण पण करो. एज मारी विनति बे. तेवारें रत्नशिख राजायें कयुं के जेम आपनी इना? प. सुरतेज राजायें महोटा मानथी पोतानी पाठ कन्या परणावी. तथा राज्य पण सोप्यु. अने वली तेने शिखामण दीधी के हे कुमार! आ राज्यने विषे रहीने शास्त्रविरु६ कर्मनो त्याग करवो. कारण के प्रजानुं सारी रीतें पुत्रवत् राजा पालन जो करे जे, तो ते राजा सुखी थाय . वली जो राजा प्रजाने राजी करे , तो प्रजाना पुण्यनो बहो नाग ते राजाने मले बे. जो राजा, पुत्रप- प्रजानुं रक्षण करतो नथी, तो ते प्रजानो करेलो अधर्मनो को नाग राजाने नो गववो पडे . अने हे राजन्! प्रजानुं सारी रीतें जे पालन करवू, तेज राजानो अलंकार . वली शठ लोकोनुं दमन करवू, सारा लोकोनुं पालन करवू, जे थाश्रय करीने रहेला होय,तेनुं पोषण करवू, ते सर्व उत्तम राजानां चिन्हो बे. न्याय, धर्म,रुडं दर्शन, तीर्थ, सुखसंपत्ति, ए सर्व जेने आधारें वर्ने ,तेज Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पृथ्वीपति उत्तम जाणवो. जे राज्यनो राजा धार्मिक न होय, ते राज्य नरक दायक जाणवू. अने जे राज्यनो राजा धार्मिक होय, तेने या लोकमां अने परलोकमां सुख प्राप्त थाय ने ॥ यतः॥ जितेंश्यित्वं विनयस्य कारणं, गुणप्रकर्षोविनयादवाप्यते ॥ गुणाधिके पुंसि जनोऽनुरज्यते, जनानुरागप्रन वाहि संपदः ॥१॥ अर्थः-नम्रतानुं कारण जितेंश्यिपणुं जाणवू.बने गुण प्रकर्ष पण, नम्रताथीज नत्पन्न थाय . अने गुणप्रकर्ष वाला जनने विषे जनमात्र खुशी थाय वे. थने सर्व संपत्तियो जे , ते पण जनमानी खु शीथी उत्पन्न थाय बे. ते माटे हे राजन् ! जेम तमने प्रजा सर्व संनाम्या करे, तेम तमारे वर्तवू. ए प्रमाणे रत्नशिखने शिखामण थापीने वसुतेज राजा सजुरुपासें संयम जेवा जवानी अनुमति मागवा लाग्यो. अने कहेवा लाग्यो के मने तमो संयम जेवाने माटे शीघ्रताथी संमति आपो, के जेथी ढुं मारा हृदयनुं इलित कार्य करूं ? रत्नशिख राजायें पण तेमनो संसारविषे तीव्र वैराग्य जाणीने संयम लेवानी तूर्णताथी आज्ञा यापी. तदनंतर विचारवा लाग्यो के अहो या वसुतेजराजायें जीर्ण रकुनी पेठे राज्यने बोडी दीधुं. पण हा! ते वात तेने घटेज . कारण के विरक्तचित्त वाला जनोने या संसारना नोगोनो तृणनी पढें त्याग करतां विलंब लागतो नथी? जुवो. जे रोगीजन होय, कदाचित् तेणें मिष्टान्न जो खाधुं होय तो तेने ते वमन करी नाखे . ए प्रमाणे प्रशंसा करीने तेमनो दीदामहो त्सव कस्यो, अने पनी ते वसुतेज राजायें सजुरुनी पासें जश् दीक्षा ग्रहण करी. अने रत्नशिख राजा पण गुरुनी पासेंथी सम्यक्त्व ग्रहण करीने राज्यने पोताना ससराना कह्या मुजब पालवा लाग्यो. हवे ते शशिवेग राजाय पण रत्नशिख राजानुं वृत्तांत, पोतानी कन्यानी दासी पासेंथी सांजल्यु. पडी पोतें ते रत्नशिख पासें जइ, जेना विवाहनो योग प्रथम नैमित्तिकें कह्यो हतो, ते पोतानी चंश्नानामा कन्याने र त्नशिखराजा साथे परणावी दीधी. अने साधन सहित सहस्त्र परिमित यविद्या पण तेने आनंदथी अर्पण करी दीधी. __ हवे ते सर्व वृत्तांतने पूर्वोक्त सुरवेगनो, सुवेग नामा जे मामो हतो, ते सानली क्रोधथी हस्तीनुं रूप करी, ते रत्नशिख राजाना पुरना उपवनमां याव्यो, ते वातनी खबर रत्नशिखने पडवाथी ते पण ते हाथीने ग्रहण Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. १८३ ज करवामाटे थोडोक परिवद साधें लइने गयो खने अनेक रीतें ते हस्ती ने घणी वार रमाडी मंदजोर करी, जेवामां गलापर चडी गयो, तेवामां तो तेणे पोतानी गुंढ तेने पकडवा माटे उंची करी, परंतु ते गुंढमां पोतें न खावीने तुरत वज्रसमान कठिन एवा मुष्टिदं में करी तेनीपर प्रहार कस्यो. ते वखत " नमोऽनयः " एवो शब्द कही नमरी खाइ पृथ्वीपर पडी गयो. परंतु मरती वखतें नमोऽर्हद्रथः एवो शब्द कह्यो, ते सांजली रत्न शिख राजा कहेवा लाग्यो के हा हा !!! में कोइ साधर्मिकने मायो ? रे में पापीयें तिष्ट कार्य कस्युं ? जेनुं मारे रक्षण कर जोइयें, तेनो में नाश कस्यो ? एम वेद पामी तेने शीतजलें करी तथा शीतपवनें करी सावधान करो. अनेकयुं के ग्रहो जाग्यशाली पुरुष ! तुने धन्य बे ? तुं दृढसम्यक्त्व तत्त्वनो जागनार बो, कारण के आवा मरण समयमां जेतुं नमस्कारं स्मरण करे बे ? माटे हे जाइ ! तुं मारो साधर्मिक नाइ बो, अरे ! में तुने दुर्बुद्धियी पीडा करी, तेनो अपराध तुं मारी पर कृपा करी क्षमा करजे. एवं वचन सांजली शांत मन राखी सुवेगनामा विद्या धर बोल्यो, के हे राजन् ! तमारो जरा पण दोष नथी. जेवुं में या देहथी कर्म करूं, तेवुंज फल मने तुरत या लोकमांज प्राप्त ययुं ? पण हे सुजन ! ते ठीक थयुं बे, कारण के हवे ए मारें पालुं जोगववुज पडशे नहि ? कारण के कर्म जोगव्या विना तो जीवने बूटकोज नथी ? एम जाणीने पण अज्ञानी प्राणी, पापो करे छे. केनी पेठें के जेम मिष्ट पयने पान करतो एवो मिंदडो पोतापर लाकडीनो प्रहार थाशे ? ते जाणतो नथी. माटे तेमां हे राजन् ! तमारो कांई दोष नथी. तमो कां पश्चात्ताप करो नहिं. वली मारी हुं कथा कहुं ते सांगता. या वैताढ्य पर्वतपर चक्रपुर नामा नगर बे, तेनो सुवेग विद्याधर नामा हुं राजा बुं. मारी बेननो पुत्र सुरवेग नामा बें, ते नानो होवाथी तेने तेना पितायें राज्य खाप्यं नहीं ने महोटा शशिवेग नामा पुत्रने राज्य याप्युं. तो ते सुरवेग मारी पासें खावी कहेवा लाग्यो जे मारा मोटा नाइने मारा पितायें राज्य प्राप्युं ने मुने न खाप्युं माटे ते राज्य मने मलवुं जोइयें ? तेम कहेवाथी में तेनी सहायता करी शशिवेग कुमारने तेना पिताना आपेला राज्यथी भ्रष्ट कस्यो, अने ते राज में मारा नाणेजने पाव्युं, त्यां में सांजल्युं जे “ शशिवेग राजानुं जे राज्य तेना Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. नानानायें मामानी सहायताथी ल लीधुं , ते राज्यनी पर, शशिवेग राजा, हाल थयेला रत्नशिख नामा पोताना जमाश्नी सहायताथी पाबो प्राप्त थाशे" ते सांजली वली पण मारा सुरवेग नामा नाणेजना राज्य र क्षण माटे में हाथीनुं रूप लइ, तमनेज मारवानो दृढविचार कस्यो के ते शशिवेग राजाना जमाइनेज हुँ गजरूप धारण करीने मारी नाखू तो मारा नागिनेय पढी अविचल राज्य प्राप्त थाय ? तेम विचार करी याथी हुँ त मने मारवा माटे याहिं आ गामनाज उपवनमा याव्यो, त्यां तो हे महा श्रदालो ! तमोयें मने मारीने पाठो अनिर्वचनीय अत्युत्तम धर्ममय बोध कस्यो ? कडवा बने तीखा एवां औपधो पाइने वैद्य जेम रोगीनो रोग म टाडे डे, तेम तमें पण मारो अज्ञानरूप रोग मटाज्यो. हवे हुँ निर्मल एवा संयमने पालीश! यने या मारूं जे राज्य ले, तेने तमें अंगीकार करो. जेणे करी ढुं पण मारुलित साधन करूं? तेम कहे , तेवामां तेज सुवेग विद्याधराधिपना घणाएक विद्याधरो आव्या. अने शशिवेगराजा पण सैन्य सहित त्यां याव्यो, ते वखत प्रशमरसना कल्लोलें यादिप्त चित्तवाला सुवेग विद्याधरें कडं के हे राजन् ! या माकं राज्य तमें ग्रहण करो. अने तेनी ना कही मुने धर्मकरणीमां कांही पण विघ्न करशो नहिं. ते सांजली शशिवेग राजायें युक्त रत्नशिख राजायें कह्यु के, हे साहासिक शिरोमणे! कुलपरंपराथी प्राप्त ययेला राज्यने हाल जोगवो. पडी ज्यारे वयःपरिपक्वता थाय, त्यारें संयमधर्मने विषे यत्न करजो. कारण के था इंडियग्राम ले, ते पुर्जय ने, तथा परिसहो जे जे, ते पण अतिःसह , अने मन जे जे, ते पवनथी नडती ध्वजाना अयनाग जेवू चंचल , ते कदापि पण स्थिर रहे तेवू नथी. बने प्रथम चारित्रव्रत लश्ने पालो तेनो त्याग करवो, ते महा अनर्थ बांधवो ले ? ए प्रकारे सुवेग विद्याधरने शशिवेगें तथा रत्नशिखें समजाव्यो, तो पण वैराग्यशूर एवा ते सुवेग राजायें मनोहर एवा चारित्रने अंगीकार कयुं. पड़ी शशिवेग अने रत्नशिख ए बेदु जण ते सुग्रीवपुरथी अनुक्रमें सुवेग विद्याधरना वैताढ्य पर्वत पर रहेला चक्रपुरनगरप्रत्ये याव्या. त्या रत्नशिख राजा विद्याधरनी श्रेणिनो स्वामी थयो. हवे शशिवेग राजानो नाइ सुरवेग विद्याधर पोताना मातुल जे सुवेग Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १ न्य विद्याधर तेनुं सर्व वृत्तांत जाली पोताना महोटा नाइ शशिवेगें घणो सम जाव्यो, तो पण तीव्रवैराग्यने वश थइने पोताना मामा सुवेग विद्याधर पासें । मुक्तिमार्गरूप चारित्रने अंगीकार कयुं पढी संपूर्ण पोताना या माने कृतार्थ माननार ने सुख समुड्ने जोगवनार, सम्यक्त्ववान् एवो ते रत्नशिख राजा सर्वत्र जिन चैत्योनुं वंदन करे बे ने सर्व साधुउने नमन करे बे. साधर्मिक नाइयोने संतोष पमाडे बे, दीनजनोनो नार करे बे, पोताना संताननी पेठें प्रजानुं पालन करे बे. श्रीमन गृहमां, जिन प्रतिमास्थापनमां, जिनमंदिर कराववामां, श्रीजिननी स्नात्र पूजा मां, दिनार्चनविधिम, चतुर्विधसंघपूजादिकमां, श्रीजैनशास्त्र लेखनमां, तीर्थयात्रादिकमां, घक धन खरचीने सम्यक्कने निर्मल करे बे. एम अनेक लाख वर्षो ते रत्नशिख राजायें निर्गमन कस्वां, वे एकदिवस, सांकेतपुरना नद्यानने विषे सुयशनामा तीर्थकर सम वसखा, ते वात रत्नशिख राजाय जाली, महोटा ग्रामंबरें त्यां जइ, ती करने यथायोग्य प्रणाम करीने हर्षथी तेमनी स्तुति करवा लाग्यो ॥ यथा ॥ जय भुवनत्रयवत्सल, बलजलधरपवन वनजसमनयन ॥ नयनव जनमतवर्द्धन, धनतृणसुखडुःखसमहृदय ॥ १ ॥ अर्थः- हे त्रण जुवनना वत्सल ! बल कपटरूप जे मेघ, तेने विषे हे पवनसमान ! हे कमलसमान नयन वाला ! हे नवनययुक्त जिनमतने वृद्धि करनार ! धन, तृण, सुख, दुःख, तेमां समान वे हृदय जेनुं एवा हे तीर्थंकर ! तमो उत्कृष्टपणाथी जय पामो ॥ १ ॥ या प्रकारें तीर्थंकर भगवाननी स्तुति करीने तिथी निर्भर एवो ते रत्नशिखराजा, तेमने नमस्कार करीने तदनुयायी जे मुनिवृंद दतुं तेने पण वंदन करतो हवो पक्षी पोतानें घटे तेवा आसन पर बेशी मस्तक पर वे हाथ लगाडी एटले वे हाथ जोडी श्रीतीर्थंकरनी देशना सांजलवा लाग्यो. भगवानें पण मेघना सरखी गंजीर वाणीयें करी धर्मनी देशना देवानो प्रारंभ कस्यो. ते जेम के:- हे नव्य जनो ! अपार एवा संसारने विषे फरता ने कर्मवश थयेला प्राणीयो नीच अने उंच स्थनकोने विषे उत्पन्न याय बे. ते एवीरीतें केः - क्यारेंक नरकमां, क्यारेक स्वर्ग लोकमां, क्यारेंक मनुष्य पणामां, क्यारेक तिर्यच प यामां उत्पन्न याय बे. वली पृथिवी, यप्, अग्नि, वायु, तेने विषे, वनने , २४ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ जनकथा रत्नकाप नाग सातमा. विपं. हड़ियादिकने विषे पण उत्पन्न थाय छे. पाठा वली तेज जीवो राजा. रंक, बुध, मुख्य, निर्धन, सघन, धर्मिष्ठ, अधर्मिष्ट, सुभाग्य, दोनांग्य, जोगी, कृपण, सुखी, दुःखी, पुण्यवान्, अपुण्यवान्, सुरूप, कुरूप, खल, सकन, सुस्वर, डःस्वर, कीर्त्तिमान, अपकीर्त्तिमान, ब्राह्मण, चांगाल, मूक, अंध, बधीर, पंगूल, तुंग, कुष्टी, वगेरेमां पोताना सारा नरसा कर्मने नुसारें उत्पन्न याय ने एम जीवो विविध प्रकारें संसारमां पर्यटन करे ले. तेमां पण केटला एक डर्बोधथी दिड्यूट एवा थका कुमतरूप हुर्दशामा फस्या करे बे. केटला एक जीवोने तो धूलोको कुयोनिरूप कुं मां पाडी दीये बे. परंतु नववनने विषे मोक्षमार्गना उपदेशको ज्ञानी गुरु तो पुण्यना योगथीज मजे ले, तेमाटे ते सरुना जानने माटे सर्व सुनव्य प्राणीयोयें यत्न करयाज करवो. या प्रकारनी श्री तीर्थकरनी देशना सांगली ते रत्नशिख राजायें कयुं के महाराज! में ते गुं पूर्वजन्ममां सुकृत क हशे ? के जे कांइ सुख बे, ते प्रयास करया विना यधा पोतानी मेलेंज प्राप्त थाय बे ? त्यारें तीर्थकरें कहां के हे कजन ! पूर्व जवने विषे तें पंच परमेष्ठीना नमस्कारनुं स्मरण करयुं हतुं, तेना प्रजावथी तुं या सर्व महासुखनो नोक्ता थयो बो. हे नाइ ! पंच परमेष्ठीना नमस्कारथकी तथा तेना जपथकी सम्यक्कज्ञान प्राप्त याय d. सम्यकथी विरति थाय बे ने विरतिथकी मोक्ष प्राप्त थाय बे, मोथक प्रय सुख प्राप्त थाय बे. वली संसारने विषे जे अत्युत्तम फल बे, ते पंच परमेष्ठिना नमस्कारनुं खल्पमां अल्प फल जारावं. वस्तुततस्तु चिदा नंदसुखप्राप्तिरूप जे फल, ते पंच परमेष्ठीना नमस्कारनुंज फल जाणवुं श्रा प्रकारे श्री तीर्थकरें कहेलो पोतानो पूर्वजन्म सांगली ते रत्नशिख राजाना तुरत रोमांच उनां थयां, अने अत्यंत खुशी थयो. एवी रीतें बोध पामेला एवा ते रत्नशिख राजायें, पोताना पुत्रने राज्य सोंपी, तीर्थकरनी समीप यावी जावें करी चारित्रने ग्रहण करूं. पढी क्षपक श्रेणिपर चढी, केवल ज्ञान उत्पन्न करी घणो काल पृथिवीने विषे विहार करी, क्रमें करी मोद सुखने प्राप्त थयो. या प्रकारनो पंच परमेष्ठीना स्मरणफल विषे रत्नशिख राजानो इतिहास सांजली धर्माराधनने विषे रसिक, एवो देवरथ कुमारनो पिता जे कीर्त्ति राजा, ते पोताना देवरथ कुमारने राज्य सोंपी समस्त जिन Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १८७ चैत्यने वि ष्टादिक महोत्सव करी मोहोटा वैराग्य युक्त थयो थको गुरुनी समीप जइ चारित्रने ग्रहण करतो हवो. हवे ते देवरथ कुमार राजगादी पर बेसवाथी जेम कोइ देव शोने, तेम शोनवा लाग्यो. तदनंतर कृतज्ञपणाथी ते विचारखा लाग्यो के सं तुष्ट थयेला एवा मारा पितायें मने समग्र लक्ष्मी सोंपी बे, तो मारे पण कोइ एक उत्तम पात्र जोइने ते लक्ष्मी थापी देवी जोइयें ? या प्रमाणें गइ संसारमाथी प्रीति जेने अने सम्यक्त्ववान्, अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षावत, तेणे युक्त एव ते देवरथ राजा, रत्नावलीनामा पोतानी स्त्रीयें सहित त्रणे वर्गने एटले धर्म, अर्थ अने काम, तेने सारी रीतें साधतो, जिनमतने विषे अत्यंत प्रीति धरतो थको उत्तम राज्यने करवा लाग्यो. पढी तेणे अनेक जिप्रासाद कराव्यां ने जिनजीनी प्रमाने पण अनेक निर्माण करावी. दर्शननी विशुद्धिने माट वणी रथयात्रा करावी. पढी चतुर्विध संघे युक्त एवा ते देवरथ राजायें घणीक तीर्थयात्रा करी, अनेक साध मोनो समुद्धार करयो ने जिनशासनना शमनोनो पराजय कस्यो, पोताना देशमाथी सात व्यसनो कढावी नाख्यां. ए प्रकारें राज्य पालता समां चालता एवा देवरथराजाने में करी रत्नावली स्त्रीना नदरथकी धवल नामा एक पुत्र प्रगट थयो. ते ज्यारें नम्मरलायक थयो, त्यारे तेने राज्य सोंपी वीर्यातराय कर्मर्थी चारित्र ग्रहण करवानें असमर्थ होवाथी चतुर्विध संघनुं पूजन करतो, पोषध अने आवश्यक क्रियामां ते निरत थयो ॥ यतः ॥ तपःशुष्कदेहो मृतोमंदमोहो, वरोऽ नूत्सुरश्वानते देवलोके ॥ सुरत्नावली श्राविका चारु मृत्वा, प्रधानोऽनवन्निर्जर स्तने ॥ १ ॥ समरायुवितौ तत्र, संपूर्णेकोन विशतिः ॥ दिव्यजोगाई संयुक्त, सुप्रीतौ सुहृदौ सुरौ ॥ २ ॥ अर्थः- तपें करी शुष्क जेनुं शरीर ले, मंद थर गयो बे मोह जेनो एवो ते देवरथ राजा, अनशन व्रतथी मरण पामी यातनामा देवलोकने विषे श्रेष्ठदेव थयो तथा तेनी स्त्री रत्नावली नामा श्राविका पण उत्तम अनशन व्रतथी मरण पामी, तेज देवलोकने विषे नत्तम देवता थ. त्यां बेडु देवता, दिव्य कुद्धिनें जोगवनार अत्यंत परस्पर प्रीतिवाला थर, मित्रपणे रही तेणे संपूर्ण जंगलीश सागरनुं यायु जोगव्यं. ए पृथ्वीचंद ने गुणसागरना चरित्रने विषे रत्नशिख कथान्वित " Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २जन जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. देवरथ नृपतिश्रावधर्मपालनरूप चतुर्थसर्ग समाप्त थयो॥ ४ ॥इति बाहिं पृथ्वीचं अने गुणसागरना आठ नवनो संबंध संपूर्ण थयो ॥ ७ ॥ अथ ॥ पंचमसर्गस्य बालावबोधः प्रारभ्यते ॥ हवे आ जंबुद्दीपने विषे महा विदेह नामा देत्रमा पुष्कलानिध सातमा विजयने विपे प्रशस्त वस्तुयें करी युक्त अने उत्तम, एवी शिवा नामा नगरी जे, जे नगरीने विषे त्यांना रहेवासी जनोना घरना आंगणामां जडेला चंकांत मणियो, रात्रिने विपे पडता चंइकिरणना योगें करी नष्णकालने शीतकालनी समान करे ले. अने शीत कालने विषे त्यांना रहेवासी ज नोना घरना प्रांगणामां जडेला अर्कमणियो दिवसमां पडता सूर्य किरण ना योगें करी शीतकालने नुष्णकाल समान करे .ते नगरीने विषे पोताना प्रतापें करी नाश कयं ने रिपुसैन्य जेणे एवो सिंहसेन नामा महिपति राज्य करे . तेमनी उत्तम गुणयुक्त शोनायमान प्रियंगुमंजरी नामा पट्टराणी . हवे पूर्वोक्त रेवरथ कुमारनो जीव जे बानत देवलोकमां देवता थयो हतो, ते त्यांथी च्यवी, सिंहसेन राजानी प्रियंगुमंजरीना गर्नने विषे पुत्रपणायें करी नत्पन्न थयो, ज्यारे ते गर्ने रह्यो, त्यारे ते प्रियंगुमंजरीयें स्वप्नमां पूर्णचंने दीतो, के तुरत ते जागी गइ, अने तेमना स्वामी पासें यावी ते स्वप्ननी वात कही. ते सांजली सिंहसेन राजायें कडं के हे प्रिये! तमोने पूर्णचश्मा समान नत्तम पुत्र उत्पन्न थाशे ? ते सांजलीने राणी हर्षायमान थइ. पडी राजायें तथा राणीये ते गर्न, पोषण करवा मांमधु. प्रशस्त पुण्यें करी तथा उत्तम दोहदोयें करी युक्त एवा पुत्रने ते राणी प्रशंसनीय समयने विषे उत्पन्न कस्यो. त्यारें राजायें घगुंक इव्य वावरीने पुत्रजन्मनो महोत्सव कस्यो. का रागृहमांथी केदीयोने बोडाव्या अने पोताना घरनुं शोधन पण कराव्यु,पबी बारमे दिवसें, गर्न रह्यानी वखतें स्वप्नमां जोयेला चंना अनुसारें सकल स्वजननी समद, ते पुत्रनुं 'पूर्णचं' एवं नाम पाडयु,अनुक्रमें ते पुत्र धाव मातायें पालन करेलो, तथा लाडलडाव्यो थको कलाउना समूहथी युक्त, तारुण्यरूपसमुड्ने उदित चं जेवो थयो.एटले चंइने जोश समु जेम या व्हादित थाय, तेम पूर्णचंने जो तारुण्य समुअल्हादित थयो. हवे ते Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनु चरित्र. नए चंमा जड , अने आ पूर्णचं पुत्र तो जड नथी.एटर्बु ए पुत्रमा आश्रर्य जे. वली कलान्यासनो व्यसनी, प्रश्नोत्तरादिक क्रीडानो करनार, लौकिक की डानो त्यागी. उत्तम प्रस्तावोयें करी आनंदी मृगयामां, यूतकथामां, तथा वा रांगनाउनां गीत गान श्रवण करवामां तृपावान, मद्यमांसादिकना तो नामने पण न सहन करनार, सऊन पुरुषनो संगी, उर्जनजननो त्यागी, माता पि तानी नक्तिने करनार, चंश्नी समान शीत गुण युक्त, सूर्यसमान प्रतापी, राज नीतिमां विधान, सुरखांबुधिने विषेमन, एवोते पूर्णचंकुमार,सुखें करी रहे . हवे ते पूर्वाक्त देवरथ कुमारनी स्त्री रत्नावलीनो जीव, ते धानत देव लोकमांथी च्यवीने जेमां देवरथ कुमारनो जीव पूर्णचंद कुमार नामें प्रगट थयो , तेज नगरने विषे प्रियंगुमंजरीना नाइ विशालाख्य सामंतनी जया नामनी स्त्रीना नदरने विषे पुत्रीपणायें उत्पन्न थयो. ते कन्या ज्यारे गर्नमां रही, त्यारे तेनी मातायें स्वप्नमां पुष्पनी माला दीठी हती, तेथी तेनुं नाम पुष्पसुंदरी एवं पाडयुं. हवे अनुक्रमें ते महोटी थवा लागी, त्यारे कामीने क्रीडा करवाने वनरूप एवं यौवन प्राप्त थयुं.ते जेम केः- श्लोक ॥ वक्र चंडविडंबि पंकजपरीहासे दमे लोचने, वर्णः स्वर्णमपाकरिष्णुरलिनी जिष्णुः कचानां जयः ॥ वदोजाविनकुंजविन्रमधरौ, गुर्वी नितंबस्थली, वाचां हारि च मार्दवं युवतिषु स्वानाविकं मंझनम् ॥ १॥ अरोपणा च स रला, मृदंगी सतृपा स्थिरा ॥ कलासु कुशला बाला, विनीता च विवे किनी ॥ २ ॥ अर्थः- जेने जोड्ने चश्नो पण नपहास करवो पडे, एवं मुख, जेने जोड्ने कमलनो परिहास करवो पडे, तेवां वे नेत्रो, सुवर्णना व ने पण जीते तेवो शरीरनो वर्ण अने भ्रमराउनी पंक्तिने पण तिरस्कार करे जीते, तेवो केशपास, हस्तीना गंमस्थलनो पण विन्रम थाय, एवा बे पयोधर, महोटो एवो नितंबनाग, मनने हरण करे एवी मृत वाणी, ए सर्व, उत्तम युवतीजनने विषे स्वानाविकज नूषणो ने ॥ १ ॥ वली पण कहे डे के, उत्तम युवती स्त्री, रोष रहित, सरल, लगायुक्त, मृअंग वाली, स्थिर, कलामां कुशल, विनीत, अने विवेकी होय जे ॥ २ ॥ हवे एक दिवसने विषे ते पुष्पमंजरी कन्या, वसंतऋतु आववाथी पोताना पितानी आझा लश्ने, सखीवर्गोयें युक्त मनोहर एवा पुष्पोद्यानने विपे क्रीडा करवा माटे गइ. ते उद्यानने विषे पुष्प अने फलोयें कर युक्त एवा Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ סשן जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. थाम्रवृक्षो अत्यंत शोने ले ॥ यतः॥ सकुसुमसहकाराः पुष्पिताशोक नागा, विकसितवनमाला माधवी दिव्यगंधः ॥ जनयति मदरागं कोकि लाशब्दितं च, प्रवरपुरुषसेव्यो वर्त्तते श्रीवसंतः ॥ अर्थ:-जे वसंत ऋतुमां सहकारना वृदो ते कसुमयुक्त थाय डे, अशोकवृद अने नागद पुष्पित थाय , सर्ववननी पंक्तियो विकसित थ जाय , अने मोघरानो दिव्य गंध प्रसृत थयाज करे , कोकिलना शब्दो मद अने रागने वधारे डे, माटे ते वसंतऋतु प्रवरपुरुषोने सेवन करवा योग्य वे. हवे त्यां शृंगार युक्त वाणीयें करी ते पुष्पमंजरीने पोतानी सखीयो वसंतनी शोना बतावे बे. ते जेम केः- हे सखि : जो. वसंत ऋतुरूप पतिने प्राप्त थश्ने था वनराजिरूप स्त्रीयो केवी शोने ? जो. पुन्नागना वृद साथें आ वींटा गयेली एवी नागवल्ली केवी शोने ? तेम पुन्नाग वृदपण नाग वनीने मलवा थी केवो शोने ले ? तेम हे सखि! नर,अने नारी पण परस्पर मलेथीज शोने. तेवी रीतनी सखीनी वाणीथी पण शृंगारवृत्तिथी विरहित एवी ते, बहिर्वृत्तियें करी वननी शोनाने जोतीथकी मोघरानी वेलना मंझपने विषे वीणाना विनोदनो प्रारंन करवा लागी. तेवामां एज अवसरने विषे एज उद्यानमां मित्रोयें परिवृत एवो पूर्णचं कुमार पण क्रीडा करवाने आव्यो. ते त्यां वीणाविनोद करती एवी राजकन्या जे पुष्पसुंदरी तेनी दृष्टियें पड्यो. त्यारे ते वखत कामदेवनो मित्र जे वसंतऋतु तेना समय होवाथी, पोतानी युवावस्थाना अतिविशमपणाथी, अने पूर्णचंद कुमारना अत्यंत स्वरू पथी तथा पूर्वजन्मना अतिस्नेही, ते पुष्पसुंदरीना मनरूप मर्मस्थानने विषे बानी पेठे अकुंठित एवो ते कुमार लाग्यो, के तुरत स्वेदयुक्त अं गवाली तथा मिलितनेत्रयुक्त थ विचेतन जेवी थइ गइ. ते जोड्ने तरत सखीयें पवनथी तथा शीतांबुथी तेने सावधान करी, त्यारे ते सखीयोने पुष्पसुंदरी पूबवा लागी के हे सखि! लावण्यामृत सागर, युवान, जे पुरुष देखाय , ते कोण ? झुं कामदेव डे ? के सूर्य के ? सुर व् ? के को विद्याधर ले ? त्यारें सखीयोयें कडं के हे सखि ! तें कामदेव अटकल्यो पण ए कामदेव तो बेज नहि. कारण के कामदेव जे , ते तो अंगरहित जे, तेथी तेने लोको अनंग कहे ,अने आ तो अंगवालो . वली तें एने सूर्य घटकल्यो, परंतु ते सूर्य पण नथी, कारण के सूर्य तो तपनशील ने, Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. " अने आ पुरुष तो सौम्यगुण युक्त ने एटले शीतल देखाय बे. वली एने सुर अटकल्यो तो ते सुर नथी कारण के सुर तो मिषोन्मिष रहित चढुवालो शून्य होय , अने या तो चंचल नेत्रवालो तथा विचक्षण ने. वली तें एने विद्याधर अटकल्यो परंतु ते विद्याधर पण नथी. कारण के विद्याधर जे बे, ते तो आकाशमां गमन करे , अने आ पुरुष तो पृथ्वीमांज ननो रह्यो बे. ते केवो , ने कोण जे, ते ढुं कहुं बुं, सांजल ॥ यतः॥ सौम्यत्वं शशिनो गनीरिमगुणं वाईः प्रतापं रवे, स्त्यागं वित्तपतेः प्रनुत्वममराधीशात् स्वरूपं स्मरात्॥माधुर्य त्वमृतात् बलं मृगपतेात्वा वृहचातुरी, धैर्य मेरुगिरेः किमेष विहितः सन्मेधसा वेधसा॥१॥अर्थः-चंमाथकी गांनिर्य, सूर्यथकी प्रताप, कुबेर थकी व्यत्याग, इंश्थकी प्रनुता, कामदेवथकी स्वरूप, अमृतथकी माधुर्य, सिंद यकी बल, तथा मोहोटुं चातुर्य, मेरुपर्वतथकी धैर्य, ते सर्वने ग्रहण करीने बुद्धिमान एवा विधातायें गुं आ पुरुष निर्माण कस्यो हशे ? अर्थात् पूर्वोक्त सर्वे गुणो आ पुरुपमा देखाय ॥१॥माटे जाजुं कहिये परंतु हे सखि ! शिवा नगरीने विषे सिंहसेन नामा राजा , तेना कुलरूप अंबरने प्रकाश करनार चंइ समान था पूर्णचंश्नामा पुत्र ,ते तमारी फश्नो पुत्र थाय ले. ते वचन सांजलीने तुरत अत्यंत उत्सुक थयेली पुष्पसुंदरीक हेवा लागी के हे सखि! तारूं कहेवू खलं . मुक्तासमान बीजा पुरुषोमां या पुरुष, रत्नसमान देखाय .या पुरुषना गुणो पासें अन्यजनना सर्व गुणो कलंकित थ गयेला ,एम कह्यु, तेवामां तो तेनी अशोकनामा सखी हसीने कहेवा लागी के हा, निश्चे या पुरुष गुणमय जे. कारण के हमणांज था प्रिय सखी जे पुष्पसुंदरी तेणें पोताना कटाक्षोयें करी तेनां सर्व अंगोने देखी लीधां. ते सांगली पुष्पसुंदरीयें विचायुं जे मारो अनिप्राय आ सर्वसखीयोयें जाणी लीधो देखाय के ? एम विचारी लगायुक्त थश्ने सखियोने कहेवा लागी के हे सखियो! हवे सर्व वात जावा द्यो. विलंब लगाडो मां.क्रीडानो त्याग करीने आपणे जलदी घेर जश्य ? कारण के माताजी थापणी वाट जोता हशे? त्यारे सुदता नामा कन्यायें कह्यु के हे सखि ! चालो. पण आ पूर्णचंइकुमार तो आपणी समीपमांज उना , माटे तेने बोलावीने सूक्तवार्ताथी तेनो सत्कार करियें, पडी जायें, नहिं तो आपण सर्वने तेथ विनयी जाणशे? एवां सुदता सखीनां यथायोग्य वाक्यो सानली लगायुक्त Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रएश जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. थइने ते पुष्पसुंदरीयें मंदस्वरथी कह्यु के त्यारें तमोने जे योग्य नासे, ते करो. पड़ी ते सखीयें विनयें करी धीर स्वरथी पूर्णचंइने बोलाव्या, के तुरत ते त्यां यावी तेज स्थलने विपे बेठा. अने दृष्टियें करी काम कदली जेवी ते कन्याने जोइ ने कुमार घणोज विषयथी विरक्त , तो पण सराग थ गयो. ते वखत त्यां रहेला सदुने ते कन्या तथा कुमार प्रीतिने उत्पन्न करतां हवा. हवे पुष्पसुंदरीयें हाथमां वीणा लीधी , तेथी पूर्णचं कुमार जाण्यं जे अहो या सुंदररी वीणावाद्यमां कुशल देखाय ? एम जाणी विद्यानो विनोदी ते कुमार, कहेवा लाग्यो के हे सुंदरि! अ मारा मनना विनोदने माटे जरा ए वीणा तो वगाडो ? ते वचन सांजली सुदता सखी कहेवा लागी के हे कुमार ! तमारा दर्शनथी दोन पामेली ते कन्याने वगाडवानी लड़ा आवे ने. माटे ते वगाडवाने नद्यक्त थाती नथी, तेथी ते वीणाने आपज बजावो. जेथी अत्रत्य सदु विनोद पाम ? एम कहीने सुदतायें पुष्पसुंदरीना हाथमांथी वीणा लइ पूर्णचंड कुमारना करमां आपी. ते वीणाने हाथमां लर, स्नेहें सहित तेनो स्पर्श करतां कु मारने अशोकनामा बीजी सखी कहेवा लागी, के अहो कुमार ! सरल, सु गुण, शुद्ध, वांसडामाथी उत्पन्न थयेली,मधुरस्वरवाली, प्रवर एवी या वीणा आपना करायमांज शोने दे. या वचनथी ते सखीयें अन्योक्तिथी समजा व्युं के पुष्पसुंदरी तमारी पासें रे ते पूर्वोक्त सर्व गुण संपन्न ,एम अशोका सखियें कहेली अन्योक्ति सांजली मस्तक धुणावी, पूर्णचंकुमार ते वीणा वगाडीने तत्रत्य सर्व कन्याउनां तथा मनुष्यना चित्तने आकर्षण करी लीधां. एवो प्रसंग ज्यां चाले , तेवा समयमां तो ते पुष्पसुंदरीनी धावमाता ते कन्याने तेडवा आवी. अने ज्यां जुवे , त्यां तो समान वयवाला अने सर्व गुणसंपन्न ते राजकुमारने कन्यापासें वीणा वगाडतो जोयो, तेथी ते धावमातायें कडं के हे कुमार या सर्व प्रसंग थाय , ते तो घणोज 7 तम थाय , कारण के बेहु तमें वयथी अने गुणोथी योग्यज हो ? तेम कुमारने कहीने पाली कुंवरीने कहेवा लागी के हे वत्से ! तमाराविना तमारी माता जोजन करतां नथी, माटे जलदी चालो.एम कहीने ते पुष्पसुंदरीने केवल शरीरथी घेर तेडी लावी, परंतु तेनो जीव तो ते पूर्णचंडमांज नरा रह्यो. कारण के घेर आवी तेणे जोजन पण बराबर कयुं नही. त्यारे तेनी Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. २०३ मातायें सखीयोने पूजयं के या पुष्पसुंदरी याम विकलमनवाली केम थ गइ बे ? त्या सखीयोयें उद्यानगत सर्ववार्त्ता कही देखाडी. पढी ते राणीयें तेना मननी विश्राम एवी एक प्रियवंदा नामा सखी हती तेने कुंवरीनी याश्वासना तथा वांति करवा माटे मोकली. ते पण कुंवरी पासें जश्ने या प्रमाणें कहेवा लागी के हे प्रियसखि ! चंदनी एक कलाथी मनुष्यमात्रने शांति थाय बे, तो तुने पूर्णचंथी पण केम सुख नथी यातुं ? अर्थात् अन्यो तिथी कहे बे, के तमने पूर्णचंद कुमार मल्यो, तो पण शांति केम याती नथी ? ते कहो. त्यारे पुष्पसुंदरी यें कयुं के मारुं मन जेम योगिलीना योगें चमित याय, तेम थर गयुं वे, माटे तुं मारा मननी अधिष्ठायिका सखी बो, तेथी कांइक उपाय कहे, के जेणे करी महारा मनने निवृत्ति थाय ? ते सांजलीने प्रियंवदा सखी कहेवा लागी के, जे में वृत्तांत सांजल्युं वे, ते ढुं कहुं बुं, ते सांगतो. आपणने जे समय पिताजीयें वसंत जोवा जवानी रजा यापी, नेत्यां वली पाठा पूर्णचंद कुमार याव्या, तेमां तो एक सुखदायक वृत्तांत बन्युं वे, ते सांनलो. गइ काळें सवारें तमारो पिता वि शाल जे ने, ते तेनी बहेन प्रियंगुमंजरी पासें खावीने कहेवा लाग्यो के हे बेहेन ! तमारो पूर्णचंद कुमार ने मारी पुष्पसुंदरी ए बेडुनो विवाह जो याय, तो घणुंज योग्य थाय, मुकुटने मलियें जीयें ने जेम शोना आापे, तेम ते बेदुना लग्न शोने ? परंतु एक मोहोटुं दुःख बे, के ए बेहुने परस्पर राग विकार कांइज देखा तो नयी अने तेनी पासें जो तेना विवाहनी वात आपले करीयें ढैयें, तो तेने ते वात पण बिलकुल रुचती नथी. हास्य, विनोद, के शृंगार केली तेने गमती नथी. तेम कोइनी काम क्रीडाथी ते प्रसन्न यातां नथी. तथा शृंगार रसमां पण राजी यातां नथी, एटलुंज नहिं परंतु ते सामी शृंगारनी निंदा करे वे. माटे हे वेहेन ! ते बेदु जानी परस्पर प्रीति विना आपणी इवाथी जो विवाह करीयें तो ते, पढी हृदयमां शब्यनी पेठें खटक्याज करे ? वली कदाचित् बेदुनी सरखी प्रकृति वे, माटे बेहुने परस्पर प्रेम थाय तो थाय पण खरो, तेथी मारो मत तो एम बे, के प्रापणे तेने पर स्पर मुखदर्शन करावी यें ? आवां वचन पोतानां नाइ विशालसामंतनां सां जली तेनी बेन कहेवा लागी के हे जाइ ! तमारुं जेवुं नाम विशाल ले, Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. तेवी बुद्धि पण विशालज ,अर्थात् जेवू तमारूं नाम , तेवाज तमारामां गुण पण दीठामां आवे , हे सरिख ! एम कहीने पनी तमारा पितायें तमने तथा प्रियंगुमंजरीयें तेमना पुत्र पूर्णचंइने परिवार सहित वसंत ऋतुनी शोना जोवाना मिचे नपवनमां मोकळ्या हता. तेथी तमा। बेदु जणनी परस्पर मनोरनिने जाणी लीधी. तेमा धारेला मनोरथ पार पडवाथी तमारा तथा पूर्ण चंश्नां माता पिताने अत्यंत हर्ष उत्पन्न थयो . तेम तमो अने पूर्ण चंड पण अत्युत्साहित थयेला देखाउ बो. ए प्रमाणे सखियें सर्वे वात कही. हवे जे प्रमाणे ते सखीयें हकिगत पुष्पसुंदरीने कही, तेज प्रमाणे पूर्णचंश्ना सखायें पुष्पसुंदरीथी मोहित थऽ दुःखित थयेला ते पूर्णचंश्ने सर्व दकिकत कही संजलावी. तेथी बेतु जण मनमां संतोप पामी सुस्थिर थ इने पस्पर एक बीजाना झान जोवाने तत्पर रहेतां थकां दिवस निर्गमन करवा लाग्यां. पनी विशालसामंतें प्रशस्त दिवस तथा वार जोक्ने पोतानी बहेन प्रियं गुमंजरीना पुत्र पूर्णचंइसाथे पोतानी पुष्पसुंदरी नामा कन्यानुं वेसवाल कयुं. सिंहसेन राजाय पण गीत, वाजित्र, दान, सन्मान पूर्वक पोताना पु वनां पुष्पसुंदरी साथे लग्न कस्यां. तेने जोइने श्रारखा नगरनां लोको कहेवा लाग्यां के अहो! विवाह घणोज उत्तम थयो. वरवधूनुं जोडुं पण जेवू जोयें तेज नुत्तम मल्यु. एम विवाह थया पडी पोतानी स्त्री पुष्पसुंदरी साथै स्वर्गविमान समान घरने विपे रही सुख जोगवतो ते पूर्णचं कुमार दिवस निर्गमन करवा लाग्यो. एम करतां एकदिवस सना जरीने पूर्णचं इनो पिता सिंहसेन राजा वेगे हतो, तेवामां कोक वनपालकें आवी नमन करी कयुं के हे राजन! हालमा पुष्पशाल वनने विपे घणा गुणोयें युक्त, रूपवानने विषे पण अति रूपवान घणा लावण्य गुणवाला, सौंदर्य युक्त, जाणे मूर्तिमान धर्मज होय नहिं? एवा, मुनिवंदना इंश् श्रुतसुंदर नामा सूरी पधारेला . ए वचन सांजलतांज हर्षोत्कर्षथी प्रफुन्नित ने रोम कूप जेना एवा ते सिंहसेन राजायें वनपालकने वधामणीमां घjक इव्य आप्यु. पनी पुत्र दारादिक सर्वने साथें लश्ने महोटा आम्बरथी गुरुपासें जश्ने यथाविधि प्रणाम करी हर्षे करी ते गुरुनी देशना सांजलवा माटे Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. १ण्य गुरुनी समीपमां बेठो. गुरुजीयें पण तेमनी योग्यताने जाली देशना देवानो थारंज कस्यो. हे नव्यजनो ! जन्म, जरा, मृत्यु, तेना नयें करी व्याप्त यने दुर्गतियें करी जयंकर एवा या संसारने विषे अनंतकाल पर्यंत स्वत पापोयें तमो महा दुःखने प्राप्त था बो, तो पण हजी सुधी तमोने कांइ वैरा ग्यज यतो नथी. ने धर्मने विषे निरुद्यमी यया थकाज रहो हो. माटे महेनत लइने पण तमो या उत्तम आहेत धर्मने विषे उद्योगी था. वीजा सर्व कार्यम प्रमाद करो ते तो ठीक, पण धर्ममां प्रमाद करवो, ते उचित नहिं कारण के प्रमादसमान जगत्मां को शत्रु नयी ॥ यतः ॥ मऊं विसय कसाया, निदा विगहा य पंचमी नलिया ॥ ए ए पंच पमाया, जीवं पाडंति संसारे ॥ १ ॥ अर्थः- एक मद्य, बीजो विषय, त्रीजो कपाय, चोथी निश, अने पांचमी विकथा कहेली ले, ते पांच प्रमादो, जीवने संसारमां पाडी नाखे बे. अने हे नव्यजनो ! धर्मसमान या जगत्मा बीजो कोई मित्र नथी ॥ यतः ॥ धर्मो मगलमुत्तमं नरसुरश्रीमुक्ति मुक्तिप्रदो धर्मः स्त्रिह्यति बंधुवद्दिशति वा कल्पवतिम् ॥ धर्मः सजुल संगमे गुरुरिव स्वामीव राज्यप्रदो, धर्मः पाति पितेव वत्सलतया मातेव पु ष्णाति च ॥ १॥ अर्थः- धर्म जे बे, ते उत्तम एवा मंगलने, तथा ते धर्म नरत्व, सुरत्व, श्री, मुक्ति, अने मुक्ति, तेने देवावालो बे, वली धर्म जे बे, ते सगा म नुष्यनी पेठें स्नेहने थापे वे तथा कल्पडुमनी पेठें नांबित फलने पण यापे बे. वली ते धर्म, समुना संगमने विषे गुरुसमान बे ने राज्य देवाने विषे स्वामी सरखो वे अने पितानी पेठें रक्षण करे बे. ते धर्म, वालप थी जेम पुत्रनुं रक्षण माता करे, तेम जीवनुं रक्षण करे ते. माटे जीवें धर्मा राधन जरूर कर. ने सेवन करेलो प्रमाद जेम जीवनें अत्यंत दुःख यापे बे, तेम सेवन करेलो धर्म, जीवने चिंतामणि ने कल्पवृक्ष समान सुखने देनारो थाय बे. जेम कोइ प्रमादी जन, बलता घरने विषे तथा अगाध पाणीने विषे प्रमाद करी सुइ रहे बे, तथा घरमांथी सर्व वस्तुनी चोरी थायले, ते जाणे बे, ते बतां पण सुइ रहे बे, पोतानुं प्रस्मिंमल पोता पर प्रहार करे ले, तो पण विश्वास पामी उजो रहे ते, तेमज जे पुरुष संसारावर्त्तमां पड्यो यको धर्ममां प्रमाद करे बे, एम जाणवुं वली जे Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. धर्ममा प्रमाद करे , ते प्राणीना पुरुषार्थो सर्व तैयार थयेला देखाता होय, तो पण ते तेमज नाश थ६ जाय ले. अने धर्मवान् पुरुषना नहिं धारेला पुरुषार्थो, प्रयास विना स्वतः सिह थइ जाय ३ ॥ यतः ॥ तारं किंकणिहारनूपुरनरैरंतःपुरं लन्यते, सीत्कारैर्विकटाघटा करटिनां हेषारवा ढयाहयाः ॥ एकं उत्रमिहोत्कटोरुकटकं राज्यं च निष्कंटकं, यस्मात्सत्रिदिवं शिवं नजत नोस्तं धर्ममत्यादरात् ॥ १ ॥ अर्थः-हे नव्यजनो ! जे धर्मना प्रतापथी किंकणी युक्त कटिमेखला तथा मुक्ताना हारो तथा शब्दाय मान नेपूरो, तेणे करी स्वन एवी स्त्रीयो, सीत्कारोयें करी नयंकर एवी हस्तीयोनी धटान, हेपारव करता एवा अश्वो, जेने विषे मदोन्मत्त अने महोटा सैन्यो , एई एक बत्र अने निष्कंटक राज्य, स्वर्ग अने मोद, ते सर्व प्राप्त थाय छे. तेवा धर्म, तमो अति आदरें करी याराधन करो. हे नव्यजीवो ! आ संसारने विपे धर्म करवानी सामग्री मलवी घणीज मुलन . ते जेम केः- प्रथम तो मनुष्यपणु उर्लन , तेमां पण वली आयदेत्र मल, उर्लन ने तेमां पण पाळू विगुड़ कुल मल, उर्लन जे. तेमां पण वली शुभ जाति मलवी उर्लन बे. तेमां वली दीर्घ आयुष्य प्राप्त था उर्तन , तेमां पण रोग रहितता थवी उर्लन . तेमां वली आचार्यनो संयोग थवो उर्लन . तेमां पण सुबुद्धि थावी उर्जन . तेमां पण तत्त्वनुं जे श्रझा न था, ते उर्लन जे. तेमां पाली विरति थावी, ते फुर्खन जे. तेमाटे हे नव्यजनो! तमो धर्मनो उद्यम करो. या प्रकारनी सुधाबिंड समान गुरुनी देशना सांजलीने आचार्यना रूपथी व्याक्षिप्त जेनुं चित्त ने एवो ते पूर्णचंद कुमार, आचार्यने विनति करी पूठे , के हे जगवन् ! आपनी शरीरनी कांति महोटा राजाना देहने तथा मोहोटा धनवानना देहनी सूचना करे एवी देखाय ? तो वली आपने वा यौ वन वयमां पण व्रता दिकरूप कष्टने देनारं वैराग्य थवा, कारण गुंजे? त्यारें गुरु कहेवा लाग्या के हे कुमार! तुंबा संसारमा पगले पगले प्रत्यद वैरा ग्यज देखे , तो पण वैराग्य थवानां कारण माने शामाटे पूछे ले ? यतः॥ खंजिरन् राज्यलक्ष्मीः कति कति सुखिनः केपि सर्वयुिक्ताः, सेवां कुर्वति तेषां सततपरवशा रकुबाश्वान्ये ॥ केचित्कल्पकट्यास्त्रिजगदनिमताः स्वोदरापूरिणोऽन्ये, केचित्सोनाग्यनाजो वरतरुणिवृताः केऽपि दौनांग्य Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. १७ दग्धाः ॥ १ ॥ यस्मिन् जन्मजराविपत्तिमरणाधिव्याधिशोकाः सदा, स्वेष्टा निष्ट वियोगयोगसहनं रोधश्व करागृहे ॥ तिर्यग्नारकसंनवानि च नवे दुः खान्यसंख्यानि चेब्रूर्यते विषये मनो न कुरुते कश्चित्तदेकक्षणम् ॥ २ ॥ अर्थ :- केटला एक सुखीया पुरुषो, राज्य लक्ष्मीने जोगवे बे. केटलाएक सर्व वाला होय बे. बीजा केटला एक पुरुषो ते पूर्वोक्त सर्व समृदि वान जनोना वशपणाथी रकुयें बांधेजानी पढें सेवाने करे ले, केटला एक जनो कपडुमनी पढें त्रण जगतना सर्व मनोरथने पूरे बे, अने केटलाएक जनो मात्र पोतानुं नदर पूरणज करे बे. केटला एक श्रेष्ठ तरु एपीयें वीट्या थका सौभाग्य जोगवे बे, अने वली केटलाएक पुरुषो दौ after दग्ध थाय बे ॥ १ ॥ जे संसारने विषे निरंतर जन्म, जरा, वि पत्ति, मरण, व्याधि, व्याधि, शोक, इष्ट ने अनिष्टना योग वियोगनुं सहनपणुं, कारागृहने विषे संरोध, तिर्यच, नारकीनो ने संभव जेने विपे एवां असंख्य दुःखो जोगवे बे, ते दुःखो जो सांजव्यां होय, तो विषयने विषे एक कुल पण मन यापवानी इवा थाय नहिं. तो पण हे पूर्णचं‍ कुमार ! मारे विशेष वैराग्य यवानुं जे कारण बन्युं, ते डुं कहुं बुं, ते सांन लो. एम ज्यायें सूरियें कह्युं त्यारें तो सर्व सज्यजनो सोत्कंठित थइ गया. त्यार पढ़ी मुनीश्वरें कहेवा मांग केः आज विजयने विषे रत्नपुर नामा नगर बे. त्यां एक सुधन नामा श्रेष्ठी सेले, तेनुं जेतुं नाम ले, तेवाज तेना गुण ले अर्थात् सुधन एटले घणो व्य पात्र श्रेष्ठी बे. तेनी लक्ष्मी समान लक्षणवाली लक्ष्मीनामा एक स्त्री ले, तेनो सुंदर नामा डुं पुत्र हतो, ढुं ज्यारें यौवन युक्त थयो, त्यारे मारा पितायें मुने उत्तम कुलनी बत्रीश कन्याने परणावी. उत्पन्न थयेला प्राणी जरूर मरणने तो पामेले, तेज प्रमाणें कालना नियमथी मारां माता पिता मरण पाम्यां तेना मरण दुःखरूप नलयी तप्त ययेलो हुं गृहव्या पारनी चिंतामां निरत थयो । यतः ॥ प्रियस्य विरहे कोपि, प्रव्रजेत् म्रियते न च ॥ ष्यत्येवास्य हृदयं, प्रत्यहं पंकपिंमवत् ॥ १ ॥ अर्थः- पोताना प्रियनो विरह यवाथी कोइएक प्रव्रज्या ग्रहण करे, अथवा मरण पामे, नहिं तो तेनुं हृदय, कचरानो पिंम जेम तपता मिमां प्रतिदिवस पाकतो Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एन जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जाय , तेम पाके ले. एम अत्यंत रागवान हतो, तो पण हुँ का करी निःशोक थयो. पनी मारी स्त्रीयो व्यभिचार कर्म करशे? एवा वेहेमथी ईर्ष्यायुक्त एवो ढुं ते मारी स्त्रीयोने कोश्नी साथै बोलवा दवं नहिं अने तेना पिताने घेर पण जावा दवं नहिं. अने मारे घेर सारा माणसोने भाववानो पण में निषेध कस्यो. जाजूं झुं कडं, मारे ज्यारें बाहार जावानुं काश्क कार्य थावे, त्यारें दुं घरने दरवाजे तालुं दश्ने बाहेर जावं ? त्यां पण घणा पुर्विचारथी जाजी वार खोटी थानं नही ? तेम करवाथी नितुयें तथा विशेपें करी जैन साधुयें मारा घरनो साव त्यागज कस्यो. एक दिवस कोइक कार्यने माटे उत्सुक थयो थको हुँ हारें तालुं दीधा विना एमने एमज उतावलथी बाहिर, गामना चोकमां गयो, तेवामां देवयोगथी कोक जैनमुनि मारे घेर वहोरवा माटें आव्या. तेने जो इने हर्षथी मारी स्त्रीयो कहेवा लागीयो के अहो! आज अमारो ना ग्यकल्पम अंकुरित थयो ? एम कहीने तेरो प्रणाम कस्यो. घासन अने परिग्रहने माटे मुनिने विनति करी. तेवारें मुनियें जाएयु जे मारे बासन तो कल्पे नहिं, तो पण नावि लानने जाणनारा एवा ते मुनि, स्त्रीयोना लावी आपेला आसन पर बेग,अने तेमणे धर्मनी देशना देवानो आरंन कस्यो. तेवामां दुं पण मारे घेर आव्यो अने दूरथी जो त्यां तो मारी स्त्रीयोयें परिवृत तथा रूपवान् एवा मुनिने जोया, जोइने मारा घरना धार पासें प्रावी बानो मानो उनो रह्यो. अने पडी विकल्परूप सपै मशेलो रो परूप राक्से ग्रहण करेलो पुर्बुदिरूप शाकिणीय पीडित एवो ढुं चिंत ववा लाग्यो के अहो ! आ मुनि केवो अधर्मी ! वली उष्ट केवो ! मारी स्त्रीयोनी साथे एकांतमां बेठेलो ! तेमाटे तेना आवे अंगोने विषे पांच पांच लाकडीयोनो दं प्रहार करूं ! जेथी करी मारो कोप पण सफल थाय ! पण जरा ढुं सांजलुं तो खरो जे मारी स्त्रीयोनी साथें ते गुं विचार करे छे ! तेवी रीते विचार करीने बानो मानो ज्या हुं सांजल वाने ननो बुं, त्यां तो ते साधु धर्मोपदेश देवा लाग्या के हे धर्मशिला ! तमो यत्ने करी सावधान था सांजलो, सर्व एवा जीवोने जिन नगवाने धर्मनुं मूल दयाज कहेली . तेमाटे ते दयाने विषेज माह्या पुरुषोयें यत्न करवु.वली जुवो.त्रों ने त्रेशठ पाखंमीना नेदो, परंतु तेमां कोइ पण दया Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. एए धर्मनी निंदा करता नथी. माटे ज्यां दया त्यांज धर्म .जेमां दयानुं धारा धन थाय, तेज दान, तेज तप, तेज ध्यान, अने तेज पूजा, तेज क्रिया, ते विना सर्व व्यर्थज जाणवू. ते दयाथीज धर्म चिरायु थाय डे. वली संपत्ति, आरोग्य, सौनाग्य, जोगसंगम, कीर्ति, सुगति, धृति, नक्ति, ए सर्व दयारूप कल्पवेलीनां फलो २ ॥ यतः॥ दया स्वर्गस्य सोपानं, दया मोदस्य वर्तिनी॥दया च उर्गतिघारे, पिधानं मुनिना कृतं ॥ १ ॥ अर्थः-दया , ते स्वर्गमा जवान सोपान , ते दया, मोदमां पोहोंचाडनारी, अने दया जे , ते ऽर्गतिना हारने ढाकवानुं कमाड ए मुनिये करेलुं . तेमज वली जीवोने हिंसा , ते कडवा फलनी देवा वाली जे. एम ज्ञानी पुरुषोयें कहेढुंबे,कारण के हिंसक प्राणीयो जे , ते सर्व विपत्ति अने अ नर्थ तेने संपादन करवामां समर्थले. हिंसक प्राणीयो गनेस्थ, जातमात्र, बालयौवनशाली थकाज मरण पामे . ते हिंसक जोगी होय तो पण स्व ल्पजीवी होय . वली ते जीवघातक प्राणीयो मूक, अंध, बधिर, पंगु, कुब्ज, कुष्ठी, जड,रोगी, शोकी, जयाक्रांत, कुधारी, उर्जाग, फुःस्वर थाय , जाजु गुं कहिये परंतु जे हिंसा थकी निवृत्ति पामता नथी,ते कुःखना नाजनज थाय ३. अने जे हिंसानो त्याग करे , ते पवित्र थाय जे. अने जे हिंसाथी निवृत्त थया नथी, ते पोताना बापने पण मारी नाखे , पण तेने दया यावती नथी. अने ते प्रत्येक नवमां नरकमां जाय . ते केनी पेठे? तो के शजय राजाना शूर कुमारनी पेठे. तेवारे ते स्त्रीयोंयें पूबथु के महाराज! ते शत्रुजय राजा कोण हतो? अने तेनो पुत्र शूर कोण हतो? ते सर्व वृत्तांत सविस्तर कहो. तेवारें मुनियें कहेवा मामधु. । आज विजयने विषे विजयपुरनामा नगर हतुं, त्यां शत्रुजय नामक राजा राज्य करतो हतो. तेने गुर अने चं नामाबे पुत्र हता, तेमां ज्येष्ठ पुत्रने राजायें युवराजनुं पद दीp.बने तेथी लघु जे चंकुमार हतो, तेने प्रीतिना अनावथी शत्रुजय राजायें कांही पण आप्युं नही. माटे ते चं कुमारे जाण्यु जे मान , तेज धन ,एम जाणी एकदम देशांतर गयो. अने त्यां कौतुकाकुल पृथ्वीने जोतो थको अनुक्रमें रत्नपुर नामा नगरमां आव्यो. त्यां सुदर्शनानिध मुनि बाहेर उद्यानमां समोसस्या हता, तेमने हर्षे करी नमस्कार कस्यो. मुनिये पण या पुरुष योग्य , ए जाणी देशना देवा मांझी. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 900 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते जेम के:- कलाण कोडि जपली. इरंत इरिश्रारि वग्गनिहवी | संसार जलहितरणी, इक्का चिय कोइ जीवदया ॥ १ ॥ विवलं रऊं रोगे, हि वडियं रुवमात्र्यं दीहं ॥ अन्नंपि तं सुखं जं, जीव दया नहू सम्मं ॥ श्रर्थःकोटिकल्याने उत्पन्न करनारी, दुरंत पुरित यने विर्ग तेने नाश कर नारी तथा संसार रूप जलधिने विषे तर शिरूप, एवी एक जीवदया जाएवी. विपुन राज्य, रोग वर्जित एवं रूप, दीर्घ खायुष्य, बीजुं पण सुख जीवद याथी प्राप्त थाय बे. जे जीवदयाथी सुख थाय बे, ते बीजाथी थातुं नथी. वली हे कुमार ! यतः ॥ कृपानदीमहातीरे, सर्वे धर्मा स्तृणांकुराः ॥ तस्यां शोप मुपेतायां, कियन्नदंति ते चिरम् ॥ १ ॥ अर्थः- जीवकृपारूप नदीने विषे सर्वे धर्मो ने, ते तृणांकुर समान वे. ते नदी ज्यारें शोषित थाय, त्यारें सर्व धर्म रूप तृणांकुरो घणोकाल केटलो श्रानंद पामे ? या प्रकारनी देशना सांननी चंदकुमार बोध माम्यो, तेथी गुरुनी पासें संग्रामादिक कार्यविना स्थूल प्राणा तिपातादिक मारे करतुं नहिं. अर्थात् मुनिपासें स्यूल प्राणातिपात विरमण नामा व्रत अंगीकार कर पढी तेज नगरने विषे तेनो राजा जयसेन नामा हतो, तेनी सेवा करवामां ते चंद्रकुमार रह्यो, तेम करतां ते प्रीतिपात्र थयो. एक दिवस ते जयसेन राजायें कयुं के प्रापणो कुंन नामक सामंत बे, ते घणोज प्रचंम बे, माटे त्यां जइ तेने तुं बानी रीतें मारी नाख. त्यारें चंदकुमारें कयुं जे में तो सुदर्शन मुनि पासें बानो मारवानो नियम लीधो बे, ते वचन सांजली राजा अत्यंत खुशी थने तेने पोतानो अंगरक वनाव्यो. तेने पुत्र पणे राख्यो, अने सामंतनी कन्या पण तेने परणावी. सर्व राज्य कार्यमांतेनी योजना करी. हवे ते पछी एक दिवस सैन्य सहित चंदकुमार सामंत एवा ते कुंन राजाने संग्राममां जीती तेना नगरना कि लाने नांगी कुंन राजाने बाधी, पोताना स्वामी जयसेन राजाने स्वाधीन करो. शरण थयेला कुंन राजाने सन्मानपूर्वक जयसेन राजायें बोडी मूक्यो. पठी चंदकुमार मनोहर चंड्सरखा निस्तं यशथी शोजवा लाग्यो. हवे ते चंदकुमारनो ज्येष्ठ चाता शूर कुमार, पोताने युवराज पद पितायें व्याप्युं बे, तो पण असंतुष्ट चित्तथको पोताना बापने मारवा माठें उयुक्त थयो, कारण के तेले विचार करयो के मारा पिताने जो हुं मरण शरण करूं, तो तेमनुं मने स्वतंत्र राज्य मजे ? तेम विचार कर पहेरदारोने Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ०१ बेतरी शयनगृहमा पेशी खड्गना कर्कश एवा प्रहारोयें करी पोताना बापने मारवा लाग्यो,ते वखत त्यां राणी हती तेणें महोटो बुंबारव करवा मांड्यो, तेवामां त्यांराजाना पहेरावाला हता, तेणे आवीने तत्काल तेने बांध्यो, बां धीने तेनो न्याय करवा माटें रात्रिये तो तेज ठेकाणे राख्यो. प्रातःकालने विषे ज्यां जुवे, त्यां तो शूरकुमार के ? पनी राजापासें जा निवेदन कयुं जे महाराज! आ तो थापने मारनारो यापनो पुत्र शूर कुमारज ? ते सांजली शत्रुजय राजायें पण पुत्रमारण अपवादना जयथकी मास्या विना तेनुं सर्व धन वगेरे लूंटी लश्ने दुकम कयो के मारा राज्यमां तारे को ठेकाणे रहे, नहिं ? एम कही पुरथी बाहेर काढी मूक्यो. पनी पोताना बाहार फरता दूतो थकी ते चंकुमारनुं सर्व वृत्तांत जाणीने आमात्यो पासे कागल लखाव्यो के, “हे चं! तमारा नाश्ने, तमारा पितायें मारवाना सबबथी काढी मूकेलो बे,तेमाटे तमें जलदी याही बावजो.” एवी हकीगतनो लखेलो कागल आप माणासोने हाथी पर बेसाडी चश्कुमार पासे रत्नपुरमा मोकल्या, तेमाणा सोये पण त्यां जश्ने ते कागल चंकुमारना हाथमां दीधो,चंश्कुमारपण तेमां लखेलो सर्व लेख वांची तेनो सर्व सार जागी,ते सर्व बिनानी जयसेन रा जाने विज्ञप्ति करीने दुकम लअश्वारूढ था तूर्णताथी पोताने गाम आव्यो. हवे शूर अने चंकुमारनो पिता जे शत्रुजय राजा ते शूर कुमारना मारेला घाथकी वेदनात थयो थको शूर कुमारने विषे मत्सर युक्त थ केटलेएक दिवसें मरण पामी कोइएक वनने विपे हाथी थयो. पितृवधना पापरूप कलंकित कर्मे करी जीविकानो करनार, एवो ते गुर कुमार पण दैवयोगें तेज वनमां कीडा करवा माटें गयो.त्यां हस्ती थयेला एवा पोताना पितायें पूर्वनवना वैरें करी तेने मारी नाख्यो. ते मरीने त्यांज कोइएक निन हतो, तेनो पुत्र थइ अवतस्यो. ते निलनो पुत्र थयेलो शूर मृगया माटें गयो, त्यां पण फरीने तेज हाथीयें तेने मारी नारख्यो. अने ते हाथीने बीजा किरातोयें मारी नाख्यो, एम ते वेदु जण मरीने महाटवीने विषे एक हाथी अने बीजो वाराह एम वे जण थया. त्यां ते जन्मने विपे पण पूर्व जन्मना वैरथकी क्रोधांधथका परस्पर युद्ध करवा लाग्या, तेवामां कोइएक व्याधे आवी तेने मारी नाल्या. ते पाबा विंध्याचलनी अटवीने विषे हाथीना बच्चा थया, त्यां पण पूर्व वैरना स्मरणेकरी हस्तीना Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 09 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. यूथथकी बेहु जुदा थइ गया अने पूर्वनी पढ़ें युद्ध करवा लाग्या, तेवामां त्यां तत्रत्य निन्न लोकोयें दीता, के तुरत पाशमां नाखी, ग्रहण कस्या अने परंपराना रिवाज प्रमाणे तेने राजाने सोप्या, त्यां पण परस्पर, पूर्व प्रमाणे युद्ध करवा लाग्या. यु६ करता एवा ते बदुने जोश्ने राजायें महोटा कटें करी जुदा पाड्या. एवा समयमां त्यां केवली जगवान् समोसस्या, त्यारे तो ते नगरनो जयसेन नामा राजा वंदन करवामाटे गयो, अने गुरुना मुखथकी देशना सांजली. पडी अवसर जोश्ने राजायें आश्चर्यथकी पोताने त्यां लडता एवा ते बे हाथीना बच्चाना पूर्व जन्मनो व्यतिकर पूब्यो, त्यारें केवली नगवाने तेना पूर्वजन्मनुं सर्व वृत्तांत कही बताव्युं ते सांजली राजाने वैराग्य उत्पन्न थयो, तेथी पोताना पुत्रने राज्य गादीपर बेसारी केवली पासें जश् चारित्र ग्रहण कस्युं. पली गुरुचारित्र पालीने ते राजा स्वर्गमां गयो. अने बेदु हस्तीपोत मरण पामीने प्रथम नरकने विषे नारकी थया, त्यां परमाधामी देवताउनी करेती अत्यंत वेद नाउने अनुनवीने पाबी कुयोनिने विषे परिचमण करशे. माटें हिंसा थकी अनेक दोषो थाय ने अने दयाथकी अनेक गुणो थाय , तेथी हिंसानो सर्वदा त्यागज करतो. या प्रमाणे करेला नपदेशथी बोध पामेली ते सर्व स्त्रीयोयें प्रथम दयाव्रतरूप अणुव्रत अंगीकार कस्युं. हे पूर्णचं कुमार ! ते समय में विचार कस्यो, के आ मुनियें बद सारं कस्तूं, कारण के प्रास्त्रीयो थी मारुं वैरूप्य वगेरे कांश पण थाशे नहिं तेथी प्रथम में आ मुनिनी एकेक अंगमां पांच पांच प्रहार करवा धारेला ,ते विचार बंध राखी हवे ते मुनिने लाकडीना एकेक अंगमां चार चार प्रहार करीश? एम ज्यां दुं विचार करूं , तेवामां तो पानी फरीने मुनियें देशना देवानो प्रारंन कसो. ते जेम केःहे श्राविका! सत्यवाणी जे ,ते धर्म, अर्थ अने काम,ए त्रणे पदार्थने देवावाली ले तथा स्वर्ग मोदने पण देवावाली बे. कारण के सत्यवादी मनुष्य सर्वजनने प्रिय होय ने अने ते वली विश्वासन पात्र थाय . देव, दानव वगेरे सर्व ते प्राणीनी आज्ञाने अंगीकार करे ले. तो माणसो तेनी आशा पाले, तेमां तो गुंज आश्चर्य के ? सत्यवादी ज ननो जल, वायु, वगेरे सर्व दिव्य वस्तु जे जे, ते पण कोइ दिवस अप कार करती नथी. सहु को जनो तेना निर्मल एवा यशने विस्तारे जे अने Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ०३ हे श्राविका! जे अनृतवादी जनो , ते जगतने विषे जुगुप्सनीय एटले निंदानांज पात्र थाय . असत्यवक्ता पुरुष, नाइ, बाप, मित्र प्रजृति को पण जनने विश्वासास्पद थातोज नथी, तो बीजाजनने तो क्याथीज थाय? वली असत्यवादी जीवो, बीजा जन्ममां खराब मुखवाला, नथी ग्रहण क रवा योग्यवचन जेनां एवा थाय ने, मुंगापणाना तथा गंगापणाना ः खोने नोगवे . असत्यवादी जन, जिव्हावेदन दुःखना नोक्ता थाय . असत्यवक्ता अने खल लोको सर्पसमान होय २ ॥ यतः ॥ कुटिला नीषणा बिदा, न्वेषिणोमशनप्रियाः ॥विजिव्हा मारयंत्यन्यान्पयंःपानेन पालिताः ॥ अर्थः- कुटिल, जयंकर, विशे गोतवामां तत्पर, अने जीवने मसवामां नत्सुक एवा सो होय ,ते पयःपानें करी पालन कस्या थका पण सर्वनां प्राण ले . तेम खल पण तेवीरीतें कुटिल, जयंकर, मनुष्यनां खोटां बिइगोतवामां तत्पर, जीवने कुवाक्यरूप मसण करवामां उत्सु क, पयःपानरूप तेनो उपकार कस्यो होय, तो पण तेनुं हुं करनार होय . तेमाटे हे विवेकी श्राविका! क्रोध,लोन, हास्य, तेणे करी पण अलि क वचन बोलवुज नही.जु सत्यवचनना बोलनारा सरल प्राणी धन्यनी पढ़ें कोइथी पण बेतराय नहिं.अने असत्य बोलनारा प्राणी, धरणनी पेठे पोतें पोतानेज तरे ले. त्यारे ते स्त्रीयोयें पूर्वा के हे जगवन ! ते धन्य अनेध रण एबे पुरुषो कोण हता? अने तेमां एक बेतरायो अने बीजो न त रायो, ते केवी रीतें? ते वचन सांजलीने मुनि कहेवा लाग्या के हे श्रावि का! सांजलो. आज विजयने विषे सुनंदनामा नगर ने, त्यां सुदत्तनामा श्रेष्ठी वसे , तेने बे पुत्रो , तेमां पहेलानुं नाम धन्य बे अने बीजार्नु नाम धरण .तेमां धन्य , ते सऊन,सौम्य अने सत्यवादी, प्रियंवद डे. अने बीजो धरण , ते पूर्वोक्त गुणोथी विपरीत . तो पण ते बेदु सुज नने अने उष्टने परस्पर घणीज प्रीति ने. एक दिवस धरणे विचायुं जे आ मारो मोहोटो नाइ धन्य ज्यां सुधी जीवशे, त्यां सुधी तेना गुणो पासें माझं मान थाशेज नहिं ? एवो विचार करी कपटथी धन्यने एकांत स्थलमां तेडी जश्ने या प्रमाणे कहेवा लाग्यो के हे धन्य! हे नाइ! तारा प्राणथी पण वल्लन एवो जे हुँ, ते मारो एक मनोरथ , तेने तुं पूरीश? त्यारें धन्ये कह्यु के हे धरण ! नाइ ! तारो शो मनोरथ ? ते कहे. त्यारें धरण बोल्यो जे Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. आपणे वेदु जण परदेश जइये,अने त्यांथी आपणा हाथे करीज धन उपा र्जन करीयें! कारण के स्वहस्तोपार्जित लक्ष्मी विना थापणी लोकोमां कीर्ति थवानी नथी अने परदेशगमन शिवाय ते लक्ष्मी मलवानी पण नथी ॥ यतः ॥ जीवंतो मृतकाः पंच, श्रूयंते किल नारते ॥ दरिशे व्याधिवान मूर्खः, प्रवासी नित्यसेवकः ॥१॥ वरं वनं व्याघ्रगजेंसेवितं, कुमालयैः पत्र फतेश्च नोजनम् ॥ तृणैश्च शय्या वसनं च वल्कलं, न बंधुमध्ये धनहीन जीवनम् ॥ २ ॥ अर्थः-इरिडी, व्याधिवान, मूर्ख, प्रवासी, निरंतर पारकी चाकरी करनार, एवा पांच प्रकारना मनुष्य, जीवता थका पण मुवा जेवाज जाणवा, एम महा नारतने विषे लखेलुं जे.वली व्याघ्र तथा गजें तेणें सेवन करेला वनमा रहेवू, जाडपर थयेलां पत्र अने फल, तेथी नोजन करवं, तथा तृणनी शय्या पाथरी सर्बु, अने वल्कल वस्त्र पेहेरवां, ते सर्वे सारा , परंतु बंधुउनी मध्ये धनहीनपणाथी जीव, ते घणुंज खराब . माटे हे नाइ ! आपणे परदेश जश्ने धन उपार्जन करीयें ? कारण के या सर्व जगत् , ते इव्यमूलक . अर्थात् सर्वजगतने धनविना पलमात्र पण चालतुं नथी. मरण पामेलामां अने निर्धनमां कांही पण फेर ढुं जाणतो नथी. अर्थात् निर्धन मनुष्य मृतक प्रायज जाणवो. केम के मृतक शबनी पेठे तेनी सामु कोइ पण जोतुं नथी ॥ यतः ॥ निईव्योझियमेति झीम पगतः प्रचश्यते तेजसो, निस्तेजाः परिनूयते परिजवानिर्वेदमागबति ॥ निर्विष्मः शुचमेति शोकस हितोबुद्धः परित्रश्यते, निर्बुदिः क्यमेत्यहो निधनता सर्वापदामास्पदम् ॥ १ ॥ अर्थः- निईव्य मनुष्य, निर्लज थाय बे, अने निर्लज जन, तेजयी भ्रष्ट थाय . निस्तेज जन, घणाक परा नवने अनुनवीने उखने पामे , सुखी जन, शोकने पामे डे अने शोकें सहित पुरुष, बुदिथकी भ्रष्ट थाय ने अने निर्बुद्धि जीव, दयने प्राप्त थाय . माटे हे नाइ! सर्व आपत्तिनुं कारण तो एक निर्धनपणुंज . एम स्पष्ट जणाय . एवां वचन सांजली ने धन्य कहेवा लाग्यो के हे बंधो ! धन विनानुं धन ते आपणे केवी रीतें उपार्जन करयुं ? ए सांजली धरण कहेवा लाग्यो के ना! कोकना कान त्रोडीने, कोकनी बानी मानी गांठो बोडीने, वली खातर पाडीने, बंदीखानामां पडवा जता चोरोने मलीने अने बीजा केटलाएक चोरीना प्रकारथी थापणे घऐक धन मे Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २०५ लवी लेगुं ? ते वचन सांजली एकदम ससंन्रम थइ धन्य कहेवा लाग्यो के अरे पापी ! आ तुं गं बोले ? अरे विचार तो कर, परजनने तर वार्नु केटलुं मोहोटुं पाप ? तें कडं एवं जो बोली, चितवन करिये, सांजलियें, तो पण पाप लागे, तो आपणे ते काम करिये, तो तो पाप नो पारज रहे शेनो? माटे हे धरण! तुं ते वाक्य हाल बोल्यो, तो तेना प्रायश्चित्तरूप देवगुरुनु स्मरण कर, के जेथी तुं ते वाचककर्मथी मुक्त था? तेवां वचन धन्यनां सांजली धरण विचारवा लाग्यो के आ कांड माझं कर्तुं करशे नहिं ? एम विचारी, तेने सारूं लगाडवा, उष्टवाक्य बो लवारूप पापने उपरथी खोटी रीतें आलोवतो थको कहे ,के हे व्रातः! आपनुं कहे, खरूं के अधर्मोपार्जित इव्य कांइ कामनुज नहिं. अने आ जे में पापवाक्यो आपनी पासें कह्यां, ते आपना चित्तनी परीक्षा माटेज कहेलां , परंतु आपणे परदेश जश्ने में कडं तेम करशुं नहिं, अने आपणे कोक धनवान, सेवन करीने घjक धन उपार्जन करशुं ? आवां धरणनां वचनथी धन्य विश्वास पाम्यो अने बेद जरो परदेश जवानो निश्चय कस्यो. ते पनी वेदु नाश्यो पोताना माता पिताने पूज्या विना बाना माना पा बली रातें नगरथी, एकदम बाहेर निकली गया.तेमार्गमां चालता चालतां नानो नाइजे पुष्ट धरण हतो, ते विचारवा लाग्यो के आमारा महोटा नाइ धन्यने युक्ति लमावीने में मांग माम नगर बाहार काढयो ,हवे वली जो पाडो जाशे, तो मारुं धारेलु काम पार पडशे नहिं? एम विचारी ते धन्य पाडो घेर न जाय, तेवो उपाय मनमां शोधि, धरण कहेवा लाग्यो के हे वां धव ! जन जे ,ते धर्मथी सुखी थाय ले के अधर्मथी? त्यारें धन्य बोल्यो के तेमां ते तें झुं पूब्यु? ते वात तो सदु मानेज जे, जे धर्मथी जय थाय ने अने अधर्मथी क्य थाय ले. तेम टुं पण मानुं बु? त्यारे धरण कहेवा लाग्यो के तमें जगतना पण बोलवा परथीज कहो बो, के धर्मथी जय अने पापथी क्य. परंतु तमारा मनमां तमें काहिं समजता नथी. जुन, हालमां जय तो पापथकी थतो देखाय डे,पण धर्मथी थतो तो क्यांहि देखातो नथी ? ए प्रमाणे बेहु नाइने ज्यारें परस्पर विवाद थयो, त्यारे धरण बोल्यो के हाल तमें चूप रहो, आगल एक गाम आवे , तेमां आपणे जश् तेनो निर्णय प्रबोयें, तेमां जेनो वाद मिथ्या ठरे, तेनुं एकलोचन फोडी नाखवू, एवी Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. प्रतिज्ञा करीयें. ए सांजली धन्ये विचार कस्यो के मारो पक्ष तो सत्यज बे, माटे ते या तो पण मारे फिकर नथी ने धरण जरूर तेनी चक्कु खोशे ? एम जाली धन्यें कयुं के ठीक बे, तमो कहो बो, तेम जेनो पक्ष खोटो ठरे, तेनी एक आंख फोडी नाखवी, ते मारे कबूल बे. तदनंतर चालतां चा तां एक गामायुं तो ते गाममां बेदु जल गया. जश्ने त्यांनां मनुष्योने पूब्धुं के नाइयो ! धर्मयी जय थाय छे, के पापथी ? त्यारें ते गामना रहे नारी सर्वे जन ग्राम्य ने पशुसमान हतां, तेथी कहेवा लाग्यां जे जय तो पापथकीज थाय, धर्मथी ते कोइ दिवस जय होय ? एवां वचन सांगली धरण अत्यंत मनमां खुशी थइ कहेवा लाग्यो के नाइ ! जे हुं कहुं बुं, तेज खरुं ययुं के केम ? माटे तमो एक चक्कु हारी गया, हवे वली पण मारी प्रतिज्ञा बे, के चालतां चालतां खागल यावता गाममां जइने तमारुं क हेलुं त्यांना पण लोको जो खोढुं कहे, तो तमारी बीजी यांख फोडवी, नहिं तो मारी एक आंख फोडी नाखवी. ते वात पण पाठी धर्माग्रही न‍ जाववाला धन्यें कबूल करी, केम के तेणें जाएयुं जे सर्वे जन कांइ एवा मूर्ख हशे ? पढी पाढा बीजे दिवसें त्यांथी बेदु जण चाव्या, ते चालतां चालतां एक गाम प्रायुं, त्यां गया. त्यां जश्ने ते ग्रामनिवासी मनु योने पूब्धुं जे धर्मथी जय थाय बे, के पापथी ? त्यारे त्यानां पण निर्वि वेकी ग्रामीण तथा पशु समान लोको कहेवा लाग्यां जे एमां ते गुं पूढो बो, पापथीज जय थाय बे, एम प्रत्यक्ष देखायज बे ? जुन धर्मी लोको डुःखी थाय बे, ने पापी लोको मोज माणे बे. वली विधान दुःखी थाय बे, खने मूर्ख, मनमानी मोज माणे बे. सऊन पुरुष सीदाय के बने दुर्जनो अनेक प्रकारनी लीला लहेर करे बे. दाता ते निर्धन देखाय के अने कृपण धन वान् होय ले ? ते सांजली सत्यवक्ता एवो धन्य कहेवा लाग्यो के हे जाइ धरण! हुं तो चनुं तारी पासें पण करीने बेदु चक्कु हारी गयो, माटे हवे या वे मारां नेत्र तो तारे खाधीनज थयेलां बे, वास्ते जेम तुने रुचे, तेम कर. पढी पापी एवा धरणें थोर तथा खाकडानुं दूध नेत्रोमां नाखी तेनां बे नेत्रोने अंध करी दीघां, तेथी ते बीचारो नेत्रहीन थयो. तेने जोइने धरण कप cut महोटो विलाप करवा लाग्यो जे खरे! या केतुं मारुं मूढपणुं ! ने केवी मा विवेकता ! खरे केवी मारी खोटी अनर्थकारी उत्सुकता ! हो ! Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २०७ में हास्यथी जे कार्य करवा धायुं हतुं, ते कार्य मने महोटा शोकनुं देवा वालुं थयुं ? माटे धिक्कार के मुने जे परिणाम जोया विना सहसात्कारथी आईं उष्ट कार्य कयुं,अरे आ में घगुंज अस्त कार्य करयुं ? जे माणस परिणाम जाण्याविना कार्य कारक थाय , ते फुःखीज थाय ने.कडें ॥सहसा विदधी त न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्॥ तृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥१॥ अर्थः-सहसा कां पण कार्य करवू नहिं.कारण के अविवेक , ते परम आपत्तिनुं स्थानक ,अने विचारीने कार्य करनार प्राणीने गुणोथी लोनाइ गयेलीयो सर्व संपत्तियो पण पोतानी मेलेंज यावी ने वरे . अर्थात् जे समजीने कार्य करे , ते सुखी थाय ,अने जे सा हसथ। कार्य करे ,ते अत्यंत दुःखी थाय , एम खोटो नपरनो विलाप करीने धन्यने कहे , के हे ना! तमारो एमां कां पण वांक नथी परंतु मेंज मुग्धजावें करी या काम कयुं बे, हवे हुँ झुं करूं ! क्यां पो कार करूं!! अरे हुँ हवे सगां वहालांने मुख केम देखाडी सकीश!!! इत्यादि कपटथी कहेवा लाग्यो, ते जोइने दयाशील धन्य, प्रेमें करी पोता परना स्नेहनावनी सर्ववात मानीने याश्वासना करी कहे जे, के हे प्रियन्त्रात ! तुं कांइ पण खेद कर नहिं. आमां तारो कांहि दोप नथी, सर्व जीवो ले, ते पोत पोताना कर्मने वश थयेला . जेवा जेनां कर्मो होय, तेवी तेने बुझि उत्पन्न थाय के अने कर्मो पण तेवांज ते जोगवे ले. माटे तुं कां पण खेद कर मां. एवी रीतें परस्पर कहेतां कहेतां केटलोएक मार्ग कापी आघा गया. त्यां एक दम धरण जे हतो, ते त्यांथी दोडी जय कपटथी खोटो पोकार करी कहेवा लाग्यो के अरे ! या सिंह, आप णने मारवा आवे , हा !!! हवे गुं थाशे ? त्यारें धर्मिष्ठ धन्य, स्ने हथी कहेवा लाग्यो के हे वत्स ! तुं गजरा मां अने जलदी घेर जा बने आपणा पिताना वंशनुं रक्षण कर. कारण के आपण वेदु सिंहना मु खमां आवी जागुं, तो आपणा पितानो वंश उबेद थइ जाशे ? एम ते धरणने घेर जवानी रजा आपी. पडी खराब जेनुं चरित्र तथा उष्ट नुजंग समान एवो ते धरण, पोताना आत्माने कतरुत्य मानतो थको, ते बीचारा अंध एवा एकला धन्यने उजड वनमांज पडतो मूकीने घर तरफ चाल्यो आव्यो. हवे धन्य जे हतो, ते इतस्ततःपरिचमण करतो थको सायं Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a. . शत जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कालें, अटकलें अटकलें एक मोहोटा वडदनी जीचें गयो, त्यां जश्ने रात्रिये विलाप करवा लाग्यो, के अरे! मारो नाइ एकलो निराधार वनने विषे क्यां गयो हशे !!! एम विलाप करे , त्यां तो तेज वननी वनदेवता हती ते विलाप करता धन्यनी प्रौढानुनावता अवधिझाने करी जाणीने दया अणी कहेवा लागी के, हे धन्य! ते उर्जन शिरोमणि अने अतिशेही एवा तारा नाइधरणनी चिंता करवाथी हवे सयुं? अर्थात् ते उष्टनी चिंता तुं शामाटे कस्या करे ? हे वत्स! ा नेत्र रोगने नाश करनारी एक गुटिका भारी पासे , ते तुं ग्रहण कर. एम कहीने पोतानी पासें जे गुटिका हती, ते तेना हाथमां आपी ने वनदेवी पोताना स्थानक प्रत्ये गइ. पली धन्ये पण ते देवीनी दीधेली गुटिका लश्ने नेनुं पोतानी अांखमां अंजन कयुं, के तुरत तेनां दिव्य नेत्रो थक गयां, तेथी ते वनदेवीनो नक्त थयो. . प्रनातें त्यांथी चालवा लाग्यो, ते चालतो चालतो हलवे हलवे सुनश नामना नगरमां आवी पहोंच्यो, त्यां तेज गाममां ते राजानी एकज एक खोटनी कन्या हती, तेने चमां कांक रोग थवाथी अंध थइ गइ हती, तेनी चा सारी थवा माटे तेणे घणाक वैद्योनां उसड कस्यां,पण कोइना उसडथी याराम थयो नही, त्यारें मुंजाइने ते राजायें तेराव कस्यो के जे वैद्य आ मारी कन्यानी आंखो सारी करी तेनुं बंधपणुं मटाडे, तेने आ मारी कन्या परणावं तथा मारूं अर्धं राज्य पण आपी दवं? एवो ठेराव करी गाममा पटह वगडाव्यो, तेवामां तो ते गाममां आवेला धन्य कुमार पटहनो शब्द सांजल्यो अने तुरत कहेवा लाग्यो जे ढुं राजकन्याने देखती करूं ? त्यारे राजायें ते वात कबूल करी अने ते धन्यने पोतानी कन्या पासें तेडी गयो धन्य कुमार वनदेवतायें आपेली अंजन गुटिका लश्ने राज कन्यानी आंखोमां यांजी दीधी, तेथी त्वरित ते दिव्य नेत्र वाली थइ गइ ने, वहेवा लागी के अहो या औषधथी तो मारां जे प्रथम नेत्र हतां, तेथी पण घणांज सारां थ६ गयां ? ते सांजली राजायें मो होटे मंमाणे पोतानी कन्याने धन्य साथे परणावी दीधी. तथा अर्ध राज्य पण आपी पोता सरखो करी गादी पर बेसास्यो. __ एम करतां एक दिवस, ते धन्य पोतें राज मंदिरथी नीचे उतरी मार्गमा जतो हतो, तेवामां को एक ब्राह्मणे आवी आशीर्वाद दइ याचना करी. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ए के हे गोब्राह्मणप्रतिपाल ! हजी हमणांज थापना पिताना सुनंदनपुरथी यावेला मुज नवीन ब्राह्मणने पेहेरवा माटे बे धोतीयां अने दक्षणा थापो. ए वचन सांजलीने धन्य कुमार, ते ब्राह्मणने पोताना पिताने गा मथी आव्यो जाणीने घेर तेडी लाव्यो, अने पोताना माता पितानुं सर्व कुशल पूथु. त्यारे ते ब्राह्मणें कहूं के हे नाइ ! सदु खुशी आनंदमां ने पण तमोने अने धरणने रस्तामा वाघ मारवा दोड्यो, ते वात त्यां धरणे कहि, ते सांजली तमारां माता पिता बहुज क्लेश करे . के धरण तो बाही याव्यो, पण धन्यनुं युं थयुं दशे? त्यारे धन्यें पूजयुं के बीजुं कांइधरण बोल्यो? त्यारे कहे .धरण तो वाघना मेलाप शिवाय बीजुकाइ पण बोल्योज नथी.त्यारें धन्ये कह्यु के ए तो ठीक, पण मारो लघु नाइबीचारो ते धरण खुशीथी त्यां पोहोंच्यो ? कारण के ते वनमां निःसहाय एकाकी मारी पासेंथी गयो हतो! त्यारें ब्राह्मण कहे ,के तेनी का चिंता करशो नहिं, ते तो नीरोगी खुशीमां बे.ते सांजली खुशी थयेला धन्ये ते ब्राह्मणने लाडु जमाडी उत्तम वे वस्त्रो तथा दक्षणा पोतानी नमांकित मुश्किा, अने एक पत्र लखी आपीने कडं के आ पत्र मारा पिताने आपजो. एम कही तेने रजा आपी. हवे ते ब्राह्मण पण सुनंदन पुरमा गयो, अने तेना माता पि तानी पागल ज ते धन्यना यापेला वस्त्र, ददगा अने नामांकित् मु शिका, तेने देखाडीने धन्यनो लखेलो पत्र हतो, ते आप्यो, ते पत्र लीधो. पली तेवी रीतना पोताना पुत्रना गुन समाचार लावनारा ते ब्राह्म पनो सुदत्तश्रेष्ठीये घणोज सत्कार कस्यो अने ते धन्यना लखेला काग लमा पोताना ना धरणना करेला कर्म विना बीजी लखेली सर्व हकिगत वांची सदु कोइ अत्यंत खुशी थयां अने सुदत्त श्रेष्ठीयें वधाइ वगडावी. हवे ब्राह्मणे आणेला धन्य कुमारना सर्व समाचार जाणीने धरणे विचारवा मांमधु के अरे! आंधलो करेलो ते धन्य, एवं मोहोटुं निर्जनवन ते केम उतस्यो दशे? अरे वली एने आवी उत्तम राज्य लक्ष्मी तथा स्त्री ते क्यांथी मली दशे? हवे ए राज्य लक्ष्मीने प्राप्त थयो, जे अने में तेनी याख्यो फोडीने तेथी व राखी जरूर माझं कांही पण जलदी प्रति कूल करशे, एम करतां जो ए आहिं यावे, तो तो हुँ तेनो कोइ पण उपायें तुरत नाशज करुं? परंतु सुखमां पडेलो ते पाहीं आवेज शामाटे ? हवे Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१0 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ए सर्व विचार बोडी दइने तेथी हुँ पोतेंज त्यां जश्ने एवो कोइ नपाय करूं के जे उपायें करी त्वरित ते नाश पामे ? एम विचारीने पोताना माता पिताने कहे जे के हे मातापिता ! मारा धन्य नाइने में घणा दिवसथी दीठो नथी,तेथी माझं मन तो त्यांने त्यांज वलगी रह्यु ,ने मने ते विना गमतुं पण नथी ते माटे ढुं तो जाइ पासें जावं ? एम कही ने धरण त्यांथी एकदम धन्य कुमार जे गाममा रहेलो , ते सुनश् नगरमां श्राव्यो. श्रावीने तुरत धन्य पामें गयो. धन्य कुमार तो तेने जोड्ने मनमा अत्यंत हर्ष पाम्यो. अने धरण तो मनमा खेद पामी विचारवा लाग्यो के अरे! या धन्ये कह्यु हतुं, के धर्मे करी जय , ते वात तो था जोतां खरीज लागे ? वली पण पाबो विचार करे ने, के फिकर नहिं. ते धनवान तथा राज्यलक्ष्मीवान थयो, तो पण सुं थयुं? तेने ढुं कोइ पण प्रकारथी पुःखजालमां नाखी दीधाविना रहीश नहिं, अने मारो धारेलो मनोरथ पूर्ण कस्या विना पण रहीश नही? एम विचार करीने त्यां रह्यो. धन्यने राज्य प्राप्त ययुं , तो पण सरल पणाथी पोतानी समान ते धरणनी श्रासना वासना राखेडे, अने ते राजा पण या धरण ध न्यनो नाइ बे,' एम जाणीधन्य कुमारथी पण वधारे मान आपे से, चा करो पण ते वेदु राजा करतां तेनी सेवा चाकरी वधारे करे . परंतु कृतघ्नीपणायें तथा निर्मऊपणायें ते धरणें युं कस्यं ? के एक दिवस. ते. राजा पासें एकांतमा गयो, त्यां जश्ने कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! तमो तथा तमारुं चाकरमंमल, ते सर्व सहस्रचलु वाला बो, तो पण तमने आ धन्ये केवा तरी नाख्या ? ते सांजली राजा ससंन्रम थइ पूबवा लाग्यो के हे ना! तुं हुं बोल्यो ? फरीने कहे. त्यारे पावं पण तेणे तेज वाक्य कह्यु. तेथी राजा बोल्यो के केम, मु ए धन्यें अमोने तस्या ? धरों कयुं हे हा. पण जो मारु नाम प्रसिद्ध न करो, तो ढुंज तमोने सर्व हकीगत कहि बतावं. कदाचित् जो मारुं नाम तमें कहो तो ए दान वरूप धन्य मुने मास्याविना मूके नहिं. त्यारें राजायें कह्यु के तमो नि श्चिंत रहो. अमो तमासं कोई पण रीतें नाम नहिं लहियें ? त्यारे घरण बोल्यो के हे राजन ! अमारा गाममा एक चांमाल हतो, ते अत्यंत अ नाचारी होवाथी अमारा राजायें तेने पोताना देशथी बाहिर काढी मूक्यो Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २११ ने, तेज था धन्य ले.अने हुँ पण आहिं फरतो फरतो यावी चड्यो अने तेने मल्यो, त्यां तो तेणें जाएयु जे बरे था तो मारा गामनो , ते वली थाहीं क्याथी आव्यो हशे? हवे जो दुं तेने मारा हाथथी बुटो पाडीश तो मारुं गुप्त चरित्र सर्व कही देशे? एम जाणीने मने या बंदीखानामां नाख्यानी पेठे रोकी राख्यो ने अने मारी शरनरा पण घणीज करे . माटे महेरबानी करी मुने आहींथी कोई उपायें बोडावो, के जेथी हुँ तेना स्प स्पिर्शथी थयेली अशुद्धिने मटाडवा माटे तीर्थाटन करी गुम था ? था आपने जे में गुह्यवात करी बे,ते आप समर्थ बो, माटे करी . हवे राजा तेनी खोटी करेली वातने सत्य मानी क्रोधाकांत थ गयो ने घरणने कहेवा लाग्यो के हे नश्क जन! श्रारीत जोतां तो ते धन्य कुमार, पुष्ट, पृष्ट अने महा धूर्त देखाय ? नाइ! तुं प्रा वात हवे कोइने कहीश नहिं हो? कारण के जो ते वात प्रसि६ थाय, तो मारी महोटी मूर्वा ठरे, ने फजेती पण थाय ? केम के ते उष्ट धन्यने में मारी दीकरी आपेली ? जो. बाजथी हुँ पण हवे एवो यत्न करीश, के जेथी तुं तारे गाम सुखें जर शक्य. अने ते धन्यनुं मूल पण निकले? ते वचन सांनती अति खुशी थयेलो धरण पोताना स्थान प्रत्ये गयो. __ संध्या समयने विषे राजायें प्रवन्नपणे ते गामना चांझालोने तेडाव्या अने तेजने कह्यु के या जे धन्य कुमार ने, ते प्रातः कालमा ज्यारें शौच करवाने पायखानामां आवे, त्यारे तमें त्यां पायरखाना फरता बाना माना उना रहीने तेने जलदी तरवारथी मारी नाखजो. तेम करवाथी हूँ तमने घणाज खुशी करीश? ते सांजली चांमालोय ते काम करवानी हा कही. पली सवारना प्रहरमां चांमालोयें आवी तरत ते पायखानाने प्रसन्नरीतें एटले पोतें न देखाय तेवी रीतें घेरी लीधुं. सवारमा धन्य कुमारने पाय रखानामां ज नाही धोइ सनामां जवानो वखत थयो, तेज वखतमां अ चानक धन्य कुमार, माथु सुखवा याव्युं, त्यारे तेणे विचास्युं जे हाल काहिं माराथी राजसनामां जवाशे नही माटे मारां वस्त्र पहेरावीने मारा ना धरणनेज राजसनामां मोकलुं? एम विचार करी धरणने बोलावीने कह्यु के नाइ! तुं मारो वेष पहेरी, सनामां जइ जे बासनपर हूं बेसुं , त्यां जश्ते आसनपर तुंबेस.अने जो त्यांतुने कोइ पूजे, तो कहेजे, जे धन्य Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ने शिरोव्यथा थवाथी ते सुतो .ते सांजलीने खुशी ययेला धरणे पोताना नाइ धन्यनां सर्व वस्त्र पहेस्यां अने पहेरीने ज्यां राजसनामां बेसवा जाय, त्यां तेने शौच जवानी वा थर, तेथी ते धन्य कुमारनो वेष पेस्यां ने पेस्यांज पायरखानामां गयो,नेवामां तोते चांमालोयें धन्य कुमार जेवां वस्त्र पहेरवाथी श्रा धन्यकुमार आव्यो, एम जाणी तरवारथी तरत तेने गुपचूप मारीज नारच्यो, तेणे तरवारना मारना पुःखथी घणा पोकार पाज्या, पण पाय खाना पासें थता पोकारो कोण सांनले ? तेथी कोश्ये सांजव्याज नही अने मरण पाम्यो अने थोडीवार पनी तेनो तपास करावतां राजाने ते धरणज पा यखाना पासें मारी नाखेलो जणायो? राजा पोताना मनमां, पोतानुं करेलु अवलु थडे जाणी मनमां ने मनमा ते उष्टकार्यनो पश्चात्ताप करी काहिं पण बोल्या विना वेसी रह्यो. पनी धन्ये त्यां प्रावी घणुं रुदन कर। तेनुं और्ध्वदेहिक कर्म कयुं अने तेना मारनारनो तपास कराव्यो. परंतु ते धरणने मारवामां पं राजाज होवाथी कांइ पण मारनारनो पत्तो लाग्यो नहिं.पनी तेना मरण शोकथी धन्यकुमारें तो नोजननो साव त्यागज करी दीधो. ते वात कोश्य यावी राजाने कही, के धरण मरी जवाथी धन्य कुमार शोकाक्रांत था जोजन पण करतो नथी अने तेने घj समजावीयें यें, तो पण ते समजतो नथी. ते सांजली राजायें विचास्युं जे अरे था धन्य कुमार तो सरल, महापुरुप, सुकुलोत्पन्नज , कारण के ते धरणना मरण शोकथी बाइ रही अन्न पण लेतो नथी. माटे आ रीत जोतां तो स्प टरीतें एम लागे ने,के ते धरणज उष्ट हतो, अरे! ते केवु मुने अवलुं सवलु स मजावी गयो हतो? हा, खरी वात तेनी मुखमुशजकूर कर्म करनारी देखा तीहती? 'जे खोदे, ते पडे, ते कहेवत प्रमाणे तेपोतेंज पोताने पापें नाश पाम्यो? एम विचार करी राजा धन्य कुमारनी पासें श्राव्यो,यावीने संसारनी अनित्यता विषे केटलाएक दृष्टांत द६ तेने समजाव्यो. अने ते धरणनी कहेली सर्व उश्चेष्टा पण कही संनलावी जोजन करवा वेसास्यो.धन्ये,वो देष मारा सगा नाइने मारी नपर केम हशे? तेवो विचार करतां थकां के टलो एक काल निर्गमन कस्यो. हवे एवा समयमां तेज गामना उद्यानमां विजयकेवली नामा मुनिराज समोसस्या, ते सांजली राजा वगेरे सर्व वांदवा माटे गया, त्यां मुनिराजें देशना देवा मांझी, ते सर्व कोश्ये सां Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १३ नली. पढी अवसर पामीने केवली नगवानने, धन्य कुमारे पूज्युं के महा राज! धरण नामा एक मारो नानो नाइ जे हतो, ते मारी उपर वृथा घणोज वेष राखतो हतो, तेनुं गुं कारण हो ? अने ते मरीने क्यां गयो हो ? ए आप कृपा करीने मने कहो. त्यारे केवल झानो नगवान बोल्या के हे धन्य ! तुं जेम नामथी धन्य बो तेम अर्थथी पण धन्यज बो. अर्थात् तारु नाम धन्य डे, तेवाज तारामां गुणो ने. हे ना! तुं सत्यवक्ता तथा जनमान्य बो. हवे तारो जाइ धरण जे ताराथी विपरीतकार्यकारी तथा तारो हेषी हतो, ते पूर्व जन्मना कारणथी हतो. अने हाल ते धरण मरीने क्यां गयो हो ? ए जे पूब्युं ते सांजल. हे धन्य! ते धरण प्रथम तो बाहिं चांमालना हाथथी मरण पामी चांमालनी कन्यापणे न पन्यो. ते ज़्यारें जुवान थइ, त्यारें चांमालने आपी, तेने त्यां सर्प कर डवाथी मरण पामीने हाल ते धोबीने घेर पुत्रीपणे उत्पन्न थयो , ते कन्या कुरुप, खराब मुखवाली, पुगंध, स्वर, मूगी, बहेरी थयेली बे. हाल ते बाज नगरमा वसे ले. या प्रमाणे केवली जगवाननां वचन सांजली देशना सनिलवा बेठेली सर्व सना एकदम चमत्कार पामी गइ. अने धन्य कुमारें तो ते सांजली वैराग्य पामी पोतानो जे पुत्र हतो, तेने पोतानी राजगादी पर बेसारीने तेज केवली पासें दीक्षा ग्रहण करी. कमें करी ते धन्य कुमार देवलोकें गयो. अने परंपरायें ते मोक्ने पण पामशे. वली जे धरण कुमार ने, ते दुःख नोगवतो थको नवाट वीमां ब्रमण करशे ? माटे हे धर्मशीला श्राविका ! सत्य बोलनारने तथा असत्य बोलनारने जे फल मले ले, ते फल में धन्यना अने धर एना दृष्टांतथी सविस्तर कह्यु. माटे सत्यज बोलवू, परंतु प्राण जाय, त्यां पर्यंत असत्य तो बोलकुंज नहिं. __ या प्रमाणे मुनिनो कहेलो धर्म सांजली तुरत ते श्राविकायें अलिक वाक्य निवृत्तिरूप मुनि पासें व्रत तीधुं. त्यारें श्रुतसुंदर सूरि कहे , के में चिंतव्यु जे या उपदेशथी तो ठीक थयुं, केम के हवे मुने आ स्त्रीयो कोइ पण दिवसें खोटुं बलीने उतरशेज नहिं, माटे अटलो आ मुनियें मारो उपकार कस्यो ने, तो ते मुनिना प्रत्येक अंगमा आगल में चार चार प्रहार मारवा धास्या ,ते विचार मोकुब राखी तेना प्रत्येक अंगमांत्रण त्रज लाकडीना Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. प्रहारो मारीश? आवी रीते में वे प्रहार तो वर्जी दीधा. वली पाडो हुँ श्रव णोत्सुक तथा निश्चल थइने सांजलवा तत्पर थयो, तेवामां तो पाला पण मुनि, देशना देवा लाग्या के हे श्राविकान! अदत्तवस्तु पण धर्मज्ञजनोयें ग्रहण करवी उचित नथी. कारण के ते अदत्तनुं ग्रहण जे दे, ते वीतरागें पापर्नु मूलज कहे . कोइ प्राणी जीवोने मारे ने ते जीवोने जेवं मुःख उत्पन्न थाय ने, तेवुज दुःख जेनुं इव्य चोरी लश्य, तेने नुत्पन्न थाय ने. माटे परस्वहरणनो पण प्रयासें करीने त्यागज करवो. जुवो. परश्व्यहरण करनारा एटले चोरी करनारा मनुष्यो आलोकमां पण प्रत्यद हाथ, पग, व गेरे बेदन नेदन शूलि परोवाना तथा बंदिखाना वगेरेनां वोने नोगवे डे अने मृत्यु पाम्या पली पण पाला परनवने विपे दासपणाने, दरिइप गाने, प्रेष्यपणाने, वाहनपणाने प्राप्त थाय ने. चोरी करनार प्राणी घणा काल पर्यंत नरकमांज पचे . अने हे श्राविका! जे परव्यपराङ्मुख प्राणी होय , ते था लोकने विषे विश्वासास्पद थाय , आ जन्ममां सुख कीर्त्तिने पामे बे. कोइ पण दिवस धननी हानिने पामता नथी, तेनुं धारेलु काम पार पडे . अने परलोकने विषे पण तेने समग्रलान थाय , कोइ तरेनी चिंता प्राप्त थाती नथी. जेणे अदत्त परव्यग्रहण करवानुं पञ्चरकाण लीधुं छे, ते जन तो सिमदत्तनी पेठे सुखीज थाय डे, अने जेणे ते चोरी करवानुं सरु राख्युं , ते कपीलनी पेठे कुःखी थाय . प्रा वचन ज्यान गुरुये कयुं त्यारे हे कुमार! मारी स्त्रीयोये ते मुनिराजने पूब्युं के जगवन् ! ते सिदत्त अने कपील कोण हता? अने तेनुं केम थयुं ? ते अमोने कृपा करी सविस्तर कहो. त्यारें अमृत समान वाणी करी मुनि वली पण कहेवा लाग्या के. हे श्राविका! आज विजयने विषे विशाल नामा एक नगर ,तेमांतुन्छ वैनववाल मातृदत्त अने वसुदत्त नामक बे वाणीया रहेता हता, परस्पर ते मित्र हता,तेथी ते वेदु जण व्यापार पण साथेंज करता हता,तेमां मातृदत्ते तो स्यूलादत्त ग्रहण, प्रत्याख्यान लीधेनुं हतुं, अने वसुदत्त तो अधर्मी होवाथी कूट तोल अने कूटमानथी धमधोकार धंधो करतो हतो, परंतु ते वसुदत्तनी पापिष्ठ वृत्तिथी तेने धननी वृद्धि थाती न हती॥ यतः॥ मूल्येन किंचित्कलया च किंचित्,माप्येन किंचित्तुलया च किंचित् ॥किंचिञ्च किंचिञ्च Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २१५ सनासमदं, तथापि लोकेऽस्ति वणिग्घि साधुः ॥ १ ॥ श्रुत्वा उर्वाक्यमुच्चै ईसति मुषति च स्वीयमानेन लोकं, ध्यई गृह्णाति पण्यं बदुकमिति वदन्न ईमेव प्रदत्ते॥स्वीयाऽन्यायेऽपि पूर्व व्रजति नृपगृहं लेख्यके कूटकारी, मध्ये सिंहप्रतापी प्रकटमृगमुखः स्याहणिक्कुटप्टष्ठः ॥ २ ॥ अर्थः- कांक मूल्यथी, कांक कलाथी, कांक मापथी, कांक तोलवाथी कांक सना नी समद, व्यने लूंटी लीये ,तो पण लोकमां वैश्य सारो माणस कहे वाय ३ ॥१॥ वली वैश्य , ते को फुर्वाक्य कहे, तो ते वाक्य सांजली चंचां स्वरथी खड खड हसी काढे जे. अने पोतानी पासे राखेला तोलां उथी लोकोने तरे , वली वस्तुनुं मूल्य बमणुं लीये, अने आ में तमने घणुंज आप्यु , एम स्पष्ट रीतें कहीने अर्बुज प्रापे . अने खोटुं नामुं लवी पोतातो अन्याय बतां पण ग्राहकने कहे के तारो अन्याय ? एम कही पालो पोतेंज ते ग्राहक पहेला न्यायस्थानमां जाय बे, कां वस्तु लीधी अथवा दीधी होय तो तेनी वच्चे सिंहसमान प्रतापी होय , श्रने प्रत्यद जो पापणे जोश्ये तो मृग समान देखाय बने आपणा अ नावमां तो ते निंद्य कार्य करनार होय . हवे ते वेहु जण व्यापार माटे स्वल्प मूल्यवानुं करियाएं लावीने पुंमपुर नामक एक महोटुं गाम हतुं त्यां गया. ते गाममां वसुतेजा ना मा राजा राज्य करे . ते राजाने इव्यनो नंमार साचवे एवो कोई विश्वा स पात्र पोताना गाममां नंमारी मलतो न हतो, माटे ते नंमार साचव वामां साची दानत वाला कोई पण परदेशी मनुष्यनी परीक्षा माटे एक रत्नजडित कुंमल, गामनी बाहिर रस्तामां नाखी दीधुं हतुं. अने ते कुंमल, बाहेर गामनो कोण लीये ,अने कोण नथी लेतो? ते जोवा माटे जाडनी नथें कोई न देखे तेवी रीतें माणासो राख्यां हतां, तेमां कोइ पण जो तेज गामनुं माणास रस्तामां चालता चालतां रत्नकुंमल ग्रहण करे , तो तेने सुनटो जाडनी उथथी बाहार यावी हाकल मारी पालुं मूकवानुं कहे , अने दंग करावे . तेथी ते सुनटना नयनी तत्रत्य जनने खबर पडवाथी तग्रामस्थ माणास तो रत्न कुंमलने को पण ग्रहण करता नथी. हवे ते वामां मातृदत्त अने वसुदत्त ए बेदु मित्रो तेज रस्ते निकल्या, त्यां र स्तामां पडेलु रत्नजडित कुंमल बेहु जणें दीतुं, तेमां मातृदत्ने दातुं, पण Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मनमां समजो जे,ते अदत्त ने, माटे लेवायज नहिं. एम समजी एमने एम गुपचूप चाल्यो गयो, अने पनवाडे चाल्यो आवतो वसुदत्त ते रस्तामां पडेला कुंमलने जोस्ने एकदम खुशी थश्ने लेवा दोड्यो. त्यारें मातृदत्तें कह्यु के नाइ! ए कुंमल नथी पण विष ,माटे ते तुं लश्श नहिं. त्यारे तेनी दे खतां तो तेणे ते कुंमल पडतुं मूक्यु. अने पाना त्यांथी चाव्या, चालतां चालतां तेने बोध थवा माटे मातृदत्ते एक दृष्टांत कहेवा मांमयो. के कोई एक नगरने विपे देव अने यश नामना वे वैश्य रहेता हता, ते पण यापणी पेठे वेतु मित्र हता, अने व्यापार पण बेद सरखोज करता हता, तेमां देवनामनो श्रावक हतो ते अदत्त वस्तुथी पराङ्मुख हतो,अने बीजो यश जे हतो, ते देवथी विपरीत दतो. हवे एक दिवस ते वेदु जए शोच जवा गया, अने त्यांथी ज्यारें पाबावल्या,त्यारे तेने मार्गमा प डेलुं एक कुंमल नजरें पडघु, तेमां देवश्रा ते कुंमल जोयुं, तो पण जेम न जोयुं होय, तेवीज रीतें रस्ते चाल्यो गयो, अने यश जे हतो, ते, ते कुंमलने लेवा दोड्यो, त्यारे देवश्रादें कडं के नाइ! ते आपणुं नथी, मा टे ते सेवाथी अदत्तादान थाय अने अदत्तादान- शास्त्रमा मोहोटुं पाप लखेलु डे. तेथी तारे ते लेवु योग्य नथी. ते सांजली ते वखत तो तेणे पण लहाथी लीधुं नहिं अने पड़ी तुरत ते देखे नहि, एवे बीजे आमे रस्ते ज ज्यां कुंमत पडयुं हतुं त्यां पालो आव्यो, आवीने तेणे ते कुंमल लही लीधुं. पण विचार करवा लाग्यो के धन्य ने देव श्राने के जेणें या कुंमलने जोयु, पण निर्मोन थर लीधुं नहिं! परंतु फिकर नहिं तेने पण ढुं बोडीश नहि, एटने तेने पण ढुं कुंमलनो लागीयो करीश तेथी ते पण मारा पा पनो जागीयो था? एम विचारीने ते कुंमल देवथी बार्नु राख्यु.पनी बेदु जण बीजा नगरमां गया,अने ते देवथी दाना माना चोरी लीधेला कुंमलना इव्यथी तथा पोताना व्यथी घणुंज करिया| बेदु जणे मलीने लीधुं अने पली पोताने स्थानकें याव्या. हवे पोताना इव्यथी जेटलुं करियाjाव, घटे,तेथी घगुंज वधारे यावेलुं जोश्ने देवश्रादें पूज्युं के हे यश!आपणुंडव्य तो थोडं हतुं अने या करियाणु केम घणुंज आव्युं देखाय ? त्यारें तेणें कुं मल वेचाना व्यथी करियाणुलेवानी बानी वात जे हती, ते स्पष्टरीतें कही देखाडी. ते सांजली त्रास पामी देवश्रा तेनो हिसाब कस्यो अने कुंमलना Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंड अने गुणसागरनुं चरित्र. २१७ इव्यनुं जेटलुं करियाणुं लीधुं हतुं, ते सर्व तेने श्राप्युं अने पोताना नागना इव्यनुं जेटलुकरिया| आव्युं हतुं, ते विजाग करी पोतेराव्युं. तेम करवाथी पोताना जागमा धावेलु घणुंज करियाणुं जोइ यश, मनमा अत्यंत खुशी थयो अने तेणें नाडे राखेला करियाणा नरवाना रडामा ते सर्व जयं. पनी तेज रात्रिने विषे यशे जेमां करियाणुं नरेलुं हतुं, ते घर, रात्रियें चो रोयें फाडीने सर्व चोरी लीधुं अने ज्यारें सवारनो प्रहर थयो, त्यारे त्यां ज जोवे, तो घर फाडी सर्व करियाणुं चोराइ गयेखें ले ? ते जोक्ने थ त्यंत क्वेश पामी तुरत ते देवश्राद पासे आव्यो अने रुदन करी कहेवा लाग्यो के नाइ! तमाराथी जुदो पडी में मारुं करियाणुं नाडे राखेला एक महोटा रडामा नयु हतुं, तेमांथी तो रात्रिये चोरोयें आवी सर्व चोरी लीधुं? अरे! हवे हुँ ते गुं करूं? ते सांजली पुण्यवान एवो देवश्राम बोटयो के हे मित्र! अन्याय करवाथी तो महोटोअनर्थज थाय . ते माटेज सुज्ञजनो को पण प्रकारनो अनर्थ करता नथी. जुन. तमें हजी हालज अनर्थ कस्यो, तेनुं फल तमने प्रत्यक्ष हमणांज मली याव्यु.तेथी हजी पण ढुं कहुँ .के तमें श्रदत्तादाननुं व्रत ग्रहण करो. ते सांजली नबोध पामेला यशे ते व्रत अंगीकार कयुं. हवे बीजे दिवसें ते गाममां दूर देशथी वेपारी आव्या, तेने के टलीएक हाटनी वस्तुवेचाथी थापी, तेथी यशने बमणो लान थयो, त्यारे तेणे अदत्तादानना व्रत, प्रत्यक्ष पार जोड्ने सुश्रावक पणुं स्वीकापुं. हवे मातृदत्त कहे , के हे वसुदत्त ! न्यायोपार्जित व्यथीज जीवन कल्याण थाय . माटे तारे हवे, उष्टपरिणामदायक चोरीथी लीधेला इव्ये करी विरामज पाम, उचित ले. एवी रीतें वसुदत्तने घणो उपदेश करी ते कामथी निवृत्त थवा कयुं, तो पण ते पाडो मातृदत्तथी बानोमानो त्यां जश्ने कुं मल लही आव्यो. हवे मातृदतें एक तो रस्तामां पडेलु कुंमल लीधुं नहिं अने बीजुं लेवाने श्वा करता वसुदत्तने उपदेश थापी अटकाव्यो.एम वेदु रीतें तेनी नीति जोइलीधी. अने वसुदत्ते कुंमल लीधुं, ते पण जोयु. तेथी राजसुनटोयें आवी वसुदत्तने तुरत पकडी लीधो, अने तेना मालनां नरेलां गामां कबज कस्यां.अने पनी मातृदत्तने पकज्यो, तेथीते तो विचारमां पडी कहेवा लाग्यो जे नाश्यो! मारो गुंअपराध ! ते तमो मने पकडो डो? त्यारें सिपाइयो बोल्या के हे माहा सात्विक ! तुं जरा पण मनमा खेद करीश नहिं, तारा २८ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. नीतिनांथाचरणथीथा गामनोराजा अत्यंत संतुष्ट थश्ने तुने कांक अनन्य लान थापशे? ते सांजली मातृदत्त कहे , के महेरबानी करी था मारां क रियाणानांगामांतमें जपत करो,परंतुथा वसुदत्तने तथा वसुदत्तना गामांगने बोडीमूको. होय, बालस्वनाववाला नरनी नूलथी थयेला एक अपराधनी तो तमारे दमा करवीज जोश्यें ? वली हे नाश्यो ! जोया मनुष्यने तमो बोडी देशो, तो ढुंजाणीश के एज मारी पर आपना राजायें मोहोटो उपकार कस्यो? अने हे सुनटो! अमारे ग्राम्यजनने राजाना दर्शन कस्यानुं गुं प्रयोजन ने ? कारण के अमो राजरीतमां नो कांहि समजताज नथी ? ते सांजली सुनटो कहे डे के हे महासत्त्व! तमारा कहेवाथी ल्यो, था यमें तेने बोडी मूक्यो. पण तमो तो जलदी अंमारा राजानी पासेंप महेरबानी करी पधारो? एम कहीने मातृदत्तने राजानी पासें तेडी लाव्या अने कुंमलयह एनी जे कांई बीना बनी हती, ते सर्व राजानी पासेंप कही बतावी. ते सांजली विस्मय पामेलो राजा कहेवा लाग्यो के हे ना! तें, ते रस्तामां पडेला कुंमलने सेवामां जरा पण मन न कस्यं तेनुं गुंकारण? जो ने, रस्तामां पडेला पदार्थने तुं विना बीजो कोण न लीये? अर्थात् सदु को लेज. त्यारे मातृदत्त बोल्यो के महाराज! में मारा गुरुपासें एवं व्रत तीधुं ,के को व स्तुने ते वस्तुना स्वामीना दीधा विना लेवी नहिं. माटे दीधा विना कांइ पण ढुं ग्रहण करतो नथी. ते सांजली खुशी थयेला राजायें तेनी मोहोटी या जीविका ठेरावीने पोताना इव्यनंमार साचववानी चाकरी पर राख्यो, तेथी ते सुखी थयो. सर्व ठेकाणे मानने प्राप्त थयो. कालें करी सुसमा धिथी मरण पामी, आज पुरने विषे चंशना नगरीने विषे उत्तम वणिकना कुलमा पुरंदर सतीनामा स्त्रीथकी पुत्रपणे उपन्यो. तेना पितायें तेनुं सिम दत्त एवं नाम पाडयु.पनी अनुक्रमें सर्व कलामां कुशल थयो. अने वन, उप वन, राजरस्ता प्रमुखमा विविध प्रकारनी कलाउनां कुतूहलोने करवा लाग्यो. हवे वसुदत्त जे हतो ते कुकर्मथी पोतानी आजीविका चलावीने केट लेएक कालें करी मरण पामी ने कर्मना विचित्रपणाथी ब्राह्मणना कुलने विषे कपिल नामा पुत्र थश्ने अवतस्यो. ते निर्धन एवा ब्राह्मण कुलमांथ वतरवाथी तेना पितायें पोताथी पण हीन कुलवालानी याचना करीने एक कन्या परणावी आपी. तेनी साथै विषयसुख जोगवतां तेने घणांक Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १५ बोकरां थयां. बोकरां घणां थवाथी तथा निर्धनपणाथी ते घणोज सुःखी थवा लाग्यो । यतः ॥ कुर्कुटीणामजानां च, सूकरीणां सुतापनाः॥ यथा निःस्वगृहे मिनाः पापाः स्युर्बहवस्तथा ॥१॥ अर्थः-कूकडीने, बकरीने अने सूकरीने, ए त्रणे जातिने जेम संतानो घणांज होय ,तेम पूर्वै पाप कर्म करनारा एवा बालको, निर्धन पुरुषनी स्त्रीने पण घणांज थाय . हवे ते कपिल ब्राह्मणनां जे माता पिता हतां ते कोइ पण ठेकाणेथी सावी कपि लनु तथा कपिलना कुटुंबनुं पोषण करतां हता. दैवयोगथी ते पण मरण पाम्यां, त्यारें तो पड़ी निराधार थवाथी दारिनें करी पीडाता एवा ते कपि लने पोतानी स्त्रीयें अत्यंत धिक्कारी काढयो. तेषी ते बाहिर देशावर प्रत्ये व्य उपार्जन करवा माटे निकल्यो. परंतु पूर्वजन्मना कुकर्मथी बहुज क्लेश पामवा लाग्यो अने पापोदयने सीधे कोइ पण ठेकाणेथी तेने कांइ पण इव्य मन्यु नहि तेथी महा कटें करी दिवस निर्गमन करवा लाग्यो ॥ यतः॥ कुयामवासः कुनरेंइसेवा, कुनोजनं क्रोधमुखी च नार्या ॥ कन्याबदुत्वं च दरिश्ता च, पट जीवलोके नरका नवंति ॥ १ ॥ अर्थः- एक तो कुयाममां वसवू, बीजें उष्ट राजानी सेवा करवी, त्रीजुं रात दिवस दग्धदोषादिक युक्त अन्ननुं नोजन करवू, चोथु घरमां स्त्री क्रोधांध होय, पांचमुंजाजी कन्यायो उत्पन्न थइ होय, बहुं घरमां अति निर्धनपणुं होय. ते बवानां आ लोकने विषे प्रत्यद नरकज जाणवां. हवे ते कपिलने एक दिवसें फरतां फरतां कापडीनो वेष धारण करनारो कोइ एक योगी मल्यो, तेनी साथें तेणें मित्रता करी अने पो ताना सर्व सुःखनी वात पण कही थापी, ते सांजली कापडीयें कह्यु के हे मूर्ख! तुं वृथा व्यनो प्रयास न कर. अने एम करतां जो तुं धननोज अर्थी हो, तो चंशना नामा पुरीमा जलदी जा. त्यां आशापुरी नामनी देवी , ते देवीमां जेतुं नाम , तेवाज गुणो , माटे ते देवीनु आरा धन कर, जेथी ते देवी तारी अाशा पूर्ण करशे? ए सांजली कपिल ब्रा ह्मण चंशना नगरीयें गयो, त्यां ना धोइ पवित्र थश्ने पुष्पादिकोयें करी ते देवी, अर्चन करी स्तुति करी ध्यान धरी मौन राखी, नपवास करी कुशनुं पास्तरण नावीने वे दिवस पर्यंत बेठो. त्रीजे दिवसें रात्रिने विषे वाशापुरी देवी बोली के हे ब्राह्मण! तुं शा माटे तपस्वी या दुधा वगेरे Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पुःख सहन करी मारी पर बेगे बो ? त्यारे कपिल बोल्यो के हे देवि ! मारे तो इव्य जोयें 3यें, बीजं कांइ जोतुं नयी.माटे इव्य आपो? त्यारें देवी बोली के युं तुं पाहिं कां तारा बापनी थापण मूकी गयो बो, ते लेवा थाव्यो बो ? त्यारे कपिल कहे के तमो देवी बो माटे सर्व जाणोज बो. मने शा माटे अमथो हेरान करो बो ? हवे तो मुने इरिपणाने लीधे जीववानो पण कंटालो आवे . या जीववा करतां तो हूँ जो तमा री पासें तमारा बलिदानरूप थइ जावं, तो घणुंज सारूं थाय? या प्रका रनां वचनथी ते कपिलना मननो दृढ निश्चय जाणीने देवी बोली के, आ एक श्लोकना पदनु लखेळ पुस्तक ढुं तुने आपुं बुं, ते ग्रहण कस्य. अने जे तुने पांचसो रुपैया आपे, तेने या पुस्तक तुं आपजे. परंतु इव्य लीधा विना कोश्ने आपीश नहिं. अने तेनी पांचशोथी वधारे इव्यनी पण प्रार्थना करीश नहिं. एम कही पुस्तक दइने देवी तो अंतान थइ गयां. तदनंतर ते कपिल, देवीना आपेला ते पुस्तकने लश्ने त्यांथी वेचवा माटे चाल्यो, ते गाममां ावी, याखा गाममा फस्यो, पण तेनो एक पैशो पण कोश्य आप्यो नहिं. एम करता करतां अनुक्रमें ते पूर्वजन्मना मित्र सिमदत्त पासे आव्यो,अने तेने ते पुस्तक देखाडयुं, त्यारे सिंघदत्तें पूढे के महाराज ! आ पुस्तकनी गुं किम्मत व्यो हो ? त्यारे तेणें कडे के पांचसो रूपैया ? ते वखत सिदत्ने विचार कस्यो जे एमां जो तो खरो, के एमांगुं लखेलुं छे ? पड़ी ते कपिलना हाथमांथी पुस्तक लश्ने अंदर ज्यां जोवे, त्यां तो तेमांथी “प्राप्तव्यमर्थ जनते मनुष्यः” ए, श्लोकहुँ एकज पद निकल्युं, ते पदमां अर्थ ए हतो के, मनुष्यने पूर्व जन्मना योगथी जेटबुं मलवानुं होय, तेटलुंज मले में, वधारे कां पण मलतुं नथी. एवो अर्थ मनमा विचारी निश्चय करीने ते ब्राह्म एने हर्षे करी पांचशो रूपैया आप्या. पड़ी ते कपिल, इव्य प्राप्त थवाथी हर्षित थइने पोताना घर तरफ चाल्यो. ज्यां रस्तामा चाल्यो जाय बे, त्यां निन्न खुंटारा मल्या, थने तेणे तेने लुंटी लीधो अने इव्य आपवानी हा ना कहेवाथी खूब मास्यो. पनी नन्नास रहित तथा निराश थइ जेवो गयो हतो तेवोज पालो घेर घाव्यो. हवे सिमक्त्तनो पिता, सिदत्तने प्रतिदिन, सायंकालें पूजीने घर खरच Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २१ रोजमेलमा लखावे , अने मेलनी पुरांत पोतेंज गणे जे. जे दिवसें सिम दत्तें पांचसो रुपैया आपी पुस्तक लीधुं, ते रूपैया चोपडामा लरव्या न हता, तेथी पुरांत गणतां ते रूपैया त्रुटी पड्या अने मेल मल्यो नहिं, त्यारें सिम दत्तने पूब्युं के ना! आजनी पुरातमां पांचशे रूपैया केम घटे ले ? त्यारे तेणे ते पांचसो रूपैयाने ठेकाणे ब्राह्मण पासेंथी वेचातुं लीधेलु पुस्तक ब ताव्युं अने कह्यु के पिताजी ! या पुस्तक, में पांचशो रूपैयानुं लीधुं ,पण तेना रूपैया चोपडामां लख्या नथी, माटे पुरांतमां घटे ले ? ते लखवाना तो हता खरा, पण आपने पूबीने लखवाना हता, तेथी में जव्या नथी. आq वचन सिदत्तनुं सोनालतांज तेने अत्यंत कोप चड्यो. पडी तुरत सिदत्तने खूब मारीने कह्यु के अरे उष्टपुत्र ! आवो नकामो खोटो व्यय करी मारूं इव्य तुं खुंटावी दे दो, तेथी तुं ते झुं कमाइने खावानो बो? माटे जा. निकल मारा घरमांथी? जेटला रूपैया पुस्तक लीधामां व्यर्थ तें गमा व्या ,तेटलाज रूपैया कमाइने लाव्या विना खबडदार जो मारा घरमां पेठो बो तो!! ते सांननी सिदत्तें धीरें रही कह्यु के हे पिताजी! तमो तो मने पांचसोज रूपैया कमाइ यावर्नु कहो बो, परंतु हुँ तो पांच हजार रूपैया कमाया शिवाय तमारा घरमां आवनार नथी ? एम कही ते वेचातुं लीधेनुं पुस्तक लहीने पोताना बापना घरथी एमने एम एकदम निकली गयो. परंतु ते वखत रात्रि होवाथी नगरना दरवाजा बंध थऽ गया हता, तेथी ते दर वाजानी पासें एक जीर्ण देवमंदिर हतुं, तेमां जा पुस्तकने हाथमा राखी स्वस्थ पणाथी सुइरह्यो. हवे तेवा समयमां गं बन्युं? ते कहे जे. ___एक कन्या ते गामना राजानी, बीजी कन्या सचिवनी, त्रीजी कन्या ग्रा मशेवनी, अने चोथी कन्या गामना पुरोहितनी. ए चार कन्या त्यां रहे जे, तेने बाल्यावस्थाथी परस्पर घणोज स्नेह जे. एक दिवस चारे जणीयो एकठी थश्ने गाढस्नेहें करी परस्पर कहेवा लागीयो के हे बेनो ! आपणे जन्मथी नेगीयोज रहीयें बैयें अने एक बीजीनो परस्पर वियोग सहन कर। शकतीयो नथी, तो हवे आपणने यौवनावास्था प्राप्त थवानी तैयारी ने, ते जोबनमां देवरूप वायु आपणने जुदी जुदी करी मूकशे,ते आपणथी केम सहन थाशे ? त्यारे तेमांथी प्रथम राजकन्या जे हती ते बोली के हे प्रियस खियो ! ज्यां सुधी आपणने आपणा पितायें जुदा जुदा वरनी साथै वरावी Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ བབས་ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. यो नथी,ते पहेलांज थापण चारे जणीयो पोतानी मेलेंज एक वर शोधीने ते एकज वरसाथे परणीयें तो के सारं के, जेथी आपणने कोइदिवस जुउंज पडतुं पडे नहिं? ते राजकन्यानी वात अनुकूल लागवाथी सर्व कन्या उयें स्वीकार करी. हवे ते पनी थोडा दिवसमां त्यां को देशांतरथी उत्तम कुल वालो, शुद्ध प्राचारवालो,अने स्वरूपवान् एवो कोइएक राजसेवक श्राव्यो, तेने ते कन्यायें राजमार्गमा चाल्यो जातो गवादमांथी जोयो. अने जोड्ने एकदम माणास मोकली तेने तेडावी लीधो. पली राजकन्यायें प्रजन्न रीतें कह्यु के तुंअमारूंचारे जणीयोनुं बानु मानुं पाणिग्रहण करीश? ते सांजलीने राजसेवक बोल्यो जे ए वात माराथी बनवानी नथी. त्यारे राजकन्या कहे डे के जो तुं अमोने वरवानुं नहिं कबूल राख्य, तो हुँ तुने मारा अनुचरो पासें जीवतोज मारी नखावीश. ते सांजली तेणे राजकन्यानुं वचन, मर वाना जयथी ते वखत तो स्वीकारी लीधुं अने कह्यु के जा ढुं जरूर तमने चारे जणीयोनो वरीश? पण क्यां आईं अने केम करूं? ते कहो. त्यारे वली पण राजकन्याज बोली के अमारा गामना दरवाजा पामें एक जीर्ण देवमंदिर , तेमां तमारे आजनी रात्रं श्रावीने सुइ रहेवू, अने अमो त्यां चारे जणीयो एकेक प्रहरने यांतरे श्रावगुं. तेमां जरा पण संदेह राखशो नहि. अने तमे आव्या विना रहेशो नहिं? ते वात राजसेवक अंगीकार करी, त्यांथी रजा ला चाल्यो, अने पोताने स्थानके आव्यो. अने पली विचार करवा लाग्यो के ए स्त्रीयो सर्व,राक्षसीयो जेवीज, तो तेना पासमां मारे ते शीद पडवू जोश्य ! वली एकने जो परणq होय तो तो जाणे तीकज , परंतु आ तो चार स्त्रीयोने परणवू? वली चारने जे परणे, ते केवी रीतें सुखी रहे! तेमां पण वली तेना बोलवा परथी लागे बे, के ते तो पिशाची जेवी बल करनारीयो ! ज्यारे आपणे परण्या, त्यार पड़ी तो तेने बोडायज केम ! जुन कानें पकडेली जे व्याघ्री ने, ते बलवानथी पण षडी बोडाती नथी, कारण के जो ते बोडे, तो ते व्याघ्री बलवाननांज प्राण लीये ! माटे तेनी साथें न परण तेज सारं ठे अने परण्या पड़ी तो मारो कोइ उपायज नहिं. अहो जुवो तो खरा मुने ए राजपुत्रीयें केवो बल्यो !!! एवी रीतें चिंतासमुना मध्यमां रहीने तेणे आखो दाडो तेज वि Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २२३ चारकस्या कसो. पनी सायंकाल थयो त्यारें वली पण विचारवा लाग्यो के ए दुइ स्त्रीयोने परणीने एक तो मारा निर्मल एवा कुलने कलंक लगाडवू, अने बीजें आ गामनोजे राजा तेनी साथें गुप्तरीतें विवाह करी शेह करवो! माटे ए काम कुलवान् पुरुषने करवू तो नचितज नथी! एम विचारी प्रदोषने समय ते नगरमाथी बाहिर ज कोश्क ठेकाणे रह्यो. हवे राजसुता वगेरे चारे जणीयोयें एकत्र थइने ठेगव कस्यो के आपणे अनुक्रमें एकेक जणीयें एकेक प्रहरने अांतरें रातमां आपणा संकेत करेला देवमंदिरमा जq. ते तेराव परस्पर कबूल करीने प्रथम प्रहरमां सर्व वैवा हिक उपकरण लश्ने राज कन्या सखि सहित सांकेतिक देव मंदिरमा पेठी, अनेअंदर जर ज्यां जोवे , त्यां तो सिदत्त सुतेलो . तेने जोड़ने तेणें जाण्यं जे अहो ते राजपुरुष अमारी पहेलांज मारा कहेवा प्रमाणे या वीने सूतो ! तेथी ते माणास घणोज दुशीयार लागे ,अने तेने परण वाथी अमो घणां सुरखी थायु? एम विचार करी ज्यां निकट आवी जुवे, त्यां तो पुस्तक हाथमां लश्ने सिमदत्तने निश करतो दीठो, त्यारें राजकन्या वि चारवा लागी के अहो ते राजपुरुष बुद्धिमान तथा साहसिक पण लागे , परंतु निझनुने, कारण के ते धमधोकार निज कस्या करे ! एम वि चारी तेनी पासें गइ. अने कहेवा लागी के हे स्वामीनाथ ! निश्चिंत थश्ने केम सूता बो? जलदी उठो. जे लमानो अवसर जाय , ते न पासतां श्रा लसु थ सुवं, ते तीक कहेवाय ? यावा उत्साहना कार्यमा निश ते केम यावे ? एम बोलता बोलतां प्रेम निर्नरपणायें तेने उठाड्यो अने अं धारे ने अंधारे ते राजकन्यायें पोतानो हथेवालो तेना दक्षिण हाथमां मेलवी बाप्यो अने हाथने विषे कंकण बांधी गांधर्व विवाह करी लीधो. पढी नथी जाण्यो राजकन्या वगेरेनो संकेत जेणे एवा सिमदत्तने सां केतिक राजपुरुष जागी राजकन्या कहेवा लागी के हे वन्नन ! था आपनो बेसवानो रथ क्या बोज्यो के ? ज्यां बोड्यो होय, त्यां जश तेने घोडा जोडी ने जलदी तैयार राखजो. कारण के आपण सर्वने ते रथमां बेसी सवारमा एकदम पलायन कर पडशे. माटे तेनी तैयारी राखो? ते सांजलीने सिदत्त बोल्यो के सर्व सारुंज थारो. परंतु हाल तो हूँ निक्षमा माटे मने तेमां अंतराय करो नहिं. अने सुवा आपो. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. एम कही कपटनिाथी पाडो तेमने तेम सुइ गयो. तेवामां तो राज कन्या ते पुरुपनो शब्द सांजली मनमा शंका तथा त्रास पामी विचा रवा लागी जे अरे ! अमोयें संकेत करी जे पुरुषने आ देवालयमा सुवानुं कह्यु हतुं, ते तो नासतो नथी अने आ तो बीजो कोई नवीनज पुरुष नासे ? एम विचार करी संपुटमां करेला दीवाने संपुटमाथी घाडो करी तेनी सामो कस्यो अने ज्यां जोवे, त्यां तो सारा वर्णवाला, सुकुमार अंगयुक्त, कामदेवना रूपने पण जीती जाय एवा रूपवाला, ते सिमदत्तने जोयो. जोड्ने जेवामां तेने कांक कहेवा जाय तेवामां तो तेना मस्तकनी पासें हाथमा राखेला पुस्तकने जोयुं अने तरत तेमां लखेलृ श्लोकनुं एक पद वांच्युं, ते जेम केः “प्राप्तव्यमर्थ लनते मनुष्यः” एटले मनुष्यने दैव योगें जेटलं मलवान , तेटलुंज मले ले. ते वांची राजकन्यायें तुरत पो तानी अांखमांथी अंजन काढी घांसनी सलीयें करी ते पुस्तकमां एक बीजु पद लरव्यु केः “देवोपि तं लंघयितुं न शक्यः” एटले प्रारब्धथी बनेला कार्यने देव पण उल्लंघन करवाने समर्थ थतो नथी, तो मनुष्यनी तो शीज गति? एम ए श्लोकमां बीजुं नवं पद लखी, राजकन्या पोताने घेर चाली श्रावी. पली बीजो प्रहर थयो, तो ते वीजा प्रहरने विषे पूर्वोक्त संकेतप्रमाणे मंत्रीनी पुत्री आव। अने प्रर्वोक्त राजकन्यानी रीतें तेनुं पण बन्युं, तो तेणे पण ते श्लोकमां त्रीखं पद नवु करी राजकन्यानी पेठे पोतानी अांख मांथी अंजन काढी सलीयें करी लरव्यु, के “ तस्मान्न शोचे न च विस्म योमे” एटले ते देवनुज करेलुं थाय , ते माटे ढुं कांहि शोक करती नथी तथा मनमां विस्मय पण पामती नथी. या प्रमाणे त्रीजुं पद लखीने ते पण पोताने घेर यावी. ते पड़ी तृतीय प्रहरने विषे श्रेष्ठीनी पुत्री आवी, तेनुं पण पूर्वोक्त रीतें बन्युं अने तेणे पण तेज श्लोकनु एक नवीन चतुर्थ पद बनावीने लरव्यु जे “यदस्मदीयं नहि तत्परेषां" एटले जे आपणुं , ते को दाडो बीजानु थज शकतुं नथी. एम लखीने ते पण पोताने घेर चाली गइ. पट्टी चतुर्थ प्रहरें पुरोहितनी पुत्री आवी, तेनुं पण त्रण कन्यानी प्रमाणे बन्यु. त्यारे तेणे तो एक नवीन श्लोकज बना व्यो, ते जेम केः- व्यवसायं दधत्यन्यः, फलमन्येन नुज्यते ॥ पर्याप्त व्यवसायेन, प्रमाणविधिरेव नः ॥ १ ॥ अर्थः- व्यवसाय कोश्क करे Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २२५ बे, अने तेनुं फल को बीजोज जोगवे , पूर्ण व्यवसाय कस्यां उतां पण जे अमने फल मल्युं, तेमां अमाझं कर्मज कारण बे, बीजें कोइ नथी. पबी प्रजातना समयने विपे ते चारे कन्याउनी सखीयोयें विचायुं जे या कन्याउनां जननी वात तेमनी मातानने आपणे कहिये? अने ते तेना पिताने कहेशे. जो आपणे नहिं कहेगुं तो तेमनां माता पिता आपणने अपराधी गणशे, के तमो जाणतीहती ते बतां अमने कह्यु केम नहिं ? एम विचारी चारे कन्यानी सखीयोयें तेनी प्रत्येक माता-ने रात्रिमा बनेला ल मनी सर्व हकीगत कही संजनावी अने ते वात पाली कन्याउनी मातायें पोतपोताना स्वामीने कही दधी. ते सांननी खुशी थराजायें प्रधानोने तेडाव्या अने कह्यु के हे बुद्धिमान मंत्रीयो! आपणा गामना दर्वाजा पामें जीर्ण ययेनुं एक देवमंदिर , तेमां पुण्यशाली एवो अमारो जा माता सूतेलो, तेने महोटा आमंबरथी तथा धामधूमथी तेडी लावो. एवं वचन सांजली ते मंत्रीया त्यां जश्ने प्रथम तो तूर्यना घोपें करी सिध्दनने जगाड्यो. पडी प्रौढ एवा गजराजनी नपर वेसास्यो अने बंदी लोकोना सुंदोयें जेनी स्तुति करीबे एवा ते सिदत्नने राजाना मंदिरमा आण्यो, त्यां लोको तेने जोड्ने कहेवा लाग्यां के अहो! श्रा तो आ गामना रहेवासी पुरंदर शेठनो पुत्र सिमदत्त ले ? ते सांजली राजा अत्यंत हर्षायमान थयो. हवे ते सिदत्तनो पिता पुरंदर जे हतो, तेणें मारीने पोताने घेरथी ते सिमदत्तने काढी मूक्यो हतो, परंतु पोतें पिता ने तेथी मनमां दया आणी तेने मारवानो पश्चात्ताप करी गामना दरवाजा बंध थया ले, तेथी ते गाम मांज हशे? एम जाणी ते गामनीज गली कुंचीयो शोधतो हतो, अने शो धतां शोधतां सवार थइ पडी परंतु तेने ते मल्यो नहिं, त्यारे ते निराश थ घेरावी ज्यां निराश वेतो. त्यां तो ते सिदत्तनी सर्व लम वगेरेनी हकिगतने तथा सिहदत्त परणवा माटे हस्तीपर वेसीने राजमंदिरमां आव्यो ते सर्वने गामना माणासोना मुखथी सांगली पुरंदर श्रेष्ठी हर्पित थ एकदम त्यां आव्यो अने जोइने अत्यंत खुशी थयो. पनी ते कन्यानां माता पिता वगेरे ने खबर पडी के अमारी दीकरीयोये पण तेज पुरुपने वस्यो . तेम जाणी ते पण सद् त्यां आव्यां. पनी ते चारे कन्यानां माता पिता, कामसमान Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JJE जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. स्वरूपवान एवा पोतानी कन्याना वर सिद्धदत्तने जोइ अत्यंत खुशी थयां, कन्या पण खुशी यइ विचारवा लागीयो के ग्रहो ! प्रथमना सांके तिक राजपुरुष करतां तो या वर आपणने हजारगणो सारो मल्यो ? पढी ते मतिमान् एवा राजा, तथा मंत्री प्रमुखें महोटी धाम धूमथी पोतानी कन्याउना विवाह करा. तेमां राजायें पाणिग्रहणने समयें कन्या दानमां पंचाशी गाम श्राप्यां, तेम सचिव, श्रेष्ठी ने पुरोहित, तेणे पण पोत पोतानी कन्याना पाणिग्रहण समयें, स्वस्वशक्त्यनुसारें हर्षथी थान रण तथा धन वगेरे याप्यां. " सिsar, राजायें पेला उत्तम धवलगृहमां नवोढा एवी चार स्त्रीयोनी सायें स्वर्गमां जेम देव काल निर्गमन करे, तेम काल निर्गमन करवा लाग्यो. एम करतां एक दिवस ते नगरना उद्यानमां गुणशेखरसूरि नामा मुनि घष्णाक शिष्यो सहित समोसखा. ते सांजली राजा प्रमुख वांदवा माटे गया, त्यां सिद्धदत्त पण चार स्त्रीयोयें सहित गुरुने वांदवा माटे याव्या. गुरु पण सहुने यथायोग्य स्वस्थानपर वेग जोइ करुणारस युक्त देशना देवा जाव्या. ते जेम के:- ॥ दुष्प्राप्यं प्राप्य मानुष्यं तत्किंचि जन्मनाऽमुना ॥ ध्रुवमासाद्यते येन, गुद्धजन्मांतरं पुनः ॥ १ ॥ त्यज दुर्जनसं सर्ग, नज साधुसमागमम् ॥ कुरु पुष्यमहोरात्रं, स्मर नित्यमनित्यताम् ॥२॥ निंदां मुंच शमामृतेन हृदयं स्वं सिंचितं च कृथाः, संतोषं जज लोनमु त्सृज जनेष्वात्मप्रशंसां त्यज ॥ मायां वर्जय कर्म तर्जय यशः साध र्मिके वर्जय, श्रेयोधारय हंत वारय मदं स्वं संसृतेस्तारय ॥ ३ ॥ अर्थःदुष्प्राप्य एवा मनुष्यना जन्में करी कांइक जो सुकृत संपादन थाय बे, तो ए सुकृतथी वली पाढो गुद्धजन्म थाय बे, अने तेथीज पानी सजति थाय बे ॥ १ ॥ वली हे नव्य जीव ! तमो दुर्जनना संगनो त्याग करो. ने साधुनो संग करो. अहोरात्र पुण्य करो. नित्य संसारना नित्य पानी जावना करो. निंदानो त्याग करो. शमरूप अमृतथी पोताना ह हृने सिंचित करो. संतोषने नजो. लोचनो त्याग करो. मनुष्यो पासें आत्मश्लाघा न करो. मायानुं तर्जन करो. डुष्टकर्मोथी त्रास पामो. र्मिकोने विषे यश संपादन करो. श्रेयने धारण करो. मदने वारो ने तमारा जीवने संसार समुथी तारो. इत्यादिक गुरुना मुखथी देशना सां साध Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. १२७ जली सिझदत्तें पूज्युं के महाराज! हुँ पूर्वजन्में कोण हतो? त्यारें गुरुयें तेनो सर्व पूर्व जन्म कह्यो. ते सूरिना मुखथकी सांजली संसारथकी विरक्त थइ तेज गुरु पासें दीदा लर, घणा काल पर्यंत मनोहर चारित्र पाली, स्वर्गमां गयो अने अनुक्रमें सुकतें करी मोक्ने पण पामशे. माटे हे धर्म करणी करनारी श्राविका ! या दृष्टांतथी अदत्तादानना गुण अने दोषो तमारा चित्तने विषे तमोजाणी व्यो. ए प्रकारनां साधुनां वचन सांजलीने हे पूर्णचंकुमार! बोध पामेली एवी मारी स्त्रीयोयें कह्यु के हे प्रनो! श्रा जथी चोरीथी कोनुं इव्य अमारे यावजन्म लेवु नहिं. वली लेवु नहिं एट झुंज नहिं, परंतु अमारा घरमां पडेलु इव्य पण अमारा पतिनी आज्ञा विना लेतरी नेरे लेवु नहिं. हे गुरो! आपनी सादीथी उत्तम एवं ए त्रीजुं व्रत पण अमोयें अंगीकार करयुं. ते सांजली अत्यंत खुशी थश्ने में चितव्यु जे या तो घणुं सारूं थयुं, हवे आ स्त्रीयो मने वंचीने कोई दिवस धननुं हरण तो करशेज नहिं. ते पण या साधुयेंज मारो नपकार कस्यो, माटे तेना अंगमा लाकडीना त्रण प्रहार करवानो जे विचार कस्यो हतो, ते बंध राखी हवे ढुं तेने वेज प्रहार करीश ? एम ज्यां विचार करूं बुं, त्यां तो पाबी वली मुनियें देशना देवा मांझी के, हे नकस्त्रियो ! सर्व व्रतमां शिरोमणि परम उत्तमोत्तम, कल्याणकारक, मंगलकारि, श्रेयस्कर एवं शीलवत पण ले, ते कुलवती स्त्रीने विवाहथी प्रारंनीने या व्रत कहेलु बे. ते जेम केः- कुलवती स्त्रीने मनथी पण परपुरुपनो अनिलाप को पण वखत करवो नहिं. तथा सराग दृष्टिथी कोई पुरुपनी सामुं जोवू नहिं. अने एवा शुव्रतने पालनारी सतीस्त्रीने मनुष्य तो झुं ? पण वैरी, जल, विष, व्याघ्र, सर्प, वैताल, अग्नि, तेनी पण विपत्ति को दि वस श्रावती नथी. अने ते स्त्री सर्वत्र माननीय तथा तीव्र तेजस्वी थाय बे, तेनी महोटप जगतमां प्रसरे वे. ते सतीनुं चंपर्यंत शुन्न यश प्रकाशमान थाय , ते सती स्त्रीने सौनाग्य, सुख, संपत्ति, पुत्रप्राप्ति, चित्तनिवृत्ति वगेरे सुख प्राप्त थाय ने अने पर लोकमां पण स्वर्ग अप वर्गनी प्राप्ति थाय . हे श्राविका! जे शीलबष्ट प्राणी , ते प्राणी, नासिका, उष्ठ, हाथ, पग, तेना तथा इंडियना छेदन नेदनने पामे ने. तेमज वली वध, बंधन, दय, तेने पण प्राप्त थाय ने. अने जे Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IIG जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. कुशीला स्त्रीने. ते तो परनवने विपे कुरूपपणाना कुगर्नपणाना, वंध्यत्वना, नगंदररोगथी दुःखितपणाना, रंमा कुरंमा तथा वंध्यपणाना जन्मने पामे वे. वली ते या जन्मने विपे निलीडन, तिर्यग्गति, वध, बंधन, ताडन, तर्जन, नारारोपण, दुधा तृपा, सहन करवू, इत्यादिक महापुःखोने नोगवे ने अने मरीने पालो नरकगतिमां जाय ले. त्यां पण तेने परमाधाम। देवता, वज नपर तथा अग्नि नपर नाखीने विविध प्रकारनां पुःखो जोगवावे . तेमां दुराचारी पुरुपने तपावेला लोढानी पूतली साथें, अने असती स्त्रीने तपावेला लोढाना पुरुषसाथें आलिंगन करावे .हवे जुन. ते शीलनो महिमा? के एक शीलसुं दरी जे हती ते शीलें करी साम्राज्यपणाने पामी, अने तेनी पर मोह पामेला फुललित एवा कोई चार पुरुपो हता, ते फुःशीलपणायें करी महोटा फुःखमां भावी पड्या.ते सांजली हे पूर्णचं कुमार! ते स्त्रीयोयें मुनिने पूज्युं के हे जगवन् ! ते शीलसुंदरी ते कोण हती, अने तेने शीलवतथी केवी रीतें सा म्राज्य सुख मल्युं ? तथा ते चार फुललित पुरुषो पण कोण हता? अने ते जने केवी रीतें दुःख प्राप्त थयुं ? ते कृपा करी सविस्तर कहो. त्यारें मुनि कहे , के हे श्राविका! ते वृत्तांत कहूं, ते सांबलो. __ आज विजयने विपे विजयवईननामा नगर हतुं, तेमां कोई वसुपाल ना मक श्रेष्ठी रहेतो हतो, तेनी सुमाला नामा स्त्री हती, तेने एक सुंदर आका रवाली तथा जिनागममां प्रवीण एवी सुंदरी नामा कन्या हती, ते सर्व कलामां कुशल तथा धर्मकार्यमा अग्रेसर हती. हवे ते कन्या अनुक्रमें यौ वन वयने पामी ॥ यतः ॥ स्मितं किंचिक्रं. सरलतरलोदृष्टिविनवः, परि स्पंदोवाचामनिनवरसोक्तिः सरनसम्॥ गतीनामारंजः किसलयितलीलापरि करः, स्टशंत्यास्तारुण्यं किमिव नहि रम्यं मृगदृशः॥१॥ अर्थः-युवावस्थाने स्पर्श करती एवी मृगसमाननेत्रवाली स्त्रीरों कयुं अंग रमणीय नथी यतुं ? अर्थात् सर्व अंग रमणीय थाय . ते जेम के, ते स्त्री, मुख काहिंक स्मतयुक्त थाय ने, सरल अने चंचल एवो दृष्टिनो वैनव थाय डे, नविन नविन रसनी ले उक्ति जेमां एवो वाणीनो परिस्पंद थाय , गमननो आरंज उतावलथी थाय जे. ते तो जाणे नवांकुरनी लीलानो परिकरज होय नही ? तेवो थाय बे. हवे एवी रीतें युवावस्थाना प्राउ वने प्राप्त थ येली ते कन्याने तेनां माता पितायें समानरूपवाला पुरुषनी साथें न Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. शशए परणावी, परंतु श्रावकना सर्व गुणोयें परिपूर्ण एवा सुनइ नामा श्रावक नी साथे परणावी. तेथी जे मध्यस्थ लोको हता, ते तो ते विवाहने वरवाणवा लाग्या, अने ते कन्याना जे अर्थी हता, ते शोक करवा लाग्या. ___ एज अवसरने विषे तेज नगरमां ब्राह्मणना कोश्क बे पुत्रो अने वे कोई वाणीयाना पुत्रो रहेता हता. ते चारे जण समानचित्त, समान वय अने समानगुणवाला मित्र हता. ते ते शिलसुंदरीना गुण तथा रूप सांजली तेना संगम करवामां अत्यंत उत्सुक थया, तेथी ते चारे ज गोयें अनुत एवा शृंगार पहेस्या अने ज्यां ते शीलसुंदरी गवादमां नित्य वेसे ले, तेनी नीचें राजरस्तामां तेने मोह करवाने माटे अनेक कुचेष्ठान करवा लाग्या. ते जेम केः- क्यारेक पोतानां अभुत स्वरूपो बनावी देखाडे बे, क्यारेक त्यां जश्ने ते सुंदरीना मंदिरनी नीचें वीणा वगाडे ने. क्यारेक काव्य, श्लोक, पट्पदीने अन्योक्तियें करीने संनलावे . तेवी रीतनी ते चारे जानी चेष्ठा जोइने शीलसुंदरीयें मनमां विचायुं जे धि कार ने, धिक्कार , अावा अझ जनना विलासने ! अने धिक्कार , अावी असार संसारनी वासनाने ! अने धिक्कार , आवी कामचेष्टानने! के जे कामचेष्टाथी जीव सदसहिचारथी या चार उष्ट जनोनी पेठे रहित थ जाय ! अने वली नीच आचारने अंगीकार करवो पडे वे ॥ यतः ॥ सं पूर्णेपि तडाके, काकः कुंनोदकं पिबति ॥ स्वाधीनेऽपि कलत्रे, नीचः परदार संपटोनवति ॥अर्थः-जेमां जलपान करवानी को नाज कहेतुं नथी, तेवा संपूर्ण जलथी नरेला तलाव वगेरे जलाशयने बोडी कागडो जे , ते जल जरीने यावती स्त्रीना माथापर रहेला कुंजमा पोतानी चांच घालीने जलपीये .तेमज नीच पुरुष जे जे, ते पोताने स्वाधीन स्त्री बतां पण परस्त्रीने विपे लं पट थाय .एम विचारीने शीलसुंदरीये ते चारे उनलित पुरुपोने अांखना कटाद मात्रयी पण आश्वासन कस्या नहिं. पडी ते पुरुषोयें घणाक व्यनो व्यय करी कोइएक परिव्राजिकानो मेलाप कस्यो, अने ते परिव्राजिकाने पो तानी अनिलषित वातनी सूचना करी. एटले तेने कह्यु के तमारे एवं कार्य करवू के ते जेथी शीलसुंदरी अमने सुरतसुख आपे ? पनी उष्ट एवी ते परिवा जका तेना कहेवा प्रमाणे शीलसुंदरीने समजावा माटे त्यां गइ, त्यां तो ते परिवाजिकानी मुखमुशथी तथा तेना गमनधीज सुशीलायें मनमां जाण्यं के Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 930 जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. या परिव्राजिकानो वेप जेइ जगतमां सुशील जनोने फसावनारी कुट्टिनी बे अने ते चार कुलित पुरपोनी मोकलेली बे. एम जाली पोताने रावेली परिव्राजकाने शीजसुंदरीयें नमन मात्र पण कर्तुं नहिं, तथा तेनी स्तुति पण करी नहिं. तो पण ते तेनी सन्मुख यावीने पोतानुं कार्य साधवा माटे मान विनानी थइने बेठी ने काकु उक्तिथी कहेवा लागी के हे वत्से ! दयाधर्म तो सर्वेजीवने संमतज बे, तेमां पण श्राव कने तो ते सर्वजीवनी पर दया राखवाथी विशेषपणे सम्मत बे ? माटे ते दुःखीयाना प्राणनं तुं रक्षण कर. ते सांजली शीलसुंदरी बोली के हे सखि ! या तुं जे बोले ले, ते करवानुं महा पाप ले, अने ते कुलीन स्त्रीने तो सर्वथा करवा योग्यज नथी. माटे ते वात करतां तुने लाज नयी यावती ? वली हे सखि ! जेणे व्रत अंगीकार करयां बे, एवी तुं सरखी परिव्राजिकाने तो एवं पाप वचन बोलवानुं पण महापाप ले, ॥ यतः ॥ प्राणिनः पापबुद्धिं ये, परेषां परितन्वते ॥ श्रात्मानं च परं चैव दुर्गतौ पातयंति ते ॥ १ ॥ अर्थः- जे प्राणी बीजा मनुष्योने पाप बुद्धि पे ले, ते प्राणीयो पोताना श्रात्माने तथा बीजाउने दुर्गतिमां नाखे . या प्रकारनां न्याययुक्त वचन सांजली ने परिव्राजिकायें मनमां धातुं जेा स्त्री तो निधें साचीज सती बे ? पढी त्यांथी गुप चूप नवीने पोताना स्थानक प्रत्ये यावी. अने ते चारपुरुषो पासें जइ कहेवा लागी के हे पुरुषो! जो तमो सुखें जीववानी इवा करता हो, तो ते स्त्रीना संगम रूप दुराग्रहने बोडी यो कारण के तमारा कार्य माटे में त्यां जश्ने कपटी घणां वाक्य कह्यां, पण ते इष्टायें पोतानो दुराग्रह जरा पल यो नहिं ने सामो मुने उपदेश देवा लागी ? एवां वचन तेनां सां जनी जे कां ठरावेलुं इव्य हतुं, ते परिव्राजिकाने व्यापीने विसर्जन करी. पाठा वली ते चारे जण विचार करवा लाग्या के हवे तो आापणे, ते रामने कोइ वातें बोडवीज नहिं, माटे कोइ मंत्र सिने मलीने मंत्रविद्याथी तेने तेडावी तेनी साधें रतिसुख जेवुं ? एम विचारी कोई एक मंत्रसिद्ध पुरुषने मल्याने ते मंत्र सिने पोतानुं सर्व मनीषित कही बताव्युं, त्यारें ते मं सिवें चारे जणने तेमनुं धारेलुं काम पार पाडवा माटे काली चनदशने दिवसें रात्रिने विषे एक निर्जन वनमां याववानुं कयुं अने ते त्यां याव्यो. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३१ पड़ी मंत्रसिह पुरुष, नूमिने पवित्र करी तेने विषे मंगल लखी तेनुं पूजन करी, ते मंमलनी वच्चें बेसी विधिपूर्वक देवीनो मंत्र आराधवा लाग्यो. ए मंत्रना आराधनथी मंत्रदेवीने प्रसन्न करी. त्यां तो प्रसन्न थयेली ते देवी सन्मुख आवी उनी रही, त्यारे ते देवीने सिहपुरुचे कर्तुं के हे देवि! शीलसुंदरी नामा एक अतिस्वरूपवान स्त्री, तेने तमो जश्ने जलदी लावो. ते सांजली अचिंत्य महिमावाला मंत्रना प्रनावथी वशी जूत थयेली देवी, आकाशमार्गे गई. ज्यां एकली ब्रह्मचारिणी पौपधयुक्त ते शीलसुंदरी घरमां सूती हती, त्यां आवी तेने एकदम त्यांथी उपाडीने श्रा काशमार्गे सिपुरुष पासे आणी मूकी. हवे त्यां तेने आणी तो खरी, पण शीलसुंदरीना तेजने सहन न करी शकवाथी देवी कहेवा लागी के अरे पापी! तें अावा निंद्य कर्ममां मुने क्यां नाखी? जा. हूं तारुं धारेवं काम करीश नही. एम कहीने क्रोधायमान थ६ मंत्राधिष्ठायिका देवी पोताने स्थानकें गइ. पनी सिहपुरुपें तुरत ते चारे जगने बोलाव्या अने कडं के अरे फुललित पुरुषो! तमो आहिं आवो, अने जे स्त्री तमारा मनो मंदिरमां निवास करी बेवेली हती ते या प्रत्यक्ष यावी. ते जुळ, के ते एजले के बीजी ? ते सांजली सर्व त्यां ाव्या, अने तेने जोश के तुरत अत्यंतात्यंत प्रसन्न या कहेवा लाग्या के हा !!! अमारा मनने हरण करी हस्तगत न थाती हती ते आज डे ? पती मंत्रसिहपुरु का के हवे तमने जेम रुचे तेम करो. ते सांजली चारे जणे संकेत कस्यो के जे प्रथम दोडी, ते स्त्रीनो स्पर्श करे, ते पुरुप तेनी साथें प्रथम रतिसुख नो गवे. एम संकेत करी उद्यम युक्त थश्ने सर्वे दोड्या अने ज्यां ते शीलसुं दरीनी नजिक आवे , तेवामां तो ते चारे जाने एकदम देवीयें का टनी पवें विचेतन करी मूक्या, के जेथी ते चाली, हाली अने बोली पण न शके ? जेम चित्रामणमां आलेखी लीधा होय, तेवा थऽ गया. तेने जोक्ने सिम पुरुष तो थर थर कंपायमान थयो थको शीलसुंदरीना चरणने विपे पड्यो, अने प्रणाम करी कहेवा लाग्यो के हे जगवति! हे परमयोगिनि ! तमाळं आ प्रकारनुं अचिंत्य माहात्म्य में पूर्वे जाण्युं न हतुं, तेथी आवो में उष्ट व्यवसाय कस्यो? हवे पगे लागी कढुं के एक मारो करेलो था अपराध क्षमा करजो.अने आजदिवस पड़ी को दाडोढुं आवं Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 939 जैनकथा रत्नकोप जाग सातमो. काम करीश नहिं. तमारा चरणमां पडेला दीन कंगाल एवा मुने नय दान प्रापो. एम पगमां पडी कालावाला करे ले, तेवामां तो प्रजात थइ गयो. तो पण शीजसुंदरी यें ते सिद्धपुरुषने कांइ पण प्रत्युत्तर श्राप्यो नहिं खने ते सर्व वात प्राखा नगरमां प्रसरी ते सांनजी ते गामनो शूर राजा, तथा बीजा मासो विस्मय पामी ते कौतुक जोवाने त्यां श्राव्या, अने त्यां यावी ज्यां जोवे, त्यां तो चारे जलने जडीनूत थयेला दीवा. राजायें ते सर्वने जोइ प्रधान पायें पूजाव्यं, के तमो पूढो जे ए चारे जण कोण ले ? ने या सर्व वृत्तांत केवा कारणथी वन्युं ने ? त्यारें मंत्रीयें पूजयं के हे दुराचारियो ! या तमोने गुं गयुं ने ते बोलता पण नथी ? एम घणुं कयुं पण ते देवीयें जडीनूत करेला होवाथी कां बोलीज शक्या नहिं. त्यारें त्यां वेवेली शीलसुंदरीने पूब्धुं के हे वेन! या पुरुषो, ग्राम केम थइ गया ले ? ने तमें कोण ले ? त्यारे ते शीलसुंदरी ला पामी नीचुं मुख करी कहे बे, के हुं कांइ पण जाणती नथी ? तेवामां तो ते सिद्धपुरुष बोल्यो के मारो गुनो जो आप माफ करो, तो हुं करूं. ते सांजली राजायें कयुं के जा. तारो नासे तेवो गुनो हो, तो पण मो माफ करशुं, त्यारें बनेली सर्व वात यथास्थित तेणे कही, के तुरत पी देवीयें तेने बोडी मूक्या. लूटा थयेला एवा ते चार जा पायें पण तेवीज रीतें सर्व बात कही देखाडी. ते सांजली अत्यंत को पायमान थयेला राजायें कह्युं के तमारे मारा गागमां रहेवुं नहिं ने कोई ठेका जश्ने पण या काम करतुं नहि. एम तेने कही सीपाइयोने स्वाधीन करी दीधा, ने वली पण कयुं के हे पापिष्टो ! या मारा गाममां हुं राखुं तो ताणें मारी पण स्त्रीयोनुं हरण करो के ? पढी ते सर्वनो धारा प्रमाणे दंगल निचुंबी ने पोताना देशयकी बाहिर कढावी मूक्या. पठी पुरजननी सायें शूर राजा ते शील सुंदरीने पगे लाग्यो. शीलसुंदरीनो पिता वसुपाल श्रेष्ठी पण त्यां याव्या, त्यारें शीलसुंदरीयें तेना पिताने नमस्कार कस्यो. राजायें तेष्टनी प्रशंसा करीने कयुं, के हे श्रेष्ठिन् ! तमोनें धन्य बे, के जेनी पुत्री यावी उत्तम सती बे? त्याऐं वसुपाल श्रेष्ठीयें कयुं. के आपने धन्य बे, जे आपना राज्यवायानी अवनीमां यावी सतीयो वसे बे ? पी प्रसन्न थ येला शूर राजायें ते शीजसुंदरीना पिताने तथा तेना पतिने पोताना राज वेरामांथी मुक्त करा, ते शीलसुंदरीने सर्व शृंगार, तथा मोटां मूल्यवाला Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. वस्त्रो थाप्यां, पनी महोटा थामबरें तेनो गाममा प्रवेश कराव्यो भने ते दिवसथी या पृथ्वीने विषे ते शीलसुंदरी एवे नामें प्रसिक्षपणाने पामी. शीलें करी उज्ज्वल एवी ते शीलसुंदरी शीतमाहात्म्यथी स्वर्ग प्रत्ये गइ,अने अनुक्रमें मोक्ने पण पामशे. जेनुं इव्य राजायें खूटी लीधुं में एवा ते सुललित पुरुषो घणा दिवस पर्यंत बंदीखानुं नोगवी मरण पामी प्रथम नरकमां जाशे. पली पण घणा काल पर्यंत मुर्गतिमा जम्याज करशे. माटे हे सुश्राविका! या प्रकारे शीलना अने अशीलना गुण दोषो तमोने में कह्या. आवी रीतनो मुनिना मुखथी उपदेश सांजली सर्व स्त्रियोयें तुरत परपुरुषना संग करवानो नियम ग्रहण कस्यो. हवे मुनि कहे , के हे पूर्ण चंद कुमार! ते जोश में मारा मनमां चिंतव्युं जे आ तो ठीक थयुं, कारण के हवे आ.स्त्रीयो परपुरुष- गमन को दिवस करशेज नही ? एम जाणी मारा मनमां या स्त्रीयो व्यनिचार करशे! तेवो चिंतानि जे हतो ते उपशांत थ गयो अने तेथी मारा मनमा परम निवृत्ति थइ गई. त्यारे में चिंतव्युं जे मुनियें तो मारो महोटो उपकार कस्यो, जे मारी स्त्रीयोने व्यनिचार कर्मनुं पण व्रत लेवराव्यु ! हवे ए में धायुं के प्रथम जे में तेमने बे प्रहार लाकडीना करवा धाया ,ते बंध राखी हवे हुँ एकज प्रहार करीश ! एम ज्यां दुं विचार करुं बुं, त्यां तो पाला निर्मल मनवाला मुनि बोलवा लाग्या के, हे निर्मल शीलवती श्राविका! मारा वचनथी तमो परिग्रहना परिमाणनु पण व्रत ग्रहण करो. कारण के ते व्रत करनारा प्राणीने दुःख, पण परिमाण थाय बे. ते जेम केः जेने एक स्त्री होय, तेने स्वल्प चिंता होय , तेथी जेम वधारे वधारे होय, तेम चिंता पण वधारे वधारेज थाती जाय डे, तेमज वली हाथी, तुरग, इव्य, रथ, गृह, हाट, शय्या, अशनादिकने पण वधारे वधारे राखवाथी वधारे वधारे चिंता थाय , ते जेम के एक राखवाथी एक गुणी अनेबे राखवाथी दिगुणी, एम अनुक्रमें जेटलीगुणी वस्तु तेटलीगुणी चिंता थाय ॥यतः॥ यथा यथा महत्त्वं च, विस्तरश्च यथा यथा॥ तथा तथा महदुःख, सुखं च न तथा तथा ॥ १ ॥ यथा यथा नूरिपरिग्रहाशा, तथा तथारंजपरः प्रसंगः ॥ श्रारंनतोफुःखशतोपलंनः, स्वल्पं प्रकल्पेत परि ग्रहं तत् ॥२॥ उपार्जयेत्कष्टशतानि कृत्वा, जगऊनं दासयितं धनं यत् ॥ सदैव तहीणाराणायै, स्तस्यैव दासः स्वयमेव स स्यात् ॥ ३ ॥ अर्थः Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जेम जेम महत्त्व राखे, अने जेम जेम परिग्रहनो विस्तार राखे, तेम तेम मोहोटुं दुःख होय. परंतु सुख न होय. जेम जा जा परिग्रहनी अाशा होय, तेम तेम जीव हिंसानो प्रसंग स्वतःजावे,अने ज्यारे जीव हिंसा थाय, त्यारें तो सहस्त्रावधि दुःखनी प्राप्ति थाय , माटे बुद्धिमान मनुष्य, परिग्रह तो स्वल्पज राखे ॥ २ ॥ इव्यने उपार्जन करवामां ह जारो कष्ट, जीव जोगवे ,तेथी तेव्य,आखा जगतने दास करनाऊंडे, वली ते धनना निरंतर तपास राखवाथी तथा तेना रक्षण वगेरेथी, तेने नपार्जन करनारो प्राणीज निरंतर तेनो दास थइने रहे . माटे हे धर्म शीला ! परिग्रहनो त्याग करी संतोष पोपथी जे सुख मले डे, ते सुखना रसने तो साधुज जाणे डे, परंतु बीजो कोइ पण जाणतो नथी. जुन. परिग्रहवृद्धिने लता लोनी प्राणी, कां पण कार्याकार्यने जाणता नथी अने घणांक दुष्कृत कार्य करे .वली लोनी जीवो, आ संसारने विषे जेना तेना धिक्कारने तथा अपमानने सहन करे ये अने ते मरण पामीने पण नरक तिर्यग्योनिने विपे तीक्ष्ण एवां अनंत फुःखोने प्राप्त थाय डे. माटे पापनरथी नय पामता जे प्राणीयो होय तेणें परिग्रहपरिमाण व्रतने धारण करवू. अने हे स्त्रियो ! जे परिग्रहपरिमाण करनारा प्राणी, ते गुणाकरनी पेठे सुखी थाय ,अने जे ते व्रतनो त्याग करे , ते गुणधरनी पेठे दुःखी थाय . ते सांजानी, हे कुमार! मारी स्त्रीयोयें पूब्यु के महाराज! ए गुणा कर कोण हतो, अने ते केवी रीतें परिग्रह परिमाण व्रत पाली सुखी थयो? तथा ए गुणधर वणिक पण कोण हतो, जे ते व्रतनो त्याग करी कुःखी थयो ? ए सर्व कृपा करी सविस्तर कहो. ते सांजली मुनि कहेवा लाग्या के हे धर्मरसास्वाद करनारी स्त्रीयो! तमो सावधान थइने सांजलो. आज विजयने विषे जयस्थल नामा नगर हतुं तेमां विष्टु, अने सुविष्ट नामना बे वैश्य हता, ते वेदु नाश्यो हता, तेमां जे विष्टु हतो, ते व्य संचय करवामांज तत्पर हतो, तेथी ते व्यवहारमां कोठें देवं लेवं, को इनो उपकार, मित्रवर्ग माटें इव्य खरचीने कांश मान, सऊन पर अनु कंपा, सुःखीया जीवनो उपकार, धार्मिकोने कोइ दिवस नोजन, पोतें सारुं अनाज, अंगनोग, ते कांइ पण करे नहिं. वली याचक लोकोने तो घरमां पण पेसवा दे नहिं. अने धन मेलववाने माटे अहोरात्र ते क्वेशज Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २३५ कस्या करे.तेना मागणा वाला तेने घेर उघराणी करवा नित्य आवे, पण ज्यारे तेनुं लेणुं न मले,त्यारे ते लोको तेनी अत्यंत गर्दना करे. वली तेना सगा वहाला आवी तेनी अपकीर्ति जोइने शोक करे ले. अने धनाढ्यजनो तेनो धि कार करे ,माह्या पुरुषो तेने जोइने हसीने कहे के अरे! आ केवो कदरी माणास , के ते बते पैशे पोतानो सर्व समय, महा कुःखमांज गुजारे ले ? हवे बीजो तेनो नाइ सुविष्टु नामा जे , ते महासंतोषी, सत्पात्रने दान देवमां रुचिवालो, सदाचारी, प्रियवाणी बोलनारो, विवेकवान, सऊ ननोसंग करनारो ले.अने प्रतिदिवसअर्थीना पण मनोरथने पूरे ले. एक दिवस ते सुविष्टुने घेर कोइ एक महात्मा साधु आव्या, तेने तेणे मिष्ठान्ने करी पडिलान्या, तेथी तेणे नोगाढय एवं मनुष्यायु बांध्यु. हवे ते साधुने सुविष्टये मिष्टान्न पडिलान्युं ते जोइने त्यां बेठेलो तेनो कदरी नाइ जे विष्टु हतो, ते हसीने कहेवा लाग्यो के अरे! आवा साधु थइने जे फरे ले, ते तो व्यवसाय करवामां अति बालसुज होय जे तथी ते कोठें काम के काज कांही करताज नथी, तेम मजुरी पण करता नहिं,अने हरामनुं खावामांज तत्परज रहे . आवा साधुना वेशरूप दंन करीने पारका घरमांथी जे धूती जाय जे. तेवा दंनी जनोने ते आपे झुं थाय? पण जगतमां नोलाजनो तो कांइ समजताज नथी. अने प्रावा मुंमाने मफतनुं आपी दीये ? या प्रमाणे अल्पज्ञ अने अज्ञानी एवा विष्टयें तेज वखत आवां कटु वाक्य कहीने निकाचित नीचगोत्र अंतराय कर्म बांध्यं. हवे एक दिवस ते विष्टने धन माटे खाण खो दनारा लोनी मागसो मल्या, तेणें तेने लोनीयो जाणीने बानामाना एका तमां लइ जश्ने कर्दा के हे विष्ट! आहिं एक पर्वत , तेनी नीचें घjक धन डे, परंतु अमारी पासें तेनी कां पण पूजा वगेरे करवानी सामग्री नथी, तेथी तमने सामग्रीवाना तथा माह्या जाणीने अमो तमारी पासें अाव्या बैयें. ते सांजली विष्टु अत्यंत खुशी थ खड खड हसीने कहेवा लाग्यो जे अरे ! एमां ते गुंजे ? हुँ तमोने सर्वे धन संपादन करी आपुं? ते धन का ढवाने माटे सर्व पूजा सामग्री मारी पासें तेयारज डे ते सांजली ते लोको कहेवा लाग्या, के जो ते ऽव्य तमे काढी आपो, तोतमोने अमें तेऽव्यनोअ| जाग आपणुं ? पण जुन. या गुह्य वात ले माटे कोने कहेशो नहि. एम निश्चय करी उत्तम तिथि, लग्न जो पूजादिक सामग्री तैय्यार करी पोताना Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कुटुंबने बानी रीतें सर्व वात कही विष्टु ते लोकोनी साथें रात्रिमा जेनी नीचे धन डे ते पर्वत पासें आव्यो, त्यां पर्वत नीचें खाखरानुं एक जाड हतुं, तेनी शारवा हेवल पग मूकतां ते लोकोनो पग उंको उतरी गयो,तेने जोड्ने विष्टुये कह्यु के हे नाश्यो ! शास्त्रनुं एवं वाक्य , के “ध्रुवं बिल्वपलाशयोः” एटले बीलिना तथा पलाशना जाडनी नीचें निधन होय . माटे तमोने इव्य मत्यु के नहिं ? त्यारे ते बोल्या के हाधन मन्यु होय,एम लागे ने खरु, पण उपरनुं ढाकणुं घणुं कठिन ? ते सांननी विष्टु बोल्यो के त्यां तमो ऊट खोदवा मांमो, कारण के इव्य तो त्यांज . पली सर्वे जणे खोदीने जोयुं तो त्यांथी प्रथम रक्त रत्नो निकटयां, त्यारें विष्टने कह्यु के आहींथी रत्नो निकल्यां, पली तेनी विष्टुयें बलि पूजा करी. पनी तेमांथी धन सर्व बाहार काढी लावी विष्टुनी सांनिध्यमां मूक्यु. पनी सर्वे जणा विष्टुने कहेवा लाग्या के तमो जलदी गाममां जा. अने या सर्व धन लइ जवा माटें एक गाडी लश्यावो. ते सांजली खुशी थश्ने विष्टु कहे , के तीक. तमो बेसो. या घडीयेंज हुँ गाडी लईने आईं . तमो आहींथी क्याहिं पण जाशो नहिं. एम कहीने जेवामां ते पोताने घेर आव्यो, तेवामां ते खाडो खोदनारा पुरुषो परस्पर विचार करवा लाग्या के ते विष्ट हनी ज्यां गयो , त्यांज आपणे आहिंथी पसार थइ जायें ? एम विचारी ते सर्व इव्य लश्ने त्यांथी सदु जागी गया. हवे विष्ट पण एकदम गाडी लश्ने ते पर्वत नीचें आव्यो अने आवीने ज्यां जुवे , त्यां तो इव्य पण न मले, अने तेना खोदनारा पण न मले ? तेथी तेने एकदम धेसत लागवाथी मूळ खाइने ते नूमिपर पडि गयो. थोडी वारें ज्यारें मूर्जा वली, त्यारें उखाकुल थ शोक करतो करतो निराश थइ सवारें पोताने घेर याव्यो. हवे ते विष्टु रात्रि गयो अने पालो सवारें आव्यो,ते जोइने पडोशमा रहेला कोई चाडिया माणासें जाण्यु जे आज रात्रं ते क्यां गयो हशे? जरूर तेनो तपास करवो. कारण के ते अनर्थकारी ले ? अने तपास करतां पण मालम पडद्यु जे ते धन मेलववा माटे एक पर्वत नीचे गयो हतो, पड़ी तेणे त्यां जईने ज्यां जोयुं त्यां तो खोदेलो खाडो जोयो. पनी ते चामिये पो जोयेली सर्व बिना त्यांना राजाने कही. त्यारे राजायें तुरत बोलावीने तेने पूब्यु के हे विष्टु! ए पर्वतनी नीचें तें खाडो केम खोद्यो? त्यारें नय पामीने जेवी वात Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २३७ बनी हती तेवी सर्व कही देखाडी. पडी राजायें न्यायकर्ताउने पूज्युं के आने झुं शिदा करवी? त्यारे न्याय कायें कह्यु के ॥श्लोक ॥ चोरश्चोरार्पकोमंत्री, नेदज्ञः काकः कयी ॥ अन्नदः स्थानदश्चैव, चौरः सप्तविधः स्मृतः॥१॥ अर्थः-चोरी करनार, चोरीनुं धन राखनार, चोरीनो नेद कहेनार, चोरीनी वात करी शीखवनार, चोरीनो माल वेची देनार, चोरने अन्न यापनार, चो रने स्थान प्रापनार, ए साते प्रकारना शास्त्रमा चोरज कहेला ने. ते सांजली राजायें तेने चोर मानी,तेनां घरबार,धन, सर्व लूंटी लीधां अने तेने नगरथी बाहेर काढी मूक्यो. पनी एकदम इव्यनो नाश थवाथी तेने नन्माद रोग थयो, तेथी महा दुःखी थयो ॥ यतः ॥ अदत्तादानतोदौस्थ्यं, दौस्थ्यतः पापकल्पनम् ॥ पापेन नरकं घोरं, प्रयाति च पुनः पुनः ॥१॥अर्थः-अदत्त दानथकी अर्थात् चोरीथी स्थिति थाय , उस्थितिथी प्रतिदिन पापनी कल्पना थाय ने. अने पा करी वारंवार घोर एवा नरकमां जाय छे. हवे ते विष्णु कालें करी मरए। पामीने पोतानाज घर आगल श्वान थश्ने अवतस्यो, अने ते घर फरता फेरा खाय, पण को खावा आपे नहि, ने सदु को तेने मास्याज करे. पडी ते मारथी मरण पामी पाडो पण पोता नाज घरमा मिंदडो थइ अवतस्यो, अने ते घरना रसोडामांज प्रतिदिन फरवा लाग्यो. त्यां पण तेने रसोयायें मास्यो, तेथी मरण पामी ने पाबो दरिडी चांमाल थश्ने अवतस्यो, त्यां पण हिंसादिक पापकर्म करीने मरण पामी प्रथम नरकने विषे नारकी थश्ने अवतस्यो. त्यां पण परमाधामी देव तानी करेली वेदनाने अने ते देवनी वेदनाने सहन करवा लाग्यो. हवे तेनो नाइ सुविष्ट जे हतो, ते न्यायथी मेलवेला वित्तथी धर्म, अर्थ अने काम, ए त्रणे वर्गने साधतो थको मरण पामी उत्तरकुरुने विपे जुग लीयो थश्ने अवतस्यो, त्यां,जे जोग दश कल्पवृदोथी पूरा पडे, तेटला नो गना संकल्पने पूरा पाडे . तेवी रीतना लोग जोगवतो थको त्रण पठ्यो पमनुं आयु जोगवी त्यांथी प्रथम स्वर्गने विषे महाद्युतिमान एवो देव थइने अवतस्यो. त्यां देवांगना साथें नोग जोगवतो तथा नृत्यगीत, तेने विपे निरंतर आसक्त थयो थको ते देवताना लोकनेविपे एक पट्योपमनुं आयु जोगवी, त्यांथी च्यवीने आज विजयने विपे जयस्थल नामा नगरने विपे पद्मदेव शेतनी जया नामनी नार्या थकी गुणाकरनामा पुत्र थश्ने अवतस्यो, Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. धने सुखमा वृद्धि पाम्यो. पनी अनुक्रमें तेने रमणीना नयनने आनंद संपादन करनार ए, यौवन वय प्राप्त थयुं. हवे नरकमाथी निकलेलो ते विष्टनो जीव, धनंजय नामा पुरुष अने जया नामनी स्त्री ते थकी उत्पन्न थयो, तेनु नाम गणधर एवं पाडयु. ते पण अनुक्रमें यौवन वयने प्राप्त थयो. पूर्व नवना योगथी तेने परस्पर मैत्री थइ. पड़ी ते बेदु मित्र नविन इव्य उपार्जन करवानी आसक्तिमा कोइक वनने विपे गया, त्यां श्रीधर्मदेवनामा मुनि समवसस्या हता, तो ते मुनिने जो इने नमस्कार करीने तेने गुणाकर पूबवा लाग्यो के हे मुनिराज! अमने बेदु जणने निष्फल न थाय, एवो कोश्क इव्य उपार्जन करवानो उपाय कृपा करी। आप बतावो ? त्यारें मुनियें कडं के जो तमने वेदुने धननीज बा होय, तो निःशंकरीतें जैनधर्मनुं आराधन करो. ते धर्माराधनथी निर्सल अंतःक रणवाला थश्ने आलोकमां तथा परलोकमां आपत्तिरहितत्वने अने संपत्ति ने पामशो ॥यतः॥ नित्यं पुष्णंति पात्राण्यपि मरणगतानंधपंग्वादिदीनान्, मुःस्थान मित्राणि शत्रून् नृपसचिवमुखान मार्गणान् सेवकान ये ॥ शृंगार स्फारसाराशनवसनधनैर्नुजते नव्यनोगान्, दुःखं नो याति तेषां तत सुरूत जुषःसंपदस्तास्तथापि ॥१॥ अर्थः-हे तात ! जे पुरुषो, पात्रोने, तथा मर पोन्मुखने, अंधने, पांगलाउने, स्थानरहितने, मित्रोने, शत्रने, राजाने. सचिवप्रमुखने, मागणोने, सेवकोने पोपे . ते पुरुषो घणा शृंगार, मनो हर एवां जोजन, वसन अने धन, तेणें करी दिव्य एवा जोगोने जोगवे . अने ते पुरुषोने को दिवस दुःख तो आवतुंज नथी. वली बीजा जन्ममां पण ते सुरूतीने तेज प्रमाणे पूर्वोक्त सर्व संपत्तियो स्वतः मले में, अर्थात् तेने जन्म जन्मने संपत्तिनो नाश थातो नथी.अने जे पाप करनाराप्राणी होय , तेने कोइ पण ठेकाणे संपत्ति प्राप्त थवानो संनवज नथी ।यतः॥ लोकाः केपि खनंति रोहणनुवं, ध्मांतीह धातूंन परे, केचिहारिधिमुत्तरंति कतिचिनत्तया नजंते नृपम् ॥ कांतारं प्रविशंति वा विदधते मंत्रामराराधनं, पापाः काएकपर्दिकामपि तथा नैवाप्नुवंति क्वचित् ॥ २ ॥ अर्थः- धन माटे केटलाएक लोको रोहणाचल पर्वतनी नूमिने खोदे , वली बीजा केटला एक मनुष्यो प्रवास जइ धातुनने धमे बे, केटला एक लोको महोटा समुश्ने उतरीने परदेश जाय डे, केटलाएक तो देवताना मंत्र बाराधन Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २३ए करे . तो पण जो ते पापी होय , तो तेने कोइ स्थलथी फुटेली एक कोडी पण मलती नथी. माटे लोनरूप समुश्मा मूबेलो प्राणी, राजा धिराज कदाचित् होय, तो पण ते दुःखीज जाणवो. अने संतोषी जे जे, ते धनवानना मस्तक पर पग दश्ने सुखें करी सुश् रहे . जुन. जो लोनी जीव जे , ते कदाचित् कोटिपति होय तो पण ते दरीडीज जाणवो, केम के तेनाथी दान अने नोग ए बे वानां थइ शकतां नथी. अने संतोषरूप अमृतरसनो पीनारो प्राणी निर्धन अने तुच होय , तो पण कोटिध्वज समान बे. अने जे इव्यवान् थश्ने अनिमानथी कोइ सामुं न जोतां के वल नचुंज जोया करे , ते दरिडी थाय , अने नीची दृष्टियी विनयवान थइने निरचिमान पणाथी सदु सामुं जोवे , ते गरीब दे, तो पण ते ईश्वर थाय . लोनी पुरुषने कोइ एकवस्तु सो जोजन दूर होय ले, तो पण ते दूर देवाती नथी. अने संतोषी जे जे, तेने हस्त ग्राह्य जेवी वस्तु होय, ते पण सोजोजन दूर जेव। थाय .ते माटे हे नश्क जनो! सर्वथा परिग्रह त्याग करवाने जो शक्तिमान न थवाय, तो पण विशेषे करी तमारे वा परिमाण परिग्रह राखवानी तो जरूरज जे.जे पोतानी इबाने रोधीन शके ने लोनें करीव्याकुलांतःकरणयुक्त थको व्यवानने घेर श्वाननी पेठे दो ड्याज करे . अने घणाक्लेशोने अने छेवट मरणने पामे . या प्रकारनो मु निना मुखथी उपदेश सांजलीने गुणाकर जे हतो तेणें तो सम्यक्त्वप्रतिपत्ति पुरःसर स्वेवाप्रमाणे परिग्रह परिमाण व्रत,हर्षे करी अंगीकार कयुं अने श्रदा रहित एवो तेनो मित्र जे गणधर हतो तेणे व्रत वगेरे सर्व खोटुं मानी परि ग्रह परिमाण प्रमुख कांश पण स्वीकापुंज नही. ने वली विचारवा लाग्यो के, जे माणास पोतानी लाने कोइ पण कार्यमां रोकी राखे जे अने निवृत्ति परत्व करे , तेने दैव, कांश पण अधिक आपतुं नथी. कारण के तेणेक मज वेच्युं !आ मारो मित्र मूर्ख कहेवो , के पेला मुंमाना खोटा प्रलापथी यथेन, परिग्रहपरिमाणनुं व्रत ल बेठो ? हवे ते पड़ी जावथी ए गुणाकरें अने अनावथी गुणधरें मुनिनुं वंदन कयु.अने तुरत पोत पोताने घेर आव्या. बीजे दिवसें पोताना मित्र गुणाकरने कह्या विना एकलोज ते गणधर करियाणां नरीने व्यापार करवा माटे चाल्यो, अने परदेशमा वेपार कर वाथी तेने घणोज लान थयो. परंतु संतोष न होवाथी मलेला इव्यथी पण Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. अधिक इव्यना लानने माटे तेज इव्यनां, वेचवा माटे उत्तम वस्त्रो पाना लीधां, लइने त्यांथी पण दूरदेशे गयो,अने त्यां पण तेने घणोज लान थयो, वली पण लोनना वशथी वेपार माटे ते मलेला सर्व व्यनां अति मूल्य वाला वस्त्रो तथा करियाणां लीधां. लश्ने तेनां गाडां नरीने ते पोताना देश तरफ चाल्यो, चालता चालतां रस्तो नूली गयो तेथी महोटा अरण्यमां आवी पज्यो. त्यां वेषुनुं घर्षण थावाथी महोटो दावानल लाग्यो ते बलतो बलतो ज्यां गणधर शेतनां गाड चाल्यां जाय डे, त्यां आव्यो, तेथी गाडावाला तो मरणजयथी जीव लश्ने नाग, अने गाडां जे हतां, ते त्यां माल सुधां बली नस्मनूत थ गयां, अने जे बेलो हता, ते पण वली मूवा. पनी नूख अने तृपाथी आर्त एवो ते गणधर शेठ पोताना जीवने बचाववा माटे एकदम त्यांथी थाक्यो पाक्यो सात दिवसें को एक यंत्रिकावतीनामनी नगरी हती, त्यां आवी पहोंच्यो. त्यां राज रस्तामां कोइएक मठवासी कापडी रहेतो हतो, तेणे ते गणधर शेठने पोताना मनी बारीमाथी दीठो, के तुरत तेने पोताना मठमां बोलाव्यो, अने दया लावी प्रथम तो जोजन कराव्यु. पडी ते गणधर शेने तेनी वीतेली सर्व वात पूर्वी. त्यारे तेणें यथास्थित जे वात थ हती, ते कही यापी, तेथी ते लिंगधारी कापडीयें जाएयुंजे आ लोनी बहु ? एम जाणी त्यां कोई एक पर्वत हतो, तेनी नीचें लइ गयो, अने त्यां एक पधि हती, ते बतावी. अने कह्यु के हे ना! या उपधिने तुं उत्लखी ले, जो. श्रा उपधिने मध्यरात्रे आहिं यावीने लेजे. तेम करीने बेदु जण पोताने स्थानकें व्या, ज्यारें रात्रि पडी त्यारे कापडीये ते गणधरने कडं के हे गणधर ! मारी शक्तिथी त्यां जश्ने प्रकाशित कांतिवाली उप धिने तुं बुंटी लेजे अने तेने मावा हाथमां लश् गाढ मूतीथी पकडीने मारी पासें आवजे. पण यावतां आवतां वननी सामुं पा वाली तुं जोश नहिं हो? तथा मनमां जरा पण जय पण राखीश नहीं. एम करवाथी तारूं दारि चूर थइ जाशे. ते सर्व वात समजीने ते लोनी गणधर तत्काल त्यां गयो, जे प्रमाणे कापडीये कयुं ते प्रमाणे जश्ने उषधि ल पालो निर्नय थश्ने जेवामां चाव्यो, तेवामां तो एक राक्षस हतो ते खड खड हसतो बने शीयालीया जेवा कूकारा नाखतो शैलनी नीचे Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४१ आव्यो अने ते राक्षसना पादप्रहारथी खंमित थयेली गिरिनी टुकोना कांकरानो तथा राक्सनो शब्द सांजली कांक जय पामीने तेणे पावं वाली जोयुं, त्यां तो दृढमूतीमा राखेली जे औषधि हती, ते तत्काल नडी गइ, तेथी खेद पामी कापडी पासें आवीने बनेलुं सर्व वृत्तांत कह्यु. ते सांन ली कापडी बोल्यो के हे नाइ! तारामांसाहस तथा व्यवसाय, ए बेतु वानां तोडे,परंतु पूर्वोपार्जित पुण्य नथी माटें ते पुण्य विना बेदु वानां निष्फल थाय ने, एटलंज नथी, पण उलटा अवलां थाय ले. तेथी तुं हवे तृथा न द्यम करवाथी निवृत्ति पाम. केम के तें उद्योगो तो घणा कस्या, परंतु हीनपुण्यने लीधे तुने सुखने बदले पुःख उत्पन्न थाय बे,माटे संतोष राखी घेर जा. उद्योग तथा साहस करी वृथा फुःखनु नाजन ते शा माटे थाय ने ? एम ना पाडी तो पण अत्यंत तृष्णावंत एवो ते गणधर शेत, त्यांथी पाबो को एक महालय नामा गाम हतुं, त्यां आव्यो अने त्यां कोई परिवा जक रहेतो हतो तेने मल्यो, अने तेने पोताना सर्व दुःखनी वात कही ब तावी. पनी परिव्राजक बोल्यो के कोश्क ठेकाणे रातो थोर होय, तो जो. जो ते थोर मले, तो तेथी तारुं दुःख हूं हां. त्यारे गणधरें का के तमो पण चालो. तमारा विना ते काम बराबर बनशे नहिं अने आपण वेदु मलीने ते काम करिये? एम वेराव करी बेदु जण शोधवा गया अने शोधतां शोधतां ते पूर्वोक्त थोर मल्यो. पठी उत्तम योगवालो दिवस जोइने परिवा जकें ते थोरने मंत्र्यो. पनी एक कुंम बनावं ते कुममा अनि सलगाव्यो. हवे जे थोरनो नारो हतो, तेने उत्तम काष्ठोथी वीटयो,अने काष्ठ सहित ते थोरना नाराने गणधर शेउने माथे मूक्यो ने कुंममां होमवाने माटे तेना हाथ पकड्या, त्यां तो ते गणधरें जाण्यु जे अरे! आ तो मने होमवो धारे ले ? तेथी जोर करीने परिव्राजकना हाथमांथी बटकी तेनेज कुंझमां नाखवा तैयार थयो. एम एक बीजाने कुंभमां नाखवा माटे प्रयास करता तेने कोइएक गोवालीये जोया, ने तेणें पोकार कस्यो के अरे नाश्यो! बाहिं कोक वे जणा परस्पर एक बीजाने अग्निकुंममां नाखवा माटे लडे जे ? ते शब्दने या हेडीयें आवेलो कोइ राजकुमार हतो, तेणे सांजव्यो के तुरत ते त्यां श्राव्यो, अने तेणे बेतु जणने माहोमांहे क्वेश थवानुं कारण पूज्युं. त्यारेते गणधरें बने ऱ्या सर्व वृत्तांत कयुं ते सांजली राजकुमारे जाण्यु जे सर्व वांक ा कापडीनोज Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ने. पनी एकदम कोपायमान थइने ते राज कुमार बोल्यो के रे उष्ट ! पापिष्ट ! नि घृण! आ बिचारा गरीबने अग्निमां केम नाखे ले ? एम कही उत्तम काष्ठथी वि टेलो रक्त थोर तेने माथे मूकी ते परिव्राजकनेज कुंझमां नारखी दीधो. त्यां तो ते एक घडीमा सुवर्णमय पुरुष थइने निकट्यो, तेने संतोष पामेला राज कुमार लइ सेवकोने कही एकांतमां रखावी मूक्यो. पडी थोडं घणुं नातुं आपीने गणधरने त्यांथी विदाय कस्यो. हवे गणधरे जाण्यु जे मारूं मोत तो आव्युंज हतुं पण ते राजकुमारें जरा पण मने मारवा दीधो नहिं ? एम विचार करतो करतो पोताना गाम तरफ चाल्यो.मार्गमां चालतां चा लतां तेने कोइएक पाथिक मंत्रवादी मल्यो, तेनी साथे चाल्यो. अने ते मंत्र वादीने पोतानी सर्व हकीगत कही संनसावी. पडी ते बेदु जण, कोइएक नगर हतुं, त्यांाव्या.त्यां ज्यारें जोजन वेला थइ, त्यारे गणधरने मंत्रवादीयें कमु के हे गणधर शेत! कां तमारे नोजन करवानी हाले ? त्यारे तेणे कडं के हा, घणा दिवस थया मारा मनने खुशी करे एवा में मोतीचूरना अ ने केसरीया लाडु खाधा नथी, पण ए थाहीं क्याथी मने ? जो ए मले, तो हुँ पेट नरी नोजन करूं. ते सांजली सिहपुरुचे ध्यान करी मंत्रसाधनथी तेणे कह्या तेवाज मोदको उत्पन्न करी आप्या, ते जोड्ने गणधर शेठने तथा बीजा पण केटलाएक पांथजनोने विस्मय थयो, अने पनी ते सर्वे, लाम् जमीने तृप्त थया. तदनंतर ते मंत्रवादी पोतें जम्यो. पाना वली सायंकालें पण मंत्रसिदिथी धृतपूर्ण अन्ने करी घणाकने जमाड्या अने पडी पोतें जम्यो, पाबा सवारे पण दूधपाकें करी सदु कोइने जमाड्या. वली पण सायंकालें ते बेदुजणे खजूर खाधो अने पनी त्यांची चाव्या. चालतां चालतां ते सिधपुरुषनो आवो मंत्रसिह चमत्कार जो गणधर पूबवा लाग्यो के हे महाराज ! ावी महासिझविद्या आपने क्याथी प्राप्त थ ? के जे विद्याथी धारो बे, ते पदार्थ प्राप्त थाय ? त्यारे तेणें कह्यु के नाइ ! हुँ माहादारिथी पीडा पामतो हतो, तेथी दारिश मटा डवा माटें दुं घणाक देशोमां जम्यो, जमतां जमतां, प्रत्यक्ष जाणे मंत्र मूर्तिज होय नहिं ? एवा कोइएक कापालिकने दीठो. तेनी में घणीक सेवा करी. त्यारें मारी पर तुष्टमान थयेला कापालिकें मने अभुत एवो वेता जनो मंत्र आप्यो, अने ते मंत्र में साहसपणेथी साध्यो. हे ना! आ स Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४३ माहात्म्य ते साधेलामंत्रनुज ? अनेदारियनापुःखथी घेरथी हुँ निकल्यो बूं, ते हजी पालो घेर पण गयो नथी. हवे आ मंत्रसिदि मुने मली बे, तेथी घेर जश्श अने सर्व वस्तु मंत्रसिदियी संपादन करीश ? एम वातो करतां बेदुजण केटलो एक रस्तो कापता चाव्या, त्यां तोते बेदु जणने पोत पो ताने गाम जावानो मार्ग जुदो जुदो फंटाणो. त्यारे सिमपुरुषे कह्यु के हे सखे ! तमारो देश तो आ निकट अाव्यो, ते माबाहाथ तरफज ने तेथी तमारे हवे ते तरफ जावू पडो, ने मारे दक्षिण तरफने मार्गे जावं पडशे, कारण के मारु गाम दक्षिण तरफले. परंतु आपण बेदने हवे वि योग थाशे ? माटे हे मित्र! तमें मारा मित्र बो, तेथी जे कहो ते आपुं ? तमो मागो तो ढुं तमने कोटि इव्यनुं दान देवाने पण समर्थ j ? त्यारे ते गणधर विचारवा लाग्यो के कोटि इव्यनो लान मने, ते गुंका मनो ! परंतु जो मंत्र मले, तो दरि जाय. तेम मानी असंतुष्ट एवो गणधर ते सिहपुरुष पासें वतालदत्त मंत्रनी याचना करवा लाग्यो. त्यारें सिहपुरुपें कह्यु के ए मंत्र तो ढुं तमने आपुं, परंतु ते मंत्र, धर्मिष्ठ पुरुषने साध्य ले, तेने जो कोई अधर्मी साधे जे. तो तेना प्राणनो नाश थजाय जे. एम समजाव्यो, तो पण ते ज्यारें पोताना कदाग्रहथी निवृत्त थ यो नहिं. त्यारें दाक्षिण्यनिधि एवा ते सिपुरुचे वेताल मंत्र प्राप्यो अने ते मंत्र साधवानो विधि पण कह्यो. पनी ते पोताना स्थानक प्रत्ये गयो. हवे गणधर शेठ, पोताना देशपामें सुसीम नामा नगरमा पोतानो मामो ज्यां रहे ले, त्यांावी ते मामाने घेर गयो, केटला एक दिवस त्यां सुखेंथी रह्यो. एक दिवस पोताना मामानी आगल ते वेताल मंत्र साधवानी सर्व वात कहि बतावी अने तेमनी रजा लश्ने कालिचतुर्दशीने दिवसें रात्रे स्मशानमां गयो. त्यां जर कुंम बनावी, तेमां होमवा योग्य आहुतियो वि धिथी होमवा तथा ते मंत्रनो जाप करवा जेवामा लाग्यो, तेवामां तो त्यां नाना प्रकारनी जयकारक चेष्टा थवा लागी, तो पण ज्यारे ते जय न पाम्यो, त्यारें तो ज्यां ते वेठो हतो, तेज सर्व नूचक फरवा लाग्युं अने एकदम नयंकर शब्द थयो, तेथी तेनुं चित्त कंपायमान थइ गयुं, अने तेथी तेने ते मंत्रनुं एक पद पण विस्मृत थ गयुं. त्यां तो मंत्रा धिष्ठाता वेताल जे हतो ते, तेने मंत्रचष्ट थयेलो जोइने कहेवा लाग्यो Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. के अरे उष्ट ! आवा पराक्रमें करी मने साधवानी ना करे ? एम कहीने लाकडीना प्रहारें मूर्जित करी तेने स्मशानमांथी बाहेर काढी नाख्यो. पनी सवार थइ गई तो पण ज्यारे ते आव्यो नहिं, त्यारे तेना मा मायें विचास्युं जे सवार तो पडी गइ, पण गणधर केम आव्यो नहिं ? चाल, ढुं स्मशानमा जइ तपास तो करूं ? एम विचारी त्यांावी तपास करी ज्यां जुवे, त्यां तो स्मशानथी बाहेर पडेला ते गणधरने जोयो अने दया आणी स्वस्थ करीने घेर आण्यो अने उसड वेसड करी साजो करी तेनुं जयशेखरनामा जे गाम हतुं त्यां मोकल्यो. पनी तेणे घेर आवी पोतानी सर्व बिना कही बता वी. ते वात सांचलनारायें तेनी समद तो तेनुं आश्वासन कयुंपण पडीथी तेनुं "नि ग्यशेखर' एवं नाम पाड्युं. अने सदु को ते नामथीज बोलावा लाग्या. तेथी अत्यंत लगा पामी ज्यां त्यां पोतानी निंदाने सहन न करतो थको गला फांसो खाद्यानथी मरण पाम्यो. मरीने नरकमां नत्पन्न थयो. त्यांथी निकलीने तिर्यग्योनिने विपेचमण करशे. त्यां पण घणा प्रकारनां पुःखोने सहन करशे. गुणाकर तो रत्नाकरनी पेठे श्रीमान् पोतानी धर्ममर्यादाने अनुसरी धनने वापरतो, पुत्रादिक संततिथी युक्त थको अत्यंत शोनवा लाग्यो. हवे पोताना मित्रनु आवी रीतें गलाफांसाथी मरण थयुं सांजली पोतें वैराग्यवान् थइ पांचमा अणुव्रतने निरतिचाररीतें पाली समाधि मरण करीने स्वर्गमा गयो. अने अनुक्रमें मोदने पण पामशे. माटे हे श्राविका! आ इतिहासथी पंचमअणुव्रतना गुण तथा दोषोने समजी विवेक लावी ने परिग्रह परिमाण व्रतने अंगीकार करो. ते उपदेशथी बोध पामेली एवी मारी स्त्रीयोयें मुनिनी पासें ते पांचमुं परिग्रहपरिमाण व्रत स्वीकायं. त्यार पड़ी में विचायुं जे आवा सारा गुणना देनारा धर्ममूर्ति एवा गुरुने विषे में जे वारंवार प्रहार करवानो विचार कस्यो, ते घगुंज उष्ट कर्म कयु, माटे ते अपराधने मटाडवा माटे तेना चरणमांज मारे पडवू जोश्यें ? एम विचार करी एकदम ते मुनिना चरणमां दुं पडी गयो अने मारो चितवन करेलो सर्व अपराध में कही दीधो. पनी ते अपराध खमावीने, ढुं विज्ञापन करवा लाग्यो के हे नगवन् ! दाल जे गणधर थश्ने नरकमां गयो, तेनो पूर्वावतार विष्टु हतो, तेणे पोताना मित्र सुविष्टुने त्यां वहोरवा आवेला Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४५ मुनिने उपहासथी कूरवचन कह्यां, तेथी तेने दारुण फल मन्युं, तो हे महारा ज! हुँ पण प्रषथी दूषित बूं, तो मारो ते केवी रीतें निस्तार था ? त्यारे मुनियें कह्यु के त्रण जगतना जनने मानवा योग्य, ब्रह्मचारी, सौम्य गुण युक्त एवा साधुग्ने विषे जे उर्ध्यान करवू, ते महोटुं पाप , ते पाप जे मटा डवू, ते तो गुरुपासे आलोग्ने अथवा मुनिपणुं पाचरीने थाय , ते शि वाय बीजी कोइरीतें थातुं नथी अने गुरुनी जे गर्दा ने, ते तो गुरुनी जक्ति विना मटती नथी. वली हे महानाग ! तुं तारा मनने विषे आ संसारनी असारताने नाव, अने मनने विपे वैराग्य लाव, कारण के आ कामनोगनुं जे सुख , ते तो ऊर्गतिनेज देवावालुं ने अने आ देहा दिक सर्व संयोग जे , ते अनित्य जे अने मृत्यु जे ,ते तो 'अमुक दिवमें मरगुं,' एवा निर्धार न होवाथी आशानरेला प्राणीने अचानक लज जाय ने ? एम चितवन कर, सांसारिक सुखने तुब जाणी तेनो त्याग करी सुख दायक एवा संयमने ग्रहण कर.अने हे नाइ! पारकी निंदाने बोडी दे, मा यानो त्याग कर, कामनी तर्जना कर,मदने वार, बालसने बोडी दे, निर्मल एवा संयमने जज, कारण के संयमथकी कर्मरूप पांजराथी मुकाइ जवाय जे. आवां सुधासमान मुनिनां वचन सांजलीने हे पूर्णचंश्कुमार ! मारा शरी रगत जे मोहविष हतुं ते नाश पामी गयुं अने विवेकयी मारुं मन विकसित थयुं, त्यारे में चिंतव्यु जे ॥ यतः ॥ अद्याऽचिंत्यमहाफलेन फलितोमानुष्य कल्पफुमः, संसारांबुधिमऊनात्तु कलितं सद्यानपात्रं मया ॥ विद्याद्यां बरगामिनी शिवपुरे गंतुं च लब्धा मया, सत्साधुर्यदयं तपःऋशवपुः प्राप्तो मदीये गृहे ॥ १॥अर्थः- तपें करी कश बे शरीर जेनुं एवा आ रूडा साधुवर्य मारे घेर पधास्या, तेथी हाल मारे मानुष्यरूप कल्पवृद महा फलें करी फल्यो ! संसारांबुधिमां मूबता एवा मने गुरुरूप वाहाण हाल अपलब्ध थयुं. अने शिवनगरप्रत्ये जवानी आकाशगामिनी विद्या पण मने मनी ? ए प्रकारें प्रमोदने प्राप्त थयेला में, श्रा संसारने असार जाणी मारी सर्व स्त्रीयोने बोध कस्यो, तेथी वैराग्य पामेली एवी सर्वस्त्रीयो सहित घjक इव्य हतुं ते सात क्षेत्रमा वावरी, मुनियोना गुरु एवा श्री सिंहसेन नामा सूरिनी पासें जर, दीक्षा ग्रहण करी. अने ते गुरु वर्यना गुरु प्रसादथी या गुणरूप लक्ष्मीने प्राप्त थयो ढुं॥ यतः ॥ टो Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जैनकथा रत्नकोप जाग सातमो. व टलटतो, हियं विन्नाण नाल निलएल | देवु व बंद शिको, कर्ज लि गुरु सुतहारेण ॥ १ ॥ अर्थः- पापापनी पेठें रखडता एवा मने अधिक एवा ज्ञान ने विज्ञानना स्थानमय गुरुरूप सूत्रधारें देवनी पढें पू जनीय कस्यो, एटने जेम पाषाण होय, ते प्रथम रखडतो होय, ने पढी तेने सलाट घडे त्यारें प्रतिमा याय, अने पती ते पूजन करवा लायक थाय, तेम हुं पण प्रथम मूर्खज हतो, त्यारें पापाल समान हतो, पढी गुरुरु पसलाटें धर्मोपदेश देइ घड्यो, त्यारे हूं प्रतिमा समान पूजनीय थयो. हे पूर्णचंदकुमार ! या प्रमाणें मुने विशेष वैराग्य थवानुं कारण में सविस्तर कयुं श्रावी रीतें सूरिनुं सर्वचरित्र श्रवण करी बोध पामेलो ते पूर्णचंद कुमारनो पिता सिंहसेन राजा, ते मुनिपतिने कहे बे. के हे भगवन् ! तमें धन्य हो, पुण्यवान् हो, त्यागी जनोमां पण अग्रगण्य बो, कारण के जे तमोयें ग्रगण्यलक्ष्मीने तथा सुंदर श्यामाउने तथा ष्ट थ्वीना राज्यने पण तुनी, पढें त्याग करचोबे ? हे माहाराज ! महारी जेवा क्लब एटने निःसत्त्व संसारासक्त, असार संसारथी जरा पण विराम पाम ता नथी. ने हे महाराज ! या देहथी शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, एवा पांच प्रकारना जोग जोगव्याज करे बे. केनी पेठें ? के जेम कोइ जीव, धन वानने घेर अवतार लइने घणो वखत दारिनेज जोगवे ? माटे हे मुनिप ते ? हुं श्रापनी सन्मुख निरवद्य एव तत्त्वविद्याने सद्य पामीने निर्बंध्य श्र हर्षदायक एव संयमश्रीने स्वीकारीश ? एम कही नगरमां जइ पोताना पुत्र पूर्णचंद कुमारने महामहोत्सवें करी सर्व सामंत, प्रधान, सेनापतिनी समद, राजगादी पर बेसाखो पढी पूर्णचंद कमारें दीक्षामहोत्सव जेनो कस्यो बे एवो ते सिंहसेन राजा, सूरिनी पासें जर दीक्षा ग्रहण करतो हवो हवे ते राजा शिक्षा ग्रहण करी शांत, दांत, महाव्रतने विषे यासक्त पठ अष्टादिक तपने तपतो थको महामुनि थयो. पूर्णचंद्राजा पण शु.६ धर्मना धुरने धारण करतो तथा पर्वतनी पेठें स्थिरताने ग्रहण करतो को सर्व राजसंपत्तिने योग्यरीतें जोगववा लाग्यो, अर्थात् राजसंपत्ति प्राप्त थवाथी अधर्माचरण तथा मद तेथी रहित वर्त्तवा लाग्यो. न्यायमार्गे प्रवर्त्ततो, कर्पूरना पूर समान गुत्र यशने प्रसारतो एवो ते राज्यश्रीने जोगववा प्रवर्त्त थयो ने अणुव्रतनी स्थितिने दृढ करवा लाग्यो. वल । ते कुमार, Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४७ झान दर्शनना रदण माटे पोता पासे रहेनारा सुनटो पण सदाचारवाला, स मिति गुणयुक्त, दमा युक्त एवा ते जे डे, परंतु बीजा अन्यधर्मीने तो नथी. पड़ी मनोहर अश्व, तथा हस्तीनी उपर बेसवाने चतुर, प्रजा रद एमां प्रचुर, पुण्यमनोरथने धारण करनार, गुणशिदासक्त, दीनजनोने कुःखथी मुक्त करनार, सदा पोताना शासनने उद्योत करनार, पर शासनने वारनार, विविध पदार्थोनो संग्रह नरनार, अंतःपुरनो विचार राखनार एवो ते पूर्ण चंद, धर्मनाज संगें करी सर्व रिपुचक्रने वश करतो हवो. हवे पोतानी पुष्पसुंदरी स्त्रीनी साथें जोगने विपे नीति राखतां रा खतां केटलो एक काल व्यतीत थइ गयो, त्यारे तेने एक "वीरोत्तर" नामा पुत्र थयो, अने पड़ी तेने युवराजपदने विषे स्थापन कस्यो. पुष्पसुंदरी राणी पण सम्यक्त्वपूर्वक पांच अणुव्रतने धारण करती थकी शुद्ध जेनो नाव बे, एवी परम श्राविका थ. एक दिवस बाहिरना सर्व वृत्तांतना कहेनारा पुरुष पासेंथी पोताना पिता मुक्तियें गया, एवं सांनती, परम विषाद युक्त थइ ते पूर्णचंराजा नावना नाववा लाग्यो के, धन्य दे महानु नाव महारा पिताने के जेणे पोताना कोमल अंगें करी कुष्कर एवं कार्य साधी लीधुं ! महापापमां आसक्त, अल्पसत्त्व एवो दूं तो जराने प्राप्त थयो, तो पण विषयमांज लोलुप थइ रह्यो बूं. वली या दे हादिकने विषे अनित्यता जो बुं, तो पण हजीधर्ममांज प्रमाद करी बेसी रह्यो !आप्रमाणे विचार करतांप्रतिदिन सचिंतज रहे बे. एम एक दिवस, सचिंत थयेला ते पूर्णचंराजाने जोश पोतानी प्रिया पुष्पसुंदरी कहेवा लागी के हे नाथ ! न कामो खेद शामाटे करो बो ? तेवा खेद कस्याथी गुं वलवान ने ? माटे खेद बोडी कांक उद्यम करो. कारण के शोकने तो जे निःसत्त्व एवी स्त्रीयो होय , तेज करे . माटे शोक बोडी यो अने हवेथी ब्रह्मचर्यव्रत जावजीव पालो. ज्यां सुधीमां आलस्यविरहित एवा सुरसुंदरसूरि था हिं पान धारे, त्यां सुधी पूर्वोक्तरीतें आप वर्तो. अने ज्यारे ते गुरु पधा रे, त्यारे आपना जे मनोरथ होय, ते साधजो. आवा वचन सांगली पूर्ण चंड राजा कहेवा लाग्यो के हे प्रिये ! तुं घणी चतुर बो, कारण के मारा मनमा जे बाबतनो मुने क्वेश हतो, ते बाबत, तें सर्व कही देखाडी. ते ब दूज सारं कह्यु. एम ते पुष्पसुंदरीनी स्तुति करीने राज्यनी सर्व चिंता Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पोताना पुत्र पर नाखी, सर्व व्यापार रहित थइने अहोनिश जिनेऽपूजा तथा सामायकने ग्रहण करवा लाग्यो. थने क्रियारत थइने खंम पौषध व्रत करे बे. सत्त्ववान् एवो ते राजा, चित्तने विषे निर्ममत्वने नावे बे. ने राणी पण तपें करी कशांगी थइ गइ. हवे ते दंपती, सुरसुंदरसूरिना श्रागमननी वाट जोइ घेतां ने, ते वामां तो गुं थयुं ? तो के अकस्मात् प्रचं एवा यतिसारनी उग्रवेदनाथी पूर्णचं राजा श्रर्दित थ गयो त्यारें पूर्वं तेने वैराग तो हतोज तेमां वली शरीरमां रोग याव्या तेथी देह गेहने विषे निरीह थयो थको सूरिनी जावना जाववा लाग्यो के हो ! जे ठेकाणे सूरि विहरता हो, ते देश, पुर, ग्राम, तेने धन्य बे ? जे मुनियो ते सुरसुंदरसूरिना चरणयनी उपासना करता हो, ते मुनियोने पण धन्य बे ? अरे ए दिवस ते ढुं क्यारें देखीश के जे दिवसमां गुरु पादांबुजने सेवीश, तथा गुणो श्री श्रेष्ठ एवा साधुनी सेवा पण करीश ? वली पूर्ण अमृतरस समान श्रीगुरुना मुखथकी निकलता श्रागमामृतनुं पान करीश ? संसाररूप वीमां विहार करवाथी जय पामेलो तथा सदा रामरूप धारामने विषे निवास कर ले चित्त जेनुं एवोढुं तृणमां ने मणिमां तुल्य मन करीने रूडा साधु सायें क्यारें वार्त्ता करीश ? कारण के ते साधु पुरुषनी साधें जे वार्ता बे, ते या लोकने विषे संतापसमूहने नाश कर नारी, चोतरफना पापरूपपंकने प्रदालन करनारी अने सुधा सिंधुसमान ? वली ते साधु संघातें धर्मवार्त्ता बे, ते पुरुषने परम निवृत्तिने यापे ? ए प्रकारें धर्मध्याननी नावनाने नाववा लाग्यो. त्यां तो ते राजाने निदा नरहित प्रबल रोगनी व्यथा वधी, तेने सहन करी, माननो तथा क्रोध कषायनो त्याग करी ने सन्मृत्युथी तेणे पोताना देहनां त्याग कस्यो. पढी ते पूर्णचंद कुमार, राज्यसुख जोगववानां गृह वगेरे साधन जेमां बे एवा ग्यारमा चारणदेवलोकें महर्दिक देवपणाने प्राप्त थयो. पढी शास्त्रोक्त तपथी कुशशरीर वाली, श्रीमत् अरिहंतपदपदमां चम रीसमान ते पुष्पसुंदरी राणी पण समाधियोगथी आराधन कररी गृह स्थावथीज मरीने गाधसुखथीनरपूर एवा तेज अग्यारमा धारणदे वलोकने विषे महर्द्धिकदेवता थइने अवतरी ॥ श्लोक ॥ तत्रैकस्मिन्ने Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २४ए तयो विमाने, चंचत्कांत्योर्देवयो समाने ॥ आसीदायुर्विशतीसागराणि, स्फूर्जदब्धीरेकयुक सागराणि ॥१॥ अर्थः- प्रकाशमान एवा ते एकज धारणविमानने विषे बेहु देवता मित्र थया, अने त्यां सुंदर वीश सागर आयुने जोगवता हवा. ए प्रमाणे पृथ्वीचं अने गुणसागरना चरित्रने विषे पूर्णचंराजा धिकारनामा पाचमो सर्ग संपूर्ण थयो ॥५॥आहिं पृथ्वीचं अने गुणसाग रनो दशनवनो संबंध समाप्त थयो ॥ १० ॥ ॥अथ॥ ॥ पष्ठसर्गस्य बालावबोधः प्रारज्यते ॥ पुण्यानुबंधि पुण्येन, सुस्थितौ सुचिरं च तौ ॥ नपित्वा च ततश्युत्वा, य प्राप्तौ तनिशम्यताम्॥१॥अर्थः-पुण्यानुबंधि पुण्यें करी घणोक काल ते बेतु जण, देवतापणे सारी स्थितिमा रहि त्यांथी च्यवीने जे स्थलें प्राप्त थया, ते कवि कहे , के हे नव्य जनो! तूं कहूं, ते सानतो. श्रीजंबहीपना जरत खंम्मा दक्षिणतरताईने विषे विदेहनामा जनपद , तेमां मिथिला नामा नगरी, जे नगरीनी बाहार तथा अंदर, उत्तम मनोहर नाया वाला अने पुष्पफलथी जरपूर एवा पुन्नागना वृदोथी तथा बीजा पण वृदोथी सुशोनित बारामो जे. तेमां नरसिंह नामा राजा राज्य करे जे. ते सिंहस मान एवा नरसिंह राजानुं नाम सांजली शत्रुनृपरूप गजो त्रास पामे वे.शील अने लीलाना विलासवाली, दोषसमूहथी विरहित, सर्व कलाकलापथी मनो हर एवीतेनी गुणमाला नामा पट्टराणी , तेनीसाथै अत्युत्तमनोग जोगवतां ते राजाने घणोज काल व्यतीत थयो. हवे एक दिवस ते राजायें एकांतमां वेतांबेग, विचार कस्यो के जगत् मां मारी कीर्ति थाय डे के अपकीर्ति ! तेनी हुँ तपास तो करावु! ए मविचारी। तेना तपास माटे मोकलेला पोताना अनुचरें यावीने कडं के, हे राजन! आ पना कहेवाप्रमाणे हुँ तपास करतो हतो त्यां में रस्तामां चालतांकोइएक स्त्री योनो शब्द सांजव्यो के ॥श्लोक ॥ नरसिंहनृपोजीयात्, कयाऽप्युक्ते प्रगल्नया॥ अन्याह नरसिंहोन, किंत्वयं नरजंबुकः ॥१॥ अर्थः-कोइएक प्रगल्न स्त्रीय कह्यु के हे बेन ! था गामनो नरसिंह राजा घणां वर्ष जीवतो रहो, कारण के Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तेमां पोताना नाम प्रमाणेज गुणो ले. ते सांजली बीजी स्त्री कहेवा लागी के हे वेन ! तुं खोटुं बोले ,ते नरसिंह राजा नामथीज नरसिंह , पण गुणो थी नथी. गुणोथी ते तो जंबुक सरखो ने. कारण के जे पुत्र न बतां पण निश्चित थ सुश्रहे ! तथा नोजन पण करे .वली तेमां सर्व प्रकारचें सामर्थ्य बते पण ते पुत्र प्राप्तिमाटे मंत्र, योग, कला, तथा विद्यानी सामग्री मेलववामां नि उद्यमीज रहे . माटे तेने तुं गुणथी नरसिंह कहे, पण ढुं केम कहुँ ? यतः॥ पुत्रं विना कुलं कोहक, मंत्रहीनाश्च काः क्रियाः॥ नेत्रहीनं तु किं रूपं, शील हीनं च किं तपः ॥१॥ अर्थः-पुत्र विनानुं कुल शा कामर्नु ? तथा मंत्र विनानी क्रिया पण शा कामनी ? नेत्र विनानुरूप शा कामनुं ? अने शील विनानुं तप पण शा कामनुं ?॥१॥ हे बहेन ! पितादिक सर्व पण सत्पुत्रं करी सुरखी थाय .॥ यतः ॥ आनंदं जनकोबिनर्ति हृदये, स्वास्थ्यं जनन्यजुतं, तृप्तिं पूर्वज पूरुपाः स्वसुहदोहर्ष विपादं पिः ॥ प्रत्याशां च पितृवसापि गुरवो देवाश्च पूजां परां, स्तोत्याः स्युः स्वगुणा हि तत्सुतजनिः कल्पमेन्योऽधि का ॥ १ ॥ अर्थः- हे सखि ! पुत्र जन्मथी पिता जे दे, ते हृदयने विषे यानंदने धारण करे , जननी पण आश्चर्यकारक स्वास्थ्यने पामे वे. पूर्वज पुरुषो तृप्तिने प्राप्त थाय ने, पोताना सगां वहाला जे , ते हर्षने प्राप्त थाय , विपी जनो विपादने पामे ने, पितृश्वसा जे फश, ते पाबी इव्य वगेरे लेवानी आशाने प्राप्त थाय ने बने गुरु तथा देवता पू जाउने प्राप्त थाय . पिताना जे गुणो होय ते तेना मरणथी नाश पाम्या होय, पण पुत्र थवाथी पाबा स्तुति करवा योग्य थाय , ते माटे पुत्रनो जन्म , ते कल्पमथी पण अधिक गुणवालो ने ॥ यतः ॥ नेपथ्यविवि धैरसैबंदुविधैरुनापनैः क्रीडनै, नामस्थापनचूलिकादिकरणैरालिंगनेवाहनैः॥ विद्याध्यापनकर्मकौशलगुणारोपैश्च ये नंदनं, स्वस्मादप्यधिकं करोति च पिता, कैर्नाम न श्लाघ्यते ॥ १ ॥ अर्थः- अनेक प्रकारना वस्त्र वगेरे पेरा ववाथी, विविध प्रकारना रसोथी, घणा प्रकारना लामलमाव्याथी, बदुप्रका रनी क्रीडाउथी, नामस्थापन, चूंमाकर्मना करवाथी, ते पुत्रना थालिंगनथी, तेने तेडवाथी, विद्याना अध्यापनथी तथा कर्मकुशलपणाना अने गुणोना आरोपणथी जे पोताना नंदनने पोताथी पण अधिक राखे . माटे ते पिता, केम वखणाय नही ? अर्थात् पुत्रवालो प्राणी सुरखने तथा यशने Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २५१ केम न पामे ? ए प्रकारनां वचन माणासना मुखथकी मानली पोताना हृद यने विपे ते सर्व साची वात मानी तुरत मंत्रीने बोलायो. अने पुत्रप्रा तिने माटें नरसिंह राजा मंत्रीने पुत्र थवानो नपाय पूबवा लाग्यो. त्यारे मंत्रीयें कह्यु के हे स्वामिन् ! में सांजदयु ले के विचित्र प्रकारना आव रने धारण करतो केटलाएक देशोमां फरतो फरतो कोइ एक योगी पुरुप, आहिं आपणा गामनी बाहेरना वनमा आवेलो . ते योगी सर्व सामर्थ्यवालो ने माटे तेनी पासें आप पुत्र मागो. कारण के तेनी सरखो बीजो को प्रोढकार्यकारक पुरुष या पारखा नरत खममा देखवामां आ वतो नथी. ते सांजली नरसिंह राजायें माणास मोकली ते योगीश्ने सविनय तेडाव्यो, त्यारे ते योगी कुनता हानी पढें विद्यामदथी जरपूर यको त्यां याव्यो. पबीतेने प्रोढ आसन नाखी आप्यु, त्यारे तेनी पर वेतो, पनी तेनो सत्कार करी नमन करी राजायें कडं के हे योगीं! श्रा पनी केटलीक शक्ति के ? त्यारे योगीये कह्यु के तमारे पूजवानुं सुं काम ? नने दुष्करकार्य होय अने तेनी पण जो तमारा मनमां ना होय तो ते पण कहो ? जो तमे कहेता हो,तो नागकन्याने पण ढुंाहिं वेतांज लावी आपुं, अथवा तमे कहो, तो तमारा रिपुसमूहने तमारा चरणमां नमावी द? अने तमारा मनमां धारेला अने जे घणाज दूर होय, ते गज अश्वादिकने पण हरण करीयाहिं सदु देखे एम आणी आपुं? ते सांजली विस्मित थ येला राजायें कह्यु के ज्यारें एटलुं बधु कहो बो, त्यारेंए सर्व वात तो रहेवा यो, पण हाल एक नागकन्यानेज लावी आपो जोयें ? त्यारे ते योगीयें ह दयमा एक दाण वार ध्यान कयु, त्यां तो रत्नाचरण नूपित एवी एक नागक न्या भावी नजा रही अने कहेवा लागी के हे योगी ! मुने आ केम तेडावी ? जे हा होय, ते फरमावो. एम कहीने उनी रही. त्यारे योगी कडं के हे नई ! जेम था राजा कहे, तेम तुं कर. त्यारे ते नागांगना राजा पासें जइ हाथ जोडीने कहेवा लागी के हे स्वामिन् ! मने केम बोला वी ने ? जे साझा होय, ते फरमावो. त्यारे राजायें कडं के हे स्त्रि! तुं केम प्रावी बो,अने कोण बो ? त्यारे ते बोली के महाराज ! हुँ नागेश्नी स्त्री बूं, अने आ योगींना बोलाववाथी नागलोकथी आवेली बु. ते पढी रा जायें कयुं के ते तो ठीक. पण तुं गुं करवा यावेली बो ? त्यारे ते बोली Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. के ते कांही ढुं जाणती नथी. पड़ी राजायें ते योगीने एवो चमत्कारिक जाणी नागेंकन्याने नमस्कार करी जावानी रजा आपी अने पढ़ी योगी इने कहेवा लाग्यो के हे योगी ! अहो आप आवा महोटा सामर्थ्यवान् बो, ते तो मने हाल प्रत्यक्ष्मांज देखायुं ? एम कहीने ते महायोगीने ए कांत स्थलमां बोलावीने पोताना पुत्ररूप स्वार्थने पूबवा लाग्यो. त्यारे यो गीयें कह्यु के बस, एटलुंज काम जे ना? अरे हे राजन! मारा महिमारूप अंबुधि पासें एवी अणुसमान वातमां ते गुं करवू डे ? जेणे समुश तरी लीधो तेने जलें नरेला गायनी खरीना खाडानो ते शो हिसाब ले ? का हिंज नहिं. माटे हे राजन् ! ढुं तुने कडं, तेम कर के जो, तुं काली चौद शने दिवसें हाथमां उघार्यु खड्ग लश्ने मध्यरात्रं स्मशानमां बावजे. त्यां ज्वालिनी देवीपासें दुं तुने पुत्र अपावीश ? वली बीजुं पण तुने जे कां अनीष्ट हशे, ते अपावीश ? तथा तारी सहायता पण ते देवीना अनुग्रहथी थाशे ? ते वचन सांजली अत्यंत खुशी थयेलो राजा कहेवा लाग्यो के महाराज ! बाप कहो बो, तेम ढुं जरूर करीश. एम कही ते योगीइने विसर्जन कस्यो. ___ त्यार पबी माह्या एवा मंत्रीयो नेला थइनरसिंह राजाने कहेवा लाग्या के महाराज! ए योगीना बोलवा पर विश्वास करशो नहिं हो ? कारण के जगत्मां मनुष्यो जे , ते कर्मे करी निन्न निन्न स्वनाववाला होय बे. ते मां पण अावा योगीयोनो तो विश्वास करवोज नहि।यतः॥ कृतघ्नो निर्द यः पापी, परोही विघातकः॥ रौऽध्याननरोयोगी, न विश्वासास्पदं सदा ॥१॥ अर्थः-कृतघ्न, निर्दय, पापी, परशेह करनार, रोपध्यानी एवो योगी नर, निरंतर विश्वास करवा योग्य होतो नथी. राजायें ते वात सांजली कडं के ठीक डे, तमें कहो बो, तेमज करीश. हवे जे कालि चनदशनो दिवस योगीयें कह्यो हतो ते दिवसें राजामध्यरा त्रियें हाथमां उघाडी तरवार जश्ने स्मशानमा गयो अने ते योगी पण या व्यो, पनी त्यां ए वेदु जण जेगा थया, अने शुधनूमि करी दीवो करी मंग ल काढयु. पनी योगीयें नरसिंह राजाने कह्यु के हे राजन् ! दक्षिण दिशामां एक वड , ते वडनी शाखामा एक शब बांधेलुं , तेने तुं जलदी जश्ने लश्याव्य.जो कदाचित् ते शब बोले, तो पण तेने तारे कांपण प्रत्युत्तर Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २५३ देवो नहिं. एमने एम बोल्याविनाज चाव्युं श्रावq, अने कोथी बी, पण नहिं. ते सांजली राजा एकदम दक्षिण दिशामा वडपासें जश् ते वडनी शाखापर चडी शबने बोडीलाने त्यांथीचालवा लाग्यो, त्यां तो जे शब हतुं ते राजापासेंथी जेम हतुं तेमज वडनीमाले भावी पाबूं बंधा गयु. त्यारे राजा विचार करवा लाग्यो के अरे ! मारी पासें शब हतुं ते क्यां गयुं ? एम विचारी ज्यां बाघु पाई जोवे छे, त्यां तो शबने वडनी माल पर पूर्ववत् बंधायेनुं दी. पाडो वली बीजी वार राजा वडपर चडी ते शबने बोडी ला चालवा लाग्यो, तेवामां शबमा रहेलो व्यंतर बोल्यो के अहो नूपाल ! तारुं नाम जे नरसिंह , ते खोटुंज , कारण के तुं शृगाल समान बो. केम के तुं स्वधर्मने बोडी कुकर्मने करे ! अरे तुं तारा मनोहर अने उत्तम एवा स्थानकने मूकीने जेमां जश् ने स्नान कर बुं पडे, एवा आवा नयंकर स्मशानमां आव्यो ? तथा वली या अपवित्र शबने अज्यो? वली हे राजन! ढुं तुने कढुं बुं के जो तुं मने अाही मूकीने पाबो नहिं जा, तो हुँ तारा जीणा जीणा कटका करीने तेनुं स्मशानस्थ सर्व नूतोने बलिदान करी दश? इत्यादिक जयकारक वाक्य कहीने ते व्यंतरें नयानक आकारवालां हजारो रूप देखाड्यां, तो पण राजा ज्यारे दोन न पाम्यो त्यारें राजाना निर्नयपणारूप साहसने जोइने तुष्टायमान थयेला ते व्यंतरें कडं के हे राजन! जे कार्यने तुं निश्चें करवा बेटो बो, ते कार्य मां तुं निश्चल बो, अर्थात् तें धारेला कार्यमा कदाचित् नय नुत्पन्न थाय जे, तो पण ते कार्यमांथी तुं पालो पग करतो नथी? ते माटे ताराबावा पराक्रमथी हुँ तुष्टायमान थयेलो लु तेथी एक तुने सत्यवचन कहुँ , ते सांजल. हे राजन् ! तुं तो सरल बो तथा पुत्रार्थी बो, परंतु या योगी जे , ते तो उगले अने तुने ठगवा इ . तेनुं करेलुं था बधुं खोटं , तुने जे नागेंनी स्त्री देखाडी, ते पण ऐंजालिक विद्याथी बतावी , तेथी हे ना! तुं विश्वास पाम्यो. परंतु वस्तुतः ते सर्व असत्यज . ते योगी तारा शरीरनुं वलिदान दइने अमोने साधवाने ले ले माटे उर्जनशिरोमणि एवा ते योगीइने तारे दूरथीज त्याग करवो जोयें ॥ यतः॥ उर्जनानां कंटकानां समा वृत्तिवेत्सदा ॥ उपानन्मुखनंगोवा, दूरतोवा विसर्जनम् ॥ १ ॥ मृगमीनसङनानां तृणजलसंतोषविहितवृत्तीनाम् ॥ लुब्धकधीवरपियु Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ना, निष्कारणवैरिणोजगति ॥ २॥ दुशः स्वदपाय कार्याय, महता व्यसनैषिणः ॥ मदिकाणामनावाय, कुष्ठी सूर्यास्तमीहते ॥ ३॥ नीचेषु जंतुषु प्रायो, रंज्यते स्वामिनां मनः ॥ यार तैलेन तेजस्वी, दीपस्ता हग न सर्पिषा ॥ ४ ॥ अर्थः-उर्जनोनो बने कांटानो स्वनाव सरखोज होय , माटे ते बेदुनो उपाने करी मुखनंग करवो, अथवा तेनो दूरथी त्याग करवो ॥ १॥ मृग, मीन अने सुजन, ए त्रणे जण तृण, जल, अने संतोग, तेणें करी निवृत्ति पामेला ने. तो पण ते त्रणमा एकनो वैरी लुब्धक, बीजानो वैरी धीवर अने त्रीजानो वैरी चामीयो, आ त्रण जण ते त्रणना जगत्ने विपे निष्कारणज वैरी थाय ने ॥ २ ॥ वली दम प्राणी जे, ते पोताना स्वल्प कार्य थावा माटें महोटा जनने दुःख देवानी या करे जे. केनी पेठे ? तो के, जेम पोताना सडेला अंगो पर माखीयो न माने. ते माटे कुष्टी पुरुष, सूर्यना अस्तपणाने ले ? एटने जे कुष्ठी होय ने ते एम विचारे , के जो सूर्य आथमी जाय, तो मारा अंगोपर मारवीयो, यावतीबंध थाय ॥३॥ नीच एवा मनुष्यने विपे तेना अधिकारीयोनुं मन राजी थाय , केनी पेठे? के दीपक, जेवो तेलथी प्रकाश करे , तेवो घृत थी करतो नथी॥४॥माटे हे राजन् ! ते खल एवा योगीश्वरनो तुं विश्वास करीशज नहिं. अने पुत्रने माटे जे तुंप्रयत्न करे , ते पण हवे करीश नहिं. अने जा. दुं तुने एक वचन आपुं, के आजथी सातमे दिवसें तारी स्त्रीने सूर्यनुं स्वप्न आवशे, अने ए एंधाणीथी तुं जाणजे जे तारे कुलदीपक पुत्र जरूर था. तेम बतां पण कदाचित तुंबा शव ला जावा वगेरेना प्रय नने बोड्य नहि अने योगी पासें आ शबने लइ जा. तो पण अटखें तो ध्यानमांज राखजे के जो ते योगीइ तारी पासें तारी तरवार मागे, तो तेने सर्वथा आपवी नहिं, जो तारा हाथमा तरवार हशे, तो मारी सहायताथी ते योगीने तुं जरूर जीतीश ? ए प्रकारनां शबगत व्यंतरनां वचन सांजली ते वचन ध्यानमा राखी, शबने लइ ते योगीपासें अाव्यो. पडी ते शबने योगीयें बतावेला स्थलमां मूकी रक्तचंदन तथा राती कणेरनां पुष्पोथी तेनुं पूजन करी मंमलमां मूक्यु. पड़ी ते योगी नरसिंह राजाने कहे डे, के हे राजन् ! तारा हाथमा जे या तरवार बे, ते मारा हाथमां बाप. त्यारें राजा पेला व्यंतरनुं वचन संनारीने विचारवा लाग्यो Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. Ան जे मने व्यंतरें तेना हायमां तरवार देवानी ना कही बे. माटे ते यापवी नही ? एम विचारी योगी ने कहेवा लाग्यो के हे योगीनाथ ! सुनट जनने पोतानो हथीयार तो कोईने व्यापवोज नहिं. कारण के तेने अचानक कांक जो यात यावे, तो ते दथीयारथीज मटे बे ? माटे या तरवार हुं आपने पीश नही. ते सांजली योगीं बोल्यो के हे राजन्! जानुं बोलवु मूकी देने ते तरवार मुने याप. कारण के तुं तो ते तरवारनोज स्वामी बो, पण हुं तो तारो पण स्वामी बौं खने हुं ज्यारें तारं रक्षण करवा बेठो बुं, त्यारे तारे कोनी बीक बे ? ते कहे. अने मारे तो मंत्र साधवाने माटे लो दाना हथीयारनी अपेक्षाज बे, अने तारे कांइ तेनी जरूर नथी. ए वचन सांनी राजा कहे बे के हे तपस्वी महाराज ! हुं या तरवार लइ ज्यारें याहिं जो रहेजो बुं, त्यारें तो देव पण मारी पर ने तमारी पर कोप करवाने समर्थ नथी. तो बीचारा कुड् व्यंतरो तो गुंज करवाना बे ? माटे व्याप खुशीथी मंत्रसाधना साधो ग्राम कहेवाथी ते योगीनो स्वार्थ सिद्ध न यो तेी तेणें तेने घणी रीतें समजाव्यो, पण ते व्यंतरनुं वाक्य याद राखी राजायें ते योगीनुं एक पण वाक्य मान्युं नहिं ने बेवट पोतानी तरवार नज पी. त्यारें तो जेम डुग्ध पान करावी उबेरेलो सर्प पोताना स्वामीने करडवा तैयार थाय, तेम अत्यंत क्रोधांध ययेजो ते इष्ट योगींद कहेवा लाग्यो के हे क्रूरराजा ! यावी रीतनी महोटी महेनत मारी पामें करावी ने जराक जेटलुं या तरवार देवारूप मारुं वचन बे ते पण मानतो नयी ? एवी रीतें बकतो को पोतानी पासें एक खड्ग हतुं, ते जश्ने योगी, राजानी सामो दो ज्यो. पीतेने पोतानी सामो यावतो जोइने राजा कहे बे, के हे योगींद ! तुं मने मारवा यायो, ते जाएयुं, पण तुने हुं प्रार्थना करी कहुं बुं के तुं मारी दृष्टी जा. कारण के कपायवस्त्र पहेरी योगीना वेपने धारण करनार एवा तारी पर माराथी घा याय तेम नयी ? अर्थात् तुं जिंगधारी योगी बो, माटें हुं लाचार बुं. कदाचित् जो अन्य वेषधारी हत तो तो हुं सर्वे तारुं जोर बताची पत ? माटे तारा जीवित सामुं जोड़ने जे रस्ते मारी सामो श्राव्यो, तेज रस्ते पाठो तारे ठेकाणे जर वेस ने हे धूर्त ! श्रावो योगीनो वेश धारण कर हुं जेवा धर्मीजनने ठगीने तुं केटलाक काल जीववानो बो? हुं तो तुने हालज यमराजाना घरनो अतिथि करवाने सावधान बुं, पण धर्म Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वेष धारण करनार थइ बेगे बो, माटे निरुपाय बौं. हे पापी ! मारा शरी रथीज ते वेतालने प्रसन्न करी तुं वेताल मंत्र सिदिनी ना करे ! तेथी एम समजाय बे के तुंआ लोकना अने परलोकना पुण्य पापनी शैलीने पण जोतोज नयी थावां राजानां वाक्य सांजली योगी विचार करवा लाग्यो के बरे! था मारी हत वात राजायें केवी रीतें जाणी? वली पण विचा रवा लाग्यो के जे कार्य माटे में लिंगीनो वेषधारण कस्यो, ते कार्य तो माझं जरा पण पार पडयुं नहिं! एम विचारी ते लजायुक्त थयो थको पश्चात्ताप पामी पोताना हाथथी खड्ग दूर फेंकी दश्ने हाथ जोडी नरसिंह राजाने कहेवा लाग्यो के हे शूरवीर ! श्रा प्रकारनां तारां वचनथी मारा हृदयमां जे अज्ञान हतुं ते सर्वनाश थ गयु. अने शानदार उघडी मने सत्याऽसत्य पदार्थ सर्व देखवामां श्राव्या, अने एटला दिवस हूं खराब जनोनी संग तिथी नटक्यो, हाल हवे तमारी कृपाथी मने विवेकमार्ग उपलब्ध थयो ? ते माटे गुरुपामें जई तमने उगवानां पापनुं प्रायश्चित्त ग्रहण करी परनव साधवाने माटे यत्न करीश ? अने हे राजन ! में तमारो महोटो अप राध कस्यो,ते क्षमा करजो अने एक हुँ तमने कहुँ , ते सांनतो. के गुरु परंपरायें श्रावेलो व्रणरोहण नामनो था एक मारी पासें मणि डे, ते ने उष्टकर्मथी निवृत्त करवाना उपदेशदायक एवा तमने ढुं आपुं बु. ए सांजली राजा कहे , के हे योगी ! तमारा सरखा विवेकी जनने तो जेम तमे कहो बो, तेमज करवू घटे ने अने माराथी जे कां आपने उर्वाक्य कहेवाण होय, ते माफ करवां. एम कही तेणें मणिनी पूजा वगेरेनो विधि पूजीलीधो अने ते मणि पण लीधो. पनी प्रातःकालने विषे परस्पर घणुंज दमापन करी परमार्थ साधवामां जेना चित्त बंधाइ गयां डे,एवा बेदु जण पोत पोताने स्थानकें गया. पली राजायें घेर यावी ते बनेली वात मंत्रीवगेरेने कही, ते सांजली सदु कोइ खुशी थया. अने नगरी ने विषे महोटो उत्सव थयो. नगरस्थ सर्व लोक अत्यंत उत्साहित थयां. हवे अग्यारमा अरण देवलोकमां पूर्णचं राजा जे देवता थयो हतो, ते त्यांथी च्यवीने या नरसिंह राजानी स्त्री गुणमाला नामा जे राणी हती, तेना नदरसरोवरने विषे वेतालने मल्या पसीना सातमा दिवसनी रात्रं यावी पुत्रपणायें अवतस्यो,त्यारे ते गुणमाला राणीयें स्वप्नने विषे निर्मल एवो सूर्य Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. २५७ दीठो, के तुरत जागी ने प्रजातने विषे ते स्वप्ननी वात राजाने कहेवरावी. ते सांगली राजायें पण स्मशानमां कहेला व्यंतरना वचनने अनुसारें कयुं के हे प्रिये ! तारे नयनने खानंद देनार एवो एक उत्तम पुत्र प्रगट थाशे ! ते सांजली नवीन मेघना समागमें करी जेम मयूर हर्षा यमान थाय, तेम ते राणी परम हर्षने प्राप्त थ ने पोनाना गर्नने प्रयत्नें करी पालन करवा लागी तेम करतां सातमा मासमां पाठो रा लीने एवो दोहद उत्पन्न थयो के हुं समग्र सैन्यसमूहें सहवर्त्तमान राजलीला करूँ ? ने सेनासहित वनक्रीडा पण करूं ? ते वात राजायें जाणीने सामंत, मंत्री, सेनापतियें सहित पोतानी सर्वसेनाने एकती करी ने तेना नायक पणामां पोतानी स्त्री गुणमाला राणीनी योजना करी. राजा . पण पोतें सामंतपणाने अंगीकार करी सुहृद लोकोयें सम न्वित को राणीनी पासें याव्यो जुन स्नेहथकी पुरुषने सर्व कांहि करवुं पडे ॥ यतः ॥ कासावाझा यत्र कार्ये विचार्य, तत्किं दानं यत्र वेजा विलंबः ॥ का सा प्रीतिर्यत्र काप्यप्रतीति, स्तत्किं सौख्यं यत्र कोऽप्यं तरायः ॥ १ ॥ अर्थः- जे खाज्ञा करवा पी ते प्राज्ञाना कार्यमा विचार करवो पडे, ते याज्ञा शेनी ? अने जे दानमां ते दान यापतां विलंब याय, अथवा एम कहेवाय के हा, हुं व्यापीश हाल नथी ? ते दान शेनुं ? जे प्री तिमां कोइ पण प्रकारनी प्रतीति यावे नहिं ते प्रीति पण शा कामनी ? ने जे सुखमां कोइ पण प्रकारनो अंतराय यावे, ते सुख शा कामनुं. ? हवे प्रौढ ने मदोन्मत्त हाथीपर वेवेली, घणाक यामात्योयें परिवृत, सीमाडीया राजान्यें सेवन करेली, तरुणीना गणोयें प्रार्थना करायेली, नं तदानने देती, बंदिजनोना वृंदोयें स्तुति करायेली, परम प्रमोदने पामेली, एव ते गुणमाला राणी, गामना सीमाडाना अरण्यमां गइ अने त्यां य ये वनक्रीडा करवा लागी. एवामां को एक रमणीनुं करुण शब्द युक्त रुदन सांगली ते राणी पोताना स्वामी नरसिंह राजाने कहेवा लागी के हे स्वामिन्! या शब्दथी हुं जाएं बुं जे कोइक विद्याधरी विज्ञाप करी रुदन करती हो. माटे तेनी पासें जइ तेनो कांइक उपकार यापरों क रियें तो सारु ? यतः ॥ शास्त्रं बोधाय दानाय धनं धर्माय जीवनम् ॥ वपुः परोपकाराय, धारयति मनीषिणः ॥ १ ॥ अर्थः- मतिमान् पुरुषो जे बे, ३३ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थत जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ते शास्त्रने बोध माटे, धनने दान माटे, जीवनने धर्म माटे अने शरी रने परोपकार माटे धारण करे जे ॥१॥ एम परस्पर कहेतां कहेतां ते वेदु स्त्री पुरुष, ज्यां करुण शब्दयी रुदन थातुं हतुं तेने अनुसार त्यां गयां. त्यां जई जोवे, त्यां तो कोई एक शत्रुना करेला प्रहारोथी विकल एवा विद्याधरने दीठो. अने तेनी पासें दीन जेनुं मुख ले तथा रुदन करती एवी एक विद्याधरीने दीती. ते बेदुने जोइने नरसिंह राजायें दुःखित एवा ते विद्याधरनुं योगींना आपेला मणिना जलयी प्रदालन कयं. त्यां तो ते विद्याधर चैतन्ययुक्त थइ जश् हर्षायमान थयो थको विस्मय पामी ते राजाने कहेवा लाग्यो के अहो! हालमां तो अमारो महोटो पुण्योदय थयो लागे ? नहिं तो आप सरखा सुजन पुरुपोनो आवा जंग लने विषे समागमज क्याथी थाय? ते सांजली राजा कहे जे के अरे नाइ! तमारा जेवा सुइ पुरुषो तो विधातायें पुण्यना अणुथीज बनावेला ने. अर्थात् पुण्यरूप शरीर वालाज बनाव्या , ते बतां पण तमोने यावं दुःख ते क्याथी थयुं? वली पण कहे , के हे सुझ! पुःख पण होय ? केम के संपत्ति अने विपत्ति ए वे वानां महान पुरुषोने आव्याज करे ने ते कांश हीनजनने बावतां नथी. जुन. क्य तथा वृद्धि, ए बेदु वानां चं मानेज होय , अने बीजा तारा तो घणाचे परंतु तेने काही होतां नथी. तो पण हे ना! आपना उखनी वात तो सविस्तर मने कहो. त्यारे विद्याधर कहेवा लाग्यो के हे सऊन ! सांजलो. देवतायें युक्त एवा वैताढय नामा पर्वत उपर ते पर्वतनी उत्तरश्रेणियें रत्नधर्म नामक एक पुर डे, तेमां जयंत नामा राजा राज्य करे . तेनो जयवेग नामा हुँ पुत्र बुं. विद्या तथा पितृबल तेणें करी ढुं नहत बूं. हवे तेज वैताढय पर्वत उपरनी उत्तर श्रेणीमा वली बीजं अपूर्व, कुंनपुरनामा एक पुर ले. तेमां दर्पधर नामक राजा राज्य करे , तेने महारा पितायें महारी रवि नामनी बहेन आपी. त्यार पड़ी को निमित्तियायें यावीने कह्यु के तमें दर्पधर राजाने कन्या तो आपी, पण तेनुं आयुष्य अल्प में, माटे तमारी कन्याने थोडाज दिवसमां वैधव्य अावशे ? ते सांजली वहे ममां पडेला मारा पितायें ते कन्या बीजा अचलपुरना राजा अनंगवेग नामा विद्याधरने पापी. ते वात सांजली कोपायमान थयेलो दर्पधर राजा, Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २५ए मारापिता सामो लडवा माटें तैय्यार थयो. पनी त्यां तेनी साथै महोटो संग्राम थयो. तेमां मारा पितायें तत्काल ते दर्पधर राजाने यम राजानी सेवा करवा पहोंचाडी दीधो. तदनंतर पोताना पितानुं वैर सेवाने तो एवो तेनो पुत्र, मने कुशमननों पुत्र जाणी मनेज मारवानुं विश् शोधतो थको सर्वत्र घणा दहाडा आडो अवलो परिचमण करवा लाग्यो. हवे एक दिवस ढुं या मारी स्त्रीय सहवर्त्तमान थापना नगर बागलना वनने विपे क्रीडा करवा याव्यो. प्रमत्त थइ क्रीडा करतो मुने जोस्ने त्यां लिए पामीयाकरा प्रहारोयें करी मुने आवीरीतें मारीने ते नागी गयो. आप्रमाणे मार पडवाथी हुँ बाहिं निश्चेष्ट थइ पडेलो हतो अने या मारी स्त्री मने आवी दशामां जोइ फुःख पामी रुदन करे . ते वात सांजली राजा बोल्यो के अरे! सारा माणासने प्रमत्तपणामां पडेला जीव पर जे घा करवो, ते चितज नहिं. हवे जयवेग विद्याधर कहे डे के हे राजन्! आवी आपत्तिमां पण थाप जेवा सुझ जननो मुने समागम थयो ? तेथी मुने आनंद थयो . पडी राजायें तेनो सत्कार कस्यो, तथा तेनी स्त्री विद्याधरी पण आवी रीतें पोताना स्वामीने स्वस्थ करवा रूप चमत्कार जोक्ने विस्मय पामी. पडी ते वेदुजणने साथें लइ राजा पोतानी स्त्रीनो दोहद पूरो करी घेर आव्यो अने केटला एक दिवस तेने राख्यां. त्यारे विद्याधरें कडं के महाराज ! हवे अमोने अमारा स्थानपर जा वानी आझा आपो. त्यारें राजायें तेने रजा यापी. पडी विद्याधर तथा तेनी स्त्री ए बहुजण पोताना स्थान प्रत्ये गयां. हवे ते राणीयें समय पूर्ण थये बते एटने नवमास पूर्ण थये थके सु दिवसमा सारा प्रकाशमान तथा सुशोनित एवा पुत्रने प्रसव्यो. ते प्रनाना नरें करी युक, मनोहर, कमलनी पांखडी समान नेत्रवाला एवा पुत्रने जोइने राणीने, कांइ पण प्रसव वेदना जणाणी नहिं. पनी पुत्र उत्पन्न थवाथी सुमुखा नामा दासीयें वीराजा पासें वधामणी खाधी. राजायें ए वधामणी सांजली एक माथाना मुकुट शिवाय स्वांगगत जे कां आन रणो हतां, ते सर्व तेने आपी दीधां. ते वखत याचक जननें मोहोटां दा नो अपाव्यां, बंदीखानेथी बंदीवानोने बोडी मूक्या, याखा गामां वधा देवरावी. हवे प्रयम ज्यारें पुत्र, गर्नमा रह्यो हतो त्यारें राणीयें स्वप्नमां सूर्य Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जनकथारत्नकोष नाग सातमा. जोयो हतो, तथा सातमे महीने सेना सहित राजलीला तथा वनक्रीडा करवानो दोहद उत्पन्न थयो हतो, तेथी ते पुत्रनुं नाम स्वजनोनी समद "सूरसेन” एवं पाड्यु. नरसिंह राजाने पुत्र थयो सांजली ते समयने विषे, प्रहार पामी पडेला जे विद्याधरनुं रक्षण करेलु हतुं ते जयवेग नामा विद्या धर, रविकांता नामा पोतानी स्त्री सहित त्यां याव्यो. आवीने ते रा जाना अजुत कुमारने जोक्ने अत्यंत हर्षायमान थयो.अने पोताना नूपणोयें करी तेने सर्वांग लूपित कस्यो. विद्याधरी पण राणीपासें आवी पुत्रनो हर्ष करी कहेवा लागी के हे सखि! मुने पण हाल गर्न , ते जोइने एक नैमि त्तिकें कहे डे, के जो तमारे कन्या आवे, तो ते कन्या तमे नरसिंह राजाना सूरसेन नामा पुत्रने बापजो. माटे हे बहेन ! जो मारे कन्या आवशे तो ते कन्या हुँ तमारा सूरसेन पुत्रनेज आपीश, एमां संशय राखशा नहिं. अने जो पुत्र यावशे तो तो कांश नपाय नथी. ए सांजली राणी कहे वा लागी के हे प्रियसखि ! बापणे वेदु एकज बेये मात्र शरीरयोज जुदां बैयें. माटे जेम तमने रुचे जे, तेम मने पण रुचे जे. एमां कांहि पण विचारणीय नथी. एम कहीने राणीयें तेने खान, पान, दान अने मानथी अत्यंत सत्कार कस्यो. तेम नरसिंह राजायें पण ते विद्याधरनो सारी रीतें सत्कार कस्यो. पली राणी अने राजा, विद्याधरी अने विद्याधर, ए चारे जण परस्पर अमृतें जाणे सींच्यां होय नहि ? एवी प्रीतिलताने अधिक वधारवा जाग्यां ॥ यतः ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति प्टनति ॥ जुक्ते नोजयते चापि, षड्विधं प्रीतिलदणम् ॥ अर्थः- ग्रहण करे अने पाबु आपे. गुह्य वात कहे अने वली पूजे, जमे, तथा जमाडे, एब प्रकारें प्रीतिनुं लक्षण होय . एवी रीतें प्रातिमां वधारो करी विद्या धर अने तेनी स्त्री ए बेदु जण पोताना वैताढय पर्वत प्रत्यें गया. अने त्यां सुखें करी पोताना राज्यनोगने जोगववा लाग्यां. हवे पूर्वनवें जे पूर्णचंनी स्त्रीनो जीव अग्यारमा अरण देवलोकमां पूर्णचंनी साथें देवता थयो हतो, ते त्यांथी चवीने जयवेगविद्याधरनी स्त्री जे रविकांता विद्याधरी ,तेना उदरने विषे पुत्रीरूप थश्ने उत्पन्न थयो. हवे ज्यारे ते गर्न उदरमां आव्यो, त्यारे तेनी मातायें स्वप्नने विषे उत्तम जलबि उनी समान , मोती जेमां अने पोतानी कांतियें करी प्रकाश करी , Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २६१ दिशा जेणे, वली प्रत्येक मोतीनी साथै एकेक मणि रहेलो ने जेमां, एवो एक मोतीना हारने दीगो. ते जो पोताना स्वामीने कयुं अने गर्ननुं पोषण करवा लागी, एम पोषण करता करतां दश मास पूरा होवाथी तेने एक उत्तम कन्या प्रगट थ. रक्तकमल सरखा हस्तपादवाली, कमल सरखां नेत्रवाली, पूर्णचं समान मुखवाली ते एवी कन्याने जोई माता पिता अत्यंत हर्षायमान थयां, अने तेना पितायें जेम पुत्र प्रसव थाय, ने जन्ममहोत्सव करावे, तेम पोताना गाममा महोत्सव कराव्यो. हवे ज्यारे ते कन्या गर्नमा रहि हती, त्यारें रवि कांतायें स्वप्न मां मुक्तानो हार जोयो हतो, तेथी ते कन्या, नाम पण 'मुक्तावली' पाडयु. पडी सूरसेन कुमार तथा रत्नावली कन्या ए बेदु बालक पोत पोताना माता पिताने त्यां धावमातायें पोपण करयां बतां, कालानुक्रमें युवावस्थाने प्राप्त थयां, साधुना अने श्रावकना नक्त, सर्व जनने आनंद देनार, एवां ते वेदु जण थयां. हवे पोतानी रविकांता स्त्रीयें प्रथम नरसिंहराजानी स्त्रीने कह्यु हतुं के मारे जो कन्या प्रगट थाशे, तो ढुं तमारा सूरसेन पुत्रने आपीश, तो ते प्रमाणे वाग्दानथी तथा प्रीतिथी बंधायेलो होवाथी ते जय वेग विद्याधर, शोनायमानधारण कयां डे केयूर कुंमल अने मुकटो जेणे एवा केटलाएक विद्याधरोने साथें लश्ने पोतानी मुक्तावली नामा कन्याने सूरसेन कुमारसाथे परणाववा माटें आकाश मार्गे चाल्यो, तेथीअाकाश सर्व वैमानोथी याबादित थइ गयुं अने अनुक्रमें ते मिथिला नगरीमा अाव्यो. नरसिंह राजाय पण पोताना पुत्रनी साथे कन्या परणावा माटे सैन्य सहित आवेला ते जयवेग विद्याधरने महोटा उतारा थाप्या अने पोतानी मिथिला नामा नगरीने पण शणगारी दीधी, तेथी जाणे ते स्वर्गपुरीज होय नहि ? तेवी शोनवा लागी. ते वखत ए गाममा जे वाणिया रहेता हता, तेन्ये पोताना हाटो शणगास्यां, अने नर्तकीयो नाचवा लागी, गायको गावा लाग्या, विविध प्रकारनां वाद्यो वागवां लाग्यां, नूचरी अनें खेचरी गावा लागीयो. या प्रमाणे ते नगरमां महोटो महोत्सव श्रवा लाग्यो अने त्यां लममंझप पण सुशोनित बनाव्यो. हवे तेम करतां ज्यारे लग्न समय आव्यो, त्यारें महोटी दिना विस्तारें करी पोतानी मुक्तावली कन्यानो विवाह जयवेगविद्याधरें सूरसेन कुमार साथें कस्यो. तेना पाणिग्रहण Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वरखतें एटले कन्यादानना समयमां कोटि सुवर्ण अने कोटि रत्न आप्यां. एवी रीतें प्राण समान वन्नन एवी पोतानी कन्याने परणावी पोतानी स्त्रीयें सहवर्तमान ते विद्याधर, अत्यंत प्रसन्न थइ पोताना नगर प्रत्ये आव्यो. सूरसेन कुमारे पण पूर्वजन्मना प्रेमथी रत्नावली नामा पत्नीने तेना माता पिताथी जुदा पडवाना सुःखथी उक्ति थयेली जाणीने गीत, नृत्य, पत्र लेदादिक अनेक कलाना विज्ञानोयें करी ते दुःखथी मुक्त करी. हवे एक दिवस रत्नावलीयें सूरसेन कुमारने कह्यु के हे स्वामिनाथ ! मारा मनना विनोदने माटे कांइक नविन प्रश्नो पूबो? ते सांजली कुमार कहे ले के तीक व्यो, ढुं प्रश्न करूं ॥श्लोक ॥ किं विश्वजीवनं प्रोक्तं, सामर्थ्य चास्ति किं पदं ॥ उपमानं किमत्रास्ति, कांते किं ते मुरवस्य च ॥ १ ॥ अर्थः- विश्वनुं जीवन ते कोने कहेलु ? सामर्याने विपे पूर्णवाचक पद कोने कहे जे? यने हे कांते! तमारा मुखनुं उपमान कयुं ? एत्रणेना उत्तर मुने एवी रीतें आपो के ते त्रणेना प्रत्युत्तरना पदमां नो अदर लकार आवे ? ते सांजली रत्नावली बोली के स्वामीनाथ ! सांजनो. प्रथम प्रश्ननो उत्तर तो 'जतं' एटले जल, अर्थात् ए जलथीज जगतना जीवो जीवे ने. जुन. ते जलपदमां पापना पूबवा मुजब बेनो अक्षर लकार ज आवेलो ने हवे बीजा प्रश्नना उत्तरमा 'अलं' एटले परिपूर्ण. अर्थात् त्यां काहीं बाकी सामर्थ्य रह्यं नहि. अने अलं ए पदमां पण आपना पूढवा मुजब बेल्लो अदर लकारज आवेलो . वली त्रीजा प्रश्नना उतरमां कडं के 'कमल' एटले कमल अर्थात् मारा मुखने कमलनी उपमा देवाय जे. जुन ते कमलपदमां पण आपना पूबवा मुजब बेल्लो अदर लकारज आवेलो . या प्रमाणे कुमारना करेला त्रणे प्रश्नना उत्तर दश्ने वली पण पाळ कुमारने कहे डे के हे प्राणनाथ! हजी बीजा पण प्रश्नो आप करो, जेथी मारा मनने यानंद थाय? त्यारे वली पण कुमारे पूब्युं के ॥ श्लोक ॥ का एका जायते शुक्ति, सुंपुटे स्वातिवारितः ॥ कएकोऽपि रिपून हंति, का नूषा हृदयस्य मे ॥१॥ अर्थः- स्वातिनामना नदत्रमा वरसता वरसादना जलथी शुक्तिसंपुटमां तूं उत्पन्न थाय ? तथा कयो पुरुष, शत्रुनो नाश करे ? अने मारा हृदयनी शोना शाथी थाय ? या प्रमाणे करेला त्रणे प्रश्ननो उत्तर, एवी रीतें आपो के प्रथम अने बीजा प्रश्ननो नत्तर बबे Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. रथी श्रनेत्री जो उत्तर तो पूर्वोक्त बेदु प्रश्नना बवे उत्तरनाज चार अक्षरोथी प्रापो. हवे राणी उत्तर या बे के थापना प्रथम प्रश्ननो उत्तर तो 'मुक्ता' एटले मोती. अर्थात स्वाति नक्षत्रमां वरसता वरसादना जलथी बीपसंपुटमां मुक्ता या बे. बीजा प्रश्ननो उत्तर 'बली' एटले बलवान् अर्थात् बलवान् पुरुष, शत्रुने हो के कारण के सामर्थ्यरहित पुरुषथी शत्रुनो नाश थायज नह।. या बली तथा मुक्ता पदमां पण थापना कह्या मुजब बेज रो बे. हवे त्रीजा प्रश्ननो उत्तर " मुक्तावली ” एटले मोतीनी मालाज थाय बे अर्थात् ते मुक्तावली आपना हृदयने शोजावे े, तथा मुक्तावली एवं मारूं नाम बे, तो ढुं पण होनिशस्मरणे करी आपना हृदयथी जातीज नथी, तो माथी पण यापनुं हृदय शोने से जुडे. या त्रीजा प्रश्नना उत्तरमां कहेला मुक्तावली ए पदमां पण थापना पूजवा मुजब पहेला ने बीजा प्रश्नना उत्तरमां कहेला जे वे वे अक्षरो बे, तेज चार अरोनुं पद बना वीने उत्तर कहेलो बे. १६३ रोयें श्रापेला हवे बीजा प्रश्नना उत्तरमां बली एवं पद कहेलुं बे, तेथी त्रीजा प्रश्नना उत्तरमां " मुक्तावली ” एम था जोइयें अने ते उत्तरमां तो मुक्तावली एम यावे, तोज खरो उत्तर कहेवाय बे ? तो त्यां कहे बे के व्याकरणना नियमथी बनुं ने वनुं ऐक्यज ले, तेथी कोइठेकाले उच्चारमां वने ठेकाणे. बनो करीयें तो कां पूर्वोक्त दोप याव्यो कहेवाय नहिं. माटे बजी ने वलीनो दोष नथी. या प्रमाणें रत्नावलीयें ज्यारें त्रणे उत्तर याप्या, त्यारें वली सूरसेन कुमार कवा लाग्यो के हे वरांगि ! हवे तमो कांइक मने पण प्रश्न करो, जुन तो खरां के मने पण तमारी मुजब प्रश्नोना उत्तर व्यापता खावडे वे के नहिं ? त्यारें रत्नावलीयें पूयं के ॥ श्लोक ॥ हरिः का जलधेर्लेने, किटगन्नं न पुष्टिदम् ॥ प्राणेशस्योपमानं किं, हस्तयोः पादयोरपि ॥ १ ॥ अर्थः- हरि जे विष्णु ते जलधिकीक वस्तुने प्राप्त थया ? तथा पुष्टिने न खापे, तेवुं यन्न कयुं बे ? प्राणेश जे याप ते छापना हाथ ने पगने केनी उपमा देवाय ले ? हा प्रश्नमा पहेला प्रश्ननो उत्तर एक अक्षरथी, बीजा प्रश्ननो उत्तर रथी नेत्रीजानो उत्तर तो ते पूर्वोक्त कहेला बेहु प्रश्नना मली जे Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. चार अक्षरो थया ले, तेथी आपो. ए सांजली कुमार कहे जे. के हे स्त्रि! सांजलो. तमारा प्रथम प्रश्ननो उत्तर तो 'ते' ,एटले प्रथम हरि ले, ते जलधिथकी ते जगत् प्रसिद एवी लक्ष्मीने पामे . ते पहेला प्रश्ननो उत्तर आपना पूजवा मुजब एकथरथी आप्यो . वली बीजा प्रश्ननो उत्तर 'अ रस' एटले रसरहित अर्थात् जे अन्न रस रहित होय, ते पुष्टिदेनारु होतुं नथी. तेनो उत्तर पण आपना कहेवा मुजब त्रण अदरथीज कह्यो जे. हवे त्रीजा प्रश्ननो उत्तर 'तामरस' एटले रक्त कमल अर्थात् रक्तकम लनी नपमा तमारा हाथ तथा पगने अपाय ले. आमां पण तमारा पू ब्वा मुजब पेहेला तथा बीजा प्रश्नना जे चार अदरो थया ते चार अदरथीज उत्तर दीधो ले. वली पाबी रत्नावली राणी राजाने पूजे जे,के॥श्लोक ॥ कंदर्पः किल कीदृह, आधारो जगतां च कः ॥ कः पद्मिन्याः प्रियः प्रोक्तो, मन्मनो मोहनोपि कः ॥१॥ अर्थः-प्रथम, कंदर्प जे कामदेव ते केनी सरखो ले ? बीजो, जगतनो आधार कोण ? त्रीजो, पद्मिनीने वनन कोण कहेलो ले? अने चोथो, माहारा मनने मोह करनारो पण कोण ? आ प्रमाणे चारे प्रश्नो जे ले तेना उत्तर एकज पदथी आप कहो. त्यारे कुमार जरा हसीने कहे जे के हे स्त्री! चारे प्रश्ननो उत्तर जो कहीये बैयें तो सूरः' एटले सूर थाय ने अर्थात् सूरसेन तो ढुं बुं, माटे हे प्रिये ! तें आ चार प्रशोथी . तो मारुंज स्मरण कयुं लागे ? प्रथम प्रश्ननो उत्तर 'सूर' एटलें कंदर्प डे कंदर्प केवो ले तोके सूर जेवो.अर्थात् कंदर्प समान ढुंबं ने मारूं नाम सर ने वली बीजा प्रश्ननो उत्तर पण 'सूर' एटले सूर्य अर्थात् जगतनो आधार सूर्य ने तेमां पण माझं नाम आव्युं. अने त्रीजा प्रश्ननो नत्तर 'सूर' एटले त्यां पण सूरपदें करीने दुंज याव्यो. वली चोथा प्रश्ननो उत्तर पण 'सूरः' एटले सूर अर्थात् त्यां सुस्त्रीने मन्मोमोहन तो पोतानो पतिज होय छे तो तमारो मन्मोहन ढुंसूर बुं. माटे आ प्रमाणे चारे प्रश्नमां हे प्रिये ! तमें मनेज संनास्यो . एम मनोहर नक्तिरूप सुधाना स्वादने विषे रंजि त एवा ते बेदु जणने घणोक काल पण कण समान चाल्यो गयो. हवे एक दिवस ते सूरसेन कुमारनो पिता नरसिंह राजा, स्नान करी अलंकार धारण करी, हर्षोत्कर्षथी स्वदेहनी शोनाना निरीक्षण माटे पोताना काचना बंगलामा गयो, त्यां जश् बंगलाना काचमां पोतानुं Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २६५ स्वरूप जोड्ने मनमां ग्लानि पामी विरक्त थ गयो. अने पनी पोताना चित्तमां चिंतववा लाग्यो के अरे ! यौवनकालमां चमरसमूहनी समान त था काजलनी समान जे मारा केशो देखाता हता, ते हाल वृद्धावस्था थवा थी कार्पासना फुल जेवा श्वेत थ६ गया देखाय . अरे ! युवास्थामा अष्टमीना चंमा जेतुं तेजस्वी मारूं जाल देखातुं हतुं, ते आ जरा आव वाथी खजुरीना पाका पान जेवू देखाय ! वली युवावस्थामा विकसित कमल समान जे मारां नेत्रो देखातां हतां, ते हान जराना प्राउ वथी मलिन पाणीना पोटा जेवां देखाय डे, यौवनावस्थामा रत्नना आदर्श स मान मांसल जे मारा गाल देखाता हता, ते आ जरा दोषे करी अग्निज्वालाथी तपावेला कढेला जेवा देखाय ! तरुणावस्थामांमारा मुखमां कुंदसमान मि सरवा जे दांतो हता, ते हाल जरामां रणांगणने विषे उष्ट सेवकनी पेठे वि रल अने शिथिल थ गयेला देखाप .जे युवावस्थामां मारा नुज, नगरना गोपुरनी परिघ जेवा देखाता हता, ते हाल जराना पापथी धोक्ने निचो नाखेला वस्त्रनी पवें वलिकलित थ गया देखाय ! तरुणावस्थामां मारे नदर जे मत्स्यना उदर समान देखातुं हतुं, ते वृक्षावस्थाना आववाथी जाणे चर्मज वलगेलुं होय तेवू देखाय ! प्रथमवयमा जे हाथीनी सुंढ स मान मारी जंघा देखाती हती, ते हाल जरायें करेला जर्जरितपणाथी काक नीजंघासमान देखावा लागी . जाजु गुं कडं, घणाज यत्नेथी लालन करेलु श्रा कलेवर,धनदय थवाथी जेम कुमित्र देखाय, तेम जाणे कोइ दिवस लालन पालन कस्युंज नथी! तेवू देखावा लाग्युं २ ॥ यतः ॥ वलिनिर्मुखमा कांतं, पलितैरंकितं शिरः ॥ गात्राणि शिथिलायंते, तृष्णैका तरुणायते ॥ अर्थः- मारुं मुख जे , ते करकचलीयोथी आक्रांत थ६ गयु , मारूं मस्तक पलियोयें करी व्याप्त थ गयुं , अने मारां गात्र सर्व शिथिल थ गयां बे, परंतु एक था तृष्णा ते दाडे दाडे तरुण थाती जाय ? अहो! अज्ञानी एवा में असार एवा आ देहने माटे घणाज काल क्लेशो नोगव्या, परंतु मा रा आत्मानु हित तो कांकयुंज नहिं? ॥ यतः॥ नारा निजपूज्यपादकमलं, सम्यग न धर्मः श्रुतः, सत्त्वं नो विहितं न चेंशियदमो नो ते कपाया जिताः॥ न ध्यानं न कृपा न दानतपसी नान्योपकारः कृतस्तीर्थे न इविणव्ययो मम मुधा गढ़ति वै वासराः ॥ १ ॥ अर्थः-अरे! आज दिवस सुधी में Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. महारा पूज्य एवा गुरुना पदकमलनुं पूजन कर्तुं नहिं ! तथा सारी रीतें धर्म सांजल्यो नहिं ! कोई धर्म तत्त्व पण याचयुं नहिं ! इंडियदमन कस्युं नहिं ! ने उय कवायो पण जिंत्या नहिं, यरिहंत भगवाननुं ध्यान पण कर्तुं नहि ! कोनी पर दया करी नहिं ! दान ने तप पण कस्यां नहिं ! तेम बीजा कोइनो उपकार पण कस्यो नहिं ! माटे मारा याज दिवस सुधी दिवसो सर्वे व्यर्थज गया! एम ध्यान करतां ते नरसिंह राजाने उपशम ज्ञान एटले केवल ज्ञान उत्पन्न ययुं तेथी ने केवलज्ञानी थयो. पढी ते सिंहनी पेठें महापराक्रमी थ यो को पांच मुष्टिनो लोच करी संयम ग्रहण करी देवतायें अर्पण क यो बे मुनिवेष जेने एवो थको गृहरूप गहरमांथी निकलीने एकाकी, नि नय, स्वस्थ थने नरत क्षेत्रना सर्व क्षेत्रोने विषे फरवा लाग्यो . हवे सूरसेन कुमार, पोताना पितायें चारित्र लीधुं, एम जाली मनने विषे ज्यारें ग्रत्यं त खेद करवा लाग्यो, त्यारें तेना मंत्रीवर्गे ज्ञानोपदेश दइ तेने शोकथी नि वृत्त कस्यो ने पी तेनुं युवराज पद बोडावी तेने महाराज्यानिषिक्त कस्यो. तेथी ते सूरसेन, राजा थयो ॥ यतः ॥ कीर्त्या चंद्रायमानो निजयुवति मुखाजेच हंसायमानो, धाम्ना सूर्यायमानः स्वजन हितकृतावेशतातायमानः ॥ स्फुर्त्या सिंहायमानो ऽनिमतवितरणे कामकुंजायमानो, राज्ये लीलाय मानोऽपकुरुत सुचिरं मार्गणैर्गीयमानः ॥ १ ॥ श्रर्थः - कीर्तिथी चंइमा समा युवतीना मुखरूप कमलमां इससमान, तेजश्री सूर्यसमान, स्वज नहित करवामां पिता समान, स्फूर्त्तियी सिहसमान, स्वेचितदान देवामां कामकुंन समान एवो ते सूरसेन राजा, मागलोयें गान कस्यो यको लीला माथी घणक काल पर्यंत राज्य करतो हवो. हम मुक्तावली स्त्री सार्थे जोग जोगवतां ते राजा सूरसेनने ज्यारें घणो का ल व्यतीत थयो, त्यारें तेने मुक्तावलीथकी एक चंड्सेन नामा पुत्र उत्पन्न थयो. ते दिन दिन प्रत्यें वृद्धि पामवा लाग्यो ने सर्वे कला पण शीख्यो, अनुक्रमें लक्ष्मी थी पालन थयो को ज्यारें यौवन वयने प्राप्त थयो. त्याऐं तेने मनोहर एवी ाठ कन्या परणावी दीधी. पी तेनी सायें जोग जोगववा लाग्यो. तेवा मां शरद् ऋतु यावी. हवे ते शरद् ऋतुनुं वर्णन करे बे ॥ यतः ॥ निष्पन्नधान्यनर पूरितचित्रतोषाः, संपन्नचं किरणोज्ज्वलचारुदोषाः ॥ प्रायोजनाः प्रमुदिता दिवि देवदेवाः, क्रीडति यत्र च वनेषु गृहेंऽगना वा ॥ १ ॥ अर्थः- जे शर Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २६ हतुने विपे प्राणीयो पाकेला धान्यना समूहथी पूर्ण थयो ने विचित्र संतो प जेने एवा थाय ने, वली जेमां परिपूर्ण चंना किरणोयें उज्ज्वल पणा थी मनोहर रात्रियो थाय . जे तुने विषे प्रायः मनुष्यो. हर्षायमान थइने स्वर्गमां देवेंशेनी पढें वनोने विपे क्रीडा करे ले. अने तेमनी स्त्रीयो पोताना घरने विषे क्रीडा करे जे ॥१॥ हवे तेवा समयने विपे ते सूरसेन राजानो बंधु जीवनामा एक प्रधान ने, तेणे आवीने कह्यु के महाराज! दूरदेशना रहेनारा कोइएक घोडाउना वेच नारा वेचवा माटे घोडा लश्ने बाहिं आपनी पासें थावेला बे, माटे ते घोडाउनी परीक्षा करीने जे उत्तम अश्वो होय, ते लाने तेने रजा आपो. ते सांजली सूरसेन राजा पोताना घोडा पर बेसीने जे घोडाना वेचना राहता तेने बोलावी तेना अनेक अश्वोपर वेसी खेलावी तेनी परीक्षा करी तापथी तप्त थयोथको एक साजरना जाडनी नीचेंजश्वेतो.तेवा समयने विपे तेणे स्वस्थ वे चित्त जेनुं अने लांबा हस्तवाला, नासायनी पर राख्यां ले नयनयुगल जेणे, शांत मूर्तिमान, सूर्यानिमुख तपने तपता एवा कोइएक मुनिवर्यने जोया. जोइने एकदम त्यां गयो अने त्यां जइ ते मुनिने नतिथी नमस्कार करी तेनुं रूप अने लावण्य जोड्ने मोह पामेलो एवो सूरसेन राजा तेमनी स्तुति करवा लाग्यो ॥ यतः ॥ त्वं धन्योसि मुने येन, मदनो उर्जयोजितः ॥ प्राप्तोऽस्मादृशःप्राप्ता निःसीमाः शमसंपदः ॥१॥ रत्नत्र योपार्जनसावधानो, जितेंडियोमोहजयकतानः ॥ सुपर्वणामप्यनिवंदनीयो, नतोस्मि ते पादयुगं मुनीश ॥२॥अर्थ:-हे मुने! जेणें उर्जय एवा अनंगने जीत्यो, तथा जे आप अमसरखाने दुष्प्राप्य एवी सीमाविनानी शम रूप संप त्तियोने प्राप्त थयेला बगे ॥१॥माटे पाप धन्य बो. ज्ञान, दर्शन, शारित्रने न पार्जन करवामां सावधान, जितेंघिय, मोहने जय करवामां एकतान, देवो ने पण अनिवंदनीय एवा आपनो, माटे आपनां चरणारविंदमां दुं वारं वार नमस्कार करुं ॥२॥ प्रा प्रकार मुनिनी स्तुति करीने ते मुनिनी जक्तिथी आनंदने प्राप्त ययेलो, तथा स्वपरिवारसहित, मुनिसेवापरायण एवो ते सूरसेन नूपति, तेमनी पासे हाथ जोडीने बेठो. पली मुनियें प ण पोतानुं ध्यान पूर्ण करीने धर्मनी देशना देवानोप्रारंन कस्यो. ते जेम केःहे राजन! जेमणे पोताना कानथी शास्त्रोक्त नरकनां फुःखो सांजव्यां , Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១០ जनकथा रत्नकाप नाग सातमा. तेवा सुश्रवण जनो, रोगोनी पेठे नोगोमां मति करता नथी. कारण के ते जाणे , जे इंडियोना जोगो जे , ते असार, अस्थिर, अपवित्र, अतृप्ति कारक, वियोग कालने विपे फुःखदायक होय . अर्थात् ते नोगो मरणा नंतर दुःखदायकज होय . वली ते विषयो, जोग कालमांतो मधुर जणा य परंतु विपाककालने विषे अति कटुफलदायक होय . म टेज ते पूर्वोक्त विवेकिजनो तेनुं सेवन करता नथी. कहेढुंजे केः-॥आदी माधुर्यरूपा परिणतिकटुका ये च किंपाकतुव्याः, कंमूकयनानाः दणिकसुखकरा फुःखसंयोजिनोंऽते ॥ मध्यान्हे चैणतृष्णावदवृतमतिदा निःफलायासमूलं, नुक्का दद्युः कुयोनिचमणमपि महावैरिणस्तेत्र नोगाः ॥१॥ अर्थः-आरंन मां मधुरगुण युक्त अन परिणामें किंपाकना फल जेवा कडवा एटले किंपा कनां फल जेम जोवामां सारां, लालरंगवाला होय , पण खावामां अत्यंत कडवां ने तेवा,अने जेम न्युजली यहोय अने तेने खजवालीयें ने जेवं सुरव आवे, तेवा सुरखने देनारा, तथा दणिकानंद दायक अने अंतसमयमा ऊ रखने देवावाला, मध्यान्हकालनेविषे कारनूमिमां देखाता मृगतृष्णाना जलनी पे - मतिने आवरण करनारा, जेमा प्रयास करनारने ते प्रयासर्नु काही पण फलज मलतुं नथी, महावैरी समान, एवा आ पंचेंश्यिना जोगो , ते नोगोनोगवे थके जीवने कुयोनिवगेरेमांन्रमण करवुज पडे .चमण करता ते जीवो जो नारकीमांजाय , तो तेमां नारकिपणाने जोगवी अतिखित था य ले. कारण के त्यां कां पण तेने नोगसामग्री उपलब्ध थाती नथी, वली ते जीवो जो पशुपणामां जाय , तो त्यां विवेकहीनताने प्राप्त थाय बे, अने त्यां पण नोगसामग्री तेने मलती नथी. हवे वली ते जीवो जो नरजन्ममां जाय ले, तो त्यां स्वजननो वियोग, रोग वगेरेथी दुःखित पणा ने ते प्राप्त थाय , ते जीवो जो देवजन्ममां जाय , तो तेने ज्यारे देवलो कना नोगनो वियोग थाय , त्यारें महोटुं पुःख नत्पन्न थाय , कारण के ते जीवो कांशाश्वत देवपणामांज रहीशकता नथी.ते माटे ते विषय नोगोमां माह्या पुरुष- मन ते केम राजी थाय? ना थायज नहिं. वली ते नोगोने तुब सत्त्व जीवोयें अत्यंत सुखरूप मानेला . या प्रकारनी मुनिनी वाणी सांगलीने नोगोथी वैराग्य पाम्यो एवो ते सूरसेन राजा ते मुनिने प्रणाम करीने पोताने घेर आव्यो. अने ते मुनि Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. २६ ना जे प्रत्यक्ष सर्व गुणो दीवा हता, तेने स्मरण करतो यको रात्रें सुतो. ते पीतेने निश चावीने पाठो ते गुरुनुंज स्मरण होवाथी तुरत जागी गयो, तेवामां तो तेथे प्रकाशमां वागता देवताउना झुंडुनिनो शब्द सांव्यो, ते सांगली मनमां चिंतववा लाग्यो के हो ! जे मुनियें मने दिवसमां उपदेश थाप्यो हतो, तेज मुनिने हाल केवल ज्ञान उत्पन्न थयुं होय, एम लागे बे ? एम चिंतवन करी सूइ रह्यो सवारना प्रहरमां पोतानी मुक्ताव जीनामा राणीनी सायें महोटा श्रामंबरथी पाठो ते मुनिनी पासें गयो. त्यां ज " ज्यां जोवे, त्यां तो देवतायें कस्यो ने महोत्सव जेनो एवा ते साधुने जोया घने जोइने प्रत्यंत हर्षायमान थइने मुनिवर्यने नमस्कार करी स्तुति करीने तेमना मुखना वचनामृतना पान करवामाटे पवित्र भूमि पर वेगे. तेवामां तो तेजें करीने सूर्य समान देदीप्यमान कुंमलवालो मंदहास्यें करी प्रसन्न ने मुखा रविंद जेनुं ने जय जय शब्द करतो एवो कोइएक पुरुष ते केवलीना चरण कमलने विषे एकदम पडीने स्तुति करवा तत्पर थयो. ते चरणमां पडेला पुरुषने जो ने विस्मय पामेला सूरसेन राजायें केवली भगवानने पूजयं, के हे जगवन् ! या कोण पुरुष बे ? यने यापने विषे अत्यंत नक्तिमान् केम बे ? त्यारे केवली भगवानें कयुं के हे राजन ! गुसम्यक्त्वज्ञान थवाथी जीव, तीव्रनक्तिमान थाय बे. वली बीजुं पण कारण नक्ति यवामां ययुं बे, ते पण हुं कर्तुं बुं, ते सांजन. पूर्वे पद्मखं नामापुरमां धनें करी कुबेर समान एवा ईश्वर ने धनेश्वर नामना वे वैश्य रहेता हता, तेमां ईश्वर जे हतो, ते जैनधर्ममां सावधान हतो ने धनेश्वर जे हतो, ते मिथ्यात्ववासनावासित हतो. ते वेदु निक टसंबंधी तथा यत्किंचित् परस्पर स्नेह युक्त हता. हवे जैनधर्मी एवो जे ईश्वर बे, ते दिवसना यावमा नागमां एटले रात्रिनोजन दोषना परिहार माटें सूर्यास्ती पहेलांज प्रति दिन जोजन कर लीये बे. तेने जोड़ने कदायही एव तेनो मित्र धनेश्वर तेनी निंदा करवा लाग्यो के यहो ! या तमारुं जैनोनुं ज्ञान तो जुन. के जे तमो निरंतर दिवसमां बे वखतज नोजन करया करो हो ? अर्थात् सदा पवित्र एवं नक्तनोजन तो कोइ पण दिवस करताज नथी ? ते सां ली ईश्वर श्रावकें कयुं के हे मित्र ! तुं खोटो याग्रह राखी मिथ्या जापण निवड पापोनेशा माटे बांधे बे ? ॥ यतः ॥ विदुषा युज्यते कार्ये, गुण Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दोषविचारतः ॥ प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च, स्वीकता स्वेष्टसिधये ॥ १. ॥ अर्थःविहान पुरुषो, गुण अने दोपोनो विचार करीने कार्य करे .अने प्रवृत्तिनो अने निवृत्तिनो स्वीकार, पोतानी इष्टसिदिने माटे करे .तेमां पण जेमांअल्प दोष होय, तेने ग्रहण करे अने जेमा घणा दोषो होय, तेनो त्याग करे वे. अर्थात् एक अल्पदोषी अने बीजुं बहुदोषी एम बेहु देखातां होय, तो तेमां थी विद्वान माणस, अल्पदोषीनेज ग्रहण करे ने अने बहुदोषीनो त्याग करे जे.ते जेम केः-देवनिर्वाहने माटे नोजन तो सदु कोश्ने करवुज जोयें, बेयें एटले तेनो तो साव त्याग थायज नही, तो हवे जे नोजनना समयमां बद्ध दोपी समय देखातो होय, ते समयनो त्याग करवो. वली जेम परस्त्रीगमन परधनहरण करवू, ते बहुदोषी , तो तेनो त्याग करवोधने स्वस्त्रीगमन, स्वव्योपनोग ते अल्पदोषी, तेनुं ग्रहण करवं. तेमज कुंथु, कांटो, काष्ठ नुं जीएं बोडियु, थास्थि, माखी, कीडी वगेरे पदार्थो जेवा दिवसमा सा र रीतें देखाय बे, तेवा रात्रिने विषे देखाता नथी, माटे रात्रिना समयमां जोजन करवानो रीवाज , ते खराब ले तथा बहुदोषीले. अने दिवस ना समयमांनोजन करतां पूर्वोक्त पदार्थ जो पड्या होय, तो ते सर्व सुलन रीतें देखाय जे. माटे दिवसना समयनु नोजन , ते अल्पदोषी एम प्र त्यदरीतें सदु कोइने देखायज . अने जो कदाचित् तमें कहेशो के ते दि वस नोजनमां मनुष्यने तृप्ति थाती नथि? तो जो दिवसना नोजनमा तृप्ति जेने न थाय, तो तेने रात्रिना नोजनथी पण तृप्ति थवानी ने ? माटे नि दोष एवा दिवसनोजनने बोडीने जे रात्रिनोजन करे ,अने कहे जे, के अमें नक्तनोजन कयुं , तो तेउनुं ते महोटुं स्पष्टरीतें अज्ञानज जणाय ने. अने वली नक्तनोजननो जे मार्ग . ते पण यवनजननोज जे. कारण के रविना किरणें करी जे अदृश्य , ते केवल सदोषज होय . वली सर्व कर्म नो अधिकार पण मनुष्यने सूर्योदय थयेथीज थाय ने, एम ढुंज नथी कहेतो, परंतु तमारा दर्शनीयो पण कहे . माटे हे धनेश्वर ! जे रात्रिमा नथीज जमता, तेने तो जेम कोइ जीवना जीवितनोअई काल तपश्चर्यामां जाय ने, ने तेने जेतुं पुण्य थाय , तेटलुंज पुण्य थाय ने. अने जे रात्रि जोजन करे ,तेनुं तो आयुष्य तिर्यचजीवोनी पेठे व्यर्थज चाल्युं जाय ले ॥ यतः ॥ये रात्रौ सर्वदा ऽऽहारं, वर्जयंति सुमेधसः ॥ तेषां पदोपवासस्य, Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ पृथ्वीचंड अने गुणसागरनुं चरित्र. फलं मासेन जायते॥१॥नानोः करैरसंस्ष्टष्ट, मुलिष्टं प्रेतसंचरात् ॥ सूक्ष्मजी वाकुलं चापि, निशिनोज्यं न युज्यते ॥ २ ॥ चत्वारो नरकाराः, प्रथम रात्रिनोजनं ॥ परस्त्रीगमनं चैव, संधानं नतकायके ॥ ३ ॥ परशास्त्रेपि ॥ नोदकं चाप पीतव्यं, रात्रावत्र युधिष्ठिर ॥ तपस्विना विशेषेण, गृ हिणा तु विवे किना ॥ ४ ॥ मृते स्वजनमात्रेऽपि, सूतकं जायते किल॥ अस्तं गते दिवानाथे, जोजनं क्रियते कथम् ॥ ५ ॥ रक्तीनवंति तोयानि, अन्नानि पिशितानि च ॥रात्रिनोजनसक्तस्य, ग्रासे तन्मांसनदणम् ॥ ६ ॥ चत्वारि खलु कर्माणि, संध्याकाले विवर्जयेत् ॥ थाहारं मैथुनं नि, स्वाध्यायं च विशेषतः ॥॥ आहाराजायते व्याधिः, क्रूरगर्नश्च मैथुनात् ।। निशतो धननाशः स्यात्, स्वाध्याये मरणं नवेत् ॥ ७ ॥ नक्तं मत्वा न नो क्तव्यं, रात्रौ पुंसा सुमेधसा॥ देमं शौचं दयाधर्मे, स्वर्ग मोदं च वांडता ॥ किं च ॥ गाथा ॥ संपातिम उदुम तसा, तीरंति न वारिवं तहिं जेण ॥ पञ्चरक दंसिणो विदु, तेण निसाए न मुंजंति ॥ १० ॥ इंदिय विज आरं, नवजणं तायपाइ परिसुड़ी ॥ पसुनावपरिचाइ, दिनुत्तीए गुणा ढुंति ॥ २ ॥ अर्थः- जे बुद्धिमान मनुष्यो, रात्रिने विपे मास पर्यंत जो सर्व प्रकारथी आहारनो त्याग करे , ते जीवोने पदोपवास जेटलुं फल प्राप्त थाय ने ॥ १ ॥ रविना किरणोथी जेनो स्पर्श थयो नथी, तथा प्रेतना स्पर्शथी, तेना संसर्गीना संसर्गथी, नबिष्टथी, सूक्ष्मजीवथी व्याप्त, एवा अन्नना नोजननो, तथा रात्रिनोजननो बुद्धिमाने त्याग करवो ॥ २ ॥ वली नरकनां चार चार कहेला . तेमां प्रथम रात्रिनोजन, बीजुं परस्त्रीगमन, चोयुं परव्यहरण, अने चोथु आपणने पगे लागता जीवपर बाण वगेरे हथियारनुं अनुसंधान करवू ॥३॥ वली परदर्शनीना शास्त्रोमां पण कहेलु बे के ॥ हे युधिष्ठिर ! रात्रिने विषे जल पण पीवं नहिं, तेमां तपस्वी पुरुषोयें तो विशेषे करीने पीवुज नहिं, अने विवेकी एवा गृहस्थाश्रमी पुरुष पण पीयूँ नहिं ॥४॥ कदाचित् कोई संबंधी ज्यारें मरण पामे, त्यारे तो सूतक लागे, तो दिवानाथ एटले दिवसना पति एवा सूर्य नारायण ज्यारें अस्त थाय त्यारें, नोजन केम थाय? ॥५॥ रात्रिने विपे जल जे , ते रुधिरसमान 'याय , अने अन्न जे , ते मांससदृश थाय ने अने वली रात्रिमा अन्ननो ग्रास लेनार जनने मांसनोजन जेवो दोष लागे रे ॥६॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. चार कार्योनो संध्याकालने विषे त्याग करवो, ते कयां चार कार्य ? तो के आहार, मेथुन, निज्ञ अने विशेषे करी स्वाध्याय, एटलां वानानो त्याग करवो ॥७॥ कारण के संध्याकालमा आहार करबाथी व्याधि थाय डे अने मैथुन करवाथी कूरगर्न थाय , तथा निशथी धननो नाश थाय अने स्वाध्याय करवाथी मरण उत्पन्न थाय डे ॥ ॥ देम, दया, शौच, धर्म, स्वर्ग अने मोद, तेने वांडता एवा बुद्धिमान् पुरु रात्रिनोजनने नक्तनोजन मानीने जोजन करवुज नहिं ॥ ए ॥ वली पण कह्यु के सूक्ष्म, त्रस, एवा जीवोनो रात्रिनोजन करनारना नोजन पात्रमा संपात थाय . अर्थात् रात्रि जोजन करनारना नोजनमा सूक्ष्मत्रस जीवो आवी पडे बे, कारण के ते जीवो हाथें करी वारिये पण पड्या शिवाय रहे ताज नथी. केम के ते जीवोने रात्रिमा दृष्टिनो अनाव होय ? माटे तेमां प्रत्यद दोष मानी ते रात्रिनोजन करवूज नहिं ॥१०॥ इंडियोनो विजय, तथा जीवनी हिंसाना त्याग वगेरेथी जीवनी परिशुक्षि थाय ले. तथा पशुनाव परित्यागरूप गुणो पण थाय ने ॥११॥ ते कारण माटे हे धनेश्वर ! तमें दोष अने गुणोने जागी प्रवृत्ति अने निवृत्ति करो. अने ग्राम्य पुत्रनी पर्नु कदायह करीअनर्थने शा माटे करोडो? ते जेम केः- एक गामनेविषे कोइ एक ग्रामीण मनुष्य रहेतो हतो, ते मरण पाम्यो, तेथी तेनी नार्या, पोताना स्वामीनु स्मरण करीने अत्यंत रुदन करवा लागी. त्यारे ते नो एक पुत्र हतो, तेणें कह्यु के हे मातः! तमें शामाटे शोक करो बो ? दूं तमारो पुत्र माटे अनुचरनी पहें तमारी सेवा करीश, अने गृहकार्य पण करीश. माटे आवो महोटो शोक करवानुं हुं कारण? त्यारे ते स्त्री बोली के हे पुत्र! तारो पिता जे कार्य हाथमां लेता हता, ते कोइकालें मूकताज नोता, अने तुं तो निश्चिंत जेवो देखा बो, तथा बालक बो, तेथी हाथमाली धेला कार्य करवामां शिथिल बो, माटे मने महोटो शोक उत्पन्न थाय ? त्यारे ते पुत्र बोल्यो के हे माता! जुन.आजथी आरंजीने हवे हुँ गृहकार्यमां सचिंतज रहिश,अने मारा हाथथी जालेलुं कार्य हुँघणो कुखी थाइश तो पण मूकीश नहिं. एम कहीने पोतानी माताने स्थिर करी. पड़ी एक दिवस राजरस्ते पोतें निकट्यो, तेवामां तेज रस्तामां कोई एक धोबीनो गधेडो पोताना घरथी बंधन तोडी दोड्यो जतो हतो अने तेनी पळवाडे तेने Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. १७३ पकडवा तेनो स्वामी रजक दोडतो हतो, पण ते रासन हाथ ग्राव्यो नही, त्यारे ते धोबीयें महोटा सादथी रस्तामां चाव्या जता ते ग्रामीण बोकराने कयुंके हे जाइ ! या मारो गधेडो तोडावी दोड्यो जाय ते, ते तारी पासें श्राव्यो बे, माटे तुं तेने पकड़ी जेजे. ते सांनजी तेणें ते गधेडानुं पूबडुं पकड़ी लीधुं, त्यां तो क्रोधायमान थयेला ते गधेडायें पोतानुं पूछडुं पकडयुं जायुं के तुरत तेने पावला वे पगनी लातो मारवा लाग्यो. तेथी ते ग्रा मी पुत्रनुं मस्तक तथा हृदय ए बेदु फूटी गयां, तो पण तेणे रासननुं पूबडं बोड्युं नहिं, त्याऐं गाममां चालनारां लोको कहेवा लाग्यां के हे मूर्ख ! तुं या गधेडानुं पूबडं बोडी दे, नहिं तो तुने पादप्रहारथी मारी नाखशे ? त्यारे ते ठोकरो बोल्यो के मारी मातायें मने बोडवानी ना कही बे, के हाथमां लीधेनुं कोइ पण कार्य तारा बापनी पठें तुं बोडीश नहिं, माटे मारी माताना कहेवाथी नलदुं हुं केम करूं ? तेवां ते या मीनां वचनो सांजली सर्व मालास उपहास करवा लाग्यां. परंतु तेणें ते पूब बोडधुं नहिं ने महोटा दुःखने प्राप्त थयो. एम हे मित्र ! तमें पण जो गुणदोपनुं विवेचन न करी कदाग्रहज पकडशो, तो ते ग्रामी नी पेठें दुर्गतिरूप दुःखने प्राप्त याशो ? ए प्रकारें घणी रीतें उपदेश कस्यो, तो पण ते, रात्रिनोजनथकी निवृत्ति पाम्योज नहिं ने ग्रा ध्यानें करी दुःखित ने तृप्तिरहित थकोज मरण पामीने वागुल थयो. वली सम्यक्कनी निंदा करवाथी तेणें तिर्यग्नाम कर्म बाध्युं, तेथी ते पांचे वार वागुलनाज नवने पाम्यो. त्यांथी मरण पामी वे वार चिमाचोडनो अवतार पाम्यो, त्यांथी मरी वे वार घूडनो जव पाम्यो पाठो त्यांची मरण पामी बे वार शीयालीयो थयो . त्यांथी मरण पामी विशाला पुरिमां देवगुप्त नामा ब्राह्मणनी नंदा नामनी नार्याने विषे पुत्रपणे उत्पन्न थयो. ते बाल्यपणाथीज व्याधिवान् थयो. तेनो एक रोग ज्यां तेनी माता औषध करी मटाडे बे, त्यां बीजा नवा वे त्रण रोगो उत्पन्न याय बे. एम करतां तेनी माता पण मरण पामी. पक्षी तेनो पिता बीजी स्त्री परस्यो. त्या तेनी ते उरमान माता होवाथी ते रोगीनी कांइ पण याश्वासना करे नही अने ते तेनी खागल पण जाय नहीं. हवे ते पुत्र अत्यंत रोगी रहे ३५ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ J8 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वा लाग्यो तेथी लोकोयें तेनुं रुग्नट एवं नाम पाडयुं, अने जेम विष्टामां कीडो महोटो थाय, तेम रोगमां ने रोगमां वधवा लाग्यो. हवे तेनो मित्र ईश्वर श्रेष्ठी जे हतो, ते तो धर्म जागरणने विषेध त्यंत उद्युक्तज हतो, ते माटे धन, पुत्र, दाराथी विरक्त थइ तेणें श्री धर्मे श्वर नामा गुरु पासें जश् चारित्रने ग्रहण कयुं. पली मुक्तिस्त्रीमा रसिक, तथा शमतामृतपानमां तृपित, एवा ते मुनि विहार करता हता. हवे ते मुनि, एक दिवस जेमां रुग्नट्ट रहे , ते विशाला नगरीने विषे पददमणने पारणे या हार वरोवाने माटे गोचरीयें निकट्या, ते रोगीना पिता देवगुप्त नामा ब्राह्म गने घेर अाव्या. ते मुनिनां दर्शन करीने खुशी थयेलो ते ब्राह्मण, मुनिने प्रणा म करी विनति करवा लाग्यो के, हे जगवन् ! आप करुणाना आकर बो, तेथी एक मारी विनति , ते सांगतो. त्यारे गुरुयें आज्ञा करी के हे हिज़! तारे जे कहे होय, ते कहे. त्यां ते कहेवा लाग्यो के हे महाराज ! आ एक मारो पुत्र , ते अवतस्यो त्यांथीज रोगी ने, अने तेना रोगने मटाडवा माटे में घणाक नपायो कस्या, परंतु कोइपण रीतें तेना रोगो मटताज नथी. माटे श्राप काहिंक उपाय कहो,तो आ वीचारो रोगोथी मुक्त थाय ? ते सांजली मुनि बोल्या के हे ब्राह्मण ! अमोने यतिलोकने तो ज्यारें गोचरीयें निकलीयें, त्यारे कोश्नी साथै वातो करवी कल्पेज नहिं. ए शास्त्रोक्त मार्ग , तोपण तारा पुत्रोना रोगो जोइ मने दया आवे ने, तेथी हुँ कहूँ , ते सांनत. हे हिज! आ तारा पुत्रने बीजा कोइ पण औषधो लागु पडशे नहिंमाटे तेने तो धौषध करवुज नचित जे. एम कही ते मुनि, त्यांथी निदान मलवा थी पाला बाहेर उद्यानमा चाव्या गया. हवे ते ब्राह्मण पण जलदी जोजन करी पोताना रोगी पुत्रने ला एक दम ते मुनिनी पासें आव्यो. अने नमस्कार करी ते मुनिने पुत्र माटे धर्मोषध पूज्युं. त्यारे नाववेदी एवा मुनि बोल्या के हे विप्र! जेथी रोगो नत्पन्न थाय ने, ते रोगनुं निदान कहेवाय डे, माटे प्रथम रोगनुं निदान जाणी ते निदाननो ज्यारें त्याग करीयें, त्यारेंज तेनुं औषध थाय ले.अने ते औषध पण त्यारेंज लागु पडे .जो कदाचित् निदान जाण्या विना कोइ एमने एम उसड आ पे , तो ते औषधनो गुण थातो नथी परंतु सामो ते रोगनो वधारो थाय बे? हवे ते रोगोनां निदानो कयां कयां ? के प्रथम तो प्राणीयोनी हिंसा Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. Iցա करवी ते, बीजं असत्यभाषण, त्रीजुं चौर्य, चौथं परस्त्रीगमन, पांचमुं परिग्रहासक्ति. ए पांचे, रोग थवानां निदान बे. कारण के ते पांचे खाचरण कस्यां थकां रोगना कारणनूत थाय बे. हवे ते पूर्वोक्त पांचे निदानथी य येला रोगो कया औषधथी नाश पामे बे ? तो के प्रथम तो परमेष्ठीना स्मरण करवाथी, बीजा चार कषाय अने इंडियोनो जय करवाथी, त्रीजा यथा शक्ति पात्रोमा दानदेवाथी, चौथा पापनी गर्दा करवाथी, ए चार प्रकारना औषधो थी पूर्वोक्त निदानथी ययेला रोगो, नाश पामे बे. माटे या मारा कह्या प्र माणें निदानने जाणी, ते निदाननो त्याग करी धर्मोषधने ग्रहण करी जे प्राणी निरंतर चाले बे, ते प्राणीने कोइ दिवस, रोगो थाताज नथी अने रोग थया विना पण जे या प्रमाणना धर्मोषधने लीधाज करे बे, तेने या रोग्य पण राज करे बे ? एम कही ते ब्राह्मणने गुरुयें एकेक व्रतनुं मा हात्म्य सविस्तर कयुं, ते सांगली पिताने अने ते रोगी पुत्रने मिथ्यात्व नाश थ गयुं, तेथी ते पिताने पुत्रने सम्यक्त्व प्राप्त ययुं खने पढी ते रोग मटाडवाना बीजा सर्व उपायोनो त्याग करी निश्चल शुद्ध श्रावक था ने रोग थवानुं मूल कारण तो दुष्कर्मज बे, एम जाणवा लाग्या. " हवे एक दिवस सिंहासन पर बेठेला सोधमै सुधर्मा सनामां तत्रत्य देवतानी समक्ष ते पिता पुत्रनुं धर्मदादर्थ वखायुं तेने ते स मां बेठेला वे देवो जुतुं मानीने कहेवा लाग्या के जो तेनी में मारी जातेंज परीक्षा लश्यें, तोज ते वात में साची कहीयें ? त्यारें सौधर्मेऽदेवें कह्युं के तमोने ज्यारें अमारा बोलवा पर नरोंसो नथी श्रावतो, त्यारें तमो तमारी जातेंज जइ परीक्षा व्यो. ए वाक्य सांजली ते बेदु देवो, वैद्यनुं रूप धारण करीने ज्यां रोगी ब्राह्मण रहे बे, ते विशालानगरीमां खावी ते ब्राह्मण ने घरे गया. प्रने ते रोगी ब्राह्मणने कहेवा लाग्या के हे रोगी ! में वैद्य बैयें, ते तुने गरीब माणासने मांदो सांगली दया याणी तारूं उस करवा यावेला बैयें. माटे तारा माता पिता वगेरेनी समझ में जेम कहीयें तेम निःशंकरीतें तुं मारुं खौषध ले, तथा पथ्य पण पाले; तो तारा रोगो, थोडाज दिवसमां नाश थइ जाय. ते सांगली तेना माता पिता व गेरे कह्युं के तेने केवी रीतनुं औषध केवी रीतें जेवुं ? ते व्याप कहो. त्यारें वैद्यक, के जु. प्रथम तो खा रोगीयें याखा दिवसमां तथा रात्रिमां Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ༡༡ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. गुं खावु जोश्य? ते कहियें बैये के आरोगीय दिवसना प्रथम प्रहरने विषे मधुर एवा मधनुं नक्षण करवं. पली वली ज्या दिवसनो बीजो प्रहर थाय, त्यारे कृष्ण एवा मदिरानुं पान करवू. पनी पानी रात्रि ज्यारें पडे, त्यारे माखण, चोखा, जलचर, स्थलचर, खेचर, एवा प्राणीयोनं मांस लावी तेनुं नक्षण करवं. हवे अमाझं औषध केवी रीतें खाएं ? ते कहियें बैयें. के, या रोगीयें अमें जे औषध आपीयें, तेने प्रतिदिवस सवारमा पूर्वोक्त प्राणीयोनुं मांस लावी तेनी साथें मेलवीने खावं. तेम सात दिवस पर्यंत अमें जू जू औषध आपशु, तेने पण ते प्रथम कहेला मांसनाज अनुपानसाथें लेवु. तेथी सात दिवसमांआ ब्राह्मणना सर्व रोगो निर्मूल थइ जाशे ? तेमां कांही पण संशय नथी. ए सांजली ते रोगी ब्राह्मण बोल्यो के अरे वैद्यो ! आ ते बोलो बो शुं ? या प्रकारना तसारा कहेला आरंनकारक सड़ खाइने मारे झुं करवानुं ने ? आवा सडथी मारा रोगो जो मटता होय, तो ते रोगो मारे मटाडवाज नथी. कारण के आवं तमाएं उसड खाइने ढुं नवोनव नरक वेदनाने नोगववा तैय्यार थानं केम ? माटे आज बोल्या ते तो बोल्या, पण हवेथी एवं कोई दिवस बोलशोज नही. जुन. प्रथम तो तमोयें मने दिवसथी ते रात्रिपर्यंत मध वगेरे खावानुं कर्तुं, तो तेमां प्रथम मध वगेरे चारे विगयनुं तो में जाव जीव पञ्चरकाण लीधेनुं बे. माटे तमारा कहेवा प्रमाणे मध तथा माखण वगेरे तो में खवायज नहिं. वली रात्रिनोजननो पण में जावजीव पर्यंत त्याग कस्यो , तेथी रात्रिमा ढुं जैनशास्त्र विहित अन्न पण लेतो नथी तो तमारूं कहेलुं महापापकारी मांस वगेरे तो शेर्नुज लहुँ ? अने वली त में मने उसड खावा, कह्यु, तेमां पण अनर्थकारि मांस मेलवीने खा वानुं कह्यु, माटे ते उसड पण माराथी खवाय एम नथी ? ते सांजली देववैद्यो बोल्या के हे ब्राह्मण ! ते तुं युं बोले ले ? एकदम धर्ममां कां गली जा बो, तुं विचार तो कर के आ शरीर जो हशे तो बधां वा नां थाशे, अने शरीर ज्यारे नहिं होय, त्यारे एकला धर्मने तुं युं करी श? अने धर्म पण शेणें करी पालीश ? माटे देहमां ज्यारें कोई पण रोग थाय, त्यारे कर्तव्याकर्तव्यनो कांश पण विचार, माह्या माणासें करवोज नहिं. अने एम धर्मविरुम उसड खावाथी कदाचित् पाप लागे, तो पड़ी Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २७ ज्यारें साजा थश्ने तेनुं प्रायश्चित्त करीयें, तेथी ते दोष सर्व निवृत्ति पामे, माटे आ अमोयें कह्यु, तेम करी शरीरनुं रहाण कस्य. अने धर्मनुं पण रहण कस्य. एम ते रोगी ब्राह्मणने कहिने ते वैद्यो तेनां माता पिता वगेरेने कहेवा लाग्या के हे नाश्यो! आ रोगी तो कांइ पण समजतोज नथ। माटे अपसमजु, रोगी अने गरीब एवा आ माणासनी तमारे उपेक्षा क रवी घटती नथी. तेथी तेने समजावी कहो, जे अमारा कहेवा मुजब ते सड खाय ? अने तेम कारवाथी तमोने पण पुण्य अने यश प्राप्त थाशे ? ते सांजली तेना सदु संबंधी जनो कहेवा लाग्यां के हे वत्स ! या वे वैद्यो बिचारा परोपकारी देखाय , केम के तारा जेवा निर्धन माणासनो रोग मटाडवा माटे उसड देवा पोतें पोतानी मेलेंज बोलाव्या विना यावी उना रह्या , तथा ते उसडनुं कांश व्य पण मागता नथी ? माटे आ दयालु वैद्यो जेम कहे , ते प्रमाणे उसड ग्रहण कस्याथी तारो जो बचाव थाशे तो अमो पण राजी थारां ? अने हे नाई ! ते उसड खावाथी जो तुने पाप थाशे, तो ते पाप कोइ पण उग्र एवा तपे करी तुंमटाडीसकीश? एम घणुंज कह्यु, तो पण ते रुग्नहें मान्युं नहिं. त्यारे ते वैद्यो, एज गामना राजा पासे आव्या अने ते राजाने कहेवा लाग्या के महाराज ! अापना आ गाममा एक जन्मनो रोगी ब्राह्मण रहे . तेथी तेनुं नाम पण रुग्नज बे. हवे अमो कोइएक माणासना कहेवाथी मांजव्यु जे विशालानगरीमां गरीब, जन्मनो रोगी अने घणोज पुःखी, कोई एक ब्राह्मण रहे , तेना रोगो घणा उपायो कस्याथी मटताज नथी, ते सांनती मनमां दया लावीअमो तेनी पासें ाव्या अनेावीने अमोयें तेने उसड खावानुं कह्यु, तो पण ज्यारे तेणें न मान्युं, त्यारे पाडं तेना संबंधीजनो पासें उसड खावाने माटे घणुंज समजावी कहेवराव्युं, तो पण ते मानतोज नथी परंतु अमारा मनमां तेनी पर दया आवे , के तेने रोगथी मुक्त करवो. ते माटे आप तेने आहिं बोलावी अमारा कहेवा मुजब उसड खावानो तथा पथ्य पालवानो दुकम करो. अने हे राजन् ! अमो प्रतिज्ञा पूर्वक कहियें बैये के अमारा उसड खावाथी तेने जरूर सारूंज थाशे ? अने जो ते नहिं खाय तो ते थोडाज दिवसमां मरण शरण थप जाशे? ते सां जली राजायें तेने एकदम तेडाव्यो अने घणीज रीतें समजाव्यो, तो पण ते Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ जैनकथारत्नकोप नाग सातमो. समज्यो नहिं, अने तत्रत्य सदु सानले तेम सामो उपदेश करवा लाग्यो. के हे राजन् ! तमो विचार तो करो, के था अशुचिपदार्थयुक्त, असत्य एवा देहने माटे शास्त्रविरु६ अने नवज्रमण दायक एवा जैनशास्त्र विरु६ पदा र्थने हुँ केम स्वीकारूं ? तथा जावजीव ग्रहण करेला व्रतने पण ढुं केम बोडं ? वली एवो ते कोण मूर्ख होय के नस्मने माटे बावना चंदनने बाले ? तथा सोनाना कुंनमा नरेली जे लाख होय, ते लाखने माटे सो नाना कुंनने जांगी तुकडा करी नाखे ? वली देहने विषे ममत्व राखना राजनो, ते देहना रदण माटे जेम इव्यनो त्याग करे , तेम झान पु रुषो धर्मने माटे देहनो त्याग करे ले. एम्' घणीक युक्तिथी त्यां वेतेला सदु को जनोने बोध पमाड्या. त्यारे ते वैद्यो कहेवा जाग्या के हे ब्राह्मण ! तें जिनधर्मनुं तत्त्व घगुंज सारी रीतें जाएयु ? एम कही तेने नीरोगी करी, पोतानुं देवरूप देखाडी, तेनी स्तुति करीने ते देवो स्वर्गप्रत्यें गया. पर्छ। ते दिवसथी ते ब्राह्मणनुं नाम रुग्नट्ट दतुं, ते मटी अरुग्नट्ट थयु. अने धर्मोषधथी रोग मटवे करी। प्रथम करतां पण ते वधारे धर्मासक्त थयो. अने ते घणा काल पर्यंत जिनधर्मनुं धाराधन करी समाधिमरणें मरण पामी सौधर्मदेवलोकने विषे देवता थयो. त्यां अवधिझानथी जाएयु जे पूर्व नवमां दुं जन्मथीज महारोगी हतो, त्यारे जे मुनियें मने धर्मोषध आपी सारो कस्यो हतो अने ते धर्मना प्रतापथी या देवलोकने विपे हुँ देवता थयो , वली ते मुनिने हाल केवल झान उत्पन्न थयुं के ? एम जा ण) ते एकदम आहिं आवी हर्षायमान थ नृत्य करवा लाग्यो . आ प्रमाणे ईश्वर केवलीना करेला धर्मोपदेशथी घणाकजनोयें रात्रिनोजननो त्याग कस्यो. हवे तीव्र संवेगें रंगित एवो सूरसेन राजा, ते केवली नगवानने हाथ जोडीने कहेवा लाग्यो के हे जगवन ! महा मिथ्यात्विपणाथी रोगी थयेला ते रुग्नहने धौषध आपी आ देवता कस्यो, माटे आपने धन्य बे. अने ते हालमां देवता थयेला धनेश्वरने पण धन्य ,के जे पूर्व जन्ममां धर्मोषधरूप उपकार करनारा थापने उपकारी तथा धर्माचार्य मानी पाहिं वांदवा माटे आव्यो,अने वली तेणे मनोहर अने दृढ एवीनक्ति पण राखी ? धावी रीतें केवलीनी स्तुति करीने तेमनी विनति करी के हे जगवन् ! Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जए पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. थापना कहेवाथकी में साधुनुं तथा श्रावक- माहात्प्य यथास्थितरीतें जाएयुं, तेमां पण मुने एवो निश्चय थयो के जे साधुनो धर्म , ते एकांत मोद सुखनो देनारो ले. हवे जो आपने मारी चारित्र लेवानी योग्यता नासती होय, तो संमयश्रीने विषे उत्कंतित मनवाला एवा मुने संयम आपो. त्यारे के वली जगवाने कडे के हे राजन् ! तमारी संयम लेवानी तो योग्यताज , माटे जलदी घेर ज सर्व राज्यप्रतिबंधने बोडी, पाबा आहिं आवी संयमश्रीने स्वीकारो. ते सांजली हर्षनरथी प्रफुन्नित मनवालो एवो सूरसेन राजा, ते मुनिने नमस्कार करी शीघ्रताथी घेर श्रावी आमात्यो तथा पोतानी स्त्री वगेरेने वैराग्य युक्त थइ कहेवा लाग्यो, के हे सुहृद गों ! में तो उद्यानमां पधारेला केवलीना उपदेशथी जाण्यु, के या आयुष्य ले, ते जलना पोटा जेवू चंचल ,श्रा संसार जोगनुं जे सुख , ते फोतरा नीमुष्टिसमान वे अने संसारमा रे प्रियजनोनो संयोग थाय , तेनो वि योग पण थया विना रहेतोज नथी. अने जे इव्य ले, ते पण अनर्थ- मूल जे. कारण के ॥ यतः॥ अर्थानामजेने दुःख, मजैितानां च रदणे॥ाये फुःवं व्यये दुःखं, धिगाऽनर्थनाजनम् ॥१॥ अर्थः-प्रथम तो इव्यने नपा र्जन करवामां महोटुं सुःख जोगवq पडे , तेवुज पाडं तेना रक्षणमा पण पुःख थाय ने, माटे जेना रहामां पण कुःख तथा नपार्जनमां पण दुःख तेवा अनर्थना पात्रनूत एवा श्व्यने धिक्कार हजो. तथा वली जे काल (मृत्यु) जे, ते आपणने शोध्याज करे ले कर्म योगें आवी लजाय ॥ यतः॥कैवर्तकर्क शकरग्रहणच्युतोऽपि, जाले पुनर्निपतितःशफरोवराकः॥जालादपि प्रगलितो गलितोबकेन, वामे विधौ बत कुतोव्यसनानिवृत्तिः ॥ १॥ अर्थः- कोई एक नानो मत्स्य हतो, ते जलमांथी को एक मत्स्य मारनारना कर्कश एवा हाथमां आव्यो, परंतु ते मत्स्य अत्यंत सुंवालो होवाथी तेना हायमांथी सरी गयो, ते पाडो जलमां पाथरेली जालमांावी पाड्यो, त्यांथी पण पोते घणो ज नानो होवाथी ते जालना बिश्मांथी निकली गयो, ते पालो जलमा पज्यो, त्यां पण तेने कोइएक बगलो हतो, ते गली गयो. माटे जीवनो ज्यान कर्म योगें काल बावे , त्यारें कोई पण ठेकाणेथी ते जीवने खोलीने जा ज जाय . वलीश्रा संसारमा एक बीजानो स्नेह , ते पण तिलहना पुंज समान बे. अने जरा अने रोगो तो जीवोनी पळवाडे धमधोकार दोज्याज Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9GO जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. करे बे. इष्टमित्र जे बे, ते पोताना करेला कर्मने अनुसारें कर्म जोगवतां थकां का का मरण पाम्याज करे बे, तेने यापण कोथी राखी शकातां नयी. ते माटे विद्वान् पुरुषो बे, ते कोइ पण जनने विषे प्रीतिज करता नथी. जु ! एवो ते कोण मूर्ख होय, के जे सम्यक्कथी अनंतसुख संतान दायक एवो मोह मली शके, एम बतां पण ते बोडी इंजाल समान संसारने विषे या सक्ति राखे ? वली एवो कोण मूढ होय, के तपने साध्य मुक्ति सुख बे ने तप ते पोताना स्वाधीन बे, ते तप न करतां तपावेला कढेलो जेवा संसारसुखने विषे श्रासक्त थाय ? वली हे नाईयो ! कारजलथी नरेलो जेम लवणसमुड् वे, तेम शारीरिक खने मानसिक वगेरे दुःखथी जरपूर था संसारसमुले. माटे तेवा संसारमां श्रज्ञानी विना कोण आसक्ति राखे ? वी स्वप्नमां मलेला निधाननी पठें संसारमां जे कां वस्तु दे, ते खोटीज ने, नित्य ने, तेथी या सर्वसंसारने खोटो जाणी हुं हवे श्रगण्यगुणग पालंकृत एवा श्रामण्यने स्वीकारीश ! ए प्रकारनं सूरसेन राजानुं वचन सांगली बोध पामेली एवी तेमनी मुक्तावली राणी कहे बे के श्रापें जे कां दालमां कयुं, ते सर्व सत्यज बे, कारण के या संसार सर्व मृगतृलाना जल जेवोज बे, तेथी यापें जे हाल संयम लेवानो विचार कस्यो, ते घणोज योग्य कस्यो, जुन आपणें जोग पण घणा काल जोगव्या. तथा सुह लोकोने पण परिपूर्ण रीतें संतोष्या ! सामंत वर्गने पण सुखाप्युं ! पुत्र प थयो ! तथा ते वली महोटो पण थयो ! त्रण भुवनने विषे यापनो कीर्त्ति पटह पण वाग्यो ! जाजुं शुं कहियें परंतु यापणने मनुष्य जन्मने विषे या लोकना सांसारिक जोगोनुं सुख तो सर्व उपलब्ध थयुं, ले. माटे आपना कदेवा प्रमाणें जो यपणे मोद सुखदायक मनुष्य जन्मनुं फल रूप जे चारित्र बे. ते स्वीकारीयें, तो पढी आपने कोई पण पदार्थ प्राप्त यो नहिं एम कहेवाय नहिं, अर्थात् हवे थापणे चारित्र जेवुंज उचित बे. तेथी हे नाथ! ते काममां हवे एक क्षणमात्र पण विलंब करवो जो इतो नथी. माटे चालो यापणे जलदी चारित्र न‍ आ अघोर एवा सं सारसमुड्ने तरियें ? कदाचित् जो आपणे प्रमाद राखी संयम लेवामां विलंब करशुं, तो प्रापणने यावी सगुरुरूप सामग्री मलवी दुर्लन थशे ? ll श्रेयनां काममां विघ्नो पल पलें खावे बे ॥ यतः ॥ श्रेयांसि बहु वि Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. श्र नानि, नवंति महतामपि ॥ अश्रेयसि प्रवृत्तानां, कापि यांति विनायकाः ॥ १ ॥ अर्थः- मोहोटा पुरुषोने श्रेयस्कर कार्य करवामां घणांज विघ्नो आवे ने. अने पाप कार्य करवामां प्रवृत्तता एवा जनोने विघ्नो आवे , एम देखातां होय, तो पण क्यांक जातां रहे जे ॥ १ ॥ तेवां मुक्तावली राणीनां तीव्रवैराग्य युक्त अने संयम लेवामां उत्सुकता रूप वाक्य सांन ली मंत्री वगेरे कहेवा लाग्या के हे देवि ! धर्मासक्त जनने तो कोई पण विघ्न करी शकताज नथी. ते पली सूरसेन राजायें पोताना चंयसेन नामा पुत्रने महोटा महो त्सवथी राज्यगादी पर बेसारी पोताना कुलपरंपरानी सर्व राजरीति समजा वी, अने वली शोखामण पण दोधी, के हे पुत्र ! आ राज्यने विषे रहेजे, पण राज्यमा अति आसक्ति राखीश नहि ? कारण के ए राज्य ते केर्बु जे? तो के जे राज्य निरपराध बतां बंधीखानुं ! माथा पर नायक विना परवशपणुं ! बती चकुयें अंधपणुं ने ! मद्यपान कस्या विना नन्मदपणुं ! अने र विनानुं बंधनपणुं छे ! माटे ते राज्यमां तत्त्वबुद्धि रावीश नहिं. अने सर्व प्रजानें पुत्रनी पेठे सुखी करजे. सर्व ठेकाणे पुर्नीतिने वारजे. अने मंत्री वगेरेनी पण दीधेली शिदानुं चित्तमां स्मरण राखने. अने हे पुत्र ! पाप कर्म रहित धर्म करी कीर्निने वधारजे. आ प्रकारें पोताना चंइसेन पुत्रने शिखामण दर, श्रीजिनचैत्योने विपे अष्टाहिक महोत्सव करी, चारित्र वेश रहित एवा श्रावकोना वृंदनुं रूपं, सुवर्ण, मणि, मोति, वस्त्र, आजरणना दानोयें करी सन्मान पूजन करी, चंइसेन कुमार कस्यो में दीक्षा महोत्सव जेनो अने चंइमानी चंडिकासमान उज्ज्वल एवां वस्त्रोथी कस्यो ने शृंगार जेणे, पुष्पस्नग्, चंदन, तेणे करी अर्चित एवो ते राजा, मनुष्योयें वहन करेली एवी शिबिकामां, हर्षायमान थइ बेगे. पली सामंत, ममलेश्वर, सेनापति, मंत्री, श्रेष्ठी, सार्थ वाह, संधिपाल, उर्गपाल, तेणे अन्वित अने हस्त्यारूढ, अश्वारूढ त था रथारूढ, एवा लदावधिजनोयें परितृत, कोटि परिमित पालाउँथे व्याप्त बंदीद्वंदोयें स्तुति करेलो, धार्मिकजनोयें श्लाधित, दीन अने दौस्थ्य ने अनुकंपा दान देनार, एवो ते राजा, विविध प्रकानां वाद्यो वागते थके चारित्रने ग्रहण करवाने तत्पर एवा केटलाएक आमात्यादिकं सहित, उ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 जनकथा रत्नकाप नाग सातमो. द्यानमा रहेला ईश्वर नामा केवलीनी पासें श्राव्यो. त्यां श्रावी गुरुने नमस्कार करी बेठो. ते पनी साथै आवेला सदु कोइ मनुष्यो पण यथा योग्यस्थाने बेठा. हवे वे हाथ जोडी ते सूरसेन राजायें विनति करी के, हे नगवन् ! या मारी साथें दीक्षा ग्रहणमां नत्सुक थ आवेला एवा मा रा आमात्यादिकोने तथा मने, आप कृपा करी संसारसमुश्ने निस्तार क रनार एवी दीदा आपो. ते सांजली ईश्वर केवलीयें जेने दीदानी इला हती तेने दीदा पापी. हवे मुक्तावली राणीये पण पोतानी साथें दीक्षा ग्रहण करवामां नत्सुक थश्यावेली एवी आमात्य वगेरेनी स्त्रीयोयें सहित, श्रीचंशना नामा आर्या नी पामें दीक्षा ग्रहण कर।. पनी गुरुने विपे विनीत तथा चारित्रीयां एवां ते स्त्री पुरुषं, अग्यार अंगोनुं अध्ययन कयु. अने निरतिचारपणे चारित्र पाली पोताना आत्माने सम्यगनावें करी नावन कस्यो. अने तप रूप अग्निना तापथी संतप्त एवा पोताना अंतःकरण रूप सुवर्णने शोधी लीधुं ॥ यतः ॥ बिन्नोमिथ्यात्वदः जिनमतविहितौ त्रोटितौ छौ च बंधौ, हो पुष्टध्यानचौरी चरणधनहरो निर्जितौ पुर्जयो तौ ॥ शव्यानां संयमांगे श्रुतकवचढ़ते सुष्टु नग्नः प्रवेशो, विध्वस्तं गारवारित्रिकमति विकटं निर्ममा स्त्रेण तान्यां ॥ १ ॥ दंमाश्चमनटाहि खंमितमदाः संज्ञा विषमाश्व, क्रोधा द्याश्चिरवैरिणोपि विधिना मंदप्रतापाः कृताः ॥ माहात्म्यं कुसुमायुधस्य नि हतं कुम्माः प्रमादादय,श्रासन्नीकतमेव निर्वृतिपदं तान्यां नुजान्यां ततः॥२॥ एवं चरित्रं विमलं चरित्वा, संलेखनां मासनवां च कृत्वा ॥धावप्यन्ताम हमिदेवौ, अवेयके च प्रथमे समृमौ॥॥अर्थः-जिनमतने जागनारां एवां ए बेदु जणायें मिथ्यात्वरूप जे रद हतो, तेने छेदी नारख्यो. जिन मतोक्त राग अने शेष, ते रूप बंधनने त्रोडी नाख्यां, चारित्ररूप धनने हरण करनार, एवा आर्त अने रौइ ए वे ध्यानरूप उर्जय उष्टचोरो जे हता ते जीती लीधा. श्रुत रूप बकतरथी आत्त एवा संयमरूप अंगने विषे शल्योनो प्रवेश सारी रीतें बंध कस्यो. अने अति विकट एवा गारवरूप त्रणे शत्रुने निर्ममत्वरूप शस्त्रे क री नाश करी नारख्या ॥१॥ वली आत्माना घणाक कालना वैरी जे मोहरा जाना चंग एवात्रय दंगरूप सुनटो हता, तेना मदनुं खंमन कडे.अने संज्ञा उजे हती ते तो खेद पामी तेनी पासेंथीचालीज गश्यो. घणाक कालना वैरी Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २३ एवा जे क्रोधादिक हता, तेने शमतादिक गुणविधियें करी मंद प्रतापवाला करी नाख्या. एटले बेदु मुनिवर मंदकषायी थया. कंदर्पनो जे दर्प हतो, ते पण हणी नाख्यो. प्रमादादिक दोषो जे हता, ते एक क्षणमां दी। करी नाख्या. एटले बलरहित कस्या अने ते बेटु जणे पोतानी तप अने संयमरूप नुजायें करी मोदपद जे हवं, तेने निकटवर्ति का. ए प्रकारें निर्मन चारित्रने बाचरण करीने अंतसमयें एक मासपर्यंत संलेषणा संथा रे अपशण व्रत ग्रहण करी ते सूरसेन तथा तेनी स्त्री मुक्तावली, ए बेतु सर्वसमृद्धियें युक्त एवा प्रथम अवेयकने विषे अहमिश्नामें देवपणे थयां ॥ यतः ॥ अनुंक्त तान्यां विशदद्युतियां, पवित्रचारित्रजगुदिनाग्यां ॥ सु खं च तस्मिन कमनीयमीषत, न्यनत्रयोविंशति सागराणि॥१॥ अर्थःते प्रथम ग्रेवेयकने विषे निर्मल ने कांति जेनी अने पवित्र एवा चारित्रथकी उत्पन्न थयेली जे शदि तेने जोगवता, एवा ते बेहु देवता, मनोहर सुखने कांक न्यून एवा ओवीश सागर आयु प्रमाण जोगवता हवा. ए पृथ्वीचं अने गुणसागरना चरित्रने विपे ईश्वरकेवलिदीक्षित श्री सूरसेन मुक्तावलीना गुणगणवर्णननामा बहो सर्ग संपूर्ण थयो ॥ ६ ॥ आहिं पृथ्वी चं अने गुणसागरना बार जव समाप्त थया ॥ १५ ॥ ॥अथ॥ ॥सप्तमसर्गस्य बालावबोधप्रारंनः ॥ हवे देवरूप थयेलो सूरसेन राजा तथा तेनी स्त्री मुक्तावली, ते प्रथम ग्रेवेयकथकी चवी, क्यां समुत्पन्न थयां ? ते कहे . __आ जंबुछीपने विषे नरतदेत्रमा मध्यवंमें उत्तर दिशाने विषे स्वर्गना जनोने तर्जन करनार, घणाक जेमां सऊनो रहे डे, एवं अने सुखने आप नालं, क्रोधविरहित मनुष्योयें प्राप्य, बलवान् एवा उशमनोथी जेमां आवीज शकातुं नथी, सुरसमान विबुधगणोयें अलंकृत, ए, एक गर्ज नपुर नामा नगर हतुं. तेमां पोताना नाम समान गुणवालो एक सुर पति नामा राजा राज्य करतो हतो. जेणें नूनृत जे शमन राजा तेनो पद छेदी नारख्यो , एटले जेम सुरपति जे इंश तेणें जेम नूनृत जे पर्व तो तेनी पांखो बेदी नारखी बे, तेम आ सुरपति राजायें पण शत्रुनो पद Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बेदी नाख्यो . हवे ते राजानी नामथी अने गुणोथी विख्यात, सती ए वे नामें पट्टराणी हती. ते पण एवी हती के जे पापनी वात तो कानथी पण सांजलती न हती. अर्थात जे.पापनी वात न सांजले, ते पाप करेज केम ? हवे ते राणीनी साथें सुख जोगवी राज्य करतो एवो ते सुरपति राजा, वेदधर्मने विषे अति प्रीतिमान होवाथी नत्तम एवा वैदिक ब्राह्मणो ने अत्यंत मानतो हतो. अने तेने विशेपें करी वस्त्रादिकोनुं दान पण प्रापतो हतो. तथा अहोनिश तेनुं पूजन अने घगुंज मान करतो हतो. ज्यारे ते राजाज एम मानतो हतो, त्यारे ते गामना रहेवासी सर्वे जनो पण ते राजानी पर्नु अत्यंत ब्राह्मणोने मानता हता.कह्यु के “ यथा राजा तथा प्रजाः" एटले जेवो राजा वर्ते, तेम प्रजा पण वर्ते ले. हवे राजा ना अने प्रजाना मानथी मदोन्मत थयेला धिक्कारवा योग्य ब्राह्मणोयें ते नगरमांथी बीजा पाखंम धर्मवाला जंगम अने जोगी वगेरेने बहार का ढावी मूक्या. तेवा अवसरनेविषे देव थयेलो एवो ते सूरमेन राजा, प्रथम ग्रैवेयक थकी चवीने हंसनी पवें सतीनामा राणीना उदररूप सरोवरने विषे आ व्यो. त्यारे तेज रात्रिने विपे ते राणीयें स्वप्नामां मनोहर जलथी परिपूर्ण, अने हंसादिक पदीयोयें करी विराजित, पद्माकरें युक्त एवं एक सरोवर दीतुं. ते देखीने पद्मलोचना एवी ते राणी एकदम जाग्रत थइ, अने तु रत राजा पासें आवी पोताने थयेला स्वप्नानी वात राजाने कही बतावी. ते सांजली स्वप्नना कारणने जाणता एवा ते सुरपति राजायें रा गीने कह्यु के हे प्रिये! तमोने आवेता स्वप्नना अनुसारथी तमारे उत्त म पुत्र उत्पन्न थाशे? ते सांजली अमंद अानंदने प्राप्त थयेली ते राणी ये पोताना गुन गर्ननुं पालन करवा मांमधु. पनी राणीने दान देवा व गेरेना जे कां दोहद नत्पन्न थया, ते राजायें सर्वे पूर्ण कस्या. अने सा डा नव मास ज्यारें पूरा थया, त्यारे ते राणी गुनसमयने विषे सर्व अवयवोयें करी सुंदर अने सुझजनोने आनंद देनार एवा पुत्रने, नूमि जेम कल्यवदने उत्पन्न करे, तेम उत्पन्न कस्यो. पडी राणीयें राजापासें वधामणी देवा माटे एक दासीने मोकली.ते दासीयें जश्ने राजाने वधामणी दीधी के महाराज! आपने त्यां हाल उत्तमोत्तम पुत्र प्रगट थयो? ते सांजली Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २५ राजायें ते दासीने कोटि सुवर्णतुं दान प्राप्यु अने पनी पुत्रजन्म महोत्सव कराव्यो. ते जेम के ॥ श्लोक ॥ उचलञ्चारकं चिंतितधारकं, नृत्यकछारकं चापदां दारकं ॥ सारजूंगारकं नरिश्रृंगारकं, वित्तविस्तारकं दौस्थ्य निस्तार कम् ॥ १ ॥ अर्थः-आनंद पामी दोडता दासोयें करी युक्त, चिंतित पदा र्थनु हाररूप, पुत्रोत्पन्नथी आनंदित थ नृत्य करता एवा , दरवाण जेमां, आपत्तिने नाश कनार, जेमां जलनी नरेली जारीयो मूकी, जेमां घणा शृंगारो पहेराय ,घणुं इव्य जेमां खरचाय ,जेमां दुःखीयाजनोनो निस्तार थाय उ, ए, पुत्र वपिन कराव्यु. अर्थात् ते राजायें महोटा श्रा मंबरथी पुत्रजन्म महोत्सव कराव्यो. तदनंतर ते पुत्र ज्यारें राणीने गर्न मां रह्यो, त्यारे राणीयें स्वप्नने विपे पद्मसरोवर दीतुं हतुं, ते स्वप्नना अनुसारें पुत्रनुं नाम " पद्मोत्तर” पाडयुं. हवे पांच धाव्य मातायें पालन कस्यो थको ते पुत्र, प्रतिदिन अनुक्रमें वधवा लाग्यो. अने ते कलाकुशन, दयादाक्षिण्य, ज्ञानवान्, सौम्यमूर्ति, सऊनप्रिय, शांत अने दांत थयो. वली ते कुमारने मद्य, मांस, परस्त्रीगमन, द्यूत अने चोरी, ते पांच महोटां व्यसनोनी तो वात पण गमती नथी. हवे तेनो पिता जे , ते वैदिककर्म निष्ठावान , ते थीते प्रतिदिन ब्राह्मणोने बोलावी, तेन्ने पोतानी पासें मानपुरःसर बेसारी वेदधर्मनी वातो करावे . या प्रमाणे पोतानो पिता मिथात्वी जे एम जाणी तेनी पासें कुमारने जवू पण गमतुं नथी, परंतु ते विचार करे , के जो ढुं मारा पितापासें नहिं जावं, तो तेने फुःख लागशे? एम जाणी तेनी पासें जाय अने त्यां धिकृत जन्मवा ला, ब्राह्मणोनी करेली परमार्थ शून्य, जूनां कल्पितशास्त्रोनी कथाउथी नहे ग पामी मनमां विचार करे ले के अरे ! आ मारो पिता साव मिथ्यात्वग्र हग्रहीत थ गयो , तेने दुं ते मिथ्यात्वथी केवी रीतें मुक्त करूं ? हा, ए क उपाय जे खरो, के हाल जो तेने सगुरुसामग्रि मले, तो ते जिनधर्मने पामे ? केम के कोई खाडा खडियालो मणि होय, तो ते मणि, मणिकार ना करेला संस्कार विना बीजा को पण उपायें निर्मल थातो नथी. हवे ते सूरसेन राजानी स्त्री मुक्तावलीनो जीव जे प्रथम ग्रेवेयकें देवता थयो हतो, ते क्यां अवतस्यो ? ते कहे . के वैताढय पर्वतमा दक्षिण श्रेणि ने विषे सार्वनौमपुर नामा एक नगर . ते नगरनो प्रतापें करी सूर्य स Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मान, उत्तम एवा विद्याधरना कुलने विषे उत्पन्न थयेलो तरवेग नामा राजा बे. तेनी कमलसमान सुकोमल, कलाकलायें करी संपन्न, देवनी स्त्री समान, कमलमाला नामनी एक राणी बे. तेनी कुद्दिरूप गुहाने विषे सूरसेन ननी स्त्री मुक्तावली राणीनो जीव जे प्रथम ग्रैवेयकमां देव थयो हतो, ते त्यांथी चवीने केसरीना बच्चानी पठें याव्यो. ज्यारें ते गर्नमां याव्यो. त्यारे ते राणीयें स्वप्ने विषे सिंहना बच्चाने जोयो, ते जोइने तुरत जागी गइने ते स्वप्ननी वात पोताना स्वामीने कही बतावी. ते सांजनी ते नो स्वामी कहेवा लाग्यो के हे प्रिये ! तमें स्वप्नामां सिंहनो शिशु जो यो ले, तेथी तमारे सिंहना शिशु जेवो प्रतापी पुत्र उत्पन्न थाशे ! ते सांजली मुदितमन थर थकी राणी गर्ननुं पोषण करवा लागी पढी ते राणीयें संपूर्णतें सुशोनित दिवसमां शुन एवा नक्षत्र मुहूर्त्त वेलाने विषे महोटा तेजें करी प्रकाशित एवा पुत्रने, प्राची दिशा जेम सूर्यने उत्पन्न करे, तेम उत्पन्न कस्यो. त्याऐं तरवेग राजायें पुत्रनो महोटो जन्म महोत्सव कराव्या. अने ते पुत्र गर्भमा रह्या वखतें तेमनी मातायें स्व प्रम सिंहनो शिशु जोयो हतो, तदनुसारें सुहननी साहीयें तेनुं " ह रिवेग नाम पाड्यं ते पुत्र त्यांनी खेचरीयोयें रमाड्यो थको महोटो थयो, तेम ते पुत्रे सहिद्यानो अन्यास पण कस्यो पढी ते, मानिनीना म नने स्तंजन करनार एवा यौवनारंजने प्राप्त थयो. एवा वसरने विषे मथुरा नगरीमां कोइ एक चंध्वज नामा राजा राज्य करे . तेने वे स्त्रीयो बे. तेमां एकनुं नाम चंमती ने बीजीनुं नाम सूर्यमती . ते बेदु जीयोने एकेक पुत्री यइ . तेमां एकनुं नाम शशिलेखा ने बीजीनुं नाम सूर्यलेखा बे. ते बेदु कन्याने यौवनथी अने धनी अनुरूप एवा वरनी प्राप्तिने माटें तेना पितायें स्वयंवरमंरुप रचाव्यो ने ते स्वयंवर वास्ते देशांतरना राजानेना पुत्रोने बोलावा माटें जुदे जुदे ठेकाणे दूतो मोकल्या. ते सर्व दूतोमां कोइएक मुखप्रिय नामा दूत हतो, तेने गर्जनपुरमा मोकल्यो, ते त्यां यावी पद्मोत्तर कुमारना पिता सुरपति राजाने प्रणाम करी योग्य समय जोइने विनति करी कहेवा लाग्यो. के हे देव ! मथुरा नगरीनो चंध्वज एवे नामे राजा बे, तेणे मारी साथै क raj बे, " के मारे त्यां शशिलेखा ने सूर्यलेखानामा बे कन्याउने, Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. Gg तेने माटे में स्वयंवर मंमप करेलो बे, तो तेमां में महोटा महोटा राजकुं वरोने तेडवा माटे दूतो मोकलेला बे. तेथी ते सर्वराजकुमारो श्रावशे. मा टे तमारा पुत्रने पण मोकलो. कारण के तमारो जे पुत्र बे, तेनां रूप त या गुणसमूहनां गीतो, सर्वत्र गुणी जनो गायाज करे बे. ते सांनजी ए दूतने में तेडवा माटे मोकलेलो बे. माटे ते नाग्यशाली पुत्र, याहिं प्रावी पोताना सौभाग्यरूप वजें करी बीजा प्रौढ राजाना महोटा गर्वरूप पर्व मारी बेदु कन्याने वरे. अने तेम थवाश्री मने पण घणोज हर्ष नृत्पन्न था ? बली या स्वयंवर मंरुपमां रूप तथा पराक्रमज जोवाशे एटलुंज नयी, परंतु तेमां ते राजकुमारना नाग्यनी पण परीक्षा थाो ? जैम के रणने विषे शोर्यथको तथा स्वयंवर मंरुपने विषे पराक्रमें करी कन्योपजच्धी छत्रिय पुरुषना पुण्यनी परीक्षा याय ते. तेमाटें है प्रनो ! यहीं लग्नने दिवसें जलदी तमारा पुत्रने मोकलो. " या प्रमाणें चंदध्वज राजायें मारी सायें कहेंवरात्र्युं छे. ते वाक्य सांगली प्रफुल्लित जेनुं मुख थयुं ने एवा राजायें ते वात कबूल करी. पी पोताना पद्मोत्तरनामा पुत्रने बोलावीने तेने चंदध्वज राजाना दू तना मुखथी जे वात सांजली हती ते सर्व कही बतावी, ते सांजली पद्मोत्तर कुमार, उत्तम दिवसने विषे त्यांथी प्रयाण करी चाल्यो. पोतानी सेनाना चालवाथी नडती एवी रजोयें करी आकाशने ढांकतो, वनवनने विषे विश्राम बेतो, प्रतिसरोवरें क्रीडा करतो, एवो ते पद्मोत्तर कुमार, गामगामने विषे मान पामतो पर्वत पर्वतने विषे चडतो, अनुक्रमें पोताना देशनुं उल्लंघन करी महोदय नामक एक तापसाश्रम हतो, त्यां प्राव्यो. त्यां नाजियेरी, खजु री, शकुना मंमपो, नागवल्ली, नारंगीना वृक्ष, सोपारीना वृक्ष अने यात्र ना वृक्ष, तेणें करी शोभायमान एवा स्थलने तथा तत्रत्य लोकोयें अनि मां होमेला सवयी उत्पन्न थयेला धूमयी धूसरित श्राकाशने जोड़ने ते कुमार, पूढवा लाग्यो के हो तपस्वीयो ! या तमो रहो बो, ते याश्रमनुं नाम गुंबे ? त्यारे ते तपस्वीयोयें कह्युं के या मारुं तपस्विजनोनुं तपोवन बे, ने महोदय एवं नाम ते. याहिं सर्वजीव पर दयावान, ब्रह्मचर्यव्रतथकी उत्त म, महानुभाववाला, रंनपरिग्रहथकी रहित, शस्त्रधारण कर्म व्यापार वगेरे कार्यथी मुक्त, कंद ने फल तेनुंज जोजन करनारा ति कारुणिक एवा त Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១០០ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. पस्वीयो रहे ले. ए सांजली कुमार, पोताना सैन्यना माणसोने कहे , के हे सैनिको ! तमो या सर्व महर्षियोने को रीतें उपश्व न थाय, तेवी रीतें अश्ववगेरें वाहनोने बांधी यथावकाश निवास करो. अने हुँ तो या तपो धन एवा तपस्वीजनोना चरणतुं पूजन करी पाप तापने टालवा इच्चें बु. पडी सैन्यना जनोयें कुमारना कहेवा प्रमाणे त्यां निवास करयो. त्यार पनी कृतकृत्य एवो ते कुमार, ते तपस्वीनाआश्रममांगयो. त्यां केटला एक माथा पर जटाने धारण करनारा, वल्कल वस्त्रने पहेरनारा, सूर्यसामा वे हाए करी नना रहेला एवा १६ तपस्वीयो बेग हता तेनां दर्शन कस्यां तथा पद्मास नथी बेठेला, सूका काष्ठोथी देदीप्यमान, अनिने तृप्त करता, दोना क्या रामां जलने वालता एवा कुमारतापसोनां पण दर्शन कस्या. पडी अनुक्रमें घासना कुबामां दर्नना आसन पर बेठेला, निर्मल मुखवाला, परमशांतमूर्ति मान् एवा ते तपस्वीना कुलपतिनां दर्शन करयां.ते करीने कुमारे तेने नमस्कार कस्यो. त्यारे कुलपति पण धर्माशिष यापीने ते पद्मोत्तर कुमारने पोतानी पासें वेसास्यो. अने तेनां नाम, गोत्र वगेरे पूड़यां, त्यारे कुमारे तेने पोता नां नाम, गोत्र, वगेरे सर्व कही आप्यां. ते सांजली कुलपति कहे जे, के श्राप नत्तम एवा राजकुलमा उत्पन्न थयेला होवाथी मोहोटा मागस डो? माटे अम लोकोने आतिथ्य तथा अर्घदान करवा योग्य बो. एम कहीने पोतानी पर्णकूटीमांथी एक अत्यंत स्वरूपवाली कन्याने बोलावी अने तेने ते कुमारनी आगल उनी राखी, वली ते राजकुमारने योग्य एवां वस्त्रान रणादिको पण पर्णकूटीमाथी मगावी, कुमारनी आगल मूक्यां, अने कह्यु के हे चतुराश्रमी जीवोना गुरु ! तमो अमारा अतिथि बो, तेथी तमाळं यातिथ्य करवा माटे मारा प्राणथी पण वन्नन अने राजाधिराजने योग्य एवी था कन्याने, तथा तमारी पासें मूकेला वस्त्रानरणादिकोने पण अंगीकार करी अमारा मनने अाव्हाद करो. अने तमो सुकुलीन तथा गुरुनक्त बो, तेथी अस्मर्गनी प्रार्थना नंगमां जीरुज हशो ? तेथी अमोयें आपवा धारेली कन्यानो तथा वस्त्र मुकुट वगेरेनो स्वीकार करो. हवे कुमार ते सर्व वात तो सांजली, पण ते कन्याने जोइने विस्मय पामी गयो. अने विचारवा लाग्यो के अरे! आ ते गुं नारी दशे ? के आते \ मूर्तिमती चंचंडिकाज हो ! के आ ते गुं चांचव्य बोडी उनी Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नए थइ रहेली लक्ष्मी हशे? के सुरेंना शापथकी नूमिपर थावेली को देवांगना हशे ? के था ते झुं पातालथकी निकलेली नागकन्या हो ? थ हो! यावी था अत्यंत रूपवती कन्या ते कोण हशे? कदाचित् हाल में नत्प्रेक्षा करेली स्त्रीयोमाथी जो था कन्या न होय, तो सर्वजनोनो त्याग करी एकांतवनमा पर्णकूटी करी रहेला धातपस्वी मुनि पासें ते क्याथी होय? एवीरीतें चित्तमां चिंतवीने कुमार कहे जे. के हे जगवन् ! सर्वथा सर्वना संगने त्याग करनारा, ब्रह्मचारी, वनमा रहेनार, एवा आपनी पासें यावी अतिरूपवती कन्या क्यांथीयावी? कारण के आ में कह्यां एवां कारणोथी तो आपनी पासें आवी कन्या होवानो सर्वथा संनव नथी. तेथीथा अघटित घटना थइ . ते जोश्ने मारा मनने महोटुं आश्चर्य उत्पन्न थाय बे ? मा टे रुपा करी या कन्या, आपनी पासें क्यांथी यावी ? ते सर्व हकीगत कही संननावो.ते सांजली तापस कुलपति ते कन्यानी नत्पत्ति वगेरेनी सर्व बिना कहेवा लाग्या. के हे राजकुमार! जे कार्य,अनेक युक्तियोने करवे करी जीव थीनथी बनतुं,ते कार्य कोक कर्मयोगें प्रयास विना एनीज मेलें बनी जाय . जुन.के जेनो आपणे सदा संयोग इलिये बैयें, तो तेनो आपणथी वियोग थ जाय . तथा वली जेनो आपणे सदा वियोग इलिये बैयें, तो तेनो कर्मयो गथी संयोग थइ जाय . माटें कर्मयोगमां कोस्नु माहापण चालतुं नथी. यतः॥ वित्त्वा पाशमपास्य कूटरचनां नंका बलाहागुरां, पर्यताग्निशि खाकलापजटिलानिर्गत्य दूरं वनात् ॥ व्याधानां शरगौरवादतिजवेनो त्लुत्य धावन्मृगः, कूपांतः पतितः करोति विमुखे किं वा विधौ पौरु पम् ॥ १ ॥ अर्थः-कोइ एक मृग हतो, ते प्रथम तो पाराधीना करेला पाशमां पज्यो, त्यांथी ते पाशलाने बेदीने नीकली गयो. त्यां पालो कोइ एक बीजा पाराधिनी करेली कूटरचनामां थावी पज्यो, तेमांथी पण कांक युक्ति करी नीकलीने लाग्यो, त्यां अकस्मात् मृग बांधनारायें करेली जालमां थावी फस्यो, तेमांथी पण बल करी महाप्रयासें नीकली एकदम नागी वनमां याव्यो, त्यां ते वनमा दावाग्नि लागवाथी दुःखित थइ पलायन थयो, त्यां पण मृगोने मारवा माटे उना रहेला पाराधियोनां बाणो बुटवा लाग्यां, तो तेमांथी पण महत्कटें करी जीव लश्ने लाग्यो, तो ते मृग, कर्मना योगथी अचानक एक मा कूवामां पडी मरण पा Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए जेनकथा रत्नकोप नाग सातमा. म्यो. माटें ज्यारे जे जीवनुं दैवज प्रतिकूल होय , त्यारे तेमां तेनो तया कोनो काही उपाय चालतोज नथी. तो पण हे राजकुमार ! था कन्या क्यांथी मारी पासें यावी ? ए जे पूज्यु, तेनुं वृत्तांत ढुं कहूं, ते सांजलो. ___ उत्तरापंथने विपे इव्यना पें करी सुगंधमय सुरनिपुरनामा एक नगर जे. तेमां प्रजारूप लतापर वसंत समान वसंतराजा राज्य करे . ते राजाने शीलरूप सुगंधोयें करी सुवासित पुष्पमालानामा राणी जेमा मुख्य ने एवी घणीक स्त्रीयो ने. ते राजा अनेक मांमलिक रा जाने जीतीने पोताना प्रौढ प्रतापें करी राज्य करे . ते राजाने पांच पुत्रनी नपर, रूपें करी मनोहर तथा गुणयुक्त एवी गुणमाला नामा एक कन्या , ते कन्या तेनां माता पिताने एकज एक होवाथी घणी वल्लन जे. हवे ते ज्यारे युवावस्थाने प्राप्त थइ, त्यारे तेनो विवाह करवाने माटे माता पिता नद्युक्त थयां, परंतु ते प्राणवलन एवी ते कन्याना विरहने सह न करवाने अशक्त होवाथी विवाह करवानो विचार करी वेसी रहे ले. हवे लावण्यगुण युक्त ते गुणमाला कन्याने तेनी सखीयो विवाह माटे वारंवार नपदेश कया करे ले, तथापि ते पण गुरुनक्तिमां प्रीतिमती होवाथी विवा हने बतीज नथी. वली मकरंदने विपे लुब्ध एवा भ्रमरा जेम केतकी वनमा आवे, तेम ते कन्याने वरवा माटे घणाक राजा त्यां आवे , पण ते वसंत राजा, कोइने परणावतो नथी. एकदा त्यां बहुसैन्ये युक्त, गु गवान् अने रूपवान् एवो चंपापुरीना राजानो गुककुमार नामा पुत्र आव्यो. तेने वसंतराजायें घणुं मान प्राप्युं. पली त्यां यौवनावस्थाने प्राप्त थ एवी ते गुणमाला कुंवरीने जोश्ने, व संतराजाना मंत्री साईं ते शुककुमारें नक्तिथी तथा युक्तिथी ते वसंतराजाने कहेवराव्युं, के “हे स्वामिन् ! सुंदर, मिष्ट अने प्राशरदक, एवं जे रांधेद्धं अन्न होय, तेने माह्यो पुरुष, घरमां केटलाक दिवस राखे ? एम कर तां जो जाजा दिवस राखे, तो ते अंतें मुर्गध मारी जाय अने पड़ी तेने रस्तामां फेंकी देवु पडे. तेम ए कन्या तमने घणीज वहाली ले तथा ते चतुर , वली तेनो विरह तमाराथी घडी एक खमाय तेम नथी, तोपण तेने युवावस्था प्राप्त थ दे, माटे तेने परणाव्या विना राखवी, ए योग्य नथी. जो तमें ते कन्याने घणो वखत परणाव्या विनाज राखशो, तो चं Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २१ किरण समान तमारा उज्ज्वल कुलने जरूर कलंकित करशो. वली पुत्री उपरना स्नेहनुं फल ? के, सुंदर ते पुत्रीने अने रोग्य एवा वरने था पवी, तेज ले. माटे जो तमारो ते कन्याने कोश्नी पण साथे परणावानो विचार होय, तो चंपापुरी पतिनो पुत्र गुककुमार नामा ढुं हाल तमारा नगरमां आवेलो बुं, तो ते कन्या मने पवी उचित ले. कारण के हुँ जेवो तमने रूपथी, धनथी, प्रतापथी, अने कुलथी समान, उत्तम वर मलशे नहिं.” या प्रकारनां ते शुककुमार कहेवरावेला नीतियुक्त संदेशाथी ते शु ६ स्वनाववालो राजा समजीने कहेवा लाग्यो के हे प्रधान ! तेणें कहे वरावेली वात वधी खरी, तेथी तमो तेने जश्ने कहो, के " हे शुक कुमार! घणा राजा, प्रामारी कन्याने वरवा माटे आव्या हता, पण त मारा पुण्य प्रेरेला एवा में कोइने आज दिवस सुधी आपीज नहिं. अने ते सर्वे राजा निराश थइ जेवा अाव्या हता तेवाज पाला गया ले. जेम कोइ कृपण पुरुप, पोतानी लक्ष्मीन कोइक पुग्यशाली जीवमाटे राखी मूके डे, तेम में पण तमारी माटेंज या मनोहर कन्या राखी मूकी होय? एम लागे ने. माटें दूरथी आवेला, अति स्नेहवाला, एवा तमने ते कन्या अमो आपरां. तेथी हाल पुण्यथी उपलब्ध थयेनी या कन्याने वरो. परंतु तमारी साथै प्रथमथी अमें एटली बोली करीयें यें के, ज्यां पर्यंत या अमारी कन्या ने संतान न थाय, त्यां पर्यंत तमारे तथा अमारी कन्याने अमारे घेरज रहेई पडशे !” ए सर्व वात मंत्रीयें जश्ने शुककुमारने कही. ते सर्व वात क बल करी. वलीज्यां पर्यंत संतान न थाय, त्यां पर्यंत आहिंज रहे,, ते पण कन्याना रूपथी मोह पामेला गुककुमारे कबुल कयुं. पनी वसंतराजायें गुनलम जोवरावी ते कन्याने शुककुमार साथे परणावी दीधी. पड़ी लग्न करयां पहेलां बोलीथी बंधायेला ते कुमारने, पोताना ससा रानेज घेर मनोहर हवेलीमां ते गुणमाला स्त्री साथें क्रीडा करतां केटलोक काल व्यतीत थ गयो. हवे चश्मामां जेम कलंकरूप दूषण , तथा समु इमां जेम लवणरूप दूपण से, तेमज स्थैर्य, गांजीय, दाक्षिण्यादिक गुणो थी युक्त एवा ते शुक कुमारमां महापापकारी एक मृगया रमवानुं महोटुं दूषण हतुं, तेथी ते व्यसनमाटे प्रतिदिन दूर वनमां जाय , अने त्यां जश्ने वाराह, शश, शंबर वगेरे अनेक पंचेंघिय जीवोनी हिंसा करे बे. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श‍ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. एम वसंतराजायें ष्टकर्मासक्त ययेला ते शुककुमारने जो उपदेश देवा माटें वाक्पटुतामां निपुण एवा एक सुमुख नामा नहने मोकल्यो. ते नि पुण जट्ट तेनी पासें श्रावीने यवकाश जोडने कहेवा लाग्यो के हे स्वामि न् ! या खाप मृगया रमवाना मिपथी जे जीवहिंसा करो बो, ते ठीक करता नथी. कारण के ते हिंसासमान बीजुं लङ्कास्पद कोइ पण कर्म नथी. वली बीचारा दीन, प्रमत्त, नययी जागता एवा जीवोने जे मारवा, ते कां छत्रिय जननो चार ले ? ॥ यतः ॥ यत्पृष्ठिं ददतां सदैव वद ने, दीनं तृणं गृह्णतां श्रात्मीयं शरणं स्वयं श्रितवतां शस्त्रं न वा बिज्रता म् ॥ जंतूनां क्रियतेऽप्यथो बहुविधैरप्यायुधैर्निदर्य, कोयं क्षत्रियवंशधर्म इह जो स्वामिन् त्वया पाव्यते ॥ १ ॥ अर्थ:- जे पोतानो ष्टष्ठ नाग देखाडी जागता, जे निरंतर मुखपर ग्लानिने, तथा मुखमां तृणने धारण करता, आपणाज शरणने बता, शस्त्र धारण रहित, एवा प्राणीयोने, आयुधोयें करी निर्दय एवा हिंसकजननी पेठें जे तमें हणो हो, तो तेमां ते चत्रियवंशनो धर्म कयो पालो बो? अर्थात् तेवा कर्म थी तो त्रियवंशनो धर्म नवेद य३ जाय बे. वली हे स्वामिन् ! परप्राणने पीडा करनार, तथा तेनां प्राणो जेनार प्राणीने, अनेक प्रकारना व्याधिनी वेदना, तथा वारंवार अकालमरण, प्रिय जनना विरहानिय दाहपएं, गर्भमां यावी बे महिने ते गर्जनुं पात पणुं, बालपणमांज नाशपणुं, नवोजव नसंतानपणा वगेरे दुःखने प्राप्त थाय बेने हे कुमार ! खाप जुने तो खरा, के जेने मारे ते प्राणीना तो प्राण जाय बे, नेते मारनार धणी खुशी थाय बे, तो तेवी रीतें खुशी थनार प्राणी केवो मूर्ख कहेवाय ? जेम कोइ एक मनुष्यनी रात्रे माढी बली, तो हवे ते माढी बननार मनुष्यनी साथै रहेनारो एक मूर्ख हतो, ते विचा रवा लाग्यो के या तो ठीक थयुं, केम के ? मारे घरमाथी अंधारुं मटाडवा दीवो करवो हतो, ते न करवो पडतां अजवानुं ययुं, माटें या प्रमाणें जो रात्रे सहु कोइनी माढीयोज सलगती होय, तो हुं जेवा मालासने थोडी वार दीवो करवानी तो खटपट मटे? तेम जीवहिंसा करी खुशी था बे, ते पूर्वोक्त मूर्खजन जेवाज जालवा. खने वली मृगवगेरे पशुने मारनारा जे व्याध लोको बे, ते हे कुमार ! या लोकने विषे पण नूख, तृषा, टाढ, तडको, तेने हसन करनारा, विवस्त्र, जांगी गया बे गूमा जेना, Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ए३ अने घासनी थणीयोयें त्रोपाइ गयां अंगो जेनां एवा उःखी थया थ का वनने विषे प्रतिदिन नम्याज करे , तो पण तेनी परिपूर्णरीतें उदर पूर्ति पण थाती नथी. अने ते पाबा पण तेवीतेवीज उर्गतिने विषे उत्पन्न थाय . ए माटें बुध्धिमान एवा हे शुककुमार ! तमारे कौतुकथी पण पा पनी पेटीरूप मृगया तो रमवीज नहिं ? वली एवो ते कोण मूर्ख होय के कौतुकथी पण आपत्तिनी पेटी समान मृगया रमवामां आसक्त थाय ? याप्रकारनो ते नट्टनो कहेलो उपदेश सांजलीने तेणें जाएयु जे ते नहें कडं ते सर्व खोटुंज केम के डे, ने मृगया रमवामां का दत्रियने दोपज नथी. पण ढुं आहिं ज्यां सुधी रहीश, त्यां सुधी मृगया नहिं रमुं! कारण के मारा ससराने फुःख लागे ! अने आहिंथी निकट्या पड़ी तो मृगया रमुं, तो मने कोण कहे एम! तथा पुःख पण कोने लागे एम ! माटें आहिंथी बाहा र जश्ने मृगया रमीश ! एम विचारी ते गुककुमार उपदेशक नट्टने तथा पोताना ससरा वसंतराजाने सारू लगाडवा माटें उपरथी देखाडवा मात्र मृ गया रमवी बोडी दीधी. एवा समयमा झुं बन्युं ? के त्यां ते गुककुमारनेज बोलावा माटे तेना पितायें मोकलेला माणासो आव्यां, अने तेयें कह्यु के आपने अाहिं घणा दिवस थया, माटे आपना पितायें जलदी बोलावेना बे. ते सांजली शुककुमार पोताना ससरा वसंतराजापासें प्राव्यो भने तेने कहेवा लाग्यो के हवे मुने आहिं आपना नगरमां आव्यां घणा दिवस थइ गया , तेथी मारा पितायें तेडवा माटे माणासो मोक जेला बे, ते माटे मने अाहिंथी सस्त्रीक जवा माटें आझा आपो. ते सानली राजायें विचायुं जे आपणे आ जामाता साथें तेराव करेलो ने, जे अमारी दिकरीने कां पण ज्यारें संतान थाय, त्यारे तमने बेतुने तमारे गाम जवानी रजा आपवी, तो तेने कांश हजी संतान तो थयुं नथी माटे केम रजा आपाय ? पण हुँ तपास तो करूं जे ते कन्याने हाल गर्न तो नथी, जो गर्न होय, तो रजा आपियें. एम विचार करी तेनो तपास करावतां मालम पडयुं जे पोतानी दीकरी हालमा सगर्ना ले. एम जाणी ते दंपतीने जवानी रजा आपी. पनी उत्तम एवा मुहूर्त्तने विषे ते शुक कुमार पोताना तथा ससरायें मापेला मोहोटा सैन्य सहित ज्यारे त्यांची चाल्यो, त्यारे थोडेक दूर Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रनकोष नाग सातमो. तेना ससरा वगेरे सर्व वलावा अाव्यां. बपी अनुक्रमें आ अमारा आश्रम पर्यत यावी, आहिंथी जरा दूर मेरा नावीने रह्यो. तेवामां तो तेणे स्ववं दताथी फरता एवा अनेक प्रकारना वनेचर पशुनने दीठा, ते जोड्ने तेणें विचास्युं जे अहो! पाहिं केवा मजानां वनेचर पशु ? अने अाहीं कोई ना कहे, तेम पण नथी, वली एटला दिवस तो एम बीक हती के जो ढुं मृगया रमीश, तो मारा ससराने फुःख लागशे, ते पण हाल नथी तो हवे आही स्वेवाप्रमाणे मृगया रमुंश ? एम विचारी मृगयाना बदमां पडेलो ते कुमार. ते जीवोने मारवा तत्पर थयो॥ यतः॥ तं द्यूतकरः सुरां प्रिय सुरः कामातुरः कामिनी, मांसाशी पिशितं खगोपि कुणपं शून्यं धनं तस्क रः ॥ कांतारं च बनेचरान विचरतो दृष्ट्वा तु पापईिमा, नान्मानं च व शीकरोति नुवि कश्चात्यंतमुत्कंतितः ॥ १ ॥ अर्थः-जुगारी जन जुगारने, सुरापान करनार मनुष्य, मदिराने, कामातुर पुरुप, कामिनीने, मांसाशी नर, मांसने, मांसाशी पदी पण मांसने, तस्कर प्राणी, शून्यधनने अने मृ गयासक्त एवो पापिष्ट जीव, वननेविषे स्वहंदताथी फरता वनेचरने जो ने नत्कंठित एवा थका आ पृथवीने विपे पोताना मनने वश करी शकता नथी. कवि कहे , के जे कार्यमा जेने प्रीति होय अने वली पाडं ते कार्यनुं तेने ज्यारे साहित्य मले, त्यारे ते केम खुशी थाय नहिं ? ना थायज. माटें तेने त्यां मृगया रमवानी सामग्री मलवाथी ते खुशी थयो. थने वली पण जाएयु जे या स्थलमां दुं हवे घणाक दिवस रहिश ? का रण के आवी मृगया रमवानी सामग्री मने बीजे ठेकाणे मलवी उर्जन ले ? एम जाणी प्रथम जे पोताना मेरा नाख्या हता, तेने पाना मजबूत ना खीने तेणें त्यां शांतवृत्तिथी रहेवा तेराव कस्यो. पडी उंचा अने महोटा एवा एक अश्वपर बेसी पापईिक एवो ते कुमार, मृगवगेरेने मारवा माटे अत्युत्सुक थइ चाल्यो. ते अरण्यमां आव्यो, त्यां प्रथम दूरथी तेणें विश्वसित चित्तवाला, निरपराधी, निर्नय तथा स्वस्थम नथी नचला सूकरोने जोया.जोइने मनमां विचारवा लाग्यो के हवे हुँ जलदी ते बधा सूकरोने मारी ना ? हाल जो ढुं बीजुं बाडु अवलुं कां पण काम करीश तो ते सर्व सूकरो नागी जाशे, तो मारुं सर्व मृगयानुं सुख चाव्युं जाशे ? एम विचारी पोताना घोडाने वेगथी एकदम दोडाव्यो, त्यां दोडतां Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २एय दोडतां रस्तामां तृणोथी आबादित थयेलो एक मोखांमो आव्यो, ते खाडा मां घणीज जडफथी दोडतो एवो ते कुमारनो घोडो अचानक पडी गयो. तेमां पडतांज ते घोडानी साथे पडेला शुककुमारने त्यां पेटमा एक अ गीदार लाकडानो खांपो हतो, ते पेसी गयो, ते एवो पेठो के ते तेनुं पे ट फोडीने पळवाडे चार थांगल बाहार निकल्यो. त्यां तो तेनी पनवाडे धीरे धीरे घोडापर बेसी चाल्या आवता एवा तेना अनुचरोयें ते गुककुमारने घोडा सहित खाडामां पडतां जोयो. जोश्ने ते सदु कुःखथी एकदम बोली मया के हाय, हाय ! ! ! जूंझू थयु. कुंवर, घोडासहित वं मा खामामां पडि गया, हवे तेनो केम बचाव थाशे! तेम विचारी ते सर्वे तूर्णताथी त्यां श्राव्या, अने जलदी ते कुंवरने खामामांथी बाहार काढयो अने काढीने ज्यां जुवे बे, त्यां तो लाकडानो अणीदार खांपो वा गवाथी जेनुं पेट फुटी गयुं वे तथा जेना पेटमाथी अांतरडा पण निकली गयां ने एवा ते कुमारने जोयो. पड़ी तेने एमने एम एक पालखीमा ना रवीने तंबूमां पाण्यो. त्यां घणीज वेदनाने प्राप्त थयो. ते जोक्ने तेनां सुज्ञ एवा माणसोयें विचार कस्यो के, अरे! था राजकुमरनां माता पिता तो घणांज दूर ठे, तेथी ते कांई बोलाव्यां जलदी हिं यावी शके एम नथी, परंतु तेना ससरानुं गाम थाहिं नजिकमां ने, माटे तेना सासु सस राने आपणे बोलावी लहियें, तो ठीक कहेवाय! एम विचार करीने तेमनां सासु ससराने तेडवा माटे कोश्क माणसने मोकल्यां, तेणें एकदम त्यां यावीने कुंवरने वागवा वगेरे जे कांश हकिगत बनी हती, ते सर्व कहि बतावी. ते सांनती अत्यंत खेद पामी रुदन करतां तथा क्लेश करतां तेनां सासु अने ससरो घणाक माणासोने लही त्यां याव्यां. अने यावीने ज्यां जुवे , त्यां तो महावेदना ग्रस्त अति उःखित एवा पोताना जमाइने दीतो अने बोलावा ममियो पण ते बेजान होवाथी कां पण बोलीज शक्यो नहिं. पली वेत्रण दिवस सुधी मोहोटी मांदगी जोगवीने ते मरणशरण थइ गयो. त्यारें तो तेनां सासु, ससरो तथा ते कुमारना माणासो वगेरे सर्व कालो कल्पांत करवा लाग्यां. अने ते शुककुमारना शबने बालवा माटे काष्ठनी चिता करी. तेमां तेने सुवायुं. ते जोश कुमा रनी स्त्री जे गुणमाला हती, ते पोताना पति साथै सती थ६ बलवा तैय्यार Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. थर, त्यारें अत्यंत मुखें करी रुदन करतां ते गुणमालानां माता पितायें तेने पकडी राखी, उपदेश देवा मांमयो. के हे बेहेन ! जो ॥ श्लोक ॥ यात्म घातसमं पापं, न नूतं न नविष्यति ॥ तस्मान्न हि त्वया कार्य, कष्टमज्ञा नसंनवम् ॥ १ ॥ अर्थः-थात्महत्या समान बीजुं को पाप थयुं नथी, अने थाशे पण नहिं ? ते माटे तारे ते चितामां बली यात्मघात रूप पाप करवु योग्य नथी. अने थग्निमां बली मरवू, ते समजण तो अज्ञानीज नोनीज बे, तेथी ते काम, ज्ञानी मनुष्यने तो करवा लायक बेज नही. कोइ पण बुद्धिमती सती स्त्री,हजी सूधी पोताना स्वामीनी साथै चितामा बली नथी. ते जेम के, प्रश्रम तो रामचंनी साथै सती सीता, बीजी रावणनी साथे सती मंदोदरी, त्रीजी उर्योधननी साथें नानुमती सती, चोथी श्रीकृष्ण साथें तेनी स्त्रीयो, पांचमी तेना नाइनी माथे तेनी स्त्रीयो बली नथी. माटे हे पुत्रि ! पोताना स्वामी साथै चितामां पडी बली मरवु, ते हालनी स्त्रीयोयेंज उत्पन्न कयुं . अने वली हे बहेन ! प्राची न इतिहास पुराणोमां पण सती स्त्रीने पोताना पुरुष साथै चितामा ब ली मारवानो निपेध करेलो . ते सांनती गुणमाला एकदम निराश थ ने घणुंज रुदन करवा लागी, के हा वनन ! हा प्राणनाथ !! मने मूकीने आप क्यां जता रह्या !!! अरे ! था महाघोर अरण्यमां एकली अनाथ एवी मने बोडीने आप क्यां गया बो ? अरे ! गुणवान् एवा थाप विनानी विधवा थयेली हुँ हवे मारी सहवासी सखीयोने झुं मुख देखाडीश! या प्रकारे अत्यंत बाती फाटे तेवी रीतें रोती अने पोताना मस्तकने अने हृदयने कूटती एवी ते गुणमालाने जोक्ने माता पिता घणांज खेद पाम्यां, अने रुदन करवा लाग्यां. पडी ते कन्याने खेद मट वा माटे घणीज समजावी, तो पण ज्यारे ते जरा पण समजी नहिं, त्यारे हे पद्मोत्तर कुमार ! तेना माता पितायें जाण्यु जे अत्यंत दुःखमां पडेली या पुत्री आपणुं कर्तुं मानशे नहिं माटे आहिं निकट रहेला ए वा कोई एक तपस्वी पासें लइ जाइये, अने ते तेने कांक सामजावशे, तो तेना जीवने शांति थाशे ? एम जाणी तेनां माता पिता तेने तेडीयाहिं आव्यां, धने बनेली सर्व हकिगत कही थापी, ते सांजली ते त्रणे ज गने कुःखीयां जाणी ते वसंतराजाना उद्देशे उपदेश देवा मांमयो के Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. श हे राजन् ! नयानक एवा आ संसारने विषे रहेनाराजीवोने मृत्युनो नय तो सदा सर्वदा मटतोज नथी अने सगां वहालांनो जे संयोग , ते पण जोतां जोतांमां नाश पामी जाय थने तेनो वियोग थया विना रहेतोज नथी. कारण के कर्मने वश पडेला प्राणीयो पोताना कर्मानुसारें अवतरे ले, तथा मरण पण पामे . तेमां पण जगतमांजेनी उपर बापणने घणोज स्नेह होय, ते थापणी सार्थेज जो मरता होय,तो तोव नहिं. पण तेम तो कर्मरूप जलप्रवाहमां पडेला जीवोनुं बनतुंज नथी माटें संसारमा पडेला जी वोना स्नेहनो तो त्याग करवोज उचित . वली आ संसारमा पंचेंडियना जे नोगो , ते पण माननी अणी पर रहेला जलबिंनी समान अस्थिर डे अने वली रोग, अने शोक रात्रि दिवस मनुष्यने बाट्याज करे . माटें ज्ञानीजनें तो धावा फुःखदायक संसारमा आसक्त थावं योग्यज नथी. हा, आ संसारमा रहिने जे जीव, पुण्योपार्जन करे, तथा स्वजन जननो स्नेह बोडी तपोलक्ष्मी साथे पोताना देहनी योजना करे अने सांसारिक सकल आयासने बोडी वनमां वास करे, तेज जीव नत्तम कहेवाय. या प्रकारनो कुलपतिनो करेलो उपदेश सांजलीने राजा तथा राणी वेदु जण वैराग्य पामी तापसी दीक्षा लेवाने तत्पर थयां, परंतु तेने दीन, दुःखित अने विधवा एवी पोतानी पुत्रीने बोडवानो महोटो विचार थ पड्यो ? हवे त्यां तो शोकथकी जराक विराम पामेली एवी तेनी पुत्री गुणमा लायें विनति करी के हे महाराज! आपने जो मने दीक्षा देवी योग्य नासती होय, तो आपो ? ते सांजली कुलपतियें कह्यु के दीदा जे लेवी, ते तो सदुने योग्यज , तेमां तम जेवां संसारमा महाकुःखी जीवने तो विशे बे करी लेवी जोश्ये बैयें ॥ यतः ॥ पीडितानां पराभूत्या, ताडितानां तथापदा ॥ स्थितानां नवस्थानां, शरणं तापसव्रतम् ॥ १ ॥ अर्थःपरानवथी पीडित अने आपत्तिथी ताडित, संसारने विषे अत्यंत दुःखित एवा जनने तो तापसव्रत जे , तेज शरण ले. ते सांजली पुष्पमाला राणी बोली के हे गुरो ! आ मारी पुत्री सगर्नाले, माटे सगर्ना एवी स्त्रीय दीदा लेवाय के केम? त्यारें कुलपतियें कह्यु के ते स्त्री जो सुखमां होय, तो तो लेवी घटे नहिं, परंतु जो ते दुःखित होय, तो लेवी घटेज . माटे या स्त्रीने उखनुं विस्मरण करवा माटे दीदा लेवी योग्यज . अने वली २० Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शएG जैनकथारत्नकोप नाग सातमो. फुःखनुं विस्मरण करनार दीक्षा जे बीजुं को उत्तम आचरण बेज नहिं ? ते माटें था तमारी पुत्रीने तो दीक्षा लेवानी जरूरज ने अने तेम करवामां मारी संमति ले. ते सांजलीने तत्रत्य सदु कोइ खुशी थयां. पनी वसंत राजा घेर श्रावी पोताना ज्येष्ठ पुत्रने राज सोंपी सामंतादि कनी रजा लश्ने पोतानी स्त्री, तथा विधवा पुत्री, तेणें सहित तेणें तापसी दीक्षा लीधी, धने पड़ी ते त्रणे जण तापसी क्रिया करवामां प्रवृत्त तथा गु६ ध्यानने विषे तत्पर रहेवा लाग्यां. हवे ते गुणमालाने पण पूरा दिवस थयेथी अमारी पर्णकूटीमा एक पुत्री अवतरी. परंतु ते गुणमाला तो सुवावडमाथीज दारुण रोग थवाथी, तथा प्रतिदिन ज्वर आववाथी, योनिशूलनी वेदनाथी केटलेक वहाडे मरण पामी. त्यारे तेना फुःखें करी दुःखित एवी तेनी माता पुष्पमाला, अत्यंत दुःख पामी रुदन करवा लागी, त्यारे त्यांनी रहेनारी तापसी स्त्रीयोयें तेने वैराग्य कारक वातोयें करी बोध दर, शांति पमाडी. पली स्नेहें करी उत्पन्न थयेला पोताना स्तनना दूधथकी ते कन्यानी मानीमा पुष्पमालायें धवरावी उबेरवा मांमी. तेथी ते वनमां ने वनमांज महोटी थर, तेथी तेनुं नाम वनमाला पाड्यु, अनुक्रमें ते कन्या सर्व तापसीयोना मनने आल्हाद कारक एवा यौवन वयने प्राप्त था. हवे ते कुलपति, पोताना शिष्य थयेला वसंतमुनिने पोताना पाट पर बेसारी योग मार्ग साधी स्वर्गमां गया. अने पुष्पमाला पण दैवयोगें मरण पामी गइ. हवे हे पद्मोत्तर कुमार! हाल में कडं के वसंतमुनिने पाटें बेसास्यो. ते वसंत मुनि पंमें ढुंज बौं. ते कन्यानां माता, पिता, तथा मानी मा, ए सर्व मरण पामेला होवाथी ते कन्या अत्यंत दुःखी थ रुदन करवा लागी. तेने जोश्ने महामोहथकी मोहित थयेलो ढुं चिंताक्रांत थयो थको ए कन्यानुं पालन पोषण करवा लाग्यो, ते अद्यापि पर्यंत तेनु पालन पोषण कस्याज करुं बुं. अने तेना विवाह माटें तेने योग्य एवा वरनी पण शोध कस्याज करुं बुं. तथा वली ते विषे महारा गुरु मने कहि गया ले के था वनमाला कन्या साथें जेनो विवाह थाशे, ते महोटो राजा थाशे. हे कुमार ! ते कन्या या आपनी पासें उनी राखेली , तेज . या प्रमाणे मने पूबवाथी जे खरी वात हती, ते में कही आपी. हे कुमार ! Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. p बीजं तो ठीक, पण सर्वसंगत्यागी एवा मने दैवयोगथी तेनी साथें पुत्री वत् स्नेह लागेलो , तेथी जो तमें तेनुं दया करीने पाणिग्रहण करो, तो दुं ते स्नेहरूप पाशथी छूटुं? ते सांगली पद्मोत्तर कुमारें खुशी थश्ने तेनुं वचन स्वीकार कयु.. पड़ी ते वसंतकुलपतियें विवाहनी सर्व सामग्री एकठी करीने ते कन्याने त्यांज पद्मोत्तर कुमारसाथे परणावी आपी. पडी ते कन्यानी मानां तथा ते कन्यानी मानी मानां जे काही वस्त्र बानूषण वगेरे राखी मूक्यां हतां ते, अने बीजां पण केटलांएक नवां करावेलां थानूषण वस्त्रो, वनमालाने कन्यादानमां बापी दीधां. अने वसं त मुनियें पोतानी पासें जे सिमवेताल नामा विद्या हती ते पण ते कुमा रने यापी दीधी. हवे पद्मोत्तर कुमार पण नवोढा एवी ते वनमाला साथें केटलाएक दिवस त्यां रहीने पनी ते वसंत मुनिनी रजा लश्ने त्यांची चाट्यो, अने पोताना मातामहना वियोग थवाना दुःखें दुःखित एवी पोतानी प्रियस्त्रीने केटलीएक विनोदनी वार्तायें करी आनंद पमाडतो थको क्रमें करी ते मथुरा नगरीमां आव्यो. अने त्यां यावी मथुराधिपतियें आपेला थावासमां सैन्य सहित उतारो कस्यो. हवे त्यां बीजा पण केटलाएक राजकुमारोवाव्या. पढ़ी ज्यारे स्वयंवरनो नत्तम दिवस आव्यो, त्यारें धारण कस्यां ने सूर्यसमान प्रकाशित मुकुट व गेरे बाजरणो जेणे,अने ते कन्याउने परणवा माटे अत्युत्कंठित एवा ते देश देशना राजकुमारो, प्रक्ति स्वयंवर मंझपमा मणि अने रत्नो, तेणें जडित गंचा तथा नीचा एवा मांचडाउने विषे यथायोग्यरीतें सुरकुमारोनी पेठे यावी बेठा. पनी दिव्यवेषने धारण करनारा एवा ते कुमारो, पोत पोतानी जेवी जेवी नोग सामग्री, अने पोत पोतानां जेवां जेवां ज्ञान प्रमुख हतां तेमने एकबीजानी स्पर्शथी नबांबला थइने बताववा लाग्या. एटले ते राजकुमारो एम जाणे के अमारांजे काहिं संपत्ति वगेरे ले, ते जो था बेद्ध कन्याउने बतावीयें, तो ते कन्या तेथी लोना जर अमोनेज वरे? हवे एवे समय धन्य, अने गुन एवी लीलायें करी सुशोनित, विवाहने योग्य एवां वस्त्र तथ बाजूषणोयें करी मनोहर, जाणे स्वर्गमांथी यावेली रंना अने तिलोत्तमा नामा अप्सराज होय नहिं ? एवी ते चंश्लेखा अने सूर्य जेखानामा बेदु राजकन्या पोताना हाथमां उत्तम एवीवरमालाने धारण Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. करीने एक रथमां बेसीने ते सुशोनित एवा स्वयंवर मंझप पासे आवीयो. अने पनी रथथी नीचे उतरी स्वयंवर मंझपमा चालीयो, चालता चालतां ते कन्याउनी पासें, त्यां बेठेला राजकुमारोना गुण कुल वगेरे कहेवा माटें राखेली जाटणीयें, जे जे कुमार पासे ते कन्या आवे, ते ते राजकुमा रना गुणग्राममुं वर्णन करवा मांमयु. अने तेवी रीतें घाखो स्वयंवर में मप फरीने पाडी ते कन्या स्वस्थाने थावीयो, परंतु तेना मनमां तथा नजरमां कोइ पण राजकुमार श्राव्यो नहिं. त्यारें वली ते बीजी वार पाबी स्वयंवर मंझपमां वरमाला लइ चालीयो, अने चालता चालतां देव कुमारसमान ज्या पद्मोत्तर कुमार बेठेलो , त्यां आवीयो. अने तेनी पर बेहु कन्यानी एकज समयें दष्टि पडी, के तुरत तेनुं मन, ते कुमार मांज चोटी गयुं, तेथी एकदम ते बेतु कन्यायें पद्मोत्तर कुमारना गला मांज वरमालानुं आरोपण कयुं, ते वखत जय जय शब्द थवा लाग्यो तथा अनेक वाद्यो पण वागवा लाग्यां अने त्यां बेठेला राजकुमारो शि वाय सतु कोइ जनो अत्यंत प्रसन्न थश्ने एक साथेंज कहेवा लाग्यां के "अहो ! आ बेदु कन्यायें घणोज उत्तम तथा मनोहर, पोताने योग्य, एवोज वर वयो” हवे ते बेद कन्यायें ते पद्मोत्तर कुमार वस्यो. ते जोड्ने कृतांत नी पेठे कोपायमान थयेलो एवो कोइएक सांकेतपुरनो विउर नामा राजा, तत्रत्य सर्व राजकुमार मंमलने कहेवा लाग्यो, के हे राजकुमारो! या अल्प झ, मूर्ख एवा पद्मोत्तर कुमारें हाल था बेहु कन्याउने जे वरी ले ते, ते पापीयें आपणुं सर्वनुं नाकज काप्युं बे. माटे तेने आहींथी जीवतो जवा देशो नहिं हो. अने जो जो ते नागोजाशे, माटे तमें ऊट पकडो! पकडो! ए उष्टना मदने तमो कोइजो नहिं उतारो, तो पण हूं तो तेनो मद एक क्षण मांज उतारी दश्श! ते सांजली सामर्ष थयेला राजकुमारो तुरत हथियार लश्ने लडवा माटें सन्न थइ गया. पडी ते पद्मोत्तर कुमारना ससरा चं ध्वज राजायें जाए\ जे आ मारो जमाइ एकलो डे, अने ए राजकुमार तो घणा, तेथी तेनी ढुं सहाय करुं? नहिं तो ए पद्मोत्तरें मारी बेदु कन्याने वरी से, तेथी मने महोटुं फुःख आवी पडशे ? तेम जाणी पोतें तेने आश्रय देवा वास्ते सैन्य तैयार करी सडवा बहार पज्यो. ते जोक्ने विधुर राजायें जाण्यु जे, तेनो ससरो तेनी सहायमाटे मल्यो, ते माटे हवे हुं ते बेदु Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०१ जणने जीती सकीश नहि, तेथी एक वाचाल दूतने मोकली साम, दान, विधिनेदथी समजावी,अने एम समजाव्याथ। को रीतें ते बे कन्यामांथी मने एक पण कन्या जोश्य थापे ? जो थापे तो तो ठीक थाय, नहिं तो पड़ी वट लडq तो ज? एम विचारी एक वाचाल दूतने ते चंध्वज राजा पासें मोकल्यो, ते दूतें आवीने ते चंध्वज राजाने कयुं के हे राजन् ! मने सांकेतपुरना विर राजायें मोकलेलो डे. अने तेणें कहेवराव्यु ले के. “बाहिं आवेला कोइ पण राजकुमारने एक कन्या तमारे पापवीज जोयें. कारण के आप्या विना था अमारोराजकुमारोनो कोप शांत थाशे नही! तथा तमने सहुने सुख शाता पण रहेको नहिं अने महोटो उत्पा त थाशे? वली हे नृप! तमें सर्व राज कुमारोने आमंत्रण करी तेडावीने एकज जणने बेहुकन्या आपी दीधी, ते तमोयें अमाळं सदुनुं मोहोटुंब पमान कयुं ने अने नाक काप्यं ने ? माटे अमारा कहेवा प्रमाणे एक पण कन्या जो नहिं आपो, तो तमारा जमाइने ए बेहु कन्याने परणी पोताने घेर जावं, बढुज कठिन थइ पडशे? जाजु गुं कहियें, पण ते पद्मोत्तरनो नाराज था?" ए वाक्य सांजली मथुरापति एवो चंध्वज राजा बोल्यो के हे दूत ! तुं आवा कटु वाक्य म बोल. अने तुं तारा स्वामीनुं हित करवा याव्यो जो खरो, परंतु कांश युक्तायुक्त समजतोज नथी. कारण के जे संदेशाथी वृथा महोटो क्वेश उत्पन्न थाय, तेवो संदेशो देतां जरा पण मर केम खातो नथी? त्यारे ते दूत बोल्यो के हे राजन् ! आप कहो बो, एमज ढुं मारा स्वामीनो नक्त बौं, एम तो सदु कोइ जाणेज ले, परंतु जो विचार करशो, तो आपनो पण ढुं हितैषी बौं, केम के आ पनी बे कन्यामांथी एक कन्या आपवारूप संदेशो कहिने आपनां तथा आपना जामाताना अने सर्व सैन्यना जीवोने बचाववा इच्छं बौं, कदा चित् अमो बलवान बैयें, तो अमारो तारा स्वामी विउरराजा वगेरेथी पराजय को दाडो थाय एमज नथी ! एम जो आप जाणता हो, तो ते थापनी महोटी नूल .कारण के एक को महोटो बलवान् हस्ती होय, तो तेने जाजा जण जो दमन करे , तो तेनुं दमन थाय ने, अने तेथ। पनी ते वीचाराना शरीरने कीडीयो जेवा हलका जीवोने खावानो प्रसंग श्रावे जे. वली जु. आवो अति प्रकाशमान सूर्य , ते पण जो जाजां Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वादलांउथी घेरा जाय , तो ते निस्तेज थइ जाय . तेमज एक जण कदाचित् शूरवीर होय, तो पण ज्यारे तेने जाजा सुनटो वींटी लीये ने, त्यारें तेनो परानव थया विना रहेतोज नथी. हवे या प्रकारनी सर्व वात, त्यां नजीक उनेला पद्मोत्तर कुमार सांजली के तुरत ते बोली उठ्यो के हे दूत! तुं अवलां तथा रजोगुण नरेलां वचन केम बके ले ? अने तुं कहे जे के हुँ मारा स्वामीनो नक्त , ते पण खोटी वात डे, कारण के जो तुं स्वामि नक्त हो, तो तारा स्वामीनो तथा तदनुयायीनो जेथी नाश थाय तेवां कटु वचनरूप संदेशो शामाटें कहे? वली तुं मूर्वशिरोमणि पण बो, केम के तें जे हस्ती वगेरेना दृष्टांत पाप्या, ते पण समज्या विनाज याप्या ले. जो. एक गंधहस्ती जे होय , ते बीजा हस्तीयोने मारी नाखे , अने ते हस्तीने वली एकलो सिंहज मारी नाखे ,अने ते सिंहने वनी एकलो शरजनामा पदी मारी नाखे डे, एम तारताम्यपणाथी एकथी एकनुं बल वधारेज होय . वली ने कह्यु के एकला शूरवीरने सुनटो मारी नाखे, पण अतिबलवान मुनट, नर्ले एकलोज होय, तो पण ते, तेथी अल्पबल वाला सुनटोने मारीज नाखें . तेथी तारा कहेला पूर्वाक्त सर्व दृष्टांत अनुप युक्त जेवा देखाय . माटें सिंह समान पराक्रमवाला जे अमो छैये, ते शृगाल तथा श्वान समान तारा स्वामी विपुरराजा प्रमुख राजकुमारोथी कोई दाडो नय पामनाराज नथी. अने श्वानो जे , ते बदुज जष्या करे डे, परंतु ते कोश्ने करडी शकता नथी. अने हे दूत ! हवे जो जाजु केहे वरावतो हो, तो जे शूरवीर न बतां माननंगनीरू होय, तेन्यें तो आ स्वयंवर मंझपमां आवज नचित नथी. वली आहिं आवनारा अमोने रा जकुमारोने तो प्रथम जाणवुज जोश्ये, के स्वयंवर मंझपमां जे कन्या दशे, ते तो कोइ पण एक वरनेज वरशे ? तेम जाणतां बतां ज्यारे पोताना उर्जा ग्यथीज पोताने ते कन्या न वरे, त्यारें तेमां तेनुं माननंग ते शेनुं थयुं क हेवाय? ना नज कहेवाय. माटें तारो स्वामी विर राजा जे , ते चित्तने विषे मफतनो खोटो परानव माने ? तेथी तो स्पष्टरीतें एम जणाय ,के ते पंमेकाची बुद्धिवालो माणास ,तेमज वली तेणें पोताना हितचिंतक एवा माह्या मंत्रियो पण राख्या नथी. वली हे दूत ! तारा स्वामी विउर रा जानुं नाक तो ज्यांथी मारा गलामांया कन्यायें वरमाला आरोपण करी, Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०३ त्यांथीज कपाइ ग , तो वली पालो ते कापेला नाकपर तारी साथें मो कलेला संदेशाथी दार जनरावानी शामाटे श्वा करे ? या प्रकारनां कुमारनां वचन सांजली क्रोधायमान थयेलो ते दूत, एकदम बोली उग्यो के, हे मिथ्यानिमानी कुमार ! था तारा बोलवारूप पांमित्ये तो तुं जरूर हाल ते विउर राजा वगेरे राज कुमारोयें यमराजाना पग चांप वा मोकली दीधेलो हो. एम जणाय . हे स्थानिमानी ! सांजल. सर्प जे , ते दशन करी सदुनां प्राण ले बे एवो प्रबल ने, परंतु तेने सर्व पदीयो एकठां थइ पोतानी चांचथी विखी नाखे , तेम तुं रूप जे सर्प बो, तेने पदीरूप राजकुमारो घडी एकमां बाणरूप चांचें करी वीखी ना खशे, तेमां जरा पण संशय राखीश नहिं. एवां वचन सांजली कोपाय मान थयेला चंपध्वज राजायें पोताना पहेरापर रहेला चाकरोने दुकम कस्यो, के हे अनुचरो! आ उस दूतने एकदम गले पकडी बाहार काढो. ते सांजली तुरत ते अनुचरोये ते दूतने गले पकडी बाहार काढयो. हवे दूत पण घणोज मनमां क्रोध पाम। शीघ्रताथी पोताना स्वामी पासें आव्यो, अने त्यां आवी बनेली सर्व वात कही देखाडी. ते सांगली कृतांत समान कोपायमान थयेला विर राजायें तुरत रणतूर वगडाव्यां. अने हाथी तथा घोडा पारवस्था, अने सैन्य सहित लडवा माटे तैय्यार थयो. ते जोइने बीजा राजकुमारो पण पोत पोतानुं सैन्य तैय्यार करी लडवा तत्पर थया. अने तेथे पण रणतूर वगडाव्यां. पडी ते सर्वने लडवा तैय्यार थयेला जोश्ने चंदध्वज राजा पोताना सैन्यने तैय्यार करी लड वा तत्पर थयो, अने तेणे पण रणतूर वगडाववा मांमयां. या प्रमाणे चंध्वज राजाने लडवा तत्पर थयेलो जोश्ने पद्मोत्तर कुमार कहेवा लाग्यो के हे प्रनो! यावा कीटकसमान तुब राजकुमारोनी साथें तमारा जेवा महोटा योदाने शामाटे लडवा जावू जोश्यें ? अने आ लडवा माटें अवडं मोटुं जे सैन्य तैय्यार कयुं, तो ते सैन्यनु पण आवा अल्प युधमां गुं काम जे? त्यां तो हुँ एकलोज जाइश, कारण के ते पण सर्वे बालकोज डे ? माटे ढुंज रथमां बेसी जावं . तमो जु तो खरा, के हुँ एकलोज ते सर्वेनो पराजय, केटली वारमा करूं बु ! एम कही ते चंध्वज राजाने तथा तेनी सेनाने अने पोतानी सेनाने शपथ दश्ने पानां वाली Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. अने पोतें एकलोज रथमां बेसी सिंहनी पेठे युनूमिमां गयो. त्यां तेने जो क्ने सामर्थ्यवान् एवा विरादिक राजा बोल्या के, हे मंदमते ! तें ज्यारें तारा पराक्रमना अनिमानथी सर्व सैन्यने काढी मूक्यु, त्यारे तुं पण या रणनूमिथी जलदी नागी जा. कारण के अमें बालक एवा तारा एकला साथै यु नहिं करीयें ? त्यारें लीलायें करी ललित एवो पद्मोत्तर कुमार बोल्यो के, थावी खल समान वाणी बोलवानुं तमारे झुं प्रयोजन ? हुँ प्रगटरीतें तमारी सर्वनी सामो उनोज ७, माटें तमारामां जेटलुं जोर होय, तेटलुं देखाडो.वृथा बकवाद शामाटें करो डो? ए वचन सांजली कोधा यमान थयेला राजकुमारो एकदम प्रहार करवा तत्पर थइ गया. ते जो ने, ते वसंत कुलपतिनी आपेली वेताल विद्या जे हती, तेनुं कुमार स्म रण कां के ते विद्याना प्रनावथी वैरीज्ये जे जे शस्त्रो तथा अस्त्रो कुंवर पर नाख्यां हतां ते तेज शस्त्रोयेकरी वेतालमंत्रथी साध्य थयेला पिशाचो, निर्दय पणे ते राजकुमारोनेज मारवा लाग्या.तेथी ते सर्व राजकुमारोथति प्रहारथी दीनवदन थर, जीववाने विषे पण निराश थ गया. पनी पद्मोत्तर कुमा रनुं आवं अत्यंत उरत्यय पराक्रम जोश्ने कंपायमान डे शरीर जेनुं एवो, अने यु६ करवा आवेला सर्व राजकुमारोनो अग्रेसर विऊर राजा, गर्वपर्वतथी नीचे उतरीने अर्थात् हारी जश् नत्र थश्ने एकदम कुमारना बेहु चरणमा यावी पज्यो. अने कहेवा लाग्यो के हे कुमार! महा अपराधी एवा जे अमें ते अमारुं रक्षण करो, रक्षण करो! तेवा दीन वचन सांजलीने ते कुमारें तुरत वेताल विद्यानो उपसंहार करी लीधो. पनी यु६ करवा आवी पराजय पामेला एवा सर्व राजकुमारोयें कुमार पासें क्षमा मागी अने सदु को दास स मान थइ रह्या. कुमारना सैन्यमां तथा चंइध्वज राजाना नगरमां वधाइ वागवा लागी. पडी ते चंध्वज राजायें अत्यंत अपमान पामेला एवा ते विकरादिक राजकुमारोने सन्मान करी पोत पोताने गाम जवा आज्ञा आपी. एम पद्मोत्तर कुमारना प्रनावथी सर्व क्वेश नाश पाम्यो. पनी स्वयंवरमां वरमाला आरोपी वरेली पोतानी बेदुकन्याने चंडध्वज राजायें ते पद्मोत्तर कुमार साथे परणावी दीधी. विश्वने वल्लन एवो ते कुमार, केट लाएक दिवस त्यां रहीने पनी पोताना ससरानी आझा लइ मोहोटा सैन्ये पृथ्वीने आहादित करतो थको लाहित एवी त्रणे स्त्रीयो सहित Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखनी, सम्मातिया भवेश कराव्या. पड पामी माहा पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०५ स्वनगरमां थाव्यो. त्यारे तेनां माता पितायें घणोज आनंद पामी माहा महोत्सवथी वधूसहित ते मनोहर पुत्रनो प्रवेश कराव्यो. पड़ी ते पोताना पुत्रने, मंत्री, सामंत प्रमुखनी, सम्मतिथी युवराजपद उपर प्राप्त कखयो. अने ते कुमारपणा, पोताना पूर्वकृत पुण्यना प्रनावथी विषयसुखने जोगववा लाग्यो. हवे जे मुक्तावलीनो जीव देवपणामांथी हरिवेग नामा विद्यार थश्ने थ वतस्यो , तेना उछाहनु वृत्तांत कहे . के वैताढ्य पर्वत पर विद्याधरोना राज्यनी दक्षिण अने उत्तर श्रेणि ले, तेमां उत्तरश्रेणिने विषे ते श्रेणिर्नु शृंगारनूत गगनवनन नामा एक नगर .तेनुं विद्याधर शिरोमणि एवो कन ककेतु नामा विद्याधर राज्य करे , तेने बे स्त्रीयो छे. तेमां एक नाम कनकवती अने बीजीनुं नाम रत्नावली. ते बेतुने एकेक कन्या थवे. तेमां एक कन्यानुं नाम कनकावली अने बीजी कन्यानुं नाम रत्नावली . ते बेदु कन्याना जन्म दिवसने विषे कोई एक नैमिनिकें आवीने कह्यु के जे कोइ नाग्यवान् पुरुष, ए वेदु कन्यामांथी एक कन्याने वरशे, ते नावीकालें था वैताढ्य पर्वतनी एक श्रेणीनो अधिपति थाशे ? अने जे जाग्यशाली पुरुष वेदु कन्या- पाणिग्रहण करशे, ते आ वैताढय पर्वतनी उत्तर अने दक्षिण, ए बेदु श्रेणियोनो नावीकालें जोक्ता थाशे. हवे यौव नावस्था प्राप्त थवाथी ते वेदु कन्या, सर्वांग सौंदर्य जोइने तेना पितायें स्वयंवर करवानो प्रारंन कस्यो. त्यारे ते कन्याना पिता विद्याधरना तेडा व्याथी कलाकलापोथी संपन्न, विद्यायें उन्मत्त, महारूपवान, एवा केटला एक विद्याधरो अाव्या. एम घणा एक विद्याधरो एकता थया. तेमां पूर्वोक्त हरिवेग विद्याधर पण आव्यो, त्यारे ते बेतु कन्या, सतु कुमारोनो त्याग करी ते हरिवेगनेज वरी. ते वखत ते कन्याना पिता कनककेतु राजायें तेक न्याना लग्मनो महोटो समारंन कस्यो. हवे केटला एक दिवस ते हरिवेग, पोतानी बेदु स्त्रीयोयें सहित त्यां रहिने पनी ससरानी आझा लइ त्यांथी स्त्रीयो सहित अनुक्रमें पोताने गाम आव्यो. हवे ते कुमारनो पिता तरवेग विद्याधर, मनमा खुशी थइ विचारवा लाग्यो के अहो! आ मनुष्यना नवमांप्रथम विद्याधरनो नव थावो तेज महा पुण्यें करी थाय . तो तेमां ा मारा पुत्रनो जन्म थयो .तेमां पण Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वली या मारो पुत्र बीजा विद्याधरो करतां नाग्यशाली देखाय जे. कारण के जेम को एक सुकृती पुरुप, श्रीने अने कीर्त्तिने वरे, तेम आमारो पुत्र हरिवेग, उत्तम एवा कनककेतु राजानी बेदु कन्याने वस्यो . नहिं तो आवा महोटा पराक्रमी एवा लदावधि विद्याधरोनी उपेक्षा करीने ते कन्या था मारा हरिवेग पुत्रनेज केम वरे ? वली ज्ञानीनुं वचन , के जे कन्याउने हाल था मा रो पुत्र हरिवेग वस्यो, ते कन्याउने जे पुरुष वरशे, ते वैताढयपर्वतनी उत्तर द विण श्रेणीनो राजा था, तो ते झानीनुं वचन कांइकोइदाडो खोटु पडे ? ना, पडेज नहिं. तेथी ते राज्य पण जरूर माहारा पुत्रनेज मलशे माटें आ हरिवेगें ते पूर्वजन्में झुं पुण्य कस्युं हशे ? ते वात केवली विना बीजो का जाणे नहिं. माटें चाल को ठेकाणे केवली नगवान् होय, तो त्यां जश्ते मने पूबी जावं ? एम विचार ज्यां करे , त्यां तो झाननानु; विश्वना म नने हरण करनार, एवा श्रीतेजनामा केवली तेज गामना उपवनने विपे समोसस्या. ते सांजली हर्षनरें प्रफुल्लित ने गात्रो जेनां, एवो तरवेग रा जा, पोतानो हरिवेग पुत्र, अनेक सामंत, मंत्रीश्वर, चतुरंगी सेना, तेणें युक्त थको ते केवली नगवानने वांदवा माटे आव्यो. त्यां आवी केवलीने नमन करी सदु कोइ जनो यथोचित स्थानपर बेठा. त्यारें पोते पण वेठो: पनी केवली जगवाने देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते देशना सर्व सांजलीने स मय जोश्ने तरवेग राजायें पूब्युं के हे जगवन !या हरिवेग नामा मारो पुत्र पूर्वजन्में कोण हतो, अने तेणें गुंसुरुत कयुं दशे? जे तेने अनायासें सर्व सुख प्राप्त थयुं ? ते सांजली केवली नगवाने प्रथम थयेला शंखराजा अने कला वती राणीना नवथी आरंजीने आहिं सुधी बेदु जणना बार नव थया, ते नी सर्व कथा कही बतावी. अने हालमां तेरमे नवें, ए हरिवेग कुमार थयो जे, ते कयुं, तथा तेउना प्रत्येक नवमां निर्मल थयेला धर्मना जावो, तथा धर्मसेवनें करी जे पुण्यानुबंधी पुण्य, वृद्धिंगत थयुं ते, तथा हालमां पण ते पुण्यना मार्गे करी बेहुने सुख प्राप्त थयेटु डे ते सर्व, कहि बताव्यु. ते सर्व सविस्तर चरित्र सांजलीने उत्तम परिणामवालो एवो तरवेग रा जा, पोताना पुत्र हरिवेगने राज्यासन पर बेसारीने केवलीनगवान् पासें मनोहर एवा चारित्रने अंगीकार करतो हवो. अने हरिवेग पण पोताना पूर्वना बार नव सांगली जिनमतने विषे अत्यंत प्रीतिमान् थ श्रावकना Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०७ धर्मने अंगीकार करतो हवो. पनी पूर्वजन्मना प्रेमें करी ते हरिवेग केवली गु रुने पूजवा लाग्यो के हे जगवन् ! ते अग्यारमा नवमां ययेलो शूरसेन कुमा रनो जीव बारमा नवमां देव थयो, हतो ते त्यांथी चवीने हाल तेरमे नवें क्यांहि अवतरेंलो ले के नहिं ? अने ते अवतस्यो . तो तेनुं गुं नाम ले ? अने ते सुलनबोधी के पुर्ननबोधी? तथा ते जिनधर्मने प्राप्त थयेलो ने, के मिथ्यात्वी ले ? ते सर्व कहो. ते सांजली केवली जगवान् बोल्या के हे पुण्यात्मन् ! सांगत. हाल तेसरसेन कुमारनो जीव तो देवपणाथी चवी ने दक्षिण जरताना मध्यखंमने विषे गर्जनपुरना राजानो पद्मोत्तर नामा पुत्र थइ अवतरेलो . परंतु ते हजी जिनधर्मने प्राप्त थयेलो नथी. पा मवाने योग्य ने, अर्थात् ते सुलनबोधी .अने हे कुमार ! कोश्जीव, धर्म पामवाने योग्य होय, तो पण गुरु सामग्रीनाअनावथी ते जीव, धर्मने प्राप्त थशकतो नयी ॥यतः॥ जोगावि धम्मरयण,स्स पाणिणो नहि लहंति संबो हिं ॥ सुविसु धम्माचरियं, धम्मायरियं अयाविंता ॥ १ ॥ सुके विदले प डिमा, न हो तषु सुत्तहार विरहेण ॥ सुदेवि जीव दवे, न गुणप्पत्ती गु रुविगे ॥ २ ॥ अर्थः-प्राणीयोने धर्म रत्नना योगो होय, तो पण तेने सु विशुद्ध धर्मनुं आचरण करनारा एवा धर्माचार्यना योग विना धर्मनी प्राप्ति थाती नथी॥१॥ जेम के शुभ विदल पाषाण होय, पण ते पापानी प्रति मा सूत्रधारना योग विना कदापि बनती नथी॥२॥हे राजन् ! पूर्व ब्राह्मणो ना जयथी मुनियो विहार करता अटक्या हता, तेथी गुरु सामग्रीना अ नावथी ते पद्मोत्तर कुमार, सम्यत्कने प्राप्त थयो नथी. तेम वली ब्राह्मणो पण ते सुलनबोधी होवाथी तेने शैवधर्मवासित करी शक्या नथी. हाल तो ते काचमणियोनी मध्ये जेवो अविच मरकतमणि होय, तेवो थ रहे लो . परंतु हे ना! ते पद्मोत्तर कुमार, तमाराथीज जिनधर्मने पामशे, अने पढी सम्यत्कने प्राप्त थाशे. ए प्रमाणे सर्ववृत्तांत हरिवेग विद्याधर सांजलीने अत्यंत हर्षायमान थयो थको नगवानने नमस्कार करीने पोता ना स्थानक प्रत्ये आव्यो. त्यां मोहोटी दिवालो थर, पूर्वोक्त ज्ञानीना कहेवा मुजब वैताढय पर्वतनी उत्तर तथा दक्षिण श्रेणीना विद्याध र राजायें अर्चित, अने अतुल तेजें करी प्रदीप्त थको अनुक्रमें तत्रत्य सर्व विद्याधरोनो चक्री थयो. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दवे एक दिवसें केवलीनुं वचन याद राखीने ते पद्मोत्तर कुमारने जिन धर्मनो बोध देवा माटें पोताना राज्यपर मंत्रीने बेसारी, ते हरिवेगें काजलना समूह समान, कालो, पीली अने वर्जुलाकार एवी चकुवालो कोमीयोना हारथी अलंकृत, मोहोटी ग्रीवा तथा कपाल युक्त, विशाल नदरवालो, मनोहर हाथ पगवालो, स्थूल देहयुक्त, शब्दायमानथती घुघरमालो तथा लोढानी सांकलोयें करी सहित एवो एक वैक्रिय विद्याथी मिंदडो बनाव्यो. अने पनी मिंदडाना गलामां बांधेली सांकलने हाथमां लश्ने अत्यंत उत्सुक थयो थको ते हरिवेग, पोताना मित्र पद्मोत्तर कुमारना गंजन पुरना चोकमां आवी ऊनो रह्यो. त्यां तो ते नगरनां लो को तथा त्यांना रहेवासी केटलाएक ब्राह्मणो वगेरे एकठा थया अने तेनी पासें एवो महोटो नत्तम मिंदडो जोड़ने ते सर्व हरिवेगने प्रवासा ग्या, के हे पांथजन ! आ मार्जार, तमें मूव्य लश्ने अमने आपशो ? त्यारे हरिवेग बोल्यो के तेना मूल्यनी कां तमने खबर ? त्यारे ते लोकोयें पूब्युं के तेनुं हुं मूल्य ? त्यारे ते बोल्यो के तेनुं मूल्य तो एक लाख दिनार थाय ले ? ते सांजली नागरिकजनो हसीने कहेवा लाग्यां के आ ते तमें बोलो बो झुं ? को ठेकाणे आवा मार्जार, अटलुं बधुं मूल्य होय ? जो तमें विचारी बोलशो तो कोइ पण शे? त्या ते बोल्यो के हे लोको ! गुणोनुं मूल्य बे, पण कां वस्तुनुं मूल्य नथी. मनोहर गुणवालुं काष्ठ ने, ते सपरिमित इव्यना मूल्यवानुं थाय , तथा पाषाण पण गुणें करी कोटि व्यना मूल्यवालो थाय बे. अने जे गुणहीन होय , ते को पण ठेकाणे मूल्य पामतोज नथी. कहेलुं ने के ॥ श्लोक ॥ गुरुदेवब्राह्म गर्षि, हयेनषनाश्मनाम् ॥ वस्त्रादीनां विशेषोस्ति, गुणाऽगुणनवोमहान ॥१॥ अर्थः-गुरु, देव, ब्राह्मण, कृषि, हय, हस्ती,बेल, पबर बने वस्त्रादिक, तेमना गुणपणाथी अने गुणरहितपणाथी महोटो फेर फार होय जे. तेमज मार्जार मारिमां पण महोटो नेद होय . वली सांजलो॥यतः॥ वाजिवारणलोहानां, काष्ठपाषाणवाससाम् ॥ नारीपुरुषतोयाना, मंतरं बदु धांतरं ॥१॥ तथा॥ देवाणय धम्माणय, समणाण य बंनणाण नुवणम्मि ॥ अबिबिसेसो गरुन, नऊ नवरं खु विरलेहिं ॥२॥ अर्थः-अश्व अश्वमां, हाथी हाथीमां, काष्ठकाष्ठमां, पाषाण पाषाणमां, वस्त्र वस्त्रमां, स्त्री स्त्रीमा, Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०ए पुरुष पुरुषमां, जल जलमां, घणोज फेरफार होय जे ॥१॥ वली देव देवमां, धर्मधर्ममां, श्रमण श्रमणमां, ब्राह्मण ब्राह्मणमां, नुवन नुवनमां पण नि. महोटो फेर फार होय ॥२॥ए वचन सांजली ते नगरना रहेवासी ब्राह्म यो बोल्या के ए तो तमो ठीक कहो बो, पण आ तमारा बिलाडामां एवा क्यां गुणो ले ? के जेथी तमो अवडी मोहोटी किम्मत करो बो ? माटे तेमना गुणो तो कहो? ते सांगली हरिवेग बोल्यो केा अमारा मींदडा मां कोट्यवधि गुणो ले. ते गुणो कांही तमारी पासें कहेवाना नथी. तेना गुणो तो या गामना राजा पासें कहेगुं के, जेथी ते सांगली अमारा क हेवा प्रमाणे तेनी किम्मत ते राजा आपी शके ? ने अमारी महेनत पण सार्थक थाय? तमारी जेवा नीखारी पासें तेना गुणो केहवेथी गुं लान थाय ? अने एवी लान विनानी वृथा माथाकूट कोण करे ? ॥ यतः ॥ लुं बिका नारिकेलाणां, नादंति हुभिता हिकाः ॥ निष्फलः शक्तिमुक्तानां, रत्न ग्रहमनोरथः ॥ १॥ अर्थ:-क्षुधित एवा तथा कादव खानारा देडकांड, को दिवस नालियेरनी तथा खजुरनी खंबो खाता नथी, अने शक्ति र हित जनोने रत्नग्रहण करवानो मनोरथ निष्फलज थइ जाय ३ ॥१॥ वली हे ब्राह्मणो ! या वाणिया जे , ते तो कोडी कोडीनो हिसाब चोप डामां लख्याज करे , तेम तमो ब्राह्मणो बो, ते जन्मना निदुकज बो, माटे ते वाणीया पासेंथी तथा तमारी पासेंथी या अतिमूल्यवान मार्जा रनुं मने झुं मूल्य मले ? वली कदाचित् आवा घणा गुणवाला मारिने तम जेवा दरिडीने थोडा मूल्यथी हुँ आएं, तो मारु दारिश्पण केवी रीतें जाय ? एम कहेतो थको ते हरिवेग पद्मोत्तर कुमारना राजमहेलनी नीचें आवी उनो रह्यो, त्यारे तेनी पडवाडे कौतुक जोवाना मिषथी ते ब्राह्म गो पण चाव्या वाव्या. हवे पद्मोत्तर कुमारे त्यां महेलनी नीचें मार्जारने लश्ने यावी उना रहेला हरिवेग विद्याधरने दूरथी जोयो. के तुरत तेने पूर्वजन्मना स्नेहथी पो तानी आगल बोलाव्यो, अने नम्रताथी कह्यु के हे नाई!आवो, आवो अने आ बासनपर बेसो ! एम कही सारा बासनपर बेसास्यो. पड़ी तेनी पासें रहेला मार्जारने जोइ विचार करी पूब्युं के हे नश्क ! आवो महोटो मा जोर आपने क्याथी मल्यो ? त्यारे हरिवेग बोल्यो, के था मार्जार, अ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. त्यंत नक्तिथी रंजित करेला एवा देवें मने आपेलो . तेथी रत्नसमान आ मिंदडा, कांश मूल्यज नथी. अर्थात् आ मिंदडो जे डे, ते अमूल्यवस्तु बे. तेथी ते कोइ पण ठेकाणे मले तेम नथी. परंतु ढुं निर्धन बौं तेथी निरुपायपणाथी एक लाख दीनार मूल्य लश्ने तेने वेचवा हुं बुं. त्यारे तेवी कौतुक सरखी वात सांगली पद्मोत्तर कुमार बोल्यो, के हे नक! आ तमारा मार्जारमां केवा केवा गुणो, के जेनी तमें अवडी महोट। किम्मत करो बो? त्यारे हरिवेग बोल्यो के जुन. या मार्जारमा पहेलो तो ए गुण , के घणोज महोटो अने जाडो.बीजो ए गुण , के अपर सामान्य मार्जारो तेने मारी शकता नथी. त्रीजो ए गुण , के ते जे स्थलमां रात्रि वसे ले, तेनी फरती बार योजन नूमिमां कोई नंदर भावी शकतो नथी. या प्रकार नो महोटा त्रण गुणो तो प्रत्यक्ष देखाय जे. बीजा अन्यंतरना तो घणा ज गुणो दे, ते हाल, कहेतां पार आवे तेम नथी. या प्रमाणे तेनुं मूल्य तथा गुणो कह्या, वली हे राजन् ! आपने राजा जागी तेने आहिं वेचवा माटें आव्यो तेथीआ मार्जार आपल्यो, अने आपना राजमां मान पा मेलाा ब्राह्मणोने आ मिंदडो सर्व रीतें सारो ले के केम ले ? तेनी परी दा तथा तपास करवानी अाझा आपो. ने पढ़ी जो लेवा योग्य नासतो होय, तो लश्ने मने तेनुं मूल्य बापो, के जेथी ढुं सवारमा जलदी मारे घेर जावं ? त्यारे पद्मोत्तर कुमारे ते हरिवेग पर पूर्वजन्मना योगें अत्यंत स्नेह आववाथी ते मिंदडो लेवानो निश्चय कस्यो. अने पढ़ी ते मिंदडो सर्वांगें सारो ले के केम छे ? तेनी परीक्षा तथा तपास करवा माटे त त्रत्य ब्राह्मणोने आशा आपी, त्यारे ते ब्राह्मणो ते मिंदडानां सर्वे अंगो जोवा लाग्या, जोतां जोतां तेनो माबो कान खंमित थयेलो जोयो, त्यारे ते ब्राह्मणोयें हरिवेगने पूब्युं के आ मिंदडानो माबो कान केम खंमित थइ गयो ? ते सांजली हरिवेग बोल्यो के सांचलो. दुं या मिंदडाने वेचवा माटे दूर देशथी आबुं . ते ढुं चालता चालतां थाकी जवाथी रस्तामां आवेला एक जीर्ण देवमंदिरमा उतस्यो अने रात्रे सुतो, त्यां चालवाना श्रमथी मने तथा मारा आ मार्जारने निश ावी गइ. तेवामां एक उंदर आव्यो, तेणे या मिंदडानो माबो कान करडी खाधो. तेथी तेनो कान खंमित थ गयेलो जे. बीजं कांश दूषण नथी. ते सां Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३११ जली ब्राह्मणो एकदम खडखड हसीने कहेवा लाग्या के अरे ना ! आ तमारा मिंदडाना त्रण गुणो तो तमें प्रत्यक्ष हजी हमणांज गणाव्या हता, तेमांत्रीजो गुण एम गणाव्यो हतो, के या मार्जार जे नूमिमां वास करी रहेतो होय, ते नूमिनी आसपास बारयोजन पर्यंत सुंदर आवी न शके ? अने हाल कहो बो, के तेनो कान रातमां आधी चंदर खा गयो. माटे तमारो कहेलो एनो त्रीजो गुण क्यां जतो रहा? अने तेनो आ माबो कान करडावाथी ते दूषित . ते सांजली हरिवेग बोल्यो के सांबलो. हे नश्कजनो! आवा महोटा रत्नमां एक दूषण श्राववाथी झुं ते दूषित कहेवाय ? ना नज कहेवाय. अने ते जो एक अल्पदोपथी दूषित , तो तमारा देवमा घणाक दोपोडे, ते बतां तेने तमें देव केम मानो बो? वली या बीचारा मार्जारमा एक दोष होवाथीकहो बो, के या मिंदडो तो दू पित . या बोलवू तमारुं केवी मोहोटी नूलनरेलुं ? ए सांजली ब्रा ह्मणो क्रोधायमान थइ बोल्या के हे मूर्ख ! अमारा देवमां ते कां दो प होय ? अमारा देव तो निर्दोषज ले ? त्यारे हरिवेग कहे , के हे नट्टो ! सांनलो. ज्यारें तमें कहो बो, के अमारा देव निर्दोष , त्यारे एक वात हुँ पू , तेनो तमो खुलासो करो. के ब्राह्मणने, बालकने, स्त्रीने, गायने जे हणे, तेने केवो कहेवो जोयें ? त्यारे नट्टो बोल्या के ते उष्ट कर्म करनारने तो महा पापिष्टज कहेवो जोश्यें ? तथा तेनुं मुख पण जोवू न जोश्यें ? त्यारे हरिवेग बोल्यो के जे वैश्वानर एवो अग्नि , ते प्रज्ज्व लित कस्यो थको पूर्वोक्त सर्वने बाली नस्मसात् करी नाखे , परंतु तेमां कोइने पण जीवतो मूकतो नथी. तो ते अग्मिने तमें देव बुद्धिथी केम पूजो बो ? वली तमो कहेशो के ते अग्नि ,ते तो तेत्रीश करोड देवताउनु मुख ने, कारण के देवताउनी तृप्ति तो ते वैश्वानर अग्निधारायेंज थाय बे. माटें तेने देव मानी मधु घृतादिक हविथी पूजीयें बै? तो त्यां दुं कहुँ , के ज्यारे ते अग्नि, तेत्रीश कोटि देवता, मुख ले, तेथीज ते देव , तो ते देव थक्ने अ निष्ट, तथा मृतकनुं कलेवर अने बीजी पण अंदर होमेली खराब वस्तुने केम नहाण करी जाय बे ? माटें अपवित्र पदार्थनुं नोजन करनारा देवर्नु पूजन करनारा जे तमो ते तमो पण अपवित्रज तस्या. एमज वली जलने पण कहो बो, के “जल डे, ते विष्णुनी मूर्ति ने.” एम कहीने पाला तेज Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जलथी गुदानुं तथा पग वगेरे अपवित्र अंगनुं प्रक्षालन करो बो ? माटे जुन. तमें जेने देव मानो बो, तेनी साथै विरु६ व्यवहार करनारा नथी ? ना बोज. कदाचित् तमें एम कहेशो के जल , ते विश्वनुं जीवन जे, कारण के ते जल विना विश्व जीवीज शकतुं नथी माटे ते जगतनो नपकार करे , तेथी तेने देव मानियें यें ? त्यारे टुं कहुँ , के जो तेवा हिसाबधीज जलने देव मानीयें, तो कुंजारने पण देव मानवो जो थे, कारण के ते पण जगउपकारी कुंन प्रमुख कार्य करे . वली पण तमें कहो बो के बोकडाना अने गायना मूत्रने घरमां बांट्या विना अमारा घरमांथी मृतक सूतक जातुं नथी. अने जलविना देहमांथी सूतक जातुं नथी ? तो तमारा घरने तथा देहने पवित्र करनारुं पूर्वोक्त बोकडा, मूत्र, तथा जल दोवाथी ते पण तमारा देव ठस्या ? वली हे नाइ ! विचार करो, के तमारा मतमां पण सर्वत्र जल अने अग्मिने जगतना सुख माटे विधातायें कुंभारादिकोनी पेठे नत्पन्न करेला बे. माटें तमारा मतथी पण जलनुं अने अग्निनु नपकारीपणुं सिम थाय . परंतु तेथी देव पणुं सिम थातुं नथी. माटे जलमां अने अग्निमां तथा बोकडाना मू त्रमांजे देवपणानी कल्पना करवी, ते अयोग्यज ले. वली पण विचार करी जुन, के कोइ माणस, कोइएकने इष्ट देव मानी अने तेनी पासें पोताना शरीरनी सेवा तथा गृहकार्य करावे,तो ते कर्म करावनार माणास दोषवान् न थाय गुं? ना थायज. तेम तमें जलने अने अग्मिने इष्टदेव मानी जलथी गुदप्रक्षालन प्रमुख, तथा अग्निथी रसोइ वगेरे कार्य करावो बो, तेथी तमो गुं दोषवान् न था?ना थाज.अने वली एम करवाथी जलनुं अने अग्निनु देवपणुं रहे गुं? ना नज रहे. अने तमारूं सेवकपणुं पण रहे ? ना नज रहे. माटे ते देवत्वरहितने तमे देव मानो बो, ते तमारी महोटी नूल ले ? अर्थात् घणादोषवाला अग्निने अने जलने देव मानी तमो दूषित कहेता नथी अने देव मानो बो,अने आ बिचारा मारा मार्जारने जरा खंमित कर्णपणाना दोषथी दूषित कहो बो, तो ते तमारी केवी अज्ञानता के ? तेमज वली गंगा अने गौरी तेने विषे आसक्त एवा शिवजीने तमो निर्दोष देव कहो बो, अने आ बिचारा मिंदडानो एक माबो कान उंदरना करडवाथी जरा खंमित थ गयेलो , तो तेने तमें दूषित कहो बो, ए पण तमाऊं केवु मौर्य ? Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ३१३ यावां सयक्तिक ने सप्रमाण वाक्यो हरिवेगनां सांजलीने ब्राह्मणो तो सर्व निरुत्तर, निष्टने चित्रामणमां खालेख्या जेवाज थइ गया. अने पद्मोत्तरकुमार पोतें सुननबोधी होवाथी प्रथम ब्राह्मणमतमां निरादर तो हतोज, परंतु पोतानो पिता ते मतमां होवाथी जरा आदर राखतो हतो, पण या प्रकारां ते हरिवेगनां वाक्य सांजलीने तुरत, ब्राह्मणोना कहेला मतने विषे साव मंदनाववालो थइ गयो. अने मनमां विचारखा लाग्यो के हो ! या पुरुष कां मिंदडो वेचनार माणास नथी, परंतु कोइ महान् पुरुष बे, माटे धर्मनुं स्वरूप या महात्मा पुरुषनेज प्रूनुं, के जेने समजवाथी मारुं कल्याण याय ? अरे ! खटला दिवस सुधी यावा पाखंमी ब्रा ह्मण लोकोयें मने ठग्यो, अने मारुं श्रायुष्य निरर्थकज खोवराव्युं ! एम विचार करीने ते कुमार, रूपांतरधारी हरिवेगने पूढवा लाग्यो के हे मित्र ! जेम राजहंस, कमलवनमां क्रीडा करे, तेमाप कया देव, कया गुरु अने कया धर्मरूपवनने विषे क्रीडा करो हो ? अने आप क्यों रहो हो ? त्यारें हरिवेग बोल्यो के हे नाइ ! सर्व दर्शनोनां शास्त्र हुं सारी रीतें जाएं बुं, परंतु मुने कोइ पण ठेकाणे एक जिनदर्शन विना शुद्ध अने सविवेक, मदायक बीजुं कोई पण दर्शन जोवामां यान्युं नहिं. कारण के सर्वे दर्शनवाला हिंसा न करवी, खोटुं न बोलवं, चोरी न करवी, परस्त्रीगमन न कर, निष्किंचन रहेतुं, एम कहे बे खरा, परंतु तेम ते पालता नथी. अर्थात् ते केवल मुखथीज बोले ले पण तेमांची काहिं पण पालता नथी. जु, के केटलाएक दर्शनवाला, परिग्रहधारी होइने क्रय विक्रय एटले अने क प्रकारना जे व्यापारो, तेने करे ले, तेमां कीडी प्रमुख जीवोने मारे मरावे बे. ते पचन पाचन वगेरेना आरंजोने पण करे करावे ते. वली केटलाएक दर्शनवाला कंद, मूल, फल, तेना प्रहार करवारूप खोटां तप कररी शुष्क शरीरवाला यायले ने दयाधर्मनो प्रलाप करे ते. अने ते पूर्वोक्त कंद, मूल, फलने विषे जीवपणुं जाणताज नथी. केटलाएक जड पुरुषो तो धर्मने माटे यज्ञना कुंममां निरपराधी एवा बीचारा प्रजा वगेरे पशुउने होमी दीये a. ने प्रापण जेवो कोइ पण तेने जइ पूबे बे, के यावा निरपराधी बी चारा जीवोने या यज्ञकुंममां शामाटे होमी दीयो हो ? अने तेनुं हिंसारूप पाप शा माटे बांधो बो ? त्याऐं ते कहे बे, के या यज्ञकुंममां जे पशु होमवा ४० Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. अने तेनो नाश करवो, ते काहिं हिंसा कहेवाती नथी, कारण के या झिकी जे हिंसा ते हिंसाज कहेवाय नहिं, तेथी यज्ञमां हिंसा करवारूप पाप जे ले ते पाप अमने लागे नही. वली कहे , के आ जे पगुनने यज्ञकुंममां अमो हो मियें यें, तेथी ते पशुचनो देखवामां तो नाश जणाय ने खरो, परंतु ते नो अमें नाश नथी करता, पण उपकार करीयें बैयें. केम के? ते कुंममा हो मेला पशु स्वर्गमां जाय . हवे त्यारे तेने आपणे एम पूजीयें के ज्या रें तमें ते पगुनने कुंममां होमी स्वर्गमा मोकली तेनो उपकार करो बो, त्यारें तमारा माता पिता वगेरेने कुंममा होमी तेने स्वर्गमां मोकलवारूप उपकार केम करता नथी ? एम करवाथी तो तमने मोहोटुं पुण्य थाय ? माटे हे राजन ! कहेवानुं कारण एटलुंज , के ते लोको मुखथी मात्र कहे डे, के अमें धर्म पालीयें बैयें, परंतु प्रत्यद ते हिंसाज करे . माटे ते दर्शनवाला जेम बाफला अडद अने कलुषित अन्न वगेरेनुं जोजन करे ने, तेम धर्म अने अधर्मनां कर्मोयें करी कलुषित एवा धर्मने पण पाने . वली हे राजन् ! तेवां बीजां घणांज दर्शनो बे, के जेमां केवल दोषीजन रेला .अने निर्दोष मत जो जोश्ये,तो तो एक जिन मतज . कारण के विश्व जे डे, ते घर्षणथी, तापमां तपावाथी, कापणीयें करी कापवाथी परी दा करेला सुवर्णने शुक्ष सुवर्ण कहे , तेम सुझजनो पण हवे कहेगुं एवां कारणोथी परीक्षा करी शुम थयेला जिनमतने शुरू करी कहे . हवे ते कारणो कहूँ . के प्रथम तो जिनमतने विषे देव जे मानेला . ते १ दानांतराय, २ लोनांतराय, ३ वीर्यातराय, ४ नोगांतराय, ५ नपनोगांतराय, ६ हास्य, ७ रति, ७ अरति, ए नय, १० हर्ष, जुगुप्सा एटले निंदा, ११ शोक, १२ काम, १३ मिथ्यात्व, १४ अज्ञान, १५ नि श, १६ अविरति, १७ रोग अने १७ दोष. ए अढार दोषोथी रहित बे. वली या जिनमतमा जे गुरु मानेला . ते पण महाव्रतने धारण क रेला मानेला , एटले हिंसा, असत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अने अकिंचन त्व. ए पांच समितियें युक्त तथा मनोगुप्ति, कायगुप्ति अने वचनगुप्ति, ए त्रण गुप्तिये युक्त, षट्जीवनिकायना रक्क माटें निरीह, निःस्टह कहेला . वली जिनदर्शनमां धर्म पण तेनेज कहेलो . के जे उर्गतिमां पडता जी वोने धारण करी राखे ले.अने सम्यक ज्ञान जे जे ते धर्मनुं सारनूत कहे Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३१५ बे. जैम के कोई एक महोटा वनमां अनेक वृदो बे खरां, परंतु जे वृक्षने सुगंधित पुष्पो लागेलां होय छे, तो ते वृथीज ते वन सुगंधित कवाय बे, तेम जिनमतरूप महावनने विषे पुण्यकारक बीजी क्रियारूप वृको तो घांबे, परंतु एक सम्यकरूप जे कुसुमित वृद्ध बे, ते वृक्ष सारनूत बे. वली या जिनमतना शास्त्रमां तत्त्वश्रद्धान तो एटलुंज कहेलुं बे, के कोइ पण प्राणीने क्यारें पण हणवो हणाववो नहिं. माटे हे मित्र ! या जिनधर्म बे, ते पूर्वोक्त सर्वरीतथी मोक्षदायकज बे. एम तमारें निवें करी जाए j. या प्रकारें रूपांतरधारी हरिवेगना मुखथी शुद्ध एवा न्मतना गु गोनी स्तुति सांजली पद्मोत्तर कुमार तो परम आनंदने प्राप्त थयो. त्यारें वली रूपांतरधारी हरिवेग कहेवा लाग्यो, के के कुमार ! जे धर्मना प्रजावथ । गया जब मां व्यापणे वे हुयें प्रथम ग्रैवेयकमां देवता य३ त्यांनुं सुख जोगव्युं हतुं, ते तमने सांजरे बे, के जूली गया? वली त्यां श्रावसो प्रतिमायें युक्त, मणि यने रत्न, तेणें जडित, एक सिद्धायतन नामनुं वैमान आपने प्राप्त थयुं हतुं, ने तेमां बेसीने यापें श्रावसो प्रतिमानुं वंदन करयुं हतुं, ते पण आपने सांरतुं नयी शुं ? वली या प्रकारना सुखदायक एवा धर्मने पूर्व वोथी जाणो तो बो, परंतु श्रादरता शा माटे नयी ? आवां पोताना पूर्वन वना मित्र हरिवेगनां वचन सांजलीने उत्पन्न ययुं बे, जातिस्मरण ज्ञान जे ने एवो ते पद्मोत्तर कुमार, प्रह्लादित थइ कहेवा लाग्यो के ग्रहो ! या केतुं मनोहर ज्ञानदान ! अहो ! या केवो वली मारी पर दृढस्नेह ! य हो ! या केतुं यापनुं परोपकारीपणुं ! हो ! में पण हाल जाएयुं, के ग या जन्ममां ज्यारें हुं सुरसेन कुमार हतो, त्यारें याप मुक्तावली नामा स्त्री हता, ते मुक्तावली थयेला श्राप मारी साथै ग्रैवेयक लोकने विषे य हमिं देव थ त्यांथी चवीने हाल हरिवेग नामा विद्याधर थया बो, अने वली मारी साथै पूर्वना घणाक नवोनी मित्रता होवाथी मायायें करी मा जरि वेचनारा पुरुष जेवुं रूप लइने मने बोध देवा माटें याव्या हो ? तो हवे हे मित्र ! ते मायाकृत रूपने बोडी दइने आपनुं खरूं स्वरूप मने बतावो . ते सांजली रूपांतरधारी हरिवेगें जे पोतानुं खरं रूप हतुं ते प्रगट कस्युं. पी अत्यंत प्रेम विह्वल थने ते पद्मोत्तर कुमारनुं दृढ यानिंगन क स्वं. पी पद्मोत्तर कुमारें कयुं के अहो ! मने प्रापनो मेलाप थयो, ते घ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. गुंज सारुं ययुं ? एम कहीने ते हरिवेगने पोताना अर्ज आसन पर वे सास्यो. हवे हरिवेग कहे , के हे मित्र ! आपने मलवानो मने घणोज अनिलाप होवाथी आपना ध्यानने क्षण मात्र पण में मनथी उताऱ्या नथी. ते जेम के ॥ श्लोक ॥ तत्त्वं ब्रह्म यथा स्मरंति मुनयो हंसा यथा मानसं, यत्पन्नवसनकीवनयुतां ध्यायंति रेवां गजाः ॥ युष्मदर्शन लालसा अनुदिनं तत्स्मरामो वयं, धन्यः संप्रति वासरोऽत्र नवतां जातश्च यत्संगमः ॥ १ ॥ अर्थः- मुनियो जेम ब्रह्म तत्त्वने संनारे . हंसो जेम मानसरोवरने संजारे ने, नवांकुरित एवा सनकी जाडना वनथी युक्त एवी रेवा नदी- जेम हाथीयो ध्यान करे ,तेमज अमें पण थापना दर्शननुं प्रतिदिन स्मरण करता हता, माटे आजनो दिवस धन्य ले के जेमा हाल मने आपनो समागम थयो ? ते सांजली पद्मोत्तर कुमार कहे ने, के हे मित्र ! अावा आप सरखा सङान जनना सौजन्यने कोण वर्णवी शके? अर्थात् थापना सौजन्यनो तो पारज नथी. अने अहो मित्र! आपनो मने मेलाप यवाथी आजनो दिवस , ते सुदिवस ने, अने आजनी वेला पण सुखदायकज ने. वली आपना मेलाप विनानो जे मारो आज दिवस पर्यंत काल गयो, ते सर्व निरर्थकज गयो बे ? हे ना ! आर्ति, शोक, नय, तेने नाश करनार, अने प्रीति तथा विश्वास तेनुं पात्र एवं 'मित्र' एवा वे अदरवालुं रत्न, ते कोणें नत्पन्न कयुं हशे वारु ? कह्यु ॥ श्लोक ॥ वरमसौ दिवसो न पुनर्निशा, ननु निशैव वरं न पुनर्दिवं ॥ उजयमप्यथ वा व्रजतु यं, प्रियतमेन न यत्र समागमः ॥ १ ॥ मुंजन जं वा तं वा, निवसिऊन पट्टणेव रस्मे वा ॥ इजण जथ्थ जोगो,तं ठाणं चेव रमणीऊं ॥२॥ अर्थः-जे दिवसमां प्रिय तम मित्रनो मेलाप थाय,ते दिवसज श्रेष्ठ जाणवो, पण रात्रि नहिं ? अने जे रात्रिमा प्रियतर मित्रनो समागम थाय, ते निशा पण उत्तमज जाणवी, पण दिवस नहिं ? तेमां पण जे रात्रिमा अने जे दिवसमां प्रिय मित्रनो समाग म थायज नहिं, ते दिवस अने रात्रि बेदु दय पामो. अर्थात् बेदु काहीं कामनांज नहिं ॥१॥ कदाचित् खावा, मले, अथवा न मले, कदाचित् नगर मां वास थाय वा अरण्यमां वास थाय, परंतु जे काणे श्ष्टजननो योग मने, ते स्थान रमणीय जाणवू. अर्थात् महोटां खो कदाचित् प्राप्त थयां होय, Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३१७ तो पण तेमां जो आप जेवा इष्ट मित्रनो मेलाप थाय, तो ते दुःखो पण ज गातां नथी. एम स्नेह रस युक्त एवो पद्मोत्तर कुमार, विस्मय पामी हरि वेगनी सामु जोड्ने पूजे जे, के हे मित्र! हवे आपना आज पर्यंत जेटला जव थया, ते सर्व नवनी सविस्तर वात मने कहि आपो. त्यारे ते हरिवेग विद्याधरें शंख राजा अने कलावतीना नवथी मामीने हालमां थयेला पद्मोत्तर कुमारना तथा पोताना हरिवेग विद्याधरना नव पर्यंतनी सर्व कथा कहि बतावी. अने पद्मोत्तर कुमारे पण जातिस्मरण झान होवा थी जाएयुं जे मारा मित्र जे वात कही , ते सर्व बराबरज कही ले. पनी पद्मोत्तर कुमार पोताना सर्व देशमां सर्वस्थलें उद्घोषणा करावी के अमारा देशमा रहेनारा माणासें जैनधर्म शिवाय बीजो कोइ पण धर्म पालवो नहिं.अने एम करतांजो कोई पालशे, तो तेने अमारा देशथी बादार काढवामां आवशे ! कारण के जिनधर्मसमान बीजो कोइ उत्तम धर्म नथी. हवे सुरपति राजा पोताना पुत्रनो हरिवेग साथै मेलाप थयो अने तेमां जैनधर्म विपे घणीज चर्चा चाली, ते सांगली बीजा धर्मोने मिथ्या मानी त्यांना रहेवासी सर्व ब्राह्मणोसाथें जिनधर्मने विपे दृढरागी थयो. हवे ग्रामग्रामने विषे विहार करता, केवलझाने करी नास्कर समान,सुर,अ सुर, तेना निकरोयें करी सेवन कस्यां के चरणकमल जेनां, एवाश्री गुणसा गर नामा केवलीयें पोताना केवलझानथी जाएयु जे हाल हवे पद्मोत्तर कु मार तथा तेना देशमा रहेनारा सदु कोइ मनुष्य, जिनधर्मना दृढरागी थया जे, माटें दुं त्यां जावं! तेम जाणी त्यां पद्मोत्तर कुमारना गामनी बाहेर आवी उपवनमां समोसस्या. ते सांजली हर्षायमान थयेला एवा सुर पतिराजा प्रमुख सर्व वांदवा गया, त्यां जश्ने सदु कोइ, केवली नगवा नने नमस्कार करी धर्मदेशना सांजलवा यथोचित स्थान पर बेठा. अने जगवाने पण पापने नाश करनार एवी देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः- हे नव्यजनो! जन्म, जरा अने मृत्यु, ते रूप तरंगोना नंगथी जयंकर एवा संसारसमुश्ने विषे नाना प्रकारनी आपत्तिरूप मकरोथी दुःख पामता एवा तमोने ते फुःखथी रहाण करवाने एक सर्वझोक्त धर्म शिवाय बीजो कोइ पण आधार नथी ॥ यतः ॥ चिंतामणेर्वा किल कल्पदात्, स्वर्धामधेनोरपि कामकुंनात् ॥ एतदुरापं च ततो नवनि, यत्नेन कार्य Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ जैनकथारत्नकोष नाग सातमो. सुगृहीतमेतत् ॥ १॥ अर्थः-जे जिनधर्मतत्त्व चिंतामणिथी, कल्पवृक्ष थी, स्वर्गनी कामघाधेनुर्थी. कामकुंनथी पण प्राप्त थातुं नथी, ते जिनधर्मतत्त्वने तमें यत्ने करी ग्रहण करो. अर्थात् चिंतामणि वगेरे कोई पण पदार्थथी जे नहिं मले, तेवा धर्मने तमो घणाक प्रयासथी प ण ग्रहण करो. अरे ! जेम को मूर्ख होय, ते पोताने यांगणे नगेला कल्पवृदने कापी नारखीने ते स्थलपर धंतुरो वावे, वली पोताना हाथमां आवेला चिंतामणिने एम जाणे के आ तो रस्तामां पडेला कांकरा जेवो कांकरो , एम जाणी ते मणिय। कागडाने नमाडे, वली हाथमां आवेला अमृतने ढोली नाखीने हालाहल जेर पीये, तेम जे अज्ञानी जीव डे, ते पूर्वोक्त कल्पवृक्षादि समान प्रत्यद फलदायक जिनधर्मने बोडीने धत्तुर वृदादि समान बीजा धर्मने ग्रहण करे . अने हे नव्यो! ते जिनधर्म,गुरु सामग्री मल्या विना प्राप्त थाय नहिं. तो हवे ते गुरु पण केवा जोयें ? के ॥ यतः ॥ अवद्यमुक्ते पथि यः प्रवर्त्तते, प्रवर्तयत्यन्यजनं तु निःस्टहः ॥ स एव सेव्यः स्वहितैषिणा गुरुः, स्वयं तरन्तारयितुं दमः परम् ॥ १ ॥ अर्थःप्रारंन जे जीव हिंसा तेथी मुक्त, एवा मार्गने विपे जे प्रवर्ने , तथा बीजा ने पण तेवाज मार्गमा प्रवर्तीवे जे, एवा गुरुनु स्वहितैषी पुरुषोयें सेवन करवू, कारण के तेवा गुरु पोतें तरे डे, अने बीजाने पण तारे जे. जेम जल विना समु इन कहेवाय, जेम सूर्यविना दिवस न कहेवा, तेम पूर्वोक्त गुण विना गुरुजन कहेवाय. माटे एवा गुरु जोयें, अने तेवा गुरु विना स्वर्गापवर्ग दायकजिन ध मनी प्राप्ति को कालें थाय नहिं. तो हे राजन् ! हाल तेवी गुरुसामग्री पण तमोने प्राप्त थयेली, तेथी संसारना निस्तारने करनार, प्राचीन पुण्ये प्राप्त थवा योग्य, एवा उर्लन जिनधर्मने विषे प्रमादनो त्याग करी यत्न करो. ते सांनती विद्याधरनो चक्री एवा हरिवेग कुमार बोल्यो के हे विनो! आप सत्य ज कहो बो, आप जेवा गुरु विना धर्मनी प्राप्ति कोइ दिवस थायज नहिं. जुन. आ पद्मोत्तर, घणाज चतुर तथा समजु दे, तो पण तेने शुक्ष गुरु विना मिथ्यात्वनी प्राप्ति थइ. एम ज्यां कहे जे, त्यां तो सुरपति राजा कहेवा लाग्यो के हे जगवन् ! में तो आपना हालमां कहेला उपदेशथी निश्चय कस्यो ने, के सर्वशिरोमणि एवा वीतराग परमात्मा जे , तेज देव ने. बीजा को देवज नथी. अने गुणगणना आधार, सदाचारने प्रवर्त्तावनार, जे गुरु Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३१ होय, तेज गुरू कहेवाय बे, बीजा गुरु ते गुरु नहिं. वली षनिकायनुं जेमां कायक, वाचक ने मानसिकरीतें रक्षण थाय बे, तेज धर्म कहेवाय बे, बीजो धर्म नहिं. परंतु हे माहाराज ! एक हुं आपने पूबुं बुं, के या प्रका रनो जगतमां उत्तम धर्म बे, ते बतां राजा लोको वगेरे केटलाएक जीवो, पाखंमी, ने हिंसक एवा देवने, तथा तेवाज देवने मानवाना उपदेश करनारा मिथ्यात्व गुरु प्रमुखने सेवन करें। पोताना आत्माने मिथ्याक्रियायें करी शामा क्वेश पाडे बे ? ते सांगली केवली भगवान कहे बे, के हे राजन् ! या जगतमां मनुष्यो जे ले, ते कोइ पण प्रकारनो व्यवसाय, कां पण फल प्रातिनी शायें करे बे, परंतु कोइ निरर्थक व्यवसाय करता नथी. जुने, मां केटलाएक चक्रवर्ती राजाने, कोइक माहामांगलिक राजाने, केटलाएक माधिपतिने, कोइक ग्रामाधिपतिने, कोइक क्षेत्राधिपने, कोइक धिक्कार पामेली जातिवालाने, कोइएक नटने, कोइ एक नटने, अने कोइएक नि कने पण सेवे बे. परंतु ते पूर्वोक्त चक्रवर्ती प्रमुख, पोत पोतानी शक्ति प्रमाणें तेने फल खापे ले, पण तेथी कांइ वधारे व्यापी शकता नथी. जेम को एक निखारी होय तेनी सेवा करी प्रसन्न करीने तेनी पासें कदाचित कोइ लक्ष सोनामोर मागे, तो ते बिचारो क्यांथी यापी शके ? तेम धर्म ने विषे पण मनुष्य, जेवा जेवा गुणवाला देव, गुरु, धर्मनुं खाराधन करे बे, तेने तेवां तेवां फलो ते देव, गुरु खने धर्म पे ते. वली जगत् मांशुं वन्युं बे ? तो के केटला एक पाखंमी लोकोयें पोतानो स्वार्थ पार पा डवा माटें पोताने सुख मजे, तेवां कपोलकल्पित असंगत शास्त्रो बना व ते शास्त्रांना उपदेशें करी जोला लोकोने धर्मना प्रपंचथी फसावेलां , ते फसाइ पडेला विवेकी लोकोनी बुद्धि, स्वेच्छाथी स्नान, पान, कंद मूलादिकनुं नक्षण, रात्रिभोजन, कन्यादान, कूप, तलाव, वाव्य प्रमुखनुं कराव, इत्यादिक शरीरसुखदायक बालकनी जीना समान धर्मने जा ने कठिन क्रियावाला जिनधर्मने विषे प्रीतियुक्त याती नथी. वली अतिप्रयासें पाली शकाय एवा पंच महाव्रतना नारने अंगीकार करवाने समर्थ एवा ते पाखी धूर्तजनो विषयानिलापने विषे लुब्धथका एक गृहस्थाश्रम धर्मनेज उत्तम धर्म कहे बे. वली ते मूर्खजनो, तलाव, कूवा, नदी, ज्यां वे नदीयोनो संगम था Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तो होय तेवू स्थल, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रवेणी, नर्मदा, गोदा वरी, सेतुबंधरामेश्वरादिकने विषे स्नान करवाथी मोहोटुं पुण्य थाय बे, एम कहे जे. तेमज वली कोइएक हिंसक तो त्रिपुरा, तोतला, नवानी, व्याघेश्वरी प्रमुख उग्र देवीयोना मंत्र जपथी तथा यजुर्वेदादिकना मंत्रजप थीज पुण्य थाय ने एम कहे जे. केटला एक मतिमंदजनो तो तेज मंत्रोथी तिल वगेरेनो अग्निमांदोम करवाथी पापोपशमन थाय ,एम कहे .कोक जडबुद्धिजनो तो,रस्तामा जाड वाववाथीज धर्म थाय , एम कहे . केटला एक अज्ञानी जीवो, केवल आत्माना शून्यध्यानथीज पापनो प्रलय थाय बे, एम कहे . कोशएक उष्टदिलवाला जनो, पोतानाज पूजन करवाथी धर्म थाय , तेम कहे . कोइएक बालबुद्धिवाला माणासो तो, जीव जे बे, तेज परमात्मा दे, तेथी ते जीवने एक दणवार पण कुःख देवं नहिं. अने जे सुख जोगववानी पोताने इला थाय,ते सुखने नोगवी पोतानी इला पूर्ण करवी, तेज धर्म , एम कहे . माटेंते पूर्वोक्त मिथ्यात्वी जीवो तीर्थ करप्रणीत शुद्ध धर्मने विषे केम यत्न करे? तथा प्रीतिमान् पण केम थाय ? कारण के ते जनो पोताने जेमां सुख पडे, तेनेज धर्म कहेनारा ने. हवे पूर्वोक्त सर्व जे मिथ्यात्व , ते सर्व, फुःखने देवावालुं तथा वैरीसमान उत्कट हलाहल जेर समान जे,एम जाणवू. ते माटे ते मिथ्यात्वनो तमारे त्याग करवो. कहेलु के ॥ श्लोकः॥ विषाहिरुपवहिरिपुव्रजेन्यो, मिथ्या त्वमत्यंतरंतःखम् ॥ एकत्र जन्मन्य हितं विषायं, मिथ्यात्वमाहंति नृणामनंतम् ॥ १ ॥ अर्थः- मनुष्योने विष, सर्प, रोग, अग्नि अने रिपु, तेना समूहथी पण मिथ्यात्व जे , ते अत्यंत कुःखदायक . केम के ? ते विषादिक तो मनुष्यने प्रा जन्मने विषेज नाशनां करनारां. परंतु मिथ्यात्व जे, ते तो अनंत जन्म मरणादिक दुःखने आपनालं. __ या प्रकारनां केवलीनां वचन सांजलतांज सुरपति राजाने मिथ्यात्व मोहनी कर्मनो क्ष्य थ गयो. तेथी ते गुरू सम्यत्त्वने पाम्यो. पनी अनु में तेने चारित्र परिणाम नत्पन्न थवाथी ते केवली नगवानने नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के हे जगवन् ! जेम हाल थापें मने मिथ्यात्व रूप खा डामांथी मूबतो राख्यो,तेमज हवे दीदारूप पर्वत पर पण चडवानो अनुय ह करो. एम नावयुक्त तेनां वचन सांजलीने ते सुरपति राजाने तुरत दीदा Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३१ आपी. पडी ते सुरपतिसाधु, विशुपचारित्रने पालतो थको गुमध्याने पकश्रेणि पर चढी केवलज्ञान अने दर्शनने नत्पत्र करी घणोक काल पृथिवीपर विहार करी नवोपग्राहि कर्मोने खपानी, परंपद जे मोद पद, तेने प्राप्त थयो. __पनी श्रावकधर्म जेने प्राप्त थयो ने एवा ते पद्मोत्तर कुमारने हरिवे गादिकें, तेना पितानी राज्यगादी पर बेसास्यो. अने ते माहामांमलिक राजा थयो. हवे हरिवेग विद्याधर, ते पद्मोत्तर राजाने वैमानमां बेसारी पोताना वैताढ्य पर्वत पर वसेला सुनौम नार्मा नगरप्रत्ये तेडी लाव्यो. अने त्यां घणुंज तेनुं सन्मान कर्पु, पड़ी कह्यु के हे मित्र! आ मारा वै ताढय पर्वतनी उत्तर तथा दक्षिण श्रेणिना राज्यने तथा आ मारी विद्याध रपणानी विद्याने आप ग्रहण करो. त्यारें पद्मोत्तर कुमार बोल्यो के हे मित्र ! मारामां अने तमारामां काहिं अंतर ? जे आपy राज्य बे, ते मारुंज बे,कारण के आपनाथी हुँ को रीतें जुदो नथी. वली आ मने उर्लन एवो जिनधर्म आपीने मोदरूप राज्य आप्युं, तो हवे आ लौकिक राज्य ते तेनी गणतीमां क्या रयुं ? वली हे मित्र! आ जगतमां आप जेवा धर्मोपदेशना करनार पुरुषो तो घणाज थोडा २ ॥ यतः ॥ ये इव्यव्यय कारिणः गुजरते ते संत्यदो कोटिशो, ये कष्टानिनिविष्टलष्टवपुषः स्तोका न तेन्योऽपि ते ॥ नानाशास्त्रविचक्षणा नुवि तु ये ते चापि नो उर्लना, ये जैन्युक्ति विधायिनः प्रशमिनो चित्राः पुनस्तेऽधुना ॥१॥ अर्थः-सारां सांसारिक काम माटे व्यनो व्यय करनारा पुरुषो तो कोटि शः मले बे. परंतु तेमांथी कष्टमां पडेला एवा फुःखी जनना दुःखने मटा डवाने इव्य व्यय करनारा तो थोडा पण मलता नथी. तेमज विविध प्रका रना शास्त्रान्यासमां विचक्षण तो आ पृथ्वीने विषे घणाज, परंतु आप जेवा मोदकारक जैनधर्मना जाणनारा तो मांम वेत्रण मले, तो मले ? एम ते हरिवेगनी प्रशंसा करीने वली कडं के हे मित्र! मारी तो एवी मनीपा डे के हवे आपण बेदने वियोग न थाय माटे आपणे एकत्रज रहीने आ वैताढयनी उत्तर दक्षिण श्रेणिना राज्यो चलावीये. अने ते राज्यनांज सुख जोगवीये. वली ते राज्यसुख पण क्यां सुधी जोगवीयें, के ज्यां सुधी आपण बेदुने राज्यधुरने धारण करे, एवा वे पुत्रो उत्पन्न न थाय त्यांसुधी? Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. अने ज्यारे आपणने राज्य वहन लायक पुत्रो थाय, के तुरत ते राज्यो पोत पोताना पुत्रोने सोंपी दीक्षा ग्रहण करियें ते सांजली अत्यंत खुशी थयेलो हरिवेग बोल्यो के हे वयस्य ! मारा मनमां जे विचार में धारेलो हतो, तेज आ पण कह्यो. एम कही बेहुजण त्यां साथेंज रह्या. पड़ी अत्यंत स्नेहयुक्त ते बेदु मित्र प्रतिदिन हर्षायमान थका मनोहर वैमानमां बेसी महाविदेहक्षेत्रने विषे जिनप्रतिमाउने वांदवा माटे जाय . वलीप्र तिदिन धर्मोपदेश सानले . शाश्वत एवां जिनचैत्योनी नक्तिनावथी पूजा यात्रा पण करे जे. जगतने आह्लादकारक एवा ते वेदु मित्रो, जैनधर्मना प्रत्यनीक जनोनुं निवारण करी चैत्योनी तथा जैनसाधुन्नी उत्तम प्रनाव ना करे . साधर्मिकवात्सल्यने करवे करी ते केटलाएक श्रावकोने दुःख मांथी निवृत्त करे . अने पोतानी प्रजाने पण ते कर वगेरे पुरखोयी मुक्त करे . तेथी सर्वत्र महायानंद वर्ने . वली तेन्ना राज्यमां ब्राह्म गो जे हता, ते पण जिनधर्मने विपे परम आदर वाला थया, कहेवत ने के “यथा राजा तथा प्रजाः" एटने जेवा राजा होय, तेवीज प्रजा पण थाय? या प्रमाणे पोताना देशोमा रहेनारा सहुको जनो जिनधर्मना रागी थया. अने बीजा लोको पण निकटबोधी होवाथी ते वेदु जानी करेली धर्मनी अनुमोदनायें करी जिनधर्मने विपे निर्मत्सरी थया. एम करतां राज्यनारने चलावता एवा हरिवेग अने पद्मोत्तर कुमार, एक दिवस ध्वजा, पताका अने तोरण वगेरे उत्सवोयें करी मनोहर एवा पद्मो त्तरना गर्जन पुरमा अाव्या, त्यारे ते नगरना रहेवासी उत्तम श्रावकोये त्यांना जिनेप्रासादोने विपे मोहोटी नक्तिथी गीत, वाजिन अने नाट्य, तेणें युक्त एवा परम महोत्सव करवानो प्रारंन कयो. विविधवर्णवाली श्रीअरिहंत नगवाननी प्रतिमाउने आंगीनी रचना करी, तथा अनेक प्रकारनी पूजा पण जणावी. तेथी त्यां सङ कोइने मोहोटो आनंद थयो. पड़ी ते बेदु कु मारो जिनालयमा जश् त्यां नगवाननी पूजा करी दर्शन करी परम प्रमोद पामी ते अरिहंत नगवाननी पूजानी स्तुति करवा लाग्या. ते जेम के॥श्लोक॥ नेत्रानंदकरी नवोदधितरी श्रेयस्तरोमंजरी, श्रीम-धर्ममहामहेंड्नगरी व्याप हनताधूमरी ॥ हर्षोत्कर्षशुनप्रनावलहरी नावहिषां जित्वरी, पूजा श्री जिनपुंगवस्य नवतु श्रेयस्करी देहिनाम् ॥ १ ॥ चेतः पुनाति घनकर्मचयं Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३२३ लुनाति, स्वर्ग ददाति शिवसंपदमादधाति ॥ पुण्योदयं वितनुते तनुते सुसौरव्यं, सङनपूजनमिदं किमु यन्न धत्ते ॥ ॥ अर्थः-नेत्रने आनंद करनारी, नवोदधिने तारनारी, कल्याणरूपरदनी मंजरी, सुशोनित धर्म रूप महाराजानी नगरी, महोटी आपत्तिरूप लताने विषे अनि सरखी, हर्षा धिक्यनी तथा शुनप्रनावनी लहरी, अने नावषी जे चतुःकषाय तेने जीतनारी एवीजे श्री जिनपतिनी पूजा,ते प्राणिमात्रने श्रेयस्कारक था ॥१॥ वली था श्री जिनपतिनुं पूजन जे , चित्तने पवित्र करे , गाढा एवा कर्मसमूहने नाश करे , स्वर्गने आपे , शिवसंपदाने पण आपे बे, पुण्योदयने विस्तारे थे, रूडा एवा सौरव्यने आपेले. माटे ते जिनपू जन झुं नथी आपतुं ? अर्थात् सर्व वस्तुने आपे . आ प्रकारें अरिहंत नगवाननी पूजा- स्तवन करीने ते वेदु जण, पोताना घर तरफ चाव्या, ते राजरस्तामा याव्या. त्यां तो ते वेद जणे, जटिल, धूडथी जेनुं सर्व शरीर खरडायेलु डे, तांबूलना नदण कर वाथी जेना होठ लाल थ गया , हाथ अने पग जेना खडीयी रंगे ला , केवल लंगोटीज जेणें पहेरी छे, जेना वेदु हाथो पालथी बांधे लाने, आक्रोश करता केटलाएक द्यूतकारोनी वच्चे ते द्यूतकारोथी लाक डी वगेरेयें हणाता एवा कोइएक जुगारीने जोयो. तेने जोवाथ। एकदम खेद पामी पद्मोत्तर राजा बोल्यो के अरे पुष्टो ! मारा राज्यमां या प्राणीने अटली बधी पीडा केम आपो डो? वली तेने पीडा करीने पलायन पण केम करता नथी ? अने तेनी पनवाडे ने पवाडे लागुज रह्या बो ? एम तेना मारनारानने कहीने ते जुगारीने पोतानी पासें बोलावी मगाव्यो. त्यारे ते मारनारा जुगारीयो बोल्या के महाराज! या मुष्टमाणास पर थापने दया लाववा जेवू नथी. त्यारें पद्मोत्तरें कर्तुं के ए ते बोलो बगे गूं? आवा निरपराधी गरीब माणासने तम जेवा मारे, ते तमोने अमारे मारतां अटकाववा न जोश्य ? तथा ा बीचारा पर दया पण न आवे ते सांजली ते जुगारीयो बोल्या के हे राजन् ! था गाममा एक नव क रोड इव्यनो स्वामी वरुण श्रेष्टीनामा वैश्य रहे , तेनो आ पुत्र , ते घ णोज जुगारनो व्यसनी ने. तेनां माता पिता तेने जुगार रमवानी ना कहे , तो पण ते जुगार रमवामां यत्यासक्त होवाथी बीलकुल को Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. नुं का मानतो नथी अने पोताना पिताना घरमांथी सर्व मिलर्कत चोरी लग्ने जुगारमा हारी जाय ले, ते हवे पोताना बापनी सर्वमि लकत हारी गयो ने. अने तपास करतां तेना बापने ज्यारें पोतानी सर्व मिलकत जुगारमा हारी गयो एवी खबर पडी, त्यारें तेणें तेने पो ताना घरमांथी काढी मूक्यो , तो पण हजी ते जुगार रमवाना व्यस नने बोडतो नथी. ज्यारे तेनी पामें जरा पण इव्य रयुं नहिं, त्यारे तेणें जुगारमा एक 'पण' मूक्युं, के जे रमतमा हारे, ते हारनारना हाथ, पग वगेरे अंगोने जीतनार माणास, लाकडी वगेरेथी नासे तेम मास्या करे. तेवी रीतें पण या सात वार हारी जइ, अप्रमित मार खाधा. ते वातनी ज्यारे तेना पिताने खबर पडी, त्यारे पुत्रवात्सल्यथी तेने एकदम घेर बोला वी घणोज समजाव्यो, तो पण ते या कामथी विराम पाम्यो नहिं. अने कदाचित् ते कांश जो व्य जीते , तो ते व्यथी यथेहायें वेश्यानी साथै विलास करे ले परंतु तेनी पासें बीजा कोनुं कां मागणुं होय , तो तेने देतो नथी. अने वली कोश्नी पण हाथमां आवेली फुटल कोडी सुधां बोडतो नथी ॥ यतः ॥ प्रायोनवंति पंचामी, द्यूतस्य सह चारिणः ॥ चौर्य वंचकतालीकं, दारिश्यं लाघवं तथा ॥ १ ॥ अर्थःएक चोरी, बीजी वंचकता, त्रीजुं खोटुं बोलवू, चोथु दारिश्य, पांचमी हलकाइ. ए पांच वानां घणुं करी जुगारनां सहचारीज होय . वली ते जुगारथी जीतेली लक्ष्मी परोपकार माटे के, कीर्तिने माटे के, सुकतने अर्थ के. सगां संबधीना सुखने माटे काम पावती नथी, ते लक्ष्मी केवल पापदिनांज कार्योमाटे काम आवे . माटे हे राजन्! या जुगारी अमारी साथें जुगार रमी एक लाख इव्य हारी जर बटकीने नागी गयो हतो, ते शोधतां हालज अमारे हाथ पड्यो बे, अने अमारुं मा गणुं इव्य अमो मागीये बैयें, तो पण ते आपतो नथी, तेथी अमने क्रोध आववाथी तेने लाकडी वगेरेथी मारी बैयें ? माटे हे देव ! आप महेरबानी करी कां तो ते अमारा देणदारने पाडो सोंपो, नहिं तो तेनी पासें अमारी मागणी एकलाख दीनारो , ते आपो. ए सर्व सांजली पद्मोत्तर राजा विचारवा लाग्यो के, अहो! या केवो कर्मनो विचित्र परिणाम डे ? अहो! आ केवी अज्ञाननी लीला ? Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३२५ अहो ! आ के व्यसनतुं सुःख ले ! एम विचारीने दयालु एवो ते राजा बोल्यो, के हे जुगारीयो! सांजलो. हमणां तो तेनी पासें तमारी मागणीजे लाख दीनारो , ते ढुंबापुं , परंतु हवे पड़ी आ जुगारीनी साथै कोइ पण जो जुगार रमशे, तो तेने हुं धाराप्रमाणे शिदा करीश ! अने माहारा देश बा हेर काढीमूकीश! एम कहीने ते मागणावाला जुगारीयोने तेनी मागणी लाख दीनारो पोतें आपी, ते जुगारीने बोडावीने पोताने घेर वाव्या. हवे ते जुगारीने जोश्ने तीव्र वैराग्य पामेलो एवो पद्मोत्तर कुमार, पो ताना मित्र हरिवेगने कहे डे, के अहो! आपणने रस्तामा मलेलो जुगारी जेम घणा पुःखोने प्राप्त थयो, तो पण तेणें जुगारने बोड्यो नहिं. तो हे नाइ! तेनो आपणे झुं शोक करीयें ? कारण के ते तो अज्ञानें करी अंध ले, तेथीज ते तो ए काम करे , परंतु आपणे संसारनी असारता प्रत्यक्ष रीतें जाणीयें बैयें, तो पण अहानिरूप नोगोविषे प्रीति करीवेसी रहियें बैयें, माटे प्रथम तो ते जुगारी पहेला आपणेज शोक करवा लायक बैयें ? जेम विधान् जनोने द्यूत रमवू, सदा निंदित , तेम तत्वज्ञ पुरुषोने विषयनुं सेवन करवू पण सदा निंदितज . अने विषयो जे , ते विषयी पण व धारे फुःखदायक जे. जुन. विष जे , ते तो तेने खानारानांज आ लोकमां प्राण हरे ,अने विषयोना लोगो तो जन्म जन्मने विपे फुःखदायक होय . वली हे मित्र! जेम महोटा पुःखें करी मेलवेखं व्य, जुगारी जुगार रमवाथी तुरत हारी जाय , तेमज आपण पण पूर्वे मेलवेला सुरुतने विषयसंग थी एक क्षण मात्रमा हारी जायें बैयें. जेम ते जुगारी तेना पिता वगेरेयें घणीज शिदा करी तो पण द्यूतथकी विराम पाम्यो नहिं, तेम आपणे पण गुरुना मुखथी थयेला घणाक उपदेश श्रवण करी विषयोयें करी मलेला सुखथी विराम पामता नथी.जेम के को गुरुयें विषयासक्त शिष्यने उपदेश कस्यो , के हे शिष्य ! हवे तुं खोटा थने सुःखदायक एवा स्त्रीना विषयथी विराम पाम्य. कारण के तें घणा दिवस सुधी विषय सुखने नोगव्युं ? त्यारें शिष्य बोल्यो के ॥ श्लोक ॥ अलमति चपलत्वा स्वप्नमायोपमत्वा, त्परिणतिविरसत्वात्संगमेनांगनायाः ॥इति यदि शतकत्व स्तत्त्वमालोचयामस्तदपि न हरिणादी विस्मरत्यंतरात्मा ॥१॥ अर्थः-जे स्त्री संगमां अत्यंत चापल्य होवाथी,तथा तेने स्वप्नमायानुं उपमानपणुं होवाथी, Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तथा परिणामें विरसपणुं होवाथी, ते स्त्रीसंगनो त्याग करवोज जोइयें ? एम ढुं सो वखत विचारुं बुं, तो पण ते हरिणाही स्त्रीने मारुं अंतःकरण वि स्मरण करतुं नथी || १ || बली पण जुड़े के जुगारीने बंधन प्रहार व दुःख थाय बे, तेम प्रापणने पण नरकने विषे दुःख थाशे ? माटे हे मित्र दुःखना समूहमां श्रापणे आपणा जीवने नाखवो, ते कांइ मने योग्य ना सतुं नथी. माटे प्रापणें संयम लहियें. ए प्रकारें ते पद्मोत्तर राजानी वाएं। सांजलीने हरिवेग बोल्यो के हे मित्र ! मारा मनमां पण घणाक कालथी या पनी पेठें संयमेवा रहे, परंतु यापने विषे मुने प्रेमनो प्रतिबंध होवाथी ते प्रेमें मने रोकी राखेजो बे. मोहमार्गने प्राप्त थवा इहता एवा जीवने स्नेह बे, ते वजन सांकल समान वे. तेथी ते स्नेहसांकल जीवने मोह पामवा देती नथी, जुने श्रीवीर भगवान् ज्यां पर्यंत या पृथ्वीपर रह्या, त्यां पर्यंत गौ तम गणधर कांइ केवल ज्ञानने प्राप्त थया ? ना नज थाय. माटें हाल पूर्वे धारा प्रमाणें बेदु पुत्र प्राज्य एवा राज्यनारना धुरने धारण करवा योग्य या बे, तेथे तेने ते राज्यनार सोंपीने व्यापणे ज्ञानी गुरुपासें जाइयें ? एवी रीतें ज्यां वेडु मित्रो विचार करे बे, त्यां तो तेमना वनपालके यावीने विनति करी के हे स्वामिन् ! यापणा कुसुमाकर नामना उद्यानने विषे श्रीगुणाकर सूरिना शिष्य श्रीरत्नाकरसूरिये पाच धारेला बे. ते सांगली हर्षायमान थयेला ते बेदु राजान्यें ते वनपालकने वधामणीमां घणुंक इव्यापी दीधुं. अने अंतःपुर, परिवार, गज, रथ, तुरंग, नट, तेना लोयें करी तथा सामंत, सेनापति, श्रेष्ठी, सार्थवाह, तेन्ना वृंदोयें कर युक्त एवा ते, सर्वसिहित कुसुमाकर नामा उद्यानमां गुरुने वांदवा माटें याव्या. दूरथी दृष्टिगोचर थयेला गुरुने जाली तुरत पोतानां राज्यचिन्हो नो त्याग करी पंचानिगम साचवी हर्षे कर रोमांचित जेनां वनां थयां बे एवा थका गुरुने वंदन करीने पोत पोताने योग्य एवां स्थान पर बेठा. पढी गुरुयें पण सुधारस समान देशना देवानो प्रारंभ कस्यो. ते जेम के: हे नव्य जनो ! दुःखें मजे तेवा मनुष्य जन्मने पामीने ते मनुष्यायुने विषे उत्तमजनोयें तो कांही पण मोक्षसाधन करवुं. कारण के फरीने ते मनुष्यनो जन्म मलतो नथी. माटें तेने, वृथा संसार रूप पाणी वलोववामांज खोवो नहिं. वली सुज्ञजनायें जे कां सुकृत कार्य करवानुं होय, ते या देहथी Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३२० ज करी लेवु. केम के ? आ जन्ममां करेला सुकृतकार्यथी फरी निश्चे बीजो गुरु जन्म प्राप्त थाय जे. वली हे नव्यजनो ! आ मनुष्यना देहने प्राप्त थया पली समजीने उर्जन जनोनो त्याग करवो अने साधुजननो समागम करवो. अहोनिश पुण्योपार्जनमा मन राखq अने आ संसा रने असारज जाववो. ज्यां सुधी या शरीर, रोगरहित स्वस्थ जे. ज्यां सु धी था शरीरने जरा आवी नथी,ज्यां सुधी सर्व इंडियोनी शक्ति सारी बे. त्यां सुधीमां जे कांश मोक्षमार्गे जवानो उद्योग करवो होय, ते करवो. पबीकांइ पण थवानुं नथी. जेम कोई मूर्ख माणस पोताना घरने सलगेखें जोश्ने तेने उलववा माटे जल जोश्ये ते जल सारु कूवो खोदवा वेसे, ते झुं काम आवे? कांहिं नहिं. अर्थात् ज्यां सुधी शरीर, पूर्वोक्तरीतें सर्व स्वास्थ्य , त्यां सुधीमा जलदी मोदनां साधन संपादन करवां. वली हे नव्यो ! कनिष्ठ अने मूर्ख जन होय, ते कामसुखाजिनापने विषे आसक्त थयो थको धर्म, तथा कांइ पण सुकृत कार्योने करतो नथी. अने जे मध्यम होय , ते पुण्यपर प्रीति राखे , तथा शुरु एवा श्राव कना धर्मने पण अंगीकार करे . अने उत्तम पुरुष जे होय , ते तो संसारना नयने मटाडनार, निर्वाण सुखने आपनार, एवा संयमनेज स्वीकारे . वली हे नव्यो ! आ जे श्रावकनो धर्म , ते ताडना वृद समान , जेम ताडना वृदने दूर फल होवाथी ते दूर फलनो देनारो क हेवाय ले. अने यतिधर्म ले, ते पनसना वृदसमान बे, जेम पनसना त दने निकट फल होवाथी ते निकटफलदायक कहेवाय . वली पण सं यममां केवा गुणो के ? ॥ श्लोक ॥ नो कर्मप्रयासो न च युवतिसुतस्वा मिर्वाक्यफुःखं, राजादौ न प्रणामोऽशनवसनधनस्थानचिंता न चैव ॥ न झातिव्यपूजा प्रशमसुखरतिः प्रेत्य मोझाद्यवाप्तिः, श्रामण्येऽमी गुणाः स्युस्तदिह सुमतयः किं न यत्नं कुरुध्वम् ॥१॥ अर्थः-जु. जे श्रामण्यमां संसारकर्मनो प्रयास, युवती, सुत वगेरेनो जंजाल, कोइ पण पोताना स्वामीना उर्वाक्य सांजलवा, कष्ट, राजादिकोने प्रणाममुं दुःख, अने अशन, वसन, धन, स्थान, तेनी चिंता, झातिथी व्यथी सत्कारनी श्वा, ए काहिं होतुं नथी. ते माटे जेमां केवल प्रशम सुखनी प्रीति, अने मर ण पड़ी मोदनी प्राप्ति, ए बे महोटां सुखो होय . एवा उत्तम गुणथी Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. जरपूर संयम , ते बतां पण हे बुद्धिमान् पुरुषो ! तमो तेमां यत्न शामाटे करता नथी ? आ प्रकारनी गुरुनी वाणीथी संसारनी असारता मानी, सर्व सुखमां नत्तम सुख ते मोदसुखज ने एम जाणी अने ते मोक्ष नी प्राप्ति संयमांज जे. एम निश्चयरीतें समजी, तीव्र जेने वैराग्य थलो ने एवा ते पद्मोत्तर अने हरिवेग राजा, तेज वखत मुनिराजने विनात करवा लाग्या के, हे जगवन : संसाररूप कूवामां मूबता एवा जे अमे, ते अमारो, दीदारूप करावलंबनना दानें करी विलंब विना नहार करा. त्यारें सूरीश्वरें कह्यु के हे राजन् ! मुने पण माहारा गुरु जे श्री गुणा करसूरि तेमणे ते माटेज आहिं मोकलेलो . माटें जेम हवे कालदेप न थाय, तेम ते संयमश्रीनु अवलंबन करो. ते सांजली अत्यंत हर्षायमान थयेला एवा ते वेदु जण, पाबा पोत पोताना नगरमां आवी. पोत पोता ना पुत्रने राज्य आपी दीक्षा ग्रहण करवाने समुद्युक्त थया. ते वखतें तेयें श्रीमद रिहंतचैत्योने विषे अष्टाहिक महोत्सव कराव्यो, चतुर्विध संघनी यथायोग्य नक्ति करी. ज्ञानना नंमारामां ज्ञानवृद्धिदायक यंथो लवाव्या, पोषधशालामां योग्य धन प्राप्यु, पोताना देशोमां अमा रिपटह वगडाव्यो. दीन अने अनाथ एवा जनोने अनुकंपादान दीधां. पड़ी पाबा ते श्रीरत्नाकर सूरि गुरुनी पासें याव्या. गुरुये पण ते बेदुनी योग्यता जाणीने तेने दीदा थापी. हवे यथाशास्त्र क्रियाने सेवन करतां करतां ते बेदु मुनियो अग्यार अंगो नण्या, अने महर्षियोने पण चारित्रनी दृढताना कारणनूत थया. निरतिचारपणे चारित्रने पालन करवा लाग्या अने ते बेतु षष्ठ,अष्टम, दशम, छादश, मास,अईमास वगेरे तपो करवा लाग्या, तेथी तेनां शरीर अत्यंत गुष्क थगयां.कमें करी तेज्यें संलेषणानुं आराधन करी अनशन व्रत अंगी कार कडे ॥ श्लोक ॥ शुष्कांगकोतीव्रतरैस्तपोनि, विमुच्य काले विधिना शरीरम् ॥ जातौ ततस्तावहर्मिदेवौ ग्रैवेयके मध्यममध्यमारव्ये ॥१॥ तयोरगाधेऽऋतनोगवारिधी निमग्नयोर्वे कियलब्धिलग्नयोः॥ प्रकाशनासोः सहसा निशावत्, वेगादगात्सागरसंप्तविंशतिः ॥ २ ॥ अर्थः-तीव्र एवा तपोयें करी शुष्कजेनां अंग थक गयां जे. एवा ते बेदु कृषि, कालें करी समाधिमरणें देहनो त्याग करी मध्यम मध्यम नामा ग्रैवेयकने विषे अ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३२ए हमिंइनामा दवेता थया. त्यां अगाध एवा जोगसमुज्ने विषे निमग्न अने वैक्रिय लधिने प्राप्त थयेला, देदीप्यमान ने कांति जेनी एवा ते बे दु मित्रोने वेगें करी सत्यावीश सागर प्रमाण काल चाल्यो गयो. थ र्थात् ते पद्मोत्तरकुमारे अने हरिवेगविद्याधरें मध्यमवेयकने विषे मध्य मत्रिके सत्यावीश सागरोपम थायु जोगव्युं. इति श्रीप्टथ्वीचंद गुणसागरचरित्रे पद्मोत्तरनृपहरिवेगविद्याधरेंइनवव र्णननामा सप्तमः सर्गः समाप्तः ॥ ७ ॥ थाहिं पृथ्वीचं बने गुणसागरना चौद नव सनाप्त थया॥१५॥ ॥अथाष्टमसर्गस्य बलावबोधः प्रारभ्यते ॥ था नूमिरूप नामिनीना नालने विपे नूषणसमान एक पुंद्रनामा देश वे. ते देशने विषे प्रौढ एवं पुंद्रपुरनामक एक नगर . तेमां विद्या, विन य अने विवेक तेणें युक्त एवो नीवलनामा राजा राज्य करे ले. तेनो एक शतवलनामा लघु नाइजे, ते पण युवराजपणाना धुरने धारण करवा मां सवल होवाथी ते युवराज पदने प्राप्त थयेलो . हवे ते बेहु नाइ ने राम अने लक्मणनी पढ़ें परस्पर पूर्ण प्रीति ले. तेथी ते, पितृदत्त राज्य ने योग्यरीतें पाले ने. हवे ते श्रीबलने सुलक्ष्मणा नामा स्त्रीले भने शत बलने लक्ष्मणानामा स्त्री जे. ते स्त्रीयोनी साथें बेहु जाश्यो, विषयविलासें करी वासरो व्यतीत करे . ___ श्रीबल राजानी राणी जे सुलक्ष्मणा , तेनी कुदिरूप नूमिने विषे कल्पषुमनी पढ़ें मध्यमवेयकथकी चवीने देवता थयेलो ते पद्मोत्तरकु मार, पुत्रपणे थाव्यो. त्यारे ते सुलक्ष्मणायें स्वप्नने विषे तुंग एवा मेरुप वतने दीतो. पडी प्रातःकालने विषे तूर्यशब्दोथी जागृत थइ एवी ते राणीयें स्वप्ननी वात, पोताना स्वामी श्रीवल राजाने कही बतावी. ते सांजली राजा बोल्यो के, हे कोमलांगि ! स्वप्नमां तमें मेरु जोयो , तेथी तमोने मेरुतुल्य पुत्र प्रगट थाशे. ते सांजलीने परम आह्लादने पामती एवी रा एणी गुन एवा ते गर्न, पालन करवा लागी. पनी राणीयें दशमास पूरा थवाथी जेम रत्ननी खाण उत्तम मणिने उत्पन्न करे, तेम हृदयने आनंद दायक एवा उत्तम पुत्रने प्रसव्यो. ज्यारें पोताने त्यां पुत्र प्रगट थयो, त्यारे Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० जैनकथारत्नकोप नाग सातमो. श्रीबल राजायें महोटा श्रामंबरें करी पुत्रनो जन्ममहोत्सव कस्यो. अने पुत्र एक मासनो पण थयो. हवे ज्यारें ते पुत्र, गर्भमा रह्यो हतो, त्य तेनी मातायें स्वप्नमां मेरुपर्वत जायो हतो तेथी तेना अनुसारें सर्वनी सा निध्य ते पुत्रनुं " गिरिसुंदर " एवं नाम पाड्धुं पढी ते कुमार, अनुक्रमें वृद्धि पामतो थको स्त्रीजनने श्रानंदकारक एवा यौवन वयने प्राप्त थयो. " वे मध्यम ग्रैवेयकमां यह मंडपणे थयो एवो जे हरिवेग विद्याधर, ते त्यांथी चवीने श्रीवलराजाना नाइ शतबलनी स्त्री लक्ष्मणाना उदरने वि पुत्रपणायें श्राव्यो. त्यारे ते स्त्रीयं स्वप्नने विषे रत्नोना बंधने जोयो, ते जो इने तुरत जागी गई. घने ते स्वप्ननी वात, पोताना स्वामीने कही. त्यारें तेना स्वामीयें कयुंके हे प्रिये ! तमें स्वप्नमां रत्नोनो उघ दीठो, तेथी रत्न जेवो पुत्र थाशे. ते सांजली प्रसन्न य एवी ते स्त्री, गर्जनुं पोषण करवा लागी पढी ते राणीयें सर्वगुणथी संपन्न एवा पुत्रने पूरे मासें प्रसव्यो. ते वखत शतबल राजायें पुत्रनो जन्ममहोत्सव कस्यो, अने ते गर्भ रह्या वख त तेनी मातायें स्वप्नमां रत्ननो उघ दीठो हतो, तेने अनुसार तेनुं रत्नसार " एवं नाम पाड्युं. ते पुत्र अनुक्रमें यौवन वयने प्राप्त थयो. पी पूर्वजवना स्नेहथी ते गिरिसुंदरने धने रत्नसारने अत्यंत प्रीति 5. ते एवी के, ते बेडु एकबीजानो घडी एक पण विरह सहन करी श कता नथी. ने तेवो अत्यंत स्नेह होवाथी ते बेहुजा, एकज ठेकाणे क्रीडा, एकज ठेकाणे जोजन, तथा शयन पण एकज ठेकाले करे बे. ए कबीजा कदाचित जुदा पडे बे, तो तेने कांहि चेनज पडतुं नयी. यावी 66 · तनी ते बेदु नाइयोनी प्रीति जोइने तेमना पिता परस्पर कहेवा लाग्या के, अहो ! जुड़े तो खरा, खापणा बेहु पुत्रोने यापण करतां सो गुणी प्रीति बे ? एम कहीने बेदुजण बहुज खुशी थया. एक दिवस, जेमां त्रीश राजकुली बेठेली बे, तेवी सजाने विषे स्वस्थपणाथी श्रीबल राजा वेगे बे, तेवामां पुरजनोयें खावी विनति करी के हे राजन ! याप जेवा श्रमारी पर राजा बे, ते बतां पण मारे घणुंज दुःख जोगवुं पडे बे. ते सांजलो केः - कोई एक दुष्ट बे, ते निरंतर मारी कन्याउने तथा धनने चोरी जाय बे. अने ते मारा हाथमां यावतो नयी ने हवे तेणें हरण करेली कन्याउना करुण शब्दो पण अमाराथी सांन Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३३१ ली शकाता नथी ? या प्रकानी प्रजानी पीडाने सांजली एकदम कोपाय मान थयेलो ते श्रीबल राजा, पोताना कोटवालने तेडावी महोटा स्वरथी कवा लाग्यो के रे ! हे इष्ट ! तुं निश्चिंत थइ खाखी रात घरमांज सूई र हे के ? जो. याखी रात या थापडी नगरीमां लोकोनां स्त्री माल वगे रे को इष्ट लूंटी जाय बे, तेनी तो तुं बीलकुल संचालन राखतो नथी ? तेथी मने एम लागे ब्रे, के तुं तथा तारी सार्थेना मालसो मारो यम यो हरामनोज पगार खाउ हो ? ते सांजनी हाथ जोडी कोटवाल बो व्यो, के महाराज ! यापें टलो बधो क्रोध करवो नहिं. कारण के या फरियाद व्यापनी पासें तो प्राजज यावी बे, पण हुं तो ते फरियाद घ या दिवसथी सांजनुं बुं. अने तेने माटे चोकशी राखी आपला गामना दरवाजा पासें प्रबल माणसाने याखी रात जागता नना राखुं बुं, तथा बानी रीतें पण ते चोरनी तपास करावं बुं, अने हुं पण याखी रात गाममां चो की माटें फयाज करूं बुं, पण ते कुष्ट चोरनो कोइ रीतें मने पत्तो मलतो न श्री. ज्या गाममांथी कन्याउनुं ते कुष्ट हरण करी जाय बे, त्याऐं ते कन्या ना करुण शब्दने सांजली ये बैयें. यने वली लोको ज्यारें कहे जे या चोर या व्यो, या चोर याव्यो, एम सांजली में एकदम दोडी तपास करवा जायें बैयें, त्यां तो तेने, तथा तेनी हरण करेली कन्याउने एपक्यांही देख ता नथी. एम प्रतिदिन थाय बे. माटें या फरियाद सांजलीने तो हुं हवे थाकी गयो बुं, तथा मारुं पुरुषार्थ न चालवाथी हवे मने गाममां मुख देखाडतां पण लाज यावे. अने हे महाराज ! या नगरनुं खागल करतां व धारे रक्षण करतां पण ग्राम थाय, त्यारे हवे हुं गुं करूं ? माटे मारो कां तेमां उपाय नथी तेथी जेम व्यापने या नगरनुं रक्षण कराववुं घटे, तेम करावो. हुं तो हवे या नोकरी पण करवा इब्बतो नथी. वली आपने पण कहुं हुं के हाल, खापें पण अंतःपुरनी बराबर खबर राखवी. नहिं तो तेनुं हरण वाथी यापनी पण लाज जाशे ? या प्रकारनुं को टवालनुं बोलवं सांजली राजा तो एकदम विचारमां पडि गयो. जे थरे ! हवे ते हुं गुं करीश ? खने या मारा नगरनुं रक्षण केवी रीतें करीश ? एम विचारमां घुम थइ जइ कांहिं बोल्यो नहिं, त्यारें तेनो गरिसुंदर नामा कुमार बोल्यो के हे पिताजी ! प्राप तेवी जुज वातमां विचार कर शुं मुंजाउ हो ? Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते कामनी मुने थाझा आपो. जुन तो खरा, ढुं ते चोरने सात दिवसनी अंदरज शोधी काढू लुं ? ते सांजली राजा खडखड हसीने कहेवा लाग्यो के, हे पुत्र ! तुं ते बोले ने गुं? जे काममां अमारी जेवा प्रबल पुरुषो मुंजाइ पज्या , तो तुं जेवा बालकथी ते काम केमज थाय ? त्यारें गिरिसुंदर बोल्यो के हे तात! जलें बालक , पण ते कामनीमने रजा बापो, जुन.ते दुं करुं बु के नहिं ? अने हे पिताजी! ते काम कदाचित् माराथी न थाय, तो पण हूँ बालक होवाथी जगतां मारीलाज न जाय, तेमहां सी पण न थाय ? थने तेवा काम करवा बाहार पडेला बाप जेवायी जो न थाय, तो तेनी जगतमां हांसी पण थाय, अने लाज पण जाय ? एम घj कयुं, तो पण तेना पितायें जवानी रजा न ापी, त्यारे ते कुमार, कोइने कह्या विना ते उष्ट चोरना तपास माटे तेज दिवसें सायंकालें हाथ मां एक तरवार लश्ने एकदम गामनी बाहारना जीर्ण नद्यानादिकमां चाव्यो गयो. थने त्यांज जमवा लाग्यो. तेवामां तो पोताथी जरा दूर एक पर्वत जो यो, तेमा वली सलगतो अमि तथा धूवाडो दीतो. ते जोश्ने कुमार, कौ तुकाविष्ट थइ तुरत त्यां गयो, अने त्यां जश् ज्यां जोवे , त्यां तो विद्याने साधवा माटे अग्निकुंममा गुगलना होमने करता एवा कोइएक विद्याधरने दीठो. त्यारें तो 'सिधिरस्तु' एम जणीते तेनी सामो वेठो.अने कह्यु के हे विद्यासाधक ! हवे हुँ धापनो उत्तर साधक आव्यो बुं, माटे विद्या साधो. एम ज्यां कह्यु, त्यां तो ते पुण्यवान् एवा सुरगिरिना प्रनावथी जेना नामनो मंत्र साधतो हतो, तेज क्षेत्रपाल देव प्रत्यद यावी ते साधक सामो उनो रह्यो. चने कहेवा लाग्यो, के हे साधक विद्याधर ! सांजल. हवे तुंमारा मंत्रनुं साधन करवं बंध राख्य. अने ते मंत्र जो तुं साधीश, तो हुँ तुने विरूप करी नाखीश ? कारण के हाल था तारी पासें महाप्रानाविक कुमार आ वी उत्तरसाधक थ बेठो , तेथी मारे तारा तरफथी मंत्र साधननी कांश वा नथी. अने हाल हुँ तारापर तुष्टमान थयेलो बूं, अने जा. तारी मंत्रसिदि पण थइ. हवेथी कोइ पण प्रकार, जय, तुने परानव करी शकशे नहिं. वली हे साधक ! या कुमारने, दुं देखुं तेम जलदी तुं नमस्कार कर. ते सांजली आश्चर्यने प्राप्त थइ प्रसन्न थयेला ए साधकं त्यां बेठेला गिरिसुंदर कुमारने प्रणाम कस्यो. अने ते यदनुं सारी रीतें पूजन कह्यु. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३३ पड़ी ते साधकें यदने विनति करी के हे देव ! आप मने प्रसन्न थये ला बगे, तो हवे ढुं ज्यारें आपने बोलावू, त्यारें आप जरूर पधारजो. एम कही तेनुं विसर्जन कस्यु. पडी ते मंत्रसाधक विद्याधर, सुरगिरि कुमारने कहे , के हे नाइ ! आप आहिं पचास्या, तेथी मारु घणुंज सारं थयु. ते गुं? तो के आपना पधारवाथी मारे मंत्रसाधन कस्या विनाज विना प्रयासें मंत्रसिदि थइ. अने जे देवनुं हुं थाराधन करतो हतो, ते देव प्रत्यक्ष प्रगट था दर्शन द६ मारी पर प्रसन्न थयो. ते माडे ते आपना करेला उपका रनो बदलो यत्किंचित् ढुं वाटुं, तेथी मने कांइक काम फरमावो. जे कां आप कार्य फरमावशो, ते कार्यने आपनो सेवक करवाने ते य्यारज . तेसांजली कुमार बोल्यो के हे साधक ! ढुं कां तमारु मंत्रसाधन करावा तमारी तरफ आव्यो न हतो. परंतु हूं तो आ नगर नीरदा करनार एक माणस नगे, तेथीया नगरनीयासपास चोकी करवा माटें फस्या करुं बूं. ते आजे रात्र रक्षण माटे ज्यां गामनी बाहेरना उद्या नोमां दुं फरतो हतो, त्यां में बेटेथी आ पर्वत दीठो, अने तेमां वली स लगतो अग्नि अने धुंवाडो दीठो, ते जोड्ने में विचार करयो के या ते पर्वतमा युं हशे ? चाल हूं जोवा तो जानं ? एम कौतुकथी एकदम ढुं थाहिं आवी बेठो, त्यां तो तमारी मंत्रसिदि थश्ते जोड्ने अत्यंत खु शी थयो. कारण के तमारं कार्य जे थयुं , ते जाणुं लं जे मारुंज कार्य थयुं ले. माटे मारे कां तमारी पासेंथी लेवू नथी. या प्रकारनी ते कुमारनी निःस्टहता जोड्ने विस्मय पामेलो ते साधक कहेवा लाग्यो के हे प्रानाविककुमार ! आप नदार चित्तवाला बो, तेथी कांड पण लेवा बता नथी, तथापि प्रार्थना करी किंचित् हुँ अर्पण करुं बुं, तेने रूपा क रीयाप स्वीकार करो. ते सांजली कुमार बोल्यो के कांइ पण, लेवानी वात तो तमारे करवीज नहिं. कारण के तमें तो माहारा हाल गुरु थयेला बो, माटे तमारी पासेंथी में कांइ लेवायज नहिं. ते सांजली साधकें विचायुं जे आ निःस्टह , माटे प्रत्यक्ष तो काहिं नहिंज ले, तेथी कोश्क यु क्तिथी तेणें करेला उपकारनो बदलो वालु, कारण के जेना प्रतापथी आ मंत्रसाधनरूप अवडं महोटुं माझं कार्य पार पडयुं, तेने कां पण बाप्या विना रहे, ते ठीक नहिं ? एम विचार करी साधक कहे डे, के Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. हे सुरजन ! श्राप मने गुरु तो कहो हो, तो जो मने अंतःकरण पूर्वक गुरु कहता हो, तो मारुं एक वचन पण पालो. त्याऐं नम्रतापूर्वक कुम कहे बे, के ठीक. जे तमो कहां, ते हुं मान्य करूं ? कारण के गुरुनी या ज्ञाना जंग करवानुं महोदुं पाप बे. त्यारें साधक कहे बे, के ठीक व्यो. या मारी पासें जे, पाठ करवे करीनेंज सिद्ध, घने विस्मय पमाडे एवी रूपपरावर्त्तन नामा विद्या बे, ते विद्या खाप ग्रहण करो. एज मारुं व चन बे. ते सांजली कुमारें जाएयुं जे या पुरुषने विद्या श्रापवानो घणो ज याग्रह बे, माटें चापले ते ग्रहण करवी. एम मानी ते विद्याने सवि नयपणे ग्रहण करी. एवा समयमां तो हे बाप ! हे मात ! हे नाई ! य मारुं रक्षण करो ! मारुं रक्षण करो ! ए प्रकारनो तरुण स्त्रीयोनो करुण शब्द याखा नगरमां थवा लाग्यो, ते सांगली गिरिसुंदर कुमार ने नगर तरफ एकदम दोड्यो पढी दोडतां दोडतां विचार करवा लाग्यो के अरे ! या याक्रोश तो नगरमांथी यतां यतां पाठो यहिं निकट यतो सं नलाय बे. अने ते शब्द पण नानी वयनी स्त्रीयोनोज बे, तेथी तो मने एम लागे बे, के कोइ इष्ट चोर मारा गाममांथी कन्याउने हर काहिं निकटनांज स्थलमां लावे बे ? अने वली ते पापी अत्यंत स्त्रीलोलुप, तेथीज ते कन्याउनुं हरण करे बे, माटे जो हुं या पर्वती गुफामांज फरीश, तो ते चोर, कांइ मारे हाथ खावशे नहिं. माटे पर्वतनी नीचें उतरी तपास करूं. अने ते स्त्रीलोलुप बे, माटे यावा वेशें कांइ फसाशे नहिं, तेथी हाल मने साधकविद्याधरें जे, रूपपरावर्त्तन विद्या यापी बे, ते विद्याथी स्त्रीनुं रूप पण धारण करूं, तेथी ते जरूर वश या शे ? एम विचारी ते कुमार, उत्तम खने मनोहर एवं स्त्रीनुं रूप धारण क प्रातःकालमा ते पर्वतनी सर्व गुफा जोवा लाग्यो. तेवामां एक वन निकुंज जोयुं, तेमां वली एक जीर्ण देवालय दीतुं अने ते देवालयनी नजीक महोटा महोटा चस्मना यने हाडकाना ढगलाई दीग. घडीवार ज्यां जुवे बे, त्यांतो ते देरामांथी नीकली चाल्यो श्रवतो हाडकानी मालाच यकृत अंगवाल, हाथमां मोरनी पीढीने धारण करता एवा कोइएक कापालिकने दीठो. तेने जोइने कुमारस्त्रीयें विचायुं के खहो ! मारा नगरमां कन्या वगेरेनुं हरण कर त्रास पमाडनार एवो दुष्ट, धूर्त जे बे, एज लागे बे. Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३५ परंतु आवा उष्ठने जलदी दंम देवो नहिं. कारण के ते उष्टनुं चरित्र सर्व सां नली पड़ी तेने दंम देवो. अने वली तेणे योगीनो वेश धारण करेलो ने तेथी ते हावा योग्य पण नथी ? एम विचारी त्यां एक पनरनी शिला पडेली हती, त्यां जश् तेनी पर बेसी ते कुमारस्त्री अत्यंत रुदन करवा लागी. त्यारें कामी एवो ते कापालिक ते स्त्रीनुं करुण शब्दयुक्त रुदन सांजली त्यां याव्यो. यावीने ज्यां जुवे जे, त्यां तो नवयौ वना, मनोहर रूपवाली, चश्मुखी एवी ते स्त्रीने जो विचारवा लाग्यो के अरे! या तिलोत्तमा अप्सरा सरखी स्त्री जो मारे वश थाय: तो मारे गामनी कन्याना हरणकरण रूप सकल क्लेशो नोगववा मटे ? अने काम देव जेम रतिनामा स्त्रीनी साथें सुखी थाय , तेमढुं पण या स्त्रीना मुखें सु खी थानं. परंतु हाल तो दिवस ,माटे मारो का उपाय चालशे नहिं, जो रात्रि हत तो तो ढुंमारं काम फत्ते करत, माटे हाल तो विनय करी जेम ते माथुअवलुं समजावीने तेने मारा मठमा लजालं.त्यांला गया पनी ज्या रें ते मारे हस्तगत थाशे, त्यारें पड़ी मने जेम ठीक पडशे, तेम करी श? एम विचारी ने ते स्त्रीपासें यावी कहेवा लाग्यो के हे सुलोचने ! पुष्ठ एवा धातायें तुं जेवी मनोहर स्त्रीने पण कुःख दीधुं लागे ? माटे हेसुन्नु! बाहिं एकली शामाटे डो? अनेरुदन केम करे ? ते कहे.अने तुने खे द युक्त जोड्ने मारा मनमां महोटुं कष्ट थाय जे. त्यारे कुमारसुंदरी बोली के हे कापालिक ! सांजलो. हूं जे बोलु, ते तमारे सत्यज मानQ. जरा पण खोटुं मानवं नहिं, कारण के हुं सत्यवक्ताज बु. एम कही ते कहे वा लागी के प्राची दिशाने विषे एक सुशर्मानामा नगर . ते नगरीना राजानो अपराजितनामा एक पुत्र . तेनु कोइएक कारणे तेना पि तायें अपमान कयुं, तेथी ते रीसाइने पोताना पिताना नगरथी बाहेर निकली गयो. अने हुँ ते अपराजित कुमारनी स्त्री . तेथी ज्यारे ते मारो स्वामी गाम बाहार निकली गयो, त्यारे पण घणा लोकोयें ना पाडतां बतां तेनी पडवाडेज निकली गइ. गतरात्रिने विपे हुँ तथा मारो स्वामी श्रा, जे बीपर पर हाल हुँ बेठी बुं तेनी पर सूतां हता. एमांज्यां मारी आंखमां निज्ञ यावी, त्यां तो मारो स्वामी एकदम मने सूतीज मूकीने कोण जाणे क्यां पोबारा गणी गयो ? अने मारा उठवाना नयथी मारे Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कें तेनुं या खड्ग हतुं, ते पण लीधुं नहीं, अने हथीयार विनानोज कोण जाणे क्यां चाव्यो गयो. हे महाराज ! तेना दुःखें करी हुं दुःखि तथकी रुदन करुं बुं, ते सांजली योगी बोल्यो के, हे कमलनयने ! ते तारो स्वामी मूर्ख लागे बे, नहिं तो स्त्रीजातने एकली, निराधार, श्रावा धर मां मूकी, शामाटे जागी जाय ? पण तुं फिकर करीश नहिं, हुं तारुं निर्नाथ पंखा घडी मटाडी दश. ते सांजली कुमार स्त्री बोली के हे योगीं ! पोताना स्वामी विना स्त्रीने जीवनुं ते योग्य नथी, तेथी घटलामां को एक मने तीर्थ बतावो के त्यां जइ हुं मारा प्राणनो त्याग करूं ? त्यारें योगी बोल्यो के हे नड़े ! तुं मरवानी वात जावा दे. कारण के तारे मर बुं न पडे, खने तारा स्वामीनो वियोग मटे, एवो एक उपाय बे. जो. यहिं एक पूर्णमनोरथ नामनुं तीर्थ बे, त्यां जे त्रण रात्रि निवास करे बे, तेने पोताना जुदा पडेला प्रियजननो मेलाप याय बे, माटे त्यां चाल खने ते तीर्थनुं सेवन कर ने मरीने धुं करीश ? त्यारें ते कापालिको निप्राय मनमां जाणीने कुमारस्त्रीयें ते कबूल करयुं. पी बेदु जण त्यांथी पूर्वोक्त जे देवालय हतुं, त्यां गयां थने ते देवाल यमां जइने ज्यां जुवे, त्यां तो ते कुमारस्त्रीयें लांबा कलेवर वालो, लांबी harat एक हाथमां ढाल, अने बीजा हाथमां तरवार, जीजा हाथमां कृत्तिका, चोथा हाथमां मरेला माणासना मायानी तुंबली, तेने धारण करनार, पाच वर्षे करी युक्त, एवा एक काष्ठमय देवने दीठो. त्यारें कुमार स्त्री के, हिं कोई मनुष्य केम देखातुं नथी ? त्यारें योगी कहे d. के है सुंदरि ! याहिं जे तें देवरूप जोयुं, ते तो केवल जनरंजनमात्रज राखेनुं छे. जरा तुं यागल तो चाल. त्यां मनुष्य बे, श्रने पूर्णमनोरथनामा एक देव बे, ते बतावुं. एम कही ते कुमारस्त्रीनो हाथ पकडी तेने ते चर्तुभुज वाला यनी पढवाडे लइ गयो. त्यां जइ ते कापालिकें नूमिपर जोरथी पगनी जात मारी. त्यां तो कोइएक सुरसुंदरी समान रूपवाली एक कन्या यावी. यने तेणें तेमां एक गुप्तधार हतुं, ते उघाडयुं. पढी कापालिक बोल्यो के हे स्त्रि ! या स्त्री जेम पोताना प्रिय मेलापमाटे देवाराधन करे बे, तेम तुं पण कर. तेथी तारो पण स्वामी थोडा वखतमां मलशे ? यने हुं देवपूजन माटे फुलपत्र लेवा जाउं बुं, ते पाठो थोडी वारमां तारी Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३७ पासें थावीश ! एम कहीने ते योगीयें, कुमारस्त्रीनो ते हारमा प्रवेश क राव्यो. अने पनी ते बाहिरथी तालुं दश्ने चाल्यो गयो. हवे स्त्री थयेलो ते गिरिसुंदर कुमार तो, जे वस्तुमाटे महेनत करतो हतो तेज वस्तु, अना यासें मली.ते जोड्ने मनमां अत्यंत खुशी थयो.जे कन्यायें ते गुफानुं गुप्तहार उघाडयुं हतुं, तेणें ते कुमारस्त्रीने पूब्युं, के हे सखि ! तुं आ दैत्यना हा थमां केवी रीतें आवी फसी ? त्यारे ते बोली के, हे बहेन !मारी वात तो घणीज लांबी, ते हाल कहेवाथी कांही पूरी थाय तेम नथी, माटें हाल तो जे ढुं तुने पूर्छ, ते तुं कृपा करी कही आप. एम कही तेने पूबवा लागी के हे सखि ! प्रथम तो हुँ एज पूर्बु हुँ, के ए पुरुष कोण ? अने तमें पण कोण बो ? त्यारे ते कन्या बोली के हे बहेन ! ए पुरुष जे , ते योगीनो वेष धारण करनार दंपालक नामा महोटो चोर ले, ते दिवस मां कापालिकनो वेप धारण करीयाहिंथी नजिकमांज रहेला पुंदपुर नामा नगरमां निदा मागवाना मिषथा तपास करी आवे , जे कये कये स्थलें, हिरा, माणक, मोती, तथा सारी कन्या के ? पढी ते स्थल ध्यानमां राखी, पाडो याही आवे . अने वली पाबो रात्रिय ते गाममां जाय , जश्ने दिवसमां जई ध्यानमा राखेला स्थलमाथी पूर्वोक्त वस्तुमाथी जे वस्तु मने , तेने चोरीलावे , अने ते वस्तुने आहिं गुप्त पातालगृहमा लावी मूके ले. तेमां पण कोक जो स्वरूपवान् एवी कन्या मने दे, तो बीजा पदार्थने चोरतोज नथी. वली ए प्रमाणे हे सखि! या दुष्ठं राजानी, मंत्रीनी, श्रेष्ठीनी अने सार्थपतिवगेरेनी उत्तम उत्तम कन्याउने हरण करी आही लावी मूकी ने. ते आज दिवस सुधी, तुं सुधां सर्व मली एक शोने आठ कन्या नेली था ले. __ अने हे सखि ! मारे विषे जे तें पूयु, के तुं कोण बो? तो ढुं तो पूर्वोक्त निकट रहेला पुंढपुरनामा नगरनो रहेवासी ईश्वरनामा एक श्रेष्ठी . तेनी सुनश नामा कन्या बुं. एक दिवस रात्रे मारें घेर जेवामां दुं सूती हती, तेवामां था पापीयें मारु एकदम हरण कयु. में घणा आक्रोश शब्द कस्या पण मारी सहायता कोश्नाथी थइ नहिं. अने मने आह। लावी ए इटें बंदीखाने नाखी मूकी बे. वती जे गाम ढुं रहूं, ते पुंदपुरगामना श्रीबल अने शतबल नामा वे राजा , ते घाज बल Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३७ जैनकथारत्नकोष नाग सातमो. वान , परंतु मारां हीनलाग्यथी मने ते राजानी पण सहायता था शको नहिं, अने पूर्वजन्मनी पापणी एवी हुँ, आ पापीना पाशमां पडी रीबाचं बुं. एम कहीने ते अत्यंत रुदन करवा लागी. त्यारे कुमारस्त्रीय समजावीने कह्यु के हे बहेन ! तुं रुदन कर नहिं, अने धैर्य राख. कार ण के धैर्यथी सर्व सारंज थाशे. अने हे सखि ! जे थवा काल , ते तो कोश्नाथी कोइ पण रीतें न मटतां, अवश्य थयाज करे ले. कर्दा के ॥ श्लोक ॥ यमावि तभवति नूनमनितोऽपि, यत्ने महत्यपि कृते न नवत्यनावि ॥ एवं स्वनाववशवर्तिनि जीवलोके, किं शोच्यमस्ति पुरुषस्य विचरणस्य ॥ १ ॥ अर्थः- जे छःख वगेरेने आपणे बता नथी तो पण ते जो थवा काल होय , तो निचे थाय .अने आपणे सुख माटे घणाज यत्नो करीयें बैयें, तो पण जो ते सुख मलवानुं नथी होतुं, तो मलतुंजनश्री. माटे सर्वजीवलोक, पोत पोताना कर्मने वश पडेलो , तेथी तेनो, जे विच क्षण पुरुष , ते शोक करतो नथी. वलो जेटलुं प्रारब्धना योगथी मलबुं होय बे, तेटलुंज मले दे, तेने आपण तो झुं ? परंतु देव पण अन्यथा करवा समर्थ नथी? ते माटे हूं तो शोक पण करती नथी तथा मने विस्मय पण थातो नथी. कारण के आपणा कर्मनुं जे कां , ते कोइ दिवस पारकुं थ शकतुंज नथी. वली कह्यु ले के ॥ श्लोक ॥ अवश्यं नाविनोनावा, नवंति महतामपि ॥ नग्नत्वं नीलकंठस्य,महा ब्धिशयनं हरेः ॥ १ ॥बयंते बलि नोनागाः, पन्नमाविहगाः स्थने ॥ मीना जले निलीनाच, क्विश्यंते कर्म निर्जनाः ॥ २ ॥ अर्थः- महोटा पुरुषोने पण नावी जे होय , ते थया विना रहेतुं नथी, तो बीजाने थाय, तेमां तो गुंज कहेवू ? जुन. यावा मो होटा नीलकंठ जे शिव, तेने निरंतर नग्नपणानुं फुःख जोगवq पडे , तथा हरिने पण निरंतर दीरसागरमा शेषनागपर सुइ रहेवार्नु कुःख नोगवq पडे बे. अर्थात् महादेवने पहेरवा वस्त्र नथी गुं? तेम विष्णुने शयन करवा शय्या नथी झुं? ना सर्वे वानां ते बेदु जपने डे, परंतु नाविनाव जेने, ते कोइनाथी मटतो नथी॥१॥वली पृथ्वीने विषे फरता एवा बलवान् हस्तीयो, तथा सो अने आकाशने विषे नमवाने समर्थ एवा शुक वगेरे तो कदाचित् बंधाय,परंतु बीचारां जलमां बुपी रहेलां मत्स्यो शामाटे जालमां बंधाइ जाय ?माटे जीवो जे ,ते पोत पोताना कर्मना योगें करी क्वेश पामे . अर्थात् Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३ए जे थवा काल , ते कोश्नाथी मटतुंज नथी. या प्रमाणे समजावी, पानी ते कुमार स्त्री पूबवा लागी के हे सुंदरि! था योगी कोना बलथी घावी रोतें निर्नय थइने स्वेनाप्रमाणे वर्ने ले ? त्यारे ते कन्या बोली, के हे बहेन ! तेनी बराबर तो मने खबर नथी, परंतु ते योगीयें एक पातालगृहमां खड्ग राखेखं , तेनुं ते सायंकाल, प्रातःकाल अने मध्यान्हकाल, पूजन करे , ते ढुं जो बुं. त्यारें कुमारस्त्री बोली के ते तुं मने बतावी दश ? त्यारे ते कहे दा, चालो बतायु. एम कही त्यांथी ते वेदुजणीयो चाली यो, ते ज्यां नन्ने बांध्यो बे, सुवर्ण तथा धान्यादिकें पूरेखें, मणियोयें करी जडित जेमां नीतो , एवं एक पातालगृह हतुं, तेमां आवीयो. पली ते कुमारस्त्री पातालगृहना रमणीयपणाने जोती जोती चाली गइ. ते जरा दूर जाय, त्यां एक चंश्हास नामा खड्ग पडेबुं हतुं, ते दोतुं. तेने जोड अत्यंत हर्ष पामी नमस्कार करीनी स्तुति करवा लागी के ॥ श्लोक ॥ चक्रिकेशवरामादि, सुनटानां प्रनाववित् ॥ प्रसन्नोऽनूद्यथा तह, चंइहास प्रसीद मे ॥१॥अर्थः- चक्रवती, वासुदेव, राम वगेरेना प्रनावने जा णनार एवं जे तुं, ते जेम तेनी पर प्रसन्न थयुं हतुं, तेम हे चंश्हासखड्ग ! मारीपर पण प्रसन्न था ॥१॥ एम स्तुति करी ने ते खड्गने निर्नयपणाथी तु रत नपाडी लीधं. अने ज्यां ते पडयं हतुं, त्यां पोतानुं खङ्ग मकी दीधुं. यावी रीतर्नु कुमारस्त्रीचें चरित्र जोश्ने बंधोखाने पडेलीयो सर्व कन्या तो हाहारव करी एकदम बोली उठीयो, के हे सुंदर एवी अतिथि स्त्रि ! था काम तें घणुंज खोटुं कर्तुं ? माटे ते पापी हजी नथी आव्यो, त्यां ते खड्गने पावू ज्यां दतुं त्यां मूकी दे. अने हे साहसिक स्त्रि! ए खड्ग जो तुं नहिं मूक अने ते आवी पहोंचशे, तो या तारा कृत्यने जोइ तुरत तारो नाश करशे. वली एम नहिं जाणजे जे ते तारोज नाश करो. परंतु तारे लीधे अमारो पण नाश करशे? ते सांजली कुमारस्त्री बोली के हे अबला ! तमें किंचित् पण जय पामो नहिं. स्वस्थ थ जे कां को तुक थाय, ते जोया करो. ते कुष्ठ तस्करने जेम तमें देखशो, तेमज हुँ कृतांतनो अतिथि करी दश ? एम कहीने पोता, जे खलं स्वरूप हतुं, ते प्रगट कयुं. त्यां तो हारमा ते उष्ट योगी आवी ननो रहो बोल्यो के अरे ! बार उघाडो? ते सांजली एक कन्यायें जर ते पातालगृह हार Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. घायुं ? त्यां तो जयजीत एवी ते सर्व कन्या ते गिरिसुंदर कुमारना मुख सामुं जोइ गुपचूप बेसी गइयो. हवे ते चोर, त्यां यावी ज्यां जुवे बे, त्यां तो निर्भयपणाथी हाथमां खड़ लइने बना रहेला ते कुमारने जोयो. ते जोतांमात्रमांज तेने रीप चडी गड़, तेथी तेनां लालचोल नेत्र थइ गयां. अने तेज वखत, ज्यां पोतें चं इहास खड्ग मूक्युं हतुं त्यां जइ, कुमारें अदल बदल करी मूकेला ते कुमा रनाज खड्गने लीधुं. लइने कुमारनी सामो दोड्यो. त्यारें पोतानी सामो दोड्या यावता ते इष्टने जोइने गिरिसुंदर कुमार हाक मारी बोल्यो के हे sष्ट ! तुं याची कुचेष्टायें करी वर्तनार बो, तेथी हाल नाराज पामेलो बो. एम निश्चें जाणजे ने घणा दिवसथी करेला पापरूप वृनुं जे कांइ फल युंळे, ते फल हुं तुने प्रापुं, ते ग्रहण कर. हे पापी ! तुं विचार तो कर के विपनो खानारो जे प्राणी बे, ते कोइ दाडो चिरायु होय ? ना होयज नहिं ! या प्रकारनां कुमारनां अतिकटु वचन सांगली रुष्ट थयेलो ते चोर, एक दम कुमारने मारवा दोड्यो. घने कुमार पासें यावी तुरत खड्गनो घा क स्यो. परंतु तेना करेला खड्गना घामांथी कुमारें कांश्क युक्तिथी पोतानो बचाव करी लीधो, अने तेणें जेवो खड्गनो घा कस्यो हतो, तेवोज पाठो घा तेनी पर कुमारें करो, तेथी ते कुष्ट एकज घाथी यमसदनमां पहोंची गयो. पढी गिरिसुंदर कुमार हृदयमां विचारवा लाग्यो के अरे ! काले प्रेरेला एवा में आवा रंकजननो नाश कस्यो ? अरे ! या कृत्य कांई में सुनटोनी स नामां वखणावा लायक कयुं नथी ! परंतु हा या कृत्यथी मात्र एटलुं थयुं, के मारां नागरिक जनो सुखी थां. हवे ते चोरें हरण करी थाली कन्याउनुं शुं थयुं ? ते कहे बे. ते sष्ट चोरें चोरी आणी राखेजीयो सर्व कन्याउ, यावं ते गिरिसुंदरकुमा रनुं पराक्रम जोइ अत्यंत विस्मय पामी तेनी सामुंज एक दृष्टिथी जोवा लागीयो. पी कुमार बोल्यो के हे कन्यका ! तमारां कये कये ठेकाणें घर बे, ते मने कहो, त्यां तमने हुं पहोंचडावी दजं ? ते सांजली जेनी साधें कुमारने वात चित्त थर बे एवी जे श्रेष्ठीनी पुत्री हती, तेणें ते कुमारने वरत्यो, अने ते विचारका लागी के यहो ! या तो स्वरथी तथा याचरणथी आपला गामना राजाना पुत्र गिरिसुंदर कुमार जेवोज लागे Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४१ ने. वली थोडी वार जोश्ने निश्चय करी विचारवा लागी के अरे ! हा, आ तो तेज जे. एम निश्चय करी तेणें त्यां बेठेली सर्व कन्याउने साद पाडी कह्यु के हे बेहेनो ! था प्रतापी पुरुषने तमोयें उलख्या ? या तो आपणा पुंद्रपुरना राजाना गिरिसुंदर नामा पुत्र , अने आपणने या प्रानाविक पुरुषंज उष्ट चोरना कुःखथी बचावीयो . ते सांजली सर्व कन्यायें ते कुमारने उलख्यो, अनें सर्व खुशी थश्यो. पनी कुमार परना प्रेमरागें करी रंगायेलीयो एवी ते सर्व कन्या कहेवा लागीयो के हे कु मार ! ते उष्ट चोरें अमारु हरण का, अने अमो घणा दिवस थाहीं रहीयो, तेथी हवे घेर जश् सगां संबंधोने मुख देखाडतां अमने लाज आवे बे,माटे अमारो सर्वनो तो एवो निश्चय , के कां तो तमोने वरवं ? नहिं तो अमिमां. पडी बली मर. परंतु आ देहथी बीजा वरने वरवो नहिं ? आ प्रकारनां वचन सांजलीने दयालु एवा ते गिरिसुंदर कुमार कह्यं जे अरे! विधिने पण धिक्कार हजा. कारण के तेणे आवी बिचारी निराधार कन्याउने फुःख दीg? एम कहीने वली विचारवा लाग्यो के अहो! या सर्व कन्या मनेज वरवानो आग्रह लइ बेठीयो , तेथी जो तेने नहि वरूं, तो ते सर्वे अग्निमां प्रवेश करी प्राणत्याग करशे, तो ते बीचारी दीनवदनाउने प्राणत्याग करतीयो ढुं केम जोई शकीश ? तेम वली आ अनाथनी साथें माझं लग्न पण ढुं केम करूं ? माटे मारे ते हवे झुं करवु ? परंतु हा, एक उपाय के खरो, ते गुं? तो के हाल तो आ सर्व कन्याने वरवानी हा कर्बु, अने बाहिं तेनी पासेंज रहूं. पनी तो जे बनशे, ते खरूं ? एम विचारीने ते सर्व कन्याउने कयुं के हे कन्या ! तमो उच्चाट बोडी दीयो. कारण के हुँ तमने जरूर वरीश. एम कहीने ते कन्याउ साथै विविध प्रकारनी कामक्रीडा करतोथको ते पातालगृहने विषे एकमास पर्यंत रह्यो. एवी रीते रहे ले तेवामां एक दिवस पोतानो परममित्र जे रत्नसार कुमार जे, ते सांनरी याव्यो. तेथी तत्काल ते कन्याउने पूब्याविनाज हाथमां चंइहास खड्ग लड्ने त्यांथी बाहार निकली गयो. पनी साधकदत्तविद्याथी कापडीनुं रूप ग्रह ण करी पोताना पुंद्रपुरनामा नगरने विषे आव्यो. त्यां तो जेमां को प ण बालको रमतां नथी, तेम को ठेकाणे वाद्य पण वागतुं नथी. वली जे मां रहेनारा जनोना मुखपर शोक बाइ रह्यो . एवा पोताना सर्व नग Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. रने जोइने कुमार को एक नागरिकजनने पूज्युं, के हे नाइ ! आ नग रमां अटलो बधो शोक केम गइ रह्यो ? कां महोटो अनर्थ तो थयो नथी ? ते सांजली नागरिकजन बोल्यो के हे जाइ ! तारा थावी रीतना पूबवाथी तो मने एम लागे , के हाल तुं दूरदेशथीज थाव्यो हश्श ? का रण के था नगरमां शोक थवानुं कारण आस पासनां आबालवृक्ष सदु को जन जाणे . परंतु तु जाणतो नथी. माटे शोक थवा, कारण कडं, ते सांनत. आगाममांथी कोई एक उष्ट चोर, कन्या वगेरेने चोरी जातो हतो, ते माटे कोटवाल वगेरेयें तेनो घणो तपास पण कस्यो, परंतु ते चोर पकडायो नहिं. त्यारे तेने पकडवा माटे या गामना श्रीबल राजानो गिरिसुंदर नामा एक पुत्र ,ते गयो. तेने गयां एक मास थइ गयो, तो पण ते आव्यो नहि. तेथी घाखा राजकुलमां तथा समग्र नगरमां शोक बाइ रह्यो जे अने हा हाकार थ रह्यो .तथा वली तेना मित्र गिरिसुंदरने शोधवा माटे हमणां ज शतबलनामा युवराजनो गुणश्रीथी सारनूत, एवो रत्नसार नामा पुत्र, को ठेकाणे निकली गयो बे. ज्यां "रत्नसार, गिरिसुंदरने शोधवा गयो " ते वाक्य सांनव्यु, त्यांज जाणे पोतानी पर वजपात थयो होय नहिं ? एम जाणी ते कापडीवेषधारी कुमार, पोतें घेला जेवो बनी जर बीजी कां पण वात न सांजलतां तुरत, पोताना मित्र रत्नसार कुमारने शोधवा माटे निकटयो. तेमां प्रथम तो तेणें आकाशमां जर, सर्वत्र शोध करी, ज्यारे त्यां ते न मल्यो, त्यार पनी नूख, तृषा, टाढ, तडको तेने सहन कर तो थको ते, गिरि, वन, पृथ्वी, पाताल, देश, ग्राम, पुर, उद्यान, पाणीनी पर्वो, अन्ननां सदाव्रत प्रमुखमां शोधवा लाग्यो, परंतु ते गिरिसुंदरने को पण स्थलें ते रत्नसारनो पत्तो लाग्यो नहिं. पनी घणा दिवस शोधवाथी पण ज्यारे पत्तो न मल्यो, त्यारे तेना विरहथी तेने जोजन नाव बंध थयुं अने निश पण श्राववी बंध थगइ. तथा चिंता पण वधतीज गइ. __ आवी रीतें शोध करतां करतां तेणें एकदा रात्रिने समय कोइएक नगर दी, अने ते नगरनी समीप एक जीर्ण देवालय दी, ते जोड्ने मनमा विचायुं जे रात्रि पडी गडे, अने या नगर समीप देवायलन स्थल सारूं जे, माटे था रात्रि तो पाहीज निर्गमन करूं, अने सवारें पालो रत्नसार मित्रने शोधवा जाइश? एम विचारी ते कुमार ते जीर्ण देवालयमांज सूतो. Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४३ तेवामां तो त्यां देवलनी बास पास कोइएक देशना पथिकजन आवी न तयां. अने तेय पण रात्रि रहेवानो त्यांज निश्चय कस्यो. पडी त्यां ते सर्व पांथजनो एकगं था परस्पर केटलीएक नूतकालनी वातो करवा लाग्यां, ते वातोने गिरिसुंदर कुमार कान दर देवालयमां सूतो सूतो सांजव्या करे ने. त्यां कोइएक महसेन नामें पांथजन , ते बोल्यो, के हे नाश्यो! तमें परस्पर जे वातो करो बो, ते सर्व वातो ग गुजरी करो बो, ते करतां जो आंखनी जोयेलीज वातो करता हो, तो केवू सारूं कहेवाय ? अने ते नूतकालनी वातो करवानुं तमारे लॅप्रयोजन ? कारण के तेवी प्राचीनकालनी वातो तो खोटी पण होय . माटे तमें सर्व जो बीजी वातो करवी बंध राखो, तो में जे हाल एक प्रत्यक्ष वात जोडे, ते दुं कहूं. ते सांनती सदु कोइ कहेवा लाग्या के हा, त्यारे तेवीवात जो होय तो जरूर कहो.त्यारें ते कहेवा लाग्यो. के एक दिवस हुँ देशकौतुकोने जोवा माटे मारे घेरथी निकल्यो, ते अनेक देशोमां फखो. त्यां नवां नवां कौतुको जोतो जोतो अचानक कोइएक उजड गामनी पासें घणाक व्याघ्रादिक हिंसक जी वोथी युक्त एवी महोटी अटवी हती तेमां आवी पज्यो. तेवामां तो त्यां अत्यंत रूपवान एवा कोइएक राजपुत्रनो मने सथवारो मल्यो. त्यारें तो हुँ निर्नय थश्ने ते राजकुमारनी साथै चाल्यो. चालता चालतां एक उजड नगर आव्युं, ते नगर एवं हतुं के जेमां पशु, पदी के मनुष्य को पण रहेतुंज न हतुं. पनी ए नगरमां अमें चाव्या, त्यां चालता चालतां एक मनोहर पण उजड, एवो राजमहेल दीठो. ते राजमहेलने जोइने विचार कस्यो के अहो ! आ केवो सुशोनित राजमहेल , चालो उपर चडी जोश्य ? एम विचारी अमो तुरत तेनी उपर चडी गया, अने त्यां जबेगा. तेवामां मने तो निश आववा मांझी, तेथी ढुं तो सूइ गयो अने मारी साथें आवेलो जे राजकुमार हतो, ते तो मारी पासें जागतो रही, मारुं रक्षण करवा बेठो. तेवामां तो झुं बन्युं ? के जेनुं नूखथी पाटा जेवू पेट थइ गयुं वे एवो, अने अति जयंकर एवो एक सिंह आव्यो. बावीने अमारी पासें ननो रही ते जागता एवा राजकुमारने मनुष्य वाणीथी क हेवा लाग्यो, के हे कुमार ! हुँ घणा दिवसनो दुधातुर मुं. कारण के था नगरनी निकटना वनने विषे मारा उदरपोषण माटे में घणाक प्राणीयो Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. नो शोध कस्यो, पण जाग्ययोगें मने कोइपण प्राणी मल्यो नहिं. त्याऐं हुं या नगरमां श्राव्यो, त्यां मने मनुष्यनो गंध याव्या ते गंधना अनु सारें या राजमहेज़पर चडी याव्यो बुं. तेमाटे हे राजकुमार ! तुं या सूतेला माणसने मने ग्राप. कारण के तेने जो तुं यापीश, तोज मारा प्राणनुं रक्षण याशे, अने तेथी तुने मोहोटुं पुण्य थाशे अने हे नाई ! संत पुरुषो जे होय बे, ते तो अत्यंत दयालु तथा परोपकारीज होय बे. वली हे सुजन ! या जगतमां दुधा समान बीजी कोइ वेदनाज नथी ॥ यतः ॥ खनिनवमहामानग्रंथिप्रजेदपटीयसी, पटुतरगुणग्रामांनोजस्फु टोज्ज्वलचंडिका ॥ वितत विलसन्नावली वितान कुठारिका, जठर पिठरी ॥ पूरेयं करोति विडंबनाम् ॥ १ ॥ अर्थः- अभिनव एवा मोहोटा माननी ग्रंथिना नेदन करवामां चतुर, मनोहर एवा जे गुणसमूह ते रूप जे कमल तेने स्फोटन करवामां उज्ज्वल चंडिका सरखी, विस्तृत अने मनोहर एवी लकारूप वल्लीना नवांकुरनेविषे कुठार समान, अने 5पूर एवी जवर पितरी जे उदर, ते सर्व जगतने घणुंज दुःख आपे बे. ए वचन सांजली कुमार बोल्यो के हे पंचानन ! तें कह्युं ते तो योग्यज बे, पण या सुतेलो जे पुरुष बे, ते तो मारे शरणागत थयेलो बे. माटें ज्यां सुधी हुं जीवुं बुं, त्यां सुधी मारा शरणागतने हुं केम खाएं ? अर्थात् हुं मूवा पढी तेने तुं ले. पण मारा जीवतां में अपाय नहिं. कयुं बे के || श्लोक ॥ कूटसाक्षी सुहृशेही, कृतघ्नी दीर्घरोपवान् ॥ चत्वारः कर्मचांमालाः, पंचमोजा तिनाप्य सौ ॥ १ ॥ अर्थः- एक खोटी साक्षी पूरनारो, बीजो शरणागत तथा सुहऊननो शेह करनार, त्रीजो कृतघ्नी, चोथो लांबा वखत सुधी रोप राखनारो. या चार जाने तो कर्मचांमाल कहेवा. ने जे या जगतमां प्रत्यक्ष चांमालयी जन्मे बे, ते पांचमो जातिचांमाल जाणवो ॥ १ ॥ ते माटें हे सिंह ! जो तुं नूख्योज बो, तो या सुतेला पुरुषने बदले मारुं क्षण करी जा. ते सांगली सिंह कहे बे, के हे सत्पुरुष ! सहु कोइयें सर्व रीतें पोता नुं रक्षण कर, एम नीतिशास्त्रमां कहेलुं बे ॥ श्लोक ॥ शरीरं धर्मसं युक्तं, रक्षणीयं प्रयत्नतः ॥ शरीरात्स्रवते धर्मः, पर्वतात्सलिलं यथा ॥ १ ॥ अर्थः- धर्मसंयुक्त एवा शरीरनुं प्रयत्नें करी रक्षण कर. कारण के धर्म जेबे, ते शरीरथकी वे बे. केनी पठें ? तो के पर्वतथकी जेम जल Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४५ स्त्रवे डे, ते माडे तुं तारा शरीरनुं रक्षण कर. अने जलदी, आ सूतेला पुरुषने यापी दे. त्यारे कुमार बोल्यो के हे सिंह ! जो. पा सूतेलो पुरुष जे जे, ते मारे शरणें रहेलो , अने तुं जे बो, ते नोजनार्थी बो. हवे मारे मारा शरणागत प्राणीने तारी पासें मरावी नखाववो, ते पण उचित नहिं, तेमज वली घणा दिवसथी नूख्यो एवो जे तुं ते तारा हाथमां आ वेढुं जे खाज, ते तुने न सोंपी नूखें मारवो, ते पण उचित नहि. तो हवे या प्राणीनो पण बचाव थाय अने तारी नूख पण मटे. जो ए बेदु थाय, तोज योग्य थयुं कहेवाय. तो ते बेदुकार्य तो क्यारें थाय ? के ज्यारे तुं मने ग्रहण करीने मारुंज नहाण करी जा, त्यारे थाय. ते शिवाय थाय तेम नासतुं नथी. माटे हे ना! तुं मारुंज नहाए करी जा ॥ यतः ।। किं जीविएण किं वा, धणेण किं प्ररुसेण पुरिसाणं ॥ जायज न जीयं, सरणागय दाण पाणाणं ॥ १ ॥ शास्त्रं बोधाय दानाय, धनं धर्माय जीवितम् ॥ वपुः परोपकाराय, धारयति मनीषिणः ॥ २ ॥ रत्नाकरः किं विदधाति रत्ने, विध्याचलः किं करिनिः करोति ॥ श्रीखंमरवमलयाच लोवा, परोपकाराय सतां प्रवृत्तिः ॥ ३ ॥ अर्थः-मनुष्यनो अवतार धारण करीने जे पुरुषं जो शरण आवेला जीवन रक्षण न कयुं, तो ते पुरुषना जीववाथी पण गुं ? तथा तेना धनथी पण गुं ? अने वली तेना पुरुषार्थथी पण झुं ? अर्थात् जे मनुष्य शरणागत जीवनी रक्षा करतो नथी ते मनुष्यनुं जीवतर, धन अने पुरुषार्थ, ते सर्व व्यर्थज जे. एम जा एवं ॥ १ ॥ वली जगतमा जे मतिमान् जनो ने, ते शास्त्रने बोधने माटे, धनने सत्पात्रने दान देवा माटे, जीवितव्यने धर्मने माटे, अनें शरीरने परोपकार माटेंज धारण करे २ ॥ २ ॥ वली जुन. समुश् जे , ते पोता मां रहेला रत्नोथी स्वार्थ गुं साधे ले ? तथा विंध्याचल पर्वत जे , ते पोता पर फरता हाथीयोथी स्वार्थ सुं साधे ले ? तथा मलयाचल, पोता पर रहेला गरुचंदनना वृदोथी स्वार्थ झुं साधे ले ? कांहि नहिं. अर्था त् समुह, रत्नोने विंध्याचल, हस्तीयोने अने मलयाचल, चंदनना वृदोने परोपकार माटे पोतानी पासे राखे . माटें सजानजननी प्रवृत्ति तो परो पकार माटेज़ होय ॥ ३ ॥ या प्रमाणे सिंहy अने राजकुंवर, परस्पर बोलq घणुंज थयुं, अने कोइ पण रीतें ज्यारें मने सिंहने न सोंप्यो, त्यारे Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते सिंहें कुमारनो निश्चय जाण्यो के आ कुमार, कोइ पण रीतें मुने आ सूतेलो पुरुष यापशेज नहिं. एम जाणी प्रसन्न थइ ते बोल्यो के अहो! तुने, अने तारी शरणागतवत्सलताने पण धन्य ? अहो! हे विधान ! जे बावो परोपकार करवो, ते सुइजननो मुख्य गुण ने. अने हे कुमार ! जुने धनवान् एवो कृपण जन जे जे, ते तो बते वैनवें पण कोश्याचकजनने तथा बीजा कोइ पण जनने एक फूटल कोडी सुधां आपतो नथी. तथा जीर्ण एवा तीर्थोनो नदार पण करतो नथी अने ते, कोइ जीवने थयेला व्याधिने पण टालतो नथी, तेम पोते पण शरीरसुखने नोगवतो नथी. अने निधन एवा उदारमनवाला जे मनुष्य , ते पोताना शरीरनो पण त्याग करी स्वकीय कुलने दीपावे . माटे हे सदुद्दे ! तुं कोई उत्तम सुइजन बो, तेथी धावा परोपकाररूप गुणोथी हुँ तारी पर संतुष्ट थयेलो . माटे हे नाइ ! तारे जे कांश मनोनीट होय, ते माग. तुं जे मागीश, ते ढुं श्रा पीश? ते सांजली कुमार बोल्यो के हे पंचानन ! एक मुने संशय थाय बे, के तमें सिंह थश्ने आवी मनुष्यसमान नाषा बोलो बो, तेयो तमें सिंह बो, के बीजा कोइ बो ? ते सांजली सिंह बोल्यो के हे मित्र! हूं तो आ देशनो देव बुं. त्यारे कुमार कहे , के अहो ! त्यारें तो पाश्च र्यनी वात बे, के तमो आ देशना देव बो, ते बतां आ गाम तथा देशने उजडज केम राख्यो ? जुन ने, जे कोइ साधारण माणास होय , ते पण पोतानुं नगर जो नजड थयेनुं होय, तो तेने वसावे , तो तम जेवाने या नजड नगर अने देश वसावामांशी अडचल ने, जे वसावता नथी? ते सांजली तुरत ते सिंह पोताना देवस्वरूपने प्रगट करी कहेवा लाग्यो, के हे सुजन! था नगर तथा देश जे उजड रह्यां , तेनुं वृत्तांत जे बन्यु जे, ते कडं, ते सांबलो. आ गांधारपुरनामा नगर ले. अने आनो रविचं नामा राजा हतो. तेने रतिचं अने कीर्तिचं नामा बे पुत्र हता. हवे एक दिवस ते रवि चंड राजायें, वैराग्य पामी पोताना रतिचं नामा ज्येष्ठ पुत्रने राज्यासन पर बेसारी, अने तेथी नाना कीर्तिचंश्ने युवराज स्थान आपी, तापस दीक्षा ग्रहण करी. हवे ते रतिचं राजा, गान ताननो शोखी होवाथी, गान ताननाज आनंदमां रहेतो हतो, अने पोताना राज्यखटपटनी Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४७ चिंतामा पोताना नाना ना कीर्तिचंनी योजना करी हती. हवे ते राज्य सुखमां लुब्ध थइ गयेला कीर्तिचंई जाएयुं जे, आ राज्य मारा कबजामां विना प्रयासें स्वतःज याव्युं , तो हवे ते राज्य मारे मारा ज्येष्ठनाइने पाडं आपकुंज नहिं. कारण के जो ढुं तेने पाचं आपुं, तो ते मने काहिं थापे नहिं ? एम विचारी ते राज्यना सामंतने तथा आमात्यमंमलने व्यापी पोताने वश करी लीधा अने ते राज्यनो पोतेंज स्वामी थइ ते देशमा पोता नीज आण वर्तावी. तेणें वली पण पाबो विचार कस्यो के पा राज्य तो मत्युं, परंतु या मारो नाइ रतिचं जीवे जे, तेथी ते कांक खटपट करी मने मारी नखावीने जो पाबो राजगादीयें बेसे, तो ढुंगुं करूं? माटें ए रति चंइनेज बंधावीने मारी नखावं, के जेथी मने पालो यावऊन्म राज्य जवानो जयज न रहे ? एम उष्ट संकल्प करी कीर्तिचंई ते बिचारा निरपराधी रति चंडाजाने घातकीअनुचरो पासें गाढबंधनथी बंधाव्यो अने तेउने मारवानी माझा आपी. त्यारे वैराग्यने प्राप्त थयो एवो रतिचं राजा बोल्यो के हे नाइ! तें या झुं धायुं ? अरे ! तारो ज्येष्ठ नाइजे ढुं, ते मने मारी आ पणा निर्मल कुलमा जे कलंक देवू, ते तुने उचित ? अने जो तुं मने, राज्यमाटेज मारतो हो, तो ते राज्य तो में तुने प्रथमथीज आपेलुं ले ? अने हे लघुबांधव ! तुं जो तो खरो, में तुने कोइ दाडो स्वेबाथी लक्ष्मी वापरतां तथा राज्यसुख लेतां अटकाव्यो ? काही पण कयुं ? अने हे नाइ ! घणाक उष्टजनो,या पृथ्वीनी माटे मनुष्यहत्यादिक विविध प्रकारनां पापो करी ते पापोनो पोटलो बांधी कालना कोलीया थइ गया , परंतु हजी सूधी तेनी साथें आ पृथ्वी गइ ? ना नथीज गइ. तेमज वली केटला एक प्राणी, लक्ष्मीने मेलववा माटें अकर्त्तव्य कर्म करे , परंतु ते लक्ष्मी पण तेने त्यां रहे ? ना रहेती नथी. कारण के ते लक्ष्मी घणीज चंचल . तेम वली ते लक्ष्मी, पोतानो संचय करनार ज्यारें मरे , त्यारे तेनी साथे पण जाय ? ना जाती नथी. वली हे नाइ! तुं कदाचित् एम जा गतो हो, के मारा ज्येष्ठ नाश्ने हुँ जीवतो राखं, तो ते मने राज्यलोनथी मारी नाखे ? तो हे नाइ! तेवो विचार तो तारे करवोज नहिं. कारण के काल जे जे, ते कोइ पण प्राणीने वहेलो मोडो बोडतोज नथी. अने हे अनुज! तुं कदाचित् एम जाणतो हश्श के आ मारा ज्येष्ठ नाइने ढुं ज्यारे मारी ना Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. खीरा, त्यारे मने पढी दुःखज नहिं रहे ? ना. एम पण नथी, कारण के छा लोकमां कदाचित्तुं सुख थाइश, तो पण यावा कुलहत्यारूप पापथी तारे पाहुं नवोजव दुःख वेठवुं पडशे ? कारण के प्राणीमात्रने गुनागुन कर्म जोगव्या विना बुटकोज नथी. माटे या राज्यना तु सुखमां यासक्त थइ तेज सुखने सत्य मानी मोहमद्यथी मोहित या यावा कुजहत्या, मनु यहत्या वगेरे पापथी जो व्याप्त थाइश, तो तारुं या जन्ममां के इतरजन्म मां को पण दिवसें सा थाशे नहिं ? माटे दयाथी अथवा मनुष्यहत्यानो पापजयथी, वा मने ज्येष्ठ जाई जाणवाथी, वा जगतमां थता अपवा दना जयथी, वा कोइ पण कारणथी जो तुं मुने जीवतो बोडी दश, तो नि तारुं या लोकमां ने परलोकमां सारूंज याशे ? हे अज्ञानी ! वली तारा मनमां तारे क्यारें एम पण नहिं जाणवुं जे हाल या मारा नाइने में मारवा माटे बांधी मगाव्यो, अने हवे जो तेने हुं जीवतो बोडुं, तो ते मारीपर व राखी कोइ पण रीतें मारो घाट घडावी नाखे, अने पाठो या राज्यनो धणी याय ? तो तेवो विचार तारे स्वप्नमां पण लाववो नहिं. कारण के हे जाइ ! जो तुं मने जीवतो बोडी दश, तो हुं प्रापणा पि तानी पेठें तापसी दीक्षा ग्रहण करी मारा जीवनुं सार्थक करीश ? अने सर्वथा या तारा राज्यमां के देशमां हुं रहीशज नहिं. एम घणी रीतें सम जाव्यो, तो पण ते पापासक्त प्राणीयें तेनुं काहिं पण मान्युं नहिं. तेम वी तेने विचाराने बंधनमुक्त पण कस्यो नहिं. त्यारें ते रतिचं राजायें वि चायुं के या पापीना हाथथी मरी ते अज्ञानीने जगतना चातृहत्याना अपवादमां नाखवो, ते करतां कोई पण रीतें पोतानी मेजेंज मरकुं, ते सारुं ? एम विचारी ते कीर्त्तिचंदने कहे बे, के:- हे प्रातः ! टलुं कहेतां पण तारामां स्वार्थीपणुं तथा अज्ञानपणुं होवाथी तुने तो याखा जगतमां छापणी सात पेढीने कलंक लागे एवं, तथा परनवने विषे अनेक दुःखदायक, एवा या मनुष्य हत्यारूप पापकर्मथी निवृत्त थावुं गमतुंज नथी, तो पण तुं मारो जाइ बो, तेथी मने तारी दया यावे बे, के अरे ! या बीचारानी मने मारवाथी याखा जगतमां घणीज अपकीर्त्ति थाशे तथा परलोकमां दुःखी याशे ? माटें हे जाइ ! हुं तुने जेम कहुं तेम तुं कर. के जो. एक काष्ठनी चिता कराव. तेमां हूं, तमें सह देखो तेम बली मरुं ? ग्राम करवाथी जगतमां Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४ए थातो तारो अपयश मटशे अने तारुं धारेलु कार्य पार पडशे? ते वचन सांनती कीर्तिचं विचायु के अहो ! था तो एणे ठीक कह्यु, कारण के ज्यारे ते पोतानी मेलेंज अमिमां पडी बली मरशे, त्यारें माहं राज्य निक टक थाशे ? तथा एना कहेवा प्रमाणे जगतमां थतो अपयश पण मटशे ? एम विचारी तेणें तत्काल एक महोटी काष्ठनी चिता रचावी. त्यारे ते रतिचं राजा, पोतानी स्त्री सहित ते चितामा जश्वेतो. पडी उष्ट एवा ते कीर्तिचं चितानी चोतरफ प्रलयानि समान अग्नि प्रज्वलित कस्यो. तेथी ते रतिचं राजा अग्निमां बलीआर्तध्यानथी मरण पामी, नूतरमण नामा यद थयो. हवे कवि कहे के, जुन तो खरा. आ संसारसुखनुं के विचि त्रपणुं , के जे संसारसुखमां आसक्त एवा कीर्तिचंई पोताना सहोदर नाइने पण मारी नाख्यो, तो बीजा कोश्ने मारे, तेमां तो गुंज कहे ? हवे ते यद कहे के के हे राजकुमार' अग्निमां बली मरण पामी जे रतिचं राजा यह थयो, ते ढुं पोतेंज बु. आ यक्षपणामां अवधिझाने करी मारा पूर्वज न्मनो सर्व व्यतिकर जाणी अत्यंत ते कीर्त्तिचंड पर कोपायमान थइ, में मं त्रिवगेरे जे आ पृथ्वीना स्थानिक जनो हता, तेने एकदम दूरदेशमां फेंकी दीधा. ए प्रकारना मारा करेला महोटा उपवने जोइने नय पामेलो एवो ते कीर्तिचं राजा पण कोण जाणे क्यां पलायन थइ गयो जे. अने तेमज वली आहिंनी सर्व प्रजा पण एक पड़ी एक नयनीत यश पलायन था गले. या प्रमाणे याखा नगरने तथा देशने उजड करी हुँ एक लोज आनंद पामी रहुँ . अने आ गामनी आसपासनी अटवीमां हुँ यथेवरूप धारण करी फस्याज करुं अने आ राजमहेलमा प्रतिदि न रात्रे आई बु. वली टुं प्रतिदिन जेम आबुं बुं तेम था महेल तरफ आवतो हतो, त्यां आवतां आवतां तमोने ज्यारें में दूरथी दीग, त्यारे तो मने घणोज क्रोध चड्यो हतो, परंतु ज्यां दुं तमारी निकट आव्यो, त्यां तो तमारा प्रतापथी के कोण जाणे शा कारणथी मारो क्रोध स्वतः तदन उतरीज गयो, अने मारुं चित्त पण शांत थ६ गयुं. हे कुमार ! आ प्रमाणे महारं जे कां वृत्तांत हतुं, ते सर्व में सविस्तर कही संनलाव्युं. हवे हे महासत्त्व ! हूं तो तारूं आई महानाग्यशालिपणुं जोइ अत्यंत संतुष्ट थयो बुं, तेथी मारी पासेंथी जे कांश तारे वरदान लेवानी इला Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. होय, ते माग. कारण के अमारा जेवा देवतुं दर्शन, कोइ पण दिवस निरर्थक थातुं नथी. ते सांजली कुमार बोल्यो के हे देव ! अमने तमारु उर्जन एवं दर्शन थयु, तेथी सर्व कांइ मलीज चूक्युं ने. कारण के आप जेवा देवनां अम जेवा मनुष्यने दर्शनज क्याथी थाय ? तथापि जो मारी पर कृपा आणी तमारें मने जरूर वरदान देवानीज इजा होय, तो हुँ एक वरदान मागु, के हाल जे आ नगर, तमोयें नपश्व करी जड करी दीधेनुं , ते पालुं वसावी आपो. कदाचित् तमो एम जाणशो के जे कार्य अमो देवतायें कोप चडावी बगाडधुं. ते कार्य जो पाचं सारं करिये, तो अ म जेवाने कोप थवानुं फल गुं ? तो त्यां कडं बुं, के जे देव अथवा मनुष्य प्रथम क्रोध चडावीने कार्य बगाडे , अने पाला वली प्रसन्न थइ तेज कार्यने सुधारे . तो ते क्रोध करनारने पण शास्त्रमा उत्तम कहेला ले. ते वचन सांजली यद बोल्यो के हे कुमार ! जो तुंथा नगर वसावानी इला धरावतो हो, तो आ नगरनो राजा तारेज था पडशे, कारण के आगामनी राज्य गादीपर कोई दिवस हुँ तारा शिवाय बीजा कोइ पण मनुष्यने बेसवा दलं एम नथी, कारण के बीजाने राजगादी पापवाथी मने संतोप थाय नहिं. अने वली हुँ अवधिझानथी तारो पण सर्व व्यतिकर जाणुं बुं. ते सांजल. जो. तुं चोरने पकडवा निकली गयेला तारा मित्र गिरि सुंदर कुमारने शोधवा वास्ते निकट्यो बो, तो ते पण हे नाइ! तुने एक मासनी अंदर आहिंज मलशे ? एवं वचन सांजली परम प्रमोदथी कुमार यदनु ते गामना राज्यासनपर बेसवारूप वचन अंगीकार कस्युं. तेथी यद पण खुशी थइ अदृश्य थइ गयो. तेवामां तो हे पांथजनो, ढुं जागी गयो. अने में ते राजकुमारने कह्यु के हे ना! तमो घणुंज जाग्या, माटे हवे ढुं जागुं , अने तमो सुइ जान. त्यारे ते थोडी वार सूतो अने तुरत जाग्यो, त्यां तो प्रनात काल थइ गयो. हवे प्रजातमां ते यदें पूर्वे ए नगरमा जे सामंत यामात्य वगेरे रहेता हता, तेना पुत्र प्रमुख सर्वने जे बनेली वात हती ते कही त्यां मोकल्या. पनी ते सर्व, मदोन्मत्त ए वा हाथी, खुराघात करता अने अतिचंचल एवा अश्वो, तेणें सहित त्यां याव्या, यावीने ते रत्नसारकुमारने प्रथम, स्नान करावी, वस्त्रानरणथी अलंकृत करी ते गामना राज्यासननु तिलक कयुं. अने ते कुमार राजा थयो. त्यारे ते रा Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५१ जाने मंत्री अने सामंतोयें रूपवंत अने गुणवान् एवी घणीक कन्याउ पर गावी आपी, अने ते गाममांथी ते यदना नयथी आडी अवली जागी ग येली सर्व प्रजा पण सारो राजा थवाथी पानी आवी वसी. त्यार पड़ी ते राजकुमार, मुने कहेवा लाग्यो के हे मित्र ! था राज्य मने तमारा संगना प्रतापथी मन्युं , माटे तमेंज ग्रहण करो. त्यारें में कडं जे हे सत्त्ववान् ! एम न बोलो. कारण के जे या राज मल्यु , ते तो तमारा नाग्ययोगेंज मल्युं . एमां मारो शो प्रताप ले ? माटे हे श्रेष्ठपुरुष ! या राज्य जोग ववानो खरो हक्क तो तमारोज ले. वली पण सांजलो, के या राज्य काहिं तमोयें कोठें कपटबलथी बीनवी लीधुं नथी? या तो तमारा नाग्योदयें प्रेरेला यदेंज अत्याग्रहपूर्वक प्राप्यु ले. माटे तमो स्वस्थ चित्त थइने जोगवो. अने दूं, जे मित्रने तमें शोधवा निकट्या बो, तेने शोधवा सारु जावं, माटे ते मित्रनां नाम, गोत्र, कुल, रूप वगेरे कहो, के जेथी हूं जलदी तेने शोधी लावु ? पड़ी तेणें तेनां गिरिसुंदर एवं नाम तथा गोत्र कुल प्रमुख कही आप्यां. ते पनी ढुं तेनां नाम वगेरेने बराबर याद राखी अनेक देशावरने विपे तेने शोधवा माटे जम्या करूं मुं. तेमां जे कोइ मने रस्तामां के बीजे कोइ ठेकाणे मले ,तेने पूडं . के तमें धावा गोत्र कुल रूपवालो गिरिसुंदरनामा कुमार दीतो ? तो पण हजी सुधीमने क्याहिं पण तेनो पत्तो मल्यो नथी. माटे हे पांयजनो! तमोने पण पूलु डं; के तमो पण अनेक गाम नगर, वन पर्वतो जोता जोता आवता हशो, तो तेमां तमोयें को पण ठेकाणे पुंद्रपुरना राजानो, गिरिसुंदर नामा पुत्र दीठो बे ? त्यारे सद को बोल्या के ना, ना. अमें क्यांही दीठो नथी. ते सांजली मनमां क्लेश पामी पालो महसेन बोल्यो के हे पांथजनो! ढुं तेनो अटलो बधो शोध तो नहीं करत, परंतु हाल जे उजडगाम वसावी राज्यासन पर वेवेलो मारो मित्र राजकुमार , ते स्वनावथी घणोज उत्तम ले.अने उत्तम एवा ते राजकुमा रने गिरिसुंदर विना मोहोटुं दुःख थाय . ते केवु दुःख थाय ? के तेने मनोहर एवं राज्य मन्यु जे, परंतु ते गिरिसुंदर विना तेने राज्य पण रज्जुसमान देवाय ले. अने विषयनोगो जे ,तेने रोगो समान माने जे, अने गीत विनोदने पण ते विलापतुल्य माने जे. अने हास्यजीला तो तेने जरा पण गमतीज नथी. अहोनिश मोहोटो निःश्वास मूकी, हे Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५३ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. गिरिसुंदर !! हे गिरिसुंदर !!! एवो शब्द बोल्या करे . मन तो हवे एम लागे , के ते राजकुमारने जो गिरिसुंदर कुमार नहिं मले, तो ते निश्चें थो डाज दिवसमां तेना विरहथी पोताना प्राणनो त्याग करशे? कारण के मनुष्यने कामरागथकी पण स्नेहराग वधारे प्रबल होय ॥ यतः ॥ निशाविधिः किल दक्षिणायने, दिनस्य वृधिधुवमुत्तरायणे ॥ यत्र ध्य स्यापि हि धिरुच,रेतत्तृतीयं विरहायनं सखे ॥ १ ॥ अर्थः- कोक विरहिणी सखी पोतानी सखीने पूछे, के सखि ! दक्षिणायनने विषे रात्रिनी वृद्धि थाय ने, अने उत्तरायनमा दिवसनी वृद्धि थाय , ते तो जगतमां प्रसिज ने परंतु जेमां रात्रि पण मोहोटी थाय, अने दिवस पण मोहोटो थाय, तेवं गुंजे? ते कहे. त्यारे तेनी सखीये जाण्यं के या विरहिणीने, माटे आम पूजे जे. एम जाणी ते बोली के हे बहेन तेनं नाम तो विरहायन वे. कारण के ज्यारें कोइ पण माणासने प्रियजननो वि रह थाय डे, त्यारे रात्रि अने दिवस, ए बेदु घणां मोहोटा था पडे ने. माटे तेनुं नाम विरहायनज कहेतु योग्य . वली हे पांथो ! मारा प्रिय मित्र एवा ए राजकुमारना विरहनो अवधि हवे मने पण पूर्ण थइ रह्यो ने. माटे जो ते गिरिसुंदर कुमार मने पण जो नहिं मले, तो हुँ पण मारा मित्रना विरहथी जरूर कमलनी पड़ें ग्लानि पामी जश? या प्रकारनां वचन ते पोताने शोधवा निकलेला महसेन नामा पथिकनां सांजली जीर्णदेवालयमा सूतेला गिरिसुंदर कुमारे जाण्यु जे अहो! आ पथिकनां कहेला वृत्तांतथी तो स्पष्टरीतें जणाय ने के, जेने दुं दुःख वेठी शोध करुं बुं, ते मारा मित्र रत्नसार नामा कुमारनुंज या वृत्तांत जे ? एम विचार करी कापडी वेष धारण करेलो ते गिरिसुंदर कुमार, एकदम बाहार आवी तेने कहेवा ला ग्यो के हे सुज्ञ एवा पथिकजन! तुं तारा राजकुमार मित्रना विरहनु घणुंज ःख सहन करे ले. ते तुने घटेज . कारण के ॥ श्लोक ॥ स्नेहं विमुच्य सहजं खलतां नजंते, गाढप्रपीडणवशानियतं तिलास्ते ॥ अस्मानवेहि कलमानलमाहताना, मेषां प्रचंममुशलैरवदाततैव ॥१॥ अर्थः-थाहिं एक स्नेहने माटे कवि अन्योक्ति कहे ,के एक दिवस जेना पहुवा थाय , ते कलमनामा चोखा बोल्या, के हे लोको! या जग तमा जे तिल , ते निरंतर ज्यारें घाणीमां गाढ पीलाय जे, त्यारें पोतें Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३५३ ते पीलवारूप दुःखें करी पोतामां सहजनावथी रहेला स्नेहने ( तेलने) बोडी दीये बे, तेथी ते पीलाइ रहेला तिलने सहु कोइ खल ( खोल ) कहे बे. परंतु में तो अमारामां रहेली शुत्रताने प्रचंम एवा मुशलाघा ती वधारे उत्पन्न करीयें ढैयें, धने प्रहाररूप दुःखथी साहजिक सुत्रता रूप स्नेहने बोडता नथी. बोडता नथी एटलुंज नथी, परंतु अमारी पर जेम जेम वधारे प्रहार पडे बे, तेम तेम खमारी शुत्रता वधतीज जाय बे. ते माटे हे लोको ! मोने 'कलम' एवे नामें जाणो. अर्थात् जे गाढ दुःख थवाथी स्नेह बोडे बे, ते खल बे, घने जे गाढडुःख थवार्थी स्नेह बोडे नहिं, परंतु स्नेहमा वधारो करे, ते उत्तम ते. माटे हे पांथ ! कृपा करी तमारा मित्र राजाने मेलावो. त्यां जइ तेमने मली हुं पण तमारी पढें तेमनी सेवा करीश. वली हुं त्यां यावी तेमनो हाल जे क्लेश बे, ते क्लेश मटा डीने राजी करीश ? अने ते निःश्वास नाखी होनिश वारं वार गिरिसुंदरनुंज स्मरण कस्या करे बे, ते स्मरण पण मूकावी दश ? ते सांगली महसेन बोल्यो के हे सुज्ञ ! जो एम करो, तो तो हुं जाएं जे तमोयें मुने जीवित दान प्राप्यं, कारण के ते राजा मारा अंतरंग मित्र होवाथी मने पल तेना जेटलुंज दुःख थाय बे. एम कहीने ते बेदु जण, एक बीजाना हाथ पकड़ी गांधारपुर तरफ चाव्या. हवे ते महसेन, गिरिसुंदरनी सायें चाल्यो जाय बें, परंतु तेणें या गिरिसुंदर बे, एम तेने उलख्यो नहिं. कारण के ते गिरिसुंदरें पोतानुं रूप सिनी यापेली रूपपरावर्तन विद्यार्थी फेरवीने का पडीनुं रूप ग्रहण करयुं हतुं. हवे ते बेडु जण, चालता चालता गिरिसुंदरपासें रहेला चंद्रहास्य खड्गना प्रजावथी गांधारनगरमां यावी पहोंच्या. अने ते पी बीजे क्यांहि न जतां एकदम राजदरमां खाव्या. त्यां राजगादीपर वेठेला पोताना नाइ रत्न सारने जोइने गिरिसुंदर, अत्यंत खुशी थयो. अने मनमां जाएयुं जे हो ! मारो नाइ रत्नसार तो मने उत्तम हालतमां मव्यो ? हाश, हवे मारी सर्व चिंता नाश थइ गइ. अने रत्नसार राजायें तो ते गिरिसुंदर कुमारने तेनुं रूपांतर होवाथी उलख्यो नहिं. तेथी पोताना मित्र महसेनने पूछे बे के हे मित्र ! या तमारी साथें कोण पुरुष यावेलो बे ? त्यारें ते कहे, के महाराज ! कोइएक पांथजन बे, ते खाहिं खापना दर्शन करवा ४५ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. माटे मारी साथै आवेलो जे. एम कहीने वली ज्यां ते मल्यो हतो, ते व गेरे सर्व हकीगत कही थापी. ते गिरिसुंदरने रत्नसार राजायें जोयो, के तुरत पोतानो जाणे वडील नाइज होय नहिं? तेम जोयो. अने तेनी पर परमप्रीति थइ, अने पडी पूर्व जन्मनो स्नेह होवाथी तेने वारंवार जोड्ने ते रत्नसारनो आखो दिवस एक घडी जेवो चाल्यो जावा लाग्यो. कयुं , के ॥ श्लोकः॥ मृगामृगैः संग मनुव्रजति, गावश्च गोनिस्तुरगास्तुरंगैः ॥ मूर्खाश्च मूर्वैः सुधियः सुधीनिः, समानशीलव्यसनेषु सख्यम् ॥ १॥ अर्थः-मृग जे , ते जो नलो पडेलो होय, तो बीजा पशुन साथै जातो नथी, परंतु जो बीजा मृग देखे , तो तेनी साथें चाल्यो जाय . गाय पण पूर्वोक्त रीतें गायनी साथें जाय जे, तेम तुरग जे , ते तुरगसाथें जाय . बुद्धिमान जे ले, ते बुद्धि मान् साथें जाय जे. तेम मित्रपणुं पण जेमां पोता समान शील व्यसन होय , तेनी साथेंज थाय ॥ १ ॥ एम रत्नसारना केटला एक दिवसो गिरिसुंदरने जोतां जोतां आनंदमांज गया. एम करतां पूर्वे यदें कयुं हतुं के हे रत्नसार ! जे तारा नाइनो तुं शोध करे , ते नाइ, तुने एकमासनी अंदर मलशे, परंतु ते मास तो व्यतीत थ गयो, त्यारे ते विचारवा लाग्यो के अरे! ए यदें जे कयुं हतुं ते तो कांश सत्य थयुं नहिं ? माटे देवनी वाणी पण खोटी थाती हशे गुं? अरे ! मुने तो मारा चा तृवियोगना दुःखनो पारज आव्यो नहि.अने देववाणी पण ज्यारें खोटी थइ, त्यारे हवे मारे तेने मलवानी आशा पण राखवा जेवू नथी. माटे अावा घ्रातृवियोगजन्यकुःख सहन करवाथी अग्निमां पडी बली मर, सालं , तेथी था बेदु जाने काष्ठनी चिता रचवानुं कहुँ ? एम विचार करी ते सर्व विचार, पोताना मित्र पांथजनने तथा रूपांतरथी रहेला गिरि सुंदरने कही याप्यो. आप्रमाणे सर्व अभिप्राय ते रत्नसार राजानो सांजली रूपांतरधारी गिरिसुंदर कुमार बोज्यो के हे सुझजन ! थाप जेवा ज्ञाता पुरुषने आम जे बोलq, ते नचित ने गुं ? ना नथीज. वली हे महाराज! गुन्न एवा आपना गुणोथी आकर्षित चित्तवाला एवा मने कर्मरूप पवनें फेंक्यो ,तेथी हुँ आपनी हाजरीमांधावी पज्यो .अने आप पण मुने को माणास, देशांतर जर थावेला पोताना ज्येष्ठनाइने स्नेहथी जेम जुवे, तेम Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५५ जुवो बो. अने हुँ पण आपना स्नेहामृतथी सिक्त थयो थको अति निवृत्तिने पाम्यो . त्यां वली हे राजन! हुँ अग्निमांबली मरीश ? एवं कर्णशूलसमान वचन शामाटे बोलो बो? प्रथम मने पोतानो मानी पोताना ज्येष्ठ नाइ समान सुख थापीने पाबु वली आ प्रमाण- कठोर वचन कहि सुःख देवं, ते झुं थापने घटे ? आपने ज्यारे थामज करवू दतुं, त्यारें तो मुने घावो स्नेह देखाडीमोह करवो न हतो? वली जेने खोले माणस, माधुं मूके, तेज ज्यारें तेनुं माथु कापी नाखे, त्यारे ते पनी कोनी पासें फरियाद करे ? या सर्व सांजली रत्नसार कुमार बोल्यो के हे पांथजन! सांजलो. दंबली मरवानो विचारतो करत नहिं, परंतु आ देशनो एक यद , तेणें मने कडं हतुं के हे रत्नसार ! जेने तुं शोधवा निकल्यो बो,ते तुने बाहिंज एक मासनी अंदर मलशे? अने तेना कहेवा प्रमाणे एक मास तो व्यतीत थइ गयो परंतु ते मने मल्यो नहिं. तेथी हाल हवे हुँ निराश थ गयो ढुं, अने तेने मलवानी आशाये में अटला दिवस तो तेनी विरहवेदना पण वेठी, धने प्राण पण राख्यां, परंतु हवे हुँ मारा प्राण राखवा शक्ति धरावतो नथी. ते सांजली रूपांतरधारी ते गिरिसुंदर बोल्यो के हे प्रिय मित्र. देवनी वाणी कोइ दाहाडो मिथ्या होतीज नथी माटे आप प्रतिसमय जेनुं स्मरण करो बो, ते दैवें निश्चय करेलो तमारो नाइ आ हुं पंमें गिरिसुंदरज बु, अने हे ना! ढुं बापणे गाम गयो, त्यां में सांजल्यु के बाप मने शोधवा गया बो, ते सांजलतांज ढुंपण प्राणथी वन्नन एवा आपने शोधवा माटे था पृथ्वीने विषे फस्याज करतो हतो, फरतां फरतां को एक गामनी बाहार, रात्रे एक जीर्णदेवालयमां सूतां सतां में या आपना मित्रना कहेवाथी श्रा पने राज्य मलवा वगेरेनी सर्व हकीगत सांजली. तेथी मुने अत्यानंद थयो. पड़ी हुँ आ मित्रनी साथें आपनां दर्शन करवा माटे याहिं आवेलो . हवे आपनां दर्शन थवाथी मारुं सर्वःख नाश पाम्युं , अने हे ना! आप पण मारे माटे प्राणत्याग करवा श्लो बो, ते विचार बंध राखो. अने घणोक काल जीवता रहो. अने हे व्रातः! आप जेवा जे स्नेही, तेज स्नेही कहेवाय. कारण के जे स्नेहमां परस्पर आपण बेदु स्नेहीयोनी किया अने प्रवृत्ति सरखीज . आवां वाक्य ते रूपांतरधारी गिरिसुंदरनां सांजली रत्मसार राजा तो विचारवा लाग्यो के अहो! आ कापडी पुरुष कहे , के Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ जैनकथारत्नकोष नाग सातमो. हुँ गिरिसुंदर बुं,माटे होय तो होय? केम के आवां त्रण कारणथी तो ते गिरिसुंदर होय एम नासे . ते त्रण कारण कयां? तो के प्रथम कारण तो एने, के था पुरुषनी वाणीनीगंनीरताजे , ते गिरिसुंदर जेवीज .वली बीजं कारण ए डे, के जे दिवसथी या पुरुष, मारी पासें थाव्यो , अने में जोयो बो, ते दिवसथी या पुरुषमा मारी गुरुनावनी बुद्धि जेवी मारा ज्येष्ठनाइ गिरिसुंदरमा डे, तेवीज थ . वली त्रीजुं कारण ए ,के थावा राज्य बापवा समान मोहोटा प्रसादने करनार एवा देवोनी वाणी पण को दिवस मिथ्या थवानो संलव नथी? वली विचारे ले के कदाचित् एम जागीय के ते पूर्वोक्त त्रणे कारणथी ते गिरिसुंदर ने. परंतु तेनुं शरीर तथा रूप तथा आरुति,गिरिसुंदर जेवां देखातां नथी, तेथी ते गिरिसुंदर न पण होय? ना, एम पण शंका करवी नहिं, कारण के आवा रूपांतर करवा वगेरे, विविध प्र कारनी सिद्धियो सत्यवान एवा सुज्ञ पुरुषोने पूर्वोपार्जित पुण्यथी पोतानी मेलें प्राप्त थाय ? या प्रकारें कहापोह करीने ते रत्नसार, रूपांतर धारी गिरिसुंदर कुमारने कहे , के हे मित्र! तमारामां स्नेह, किया,वृत्ति, वगेरे सर्व गिरिसुंदर समानज बे, अने तमे पण कहो बो के, ढुं गिरिसुंदर बौं, तो हवे तमो बुद्धिमान् थइ तमारी आरुतिने अने स्वरूपने फेरवी शामाटे बेठा बो ? कयुं बे के ॥ गाथा ॥ सनावी सनाविय, जम्मि वयारयम्मि नवयारी ॥ धुत्तेसु महाधुत्तो, वियरकणे सवहा हो ॥१॥ अर्थः-बुद्धिमान् मागास, सनाव वाला पासें सन्नावी थाय , अने उप कारी पासे उपकारी थाय , तथा धूर्तजन पासें महाधूर्त थाय ने अने विचरणजन पासे विचक्षण थाय बे. माटे ढुं सनावी ढं, तो तमारे मा री साथें सनावीज थाएं घटे. अर्थात् मारी पासें आईं रूपांतर करी रहेढुं न घटे ? ए वचन सांजली गिरिसुंदर कुमार तुरत पोतानुं कापडीरूप मटाडी मूलस्वरूपने प्रगट कडे. पडी मूलरूपें थयेला ते गिरिसुंदरने जो इने रत्नसार राजाने एकसाथेंज हर्ष, संत्रम, अने लजा, एत्रण रस उत्पन्न थया. एटले ए गिरिसुंदर कुमार ज्यारे कापडीना वेषमा हतो, त्यारें तेणे स्वनावथी, तथा हावनावथी आ गिरिसुंदर कुमार हशे के नहिं ? एम शंका करी हती, अने पालो तेणे प्रत्यद गिरिसुंदरज दीठो, त्यारें तेने हर्ष थयो, तेथी तेने प्रथम हर्षरस उत्पन्न थयो. वली ते गिरिसुंदरने जोइने विचार Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५७ करवा लाग्यो के अहो ! आ तो मारो वडील ना होवाथी पूज्य , माटे हाल ते, तेनुं हुं पूजन करूं ! के तेने मनु ! के तेनी साथै वात चित्त करूं! के हुँ ते गुं करूं ? ए संन्रम थयो, तेथीतेने बीजो संचमरस उत्पन्न थयो. वली गिरिसुंदर कुमारने प्रगटरूपें जोतांज विचारवा लाग्यो के बरे ! आवा मारा प्राणप्रिय मित्रनो अटला दिवस पर्यंत मने वियोग हतो, ते बता पण ते वियोगःखथी हजी सूची में मारा प्राणनो त्याग न कस्यो. तेथी या ने था शरीरें हुं मारा मित्रने गुं मुख देखाडं बु? एम तेने मुख देखाडतां लाज यावी, तेथी तेने त्रीजो लज़ारस उत्पन्न थयो. याम अनिर्वचनीय परमानंदने अनुनय करतो एवो ते रत्न सार, एकदम दोडीने तेनुं गाढ आलिंगन करी मल्यो, अने पर स्पर बेदु मित्रने ते वखत आव्योमा हर्षाश्रु यावी गया. या प्रमाणे घणा दिवसने वियोगें वेदु नाइयोना मलवाथी घाखा गाममा महोटो महोत्सव थयो. अने त्यांना सदुकोइ लोक अत्यंत प्रसन्न थयां. अने घेर घेर वधाइ वागवा मांमी. पनी बेदु नाश्यो निवृत्तिथी बेसीने पोतें जुदा पड्या त्यांथी मामीने पोत पोतानी सर्व वात परस्पर कहेवा लाग्या. एम अमंदानंदने अनुनबता थका ते बेदु जण केटलाएक दिवस ते गांधार पुरने विषे रह्या. पनी ते गांधारपुरना यदनी बाझाथी ते पुरनुं राज्य पोताना महसेन नामा मित्रने आप्यु. अने वली कयुं के हे महसेन ! जेम अमो बे नाइयो बैयें, तेम तुं पण त्रीजो अमारो नाइज बो, कारण के तुं पण गिरिसुंदरने शोधवा वगेरेनो घणोज प्रयास करी अ मारा कुःखमा नाग नव्यो बो. माटे या अमारा थापेला राज्यासन पर बेसी तुं मथेठ जोगने जोगव. थने या सर्वप्रजानुं पुत्रनी पेठे पालन करी तेने न्यायमार्गे प्रवर्ताव. अने हे मित्र! सांजल. तारे राज्याधिपति थश्ने कोइ पण मनुष्यनो पक्षपात करवो नहिं. मंत्रिवर्गनुं अपमान कर नहिं. सामंत लोकोनुं सारी रीतें मान राखी पोताने वश राखवा, राज्य कार्य, न्यायमार्गथी चलाव. या प्रकारनां वचन सांजली महसेन बोल्यो के हे दयालो! आप आम मने शिखामण थापो बो,ते झुं क्या जवाना बो? त्यारें बेदुना बोल्या, के हे मित्र! हा, अमारा माता पिताथी जुदां पड्यां अमोने घणा दिवस थ गया जे, तेथी हवे तेमनी सेवा करवा Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ՅԱՆ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. माटे में मारे गाम जाएं! यावां वचन सांगली महसेन बोल्यो के हे पराक्रमी मित्रो ! हुं तो आपनो ताबेदार सेवक बुं, माटें कृपा करी खापें जे मने राज्य प्राप्युं, ते हुं अंगीकार करूं बुं. परंतु माराथी आपनो वियोग सहन नहिं थाय ? परंतु धुं करूं, जे बन्युं ते खरुं ? खने हे मित्र ! खापें मुने जे कां शिखामण थापी बे, तेज प्रमाणें हुं वर्त्तिश, तेनी sis पण चिंता राखशो नहिं. - " हवे ते गिरिसुंदर तथा रत्नसार ए बेहु जाइयो पोतानी सायें लइज वामाटें केटलुंएक सैन्य तैय्यार कररी गांधारपुरथी पोताना देशतरफ जावा निकल्या. मार्गमां चालतां चालतां जे जे देश, गाम वगेरे आवे बे, ते ते देश, गाम वगेरेना राजा, एबेदु जानुं पूजन करे बे ने रस्तामां चालता एवा ते बेनुं विमानमां बेसी आकाशमा रहेला एवा विद्याधर तथा देवता, दर्शन कश्या करे बे. एवी रीतें ते बेडु नाइ, गाम, या राम, नदी, पर्वत, तेने जोता जोता अनुक्रमें पोताना पुंद्रदेशमां याव्या, धने त्यांची वली शोनायें मनोहर, श्रेष्ठ ने पुरजनो जेमां एवा पुंद्रनग रमां श्राव्या. हवे कोई माासना मुखथी घणा दिवसथी जुदा पडेला एवा गिरिसुंदर तथा रत्नसारना ऋद्धिसहित प्राववाना समाचार सां नली, अत्यंत हर्षायमान थर शतबलनामा युवराजें सहित श्रीबलराजा म होटा खामंबरथी ते पोताना पुत्रोने मलवा माटे याव्यो. घने त्यां ते बेहु राजा पुत्रोने पोताथी पण वधारे संपत्ति लइ यावेला जोइने मनमां घणुंज याश्वर्य पाम्या. अने तेउनी प्रशंसा करवा लाग्या के ग्रहो हे पुत्रो ! तमोयें मारा कुलने घणुंज दीपाव्यं बे, घने तम जेवा पुत्रो तो कोइक श्रम जेवा नाग्यशाली पुरुष हशे, तेनेज हशे ? एम तेमनी प्रशंसा करी. पीते बेहु पुत्रोयें पोताना पिताने साष्टांग नमन कयुं. त्याऐं ते बेहु पितायें पोताना पुत्रोनुं दृढ आलिंगन कस्युं. ते वखत मोहोटा एवा मां गलिक तूर्योना घोष, गीत, नृत्य, तेणें करी सुंदर ने सर्वजनना मनने विस्मय पमाडे, एवी वधाइ प्रवृत्तवा लागी अने ते पुत्रोने जो पुरना रहे वासी आबालवृद्ध पर्यंत सर्व जनो, अनिर्वचनीय एवा यानंदकंदने प्राप्त थयां. पी सर्व लोक सहित श्रीबल राजायें गाजते वाजते ते पुत्रोनो पोताना नगरमा प्रवेश कराव्यो. पढी ते बेदु कुमार, पोताने घेर जइ पोत पोतानी Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३थए माताउने मव्या, अने नमन कयु, अने घणादिवस सुधी जुदा पडवाथी तेनी माताउने पुत्रवियोगजन्य जे उःख हतुं, ते सर्व अनेकवार्तायें करी नष्ट कमु. पली श्रीबल राजायें अवकाश जोश पोताना पुत्र गिरिसुंदरने पूज्यु के हे पराक्रमी पुत्र ! जे तुं थमने कह्या विना तत्काल थापणा गामनां कन्या प्रमुखने हरण करनारा उष्ट प्रबल चोरनो पराजय करवा गयो हतो, ते चोर तुने कये ठेकाणे हस्तगत थयो? तथा तेनो तें केवीरीतें नाश कस्यो? ते सर्व वात सविस्तर कहे. त्यारें गिरिसुंदर कुमार पोतें ज्यांथी निकटयो त्यांथी थारंजीने पोतानो लघु नाइ रत्नसार कुमार मल्यो, अने पाना बेदु याव्या, त्यां सुधीनुं सर्व वृत्तांत सविस्तर कहि आप्यु. ते आश्चर्यकारक सर्व वृत्तांत सांजली विस्मय पामेलो श्रीबलराजा कहेवा लाग्यो के हे पुत्र ! तारा सरखा पुण्यशाली प्राणीने तो त्रण लोकने विषे कोई पण वस्तु अनन्य होतीज नथी. कह्यु बे के ॥ श्लोक ॥ वने रणे शत्रु जलामिमध्ये, महार्णवे पर्वतमस्तके वा ॥ सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थित वा,रदंति पुण्यानि पुरा कृतानि ॥१॥अर्थः-वनने विषे, रणने विषे,शत्रु, जल अने अनि तेना मध्यने विषे, महार्णवमां, पर्वतनामस्तकमां, सुतेला, प्रमत्त थयेला विषमस्थानमा रहेला पुरुषर्नु पूर्वजन्मने विषे करेला पुण्योज रक्षण करे रे ॥ १ ॥ एम कहिने त्यांबेठेला सह को देखे .तेम श्रीबल राजा वात करता करतां वि चारवा लाग्यो के अहो! प्रयासथी तथा बलथी पण न बने, तेवां उष्टचोर हनन प्रमुख कार्यो, या मारा गिरिसुंदर कुमारने विना प्रयासें स्वतः बनी श्राव्यां.तथा आ गिरिसुंदरकुमारने चातृपणाना स्नेहथी शोधवा निकलेला एवा रत्नसारकुमारने पए महेनत विना स्वतःज गांधारपुरना यदें प्र सन्न थने ते गामनो राजा करी ते उजड गाम वसावी आप्यु. माटें ए सर्व, ए बेहु नाश्योने पूर्वजन्मोपार्जित पुस्यना प्रनावथीज बन्युं छे, तेथी ए वेदु जण, पूर्वनवें ते कोण हशे ! ए सर्व मुने जो कोइ केवलझानी मले, तो कहुं ? या प्रमाणे गिरिसुंदर साथें वात करतां विचारमा पडी गयेला श्रीबल राजाने जो ते स्थलें बेठेलो एक मतिमान पुरोहित हतो, तेणें श्रीबल राजानी मुखमुझपरथी जाण्यु जे या श्रीबलराजा गिरिसुंदर तथा रत्नसारना पूर्वनवने पूडवा माटे केवलझानी मुनिने मलवा इले ने, अने तेनोज विचार करे ! एम जागी ते पुरोहित राजाने कहेवा Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. लाग्यो के हे महाराज! आप जे हाल विचार करो बो, ते विचारमा मुने एम नासे , के आप केवली मुनिने या बेहु पुत्रना पूर्वनव पूबवाने श्लो बो, तो हे राजन! थापणाज गामना कुसुमाकर नामा उद्यानने विषे गुण रूप रत्नोना थाकर, जेनां दर्शने करी चक्षुने अत्यानंद उत्पन्न थाय, भने निर्मल एवा चारित्रगुणोथी अलंकृत, रूपवाला, शांतमूर्ति, सर्व इंडियोनो जेणें जय कस्यो जे एवा, शोनायमान, कनकसमान कांति वाला, अत्यंत निःस्टहवृत्तियुक्त, कुरुदेशना अधिपतिना पुत्र, श्रीजयनंदन नामा सूरी समवसख्या . या प्रकारना पुरोहितनां वचन सांजली हर्ष रूप पीयूष रसना आस्वादथी नलस्ति थयुं मन जेनुं, एवो ते श्रीबल राजा, पोतानी सर्वज्ञहि, तथा परिवारथी युक्त थको, ते जयनंदन नामा सूरीइने वांदवा माटे ते उद्यानमां गयो. त्यां जइ परिवार सहित ते मु निनु वंदन कयु. पनी सहु कोइ यथायोग्यस्थान पर बेठा. त्यारे ते सूरी सुधासमान पोतानी वाणीयें करी देशना देवानो प्रारंन कस्यो.ते जेम केः-- हे नव्यजनो ! था संसारने विषे गुनागुन एवां कर्मोयें करी जीव, उंच नीच कुलोने विषे अवतार लइ फस्याज करे जे ॥ यतः ॥ देवोनर यिको राजा, रंकोविज्ञान जडः पुनः॥ सुखी कुःखी नवेपी, कुरूपश्चित्रकर्म निः॥१॥ जंतुः कालस्वनावाद्यैह लिनिः कर्मराशिगः ॥ वृषबस्तु धा न्यार्थ, व्राम्यते नवकूपके ॥ २ ॥ यदार्जयत्यसौ पुण्य, मनुकंपादिहेतुनिः ॥ अत्यंतं स तदाऽऽप्नोति, स्वर्गश्रीप्रमुखं सुखम् ॥ ३ ॥ सदैव सेव्यते साधु, लिंगमासिगितव्रतः ॥ शांतोदांतोगतकोधोऽ,श्नुतेऽसौ मोदमदयम् ॥ ४ ॥ नाविर्नवंति यत्रैव, जन्ममृत्युजरादयः॥ शुई सैद्धांतिकं धर्म, कुरुध्वं नो बु धास्ततः ॥५॥ अर्थः-जीव जे , ते विचित्र एवा कोयें करी देव, नारकी, राजा, रांक, विद्वान, जड, सुरखी, उःखी, रूपवान, कुरूपवान्, एवो थाय डे ॥ १ ॥ वली कर्मरूपराशथी बंधायेला जीवने काल स्वनावादि रूप खेडुतो, धान्यने माटे बांधेला बेलना हालरानी पसें नवकूपनी फरतो वारं वार नमाज्या करे ने ॥ २ ॥ वली ए जीव, ज्यारें अनुकंपादिक हेतु यें करी पुण्य उपार्जन करे , त्यारे ते जीव, अभुत एवा स्वर्गश्रीप्रमुखना सुरखने प्राप्त थाय ने ॥ ३ ॥ वली ते जीव, जैनसाधुपणाना लिंगने धारण करी जैनशास्त्रोक्त साधुव्रतने अंगीकार करी, शांत, दांत, क्रोध रहित Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३६१ होय, ते जीव, अक्ष्य एवा मोदसुरखने प्राप्त थाय ने ॥४॥थने जैन शास्त्रोक्त धर्माराधन करनारा प्राणीने जन्म, मृत्यु, जरा प्रमुखनां खो कोई दिवस धावतांज नथी, ते माटे हे सुज्ञ एवा नव्यजनो ! शुभ एवा सैदांतिक धर्मने अंगीकार करो ॥ ५ ॥ ए प्रकारनी ते मुनिराजनी अमृतमय देशना सांजली श्रीबलराजा बोल्यो केः- हे महाराज ! आ जे कयुं, ते अक्षरशः सत्य के अने हुँ पण थापना कहेवा प्रमाणे धर्मनुं आचरण करीश. परंतु हे जगवन् ! था एक पूबवानुं , के मारो गिरिसुंदर कुमार अने आ बीजो मारा नाश् शतबलनो रत्नसार नामक कुमार ने तेने, प्रयास कस्या बतां पण जे संपत्तियो मले नहिं, ते संपत्तियो विना प्रयासें स्वतः आवी मले , माटे ते बेदुजणें पूर्वनवोमा झुं पुण्य कस्यां हशे ? तेमां मने बहुज विस्मय थाय बे, माटे हे मुनिवर्य! ते वेदु जणना पूर्वनवोनी सविस्तर हकीगत कहि थापो.ए सांजली ते श्रीबलराजाने ज्ञान निधि एवा ते मुनीं, गिरिसुंदरना अने रत्नसारना शंख अने कलावतीना नवथी मामीने ते चौदमे नवें प्रथम ग्रैवेकयमां देवता थया, ते कडुं. अने त्यांथी चवी शेष पुण्यने नोगववा माटे विश्वविख्यात एवा ते वेदुमाथी एक श्रीबलने त्यां अने बीजो तेना नाश् शतबल राजाने त्यां यावी अवतस्यो . त्यां सुधीनो सविस्तर व्यतिकर कहि आप्यो. अने वली पण कह्यु के हे राजन् ! आ तमारा गिरिसुंदरने तथा रत्नसारने प्रत्येक नवमां जे सं पतिनुं सुख मले बे, ते सर्व, ते बेदुजणे प्रत्येकनवमां चारित्र स्वीकारतूं बे, तेनुं फल ले. अने बेहुनी मुक्ति पण तेवीज रीतें जैन धर्माचरणथीज थाशे ? माटें ए बेहुने हाल या राज्यसंपत्ति जे मलीचे तेमां तमारे वि स्मय करवो नहिं. जुन. हे राजन् ! अनाज उत्पन्न करवा माटे खेती कर नारा खेडुतने विना प्रयासें स्वतःजे घास मली यावे, तेमां तेने विस्मय शो करवो ? तेम अनाज समान मोद फलनो प्रयास करता एवा तमारा बेदु पुत्ररूप खेडुतने राज्यसंपनि रूप घास उपलब्ध थयु, तेमां शो विस्मय करवो ? वली हे नृपते ! आ जगतमा जे सुख दे, ते पूर्वोपार्जित पुण्य विना प्राप्त थातुंज नथी. जु. तमने तथा तमारा नाइ शतबलने जे कांड या नवमां राज्यसुख मल्युं , ते पण पूर्वजन्मने विषे तमो बेहुयें कोई Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मुनिने श्रदार्थ थाहार वहोराव्यो बे, तेनुं फल बे ने तमारा बेहु जाइनी स्त्रीयोने जे राज्यसुख मल्युं बे, ते पण तमोयें ज्यारें साधुने श्राहार वहोराव्यो, त्यारें तेनुं तेणें घणुंज अनुमोदन कस्युं हतुं, तेनुं फल मल्युं बे. वां वचन सांगली पाठो विस्मय पामेलो श्रीबलराजा पूढवा लाग्यो के हे मुनिवर ! ते श्रमो वेह पूर्वजन्ममां कोण हता ? श्रने वली श्रमोयें पूर्व वें सुपात्र मुनिने श्रद्धाथी केवी रीतें खाहार वहोराव्यो ? यने या स्त्रीयो पण पूर्व नवें कोण हती, तथा श्रमोयें ज्यारें श्राहार वहोराव्यो, त्यारें ते बेदु जीयो केवी रीतें अनुमोदन कस्युं ? ते विस्तारपूर्वक कृपा करी कहो. ते सांजली जगदितैषी एवा ते मुनिवर्यै ते चारे जाना पूर्वजवना स्वरूपने कवानो प्रारंभ कस्यो. हे राजन् ! प्रतिष्ठान पुरनामा एक गाम बे, तेमां सुमेध नामा- एक कुलपति रतो हतो. तेने एक वंध्य ने बीजो शंबर, एवे नामें बे पुत्र हता, हवे का करी तेनां माता पिता मरण पाम्यां, त्यारे ते बेहुजणने पोताना संसार निर्वाहनी मोहोटी चिंता थई पडी. खने ते गामना राजापासेंथी तेने लानांतराय कर्मनो उदय होवाथी कांहिं पण वृत्ति मली नहिं. अर्थात् कर्मयोगे तेने गाममां कांहि पण उद्योग मव्यो नहिं, परंतु निर्वा ह तो चलाववोज जोइयें, तेथी ते बेहु विचार करी इव्योपार्जन माटे एक उत्तम एवं कांचनपुरनामा नगर हतुं, ते तरफ जवा निकल्या. कार के विद्वान माणसाने पण उदरनिर्वाह माटे उद्योग करया विना चालतुं नथी. तो या बीचारा मूर्खजनने उदर निर्वाहनो उद्योग करवो पडे, तेमां तो गुंज आश्चर्य बे ? कंले के ॥ श्लोक || बुन्नुदितैव्र्व्याकरणं न जुज्यते, पिपासितैः काव्यरसोन पीयते ॥ न बंदसा केनचितं कुलं हिरण्यमत्य जय निःफलाः क्रियाः ॥ १ ॥ अर्थः- कोइ विद्यानिमानी माणासने कोइ उद्योगी माणसें कहेलुं बे, के व्याकरण नोलो मनुष्य जो मूख्यो होय, तो तेणें कां व्याकरणनुं नोजन यातुं नथी, तथा काव्यना धने साहित्यना ग्रंथो ना जानारा मनुष्यथी का काव्यरसनुं पान यातुं नथी, तेमज वली वेद नलेला माणासनुं कुटुंब जो नूखें मरतुं होय, तो तेणें काहिं तेमने वेद संजलावी नूख मटाडी शकाती नथी. माटे हे सुज्ञ पुरुष ! तुं विद्यानुं अनि मान मूकी हिरण्य जे सुवर्ण तेनुं अत्यंत उपार्जन कर. कारण के सुवर्ण विना Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३६३ पूर्वोक्त व्याकरणाध्ययन वगेरे सर्वक्रिया निष्फल , अर्थात् ते क्रिया कांड उदरनिर्वाहमां काम आवती नथो. माटे ते पोताना उदरनिर्वाह माटे कांचन नगर प्रत्ये चाल्या. त्यां चालता चालता रस्तामां काइएक नगर आव्युं, त्यां नोजन समय था जवाथी ते गाममांजर एक नाश्ये कंदोश्ने त्यांथीमालपुडा वगेरें वेचातुं मिष्टान्न लीधुं. लश्ने पालो पोताना नाइपासें थाव्यो, अने पनी बेतु जण जमवा माटे उत्तम जन्नाशय वाला स्थानने शोधता शोधता चालवा लाग्या. ज्यां थोडेक दूर जाय, त्यां तो ते गामनी नजिकमां एक मनोहर वन आव्युं, ते वनने जोश्ने बेदु नाश्यो कहेवा लाग्या के आपणे था वनमां जश्नोज नोजन करीये. पली ते वनमां जश्जेवामां जोजन करवा बेता, तेवामां वंध्य अने शंबरें ग्लानिने प्राप्त थयां ले गात्रो जेनां तथा मासोपवास करी पारणा माटे जात पाणी वहोरवा माटे तेज नगरमां जाता, वाचंयमोमां मुख्य एवा एक मुनिने दूरथी जोया. तेने जोश्ने हर्षे करी प्रफुन्नित थयां गात्र जेनां एवा ते वंध्य अने शंबर चिंतववा लाग्या के यहो! मरुदेशमा जेम सुरतरुनां दर्शन थाय, अने निखारीना घरमां जेम निधाननां दर्शन थाय, तेम आपणने धावा जंगलमा मथ्याह्नकाले मनोहर एवा मुनिनां दर्शन थयां ? एवी नावना नावीने ते मुनिने परणा माटे बादरथी आमंत्रण करी बोलाव्या, अने पनी नक्तिनावथी जे कंदोश्ने त्यांथी लावेलुं मालपूडा वगेरे अन्न हतुं, तेणें करी ते मुनिने पडिलान्या. कह्यु , के वात्सल्यथी, योग्यपणाथी, परि ज्ञानथी, बौदार्यथी अने धर्मास्तिक्यथी, या पांच रीतथी आपेलुं दान थापनार माणसने अत्यंत फलदायक थाय ने. हवे जे वखतें मुनिने दान आप्यु, ते वखतें ते दानने, वनने विषे यदनु पूजन करवा माटे ते नगरना राजानी दिसुंदरी अने बुझिसुंदरी नामा बे कन्या या वीयो हती, तेणें दीतुं. ते जोश्ने अत्यंत हर्षायमान थ एवी ते कन्या बोलीयो के हे पांथजनो! वाह, वाह ! तमोयें ए दान जे दीg, ते योग्य पात्रनेज दीधुं , तेथी तमोयें तमारा मनुष्यजन्मनुं साफल्य कडे जे, तथा ते दान आपी तमोयें तमारा हाथने पण सुलक्षण युक्त कस्या बे, कारण के जे हाथे था जंगलने विषे तमोयें जंगम कल्पतरु समान मुनिने नक्तिनावथी अन्न वदोराव्युं . वली हे पुण्यकारक ! आवा Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. नत्तम दानथी तमारा सर्व पापनो प्रलय थइ गयो, तथा तमोयें स्वर्गनां सुख पण संपादन कस्यां. ए निचे जाणजो. कारण के जे लक्ष्मीथी सुपा त्रमा दान देवातुं नथी, ते कदाचित् लक्ष्मी घणी होय, तो पण शा कामनी ? या प्रमाणे तेच्यें दीधेला दाननी प्रशंसा करी बेदु कन्या घेर गश्यो. आवी रीतें श्रमाथी दान देनारा ते वंध्य अने शंबरें तथा ते दानने अनुमोदन करनारी एवी ते बेदु कन्यायें दृढ एवं पुण्य नपा र्जन कयु. अर्थात् ए चारे जणायें प्रौढ एवं पुण्य उपार्जन कयुं. कह्यु ने के ॥ श्लोक ॥ आनंदाश्रूणि रोमांचो, बहुमानः प्रियं वचः॥ किंचा नुमोदना पात्र, दाननूपणपंचकम् ॥ १ ॥ अर्थः-जे दानने देती वखतें प्रथम तो दान देनारनी चकुमां हर्षे करी तत्काल जल जरा आवे. वीजुं वली दान देनार माणसनी दान देती वखतें सर्व रोमराजि विक श्वर थाय, त्रीजुं दान देनार, वहोरवा आवेला मुनिने जोश, ते मुनिनुं मान करे के अहो मुनिराज ! पधारो, पधारो. चोथु दान देनार मनुष्य, दान आपीने वहोरवा आवेला मुनिने अत्यंत मीतां वचन कहे के, हे मु निवर्य ! आ दान लश् आ मारो महोटो अनुग्रह कस्यो, अने मने कता र्थ कस्यो. पांचमुंजे दान देतो होय, तेनी अनुमोदना करे के अहो! धन्य ने तमने ? जे आ प्रकारे उत्तम पात्र जो दान आपो बो ? आ पांच वानां जे जे, ते दाननां नूषण जे. हवे ते वंध्य अने शंबर ते महामुनिने दान दइ ते दाननी अनु मोदना करता करता त्यांथीचाल्या. ते अनुक्रमें पोतें जावाधारेला कांचन पुरें आव्या. ते गामनी बाहेर उद्यानमां एक आम्रपद हतो, तेनी नीचें विश्राम लेवा बेठा, एवा समयमां तो ते नगरने विषे ते गामना राजानो पट्टहस्ती मद चडवाथी बूट्यो अने तेणे गाममा घणुंज तोफान का, तेथी महोटो कोलाहल थइ गयो. ते कोलाहलना शब्दने आम्रवदनी नीचें बेठेला वेदु नाश्योयें सांजल्यो, अने ते सांजलीने तुरत ते बेतु नाश्यो विचार करवा लाग्या के अरे ! था गाममां अवडो महोटो कोलाहल केम थाय ? चालो आपणे जोयें. एम विचार करी ते बेदु जण तत्काल नगरमां ावीने ते गामना राजाना राजमहेलना दरवाजा पासे उना रह्या. तेवामां तो ते हाथी पण केटलां एक घरोने Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३६५ तथा हाटोने नांगतो, तोडतो, ज्यां ते बेदु नाश्यो न ना ले, त्यां आव्यो. अने तुरत ते दरवाजो तोज्यो, त्यारे त्या उना रहेना लोको तो जलदो पोतानो जीव लश्ने नागी गयां, परंतु ते बेदु जाश्यो तो त्यांने त्यांज उना रह्या. हवे अत्यंत चिंतामां पडेला चंराजायें खेद पामी गाम मां पटह वगडाव्यो के था गाममां एवो कोई शूरवीर जे, जे या मदो न्मत्त हस्तीने बांधे ? ते सांजली वंध्य जे हतो, ते जलदी हाथीने बांधवा तैय्यार थयो, अने पनी तेणें ते हाथीनी पासें जइबपरिकर थर, ते हाथीने जोरथी हाकल्यो, त्यां तो हाथी जे हतो, ते प्रथम मदमां तो आवे लोज हतो तेमां वलो ज्यारे हाकल्यो, त्यारें तो महा क्रोधायमान थश्तेनी सामो आव्यो. परंतु गजशिकाकुशल एवा ते वंध्ये युक्तियें करी तेगजने आडो अवलो खूब नमाडी घणोज खेद पमाडी वश करी लीधो. पनी जेम को साधारण माणास को एक बोकडाने तेना स्थानक पर पकडी लावीने बांधे, तेम तेणें ते हाथीने लावी बालानस्तनमां बांध्यो. आई ते वंध्यनु उत्तम परा क्रम जोड्ने गामना रहेवासी सदु कोइ लोको जय जय शब्द करवा लाग्यां. पड़ी ते महापराक्रमी एवा वंध्यने चंराजायें तुरत मानपुरःसर पोतानी पासें बोलावी बासन उपर बेसारीने कह्यु के हे पराक्रमी पुरुष ! था तारा पराक्रमने जोस्ने ढुं अत्यंत खुशी थयो बुं. माटे हाल तारे जेवू जोयें, ते वरदान माग्य. त्यारें राजाने प्रणाम करी ते वंध्य बोल्यो के, हे महाराज ! आपनां जे मने दर्शन थयां तेज, महोटो लान थयो ? वली पाप जेवा राजानी अम जेवा लोकोने जो सेवा करवी, तेज परम वरदान ले. ते सांजली मुनिने आपेला दानना प्रनावथो राजायें ते बेहुने एनी बाथी पण वधारे पगार थापी सेवक करी पोतानी पासें राख्या. एवी रीतें चिरकाल सुख जोगवीने ते बेदु, कालधर्मने प्राप्त थ युगलीया देव थश्ने अवतस्या, अने ते दाननुं अनुमोदन कर नारी एवी जे कन्या हती ते आ लोकनां सुख नोगवी मरण पामी तेज क्षेत्रने विषे ते बेदु युगलीया पुरुषनी स्त्रीयो थश्ने अवतरी. त्यां पण ते चारे जण कुरुक्षेत्र संबधियां जेटलां दश कल्पवृदो सुख आपे, एटलां सुखोने तथा जेमां राजशेष नथी एवा अहमिंपणानी सरखां सुखोने एकदेश कनत्रण पल्योपमना आयुष्य पर्यंत नोगव्यां. त्यांथी काल करी ते Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. चारे जण मनुष्यमां न थावतां सौधर्मदेवलोकने विषे अवतस्या. कारण के पूर्वनवमां तेयें एक देश कऍत्रण पल्योपमनुं आयुष्य जोगव्युं हतुं. हवे त्यां सौधर्मदेवलोकमां कम एवा देवायुष्यने पूरूं जोगवी त्यांथी आवी, पुंद्रपुरने विषे महामल राजानी विलासवती स्त्रीने विषे तमो बेङ, पुत्रपणे अवतस्या बो, अने तमा पूर्वनवनी जे स्त्रीयो हती, ते मांथी एक स्त्री तो पप्रखंम पुरने विषे महसेन नामा राजानी सुल्न क्ष्मणा नामें पुत्रीपणे उत्पन्न थइ. अने बीजी स्त्री जे हती, ते विजयनामा नगरने विषे पद्मरथ नामा राजानी लक्ष्मणा एवे नामें पुत्री थर अवतरी. हवे प्रथम महसेन रजानी सुलक्षणा नामा जे कन्या हती, ते नाट लोकोना मुखथी तमारा गुणगणनुं वर्णन सांजली तमारामांज आसक्त थ, अने तेथी ते कन्याना पिता महसेनें तमारी साथेंजतेनो सबंध कस्यो, अने बीजी पद्मरथ राजानी लक्ष्मणा कन्या जे हती, ते पण नाटना मुखथकी तमारा नाश् शतबल राजाना गुणगणनुं वर्णन सांजली तेमांज पासक्त थ. तेथी तेना पितायें तेनो संबंध शतबल राजा साथे कस्यो. तमो अत्यंत परोपकारी होवाथी कोइएक सिमपुत्र एवा श्रीगुप्ते आवी तमारी प्रार्थना करीने कर्वा के, हे राजन् ! तमो जो मारा उत्तरसाधक थान, तो मारे एक विद्या साधवी . कह्यु बे के ॥ श्लोक ॥ मित्रा णि तानि विधुरेषु नवंति यानि, ते पंमिता जगति ये पुरुषांतरज्ञाः ॥ त्यागी स यः कृषधनोपि हि संविनागी, कार्य विना नवति यःस परोपकारी ॥१॥ ज्येष्ठः पुमर्थेषु सदैव धर्मो, धर्मे प्रष्टश्च परोपकारः ॥ करोति यश्चैनमनंततेजसा, सधर्मकर्मण्यखिलेऽधिकारी ॥ २ ॥ अर्थः-मित्र तेने कहेवो, के ज्यारें पोतानो मित्र पुःखमां आवे, त्यारे तेना फुःखमां नाग जले, पंमित तेने कहेवो के जे जगतमां पुरुषना हृदयमा रहेला अनिप्रायने जाणी शके ? दानशूर तेने कहवो, के जेनी पासें धन नथी तो पण दान दीधाज करे, अने परोपकारी तेने कहेवो के, जे पोताना स्वार्थ विना पण पार को उपकार करे॥१॥अने सर्व पुरुषार्थमां उत्तम पुरुषार्थ जे जैनधर्म पामवो, तेज , ते धर्मने विषे पण कोइ पण जीवनो उपकार करवो, ते उत्तम ले. ते माटे नथी थातो पराकमनो नाश जेनो एवोजे पुरुष, परोपकारने करे , ते पुरुष, अखिल धर्मकर्मने विषे अधिकारी थाय ॥॥श्रा प्रकारनां वचन श्री Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३६७ गुप्त सिझनां सांजली तमोयें तेनुं साहाय्य कर, कबूल कस्युं. पनी ते श्रीगुप्तति ६, विद्या साधननी सर्व सामग्रोने ग्रहण करी कालि चतुर्दशीने दिवसें तमोने साथें लश्ने एक स्मशानमां गयो.अने त्यां जश् एक मंमल बनावी त्यां मंत्र साधवा वेतो. त्यारें तमें जे हता, ते हाथमा तरवार लश्ने उना रह्या. एवामां तो मोहोटी माढोथी कराल ने मुख जेठे, विजलीना प्रकाश स मान लाल नेत्रवालो, कृत्तिका, तरवार, खड्ग, मनुष्यनी तुंबली, जेणें हाथमां लोधां , महोटा उदरवालो, काजलना पर्वत समान श्यामरंग वालो, जेणें माणासना मुंमकानी माला पहेरी, एवो एक पिशाच याव्यो, तेणे आवीने मंत्र साधवा बेठेला ते श्रीगुप्तने केशे पकडी खेंचवा मांमयो, ते केश पकडी खेंचता एवा ते पिशाचने जोड्ने तमो तेनी सामा दोड्या, त्यां ते पिशाच तेने लश्ने लाग्यो, पबी बागल पिशाच अने पळवाडे तमें, एम बेदु जण दोडवा लाग्या. एवी रीतें दोडतां दोडतां महावनमां श्राव्या, त्यां तो सवार पडी गइ. तेथी ते पिशाच पोताना स्थान प्रत्ये चाल्यो गयो. ज्यां थोडी वार जुवो, त्यां तो तमें पिशाचने के श्रीगुप्तने कोइ पण तेकाणे दीना नहिं. त्यारें तमो चोतरफ जोवा लाग्या, अने तेम जोतां जोतां केटलेक दूर गया, परंतु त्यां पण तमने श्रीगुप्त के पिशाच को मत्यु नहिं, त्यारें तमो मनमा अत्यंत खेद पामी विचारवा लाग्या के अरे ! ए पिशाच अने श्रीगुप्त, बेतु क्या जता रह्या हशे? ज्यां एम विचार करो बो, त्यां तो तो त्यांथो जरा दूर, विलाप करीने रुदन करती कोइएक कन्यानो शब्द सांनव्यो, तेथी शब्दानुसारे ते कन्या ज्यां रुदन करती हती त्यां गया, त्यां तमें एक दोरडाथी गलामा फासो नाखी, ते दोरडाने एक महोटा वडनी माले बांधीने मरवा तैय्यार थयेली एक कन्याने जोइ. तथा वली हे दिक्पालो! तथा हे वनदेवीयो! मारा पितायें तो मने श्रीबलराजाने वाग्दानथी आपेलीज हती, परंतु मारा मंदना ग्यने लीधे तेनाथी मारूं पाणिग्रहण थयुं नहिं ? तेथी हवे हुँ गलाफांसो खाइ मरवा इतुं , तो हवे आहींथी मरण पामी जे कोश्काणे ढुं अवतार लढुं, त्यां पण मारो ते श्रीबल राजाज स्वामी थाजो. अने हवे ते नवमां श्रीब लराजाने मारा स्वामी थावामा हालनी पेठे विघ्न थवा देशो नहिं. एज हुँ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जैनकथा रत्नकोष जाग सातमो. आप देवतानी पासें वारंवार प्रार्थना करी मागुं बुं. एम कहींने ते स्त्री, जेनो गलामा फांसो नाखेलो बे ते दोरडे टींगाई गई, त्यां तो ते स्त्रीनां कहेलां वचनमां' बीजा पण जन्ममां श्रीबल राजाज मारो स्वामी थाजो ' ते वचन श्राव्युं, ते सांजली शंका पामेला एवा तमोयें तूर्णताथी त्यां यावी ते गला फांसाना दोरडाने बरीथी ऊट कापी नाख्युं. अने तमारा वस्त्रांचलथी तेने पवन नाखी सावधान करी. त्याऐं ते कन्यायें पोतानी चक्षु उघाडीने जो युं, त्यां तो तेणें तमने दीठा, त्यारें तेणें पोतामां स्त्रीत्व होवाथी नका पामी पोताना उढवाना वस्त्रथी उघाडां थइ गयेलां सर्व अंग ढांकी दीघां. त ने ते कहेवा लागी के ग्रहो ! मरण तो सर्व साधारण बे, परंतु तेमां पण नागली एवी हुं ते मने खावा विकटवनमां यावा उत्तम पुरुषनो समागम क्यांथी थयो ? त्यारे तो तमो तेनुं प्राश्वासन करी कहेवा लाग्या के हे मुग्धे ! तुने एवं शुं दुःख बे ? के जे दुःखथी तुं गला फांसो खाइ मरवा इडे बे ? ते वचन सांगल। कन्यायें विचार करचो के हो ! या नाग्यशाली पुरुषना मुख दर्शनथी तथा तेमना वचनश्रवणथी, मारुं मन अत्यंत संतुष्ट थइ जाय ले. या मारी दृष्टि पण अनिवार्यरीतें ते पुरुष सामीज वारंवार दोडे बे. वली या पुरुषना स्पर्शथी मारुं खखं शरीर रोमांचित थ गयुं बे. तेथी मुने एम लागे के. मारो पति श्रीबल तो नहिं होय? परंतु ते होय नहिं. कारण के ते पुरुषनुं याहिं याववुं संभवे नहिं ? वली विचार करे छे, के कर्मनुं वि चित्रपणुं बे, माटे यावे पण खरा ? ते माटे हुं या पुरुषने मारी सर्व बाबत कहि तो यापुं, जेथी मारुं धारेलुं जे तत्त्व बे, ते पोतानी मेलें सम जाइ वशे ? एम विचार करी ते सुलक्ष्मणा कन्या गजद कंठथी कहेवा लागी के हे सत्पुरुष ! पोताना मुखथीज पोतानी वात करवी ते उचित नथी, तो पण आप माननीय बो, तेथी हुं माहारुं जे वृत्तांत कहुं, ते सांजलो. पद्मखं नामा नगरने विषे महसेनराजा नामा एक राजा बे, तेनी पद्मा नामा स्त्री बे. तेनी ढुं सुलक्ष्मणानिध कन्या बुं. हवे पुंद्रपुरना राजाना श्रीब ल कुमार नामा पुत्रना गुगलो में नाटना मुखथी सांजल्या हता, तेथी मारी तेने वरवानी वा थइ. त्यारें मारा पितायें मारा अभिप्रायथी ते श्रीबल साथेंज मारो संबध करेलो बे, तेथी हुं माहारा विवाह कालनी वाट जोइ बेवी हती. हवे एक दिवस हूं ज्यानने विषे क्रीडा करवा गइ हती, त्यां मारुं Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३६ए स्वरूप जोश मोहित थयेला कोइएक विद्याधरें मारे हरण कयुं, अने ते पालो मने बाहिं घोर वनमांज मूकीने अपराजिता नामा विद्या साधवाने गयो ने. अने ते गया पडी हे न ! में विचायुं जे मारे तो श्रीबल कुमार शि वाय बीजा कोइ पण साथें वरवुज नथी, अने ते विद्याधर मुने लश् गया विना रहे तेमज नथी,माटें ते विद्याधरना लाजवा पहेलांज ढुंजो गलाफांसो खाइ मरण पामुं, तो मने सर्व फुःखज मटी जाय ? वली मारु अबलानुं तो मरवू एज बलले ? एम विचार करी में गलामां फांसो नाखी मरवू धायुं हतुं, तेथी वली फांसो बांधीने दोरडे लटकी पण हती, तेवामां था यावी, ते दोरडं चाकुथी कापी नारव्युं माटे हे दयालो ! आप मने बोडी द्यो, के जेथी ढुं मारुं धारेलु काम पार पाडुं ? कारण के मस्या विना मारोते विद्याधरना हाथमाथी बटको थाय एम नथी. आवां वचन सांजली तमोयें विचायुं जे श्रा कन्या जो मने, माहारां कहेला नाम गमथी जाणशे, तो मरती जरूर बंध थाशे. अने या कन्याना कहेवा उ परथी पण एमज जणाय , के जेनी साथें मारो संबंध कस्यो ,तेज या कन्या छे ? एम विचार करी तमोयें तमारुं सर्व वृत्तांत कहियाप्यु, तेथी ते सुलक्ष्मणा कन्यायें जाण्यु जे आ श्रीबलराजाज जे. एम जाणीने मन मां अत्यंत खुशी था, जरा अजवाइ जश, ते चिंतववा लागी के अरे ! भावा विकटवनमां आ अतिकोमलशरीरवाला राजा ते केम आव्या हो? एम चिंतवी मधुर शब्दथी पूबवा लागी, के हे दयालो! मने जीवित दान देनारा एवा बाप आर्यपुत्रने कुशल तो ? वली हे प्रिय ! यावा घोर वनने विषे देवतुल्य एवा आप उत्तम पुरुषने शा कारणथीभ्रमण करवू पडद्यु ने ? ते सांजली तमो बोल्या के हे मृगशावादि ? आवा जयंकर वनमा मारी चमणप्रमुख जे लोला थडे, ते केवल तमारा पुण्ययोगेंज थइ होय, एम लागे जे. कारण के तेम जो न थई हत, तो जरूर तमो मरणशरण थ जात. एम कहीने पोतानुं वनमां आववानुं जे कारण हतुं ते कही याप्युं. या प्रमाणे बेहु जण परस्पर पोत पोतानी वार्तायें करी अत्यंत बाह्लाद पाम्यां. तेवामां तो जेने केशथी खेंची पिशाच ल गयो हतो, ते सिनो पुत्र श्रीगुप्त आव्यो.तेने जोश हर्षित थयेला तमो कहेवा लाग्या के हे मित्र! तमें तो याव्या, पण तमोने केशथी पकडी खेंची जनारो पिशाच क्यां ४ . Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जैनकथा रत्नकोप जाग सातमो. गयो ? अने ते इष्टना हाथथी तमो केवी रीतें तूट्या ? ते सांजली श्रीगुप्त बोल्यो के हे मित्र ! तमें मने केश पकड़ी खेंची लइ जतां जे दीठो, ते सर्व ते पिशाचनुं ऐंड्जालिक हतुं वस्तुतः ते कांहीज न हतुं श्रने तमने तेधुं शामाटेदेखाडयुं ? तो के ते पिशाचने, या कन्याना मेलाप कराववा तमोने याहिंलाववा हता, ते माटे ते देखाडयुं. कारण के जो ते पिशाच एम न करे, तो तमो याहिं श्रावो पण नहिं ? वली मारो तो ते पिशाचं स्पर्श पण को नथी. तेम में मारी विद्या पण तमारा प्रतापथी साधी लीधी बे. ने हे मित्र ! मारो तमारी पर अत्यंत स्नेह बे, तेम बतां पाठा तमोने में क्यां दीवा नहिं, त्यारें मनमां दुःखी थइ तमने शोधतो शोधतो हुं याहिं श्राव्यो. घने या में जे तमने हाल कयुं, के ए पिशाचे जे इंजाल विद्या देखाडी ते या कन्याने वरवा माटेज देखाडी बे. ते में निमित्तनां योगबलथी कलुं बे. कारण के हुं निमित्तशास्त्र नलो बुं धने हे वयस्य ! हवे तमें गंधर्व विवाहथी या कन्यानुं जलदी पाणिग्रहण करो. केम के हालनो समय घणोज सुंदर, लमनोज बे. यावी रीतें पोताना मतने अनुसरती तेनी वात सांजली अत्यंत मनमां खुशी थइने तमोयें तूर्णताथी ते कन्यानुं गांधर्व विवाहथी पाणिग्रहण करयुं पढी ते श्रीगुप्तनी पट्टविद्यायें करी तमोणे जण पुंद्रपुरने विषेखाव्यां. हवे तमारो शतबल नामा जे लघुनाइ हतो, तेणें तमो बाहार गयेजा होवाथी तमोने घणा दिवस पर्यंत दीवा नहिं, त्यारें तेणें विचाखं जे मारो नाइ श्रीबल, केटला एक दिवसोथी देखाता नथी, ते क्यां गया हशे ? माटे चाल हुं तेनी शोध करूं ? एम विचारी मोहोटुं सैन्य लइने ते, तमने शोधवामाटे चाव्यो. ते चालतां चालतां महाटवीने विषे याव्या. त्यां तेणें एक तापसी स्त्रीयोनो श्राश्रम दीठो, त्यां तो ते श्राश्रममां रहेली सर्वतापसी स्त्रीयो शोका क्रांत ययेजीयो दीवीयो, एटजे त्यां रहेली सर्व तापसी स्त्रीयो पोतानी तप प्रमुख क्रिया करतीय नथी, ने रुदनज कथा करे बे. ते जोइने शतबल राजा पूढवा लाग्यो के ॥ गाथा ॥ रस्मे कयवासाएं, तोडिय धण सयण नेह पासा ॥ साहू य जयवर्धन, किं सोय निबंधां तुम्हं ॥ १ ॥ अर्थः- अर मां निवास करनारी अने त्रोडी नाख्यो ने धन, यने स्वजनना स्नेहनो पाश जेणें घने जयवर्जित एवी आप तापसीयोनुं यावुं शोक Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७१ थवानु कारण गुंडे ? ए वचन सांजली तापसीयो बोलीयो के हे सुंदर ! अमारे जे कां शोक थवा, कारण बन्युं छे, ते सांजलो. जयपुरनो पति एक पद्मरथनामा राजा , तेनी लक्ष्मीसमान रूपवाली एक लक्ष्मणा नामें कन्या , ते गतरात्रं तेना पिताना मंत्री तथा सैन्य सहित बाहिं आवी उतरी हती, ते शामाटे उतरी हती ? तो के ते कन्या पुंद्रपुरना शतबलनामा युवराजनेज परणवामां उत्सुक हती, तेथी पद्मरथराजायें ते कन्याने शतबलनी साथे परणावा माटे पोताना मंत्री तथा सैन्यसहित मोकली हती. पड़ी तेने पुंद्रपुर जातां आहिं रात पडी गइ तेथी ते, आहिंज रात रही हती. हवे प्रथम ते कन्यानी मागणी किरातदेशाधिप मथनना पुत्र कुंजरें करी हती, परंतु ते कन्यानी ते कुंजरसाथै परणवानी इबा न होवाथी तेना पिता पद्मरथें कुंजरने यापी नहिं, तेथी अत्यंत सामर्ष ययेलो कुंजर, ते कन्याने हरण करी लइ जवा माटे अवकाश जोई फयाज करतो हतो, तेवामां ते कुंजरें कोइना मुखथी सांजव्युं के 'जेनुं तुं हरण करवाने जे , ते कन्याने पुढपुरना युवराज शतबलनी साथे परणावा माटे तेना पितायें पुंद्रपुर जावा मोकलेली ते दाल प्रथम मुकामें तापसीस्त्रीयोना आश्रममा आजनी रात रहेली ने, माटे जो तारे तेनुं हरण करवू होय, तो हाल थाय एम . ते सांगली कुंजर, शीघ्रताथी यावी अमो सर्वे जेम जोश्ये, तेम ते कन्याने गतरात्रि बलात्कारथी हरण करी लगयो , तेथी अमने शोक थाय ने, के ते बीचारी कन्या त्यां जरूर मरण पामशे. कारण के ते कन्या जो शतबलने परणे तोज जीवे एमने, नहिं तो ते जरूर मरण पामे एम. माटे अमोने अत्यंत शोक थाय . आवां वचन ते तापसीयोनां सांजली जेम सलगता अग्निमां घृत होमें, ने ते अग्नि प्रज्ज्वलित थाय, तेम ते शतबल राजा अत्यंत क्रोधांध थइ तत्काल त्यांथी चाल्यो. कारण के प्राणप्रिया एवी पोतानी स्त्रीना हरणने मानी पुरुष, कोइ दिवस सहन करी शकता नथी॥ यतः ॥ विश्वानरः करस्पर्श, मृगेंः श्वापदां स्वनं ॥ क्षत्रियश्च परं देमं, न सहंते कदाचन ॥ १ ॥ विद्यातीर्थे विमलमतयः साधवः सत्यतीर्थे, लजातीर्थे कुलयुवतयो योगिनोझानतीर्थे ॥ गंगातीर्थे विगतवयसो दानतीर्थे गृहस्थाः, धारातीर्थ धरणिपतयः कश्मलं झालयंति Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ॥ १ ॥ अर्थः- अग्नि, करस्पर्शने सिंह, बीजा वनचरना शब्दने क्षत्रिय, पारका हेमने कोइपण दिवस सहन करी शकता नथी ॥१॥ वली विद्या रूपतीर्थने विषे निर्मलबुद्धिवाला, सत्यरूपतीर्थने विषे साधुपुरुषो, लज़ारूप. तीर्थने विपे कुलवती स्त्रीयो, ज्ञानरूपतीर्थने विषे योगी पु रुपो, गंगातीर्थने विषे वृक्षावस्थावाला जनो, दानरूप तीर्थने विषे गृह स्थजनो, धारातीर्थ जे हथियारोनी धारा, तेने विषे मरण पामीने नृपतियो, पोत पोताना कल्मषनुं दालन करे ॥२॥ हवे ते शतबल राजा तुरत जे रस्ते ते गयो हतो, ते रस्तामां तेनां पडेलां पगलाने अनु सारे चाल्यो गयो, त्यां कन्यानुं हरण करी चाव्या जता ते कुंजरने मार्ग मां सिंहनी पहें मल्यो. अने तेने महोटो पडकारो करी कह्यु के, हे पा पी! तें था कन्यागें हरण कस्यं ने, पण तेनां फल ढुंतुने हाल आपुं , तेले, चारख्य. एम कहीने तेनी साथै महोटुं युद्ध करी तेनो पराजय करी ते लक्ष्मणा कन्याने लपाडो बल्यो. तेवामां तमने तथा तमारी स्त्री सुलक्ष्य गाने पुंद्रपुरमा मूकी आकाशमार्गे घेर जाता एवा श्रीगुप्तसिजक्षणा कन्या सहित धावता शतबलने दीगो. त्यारे ते श्रीगुप्त तेनी बागल गयो, जश्ने तेणें ते शतबलना कहेला सर्व समाचार सांजव्या. ने पढ़ी जेनो ते शोध करवा निकटयो हतो, ते तमारा सुलक्ष्मणाने परणीने घेर आववा वगेरेना सर्व समाचार सांजव्या. हवे ते शतबल पोताना लम थवाथी प्रथम खुशी तो हतोज, तेमां वली तमारा आववाना तथा परवाना समाचार सांजनी बमणो खुशी थयो. अने पड़ी ते श्रीगुप्तने नमस्कार करी स्त्रीसहित पुंद्र पुरने विपे याव्यो. त्यां यावी शुभ मुहूर्ते अभुत एवा आनंदने आपनारी एवी ते लक्ष्मणानुं पोतें पाणियहण कयुं. त्यार पनी हे श्रीबल ! अनुक्रमें तमो स्त्री पुरुष राज्यासननां अधिकारी थयां, अने ते शतबल तथा तेनी स्त्री युवराजपदने प्राप्त थयां यावी रीतें तमो तथा तमारो नाइ पूर्वज न्ममांमुनिने दान देवाथी राज्यने प्राप्त थयां बो. अने तमारी तथा तमारा नाइनी स्त्री ते दानना अनुमोदनथी राज्यसुरखने प्राप्त थयेलीयो बे. माटें हे श्रीबल! या प्रकारे तमारा पूबवाथी तमारा वेदु पुत्रोना तथा तमारा चारे जाना पूर्वनवोनो संबंध में सविस्तर कह्यो. था प्रकारनी गुरु एवी मुनिनी देशना सांजली तुरत ते चारे जणां Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७३ ने जातिस्मरण झान उत्पन्न थयु, तेथी ते कहेवा लाग्यां के हे जगवन् ! थापें जे कयुं , तेज प्रमाणे पूर्व अमाहं वृत्तांत बनेखं , तेमांजरा पण असत्य नथी. एम कहीने ते, मुनिना झाननी प्रशंसा करवा लाग्यां के अहो! था के आपर्नु केवलज्ञान , के अमाकं पूर्वनवोमां जे वृत्तांत बन्युं हतुं, ते सर्व आ हस्तामलकनी पठे दृष्टिगोचर जेवू कहि थाप्यु. परंतु हे विनो! ते आपना कहेला अमारा वृत्तांतमा एक पूवानुं ने के, आ जे कयुं जे "या मारी सुलक्ष्मणानामा स्त्री उछाह थयां पहेलां ज्यारें उद्यानमां क्रीडा करती हती, त्यां कोइएक विद्याधरें तेनुं हरण कयं, अने ते विद्याधर या सुलक्ष्मणाने उजड वनमा मूकी विद्या साधवा गयो,” तो हे माहाराज! ते मं त्र साधवा गयेला विद्याधरनुं पली गुं बन्युं ? ते कृपा करी कहो. ते सांजली मुनिवर्य वोल्या के हे श्रीवल! ए विद्याधर सुलक्षणाने उजड वनमां मूकी मंत्र साधवा गयो, ते त्यां ज जेवामां मंत्र साधवा वेगे, तेवामां तो ते बी चारानुं मंत्र साधनमां कांक नवं वधु ज्ञान होवाथी तेने देवी बल्यो, तेथी ते विद्याधर, उन्मादें करी पीडातो थको मतिनंशने प्राप्त थयो. पसीनूख, तृषा, टाढ, तडको, तेणें करी:खित थयो थको घणोक काल वनमां ब्रमण करतो करतो कांपिठ्यपुरने विपे याव्यो. त्यां यहावीश माहालब्धि युक्त एवा श्रीहरिपेणनामा मुनिने दीठा. तेने जोतांज ते मुनिना तपोबलना प्रनावथी एक हणमां तेनुं चित्तनम वगेरे सर्वःख जे हतुं ते नाश पामी गपुं. त्यारे ते विचार करवा लाग्यो के अहो ! था मुनिना प्रनावथकी हुं देवीयें करेला बलरूप उपवयी बुटो थयो ? एम विचारीने परमप्रीतिथी ते मुनिने प्रणाम करी त्यां धर्मश्रवण करवा माटे वेठो अने कहेवा लाग्यो के हे नगवन् ! मुनें धर्मनुं यथार्थ स्वरूप कहो. ते सांजली दयालु एवा मुनि, धर्मोपदेश देवा लाग्या, के हे विद्याधर ! जे जीव, ज्यां सुधी जिनोदित धर्मने अंगीकार करतो नथी, त्यां सुधी ते जीवने उर्गति तथा रोग, शोक प्रमुख लाखो गमे पुःख आव्या करे .अने ते जिनोक्तधर्मने नावें करी स्वीकार करनारा प्राणीने तो स्वर्ग जे , ते तो जाणे पोताना घरना आंगणामांज याव्युं होय नहिं ? एम थाय . तथा तेने मोदसुख पण जाणे समीपमां यावीने रडं होय नही? एम थाय ले.अने तेने कल्याण तो उतनज नथी. ते माटे हे खग ! जो तुं परमात्मसुखने पामवा श्वतो हो, तो आ में कहेला एवा जिन Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. धर्मने अंगीकार कस्य. आ प्रकारनां धर्मतत्त्वरूप अमृतनुं कर्णपुटथी पान करी महामोहविषनुं वमन करी विवेकचैतन्यने प्राप्त थइने तेणे सर्वसंव ररूप चारित्रने अंगीकार कयुं. अनुक्रमें ते केवली थइने परम पदने प्राप्त थयो. या प्रकारना धर्मफलने सांनलवाथकी उत्पन्न थयेलो जे प्रमोदनर, तेणें करी पूर्ण चित्तवालो एवो ते नृपति, ते मुनिराजने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के हे मुनीं ! आपना प्रसादथी हाल जिनधर्मनो सर्व में सारी रीतें जाण्यो ने, माटे हवे था तु संसारपर प्रीति थाती नथी, तेथी या मारा राज्यनु स्वास्थ्य करी हुँ आपनी पासेंथी चारित्रने ग्रहण करीश ! ते सांजली गुरु बोल्या के हे राजन् ! तमारो जो खरे खरो दीक्षा लेवानोज विचार , तो तेमा हवे विघ्न न थाय, तेम त्वरा करो. ते सांगली हर्पित थयेला ते श्रीवलराजायें वेर यावी, पोताना नाना नाइ शतबलने पोतानुं राज्य बापवा माटे फरमाव्यु, के हे ना ! माझं राज्य तमो स्वीकारो, कारण के हवे ढुं प्रव्रज्या लेवा हुं . त्यारे ते शतबल राजा नमन करीने कहेवा लाग्यो के हे देव! मने पण थाप दीक्षा लेवानी श्राझा थापो, के जे दीक्षाथी हुँ पण फुःख रूपजलथी नरेला जयंकर एवा संसार समुड्ने तरूं? कारण के ते संसारसमुश, महाव्रतरूप वाहाण विना बीजी कोइ रीतें तरातो नथी. त्यारे श्रीबल राजा बोल्यो के हे वत्स ! तम जेवा शाततत्त्व मनुष्यने तो एमज कहेवु उचित , परंतु हे नाइ ! आप णा कुलपरंपराथी आवेला आ राज्यने तमो केटलाएक दिवस नोगवो. अने ज्यारे आपणा पुत्रो महोटा थाय, त्यारे तेनी पर राज्यनार आरो पण करीने प्रव्रज्या खेजो. एम तेने घणीरीतें समजाव्यो, तो पण ते वात तेणें अंगीकार करी नहिं. त्यारे ते श्रीबलराजायें सर्व राज्य नार, पोताना पुत्र गिरिसुंदरकुमार पर नारखी अने युवराजपद ते रत्न सार कुमारने सोंपी, जिनप्रासादनेविषे जश् प्रतिमानुं अर्चन करी, सत्पा त्रोने महानक्तियें करी दान दश,दीन अने अनाथजनोनो उभार करी चतु विधसंघनी पूजा करी, शतबल, सामंत, अमात्य, सेनापति, सार्थवाह प्रमुख लोकोयें सहित महोटा आमंबरथी गुरुनी पासें थावी, ते श्रीबल राजायें साथें आवेला शतबल सामंत प्रमुखनी साथै दीदा ग्रहण करी. पड़ी जेम गुरुये कह्यु, ते प्रमाणे व्रतोतुं वाराधन करी ते सर्वे महर्षियो थया. Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७५ हवे गिरिसुंदर कुमार श्रने रत्नसार पण पोते श्रावकना बार व्रतने धा रण करी तीव्र में तेज जेनुं एवा थका पोताना राज्यने सुखें करी जोगवे . तथा पोताना पराकमें करी शत्रुवर्गने जीत लिये , तेथी तेनो सामे बीजा कोइ पण सुनटो रणयुक्ष्मां उन्ना रही शकता नथी. वली ते ए, तो दान थापे ,के जे दाने सर्वत्र दारिनु उन्मूलन करी नाख्युं . अर्थात् ते दानना प्रतापथी बीजा जे दानव्यसनी पुरुषो हता, तेने जग तमां को याचकज मलतो नथी, एटले ते बेदु नाश्योयें तेवु दान प्राप्यु के जगतमां को याचकजनज रह्यो नहिं? वली तेऽयें मोहोटां अने उंचां एवा अनेक जिनप्रसादो कराव्या. त्यां कवि उत्प्रेक्षा करे , के ते प्रासादो पर उंची खोडेली ध्वजा पोताना जाणे चांचल्यथी स्वर्गने हस तीज होय नहिं ? के हे स्वर्गपुरि ! तुं मनोहर बो खरी, परंतु अमें जे नग रीमां बैयें, ते नगरीनी शोनाने तुं अनुसर एम नथी. वली या प्रमाणे जिनसाम्राज्य विस्तृत थवाथी सर्वजगजीवना बंधु तुव्य एवा साधुनो शमरस जे हतो, ते पण अत्यंत शोनवा लाग्यो. अर्थात् जिनधर्मनो सर्वत्र उद्द्योत होवाथी साधुनो शमरस घणोज सुशोनित थवा लाग्यो. या प्रमाणे यथाशास्त्र श्रावकना धर्मने अाराधतां थकां ते वेदनाश्योना सर्वदिवसो सुखमांज जवा लाग्या. एक दिवसें नूमिने विषे चश्मा समान एवा ते गिरिसुंदरकुमारने रात्रे शय्यामां सूतां सूतां पाउली रातें एक स्वप्न याव्युं, तेमां जाणे पोतें एक कल्पवृक्नी शाखा उपरज रह्यो होय नहिं ? एवं देखवामां थाव्युं, त्यां तो तेने प्रतिदिन प्रातःकलमां जगाडवा थावनारा वादक लोकोयें यावी. तूर्य वगाडवा मांड्यां, तेथी पोतें तुरत जागी गयो. अने तेणे पोताने आवेला स्वप्नना माहात्म्यने जाएयुं, जे अहो! या स्वप्नथी जरूर मारुंसारुंज थाशे? एम जाणी मनमां अत्यंत आनंदित थयो थको पंच परमेष्टीने नमस्कार करी जेवामां ते शय्यामाथी उठवा जाय, तेवामां वली वैतानिक लोको प्रतिदिवसना धारा प्रमाणे आवी स्तुति करवा लाग्या. ते जेम के ॥ श्लोक ॥ प्रतापळतदोषांतो, नूनृन्मौलिलसत्पदः ॥ आरोहितननोमार्गो, युगपत्प्रातुमुन्नतिम् ॥ १॥ अर्थः- हवे आहिं उदय थता सूर्यनुं अने गिरिसुंदर राजानुं ऐक्य करी स्तुति करे . के हे राजन् ! हाल था सू Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. र्यनो अने प्रापनो उदय साथेंज थयो , हवे ते सूर्य केहेवो के ? तो के पोतानो प्रताप जे उदय, तेथी कस्यो जे दोषा जे रात्रि, तेनो अंत जेणे एवो बे. अने श्राप केहेवा बो? तो के स्वप्रतापें करी कस्यो के दोष जे पृथ्वीमां थतां पापो, तेनो अंत जेणे एवा बो. वली पण सूर्य केहेवो ? तो के नूनृत् जे उदयाचल पर्वत तेनां मौलि जे शिखरो, तेनी पर प्रसृत करयां ने पाद एटेले पोतानां किरणो जेणे एवो जे. अने श्राप केवा हो ? तो के जूनृत् जे अन्यसामंतादिकराजा, तेना मौलि जे मुकुटो, तेणें करी शोना यमान डे पाद कहेतां चरण जेमनां एवा बो. हवे ते सूर्य, उन्नतिने पामवा माटे ननोमार्गने आरोहण करेलो . अने आपण उन्नति जे मोद तेने पामवा माटें धर्मरूप आकाशन आरोहण करेलुं . प्रमाणना स्वप्नना 'उत्कर्षने मलतां वैतालिकोनां वचन सांजली ते राजा, अत्यंत हर्याय मान थयो. पडी शय्यामांथीनती दंतधावन वगेरे क्रिया करी वस्त्रालंकार धारण करी पोताना गामनी बाहारना उद्यानमा जे ठेकाणे जिनालय , त्यां याव्यो. त्यां श्रावी विधिपूर्वक श्रीजिननगवाननु अर्चन करी ते नगवा ननी स्तुति करीने संवेगरागें करी रंगित थयो थको ते गिरिसुंदर राजा जिनालयथी बाहार निकव्यो, तेवामां तो तेणें एक आम्रवदनी नीचें वेठेला, प्रशांत जेनुं चित्त एवा, नवयौवनयुक्त, ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रण रत्नोयें करी अलंकृत, पांच माहावतने धारण करवामां शूरवीर, धर्म ध्यानमां नत्पर, नासायनी पर करी दृष्टि जेणे एवा, कोइएक मुनी श्वरने दीठा. त्यारे तो अत्यंत प्रसन्न थइ त्यां जश्ते पोताने घटे तेवा स्थान पर बेतो. त्यारे तेने धर्मलान दइ मुनिये पण देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः- हे राजन् ! सहजस्वनावथीज असार, जेने धंतुराता फलनी उपमा अपाय , अने इंजालजी पेठें अस्थिर एवा आ संसारने विषे तमो प्रीति करशो नहिं. वली आ संसारने विषे देहधारी सर्व प्राणी योने निरंतर जन्म मरणनो नय रहे डे, तथा यौवनने जरानो नय रहे बे. अने शरीरने रोगनो नय रहे . तेथी संसारमा बावेला जीवने सुखनी अाशा कोइ तेकाणे वेज नहिं. वलीसांनतो.आ संसारमा कोश्क ठेकाणे केटलांएक जनो, एकत्र मली रोवे कूटे बे, अने कोक काणे केटलां एक लोको, एकां मली गान, तान, नृत्यवगेरे आनंद करे बे. अर्थात् था Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७७ संसार, शोक अने हर्षे करी नरेलो ने, तथा वली हे नूप! आ संसारमां पडेला प्राणीने जरा, रोग अने शोक, प्रतिदिन तपायाज करे . अने आ संसारमा क्रूर एवा कालनो क्वेश तो कोई दिवस मटतोज नथी. तो पण तेवा अतिकुःखकर संसारमां पडेला अज्ञानी जीव, स्वप्नसमान पंचेंघियनां विषयसुखने नोगव्याज करे ,अने तेथी ते जीवनी तृप्ति पण थाती नथी. वली हे पृथ्वीपते! जे जीवो नोगासक्त थया थका जिनधर्मनु सेवन करता नथी, ते जीवो, गर्नरूपकुंनिपाकमां निरंतर पच्याज करे . माटे जिनधर्म तत्वज्ञ एवा तमारे तो हवे एक क्षण वार पण आ जवकूपमां अज्ञानीनी पढ़ें जे पडयुं रहे, ते उचित नथी. एवां वचन सांजली संवेगरंगरंगित एवो ते गिरिसुंदर कुमार, ते मुनिने प्रणाम करी हाथ जोडी कहेवा लाग्यो के हे जगवन् ! 'अटला दिवस सुधी तो ढुं मोहनिशमां घेराश्ने सूज रह्यो हतो, परंतु हालमां तो यापें मने ते मोहनिशथी जाग्रत कस्यो ने. तेथी ढुं मारा राज्यवगेरेनी खटपट, माहारा नाइ रत्नसारने अथवा माहारा पुत्रने सोंपीने जयनंदननामा सूरीश्वरनी पासें जश, प्रव्रज्या ग्रहण करीश. एम कही मुनिने प्रणाम करी उत्साहित थयो थको पोताने घेर आव्यो. अने पोताने मुनिसमागममां बनेली जे कांहकिगत हती ते रत्नसार कुमारने कही पी. ते सांजली संवेगरसयुक्त एवो ते रत्नसार कुमार बोल्यो के अहो! हे बांधव ! जे मूढ नर होय , ते पोताना सुरूत कार्य करवामां आलस करी बोले , के अहो! आपणे संसार बोडी दीदा लहीयें तो खरा, पण ते संयममां आपणथी आवां मनोहर विषयसुख बोडी केम रहेवाय ? कारण के ते विषय सुख, संयमपणामां तो मलेज नहीं. अने हे नाइ ! यापणे पण जे श्रामण्य सुख , ते उत्तम जे. एम प्रतिदिन कहीयें तो बेये, परंतु ते पूर्वोक्त अज्ञानीनी पे आ असारसंसारना सुखलवने विपे लोन पामी आपणे आ बंदीखाना जेवा गृहथी निकलता नथी. माटे हवे तो आपणने गृहमा एक कण वार पण रहे, योग्य नथी. अहो! हे बांधव ! ते ग्रामादिकोने पण धन्य , के जे ग्रामादिकोने विषे श्रीजयनंदनसूरि विचरता हो ? अरे ! ते सूरीना दर्शन आपणने क्यारें थाशे ? एम ते संसारनी अनित्यनावना नावे जे. त्यार पड़ी ते बेदु जण, जयनंदनसूरिना आगमननीबा करी बेठा ले. तेवामांतो पोताने वनपालकें यावी विनति ४४ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. करी केः- हे प्रनो ! जेनुं नाम सांजलतां अत्यंत नन्नास थाय, एवा श्रीज यनंदननामा मुनींई बाहिं आपणा उद्यानमां पान धारेला . या प्रका रनां वचन सांजली ते गिरिसुंदर राजा तथा रत्नसार, अत्यंत आनंदित था गया. अने ते आनंदावि वथी ससंचमचित्त थ पोताना सुवर्ण सिंहा सनथी नीचे उतरीने सात आठ पगलां ते वनपालकनीसमीप गया. अने जे दिशायें श्रीजयनंदन मुनीं पधारेला , ते दिशाप्रत्ये नमन करी ते मुनी इना आववानी वधामणी आपनारा वनपालकने अगणित इव्यनुं दान आप्यु. पनी मोहोटा आमबरें ते वेदुनाइयो, गुरुनी समीप आवीने, ऋण प्रदक्षिणा करी परमानंदें कर। नमन करी योग्य स्थानक पर वेता. त्यारे श्रीजयनंदनसूरिये देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः-हे नव्यजनो! पुर्खन एवा आ मनुष्यजन्मने प्राप्त थयेला विवेकी प्राणीयोयें तो जिनध मना आचरणने विपे जरूर यत्न करवो. कारण के आ जिनधर्म जे , ते पिता, माता, बांधव, सुहृद्, स्वामी, सारो अनुचर, सारी स्त्री, तेथकी पण वधारे सुखदायक जे, आ जगतमां जिनधर्म समान कोइ पण धर्म हितकारी नथी, कारण के ते पूर्वोक्त माता पितादिक जन्मांतरने विपे सहायक थातां नथी, अने जिनधर्म जे जे, ते तो जन्म जन्मने विपे स हायक थाय , तेथी तमो सर्व, जिनधर्मनुं सेवन करो. जु. धर्मविना माणास बिलकुल शोनतुंज नथी. कह्यु डे के ॥ श्लोक ॥ हस्त्यंतर्मदअश्व निर्गतजवश्चई विना शर्वरी, निर्गधं कुसुमं सरोगतजलं बायाविहीनस्तरुः ॥ अन्नं निलवणं सुतोगतगुणश्चारित्रहीनो यति,निर्देवं नुवनं न राजति तथा धर्म विना मानवः ॥ १॥ अर्थः- अंतर्मदवालो, एटले बहिर जेने मद नथी जरतो एवो हस्ती, वेगरहित अश्व, चंहित रात्रि, निर्गध एवं पुष्प, जल विनानुं सरोवर, बायाविनानो वृद, लवणरहित अन्न, गुण रहित पुत्र, चारित्र रहित यति, देवविनानुं देवालय. ए सर्व जेम शोनतां नथी, तेम मनुष्य पण धर्म विनानुं बिलकुल शोनतुं नथी. या प्रकारनी ते मुनिपतिनी अमृत समान देशना सांजलीने पोतानो जे चारित्र लेवानो विचार हतो, ते सर्व कही, ते बेहुनाइयो पोताने घेर यावी, राज्यलक्षणथी युक्त तथा राजनारना वहनमां समर्थ एवा पोताना सुरसुंदर पुत्रने जाणी, तेनी पर राज्यकारजार नाखी जिनशासननी प्रौढ प्रनावना करी, पाबा ते Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ३७ गुरुनी पासें याव्या. त्यारें ते श्रीजयनंदन सूरियें ते बेदु नाइयोने दीक्षा पी. पढी ते बेदु मुनियें थोडा दिवसमां अग्यार अंगोनुं अध्ययन क. ने साधुनी क्रियाउने विषे तत्पर, निरंतर साम्यने धारण करनार, तीव्र तपनुं खाचरण करनार एवा ते बेडु मुनि, घणा दिवस पर्यंत चारि नुं सेवन करी अनेक राजान्यें अर्चित खने अनशन व्रतथी शुष्क थयुं ने कलेवर जेनुं, निर्मल एवा अध्यात्मस्वरूपने जोनारा, निष्पापानु वैकगोचर, स्वपरस्वनावना अवलोकनने विषे रत, निर्मम निरहंकार का समाधिमरणें करी मरण पामीने नवमा ग्रैवेयकने विषे यह is देवपणे उत्पन्न यया ॥ यतः ॥ ईर्ष्याविपादरहितावह मिंदेवौ, तौ दिव्यांग सुखलब्धिरतौ च तत्र ॥ प्रीणनूरिरितौ सविवेकमेक, त्रिश न्मितानि नंयतोननु सागराणि ॥ १ ॥ अर्थः- त्यां नवमयैवेयकने विषे ईर्ष्याने विषाद तेणें रहित, दिव्य एवा जोग ने सुख, तेनी लब्धिने विषेयासक्त, की या गयां बे, महोटां डुरित जेनां एवा ते बेहु यह मिंदेवो, विवेक सहित एकत्रीश सागरोपम आयुष्यने जोगवता हवा. इति श्री पृथ्वीचंद ने गुणसागरना चरित्रने विषे गिरिसुंदर नृपति, रत्नसारयुवराज पितृव्यपुत्र, हिबांधवाधिकारवर्णननामा अष्टमः सर्गः ॥ ८ ॥ चाहिं सुधीमां पृथ्वीचं अने गुणसागरना शोल नव संपूर्ण थया ॥ १६ ॥ ॥ अथ ॥ ॥ नवमसर्गस्य बलावबोधः प्रारज्यते ॥ ॥ श्लोक ॥ जीयानेिंगीगंगा, स्वच्छसंवरदा हि या ॥ साधुईसैः श्रिता त्यक्ता, पंकाकुलजडाशयैः ॥ १ ॥ काङ्गीः फलं च्युत्वा ततः पुण्याव शेषवान् ॥ गिरिसुंदरदेवोय, मुत्पन्नोयत्र तछृणु ॥ २ ॥ अर्थः- स्वच्छ संव रने देनारी, साधुरूप हंसोयें याश्रय करेली, पापरूपपंकें करी व्याप्त एवा जडाशय पुरुषोयें त्याग करेली एवी जे श्रीनेंड्नी वाणीरूप गंगा बे, ते संततकाल जयवंती वर्त्तो. अर्थात् जय पामो हवे कवि कहे बे, के हे नव्यजनो ! नवमा यैवेयकने विषे देवता थयेलो ते गिरिसुंदर कुमार, अरिहं तनी वाणीनुं फल जोगवीने, एटले जैनशास्त्रप्रमाणें तप तथा जिना राधनप्रमुख साधनथी देवलोकनुं सुख जोगवीने तेमांथी पण रहेलां शेष Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पुण्यने जोगववा माटें ज्यां ते उत्पन्न थयो, ते ढुं कहुँ बुं, ते सांजलो. श्रा नरतखंमने विपे एक वंग ( बंगाला) नामक देश , तेमां स्वस्ति कसमान, मणिजडित गृहोनी शोनायें करी व्याप्त, निरंतर कल्याण अने सुख, तेने देवावाली, स्वर्ग समान, एक ताम्रलिप्ती नामा नगरी जे. ते नगरीमां राजा जे , ते इंइसमान ले, तेमां स्त्रीयो जे , ते स्वर्गनी अप्सरा सरखी .अने पुरुपो जे , ते सर्व, देवसरखा ले. हवे सर्वदेषिजनोने काल समा न, सुहानोने कल्पवृक्षसमान, साम्राज्य राज्यनो अधिपति, ते नगरीनो सुमंगल नामा राजा. तेमनी श्रीप्रना नामा पट्टराणीने. ते श्रीप्रना देवीना नदरसरोवरने विपे, पूर्वोक्त नवमवेयकमां अहमिंड थयेलो ते गिरिसुंदर कुमार, त्यांथी चवीने हंसनी पठे आव्यो. त्यारे ते राणीयें स्वप्नने विपे सिंहy जेमां चिन्ह जे, कुसुमें करी अर्चित, रत्नजडित दंमवालो, शब्दायमान थती घूघरीयोथी युक्त एवो एक उत्तम ध्वज दीतो. ते स्वप्ननी वात पोताना स्वामीने कही, त्यारे तेना कहेवाथी राजायें कह्यु के हे सौनाग्यवति! तमारे उत्तम एवो पुत्र प्रगट थाशे ? ते सांजली श्रीप्रना राणी घणीज उन्नास पामी. पनी ते राणीने जे कां वस्तुना दोहद उत्पन्न थया, ते सर्व सुमंगल राजायें पूर्ण कस्या. एम करतां ज्यारें दश मास पूरा थया, त्यारे ते राणीयें जगतना सर्व जीवोना मनने हरण करनार एवा पुत्रने प्रसव्यो. तेनी वधामणी सुमंगल राजायें सांजली के तुरत, बंधीवानोने बंधीखानेथी बोडाव्या. तथा सुंदर एवां गीत, वाद्य, तेणे करी युक्त, सकलजनने आनंददायक एवो पुत्रजन्म महो त्सव कराव्यो. हवे ते पुत्र ज्यारें एक मासनो थयो, त्यारे ते पुत्रनुं तेनी मातायें स्वप्नमां जोयेला ध्वजने अनुसारें "कनकध्वज” एवं नाम पाड्यु. पडी जेम चश्मा दहाडे दहाडे कलाने प्राप्त थर, तेजस्वी अने मोहोटो थाय, तेम ए कुमार पण अनेक विद्या वगेरे कलाउने प्राप्त थइ महातेजस्वी तथा महोटो थयो, एटले यौवनवयने प्राप्त थयो. हवे ते नवमौवेय कमां अहमि थयेलो एवो रत्नसार कुमार, त्यांथी चवी क्यां अवतस्यो ? ते कहे जे. के नवमा ग्रैवेयकमां अहमिथयेलो एवो ते रत्नसारनो जीव, त्यांथी च्यवीने शेष पुण्य जोगववा माटे तेजराजानी स्वयंप्रना नामा बीजी स्त्रीनी कुखने विषे पुत्रपणे वाव्यो, अने अनुक्रमें दश मास पूर्ण ययाथी ते पुत्रनो पण जन्म थयो. त्यार तेनो पण कनकध्वज पुत्र समान पुत्रज Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३१ न्ममहोत्सव कराव्यो. अने तेनुं नाम “जय सुंदर” एवं पाड्यु. पनी अनु क्रमें ते पण कनध्वजकुमारनी पढ़ें यौवनवयने प्राप्त थयो. हवे पूर्वनवना योगथी ते बेदु नाश्यो परस्पर अत्यंत प्रीति राखे बे. ते एवी रीतें के ते वे दुने लखवा वगेरेनुं जो यत्किंचित् कार्य होय, तो पण ते बेदु एकज ठेकाणे वेसी अने मलीने करे .अने ते बेद पापथी परामरख रहे , तेन्नुं महोटा विछानो पण मान करे ले. ते बेहुनाइयो राधावेधनी कलामां कुशल होवा थी प्रतिदिन राधावेधनो विनोद करे बे. एक दिवस ते वेदु नाश्यो राधावे धनो विनोद करता हता, तेवामां पोताना कोइपण कार्य माटें कोश्क स्थान पर सुरवेग अने शूरवेग नामनाबे विद्याधरो आकाशमार्गथी जाता हता. त्यांथी ते विद्याधरे ते बेदु नाश्योने राधावेधना विनोदमा राधा नामनी पूतलीनी चढुने बाणथी विंधता जोया. तेथी तेनुं एकस्थानमां दृष्टिनि वेशादिक विज्ञान जोश्ने अत्यंत हर्षायमान थश्ते बेहुना पर आकाशमांथी पुष्यनी वृष्टि करी. अने पड़ी ते पोताने घेर गया. आ प्रमाणे ते कुमारोनी नपर थयेली पुष्पनी दृष्टि जोड्ने तेनी साथें रहेला तेना मित्र प्रमुख सर्व विस्मय पामी गया. अने तेनी सर्वत्र एवी वात प्रसरी के आ कनकध्व जनुं तथा तेना ना जयसुंदरनुं तो आकाशचारी देवतायें पूजन कस्युं ! तेवी वात ते कुमारना पिता सुमंगलराजायें सांजली. तेथी अत्यंत संतोप पा म्यो. हवे एक दिवस ते सुमंगल राजा सनामां बेठेलो , तेवामां उत्तर दिशामां गंजीर एवो तूर्योनो शब्द थवा लाग्यो, ते सांजलीने त्यां बेठेला माणसो तथा ते राजा सर्व विस्मय पामी गया, अने त्यां वेठेला सर्व सुनटो तो दोन पामी गया. पडी सदु कोइ विचारवा लाग्या, के अरे ! आते गुं ? कोई परचक्रनो राजा आपणुं राज्य सेवा तो आव्यो नहिं होय ? आवी रीतें ज्यां ते सर्वे विचार करे , त्यां तो पोतानी नपरनाज आकाशमांतूर्य ध्वनि थवा लाग्यो, ते सांजली सदुको चुं जोवा लाग्या. त्यां तो तेमा गथी तेज ठेकाणे मनोहररूपवाला एवा कोई बे विद्याधरना पुत्रो उतरी नीचें याव्या. तेने जोक्ने खुशी थयेला राजायें तेने मानपुरःसर उत्तम आसनपर बेसाया.त्यारें स्वस्थ थश्ने ते वेदु विद्याधरकुमार, राजाने विनति करी कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! उत्तरदिशिमां सर्वपर्वतनो पति एवो एक वैताढ्यनामा पर्वत , तेमनी उत्तर अने दक्षिण एवी वे श्रेणियो Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बे. हवे घणाक ग्राम, नगर, आराम, तेणें सुशोनित एवी ते बेदु श्रेणिने विषे विद्याधर एवा सुरवेग अने शूरवेग नामा बे नाश्यो रहे . ते एकेक नाइने गुणथी तथा स्वरूपथी उत्तम, एवी सो सो कन्याउले. एक दिवस ते सुरवेग अने शूरवेग विद्याधर कोइएक कामने माटे या तमारा गाम पासेंथीयाकाशमार्गे वैमानमां बेसीचाल्या जाता हता. तेवामां तेयें आ तमारा बेदु कुमारने, पोतानी नीचें राधावेधनी विद्या साधता जोया. ते जो इने अत्यंत प्रसन्न थइ तेनी पर पुष्पनी वृष्टि करीने ते चाल्या गया. अने त्यार पड़ी तेये घेर अावी विद्याधरनी सनाने विषेा तमारा कुमारोनी घणीज प्रशंसा करी. ते प्रशंसाने ते बेदु विद्याधरनी बशे कन्यायें सांजली, अने वली ते कन्याउने प्रथम कोश्क नैमित्तिकें कह्यं पण हतुं के जे पुरुषो, राधावेधना जाण हो, ते तमारुं सर्वेनुं पाणिग्रहण करशे. ते नैमित्तिकनी वाणीने पण संनारीने ते कन्यायें तमारा बे पुत्रोनी सार्थेज परण वानो निश्चय कस्यो . हवे आ प्रकारनो पोतानी सर्वकन्यानो विचार सांजली तेन्ना सुरवेग अने शूरवेग नामा बे पिता-यें एक नैमित्तिकने बोलावी, ते बरों कन्याउना लग्न संबंधी दिवस जोवराव्यो. पबी तेज लग्नमां ते कन्याउने अापना पुत्रो साथे परणाववा माटें ते कन्याउने तथा तेना लाना उपस्करने लश्ने ते विद्याधर आहिं था गामनी बाहार आवेला ने. अने प्रथम अमोने आहिंमोकल्या बे, तेनुं कारण गुंने ? तो के तेथे जाण्यु जे " आपणे सुमंगलराजाने प्रथम खबर कस्या विनाज अचानक तूर्योना शब्दो करता आव्या बैयें, तो ते सांजली तेने तथा गामना लोकोने दोन थाशे तथा वहेम पडशे के के आपणा गामनो पराजय करवा परच कनो को राजा तो नहिं आव्यो होय ? ते माटे प्रथम आपणा माणा सने मोकली तेमने आपणो आववानो उद्देश निवेदन करीयें, तथा लमनी तैय्यारी करवा पण विनति करीयें.” ते सांजली सुमंगल राजा व्याकुलचित्त थयो थको विचारवा लाग्यो के अरे ! था तो देव ,अने दूं तो मनुष्य , ते अमारो बेदुनो संबंध केवी रीतें थाय? तथा तेउने मारे मान पण केवी रीतें आपq ? ा प्रमाणे सुगमंल राजाने व्याकुलचित्तवालो जोइ तेना मतिसुंदरनामा प्रधाने जाण्यु जे था सुमंगल राजा थाहिं आवेला विद्याध रोनो संबंधी थवा माटे गनराय . ते माटे हूं तेने समजावू ? एम जाणी Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३३ ते प्रधान बोल्यो के हे विनो! आप जरा पण व्याकुलचित्त थाउ नहि. जुन. आदेवनुंजे संबंधीयवं, ते तो पूर्वजन्मनुं ज्यारें घणुंज पुण्य होय, त्यारेंज थवा य ? माटे तेमां कांड पण विचार न करतां अत्यंत खुशी थइ आपणा पुत्र ने पोतानी मेलें बसो कन्या परणावा आवेला सुरवेग अने शूरवेगनामना विद्याधरोने सामैयुं करी नगरप्रवेश करावी सारा उतारा पो.अने विवा होत्सवनी सर्व तैय्यारीयो करावो. या प्रकारनां मंत्रीनां वचन सांजली ते राजा अनुधिचित्तयुक्त थर, प्रथम पोताना नगरने सारी रीतें सुशोनित करी अनेक प्रकारना वाद्यो वाजते घणाज हाथी वगेरे उपस्कर लइ तथा घणाक माणासोने लश्ने ज्यां ते विद्याधरो उतखा , त्यां आव्यो. पड़ी ते सुमंगल राजाने जो सर्व विद्याधरो नना था यथायोग्य रीतें मल्या. अने राजा पण ते सहुने मन्यो. पनी परस्पर कुशल प्रश्न पूजी, ते विद्याध रनी प्रशंसा करी एक बीजार्नु परस्पर मान कस्युं. तदनंतर ते विद्याधरोने गाजते वाजते पोताना गाममां तेडी लावी उत्तम उतारा आप्या. अने नैमित्तिकना कहेवा प्रमाणे लग्ननो समय ज्यारेंथाव्यो, त्यारे सुरवेगें पोता नी सो कन्या सुमंगल राजाना ज्येष्ठपुत्र कनकध्वज कुमार साथै परणा वीयो. तथा शूरवेगें पोतानी सो कन्याउ तेना नाइ जयसुंदरनी साथे पर गावीयो. ते वखत मणिजडित कुंमल वगेरे वानरणोथी नूपित एवी केट लीएक विद्याधरीयो नृत्य करवा लागीयो, अने कपूरप्रमुख सुगंध इव्य नम वाथी दिशा मात्र सुगंधमय थ गइ. अने जाट, चारण, मागध, बंदी, गायको, वादको, गांधर्व प्रमुख सदुकोइअत्यंत प्रसन्न थइपोत पोता, कार्य करवा लाग्या. एवी रीतें महोटो महोत्सव वरताणो. हवे अमंद आनंदने विषे मग्न एवा ते विद्याधरोना केटलाएक दिवसो त्यां सुखमां, एक हणनी पढ़ें व्यतीत थइ गया. त्यार पड़ी ते सुरवेग अने शूरवेग विद्याधरो, सुमं गल राजानी रजा लश् पोताने घेर जावा तत्पर थया, ज्यारे ते प्रयाण करी चाल्या, त्यारे तेने पोतानी कन्या थी जुदा पडवाना दुःखें करी आंख्यो माथी अश्रु पडवा लाग्यां. पड़ी ते कन्याउँना विरहःखें करी दुःखित थका पोताने गाम आव्या. हवे आ प्रमाणे ते बेहु कुमारोमा प्रत्येकने सो सो कन्या परणी, तेथी तेनी आखा विश्वमा घणीज कीर्ति थइ बने ते बेदु कुमारो नवोढा एवी पोत पोतानी स्त्रीयोनी साथें जेम सुर Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कुमारो अप्सरा साथे कीडा करे, तेम क्रीडा करवा लाग्या. पड़ी ते बेदु कुमारोना गुणोथी आकष्टचित्तवाली एवी घणीक कन्यायें दूरदेशथी यावी, ते वेदु कुमारोनी साथे पोतानो नछाह कस्यो. आवी रीतें ते बेदु कु मारमा एकेकाने पांचसो पांचसो स्त्रीयो साथै नछाह थयो. अर्थात् एकेक नाइने पांचसो पांचसो स्त्रीयो थ. वली जरताईना राजायें तेने हय, गज वगेरे नेट मोकलावी आपी. या प्रमाणे माहाप्रतापी एवा ते बेदु नाश्यो त्यांज रहीने अनेक लोगो जोगवे ने. एक दिवस पोताना प्रता पथी जेने अनेकराजा नमे , तथा जेने स्त्रीयो तथा संपत्ति पण घणीज , एवा पोताना वेदु पुत्रोने जोश्ने सुमंगलराजा विस्मय पामी गयो. अने प्रातःकालें चित्तमां चिंतववा लाग्यो के अहो ! या मारा पुत्रोनुं तो पूर्वोपार्जित पुण्य अगण्य देखाय ले, कारण के तेना सर्वे नूचर राजा तथा खेचर राजा नृत्य थइने रह्या . वली आवी सर्व संपत्ति जे जे ते कांश, जीवने कोइदिवस पूर्वकृतपुण्य विना मलती नथी. कडुं के ॥ श्लोक ॥ मातंगपूगास्तुरगश्च तुंगाः, रथाः समावि कटानटौघाः ॥ बुद्धिः समृदिर्जुवने प्रसिदिः, पुण्यात्तनौ स्यादतुलं बलं च ॥ १ ॥ अर्थः- आ जगतमां मनुष्यने हस्तीयोना समूह, तथा उंचा अने मनोहर एवा अश्वो, मजबूत एवा रथो, विकट एवा सुनटोना समुदाय, रूडी बुद्धि, घणी समृद्धि, त्रण नुवनने विपे प्रसिदि, शरीरने विषे अतुल एबुं बल. ए सर्व पूर्वकत पुण्यथी प्राप्त थाय ले. माटें आवा मनोहर अने महापुण्यशाली जेने पुत्रो , तथा संसारना सर्व नोग जेणें जोगव्या ने एवो जे ढुं,ते मारे हवे कांइक परलोकने माटे साधन कर, तेज उचित ने, परंतु ते परलोकनुं साधन तो सधर्मना सेवनविना थातुंज नथी. वलीपा जगतमां समर्मोपदेष्टा अति उर्जन डे ॥ यतः ॥ सोलनो लोके, सर्वे पाखंकि नोयतः ॥ मिथोविरोधिनियथै, स्वस्वधर्म वदंत्यहो ॥ १ ॥ अर्थः-श्रा जग तमा सर्व पारखमीयो होवाथी सर्म जे मलवो जे,ते घणोज उर्लन ने.का रण के ते पाखंमीयो पोत पोताना परस्पर विरोधक ग्रंथोथी पोतपोताना धर्मने सत्य कहे , अने बीजो सत्य अने सारनूत होय तो पण तेने खोटो कहे , तेथी सत्यवादी कोण अने असत्यवादी कोण? एम कांही खबर पडती नथी. जुन. मनुष्य जे जे, ते सहर्मना उपदेशने पोताना Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागर, चरित्र. ३न्य कल्याण माटें लेवा जे जे, तेमां कदाचित् अज्ञानने लीधे मनुष्यथी कोक अलिकवादीनो उपदेश लेवाइ जाय, तो तेनो मोक्ष थावो तो दूर रह्यो, परंतु ते बिचारानो उलटो नरकपात थाय ? एम विचार करी ते सुमंगल राजा, पोताना मतिसुंदरनामा प्रधानने पूछे छे, के हे मंत्रिन ! महारी मोद कारक एवा धर्मना आराधननी इबा थडे, परंतु या जगतमां पाखंम धर्म घणा के अने हुँ ते बाबतमां अविज्ञात लुं, तेथी धर्मोपदेशने बदले को एक पाखंमीथी कदाचित मने अनीक शास्त्रनो नपदेश थ जाय, तो मारे धर्माचरण करवाने बदले अधर्माचरण थ जाय, तो पड़ी मोक्षप्राप्ति तो दूर रही परंतु तेने बदले मारो नरकपात थ जाय, तो पनी हुँ गुं करूं? ावां सुमंगलराजानां धर्मास्तिकपणानां वचन सांजली ते मंत्री बोल्यो के, हे प्रनो! आपने जे धर्माराधन कर, ते विषे मारो मत तो एवो डे, के आ सदु कोई धर्मवालानोधर्मोपदेश सांनलवो, तेमां वली जे धर्मोपदेशमां संसारव्य वहार अने विषयनोग, तेनी वात न आवे, ते धर्मोपदेशने उत्तम जाणी तेनो अंगीकार करवो.अने आराधन पण ते उदेपशमां कहेला धर्मनुंज करवू, तेथी जे या धारेलुं फल , ते मलरो? अने वली जे धर्मोपदेशमा संसार व्यव हार तथा विषयनी वार्ता आवे, ते धर्मोपदेशनो त्याग करवो. कारण के ते उपदेशथीधर्माचरण करनारनो नरकपातज थाय .या प्रकारचें मंत्रीन वचन सांजली राजा अत्यंत नत्साह पाम्यो, अने वली मनमां दृढीकरण कयुं के जेम था मंत्री कहे , तेमज करवू. एम निश्चय करी जेवामां पोतानी सनामां जश् बेठो, तेवामां तो आकाशमां महोटो देवोनो करेलो उंछनिनो शब्द थवा लाग्यो, तथा जयजय शब्द पण थवा लाग्यो. ते सां नती गामनां सर्व लोक, तथा राजा अत्यंत विस्मय पामी आम तेम जोवा लाग्यां. त्यां तो अचानक वनपालकें यावी हाथ जोडी विनति करी के, महाराज ! आपणा नगरनी बाहारना उद्यानने विषे मूर्तिमान जाणे धर्मज होय नहिं ? एवा श्री स्वयंवरनामा मुनि पधारेला बे. वली तेमने आज प्रातःकालमां केवलझान उत्पन्न थयु , तेथी तेमना चरणारविंदमां स्नेहें करी, कमलमा जेम चमरा लीन थाय, तेम देवता लीन थ जाय . माटे हे स्वामिन् ! ते नगवान, जे वंदन करवू, तथा तेउन। पासेंथी जे तत्त्वज्ञान ले, ते आपने उचित .आवां वचन सांजली सुमं Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३न्द जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. गलराजा अत्यंत हर्षायमान थयो. कारण के पोते समर्मोपदेश लेवानी इजा करतो हतो, तेवामां तो श्रीस्वयंवर मुनिना पधारवाना समाचार सांजल्या ? हवे सुमंगलराजा, चार प्रकारना सैन्य सहित ते गुरुनी पासें श्राव्यो, अने तेमनी स्तुति करी नमस्कार करी योग्यस्थानपर वेठो. त्यारे केवली नगवाने धर्मोपदेश देवानो प्रारंन कस्यो, के हे नव्य लोको! अपार अने जयंकर एवा संसाररूप वनने विषे सिधिनी प्राप्तिने खता एवा प्राणीयोने गुरूमार्ग मलवो घणोज कुतन , अने कुपंथो तो घणाज ने के जे पंथोनेविषे मोह पामेला जीवो, बीचारा घणा मोहानिलाषी होय है, तो पण तेने ते मोदन मला उलटुं नयंकर एवं फुःख प्राप्त थाय बे. जुन. या संसाररूप वनमां देष रूप व्याघ्र , रागरूप उत्कट सिंह , मोह रूप राक्षस , क्रोधरूप दावानल मानरूप पर्वत , कपटरूप कुमार्ग जे, लोनरूप उंको कूवो . हवे ते संसारारण्यमां फरता एवा जीवो पूर्वोक्त ते कूवामां स्खलन थ६ पडी जाय . बली तेमां फरता प्राणीयो तृष्णा रूप तापथी तप्तथका विषयरूप विषदोनी नीचें ज्यां विश्राम लेवा बेसे ने, त्यां तो ते बिचारा ते विषय विषदनी बायाथी चैतन्य रहित थप जाय , वली तेमां फरता जीवोने धूर्तरूप कुगुरु कुमार्गमां लइ जाय , त्यां ते अज्ञ जीवो दिङ्मूढ जेवा थइ ज उर्गतिरूप गुहाने विपे पेसी जाय ३. तथा ते संसारवनमां पडेला प्राणीयो विघ्नरूप वांसडाउनी जालमा पज्या थका तरफडीयां खाइने त्यांने त्यांज मरण पामे . या प्रमाणे मूढ जीवो जे जे, ते आवा नवकांतारमा फरता थका दुःखी थाय ने, परंतु ते वननो को रीतें पार पामता नथी. ने माटे हे नव्यजनो ! संसाराटवी ना कुमार्गनो त्याग करी जेमां सावध धर्मनुं वर्जन ने, जेमां शत्रु मित्र वगेरे सर्वप्राणीयो समान , जे मार्गने केवलज्ञानी तीर्थकर जगवाने मोद मार्ग कह्यो , एवा ते शुद्ध अने सारा मार्गमां चालवा प्रवृत्त थान. जे शुरु मार्गमां चालवाथी तमोने परम निवार्णरूप नगर पण जलदी उपलब्ध थाय? प्रकारनी गुरुना मुखथी देशना सांजली सुमंगलराजायें विचास्युं के मारा मंत्रीना कहेवा प्रमाणे या धर्मोपदेश, संसारव्यवहारनो निषेध कारक ने माटे आ उपदेशज ग्रहण करवो. एम निश्चय करी ते केवलीने विनति कर कहेवा लाग्यो के हे नगवन् ! आपनां आ हाल कहेलां वच Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. न, में सर्व सईयां, प्रतीत्यां, जाण्यां. वली ते वचनोथी में जाण्यु पण , के आजे लौकिक देव , ते रागशेषादिकें करी दूषित , जुन. ते देवो, स्त्री, शस्त्र, गीत, राग, द्वेष, बल प्रेमुखें करीअमारी जेवाज बे. तो ते देव, एकांतें अमारा केम हितकारी होय? अने तेवाज देवने देव करी मानवाना उपदेश करनारा कुगुरुनो कहेलो धर्म पण मोकश्री मेलववामां केम समर्थ थाय ? ना नज थाय. ते माटे आ कहेलो श्रीजिनेश्वरप्रणीत मार्ग, तेज मारे प्रमाण दे. वली हे जगवन ! निधाननी पेठे अतिपुर्लन एवो आ जिनधर्म प्रत्यद रीतें आप जेवाना समागमथी मले , एम जाणे ,तो पण जे अधमजनो , ते या जिनधर्मने अंगीकार करता नथी, तेथी ते जनो, संसा रनेविपे दुःख अने दारिश्य वगेरे उपश्योना पारने क्यारे पण पामनार नथी. एम कहीने वली ते विचार करवा लाग्यो, के मारे ते आवी पारकी पीडा करवानुं गुं प्रयोजन ? मारे तो जेम माझं सारं थाय,तेमज करवु उचित . एम विचारी ते गुरुने कहेवा लाग्यो के हे प्रनो ! ढुं तो हवे आपनी पासेंथी चारित्र ग्रहण करवानी इबा करूं लं,माटे कृपा करी मुने चारित्र थापो. त्यारे मुनि बोल्या के हेराजन् ! आ तो तमें बदुज सारुं धायुं ? पडी ते राजायें तत्काल पोताने घेर आवीने प्रशस्त एवा मुहर्तने विषे पोताना ज्येष्ठ पुत्र कन कध्वज कुमारने राज्यगादीपर बेसारी सामंत,आमात्य, तेरों सहित महोटा महोत्सवथी श्रीस्वयंवरगुरुनी पासें जश्तेमना चरणकमलमां नमन करीमनो हर एवा चारित्रने ग्रहण कयु. हवे ते कनकध्वज राजा, तथा युवराज जे जय सुंदर ए बेदु, राज्यने पालवा लाग्या. ते घणाक एवा राज्यनोगने जोगवे , तो पण तेमां आसक्त न थतां मनने विषे पोताना पितायें लीधेला चारित्रनुंज अहोनिश ध्यान कस्या करे , के जेम अमारा पितायें चारित्र ग्रहण कयुं तेम अमो पण हवे ते क्यारें ग्रहण करगुं ? वली जेन्ना गुणौघy गान किन्नरीयो कस्या करे , तथा जेउनां चरणोने नरताईना महोटा महोटा राजा पूज्या करे , एवी तेउनी महत्ता , तो पण ते महत्तामां आसक्ति न राखतां केवल ज्ञानी गुरुना समागमनीज बा कस्या करे . तथा ते गज, अश्व, रय, तथा रत्नप्रमुखें करी संपन्न , तो पण तेमां लुब्ध न थातां केवल निरंतर शमसागरमांज निमन थइ रहे . वली तेउने मोहरूपपि शाच किंचिन्मात्र पण दोन पमाडी शकतो नथी.थने ते कनकध्वज तथा Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जयसुंदरना राज्यमां अरि तो एकरथना चक्रपरज ने, तथा कटक तो बाहुना नूषणमांज अने युद्ध तो मनलोकोनी रंगनूमिमांज , तेम मार एवो शब्द तो सोगठा बाजीनी रमतमांज बोलाय , अने बंधन तो स्त्रीयोना केशपाशमांज . अर्थात् ते पूर्वोक्त सर्ववस्तु ते कहेले ठेकाणे , परंतु कनकध्वज राजाना राज्यमां नथी. हवे तेवा उत्तम राज्यनो अधिपति कनकध्वज राजा, एकदिवस प्रातः कालमां शय्यामाथी सूतो नग्यो. त्यां तो प्रतिदिन सवारमां जगा डवा यावता एवा मंगलपाठको भावी स्तुति करवा लाग्या के, हे स्वामि न ! आपना समस्तनूममलमा प्रसरेला प्रतापने जोश्ने हाल सूर्य जे डे, ते लजा पामी उदयगिरिमाज बुपी रहेलो . आम कहेवाथी ते मंगलपा ठकोयें कनकध्वज राजाना प्रतापनी प्रशंसा पण करी, तथा अरुणोदय थयो ने माटे जायत थान. एवी विनति पण करी. ते सांजली शय्यामां बेठेला ते कनकध्वज राजायें विचार कस्यो के अहो, मंगलपाठको कहे , के घाखी पृथ्वीमांतमारो प्रताप प्रसस्यो , ते आ केटली पृथ्वी , तथा तेमां केटली मारे वश में, अने कये कये ठेकाणे मारो प्रताप प्रसस्यो ? तेनी तो मने खबरज नथी, माटे ते सर्वनी तो जो ढुं दिग्यात्रा करवा जा गं, तो मालम पडे. माटे हाल मारे दिग्यात्रा करवाज जावं ? एम निश्चय करी पागे विचार कस्यो के हा, हुँदिग्यात्रा करवा तो जावं, परंतु तेमां मारे पांच कार्य तो अवश्य करवां. तेमां प्रथम शुं करवू ? तोके जे को काणे पूर्वपुरुषोये करावेला तीर्थकर नगवाननां प्रासादो होय ते प्रासादने, तथा वली जे ठेकाणें तीर्थकरोनां जन्म, दीदा, झान अने निर्वाण थयां होय, ते नूमिनेविषे बनावेलां प्रासादोमा बिराजेला जे जिन नगवान होय, तेने मारे वांदवा. तथा बीजुं गुं करवू ? तो के पूर्व माहापुरुषोयें करा वेलां अने हालमा जीर्ण थऽ गयेला एवा जे कोई प्रासादो होय, तेमनो वहार करवो. त्रीजुं झुं करवू? तो के जे जे स्थलें जिनमतना प्रत्यनीकजनो होय, त्यां जई ते जनोनो शास्त्रानुसारें परानव करवो. चोथु झुं करवू ? तो के जे जैनसाधु होय, तथा ते साधुग्ने माननारा होय, तेवा जनोने दान देवां. अने पांचमुं शुं करवु ? तो के जे दीनजन होय तेने पण दान द तेनो उवथी मार करवो. या प्रकारे विचार करीने ते सर्व विचार Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ३८० पोताना लघुना जयसुंदर कुमारने जणाव्यो. ते सांजली जयसुंदर कुमार बोल्यो के हे महाराज ! खापें जे हाल दिग्यात्रा करवानो विचार धारयो बे, ते घणोज उत्तम धायो बे. अने ते विचारने हुं पण मलतोज बुं. कह्युं के ॥ श्लोक ॥ कर्मायत्तं फलं पुसां, बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥ तथापि सुधिया जाव्यं, सुविचार्यैव कुर्वता ॥ १ ॥ प्रालस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्योमहा रिपुः ॥ नास्त्युद्यमसमोबंधु, र्य कृत्वा न च सीदति ॥ २ ॥ अर्थः- मनुष्यमा फलप्राप्ति जेबे, ते कृतकर्मोने खाधीन बे, अने जे बुद्धि उत्पन्न थाय बे, ते पण स्वतकर्म अनुसरतीज थाय बे. तो पण समजु मालासें जे कां‍ कार्य कर, ते महोटो विचार करीनेज करतुं ॥ १ ॥ ने हे जाइ ! कार्य करवामां खालस राखवुं नहिं केम के बालस्य जे बे, ते मनुष्यमात्रने पोताना शरीरनी अंदर रहेलो रिपुज बे, कारण के मनुष्य जो कां पण उत्तम कार्य करवानी शब्बा करे, ने तेमां जो तेने खालस यावे, तो तेने ते काम करवा जतो टकावे, अने तेथी तेनुं उत्तम काम बगडे. माटे खरुं जोतां तो ते मनुष्यने जे खालस श्राव्युं, तेज शत्रु थयुं ने हे जाइ ! उद्यम समान या जगतमां बीजो को बंधु नथी. कारण के जे उद्यम करवाथी माणास, कोइ पण रीतना दुःखें करी सीदातुं नथी ॥ २ ॥ यावां पोताना विचारने मनतांज वचन, जयसुंदरकुमारनां सांजली तुरत कनकध्वज राजायें दि यात्राना प्रयाणनो ने शब्द कराव्या. अने पढी ते पोताना नाइ जयसुंदर, सामंत, श्रमात्य, मंत्री, श्रेष्ठी, अंतःपुर एटले पोतानी स्त्रीयो, पालार्ज, रथ, अश्व, हस्ती, उष्ट्र, खच्चर, ए सर्वने सायें लइने दिग्यात्रा माटे चाल्यो. त्यारे हस्तीरूप प्राकाशपर रहेलो, शस्त्रना ऊबकारारूप विजलीयोथी युक्त, माथा पर धारण करेला मेघामंबरउत्ररूप श्यामवादलायें सहित, उंचां जेनां मुख राखेजांबे, एवा सूर्यना शब्दरूप मेघगजरिवें युक्त, दानरूप जलवृष्ठियें करी याचकरूप चातकोने तृप्त करतो, जेने मेघनी पेठें सर्वलोको, उंचां मुखकर सोत्कंठपणाथी जोवे बे, एवो ते कनकध्वज राजा, जाणे नवीन मेघज होय नहिं ? तेम शोजवा लाग्यो. पढी पृथ्वीने विषे फरतो ते राजा जे जे गाम जाय बे, त्यां ते ते गामना राजाउ अस्त्र शस्त्र, वस्त्र, रत्नो, अश्व, हाथी, तेणें करी तेनो घणोज सत्कार करे बे. वली ते, गिरि, सरित्, गाम, पुर, खाराम, तलाव, ए वगेरे केलांएक उत्तम स्थलोमा " Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ए जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. क्रीडा करे बे. रम्य एवा स्थानकोने विषे चंचां अने मनोहर एवां जिन चैत्यो करावे जे. ज्यां जीर्ण चैत्यो होय , त्यां ते जीर्णचैत्यनो उधार करावे . जैनसाधुउनु पूजन करे , श्रावकोने घणुंज मान आपे . ए वगेरे पोतें दिग्यात्रा निकल्यां पहेला कार्यो धारेला , ते पांचे कार्यों करे बे. या प्रमाणे ते पाखा जरतखममा घणा वर्ष पर्यंत चमण करी पाडो जेवामां पोताने देश आवे , तेवामां तो तेने सांकेतपुरपति पुरुषोत्तम नामा राजायें माणास मोकली तेडाव्यो, के तमारे जरूर अमारे गाम बावी जावू. त्यारे ते पोताना देश तरफ जातो बंध थइने त्यांथी पाडो अनुक्रमें सांकेतपुरनगरें आव्यो, त्यां ते वेदु जण मव्या. पडी ते गामना उद्यानमां मोटा चैत्यने जोश, अत्यंत प्रसन्न थ तेणे चैत्यनी अंदर प्रवेश करो. अने त्यां पुष्प, सुवर्ण, मुक्ता, मणि, पुष्पनी माला व गेरे पूजोपहारथी श्रीजिननगवाननुं नाव सहित पूजन कयुं. अने पर ते जगवाननी स्तुति करवा लाग्यो. ते जेम केः- ॥ श्लोक ॥ नमः क्रोधेन सिंहान, नमोमानासित्पवे ॥ नमोमायोरगीमंत्र, नमो लोनाब्धियो पक ॥ १ ॥ अर्थः- क्रोधरूप हस्तीने विपे हे सिंहसमान! आपने दु नमन करुं बुं. वली मानरूपपर्वतने विषे हे उत्तमवजतुल्य ! आपने दं प्रणाम करूं बं. तथा मायारूप सर्पिणीने विषे हे गारुडीमंत्ररूप ! आपने वारं वार वंदन करूं बुं. अने लोजरूप समुने शोषण करनारा एवा हे जगवन् ! आपने ढुं प्रणमन करुं बु. या प्रमाणे अरिहंत जगवा ननी स्तुति करीने ते कनध्वज राजा जिनचैत्यथी बाहेर निकट्यो, त्यां तो तेणें मनोहर एवा आगमोना पाठ करनार एवा साधुना वृंदोयें विंटेला अने उत्तम वृदनी नीचें बेठेला एवा एक सूरीश्वरने दीठा. ते देखतां मात्रमा अत्यंत हर्षायमान थर, तेमनी पासें जर, प्रणाम करी विचारवा लाग्यो के अहो ! आ जगतने विषे आवा मुनियो जे , तेने जैनशास्त्रमा जंगमतीर्थ कहेला ले, ते खरंज जे. कारण के तेमना समागमथीज जीवनुं कल्याण थाय बे. एम विचार करी, तेमनी निकट जश् योग्य स्थानपर वेगे. त्यारे जे पुरुषो त्तम राजा प्रमुख आव्या हता, ते पण वेठा. पड़ी ते मुनियें देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः-हे नव्यो ! मनुष्य जन्मरूपसामग्रीने प्राप्त थयेला सदुकोइथे यथाशक्ति धर्मोद्योग करवो, केम के जोते जन्म, धर्मोद्योग विना Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५ नोज जाय , तो पड़ी पाडो फरी ते जन्म प्राप्त थातो नथी. कोई विधाने कहेलु , के आ जगतमां वडना जाडपरनुं फूल, स्वातीनत्रनुं जल, मनुष्यनो जव, अने उत्तम एवा देव- दर्शन. एटला वानां मलवां उर्तन . वली हे नव्यो ! केटलाएक प्रमादी प्राणी, ते पूर्वोक्तरीतें उर्तन अने घणा पुण्यथी उपलब्ध थयेल, अने चिंतामणि समान एवा मनुष्यनवने केवल विषय सुखना जोग जोगवीनेज पूरो करी नाखे . वली हे नव्यो! कदाचित् घणाक इव्यनो जो व्यय करीयें, तो तेथी अनेकरत्नोनी प्राप्ति थाय, परंतु कोटिरत्नोना व्ययथी उर्लन एवा मनुष्यजन्मनो तो एक क्षण पण मलतो नथी. माटे हे नव्यो ! अमूल्य एवा आ मनुष्यनवने तमोप्र मादें करी शामाटे हारी जाउ डो? जुन. वली आ मनुष्यजन्मनां फल तो आउज कह्यां ले. ते कयां कयां ? तो के ? पूज्यपुरुपना पादनु पूजन, २ दया, ३ दान, ४ तीर्थयात्रा, ५ तप, ६ पांच परमेष्ठीनो जप, ७ सन्हास्त्रा ध्ययन, परोपकार. या आठ फल ले. या जगतमा जे इव्य वगेरे ले, ते पगमा चोटेली रजसमान बे, कारण के जेम पगमा चोटेली जे रज दोय, तेने आडी अवली खसी जातां वार लागती नथी, तेम इव्यने पण आफु अवलु चाल्युं जातां वार लागती नथी. वली आ यौवन जे ले, ते नदीजलना वेग समान , अने मनुष्यजन्म जे , ते चंचल जलना बिंड्स मान , जीवित जे दे, ते पाणीना फीण सरखं . सर्व या प्रमाणे , ते उतां पण निश्चल ने मति जेनी एवा जे पुरुषो, ते स्वर्गना गोपुरनी जोगलने नांगवामां समर्थ, अर्थात् स्वर्गमा जवाना दरवाजाने उघाड वामां समर्थ एवा धर्मनुं आराधन करता नथी, ते पुरुषो, जरावस्थानी परिणतिने प्राप्त थइ, पश्चात्तापथी हणाता थका शोकरूप अग्निमां बली मरे . आ प्रकारनी देशनाने सांजली त्यां सांकेतपुरना राजा पुरुषोत्तमनो कोइएक कपिंजल एवे नामें पुरोहित वेठो हतो, ते बोल्यो. के हे मुनी ! जीव जे , ते धर्माराधनथी सुखी थाय बे, अने पाप करवाथी कुःखी थाय ने ए वगेरे पापें हाल जे कद्यु, ते सर्व, जो कोई पण जीववस्तु होय, तो तेने लागु पडे, परंतु जीव एवी वस्तुज जो न होय, तो ते या पनां कहेला सर्व, कोने लागु पडे ? कोइने नहिं. जुन. हे मुने ! आप जे जीव पदार्थ कहो बो. तो ते जीव, कोश्ने कोइ पण काणे प्रत्यादि Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३एश जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. प्रमाणोथी केम देखातो नथी ? वली बापना कहेवा प्रमाणे ते जीव, जो पदार्थ होय, तो जेम आपणे आपणा घरमां जातां अने आवतां कोई प दीने देखीये .ये, तेम शरीरमां जातां श्रावतां जीवने केम देखता नथी ? वली आप कदाचित् एम कहेशो के ते जीव शब्दरूपें . तो ते जीव, शंखना शब्दनी पर्नु संनतातो केम नथी, तथा वली कदाचित् आप एम कहेशो के ते रस समान , तो ते जीव, नात वगेरेना उसामण समान रसरू पण केम देखातो नथी ? माटे हे प्रनो ! ए जोतां तो एम लागे बे के आ जगतमां जीव वस्तु तो आज नहिं. कदाचित् आप वली एम कहेशो के आ शरीर तो अस्थि मांस प्रमुखनुं बनेगुं होवाथी जड ले, परंतु ते शरीर, था जीवपदार्थना संयोगथी चैतन्यवान् थाय , तो त्यां दुं कई बु, के था जगतमां मनुष्य, पशु, पदी, प्रमुखनां जे शरीरो देखाय , ते सर्वशरीरमा पृथ्वी, अप, तेज, वायु अने आकाश. ए पांच महानूत रहे वाथी ते शरीरो सचैतन्य देखाय , कारण के पूर्वोक्त पंच महाभूत, जे स्था समुदायरूपें रहे, त्यां चैतन्यशक्ति पोतानी मेलेंज नत्पन्न थाय. ते केनी पेठे ? के जेम गुडादिक इव्य एकठां थाय डे, त्यां मादकशक्ति पोतानी मेलेंज उत्पन्न थाय . माटे हे मुने! या युक्तिथी जोतां ज्यारे जीववस्तुज नथी, त्यारें आपनां कहेलां जन्म, मरण, सुख, उःख, नरक, स्वर्ग, मोद प्रनृति कोने होय ? कपिंजल पुरोहितनां आवां नास्ति कपणानां वचन सांनती गुरु बोल्या के हे न ! तें कडं ते रीतें ज्यारें जीवज वस्तु नथी, त्यारें तो कांही पण साधन करवानी जरूर नथी. परंतु हे ना! जीव नथी एम तारे कोइ दिवस जाणवू नहिं. अर्थात् जीव तो ज. परंतु ते जीव केहवो बे ? तो के चैतन्यलदाणयुक्त अनुमानग्राह्य पदार्थ ने, परंतु चाग्राह्य नथी. माटे हे ब्राह्मण ! जो जीव पदार्थ न होय, तो तारो मत सत्य तरे, पण तेम केम होय ? वली हे वाडव ! अमारा मतथी तो ते जीव पदार्थ शाश्वतोज ने. हवे प्रथम तें कडं के ते जीव, प्रत्य दादि प्रमाणथी देखातो नथी, तेथी जीवपदार्थ नथी ? पण तेम नथी, कारण के जे अांधला मनुष्यो , ते जगतमां शाश्वता पदार्थ जे होय , तेने देखताज नथी तथा बेहेरा जे होय , ते शाश्वता पदा ोने सांजलताज नथी अने जे अंध बधिर नथी ते जीवो, पदार्थोने देखे पण Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३७३ जे, तथा सांजले पण ने, तेथी ते पदार्थो शाश्वत नथी एम केम कहेवाय ? ना कहेवायज नहिं. तेम सदोष अने बद्मस्थ प्राणीयो कदाचित् था शाश्वता एवा जीवपदार्थने प्रत्यक्षरीतें देखता नथी.अने तेने केवलज्ञानी तो प्रत्यक्ष रीतें देखेज , तो ते जीव पदार्थ शाश्वतो नथी एम केम कहेवाय ? वली कह्यु डे के अतींघिय, एवो जे जीव , तेने चर्मचकुवाला मनुष्य, देखता नथी अने सर्वज्ञ एवा सिहपुरुषो, तथा ज्ञानसिह एवा योगी पुरुषो देखे . वली तें कह्यु के ते जीव, शंखना शब्दनी पवें संजलातो नथी तथा नातना सामण प्रमुख रस समान रसरूपें देखातो नथी? तेनो उत्तर तो, ते पूर्वोक्त उत्तरमा आवीज गयो. कारण के जे अतींघिय होय, ते संजनाय नही, तेम ते रसनी पढ़ें देखाय पण नहिं. वली हे कपिंजल! तें कह्यु के पंचमाहानूतना समुदायथी शरीरोमां पोतानी मेलें चैतन्यशक्ति उत्पन्न थाय , केनी पढ़ें के जेम गुडादिकडव्य युक्त मदिरामा पोतानी मेलें मादकशक्ति उत्पन्न थाय ? तो त्यां कडं , ते सांनल.के जे तुं पंच माहानूत कहे बो, तो ते पंचमाहानू तने सचेतन कहे बो, के अचेतन ? जो तुं सचेतन कहेतो हो, तो तो अमोने इष्टापत्ति में, एटले अमें ते पृथिव्यादिक सर्वने एकेश्यि जीव कही येंज बैये. अने एम कहेवाथी अमारी पेठें तें पण जीव पदार्थ मान्योज तस्यो, तो पील धापण बेदुने वादज क्यां रह्यो ? अने जो ते पंचमाहानूतने तुं अचेतन कहेतो हो, तो ते अचेतनना समुदायथी चैतन्यपरिणाम थायज केम ? अने वली जो ते प्रत्येक माहानूत अचेतन , तो तेने पोतानी मेलें समुदायपणे मलवानी शक्ति पण केम संनवे ? तेथी तारु जे या अज्ञानपणानुं बोलq , ते सर्व व्यर्थ डे. वली तें कह्यु के गुडा दिक इव्योथी बनेला मदिरामां जेम मादकशक्ति पोतानी मेलेंज उत्प न थाय ने, तेम था शरीरोमां पण पंचमाहानूतना मलवाथी चैतन्य शक्ति स्वतः नत्पन्न थाय छ ? तो त्यां कडं, ते सांजल. के जो एम हर को इव्यो एकत्र मलवाथी तेमां स्वतः मादकप्रमुख शक्ति उत्पन्न था जाती होय, तो नदीनी वेलु, कांकरा, धूड, घास वगेरे कदाचित् जो एक थइ जाय , तो तेथी कोइ पण तरेनी शक्ति केम उत्पन्न थाती नथी ? परंतु हे हिज ! जेनो मदिरा थाय ने, ते गोल वगेरे प्रत्येक वस्तुमा प्रथ मथीज मादकशक्ति अंतर्गत रहेली ने तेथी तेमां मादकशक्ति उत्पन्न Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३d जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. थाय . नहिं तो थायज नहिं. माटे हे जाई ! जीव पदार्थना अस्तित्वमा कांइ पण, संशय करवा जेवू नथी. वली पण ते जीवना सिक्षपणा माटें घणांज उदाहरणो, जेनशास्त्रमा बताव्यां ने, परंतु ते घणां होवाथी तेनो हाल कहेथी पार आवे तेम नथी? आ प्रमाणनी युक्तिना प्रत्युत्तरथी निरुत्तर करेलो ते कपिंजल पुरोहित, चूप थ वेसी रह्यो. त्यारे करुणासमु एवा गुरुयें ययुं के हे कपिंजल ! ा तुनें जे कुबोध लाग्यो जे, ते तारा पोता नाज स्वनावथी नथी लाग्यो, परंतु स्वरूतपापथी अंध तथा दृढमिथ्यात्वी एवा केशवनामना तारा मामाना संगथी लाग्यो २ ॥ यतः॥ मोहंधयार पिडिया, पावित कामा पुरंत उरकाई॥ नहा नासंति परं, तुला मिबोवए सेहिं ॥१॥अर्थः-मोहरूप अंधकारथी पीडित एवा प्राणीयो पुरंत दुःखोने पामे , अने वली ते नष्ट अने तुब एवा जीवो, बीचारा बीजाजीवोने पण मिथ्यात्वोपदेशे करीने पुरंत एवा फुःखना नोक्ता करे ॥ १ ॥ ते सांजली त्यां वेठेलो ते पुरुषोत्तम नामा राजा, संशयने प्राप्त थ बे हाथ जोडीने गुरुने पूबवा लाग्यो, के हे नगवन् ! या हाल कपिंजल पुरोहितने कडं के तारों मामो केशव, पूर्वकत कुष्कर्मोथी अंध थयेलो ले तथा ते मिथ्या त्वी. तो हे विनो! ते केशवें पूर्व जन्ममां गं पाप कस्यां हता, के जेषी ते अंधत्वने तथा मिथ्यात्वने प्राप्त थयो ? ते कृपा करी करो. त्यारे गुरु बोल्या के सांबलो. एक वसंतपुरनामा नगर हतुं, तेमां एक वीरांगदनामा राजा हतो. ते चश्मा समान उज्ज्वलगुणवालो हतो. परंतु जेम चश्मामां कलंक, तेम ए राजामां पण एक मृगयारमवारूप कलंक हतुं. अर्थात् आहेडापणाना गुणवालो हतो. हवे एक दिवस ते मृगया रमवामाटें पोता ना पुरनी पासें एक अरण्य हतुं, त्यां आव्यो. अने त्यांबावी ज्यां जुवे डे, त्यां तो केटलांएक बिचारा निरपराधी वनेचरो ननां हतां, तेने जोयां. जोश्ने, धनुष्यमां बाण चडावी ते बाणने ते वनेचर सामो सांध्यो, त्यां तो ते वने चरोसमजी गयां के आ अमने मारवा याव्यो जे, तेम समजी ते तत्काल जयनीत थश्ने त्यांथी एकदम दोडवा लाग्यां. त्यारे ते राजा पण तेनी पळवाडे अश्वारूढ थश्ने दोड्यो. अने दोडतां दोडतां केटलांएक वनेच रोने बाणोयें करी मारीने लोथ करी नाख्या. त्यारे तेनी पडवाडे अश्वो पर बेसी दोड्या धावता तेना अनुचरो, तेनी प्रशंसा करवा लाग्या के Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५ हे महाराज! ए वनेचरोने मारवामां आ खूब चांचव्य वापघु, अने आप नामांघपुंज शौर्य ने ? या वगेरे पोतानी प्रशंसा सांजली हर्षथी तेनां रोमां चित उनां थयां. या प्रमाणे मृगयासक्त एवा ते राजकुमारे एक पर्वतनी निकटना वनने विषे जाडमां संताश्वेठेला एक सुवरना बच्चाने दीठो, अने तुतर तेनी पर धनुष्य खेंची बाण मूक्यो, परंतु ते बाण सुवरना बच्चाने न वा गतां जाडनी उथे कामस्सग्गध्याने बेठेला कोइएक साधुने वाग्यो. पनी वीरां गदकुमारे विचाघु जे बाण तो वाग्यो, परंतु जेने बाण वाग्यो ते सुवरनो बालक दीनशब्द करी पड्यो जणायो नहिं. माटे टुं त्यां जश् जो तो खरो, के ते बाण तेनेज वाग्यो , के कोई बीजाने ? एम विचार करी ते एकदम त्यां आवीने ज्यां जोवे, त्यां तो ते सुवरना बच्चाने तो बीलकुल दीतोज नहि. परंतु काउस्सग्गध्याने रहेला, तथा जेना पगमां बाण वागवाथी रुधिर चाल्युं जाय , एवा कोइएक साधुने दीठा, ते देखतांज वीरांगद कुमारने मनमा अत्यंत संन्रम थ गयो, अने ते विचारवा लाग्यो के अरे ! हुँ माहापापी थयो ? अरे ! हुं नर्यकर कर्म करनारो थयो ! कारण के धावा निर्मल, ध्यानासक्त एवा निरपराधथी साधुने में विना कारण बाण मास्यो ! हा ! ! ! हवे हुँ झुं करुं ! क्यां जावं ! ! अरे तो पण कांक ठीक थयुं ? जो कदाचित् या मारा बाणथी बावा उत्तमसाधु मरण शरण थइ गया हत, तो मने घोरातिघोर नरकमां पण स्थानक मलत नहिं ! अर्थात् थनिर्वचनीय एवा नरकःखने नोगवतां, लाखो जन्म थात, तो पण मारो दुःखमांथी पार थावत नहि. एवी रीतनो विलाप करीने ते राजा, ध्यानासक्त एवा ते साधुना चरणमां पडी गयो, अने मोहो टा स्वरथी कहेवा लाग्यो के, हे कारुण्यनिधे ! हे कृपासागर ! ! हे त्रिज गऊन वत्सल ! ! ! पापी, अने उष्टकर्म करनार एवा में, मृगया रमतां आहिं आपनी निकट रहेला एवा सूवरना बच्चाने जो बाण मायो हतो, तो ते बाणना सपाटामाथी सुवरनो बालक तो कोण जाणे क्या सटकी गयो, परंतु ते बाण, निरपराधी एवा आपना चरणमां लागी गयो. माटे ते पापथी तथा जगतमां थता अपयशथी मने कोइपण रीतें मुक्त करो ! कारण के हाल जेवू, में कर्म कहुं बे, तेवा कर्मने कदाचित् कोश उग्र पापी होय, ते पण करे नहिं. पण याप दयालु बो, तेथी मारी पर Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दया करी प्रसन्न था. वली आप सरखा जे महात्मा पुरुषो , ते कृपा करी हुँ जेवा अज्ञानी जनना महोटा पण अपराधने क्षमा करें . अने हे प्रनो ! जो आपने कांश शिक्षा करवी होय, तो पण में, था मारूं सर्व शरीर आपने अर्पण करेलु ने, तेथी जेम बापने नासे, तेम थाप शिक्षा करो. या प्रमाणे घणीज विनति करी, तो पण ध्यानासक्त एवा ते मुनि काहिं पण वोट्या नहिं, त्यारे पाडो ते राजा वधारे फुःखी थइ विनति करवा लाग्यो के, हे नगवन् ! ढुं वसंतपुरनो वीरांगदनामा राजा , तेथी आपने अनु कंपा करवा योग्य मुं. वली हे दीनवत्सल ! आप मने का जबाप देता नथी, तेनुं कारण झुंने ? अने हे जगवन् ! आपने अवडो महोटो कोप, मुज किंकरपर करवो घटे? ना नहिं. अने हुँ जाणुं बुं, के धाप जेवा पुरुष कोप करे, तो ते कोपें करीत्रण लोकने पण बाली जस्म करीनारखे ! तथा शाप प्रापी स्वर्गमा रहेला इंश्ने पण इंशसनथी एकदम तो नारखी दीये, तो हुँ जेवानुं तो झुंज कहेQ? माटे हे घृणालो ! थाप जेवा दयालु पुरुष जो दया करे, तोज मारा सरखा पापी जीवथी जीवाय, नहिं तो जीवाय नहिं. वली हे प्रनो ! ज्यां सुधी थाप मारी पर कृपा नहिं करो, त्यां सुधी मारो यात्मा कंपायमान थातो रहेशेज नहिं. हे मुनीं! जानुं गुं कहूं ? परंतु जो हवे श्राप दयारूप ज्योत्स्नाथी मने नहिं शीतल करो, तो कता पराध एवो ढुं जरूर पापरूपतापथी बली नस्म थ जाइश? ए निश्चे जाणजो. था प्रकारना चाटुवचनरचनामां पटु एवा ते राजानां वाक्य सांजली कास्सग्गध्यानथी जाग्रत थया एवा मुनि बोल्या के हे राजन! कांड पण जय राख नहिं. अपराध करनारा प्राणी पर पण अमें जे मुनियो बैयें, ते कोप करियें नही, तो तुं तो वली कतापराधनो पश्चात्तापी थयो नो, तेथी तारी पर तो केमज करियें ? वली अमें तो झुं? परंतु अस्मद्यतिरिक्त बीजाउ पण तारी पर कोप करे नहिं. पण हे राजन् ! तुने यत्किंचित् ढं हितोपदेश करूं बूं, ते सांजल. के हे ना! जो. या विषयनोगोना संयोगने, अने यौवनने तथा जीवितने पण करिकर्णसमान अतिचंचल मानी ते यति चंचल एवा विषयनोगादिकना स्वल्पसुख माटे जीवप्राणी मात्र कोइ पण वखत पापमांप्रीति करवी नहिं. वली हे राजन् ! या संसार नोगासक्तप्राणी, एम प्रत्यक्षरीतें जाणे जे, जे आ इंडियना नोग जोगववा माटे यापणे पाप Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३ए करीयें बैयें, अने वली ते पाप नरकादिकना मुःखें करी जोगवq पण पड शे, तो पण ते प्राणी पापकर्म करता बंध थाता नथी. ते केनी पेठे. ? तो के जेम को मिंदडो दूध पानमां आसक्त थयेलो होय, तेने आपणे लाकडी वगेरेथी मारीये बैयें. त्यारे ते जाणे , के या मार मुने उग्ध पान करवानी आसक्तिथी पडे , तो पण ते दूधपानने बोडतो नथी. वली हे नृप! जेम को सश्न अगाध समुश्मा पडेलुं होय, तेने माटे यापणे घणो प्रयास करीयें, तो पण ते उपलब्ध थातुं नथी, तेम अपार एवा संसारसमुश्मां मनुष्यजन्मरूप रत्न पडेलुं , ते जीवने घणाक क टोथी पण उपलब्ध थातुं नथी. अने ते अति उर्लन एवं मनुष्यजन्मरूप रत्न जीवने कदाचित् मले बे, तो ते मनुष्यनुं घगुंज महोटुं आयुष्य तो फुटेला घडामाथी जेम जल चाल्युं जाय डे, एम चाल्युं जाय . अने वली ते मनुष्यनी पळवाडे विकराल एवो काल तो फसाज करे . तेमां ज्यारें ते कालनो लाग फावे , त्यार ते तुरत लइ जाय . तेथी हे राजन् ! हिंसा कर्मरूपपापप्रसंगनो परित्याग करी तुंधर्ममां मन कर.वली हे राजन् ! हाल जे तुं जीव हिंसा करे डे, ते केवी ? तो के धापत्तिनी मूल के, मोदनी प्रतिकूल , सदु को प्राणीयोने कुःखनी देनारी , ते माटे प्रथम तो ते हिंसा करवानोज त्याग कर. जे माणास, सर्वप्राणी मात्रने अत्यं त वन्नन एवां प्राणोनो पोताना यत्किंचित्स्वार्थ माटे निर्विलंबपणे नाश करे , ते प्राणी, प्रत्यद हालाहल विषनुज पान करे , एम जाणवू. वली केटलांएक माणसो, पापकर्मोयें करी उपार्जन करेला इव्यथी पोताना कल त्रादिकन पोषण करे , परंतु ते कलत्रादिक, परलोकमां परवश पडेला ते पोषणकर्त्ताप्राणीनुं कांश पण सहाय करे ? ना नथीज करता.तेणे स्वजन, तथा पोताना देवनुं सारीरीतें अशनादिकें करी पोषण कयं होय, तो पण ज्यारे तेनो काल आवे, त्यारेते स्वजनादिक कांश तेने कालथी बचावी शके ले ? ना नहींज. ते केनी पढ़ें ? तो के जेम सारी रीतें पोषण करेलो उष्ट अनुचर, संग्राममां पडेला पोताना स्वामीने बचावी शकतो नथी. माटे हे राजन् ! आपत्तिमां पण तारे धर्मनुंज आराधन करवं. कारण के ते जीवनो पोषित एवा स्वजन देहादिक त्याग करे , पण सेवन करेलो जे धर्म ,ते का तेनो त्याग करतो नथी. ते केनी पेठे ? तो के पोषण करेला Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३- जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सारा अनुचरनी पते. माटे तारे धर्माराधनमांज प्रतिदिन प्रीति राखवी अने अनंतकुःखकारक एवां हिंसाप्रमुख पापकर्मोनो त्यागज करवो. आ प्रकारे ते मुनिना करेला उपदेशने सांजलतांज अपूर्वकरणरूपरवड़ें करी कपाइ गयो मिथ्यात्वरूप ग्रंथि जेनो अने समकितबोध पामेलो एवो ते वीरांगद राजा, हर्षे करी ते मुनिने सविनय कहेवा लाग्यो के हे नगवन् ! देशनारूप अमृतदाने करी आमारो महोटो अनुग्रह कस्यो. माटे हे महा राज ! हवे मने जेवां घटे तेवां गृहस्थधर्मरूप श्रावकनांबार व्रत उच्चरावा? त्यारे गुरुये पण सम्यकमूल हादशव्रत रूप गृहस्थाश्रम धर्मनो उपदेश कस्यो. ए सांजली ते वीरांगद राजा पण यथाशक्ति ते श्रावकना व्रतने ग्रहण करी पोताना करेजा थपराधने खमावीने घेर थाव्यो. पडी गुरुना करेला उपदेश प्रमाणे धर्मने पाली अनुक्रमें ते शुम श्रावक थयो. - हवे ते गाममां, जाएयु जीव अजीवनुं तत्त्व जेणे एवो अने कदाग्रह थी विमुक्त, विमलबोधना मार्गने अनुसरतो एवो कोइएक जिनप्रिय नामा श्रावक रहे . ते प्रतिदिन वीरांगद राजा पासें यावी ते राजाने धर्ममा स्थिर करवा माटे अनेक रीतें धर्मोपदेश थापे , अने साधुन्नां वरखाण पण करे . अने ते राजा पण तेनी जे कां वात होय, तेने घणाज मानथी स्वीकारे , कारण के तेनी पर ते राजानो धर्मगुरु समान नाव . वली राजा सामायिक, के पोषध, के जिनपूजा प्रमुख कांड पण धर्मकृत्य करे , त्यारे तेनुं साहाय लश्नेज करे . हवे तेज गाममां कोइएक मोहन नामा वैश्य रहे ठे, तेने स्वजननुं तथा इव्यनुं के बीजा को प्रकारनुं सुख नथी तेथी तेणें विचायुं जे ढुं जो उपरथी देखवा मात्र श्रावक बनें, तो था गाममां मारी आजीविका चाले, कारण के आ गामनो राजा जे जे, ते उत्तम श्रावक ? तेम विचारी तेणें नावसम्यत्करहित, शव्यधर्मरूप श्रावक धर्म स्वीकास्यो, एटले नाव विना उपरथीज श्रावक जेवं याचरण करवा लाग्यो. हवे एक दिवस ते मोहन, जिनप्रिय नामा श्रावकने मल्यो, अने पोतानी आजीविकामाटे तेने कहेवा लाग्यो के हे सत्पुरुष! हे साधर्मी नाइ ! तमो प्रतिदिन राजाने त्यां जाबो, अने ते राजा शुश्रावकधर्म पाले , तो मने महेरबानी करी तेमनो मेलाप करावो, जेथी हुँ एवा नत्तम श्रावकनी निश्रायें यथेलित धर्माचरण करूं ? ते सांजली साधर्मिप्रिय एवा Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३ जिन प्रियश्रावकें कह्युं के ठीक बे, ज्यारें हुं राजा पासें जावं, त्यारें तमो मारी साथै यावजो पढी ज्यारें जिनश्रावक राजा पासें जवा तैय्यार थयो, त्यारे मोहन त्यां घ्यावी ते जिनप्रिय श्रावकनी साथें राजा पासें गयो. घने त्यां जइ उपरथी शुद्धश्रावक समान जावयुक्त वार्त्ता करवा लाग्यो, ते जोइ राजायें नावथी जाएयुं जे अहो ! या केवो सारी श्रावक बे ? वली केवो गरीब बे ? माटे तेने जिनपूजनना कार्यमां राखीयें ? अने तेने कांक जीविकानो बदोबस्त पण करी यापियें ? एम विचारी ते मोहननी जिनपूजननाज कार्यमां योजना करी तथा खाजीविका पण करी यापी. हवे मोहन त्यां रही ते राजानो प्रतिदिन पोतापर जाव वधारवाना सब बी देखवामात्र प्रत्यंतनाव बतावी सायंकालें श्रावकोनी सना कर उत्तम एवा श्रावकधर्मनो उपदेश करवा लाग्यो, तेथी तेने सढुको श्रा वको या घणोज उत्तम श्रावक बे, एम मानवा लाग्या. एक दिवस वीरां गद राजायें पोताना पुत्र वीरसेन कुमारने राज्यधुर धारणमां सशक्त जाणी मध्यरात्रें धर्मजागरिकायें जाग्रत थइ, संसारपर वैराग्य श्राववाथी प्रातःकाल मां ते मोहनने बोलावी श्राज्ञा करी के हे जड़ ! कोइ पण ठेकाणे जो धर्माचार्य मुनि श्राव्या होय, तो जुवो. कारण के मारे ते धर्माचार्य पासें दीक्षा जेव बे, तेवा उत्तम गुरुनी सेवायें करी मारा यात्माने संसारांबुधिथी तारवो ? ते सांगली मनमां खेद पामी उपरथी नाव देखाडी मोहन बोल्यो के हो राजन् ! या विचार तो यापें घणोज उत्तम धायो ? एम कही मनमां विचारखा लाग्यो के अरे! या तो मारे दुःख थवानुं ययुं, कारण के ज्यारें या राजा साधु य चाल्यो जाशे, त्यारें मारी आजीविका केम चालशे ? पी हुं गुं करीश ? माटे घाडो अवलो बाहार जावं, अने जश्यावीने कहुं के दीक्षा देवामां जेवा जोइयें तेवा धर्मगुरु क्याहिं मलताज नथी. एम कहीने या राजा गृहस्थनावमांज रहे, तेवो उपदेश करी तेने चारित्र सेतो टकावं ? एम विचार करी राजानी खाज्ञा लइ गुरुने शोधवाना मिपथी वे चार घडी बाहार जइ पाठो राजा पासें यावी हाथ जोडी विनति करी कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! में धर्मगुरुने घणे ठेकाणे शोध्या, तथा तेनो, वीजा माणासो न मोकलीने घणे दूर सूधी शोध पण कढाव्यो, परंतु तेवा सुध म धर्मगुरु कोइ पण स्थलें उपलब्ध याता नथी. माटे मारो मत तो Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. एम , के आ चारित्रज लेवू नही. कारण के आपण जेवाथी चारित्र पल बदुज कठिन ले. जु. प्रथम तो थापणुं मन जे , तेज पीपलानां पत्र जेवं अतिचंचल ने, वली प्रापणी इंडियो जे जे, ते निरंतर विष यानिलापयुक्त रहे ले. अने प्रमाद जे जे, ते तो सदुकोइने उस्त्यजज ने, तो आपणुं तो झुंज कहे ? वली हे राजन! आपण जेवा कायर पुरुषो तो अष्टादश शीलांग व्रतो कोइ पण दिवस धारण करी शके नहिं. अने पूर्व जे व्रतो महर्पियोयें पालेला , ते व्रतो झुं आपणथी पली शके ? ना नज पली शके ? तेमां वली बीजां व्रत तो कदाचित् महाकष्ठं करी पले, परंतु ब्रह्मचर्यव्रत तो पलेज नहिं, अने चारित्र लश्ने जो ब्रह्म चर्यव्रत न पलें, तो श्रापणे जे कां व्रत पाल्यां होय, ते सर्व व्यर्थज थाय ? एम जैनसिमांतमा सर्वत्र लव्युं ले. अने हे राजन् ! हाल आपणने वैराग्य भाववाथी थापणे चारित्र लश्यें, अने पडी ब्रह्मचर्य व्रत न पलवाथी पाना मुंजाइने थापणे गृहस्थाश्रम अंगीकार करीयें, तो मोहोटुं पाप लागे, अने वली तेथी अनंतजवन्रमण करवू पडे. माटे ए सर्व खटपट मूकी दश्ने हाल जे गृहास्थावास , तेज पुण्यावास , एम जाणी तेमांज रहे योग्य बे. अने हे नृप ! आ गृहस्थावासमांज रही दान, पुण्य, धर्म, व्रत, तप, नियम जो पालियें, तो ते गृहस्थपणामां रहे, पण उत्तमज डे. हे राजन् ! ा उपदेश ढुं आपनेज कहूं, तेम नथी, परंतु मने पण आपनी पहें वली संसारपर वैराग्य थवाथी संयम लेवानी चा थर हती, तेथी में पण हालनी पढें शुरू चारित्रधारीधर्मगुरु शोधवा मांमया हता, परंतु ते दिवस तेवा गुरु मने पण मल्या नहिं तेथी, अने वली बीजां हाल जे में कह्यां, के आपणाथी संयम न पले, ते कारणोथी निर्विल थर हजी सुधी हुँथा गृहस्थधर्ममांज वर्तुं बु. वली हे राजन् ! चारित्र लश्ने ते चारित्रनो त्याग करवो, ते पर्वतथी नीचे पड्या जेवू डे, भने गृहस्थाश्रममा रही ते गृहस्थव्रतनो त्याग करवो, ते मांचाथी नीचें पड्या जेवं जे. तो जे पर्वतथी पडे, तेने जेवं उःख थाय , तेवं पुःख, मांचापरथी पडनारने थातुं नथी. माटें आपने गृहस्थधर्ममा जे रहे तेज उत्तम . आवां वचन मोहननां सांजली वीरांगद राजा नंको विचार करवा लाग्यो के अहो ! था मोहनीयो तो उत्तम एवा मोदकारक Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४०१ माहाव्रत एबुं जे चारित्र, तेने निंदे . अरे! आवां वाक्यो तो आलोकमां अने परलोकमां कुःखदायकज थाय . अहो! वली जुआ केवो अ झानी ले के, जे आवां मिथ्या वचन कहीने चारित्र लेवामां विघ्न करे ? जेम को खेडुत माणास, माल लाववो, साचववो, वेचवो, नामुं लखवू, हिसाब राखवो, जोखम लागवू, ए वगेरेनो नय देखाडीने व्यापार कर नारा व्यापारीने वेपार करतो अटकावे, अने पोतानी खेडनां वखाण करी ते खेड करवानो उपदेश करे, तेम आ मोहनीयो पण साधुधर्म रूप व्यापारने निंदीने ते धर्मने स्वीकारवानी ना कहे जे अने गृहस्थधर्म रूप खेडने वखाणी तेमांज रहेवानो उपदेश करे . वली या मोहनीयाना कहेवा प्रमाणे प्रमादथी लोकोत्तर मार्गने विषे जो विघ्नोनुं चिंतवन करीयें, एटले माहांमुस्तर एवं चारित्रवत ते केम पलाय? एम जो विचार करीयें, तो तो पबी मोश्रीनोज अनाव थाय. कारण के सर्वत्र प्रसिह मोक्ष्सा धक तो यतिधर्मज ,तो ते धर्मनो जे जीवें अंगीकार नथी कस्यो, ते जीव नी सजति थातीज नथी? माटे आवा धर्मोडापक वाक्य बोलनार एवा आ मोहनीयानी साथें वात करवानी पण मारे हवे शी जरूर ? काहिं नहिं. परंतु आ वात हुँ जिनप्रिय श्रावकने बोलावीने कही बतावं के जेथी तेने पण आ मोहनीयाना जावनी मालम पडे, अने जे कांई कहेवार्नु होय ते कहे पण? एम विचारी जिनप्रिय श्रावकने तेडावी पोताने जे वात मोहन साथें था हती, ते सर्व वात सविस्तर कही आपी. ते सांजली किंचित्को पाक्रांत थयेलो ते जिनप्रिय, मोहनने कहेवा लाग्यो, के हे मोहन! जेवू तारूं नाम , गुण पण तेवाज बे. केम के तारूं नाम मोहन होवाथी न इनावी राजाने संयमग्रहण करवामां खोटां अने धर्मथी प्रतिकूल एवां वा क्योथी मोहमा नाखे ? ते जेम केः-तें कमु के आपणुं मन घणुं चंचल , आपपीडियो तो विषयनोगनी अभिलाषा कस्याज करे , प्रमाद जेने, ते सर्वनो परानव करे ले, तो आपणो करे, एमां तो झुंज कहेवू ? शीलांगव्रत जे पालवां ते घणांज कठिन . नला ए सर्व जे कह्यु, ते तें झुं समजीने कयुं ? वली हे मूर्ख ! सांजल. जे साहसिक पुरुषो , तेने चंचल एवं चित्त मुं करी शके ? तथा तेने प्रबल एवो इंडियवर्ग पण गुं करी शके डे? वली प्रमाद पण तेने झुं करे ? निरंतर स्वाध्याय, ध्यान, तप तेने ५१ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. विषे रहेला, गुरुना वचनमां निरत अने नवज्रमणथी नय पामता एवा अनागार साधुनु चित्त, कोई दिवस पापकर्मने विषे जाय ? ना नज जाय. वली अष्टादश शीलांगरथना धुरने वहन करवाने समर्थ एवा साधु रूप जे वृषन जे, ते शीलांग रथनो चालता चालतां अर्ध मार्गमा त्याग करे ? ना नज करे. एम करतां कदाचित् ते पुरुष, कोइएक कर्मना दो शिवमार्गमां चालता चालतां स्खलन थ जाय, तो युं ते मार्गमां शीलांगरथने वहन करी बीजायें न चालवं ? वली हे जड! सांगल. को इक वाहाणमां बेसनारा पुरुषवालुं वाहाण ते बेसनारना कर्मयोगें कदाचित् नांगी गयुं होय, तो पढ़ी बीजा पुरुषोयें ते वाणमां गुं न बेस ? वली कदाचित् कोश्क ज्वरित मागास, घगुंज घृत खाइने मरण पाम्यो होय, तो झुं बीजा निरामय माणसें घृत खावूज नहिं? अने तें वली एम कडं के मनुष्यने पर्वतपरथी पड्याथी जेवू कुःख थाय डे, तेवू मांचापरथी पड वाथी मुःख थातुं नथी. परंतु हे ना! ते दृष्टांत तो संयमयी जे पडेला होय, तेने लागु पडे ,परंतु ते दृष्टांत कांश संयमनो उद्योग करवा तत्पर थया होय तेने लागु पडतो नथी. वली या तारा कहेला दृष्टांतथी गुं बोध थाय ? के संयमव्रत धारण करवा चनारने संयम लश् मूकवो नहिं तेवो बोध थाय जे. पण जे दृढवैरागी होय, ते संयम जश्ने बोडे नहीं. अने हे मोहन ! जे पापी पुरुष, तारा सरखी पोतानी कल्पितयुक्तियोयें करी चारित्र ग्रहण करवामां समुत्सुक थयेला जनने चारित्र लेता बंध करे ने, तो ते बंध करनार पुरुष, नरक, तिर्यग् वगेरे लाखो गमे उखनुं नाजन थाय . माटे हे अज्ञानी ! तेवा वाक्यरूप प्रत्यद निन्हवथी तारामां गुप्तरीतें मिथ्यात्वज नह्य होय, एम देखाय . वली तें कह्यु के तेवा शुक्ष्वतधारी सा धु तोमलताज नथी? तो हे अज्ञानी! सर्व संगविमुक्त, पंच महाव्रतधरण धीर, पांच समिति,त्रण गुप्ति, तेणें युक्त,ज्ञान, ध्यान अने तप, तेमां लीन एवा गुरु तो प्रत्यदीतें घरोज स्थलें विचरे में, अने अमोने दर्शन पण थाय ने,पण हे मिथ्याहर! तुं मिथ्यादृष्टिबो, तेथी तुने ते यतिवर्गनां दर्शन क्यांथी थाय? जेम को जात्यंध माणास होय, ते प्रत्यक्ष पडेला घटपटादि पदार्थोने देखे ? अने हे तुमते ! निर्यथ,स्नातक, पुलाक, बकुश, अने कुशीत, ए पांच निर्यथथी तो था तीर्थ रहे बे. तेमा हाल निर्यथ,स्नातक Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४०३ बने पुलाक, ए त्रणनो विछेद थइ गयो , अने बकुश अने कुशील, ए बे निर्यथ तोज्यां पर्यंत तीर्थ प्रवतो, त्यां पर्यत रहेशे. ते युं तुं जाणतो नथी ? आगममां पण कहेलृ ले के ॥गाथा॥ निग्गंथ सिणायाणं, पुलाग सहियाण तिहि वुबे ॥ समणा बस कुसीला, ता तिबं तावदो होति ॥१॥ अर्थः-निग्रंथ, अने स्नातकनो तो ए पुलाक साथें विजेद थयो । एटले ए त्रणेनो हाल विजेद थ गयो ने. परंतु बकुश अने कुशीत, ए वे निर्यथ तो ज्यां सुधी तीर्थ प्रवर्तशे, त्यां सुधी रहेशे. हवे हे मोहन ! जो तुं जयानक एवा नवारण्यमां नमवानी श्वा न करतो हो, तो हाल तें जेड ोषितवचन कह्यां , तेनी तुं गुरुपासें जश् आलोचना ले. या प्रकारें जिन प्रिय श्रावकें तेने घणाक एवा हेतुवादो कही निरुत्तर कस्यो. तेथी ते मोहन कां पण बोल्यो नहिं, तेम उर्जाषितर्नु कुष्कृत पण बालोच्युं नहिं. त्यारे ते जिनप्रियश्रावकें जाण्यु जे अहो! आ तो खरे खरो धर्मध्वजज ,अर्थात् था कांश खरो श्रावक नथी. एम जाणी राजानी पहें पोते पण तेनी साथें कामविना बोलवानो व्यवहार बोडी दीधो. पडी ते जिनप्रिय श्रावक वीरां गद राजाने कहेवा लाग्यो, के हे राजन् ! तमो या प्रमाणे संयम लेवाने वो बो, तेथी तमोने धन्य , कारण के संयम शिवाय जीवनो मोद थातो नथी. अने तमारा जेवा चारित्र ग्रहण करनाराना मनोरथने जे पुरुष नांगे , ते पुरुषy को दिवस कल्याण थातुं नथी. वली हे राजन् ! देव अने गुरु, तेना चरणारविंदना प्रतापथी तमारा धारेला सर्वमनोरथ सफल हो. अने हे देव ! संयमनी इबा , माटे संयमने ग्रहण करो, हवे विलंब न करो. अने हुँ पण तमोने संयमग्रहण करवामां यथा शक्ति सहायक थइश. हे विनो! जो तमो गुरुनी वाट जोता हो, तो गत दिवसेंज शांत, दांत एवा जयकांत नामा मुनीश्वर तमारा उद्यानने विपेज समोसस्या , माटे हे स्वामिन् ! तेनी पासें जश् जे स्वेलित डे, ते शीघ्र साधी लीयो. या प्रकारनां जिनप्रिय श्रावकनां वाक्य सांजली, ते वीरांगद राजा अत्यंत हर्षायमान थइ, तुरत ते गुरुनी पासें जश् तेमने नमन करी योग्यस्थान पर बेतो. त्यारें गुरुये देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते जेम केः॥ श्लोक ॥ ःवं स्त्रीकुदिमध्ये प्रथममिह नवे गर्नवासे नराणां, बालत्वे चापि अखं मलमलिनवपुः स्त्रीपयःपान मिश्रम् ॥ तारुण्ये चापि फुःखं न Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वति विरहजं वृक्षनावोऽप्यसारः, संसारे रे मनुष्या वदत यदि सुखं स्वल्प मप्यस्ति किंचित् ॥ १ ॥ निईव्योधनचिंतया धनपति, स्तश्हणे व्याकुलो, निस्त्रीकस्तपायचिंतनपरः स्त्रीमानपत्येन्चया ॥ प्राप्तापत्यपरिग्रहोपि सततं रोगैः परानूयते, तस्मान्मुक्तिपथं विहाय नुवने कोनाम किं सुस्थि तः ॥ २ ॥ अर्थः-हे मनुष्यो! या संसारने विपे जीवने जो स्वल्प पण सुख होय, तो कहो ? जुन. प्रथम तो जीवने गर्नावासमा स्त्रीना नद रने विपे सुःख थाय ले, अने ज्यारें पालो ते उदरथी बाहार आवे , त्यारे पनी बालनावने विषे मलधी मलिनपणानुं तथा स्त्रीना पयःपान थीज जीवq ते वगेरे, उःख थाय डे. नदनंतर ज्या, पालुं ते तरुणपणुं पामे , त्यारे कामविकारर्नु मुःख थाय ले. त्यार पनी ज्यारे जीवनी वृक्षा वस्था थाय डे, त्यारे ते वृक्षावस्था तो केवल कष्टमयज होय . माटे जो केवल सुखज जोश्ये, तो तो संसारना त्यागमांज ॥१॥ वली जुन. या सं सारने विषे निर्धन जे ,ते धन मेलववा माटे प्राणांत कष्ट जोगवे , तेमज वली जे धनवान होय जे, ते इव्य रणनी चिंतामांज व्याप्त रहे जे. तथा जे स्त्री विनानो विधुर पुरुष होय , ते स्त्रीमेलापनी वा कस्या करे बे, अने वली जे स्त्रीवालो पुरुप होय , ते संताननी इजा कस्या करे . अने जो संतान होय छे, तो निरंतर रोगोथी परानव पामगुंतो केम थाशे ? तेनी चिंता कया करें बे. माटे हे मनुष्यो! आ जगतमा मुक्तिना मार्गने पकड्या शिवाय बीजो उत्तम कयो मार्ग ,के जे मार्ग पकडवाथी जीवने सुख थाय? ॥२॥ या प्रकारनी संसारनी असारता सांजलीने प्रेमें करी परमार्थनुं चितवन करी जीवितनी पण अनित्यता जाणीने ते वीरांगद राजा, मोदसाधनमांग त्सुक थयो. तेथी तेणे गुनदिवसने विपे पोताना पुत्र वीरसेन कुमारने राज्य गादी आपी. अने जिनप्रिय श्रावक, तेनी स्त्री, मंत्री,सामंत, श्रेष्ठी प्रमुखनी साथै ते श्रीजयकांत मुनीश्वरनीज पासें दीक्षा लीधी. पड़ी क्रमें करी ते मुनि अग्यार अंगो लण्या. दश प्रकारें तथा अनेक प्रकारें मुनियोनुं वैय्यावृत्य करवा मांझयु, अने ते वैय्यावृत्ये करी ते मुनियें पुण्य सामग्रीनु नपार्जन कघू. पड़ी षष्ठ, अष्टमादिक एवां नत्कृष्ट तपोयें करी सर्वकर्मोने खपावी अनशन व्रत अंगीकार करी, समाधिमरणे काल करीने ते वीरांगदराजा Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४०५ शुक्रकल्पनो इंऽ थयो. अने तेनी साथै जे जिनप्रिय श्रावक हतो, ते पण शुक्रदेव लोकने विषे महदि सामानिक देवता थयो. __ हवे ते मोहन जे हतो ते प्रथमथी मिथ्यात्वी तो हतोज, परंतु ज्यारें जिनप्रिय श्रावकथा तिरस्कारने प्राप्त थयो त्यारथी तो ते, साधुनो महोटो शेही थयो. अने मनमां अत्यंत मिथ्यात्वने धरतो थको पोषधना अने श्राव श्यकना मिषयी साधुना उपाश्रयमा जावा लाग्यो. त्यां जश्ने ते उपाश्र यमा रहेला साधुना दोषो गवेषवा लाग्यो. एटले ते लोट चालवानी चाल णी जेवा गुणवालो थयो. जेम चालणी , ते चालणने ग्रहण करे, अने उत्तम सारनूत एवा लोटनो त्याग करे. तेम था मोहन पण साधुना दोपोने ग्रहण करे ,अने तेमना जे गुणो , तेमनो त्याग करे ले. वली ते मोहन, साधुना दोषोने गवेषी ते दोषोने केवल मनमांज समजी वेसी रहेतो नथी, परंतु ते सर्व श्रावकोने घेर घेर जश् कहेतो फरे ने, के हे श्रावको! आ वखतमां को जैन साधु तो साधुना धर्म पालताज नथी. तमें कहेशो के ते वातनी तमने केम मालम पडी? तो के सांनलो. ढुं, पोषध तथा सामायिक करवा प्रतिदिन नपाश्रयमां जा बुं, तो त्यां में ते साधुनमा प्रत्यक्ष रीतें दोषोज दीठाने, तेमां कोइ पण साधुने सारी रीतें परिपूर्णरीतें चारित्र व्रत पालनारो दीगो नथी. ते तेना दोषो कहूं, ते सांनलो. के ते उपाश्रयमा रहेता साधुमांहेला केटलाएक साधुन तो मुहपत्ति बांध्या विनाज वोल्या करे . वली केटलाक साधु दंमासनने करमा लग्ने. चाले जे. केटलाएक साधु तो आखो दाडो सर्व किया बो डीने घ्याज करे जे. वली केटलाएक साधु विकथाज कस्या करे . कोइएक साधु तो पर्व दिवसना नपवास पण करता नथी. कोइएक साधु शुभसूत्र पण वांची जाणता नथी. केटलाएक साधु स्वाध्यायाध्ययन पण करता नथी. माटे ते जोतां तो मने एम लागे , के सर्व साधु दोषना न रेलाज ले. तेथी तेउने जे अन्न वगेरे वहोराव, ते पण सर्व व्यर्थज बे. या प्रकारना मूढपणाथी कहेलां वचने करी दानश्रक्षालु जे श्रावको हता, तेनी श्रदानो साव नाश करी नाख्यो. तथा नाव पण उतारी नाख्यो. आ प्रकारे साधुनिंदक अने उष्ट एवो ते मोहन, कालें करी मुखपाकना रोगथी मरण शरण थाविंध्याचल पर्वतनी अटवीने विषे हस्ती थश्ने अवतस्यो. त्यारे त्यां Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तेने वनेचरोयें पकडी लीधो. अने ते वनेचरोपासेंथी तेने कोइएक धनवान वैश्ये मूल्य दइ वेचातो लीधो. अने वली तेणे पण ते हस्तीने मथुरा न गरीना राजाने थर्पण कस्यो. अने ते राजायें आ यूर हस्ती ने, एम जाणी विषम एवा संग्राममां ज्यारें लडवा जाय, त्यारे तेनी पर पोतें बेसे, तेथी तेने सर्व हाथीयोनो आगेवान कस्यो. हवे पूर्वनवान्यासथी ते हाथी, साधुननो क्षेषी हतो तेथी पोताना स्था नकथी नजिक एक वन , त्यां सद्याय ध्यान करता केटलाएक साधुनो शब्द सांजल्यो. तेथी ते अतिक्रोधायमान थपोताने बांधवानाबालानस्तंनने नांगी, चिक्कारशब्द करी एकदम ते साधुनने मारवा दोड्यो. ते दोडतांदोडतां महापापना योगथी रस्तामा एक महोटो अने मो खाडो याव्यो, तेथी ते खामामां पडी गयो,अने पडता मात्रमांज तेना शरीरना नारथी सर्व अंगो नांगी चूरो थगयां. तेवामां कोइएक राजपुरुपोयें आवी गजमुक्ता लेवा माटे तेना कुंनस्थलनुं विदारण का, तेथी तेना कुःखें तेज खामामां वार्तध्यानथी मरण पामी, रत्नप्रना नामा नरकनूमिने विषे गयो, अने त्यां पण तेणें घगीज वेदना नोगवी. अने त्यांथी नीकली पाडो शिचाणा नामा पदी थयो, त्यां पण घणाक पापो करी मरण पामी वालुकप्रनानामा नरक नूमिमां गयो, त्यांथी निकलीने पाडो सिंहपणे उत्पन्न थयो. ते सिंह पणामां पण घणा एक जीवने मारी नग्रपापो बांधी मरण पामीने पाडो पंकप्रजानामा नरक नमिमांगयो, त्यां पण घणीज वेदना नोगवीने त्यांची निकली धनपुर नामा नगरने विषे कामदत्तानिध वैश्यने घेर चंदत्ता नामनी स्त्रीनेविषे पुत्रपणे उत्पन्न थयो. हवे ते जरा महोटो थयो, त्यारे तेनुं तेना पितायें सुमित्र एबुं नाम पाड्युं. हवे तेज समयने विषे जिनप्रिय नामा जे श्रावक हतो, तेनो जीव, स प्तम शुक्र देवलोकमांथी च्यवी, तेज पुरने विषे विनयंधरनामा श्रेष्ठीनी गुण वतीनामा स्वीना उदरथी पुत्रपणे उत्पन्न थयो. त्यारे तेनुं गुणधर एबुं नाम पाडयु.अनुक्रमें रमणीना मनने मोद करे, एवा यौवनवयने प्राप्त थयो. पूर्व नवना संबंधथी गुणधरने ते सुमित्रपर खरी प्रीति थइ. अने पूर्वान्यासथी सु मित्रने गुणधर पर कपटप्रीति थइ,अर्थात् ते सुमित्र,उपरथी प्रीति बतावे, अने मनमां वैरजाव राखे. पड़ी ते बेदु जण एकज ठेकाणे कीडा वगेरे करे Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४०७ बे. तेमां पूर्व जन्मना पापथी निर्धन थयेला ते सुमित्रना वस्त्रप्रमुख सर्व हलकां , तेथी ते गुणधर साथै रमतां, फरतां मनमां घणोज लाज पामें बे, परंतु ते गुणधर, तेनुं मान, सगानाश्थी पण वधारे राखे . अर्थात् पोतें धनवान बे, तो पण तेने कोई दिवस धिक्कारतो नथी. तेम करतां ते सुमित्रनुं अन्न वस्त्रोथी पालन करनारां तेनां माता पिता, मरण पाम्यां तेथी ते घणोज दारिःखें पीडित थवा लाग्यो, अने तेनो सर्व जनोयें त्याग कस्यो, तथा तेनुं सदुकोश् हेलन करवा लाग्यां. त्यारें सुमित्रे विचाऱ्या के दरिड़ी, व्याधिवान, मूर्ख, प्रवासी अने निरंतर पारकी चाकरी करना रो. ए पांच जण तो जीवता होय तो पण तेने मुवा जेवाज जागवा. तो ते पांच प्रकारना मनुष्योमांथी हुँ दरिडी बौं. हवे ते दरिडिपणुं तो जो ढुं परदेश जावं, तो मटे. ते शिवाय मटे नहिं. परंतु मारे परदेश जावू, ते पण कये देशे जावू, अने कयो देश सारो हशे? ते ढुं था गुणधरने पूर्वी जोउं ? एम धारी ते गुणधरने अनेक देशोना वेपार रोजगारनी वातो पू बवा लाग्यो. ते सांजली गुणधरे जाण्यु जे आ सुमित्र हवे निर्धनपणाथी लजवाय , तेथी परदेश जवानो विचार करतो होय एम लागे . नहिं तो आम परदेशनी वातो मुने को दिवस पूबतो न हतो. वली सुमित्र जे सजवाय ने एमां कां सुमित्रनो वांक नथी. कारण के दरिड जेने, ते सहु कोइने लजवावे तेवुज . कडे जे के वाघ, गजेंइ वगेरे प्राणी योथी युक्त एवा वनमारहेतुं सारुं, तथा ते वनवृदोनां पत्रनुं अने फलनुं नोजन करवू पण सारं, तथा घासनी शय्या करी सू, पण सारु, तथा वनकल वस्त्र पहेरवां, ते पण सारां, परंतु धनहीनपणाथी स्वजनवर्गमां जे जीवq, ते सारं नहिं. माटें दरिछुःखामियी तप्त थयेला एवा या मारा मित्रने जे परदेश जवानो विचार थयो , ते घणुंज सारं थयुं ले ? धने तेणे मने परदेशनी सर्व वात पूजी, ते पण घगुंज सारुं थयुं ने. कहेनु डे के ॥ गाथा ॥ पुरिसेण माण धण व,जिएण अञ्चंत जिस्म विहवेण ॥ ते देसा गंतवा, जब सवासा न दीसंति ॥ १ ॥ अर्थः- मान अने धन, तेणें वर्जित अने अत्यंत जीर्ण वैनववाला माणासें जे देश मां पोतानी नाषा पण न बोलाती होय, ते देशमां जदूं ॥ १ ॥ वली ते तो ठीक. परंतु जो विचार करी जोत्रं, तो मारे पण लजवाया जेवुज Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80G जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बे, कारण के हुँ वो धनवान् होइने या मारो खरो मित्र, ते महा दरिडी ले ? जेम रत्नना निधिने सेवन करनारा माणसने ज्यारें निर्धन पणुं रहे, त्यारें तेमां ते रत्ननिधिनेज लजवाया जेवू दे, परंतु कांश रत्न निधिना सेवनारा माणासने नथी. हा, ते वात तो खरी जे. पण मा राथी तेने इव्य केम अपाय? जो तेने हूँ इव्य आपुं अने ते इव्य प्रा प्यानी मारा पिता वगेरेने खबर पडे, तो ते मारी पर क्रोधायमान थाय. एम करतां कदाचित् ढुं ते मारा माता पिताना कोपने पण सहन करी तेने धन आपुं, तो पण ते सुमित्र जे जे, ते लजा पामी मारूं आपेलुं इव्य ले नहिं ? कारण के ते एम जाणे के जो ढुं था मारा मित्र पासेंथी इव्य लश, तो मारी जगतमां महोटी हलकाइ थाशे? माटे ते पूर्वोच्चारित वेदु कारणथीमारे तो इव्य आपवानो उपायज नंथी. पण हा, एक उपाय जे खरो. के ते सुमित्र परदेश जवा धारे डे, तो हूं तेनी साथें जर तेने धन उपार्जन करवामां साहाय्य करूं ? आ प्रमाणे विचारी, डे वट ते सुमित्र साथे परदेश जवानो मनमां दृढनिश्चय करी ते गुणधर, सुमि त्रने कहेवा लाग्यो के हे मित्र ! मारा घरमां इव्य तो घणुंज डे, परंतु में परदेश जइ धनोपार्जन करवानुं कौतुक दीतुं नथी, तो हे मित्र! ते कौतुक जोवा माटे ढुं कदाचित् परदेश जवा धारूं, तो तमें मारा साहायक थाशो ? ते सांजली कुमित्र समान सुमित्रं मनमां विचारवा मांमधु के अहो! था तो गुणधरें घगुंज सारूं धायुं? कारण के हुँ ते गुणधर साथें विदेश जश् तेनुं संपादन करेलुं सर्व धन कपटथी लइ लहीश. पडी थाहिं सुखें बेसी खा इश? अने आ दारिझ्यथी पण मुक्त थ जाइश? एम विचारी गुणधरने कडं के यहो मित्र! दूं तो तमो ज्यां कहो, त्यां आववा तैय्यारज बौं. मारे तमाराथी झुं वधारे ले ? त्यार पड़ी गुणधरें तुरत पोतानां माता पिताने पूबी अतिप्रयासें तेमनी आज्ञा लश् शकटोमां अनेक प्रकारनां करियाणां नरी सुमुहूर्त जोइ, केटलोएक संघात साथें लर, ते सुमित्रनी साथें त्यांथी प्रयाण कयु. पडी रात्रि दिवस चालवाथी घणाक देशोनुं उल्लंघन करी अनुक्रमें एक महोटी अटवीमा अाव्या, अने त्यां उतारो कस्यो. पबीते वन घणुंज रमणिक होवाथी ते वननी शोना जोवा माटे गुणधर अने सुमित्र निकल्या. ते जोतां जोतां गाढ जेनी बाया ने, तथा देखवा Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ४० मां मनोहर एवो एक नंबरानो वृक्ष दीो. त्यारें ते बेडु, ते वृहनी नीचें बेठा पी तेनुं रमणीयपणुं जोइने गुणधरें एक श्लोक कह्यो. ॥ श्लोक ॥ किमुडुंबर तुल्यस्ते, सच्चायोपि तरुः परः ॥ पथिकानां यतो दत्ते, मूलतः फलसंपदम् ॥ १॥ अर्थ :- हे नंबराना वृक्ष ! तारी तुल्य, सारी यावल बीजो को वृह बे ? ना नयीज. कारण के जे तारी नीचें वे ठेला पथिक जनोने तारुं मूलज फलसंपत्तिने यापे बे ॥ १ ॥ पढी सुमित्र बोल्यो के हे मित्र ! हो या नंबरना वृनी बाया, सुजननी साधें वार्तालाप समान घणीज टंकी लागे बे. माटे याहिं आपणे जरा विश्राम लहियें, तो सारुं ? एम कहीने सुमित्रे त्यां नवपल्लवोयें करी मनोहर एव शय्या बनावी ने पढ़ी ते शय्यापर याग्रहपूर्वक गुणधरने सुवास्यो. ज्यारें ते गुणधर सूतो, त्यारे ते सुमित्रे एक पत्रयुक्त वृनी शाखा लइ तेनी पर पवन नाखवा मांमयो, तेथी मार्गना श्रमयी श्रमित येला ते सुइ गुणधरने तुरत निश यावी इ. हवे ते गुणधरने निशवश थयेलो जोइने कपटी तथा इष्ट एवो सुमित्र, कुमिनी पठें तत्काल त्यांथी पोताना तथा गुणधरना अश्वने ल‍ ज्यां उतारो करेलो हतो, त्यां त्वरित, श्वास जखो दोड्यो श्राव्यो. चावीने महोटो पोकार करी कहेवा लाग्यो के, हे जाइयो !!! जागो, जागो. नासो, जासो. अरे ! जलदी गाडां जोडो ! विलंब न करो ! वली मार्ग के उन्मार्ग ते कां पण जोया विना जेम तमाराथी जगाय, तेम जागो ! कारण के आप एपी पवाडे याने मारवा तथा लूंटवा निल्ललो कोनी धाड यावे बे! तेमां मारो मित्र गुणधर पण पकडाइ गयो बे! या प्रकारनो ते सुमित्रनो, साद फाटी जाय तेवो पोकार सांजली तथा गुणधरना घोडाने गुणधर विनानो थालो जोइने सदुलोको जयजीत थइ पोत पोतानां गामां जोडी याममार्गे, जेम जगाय तेम जागवा लाग्यां. त्यारें सुमित्र पण तेनी साथेंज उन्मार्गे चाल्यो. अने पती रस्तामां चालतां चालतां कपटथी अत्यंत कल्पांत करवा लाग्यो के, अरे ! मारो प्राणथी पण वल्लन एवो गुणधर मित्र पक डाइ गयो ! हाय हाय, हवे हुं चुं करुं !!! एम थोडी वार घणोज कल्पांत करीने ते सुमित्र, गुणधरना सर्व मालनो पोतें मालिक थयो. धने मनमां खुशीय विचारवा लाग्यो के ॥ गाथा ॥ अवलोइन म्हि ऊं, तू वि ५२ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० जैनकथा रत्नकोष जाग सातमो. हिला सिलि६ दिडीए ॥ श्रालिंगि म्हि कमला, लयाए देवीए जं एवं ॥ १ ॥ अर्थः- अहो ! या निवें मुने विधियें, स्नेहयुक्त दृष्टिथी जोयो होय, एम लागे बे ? तथा वली आाज, लक्ष्मी देवीयें पण मारुं यालिंगन कस्युं होय, एम लागे बे ? अर्थात् आज मारुं नाग्य पण सारं ययुं, ने मी पण मने वरी. नहिं तो माहादरिङ्ग एवा मने अटलुं बधुं धन, विना प्रयासें क्यांथी मले ? ना नज मले. एम हर्षोत्कर्षथी विचार करी चालतो एवो ते सुमित्र, बीजा दिवसना मध्याह कालें करियाणानां गामां तथा सथवारायें सहित एक महोटी पटवीमां ग्राव्यो, त्यां अकस्मात् ते सुमित्रा मित्रवंचकरूप पापेंज जाणें प्रेखो होय नहिं ? एवो तथा धूंवा डाथी श्राकाशमंमलने श्राच्छादित करतो, जय दावानल लाग्यो तेने जोइने सर्व मनुष्यो, तथा शकटोना हांकनारा यति त्रास पामी पोकार करता तूर्णताथी पोत पोतानो जीव लइने नाग्या, त्यारें पढवाडे बीचारा बलदो तथा मालनां सर्वगामां बलीने जस्म थइ गयां पढी ते सुमित्रना सर्व अनुचरोयें जाएयुं जे या सुमित्र जे बे, ते घणोज हीनजाग्य लागे a. कारण के जेना मंदनाग्यने लीधे अकस्मात् दावानलथी घणोज माल बली गयो, तथा वली यापणे पण मरवामांथी मांग मांग वच्या. माटे जो वे पण ते घणुं इव्य थापे, तो पण तेनी चाकरीमां रहेवुं नहिं. एम विचार करी ते सर्व अनुचरो, तेनी चाकरीनो अने तेनो त्याग करी एकमतें स्वेमार्गे चाव्या गया, अने बीजो सथवारो पण खाडो अवलो चाल्यो गयो पढी ते सुमित्र, सदु लोकोना जवाथी एकलो निराधार थयो थको फरतां फरतां एक गिरिनी गुफामां यावी पड्यो, त्यां केटलाएक खूंटारा निल्न बेठा हता, तेणें ते सुमित्रने इव्यना लोजयी पकडी लइ श्राईचर्मथी विंटीने, बांधी राख्यो. धने तेने तपासतां तेनी पासेंथी कांही पण न म लवाथी बीजे दिवसें तेने नूख्यो तरष्यो धक्को मारी काढी मूक्यो. पी त्यांथी ते माहाकष्टने जोगवतो थको वीरपुर श्राव्यो. हवे ते सुशील एवो गुणधर कुमार, ज्यां नंबराना जाड नीचें सूतो हतो, त्यां तेने, सायंकालें मृगया रमवा निकलेला कोइ एक शेखरनामा पत्रपति यें दीवो. त्यारे ते तेनी पासें गयो अने तेने जगाडीने निर्जनवनमां प्राववा वगेरेना सर्व समाचार पूग्या, त्यारे ते गुणधरें पण जे कांही वृत्तांत बन्युं Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४११ हतुं, ते सर्व, यथास्थित कही आप्युं, पड़ी ते गुणधरें पत्निपतिने पूर्दा के हे पनिपते ! तमें मारा सुमित्र मित्रने, के मारा मालनां गाडाने, के बीजा कोइ पण सथवाराने दीठो ले ? ते सांनली पनिपति बोल्यो के हे सुझजन ! अमें तो तमारा कहेलामांथी कोइने दीठां नथी, परंतु ज्यां तमें उतारो कस्यो होय, ते स्थल जो बतावो, तो त्यां तेनो शोध करावं ? अने ज्यांसुधी ते माणासो तमारा सथवारा वगेरेनो शोध करी आवे, त्यां सुधी तमो मारा कूबामां आवी रहो. ते सांजली प्रसन्न थयेला ते गुणधरें पोतें ज्यां उतस्या हता, ते स्थल, अटकलथी बताव्युं. त्यारे पनिपतियें तेना शोध माटे माणसोने मोकल्यां, अने ते गुणधरने पोताने घेर तेडी लावी, तेनुं स्थानक तथा जोजन प्रमुखथी आतिथ्य कयुं. पड़ी ते बेदुजणने परस्पर अनेकवातो करता यावी रात व्यतीत थ गइ. अने ज्यारें प्रनात थयो, त्या ते सुमित्र वगेरे सायनो तथा मालनो शोध करवा गयेला निल्न लोकोयें आवी कह्यु के, हे पनिपते ! ज्यां तमोयें बताव्युं हतुं, त्यांत पास करतां एम मालम पडीके ते सर्वसाथ अने मालनां गामांन आमरस्ते श्रा पर्वतने फरीने वीरपुर तरफ गया. त्यारें पड़ी अमोयें विचार कस्यो के था पर्वतनी आसपास तपास करीयें जोश्य ? ते साथ कोई तेकाणे अमने मले ले ? एम विचारी अमोयें आखी रात ए पर्वतनी बास पास तपास कस्यो, पण त्यां मालनो के कोई माणासनो पत्तो मल्यो नहिं. पली प्रनात थयेथी कायर थर पाना तमारी पासें आव्या. आवां वचन सांजली मनभां अत्यंत खेद पामी गुणधर,कल्पांत करवा लाग्यो के अरे! आशी वात ! ए मारो मित्र, मने सुतो मूकीनेज केम नागी गयो हो ! अने तेनुं हवे झुं थाशे ! मालनां गामांनुं पण झुं थाशे ! तेने हवे क्यां शोधुं ! केम करूं! आ प्रमाणे संत्रमचित्त थकल्पांत करता एवा गुणधरने जोड्ने पन्निपति कहेवा लाग्यो, के हे वत्स ! अटलो बधो शोक शा माटे करो बो ? जुन. तम जेवा साहसिक तथा नाग्यवान् पुरुषनी कदाचित यावी संपत्ति जाती रहे, तो पण झुं ? कां नहिं. कारण के तम जेवा नाग्यवा नने तो पानी तेथी सोगुणी संपत्ति स्वतः मली आवे जे. कयुं के ॥श्लोक। व्यसनागमे न दैन्यं, बद्तरलक्ष्म्यापि नो मदो यस्य ॥ तस्य गृहे वसति रमा, यस्य हृदि साहसं बहुलम् ॥ १ ॥ अर्थः- जे पुरुषना हृदयने Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. विषे घणुंज साहस बे, जे पुरुषने व्यसनना धाववाथी दीनपणुं यातुं नथी, तथा जेने घणीक लक्ष्मी थावाथी मद यावतो नथी, जेना हृदयने विषे घणुं साहस छे, ते पुरुषने घेर, लक्ष्मी जे बे, ते निवास करीने रहे बे ने हे साहसिक ! वली या तमारा सथवारा प्रमुखनो शोध करवा गयेला या मारां माणसो पण कहे ते, के माल सहित तमारो मित्र तथा सथवारो या पर्वत फरीने वीरपुर गया बे. तो हे जाइ ! ते वीरपुर ढुं तमोने थोडा वखतमां तेनी पेठें पर्वत फरया विना पगरस्तेज पहोंचडावीश ? ते वचन सांगली गुणधर बोल्यो, के हे बंधो ! हाल ज्यारें तमारी जेवा मने सु सहायक मल्या बे, त्यारे मारे विषाद थवानो क्यां अवकाश बे ? युंके, संसाररूप विषम एवा विषवृने अमृत फल तो बेज लागे लांबे, तेमां एक तो सुजननो समागम थाय ते, तथा वीजुं वीतरागना धर्ममां प्रीति राखवते. यावुं वचन सांजली पत्रिपति कहे बे के हे जाइ ! हाल तमोयें कयुं के मने तम जेवा सुज्ञ सहायक मव्या. तो हे सुझ ! जंगलमां रहेनारा तथा मनुष्यने लूंटनारा श्रम वनेचरोमां ते वली सुझत्व केवुं ? त्याऐं गुणधर कहे बे के जुन सर्पना माथापर रहेलो जे मणि बे, तेमां विषा पहारत्व नयी शुं ? ना बेज. अर्थात् ते मणिनो निवास तो सर्पना मस्तकपर बे, परंतु ते मणि, सर्पविषनो नाश करे बे. तेम तमो रहो बो, तो वनमां, पण सुइत्व घणुंज बे. या प्रमाणें ते पल्लिपतियें ते गुणधरनी साधें स्ने हाला करी तथा बीजा पण विनोद करी केटलाएक दिवस ते गुणधरने पोताने घेर राख्यो. पढी ते गुणधरें त्यांथी जवा माटे रजा 'लीधी, त्यारें पत्रपतियें कयुंके हे कुमार ! तमें मारा अतिथि हो, माटे या एक रसनुं तुंबडुं बे, ते व्यो. अने हे नाग्यशालिन ! जुन या रसमां एवो चमत्कार बे, के या रसनुं एकज टीपुं, जो हजार मणना त्रांबाना अथवा लोढाना पत्रा पर नाखीयें, तो ते सर्व पत्रुं सुवर्णमय थ जाय ? तेथी जो कदाचित ते साथ तमोनें न मले, तो या रसथी त्रांबानुं सुवर्ण बना वी सुखें करी घेर पहोंचजो अने हवेथी धनोपार्जननो व्यवसाय बोडी देजो. वली हे जाई ! मारां माणसो तमने जे रस्तो बतावे, ते रस्तेज चाव्या जाजो, तेथी वीरपुर यावशे अने त्यां तमारा साथ वगेरेनो तपास करजो. जो ते साथ त्यां गयो हशे, तो तो तमने मलशे ? एम Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४१३ कही ते रसनुं तुंबडं आपी, गुणधरने पोताना सेवकोनी साथें घेर जवा रजा आपी. पनीरस्तामा चालता चालतां ते पनिपतिना सौजन्यने तथा परोपकारने अत्यंत संनारतो ते गुणधर, अनुक्रमें वीरपुर आव्यो. पनी त्यां सुमित्र वगेरेना तपास माटे कोइएक जीर्णशेठनामा वाणियो हतो, तेने त्यां नतस्यो. अने त्यां सुखें करी रह्यो. अने पनी पोताना मित्र सुमित्र प्रमुख सथवारानो तथा मालनां गाडांनो तपास करवा लाग्यो. एक दिवस गुणधरने ते गामना चोकमां दुधाथी जेनुं नदर हुं गयुं ने, तथा जेनी सामु जोतां सदुकोइने दयाज आवे , जेनां रुधिर तथा मांस सूकाइ गयां बे. अने घेर घेर नीख मागतो एवो ते सुमित्र मव्यो. त्यारें गुणधरें तो तेने तुरत उत्तख्यो. परंतु ते सुमित्रं तेने उत्तख्यो नहिं. त्यारे गुणधरें तेने मोटा सादथी बोलाव्यो अने पूडओँ के हे सुमित्र! मने उलख्यो के नहिं ? अने हे नाइ ! तुं मने त्यां गंबराना जाडनी नीचेंज सूतो मूकी क्यां पोबारा गणी गयो ? त्यारें सुमित्रं जाएयु जे अहो ! था तो गुण धर मल्यो ? हवे हुँ एने शो जबाप दनं ? तथा ते तो शरीरमा घणोज तेजस्वी तथा रूपवान् थयो ? एम विचारी कपटथी कहेवा लाग्यो के हे मित्र गुणधर ! हुं पण तमने शोधतो हतो, तेमां तमो मने मल्या, ते घणुंज उत्तम कार्य थयुं ? वली हे प्रियमित्र ! तमें पूछु के मने सूतो मूकी केम जातो रह्यो? परंतु मारे जावू पडद्यं, तेमांमारो को अपराध नथी. केम के आपण ज्यां नतारो कस्यो हतो, त्यां रहेला आपणा साथवाला लोकोयें मोहोटो पोकर कस्यो. के हे गुणधर ! हे सुमित्र ! निनलोको अ मोने लूटे ,मारे , माटे जलदी यावो. ते सांजली तमारा निशनंगना नयथी तमोने उनाड्या विनाज एकदम श्वास नस्यो ढुं त्यां दोडयो गयो. त्यां तो आपणा सथवाराने तथा आपडा मालनां गाडांउने लूंटती एवी एक निननी धाड. दीती. त्यां में आपणा सथवारामांथी उत्तम तथा शूरवीर एवा पुरुषोनी सहाय लश्ने ते निनलोको साथै मोहोटुं यु६ कयुं. तेमां निनलोकोये ते साथवाला शूरवीर पुरुषोनो नाश कस्यो. अने मने थापणुं सर्व करियाणुं लूंटी लश्ने बांधी मूक्यो, अने पनी ते सर्व, त्यांथी मने तथा मालने लइ पोतानी पर्णकूटी आव्या. हवे ते जिन्नलोकोने आपणुं घ एंज इव्य मत्युं तेथी उन्मत्त थयेला एवा ते निनोयें महोटो नत्सव कर Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वानो प्रारंन कस्यो. तेवामां वली तेज निन्नलोकोना वैरी एवा बीजा निनोनीधाड तेने लुटवा आवी. त्यारे वेदु धाडयोने परस्पर यु६ थयुं, तेवामां ढुं समय जोइ त्यांथी बुटीने मारो जीव लश् नागी गयो. पड़ी नूख अने तृपाने सहन करतो थको आपने शोधवा माटे ए वनमां घणोज जम्यो. अने वन वनमां शोधतो शोधतो अनुक्रमें था वीरपुर गामा श्रावेलो . अने बाहिं पण तमने आव्या सांजली तमने जोवा माटे या चोकमां फेरा खातो हतो, तेवामां तो तमोयें मने बोलाव्यो. हवे हे नाइ! पापणे आवी रीतें पुःखी थइ धन कमावा माटे परदेश निकल्या, ते करतां जो घेरज रही थापणुं गुजराण चलाव्युं हत, तो घणुंज सारूं थात? या तोश्रापणने धन पण न मट्यु, अने हेरान पण थया. वली हे मित्र! तमोने श्रा प्रकारना सर्व पुःखमां मेंज नारख्या ले. हवे ते तो जे थवा काल हतुं, ते थयु, परंतु हालमां आपण वेदु जीवता मट्या,ते घणुंज सारं थयु, कारण के बावा नयंकर वनमां माणस कोई दिवस जीवतुं रहेज नहिं.या प्रकारनुं ते सुमित्रनुं बोल सर्व साचुं मानी गुणधर,सुमित्रने पोताने उतारे तेडी लाव्यो अने तेने जमाडीने रुडां वस्त्र पहेरवा थाप्यां. तदनंतर ते कपटीनी पासें न नावथी पल्लीपतियें थापेला रसना तुंबडा आपवा वगेरे पोतानुं सर्व वृत्तांत क ही प्राप्यु. वली पण कमु के हे मुमित्र आपणां वाराण अने करीयाणां वगेरे ना जे गामां लूंटाणां , तेनो तमारे कांही पण क्लेश करवो नही. कारण के या रसतुंबडाना रसथी ते सर्व आपणे नवां बनावी लेगुं ? ते सांजली कपटनाटक करणमा पटु एवो ते सुमित्र बोल्यो के दवे बापडे वाराण वगेरे पदार्थोनो आमंबर कां करवोज नहिं. अने हवे तो बापणे श्रा रसतुंबिका लश्ने घेरज जावू! त्यारे गुणधर बोल्यो के वाशण वगेरेना महोटा आमंबर विना साव निर्धन जेवा थइ देश तरफ जतां मने तो ला जावे ? त्यारें सुमित्र बोल्यो के आपणे या रसना तुंबडाने आहिंज मूकी निजेहाथी परदेशने जोयें? कारण के थापणथी वारं वार पा पर देश अवाय नहिं. कह्यु के के ॥ गाथा ॥ माय पिय पुत्त जयणी, नहा धूया य बांधवा मित्ता॥ तदुर्मिन नेहनडिया,न गंतु सक्का विदेसम्मि॥१॥अर्थःमाता, पिता, पुत्र, नगिनी, नार्या, पुत्री, बांधव, मित्र, नानां बोकरां, ते सर्वना स्नेहना अवरोधथी प्राणी जे , ते विदेश जवाने समर्थ थाता नथी Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४१५ ॥१॥ आ प्रमाणे पोताना मित्र सुमित्रना आग्रहथी, गुणधरें त्यांथी पा बु विदेश जq कबूल कयुं. अने ते रसतुंबिकाने ते रसनुं माहात्म्य कह्या विना पोते ज्यां उतस्यो हतो त्यां ते जीर्णवणिकने घेरज मूकी पोताना कुमित्र एवा सुमित्र सहित ते नगरथी बाहेर निकटयो. पडी मार्गमा चालता चालतां सुमित्रं विचाङ्गु जे, ते जीर्णवणिकने घेर मूकेली रसतुंबिकाने मारे स्वतंत्र रीतें लश् लेवी, परंतु या गुणधरने मारी नारख्या विना ते काम बनशे नहिं ? तेम विचारी ते सुमित्रं तेने मारी नाखवाना उपाय शोधवा मांड्या. परंतु तेने काही पण उपाय मल्यो नहि. त्यारें सुमित्र कहेवा लाग्यो के हे मित्र! आपणे तामलिप्ति नामा नगरीयें जायें,अने महोटा समुछ्ने तरी. त्यां वेपार करीघणुंज इव्य कमाइये? कवि कहे डे के अहो! जे धूर्न पुरुषो बे, ते मुखीं मिष्ट,अने हृदयमां उष्ट होय .अर्थात् तेनी वाणीमां तो चंद नथी पण शीतलता होय ने अने तेनुं हृदय कातर समान होय डे, माटे धूर्त पुरुष कोथी जीत्यां जाय नहिं. हवे ते सुमित्रनां वचन सांजली गुणधर क हे.के हे मित्र! तमें कहो बो, ते खरी वात ,पण धनविना आपणे ताम लिप्ति नगरिये जइ युं करियें? त्यारे ते उष्ट सुमित्र बोल्यो के त्यां तामलिप्ति नगरीमां तमारे नामें घणुंज इव्य मलशे? एम कही वाहाणमां बेसी वेदु जण त्यांथी तामतिप्ति नगरीयें पहोंच्या. तेवा समयमां ते नगरीने विषे कटाह हीपथकी माल नरेलां घणाक वाणो अाव्यां हतां, त्यारे कौतुक जोवाने माटे ते बेदु जण त्यांगया, एवामां तो ते गुणधरने उत्तम आकतिवालो जाणीने ते वाणना अधिपतियोयें तेने घज मान आप्यु, अने कह्यु के हे उत्तम पुरुष ! तमो कोई व्यापारी जेवा लागो बो, माटे या अमारो माल तमेंज व्यो. ते सांजली ते सर्व मालन कांक व्य ठेरावी ते सर्व माल पोतेंज लीधो, अने ते वाणना अधिपतियोने कह्यु के, जु. आ सर्वमालनो धणी हुँ ,अने आपणे तेरावेला इव्यना धणी तमें बो? ते सर्व वात ते मालधणीयोयें कबूल करी. त्यां तो ते तामलिप्ती नगरीना वेपारी आव्या, अने तेथे आवी पूब्यु के या सर्वे वाणोमां माल कोनो कोनो ने ? त्यारे ते सर्व मालधणीयोयें गुणधरने बताव्यो अने कह्यु के श्रा सर्व माल, आ पुरुषनो .ते सांजली तेनी साथें मूव्य करी सर्व माल गुण धरें पोताना नामथी वेची तेनां नाणां वसूल करी, पूर्व तेरावेलां नाणां ते Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. माल धणीयोने थापी दीघां, एम करवाथी ते गुणधरने एक करोड टका हांस लना मव्या. ते ल गुणधरें सुमित्रने कह्यु के हे मित्र! हजी आपणे गाममां तो गयाज नथी, अने आहिं समुना कानांपरज बेयें, त्यां तो आपणने श्रा समुज प्रसन्न थश्ने एक करोड टका आपी दीधा,अने हवे वलीया गल तो जे मले, ते खरूं? एम कही ते सर्व इव्य सुमित्रने याप्यु. एटलं इव्य मलवाथी पण असंतुष्ट एवो ते सुमित्र, गुणधरने कहेवा लाग्यो के हे मित्र ! आ करोड टका जे मया , तेनो माल लश्ने आपणे चिन बंदर ज वेचीयें,तो त्यां बमणो लान थाशे ? ते सांजली गुणधरें विचाऱ्या जे यहो ! अटला व्यथी पण था सुमित्रनी तृष्णा पूर्ण थइ नही. माटे मारे था सुमित्रने तेनी साथी पण अधिक व्यनी प्राप्ति करी आप। ? एम विचारी ते व्यनां, चीनबंदरमा खपवा योग्य करियाणां ल वाण जरी, पाबा ते वेद जण. वाणमां वेसीने चाल्या. ते अनुक्रमें चीनही पमां घाव्या, त्यां पण तेने ते करियाणां वेच्याथी घणोज लाज ययो, त्यारे ते व्यनां वली करीयाणांला पाना तामलिप्ति नगरी तरफ चाल्या. ने घणोज समुश् ननंघन कस्यो. हवे चालता चालतां ते उष्ट एवा सुमित्र विचाओँ जे अहो ! आ गुणधरें माल घणोज खरीदेलो , ते माल, तथा तामलिप्ति नगरीमा जीर्णशेठने त्यां मूकेली रसतुंबिका ,ए सर्व, मने नि श्चिंतरीतें तो क्यारें मले? के ज्यारें आ गुणधर,रातमां लघु करवा नसे, त्यारें तेने समुश्मां फेंकी दशमारी नात्यारें मले ? एम विचार करी ते सुमि त्र वाणमां रातें जागतोज सूतो,अने ज्यारे मध्यरात्रि थर, त्यारे ते गुणधर लघु करवा उग्यो. अने ज्यां तेने लघुकरवा नग्यो जाण्यो त्यां तो ते सुमि त्र, तुरत निसमांथी उती तेने धक्को मारवा आव्यो, तेवामां तो तेनो पोता नोज पग खसी जवाथी ते समुश्मां पडी गयो. कारण के मोहोटुं जे पाप बे, ते तुरत फले . अने जगतमां पण कहेवत ने के "जे खोदे ते पडे" अने जीवने कर्मने अनुसारेज फल मले ,वली जेवं कर्म होय ,तेवीज बुदिपण थाय डे. परंतु बुद्धिमान पुरुचे अत्यंत विचारी कार्य करवू.हवे ते सुमित्र रातमां पडी गयो, तेनी कोइने खबर पडी नहिं. अने ज्यारेंप्रनात थयो, त्यारे गुणधर, सुमित्रने जोवा लाग्यो, परंतु ते सुमित्रने क्यांश दीतो नहिं, त्यारेंतेणें वाणमां बेठेला सदुकोश्ने पूर्षु के, हे नाश्यो! तमोयें कोयें मारा Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र ४१७ मित्र सुमित्रने दीठो ? त्यारें सदु कोइ बोल्या के ना, अमने खबर नथी. त्यारें तो ते अत्यंत क्वेश पामी विलाप करवा लाग्यो, के अरे! आ मारा प्रिय मित्रनो नाश कोणे कस्यो ! अरे यावं महोटुं पाप कोणें कह्यु ! अरे तेनो नाश ते केम थयो! अरे आवा प्राणवन्नन मित्रनो संगम करावी पाडो तेनो विरह करावनार विधिने पण धिक्कार हजो. अरे मित्रमुखनुं दर्शन करी ढुं मारी यांख्योने सुखी करीश ? एवी आशारूप कुसुमने कर्मयोगथी उत्पन्न थयेलो आ विरहानल, बाली नाखे ! अरे ए मारा सुमित्र मित्र विना घेर जश् सगां वाहालाउने हुँ झुं मुख देखाडीश ! माटे हवे ते मित्र विना घेर जश् सदु कोइने मुख देखाडवू, तेथी पा समुश्मां पडी मुबी मरवुज सारं ! एम विलाप करीने ज्यां ते गुणधर, समुश्मां पडवा तत्पर थयो, त्यां तो तेना अनुचरोयें तेने पडी राखीने का, के हे श्रेष्ठिन् ! या संसारने विषे जेनो संयोग थाय , तेनो वियोग पण थाय , अने जेनो वियोग थाय , तेनो पाठो संयोग पण थाय .जेम घटमालमां बांधेला घडाउमां जल जराय ,अने पाचुं वली ग्लवाय डे,तेम आ संसाररूप घट मालमां मनुष्यरूप घडाउँमा कर्मरूप जल नराय , अने पाबु वली तलवाय जाय जे. तो कर्माधीन पडेला प्राणीनो संयोग तथा वियोग थया विना रहे तोज नथी, ते माटे मित्रना वियोग थवाथीधीर पुरुपो जे ,ते अग्निमां पडता पतंगनी पर्नु समुश जलमां पडी मरण पामता नथी. कारण के जे जीव तो नर होय डे, ते हजारो सुखने पामे ले. अने हे जाइ ! मित्रवियोगज कुःखथी कदाचित् कोइ पुरुष मरण पामे, तो तेने मरणांते ते मित्र मजे ले गुं? ना मल तोज नथी. अने जो ते जीवतो होय , तो दैवयोगें कदाचित् तेने ते मित्र मले पण .माटे हे श्रेष्ठिन् ! ते संयोगने अने वियोगने देवाधीन मानीमरवू नहिं. आवां ते पोताना अनुचरोनां वचन सांजली बोध पामेलो गुणधर, पोताना मित्रना गुणगणनुं मनमां स्मरण करतो करतो तामलिप्ति नगरीयें श्राव्यो. त्या सर्व माल कांग पर उतारी ते सुमित्रनो समुना सर्व कांगा पर तपास कराव्यो, परंतु तेनुं शब पण मत्युं नहिं. त्यारें खेद पामेला ते गुणधर, सर्व करियाणां वेची नाखी थोडांक मणासोने साथें लश् त्यांथी पाठो वीरपुर नगरें थाव्यो. त्यां आवी जेने त्यां रसनी तुंबडी मूकी हती, Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते जीर्णशेठने घणुंज धन आपी ते रसतुंबिका लश्ने अनुक्रमें पोताना धनपुर नामा नगरमां आव्यो. अने त्यां माता पिताना चरणमां नमन करी स्व जन, मित्र, झाति प्रमुखने मली अत्यंत संतोष पाम्यो. अने राजा वगेरेनुं मोहोटुं मान पाम्यो. हवे ते गुणधर, या प्रकारे सर्व रीतें सुखी , परंतु पोताना मित्र सुमित्रनुं मनमां यहोनिश ध्यानज कस्या करे , तेथी तेने वनमा के, मनुष्यना समागममां के, कोई पण कार्यमां किंचिन्मात्र चेनज पडतुं नथी. ते गुणधर एक दिवस पोताना उद्यानमा गयो, त्यां को एक सुधर्मानामा मुनि वेता हता, त्यारे तेमनी पासें जश् नमन करी त्यां उप देशना श्रवण माटे बेतो. त्यारे ते गुणधरने जोइने मुनियें झानथी जाएयुं जे या गुणधर, इष्ट एवा सुमित्रना विरदनुःख कस्या करे ? एम जाणी ते गुणधरने कह्यु के हे सौम्य! मोहमूढ थश्ने ते उष्ट एवा सुमित्रनो से शा माटे परिताप करे ? तुने प्रावो शोक करतो जोइने मने तो एम लागे ,के तुं सुमित्रना अने कुमित्रना गुणने जाणतोज नयी? हे गुणधर ! तारो खरो मित्र तो जे तुने वनमा पनिपति मल्यो हतो तेज ने.कारण के जेणे तारुं तेवा जयंकर वनमां रक्षण कयं ? तथा वली रसतुंबिका पण यापी. अने हाल जेनो तुं अहोनिश शोक करे , ते सुमित्र तो महाअष्ट हतो, जेणें तारो वनमा त्याग कस्यो, तथा तारा मालनो धणी थयो. अने ते माल पण वनमा बली गयो, त्यारे ते पाडो तुने मली कपटथी समजावी समुप्रस्ते लइ ज तेणें तारी पासें वेपार कराव्यो. वली ते व्यनो तथा रसतुंबिकानो मालिक थवा माटे तुने समुश्मा नाखवा तैयार थयो, त्यां पोताने पा– पोतेंज पग खशी जवाथी समुश्मां पडी मुबी मूवो. आवीरीतें उष्टना संगथी तुं घणोज कुःखी थयो बगे. तो पण ते उष्टमित्रनो शोक करे ? ते वाक्य सांजली गुणधर बोल्यो के महाराज! हुँ तो तेनी पर घणीज प्रीति राखतो हतो, ते बतां पण ते मारी साथै वैरीसमान केम वरततो हतो? तेने अने मारे कां पूर्वजन्मनो वैरनाव हो ? ते सांजली मुनि वरें तेना पूर्वजन्मनो सर्वव्यतिकर कह्यो, तेमां कयुं के जिनप्रिय श्रावकनो अवतार तुं बो, अने मोहननो अवतार ए थयो हतो, अने ते मोहन कपटथी धर्म पालतो हतो, अने तेनो अवतार सुमित्र होवाथी कुःखी Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ४१ थयो, धने जिनप्रिय धर्मिष्ठ हतो, अने तेनो अवतार तुं होवाथी सुखी थयो बो. ने पूर्व जन्ममां तारी सायें तेने वैर होवाथी ते या जन्म मां पण तारो मित्र थइ तुने खराब करवा इडतो हतो, नेतुं धर्मिष्ठ तथा साम्यनाववालो होवाथी तेनुं तुं सारुं करवा इतो हतो. अने पूर्वनवें तारे धर्म सहाय होवाथी या जावमां सर्व संपत्ति तथा मान स्वतः प्राप्त थयुं बेने ते पूर्वनवें धर्मछेपी होवाथी जन्म जन्मने विषे घणोज दुःखी था. कहेलुं बे के ॥ श्लोक ॥ रणेऽवेिंगणेऽरीणां, स्मशाने सदने वने ॥ धर्म मित्रं श्रितं पाति, शैले व्याले जलेऽनले ॥ १ ॥ धर्मः सुप्तेषु जागर्त्ति, साल स्येषु प्रयत्नवान् ॥ स्थितानां सविधस्थायी, प्रस्थितानां सचाग्रणी ॥ १ ॥ अर्थः- रणमां, समुमां, शत्रुसमुदायमां, स्मशानमां, घरमां, वनमां, शै लमां, जलम, अग्निमां, याश्रय करेलो जे धर्म बे, ते जीवनुं रक्षण करे ॥ १ ॥ कदाचित् धर्मिष्ठ जीव, जो सुइ रहे बे, तो पण तेनो धर्म तो जागतोज रहे बे. कदाचित धर्मिष्ठ जीव खालसमां रहे बे, तो पण तेनो धर्म तो प्रयत्नवान्ज रहे बे, कदाचित् धर्मिष्ठ जीव, बेसी रहे बे, तो पण तेनो धर्म तो उद्योग करतोज रहे बे, अने वजी धर्मिष्ठ पुरुष, ज्यारें प्रयाण करी ग्रामांतर जाय बे, तो तेनी पहेलां धर्म प्रयाण करी ग्रामांतर जाय बे. माटे हे सुंदर ! विश्वोपकार करणरसिक एवा श्रीधर्माचार्यै बता वेला एवा जिनधर्मने विपे यादवान् या. अने हे गुणधर ! जे मूढप्राणीयो ते गुरुपर देव राखे बे, तेणें सद्धर्मनो ने सुदेवनो पण छेपज कयो, एम जाणं. अने ते जीवो सन्निपातिकप्राणीनी पठें मरण पामे बे. हे नाइ ! जो पोतानी आजीविकाना नाश यवाना जयथी ते मोहनें राजाने मिथ्यात्वनो उपदेश को, यने ज्यारें जिनप्रिय श्रावकें तेने खूब सम जाग्यो, त्यारे तेणें तेनी सायें पण छेप करखो, अने ते पढी साधुनी पण घ ीज निंदा करवामांमी, तेथी तेने तेवा क्लिष्ट कर्मना उदययी मिथ्यात्व बंधाएं. ते नवार्णवमां नरक तिर्यग्नेविषे जम्याज करशे अने ते कदाचित् नरजन्मने प्राप्त था, तो पण दुःख, दारिड़, रोग, शोक, तेने जोगवशे, परंतु तेना दुःखोनो पार श्रावशे नहिं. यावां वचन मुनिनां साननी गुणधर बोल्यो के हे जगवन् ! ते सुमित्र हाल वारिधिने विपे पडी मरण पामी क्यां अव Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तस्योहशे? त्यारें गुरु बोल्या के हे गुणधर! समुश्मां पडेलो एवो ते सुमित्र, जलना कनोलथी घसरडातो अने मोहोटा मत्स्योयें विदायुं के शरीर जेनुं एवो थको मरण पामीने सांकेतपुरमा एक दरिडी ब्राह्मणने घेर पुर्ग ता नामा ब्राह्मणीना उदरने विपे दुष्कर्मरूपराजाना नटोयें पुत्रपणायें नाख्यो. ते एक वर्ष पर्यंत तेना उदरमा रहीने पनी अंधत्वरूपदंमें युक्त थको मोहोटा कष्टयी जन्म्यो. त्यां तेनुं केशव एवं नाम पाड्यु. ते कुक मंदोपथी खस, कास, श्वास, चदुरोगादिक बदुवेदनायें करी युक्त ने पोताना माता पितान नछेग करतो थको हाल ते महोटो थाय . आ प्रकारनो ते मोहननो पापसंपर्क सांजलीनयनांत एवा ते गुणधरें पोताना माता पितानी अाझा लश्ने ते महामुनिना चरणने विपे नमन करी तेनीज पासंथी कर्मकंदनी उपर कुदाल सरखा श्रामण्यने स्वीकायं. पनी रूडीरीतें जाण्यो बे जैनसिहांत जेणें अने शुद्ध रीतें चारित्रने धारण करनार एवो ते गुणधर, गुरुपादना प्रसादथकी मनोहर एवा सूरिपदने प्राप्त थयो. ते ढुं पंज. एम कहीने ते पुरुषोत्तम राजाने कहे , के हे पुरुषोत्तमराजा ! जे में वीरांगदराजा कह्यो, ते हाल तुं पुरुषोत्तम राजा थयेलो बो.ते पूर्व नवमां साधुना अत्यंत वैय्यात्यथी थयेला पुण्यना सुखोने शुक्र देवलोकने विपे नोगव्यु , अने पाबां शेष रहेला पुण्योने,ा जन्ममां राज्यसुखथी नोगवे ने. माटें पूर्व जन्मनी पढ़ें हाल पण तुं चारित्रने अंगीकार कस्य. अने हे पुरुषोत्तम! तारा पूबवाथी में तुने जेना संगथी था कपिंजल.पुरोहित ना स्तिक थइ गयो , ते तेना मामा अंध एवा केशवना पूर्वजन्मनो सर्व व्यति कर कही बताव्यो, तथा ते प्रसंगें तारा अने माहारा पण पूर्वजन्मनी वात कही बतावी. या प्रकारनां मुनिनां वचन सांजली उत्पन्न थयुं जाति स्मरण झान जेने एवो ते सांकेतपुरपति पुरुषोत्तम राजा, मुनिने नमन करी कहेवा लाग्यो के, हे जगवन् ! आ जे सर्व व्यतिकर कह्यो, तेनी यथार्थ मने खबर पडी. अने हे नगवन्! या आपना उपदेशथी हुँ अत्यंत संतोष पाम्यो . वली आप शरणागत जीवना पालनमां महोटा उत्साहवाला बो, तेथी यापनी पासें विनति करी मागुंडं, के हुँ मारा राज्यनो त्याग करी या पनी पासेंथी दीक्षा लेवा हुं हुं, तेथी मने दीक्षा यापो.आम ज्यां कहे डे, Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. ४२१ त्यां तो त्यां बेठेला कपिंजल पुरोहितने पण ते गुरुवर्यना उपदेशयी जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयुं, तेथी ते बोल्यो के हे महाराज ! हाल में मारा डुर्नयनुं फल दी. माटे हे जगवन् ! हवे मने दुःखथी काढो, काढो. ते सांजली पुरुषोत्तम राजा बोल्यो के हे मुनीं! या कपिंजल कहे बे, के में दुर्नयनुं फल दीठं, ने हवे मने दुःखथी काढो काढो. तो हे महाराज ! ए दुर्नयनुं ते केवं फल दीतुं बे ? ते कहो. ते सांननी मुनि कहे बे के हे राजन् ! सांजल. खाज गाममां या जे हाल कपिंजल बे, ते पूर्वे शिव देव नामा श्रावक हतो, ते प्रकृतियें प्रांजलस्वनावी, अने अणुव्रत, सामा विक, पौषध, तेने विपे अत्यंत रुचिवालो तथा ब्रह्मचर्यवान हतो, परंतु तेने श्राज ग़ाममां रहेनारा पूर्वोक्त मोहननो संग होवाथी ते मोहननी करेली मोहजालमा फसाइ जड़, ते मोहननी पेठेंज यतियोनो निंदक, सामायिकने न करनार, गुरुवचन पर अविश्वासी, साधुवंदनमां ना दरी, तथा साधुने अन्न, पान, वस्त्रने न आापनार, ते साधुनां वैय्या वृत्त्य प्रमुख करवामां श्रनादरी, श्रावक न बतां श्रावकपणानो मोल घालनार, तथा करेला पापनी आलोचनाने न करनार, साधुनी या ज्ञानो विराधक थयो तेथी ते शिवदेव मरण पामी, प्रथमकिल्विपियो देव थयो. त्यां पण ग्य कर्मोदयथी तेने समृदिवान एवा सर्व देवोयें पोतानी पंक्तिथी बाहार कस्यो, तेथी ते त्यां पवित्र एवा स्मशानादिक मां घोक काल परिभ्रमण करी त्यांची चवी, चंपानगरीने विषे चांगाल थने वतस्यो. त्यां पण पंचेंप्रियप्रालीना नाश करवारूप पापपुंजें करी पाठो धूमप्रजानामा पांचमी नरकभूमिने विषे नारकी थइ श्रवतस्त्रो. त्यां पण घणांज दुःखो जोगवीने पाठो था गाममां या कपिंजलनामा पुरो हित थर अवतरेलो बे हवे या कपिंजलने पोताना मामा केशव साथै प्रीति य, तथा तेनो उपदेश पण मान्यो, तेनुं शुं कारण ? तो के या केशवनो जीव ज्यारें मोहन हतो, त्यारें या कपिंजलनो जीव, शिवदेव श्रावक हतो, तो त्यां पण ते बेदुने परस्पर प्रीति हती. तथा ते शिवदेव मोहननो उपदेश मानतो हतो. अने हवे ज्यारें ते मोह ननो जीव, कपिंजलनो मामा केशव थयो, त्यारें शिवदेवनो जीव या Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कपिंजल पुरोहित थयेलो . तो ते वेहुने आ जन्ममां पण पूर्वान्या सथी परस्पर प्रीति , तथा पूर्वनी पढ़ें पोताना मामा केशवनो उपदेश आ कपिंजल माने ते. अने ते शिवदेव जे हतो, ते जुस्वनावी हतो, वली ते शिवदेवनो जीव हाल कपिंजल थर अवतस्यो बे, तेथीज हाल या कपिंजल पोताना जातिस्मरण शानथी बोध पामेलो . यने ए केशव जे , ते पूर्वे मोहनना नवमां गुरुशेही होवाथी तीवानिनिवेश मिथ्या त्वथी दुःखित थयो थको नवार्णवने विपे घणोक काल जटक्या करशे ॥ गाथा ॥ सप्तावेण वहंति संयमनरं जे जत्तिए सत्तीए, नाणुळेय तवोवहाण विहिणा तिजुन्नई कारिणो॥ कुवं ताण गुणीण नाणमणिसं ही लंति जे बालिसा,अप्पाणं नरयानले मुहु मुटु पाउंति मूढा मुहा ॥ १ ॥ कामारंन परिग्गहग्गहपरा जोगोवनोगविणो, जे बंनन्वय धारिणे मुणि वरे होतंति मोहातुरा ॥ ते कांगंध य कुछ मूट बहिरा दारिदियो रोगियो, संसारे सुरं सरंति समयं, हिलिङमाणा जणा ॥ २ ॥ अर्थः- सनावें करीने जे संयमनारने वहन करनार, पोतानी नक्तियें अने शक्तियें करी विधिथी ज्ञानोद्योत, तप, नपधान, तथा तीर्थनी उन्नति तेने करनार, गुणवान्, ज्ञानवान् एवा मुनियोनी जे बालीश पुरुषो, अहोनिश हेलना करे , ते पुरुपो, वारंवार पोताना अत्माने तथा नरकरूप अनलने विषेज नाखे ने, ॥ ॥कामारंन वगेरे परिग्रहने ग्रहण करनारा, जोग अने नपनोगना अर्थी एवा जे पुरुपो ते मिथ्यात्वमोहयुक्त थका जे पुरुपो, ब्रह्मचर्य व्रतने धारण करनारा एवा मुनिवर- हेलन करे ठे, ते पुरुषो, काणा, अांधलां, ढूंटा मूंटा, बहेरा, दरिडी, रोगी, निरंतर हेलना पामता थका घणोक काल संसारने विपे फस्या करे ॥ २ ॥ वली हे राजन् ! जे गुरुना अवर्णवाद बोले, ते अर्हन्मार्गने पामीने पण नवार्णवमां मूवे , ते माटे विवेकी जीवें गुरुतत्त्व- आराधन कर.केम के गुरु विना ा नवा ब्धिना कुःखोनो पार आवतो नयी या प्रकारनी देशना सांजलीने ते पुरुषोत्तम राजायें पोताना पुरुपचं नामा पुत्रने पोतानी राज्यगादीपर वेसारी कपिंजल पुरोहितादिक नी साथे परमप्रमोदें कररी प्रव्रज्याने ग्रहण करी. हवे ते कनकध्वज राजा पण आ प्रकारनुं ते सर्वनुं चरित्र सांजली तथा जोइने विस्मय पामी वे Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४२३ हाथ जोडी ते मुनींने कहेवा लाग्यो, के हे जगवन् ! ९ पण मारा जय सुंदर नामा लघु बांधवने मारो राज्यनार सोंपी आपनीज पासेंथी संसार समुश्तरणमा पोत समान एवा चारित्रने स्वीकारीश ? ए सांजली मुनि कहे बे, के हे राजन् ! ठीक कह्यु केम के तमारी जेवाने तो बालकना करेला धूडना गृहसमान आ राज्यथी विराम पामी मुक्तिरूप राज्य करवुज नचित . हे नृप ! कोटि इव्यना वेपार करनारने कोइ दिवस काचना कटका लेवानी इबा थाय ? ना नज थाय. वली रत्नानरणोथी नरपूर एवा ना ग्यवानने कोइ दिवस पित्तलना अलंकार पहेरवानी इला थाय ? ना नज थाय. तेम शमसाम्राज्यना अभिलाषी एवा पुरुषोने आ राज्यनी बा थाय? ना नज थाय. आवां गुरुनां वचन सांजली ते कनकध्वज राजा, पोताने गाम आवी सामंत, मंत्री तेमनी समीप, पोताना नानाना जय सुंदरनामा युवराजने कहेवा लाग्यो के हे वत्स! तुं आ राज्यने ग्रहण कस्य, कारण हवे मारी संयम लेवानी इला थवे. ते सांजली जयसुंदर कुमार बोल्यो के हे महाराज! आपने आईं बोल, योग्य ? वनी पोता ना अंतरंग मित्रने तथा नाश्ने आ राज्यरूप बंधीवानामां नारखीने आप जेवा उत्तम पुरुषने पलायन करवु उचित ? अने हे प्रनो ! संसारना स्व रूपने जाणी गुरुना वचनामृत तत्त्वने पीने विपतुल्य एवा विपयोने विपे आपनी पढ़ें माझं पण मन आनंद पामतुं नथी. हे ज्येष्ठबंधो ! जानुं गुं कढुं ? परंतु स्वहितैषी एवो ढुं पण आपनी सार्थेज दीक्षाने ग्रहण करीश. हवे मारे पण यापनी जेम कांइ राज्यनी जरूर नथी. आ प्रका रनो जयसुंदर कुमारनो पण दीक्षा ग्रहणनो निश्चय सांजलीने ते कनक ध्वज राजायें राज्यलक्षणलहितांग एवा पोताना कनककेतुनामा कुमा रने तुरत राज्यगादी पर वेसायो. पत्री कनकध्वज तथा जयसुंदर ए वेदु नायें, मंत्री, सामंत, ममलेश्वर वगेरेनी साथै ज्यां गुरु वेगाले, त्यां वनमा ज गुरुने प्रणाम करीने दीक्षा लीधी. त्यारे कनककेतु राजा, पोतानी इबा प्रमाणे दीदामहोत्सव करी ते नां चरणारविंदनुं वंदन करी पिताना अने काकाना विरहःखथी दुःखित थयो थको घेर आव्यो. हवे ते कनकध्वज तथा जयसुंदर ए बेदु मुनीश्वर, निर्मलचारित्रने पालनार, तथा पांच समिति, त्रण गुप्ति तेने धारण करनार, शान बने Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. चारित्र तेना आराधक थया ॥ श्लोक ॥ तौ शुक्षसिमांतसुधां पिबंतो ती त्रैस्तपोनिश्च तमःदिपंतौ ॥ निर्दोषचुक्तौ गुरुपादनक्तौ त्रिगुप्तिगुप्तौ सुयति त्वमाप्तौ ॥ १ ॥ रत्नत्रयोपासनसावधानौ, जितेंडियौ मोहजयैकतानौ ॥ सुपर्वणामप्यनिवंदनीयौ, जातौ मुनीनामपि पूजनीयौ ॥२॥ हेमंते तिष्ठत स्तो निरशनवसनौ कानने कंदरे वा, कायं चातापयंतौ ज्वलजपलतले ग्रीष्म काले कराले ॥ वरिने गुहादौ सपदि निविशतः कूर्मवजुप्तगात्रौ, वीरौ धी रौ सुमेरोरपि र विमहसौ वारिधीशाजनीरौ ॥३॥ अनुत्तरे सहिपये प्रधानके, मृत्वा गतौ तौ विजये विमानके ॥ हात्रिंशद ब्धिप्रमितायुषी सुरौ, जातौ वि शुद्धावपि झाननास्करौ ॥ ४ ॥ अर्थः- ते बेदु मुनि, शुभसिक्षांतरूप अमृतना पान करनार, तीव्रतपोयें करी पापने नाश करनार, निर्दोष आ हारने जोजन करनार, गुरुपदनी जक्ति करनार, त्रण गुप्तियें करी गुप्ता, शुक्ष्यतिपणाने प्राप्त ययेला ॥ १ ॥ झान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रण रत्नने पालन करवामां सावधान, जितेंघिय, मोहराजाना जय करवामां तत्पर, देवोने पण अनिवंदनीय, तथा मुनियोने पण पूजन करवा योग्य एवा ॥ २ ॥ ते बेतु ऋषियो, शीतकालने विपे वनमां तथा पर्वतनी गुफा उमां अशन तथा वस्त्र तेनो त्याग करी रहे ले. अने ग्रीष्मकालने विपे जयंकर एवा सूर्यना तापथी तपेला पापणपर बेसी पोतानी कायाने त पावे . तथा वर्षाकालने विपे कूर्मनी पढ़ें पोताना हस्त पादादिकने गोप वीने पर्वतनी गुफाप्रमुखमा प्रवेश करीने रहे . या प्रकारे परिसह सहन करवामां वीर, अने मेरुपर्वतथी पण धीर, सूर्यनी कांति समान में कांति जेनी अने समुश्थी पण गंजीर, शुद्ध एवा झाने करी जास्कर समान ते बेदु मुनियो, चारित्र पाली, अनशनव्रत अंगीकार करी, समाधिमरणथी मरण पामीने जेमा अनुत्तर सुख जोगवाय ,अने अतिउत्तम, एवा विजय विमाननेविपे बत्रीश सागरोपमने आनखे अढारमे नवें अहमिदेव पणे मित्र थश्ने अवतस्या ॥ इति पृथ्वीचंगुणसागरचरित्रे श्रीजयसुंदरमुनिकथा युक्त कनकध्वज जयसुंदर चातृयुगलवर्णननामा नवमः सर्गः संपूर्णः ॥॥ आहिं शंखराजा अने कलावतीना नवथी मामीने पृथ्वीचं अने गुण सागरना अढार जव संपूर्ण थया ॥ १७ ॥ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागर, चरित्र. ४२५ ॥अथ ॥ ॥ दशमसर्गस्य बलावबोधः प्रारज्यते ॥ ॥ जीयासुः सजौरिवाजौ,श्चतुश्चरणधारिणी॥सदैव विबुधानां या, पुण्य पीयूषवर्षिणी ॥१॥अर्थः-उत्तम एवा पुण्यरूप पीयूषने दूजती तथा चारचर एने धारणकरनार जाणे कामधेनुज होय नहिं ? एवी जे अरिहंत जगवाननी वाणी रूप गाय, ते निरंतर जयवंती वों. जेम कामधेनुने चार चरण , तेम अरिहंत नगवाननी वाणीरूप गाथाने पण चार चरण ॥१॥आ प्रमा णें मंगलाचरण करीने कवि कहे , के ते कनकध्वज राजा, विजयविमानमा आढारमे नवें अहमिं थयो, अने त्यांथी व्यवीने क्यां अवतस्यो ? ते कढुं . हवे संपत्तियोथी स्थल स्थलने विपे सुशोनित ले नद्देशो जेना अने सर्वक्वेश वर्जित, एवो एक अनंगनामा देश जे. जेमां घरो , ते महोटा गाम जेवां ले. अने गाम ले, ते नगरसमान वे अने नगरो , ते सुरपुर समान . ते देशमां रिपु एवा राजाध्ये पण जे कंपायमान न थाय, अने सल्लायमंम्पवाटुं, लक्षावधि इव्यवान्, बुद्धिमान अने विवेकवान् एवा जनोयें जेमां निवास कस्यो ले एवं चंपापुरी एवे नामें नगर जे. ते नगरनु, जय एवे नामें राजा राज्य करे ले. ते राजानी विकसितकमल समान लोचन वाली, सुधासमान वचन बोलनारी, अने सुवर्णसदृश देहवाली एवी प्रियमती नामा पट्टराणी . तेवी मनोहर स्त्रीनी साथें नोग जोगवतां ते राजाने एक लाख वर्ष, णाई समान चाव्यां गयां. हवे विजय विमानमां अहमिंऽ थयेलो एवो ते कनकध्वज राजानो जीव, त्यांथी चवी पूर्वोक्त प्रियमती नामा पट्टराणीना नदरने विपे आव्यो. ज्यारे ते गर्नमां आव्यो, त्यारें राणीने एक स्वप्न याव्युं. ते स्वप्नमां तेणें झुं दीतुं ? तो के जाणे पोतें राजाना सिंहासन पर वेती होय, अने पोतानेज पोताना स्वामी जय राजायें जाणे मणिजडित मुकुट पहेराव्यो होय? तेम दी. त्यां तो प्रनात काल थवाथी प्रतिदिनना रीवाज प्रमाणे मागध लोकोयें आवी म नोहर शब्दयी मांगव्य करवा मांमयु. ते सांजली अत्यंत प्रमोद पामेली राणी, शय्याथी उठीने पोताना स्वामी पासें आवी. अने ते स्वप्ननी वात कही यापी. ते सांजली राजायें कडं के हे प्रिये ! आ स्वप्नथी तमारे एथि Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वीने विषे प्रसिद्ध अने राजाधिराज एवा नामने धारण करनारो, मनोज्ञ एवो एक पुत्र प्रगट थाशे. एम कहीने पडी ते दिवसें राजायें पोतानी राज सनामां यावी विज्ञान एवा स्वप्नपाठकोने बोलाव्या. अने तेनुं पूजन करीने तेने स्वप्ननी वात पूर्वी. त्यारे ते स्वप्नपाठकोयें पण जे स्वप्नफल,राजा यें कडं हतुं, तेज कह्यु, ते सांजलीने राणी अत्यंत प्रसन्न थइ. अने प्रशस्त एवा पोताना गर्ननु संरक्षण करवा लागी. हवे ते गर्न ज्यारें पांच मा सनो थयो, त्यारे ते गर्नना प्रनावथी प्रियमती राणीने सञ्चैत्यना तथा यतिना पूजनना दोहद नुत्पन्न थया. एटले ते राणीना मनमा एवी इला थ के हुँ चैत्यमा जइ जाणे प्रतिमानुं पूजन करूं, धर्मनी प्रनावना करूं, सुपात्रने दान या', साहामिवत्सल करूं ? पढी ते दोहदनी वात राजाने कही, त्यारें राजा तो जेम कोइ मांदा माणसने जे वाहनुं होय, अने पालुं वैद्य कहे, अने ते जेम खुशी थाय, तेम अत्यंत प्रसन्न थयो. अने ते राणीना पूर्वोक्त सर्व दोहद अतिहर्षथी विशेपें करी पूर्ण कस्या. ते समयने विपे जेम यमराजाना आववानी बा कोइ न करें, तेम जेना भाववानी कोई पण इजा करतुं नथी, एवो ग्रीष्मकाल आव्यो. हवे ते ग्रीष्मकाल केहवो ? तो के कलिनी पढ़ें प्रियदोष . एटले कलियुगमां पण घणा मनुष्यनी बुद्धि दोष एटले पाप करवानी थाय , तेम या ग्रीष्मकालमां पण लोकोने दोषा जे रात्रि ते प्रिय होय , केम के दिवसमां सखत ताप पडवाथी सदु कोइने रात्रि प्रिय लागे . वली ते ग्रीष्मकाल केहवो के ? तो के ग्राम्य पुरुपनी पसें जडने मान देनारोडे, एटले कोक अज्ञानी ग्राम्यजन होय, ते पोतें मूर्ख होवाथी बीजा जड म नुष्यनेज मान आपे . तेम आ ग्रीष्मकाल पण जड एटले जेने सुख दुः खनी कां खबरज नथी एवा पशु समान माणासोने सुखदायक . परंतु ते सुझ पुरुपने सुखद लागतो नथी. वली ते ग्रीष्मकाल कहेवो के ? तो के कदरी जननी पहें सतृष्ण ने. जेम कदरीजननी पासें घपुंज इव्य होय, तो पण तेनी इव्यतृष्णा मटतीज नथी. तेम आ ग्रीष्मकालमां पण लोकोनी जलतृष्णा मटतीज नथी. वली ते ग्रीष्म काल केहवो के ? तो के कुनृपनी पहें विषयनाशक , जेम कुराजा होय, ते पोताना वि षय जे देश तेनो नाश करे , तेम आ ग्रीष्मकाल पण विषय जे इंडिय Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४२७ सुख तेनो नाश करे ले. अर्थात् जेवू इंडियसुख बीजी ऋतुमा आवे , तेवू या ग्रीष्म ऋतुमां यावतुं नथी. वली ते ग्रीष्मकाल कहेवो डे ? तो के खल जननी पढ़ें घणाक जन साथें वैर वसावनारो . एटले जेम खलजन , ते पोताना खराप आचरणथी तथा कटुवाक्यथी सदु कोइनो वैरी थाय डे, तेम आ ग्रीष्मकाल पण पोताना सखत तापथी सदुको जनने वैरी जेवो लागे . वली ते ग्रीष्मकालमा मित्र पण पोतानुं मैत्र्य मूकी दीधुं . एटले सर्वजगतनो मित्र एवो जे सूर्य, तेणें पोतानुं यथा योग्य तपवारूप मित्रिपणुं मूकी दर जगत पर उग्र ताप नाखवा मांमयु बे. वली ते ग्रीष्मकालें अावा महोटा सूर्यनुं पण अपमान कराव्यु ले ? एटले ग्रीष्मकालमांपाकर ताप पडवाथी ते सूर्यतापनां प्रतिस्पर्दि एवांजे शीतव्यो, तेनो लोको नपनोग करे .अर्थात् सूर्यनां प्रतिस्पर्मि एवां जे शीतल इव्य, तेनुं लोको मान करे , तेथी ते सूर्यनुं अपमानज थयुं. कह्यु डे के ॥ गाथा ॥ चंदो चंदणपंको, जलं जलंदा समीरणो हारो॥ पत्नवसजा मनिय, फुनाइ हरंति हीयाहिं॥ १ ॥ श्लोक ॥ तल्पं तामरसं ताली, तिलकं तारकापतिः ॥ तालवंतस्तरंगिण्यः, ग्रीष्मे सप्त सुखावहाः ॥ २ ॥ धारा यत्र तुपारसारकणिका, निर्वारितोष्मोदयः, श्रीवंमागरुधू पवासि रुचिरं हयं सचंोदयम् ॥ शय्या पुष्पमयी च चंदनरसः कपूर कस्तूरिका, वासः स्वबमकंचुका प्रियतमा ग्रीष्मे सुखस्यास्पदम् ॥ ३ ॥ अर्थः- चं, चंदननो पंक, टाढं जल, ठंडा जलना फुवारा, शीतल पवन, पुष्पना हार, पल्लवनी शय्या, मनिकानां पुष्पो. ए आठ वानां ग्रीष्म कालने विषे हृदयने सुखनां देनारां ॥ १ ॥ वली उत्तम शय्या, कमल, ताडफल, शीतल चंदन, तिलक, चश्मा, ताडनो पंखो, अने नदियो. ए सात वानां ग्रीष्मकालने विषे सुरखनां देनारां होय ॥ ५ ॥ वली टाढा अने उत्तम जलना फवारा, जेमां ताप लागतो नथी एवं स्थल, श्रीखंम, अगरु, तेना धूपथी वासित अने जेमां चश्मानां किरणो पडतां होय एवं मनो हर गृह, पुष्पमय शय्या, चंदनरस, कपूर, कस्तूरिका, स्वब अने श्वेत एवां वस्त्रो, कंचुकी विनानी स्त्री. ए नव वानां ग्रीष्मकालने विषे सुखदा यक होय छे ॥ ३ ॥ हवे या प्रकारनां जयंकर एवा ग्रीष्मकालने विषे प्रियमती पट्टराणीयें युक्त एवो ते जयराजा, मनोहर वृदोनी ने शोना Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ जैनकथा रत्नकोपनाग सातमो. " जेमां एवा वनने विषे गयो. ते वनमां एक वापिकाने केसर, कपूर, गरुचं दन, कस्तूरी, तेमना रजःपुंजें, करी पीला तथा सुगंधित एवां जे जल, तेणे युक्त क. पीते वापिकामां ते स्त्री पुरुष पडी तेना जलथी घणीवार सुधी प रस्पर जलक्रीडा करी. अने तेथी ते बेहु जण श्रमित थर गया. तदनंतर ते जय राजा त्यांची जरा दूर एक शक्षामंरुप हतो, त्यां जइ बेठो खने प्रियमती राणी तो त्यां निकटना वृनी नीचेंज वेठी. हवे वीणा वगाडवामां श्रेष्ठ एवा जय राजायें हाथमां वीणा धारण करीने किन्नरथी पण न गाइ काय तेवां गीतगान करवानो प्रारंभ करी गावा मांमधुं तेवामां ते राजाना गुणोथी, स्वरूप ने वीणाना नादथी, ते वननी जे वनदेवी हती, ते मो हित थइ गइ तेथी ते राजाना संगमने इबवा लागी, पती कामानिथी तप्त एव ते वनदेवी, प्रियमती राणीनी दासीनुं रूप धारण करी ज्यां ते राणी बेठेली वे, त्यां यावी हाथ जोडी कहेवा लागी के बाइसाहेव ! आपना पति माहाराजायें मारी साथें कहेवराव्युं बे, के राणीने कहो जे याहिं प्राव्यां घणी वार थर बे, माटे घेर जाय ? ते वाक्य सांजली राणी तुरत पोतें घर तरफ चली गई. तदनंतर ते वनदेवी, मनोहर वस्त्राभरण नूपित एवी का मिनीनुं रूप धारण करी ते जय राजा पासें यावी, हाव, नाव, कटाक्ष करीने ते जय राजाने कहेवा लागी के हे राजन् ! आापना गुण, रूप अने राग, तेणें करी हुं मोहित थइ गइ बुं, माटे मने रतिसुख व्यापी शांत करो. वली आाहिं कोई बे पण नहिं. ते वचन सांजली कोपायमान था ब्रह्मचर्य व्रत जंगना जयथी तेनी ना कही ने कह्युं के, हे कुलटे ! तुं जलदी माराथी दूर था. नहिं तो धर्मदूषित एवी तुं मारा क्रोधरूप अनलने विषे पतंगनी पेठें बली जाइश ने तें धारेलो एवो धर्म, जो मारा देशमां यातो होय, तो ढुं ते धर्म को कालें यावाज दवं नहिं, तो तेवा धर्मने हुं पंगेज करूं ? वली तरी पढें कोई पुरुषने में जो अधर्म करतो जोयो होय, तो तेनो हुं नाराज करूं. खने वली तारो पण हुं नाराज करत, परंतु तुं स्त्री बो, माटे लाचार बुं. कारण के शास्त्रमां वाक्य बे के अवध्या स्त्रीः वली हे स्वैरिण ? विश्वतमोहराकरणशील एवो या जे रवि, ते शुं कोई दाडो पोतानां उज्ज्वल किरणोथी अंधारुं करे ? ना नज करे, तेम दानी, मानी, धनी, धीर, वीर, कीर्त्तिमान एवो माणास, कोइदिवस परस्त्रीमां यासक्त 66 "" Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४ए थाय ? ना नज थाय. कहेलु ने के ॥ श्लोक ॥ दत्तस्तेन जगत्यकीर्तिप टदोगोत्रे मषीकूर्चक, चारित्रस्य जलांजलिर्गुणगणारामस्य दावानलः ॥ संकेतः सकलापदां शिवपुरधारे कपाटोदृढो, कामातस्त्यजति प्रनोदय निदां सुस्त्रीं परस्त्रीं न यः ॥ १॥ अर्थः- कामात एवो जे पुरुष, पोतानी कीर्त्तिने जेद करनारी मनोहर एवी परस्त्रीनो त्याग नथी करतो, ते पुरुषे जगतने विषे अपकीर्तिनो पटह वगडाव्यो, तथा तेणें पोताना गोत्रने विषे मशनो कुचो दीधो, चारित्रने जलांजलि दीघ, अने गुणगण रूप आराममां दावानल लगाड्यो. तथा सकल आपत्तियोने आववाने संकेत बताव्यो, अने वली तेणें शिवपुरधारना दृढ कमाड दीधां ॥ १ ॥ आवां वचन सांजव्यां तो पण ते स्त्री, राजाने कहेवा लागी के हे विनो! मने तमें परस्त्री न जाणजा. हूं तो निरंतर तमारा गुणमां अने रूपमा रक्त एवी वनदेवी बु. माटे स्मरागिणी ताप पामेली एवी जे ढुं, ते मुने तमारा संगमरूपअमृतथी सिंचन करो. अने हे नाथ ! तमो कहेवा बो? तो के ढुं जेवीनी प्रार्थनाना नंगमां नीरु ने, तथा वली कारुण्यना नंमार बो. माटे मारो त्याग न करी, मारूं सेवन करो. या प्रकारचें ते वनदेवीनें वचन सांजनी जयराजा कोधायमान थइ क्रूर वचनथी कहेवा लाग्यो के हे उष्टे ! हे निर्लङ ! हे पापिणि! तुं आवा कुकर्माचरण करवानी बाथी उत्तम एवा देवपणाने वगोवे ? जा. हे पुंश्चलि ! तारी साथै ढुं बोलनार नथी. अने हवे तो जेम बने तेम तुं मारी नजरेंथी दूरज था. कारण के हुँ तुज पापिणीनुं मुख जोवाने नतो नयी ? आवां तिरस्कारनां वचन सांजली ते देवी, तुरत अंतान थइ गइ. अने पनी ते विचारवा लागी के कोइ पण रीतनुं कपट करीने मारे था राजा साथें रतिसुख तो लेवुज ? एम विचारीने कामातुर एवी ते स्त्री, बल करवानो अवकाश जोया करे . ते समयमां जयराजा विस्मय पामी ते वात, पोतानी स्त्रीने कहेवा माटे ज्यां वृदनी नीचें पोतानी स्त्री बेनी हती त्यां गयो. अने त्यां जई जोवे, त्यां तो ते राणीने दीती नहिं. त्यारें तेणें वि चार कस्यो के आहीं राणी नथी, परंतु ते घेर गइ हशे? एम जाणी पोतें पण घेर गयो. ते समयमा अवकाश जोड्ने ते व्यंतरीयें सगर्ना एवी प्रियम ती राणी ज्यां घरमां बेठी हती त्यांथी तेने नपाडीने प्राचीदिशामां घरोज Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दूर एक नजड वनमां नाखी दीधी, अने पोते पाचुं राणीनुरूप ग्रहण कयुं. अने दासीने कह्यु के हे दासि ! माहाराजने जश्ने कहे, के आपने राणी साहेब, बोलावे . ते सांजली ते दासी जे हती ते तत्काल राजा पासें श्रावी विनति करी कहेवा लागी के महाराज! आपने राणीसाहेब बो लावे ? ते सांननी राजा बोल्यो के हुँ पण आववानो विचारज करतो हतो, माटे जा. ढुं श्रावू . एम कहीने ते जयराजा अंतःपुरमां आव्यो, त्यां तो ते व्यंतरी जलदी सामी यावी, लगा रहित थइ वेश्यानी पढ़ें विचित्र एवा आलिंगनादिक नपचारो करवा लागी. ते जोड्ने राजाएँ नि चार कस्यो के अरे! या देखवामां तो राणी जेवी लागे डे, परंतु आचरणथी राणी नथी. कारण के जो राणी होय, तो आम बोल्या चाव्या विना सर्वनी समद निर्मऊपणुं करे नहिं.माटे मने लागे जे के राणीनुं रूप धारण करी आहीं यावी वेसनार ते व्यंतरीज जे. एम जाणीक्रोधायमान थइ, तेनी पर एक मुष्टिनो प्रहार कस्यो, तथा तेने केश पकडी, ढरडी, घणीक गानो दक्ष, धक्को मारी, घरमांथी काढी मूकी. त्यारेते व्यंतरी पण जयनीत थर, तुरत जाणे चित्रामणनी पूतली होय नहिं ? तेम थ गइ. पनी निराश थइने ते अंतान थ गइ. तदनंतर जयराजायें विचार करयो के आ व्यंतरी मारामां अति आसक्त थवाथी मारी पनवाडेज पडी , तो ते एक क्षण वारमां कांक न समजाय तेवु बल करी मारा अमूल्य एवा ब्रह्मचर्यव्रतनो नंग करी नावशे. माटे हवे मारे तेनो ग्खूब विचार राखवो? एम विचारी ने वली पण विचारवा लाग्यो के अरे! ए तो ठीक, पण मने आाही आव्यो जाणे ,ते बतां राणीने घरमांथी बाहार थावतां विलंब केम लाग्यो हो? चाल, दंतेनो तपास करूं? एम विचारी अंतहमा जइ तपास करे, त्यां तो राणीने दीठी नहिं. त्यारे ससंत्रम थश्तत्रत्य सर्व परिवारने पूबवा लाग्यो के हे लोको! राणी क्यां ले ? त्यारे त्यां रहेला कोइ पण माणसने राणी ना जवानी खबर न होवाथी तेथे कांही पण उत्तर आप्यो नहिं. त्यारे राजायें जाएयु जे अरे ! जरूर मारी पनवाडे पडेली ते उष्टसूरीयेंज मारी राणीनु हरण कयुं जे ? एम निश्चय रीतें जाणीने तेनो शोध करवा चोत रफ केटलांएक माणासोने मोकव्यां. ते माणासोयें बाडो अवलो घणोज शोध कयो, परंतु तेउने राणीनो क्यांहि पण पत्तो मल्यो नहीं. त्यारे Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४३१ निराश थ ते शोधकलोको, जय राजाने विनति करी कहेवा लाग्या के महाराज ! अमोयें तो राणीसाहेबनो घणोज शोध कस्यो, परंतु तेनो क्यांहि पण पत्तो मल्यो नहिं. आवां तेनां वज्रपातसमान वाक्य सांजली अत्यंत खेद पामी, विचारवा लाग्यो के अहो ! जन्म, मरण, जरा, मृत्यु, रोग, शोक, संयोग, वियोग, तेणें करी दूषित तथा कषा य अने विषय, तेणें करी व्याप्त एवा आ संसारने वारं वार धिक्कार हजो. अरे! जे संसारमा एक रुपमा सुख देखाय ले, अने पावं बीजा दामां कुःख देखाय . माटे इंजाल जेवा संसारमा झुं सुख के ? कांहीज नहिं. वली जे संसारमा रहेला जीवने कोई एक पाणवनन एवा पदार्थोनो वियोग, एकदाण वार पण सहन थातो नथी, तो तेवा प्राणवनन पदार्थ विना आरवी आयुष्य काढवी पडे ले ? वली जे संसारमा माता, पिता, पुत्र, कलत्र, संपत्ति प्रमुखनुं सुख जीवने मले डे, तो ते सुखने दैव, एक निमिषमात्रमा नाश करी नाखे ? माटे तेवा दैवने पण वारं वार धिक्कार हजो. अरे! ते देवें प्राणथी वलन एवी मारी प्रियाना मने पण वियोग कराववारूप दुःख दीधुं . ? अरे! बीजं तो ठीक, पण सगर्ना एवी ते प्राणप्रिया को ठेकाणे जीवती हशे? हा ! जो जीवती हशे, तो हुँ जाणीश के ते केवल तेना गर्ननोज महिमा . अहो! ते प्रियानुं जे दिवसें मुने मुख देखाशे, ते दिवस मने अमृत समान मीठो लागशे ? दिवस तो झुं! पण ते घडी पण मने अमृतथी पण मीठी लागशे ? एम अत्यंत मनमा खेद करतां ते राजायें जोजन प्रमुख शरीर स्थितिसाधननो साव त्याग करी दीधो. त्या निमित्त शास्त्रना नरोला एवा तेना मंत्री वगेरेयें कडं के महाराज! आप क्वेश म करो.यापनी राणी कोई पण ठेकाणे कुशल , अने तेने पुत्र पण प्रसवशे ? एम अमने निमित्त शास्त्रना योगथी जणाय . आवां वचन सांजली राजाने जरा शांति थ. त्यारे तेणें विचार कस्यो के कदाचित् मारा नाग्योदयथी जो मने पाली स्त्री मलशे, तो पण ढुं हवे था दुःखावास एवा गृहावासमां रहीश नहीं? एवो निश्चय करीने पनी देह स्थितिने माटे नोजन वगेरे करवा लाग्यो. हवे ते व्यंतरीयें हरण करी विकट वनमां नाखी दीधेली प्रियमती रा पीनुं गुं थयुं ? ते कहे .के ते उग्रवनमां नाखेली राणीने थोडी वार पड़ी Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. " जान थायुं, त्यारें हाकी बाकी थी. ने चोतरफ जोवा लागी. अने ज्यां जुवे, त्यां तो सर्वत्र उजडवनज दीतुं. ते जोइने जयजीत थर थकी कवा लागी के घरे या शुं ! हुं मारा महेलमां सूती हती, त्यांथी वली चाहिं क्यां यावी ! रे या ते गुं इंइजान हो ! के या ते मनें नम थयो ! केा ते मने स्वप्न याव्यं बे ! अरे मनोहर एवो माहारो महेल क्यां गयो ! श्रने जेमां जाजा हिंसकजीवो रहे बे, तेवुं या जयंकर वन क्यांथी व्युं ! अरे मने हिं कोण लाव्युं हो ! ते लावनार पण केम दे खातुं नथी. हा !!! हवे हुं केम करूं ! क्यां जावं ! कोने कर्तुं ! हे स्वा मीनाथ ! तमें क्या हो ? जो याहिं हो, तो तमारी प्राणप्रिया हुं तलखुं बुं, तेने उत्तर केम नथी आपता ? हवे जो उत्तर न यापो, तो तमने मारा शपथ ले ! ने हे प्राणनाथ! हे प्राणपते ! तमो जीवतां बतां विनापराध मने यावा विकटवनमां को नाखी ? हा ! पापिष्ट एवी में पूर्वजवें कांक पाप कर्मनुं श्राचरण कर हरो, जेथी मने अणधार ने विचार दा रु दुःख यावी पड ! ग्राम विविध प्रकारना विलाप करती, ने रात्रि पडवाथी चोतरफ फरता एवा सिंहप्रमुख हिंसक प्राणीयोना शब्दयी कंपा यमानयतीने वारंवार " नमोप्रयः " एम बोलती, करमाइ गयुं बे मुख जेनुं एवी ते राणी, त्यांथी एकदम उनी थइ. ने पी विचारका लागी के हवे हुंक्यां जानं ? अरे ! यहिं निर्नयरीतें रहेवाय, एवं कयुं ठेकाएं बे ? एम चिंतायें करी व्याकुल यती थकी मुंजाइने त्यांज पडी रही. पढी सवार पडवाथी दक्षिण दिशाना मार्ग तरफ चालवा लागी. त्यां सिंह, त्याघ्र, सुकर, शीयालियां, तेना जयंकर शब्दोथी कंपायमान बे चित्त जेनुं ने सूर्यना तापथी तपेली वेलुमा तपी गया बे पग जेना, अने पगमां कांटा वागवाथी जेने घणुंज रुधिर चाल्युं जाय बे, एवी ते राणी, शून्यवनमां पोतें अत्यं त कोमलांगवाली होवाथी मूर्छा पामी गइ पढी थोडी वारें शीतलपवन श्राववाथी पाठी सावधान थइ, विचारवा लागी के हो ! में पूर्वजवें प्रज्ञानना योगथी घणांज घोर पाप कस्यां दशे, एम लागे बे ? कारण के जे पापना विपाकरूप था दुःखने ढुं श्रहिं प्रत्यक्षरीतें जोगवुं हूं. अने जिन शास्त्रमां लखेनुं बे के प्राणीमात्रने शुभाशुभ कर्मोनो लोग तो जोगव वोज पडे बे, माटे पोतानां करेलां कर्मने जोगववां पडे, तेमां यापले Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४३३ कोनी पर कोप करवो ?ा प्रमाणे जिनवचनने नावती तथा नूख, तृषा प्रमुख दुःखोथी पीडित एवी ते राणी, घणांज खोने नोगवती थकी ते वनने विषेज जमवा लागी. एम थाखो दिवस गयो, अने ज्यारे सार्यकाल थयो, त्यारे तेने, ते वनमा रहेनारीयो अने पोतानी पर्णकूटीमाथी बाहार फरतीयो एवी कोइएक तापसी स्त्रीयोयें दीठी, तेथी ते सर्व, राणी पासें आवीयो,अने तेने जो तेनी पर दया भाववाथी पोताना कममलना जलें करी स्वस्थ करी. पनी ते तापसीयो, तेने हाथ पकडीने पोताना आश्र ममा लावीयो. अने ते सर्व तापसीनी गुरुणी एक वृक्षतापसी हती, तेने ते बतावी. त्यारे ते वृक्षतापसी तेने यासन, तथा मिष्ट एवां फल ए वगेरेथी सत्कार करी पूयुं के हे स्त्रि! धावा मनोहर अंगवाली तथा मनोहर अलंकार अने वस्त्रयुक्त तुं धावा उग्रवनवासरूप कुःखने केम प्राप्त थ? ते सांजली वात्सल्यवान एवी ते इक्षा पासें प्रियमती राणीयें पोतानी बनेली सर्व हकिगत कही थापी. ते सांजली वृक्षा बोली के हे बेहेन! आ असार एवा संसारने विषे जीवप्राणीमात्रने अणधायुं अने अणविचायुं अक स्मात् फुःख आवी पडे . तेथी हे वत्से ! तेमा कां पण तारे विषाद करवो नहिं. अने हे मृइंगि! वलीथमने तो एम लागे के तारी मोहोटी पुण्या ने, के जे पुण्याइथी सगा जतां तुं यावा विकट वनमांजीवती रही हो? अने पानी वली या अमारां तपोवनमा आवी डो? हे बेहेन ! हवे तुं फिकर बोडीयाजनी रात्रि तोयाहिं अमारी साथेंज रहे. अने सवारें अमें अमारा गुरुने विनति करीने तुने कोइ पण गाममां पोहोंचडावानो बंदोबस्त करावी थापगुं? यावां वचन सांगली राणीयें जाएयुं जे हवे हुँ मरण तो पामीश नहिं ? एम जाणी ते राणी ते रात तो तापसीयोनी साथेंज रही. पत्री सवार पडवाथी सर्व तापसीयो ते राणीने एक कुलपति तापस हतो, तेनी पासें लावीयो अने राणीनी कहेली बिना सर्व कही आपी. त्यारे दयालु एवा कुलपतितापसें कोइएक वृक्ष तापसने बोलावीने आज्ञा करी के हे तापस! जा.थाहिंथी थोडे दूर एक श्रीपुरनामा नगर हे त्यां,या राज स्त्रीने बोडी पाडो याव्य.एम तेने कहीने पड़ी पाबु राणीने कह्यु, के हे सुंदर स्त्रि!था, तमने जे गाम देखाडे, त्यां जजो. अने त्यांथी तमारा गामनी तज वीज करीने पड़ी तमारे गाम जजो. ते सांगली प्रियमती राणी ते ताप Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सनी साथें चाली. परंतु ते सगर्ना होवाथी मंदमंद रीतें माहाकष्टथी चालतां थाकीग.अने एम चालतां तापसना बतावेला श्रीपुरनामा नगरना उद्या नमा प्रावी पोहोंची. पबीते १६ तपास,राणीने ते गाम बतावी, ते उद्यानथी पालो वली पोताने श्राश्रमें श्राव्यो. प्रियमती राणी थाकी जवाथी ते नद्या नमा एक थाम्रनो वृक्ष हतो, तेनी नीचें बेठी. त्यां तो ते नद्यानमां एक जिन चैत्य हतुं, तेमां श्रावको, सत्तरनेदी पूजा जाता हता, तेनो शब्द सांजली एकदम ननी थने ते चैत्यमा गइ. परंतु पोतानी पासें पूजानी सामग्री न होवाथी ते जिनप्रतिमाने प्रणामज कस्यो, अने पनी त्यां रहेला सर्व साधर्मिकोने प्रणाम कस्खो. तेवामां त्यां कोइएक जिननगवाननां दर्शन करवा आवेली जिनसुंदरीनामा श्राविका हती, ते राणीपासें यावी. अने राणीने पूज्युं के, हे सुंदरांगि ! हे साधर्मिके ! तमो कोण बो? अने क्यांथी याव्यां बो ? आवां वचन सांजली ते राणीने पोतानुं सर्व दुःख सांनरी आव्यु, तेथी हृदय जरा आववाथी तेने कांश पण उत्तर न आपतां ते रुदन करवा लागी. त्यारे ते जिनसुंदरी श्राविकायें विचायुं के अहो ! आ स्त्री तेना शरीरना देखाव उपरथी कोइ उत्तम कुलनी स्त्री होय, एम जणाय ने ? अने वली तेने कांक महोटी आफत आवी होय, एम लागे ने ? एम विचारी ते श्राविका कहेवा लागी के हे महानुनावे ! या संसारने तमें अनित्यज नावो. अने वारं वार वीतरागनुं स्मरण करो. हे बहेन ! शरीरने संताप करनार, तथा जेथी नवां कर्म बंधाय , एवा रुद नथी गुं वलवान डे ? हे सुंदरि ! अनंतपुःखात्मक एवा अप संसारनो, विषाद करवाथी पार यावे तेम नथी. हे नरे! या संसारना खरारूपने जाणनारा पुरुषोयें तो सुखमां अने सुःखमां धर्मनुंज आचरण कर. का रण के जीवने धर्माराधन करवाथीज अनंत सुखनी प्राप्ति थाय बे. तथा फुःखनो नाश थाय . तेमाटे हे नई ! तमो क्वेशनो त्याग करो अने ध मनुं आचरण करो, केम के था जगतमां धर्मविना कोई पण बीजुं सुःखना शक औषध नथी. आवी रीतनां वाणीरूप अमृतथी याश्वासन करी ते प्रियमती राणीने जिनसुंदरी श्राविका हाथ पकडी पोताने घेर तेडी लावी. अने तेनुं सर्व वृत्तांत, पोताना पिता धनंजय शेठने कही आप्यु. तेथी ते धनंजय शेतें दया आणी ते राणीने पोतानी पुत्रीने पवें राखी, Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४३५ हवे तेवामां ग्रीष्मताप तप्त एवा पारखा विश्वने जोइने विश्वोपकारक एवो वर्षाकालरूप नूप, गर्जनारूप तूर्योने वगडावतो थको, तापरूप वैरीना नाश करवाने माटे आ पृथ्वीपर आव्यो. पड़ी तेणें इंश्चनुपरूप धनुष्यने खेंची जलवृष्टिरूप बाणोथी ते निदाघरूप वैरीनो विनाश कस्यो. अने वली सर्वत्र कुटुंबी जनोनां मनने पण पलाल्यां, जेथी सदु कोइने पोत पोतानां स्नेहि जनोने मलवानी उत्सुकता थइ. पाप्रकारना वर्षाकालना आववाथी एक दिवस सायंकालें ते प्रियमती राणी एकांतमां बेटी हती, तेमां तेने पोता नो प्रिय स्वामी सांजरी अाव्यो, तेथी तेनुं वारं वार स्मरण करवा लागी. अने ते स्मरणथी तेना स्नेह स्मरण थयु, तेथी हृदय नराश्याव्यु. माटे विलाप करी रुदन करवा लागी. ते प्रियमती राणीने रोती, तथा विलाप करती जोइने तेनी चाकरी माटे राखेली कोइएक दासी हती ते पण रुदन करवा लागी. पडी रुदन करती ए राणी दासीने विलाप करतां कह्यु के, हे वेहेन ॥ श्लोक ॥ दारोनारोपितः कंते. मया विश्लेषनीरुणा ॥ इदा नीमंतरे जाताः, पर्वताः सरितोऽमाः ॥१॥ याः पश्यंति प्रियं स्वप्ने, धन्यास्ताः सखि योपितः ॥ अस्माकं तु गते कांते, गता निज्ञपि वैरिणी ॥ २ ॥ हे सखि ! विश्लेष थवाना जयथी में मारा स्वामीना कंठमां पुष्पनो हार पण न नाख्यो. अर्थात् में जाण्युं जे जो ढुं मारा स्वामीना गलामा पुष्पनो हार नारखं, तो जेटलो हार जाडोले, तेटलुं मने मारा स्वामीथी दूरपणुं थाय ? अने हालमां तो मारा स्वामीनी अने मारी वचे घणा सर्वतो, नदियो, धने वृदो आवी पख्यां ॥ १ ॥ वली हे सखि ! जे स्त्रीयो स्वप्नमां पण पोताना स्वामीने जोवे , ते स्त्रीयोने धन्य बे, अने उ गणी एवी जे ढुं, ते मारी तो जे दिवसथी मारा स्वामी साथें जुदाइ थने, ते दिवसथी निश पण गावे, तेथी ते निा पण वैरिणी थने, केम के जो निशआवे तो स्वप्न आवे, अने जो स्वप्न आवे, तो ते स्वप्नमां मने कोक दिवस मारा स्वामीनू दर्शन थाय ? परंतु तेनुं दर्शन न थयुं तेमां मुख्यकारण निज्ञ नथी आवती तेज . तेथी ते निश पण मारी वैरिणीज बे. आ प्रकारना विविध विलाप करती, धूडथी धूसरित जेनुं शरीर थ गयुं ,अने जेणे मलिन अने एकज वस्त्र पहेरेलुं छे, एवी ते राणी, कपाल पर हाथ द नीचें मुख करी रुदन करवा लागी. ते सांजलीने जिनसुंदरी Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ . जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. श्राविकानो पिता धनंजय शेत विनयथी तेने कहेवा लाग्यो के हे पुत्रि! तारा गुणोथी तथा सौशीव्यथी रंजित थयेला मने तारी मोहोटी चिंता थाय ने, के हवे ते तारं मारे गुं करवू? कारण के अमाराथी न संनलाय एवं तुं प्र तिसमय रुदन कस्याज करे जे. अने ते रुदन मटाडवानो एक या उपाय ने, के जो तुने तारे घेर मोकळु ? अने तुं रोती पण त्यारेंज बंध था. परंतु तेम पण हाल बने एम नथी. केम के वर्षाऋतु होवाथी कोइ पण माणास यामांतर जातांज नथी. तो माणस विना तुने कोनी साथे मोकलुं? या प्रकारनी मोहोटी चिंता थाय जे. माटे हे बेहेन ! मारुं कर्तुं मानीने सांप्र तकाल वर्षाऋतु, तेथीतुं धर्माराधन करी स्वस्थ थश्ने रहे. अने पडी हुँ वर्षा ऋतु जवाथी को सारा माणास साथें तुने तारे घेर जरूर पहोंचडावीश ? धावां वचन सांजली ते प्रियमतीराणी बोली के हे तात! तमारा शरणमां रहेली एवी मने तो निवृत्तिज , परंतु सर्वबंधथी प्रेमबंध बे, ते पुस्त्यज ने, तेथी जेमा प्रेम बंधाणो . एवां घर, स्वामी, स्वजन सांजरे, त्यारें धास्या विना पण रुदन थइ जाय. पण हवेथी तमारं वचन स्वीकारी शानाथी र हीश? एम कहीने ते धर्माराधनमा बासक्त थ. पनी ते प्रियमती राणी ये सारा समयमा मनोहर लग्मने विषे दुःखने नाश करे, एवा एक पुत्ररत्न ने प्रसव्यो. ते सांजली हर्षोत्कर्षथी प्रफुल्लित ने मन जेनुं एवा ए धनंजय श्रेष्ठीये,राजानी आझा लश्ने सर्व बंदीवानोने बंधीखानेथी बोडाव्या अने दश दिवस पर्यंत पितानी पर्नु घणुंज इव्य खरच्यु. तथा पुत्रजन्ममहोत्सव कस्यो. बारमे दिवसें झाति कुटुंब जमाडीने अत्युलासथी ते पुत्रनु कामदेवसमान रूप होवाथी “कुसुमायुध” एवं नाम पाडयु. पनी वरसादना दिवसो व्य तीत थया, तोपण पुत्र बे वर्षनो थयो त्यां सुधी राखी. हवे ते श्रीपुरगा मनो रहेवासी कोइएक वासवदत्त नामनोसार्थवाह हतो, ते राणीना चंपान गर तरफ केटलोएक माल लश्ने वर्षाकाल व्यतीत थवाथी वेपार माटे जतो हतो, ते वातनी धनंजयश्रेष्ठीने खबर पडवाथी ते सार्थवाहने पोता नो विश्वास पात्र जाणी विनति करी के हे वासवदत्त! तमो चंपापुरीयें जाडो? जो जाता हो, तो ते चंपापुरीना राजा जयराजानी राणी प्रिय मती अमारे त्यां घणा दिवसथी फुःखनी मारी रहेलीबे, अने वली तेने हाल एक पुत्र अाव्यो . तो ते राणीने अने तेना पुत्रने प्राणथी पण वधारे Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. . ४३७ साचवीने चंपापुरीयें लजश्ने तेना स्वामी जय राजाने सोंपो. एटलु मारु काम महेरबानी करीने करो. वली तेने कदाचित् हुँबीजा साथै मोकलत, पण तमारी जेवो विश्वासपात्र बीजो साथ मने क्याथीमले? एम कहीने ते वास वदत्त सार्थवाहनी साथै केटलाएक परिवार तथा वाहनयुक्त ते राणीने रवाने करी. त्यारे त्यांथी सर्व साथ चाल्यो, ते प्रथम शिववईनपुरनामा को एक नगर हतुं, त्यां याव्यो. अने ते गामना उद्यानने विषे यावी उतस्यो. त्यां प्रियमती राणी एक आंबानी नीचें पोताना कुसुमायुध पुत्रने खोलामां लश्ने बेली बेठी रमाडे जे, तेवामां \ बन्युं ? तो के पुत्र विनानो ते शिव वईनपुरनो श्रीसुंदर नामा राजा,गुरुनी पासेंथी धर्मश्रवण करी संसारथी वैराग्य पामी दीदा सेवा तत्पर थयो हतो, त्यारे तेणें पोताना राज्यने पोताना पुरंदरनामा नाइने थापqधारीने तेने कह्यु, के हे ना! आ मारा राज्यने तमो स्वीकारो. कारण के दवे ढुंदीदा सेवा बुं बुं. ते सांजली पुरंदर कुमार बोटयो के हे ज्येष्ठबंधो! आपनी पेठे मुने पण आ संसार पर वैराग्य आवेलो , तो दुं पण दीक्षा लेवा हुं ? ए सांजली श्रीसुंदरें कह्यु के हे ना! आपण बेदु नाश्ने पुत्र नथी, माटे राज्य कोने सोंपियें ? एम कहीने पनी बेदु नाश्योयें तेराव कसो, के आपणे एम करवं, के एक हाथणी शणगारी तेनी सोंढमां जल नरेलो सुवर्णकलश आपी, पंचदिव्य वागते ते हाथणीने बूटी मूकवी. थने ते हाथणी जेनी पर कलश ढोने, तेज था गामनो राजा थाय? थाम तेराव करी ते प्रमाणे हाथणीनी गुंढमां कलश आप्यो ने पंचदिव्य वागते हाथणी ज्यां जाय , तेनी साथे सर्व को चाल्या. त्यारे ते हाथणी उद्यानमां श्रावी ते ज्यां प्रियमती राणी अाम्रनी नीचें पोताना कुसुमायुध पुत्रने खोलामां लश्ने वेठी हती, त्यां ावी. अने ते हाथणीये ते कुसुमायुधकुमार पर कलश ढोल्यो. ते जोक्ने प्रसन्न थयेला एवा ते बेदु नाश्योयें पुत्रसहित ते राणीने प्रणाम करी हस्ती उपर बेसारी अने ते मा दीकराने गाजते वाजते पोताना गाममां तेडीलाव्या. अने कहेवा लाग्या के हे मात! या अमारा राज्यने तमो स्वीकारो. कारण के आ हाथ पीयें जलनो नरेलो कलश, था तमारा खोलामां सूतेला पुत्र पर ढोल्यो बे. अने अमारो एवो ठराव , के जेनी पर हाथणी कलश ढोले, तेनेज था राज्य आपq. माटे या राज्य हवे तमारा पुत्रनुंज . अने अमो Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३७ . जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वेदु ना तो हवे दीक्षा लइ संयमव्रत आदरयुं ? ते सांजली प्रियमती राणी बोली के हे नाई ! ढुं तो अबला बुं. अने या मारो पुत्र घणोज बालक डे, ते माटे हाल तो तमोज जेम राजवैवट चलावो बो, तेम चला वो. हवे वासवदत्तनुं गुं थयुं ? ते कहे जे. के ते राणी तो पुत्र सहित त्यां गइ, अने ते बाहार कामें गयेलो वासवदत्त सार्थवाह उद्यानमां आव्यो, त्यां तेने मालम पड। के पोतानी साथें चंपानगरीयें आवती एवी ते प्रिय मती राणीना पुत्रने आ गामनी राजगादी मली, अने ते राणीने तथा तेना पुत्रने या गामना श्रीसुंदर राजा वगेरे हस्तीपर वेसाडी पंचदिव्य शब्द वाजा वाजते गाममां तेडी गया ले. ते सांजली वासवदत्त सार्थवाह एकदम श्रीसुंदर राजा पासें आची कहेवा लाग्यो, के हे राजन् !आ हाल जेना पुत्रने राज्यगादी पापी, ते, चंपापुरीना जयनामा राजांनी पट्टराणी बे, कलिंगदेशाधिपतिनी पुत्री ठे, तथा तेनुं प्रियमती एवं नाम बे. ते को एक मंदनाग्योदयथी फरती फरती अमारा श्रीपुरगाममां मारा मित्र धनं जयश्रेष्ठीने त्यां रही हती. अने तेने ते धनंजय श्रेष्ठीयें पोतानी पुत्री कर तां पण वधारे राखी हती. हवे तेने, तेना पुत्र सहित चंपापुरीयें पहों चाडवा माटे मने ते श्रेष्ठीयें घणीज नलामण करी सोंपी जे. माटे ते मने सोंपो, के जेथी ढुं तेने चंपापुरीमा लइ ज तेना स्वामीने सोंपुं ? जे थी मने कोइ पण रीतनो ठबको न मले ? अने हे राजन् ! तमें गुं श्रा कलिंगाधिपतिनी प्रियमती पुत्रीने नथी उलखता ? एवां वचन सांनती अत्यंत हर्षायमान थ ते बेदु नाश्यो ससंन्रम थ राणीने कहे वा लाग्या के अरे ! हा, त्यारें तो तमो अमारी मासी था बो. अहो ! था तो घणुंज सारूं ययु, जे आ अमारा मासीयाइ नाइने अमारुं राज्य गयुं ? एम कहीने ते बेदु जण राणीना पगमां पडी गया, अने पनी ते श्रीसुंदर राजा, वासवदत्त सार्थवाहने कहेवा लाग्यो, के हे नाइ! हवे तमो स्वस्थरीतें चंपापुरी तरफ जा. अने आ अमारी मासीनी तथा अमारा मासीया नाश्नी कांही पण फिकर राखशो नही. वली तमो या सर्व वात चंपापुरीना जय राजाने कहेजो. ए सांनतीने सार्थवाहें जाण्यु जे हवे आपणने को तरेनो ठबको मले तेम नथी, कारण के आ राणी श्रीसुंदर राजानी मासी थाय ले ? एम विचारी ते प्रियमती राणीनी रजा Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. . ४३ए लश्ने सार्थवाह, त्यांथी चंपापुरी तरफ चाल्यो. हवे ते श्रीसुंदर राजायें मंत्रिवगेरेने बोलावी सदु कोश्नी समद नत्तम एवो दिवस जोड्ने कुसु मायुध कुमारने पोतानी राजगादीपर वेसायो. अने पनी अत्यंत हर्षाय मान थ वैराग्य पामेला एवा बेदु नाश्योयें गुरुपासें जश् दीक्षा लीधी. ते कुसुमायुध राजा पण ते राज घगुंज उत्तम होवाथी अखंमित शास नवालो थयो. एक दिवसें अवंती देशना राजशेखरनामा राजायें एकदत मोकल्यो, ते दूत शिववईनपुरमा कुसुमायुध राजाने कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! मारा स्वामीयें कहेवराव्यु डे के जो तुं सुखथी रहेवा श्वतो हो, तो तारा हाथी, घोडा, नंमार वगेरे वस्तु मने सोंपी, तुं खंमियो राजा थइ रहे. अने अमारी नक्तिनावथी अनुचरनी पढें सेवा कर. कारण के तुंहजी बालक गे, तेथी तारे बालकने राज्यासननी योग्यता होयज नहिं ? तेम ताराथी ते राज्य साचवी शकाय तेम पण नथी. केम के जगतमां तारी जेवा बालक तो पोताने जेवं गमे तेवू जोजन करी रम्या करे ले ? माटे ते राज्यने पृथ्वीपर अम जेवा महोटा उत्तम राजा बतां, तुं जेवा बान को नोगवी शके ? कह्यु डे के ॥ गाथा ॥ न जिय सुहं विहंगा, गहिकण महामिसेण चंचूणा ॥ पि तेसु बुहालु य, कलावय ढंककंकेसु ॥ १ ॥ अर्थः-कोइएक नानो पदी क्यांकथी मलेला जाजा मांसने पोतानी चांच मां लश् ावी नमे, अने तेवामां तेनी खबर पडवाथी तेनी पड़वाडे दुधा तुर एवो ढंक पदी जाय, तो ते ढंकपदीने बेतरीने ते नानापदीथी मांस खवाय ? ना-नज खयाय. तेम कदाचित् ते खाय तो तेने ते जीववा पण दे ? ना नज दे. तेवी रीतें या राज्य तुने अमो रहेवा देणुं नही. अने हे कुमा र ! जो अमारा कहेवा प्रमाणे चालीश तो पड़ी तारी अमें सहाय करशुं अने ज्यारेंतारेअमारी सहायता होय, तो पड़ी तारो कोण परानव करी शके? को नहिं. यावां वचन सांजली शालमंत्रनामा मंत्री बोल्यो के हे दूत ! तारा स्वामीने कहेजे जे आ कुसुमायुध राजा तो हाल बालक होवाथी तेने त मारा जेवा राजानीसेवा केम करवी? तेनी कां खबर नथी. अने हाथी घोडाथी ते रमनार, होवाथी ते निर्नय थश्ने रमवा आपेला हस्ती, अश्व वगेरेने लश्ने तारा स्वामीने केम अपाय ? अने तारा स्वामीने जो हाथी घोडाज जोता होय, तो ते ऽव्य मोकले, तो ते श्व्यना हस्ती प्रमुख लश्ने Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० . जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. अमो मोकलावीयें ? आवां वचन सांजली कोपायमान थयेलो ते दूत बोल्यो के तमारा जेवा मंत्री मलवाथी तो हवे था कुसुमायुध राजा जरूर घणा दिवस राज करे, एम लागे ? अहो ! आवा तम जेवा दीर्घ दृष्टि मंत्रीयोथी कोइ दिवस राजा साम्राज्यराज्य करे ? ना नज करे. वली हे मंत्री ! राजाने कांश बालक तथा युवानपणानुं नथी. परंतु उबल राजायें पोतानाथी समर्थ राजानु, दानथी, सेवकत्वथी, आनुचर्यज करवू अने एम करे, तोज ते सुखें राज्य करे ? अने हे मंत्री! आवी तमारा जेवी ग वनी वाणी बोलवाथी तो सामो प्रबल राजाने रोषमां पोष थाय ? वली हे मंत्री! ते पुर्बल राजा, प्रबल राजाने कदाचित् कां आपे नहिं, परंतु तेने प्रणाम करी प्रसन्न करे, तो पण ते प्रबल राजा तेनी पर कोई दिवस कोपायमान थाय नहिं. माटे जे वस्तु नखथी दाय, ए वस्तुमां कूवाडान गुं काम ? वली अमारो राजशेखर राजा जे ,ते तो, जे मनुष्य तेने नमे ले तेना मनोरथोने कल्पसदनी पढ़ें पूरा करे . अने जे तेनी सामो गर्व करे , तेनो तो ते यमनी पढ़ें अने दावानलनी पढें नाश करे बे. आ प्रकारें अनिमाने करी मदोन्मत्त थइ बोलता एवा ते दूत प्रत्ये पालो विशालबुदिवालो ते शासमंत्री बोल्यो के अरे दूत ! तुं पार के घेर आवी, दूत बतां मंत्रीजेवं कार्य केम करे ले ? तथा आवी गर्वनी वाणी पण केम बोले ? अने " ते कुसुमायुध राजा मारी प्रसन्नता मेल वशे अने हुँ कहीश, एम करशे. तो राज्य नोगवशे ? ” आवां वाक्य बोल वाथी तो तारो स्वामी निलेऊ, अकार्य करनार, अने मूर्ख. जेवो लागे ने. या अमारो कुसुमायुध राजा बालक ने, नवो ने, तो पण तेनुं राज्य तारा स्वामी जेवा ग्रामसिंहथी लेवाय तेम नथी. कारण के ते शिशु , पण सिंहना शिशुसमान . तो ते सिंहना शिगुने कदाचित् हजार बक रीयो नेली थ मारवा यावे, तो तेथी गुंते मरण पामे ? ना नज पामे. या प्रकारना वचनरूप दंमाघातथी ताडन करेलो एवो ते दूत, कोपाक्रांत था त काल पोताना स्वामी पासें आवी पोतानुं तथा तेनुं जे परस्पर नाषण थयुं हतुं, तेने विशेषपणे कही दीy. ते सांजली जेम अग्निमां घृत होमे, ने जेम अग्नि प्रज्वलित थाय, तेम कोपायमान थइ घणा हाथी, घोडा प्या दल रथ वगेरे महोटा सैन्यने लश्ने ते सैन्ये करी पृथ्वीने दोन पमाडतो Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४४१ थको ते राजशेखर राजा, कुसुमायुध कुमारनी साथें हवा माटे चाल्यो. हवे ते वासवदत्त सार्थवाहनुं हुं थयुं ? ते कहे . के ते वासवदत्त सार्थवाह, श्रीसुंदरराजाने प्रियमती राणीने सोंपीने त्यांथी तत्काल चंपा पुरीमां आव्यो, अने त्यां जयराजा पासें जश् नमन करी वधामणी देवा लाग्यो के हे राजन्! आपने वधामणी ? वधामणी ? आपनी राणीजे प्रियमती , तेना पुत्र कुसुमायुधने शिववईन नगरनुं राज्य मन्युं ? ते सांजली राजा तो विस्मय पामी गयो, के अरे! आ ते गुं कहे जे ? पबीते वासवदत्तने पूबवा लाग्यो के हे सार्थवाह! तमें आ झुं वधामणी आपो नो? अने रॉ कहो बो? त्यारे ते वासवदत्त पोते जे जाणतो हतो, ते सर्व कही आप्युं. ते सानली जय राजाने विस्मय युक्त महोटो हर्ष थयो. शाथी ? के प्रथम तो तेनी स्त्रीनुं वनदेवी हरण कयुं हतुं तेनो तेने पत्तो मल्यो ? तथा ते स्त्रीने वली पुत्र नव्यो ? अने वली पाबी ते स्त्री, पुत्र स हित शिववईन पुरमांावी? तथा पोताना पुत्रने पालुं ते गामनुंराज्य मन्युं? हवे तेवी उत्तम वधामणी आपवाथी राजायें वासवदत्त श्रेष्ठीनो घणुक धन आपी सत्कार कस्यो. तदनंतर ते जयराजा अत्युत्कंतित थको पोतानी स्त्रीने अने पुत्रने मलवा माटे तत्काल शिववईन पुर याव्यो. आवीने त्यां तु रत पोतानी स्त्री प्रियमतीने तथा कुसुमायुध पुत्रने जोड्ने तेने हृदयमा य त्यंत आनंदावि व थयो. अने ते वखतें समग्र नगरमा महोटो महोत्सव प्रवृत्यो. हवे ते प्रियमतीनो पिता मानतुंग नामा राजा, पोतानी पुत्री प्रिय मतीनुं वनदेवीये हरण कयुं, ते वात सांजली अत्यंत खेद पामी निरुपाय थइ वेठो हतो, त्यां तेणें कोकना कहेवाथी सांजव्युं के ते प्रियमती, पुत्रस हित शिववईन पुरमा आवी ,तथा तेना पुत्रने ते गामर्नु राज्य मल्युं , ते सांजली ते पण पोतानी पुत्रीने मलवा माटे त्यां आव्यो. त्यारें जयरा जायें त्यां आवेला ते पोताना ससराने घणुंज मान थाप्युं. पनी सनानी वच्चे सद सांजले तेम ते प्रियमतीराणीना हरणनुं सर्व वृत्तांत पण कही आप्यु. अने ते प्रियमती राणीये पण पोतानुं व्यंतरीयें हरण कस्या पडी जे कांश वृत्तांत बन्युं हतुं, ते सर्व कही आप्यु. आ प्रमाणे जयराजानुं तथा तेनी प्रियमती राणीनुं कहेलु सर्व वृत्तांत सांनतीने त्यां बेठेला सदु को लोको अत्यंत विस्मय पामी गयां, अने ते घणादिवसनी विरहवेदना Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मटवाथी प्रेमपूर्ण यइ गया. अने सर्वत्र हर्षवधामणां थयां.बने जय राजा पोताना पुत्रनी आवी महोटी पुण्याइ जोइ अत्यंत संतुष्ट थयो. हवे ते कुसुमायुध कुमारनी साथें पूर्वोक्त राजशेखर राजा पोतानुं सैन्य लइ,लडवा आवतो हतो, तेनुं गुं थयुं? ते कहे . के ज्यां ते राजशे खर राजा लडवा आवे , त्यां तो तेणें ते कुसुमायुध राजाना पिता जय राजाना तथा मानतुंगराजाना शिववनपुरमा आववाना समाचार सान व्या, तथा बीजुं पण सर्व वृत्तांत सांजल्यु, तेथी ते मनमां घणोज विलवो थ पश्चात्ताप करवा लाग्यो के अरे! मारा जेवा मूढमतिने मोहने नत्पन्न करनारा लोनने धिक्कार हजो. कारण के जे लोनें करी जीव, विषयपाशने विषे बंधाय बे. अने वली तेवो लोन कदाचित् निर्धन तो करे, परंतु ढुंजे वाने ते शा माटे करवो? केम के साम्राज्यैश्वर्यथी सुशोनित एवा मने आ मारा राज्यमां कां न्यूनता नथी? वली जे लोनने वश थइने में बीजाना राजने य हण करवा माटे मारा यात्माने वृथा खेदमां नारख्यो? वली में दूत साथें कहे वराव्यु के "वालकने राज होय नहिं,अने एम करतां वालकने राज मल्यु ले, पण ते राज्य अमो तेने रहेवा देगुं नहीं” ए जे कहेवराव्यु, ते पण में मोटीनलज करी. कारण के पुण्यना प्रागल्ल्यथी बालकने पण राज्य मले ,अने ते नोगवे पण . तो पुण्यथी प्राप्त थयेला तेना राज्यने दुं ग्रहण क रवानी हा कलं, ते मारी केवडी महोटी मूर्खाइ कहेवाय? माटे जानुं हुं कहूं, पण हुँ घणो महोटो राज्याधिपति बतां पण लोनी थयो, तेथी अति लोनी एवा मुने धिक्कार हजो. अने पूर्वनवकृत पूर्णपुण्यवासाना राजने रुष्ट थइने पण कोण ल३ शके ? कोइ नहिं. तेम निर्नागी प्राणीने तुष्ट मान थश्ने कोण आपी शके ? को नहिं. अर्थात् निर्नागीने याप्यु रहे नहिं, अने पुण्यशाली, होय ते जाय नहिं. वली पण विचारवा लाग्यो के अरे ! में पूर्वे था जय राजा प्रमुख साथें केवी महोटी प्रीतिनी वेल वधारी हती, तेने में था मारालोन तथा अन्यायरूप दावानलथी हाल पाली बाली नाखी जे. माटे त्यां जर ते जयराजाने तथा तेना ससरा मानतुंग राजाने चरणमा पडी तेनी क्षमा मागी ते स्नेहवेलने पानी अंकुरित करूं? कारण के को मा एस कदाचित् पोताना मार्गथी नूलो पड्यो होय, अने ते जो चालतो चालतो उनो रहे, अने पनी कोजागीता माणसने पूजे, तो ते पाडो खरा मार्गने Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ४४३ प्राप्त थाय ? परंतु पोतें मार्गनो अज्ञात बतां हुं मार्ग जाएं बुं, एम जाणी एमने एम जो चाल्योज जाय, तो ते दुःखीज थाय ? माटे हाल ते बेदु राजा पासें माफी मागवी, तेज उचित बे ? या प्रमाणें पश्चात्ताप करीने पोताना सुंदर नामा मंत्रीने जयराजा तथा मानतुंगराजा पासें मोकल्यो. ते त्यां यावीने विनति करी कहेवा लाग्यो के हे महाराज ! माहारा स्वामी राज शेखर राजायें विनति करी कहेराव्युं बे के में मूढबुद्धिश्री प्रापना कुसुमा युध पुत्र पर जे रणसमारंभ करखो वे, ते आपनो में महोटो अपराध कस्यो बे, तेथी ते अपराधने याप दमा करजो. याज दिवस पढी हवे हुं राज शेखर राजा अपनी सामो लडवा खावीश नहिं ? खने तेवी कोइ पण कालें पें शंका करवी नहि. ते सांजली जयराजा बोल्यो, के हे मंत्रिन ! तमारा स्वामी राजशेखरने तो एमज कहेतुं घटे वे, कारण के समजु माला सथी कदाचित् दुष्कृत थर जाय बे, तो पण ते पाठो तेनो पश्चात्ताप परायण थ जाय ले ? यावां वचन कही ते सुंदर मंत्रीनो वस्त्राभरण सामग्री थी सारी रीतें सत्कार कस्यो ने ते मंत्रीने राजशेखर राजाने ते डवा माटें मोकल्यो. तेथी ते राजशेखरराजा पण त्यां ग्राव्यो. पढी ते त्रणे राजाउ, एक उंची ने मनोहर भूमि हती, त्यां मव्या ने ति स्नेही निर्भरमनवाला थया. अने ते त्रणे राजाना पाला, हाथी, घोडा एकत्रज रहेवा लाग्या. तो पण ते एक बीजाने कांइ पण मनमा जुदाइ रही नहिं. धने तेनो यत्यंत प्रतिदिन स्नेह वधतोज गयो. हवे जे उंची भूमिमां ते मल्या हता, त्यां नगर वस्युं, तेथी ते नगरनुं, राजसंगम एवं नाम पड. ते पढी राजशेखर राजायें अत्यंत संतुष्ट थने ते कुसुमा युध कुमारने पोतानी बत्रीश कन्या परणावी. एक दिवस सौम्यताथी चंड्मा समान, सुतपना तेजथी सूर्यसमान, गांनीर्यथी सागरतुल्य, व्रतस्थिरतायें मेरुसरखा, रूपें करी कामसमान, मानरहित, केवलज्ञानी एवा कोइएक गुणसागर सूरीनामा मुनि, ते नगरना उद्यानमां समवसस्था ने सेवापर एवा देवोयें करेला सुवर्ण पंकजने विषे तेम पाच धावा. त्यारें वनपालकें खावी ते त्रणे राजाउने 3 धामणी यापी के हे महाराजा ! सहसाम्रवनने विषे सुर, असुर, नर, तेना निकरोयें जेमनां चरणारविंद सेव्यां बे एवा गुणसागर सूरीं नामा केवली Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ შემ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. समोसा बे. ते सांजनी ते वनपालकने अतुल दान दइने सक्तिना जा रथी जरा गयुं ने अंतःकरण जेनुं एवा ते त्रणे नूपाल, ते केवलीनी पासें याव्या. अने तेमनुं यथाविधि नमन करी, धर्मश्रवणमां तत्पर थर, योग्यस्थान पर बेठा. त्यारें जगतना हित करवामां तत्पर एवा ते मुनीश्वरें, मंथन करेला महासमुनी गर्जना समान गंजीरवाणी यें करी देशना देवानो प्रारंभ करखो. ते जेम के:-नो नव्यलोको ! जो तमो संसारथकी जय पामता हो, तो जलना पर्पेटा सरखा जीवितवाला मनुष्य देहने पामीने ते मनुष्य देही पोतानुं जेम हित थाय, तेम करो. जेणें करी तमारे संग्राम करवो न पडे ? घने वली हे नव्यो ! जेमां तमोने बिलकुल रति नथी तेमां तमो रति पण करो. वां मुनिनां कहेलां गूढार्थ वाक्य सांजली मानतुंग राजा बोल्यो के हे महाराज ! यापे ा जे सर्व क. ते घणुंज गंजीरार्थ कयुं, तो तेने में मूढ मनुष्य केम जालीयें ? माटे कृपा करी ते सर्व समजाय तेम कहो. यावां वचन सांजली केवली भगवान् कदेवा लाग्या के हे नव्यलोको ! तमोने मोहनृपें ज्ञानमद्य पायेनुं बे, तेथी तमो काहीं पण अर्थ जाणता नथी. ते सांगली प्रसन्न जेनुं मुख बे एवो राजशेखर नृप, जरा हसीने बोल्यो के हेन गवन् ! यापें जे मोहनृप कह्यो, ते मोहनृप वली कोण बे ? अने ते क्यां वे ? अने तेनी राजधानी केवी बे ? त्यारें केवली बोल्या के हे राजन् ! अंतरंग, परम उत्कृष्ट एवो अरिहंतधर्मनामा राजानो सुबोधनामक दूत ज्यारें तमोने सुदर्शननामक चूर्ण खवरावशे, त्यारे तमोने सत्यार्थनी मालम पडशे. प्रने वली ते सुबोध दूत पण थोडाज वखतमां मारी पासें यावशे. हजी ज्यां सुधी ते नथी श्राव्यो, त्यां सुधीमां कौतुकी एवा तमोने तेनुं कांइएक स्वरूप कहुं, ते सांजलो. या विविध याश्चर्यप्रचुर एवा जगतरूप पुरनेविषे सुर नरेंद्रादिकथी पण खंमित जेनुं शासन बे एवो, अने शिष्ट पुरुषोने सुख यापनार, टोने दुःख देनार, मदें करी मदोन्मत्त एवो, एक कर्मपरिणाम नामा राजा बे. ते मनोहर एवा या संसारना राज्यने करे बे. हवे ते कर्मपरिणाम राजा नी एकांतरक्त, पतिव्रता तथा पोताना स्वामीना चित्तने अनुसरती एवी कालपरिणतिनामा एक पत्नी बे हवे अनादिसंयोगने लागेलां परस्पर सुखमां मन, त्रण जगत जेनी खाज्ञा माने बे, एवां ते दंपतीने पोतानी 5 Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४४५ चित्तमा एक चिंता उत्पन्न थइ. के सर्व जगतना राजने करनारा आपणने केटलो परिवार ? अने तेमां केटलो परिवार व्यवसाय करे ले ? अने केटलो बिनरोजगार थइ बेगे ले ? अने तेमां केटलो आपणे प्रसाद करवा योग्य जे ? आ प्रकारनी ज्यां ते बेदु जण चिंता करे , तेवामां तो राग क्षेष नटोथी परिवृत, निःशेष राजकार्यना चिंतवन करवामां सदा व्याप्त, पोताना सर्व कुमारोमा मोहोटा एवा मोहकुमारने दीतो, तथा वली पो ताने अतिवनन तथा पोताना नक्त एवा सात व्यसननामा पुत्रोने पण दीठा. हवे ते सात व्यसन पुत्रोनां नाम कहे , १ द्यूत, २ मां सास्वाद, ३ मद्यपान, ४ वेश्यागमन, ५ पापदि. (मृगया) ६ चोरी. ७ परस्त्रीगमन, ए सात व्यसन पुत्रोनां नाम जाणवां. ते सात पुत्रो पण नव्यप्राणीयोने संसारमा स्थिर करे . कह्यु के ॥ श्लोक ॥ द्यूतं च मांसं च सुरा च वेश्या, पार्मिचौरी परदारसेवा ॥ सप्तापि चैते व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं ददंति ॥१॥ अर्थः- द्यूत, मांस, सुरा, वेश्यागमन, मृगया, चौरी, परदारसेवा. ए सात व्यसनो जे , ते जीवने घोरा तिघोर एवा नरकने देनारां . हवे ते कर्मपरिणाम राजा, पोतानी कालपरिणतिनामा स्त्रीने कहे , के हे प्रिये ! अति उत्तम अने राज्य धुरने धारण करवामां सशक्त एवा या आपणा पुत्रो पर राज्यनार नारखी सर्व व्यव साय बोडीने, हवे आपण वेदु सुखें रहियें तो सारूं? ते सांजली ते स्त्री बोली के हे स्वामिनाथ ! ते तोया योग्यज कह्यं . कारण के बुद्धिमान् पुरुषने तो या जे.हाल कह्यु, तेमज करवु उचित बे. ज्यारें वली आपणने आवा उत्तम पुत्र थया ,त्यारे हवे आपणने राज्यनी शी चिंता ? कांही नहिं.अने वलीया पुत्रो जे ,ते जेवा तेवा नथी, परंतु त्रण जगतने विपे श्लाघ्य गुण वाला . आवां ते स्त्रीनां वाक्यो सांजली ते कर्मपरिणाम राजायें मोहकु मारने पोतानी राजगादी पर बेसायो,अने बाकी सात व्यसननामा जे पुत्रो हता, तेने यथायोग्य स्थान प्राप्यां. अने पडी कर्मपरिणाम राजा कहेवा लाग्यो, के हे मोहपुत्र ! प्रथम पण सर्वाधिकारी तुंज हतो, माटे हाल पण राज्य तुनेज आप्युं छे, तेथी तुं हालमा प्रथमथी पण वधारे या आप णा पुरजनोनुं रक्षण करजे.अने हुँ तो हवे स्वस्थ थश्ने जे कांइ नगरमां नोवा लायक पदार्थो हशे, तेने जोतो थकोज विचरीश ? यावां वचन Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सांजली मोहराजा घणोज प्रसन्न यइने तेना पिताने कहे बे के जेम यापनी प्रसन्नता होय, तेम करो. तदनंतर मोहराजा सर्वजनप्रिय निष्कं टक राजाधिराज थयो . हवे एक दिवस, पोताना नगरमां एकदम बुंबारव यो के हे सुटो ! धोडो, धोडो !! या चारित्रराजा श्रमाने शिवपत्तनमां ल‍ जाय बे ! ते सांगली क्रोधायमान थयेलो ते मोहराजा पोताना मं त्रीने कलेवा लाग्यो के हे मंत्रिन् ! या शुं ठीक कहेवाय बे, के हुं जीवतां तां मारी प्रजाने ते चारित्र राजा हरण करी जाय बे ? अरे ! यावो मदोन्मत्त ययेजो चारित्र राजा ते कोण बे ? ने हे राग द्वेष सुनटो ! तो जगत विख्यात कीर्त्तिवाला पोतपोताना पुत्रोनी सार्थे तेनो पराजय करवा तैय्यार था. एम कहने वली ते मोहराजा पोताना मिथ्यादर्शन नामा मंत्री ने कहेवा लाग्यो के, हे मिथ्यादर्शन मंत्री ! तुं तारांज काममां निपुण हो ! जो या चारित्र राजाना लूंटारान्यें आपणुं समग्र पुर लुंटी लीधुं बे, तेने तो तुं जाणतो पण नथी ? अने यावा चारित्र राजा जेवा प्रापणें मा थापर शमन े, ते बतां तुं केम सुखमां सुइ रहे वे ? अने हे ज्ञानावर ादिक योध्याd! तमो जलदी चालो, के जेम श्रापणें कुष्ठ एवा चारित्रना म दने हालने हाल दमी नाखीयें ? यावां मोहराजानां वचन सांजलीने विवेक नामा मंत्रीयें विनति करी कह्युं के हे देव! प्रसन्न याउ प्रसन्न था. अटलो महोटो क्रोध शामाटे करो हो ? जुड़े हाल जे आपणा नगरमा चारित्र राजानो बुंबारव थयो, तथा चारित्र राजायें जे जोर करयुं, तेनुं कारण जे बन्युं बे, ते सांनलो. के तमारो पिता जे कर्मपरिणाम राजा बे, तेणे तमारी मासी जे चिरकालस्थिति बे, तेना विवाहने विषे पाणिग्रहण वखतें दायजामां था संसारनगरनी मध्यना एकशो सित्तेर पाडा एटले सर्व नरकर्मभूमि यापी बे. हवे ते नरकर्म भूमिना एकशो सिनेर पाडा केवी रीतें थाय ? ते कहे बे, के या दीदीप ने ते, तथा पांच जरत ने पांच ऐरवत, ए सर्व नरकर्मभूमि बे. हवे ते पूर्वोक्त प्रदीप बे, तेमां पांच विदेह बे ने एकेका विदेहमां बत्रीश बत्रीश विजय बे, तो ते पांच विदेहने ज्यारें बत्रीश गुणा करीयें, त्यारें एकशो साठ पाडा ते प्रदीप नरकर्मभूमिना थया. तथा पांच नरतना अने पांच ऐरवतना ए बेढ़ मिना मली दश पाडा थया. या प्रमाणें सर्व · Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद्र ने गुणसागरनुं चरित्र. მყე मी ते नरकर्मभूमिना एकशो सित्तेर पाडा थाय बे. हवे ते सर्व नर कर्मभूमि, कालस्थितिने दायजामां थापी बे. तो ते कर्मभूमिनो तमारी। मासीयें सुंदर, सौम्य, शूर एवा पोताना स्वामी धर्मराजाने राजा को बे, तेथे ते पाडामा फयाज करे बे, अने ते धर्मराजा एकांतें सर्वजननो हि तकारी बे, तेथी जे तेनुं श्राराधन करे बे, तेने ते संपूर्ण एवी सुख समृद्धि यापे बे. वली ते धर्मना प्रसादयकी सुखी थयेला अरिहंत, चक्री, हरि ने बलदेव वगेरेने जोइने प्रायः अनेक जनो तेवा सुखनी इब्बा माटे धर्म नुंज सेवन करे. हे राजन् ! आपना मिथ्यादृष्टि वगेरे अनुचरोयें पूर्वोक्त धर्मसेवक जनोने दुर्गतिरूप गढ़मां नरकनिगोदमध्ये घाल्या पण हता, परंतु ते काल स्थितिथी निकली निश्चिंत थइने पुनरपि ते धर्मनुंज सेवन करवा लाग्या बे. हवे ते धर्मराजायें पण घणा काल ते राज्य जोगवीने ते राज्य, पोताना चारित्र नामा पुत्रने प्राप्युं बे. तेथी हाल ते चारित्रज राज्य करे वे. ते चारित्रने पर कार्योद्यत थयेलो जोइने ते नृमिमां रहेनारा केटलाएक प्राणीयोयें ते चारित्र राजाने विनति कररी कयुं के हे स्वामिन्! या या पनी भूमिमां जातां श्रावतां श्रमोने मोहराजाना नृत्योथी जय रहे बे, माटे अमने एवं कोइक निर्नयस्थान बतावो के जेमां अमो निर्नय इ रहियें ? त्या चारित्रराजा बोल्यो, के हे नश्जनो ! ते मोहनृत्योथी न जवाय, एवी तो एक मुक्तिपुरी बे, परंतु त्यां निश्रेणि (निसरणी) विना जवाय तेम नथी. तेथी प्रथम तमो विवेकरूप पर्वत पर चढो, त्यां तमोने दर्पोत्कट एवा मोहना सुनटो पराभव करी शकशे नहिं. पढी त्यां पक श्रेणीरूप निसरणीयें चढ़ी सुखें करी मुक्तिपुरियें जजो एम कहिने ते चा रित्र राजायें ते जीवोने विवेकपर्वत पर चढाववा माटे सदागमनी योजना करी. ते सदागमें पण तेजने पर्वत पर चढावी, तेनी सायें पोताना प्रशमा दिक सुहृदोने मोकल्या, त्यारें ते सुहृदोयें, ते विवेकादिने विषे धर्मार्थी एवा कोइक दीन पुरुषो जे हता, तेने विशामो जेवरावीने केवलज्ञानथी देखाय बे मार्ग जेनो एवी जे मुक्तिपुरी ते प्रत्यें पहोंचाड्या ? अने हे रा जन् ! ते मुक्तिपुरिप्रत्यें जनारा जीवोने पकडवानी करी बे प्रतिज्ञा जेणें एवा तमारा नाम गोत्रादिक चार नाइयो, ते जीवोनी पढवाडे घणाज दोड्या, परंतु ते जीवो, तेने हाथ ग्राव्या नहिं, तेथी ते निराश थरने हाल Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. पोताने घेर यावी बेठा बे. अने हाल तेरोंज यावीने पोकार कस्यो ने के छापणी भूमिने चारित्र राजा खूंटे बे. या प्रमाणें हे राजन् ! श्रा श्रापणी नगमां बुंबारव यवानी जे हकीगत हती, ते सर्व कही खापी. माटे हे स्वामिन्! तेमां संरंन करी गुं करशो ? खने हवे क्रोध करवाथी पण सयुं. हे देव! या जे बन्युं ते सर्व, तमारी मासीना हाथमां नरकर्मभूमिना एकशो सिनेर पाडा जवाथीज बन्युं बे. हे राजन् ! तमारा सात व्यसन रूप सात जाइ पण निराश था पाता याव्या बे, अने तेणें पण यावी या सर्व वात मने कही थापी ते. या प्रमाणनां व्यविवेकनां वचन सांगली मो हराजा कहे बे के हे विवेक ! हजी शुं बगडी गयुं बे ? ते सर्व जीवाने प्रमादरूप मदिरा पार्टी, के जेथी पाढा ते ज्ञातधर्म य मारे विषे रागी याय ? ते सांगती विवेक मंत्रीयें जीवोने अज्ञान मदिरानुं पान कराव्युं, " ने तुरत पाठो विवेक मोहराजा पासें यावी कहेवा लाग्यो के हे देव ! यापनी प्रज्ञा प्रमाणें सर्व जीवोने में अज्ञानरूप मद्यनुं पान करावयुं वे. एम कहने ते, मोहराजाना चरणमां पड्यो. या प्रमाणें विवेकें कहां के में सदु कोइने प्रज्ञान मदिरानुं पान कराव्युं बे, तो पण तेनां वचन पर विश्वा सनाववाथी मोहराजा ते अविवेकनो हाथ जालीने नगरमां तेनो पोतें जातेंज तपास करवा निकल्यो. त्यां तो अज्ञानमद्यथी नाश यइ गयुं वे चे तन जेनुं तथा धर्माधर्म कार्यथी विवर्जित, पेयापेय, खाद्याखाद्यना ज्ञान र हित एवा सर्व विश्वने देखवा लाग्यो. तेमां पूर्वोक्त नरकर्म भूमिना एकशो सित्तर पाडा मां फरतां तेणें विषयी, पापंडी ने मिथ्याचाराने धर्म, धर्म, कहेता दीग, त्यारें मोहराजा ते विवेक मंत्रीने थांख्यो चडावी कहेवा लाग्यो के घरे मंत्री ! या लोकोने तें अज्ञान मद्य नथी पायुं, के ते धर्म धर्म एम कहे बे ? त्यारें अविवेक बोल्यो बे, के हे देव! तेने तो में घणुंज अज्ञानमद्य पायुं बे, तेथी ते अज्ञानरूप मद्यना जोरथी धर्म, धर्म, एम बोले बे, परंतु ते सर्व व्यापणा नगरथी बाहेर जइ शके तेम नथी. कारण के ते मिथ्यात्वी होवाथी खरा धर्मना रूपने जाणताज नथी. वली जुन के ते धर्म धर्म कहेनारा कांइ विवेकादिपर गया बे ? ना नथीज गया. तेम ते शमादिकोने पण मल्या बे ? ना नथीज मव्या. तेम ते चारित्र राजानी सेवा पण करे बे ? ना नथीज करता. तेम ते समिति गुप्तिने सेवे बे ? Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४४ए ना नथीज सेवता. ते सांनली मोहराजा बोल्यो, के हे अविवेक! था सर्व वातनी तुने केम मालम पडी ? त्यारें अविवेक कहे , के हे महाराज ! एक दिवस हुँ जीवोने पकडवा माटे विवेकाशि पर्वत पर चडवा तैय्यार थयो हतो, परंतु त्यां ढुंज्यारें चडी शक्यो नहिं, त्यारें में त्यां व्युग्रहादिक एवा सुनटोने मोकल्या. तो ते त्यां गया तो खरा, परंतु तेणें वली त्यां जश विश्राम लइ शुभागमनो विधि सांजलीने कदाग्रह कस्यो, तेथी तेउने पण ते विवेकाश्थिी नीचे उतारी मूक्या. अने तेथे मारी पासें श्रावी ते सर्व बीना मने कही , तेथी कांक जाणुं बुं. ते सांजली मोहराजा बोल्यो के हे अविवेक! मारी मासी जे चिरकाल स्थिति तेना पुत्रो को दिवस मारा नक्त होय, के नहिं ? त्यारें अविवेक बोल्यो, के हे राजन् ! आ विवेकास्थिीजे नीचें रहेला जीवो , ते तो तमारा नक्त होय बे, परंतु तेनी उपर रहेला जे घणाक उष्ट जीवो जे, ते तमारा नक्त होता नथी. माटे तमारा मासीना पुत्र जो विवकास्थिी नीचें होय, तो तमारा नक्त होय, नहिं तो होयज नहिं. ते सांजली मोहराजा जे जे, अत्युत्कर्षने विशेष करवा माटे दपै करी मदोन्मत्त थयो थको तथा घणाक पाखंमीयो ने घणाक वेष करावीने ते पुरने विषे क्रीडा करवा लाग्यो. ते जेम केः- ते मोह राजा गाय डे, नृत्य करे , रमे ले अने अन्यजनोने रमाडे , विराम पामे , कलह करे चे, विविध प्रकारनां वाजित्रो वगाडे , हसे , बीजा ने हसावे , एकने मारे , पृथ्वीमां आलोटे , घडी वारमा नय पामे बे, तपे , तपावे , सुवे , वेसे ,क्रोधायमान थाय ,वली बीजाउने क्रोध करावे , संतुष्ट थाय ने, बीजाने संतुष्ट करे , स्पष्ट रीतें शोक करे बे, राडो नाखे ,नखावे ,पोकार करे ने, करावे , विलाप करे ,करावे बे, कोकने चिरकाल पर्यंत मूर्नामां नाखे बे. या प्रमाणे अनेक लीला करे बे, अने नगरमां फरे . वली ते मोहराजा, पिताने पुत्र कहे , अने माताने दीकरी कहे , तथा पिताने अने माताने वैरी जाणे ले. स्त्रीने स्वामी कहे . विष्टा, मूत्र, वगेरे मलिन वस्तुथी नरपूर एवा स्त्रीना अंगोनु थालिंगन करे डे, अने तेवी स्त्रीपासें आलिंगन करावे . ते काम वली बीजा मनुष्यो पासे करावे जे. वली पोतें निर्लङ वस्त्र रहित थ स्त्रीयोना अशुचिमुखोनुं चुंबन करे , घणुंक माहापण करे डे, देवगुरवा Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. दिकने विषे स्तब्ध थ रहे , धने प्रमदाजनना पगमां पडे , पोताना सुनटोने आक्रोश करी बोलावे , विषम एवं रणसंग्राम करे , हर्षायमा न थइ, केटलाएकने मारे ले अने क्षणवारमा पोते पण मरण प्राय थ जाय बे. पोताना कुटुंबनां दान, पोषण अने पालने करी पोतें तेनो किं कर थइ रहे जे. अने वली पोताने माथे वृथा महोटाले ने, वली ते मोहराजा चार कषाय, पांच इश्यिोना विषय, ते रूप परिकरयुक्त तथा पोताना सात व्यसन रूप नाश्योयें सहित चौद राजलोकमां पोतानो पिता जे कर्मपरिणाम राजा, तेने संतोषने उपजावतो थको नव रस युक्त नाटयने करे . माटे हे जव्यो ! तमो एम जाणो के शार्यने धारण करनार, एवा प्रमादरूप वैरीयें जीतेला एवा राजें प्रमुख सर्व सं सारी प्राणीयोने ते मोहें हणेला. तथा मोहकुलना नपन्या जे इंख्यिविषय, तेमणें निरंतर ते सर्वने वशीभूत करेला , माटे ते इंख्यिविषयने न करवे करी अथवा तेने तजवे करी अथवा तेने वश करवे करी तमो अ क्ष्य सुखनु उपार्जन करो. अने में तमोने प्रथम कर्तुं ने, के तमारे सं ग्राम न करवो पडे, ते गुं? तो के पूर्वोक्त मोहराजाना कुलना उत्पन्न थये ला जे पश्यिना विषयो तथा तेना सात व्यसन रूप नाश्यो तेनो जो तमें प्रथमथीज घात कस्यो होय, अथवा तेउने तमें वश करेला होय, तो फरी पड़ी तेनो घात करवा माटे तमारे लडवू पडे नहिं. वली में तमोने कडं ले के जेमां तमोने बिलकुल रति नथी, तेमां रति करो, ते हे राजा ! संयम जे दे, ते पूर्वोक्त मोहसैन्यने नाश करनार , अने ते तत्त्वथी सुखदायक डे, परंतु तेमां बाह्य स्वादरहितत्व होवाथी लौकिक स्वाद नथी, तो ते बाह्य स्वादरहित एवा संयममां तमने रति एटले प्रीति नथी तो तेमां प्रीति करो. अर्थात् हे राजा! तमो मोहना पदने मू कीने चारित्रनो आश्रय करो. या प्रकारचें केवलीना मुखथकी धर्मनुं श्रवण करी मानतुंग तथा राज शेखर राजा बोल्या के हे प्रनो! आपें अमने प्रथमज कह्यु , के “तमोने अहधर्म राजानो सुबोध नामा दूत आवी ज्यारे सुदर्शन नामक चूर्ण खव राशे, त्यारें तमोने अज्ञानमद्यनो मद उतरशे? तेथी तमो सत्यार्थ जाणशो.” तो हे महाराज! आपना कहेला सद्बोधरूप दूतें अमोने हाल सुदर्शन Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५१ चूर्ण खवराव्यु, तेथी अमाझं अज्ञानमद्य उतरी गयु. माटे हे माहाराज! अमो आ सर्व संसारना सुखने प्रत्यक्ष रीतें अस्थिर न जापीयें बैयें. अने हे नगवन्! या असार अने इंजाल समान संसारने मोहांध पुरुषो जे , ते सत्य जाणे ,परंतु अमोयें तो हवे ते संसारने दुःखावहज जा एयो , माटे तेनो त्याग करी आपनी पासेंथी अमो तो संयम लेवा हियें बै? ते सांजली नगवान् कहे , के हे नृपोत्तमो! तमोने आवी संयमेहा थर, तेथी हवे तमें निश्चे जाणजो जे तमारु कल्याणज थयु. परंतु हवे तमो संयम लेवामां जरा पण विलंब करशो नहिं. कारण के इंडि यग्राम जे , ते पुर्जय , अने मन , ते पवन समान चंचल ले. तेथी हाल जेवी तमोने संयमेबा ले, तेवी पनी रहेशे नहिं ? ते सांजली राजशे खर राजा अने मानतुंग राजा, जय राजाने कहेवा लाग्या के हे नरें ! तमो अमारा आ राज्योने ग्रहण करी आ गृहस्थाश्रमरूप आपत्तिथकी अमारो निस्तार करो. जे आपत्तियकी बुटीबमें अमारा इलित कार्यने साधी यें ? ते सांगली जयराजा कहेवा लाग्यो, के हे राजा ! तमें कहो बोते खरी वात , पण ज्यारें मारी स्त्रीनुं वनदेवीयें हरण कयुं हतुं, त्यारेंज में अनिग्रह करेलो , के ज्यारे ते स्त्री मने मले, त्यारें मारे दीदा लेवी ? तो हवे ते मारो अनिग्रह पूर्ण थयो, अने हुँ तो तमोने मलवा पहेलांज चंपापु रीनु राज्य बोडी संयम लेवा तत्पर थयो हतो, परंतु तेम ते दिवस न बन्युं, त्यारें हवे ढुं, ते संयम सेवामां केम विलंब करूं ? वली तमोयें कह्यु के अमारां बेदुनां राज्य लीयो, तो हे नाश्यो! ज्यारे ढुं माहारा रा ज्यनी इला करतो नथी, तो तमारा राज्योने गुं करूं ? ते पनी ते त्रणे राजा-यें जय राजाना कुसुमायुध कुमारने पुण्याधिकवान जाणीने ते त्रणे राज्यो ते कुमारने आप्यां. अने तेय ते केवली नगवान् पासेंथी चारित्र अंगीकार कयुं. अने कुसुमायुध राजानी मा जे प्रियमती राणी हती, ते पण ज्यारें पोताना पतिनी साथेंज संयम लेवा तैय्यार थइ, त्यारे तेना स्वामी जय राजायें तथा पोताना पिता मानतुंग राजायें अने बीजायाम त्योयें ना कही. तेथी तेणें संयम लीधुं नहिं. हवे कुसुमायुध राजा, पोताना पिताने गाम आवी ते पितानी राज्य गादीपर बेठो, तेथी तेजःपुंजमय तथा शरदृतुना रविसमान प्रतिदिवस Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५३ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. शोनवा लाग्यो. अने तेना विनीत एवा मंत्री, सामंत वगेरे राज्यांगनुं चितवन करवा लाग्या. अने ते राज्यांगनी ज्यारे योग्य व्यवस्था करवा लाग्यो, त्यारे समृधिनी पण वृद्धि थवा लागी, तेथी ते सुख सागरमां निमग्न थयो. वली सगुणना समूहy धाम एवा ते कुसुमायुध राजानुं जे यश हतुं, तेने को पण तेकाणे रहेवानुं स्थान न मलवाथी क्रोधायमान थने ते त्रण जगतने विपे प्रसरी गयु. अर्थात् जेम को सारा माणसने क्यांश रहेवानुं स्थान न मले, तो ते जेम रोपयुक्त थइने सर्व स्थाने फरे ? तेम तेनु शुभ एवं यश पण त्रण जगतमा फरवा लाग्यु. ए कवियें नत्प्रेक्षा करी ने. हवे ते कुसुमा युध राजाने सर्व सारनूत एवी इतिथी संयुक्त एवं उत्तम राज्य प्राप्त थयु जे, तो पण तेमां तेनुं मन रंजित थातुं नथी. अने पोताना पिता जय राजायें जे धर्मनुं आचरण कयुं वे, तेवा अहधर्ममां राजी थाय . वली ते कुसुमायुध राजानुं मन, अरिहंत जगवाननी पूजा, यात्रा, स्नात्र पूजा वगेरेमा जेतुं प्रसन्न थाय बे, तेवं गीत, नृत्य, वाद्यमां, तथा नद्या नादिकमां केली करवाथी प्रसन्न थातुं नथी. वली ते राजाना राज्यने विषे स्त्रीयो, बाल, गोपाल, मागध जे कोइ गीतगान करे , ते सर्वे थईशुणयुक्तज गान करे ले, परंतु जिह्वाने मलिन करनार एवा शृंगार रसयुक्त संसारासक्ति वधारनार एवा गीतन गान करतां नथी. अने निष्कलंक, तथा व्रतरूप कलाथी पूर्ण एवो कुसुमायुधरूप जे अपूर्वचं, तेना उदयथी मिथ्यात्वरूप जे महा तम हतुं, ते जलदी दूरज जातुं रडुं. हवे ज्यारे विजयविमानमाथी च्यवी ते कनकध्वज राजानो जीव, कुसुमायुध थश्ने अवतस्यो, त्यारे तेनो मित्र जे जयसुंदर कुमार हतो, ते त्यांथी चवी क्या अवतखो ? ते कहे . के कुसुमायुध राजाने राज शेखर राजायें जे बत्रीश कन्यापरणावी हती, तेमां जेनुं कुसुमावली एवं नाम डे. एवी जे कन्या हती, तेमने ते कुसुमायुधे पट्टराणी करी , तो तेनीसाथें नोग जोगवतां कुसुमायुध राजाने घणोज काल व्यतीत थ गयो. हवे ते विजय विमानमां देवता थयेलो जयसुंदर कुमारनो जीव, त्यांथी च्यवीने ते कुसुमायुध राजानी पट्टराणी कुसुमावली राणीजे हती तेना उदरने विषे पुत्रपणे आवी उपन्यो. ज्यारे ते पुत्र गर्नमां आव्यो, त्यारे ते राणी स्वप्नमां निर्धूम एवो अनि दीठो. अने ज्यारें प्रातःकाल थयो, त्यां तो तेने प्रतिदिन ज Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५३ गाडवा धावता एवा वादक लोकोयें आवी तूर्यना शब्द करवा मांज्या, तेथी ते जागी गइ,अने तुरत पोताना स्वामीागल यावी ते स्वप्ननी सर्व वात कही आपी. ते सांजली कुसुमायुध राजायें राणीने कयुं के हे प्रिये! तमने एक उत्तम एवो पुत्र थाशे? ते सांजलीने ते राणी अत्यंत प्रमोदने पामी. हवे ते पुत्र, गर्नमां आव्यो तेथी राणीने सुपात्रने विषे दान देवाना दोहद उत्पन्न थया, ते सर्व दोहद राजायें पूर्ण कस्या. पनी गर्नने पालन करती एवी ते कु सुमावलीने ज्यारें दश मास पूर्ण थया, त्यारे उत्तम दिवसने विषे अत्यंत मनोहर एवो पुत्र प्रगट थयो. ते वखत राजायें पुत्रजन्ममहोत्सव कस्यो. घने ज्यारे ते पुत्र एक मासनो थयो, त्यारे तेनुं पोताना नाममांथी अर्थ नाम थावे एम " कसुम केतु" एवं नाम पाडयु. अनुक्रमें ते पुत्र समय एवी कलाउथी, तथा रूपथी, यौवनारंनथी, बलथी, सर्वजनने विषे प्रसि दिने प्राप्त थयो. एक दिवसें मथुराधिप महाकीर्ति नामा राजाना महा बुझिनामा आमात्ये चंपापुरीमां आवी, ते कुसुमायुध राजाने विनति करी के हे देव ! मथुराधिप एवा मारा स्वामी माहाकीर्ति राजानी मनोर मा वगेरे मनोहर, अतिरूपवती आठ कन्या , ते, विद्याना मदथी कोइ पण देशना राजकुमारने वरवा श्वती नथी. हवे एक दिवसें ते मथु रानगरीमां अमारा महाकीर्ति नूपनी सनामां को एक मागधे प्रावी उत्तम एवा वे श्लोको कह्या, ते त्यां बेठेली आहे कन्यायें सांजव्या. ते जेम केः- श्लोक ॥ प्रोकं प्रेम रतेः सारं, प्रेम्णः सनावएव हि ॥ प्रेमसन्नाव मुक्तानां, रतिर्नवति कीदृशी ॥१॥ धनेनैव हि साध्यंते, तदर्थिन्यः पणां गनाः ॥ कथं तानिस्तु गृह्यते, बेकाः सनावनाविताः ॥१॥ अर्थः- सुखनो जे सार, ते प्रेम . अने प्रेमनो जे सार, ते सत्राव . माटे प्रेमथी थयेला सनाव विना सुख केम होय? नानज होय ॥१॥ धननीअर्थी एवी जे पणां गना स्त्रीयो, ते तो धनथीज उपलब्ध थाय .तो ते धनार्थी एवी पणांग नाउ, सत्रावथी नावित एवा उत्तम पुरुषोनी केम ना करे ? ना नज करे ॥ ५ ॥ ते सांजली विस्मय पामेला अमारा स्वामी महाकीर्ति नूपें कह्यु, के हे मागध ! था श्लोकनो बनावनार कवि, सानिप्राय होय, एम लागे ? त्यारे ते मागध बोल्यो के हे प्रनो! था श्लोक करनारनुं वृत्तांत कढुं, ते सांन लो. के पोताना कुलरूप आकाशने विषे चश्मासमान, सर्व राजकुलरूप स Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मुश्ना सेतुरूप, कवितारूप चंमामा अब्धितुल्य, महाराजाधिराज एवा कुसु मायुध राजानो एक कुसुमकेतु एवे नामें पुत्र ..तेणें था श्लोको बनावेला बे. ते सांगली त्यां बेठेली ते महाकीर्ति राजानी आठे कन्या एक क्षण मात्रमा कामानिथी प्रदीप्त थइ गइ, बने ते सर्वेयें तेनेज वरवानो निश्चय कस्यो. कारण के ते कन्यायें जाएयु जे आ कुमार घणोज चतुर ले अने था पण जेवी मूर्ख कन्या तेने वरतीयो नहिं होय,माटे तेणें आबे श्लोक बनावी तेमां कहेवराव्यु , के सुखनो सार प्रेम , अने प्रेमनो सार खरो जाव बे, तो ते आपण जेवीयोमा न होवाथी आपणने ते नीरागी तथा सन्नाव रहित समजे ले? याप्रमाणे ते कुमारीयो तेवो गूढार्थ जाणीने कामानिथी व्याप्त थगइ. हवे ते समय कन्यानो अनिमाय जाणीने तेना पितायें मारी। साथे थापने कहेवराव्युंजे, जे या मारी कन्यान तो निगण होवाथापा पना गुणना सागर सरखा पुत्रनी समान नथी, तो पण आ मारी कन्यामां एक गुण , के ते सारा माणासना संगने ले ले, तेथी तेवो गुणवान तो तमारो कुमारज ने तेथी तेमांज रक्त जे. माटे ते बीजा कोइ पण राज कुमारोने वरवा श्वती नथी. तो हे महापुरुष! आपें कृपा करी आपना कुसुमकेतु कुमारने त्यां मोकलावी ए थावे कन्याउने सारी रीतें निवृत्ति पमाडवी जोश्यें. वली हे राजन् ! था चश्मा, कुवलयने प्रकाश करनार, शोल कलायें सहित, अंबरथी नूपित , तो पण जो ते थोडा घणा पण तारायेंथी आवृत होय , तोज ते तारापति कहेवाय . ते शिवाय क हेवातो नथी. तेम वनहस्ती जे , ते मनोहर शुंढादंम युक्त तथा अनेक लघु हाथीयो सहित होय, तो पण ते जो हाथणीयोये युक्त होय, तोज ते यूथनाथपणाने पामे डे. तेम आपना पुत्र सर्व गुणथी संपन्न , तो पण ज्यारे ते या अमारा स्वामी महाकीर्ति राजानी आठ कन्याउना स्वा मित्वने प्राप्त थाशे, त्यारेज उत्तम राजापणाने पामशे? अने हे महाराज! था मारां कहेलां वाक्यमां आपने जे कांश युक्तायुक्त नासतुं होय, ते कहो. एम कहीने ते मंत्री बोलतो बंध थयो, त्यारे कुसुमायुध राजा बोल्यो के हे मंत्रीश! तमारा स्वामी माहाकीर्ति राजायें तो आ युक्तज कहेवराव्यु बे, परंतु आ मारो कुसुमकेतु पुत्र जे , तेनुं हाल यौवन वय , तो पण तेने कोई स्त्री वगेरेनो बिलकुल राग नथी, तेम हास्य शृंगारयुक्त बोलतो Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५५ नथी, मुखने पण कोइ दिवस मचकोडतो नथी, तथा कां अंगविक्रिया पण करतो नथी. वली घरेणा वगेरेथी पोताना थंगने पण शोनावतो नथी. तेम कोइ स्त्रीयोना कटादोने जोतो नथी. जाजुं युं कहूँ? परंतु ते सर्व प्रकारनी क्रीडामां विमुख , विषयमां वैराग्यवान . तमें कहेशो के त्यारे तेने कया पदार्थमां राग ? तो के ए कुमार, एक योगीनी पहें शब्द ब्रह्ममां रागवान् ने, अने तेमांज मग्न बे. तेथी अमने तो कांश समज प डती नथी, के ते महामुनियोनी आझारूप महाव्रतने लेशे के झुं करशे? परंतु एना प्रत्यद आचरणथी तो स्पष्टरीतें एमज जणाय , के ए अमारा देशनी चिंता राखी राज्य तो पालशेज नहिं ? एम ज्यां कुसुमायुध राजा कहे , त्यां तो बडीदारें आवी नमन करी कह्यु के महाराज! सांकेतपुरना रविसेन राजानो सुगुप्त नामें घामात्य आवेलो डे, ते आपनी पासें आववा धारे बे, जो आप आज्ञा करो, तो तेने दुं आववा दलं? त्यारें राजायें दुकम कस्यो, के हा, आववा द्यो. त्यारे ते मंत्रीय यावी विनति करी कयुं के हे देव ! अमारा राजाने आठ कन्या . परंतु सर्व पुरुषनी वैरी तुल्य ते कन्याउ, राजकुमारना रूपथी रंजित थाती नथी. परंतु आपना कुसुमकेतु नामा पुत्रना रूपने जो अनंगपीडित थयेला होवाथी आपना पुत्र विना स्वस्थ थाय तेम नासतुं नथी. ते माटे रविसेन राजायें मुने यापनी आगल मोकलेलो . तो हे नाथ! कारुण्यामृतना सागर एवा आपने ढुं विनति करुं , के आ ापना कुमारने त्यां मोकलीने ते कन्याउनु आ कुमार साथें पाणिग्रहण करावी तेने जोवती राखवी. आवां ते मंत्रीनां वचन सांजलीने तेनी पासें पण पूर्वनी पठे ते कुमारना स्वनावनुं वर्णन कयुं, तेवामां तो वली वत्स देशना जयतुंग नामा राजानो सुनणित नामा दूत आव्यो, तेणें पण ते कुसु मायुध राजाने विनति करी कह्यु के हे देव ! मारा स्वामी जयतुंग राजायें आपने कहेवराव्युं ने, जे मारे गुणौधे करी परिपूर्ण, जरोली, स्वरू पवान एवी शोल कन्या , ते कन्याउने कोइएक नैमित्तिकें आवी कह्यु बे, के तमारो सर्वनो पति, चंपापुरीना कुसुमायुध राजानो पुत्र' कुसुमकेतु कुमारज थाशे? ते माटे मारी पर अनुग्रह करी ते कुमारने मारी साथें मो कलो, कारण के ते कन्या आपना कुमार विना बीजा कोनुं पाणिग्रहण Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. करशे नहि. यावां वचन सांजली कुसुमायुध राजा विचारमा पज्यो के अहो ! था मारो कुमार तो एक ले, अने आत्रणे दूतना कहेवा प्रमाणे त्रणे स्थलमां ते त्रणे स्थलनी कन्याउनो लम दिवस पण एकज डे.थने ते कन्या-ना पिता राजा पण सरखाज ले. माटे एकजदिवसें त्रणे स्थलं ते कु मारने लग्न करवा जावा- केम बनशे ? वली कदाचित् ढुं कुमारने एक राजाने घरेज मोकलुं,तो वली बीजा वेदु राजाने फुःख लागे, तो वृथा वैर थाय. तेथी एमज करवु केत्रणे जणने नाज कहेवी, जेथी कोने मुःखज न लागे? एम विचार करी। राजा, ज्यां तेत्रणे जणने ना कहेवा जाय , त्यां पोता ना महाबुधिनामा मंत्रीय जाण्युं जे राजा विचारमां पड़ी गयो , तेथी कां तो आत्रणे दूतने नाज कहेशे? एम जागी ते मंत्री बोल्यो के महा राज! श्राप विचार युं करो हो ? हाल जे, ते कन्या-ना पितायें जन शुक्षि जोइने जे दिवस लग्ननो निर्धास्यो , ते दिवस, आपणने बार वरसे पण मलवो कठिन ले माटे आपणो कुमर एक होवाथी ए त्रणे स्थालें जा एक दिवसें सर्व कन्याउनुं पाणिग्रहण केम करी शके? ते माटे या त्रणे जणने कहो, जे ते त्रणे राजा एकज दिवसें पोत पोतानी कन्याउने श्रा पणी नगरीयें मोकले, जेथोत्रणे राजाउनी सर्व कन्याउने एकज समाथी आपणो पुत्र वरे? ते सांजली कुसुमायुधराजा बोल्यो के हे मंत्री! तमो जेवा नामथी महाबुद्धि बो, तेम गुणथी पण तेवाज बो, माटे या वात घणीज उत्तम कही. ते सांजली त्यां बेठेला सदु को बुद्धिमान् जनो क हेवा लाग्यां के वाह ! घणुंज सारं धायुं ? ते पनी कुसुमायुध रामायें मेघना सरखी गंजीर वाणीथी ते त्रणे दूतोने कयुं के हे दूतो ! तमो सर्वेयें बाहिं धावी एकज दिवसना लग्ने मारा पुत्रने परणवा माटें कह्यु,तो ते मारो पुत्र एक लमें त्रणे स्थलें केम पोहोंची शके ? माटे तमारे तमारा स्वामीयोने कहेवू के जो तमारे कुसुमायुध राजा पर खरो स्नेह दोय, तथा तेना कुसुमकेतु पुत्रनी साथेंज तमारी पोतानी कन्याउने परणावानो दृढ निश्चय होय, तो तमारो जोवरावेलो जे जमनो दिवस , तेज दिवसमां लग्न थाय तेवी रीतें स्वयंवर करवा तैय्यार थयेली तमारी कन्याउने अाहीं मोकली आपो. कदाचित् तमो एम जाणशो, के अमारी कन्याउने सामी तमारे त्यां जम करवा मोकलवी, ते तो घणुंज अनुचित कहेवाय ? तो ते एम Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५७ जाणवू नहिं. कारण के कन्याउने सामे परणवा जवानो पण घणे स्थलें रीवाज , तथा शास्त्रमा पण कहेलुं . वली मारो पुत्र परणवा तो यावत, परंतु त्रणे स्थलथी जे तमें दूतो याव्या, तेमां तमोयेंत्रणे स्थलनो एकज लग्न दिन कह्यो ? ते सांजलीत्रणे दूतें पोताने गाम जई ते सर्व वात, पोत पोता ना स्वामीने कही थापी. ते सांजली अत्यंत खुशी थयेला ते त्रणे राजायें पोत पोतानी कन्याउने त्यां सामी जन माटे मोकलवा, विपे बुद्धिमान् लो कोनुं मत लीधुं. पनी अनेक एवा हाथी, घोडा, तथा सहस्रपरिमित रथो, लद एवा सुनटो, रू', मणि, कोटि सुवर्ण, घणीक दासीयो, दास, तेणें सहित, ते सर्व कन्याउने केटलां एक माणसोनी साथें त्यां चंपापु रीमा मोकली. त्यारे कुसुमकेतु कुमार पण पोताना पितानी आझाथी ते सर्वे कन्याउनु एकज लग्ने पाणिग्रहण कस्युं. अने पनी तेयें दोगुंदक दे वतानी पसें मनोहर एवा सुखसागरने विषे घणा दिवस पर्यंत कीडा करी. दवे एक दिवस सूरिपदने विषे थारूढ, अवधिज्ञानी, ते कुसुमायुध राजा ना मामा एवा सुंदराचार्य नामा मुनि कुसुमायुधना वृत्तांतनो उदय,अवधि झानथी जाणीने पोताना पुरंदरादिक एवा पांचशे शिष्योयें परित थका ते नगरीना उद्यानमांसमोसखा.त्यारे तेमना पधारवानी वनपालकें यावी वधा मणी आपी. ते सांजली,कुसुमायुध राजा ते वनपालकने अतुल दान दश, सर्व शहिये युक्त, पोताना पुत्र, सर्व स्त्रीयो अने आमात्य, गामनां लोको, तेणें सहित, ते मुनिने वांदवा गयो. त्यां जश् शमसंपन्न एवा ते मुनिरा जनां दर्शन करी, नक्तिनावथी प्रणाम करी प्रफुन्नित जेनुं मुख एवो ते राजा, मुनिनी समीपमा योग्यस्थान पर वेतो. पडी आचार्य पण ते राजाना उद्देशथी धर्मदेशना देवा लाग्या. ते जेम केः- ॥ श्लोक ॥ रम्यं रूपमरोगता सुनगता कांता मनःकामिता, व्यक्तित्वं त्रिदशेश्वरत्व मिति या कामार्थयोः संस्थितिः ॥ त्रैलोक्याधिपतित्वमप्यनुपमं मोदोपि यस्मानवे, धर्मस्तेन जिनेश्वरैरिह चतुर्वर्गायणीगण्यते ॥ १॥ लक्ष्मीर्वे इमनि जारती च वदने शौर्य च दोष्णोर्युगे, त्यागः पाणितले सुधीश्च हृदये सौनाग्यशोना तनौ ॥ कीर्तिर्दिा सपढ़ता गुपिजने यस्मानवेदं गिनां, सोयं वांनितमंगलावलिकते धर्मः समासेव्यताम् ॥ २॥ अर्थः-जे धर्मथकी, मनोहर एवं रूप, आरोग्यपणुं, सौनाग्य, मनोनिलषित एवी Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५७ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कामिनी, फुटडाइ, देवेंऽपणुं, काम अने अर्थ तेनी स्थिति, अनुपम एवं त्रण लोकनुं अधिपतिपणुं अने मोद. ए सर्व प्राप्त थाय , ते माटेज या लोकने विषे जिनेश्वर ते धर्मने सर्वेमां अग्रेसर गणेलो के ॥ १ ॥ वली जे धर्मना सेवन करवाथी प्राणीयोने घरने विषे लक्ष्मी, मु खने विषे सरस्वती, बेदु हायने विषे शौर्य, पाणितलने विषे दान, हृदयने विषे सारी निर्मल बुद्धि, शरीरने विष सौनाग्यनी शोना, दशदिशानने विषे कीर्ति, गुणिलोकनी साथै सपदपणुं. ए सर्व प्राप्त थाय छे. ते माटें हे राजन् ! वांडित एवी मंगलावतिने आपनार एवा ते धर्मनुं सारी। रीतें सेवन करो ॥ २ ॥ वली हे राजन् ! आ संसारने विषे जेनो संयोग थाय , तेनो पाडो अचानक वियोग पण थाय बे. अने माता, पिता, पुत्र ,कलत्र वगेरेनो जे संबंध में, ते पण स्वप्नसन्निन . तें माटे प्राणि मात्रने सुधर्मनु सेवन करवुज योग्य वे. तो हे राजन् ! तमोयें सर्व जोग जोगव्या , तथा घणा दिवस पर्यंत "श्रा कुसुमायुध राजा समान, बीजो कोई राजा नथी" तेवी कीर्ति पण संपादन करी .निर्मल अने व्यूढ एवो राजशब्द पण संपादन कस्यो , वली प्रणयिजनना मनोरथोने पण पूया ,ते माटे हवे तमारे जोगवी लीधो सार जेनो एवा या राज्यनो त्याग करवोज उचित बे. अने वली संयमव्रत लेवामां यत्न करवू योग्य जे. हे राजन् ! जुन तो खरा, के जे पत्रावलिमां आपणे परिपूर्णरीतें नोजन करी लीधुं होय, तो पण तेज पत्रावलिने पाबी चाव्या करिये, ते ठीक कवाय ? ना नहिंज. तेम तमोयें पण राज्य सारी रीतें जोगवीलीg , तो पण हजी तेमां आसक्ति राखवी, ते ठीक कहेवाय? ना नहिंज. या प्रकारनां सूरीश्वरनां वचनरूप अमृतथी सिक्त थयेलो राजा, पोताना चि तमां चिंतववा लाग्यो के अहो! था पूज्य, मारा एकांत हितकारकज . यहो! जगतने विषे थावा संत पुरुषो जे होय , ते परोपकारीज होय ने.कारण के आ मेघ जे ,ते परोपकार माटे जगतने विषे प्रतिवर्ष वर्षाज करे , तथा सूर्य , ते परोपकार माटे प्रतिदिन अंधकारनो नाशज कया करे जे, तेम चंश्मा , ते परोपकरार्थ अमृतने स्रवे . हवे ते सर्व तो तेवो परोपकार करे, परंतु या जे दो बे, ते पण पोतें टाढ, तडको वेठीने जगतना जनने फल, बाया, पत्र वगेरे पी परोपकार करे ने. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४पए तो आवा मुनियो परोपकारी होय, तेमां तो झुं आश्चर्य ? था जगतमां धावा उत्तम गुरु शिवाय, संसारथी जीवनुं कोई पण रक्षण करवा समर्थ नथी, तो आ गुरु,मारो संसारसमुश्यकीनचार करवाज पधारेला ले. कर्यु ने के, पिता, माता, भ्राता, जार्या, पुत्र, मित्र, सुहत्, मत्त एवा हस्ती, नट, रथ, अश्व अने वाली बीजो कोइ पण परिकर, नरकमां मुबता जीवो नो नदार करी शकतो नथी. परंतु धर्माधर्म प्रगट करवाने समर्थ एवा आवा गुरु जे जे, ते नदार करी शके . वली आ मारा गुरु तो मारो वि शेषे करी उपकार करवा आवेला .कारण के ज्यारें दुं बालक हतो,त्यारें ते पूर्वावस्थायें मारा मामा हता, त्यारे पण तेमणे मने राजगादीपर बेसास्यो हतो. अने हाल पाना मारी पर दया लावी मने संसारमाथी मुक्त करवा पधारेला डे. परंतु ढुं महामूढ बु. केम के मारा पितायें ज्यारें दीक्षा लीधी, त्यारें मने, तेमणे पण ते दीक्षामार्ग बताव्यो हतो, तो पण ते उत्तम मा गने विषे विषयामिषमां लुब्ध थयेलो ढुंहजी सुधी प्रवृत्त थयो नथी. अने हा, खरूं ले के, मोहांध एवा मुज सरखा पुरुषो,मृगनी पठे कूटपाशसमान, कुःख बंधरूप या राज्यमां पडे .पण ज्ञानीजनो पडता नथी.हवे जे बन्युं ते खरुं? परंतु हवे हुँ जेम बनशे तेम संसारना सर्व विचार बोडी दश्ने आ सुगुरुना व चनने पालीश? कारण के जे वचनना पालवाथकीया संसाररूप समुसुखें करी तरी जवाय जे? या प्रकारनो विचार करी ते संवेगी राजा गुरुने नमन करी कहे जे, के हे गुरो! मारा निष्कारण बंधु एवा जे आप, ते थापनां वचनने हुँ स्वहितार्थी तथा निःशंकमन थर, अवश्य पालीश ? एम कही ते नृप, नावना नाववा लाग्यो के अहो! सर्व नाग्यशाली पुरुषोमा हाल हुँ माहानाग्यशाली बु. केम के बाजे यावा सूरिपुरुष, मारी पर तुष्टाय मान थया ? जेम मंदनाग्यवालाना मंदिरमां सुवर्णनिधान प्रगट थाय, तेम संसारासक्त एवा मने अावा निधानसमान गुरुनो मेलाप थयो ? कह्यु डे के ॥ श्लोक ॥ धन्यानां सुप्रसन्नाश्च, जरामरणरुगहरम् ॥ गुरवः सुखदं दयू, रुपदेशमहौषधम् ॥१॥ अर्थः-जे जाग्यवान पुरुषो होय, तेमने अत्यंत प्रसन्न थयेला गुरु,जरा, मरण,रोग, तेने नाश करनार, अने सुख ने देनार एवँ उपदेशरूप औषध आपेले. एम नावना नावीने गुरुने कहे डे के हे स्वामिन् ! मारा कुमारने हालमांज राज्यासन पर बेसारीने हुँथाप Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० जनकथा रत्नकोष नाग सातमा. नी पासेंथी सर्वथा निरवद्य एवा संयमने ग्रहण करीश ? ते सांजनी सूरीदें पण याज्ञा खापी के हे राजन् ! एवो जो दृढ विचार होय, तो घेर ज‍ त मारा पुत्रने राज्य प्रापीने जलदी पाठा याहिं खावो. ते सांगली ते कुसुमा युध राजा घेर यावी पोताना सिंहासन पर वेसी कुसुमकेतु पुत्रने कहेवा लाग्यो के हे वत्स ! या श्रापणा राज्यने तुं ग्रहण करी राज्यवैवट चलावजे . कारण के हुं तो हवे सगुरु पासें जइ चारित्रने स्वीकारवा इतुं हुं ? ते सांगली ते कुपमकेतु कुमार बोल्यो के हे पिताजी ! आपें जे धायुं बे, ते योग्यज धारखं वे. केम के विज्ञाततत्त्व प्राणीने जे दीक्षा जेवी, तेज योग्य बे. परंतु हे तात! मुने तो आापना मुखदर्शन विना शाता उपजतीज नथी, तथा चेन पण पडतुं नथी. जुन. हे पिताजी ! या राज्यना सुख मां पण आपना सुंदर मुखने ज्यारें हुं वारं वार जोया करूं बुं, त्यारेंज मुने चेन पडे बे, नहिं तो या राज्यसुख पण मने विषसमान लागे बे. तेमज वली आपना दर्शन विना मने या वत्रीश स्त्रीयोना जोगनो योग पण दारुणडुःख समान लागे ते. अर्थात् अपना दर्शन विना राज्यसुख के बीजुं कां सुख, मने शाता करतुं नथी. जाजुं गुं कहूं? पण आपना विना माराथी कुल मात्र पण रहेवाय तेम नयी. अने हे पिताजी ! जे पिता बलता एवा वनमां पोताना प्रियपुत्रने मूकी पोताना बचाव माटे नागी जाय, ते शुं पिता कहेवाय ? ना नज कहेवाय. तेम याप पण, संसाररूप वनमां दुःखदावाग्नियी मुग्धमृग बालकनी पढें दाह पामता एवा मने मूकीने पोतानो बचाव करवा जागी जा. ए शुं ठीक कहेवाय ? ना नज कहेवाय. या प्रमाणें संवेरंगरंगित एवा पोताना पुत्रने जोइने कुसुमायुध राजा बोल्यो के हे पुत्र ! संयम जे बे, ते इंडियोनो जेणे जय करेलो बे एवा जे वृद्धपुरुष होय, तेणे सेवा योग्य बे, कारण के ते वृद्धोंनो स्वतः इंडियजय होय बे, तेथी तेनाथी ते पती शके. ने हे पुत्र ! हजी तुं तो बालक बो, तेथी वायुथी हलती ध्वजानी पढें तारुं मन घणुंज चंचल होय. अने तेवा चंचल मनने तुं हाल माथी पण रोकवाने समर्थ नथी. तो हे पुत्र ! हालमां तोयनेक विषय विलास जोगवी राक्रीडा करी, मननी सर्व इच्छा पूर्ण करीने ज्यारें तारी वृ STवस्था थाय, त्या ते अवस्थामां जितेंप्रिय थइने तुं चारित्रनुं ग्रहण करजे. Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४६१ आ प्रमाणे पितायें तेमज वली तेमनी मातायें घणुंज समजाव्यो, तो पण निश्चल जेनुं मन ले एवो ते कुमार कांश मान्योज नहिं. अने वली पालो कहेवा लाग्यो के हे पिताजी! उत्तम एवो को जलमां तरनारो होय, तेनी साथें कदाचित् कोइ काचो तरनार पड्यो होय.अने जो ते उत्तम तरनार दया लावीने ते काचा तरनारने ग्रहण करे, तो ते काचो तरनार पण तेउनी साथें तरीने कांठे गुंन आवे? तेमज वली संग्राममां पण शूरवीरना आश्र यथी बिकण योध्धायु करी रणनो पार गुं न पामे ? तेमज वली सार्थवाह नी साथें निःसत्व जीव जो चाल्यो होय, तो ते पण मोहोटी अटवीना पा रने पामी झुं न जाय ? तेम एकांत वत्सल एवा आप, जो मने दया आणी करावलंबन आपो,तो ढुंबालक बुं तो पण उर्गम एवा शीलरूप शैलपर गुं न चडी जालं? ना चडीज जालं. अने जे खरो योगी पुरुष होय जे ते समय जगप उद्यानमा फस्याज करे , तो पण तेनो मनरूप कपि, ज्ञानरूप सांकलथी बंधाणेलो होवाथी स्थिर थर रहे ले. तो हुँ पण ज्या चारित्र लश्श, त्यारें मारा मनरूप कपिने ज्ञानरूप सांकलथी बांधी राखीश ? आ प्रकारें संयममांज जेनुं चित्त लाग्युं जे अने संसारथी जेने उदासीनता , एवा ते कुसुमकेतु पुत्रने जोक्ने ते कुसुमकेतुथी नाना, पोताना देवसेन नामा कुमारने उत्तम दिवसमां पोतानुं राज्य आपी कुसुमकेतु पुत्र प्रमुख पांचशो पुरुषोयें, तथा कुसुमकेतुनी बत्रीश स्त्रीयो तेणे परिसृत, तथा कस्यो के जिनचैत्योने विषे महापूजारूप सत्कार जेणे, वाद्योना शब्दोयें करी बहेरं कयुं ने आकाश जेणे, हजार नरोयें वहन करेली पालखीमां बेठेलो, सैन्य सहित पोताना पुत्र देवसेन राजा जेनी पडवाडे चाले , एवो ते कुसुमायुध राजा, गुरुनी सान्निध्यमां आव्यो. त्यारें सूरी३ तेने तथा तेनी साथें दीदा लेवा आवेला जे कोइ हता, ते सर्वने दीदा आपी. हवे ते कुसुमायुध अने कुसुमकेतु,ए पिता पुत्र हता, तेमणे संवेगरूप सुधायें करी संयमरूप सुमनु सिंचन करवा मांड्युं. त्यारे ते संयमम वृद्धिंगत थयो. तेथी ते हृदयने विषे नितिरूप बाया करवा लाग्यो. कह्यु डे केः-॥ श्लोक ॥ या षट् खममहीजयस्य समये नासादिता च किनिः, या दोक्तकंधरारिमथने प्राप्ता न वा नूधवैः ॥ या प्राप्ता प्रियसंगमे विरहिणा केनापि नो वेदिता, सा लब्धा किल रागरोषविज Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. यात्तान्यां मनोनिवृतिः ॥ १ ॥ अर्थः- जे मनोनिवृत्ति, ब खंम पृथ्वीना जय समयने विपे चकीने मली नथी, वली जे मनोनिवृत्ति, दर्षे करी नक्षत एवा शत्रुना स्कंधना मथन करवाथी अर्थात् शत्रुना नाशथी रा जाउने प्राप्त था नथी, अने जे मनोनिवृत्ति, कोइ पण विरही मनुष्यने पोताना इष्टजनना समागमथी प्राप्त था नथी, ते मनोनिवृत्तिने कुसु मायुध तथा कुसुमकेतु ए बेहु मुनि, राग अने रोष तेना त्यागथी निचे प्राप्त थया ॥ १॥ हवे ते बेदु जणने पूर्वनवोनो स्नेह होवाथी ते ए कज स्थलमां रहे , तथा साथेंज जाय यावे . अने जे तप पिता करे , तेज तप पुत्र पण करे . ते जोड्ने एक दिवस गुरुये कह्यु के हे मुनियो! संसारीनी पते परस्पर स्नेह तमें राखो बो, ते योग्य नथी. कारण के मुक्तिपुरीना मार्गमा चालनारा तपस्वीयोने, जे स्नेहनी शृंखला मे, ते वजशृंखला . जुन. या दहिमां (स्नेह) चिकाश रहे , तो तेनुं लोको घणुंज मंथन करे , तेथी ते फुःख पामे . तेमज तिलमां अने सर्षवमां स्नेह एटले तेल रहे , तो तेने लोको घाणीमां घाली पीली नाखे . वली पोतानामां रंग होवाथी मजीठने पण कांइ थोडं फुःख पडे ने ? ना घणुंज. जुन. मजीठ जे , ते अति रक्त , अर्थात् रागवंत होय जे, तो ते बेदन, नेदन,कपावं, स्वदेशनो त्याग, ए वगेरे कुःखने प्राप्त थाय बे, तो ते ज्यारें मजीठ जेवी वस्तुने अति राग होवाथी पूर्वोक्त कुःख प्राप्त थाय , तो बीजा जीवने राग (प्रीति ) थवाथी कुःख थाय, तेमां तो गुंज कहेवू? अर्थात् स्नेह अने राग अतिकष्टकारक . माटे हे साधुन ! कर्म स्वरूपने न जाणनार अने अविज्ञात के धर्म जेने एवा जननी तो वात दूर रही, परंतु जे प्राणी माह्या बे, कर्मना स्वरूपने जाणनारा , नवसिद्धिया ने, गुरुपरंपराये विधिमार्गथी चारित्र पाले में, तेवा पुरुषो प ण जो स्नेह राखे , तो ते केवलज्ञान पामता नथी. वली आ अपार एवा संसारमा माता, पिता, सुत, स्त्री, सुहृद्, रिपु, एमांथी एकेक जण अनंत वार स्वजनपणाने अने थरिपणाने प्राप्त थयां हशे, तेमां वली ते जीवोने कोश्य को वखत नूखथी खाइ पण लीधा हशे, रोषथकी मास्या पण दशे, तेमज स्नेहथकी पाल्या पण दशे? तो ते जीवोमां तत्त्वज्ञानी जनोने राग, रोष करवो उचित ? ना नथीज. ते सांजली ते बेढ़ मुनि बोल्या Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४६३ के हे गुरो! आप कहो बो, ते खरी वात , अने अमें पण जाणीयें बैयें के स्नेह जे , ते बंधन , संसार वधारनारो , तथा मोदमार्गमा अवरोध करनारो ने, परंतु ज्ञाततत्त्व एवा अमने बेहुने परस्पर स्नेह घणोज रहे बे, ते, कारण अमाराथी कांइसमजातुं नथी तेथी हे महाराज! ते ते अमोने पूर्वनव- कारण दशे? के आ नवनुं ? ते आप जाणो बो, माटे कृपा करी कहो? ते सांनली पोताना अवधि ज्ञानथी गुरुये ते बेदुना पूर्वनवोनो संबंध कहि थाप्यो. अने कह्यु के तमारो बेहु जणनो स्नेह जन्म जन्मने विपे पोषण करेलो ने, तेथी ते हाल उस्त्यज थयो , परंतु हे मुनियो ! ते स्नेह, मोदसुखनो विघातक डे, माटे तमारे तेनो त्यागज करवो जोश्यें. या प्रकारें गुरुना मुखथकी पोताना पूर्वनवोनां चरित्र सांजलीने उत्पन्न ययुं दे जातिस्मरण झान जेने एवा ते बेहु मुनियो, ममत्वनो त्याग करी निरंतर जुदोज विहार करवा लाग्या. हवे एकदिवस महासत्त्व एवा ते कुसु मायुध मुनीं, गुरुना वचनथी तीव्र आकरी प्रतिमाने एटले अनिग्रहतपने आदरे , तेथी ते मुनि, विहार करतांज्यां रात्रि पडे , त्यां स्मशानमां के, नय युक्त नूमिमां के,उजड एवा घरमां के, पर्वत पर के,जाडतले के, सिंहथी के, हाथीथकी के बीजा पण घातकी जंतुथी निर्नय थश्ने कामस्सग्गध्यानमा लीन थश्ने रहे .अने नीरस एवा आहारेकरी शरीरने शोषवता, तथा धर्म ध्याने करी कर्मने शोषवता एवा ते मुनि, घणाक नपसों आववाथी पण मेरुनी पढ़ें स्थिर रहे . हवे एक दिवस ते कुसुमायुध मुनि, विहार करता करता सुनौमनामा नगरमां आव्या, त्यां रात्रि पडी जवाथी ते मुनि रात्रे कोश्क शून्यघरमा एकाकी निश्चलपणे कास्सग्ग ध्याने रह्या.ज्यां मध्यरात्रि थर, त्यां तो तत्रत्य कोइएक मनुष्यना प्रमादथी गाममां अग्नि लाग्यो, ते बलतो बलतो शून्यघरमांज्यां कुसुमायुध मुनि काउस्सग ध्याने रह्या ले, त्यांज याव्यो, तेथी ते घर पण सलगवा लाग्युं. तथापि ते मुनियें ध्यान बोडी पोता नी कामस्सग्गनीप्रतिझानो त्याग करी ते उपसर्गथीःखित थ पलायन कयुं नहिं. त्यारे ते मुनि नावनासक्त तथा गुक्तध्याननेविषे समाहित थकाज त्यां मरण पामी सर्वार्थसिम महाविमानने विषे उत्तम देवता थया. पडी प्रातः काल थयो, त्यारे ते मुनिने प्रज्वलित थयेला जोड्ने गामनां माणासो अत्यं त खेद पामी पोताना बली गयेला माल तालने न संचारतां घणोज शोक Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. करवा लाग्यां के अरे ! था माहात्मा पुरुष, यावा शून्यघरमा क्यारें गया हशे ? अरे ! तेने कोश्यें आ घरथी बाहार केम न काढया ? अरे ! आवा घोर पापथी थापणे क्यारें छूटगुं? अरे! आपणे तपास न करवारूप पाप थी या लोकमां मोहोटा कलंकने प्राप्त थयां? अने वली परलोकमांआपणने नरकवेदना जोगववी पडशे? हा, हवे शुं करीयें? एम घणी वार सुधी शोक करीने ते साधुनी नचित एवी उत्तर क्रिया करीने ननि जेनां मन वे एवा ते लोको, घणे दिवसें पोत पोताना कार्यमा लाग्यां. हवे जे वरखतें ए कुसुमायुध मुनि देवलोक गया, ते वरखतें तप संयम बाराधतां शुक्लध्याने दपक श्रेणि आरोहतां सावस्तीपुरीने विपे सुदर्शननामा वनमां ते सुंदराचार्यने केव लझान उत्पन्न थयुं ? त्यारे विस्मयने प्राप्त थयेला एवा निकटवर्ती जे देवो हता, तेणे केवलज्ञाननी उत्पत्तिनो महोत्सव कस्यो. अने वली ते मुनियें कंचन कमलपर पान धस्या. अने ते देवो तेमनी समीप नाटक करवा लाग्या. पडी ते मुनियें देशना देवानो प्रारंन कस्यो. ते वखतें केटलो एक उपदेश करयो. त्यारे कुसुमकेतु मुनियें समय जोइने सोत्कंतितपणे ते के वली नगवानने पूब्यु के हे जगवन! कुसुमायुध मुनि हाल क्यां विचरे ? त्यारे ते केवली नगवाने तेने जे कांश वृत्तांत बन्युं हतुं, ते सांग कही आप्यु. अने तेना ध्यान दृढपणानी प्रशंसा करी. तथा कह्यु के एवा अ मिना मोहोटा उपसर्गमां पण ते मुनियें स्वहित साध्यु ? हे मुने! संयम लेवु, तथा तेने पालवं, ते तो सोहेलुं , परंतु अंतकालें आवा महोटा परिस हमां शुक्त ध्याननी याराधना करवी घणीज कतिन , तो पण ते कुसुमा युध माहामुनि, पुष्कर एवा परिसहने सहन करीने शुक्लध्यानथी काल करीने सर्वार्थसिह महा विमानमां तेत्रीश सागरोपने आनखे देवतापणे न पन्या . परंतु हे महानाग! तेनी काल कयानी कांशोचना करशो नहिं. कारण के तमें पण तेज ठेकाणे जर तेने मलशो. तमे वेहु जणे हवे या संसार समुह प्रायःतरीज लीधो डे, एटले हवे तमोने बेहु जणने मोदज वाने जाजो विलंब नथी. या प्रकारनां केवली नगवाननां वचन सांजली ते कुसुमकेतु मुनियें, वैराग्य पामी गुरुनी आज्ञा लश्ने संलेषणा करी. तेयी तेना अंगमां अस्थि अने चर्मज अवशेष रह्यां. वली ते इव्य बने जावना शल्योनो उद्धार करी ते सशुरुनी आज्ञाथी पादोपगमन एवा अ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४६५ नशन व्रतने प्राप्त थया थका पोतानुं कांड पण वैयावञ्च न करावतां प चीश दिवसें काल करीने ते कुसुमकेतु मुनि, ज्यां कुसुमायुध मुनि तेत्रीश सागरोपमने रखे देवता थया ने, त्यां तेनी साथें देव थश्ने रह्या. ॥ श्लोक ॥ शमांजोधिमग्नौ सदाऽऽध्यात्मलग्नौ, वियोगे सुयुक्तौ सुसंतोषयु तौ ॥ त्रयस्त्रिंशतासागरैर्देवनावं, चरित्वा वरागण्यपुण्यस्वनावम् ॥१॥ गद्यं ॥नवसंजवानामनित्यतां झानतश्च पश्यंती तावदभुतसुखं नुत्का व्युत्वा सिदि लनिष्यतः ॥२॥ अर्थः-शमरूप सागरनेविषे मन, निरंतर अध्यात्म झानमां एटले चिदानंदमां लग्न, संसारना वियोगमां युक्त तथा कर्मना संयो गथी मुक्त, संतोष गुणथी युक्त एवा ते बेदु मुनि, शुद्ध चारित्रने पाली श्रेष्ठ अने अगणित पुण्यना स्वनाववाला अर्थात् अतुलपुण्य होवाथीज जे नव नी प्राप्ति थाय बे एवा देवनवने प्राप्त थया ॥१॥ अने तत्त्वज्ञानथकी आ संसारमा उत्पन्न थयेला सर्व पदार्थोनी अनित्यताने जोता एवा ते बेद देवो, ते लोकना अभुत सुखने नोगवी, त्यांथी ज्यवीने सिदिने एटले मोक्ने पा मशे॥ इति पृथ्वीचं गुणसागरचरित्रे कुसुमायुधनृप कुसुमकेतुपुत्रनववर्णन नामा दशमः सर्गः संपूर्णः ॥१॥ बाहिं शंख राजा बने कलावतीना नवथी मामीने पृथ्वीचं अने गुणसागरना वीश नव संपूर्ण थया ॥ २० ॥ ॥ अथैकादशसर्गस्य बालावबोधः प्रारच्यते॥ ॥ लोक ॥ जय अर्हन्मतांनोधि, गांजीर्येणानिशोनितः॥ गृहीत्वा शील रत्नानि, संतः स्युःसुखिनो यतः॥१॥ अर्थः-जे अर्हन्मतरूप रत्नाकरमाथी शीलरूप रत्नोने ग्रहण करीने सुझ पुरुषो सुखी थाय , तो ते गांनार्यगुणोथी सुशोजित एवो अर्हन्मतरूप अंनोधि, सर्वोत्कृष्टपणे वतॊ. हवे ते देवता थयेलो कुसुमायुधनो जीव, एकवीशमे नवे क्या अवतस्यो ? ते कहे . के जंबुद्दीपना नरतदेवने विषे वैताढयथकी दक्षिण जरताईनामा खंगने विषे लक्ष्मीथी मनोहर एवा कोशलनामा देशने विषे सुपात्रदान. सन्मान, गीत, नृत्य, तेना अनेक जेदोथी, स्वर्गपुरीथी पण श्रेष्ठ अने श त्रुथी पण जेनो पराजय थ शके नहिं, एवी एक अयोध्यानामा नगरी जे. जेनी रचना, पहेला आदिनाथ जगवानना राज्यनी वखतें इंश्ना कहेवा थी देवतायें करेली . ते अयोध्यानामा नगरीनु, अरिरूप करीना विदार Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. णमां सिंहसमान, सर्व प्रजाने पितासमान,धनदानमांधनद समान, शत्रु ने यमसमान, स्वाश्रितजनोने सुरम सरखो, एक हरिसिंहनामा राजा राज्य करे . ते राजानी,नेत्ररूपपद्मोयें करी परानव पमाड्यां में पद्म जेणें अने इंशणी समान बाहार करनारी, निर्मल एवा मुक्ताहार वगेरे आनरपोथी सुशोजित एवी एक पद्मावती नामा स्त्री . हवे जेमां बीजा को शत्रुनो प्र वेश थज शकतो नथी एवी ते नगरीना राज्यने नोगवतां तथा ते पद्मा वती स्त्रीनी साथै विषयनोग जोगवतां, ते हरिसिंहराजानो केटलो एक काल, स्वर्गमा जेम देवताउनो जाय, तेम गयो. हवे पूर्वोक्त सर्वार्थ सिझविमानने विषे देवता थयेलो अने माहापुण्य वान् एवो ते कुसुमायुधराजानो जीव, त्यांथी च्यवीने ते पद्मावती राणीना उदरसरोवरने विषे राजहंसनी पर्नु आव्यो. त्यारे ते राणीयें शय्यामां सूतां सूतां रात्रिना पाउला प्रहरमां स्वप्नने विपे देवतायें अने देवीयोयें पूर्ण, ए, एक सुरविमान दीतुं. त्यां तो तुरत ते जागी गइ. अने पनी थ त्यंत हर्षायमान थइ पोताना स्वामीनी पासें जर ते स्वप्ननी वात कही थापी. त्यारेते राजायें कह्यु के हे प्राणप्रिये ! आ स्वप्न तमने घणुंज नत्तम आव्यु डे, कारण के आ स्वप्नथी तमने मनोहर एवो पुत्र उत्पन्न थाशे ? ते सांजली प्रसन्न थने ते गुज एवा गर्ननु पालन करवा लागी. अने गर्नना प्रनावथी ते राणीने जिनपूजा, सत्पात्रदान, जीवदयापालन प्रमुख सारा पुण्यकारी दोहद उत्पन्न थया. ते सर्व, हरिसिंह राजायें पूया. एम करतां ज्यारें नव मास अने साडा सात दिवस थया, त्यारे ते राणीयें उत्तमदिवसें सबल लग्नमां स्वरूप तथा गुणोयें करी अभुत एवा एक पुत्रने प्रसव्यो. त्यारें तो ते राणीनी प्रियंगुलेखानामा दासीयें जश् हर्षथी हरिसिंह राजाने वधा मणी थापी, के महाराज! आपने त्यां मनोहर पुत्र आव्यो? ते सांगली अत्यंत उन्नास पामी राजायें ते दासीने वधामणीमां घjक दान आप्यु अने पडी प्रेक्षक लोकोने विस्मय थाय, एवो पुत्र जन्ममहोत्सव कस्यो. याचक लोकोने अतुल एवां दान दीधां. अनुक्रमें ते पुत्र ज्यारें एक मा सनो थयो, त्यारे ते पुत्रनुं सारा मुहूर्तमां स्वजननी साहीये, ते पुत्रना जन्मथी पृथ्वीमा महोटो आनंद उत्पन्न थयो , तेथी तेनुं “पृथ्वीचं" एवं नाम पाडयुं. पड़ी ते पुत्रनुं पांच धाव माता पालन करवा लागी. Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ४६७ दवे ते पृथ्वीचंद कुमारने या एकवीशमा नवमां पूर्व नवोपार्जित पुण्यनरने योगें बाल्यावस्थामांज जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न ययुं. तेथी तेने पोताना आागजा सर्व जव सूज्या. माटे ते जवोमां थयेला धर्मना प्रतापने जास्यो तथा तेमां सं सारने असार जाएयो हतो, ते पण जाएयुं. तेथ। तेने अल्पावस्थामांज संसार पर तीव्र वैराग्य थयो. पढी ते अनुक्रमें कामक्रीडाना कानन समान यौवन वयने प्राप्त थयो. तोपण तेने संसारपर तथा पोताना देह पर खरो वैराग्य होवा श्री सरस नूपण, केनिक्रीडा, हास्यविलास, हस्तोपर बेसवं, अश्वपर बेसवुं, धनुर्विद्याना प्रन्यास, ए प्रमुख कांइ पण सांसारिक सुख गमतुं नथी. वली ते स्नान करे बे, पुष्पमाला, अलंकार वगेरे धारण करे लें, तो पण ते सर्व, व्यव हारमात्रथीज करे बे. अर्थात ते सर्व रागथी करतो नथी, त्यारें ते रागथी करे ? तो मात्र अरिहंतनां चैत्यो, साधु, साधवी, साधर्मिनाइयो, तेनी पर पूर्णनाव करे बे, तथा धर्मकृत्यमां अनुदासीनपणुं राखी, ते काम प्रनृ तिने हर्षथी करे बे. या प्रकारना संसारपर गतराग एवा पोताना पुत्रने जोश, तेनो पिता हरिसिंहराजा चिंता करवा लाग्यो के अरे ! या पुत्र तो कोइक महावैराग्यवान होय, एवो लागे बे. तो हवे ते, संसारना जोगमां केम यासक्त थाशे ? ने हवे तेने हं संसारासक्त थवानो शो उपाय करूं ? अने केम थाशे ? एम थोडी वार चिंता करो, पढी विचारवा लाग्यो के हा, तेनो एक उपाय ले खरो, तेसुं ? तो के तेने उत्तम रूपवाली केटली एक स्त्रीयो परणावुं ? कारण के ज्यारें ते स्त्रीयोने पराशे, त्यारें तेने ते स्त्रीयोज विषयासक्त करशे. कयुं बे के जे पुरुषने ज्यां सुधी स्त्रीयोयें नरमाव्यो नयी, त्यां सुधोज ते पुरुष धर्मा ग्रही रहे बे. एम विचारी राजायें ते पृथ्वीचंद कुमारने परणावानो निश्वय कस्यो. त्यारे तेणें जयपुरगाममां पोताना साला जयदेव राजाने पोताना मंत्री साथें कहेवराव्युं, के कोइ पण आपणा कुलने घटे एवा मोहोटा राजानी जो कन्या होय, तो तमारा नाणेज पृथ्वीचंड्ने माटे तपास करजो. ते समाचार मंत्रीयें खावी कह्या. ते सांजली जयदेव राजा खुशी य‍ तेनो तपास करवा लाग्यो. तेवामां एक तेनो मित्र कोइ मोहोटो कुलीन राजा हतो, तेने कन्या होवाथी कयुं, के तमारी याठ कन्याने छे, ते अमारा नाणेजने पो. ते सांनजी ते बोल्यो के मारे एक ललितसुंदरीनामा कन्या बे, तेने तो तमारा जाणेजने खापवानो मारो प्रथमयीज विचार बे. परंतु Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ មិច जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. . ज्यारें तमें कहेवा आव्या डो, त्यारें आ मारी बीजी सात कन्या , ते पण ढुं तेनेज आपुं . एम कही ते आठे कन्याउने टथ्वीचंइने वाग्दानथी आपी. पढ़ी जयदेव राजा ते आठ कन्याउने विवाह सामग्रीसहित पोताना जयपुर गाममा लाव्यो. अने तदनंतर ते कुमारना मामा जय राजायें पोतें पण विचार कस्यो के ढुंपण कनकावती प्रमुख मारी जे आत कन्याउने, ते पृथ्वीचं कुमारनेज आपुं ? एम विचारी पोते पण ते कनकावती प्रमुख पोतानो आते कन्याउने पृथ्वीचंने आपवानो निश्चय कस्यो. पनी ते पूर्वोक्त लजितसुंदरी वगेरे आठ तथा पोतानी कनकावती प्रमुख पाठ.ए सर्व मली सोल कन्याउने ते कन्याना ना तथा सैन्य साथे लग्नोपस्कर सहित अयोध्या तरफ मोकलावी. ते कन्याउनी ज्यारें आववानी खबर पडी, त्यारे तेनने नरसिंह राजायें मनोहर एवा उतारा थाप्या. पनी ते राजा, पोताना पृथ्वी चंड कुमारने विनववा लाग्यो के हे वत्स! आठ कन्या कोक मोहोटा राजा नी, तथा आठ तारा मामानी, एम सोल कन्याउने आपणी उत्तमकीर्तिने लीधे बांही तारी साथें पाणिग्रहण करावा माटे तारा मामायें मोकलेली बे, तो हवे ा तारा मनमां वैराग्य तथा उदासोनपणुं , ते तुं काढी नारख्य. अने ते उत्तम सोल कन्याउनुं उत्साहथी पाणिग्रहण कस्य. अने हे पुत्र! अमारा चित्तने चेन पण एम करवाथीज पडशे ? वली हे सुत! ग्राम तारा अत्यंत गतरागपणे रहेवाथी अमने मनमां घगुंज कष्ट थाय ने. हे पुत्र ! तुं जो तो खरो.के या बीजा राजाउना कुमारो हास्य, विनोद, लीला, शृंगार प्रमुख करी केवो आनंद लेने ? तथा अश्वपर हाथीपर रथपर बेसी केवी मोज मजा माणे ? अने अमारा मंदनाग्यने लीधे तुंबावो त्यागी जेवो क्याथी थयो ? माटे हे कुलदीपक ! ते सर्वराजकुमारोनी पढें तुं पण सुखोपनोग कस्य. अने आहीं आवेलीया कन्याउनुं पाणिग्रहण पण कस्य. आ प्रकारना पोताना पितानो आग्रह जोइने ते पृथ्वीचं विचाखू के मारा पितानो कुराग्रह माटे माझं लग्न करूं ? ते थया पली बाबीचारी कन्याउने शुधर्ममार्गमा प्रवर्त्तावीश परंतु आ महारा पिताना फुःखदायक उपदेशया दुःखांनोधि समुश्ना विषसमान विषयोमां बीलकुल बासक्त थाइश नहि.एम करतां कदाचित् हाल जो दुं मारा पिताने या कन्या साथें परणवानी ना कहूं, तोते ने घएंज कुःख थाय ? एम विचारीने ते Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४ाए कुमारे हा विना ते सर्व कन्योउनी साथे परणवु कबूल कयुं. त्यार पड़ी जोषी लोकोयें बतावेला सन्मुहूर्तनेविषे ते पुत्रनो विवाहोत्सव करवा मांमयो. ते केवी रीतें? तो के ते विवाहने समये अयोध्या नगरीमां आ नंदा वि वथी विविध शृंगारवाला नरनारीना गणो, जाणे स्वर्गमांथी देव देवीना समूहज आव्या होय नहिं ? तेम शोजवा लाग्या. वली ते वि वाहना समयमां गीत, उत्तमनृत्य अने अनेक वाजित्रादिक, तेणें करी अभुत एवी ते अयोध्या नगरीने जोश्ने चंचल एवा आकाशगामी खेचरो पण त्यां स्थिर थइ उना रह्या. वली ते समय गंनोर एवा तूर्यना नि? पना प्रतिशब्दयकी आकाश पण अतुब उत्सवने विस्तारे जे. ते समयमां त्यां नबलता एवा कपूरपूरना सुगंधथी जुब्ध थयेला चमराज्य मंजु गुंजारवोयें करी आखी नगरीने आनंदमय करी दीधी. वली अति हर्षित थयेलो एवी तत्रत्य स्त्रीयोनां, लग्न समयमां वरवधूने आशीर्वाद देवानां गान करेलां जे गीतो, तेणे करी ते नगर अत्यंत रमणीय लागे . या प्रकारें जगऊनना मनने यानंददायक एवो विवाहोत्सव प्रकृत्यो. त्यारे जीत्यो ले काम जेणे, अतएव निर्विकार एवो ते पृथ्वीचंद कुमार, चित्तमां चिंतववा लाग्यो, के अहो ! असार एवा संसारने विषे या माहामोहनो महिमा तो जु! के जे मोहमहिमायें करी अज्ञात के तत्त्व जेने एवा प्राणीयो, घणीज कदर्थनाने पामे दे. तेम उतां पण ते मोहाविष्ट थया थका ते प्राप्त थयेली कदर्थनाने जाणताज नथी. तेथी आ गीत, वाद्य, नृत्य, प्रमुखने सुख माने जे. परंतु जो खलं जोश्ये, तो जे आ गीत , ते वृथा बकवादज , अने वाद्य बे, ते केवल कान फोडवानुं साधन , अने या नृत्य जेने, ते नांमचेष्टाजले. शास्त्रमा पण कहेलं , के ॥ गाथा ॥ सवं विलवियं गीयं, सवं नर्से विडंबणा ॥ सवे आनरणा नारा, सव्वे कामा उहावहा ॥ १ ॥ अर्थः-जे गीत , ते सर्व वित्तपित ने एटले स्त्रीविलापज बे. सर्व नाट्य , ते केवल विटंबणा , तथा सर्व काम जे, ते दुःखना देवावाला ॥ १॥ वली पुष्पमाला तथा आनरण प्र मुख धारण करी या लोको पोताना शरीरने सुशोनित करवा धारे ले, परंतु ते शरीर तो आनरणादिकथी शोनतुंज नथी. कारण के ते स्वनावधीज असुंदर ? तो ते स्वनावथी असुंदर एवं आ शरीर, वली माव्य तथा Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. आनरणादिकोना धारण करवाथी सुंदर थाय? ना नज थाय. वली ते सुंदर थाय नहिं एटझुंज नही, परंतु अमेध्यपूर्ण अने कुत्सित एवा ते शरीरना संग श्री माव्य, अलंकार, सुंदर वस्त्र प्रमुख जे कांइसारा पदार्थो होय , ते उलटा अपवित्र थजाय . कहेलुं के ॥ श्लोक ॥ वसात्वमांसमेदास्थि, मजा शुक्रांतवर्चसाम् ॥अशुचीनां पदं कायः, शुचित्वं तस्य कुत्रतः॥१॥अर्थःवसा, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मजा, वीर्य, अने विष्टा. ए वगेरे अशुचि पदार्थोनुं स्थानकचूत एवं जे आ शरीर, तेमां वली पवित्रता ते क्यांयोज होय ? ना नज होय ॥१॥ जेना नवे झारथी खराब पदार्थो, समय नगरना खालमांयी जेम पाणी प्रमुख निकले, तेम निकट्याज करे . अने केवल मांस वगेरे अशुचिपदार्थथी बंधायेला आ देहने विपे जे पवित्रपणानो सं कल्प करवो, ते पण महामोहनीज विडंबना . एम जाणवू. वली गतसार एवा संसारमा कोनो कोण पुत्र ? अने कोनो कोण जाइ ले ? तेम कोनो कोण स्वामी ? आ जगतमां तो लोको केवल खोटा एवा संबंधीयोने माटे प्रमुदित थया थका अहोनिश वृथा आनंद पामे . वली जुन तो खरा, के पा मारा माता पिताने पण केवो मोह थयो ? के जे मोहें करी मारामां स्नेहवान थयां थकां घणाज खेदने पामे ले ? अने वली ते हजी आमने ग्राम केटना वर्ष पर्यंत खेद कस्या करशे ? वली या कन्या पण अत्यंत अज्ञानी देखाय , कारण के जे पोतानां माता पिता वगेरेने बोडीने थाहीं मारे माटे अावीयो ने ? जो ते ज्ञानी होत, तोवृथा दुःखी थावा याहिं शा सारु आवत? माटे अहो! या सर्व संसार बाजीगरनी बाजी जेवोज डे, तेथी विज्ञाततत्त्व जनोने तो आवा मोहमय संसारमा रहे उचितज नथी.अरे! ढुं पंज विज्ञाततत्त्व बौं, तेथी प्रथम तो मारेज आ संसारमा रहेq योग्य नथी. अने हाल दीक्षा लेवी योग्य जे. परंतु तेम करवामां पण हाल दुःख ले. कारण के हुँ जो प्रव्रज्या लहूं, तो स्नेहातुर, तथा एक क्षण पण मारा विरहने न सहन करनार एवां महारां माता पिता घणांज पुःखी थाय? तेमज वली दूरदेशथी मारी साथें पाणि ग्रहण करवा आवेली या कन्याउने पण अत्यंत कुःख थाय ? अने वती हालमां दीक्षा लीधेलो मने जोड्ने मूर्खलोको निंदा पण करे. माटे हवे मारे ते झुं करवू ? अरे ! मारा पितायें जो मने लग्न करवा विषे पुराग्रह न कस्यो Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७१ हत, तो हुँ दीक्षा लइ संयमश्रीतुं सुख बाज नोगवतो पण हत ? एम वि चार करी वली पाडगे विचारवा लाग्यो के हा, एक मने उपाय सूज्यो खरो. ते गुं? तो के हाल मारे दीदा लेवी नहिं. मारा पिताने तथा आ सोल स्त्रीयोने उद्बोध कस्या पनी तुरत दीदा लेवी. कारण के एम करवाथीमारं पण सारं थाशे ? अने मारां माता पिता तथा ा परणवा आवेली सोल कन्या उनु पण सारूंथाशे? अने जो ढुं हाल दीदा सहीश, तो तो केवल मारुंज सारं थाशे, परंतु मारां माता पितानुं के प्रास्त्रीयोनुं सारं थाशे नहिं.माटे हाल तो या संसारमा रहे. अने संसारासक्तिने रहितपणे रहेवाथी मारूं कांश बग ड्युं कहेवाय नहिं? एम विचार करी महामहोत्सवें लग्न समय थये ते कन्या उनु कुमारे पाणिग्रहण कयुं. पनी पोते जे कांश धर्म कृत्य प्रतिदिन करतो हतो, ते कृत्य करवा लाग्यो, तेवामां तो रात्रि पडी. त्यारे हरिणादी एवी पोतानी सोल स्त्रीयो साथें मनोहर गृहमां गयो. त्यां जश्ने ते कुमार न ासनपर बेठो. अने ते सर्व स्त्रीयो सन्मुख रत्नना पाटलापर बेठीयो. पनी ते सोलस्त्रीयोयें विंट्यो एवो ते पृथ्वीचं कुमार, केवो शोने ? के जाणे तारामंमलें विटेलो कौमुदीनो चश्मा होय नहि ? एवो शोने जे. परंतु जेम रणसंग्राममां बकतर पहेरेलो योदो शत्रना बागथी न हणाय, तेम ते पोतानी कमनीय एवी कामनीयोना कटाक्थी किचिन्मात्र पण हणाणो नहिं. अने ते कुमार सोत्कंठ एवी ते स्त्रीयोनी उपर किचिन्मात्र कटाद पण कस्यो नहिं. ते जोश्ने विदग्ध एवी ललितसुंदरी नामा स्वीनी दासीयें अन्योक्तिथी.कमु के ॥ श्लोक ॥ लसत्कमलनेत्रासु, सरसास्वनिनीष्वपि ॥ दिपेनहि दृशं हंसो, न विद्मःकारणं च किं ॥ १ ॥ अर्थः-कमलरूप ले नेत्रो जेने, तथा रागवती अने सरस एवी कमलिनीयोने विषे हंस जे दे, ते दृष्टि नाखतो नथी. तेनुं गुं कारण ले ? ते ढुं जाणती नथी. अर्थात् तेनो आम बोलवानो अभिप्राय एवो ,जे आवी मनोहर तमें डो, ते उतां पण आ राजकुमार, तमारीसामी दृष्टि पण करता नथी. आवो अभिप्राय दा सीनो समजीने ते ललितसुंदरीनामा स्त्री बोली, के हे सखि ! जे चतुरहंस होय, ते जलथी थयेली विकसित पत्रवाली पद्मिनीयोनी सामु जुवे . पण जडथी उत्पन्न थयेली विकसित पद्मिनीनी सामुंजोतो नथी.अर्थात् या कुंवर अमाराथी मनोहर स्त्रीयोनी सामी दृष्टि करे, पण अमारी सामी Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. दृष्टि करे नहिं. आ अनिप्राय कह्यो. त्यां तो कुमारना पितायें कुमर, स्त्री योमां सराग थाय , के नहिं ? ते जोवा माटे मोकलेलो कुमरनो मित्र एक विष्णुबटुक नामा बटुक बेठो हतो, ते कहेवा लाग्यो.के हे कुमार ! त मारो सर्व प्रचार वैराग्यमय देखाय .माटे ते वैराग्यने त्याग करीया तमा रामां आसक्त थयेली स्त्रीयोने निवृत्ति करो. ते सांजली पृथ्वीचंद कुमार कहे , के हे बटो! या विषयासक्त समय जीव, संसारने विषे जड एवा केशवबटुकनी पढ़ें कदर्थना पामे . त्यारें तो ते विष्णुबटुकें पूज्युं के कुमार! ते जड एवो केशवबटुक कोण हतो? अने तेनी केवी रीतें कद र्थना थ? ते कहो. ते सांजली ते पृथ्वीचंकुमार, मूर्ख एवा केशव बटुकनी कथा कहे . पूर्वे मथुरा पुरीने विषे ऽःखित एयो एक केशव नामा बटुक रहेतो हतो. ते नीख मागी मांस मांग पोतानुं गुजराण चलावतो हतो, तेने कुरूप, कुटिल, कलहप्रिय, एवी एक कपिलानामा स्त्री हती. कहेलु बे के ॥ श्लोक ॥ पिंगाक्षी कूपगन्ना खरसदृशरवा स्थूलजंघोर्ध्वकेशी, लंबोष्ठी दीर्घवका प्रवि रलदशना श्यामताल्वोष्ठजिह्वा ॥ शुष्कांगी संहितत्रुः कुचयुगविषमा ना सिकातीव दीर्घा, सा नारी वर्जनीया पतिसुतरहिता भ्रष्टशीला च पुंसा ॥ १ ॥ अर्थः- जे स्त्रीनां नेत्र पीला , गालमा खाडा , खरसमान शब्द बे, स्थूलजंघाउ , उंचा केश बे, लांबा होठ , लांबुं मुख , खड खबडा दांत डे, तालवू, होत, जीन, ए त्रणे श्याम बे, सुकाइ गयेला अंगो ने, बेदु नमरो मली गयेलीयो बे, घाटघूट रहित स्तन , दीर्घ नासि का ने अने पति तथा सुतथी रहित , तथा भ्रष्टशील ने तेवी स्त्रीनो माह्या पुरुष तो त्यागज करवो ॥ १ ॥ हवे तेवी कपिला नामा स्त्रीनो साथें ते केशवबटुकनो अत्यंत फुःखमय एवो केटलोएक काल गयो. एम करतां ते कपिला, गर्नवती थइ, त्यारें तेणें कह्यु के हे पते ! मारी सुवा वडमां घृत अने गोल जोशे, माटे ते घृत गोल माटे क्यांश्कथी इव्य कमा इलावो? त्यारें केशव बोल्यो के हे स्त्रि! हुँ इव्योपार्जन करवानो का उपाय जाणतोज नथी, तो ते ढुं क्याथी लावू? जो तुं जाणती हो, तो कहे. त्यारे ते स्त्री बोली के ज्यां सुवर्णनी खाण होय, ते स्थलें जातं. अने त्यां कां चाकरी वगेरे करी सुवर्ण उपार्जन करी लावो. ते सांगली तरत Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७३ ते त्यांथी चाव्यो. ते ज्यां सुवर्णनी खाण हती, त्यां गयो. अने त्यां जा चाकरी वगेरे करी घणुक सुवर्ण कमाणो. कमाइने ज्यां पोताना घर तरफ चाल्यो, त्यां तो तेने रस्तामा एक धूर्त ऐंजालिक मल्यो, अने तेणें तेने पूब्यु के हे बटुक ! तमो क्यां गया हता? अने क्याथी आवो बो? अने या तमारी पासें झुं ? त्यारे ते केशवें तेने नोलपणथी बनेली सर्व वात कही आपी. तेथी ते धूर्त ऐंजालिकें जाण्यु जे अहो ! आ मूर्खनी पासें श्व्य देखाय , माटे ते ऽव्य, तेने कोइ पण रीतें नोलवीने लइ लडं? एम विचारीने केशवने उगवा माटे ते ऐंजालिकें स्व विद्याथी एक स्वरूपवान् एवी कन्या अने तथा तेनां माता पिताने बनाव्या. त्यारे ते कन्याने जोड्ने मोह पामेला केशवें तेनां माता पिताने पूब्युं, के गुं या कन्या तमारी ? त्यारे ते कहें के हा. त्यारें केशवें कह्यु के ते कन्या मुने आपशो ? त्यारे ते बोल्यां के जे हजार दीनार आपो. तेने या कन्या आपशुं ? पबी मोह पामेला ते बटुकें पोतानी पासें जे कांइ सुवर्ण हतुं, ते सर्व आपी दी .अने ते कन्यानुं तुरत पाणिग्रहण कयुं. पली ते केशवने ते धूर्ते षड्रस युक्त नो जन करावी खूब प्रसन्न कस्यो, तेथी केशव खुशी थर, अनेक विचार करवा लाग्यो के अहो! थाहिं मने केवी सारी स्त्री तथा केवु सारु खान पान मट्युं ? एम ज्यां अनेक प्रकारे विचार करे , त्यांतो सायंकाल थवाथी ते ऐंजालि क, तेनाआपेला सर्व सुवर्णने सक्ने पलायन परायण थइ गयो. अने ते पनी थोडी वार ज्यां थाय, त्यां तो ते कन्या के, तेनां माता पिता के, ते धूर्त. ए सर्व मांथी कोइ पण देखाणांज नही. त्यारे तो ते बटुक, अत्यंत खेद पामी विचा रवा लाग्यो के अरे! मनोहर एवी मारी प्रिया- कोणें हरण कयुं? अने मारुं धन पण कोण लइ गयो ? पण फिकर नहिं, मारी स्त्री तथा धननो लश्ज नारो चोर जो पातालमांगयो दशे, तो त्यां जश्ने पण ढुंलावीश ? एम अत्यंत चिंताज्वरज्वरित अने नूरख, तृषा, शीत, ताप, तेणें करी पीडातो, अर्थहीन एवो ते केशव, तेउने सर्वत्र शोधवा लाग्यो, परंतु ते कन्यानो के इव्यनो क्या पत्तो मल्यो नहिं. त्यारें प्रथमनी स्त्री जे कपिला , तेनुं हृदयमां स्मरण करी विचारवा लाग्यो के अरे! मारी स्त्रीयें मने इव्य कमावा मोकव्यो, तेथी ते इव्य तो मने घणुंज मल्यु, पण नवीन स्त्रीमा मोह पामेलो अने महा मूर्ख एवो हुँ, ते व्यने हुं वृथा खोवेठो ? कह्यु के के ॥श्लोक ॥ विश्यंते केवल Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ შემ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. स्थूलाः, सुधीस्तु फलमश्नुते ॥ दंता दनंति कष्टेन, जिहा गलति लीलया ॥ १ ॥ अर्थः- मूर्खजनो जे कार्यने, पोतें क्लेश जोगवीने करे बे, ते कार्य ना फलनो जोग, जे बुद्धिमान पुरुष होय बे, ते विनाप्रयासें लीये बे. केनी पढें? तो के जेम दांत बे, ते खार्धेला खोरागने प्रयास लइ चावे ले, धने तेना स्वादनो तो रसज्ञ एवी जिह्वा जे बे, ते विनाप्रयासें उपयोग करे बे ॥ १ ॥ अरे ! मारी हितैषी, प्राणवल्लना एवी कपिला, मारा दर्शन विना केम करती हो ? अने तेना विरहने मटाडवा हुं जाउं तो ठीक थाय ? परंतु निर्धन एवो हुं हवे जो त्यां जावं, तो मने जोइ सदु कोर हसे, तेथ मने ला यावे ? माटे हवे ते हुं गुं करूं ? एम विचारी पालुं विचासुं के हा, ज्यां हुं गयो हतो त्यां जावं. ने त्यां जो न जानं तो पढी विरहातुर एव मारी प्रिया पासें जाउं ? यावी रीतें विचाररूप हिंमोलामां फूलतुं जेनुं मन बे एवो ते केशव, कोइएक गाम गयो. त्यां रहेला कोइक दयालु मा सें तेने नूख्यो जालीने दया णी दहीं अने चोखानुं नोजन कराव्युं. पढी त्यां एक वड हतो, तेनी नीचें जइ सुतो. त्यां तो तेने स्वप्न त्र्यायुं. ने ते स्वप्नमां तेणें गुंदीतुं ? के पोताना घरनी नीचें खोदतां पोतें एक रत्नोनुं लुं घर दी नेते घरनो पोतें मालीक थयो. त्यारें तो पढी तेना उत्सा हम पोतें सगा वहालांने आमंत्रण करी जमाड्यां श्रने त्यां वली पुरज नो मयां, तथा गामनो राजा पण याव्यो. खने पोतें जे स्त्रीने रस्तामां परयो हतो, ते नवीन स्त्री पण यावी. पोतानी प्रथमनी कपिलानामा जे स्त्री हती, तेणें पोतानो घणो सत्कार करखो. या प्रमाणें ज्यां स्वप्नमां दी तेवामां तो कोइएक रासन हतो, ते नूंकवा लाग्यो. त्यारें तेना शब्दें करी तरत ते जागी गयो खने पक्षी विचाखं के अहो ! मारा घरमां श्रटलुं बधुं इव्य बे, ते बतां हुं वली ग्राम जीखारीनी पढ़ें शामाटे फर्रु बुं ? एम विचार क रीने तुरत त्यांथीज पोताने घेर जवा पाठो वल्यो अने स्वप्नमां जोयेला पोताना घरमाथी निकलेला धनथी अत्यंत खुशी थइ हसतो हसतो घेर श्राव्यो. त्या हसते मुखें उतावलथी चाव्या आवता पोताना स्वामीने जो ने कपिला स्त्रीयें विचायुं जे अहो ! या मारो स्वामी घणुंज इव्य कमा ईने श्राव्यो होय, एम जागे बे. कारण के तेनुं मुख घणुंज खुशीमां बे, तथा ते घणोज उतावलथी चाल्यो यावे बे. एम मानी ते कपिलायें पण हर्षे Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७५ करी तेनी स्नान, नोजनवगेरेथी घणीक सेवा करी. अने थोडी वार पड़ी तेना खडीयामां इव्यनो तपास करवा लागी, तो तेमांतो एक फुटलकोडीपण दीठी नहिं. त्यारें तो ते कपिला नट्टाणी महोटो आक्रोश करी बोली के तमें इव्य कमाइलाव्या बो, ते क्या ? अने केम क्या देखातुं नथी? बने केम बता वता पण नथी? वली तेश्व्य, मने बेतरीने माराथी पण बानु राखg डे, के झुं? ते सांगला केशव बोल्यो के हे प्रिये! फिकर म राख.अने हर्ष राख.जे श्व्यने जोइने तारुं मन प्रसन्न थाशे, तेटर्बु इव्य तुं जोश ? हाल तो एक काम करस्य, के कोक वाणीयानी उकानेथी आपण सर्वे स्वजनोने जोजन पूरुं पडे, तेटली रसोइनो सामान आपणे खाते लइ आव्य. अने तेनी, उत्तम रसो याने बोलावी मिष्ट एवी रसोई तैय्यार कराव्य. कारण के काले सवारें थापणां सर्व स्वजनोने आमंत्रण करी जोजन करावीने ए स्वजनोनी तथा गामना लोकोनी अने राजानी समद, चित्तने चमत्कार उत्पन्न करे, एवं महारं उपार्जित करेलुं इव्य तुने देखाडवू ? ते सांजली कपिला कहे , के त्यारे हालज देखाडो ने? के अमें जोश्य तो खरा, के तमो केटलुक धन कमाश्याव्या बो? अने हे स्वामीन ! तमारी उपार्जन करेली मिलकतनां जो मने दर्शन करावशो, तो ढुं अत्यंत खुशी थइश ? अने बली हाल जे हुँ स्वजनोने जमाडवा माटे घृत, गोल वगेरे सामान लावीश, ते मालना पैशा बापवानी मने धास्ती पण मटशे, अने वली मारा मनने शांति था शे? आवां वचन सांजली केशव बोल्यो के हे स्त्रि! तुं बीलकुल फीकर राख नहिं. ज्यारे थापणा स्वजनो जमीने याहिं यावी उनां रहेशे, त्यारे ढुंतुने तुरत सर्व मिलकत देखाडीश ? माटें जो तारे मारा कमायेला इव्यर्नु दर्शन कर होय, तो तो महारा कहेवा प्रमाणे सदु स्वजनने जलदी आमं त्रण कस्य. यावां सगर्व वाक्य सांजलीने कपिलाने तेना बोलवा पर विश्वा स आव्यो, तेथी तेणें सदु स्वजनोने ते केशव नट्टना नामथी यात्रमंण देव राव्यां.अने तेथी गाममां पण एवी प्रसिदि थ के केशवजट्ट घणुंज इव्य कमाश्याव्या , माटे तेना उत्साहनुं सदु कुटुंबीयोने नोजन करावे ? हवे ते सर्वस्वजनो, नोजन करवा माटे केशवने घेर याव्यां. जोजन करवा बेग. अने ते सदुयें आनंदथी नोजन कयुं. पण त्यार पड़ी ते केशव, सदु देखे तेम धोतीयानो काबडो वाली हाथमां एक महोटी कोदाली लश्ने स्वप्नमां Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ जनकया रत्नकाप नाग सातमा. जोयेली पोताना घर आगलनी नूमिने खोदवा लाग्यो. त्यारें तो ते स्व जन वगेरे सदु कोइ उन्ना रही बवा लाग्यां, के हे ना! या झुं खोदवा मांमधु ? त्यारे ते केशव बोल्यो के या पृथ्वीनी अंदर मारु सारनूत इव्य जे. त्यारे लोकोयें पूज्युं के आहीं क्यारें, केटलु, तथा कोणे माटेचु के ? त्यारे केशव बोल्यो के, ते कांही ढुं जाणतो नथी. परंतु ढुंज्यांव्य कमावा गयो हतो, त्यां रस्तामा एक गाम आव्युं हतुं. ते गाममां एक वड हतो, तो ते वडने सारो जाणीने तेनी बाया नीचे ढुं सूतो हतो.त्यां सूतांसूतां में जोयुंहतुं. त्यारे ते लोकोयें पूज्युं के जे वखतें तें व्य जोयुं, ते वखत केम न लीधुं ? त्यारे ते जड बोल्यो के हुँ ज्यां लेवा तैय्यार थयो, त्यां तो मने कोश्क गधेडे नूंकीने जगाज्यो. आवां सांजली सदुकोइ कहेवा लाग्यां के अहो! आ केशव तो महामूढ देखाय ले. कारण के आ सर्व स्वप्नमां जोयेला व्यन सत्य मानी तेने खोदी ने काढवा श्छे ले ? एम कही महोटो कोलाहल करी पर स्पर ताली द खड खड हसी, ते केशवने धिक्कार दक्ष, सदु को लोको चाल्यां गयां. त्यारे तेनी कपिला स्त्रीये पण क्रोधायमान था दार कादवनी मूठी जरी, तेना माथा पर नाखी. अने तेने खूब धिक्कास्यो. एटलां वानां थयां, तो पण ते पाबो खोदतो बंधथयोन हिं. त्यारें पबीघक खोदावाथी ते घरनी एक दम जीत पडी, तेथी ते केशवनी कड नांगी गइ. अने ते महाऽर्दशाने पाम्यो. _ यावां वचन सांजली पृथ्वीचंनी सर्वस्त्रीयो, लाज मूकीने खड खड हसवा लागीयो. त्यारे पृथ्वीचंद कुमार बोल्यो के हे बटुक ! तमें साधु कहेजो. के ए केशव बटुकनुं या सर्व चरित्र हास्य करवा जेतुं छे, के नहिं ? त्यारें हास्य करतो एवो ते विष्णु बटुक बोल्यो के हे स्वामिन् ! हा, ते मूर्ख एवा केशवबटुक, या सर्व चरित्र हास्यास्पदज जे. परंतु हे कुमार! आपने ढुं पूर्बुडं, के या संसारमा सर्वलोको ते मूर्खबटुक समान छे, एम केम कहेवाय ? त्यारे पृथ्वीचं कुमार कहे , के हे बटुक ! या संसारी जीवो जे , ते सर्व केशव बटुक समानज ले. कारण के ते पण केशवनी पर्नु कार्याकार्य, के हिता हित, कांश जाणताज नथी. वली जुन. ते मूर्ख एवा केशवनी अने संसारी जीवनी तमने हुं समानता कटुं . केा संसारी जीव जे , केशवनी पढ़ें चोराशी जीवायोनिचमणरूप निख मागवामां ने नोख मागवामांज पोता नो सर्व काल गमावे . वली संसारी जीव, कर्मपरिणतिरूप कपिला स्त्रीने Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७७ वश थश्ने तृदेहरूप सुवर्णनूमिने प्राप्त थाय ले. त्यां ते जीवने थकामनिर्ज राथी कांक सुकृतरूप सुवर्ण मले डे. वली ते सुरूत कमाइ जतां ते जीव ने कामरूप धूर्त एवो एक ऐंजालिक मले बे. ते तेने विषयवासनारूप कन्या देखाडे , तेमां ते लुब्ध थइने तेनुं ते पाणिग्रहण करे . त्यारें ते कामरूप धूर्त ऐजालिक तेनुं सुकृतरूप सर्व इव्य हरी लीये . पनी गयुं जे सुकृतरूप सुवर्ण जेनुं एवो ते जीव, अपूर्णमनोरथ थको पालो वली तिर्यग, नर, नारकीप्रमुखना नवरूप गामोमां जमे बे. त्यां वली कोश्क नवरूपगाममां तेने धर्माचार्यरूप दयालु मनुष्य, दया लावीने तपरूप दहिं अने नात तेना दानथी स्वस्थ करे . पली पालो ते जीव, वड समान प्रौढ कुलने पामीने मोहरूप निशमां सूवे . त्यां ते स्वप्न तुल्य एवा जोगना प्रिययोगें करी मोह पामे . पडी ते कर्मपरिणतिरूप कपि लानुं स्मरण करतो थको घेर बाद ले.अरे ! हे बटुक ! ए मोहनुं माहात्म्य तो जुन. या जीव, गज, वाजी, कोश, नूमि, नृत्य, तेना पालनरूप सुखने वली सुरव माने . बाहेरथी जोवामां मनोहर, अने अंदर रुधिर, मांस, मल, मूत्र, विष्टा, परु, तेथी पूरित एवा युवतीना थंगने विपे मोह पामीने केवल विनाकारण विष्टाना कीडानी पढ़ें तेमां रमे ले. वली कामानुरक्त एवो आ संसारी जीव, चर्म, अस्थि, स्नायु, तेणे बांधेब्रु, अने निरंतर घएंज शुक्ष राखवाथी पण सदा श्लेष्म मेलथी युक्त, अने असार, एवा ललनाना मुखने, शुद्ध अने स्वब एवा शरदृतुना चश्मानी समान कहे ३. वली अधमनर, मुखथकी निकलता पुगंधथी, थुकथी तथा दांतना मेलथी व्याप्त एवा कामिनीना अधरोष्ठने अमृतवत् मिष्ट माने बे. वली जोगानिलाषी पुरुष, हाडकाना दांतने कुंदकलिका समान माने . वली कामी जीव, महिलाना मांसनी ग्रंथिरूप वेदु स्तनोने कनककलश समान कहे . तथा मूर्खजीव, चर्म अने अस्थि, तेना मढेला युवतीना हस्तोने कमलनालनी तुल्य कहे . वली कामासक्त जीव, विष्टा मूत्रना नाजन रूप स्त्रीना उदरने वजमध्यनी उपमा आपे . वली विषयव्यय जन, विष्टानिःसरगनुं स्थान अने नगरनी खाल समान, एवा नारीना नितंबने गंगापुतिननी तुल्य कहे . वली कामांध जीव, लोही मांसनी रचेली, हाडकानी नलीनी बनेली, बालानी बे जंघाउने, केलना स्यंन समान Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. माने जे. वली कामुक पुरुष, रत्नादि सार शृंगारथी नूषित अने मुनि जनने दुःखरूप एवा श्यामाना शरीरने सुरसुंदरीनी समान जाणे . माटे हे बटुक ! था संसारी जीव पण पूर्वोक्त मूर्ख एवा केशव बटुक नी पढ़ें विराधनाज पामे जे. तेथी या वितथ एवा संसारमा कांश सारज नथी. श्रावो कुमारनो कहेलो सउपदेश सांजलीने नष्ट थयो के स्वरूपनो गर्व जेने एवी ते स्त्रीयो, विचारवा लागीयो के अहो! या आर्यपुत्र जे कांकहे जे, ते खरेखलं . कारण के याबापणा अंगमां तेमना कहेवा प्रमाणे कां पण सुंदरत्व नथी. केवल श्वेतचर्मना ढंकावाथी उपरथी सुंदरपणुं देखाय बे. परंतु वस्तुतः जोतां तो, जेम आपणा अंगमां सुंदरत्व नथी, तो वली पुरुषना अंगमां पण सुंदरत्व क्या ? जेवां आपणां शरीर , तेवांज पुरुषनां पण बे. तेम बतां पण आ आर्यपुत्र, केवल स्त्रीना देहनेज केस निंदे ने ? एम ज्यां विचार करे , त्यां तो वली पृथ्वीचं कुमार बोल्या, के हे बटुक ! हाल जे में कह्यु, के जे कामासक्त पुरुष होय , ते स्त्रीयोना शरीर ने वृथा सुंदर मानी मोह पामे ले. तेम वली स्त्रीयो पण कामासक्त थ पूर्वोक्तरीतें देखवामां सुंदर बने वस्तुतः स्त्रीना अंगनी पढें मुर्गधवस्तुथीनर पूर, एवा पुरुषोना शरीरने विषे मोह पामीने विषकीटकनी पहें रमे . परंतु पुरुषना करतां स्त्रीमा चार दोषो वधारे होय . तेथी ते वधारे निंद्य ने. ते चार दोष कया ? ते कहे जे. के तेमां एक दोष तो ऋतुनु आवq. बीजो दोष, उर्गनुं धारण करवू. त्रीजो दोष, सुवावड थाय डे, ते. अने चोथो दोष ज्यारें प्रसव थाय त्यारे पूर्वोक्त ऋतु वगेरे सर्व उर्गध अने खराब पदार्थो देखवामांबावे जे ते.ते माटे ते स्त्रीना अंगमां चार दोषो वधारे जे.एम कहीने पाला वली ते केशव बटुकना दृष्टांत साथें मेलवी कहे जे. के हे बटुक ! या जीव, केशवनी पर्नु तेवा विषय सुखरूप निधिने था देह रूप घरने विषे जोवे ,अने ते विषयसुखने कुचेष्टारूप कोदालीथी खोदे जे. पबी या जीवने साधर्मिरूप स्वजनो ना कहे ,के हे ना! विषयसुखरूपध नने तुंआ शरीररूप घरमांथी कुचेष्टारूप कोदालीथीम काढ. तो पण ते जीव, तेनुमानतो नथी. त्यारें पड़ी ते कुचेष्टारूप कोदालीना प्रहारथी धर्ममर्यादा रूपनीत, तेनी पर पडे . अने या प्रकारना उनयें करीअपयशरूप कच राथी ते व्याप्त थ जाय जे. अने पडी कर्मपरिणतिरूप कपिला स्त्रीयें करी Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. जए हेलना पामे ले. अने पड़ी कटि नांगवासमान संसार कुःखमां पडे . माटे श्रावा मूर्ख एवा केशव बटुकनी पहें निर्विवेकी एवा संसारी जीवना च रित्रने जोस्ने कोना हृदयमां वैराग्य न थाय ? __ प्रकारनां ते कुमारनां वचन सांजली ते कुमारने मध्यस्थ एटले निष्पक्षपाती मानी तथा संसारनी पण असारता जाणी, ते सर्वस्त्रीयो, संवेगरंगरंगित थ गश्यो. अने कहेवा लागीयो के या ए सर्व साचुंज कह्यु. परंतु हे आर्यपुत्र ! ते संसारनो त्याग ते कये नपायें थाय ? ते कृपा करी कहो. त्यारें पृथ्वीचंद कुमार बोल्यो के हे नश! सांजलो. के ते संसारत्यागनो उपाय तो एक धर्म, अने बीजं सुगुरु, सेवन ए बेज ..तेमां गुरु पण केवा जोश्य ? के जे संसारना नोगसुखमा लिप्त न होय ? ते सांगली स्त्रीयो बोली के हे प्रनो ! तेवा तो श्राप ज अमोने धर्मप्रबोध करनारा गुरु बो. अने हे विनो! अमो पण "आ स्त्रीयो पृथ्वीचंकुमारनी ” तेवा शब्दें करी कतार्थ थश्यो .यें. अने हवेथी अमारी सर्व नोगतृष्णा पण गइ . ते माटे हवे हमणांज अमोने ते उत्तम एवा जिनधर्मनी प्राप्ति करो. वली हे आर्यपुत्र!थापने पण हवे या बलेला घर समान संसारमा रहेg उचित नथी. बाप सर्वधर्मना तत्त्वने जाणो बो, तो त्यां आपने अमो अज्ञानी गुं कहियें ? या प्रमाणे पोतानी सर्वस्त्रीयोने बोध पामेली जोड्ने ते कुमार, अत्यंत प्रसन्न थइ कहे , के हे जश्नावी स्त्रीयो ! तमारो विवेक घणोज श्रेष्ठ ; तेथी तमोने कांश धर्मनी प्राप्ति थवी उर्लन नथी. जेना हृदयमां धर्मास्तिक्य होय , तेनी सत्कुल लान वगेरे सर्वसामग्री सफल थाय बे, घने तेने मोद पण सुलन थाय ले. ते माटे हे स्त्रीयो! आपणे सर्वे, ज्यां पर्यंत धर्मसाधनना अवसरने एटले गुरु सामग्रीने पामीयें, त्यां पर्य त संतुष्ट, सत्यवक्ता, दयाई, तथा नमस्कारपर, धर्मनिष्ठ थश्ने संसारमांज रहियें ? यावं कुमारनुं वचन सांजलीने प्रसन्न थयेली ते स्त्रीयोयें ते वाक्य कब्रल करयं. अने ते सर्व, धर्मतत्पर था. हवे या बनेली हकीगत त्यां बेठेला विष्णु बटुकें यावी कुमारना पिता हरिसिंह राजाने कही दीधी. ते जाणीने ते राजायें चित्तमां चितववा मां मयुं के अरे! आ मारा पृथ्वीचं कुमारने स्त्रीयो पण वश करीशकी नहिं. Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. थने ते स्त्रीयो उलटी तेनाथी बोध पामी. माटे हवे ते मारे गुं करवू ? पण हा, एक बीजो उपाय बे खरो. ते गुं? तो के तेने आ मारा राज्यनी योजनामां ना, तो तेने ते राज्यखटपट करवी पडे, तेथी तेमां व्यय चित्त थवाथी ते धर्मनो त्याग करे ? एम विचारीने ते नरसिंह राजायें, कुमारनी स्त्रीयो सर्व बोध पामी तेनी, तथा ते कुमारने राज्यगादिपर बेसार वाना विचारनी वात, पोतानी पद्मावती स्त्रीने कही. त्यां तो ते स्त्रीय कह्यु के हे स्वामिनाथ ! याज रात्रिने विपे मने स्वप्न याव्यु. ते स्वप्नमां में एवं दीहूं के जाणे हर्पित ययेला देवें आपणा पृथ्वीचंद कुमारने महामहोत्सवें राज्यासन पर वेसायो, तेवामां तो कांतिथी नरपूर अने प्रकाशमान एवो ते कुमार, त्यांथी उमीने एक प्रासादपर बेठो, त्यांथी वली पाडो ते कुमारने ते देवें तेज सिंहासन पर बेसास्यो. तेवामा तो हुँ जागी गइ. ते सांजली राजायें विचायुं जे पृथ्वीचं कुमारने राज गादीपर बेसारवानो मारो विचार तो बेज, तेमां वली राणीने आq स्वप्न श्राव्यु, तेथी हाल कुमारने गादीपर बेसास्याथी तेनो प्रौढ प्रताप थाशे. ते माटे तेने सांप्रतज राज्यासनारूढ करवो. एम ज्यां विचार करे जे, त्यां तो प्रतिदिननी रीत प्रमाणे कुमार, प्रातःकालमा पोतानुं सर्व धर्म कृत्य करीने पोताना पिताना पादवंदन माटे त्यां पिता पासें अाव्यो. त्यारे प्रसन्न थयेला पितायें आसन आप्यु, तेथी ते तेनी पर बेठो. त्यारें तेने तेनो पिता आदर सहित कहेवा लाग्यो के हे वत्स ! अमारे तम जेवा स रपुत्र , तेथी अमो नाग्यवान गणाश्य बैये, कारण के लंबसना वृदने जेम पुष्पलन होय जे, तेम अमारा जेवाने तमारी जेवा पुत्र उर्लन होय डे. तो पण अमारा प्राचीनपुण्यना योगथी तम जेवो पुत्र अमने उपलब्ध थयो बे. हे पुत्र !सागर जेम चश्माने जोइने आनंद पामे , तेम चं मा समान उज्ज्वल एवा तमने जोश्ने समुनी पर्नु अमो आनंद पामी ये बैयें. परंतु हे नंदन ! अमने विशेष अने वचनातीत हर्ष तो क्यारें थाय, के ज्यारें मेघामंबर बत्र अने श्वेतचामरोयें करी सुशोनित, तथा मनोहर, अने प्रौढ एवा हाथी पर बेठेला सर्वसेवकोयें विंटेला, अने अट्टालिकापर चडेली एवी पुरजननी स्त्रीयोयें जोयेला, तथा जोवा आवेला माणासोनी गडदीथी संकुचित एवा राजमार्गमा चालता एवा तम Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. तर ने जोयें ? माटे हे वत्स ! तमें था थापणा राज्यने स्वीकारी वृक्ष एवां अमने अप्रमित एवा आनंददानने आपो. आवां वचन सांजली दाक्षिण्य निधि एवो ते कुमार, कहेवा लाग्यो के अहो! मारी पर पुत्र पणानो स्नेह होवाथी मारां माता पिता तो मने राज्यासन पर बेसवा कहे . परंतु हुँ जेवा विषयोन्मुख प्राणीने तेराज्यासन पर वेसवु विरुजले.ते केनी पो ? के जेम हिमालय तरफ जवा बता जनने दक्षिणमार्ग तरफ चालवु धनुचित ? पण गाढस्नेहवालां महारां माता पितानो ते राज्यासन पर बेसारवानोअत्यं त आग्रह . तो हवे ढुंगुं करूं? तेमज वली माता पितानुं वाक्य माह्या पुरु षोयें मानवं पण जोयें. ते माटें मारे एम करवू, के ज्यां सुधि गुरुनु आगमन नथाय, त्यां सुधी राज्यासन पर रहे. अने पबी मारे मारूं धायुं करवू ? एम विचारीने ते कुमार कहेवा लाग्यो, के हे पिताजी! आ आपनु वचन हुँ कबूल करूं बूं. कारण के मुज किंकरपीआपनी आज्ञा उल्लंघन थाय नहिं ? परंतु ढुं आपने कहुँ , के बावा महोटा राज्यनार नपाडवामां हूं जेवो, कायर पुरुप योग्य नथी. पडी आपनी मरजी ? तेवां वचन सांजली राजा बोल्यो के अहो! हे पुत्र! तमारो केवो विनय ? अने केवी समजण ने ? एम कही अत्यंत खुशी थने तेना मस्तक पर हाथ मूकी ते मस्तकनुं अाघ्राण करी सारा मुहर्तने विषे हरिसिंह राजायें ते पृथ्वीचंकुमार पर राज्यानिपेक कराव्यो.अने पोताना राज्यासन पर बेसास्यो. त्यारे त्यां महोटो आनंद थवा लाग्यो ॥ श्लोक ॥ राजराजोजयत्येवं, प्रवृत्तोबंदिजो ध्वनिः ॥ घादितानि सु तूर्याणि, नृत्यंति स्म पणांगनाः ॥ १ ॥ संपदो बहुधाऽऽयाताः, पुस्यां वृत्तोमहोत्सवः॥ पृथ्वीचंनृपं प्रेक्ष्य, पितरौ मुदिती नृशम् ॥॥ अर्थः-ते समय, बंदिलोकोनो तथा चोबदार लोकोनो “राजराजे श्वर एवा पृथ्वीचं कुमारनो जय था.” एवो शब्द थयो. अने सर्वजातिनां वाद्यो वागवा लाग्यां. तथा वारांगनानृत्य करवा लागीयो ॥१॥ वली मांमतिक राजानां अनेक प्रकारना नेटणां याव्या. अने ते अयोध्या नग रीने विषे महा महोत्सव वरतायो. ते पृथ्वीचं कुमारने राज्यासन पर बेलो जोड्ने तेनां माता पिता अत्यंत प्रसन्न थयां ॥ ॥ हवे ते पृथ्वी चंडाजा, राज्यलक्ष्मीने विषे अलुब्ध , तो पण पोताना पितानी प्रस नता माटे जेम घटे, तेम राज्य वैवट चलावे . परंतु ते राज्यासन पर ६१ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८‍‍ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. रहेलो कुमार, कोइ पंखी जेम पांजरामां पड्यो होय, हाथी जेम खाडा मां पड्यो होय, तथा मृग जेम ग्राहेडीना करेला पाशमां पड्यो होय अने पठी ते जेम बुटवा माटे व्याकुलचित्त थाय, तेम व्याकुलचित्त थाय बे. ने विचारे बे, के अरे ! क्यारें मने गुरु मले, अने क्यारें या हुं राज्य खटपटमांथी तूटुं ? ने वली ते कुमार, पोताना देशमां सर्वत्र प्रमारीनो पट वगडावे ले. बंदीलोकोने बंदीखानेथी बोडी मूके बे. व्यापारीनां दाण मूकावे वे. ज्यारे ते कुमार राजा थयो, त्यारें सर्वजन शांतवृत्तिवालां थयां, ने ते सारो धर्मिष्ठ राजा होवाथी ते नगरीनां सर्व लोको विकथानो त्याग करी धर्मकथा करवा लाग्यां. कहेलुं ने, के यथा राजा तथा प्रजाः जेवो राजा होय, तेवी प्रजा पण याय वे. 66 " हवे वारमा विजय विमानमां पृथ्वीचं ना जीव साधें देवता थयेलो जे ज सुंदर कुमारनो जीव हतो, ते क्यां व्यवतयो ? तथा तेनुं शुं ययुं ? ते कहे ले. के एक दिवस को एक सुधननामा सार्थवाह बे, ते महोदुं कौतुक जोवा सारु ते पृथ्वीचं राजा पासें याववा माटे तेने दरवाजे बनो रह्यो. त्याऐं द्वारपालें यावी पृथ्वीचं राजाने विनति करी के महाराज ! कोइक सुधननामा सार्थ वाह यावेलो बे, ते दरवाजामां उनो बे, जो आप याज्ञा करो, तो तेने आहिंत्र्याचा दनं ? ते सांजली कुमरें हुकम कस्बो के तेने खाववा दीयो. त्यारे प्रफुल्लित जेनुं मुखपद्म बे एवो ते सुधनवैश्य, प्रतिहारनी रजाथी राज सनामां प्रावी पृथ्वीचंड्ने प्रणाम करी कांइक पोतें नेटणुं लाव्यो हतो, ते तेन समीप मूकीने सन्मुख वेतो. त्याऐं ते पृथ्वीचं तेनुं सम्मान कर तेने कहां के तमारे कांइ जे विज्ञप्ति करवी होय ते करो. ते सांजली सुधन बोल्यो के हे देव! मारा गाममां एक खाश्चर्यकारक उत्तम वृत्तांत बन्युं बे. ते उत्तम वृत्तांतने जोने अत्यंत विस्मय रसथी पूर्ण थयेलुं मारुं हृदय, जाणे हाल फाटी जाशे गुं ? एम थयुं बे. तेथी ते वृत्तांत कहेवा जेवुं बे खरं, पण ते कहेवाने दुं शक्य नथी. तो पण आपनां दर्शन करवा यावेलो बुं, तेथी ते वातनुं यत्किंचित् तत्त्व कहुं बुं, ते सांजलो. त्याऐं पृथ्वीचं कयुं के हे इ! ते वृत्तांत कोनुं बे ? अने शुं बे ? ते कहो. त्यारें ते सुधन सार्थवाह कवा लाग्यो के, ते एक तो में मारा नगरमां जोयुं बे ने बीजुं वली याही यापने त्यां थवानुं वे एम सांजल्युं बे. त्याऐं पृथ्वीचंड़ें कयुं के जे Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ पृथ्वीचं अने गुणसागर, चरित्र. कौतुक त्यां तमारा गाममांजोयु, ते केवु के ? ते कहो. त्यारे ते कहेले के. हे देव ! कुरुदेशनुं नूषण, अलन्यदूषण, स्वर्गथी सुंदर, मणिजडित मंदि रवाचु, सुविस्तीर्ण बतां पण व्यापारीजनोथी संकीर्ण. नटनटादिकें करीमनो हर, एईं एक गजपुर नामा नगर ले. अने तेमां दुं रहुँ . त्यां वली नि मैल एवा चित्तथी तथा वित्तथी निर्गर्व, अने कस्यो ले रत्नादिकनो संचय जेणे एवो कोइएक रत्नसंचय नामा श्रेष्ठी रहे ले. तेनी विकसित एवा पद्मना पत्र समान नेत्रवाली, लक्ष्मीसमान लक्षणयुत, रसरूपजलनी तलावडी, ग तियें करी हंस जेवी, एक सुमंगला नामा स्त्री जे. ते स्त्री ए रत्नसंचय पुरु पनेज जोश्ये, तेम ए स्त्रीने ए रत्नसंचय पुरुपज जोश्ये, तेम घणी वार सुधी विचारीने जाणे विधिये ते बेदनो संबंध कस्यो होय नहिं ? एवां वेद ने. हवे अर्थ, अने काम तेमां रत अने पुत्रनी इना करतां, एवां ते दंपतीने जाणे प्रत्यक्ष पुण्यनो राशिज उपलब्ध पणे होय नहिं ? तेवो एक पुत्र प्रगट थयो. (कवि कहे ले के ते बारमा विजय विमानमां देवता श्रयेलो जयसुंदर कुमार हतो, ते अवतस्यो.) त्यारे ते श्रेष्ठीयें हर्षथी सर्व नगरने अाश्चर्य थाय अने पाखा विश्वने विस्मय पमाडे एवो पुत्रजन्म महोत्सव कस्यो. ते पुत्र, ज्यारें गर्नमां आव्यो हतो, त्यारे तेनी मातायें स्वप्नमां आवा समुश्→ पान कम्यु हतुं, तेथी ते स्वप्नने अनुसारे ते पुत्रनुं “गुणसागर " एवं नाम पाडयु,नद नंतर ते पुत्रनुं पांच धावमातायें पालन करवा मामयु. अने ज्यारे ते जरा महोटो थयो, त्यारे तेने सर्व कलाउनो अभ्यास कराव्यो. पनी अनुक्रमें ते कु मारने तरुणीजननुं जीवननत अने लावण्यनु स्थानक, एवं तारुण्य प्राप्त थयं. त्यारें तो ते सुशील एवा कुमारने वाला,श्यामा,अने प्रौढा एवी स्त्रीयो, काम विकारथी जोवा लागी, तो पण ते कुमार निर्विकारी होवाथी, यत्किंचित्पण कामासक्त थयो नहिं. केनी पढ़ें ? के जेम पद्मवे, ते जलमां रहे ने, परंतु ते जलथी लिप्त थातुं नथी तेनी पढ़ें ? हवे एक दिवस ते नगरमां नुत्तम, गुणाढ्य अने शिष्ट, अति रूपवाली जाणे आठ दिक्कन्याज होय नहिं ? एवी मनोहर, अने गुणसुंदरीनामक कन्या जेमा मुख्य उ, एवी ते गामना रहेवासी कोश्क आठ श्रेष्ठीयोनी आठ कन्या रहे बे. ते एक दिवस आते कन्या एक ठेकाणे रमती हती. त्यां ते कन्याउयें पोताना मित्रनी लाथें राज्यमार्गमां चाल्या जता, मनोहर एव। आरुति वाला, रूपथी सुंदर एवा Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. ते गुणसागर कुमारने दीतो. ते जोइने तुरत ते आठे कन्याउ, कामव्याप्त था गइ. अने पढ़ी ते आते कन्यायें त्यांने त्यां एवी प्रतिज्ञा करी के आ पणे जो वरवो, तो आ पुरुपनेज वरवो. परंतु बोजा कोइने वरवो नहिं. एम प्रतिज्ञा करी ते सर्व कन्या, पोत पोताने घेर वीयो. अने पोतानी जे प्रतिज्ञा हती ते पोत पोताना पिताने कही यापी. ते सांजली ते सर्व क न्याना पितायें खुशी थइ ते वात गुणसागर कुमारना पिता रत्नसंचयने कही. अने वली कह्यु के अमो आवे जग, अमारी आते कन्याउने तमारा पुत्रने प्रापवा अाव्या .यें ? ते सांजली रत्नसंचय श्रेष्ठी कहेवा लाग्यो, के अहो शेठीयात ! या संबंध तो जेम पाननी साथे सोपारीनो संबंध थाय, तेवी रीतनो उत्तम ले. अने तमो ज्यारें तमारी कन्याउँने मारा पुत्रने आपवा अाव्या बो, त्यारें तो ते संबंध करवानी ढुं शा माटे ना कटुं ? माटे ते वातनी हुँ हा कडं . त्यारे पनी कन्याउनो पृथ्वीचं कुमार साथे संबंध कस्यो. अने पनी परस्पर, नत्तम लग्न जोवरावी लग्न करवानी धाम धमक रवालाग्या. हवे तेवामा शुंबन्यु? के एकदिवस गुणसागर कुमार पोताना घर नी वारीमां बेटो वेठो पुरनी शोना जोतो हतो, तेवामां तेणें तपे करी सर्व शरीर जेनुं कृष्य थ गयुं . आंखो जेनी नमी जती रही ले अने गोचरी माटे जमता, एवा कोइएक मुमुदु मुनिने जोया. तेने जोड्ने ते कुमार, मनमां विचार करवा लाग्यो के अहो ! आ मुनिनो वेप अत्यंत सुंदर . तथा धूसर प्रमाण दृष्टि राखी रियाव हिय शोधता चाल्या जाय . तेम तेनी सर्व इंश्यो केवी सुगुप्त ? तेमनी गति पण मंद . आवो वेष, में पण कोइक नवमां अनुजव्यो होय ? एम लागे ले. एम विचार करता ते गुणसागरने तुरत अत्यंत मूळ आवी गइ. ते जोक्ने संभ्रांत जेनां चित्त के एवो सर्व सुदृर्ग एकदम दोडी, ठंडं जल लावीने ते गुणसागर पर बांटवा लाग्यो. अने तेने शीतल एवा चंदननो लेप कस्यो. तथा ताडना पंखाथी पवन नारख्यो. आम एक क्षणवार करवाथी ते कुमार स्वस्थ थयो. त्यारें फुःखित थयेलां तेनां माता पिता वगेरे, तेने पूबवा लाग्यां के हे पुत्र ! श्राम अकस्मात् तुने युं ययुं ? गुं तारुं युवानवय होवाथी आ घरनी बारीमाथी कोइ युवतीस्त्रीने रस्तामां चालती जोड्ने कामातुर थवाथी तुने मूळ आवी? के गुं सामंतनी अथवा मंत्रीनी कन्या जोश्ने मूळ आवी? Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नए के झुं थयुं ? ते कहे. अने हे पुत्र ! जे कारणथी तारा मनमां दुःख थयु होय, ते कहे. अने तुं जेम कहीश, तेम ढुं करी आपीश ? ते सांजली गुण सागर कुमार बोल्यो के हे पिताजी ! मोहना औत्सुक्यथी सुखने देनार, अति मूर्खजनने प्रिय, फुःखना मूलनूत, एवा नोगने विषे तो रोगनी पढें मारूं मन, कोई दिवस आसक्त थातुंज नथी. कारण के में पूर्व घणांक सुखो, देव लोकोने विषे जोगव्यां , तो पण हजी मारी तृप्ति थइ नथी. तो तुब एवा आ लोकना नोगथी तो गुंज तृप्ति थवानी ले ? काहिं नहिं. अर्थात् देवलोकोना नोगो मारा मनने हरण करी शक्या नहिं, तो वली याबीनस एवा मनुष्यनोगो, ते झुं मारा मनने वश करी शकशे? अने जे कोइ कालें अमृत, पण पान करता नथी, ते अ॒ विपनुं पान करशे ? अने हे पिताजी! जो तमो मारा मनोरथज पूरवानी इवा करता हो, तो मने आप आनं दथी श्रामण्य लेवानी रजा आपो. के जेथी ढुं मनोहर एवा श्रामण्यने स्वीकारूं? हे तात! हाल रस्तामां गोचरीयें जाता एवा मुनिने जोड्ने पूर्व नवोमां जे में घणाक काल चारित्र पाल्युं , ते मने हाल स्मरण थ आव्युं ने, तेथी हवे आ गहन एवा संसारने विपे एक कण वार पण हूँ रहेवाने शक्य नथी. जेम श्वेतपदवालो हंस , तेने जो मानसरोवरनो योग मने, तो पबीते कोइ दाहाडो बीजा पदार्थ, अवलंबन मागे? ना नज मागे. अने वली ते मानसरोवरने मूकीने पोतानी नत्तमवर्णवाली पां खोने कचरामां बोलवा ले ? ना नज . तेम ढुंबावा सारनूत संयमने बोडी कादधसमान संसारमा कोइ दाडो यासक्त था ? ना नज था ? आवां वचन सांजली तेनो पिता कहेवा लाग्यो के हे पुत्र था तुं गुं बोले ? अरे आम तने कोणे जरमाव्यो के ? शुं हाल तारो संयम लेवानो वखत ने ? ना. जोने विज्ञान लोकोयें मनुष्यने पोतानी आयुष्यना त्रण नागमांत्रण वर्ग, यथासमय साधवानुं कर्तुं जे. तेमां एक अर्थ, बीजो काम, त्रीजो मोद. तेमां बुद्धिमान् मनुष्ये प्रथम युवावस्थामां तो अर्थ अने काम ए बेज साधवा. पढ़ी ज्यारे प्रौढावस्था थाय, त्यारें मुक्तनोग एवा प्राणीने धर्माराधन करवं. कहेलु के के ॥ श्लोक ॥ प्रथमेनार्जिता विद्या, हितीये नार्जितं धनम् ॥ तृतीयेनार्जितोधर्म, चतुर्थे किं करिष्यति ॥ १ ॥ अर्थःमनुष्यने प्रथम वयमां विद्या संपादन करवी, बीजी युवावस्थामां धन संपा Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. दन करवू, त्रीजी प्रौढावस्थामां धर्म संपादन करवो, अने पली तुर्य अव स्थामां गुं करशे ? कांज नहिं. माटे हे पुत्र ! हाल तो तारे अर्थ, अने काम संपादन करवाने उत्सुक रहे. ते सांजली कुमार बोल्यो के हे पिताजी ! तमोयें कडं ते तो साचुं , परंतु जे सुख, धर्मय। प्राप्त थाय ले, ते सुख कोइ दिवस, घणा काल पर्यंत नोगवेला विषयनोगथी प्राप्त थातुं नथी. कहेलु डे के ॥ श्लोक || अविदितपरमानंदो, वदति जनोविषयएव रमणीयः ॥ तिलतैलमेव मिष्टं, येन न दृष्टं घृतं कापि ॥ १ ॥ अर्थः- जेणे झानसुखनो आनंद लीधो नथी, ते मनुष्य. आ तुन एवा विषय सुखनेज सारूं कहे , केनी पढ़ें ? तो के जेणें घृतने को दिवस दी] पण नथी. ते जीव तेलनेज मितं कहे . अने हे तात! आ अनादि संसारने विपे फरता एवा जीवें स्त्रीजोग, नोजन, नूपण प्रमुख ने नोगव्यां ,ते समय विपयनोगादिकना पदार्थ जो आपणे एकता करीये, तो ते पाखी पृथ्वीमां पण समाय नहिं एटला थाय ? तेमज नली आ अनादि संसारमा फरता प्रापणे जीवें जे जल पीधांबे. ते जल जो प्रापणे एकतां करीयें, तो ते अनंता समुश्नराइ रहेवाथी पण वधे. वली आ अ नादिसंसारने विषे आपणे जीवें जे जे फल खाधांबे, ते फल जो आपणे एकतां करीयें, तो ते सर्व फल आ पृथ्वीना सर्व वृदोनां फल करतां पण वधी पडे ? वली हे पिताजी! आ संसारने विपे एवा कोई नोग नथी, जे आपणे जीवें नोगव्या न होय ? कारण के आपणे जीवें एकेक नोग अनंती वार नोगव्या डे, तो पण हजी आ जीव, तृप्त थातो नथी. कोनी पेठे ? के जेम को रांकने स्वप्नामां मिष्टान्ननोजन मले, ते जेम तृप्त थाय नही? अने वली ते नवांतरने विपे जे कांइ सुख मन्यु ने, ते सर्व सुख, आ हालना नवने विषे स्वप्नसमान थइ गयुं . माटे हे पिताजी! तमोने पण कहुँ , के हवे समजो, समजो. आ असार संसारमा मोह पामो मां. हे तात ! तमो खरंज जाणजो जे आ जीवने विषयनो गना नोगववाथी तृप्ति को कालें थातीज नथी, तेमाटेंज मुक्ति साधनमां रक्त एवा विवेकीजनो ते नोगने माटे कां पण आचरण करता नथी. परंतु मोद माटे करे . माटे हे तात ! हवे मने संयमव्रत ग्रहण कर वामां विघ्न करशो नहिं ? कारण के हुँ जरूर प्रव्रज्या ग्रहण करीश ? Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७ आ प्रकारे ते गुणसागरनो संयम लेवानो अत्याग्रह जाणीने ते रत्न संचय श्रेष्ठी कांड पण बोलवा समर्थ थयो नहिं. त्यां तो वली त्यां बेठेली ते गुणसागरनी माता, रुदन करती कहेवा लागी, के हे पुत्र ! आ शुं कहो बो ? झुं अमो बेग तमो दीक्षा लीयो ? हा ! ते केम बने? वली हे वत्स ! मारा मनरूप पृथ्वीने विषे, “आ सत्पुत्रथी मने सर्व ला न थाशे” एवी आशारूप डुम उत्पन्न श्रयो ने, अने ते डुमने तमोयें विन यरूप जलथी सिंची महोटो पण कस्यो ,तो तेने या संयम लेवा जवा रूप प्रतिकूल पवनथी हाल नबेद करवा केम धारो बो ? अने हे पुत्र ! तमारा विना मारूं था हृदय, पाकेला फलनी पहें तुरत फाटी जाशे ? वली हे वत्स! तम जेवा सत्पुत्रने अमारा जेवां जराजर्जरित माता पिताने बोडी नागी जावू नचित ? ना नथीज. माटे हे नंदन ! जाजी तृष्णायें उमेरेला एवा तमोयें अमारु पालनज करवं. हे पुत्र! अमारे तो जे कांक हे, हतुं, ते कयुं. हवे जेम तमारा मनमां आवे,तेम करो. ते सांजली गुण सागर कुमार बोल्यो के हे माता! जे कांइ तमोयें कह्यु, ते सर्व सत्य जे. परंतु मृत्युनो का नियम छे ? ना नथीज. जुन, ते मृत्यु क्यारेक बालक होय, तेने लइ जाय , अने वृक्ष, तथा रोगी होय, तेने रहेवा दे .माटें जो ते मृत्यु मित्र होय, अथवा जे माणस एम जाणतो होय, के हुँ अमर बो, तो ते प्राणीने संयम लेवामां प्रमाद करवो नचित . वली हे मात ! तमारा कहेवाथी कदाचित् ढुं धर्माचरणमा आलस्य राखं, अने एमने एम मने काल लइ जाय, तो पा वली मुने संसार व्रमण तो नचुंज रहे ? आ अनादि एवा असार संसारने विष कर्माधीन एवा जीवो अनंती वार पिता, माता, पुत्र, नगिनी, नाइ, शत्रु, मित्र, कलत्र, स्नेहीप गाने पाम्या हो ? तो ते जीवो मांहेलो ढुं पण बौं. अने तमें पण बो. तो तेमां वली मारे माटे अवडो महोटो खेद शा माटे करो बो ? अने हे जननि ! तमोने एक लौकिक दृष्टांतथी पूढे बुं, के कोशएक माता हती, ते पोताना कुमारपुत्रने लश्ने एक सरोवरमां वस्त्र धोवा गर, ते पुत्रने सरोवरना कांठापर बेसास्यो. पनी पोतें वस्त्र धोवा लागी. त्यां तो साथें आवेलो ते पुत्र, सरोवरमां नाहावा पड्यो, अने नाहातां नाहातां पागल जतां खाडो थाववाथी ते खाडामां मुबवा लाग्यो. तेने सुबतो जोश Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तेनी मायें कल्पांत करवा मांड्यो. त्यां तो दैवयोगें ते पुत्र, पाणीना जोरथी तेनी माता ज्यांनी बे, त्यां तेनी पासें खाव्यो. तो हवे हे माता ! तेनी मा तायें ते पुत्रने पकडीने बाहार काढवो, के उलटो धक्को मारी मृबाडी देवो ? ते कहो. त्या तेनी माता बोली के ना तुरत ते पुत्रने बाहारज काढवो. तेने कां धक्को मारी मारी न खाय ? त्यारें कुमार कहे बे, के तेम ढुं पण या संसारमा रुवतो हतो, तेमां कोइक पुण्यना योगथी तमारी कुखरूप अव लंबन पाम्यो बुं ने नजिक किनारे श्राव्यो बुं, तो पाठो तमारे मने पूर्वोक्त रीतें संसाररूप सरोवरमां नाखवो घटे बे ? ना नहीज. अने मारे माथे ज्यारें जरूर मरण े, तो हुं तमोने इष्ठ बुं, तो पण शा कामनो बुं ? वास्ते अगाध एवा संसारसमुथी नीकलवा बता एवा मने तमारे वारवो, ते ठीक कहेवाय नहिं. ने हे जननि ! ग्रंथ कूप, सलगतुं घर, संमुड्, रोग, इत्यादिक महाकष्टमांथी निकलता ने राज्यने प्राप्त थता एवा पुत्रने कोइ मा बाप तेवा सुखथी वारे ? ना नज वारे. तेम पूर्वोक्त अंध कूपादि समान संसारमाथी निकली संयमरूप राज्यने प्राप्त थता मुने तमारे पण वारवो घटे ? ना नज घटे. कयुं ले के ॥ श्लोक || शेषकार्येष्वपि प्रायो, विलंबोहानिकृन्मतः ॥ तत्प्रसिव लोकेऽस्मिन, धर्मस्य त्वरिता गतिः ॥ १ ॥ अर्थः- सर्व कार्य यइ रह्युं होय अने यत्किंचित्कार्य बाकी रह्युं होय, तो तेने विपे पण जे विलंब करवो, ते विलंबने पण हानिकारक मानेलो बे अने "G धर्मनी गति तो त्वरित बे, " एम सर्वत्र लोकमां प्रसिद्ध बे, तो ते धर्ममां शामाटे विलंब करवो? या प्रकारनां ते कुमारनां वचन सांजली बली माता कहे बे के हे पुत्र ! ते तो ठीक. पण आवुं तमारुं अत्यंत कोमल अंग बे, तां ते संयमधर्मने तमें केम पाली शकशो ? कारण के ते संयममां तो जेम शिरपर पर्वतना जारने सहन करवो पडे, तेम निरंतर मोहोटा व्रतरूप पर्वतनो नार सहन करवो पडशे तथा तेमां घणाक परिसह ने उपसर्गो सहन करवा पडशे, तो तेने तमें सुकुमार अंगोथी केम सहन करी शकश ? ने हे वत्स ! तमने हुं केटलुंक कहुं, परंतु चारित्राचर ए जेबे, ते तम जेवाने दुष्करज बे, ते माटे या मनोहर गृहस्थाश्रम मां रहीनेज जिनधर्मनुं यथाशास्त्र याचरण करो. ते सांगली वली गुण सागर कुमार बोल्यो, के हे अंब ! या दीक्षानां दुःखथी पण जेनी संख्या Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नए नथी एवां उग्र एवी वैतरणीमां पडवानां, कूटशाल्मलीपदनां, तप्तवालु कामां तपवानां, कुंजिपाकमां पडवानां, शूली आरोपा नां, करवतथी वि दारण थवानां, बरबी, तरवार, कटार तेथी दावानां, तरवार सरखा पत्र जे जेनां एवा वृदना पत्रथी दावानां, कुतरां, ढीकपदी प्रमुख फाडी खानारा जानवरोथी फुःखी थवानां दुःखो, में घणांज नरकावासमां नोग व्यां बे. तेमज वली तिर्यग्योनिना नवमां गाडा साथें जोडावानां, हल वहन करी तेने खेंचवानां, नारारोपणनां, तेमां पण वली परोणा, सोश्जे वीलोढानी थार, लाकडी प्रमुखना मार तेनां, तथा नूख, तृषा, टाढ, तडको, परवशपणुं, ए वगेरेनां अनंतपुःखो में नोगव्यां बे. तेमज वली मनुष्यना नवमां जरानां, जन्मनां, गर्जनां, शोकनां, अनिष्टना संयोगनां अने श्टना वियोगनां, शरीरने विपे रोग प्रमुखनां, तथा मननां. एवां में घणांज फुःखो नोगव्यां ने. तो हवे ते सर्व दुःनो संजारीने सुखने माटे हाल ढुं या यतिधर्मने केम न आचरूं ? यावां वचन सोनली मातायें जाएयु जे या पुत्रने संसारपर तीव्र वैराग्य थयो , तेथी तेनो संयम लेवानो दृढ निश्च य . माटें ते आपणुं कांहि पण कर्तुं मानशे नहिं ? तेथी जे फोगट फां फां मारवां, ते व्यर्थ के. एम जाणीने रुदन करती एव तेनी माता ते गुणसागरकुमारनां बेदु चरण ग्रहीने महोटा शब्दथी कहेवा लागी के हे वत्स ! तमें संयम लेवाना दृढ निश्चयवान थया बो, तो पण जेनो त मारी साथे संबंध कस्यो ने, ते मनोहरा एवीआते कन्याउनुं तमें पाणिग्रह एग करी निःसत्त्व एवी जे हूं,ते मारा हृदयने जरा अवलंबन आपो. अने हे पुत्र! ज्यारें दुं तमने परेला जोवं, त्यारेंज ढुं कृतार्थ थइ एम जाएं, अने मारा मनने निवृत्ति पण त्यारेंज थाय. वली बीजं झुं थाय ? के ते तमोने परणेली जे ए आठ स्त्रीयो होय, ते मने आधार थाय. ते सांजली कुमार कहे जे के हे अंब ! तमो मारे माननीय बो, तेथी ते तमारुं वचन मानी ते बाते कन्याउने ढुं वरीश, परंतु वस्या पली तुरत ढुं दीदा लश्श, तेमां मने बिलकुल अवरोध करशो नहिं. अने वली हे जननि ! जेनुं मा रे पाणिग्रहण करवू , ते कन्याउना प्रत्येक पिताउने कहेवरावो के, श्रा अमारो गुणसागर पुत्र, तमारी कन्याउनुं पाणिग्रहण करीने तुरत दीदा लेशे. अने बाम कहेवराव्या पली जो तेउनी ना हो, तो ते परणावशे. Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Hum जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते सांजली ते कुमारनां माता पितायें पोताना श्राठे वेवाइने कुंवरना कहे वा प्रमाणें कहेवराव्यं, त्यारें तो ते सर्व वेवाइ नाखुश थइ बोल्या के ते वात तो अमारी कन्याउने पूबी जोइयें, खाने ते जेम कहे, तेम करीयें ? एम कही ते यावे जसे पोत पोतानी खाते कन्याउने पूर्वी जोयुं के हे कन्या ! जेनी सायें तमारो संबंध मोयें कस्यो बे, ते वर तो प्रतिवैरा ग्यवंत बे, तेथी तेनां माता पिता कहेवरावे बे, के या अमारो पुत्र, तमा री कन्याउने परणीने तुरत दीक्षा जेशे ? माटें तेमां तमारी शी मरजी बे ? जो तमारी मरजी होय, तो तमोने तेनी सायें परणावीयें, नहिं तो पी बीजानी सायें परणावीयें ? ते सांजली ते ठे कन्या पोत पोताना पि ताने का लागी के, हे पिताजी ! तमो जरा विचार तो करो, के जे पुरु पनी मो वाग्दानथी स्त्रीयो कहेवाणी, ते मटी वली बीजानीं स्त्रीयो ते केम थाइयें ? माटे जो ते अमने परणनारा कुमार, लग्न थया पढी संसा रमा रहेशे, तो श्रमो संसारमां रहेणुं, अने जो ते दीक्षा जेशे, ते अमो पण तेमज करशुं ? परंतु बीजा वर सायें यादेहथी वरशुं नहिं. अने एम करतां कदाचित् जो तेनी साथे तमो नहिं परणवो, तो ग्रामने याम यमो कुंवारीयोज रही दीक्षा गुं. अने हे पिताजी ! शास्त्रमां पण एक कन्याने वे ठेकाणे देवानो महोटो दोप केहेलो बे ॥ श्लोक ॥ सक कल्पंति राजानः, सक्कल्पंति पंमिताः ॥ सकृत्कन्याः प्रदीयंते, त्रिष्येतानि सकृत्सकृत् ॥ १॥ अर्थः- राजाउ जे बे, ते एकज वार हुकम करे बे, तेम पंमितो पण एकज वार बोले ले, अने बोलीने फरता नथी. तेम कन्या पण एकज वार अपाय बे, बीजी वार पाठी बीजाने पाती नथी ॥ १ ॥ एत्रण वानां एकज वार थाय बे. माटे सर्वथा मारो विवाह तो तेनी साज करो. ते सांजली ते कन्याउना यावे पितायें गुणसागरनां माता पिताने पोत पोतानी कन्याउने गुणसागर सायें परणावानी हा कही. वेस्लें महोटो विवाहोत्सव मंमाणो. कन्याना तथा वरना पिता हर्षित थइने मनोहर रेशमी उल्लेचो जेमां बांधेला बे, मोतीना कुमखायें करी युक्त, मणियोयें मंमित, एवा मंमपो बनाव्या. तथा जेने जोइने स्वर्गस्थ देवाने पण विस्मय यइ जाय एवां दिव्य पुष्प, चंदन, तांबूल, रत्नना तथा सुवर्णनाथानरणो, श्रने मनोहर एवां वस्त्र, ए वगेरेथी सुशोजित एवां · Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. तेउनां सर्व संगां संबंधी मव्यां. वली ते लग्न महोत्सवमा अनेक प्रकारनी रसोइयो बनावी तेथी सङ को जमवा लाग्यां, तथा मनोहर एवां तूर्य वगेरे वाजितना नादरूप गर्जनायें युक्त, त्यां एकती थयेली स्त्रीयोयें पहेरेला हिरा जडित बाजरणोना जबकारारूप विजलीवालो, मनोहर सुंगधश्व्ययुक्त जे ज लतेनां बांटणारूप वृष्टियें करी पंकोजम जेमा थयो ने एवो जाणे नविन में घजाव्यो होय नहिं? तेवु लागवा मामयु.आवी रीतें महामहोत्सव वर्ता वाथी गाममां माणासोने याववा जवानो रस्तो पण बंध थइ गयो. हवे एम करतां ज्यारें लगनो समय थयो, त्यारे ते गुणसागरने स्नान करावी, मनोहर अलंकार वस्त्रो पहेरावी, वरघोडे चडाव्या. अने पडी ते वरघोडे चडीने चाल्या. त्यारे त्यां अनेक वाजित्रो वागवा लाग्यां. अने सुवासिनी स्त्रीयो, मंगलगीत गावा लागीयो,अने मृताथी नगारां निशान पण वागवा लाग्यां. मागध, बंदी, चारण, जाट ते सर्व गंचे स्वरें तेना गुणगणनुं वर्णन करवा लाग्या तथा स्तुति अने आशीर्वाद देवा लाग्या.अने ते हर्षोत्कर्षथी सिंहनी समान नाद करवा लाग्या. त्यारे ते मागधादि अने याचकलोकोने राजायें सन्मानपूर्वक घणुंक धननुं दान दीg. एम अत्यामंबरथी वरघोडे चडेलो गुणसागर कुमार, पोताना ससराने घेर तोरण पासें आवी ननो रह्यो. त्यारेसवें वैवाहिक किया थवा लागी. हवे त्यां विवाहनी जे जे क्रिया थवा लागी ते प्रत्येक क्रियाने जोक्ने चिदानंदमां लीन एवो ते कुमार, त त्त्ववृत्तिथी ते ते क्रियाने चिंतववा लाग्यो. ते जेम केः- अहो !प्रथम था स्त्रीयो जे गीतगान करे , ते पण केवल प्रलपन मात्रज . केम के ते स्त्रीना गायेला गुण मांहेलो एक पण गुण परणवा आवेला प्राणीमां होतोज नथी. तथा वली जे वरनां अने कन्यानां लग्न थाय , तेने जगतमां सदु को लोको विवाह कहे , ते वस्तुतः खरूंज जे. केम के वि एटले विशेष करी वाह, एटले संसारनारनुं वहन करवं. अर्थात् जेनां लग्न थाय , ते जीव, संसारनो सर्व बोजो माथा पर लश् अकर्त्तव्य कर्म करे . तेथी ते घणोज खग्रस्त थाय . माटे तेने जगतमा सदु विवाह कहे , ते वि वाहज डे. वली परस्पर परगनार एवां वर अने कन्यानां सोपारी बदले में, ते सोपारीज नथी बदलता, परंतु ते एकबीजां, पुण्यने विषे पापy आरो पण करे ने. वली परणवा आवेलो जीव, जे संपुट नांगे , ते संपुट नथी Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भएर जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. नांगतो, परंतु ते परणवा आवनार जीव, पोताना धर्ममंगलनेज नांगे . वला ते विवाहार्थ आवेला वरनु, सासु नाक ताणी गलामां डेडो नारखी तेने मांमवामां खेंची लावे ,ते नाक ताण खेंचती नथी, पण ए परणवा था वेला प्राणीनुं सर्वनी समद अपमान करे . वली परणवा आवेला जीवने चार पोखणामां प्रथम, सासु सरीये करी पोखे , ते सरीये पोखतीनथी, पण तेथी एम जणवे , के हवे ा जीव, शर जे बाण तेणें करी जीवोने हणशे. वली तेने सासु बीजा मुशल नामक पोखणे करी पोखे , तेथी ते पोखती नथा, पण ते एम जणावे , के ग्रा परणवा आवेलो जीव, हवे मुश लोथी दीन जीवन दलन करशे. वली त्रीजे धोसरे करी जे पोंखे , तेथी ते सासु ए जीवने एम जणवे , के हवेथी तारा गलापर संसारनार ताण वानुं धोंसलं पडशे. ते तारे वेलनी पढें खेंचवू पडशे. वली सासु, चोथु पोखj जे त्राक, तेणे करीने पोखे , तेथी ते एम सूचवे , के हवे या प्राणी कर्म सूत्रने कांतवा मांमशे? या सर्व अभिप्राय चार पोखणायें करी पोखवानो . वलीलोको मायरंजे कहे ने, अने तेमायरामां परणवा आवेलो जीव जाय .ते मायरामां नथी जातो, परंतु मायागृहमांजाय ,अर्थात् ते मायरामां परणवा जनारो जीव मायागृहमांज पड्यो, एम जाणवू. तेमा वली पाडो ते चोरी फरता चार फेरा फरे ,ते चोरीना फेरा नथी फरतो, परंतु तेथीते जीव एम जणावे के हवे ढुं, चतुर्गतिरूप नवन्रमण करीश? वली रात्र वर अने कन्या परस्पर कंसारजहण करे , ते कंसार नथी जमतां, परंतु तेथी एम जणवे , के हवेथी अमारा बेदु जीवोना त्रपा तथा आचार जाशे ? कारण के निर्लज थइने सर्वनी समीप एक बीजानु एतुं खाये बैयें. तथा परणना रो प्राणी बीजां कोरां केसरीयां वस्त्र पहेरे , ते वीजां कोरां केसरियां वस्त्र नथी पहेरतो, पण तेथी ते आपणने एम जणवे ने के, हवेथी अमारं पावित्र्य दूर गो. वली ते वरखतें ब्राह्मणो जे पुण्याहं पुण्याहं. सावधान, सावधान. एम जणे , तेथी ते एम सूचवे , के हवे ा जीवना पुण्यना दिवस गया, अने पापना दिवस आव्या. माटे तेने पलायन थवानो समय आव्यो में. तेथी जो ते सावधान थाय तो सारं. एम संसारपाशथी निकल वान। सूचना करे , तो पण अझ एवो ते परणवा आवेलो जीव, पलाय न करतो नथी. त्यारे तेने वरमालारोपण करे . अर्थात् तेने संसारपा Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५३ शमां नाखे बे. आ प्रकानी विवाहने विषे प्रत्यद विडंबना देखाय , तो पण क्लीब अने अतिपापिष्ठ एवो था प्राणी, कांही पण आंख उघाडी जोतोज नथी. आवी रीतें ते गुणसागर कुमार, अंतरंगतृत्तिथी जुवे ले, अने तेवी सनावनाथी कर्मोने निर्जरावे . अने जगतना लोको जे , ते बहिस् त्तिथी जुवे जे. एम करतां ते सर्व विवाह क्रिया संपूर्ण थाय . हवे विवा हानंतर ते गुणसागर कुमार, पोतानी परणेली थावे स्त्रीयोयें सहित स हस्त्र पुरुषोयें वहन करेली एवी एक उत्तम शिबिकाने विषे बेठो. अने स्वजनोयें सहित मोहोटी धामधूमथी मनोहर एवा पोताना मंदिर तरफ चाल्यो. ज्यारे ते तरुणकुमार, राजरस्ते आव्यो, त्यारें तो ते पुरनी रहे नारी सर्व तरुणीयो तूर्णताथी देवेंइने देखवा जेम देवलोकनी देवीयो आवे, तेम पोताना उच्च एवा घरने विपे तथा अगाशीमां, अट्टालिकामां आवी एकती थश्यो. अने त्यां ते कुंवरने जोस्ने केटलीएक कामनियो परस्पर कहेवा लागीयो के, हे बहेनो! आ कुंवर तो कंदर्पथी पण अधिक रूपवान ले. तेम तेनी आ आठ स्त्रीयो पण जाणे कामदेवनी रति नामा स्त्री पोतेंज आठ स्त्री, रूप धारण करी पोताना पतिने परणवा आवी होय नहिं? एम लागे जे. कारण के ते स्त्रीयो जो आपणी समान लौकिक होय, तो तेने आवो कामसमान स्वरूपवान् वर केम मले? तेथी आ स्त्रीयो अने कुमार, महोटा नाग्यवान् होय, एम जणाय . ते सां जली वली बीजी स्त्रीयो बोलीयो के हे बहेनो! अमें तो एबुं सांनव्यु ले जे नछाहित एवी या आते स्त्रीयोने बोडीने कुमार, वे चार दिवसमां दीदा शे. माटे जो ए दीदा ले, तो पनी या स्त्रीयो नाग्यवान् केम कहेवाय ? तेम कुमार पण जाग्यवान् केम कहेवाय ? त्यां वली अन्य स्त्रीयो कहेवा लागीयो के, हे वयस्याः ! उत्तम एवी युवावस्थामां या कुमार, ज्यारे थावी मदनमंजुषा समान श्यामाउनी साथे परण्यो, त्यारे तो हवे ते दीक्षा लज रह्यो. कारण के पाराधिना रचेला पाशमां पडेलो मृग, वली को कालें ते पाशमांथी निकली शके ? ना नज शके. तेम हवे आ सुंदर स्त्रीयोना पाशमां पडेलो कुंवर, कोकालें ते पाशमांथी निकली दीक्षा लश् शके ? ना नहिंज. ते सांजली वली अपरस्त्रीयो कहेता लागीयो के, हे सखियो ! एम करतां कदाचित् था कुमार यावी मनोहर Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भए जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. महिलाउने तथा समुसमान समृधिने बोडीने जो संयम स्वीकारे, तो ते कुमारनी तुल्य बीजो कोण उत्तम कहेवाय ? कोज नहिं. बाकी या नवमां लूखें मरवाथी जीख मागनारा, मायिक मनवाला मुंमा तो घणाज नटके ? ते सांजलीने वली बीजी स्त्रीयो बोलीयो के, हे बहेनो! जो आवे कन्या प्रथम एम जाणती होय, के आ कुंवर अमने परणीने तुरत दीदा शे? तो तेने वली श्रा कुमार साथें शा माटे परण, जो ये? झुं सोनानी बरी होय, ते कांई पेटमां मराय ? ना नज मराय. था प्रमाणे सर्व नागरिक स्त्रीयो बोले . ते वाक्योने सांजलतां सांजलतां ते कुमार, पोताने घेर पदोंच्यो. अने त्यां आवी नव्य एवा नशसननी नपर पोताना पितानी माबी बाजुये वेगे. अने पडी ते कुमारनी मावी बाजुयें तेनी माता वेठी, अने तेनी समीप तेनी स्त्रीयो बेठीयो. हवे ते वखत, घणांक मृदंगो, सतार, सरोदा, बिन, मोरबीन, वीणा. ए वगेरे वाद्योथ। युक्त अने मनोहर एवं गायक लोकोयें गान करवा मांमधु. तेमज वली ते समयें प्रेदकने परम आनंद थाय, तेवू नृत्य पण थवा लाग्युं. त्यारे त्यां केटलांएक लोको ते गानने सांजलवा अने नृत्यने जोवा माटे याव्यां. ते समयमां सर्व इंडियो जेणे वश करीने. नासायपर राखीने दृष्टि जेणे, एवो ते गुणसागरकुमार, तृप्तात्मपणे शमामृतकुंममा मग्न थक्ने पो ताना परमात्मचिदानंद पदने चिंतववा लाग्यो. के अहो ! आ जगतमां स्त्री जे , ते संसारवृदनुं बीजज जे. केम के, जे संतान थाय बे, ते स्त्री थकीज थाय . अने ते संतानना अने स्त्रीना निर्वाह माटें जीव, घणोज पापकर्म करे , अने पानां ते पापो तो पोतानेज नोगववां पडे . वली ते स्त्रीयो अने संतान कहेवां ? के ज्यां सुधी एनो स्वार्थ होय , त्यां सुधी तेनी पर राग धरे में, अने ज्यारे तेनो स्वार्थ सरतो बंध थाय ने, त्यारे पाठां ते तुरत तेनी साथे क्वेश करे . माटे तीववैराग्यवान थइने तेवी स्त्रीने ते कयो मूर्ख इन्ले ? अने विरक्तने विषे संततरक्त एवी स्त्री जो जोश्ये, तो तेवी तो एक मुक्तिस्त्रीज . ते माटे ते मुक्तिस्त्रीनीज हूं प्रार्थना करीश ? अने हवे ते कार्यमा विलंब न करतां बाजना प्रजात मांज प्रव्रज्या ग्रहण करीश! तेम वली सुगुरुनो विनय करीश! शुद्ध एवा ध्यानने धरीश! अने पड़ी तत्काल संसाररूप समुड्ने तरीश ! यावी Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४५ रीतनी शुधनावना जावतां ते कुमारने पालना नवोमां ने कांश अन्या सेलां शास्त्रो हतां, ते सर्व स्मरणमां आव्यां. तेथी तेणें अनित्य नावना नावतां पकवेणि आरोही. अने शुक्लथ्याने करी त्यां तेने सिंहासन पर बेठां बेगंज केवलज्ञान प्राप्त थयुं. त्यारे इंघियजित, शांतरसमग्न, निश्चलने त्र, एवा पोताना स्वामीने जोश्ने सहाथी अवनत के मौलि जेना, एवी ते आते स्त्रीयो विचार करवा लागीयो के, अहो ! था आपणा स्वामी गुण सागर कुमार हाल गृहस्थाश्रममांडे, तो पण तेने धन्य ले. कारण के ते शमसंपत्तिथी पूर्ण अलंकत .अने हवे आ आर्यपुत्र, कांश सावध कर्मनी पात्रनूत एवी अमारामां रंजित थाय, तेम लागतुं नथी ? कदाचित् ते रागवान् नहिं थाय, तो पण अमो नाग्यवान बैये,कारण के आवा मोद गामी पुरुष, अमारा स्वामी थया जे. वली आ पुरुषy अमें पाणिय हण कयं के तेथी अमारो पण मोद थाशे, केम के या पुरुष, जरूर दीक्षा ग्रहण करी परमपद जे मोद, तेने पामशे. तेम अमो पण दीक्षा ग्रहण करी मोदपदने पामशुं ? या प्रमाणना शुक्लध्यानरूप अग्नियी बाली नारख्यां कर्मरूप इंधन जेणे एवी ते आठ स्त्रीयो पण, पतिव्रता होवाथी, त्यां वे बेतांज केवल ज्ञानने पामीयो. ते वखत देवतायें हर्षायमान थर, पोताना उंनि नगाराना शब्दें करी आकाश सर्व पूरी दीधुं. तथा सुंगधोदकनी दृष्टि करी. अने मनोहर, पांचवर्ण वाला पुष्पोनी वृष्टि करी. तेथी तेना घरना आंगणामां तो पुष्पोना पुंजो थइ गया. अने देदीप्यमान डे कुंमलो जेनां एवा त्यां आवेला देवतायें करी तेनुं सर्वमंदिर, सुशोनित थ गयुं. ते जोइने ते गामनां सदु लोको कहेवा लाग्यां के अहो ! आश्चर्य ले ! आश्चर्य ! कारण के आ वैश्यना पुत्रना लममां तेनी पुण्याश्ना आकर्ष्या देवता पण तेनुं वधाम गुं करवा याव्या .अहो! वली एउनी क्रिया जे दे, ते पण पुष्कर , कारण के जे क्रियायें करी जेज्यें नय एवा मोहमनना राज्यमां ते मोहमन्नने हणीने केवल ज्ञान उपायु ! अहो ! तेमने थाश्रवमांहे संवर थयो ! अहो ! धन्य, अने कृतपुण्य एवा तेउयें जन्मनुं साफव्य कयुं ! एम त्यां लोकोयें घणीज अनुमोदना करी. त्यांतो त्यांआवेला सर्व देवता स्तुति करी कहेवा लाग्या. के हे महानुनाव! तमें सत्ववंत, धीर, सर्वज्ञ थया दो, माटे तमोने धन्य Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ए जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. जे. एम स्तुति करीने पनी ते देवोयें गुणसागरने तथा तेनी स्त्रीयोने समय एवो साधुनो वेष समप्यों, अने नमस्कार करी केवलज्ञाननो महोटो नत्सव कस्यो. त्यार पड़ी ते गुणसागरनां तथा ते कन्याउनां माता पिता पण अनित्यनावना नावी शुक्लथ्याने आरोही चारे घातिकर्म खपावीने केवलझान पाम्यां. ते सर्व वृत्तांत सांजलीने विस्मय पामेलो एवो ते गाम नो श्रीशेखरनामा राजा हतो, ते पण सपरिवार ते केवलीनगवानने वां दवा याव्यो. श्रावीने ते केवलीने त्रण प्रदक्षिणा दक्ष, तेमनी समीप योग्य स्थानपर बेतो. त्यारे वली बीजां पण ते गामनां लोको केवली नगवाननी वाणी सांजलवा माटें आव्यां. हवे सुधन कहे डे के हे पृथ्वी चंद कुमार ! ते वखत हूं तो केटलाएक मालनां गाडां नरी व्यापार करवा माटे या तमारा अयोध्या गाम तरफ व्यापार माटे यावतो हतो, त्यां तो में सांजल्युं जे “गुणसागर कुमारने, तेमनी आठ स्त्री योने, तेनां आठ सासु ससराने अने ते कुमारनां माता पिताने केवल झान नुत्पन्न थयुं ने अने देवतायें केवलझाननो महोत्सव कस्यो . तथा ते सर्व, केवलज्ञानें करी सर्व लोकालोकने हस्तामलकवत् जाणे ." ते आश्चर्य सांजली, में मारा मालनां गाडा वालाउने तथा मारा साथने कह्यु, के तमो चालता था, त्यां दुं एक आश्चर्य थयुं जे, ते जोक्ने आईं मुं. एम कही हूं पण ते गुणसागरकेवली पासें गयो ? अने त्यां जा केवलीने वांदीने योग्यस्थानपर बेगे. अने पली बेग वेगं वितर्क करवा लाग्यो के अहो ! लोको कहेतां हतां, के गुणसागरने केवलज्ञान नुत्पन्न थयुं , तो ते गुणसागर तो आ रह्या, परंतु तेने काय केवलज्ञान न त्पन्न थयुं होय, तेम नासतुं नथी ? अरे ! लोकोयें गप्प तो नहिं मारी होय?वली में विचार कस्यो के ना पण ते ज्या देशना देवा लागशे, त्यारे तेनी मालम पडशे, अने ते देशना पण ज्यारें दुं थोडी वार बेसी श, त्यारेंज संजलाशे ? वली विचायुं जे हुँ बेसुं तो खरो, पण मारा मालनां गाडां तथा साथ बधो दूर जाशे, तेनु केम थाशे ? अने जो दं मुंजाश्ने एमने एम चाल्यो जावं, तो वली आधुं कौतुक मने क्या जोवा ने मले ? माटे ढुं ते जाउं के रहुं ? एम ढुं अनेकरीतें ज्यां वितर्क करूं बूं,त्यां तो केवली बोल्या के हे सौम्यसुधन ! सानल. एम कहीने दूं मारा Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४ए गामथी वेचवामाटें मालनां गामां नरी थोडा सथवारा साथै बाहिं श्राव वा निकल्यो, त्यांथी मामीने पालो तेमनां दर्शन करवा गयो ते, तथा में जे जे वितर्क कस्या हता ते सर्व, सांग कही आप्यु. अने वली कह्यु के हे सुधन ! तुं वितर्क करे के जो ढुं जानं, तो एवं कौतुक क्या देखु ? तेथी तारं आहिं रहेवामां के जावामां मन मानतुं नथी. पण नाइ ! आहिं ते गुं कौतुक डे ? आनाथी पण अधिक कौतुक तो ज्यां तें जवा धायुं ने, त्यां अयो ध्यामां पृथ्वीचंइना दरबारने विषे थवानुं . माटें तुं जलदी त्यां जा. कारण के तेम करवायी तारो साथ पण ताराथी दूर नहिं थाय, अने वली तुने श्रा नाथी अधिक कौतुक पण जोवा मलशे ? आवां वाक्य केवलीनां सांजली ढुं तो घणोज हर्षित थयो. अने में जाएयुं जे अदो ! आ गुणसागर तो खरे खरा केवलज्ञानी . कारण के जे कांइ मारो मानसिक विचार हतो, ते सर्व तेणें कही आप्यो ! एम जागी तत्काल गुप चूप एमने एम ढुं याही आववा निकल्यो. त्यां तो सारा मालनां गामां पण मव्यां पड़ी ते सर्वने लश्ने आहिं आव्यो. हे राजन् ! माझं मन अत्यंत कौतुकाविष्ट होवाथी में आपना माणासोने मालनु दाण आप्युं नथी तेम मारो माल पण उतास्यो नथी. अने एमने एम ते केवलीयें कहेला कौतुकने जोवामाटे तुरत आहिं आपनी पासे आव्यो . था प्रकारचें ते सुधनना मुखथी गुणसागरनुं वृत्तांत सांजली, गुण रागवान् एवो ते पृथ्वीचंद कुमार, आलस्य रहित थ नावना नाववा लाग्यो, के अहो ! महामुनि, माहात्मा एवा ते गुणसागरकुमारने धन्य ने. केम के जेणें मोहानुबंधने जीतीने पोतानुं कार्य साध्युं ! अहो! निरीह एवा ते माहात्माउने, निरंतर मोहोटी एवी जोगनी सामग्री धर्ममां कां पण अंतराय करी शकती नथी. अरे ! हुँ आवी रीतें सर्व जाणुं मुं, तो पण आ मारां माता पिताना माहापणने वश थश्ने विकट एवा राज्ययंत्रना पाशमां शा माटे पड्यो बुं. अहो ! एवो दिवस ते मारे क्या रें यावशे ! के जे दिवसमां दुं उत्तम उलन एवा महोटा मुनियोनी गण नामां गणाश! वली टुं गुरुनक्त थई शान, दर्शन अने चारित्र, ते त्रणे रत्नोने धारण करनारो थाइश ! अरे! मारा वक्षःस्थलमां हमारूप लक्ष्मी क्यारे क्रीडा करशे! अने वली शून्यघरमां के, स्मशानमां के, शैलनी ६३ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भएन जनकथा रत्नकोप नाग सातभा. नपर के, नदीना कांगपर, शमतान्वित तथा स्वाध्यायध्यानवान् थाने कामस्सग्गध्यानें क्यारें रहीश ! यावी रीतें नावना नावतां जवस्थि तिने अने कर्मस्थितिने अजावें संवेगरंगमां कीलतो एवो ते पृथ्वीचंद कुमार, अपूर्वकरणना क्रमथकी मोदगृहमां जावानी निसरणीरूप रूप कश्रेणियें चज्यो. तेथी अनुक्रमें वीण जेने मोह थइ गयो बे एवो ते पृथ्वीचंद, गुक्तध्यानरूप अनलें करी घनघातिकर्म खपावी झानावरणीयनी पांच, दर्शनावरणीयनी चार, अने अंतरायकर्मनी पांच. एम सर्व मली चनद प्रकृतिने खपावीने केवलझानने पाम्यो. त्यारें तेने इंई आवी व्यलिंग एटले मुनिनो वेप अर्पण कयो. अने वली तेनो देवता सहित सौधर्मे देवें यावी केवलझाननो उत्सव कस्यो. पनी सुवर्णकमलनी रचना करी ते केवलीने ते सुवर्ण कमलपर बेसास्या. तदनंतर ते मुनींनी सौधर्मेश, नमन करेला पोताना मस्तकमां पहेरेला मुकुटथी तेमना चरणारविंदनो स्पर्श करीनक्तिनावथी स्तुति करवा लाग्यो ॥ श्लोक ॥ जय निदि निर्मोह, जय राज्याहिनिःस्टह ॥ जय नीरोष निर्दोष, जय त्वं सहिरोमणे ॥ १ ॥ पापपंकेन नो लिप्तो, मनागपि जवानहो॥ संसारसागरस्थोपि, जुवनेपि तद भुतम् ॥ २ ॥ अर्थः-हे निर्दोह ! तथा निर्मोह ! आपनो जय था. हे राज्यथकी पण निःस्टह ! आप जय पामो. अने हे रोपरहित अने निर्दो प! आप उत्कृष्टपणे वतॊ. तथा हे उत्तमजनशिरोमणे! आप जयवंता वों ॥ १ ॥ वली हे प्रनो ! आ जगतने विपे एक महोटुं याश्चर्य ने, के आप संसारसागरमा रहेला बो, ते बतां पण बिलकुल पापपंकें लि त थया नहिं ॥ २॥ा प्रकारे ते सुरेंइ, केवलीनी स्तुति करी हाथ जो डीने तेमनी पासें बेठो. ते वखत ते पृथ्वीचं केवलीनो पिता हरिसिंह राजा, पोतानी पद्मावतीराणी साथें थाव्या. त्यां तो जेने केवलझान उ त्पन्न थयुं , विश्वने आनंददायक, झानीयोनेविपे श्रेष्ठ, अने साधुवेषना धारक एवा पृथ्वीचं पुत्रने जो आनंद पामी तेमने नमस्कार करी ते दंपती कहेवा लाग्यो, के हे पुत्र! कुलक्रमागत समर्मवान, मुक्त नोगवाला, एवा थमारे तमारी पहेलां दीदा लेवी योग्य हती, तो ते दीदा पण लीधी नहिं. वली दीक्षा लीधी नहिं एटझुंज नहिं, पण युवावस्थामा संसारमा तीव्र वैराग्यवान् एवा तमोने मोहांध अने मूढ एवा अमोयें जर्जरीनूत एवा Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. एए या राज्यरूपपांजरामां नाख्या . तो हवे ते राज्यपंजरमां नाखवारूप अमारु जे उष्कत, ते मिथ्या हजो. एम ज्यां कहे , त्यां तो ते पृथ्वीचं उनी सोले स्त्रीयोने खबर पड़ी के पृथ्वीचंकुमारने केवल ज्ञान प्राप्त थy. तेथी विकसित ने नेत्रकमल जेनां एवी ते सोले स्त्रीयो, त्यां पोताना केवल शानी स्वामीने नमन करी त्यां बेठेलां पोतानी सासु पद्मावती राणीनी पळवाडे बेतीयो. त्यांबेां बेनां नगवाननी शांतमुश जोड्ने संवेगातिशयथी अनित्यनावना नावतां गुक्तध्याने पकश्रेणी आरोहि, चारे घातिकर्म खपावी ते सोल्ने स्त्रीयोने त्यां वेगंज केवलझान उत्पन्न थयुं. त्यारे तेउने पण सौधर्मे आवी इव्यलिंग एटले साधुनो वेश आपी ते इं३ तथा देव तायें तेमनी स्तुति अने नमन कयुं. हवे आयु महोटुं आश्चर्य जोश्ने सुधन सार्थवाह तो विचारवा लाग्यो, के अहो! जेवू मने गुण सागरकेव लीयें कह्यु हतुं, तेवूज आ आश्चर्य थयुं . एम ज्यां विचार करे , त्यां तो ते पृथ्वीचं केवलीयें धर्मदेशना देवा मांमी. ते जेमकेः हे नव्यजीवो ! हे नसत्त्वना धणी ! तमो कोकालें धर्ममां प्रमाद करशो नहिं. अने नष्टरितक्षेपिसंग एवा संयमने स्वीकारो. वली जु. जन्म मरणरूप जेमां जल , अने कषायरूप जेमां महोटा मत्स्यो . राग शेषरूप जेमा वेल वधे ये एवा संसारांबुधिने, सुसम्यत्त्वरूप जेमां स्थिति स्थान , पांच संवर होवाथी आश्रवरहित, निपुणज्ञानरूप ना विकें युक्त, एवा चारित्ररूप नाव विना तमो कोकालें तरी शकशो नहिं. अने ते चारित्ररूप नाव, मनुष्यजन्मरूप सामग्री विना प्राप्त थातुंज नथी. वली ते मनुष्यजन्म सामग्री पण, कोइएक वाणीयाना पुत्रोयें पोतानां अमूल्यरत्न वेची नारख्या अने ते जेम तेने पाबां मट्यां नहिं, तेम मलती नथी. अर्थात् जीवने मनुष्यसामग्री मलवी अत्यंत उर्लन ले. आवां वचन सांजली सदुको पूबवा लाग्यां के हे प्रनो! ते वाणीया ना पुत्रो कोण हता? तथा तेमणे ते रत्नो केवीरीतें वेची नाख्यां? ते कहो. त्यारे केवली कहे डे, के एक तामलिप्ती नामा नगरी, तेमां श्रीकीर्ति नामा राजा राज्य करे जे. ते राजायें पोताना गामना रहेनांरा सदुको ने कहेवराव्यु के मारा गामना रहेनारा माणासोयें जेटली कोटिव्य होय, तेटली ध्वजा पोताना घरपर चडाववी. अने थाम कहेवराववाथी Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. एम जाणवू नहिं जे राजाना मनमां कां कपट , तेथी तेणे कपटथी कहे वराव्यु ? माहारे तो ग्राम कदेवरावानुं कारण एज डे, के सौम्यदृष्ठि एवा मारा गाममां कोण अधिकऽव्यवान् ? बाम कहेवरावाथी ढुं जाएं के था माणस धनिक ले.अने पनी खुशी थइ तेनुं दुं मान करूं ? तथा तेनी कीर्ति, नाटलोको पासें सर्वत्र कहेवरावं. ते वचन सांजली सदु कोऽधनिकोयें स्वस्वश्व्यकोटीप्रमित ध्वजा चडावी. तेमां अतियत्नथी अनेकरत्नसंग्रह कारक अने रत्ननो व्यापार करनार काइएक धनदनामा शेठ रहेतो हतो, तेणें पोतानी पासें सहथी अधिक इव्य हतुं, तो पण एक पण ध्वजा चडावी नही. त्यारे मानरूप जेने धन अने यशनी बावाला एवा ते श्रेष्ठीना जे पुत्रो हता, तेमणे, जेमणे ध्वजा चडावी हती तेनी कीर्ति, मागधना मुखथकी सांजली. तेथी ते अत्यंत खेद पाम्या. अने पोताना पिताने कहेवा लाग्या के हे पिताजी ! आ गाममां बापणाथी उठा धनिको डे, ते स्वगृहपर ध्वजा चडावीने पोतानी कीर्ति, मागधलो कोना मुखथी जगतमा प्रवर्तावेजे, तो आपणा घरमां वधारे तो नहिं, परं तु एककोडि इव्य पण नथी गुं? के जेथी तमें एक पण ध्वजा चडावता नथी? ते सांजली तेनो पिता बोल्यो के हे पुत्रो! आपणे कांइ इव्यनी संख्या काढी नथी, अने तेम करतां कदाचित् जो तेनी गणती करीयें, तो ते मांग कोडी इव्य थाय, परंतु आपणे बीजाउनी पहें मृषा कीर्ति कराववी नथी. अने सुझजनने तो धर्मकार्य विना जे महोटा करवी, ते उचितज नथी. अने जगतमां पण कहेवत डे, के “ पोतानो गोल पोसेंज चोरी खावो.” तेम आपणे आपणा घरमां जे कां इव्य होय, ते मनमांज समजवु. एम ते पुत्रोने तेना पितायें घणाज समजाव्या, तो पण ते कदा ग्रहीपुत्रो तेवा विचारथी विराम पाम्या नहिं. तेम तेना पिताना वचनने नलंघन करवाने पण समर्थ थया नहिं. तेथी ते एमने एम मनमांज सम जी बेसी रह्या. अने विचारवा लाग्या के आ आपणो पिता जो कोइक ठेकाणे जाय, तो ठीक थाय ? एम ज्यां विचारे , त्यां तो दैवयोगथी परगाममा रहेता ते धनद श्रेष्ठीना सगाने त्यां लग्नप्रसंग आव्यो, तेथ। ते धनदने ते गाम जq पडद्यु. हवे तेना जवानी वाटज जोता तेना पु त्रोयें, अवकाश जोश्ने घरना नंमारमा जे कांश रत्नो हतां, ते सर्व काढयां Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ०१ अने ते रत्नोने जेम थावे तेम जलदी वेची नाख्या. अने सर्वरत्नोनुं व्य एकतुं करी तेनी गणतरी करीने जेटली कोडी इव्य थ, तेटली ध्वजाउ तेथे पोताना घर पर चडावी. तथा बीजा कोश्ये सुवर्णकुंन चडाव्यो न हतो, परंतु तेयें तो सुवर्णकुंज पण चडाव्यो. त्यारे मागधलोकोयें ते नी अत्यंत प्रशंसा करी. ते सांजलीने ते परस्पर कहेवा लाग्या, के अरे! अटला दिवस तो वृक्षपणाथी मूढ थयेला आपणा पितायें आपणने वृथा श्रावी उत्तमकीर्ति मेलवता अटकाव्या ? हवे ते पुत्रोपासेंथी रत्नना ले नारा वेपारी परदेशी होवाथी वेचातां लीधेला रत्नोने लश्ने पोतपोताने देश गया. पनी तुरत ते धनद श्रेष्ठी परगामथी आव्यो, अने आवीने ज्यां जुवे , त्यां तो पोताना घरपर सुवर्णकलश युक्त घणीक ध्वजा फट कती दीती. त्यारें पोताना पुत्रोने पूजवा लाग्यो, के हे पुत्रो ! आ आपणा घरपर ध्वजा कोणे ? तथा केम? तथा केवा हिसावें चडावी ? ते सांजली मतिगर्वित एवा ते पुत्रो बोल्या के हे पिताजी! आप गया पढी आपणा नंमारमा जे रत्नो नयां हतां, ते सर्वे काढीने अमें वेची नारख्यां, अने तेर्नु इव्यगणी तेने हिसावें ध्वजा चडावी ? कह्यु डे के ॥गाथा॥ किं तीए सिरीए, पीवराए बनाए गेहनिहीयाए ॥ विप्फुरद जए न जन, मियंक किर णुऊला कित्ती ॥ १ ॥ अर्थः- जे लक्ष्मीवान जननी लक्ष्मीथी चश्मास मान जो नज्ज्वल एवी कीर्ति प्रसार न थइ. अने ते लक्ष्मी घरनां नोयरा मां प्रजन्नरीतेंज माटेली रही तो ते लक्ष्मीथी पण गुं ? ॥१॥ ते सांजली ध नदश्रेष्ठी अत्यंत कोपायमान थइ ते ने कहेवा लाग्यो के हे कुलांगारो! हे कपूतो! हे कुजन्मवाला ! हे कुकर्मीयो! हे कुलक्षणवाला ! आ त में जे रत्नो वेचीने लक्ष्मी लीधी, ते सर्वलक्ष्मी, मारा एकरत्नना मूल्यनी पण नथी. अर्थात् मारां अति मूल्यवान रत्नोने मूर्ख एवा तमोयें पाणी ना पाडमां फेंकी दीधां ? तेथी. तमें सर्वे मारा घरमांथी जलदी बाहार निकलो. अने खबडदार ,जो मारां वेची नाखेला रत्नो पाबां लावी बाप्या विना घरमां आव्या बो तो? एम ज्यारे ते घणुंज खीज्यो, त्यारे ते सर्वपुत्रो, जेठने वेचातां रत्नो आप्यां हतां, ते लोकोने शीधवा माटे निसख्या. तेणें तेउने आखी पृथ्वीमां शोध्या, परंतु जेमनुं कांश नाम, ठास जाणताज न हता, तेथी तेउने मल्या नहिं. तो पढी रत्नो तो क्याथीज Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 500 जैनकथा रत्नकोषनाग सातमो. मलें ? ज्यारे तेने ते रत्नना ग्राहको न मल्या,त्यारेंते पाबा रखडीने पोताने घेर अाव्या. हवे केवली ते दृष्टांतनो उपनय कहे . के हेनव्यजनो! ते श्रेष्ठिपुत्रोने पूर्वोक्त रत्नना लेनारा पासेंथी ते रत्नो, कदाचित् दैवयोगें उपलब्ध थाय, परंतु आ जीवने जो या मनुष्यनवरूप शुनसामग्री, मुक्ति पद पामवानी जोगवाइ, अने जिनधर्म, प्रमुख जो प्राप्त थयां होय अने ते जो हारी जाय. तो ते सर्व तेने कोई कालें मले नहिं. कह्यु के ॥माणु स्स खित्त जाई, कुलरूवारोग्गमाग्यं बुद्धी॥ सवाणुग्गह समा, संजमो य लोगम्मि मुनहाई॥ 1 // अर्थः-मनुष्यदेत्रमा नत्पन्न थाg, सुकुस्त, सुरूप, थारोग्य,आयुष्य,बुद्धि, सर्वनो अनुग्रह, धर्मश्रक्षा अने संयम. एटलां वानां जीवने आ लोकमां मलवां उर्तन .ते माटे तमोने प्राप्त थइ एली मनुष्य जन्मादिक सामग्री, तेने तमोकषाय तथा विषयनोगना नोगथी हारी जा मां.अने हे नव्यो! निर्वाणस्थानप्रत्ये प्रयाण करवामां सारा वाहन समान एवा संयमने स्वीकारो.आवां ते केवलीनां अमृतसमान वचन सांजलीने त्यां बेला केटलाएक नव्यजनो, साधुना अने श्रावकना धर्मने प्राप्त यया. हवे त्यां वेवेलांटथ्वीचं केवलीनी माता पद्मावती राणी, ते केवलीने पूबवा लाग्यां के हे नगवन् ! अर्हधर्मने जाणता एवा अमो बेदु स्त्रीपुरुषने तमारी पर अत्यंतदृढस्नेह रहे , तेनुं हुं कारण हशे? ते सांजली केवली कहे . के हे मातः! या नवथी आगलना नवमां तमें प्रियमती नामा राणी हतां, अने प्रा मारा पिता, तमारा स्वामी जयराजा नामा राजा हता. त्यारें दुं तमारो बेदुनो पुत्र हतो. ज्यारें तमो वेदु संयमाराधन करी ते संयमना प्रनावथी अनुत्तर विमानने विषे देव थयां. त्यारें दुं पण सर्वार्थसिम विमाननेविषे देव थयो हतो. अने तेमज वली या नवने विषेपण आपणो थापणा पूर्वनवनी पढ़ें योग थयो . तेथी ते पूर्वनवना योगथी मारी पर तमने घणोज स्नेह थयो . ते सांजली ते राजाने अने पद्मावती राणीने जातिस्मरणशान उत्पन्न थयु. अने तुरत पड़ी पाईं केवलज्ञान उत्पन्न थयुं. त्यारें सुधर्मेदेवें तेउना केवलज्ञाननो महोत्सव कयो. ते वखत समग्र अ योध्या नगरीमां जगतने आश्चर्यकारक महोटोआनंद वो. हवे ते सुधन सार्थवाह ते केवली नगवानने नमस्कार करी पूबवा लाग्यो, के हे नगव न ! तमो तथा गुणसागरकुमार समानगुणवान केम बो? त्यारे शंखराजा Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 503 पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. बने कलावतीराणीना नवथी आरंजीने पोताने तथा गुणसागर कुमारने हाल केवलझान उत्पन्न थयुं, त्यां पर्यंतनुं सर्व वृत्तांत सर्वसमद कहि थाप्यु. अने वली पण कह्यु के, हे सुधन ! अमें बेदुजणे नवोनव पुण्यानुबंधी पुण्य ने पुष्ट कह्यु ,तेथी ज्यां अमो अवतस्या, त्यां सुखसंपत्तिने अने वीतरागध मैंने पाम्या. अने वली आ नवमां पण विषयपाशमां फसाया नथी.अमोयें पूर्वला नवोमां सरखी पुण्याई उपार्जी, तेथी सरखे योगें शुक्लध्याने अमोने केवलज्ञान प्राप्त थयु, अने हेसुधन ! थोडाजवखतमां प्राप्त थवानुं सिदि सुख जेने तथा तत्त्वार्थने जागनारा, एवा जीवोनुं मन,कोपणका विषय वासनामां विचरतुंज नथी. वलीया स्त्रीयो जे जे, ते पूर्वनवमां संयमाराधन करी अनुजरविमानने विपे देवता थश्यो हती. ते पाबीया नवनेविषे मारी स्त्रीयो थयो जे. दीण थयां कल्मष जेनां एवी या उत्तम स्त्रीयो, केवल झानने प्राप्त थ-डे. माटे सूक्ष्मदृष्टिथी जो जोयें, तो जे माणासमां सरखा गुणो होय , तेनेज परस्परप्रेम नत्पन्न थाय . जुन. राजहंसनी स्त्रीयो कोइकालें काकसाथें रमे? आ प्रकारनी ते केवलीना मुखनीदेशना सांजलीने ते सुधनश्रेष्ठी सारी रीतें धर्मबोध पाम्यो, तेथी तेणें सम्यक्त्वमूल श्रावकनां बारे व्रत अंगीकार कस्यां.अने त्यां केवलिनगवाननी देशना सांजलवावेला बीजालोको जे हता, तेन्ये पण आगार प्रणागाररूप धर्मने थाराध्यो. हवे ते हरिसिंहराजानो एक नानो पुत्र हरिषेणनामा हतो, तेने इंडें आवी ते हरिसिंहराजाना राज्यासन पर बेसास्यो. त्यांथी पड़ी जेने केवल झान उत्पन्न थयु एवा ते पृथ्वीचंअने गुणसागर तथा जे कोबीजा केवल झानी हता ते सर्व, विहार करवा लाग्यां // श्लोक ॥दितितलवियदंके नव्य पंकेरुदाणा, मथरचितविकाशौ उस्तमस्तोमनाशौ // सऽपरुतिविलासौ र्य हयस्तनासौ, चिरमिव रविचं निर्गतौ au मुनींझे // 1 // तौ स्नेहमुक्तो सुगुणो जगहे, समस्तवस्तुप्रतिनासको सदा // निर्दोषनासा सुदृशां सु खप्रदौ, गतौ च निर्वाणमपूर्वदीपवत् // 2 // दांत्यादिमुक्ताफलरभुतं यः, शीलांगरत्नैः सुतपोमणीदम् ॥गृह्णाति चारित्रनिधिं हि पृथ्वी, चंदर्षिवनाति स मुक्तिलक्ष्मीः // 3 // अर्थः-पृथ्वीतलरूपयाकाशस्थानमां नव्यरूपकम लोने विकसित करता, उस्तम एटले मिथ्यात्वरूप जे अंधकार, तेने नाश करता, उत्तम एवा उपकार करवारूप ले विलास जेमनो, मुराग्रहिजीवोनुं Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ग्रहण कयुं ने जेणे, अर्थात् मिथ्यात्वीनो पराजय करता एवा ते पृथ्वीचं अने गुणसागर केवलिरूप रवि अने चं, ते घणोक काल विहार करता हवा // 1 // स्नेहरहित, उत्तमगुणवान्, जगपघरनेविपे समस्तवस्तुने प्रदीपनीप प्रतिनास करता, सदा निर्दोषी, सम्यग्दृष्टिजीवोने सुखदायक एवा ते वेदु केवली, आयुःक्ष्य उपजावी, सुस्थानकें शैलेशीकरणे शुक्लध्याने सर्व कर्मने खपावी, अपूर्वदीपकनी पर्नु, निर्वाणपदने एटले अजरामर, निरालंब, अवि नाशि, परमानंदमहोदय एवा सुखने पामता हवा // // माटे कवि कहे बे,के हे नव्यो! दांत्यादिरूप ले मुक्ताफलो जेमां अने शीलांगरूप ले रत्नो जेमां, तथा उत्तमतपरूप जे मणियो, तेणे करी व्याप्त, एवा चारित्ररूपनि धिने जे जीव ग्रहण करे .ते जीव, पृथ्वीचं अने गुणसागर पिनी पढ़ें मुक्तिरूपलदमीने पामे // 3 // इति श्रीष्टथ्वीचं गुणसागररुषि केवलज्ञान प्राप्तिमोगमनवर्णननामैकादशः सर्गः // 11 // बाहिं शंखराजा अने कलावतीराणीना नवथी मामीने पृथ्वीचं अने गुणसागरना एकवीशे नव संपूर्ण थया. तेमां आ एकवीशमे नवें ते वेदु जीव, मोदें गया // 1 // ॥अथ प्रशस्ति श्लोकाः। श्रीमहारजिनेश्वरस्य सुगतादीशस्य तीर्थ वरे, गडे श्रीकटुकानिधे प्रथमतोविछत्कलाखमलः // साहेन्यःकटुकादिमः शुनमतिर्थ मैकतानोऽनवत्, तत्पट्टे बदुशास्त्र निश्चितमतिः श्रीखीमसाहाह्वयः॥१॥ वीर शाह इति तत्पदेऽनवत्, जीवराजति वा चतुर्थके। तेजपालति पंचमे पदे, रत्नपाल अनवञ्चषष्ठके // // तत्पधारी जिनदासनामा, तेजा दिपालोष्टमके बनूव // कल्याणनामा नवमे पदे च,दिक्संख्यके नुनदुजीति नामा // 3 // तद नुगे च पदे सुकुलोनवे,कविकुलाग्रगतोनणनामकः॥ तदनुलब्धकनामकसा हजी, शुचिनयादियुतोहि विराजते // 4 // प्रशस्तबोधशालिनः परोपकारका रिणो, गुरोः पदांबुजं मया प्रणम्य जक्तिपूर्वकम् // सुशिष्ययाचनेन मे ज गठनोपकारतो, विशिष्टसच्चरित्रके कृतः सुबालबोधकः // 5 // अष्टशततमे वर्ष, प्रमिते सप्तमोत्तरे // मार्गशीर्ष सिते पदे, पंचम्यां नानुवासरे // 6 // रचितोयं मया ग्रंथो, विदेपरहितःक्षितौ // शोधनीयः सतां धू, यउत्सूत्रं नवेदिह // 7 // प्रमादाहीतरागाझा, विरुवं यन्मयोदितम् // परोपकारने पुण्य, वर्तिनः शोध्यतां बुधाः // ए // राधकेति पूर्वइंगे, चातुर्मासस्थितेन च॥ कटुगलेशलब्धेन, कतोयं बालबोधकः॥॥ संपूर्णोयं ग्रंथः॥ गुनमस्तु / Page #517 -------------------------------------------------------------------------- _