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पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र.
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जे मने व्यंतरें तेना हायमां तरवार देवानी ना कही बे. माटे ते यापवी नही ? एम विचारी योगी ने कहेवा लाग्यो के हे योगीनाथ ! सुनट जनने पोतानो हथीयार तो कोईने व्यापवोज नहिं. कारण के तेने अचानक कांक जो यात यावे, तो ते दथीयारथीज मटे बे ? माटे या तरवार हुं आपने पीश नही. ते सांजली योगीं बोल्यो के हे राजन्! जानुं बोलवु मूकी देने ते तरवार मुने याप. कारण के तुं तो ते तरवारनोज स्वामी बो, पण हुं तो तारो पण स्वामी बौं खने हुं ज्यारें तारं रक्षण करवा बेठो बुं, त्यारे तारे कोनी बीक बे ? ते कहे. अने मारे तो मंत्र साधवाने माटे लो दाना हथीयारनी अपेक्षाज बे, अने तारे कांइ तेनी जरूर नथी. ए वचन सांनी राजा कहे बे के हे तपस्वी महाराज ! हुं या तरवार लइ ज्यारें याहिं जो रहेजो बुं, त्यारें तो देव पण मारी पर ने तमारी पर कोप करवाने समर्थ नथी. तो बीचारा कुड् व्यंतरो तो गुंज करवाना बे ? माटे व्याप खुशीथी मंत्रसाधना साधो ग्राम कहेवाथी ते योगीनो स्वार्थ सिद्ध न
यो तेी तेणें तेने घणी रीतें समजाव्यो, पण ते व्यंतरनुं वाक्य याद राखी राजायें ते योगीनुं एक पण वाक्य मान्युं नहिं ने बेवट पोतानी तरवार नज पी. त्यारें तो जेम डुग्ध पान करावी उबेरेलो सर्प पोताना स्वामीने करडवा तैयार थाय, तेम अत्यंत क्रोधांध ययेजो ते इष्ट योगींद कहेवा लाग्यो के हे क्रूरराजा ! यावी रीतनी महोटी महेनत मारी पामें करावी ने जराक जेटलुं या तरवार देवारूप मारुं वचन बे ते पण मानतो नयी ? एवी रीतें बकतो को पोतानी पासें एक खड्ग हतुं, ते जश्ने योगी, राजानी सामो दो ज्यो. पीतेने पोतानी सामो यावतो जोइने राजा कहे बे, के हे योगींद ! तुं मने मारवा यायो, ते जाएयुं, पण तुने हुं प्रार्थना करी कहुं बुं के तुं मारी दृष्टी जा. कारण के कपायवस्त्र पहेरी योगीना वेपने धारण करनार एवा तारी पर माराथी घा याय तेम नयी ? अर्थात् तुं जिंगधारी योगी बो, माटें हुं लाचार बुं. कदाचित् जो अन्य वेषधारी हत तो तो हुं सर्वे तारुं जोर बताची पत ? माटे तारा जीवित सामुं जोड़ने जे रस्ते मारी सामो श्राव्यो, तेज रस्ते पाठो तारे ठेकाणे जर वेस ने हे धूर्त ! श्रावो योगीनो वेश धारण कर हुं जेवा धर्मीजनने ठगीने तुं केटलाक काल जीववानो बो? हुं तो तुने हालज यमराजाना घरनो अतिथि करवाने सावधान बुं, पण धर्म