SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. वेष धारण करनार थइ बेगे बो, माटे निरुपाय बौं. हे पापी ! मारा शरी रथीज ते वेतालने प्रसन्न करी तुं वेताल मंत्र सिदिनी ना करे ! तेथी एम समजाय बे के तुंआ लोकना अने परलोकना पुण्य पापनी शैलीने पण जोतोज नयी थावां राजानां वाक्य सांजली योगी विचार करवा लाग्यो के बरे! था मारी हत वात राजायें केवी रीतें जाणी? वली पण विचा रवा लाग्यो के जे कार्य माटे में लिंगीनो वेषधारण कस्यो, ते कार्य तो माझं जरा पण पार पडयुं नहिं! एम विचारी ते लजायुक्त थयो थको पश्चात्ताप पामी पोताना हाथथी खड्ग दूर फेंकी दश्ने हाथ जोडी नरसिंह राजाने कहेवा लाग्यो के हे शूरवीर ! श्रा प्रकारनां तारां वचनथी मारा हृदयमां जे अज्ञान हतुं ते सर्वनाश थ गयु. अने शानदार उघडी मने सत्याऽसत्य पदार्थ सर्व देखवामां श्राव्या, अने एटला दिवस हूं खराब जनोनी संग तिथी नटक्यो, हाल हवे तमारी कृपाथी मने विवेकमार्ग उपलब्ध थयो ? ते माटे गुरुपामें जई तमने उगवानां पापनुं प्रायश्चित्त ग्रहण करी परनव साधवाने माटे यत्न करीश ? अने हे राजन ! में तमारो महोटो अप राध कस्यो,ते क्षमा करजो अने एक हुँ तमने कहुँ , ते सांनतो. के गुरु परंपरायें श्रावेलो व्रणरोहण नामनो था एक मारी पासें मणि डे, ते ने उष्टकर्मथी निवृत्त करवाना उपदेशदायक एवा तमने ढुं आपुं बु. ए सांजली राजा कहे , के हे योगी ! तमारा सरखा विवेकी जनने तो जेम तमे कहो बो, तेमज करवू घटे ने अने माराथी जे कां आपने उर्वाक्य कहेवाण होय, ते माफ करवां. एम कही तेणें मणिनी पूजा वगेरेनो विधि पूजीलीधो अने ते मणि पण लीधो. पनी प्रातःकालने विषे परस्पर घणुंज दमापन करी परमार्थ साधवामां जेना चित्त बंधाइ गयां डे,एवा बेदु जण पोत पोताने स्थानकें गया. पली राजायें घेर यावी ते बनेली वात मंत्रीवगेरेने कही, ते सांजली सदु कोइ खुशी थया. अने नगरी ने विषे महोटो उत्सव थयो. नगरस्थ सर्व लोक अत्यंत उत्साहित थयां. हवे अग्यारमा अरण देवलोकमां पूर्णचं राजा जे देवता थयो हतो, ते त्यांथी च्यवीने या नरसिंह राजानी स्त्री गुणमाला नामा जे राणी हती, तेना नदरसरोवरने विषे वेतालने मल्या पसीना सातमा दिवसनी रात्रं यावी पुत्रपणायें अवतस्यो,त्यारे ते गुणमाला राणीयें स्वप्नने विषे निर्मल एवो सूर्य
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy