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________________ - जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. ग्रहण कयुं ने जेणे, अर्थात् मिथ्यात्वीनो पराजय करता एवा ते पृथ्वीचं अने गुणसागर केवलिरूप रवि अने चं, ते घणोक काल विहार करता हवा // 1 // स्नेहरहित, उत्तमगुणवान्, जगपघरनेविपे समस्तवस्तुने प्रदीपनीप प्रतिनास करता, सदा निर्दोषी, सम्यग्दृष्टिजीवोने सुखदायक एवा ते वेदु केवली, आयुःक्ष्य उपजावी, सुस्थानकें शैलेशीकरणे शुक्लध्याने सर्व कर्मने खपावी, अपूर्वदीपकनी पर्नु, निर्वाणपदने एटले अजरामर, निरालंब, अवि नाशि, परमानंदमहोदय एवा सुखने पामता हवा // // माटे कवि कहे बे,के हे नव्यो! दांत्यादिरूप ले मुक्ताफलो जेमां अने शीलांगरूप ले रत्नो जेमां, तथा उत्तमतपरूप जे मणियो, तेणे करी व्याप्त, एवा चारित्ररूपनि धिने जे जीव ग्रहण करे .ते जीव, पृथ्वीचं अने गुणसागर पिनी पढ़ें मुक्तिरूपलदमीने पामे // 3 // इति श्रीष्टथ्वीचं गुणसागररुषि केवलज्ञान प्राप्तिमोगमनवर्णननामैकादशः सर्गः // 11 // बाहिं शंखराजा अने कलावतीराणीना नवथी मामीने पृथ्वीचं अने गुणसागरना एकवीशे नव संपूर्ण थया. तेमां आ एकवीशमे नवें ते वेदु जीव, मोदें गया // 1 // ॥अथ प्रशस्ति श्लोकाः। श्रीमहारजिनेश्वरस्य सुगतादीशस्य तीर्थ वरे, गडे श्रीकटुकानिधे प्रथमतोविछत्कलाखमलः // साहेन्यःकटुकादिमः शुनमतिर्थ मैकतानोऽनवत्, तत्पट्टे बदुशास्त्र निश्चितमतिः श्रीखीमसाहाह्वयः॥१॥ वीर शाह इति तत्पदेऽनवत्, जीवराजति वा चतुर्थके। तेजपालति पंचमे पदे, रत्नपाल अनवञ्चषष्ठके // // तत्पधारी जिनदासनामा, तेजा दिपालोष्टमके बनूव // कल्याणनामा नवमे पदे च,दिक्संख्यके नुनदुजीति नामा // 3 // तद नुगे च पदे सुकुलोनवे,कविकुलाग्रगतोनणनामकः॥ तदनुलब्धकनामकसा हजी, शुचिनयादियुतोहि विराजते // 4 // प्रशस्तबोधशालिनः परोपकारका रिणो, गुरोः पदांबुजं मया प्रणम्य जक्तिपूर्वकम् // सुशिष्ययाचनेन मे ज गठनोपकारतो, विशिष्टसच्चरित्रके कृतः सुबालबोधकः // 5 // अष्टशततमे वर्ष, प्रमिते सप्तमोत्तरे // मार्गशीर्ष सिते पदे, पंचम्यां नानुवासरे // 6 // रचितोयं मया ग्रंथो, विदेपरहितःक्षितौ // शोधनीयः सतां धू, यउत्सूत्रं नवेदिह // 7 // प्रमादाहीतरागाझा, विरुवं यन्मयोदितम् // परोपकारने पुण्य, वर्तिनः शोध्यतां बुधाः // ए // राधकेति पूर्वइंगे, चातुर्मासस्थितेन च॥ कटुगलेशलब्धेन, कतोयं बालबोधकः॥॥ संपूर्णोयं ग्रंथः॥ गुनमस्तु /
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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