________________ 503 पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. बने कलावतीराणीना नवथी आरंजीने पोताने तथा गुणसागर कुमारने हाल केवलझान उत्पन्न थयुं, त्यां पर्यंतनुं सर्व वृत्तांत सर्वसमद कहि थाप्यु. अने वली पण कह्यु के, हे सुधन ! अमें बेदुजणे नवोनव पुण्यानुबंधी पुण्य ने पुष्ट कह्यु ,तेथी ज्यां अमो अवतस्या, त्यां सुखसंपत्तिने अने वीतरागध मैंने पाम्या. अने वली आ नवमां पण विषयपाशमां फसाया नथी.अमोयें पूर्वला नवोमां सरखी पुण्याई उपार्जी, तेथी सरखे योगें शुक्लध्याने अमोने केवलज्ञान प्राप्त थयु, अने हेसुधन ! थोडाजवखतमां प्राप्त थवानुं सिदि सुख जेने तथा तत्त्वार्थने जागनारा, एवा जीवोनुं मन,कोपणका विषय वासनामां विचरतुंज नथी. वलीया स्त्रीयो जे जे, ते पूर्वनवमां संयमाराधन करी अनुजरविमानने विपे देवता थश्यो हती. ते पाबीया नवनेविषे मारी स्त्रीयो थयो जे. दीण थयां कल्मष जेनां एवी या उत्तम स्त्रीयो, केवल झानने प्राप्त थ-डे. माटे सूक्ष्मदृष्टिथी जो जोयें, तो जे माणासमां सरखा गुणो होय , तेनेज परस्परप्रेम नत्पन्न थाय . जुन. राजहंसनी स्त्रीयो कोइकालें काकसाथें रमे? आ प्रकारनी ते केवलीना मुखनीदेशना सांजलीने ते सुधनश्रेष्ठी सारी रीतें धर्मबोध पाम्यो, तेथी तेणें सम्यक्त्वमूल श्रावकनां बारे व्रत अंगीकार कस्यां.अने त्यां केवलिनगवाननी देशना सांजलवावेला बीजालोको जे हता, तेन्ये पण आगार प्रणागाररूप धर्मने थाराध्यो. हवे ते हरिसिंहराजानो एक नानो पुत्र हरिषेणनामा हतो, तेने इंडें आवी ते हरिसिंहराजाना राज्यासन पर बेसास्यो. त्यांथी पड़ी जेने केवल झान उत्पन्न थयु एवा ते पृथ्वीचंअने गुणसागर तथा जे कोबीजा केवल झानी हता ते सर्व, विहार करवा लाग्यां // श्लोक ॥दितितलवियदंके नव्य पंकेरुदाणा, मथरचितविकाशौ उस्तमस्तोमनाशौ // सऽपरुतिविलासौ र्य हयस्तनासौ, चिरमिव रविचं निर्गतौ au मुनींझे // 1 // तौ स्नेहमुक्तो सुगुणो जगहे, समस्तवस्तुप्रतिनासको सदा // निर्दोषनासा सुदृशां सु खप्रदौ, गतौ च निर्वाणमपूर्वदीपवत् // 2 // दांत्यादिमुक्ताफलरभुतं यः, शीलांगरत्नैः सुतपोमणीदम् ॥गृह्णाति चारित्रनिधिं हि पृथ्वी, चंदर्षिवनाति स मुक्तिलक्ष्मीः // 3 // अर्थः-पृथ्वीतलरूपयाकाशस्थानमां नव्यरूपकम लोने विकसित करता, उस्तम एटले मिथ्यात्वरूप जे अंधकार, तेने नाश करता, उत्तम एवा उपकार करवारूप ले विलास जेमनो, मुराग्रहिजीवोनुं