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जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो.
प्रतिज्ञा करीयें. ए सांजली धन्ये विचार कस्यो के मारो पक्ष तो सत्यज बे, माटे ते या तो पण मारे फिकर नथी ने धरण जरूर तेनी चक्कु खोशे ? एम जाली धन्यें कयुं के ठीक बे, तमो कहो बो, तेम जेनो पक्ष खोटो ठरे, तेनी एक आंख फोडी नाखवी, ते मारे कबूल बे. तदनंतर चालतां चा तां एक गामायुं तो ते गाममां बेदु जल गया. जश्ने त्यांनां मनुष्योने पूब्धुं के नाइयो ! धर्मयी जय थाय छे, के पापथी ? त्यारें ते गामना रहे नारी सर्वे जन ग्राम्य ने पशुसमान हतां, तेथी कहेवा लाग्यां जे जय तो पापथकीज थाय, धर्मथी ते कोइ दिवस जय होय ? एवां वचन सांगली धरण अत्यंत मनमां खुशी थइ कहेवा लाग्यो के नाइ ! जे हुं कहुं बुं, तेज खरुं ययुं के केम ? माटे तमो एक चक्कु हारी गया, हवे वली पण मारी प्रतिज्ञा बे, के चालतां चालतां खागल यावता गाममां जइने तमारुं क हेलुं त्यांना पण लोको जो खोढुं कहे, तो तमारी बीजी यांख फोडवी, नहिं तो मारी एक आंख फोडी नाखवी. ते वात पण पाठी धर्माग्रही न जाववाला धन्यें कबूल करी, केम के तेणें जाएयुं जे सर्वे जन कांइ एवा मूर्ख हशे ? पढी पाढा बीजे दिवसें त्यांथी बेदु जण चाव्या, ते चालतां चालतां एक गाम प्रायुं, त्यां गया. त्यां जश्ने ते ग्रामनिवासी मनु योने पूब्धुं जे धर्मथी जय थाय बे, के पापथी ? त्यारे त्यानां पण निर्वि वेकी ग्रामीण तथा पशु समान लोको कहेवा लाग्यां जे एमां ते गुं पूढो बो, पापथीज जय थाय बे, एम प्रत्यक्ष देखायज बे ? जुन धर्मी लोको डुःखी थाय बे, ने पापी लोको मोज माणे बे. वली विधान दुःखी थाय बे, खने मूर्ख, मनमानी मोज माणे बे. सऊन पुरुष सीदाय के बने दुर्जनो अनेक प्रकारनी लीला लहेर करे बे. दाता ते निर्धन देखाय के अने कृपण धन वान् होय ले ? ते सांजली सत्यवक्ता एवो धन्य कहेवा लाग्यो के हे जाइ धरण! हुं तो चनुं तारी पासें पण करीने बेदु चक्कु हारी गयो, माटे हवे या वे मारां नेत्र तो तारे खाधीनज थयेलां बे, वास्ते जेम तुने रुचे, तेम कर. पढी पापी एवा धरणें थोर तथा खाकडानुं दूध नेत्रोमां नाखी तेनां बे नेत्रोने अंध करी दीघां, तेथी ते बीचारो नेत्रहीन थयो. तेने जोइने धरण कप cut महोटो विलाप करवा लाग्यो जे खरे! या केतुं मारुं मूढपणुं ! ने केवी मा विवेकता ! खरे केवी मारी खोटी अनर्थकारी उत्सुकता ! हो !