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________________ २४६ जैनकथा रत्नकोप जाग सातमो. व टलटतो, हियं विन्नाण नाल निलएल | देवु व बंद शिको, कर्ज लि गुरु सुतहारेण ॥ १ ॥ अर्थः- पापापनी पेठें रखडता एवा मने अधिक एवा ज्ञान ने विज्ञानना स्थानमय गुरुरूप सूत्रधारें देवनी पढें पू जनीय कस्यो, एटने जेम पाषाण होय, ते प्रथम रखडतो होय, ने पढी तेने सलाट घडे त्यारें प्रतिमा याय, अने पती ते पूजन करवा लायक थाय, तेम हुं पण प्रथम मूर्खज हतो, त्यारें पापाल समान हतो, पढी गुरुरु पसलाटें धर्मोपदेश देइ घड्यो, त्यारे हूं प्रतिमा समान पूजनीय थयो. हे पूर्णचंदकुमार ! या प्रमाणें मुने विशेष वैराग्य थवानुं कारण में सविस्तर कयुं श्रावी रीतें सूरिनुं सर्वचरित्र श्रवण करी बोध पामेलो ते पूर्णचंद कुमारनो पिता सिंहसेन राजा, ते मुनिपतिने कहे बे. के हे भगवन् ! तमें धन्य हो, पुण्यवान् हो, त्यागी जनोमां पण अग्रगण्य बो, कारण के जे तमोयें ग्रगण्यलक्ष्मीने तथा सुंदर श्यामाउने तथा ष्ट थ्वीना राज्यने पण तुनी, पढें त्याग करचोबे ? हे माहाराज ! महारी जेवा क्लब एटने निःसत्त्व संसारासक्त, असार संसारथी जरा पण विराम पाम ता नथी. ने हे महाराज ! या देहथी शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, एवा पांच प्रकारना जोग जोगव्याज करे बे. केनी पेठें ? के जेम कोइ जीव, धन वानने घेर अवतार लइने घणो वखत दारिनेज जोगवे ? माटे हे मुनिप ते ? हुं श्रापनी सन्मुख निरवद्य एव तत्त्वविद्याने सद्य पामीने निर्बंध्य श्र हर्षदायक एव संयमश्रीने स्वीकारीश ? एम कही नगरमां जइ पोताना पुत्र पूर्णचंद कुमारने महामहोत्सवें करी सर्व सामंत, प्रधान, सेनापतिनी समद, राजगादी पर बेसाखो पढी पूर्णचंद कमारें दीक्षामहोत्सव जेनो कस्यो बे एवो ते सिंहसेन राजा, सूरिनी पासें जर दीक्षा ग्रहण करतो हवो हवे ते राजा शिक्षा ग्रहण करी शांत, दांत, महाव्रतने विषे यासक्त पठ अष्टादिक तपने तपतो थको महामुनि थयो. पूर्णचंद्राजा पण शु.६ धर्मना धुरने धारण करतो तथा पर्वतनी पेठें स्थिरताने ग्रहण करतो को सर्व राजसंपत्तिने योग्यरीतें जोगववा लाग्यो, अर्थात् राजसंपत्ति प्राप्त थवाथी अधर्माचरण तथा मद तेथी रहित वर्त्तवा लाग्यो. न्यायमार्गे प्रवर्त्ततो, कर्पूरना पूर समान गुत्र यशने प्रसारतो एवो ते राज्यश्रीने जोगववा प्रवर्त्त थयो ने अणुव्रतनी स्थितिने दृढ करवा लाग्यो. वल । ते कुमार,
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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