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________________ १८६ जनकथा रत्नकाप नाग सातमा. विपं. हड़ियादिकने विषे पण उत्पन्न थाय छे. पाठा वली तेज जीवो राजा. रंक, बुध, मुख्य, निर्धन, सघन, धर्मिष्ठ, अधर्मिष्ट, सुभाग्य, दोनांग्य, जोगी, कृपण, सुखी, दुःखी, पुण्यवान्, अपुण्यवान्, सुरूप, कुरूप, खल, सकन, सुस्वर, डःस्वर, कीर्त्तिमान, अपकीर्त्तिमान, ब्राह्मण, चांगाल, मूक, अंध, बधीर, पंगूल, तुंग, कुष्टी, वगेरेमां पोताना सारा नरसा कर्मने नुसारें उत्पन्न याय ने एम जीवो विविध प्रकारें संसारमां पर्यटन करे ले. तेमां पण केटला एक डर्बोधथी दिड्यूट एवा थका कुमतरूप हुर्दशामा फस्या करे बे. केटला एक जीवोने तो धूलोको कुयोनिरूप कुं मां पाडी दीये बे. परंतु नववनने विषे मोक्षमार्गना उपदेशको ज्ञानी गुरु तो पुण्यना योगथीज मजे ले, तेमाटे ते सरुना जानने माटे सर्व सुनव्य प्राणीयोयें यत्न करयाज करवो. या प्रकारनी श्री तीर्थकरनी देशना सांगली ते रत्नशिख राजायें कयुं के महाराज! में ते गुं पूर्वजन्ममां सुकृत क हशे ? के जे कांइ सुख बे, ते प्रयास करया विना यधा पोतानी मेलेंज प्राप्त थाय बे ? त्यारें तीर्थकरें कहां के हे कजन ! पूर्व जवने विषे तें पंच परमेष्ठीना नमस्कारनुं स्मरण करयुं हतुं, तेना प्रजावथी तुं या सर्व महासुखनो नोक्ता थयो बो. हे नाइ ! पंच परमेष्ठीना नमस्कारथकी तथा तेना जपथकी सम्यक्कज्ञान प्राप्त याय d. सम्यकथी विरति थाय बे ने विरतिथकी मोक्ष प्राप्त थाय बे, मोथक प्रय सुख प्राप्त थाय बे. वली संसारने विषे जे अत्युत्तम फल बे, ते पंच परमेष्ठिना नमस्कारनुं खल्पमां अल्प फल जारावं. वस्तुततस्तु चिदा नंदसुखप्राप्तिरूप जे फल, ते पंच परमेष्ठीना नमस्कारनुंज फल जाणवुं श्रा प्रकारे श्री तीर्थकरें कहेलो पोतानो पूर्वजन्म सांगली ते रत्नशिख राजाना तुरत रोमांच उनां थयां, अने अत्यंत खुशी थयो. एवी रीतें बोध पामेला एवा ते रत्नशिख राजायें, पोताना पुत्रने राज्य सोंपी, तीर्थकरनी समीप यावी जावें करी चारित्रने ग्रहण करूं. पढी क्षपक श्रेणिपर चढी, केवल ज्ञान उत्पन्न करी घणो काल पृथिवीने विषे विहार करी, क्रमें करी मोद सुखने प्राप्त थयो. या प्रकारनो पंच परमेष्ठीना स्मरणफल विषे रत्नशिख राजानो इतिहास सांजली धर्माराधनने विषे रसिक, एवो देवरथ कुमारनो पिता जे कीर्त्ति राजा, ते पोताना देवरथ कुमारने राज्य सोंपी समस्त जिन
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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