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पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०ए पुरुष पुरुषमां, जल जलमां, घणोज फेरफार होय जे ॥१॥ वली देव देवमां, धर्मधर्ममां, श्रमण श्रमणमां, ब्राह्मण ब्राह्मणमां, नुवन नुवनमां पण नि. महोटो फेर फार होय ॥२॥ए वचन सांजली ते नगरना रहेवासी ब्राह्म यो बोल्या के ए तो तमो ठीक कहो बो, पण आ तमारा बिलाडामां एवा क्यां गुणो ले ? के जेथी तमो अवडी मोहोटी किम्मत करो बो ? माटे तेमना गुणो तो कहो? ते सांगली हरिवेग बोल्यो केा अमारा मींदडा मां कोट्यवधि गुणो ले. ते गुणो कांही तमारी पासें कहेवाना नथी. तेना गुणो तो या गामना राजा पासें कहेगुं के, जेथी ते सांगली अमारा क हेवा प्रमाणे तेनी किम्मत ते राजा आपी शके ? ने अमारी महेनत पण सार्थक थाय? तमारी जेवा नीखारी पासें तेना गुणो केहवेथी गुं लान थाय ? अने एवी लान विनानी वृथा माथाकूट कोण करे ? ॥ यतः ॥ लुं बिका नारिकेलाणां, नादंति हुभिता हिकाः ॥ निष्फलः शक्तिमुक्तानां, रत्न ग्रहमनोरथः ॥ १॥ अर्थ:-क्षुधित एवा तथा कादव खानारा देडकांड, को दिवस नालियेरनी तथा खजुरनी खंबो खाता नथी, अने शक्ति र हित जनोने रत्नग्रहण करवानो मनोरथ निष्फलज थइ जाय ३ ॥१॥ वली हे ब्राह्मणो ! या वाणिया जे , ते तो कोडी कोडीनो हिसाब चोप डामां लख्याज करे , तेम तमो ब्राह्मणो बो, ते जन्मना निदुकज बो, माटे ते वाणीया पासेंथी तथा तमारी पासेंथी या अतिमूल्यवान मार्जा रनुं मने झुं मूल्य मले ? वली कदाचित् आवा घणा गुणवाला मारिने तम जेवा दरिडीने थोडा मूल्यथी हुँ आएं, तो मारु दारिश्पण केवी रीतें जाय ? एम कहेतो थको ते हरिवेग पद्मोत्तर कुमारना राजमहेलनी नीचें आवी उनो रह्यो, त्यारे तेनी पडवाडे कौतुक जोवाना मिषथी ते ब्राह्म गो पण चाव्या वाव्या.
हवे पद्मोत्तर कुमारे त्यां महेलनी नीचें मार्जारने लश्ने यावी उना रहेला हरिवेग विद्याधरने दूरथी जोयो. के तुरत तेने पूर्वजन्मना स्नेहथी पो तानी आगल बोलाव्यो, अने नम्रताथी कह्यु के हे नाई!आवो, आवो अने
आ बासनपर बेसो ! एम कही सारा बासनपर बेसास्यो. पड़ी तेनी पासें रहेला मार्जारने जोइ विचार करी पूब्युं के हे नश्क ! आवो महोटो मा जोर आपने क्याथी मल्यो ? त्यारे हरिवेग बोल्यो, के था मार्जार, अ