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जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. पेटी उघाडशो नहिं हो. कारण के जो तमो उघाडशो, तो मारे मंत्रसाध नमां विघ्न थाशे ? तेवं सांजली विस्मय पामेला ते सर्वे शिष्यो गंगाना कांठापर गंगाना प्रवाहने जोता जोता चार कोश पर्यंत चाव्या गया. प रंतु ते मंजूषा तेने दृष्टिगत था नहिं. हवे ते पेटी दृष्टि गत तेने न थ६, तेनुं कारण कहे . के एज गामनो सुनूम नामा राजा हतो, ते गं गाना कांगपर क्रीडा करतो हतो, तेणें गंगाना प्रवाहमा तरती यावती ते पेटी नजरें दीती, के तुरत लही लीधी. ने उघाडीने जोवा लाग्यो, तो तेमां अति रमणीय स्वरूपवालीयो अमने जो अने जोतांवेत का मार्त थयो बने पोताना मंत्रीने कहेवा लाग्यो, के अहो आ आश्चर्य तो जुवो ॥ यतः ॥ किन्नारी किमु किन्नरी किमतरी विद्याधरी वाऽथ वा, किं नागानुचरी किमंबरचरी किं वांबरी किन्नरी॥ किं गौरीहरि सुंदरी.किमय किं, किं चेह वागीश्वरी, तारुण्यममंजरी स्मरपुरी सादात् किमेषा नुवि ॥ ॥ ॥ पातालकन्ये किं विद्या, धर्यो स्वर्गागने च किं ॥ किं वा नृपसते एते, नो नो ब्रूत युवां च के ॥ २ ॥ अर्थः- अरे आ ते झुं नारी हो ! के किन्नरी हशे! के विद्याधरी हशे! के नागनी दासी हशे ! आकाशचरी हो! के किन्नरी हो! के झुं गौरी हशे! के विष्णुपत्नी लक्ष्मी हशे! के वली सरस्वती हो! के तारुण्यवृदनी मंजरी हशे! के आ ते रतिपतिने रहेवानी सादात् नगरी हशे ! के कोण हशे !!! तेम विचारीने अमने बेहुने पूबवा लाग्यो के हे कामलतिका ! तमो वेदु जणीयो पाताल कन्या बो, के विद्याधरी डो, के राजकन्या बो, के कोण बो? ते मुने याथा तथ्यरीतें कहो. ए प्रमाणे रागाईवचनथी राजायें अमोने पूज्युं तो पण थ तिफुःखःखित एवी अमोयें कांही पण जबाप दीधो नहिं. एवा समयमां राजानो अनिप्राय जाणीने तेनो मंत्री कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! आप विचार करो. कोइ पण प्रबल कारण विना सर्व अंगें शणगारेली अति कम नीय, तथा तारुण्यने प्राप्त थयेली एवीआ कन्याउने केम त्याग करे ? तेमाटे कोय पण पोताना स्वार्थ साधवा माटे या बेदु कन्याउने पेटीमां पूरी गं गामां वहेती मूकी लागे . माटे मारो मत तो एम ने, के या ए बेहुने काढी लइ बीजी वे कन्याउ आज मंजूषामां पूरी गंगामां वहेती मूकियें ? ते वाक्य सांजली बीजो को माह्यो माणस बोल्यो के मारो तो ए मत जे जें