SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. तो होय तेवू स्थल, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रवेणी, नर्मदा, गोदा वरी, सेतुबंधरामेश्वरादिकने विषे स्नान करवाथी मोहोटुं पुण्य थाय बे, एम कहे जे. तेमज वली कोइएक हिंसक तो त्रिपुरा, तोतला, नवानी, व्याघेश्वरी प्रमुख उग्र देवीयोना मंत्र जपथी तथा यजुर्वेदादिकना मंत्रजप थीज पुण्य थाय ने एम कहे जे. केटला एक मतिमंदजनो तो तेज मंत्रोथी तिल वगेरेनो अग्निमांदोम करवाथी पापोपशमन थाय ,एम कहे .कोक जडबुद्धिजनो तो,रस्तामा जाड वाववाथीज धर्म थाय , एम कहे . केटला एक अज्ञानी जीवो, केवल आत्माना शून्यध्यानथीज पापनो प्रलय थाय बे, एम कहे . कोशएक उष्टदिलवाला जनो, पोतानाज पूजन करवाथी धर्म थाय , तेम कहे . कोइएक बालबुद्धिवाला माणासो तो, जीव जे बे, तेज परमात्मा दे, तेथी ते जीवने एक दणवार पण कुःख देवं नहिं. अने जे सुख जोगववानी पोताने इला थाय,ते सुखने नोगवी पोतानी इला पूर्ण करवी, तेज धर्म , एम कहे . माटेंते पूर्वोक्त मिथ्यात्वी जीवो तीर्थ करप्रणीत शुद्ध धर्मने विषे केम यत्न करे? तथा प्रीतिमान् पण केम थाय ? कारण के ते जनो पोताने जेमां सुख पडे, तेनेज धर्म कहेनारा ने. हवे पूर्वोक्त सर्व जे मिथ्यात्व , ते सर्व, फुःखने देवावालुं तथा वैरीसमान उत्कट हलाहल जेर समान जे,एम जाणवू. ते माटे ते मिथ्यात्वनो तमारे त्याग करवो. कहेलु के ॥ श्लोकः॥ विषाहिरुपवहिरिपुव्रजेन्यो, मिथ्या त्वमत्यंतरंतःखम् ॥ एकत्र जन्मन्य हितं विषायं, मिथ्यात्वमाहंति नृणामनंतम् ॥ १ ॥ अर्थः- मनुष्योने विष, सर्प, रोग, अग्नि अने रिपु, तेना समूहथी पण मिथ्यात्व जे , ते अत्यंत कुःखदायक . केम के ? ते विषादिक तो मनुष्यने प्रा जन्मने विषेज नाशनां करनारां. परंतु मिथ्यात्व जे, ते तो अनंत जन्म मरणादिक दुःखने आपनालं. __ या प्रकारनां केवलीनां वचन सांजलतांज सुरपति राजाने मिथ्यात्व मोहनी कर्मनो क्ष्य थ गयो. तेथी ते गुरू सम्यत्त्वने पाम्यो. पनी अनु में तेने चारित्र परिणाम नत्पन्न थवाथी ते केवली नगवानने नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के हे जगवन् ! जेम हाल थापें मने मिथ्यात्व रूप खा डामांथी मूबतो राख्यो,तेमज हवे दीदारूप पर्वत पर पण चडवानो अनुय ह करो. एम नावयुक्त तेनां वचन सांजलीने ते सुरपति राजाने तुरत दीदा
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy