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GG जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. गर्जना करता, एक एकनी चोट चुकावता, वली बेदु हांको मारता,हूंका रा करता, सिंह नादे पोकार करता, विविध प्रकारनां आयु६ मूकता, मां हो मांहे वलगता, लीलायें खेलता, विद्याधर सरखाने जय पमाडता, एवा ते बेदु राजा महा यु६ करे . घणा यूर पुरुषने त्रास पमाडता, घणा देवताने नसाडता, एवा ते बे युद्ध करता हवा. तेथी ते यूर पुरुषने प्रशंसा करवा योग्य थया. एवो संग्राम शतां कोई दैवयोगथी वत्सदेशनो राजा समरसिंह ते घाणा घातें पीडाणो थको मूर्ना खाइने जूमीयें पज्यो, लो चन मली गयां, त्यारे अंगदेशना कमलसेन राजायें पाणी मगावी तेनी उपर बांटयो. पाणी सींच्यो, वस्त्रे करी वायु वीज्यो, घणा उपाय करीने समर सिंह राजाने स्वस्थ कीधो. त्यार पड़ी आश्वासना दश्ने हितेच्बुनी रीतें हीमत दीधी. अने कह्यु के, तमारो नाम जे समरसिंह ने ते सत्य जे. संग्रामने विषे तमे साचा सिंह बो.जेवा नामें तेवा परिणामें बो. माटे विष वाद न करो, बने प्रसन्न थ हीमत राखी हाथमां श्रायुड़ धरो. एम कर्दा त्यारे समर सिंह राजा मनमां विचारे ने के,अहो! एनुं पराक्रम पणुं ! अहो! एनी युद्ध कलानी कुशलता जोतां ए को मोटा राजाना कुलमां नपज्यो हशे एम लागे . ए को महा पुरुप ले. क्यां दुं वृक्ष थयो तो पण पर राज्यना लोनें करी केवो अन्याय करूं ! अने ए लघु वयनो ने तो पण केवो नीतिमान, विनयवंत अने न्यायवंत पराक्रमी . हवे हुँ मानर हित थयो माटेराज्य जोगने योग्य नथी. हुं हवे दीदा सेवा योग्य बु ५४४ __ एवं चित्तमां धरीने समरसिंह राजा कहे . हे राजन! मारो मान घा त थयो. तेथी हुँ मृत्यु मय थयो. माटे हवे मारी साथे तमारे संग्राम कर वो घटे नहिं. मुवा साथे युद्ध युं करवू ? तो हवे तमे सात्वीक . तमे मारु राज्य लीयो मारी आठ कन्या , ते साये तमे लग्न करो अने मारुं रा ज्य पण जोगवो. अमे हवे परनवर्नु हित कारी एवं चारित्र व्रत आदरझुं त्यारें कमलसेन कुमार कह्यं तमो तमारी परंपरायें जे आव्युं ते राज्य पालो वली समय आवे त्यारे परजवर्नु हित साधन करजो. एम कर्तुं तो पण ते राजा अति वैराग्यवंत थको संसारमाहे न खुत्यो अने कमलसेन कुमार नणी पोतानी आठ कन्या तथा वत्सदेशनुं राज्य दपोते सुधर्माचार्य पासे