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________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४पए तो आवा मुनियो परोपकारी होय, तेमां तो झुं आश्चर्य ? था जगतमां धावा उत्तम गुरु शिवाय, संसारथी जीवनुं कोई पण रक्षण करवा समर्थ नथी, तो आ गुरु,मारो संसारसमुश्यकीनचार करवाज पधारेला ले. कर्यु ने के, पिता, माता, भ्राता, जार्या, पुत्र, मित्र, सुहत्, मत्त एवा हस्ती, नट, रथ, अश्व अने वाली बीजो कोइ पण परिकर, नरकमां मुबता जीवो नो नदार करी शकतो नथी. परंतु धर्माधर्म प्रगट करवाने समर्थ एवा आवा गुरु जे जे, ते नदार करी शके . वली आ मारा गुरु तो मारो वि शेषे करी उपकार करवा आवेला .कारण के ज्यारें दुं बालक हतो,त्यारें ते पूर्वावस्थायें मारा मामा हता, त्यारे पण तेमणे मने राजगादीपर बेसास्यो हतो. अने हाल पाना मारी पर दया लावी मने संसारमाथी मुक्त करवा पधारेला डे. परंतु ढुं महामूढ बु. केम के मारा पितायें ज्यारें दीक्षा लीधी, त्यारें मने, तेमणे पण ते दीक्षामार्ग बताव्यो हतो, तो पण ते उत्तम मा गने विषे विषयामिषमां लुब्ध थयेलो ढुंहजी सुधी प्रवृत्त थयो नथी. अने हा, खरूं ले के, मोहांध एवा मुज सरखा पुरुषो,मृगनी पठे कूटपाशसमान, कुःख बंधरूप या राज्यमां पडे .पण ज्ञानीजनो पडता नथी.हवे जे बन्युं ते खरुं? परंतु हवे हुँ जेम बनशे तेम संसारना सर्व विचार बोडी दश्ने आ सुगुरुना व चनने पालीश? कारण के जे वचनना पालवाथकीया संसाररूप समुसुखें करी तरी जवाय जे? या प्रकारनो विचार करी ते संवेगी राजा गुरुने नमन करी कहे जे, के हे गुरो! मारा निष्कारण बंधु एवा जे आप, ते थापनां वचनने हुँ स्वहितार्थी तथा निःशंकमन थर, अवश्य पालीश ? एम कही ते नृप, नावना नाववा लाग्यो के अहो! सर्व नाग्यशाली पुरुषोमा हाल हुँ माहानाग्यशाली बु. केम के बाजे यावा सूरिपुरुष, मारी पर तुष्टाय मान थया ? जेम मंदनाग्यवालाना मंदिरमां सुवर्णनिधान प्रगट थाय, तेम संसारासक्त एवा मने अावा निधानसमान गुरुनो मेलाप थयो ? कह्यु डे के ॥ श्लोक ॥ धन्यानां सुप्रसन्नाश्च, जरामरणरुगहरम् ॥ गुरवः सुखदं दयू, रुपदेशमहौषधम् ॥१॥ अर्थः-जे जाग्यवान पुरुषो होय, तेमने अत्यंत प्रसन्न थयेला गुरु,जरा, मरण,रोग, तेने नाश करनार, अने सुख ने देनार एवँ उपदेशरूप औषध आपेले. एम नावना नावीने गुरुने कहे डे के हे स्वामिन् ! मारा कुमारने हालमांज राज्यासन पर बेसारीने हुँथाप
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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