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२३ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. चार कार्योनो संध्याकालने विषे त्याग करवो, ते कयां चार कार्य ? तो के आहार, मेथुन, निज्ञ अने विशेषे करी स्वाध्याय, एटलां वानानो त्याग करवो ॥७॥ कारण के संध्याकालमा आहार करबाथी व्याधि थाय डे अने मैथुन करवाथी कूरगर्न थाय , तथा निशथी धननो नाश थाय अने स्वाध्याय करवाथी मरण उत्पन्न थाय डे ॥ ॥ देम, दया, शौच, धर्म, स्वर्ग अने मोद, तेने वांडता एवा बुद्धिमान् पुरु रात्रिनोजनने नक्तनोजन मानीने जोजन करवुज नहिं ॥ ए ॥ वली पण कह्यु के सूक्ष्म, त्रस, एवा जीवोनो रात्रिनोजन करनारना नोजन पात्रमा संपात थाय . अर्थात् रात्रि जोजन करनारना नोजनमा सूक्ष्मत्रस जीवो
आवी पडे बे, कारण के ते जीवो हाथें करी वारिये पण पड्या शिवाय रहे ताज नथी. केम के ते जीवोने रात्रिमा दृष्टिनो अनाव होय ? माटे तेमां प्रत्यद दोष मानी ते रात्रिनोजन करवूज नहिं ॥१०॥ इंडियोनो विजय, तथा जीवनी हिंसाना त्याग वगेरेथी जीवनी परिशुक्षि थाय ले. तथा पशुनाव परित्यागरूप गुणो पण थाय ने ॥११॥ ते कारण माटे हे धनेश्वर ! तमें दोष अने गुणोने जागी प्रवृत्ति अने निवृत्ति करो. अने ग्राम्य पुत्रनी पर्नु कदायह करीअनर्थने शा माटे करोडो? ते जेम केः- एक गामनेविषे कोइ एक ग्रामीण मनुष्य रहेतो हतो, ते मरण पाम्यो, तेथी तेनी नार्या, पोताना स्वामीनु स्मरण करीने अत्यंत रुदन करवा लागी. त्यारे ते नो एक पुत्र हतो, तेणें कह्यु के हे मातः! तमें शामाटे शोक करो बो ? दूं तमारो पुत्र माटे अनुचरनी पहें तमारी सेवा करीश, अने गृहकार्य पण करीश. माटे आवो महोटो शोक करवानुं हुं कारण? त्यारे ते स्त्री बोली के हे पुत्र! तारो पिता जे कार्य हाथमां लेता हता, ते कोइकालें मूकताज नोता, अने तुं तो निश्चिंत जेवो देखा बो, तथा बालक बो, तेथी हाथमाली धेला कार्य करवामां शिथिल बो, माटे मने महोटो शोक उत्पन्न थाय ? त्यारे ते पुत्र बोल्यो के हे माता! जुन.आजथी आरंजीने हवे हुँ गृहकार्यमां सचिंतज रहिश,अने मारा हाथथी जालेलुं कार्य हुँघणो कुखी थाइश तो पण मूकीश नहिं. एम कहीने पोतानी माताने स्थिर करी. पड़ी एक दिवस राजरस्ते पोतें निकट्यो, तेवामां तेज रस्तामां कोई एक धोबीनो गधेडो पोताना घरथी बंधन तोडी दोड्यो जतो हतो अने तेनी पळवाडे तेने