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________________ ११४ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. विचायं जे प्रथम शत्रुने तो ललितांग कुमार हण्यो, अने बीजा ज्योतिषी ये विद्याधरने देखायो,त्रीजा पुरुषं व्योमग विमान बनाव्यु, अने चोथा पुरुषे मरेली कन्याने विषहरण करीने जीवाडी. हवे ते चारे कुमारो, रूपें पण सरखा ,महोटा राजाना पुत्रो ,तथा बलीया पण सरखा ,तथा कोई कोना गांज्या जाय तेवा पण नथी. वली ते चारे जणायें ए कन्या वरवानुं 'पण' पण नीधुंबे, ने दृढ श्राग्रह पण कीधो ले.. हवे तेवे समयें गजा विचारले जे ढुंधात्रणेनु अपमान करीने जो एक नेज कन्या था, तो टीक न केहेवाय? वली जे कन्यानी चार प्रतिझा हती, ते पण चारे जगायें पूरी करी देखाडी. माटे कोनो त्याग करवो अने कोने देवी? एम कन्यानो पिता सामंत प्रधान सहित लोको देखतां अत्यंत चिंता मां मन थइ गयो जे. एवे समय ते कन्या मनमां चिंतववा लागी जे माझं मन तो या ललितांग कुमारमांज , तो पण मारा उर्दैवना वशथकी परस्पर राज कुमारोनो विवाद थयो ने. अने मारो पिता तेना क्वेशनें जोड्ने फुःखी थयो ने. अरेरे !!! श्रा, अतिरमणीय एवं मारु रूप गुं अनर्थकारीज था? धिक्कार ने मारा जीवतरने जे आवीधापत्तिमा ढुंबावी पडी ? माटे मारे जी ववाथी हवे मरवू ले तेज नखं . वली पण विचारवा लागी जे अात्मघात करवो, तेनो श्रीवीतरागेंतो निषेध करेलोले खरो,परंतु कोइएक ठेकाणे कोक एवा कारणथी आत्मघातने गुम पण मानेलो ने. कुंवरीयें एवं मनमांधा रीने पोताना पिताने विनति कीधी जे हे पिताजी ! ए वातनो कांइ खेद न करवो, अने तमो मने बीजा सर्व विचार मूकी दश्ने काष्ठानि आपो, के जेथी सर्व- देम थाय? कदाचित् तमें मने जीवती जो नहीं बालो,तो घणा जीवोनी हानि थशे, तेथी तमनें माहापाप लागशे? वली माहारी पण अनि प्रवेशथीज इष्टसिदि.अने तमारे माथेथी लोकापवाद पण तेथीज मटशे. एबुं पुत्रीनुं वचन सांजलीने राजा पोताना बुद्धिमान प्रधाननें पूबवालाग्यो के, हेमंत्री ! ढुंआवा आपत्ति समुश्मा मूबी गयो ,अने मारा हृदयमा दाह थयाज करे ,वास्ते हे प्रधान ! तमें तमारी बुद्धियें करी या विषम कार्यनी सिदि थाय, तेम करो. अर्थात् कोइएक बुद्धि केलवी सुख नपजे, तेम करो. मुःखमां ज्यारें बुद्धि केलवी सहाय न करे, तेवारें बुद्धिमाननी बुद्धि मुकाम आवे? त्यारे प्रधान, बुद्धिथी विचारीने राजाने कहे डे, के जे कन्या कहे जे,
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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