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पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३०१ जणने जीती सकीश नहि, तेथी एक वाचाल दूतने मोकली साम, दान, विधिनेदथी समजावी,अने एम समजाव्याथ। को रीतें ते बे कन्यामांथी मने एक पण कन्या जोश्य थापे ? जो थापे तो तो ठीक थाय, नहिं तो पड़ी
वट लडq तो ज? एम विचारी एक वाचाल दूतने ते चंध्वज राजा पासें मोकल्यो, ते दूतें आवीने ते चंध्वज राजाने कयुं के हे राजन् ! मने सांकेतपुरना विर राजायें मोकलेलो डे. अने तेणें कहेवराव्यु ले के. “बाहिं आवेला कोइ पण राजकुमारने एक कन्या तमारे पापवीज जोयें. कारण के आप्या विना था अमारोराजकुमारोनो कोप शांत थाशे नही! तथा तमने सहुने सुख शाता पण रहेको नहिं अने महोटो उत्पा त थाशे? वली हे नृप! तमें सर्व राज कुमारोने आमंत्रण करी तेडावीने एकज जणने बेहुकन्या आपी दीधी, ते तमोयें अमाळं सदुनुं मोहोटुंब पमान कयुं ने अने नाक काप्यं ने ? माटे अमारा कहेवा प्रमाणे एक पण कन्या जो नहिं आपो, तो तमारा जमाइने ए बेहु कन्याने परणी पोताने घेर जावं, बढुज कठिन थइ पडशे? जाजु गुं कहियें, पण ते पद्मोत्तरनो नाराज था?" ए वाक्य सांजली मथुरापति एवो चंध्वज राजा बोल्यो के हे दूत ! तुं आवा कटु वाक्य म बोल. अने तुं तारा स्वामीनुं हित करवा याव्यो जो खरो, परंतु कांश युक्तायुक्त समजतोज नथी. कारण के जे संदेशाथी वृथा महोटो क्वेश उत्पन्न थाय, तेवो संदेशो देतां जरा पण मर केम खातो नथी? त्यारे ते दूत बोल्यो के हे राजन् ! आप कहो बो, एमज ढुं मारा स्वामीनो नक्त बौं, एम तो सदु कोइ जाणेज ले, परंतु जो विचार करशो, तो आपनो पण ढुं हितैषी बौं, केम के आ पनी बे कन्यामांथी एक कन्या आपवारूप संदेशो कहिने आपनां तथा
आपना जामाताना अने सर्व सैन्यना जीवोने बचाववा इच्छं बौं, कदा चित् अमो बलवान बैयें, तो अमारो तारा स्वामी विउरराजा वगेरेथी पराजय को दाडो थाय एमज नथी ! एम जो आप जाणता हो, तो ते थापनी महोटी नूल .कारण के एक को महोटो बलवान् हस्ती होय, तो तेने जाजा जण जो दमन करे , तो तेनुं दमन थाय ने, अने तेथ। पनी ते वीचाराना शरीरने कीडीयो जेवा हलका जीवोने खावानो प्रसंग श्रावे जे. वली जु. आवो अति प्रकाशमान सूर्य , ते पण जो जाजां