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________________ ३४६ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. ते सिंहें कुमारनो निश्चय जाण्यो के आ कुमार, कोइ पण रीतें मुने आ सूतेलो पुरुष यापशेज नहिं. एम जाणी प्रसन्न थइ ते बोल्यो के अहो! तुने, अने तारी शरणागतवत्सलताने पण धन्य ? अहो! हे विधान ! जे बावो परोपकार करवो, ते सुइजननो मुख्य गुण ने. अने हे कुमार ! जुने धनवान् एवो कृपण जन जे जे, ते तो बते वैनवें पण कोश्याचकजनने तथा बीजा कोइ पण जनने एक फूटल कोडी सुधां आपतो नथी. तथा जीर्ण एवा तीर्थोनो नदार पण करतो नथी अने ते, कोइ जीवने थयेला व्याधिने पण टालतो नथी, तेम पोते पण शरीरसुखने नोगवतो नथी. अने निधन एवा उदारमनवाला जे मनुष्य , ते पोताना शरीरनो पण त्याग करी स्वकीय कुलने दीपावे . माटे हे सदुद्दे ! तुं कोई उत्तम सुइजन बो, तेथी धावा परोपकाररूप गुणोथी हुँ तारी पर संतुष्ट थयेलो . माटे हे नाइ ! तारे जे कांश मनोनीट होय, ते माग. तुं जे मागीश, ते ढुं श्रा पीश? ते सांजली कुमार बोल्यो के हे पंचानन ! एक मुने संशय थाय बे, के तमें सिंह थश्ने आवी मनुष्यसमान नाषा बोलो बो, तेयो तमें सिंह बो, के बीजा कोइ बो ? ते सांजली सिंह बोल्यो के हे मित्र! हूं तो आ देशनो देव बुं. त्यारे कुमार कहे , के अहो ! त्यारें तो पाश्च र्यनी वात बे, के तमो आ देशना देव बो, ते बतां आ गाम तथा देशने उजडज केम राख्यो ? जुन ने, जे कोइ साधारण माणास होय , ते पण पोतानुं नगर जो नजड थयेनुं होय, तो तेने वसावे , तो तम जेवाने या नजड नगर अने देश वसावामांशी अडचल ने, जे वसावता नथी? ते सांजली तुरत ते सिंह पोताना देवस्वरूपने प्रगट करी कहेवा लाग्यो, के हे सुजन! था नगर तथा देश जे उजड रह्यां , तेनुं वृत्तांत जे बन्यु जे, ते कडं, ते सांबलो. आ गांधारपुरनामा नगर ले. अने आनो रविचं नामा राजा हतो. तेने रतिचं अने कीर्तिचं नामा बे पुत्र हता. हवे एक दिवस ते रवि चंड राजायें, वैराग्य पामी पोताना रतिचं नामा ज्येष्ठ पुत्रने राज्यासन पर बेसारी, अने तेथी नाना कीर्तिचंश्ने युवराज स्थान आपी, तापस दीक्षा ग्रहण करी. हवे ते रतिचं राजा, गान ताननो शोखी होवाथी, गान ताननाज आनंदमां रहेतो हतो, अने पोताना राज्यखटपटनी
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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