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________________ ४४२ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. मटवाथी प्रेमपूर्ण यइ गया. अने सर्वत्र हर्षवधामणां थयां.बने जय राजा पोताना पुत्रनी आवी महोटी पुण्याइ जोइ अत्यंत संतुष्ट थयो. हवे ते कुसुमायुध कुमारनी साथें पूर्वोक्त राजशेखर राजा पोतानुं सैन्य लइ,लडवा आवतो हतो, तेनुं गुं थयुं? ते कहे . के ज्यां ते राजशे खर राजा लडवा आवे , त्यां तो तेणें ते कुसुमायुध राजाना पिता जय राजाना तथा मानतुंगराजाना शिववनपुरमा आववाना समाचार सान व्या, तथा बीजुं पण सर्व वृत्तांत सांजल्यु, तेथी ते मनमां घणोज विलवो थ पश्चात्ताप करवा लाग्यो के अरे! मारा जेवा मूढमतिने मोहने नत्पन्न करनारा लोनने धिक्कार हजो. कारण के जे लोनें करी जीव, विषयपाशने विषे बंधाय बे. अने वली तेवो लोन कदाचित् निर्धन तो करे, परंतु ढुंजे वाने ते शा माटे करवो? केम के साम्राज्यैश्वर्यथी सुशोनित एवा मने आ मारा राज्यमां कां न्यूनता नथी? वली जे लोनने वश थइने में बीजाना राजने य हण करवा माटे मारा यात्माने वृथा खेदमां नारख्यो? वली में दूत साथें कहे वराव्यु के "वालकने राज होय नहिं,अने एम करतां वालकने राज मल्यु ले, पण ते राज्य अमो तेने रहेवा देगुं नहीं” ए जे कहेवराव्यु, ते पण में मोटीनलज करी. कारण के पुण्यना प्रागल्ल्यथी बालकने पण राज्य मले ,अने ते नोगवे पण . तो पुण्यथी प्राप्त थयेला तेना राज्यने दुं ग्रहण क रवानी हा कलं, ते मारी केवडी महोटी मूर्खाइ कहेवाय? माटे जानुं हुं कहूं, पण हुँ घणो महोटो राज्याधिपति बतां पण लोनी थयो, तेथी अति लोनी एवा मुने धिक्कार हजो. अने पूर्वनवकृत पूर्णपुण्यवासाना राजने रुष्ट थइने पण कोण ल३ शके ? कोइ नहिं. तेम निर्नागी प्राणीने तुष्ट मान थश्ने कोण आपी शके ? को नहिं. अर्थात् निर्नागीने याप्यु रहे नहिं, अने पुण्यशाली, होय ते जाय नहिं. वली पण विचारवा लाग्यो के अरे ! में पूर्वे था जय राजा प्रमुख साथें केवी महोटी प्रीतिनी वेल वधारी हती, तेने में था मारालोन तथा अन्यायरूप दावानलथी हाल पाली बाली नाखी जे. माटे त्यां जर ते जयराजाने तथा तेना ससरा मानतुंग राजाने चरणमा पडी तेनी क्षमा मागी ते स्नेहवेलने पानी अंकुरित करूं? कारण के को मा एस कदाचित् पोताना मार्गथी नूलो पड्यो होय, अने ते जो चालतो चालतो उनो रहे, अने पनी कोजागीता माणसने पूजे, तो ते पाडो खरा मार्गने
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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