________________
जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. कोइक चोवीशीना अवसर्पिणी कालने पांचमे आरे ए शंख राजा थया. तेज महारुषि, गुरू समकितवंत, एवो पृथ्वीचं राजा नाव चारित्रना बीजें करी नार्यासहित अनुक्रमें मनुष्यना तथा देवताना नवमां श्रधि काधिक सुख नोगवीने अंते सुखें समाधे मोक्ने पाम्या. ते कथा ढुं कहूं बुं, ते प्रत्ये हे सऊनजीवो ! तमे सांजलो. १६ ते समकित कये नवे पा म्या, ते पाम्या पली केटला नव संसारमा कीधा, ते नवनी संख्या केटली थर, ते मूल ग्रंथमध्ये जेम कही ने तेम लखिये बियें.
प्रथम नवे पृथ्वीचंद कुमारनो जीव शंखराजा थयो, अने गुणसागर नो जीव कलावती राणी थइ. तिहां ए बे जीव समकित पामी दीक्षा ले। चारित्र पाली बीजे नवे सौधर्म देवलोकें देव देवी थयां. त्यां पांच पांच पव्योपमनुं आयुष पाली त्रीजे नवे शंख राजानो जीव कमलसेनराजा थया, अने गुणसागरनो जीव तेहनी गुणसेना राणी थ. त्यां ए बे जीव दीदा खेइ, चारित्र पाली चोथे नवे दश सागरोपमने बानखे पांचमे देव लोके मित्रपणे देवता थया. तिहाथी पांचमे नवे पृथ्वीचंनो जीव देव सिंह राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेनी कनकसुंदरी नामें राणी थ. ते नवें श्रावकनांबार व्रत पाली बहें नवे, सातमे शुक्र देवलोकें सत्तर सागरोपमने आउखे एबे जीव मित्र देवता थया. त्यांथी सातमे नवें पृथ्वी चंइनो जीव देवरथ नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव रत्नावली नामें तेनी राणी थइ. एबे जीव ते नवें शु६ श्रावक व्रत पाली प्रारमेनवे नवमे आनत देवलोकें उगणीश सागरने घाउखें ते बे मित्र देवता थया. तिहांथी नवमे नवें पृथ्वीचंइनो जीव, पूर्णचंड नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेनी पुष्पसुंदरी नामें राणी थइ. ते नवे एबे जीव गुरू श्रावकनां बार व्रत पाली दशमे नवें अग्यारमे धारण देवलोकें वीश सागरने आउखें ए वे मित्र देवता थया. त्यांथी च्यवी अग्यारमे नवें ट थ्वीचंनो जीव शूरसेन नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव तेहनी मुक्तावली नामें राणी थइ. ते नवे बेहु युद्ध चारित्र पाली बारमेनवे वीस सागरने आयुषे पहेली ग्रैवेयकें ते बे मित्र देवता थया. त्यांथी च्यवी तेरमे नवे पृथ्वीचंनो जीव पद्मोतर नामें राजा थयो, अने गुणसागरनो जीव हरिवेग नामें राजा थयो. ते बन्ने विद्याधर थया. तिहां दीक्षा लइ चारित्र