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पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र.
रथी श्रनेत्री जो उत्तर तो पूर्वोक्त बेदु प्रश्नना बवे उत्तरनाज चार अक्षरोथी प्रापो.
हवे राणी उत्तर या बे के थापना प्रथम प्रश्ननो उत्तर तो 'मुक्ता' एटले मोती. अर्थात स्वाति नक्षत्रमां वरसता वरसादना जलथी बीपसंपुटमां मुक्ता या बे. बीजा प्रश्ननो उत्तर 'बली' एटले बलवान् अर्थात् बलवान् पुरुष, शत्रुने हो के कारण के सामर्थ्यरहित पुरुषथी शत्रुनो नाश थायज नह।. या बली तथा मुक्ता पदमां पण थापना कह्या मुजब बेज रो बे. हवे त्रीजा प्रश्ननो उत्तर " मुक्तावली ” एटले मोतीनी मालाज थाय बे अर्थात् ते मुक्तावली आपना हृदयने शोजावे े, तथा मुक्तावली एवं मारूं नाम बे, तो ढुं पण होनिशस्मरणे करी आपना हृदयथी जातीज नथी, तो माथी पण यापनुं हृदय शोने से जुडे. या त्रीजा प्रश्नना उत्तरमां कहेला मुक्तावली ए पदमां पण थापना पूजवा मुजब पहेला ने बीजा प्रश्नना उत्तरमां कहेला जे वे वे अक्षरो बे, तेज चार अरोनुं पद बना वीने उत्तर कहेलो बे.
१६३ रोयें श्रापेला
हवे बीजा प्रश्नना उत्तरमां बली एवं पद कहेलुं बे, तेथी त्रीजा प्रश्नना उत्तरमां " मुक्तावली ” एम था जोइयें अने ते उत्तरमां तो मुक्तावली एम यावे, तोज खरो उत्तर कहेवाय बे ? तो त्यां कहे बे के व्याकरणना नियमथी बनुं ने वनुं ऐक्यज ले, तेथी कोइठेकाले उच्चारमां वने ठेकाणे. बनो करीयें तो कां पूर्वोक्त दोप याव्यो कहेवाय नहिं. माटे बजी ने वलीनो दोष नथी.
या प्रमाणें रत्नावलीयें ज्यारें त्रणे उत्तर याप्या, त्यारें वली सूरसेन कुमार कवा लाग्यो के हे वरांगि ! हवे तमो कांइक मने पण प्रश्न करो, जुन तो खरां के मने पण तमारी मुजब प्रश्नोना उत्तर व्यापता खावडे वे के नहिं ? त्यारें रत्नावलीयें पूयं के ॥ श्लोक ॥ हरिः का जलधेर्लेने, किटगन्नं न पुष्टिदम् ॥ प्राणेशस्योपमानं किं, हस्तयोः पादयोरपि ॥ १ ॥ अर्थः- हरि जे विष्णु ते जलधिकीक वस्तुने प्राप्त थया ? तथा पुष्टिने न खापे, तेवुं यन्न कयुं बे ? प्राणेश जे याप ते छापना हाथ ने पगने केनी उपमा देवाय ले ? हा प्रश्नमा पहेला प्रश्ननो उत्तर एक अक्षरथी, बीजा प्रश्ननो उत्तर रथी नेत्रीजानो उत्तर तो ते पूर्वोक्त कहेला बेहु प्रश्नना मली जे