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१६० जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. संकल्प विकल्पना कल्लोलथी व्याकुल ने चित्त जेनुं एवो ए सुमित्र, त्र में करी नमतो नमतो जाजा जेमा प्रासाद ने,अने जाजां जेमां उद्यानो में, जेमा कोइ मनुष्य तो रहेतुंज नथी एवं कोइ एक नगरने देखतो हवो. पड़ी तेवा नगरने दूरथी जो विस्मय पामीने तेणे ते नगरनी थंदर प्रवेश कस्यो. अनुक्रमें सर्व नगरने जोतो थको ते नगरना राजमंदिरमा श्रावी पहोंच्यो. त्यां पण सर्व स्थल निर्जन जोइ, ते राजमंदिरनी सप्तम लूमि पर चडी गयो. त्यां कर्परथी नरेलां ने मस्तक जेनां तथा पुष्पनी मालाथी सुशोनित ने ग्रीवा जेनी अने सांकलथी बांधेला ने पग जेना एवी बे हाथणीयो दीती. पनी संचम युक्त घरटुं परहुँ जोतो थको विचार करवा लाग्यो के बरे हुँ थाहिं क्यां चडी थाव्यो ! अने बे हाथणीयो थाहिं कोणे बांधी दशे ? एम कहीने वली घडीक विराम पाम्यो. पाबो वली संभ्रमथी गांमानी पेठे आम तेम जोवा लाग्यो, त्यां गवादने विषे पडेली श्वेत अने कृष्ण एवा अंजननी नरेलीबे शीशीयो नजरें पड़ी. अने ते शीशीनी पासें एक प्रांरखमां अंजन करवानी शलाका पण दृष्टिगोचर था. ते सर्व जोश्ने सुमित्रने संन्रम मटी शांति थइ अने तेणे जाएयु जे जरूर या योगांजननीज शीशीयो , कारण के आबे हाथणीयोनी पांपणो धोली ने, कारण के तेनी पांपणोमां धोली शीशीमां पडेला सड जेवू उसड प्रांजेलु . माटे ढुं जाणुं जे या वे हाथणीयो डे, परंतु ते वे हायणीयो नथी, पण ते बे स्त्रीयोज ? अने ते बे स्त्रीयोने कोइएक योगी पुरुचे, आ श्वेतयोगांजन आंजी हाथणीयो करी दीधी ? वली कदाचित जो आ कृष्णांजन जे शीशीमां पडेलु तेथी पानीपूर्वरूपनी स्त्रीयो थाय तो थाय? जे नावी दशे ते थाशे अने ए कृष्णांजन यांजवाथी कां आप गने अडचल पडवानी नथी? जो स्त्रीयो नही थाय, अने हाल जेम बेद्ध हाथणीयो , तेमज रहेशे, तो पण कांश फिकर जेवू नथी ? एम वि चारीने ते सुमित्रं शीशीमांथी कृष्णांजन लइ ते बेदु हाथणीनी चदुमा अांजी दीधुं. तेथी तुरत ते हाथणीयो बे उत्तम कामिनीयो थइ गइ. अने सुमित्रे ते बेदु जणीयोने कुशलप्रश्न पूयु. तारे ते बेदु स्त्रीयोयें कह्यु के आपना समागमथी हवे अमाझं कुशल थयु! त्यारें सुमित्रं कर्तुं के हे उत्तम नामिनीयो! मारा चित्तने आश्चर्य उत्पन्न करनारं तमाळंत