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________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५५ जुवो बो. अने हुँ पण आपना स्नेहामृतथी सिक्त थयो थको अति निवृत्तिने पाम्यो . त्यां वली हे राजन! हुँ अग्निमांबली मरीश ? एवं कर्णशूलसमान वचन शामाटे बोलो बो? प्रथम मने पोतानो मानी पोताना ज्येष्ठ नाइ समान सुख थापीने पाबु वली आ प्रमाण- कठोर वचन कहि सुःख देवं, ते झुं थापने घटे ? आपने ज्यारे थामज करवू दतुं, त्यारें तो मुने घावो स्नेह देखाडीमोह करवो न हतो? वली जेने खोले माणस, माधुं मूके, तेज ज्यारें तेनुं माथु कापी नाखे, त्यारे ते पनी कोनी पासें फरियाद करे ? या सर्व सांजली रत्नसार कुमार बोल्यो के हे पांथजन! सांजलो. दंबली मरवानो विचारतो करत नहिं, परंतु आ देशनो एक यद , तेणें मने कडं हतुं के हे रत्नसार ! जेने तुं शोधवा निकल्यो बो,ते तुने बाहिंज एक मासनी अंदर मलशे? अने तेना कहेवा प्रमाणे एक मास तो व्यतीत थइ गयो परंतु ते मने मल्यो नहिं. तेथी हाल हवे हुँ निराश थ गयो ढुं, अने तेने मलवानी आशाये में अटला दिवस तो तेनी विरहवेदना पण वेठी, धने प्राण पण राख्यां, परंतु हवे हुँ मारा प्राण राखवा शक्ति धरावतो नथी. ते सांजली रूपांतरधारी ते गिरिसुंदर बोल्यो के हे प्रिय मित्र. देवनी वाणी कोइ दाहाडो मिथ्या होतीज नथी माटे आप प्रतिसमय जेनुं स्मरण करो बो, ते दैवें निश्चय करेलो तमारो नाइ आ हुं पंमें गिरिसुंदरज बु, अने हे ना! ढुं बापणे गाम गयो, त्यां में सांजल्यु के बाप मने शोधवा गया बो, ते सांजलतांज ढुंपण प्राणथी वन्नन एवा आपने शोधवा माटे था पृथ्वीने विषे फस्याज करतो हतो, फरतां फरतां को एक गामनी बाहार, रात्रे एक जीर्णदेवालयमां सूतां सतां में या आपना मित्रना कहेवाथी श्रा पने राज्य मलवा वगेरेनी सर्व हकीगत सांजली. तेथी मुने अत्यानंद थयो. पड़ी हुँ आ मित्रनी साथें आपनां दर्शन करवा माटे याहिं आवेलो . हवे आपनां दर्शन थवाथी मारुं सर्वःख नाश पाम्युं , अने हे ना! आप पण मारे माटे प्राणत्याग करवा श्लो बो, ते विचार बंध राखो. अने घणोक काल जीवता रहो. अने हे व्रातः! आप जेवा जे स्नेही, तेज स्नेही कहेवाय. कारण के जे स्नेहमां परस्पर आपण बेदु स्नेहीयोनी किया अने प्रवृत्ति सरखीज . आवां वाक्य ते रूपांतरधारी गिरिसुंदरनां सांजली रत्मसार राजा तो विचारवा लाग्यो के अहो! आ कापडी पुरुष कहे , के
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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