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जैनकथा ग्व
जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. बे,गोपांगनाथी गोविंद पण पुष्पवाणना पासमां पडेला . तो ढुं जेवानो तो एमांव्रतनो मद क्यांधीज रहे? एवीरीतें अनित्य अने तुब विचारथी कल्पना कस्यो ने अमारा वेदु जणीनो समागम जेणे एवो ते परिव्राजक, संत्रांत थये ला मनने ठेकाणे लावतो कांक अमाझं ध्यान करतो थको चूप थइ बेटो अने ते ध्यानथी नोजन करतो अटकी गयो, त्यारे तेवी रीतना बनेला ते परिव्राजकने जोश्ने अमारो पिता संत्रात चित्त थइ गयो, अने कहेवा लाग्यो के महाराज! तमो जमता जमता बंध केम पड्या? जमो, जमो ? झुं तत्त्व चिंतायें करीने हाल था शीतान आपने नावतुं नथी ? एम वारं वार, जोजन करवा माटे तेनी प्रार्थना करी. त्यारे तेणें कह्यु के श्रा प्रका रना मुखथी दग्ध थयेलो ते नोजन केवी रीतें करी शके ! एम कहीने तेणें नावरहित केटलाएक ग्रासो लीधा. पनी नोजनानंतर अमारा पि तायें तेने पूब्यु के हे तापस! आपने दुःख ते गुंडे ? त्यारे तेणें कह्यु के त्याग कस्यो डे सर्वनो संग जेणे एवा मुने तमारा सरखानो संग जे ने, तेज दुःख , कारण के एकांतनक्त एवा तम सरखा सुजनजनोना उखने जोवाने दुं समर्थ थतो नथी, जो ढुं तमारे त्यां न आव्यो हत, तो मने कुःख थातज नही ? अने ते दुःख हुँ पनीथी कहीश पण हाल नहि कहूँ ? एम कहीने ते तापस पोताना स्थानप्रत्ये गयो. ते पनी अमारो पिता पण तेना वचनथी सशंक थयो बतो तेनी पडवाडे गयो, अने त्यां जश्ने एकांत स्थलमां बेठेला ते परिव्राजकने पूबवा लाग्यो के महाराज! आप शामाटे ते वखत विचारमा पड्या हता? ते कहो, त्या तापसें कह्यु के अरे! मारे तो नदीनो अने वाघनो न्याय थयो , एटले जो या तरफ जाय तो पूरमां आवेली नदीमां मूवे, अने जो बीजी तरफ जाय तो व्याघ्र खाइ जाय माटे मारे पण तेमज थयु ? जो तमो प्रबो बो, ते न कहुँ तो तमने उःख लागे , अने जो कहूं , तो या मारो तपस्वीनो धर्म जाय . तथापि तमे अमारा एकांत नक्त बो माटे हे श्रेष्ठि ! दूं तमने कहूँ , ते सांजलो. दुं जे वखतें जमवा वेठो हतो, ते वरखतें त मारी बे पुत्रीयो मुने पंखाथी पवन नाखती हती, त्यां में जमतां ज मतां तेनां अंगलक्षण जोयां, तो मने एम मालम पड्युं जे आ वेदु कन्या ले ते कुलक्षणोथी जरपूर ने अने नाथी ते शेतना कुलनो थोडा